विद्या ददाति विनयम-जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया'
"विद्याददाति विनयम" बचपन ले ये सूक्त वाक्य ल पढ़त-सुनत आवत हन, कि विद्या माने शिक्षा/ज्ञान/समझ ले मनखें मा विनम्रता आथे, फेर का ये देखे बर मिलथे? आखिर विद्या/ज्ञान/समझ काय ए? आज के हिसाब से, पहली ले लेके बड़का बड़का डिग्री इही तो ज्ञान आय न? इही तो समझ बढाथें न? जे जतका बड़े डिग्री धारी ते वोतके बड़े ज्ञानी, है न? ता फेर वो ज्ञानी के ज्ञान/शिक्षा/समझ वोखर बानी, काम-काज अउ आदत- व्यवहार मा झलकना चाही, पर अइसन तो अब दिखबे नइ करे, बल्कि आज तो जे जतके ज्ञानी ते ततके अभिमानी। अइसन मा विद्या ले विनय वाले बात तो लबारी होगे। अनपढ़, नासमझ घलो अइसन नइ करे जउन आज डिग्रीधारी बड़का बड़का ज्ञानी मन करत दिखथें। डिग्रीधारी डॉक्टर, मास्टर, वकील, अफसर, बाबू, इंजीनियर अउ बड़े बड़े पदवी मा बइठे, आपके जानती मा, के झन मनखें विनयशील हें? के झन ईमानदार हे? के झन के डिग्री मा समझदारी झलकथे? शायद मोला डाटा बताये के जरूरत नइहें, काबर कि सिर्फ पेड़े भर फर मा लद के झुके दिखथे, पर मनुष एक्का दुक्का। ता अइसन काबर? का हमर शिक्षा नीति या फेर जेन ज्ञान दिए जावत हे, तिही मा कमी बेसी हे? ये आज चिंतन के विषय हे। बड़े बड़े स्कूल-कॉलेज के लइका मन रद्दा बाट मा मुँहफोर बकत दिखथें। मान गउन, इज्जत-आदर, छोटे-बड़े संग सही-गलत के तको खियाल नइ रखें। आज ज्यादातर पढ़े लिखे मन अंधाधुन मोटर गाड़ी कुदावत, मोबाइल मा दिन रात समय गँवावत, मंद-मउहा, सिगरेट अउ ड्रग्स के नसा मा चूर, होटल-ढाबा मा खावत घूमत अँटियात हें। डिस्को-नाइट क्लब, पब, कौसिनो जइसे बेकार जघा मा आज के मनखें मनके अड्डा हें। येमा पढ़इया लिखइया लइका मन संग बड़े बड़े साहब, सिपैहा सब शामिल दिखथें। का इही सब बुराई मन आय पढ़े लिखे के पहिचान? मनखें अनपढ़ रहिके कतको धीर-वीर, समझदार हो जाय, फेर आज आखर ज्ञान,देश दुनिया के जनइया ही पढ़े लिखे कहाथें।
इंजीनिरिंग, मेडीकल अउ बड़े बड़े कॉलेज, हास्टल मन मा रैगिंग के नाम मा मार पीट, पार्टी सार्टी के नाम मा अश्लीलता, शोर- शराबा, गाली-गलौज, बेढंगा मौज मस्ती आज सहज देखे बर मिलथे। केक, स्प्रे, गुब्बारा आदि अउ कतको चीज ला फेकना-फाकना, बर्थ डे ब्वाय कहिके वोला मारना पीटना, लड़की-लड़का होय के बाद भी अश्लील नाच अउ गारी गल्ला देना, आंय बाँय कपड़ा लत्ता पहिनना, ये सब काय ए? येला पढ़े लिखे लइका मन रोजे करत हें। अइसन मा का आघू उंखर आदत व्यवहार मा विनम्रता अउ समझदारी झलकही? कहाँ जावत हे हमर शिक्षा? नैतिकता के तो नाँवे बुझागे हे। सभ्य, सहजता, सत्यता कुछ तो पढ़े लिखे मा झलके। आज तो चोर चंडाल बरोबर पढ़े लिखे मन ही समाज ला लूटत हें, बर्गालात हें, गलत नियम धियम परोसत हें। रीति नीति, नेत-नियम, संस्कृति- संस्कार ला बरो के सेवा- सत्कार अउ ईमानदारी के कसम खाके पद पाय साहब सिपैहा भ्रष्ट होके, ज्ञान अउ पद के नाम ला डुबोवत हें। शिक्षा के अपमान शिक्षित मन ही करत हें। घूसखोरी, दादागिरी, देखमरी, लालची, हवसी, मुँहजोरी, कामचोरी, स्वार्थी, दुश्मनी, जिद्दी, उज्जटपन असन अउ कतकोन बुराई जे शिक्षा ले भागथे कथे, ते शिक्षित मनखें मन के रग रग मा दिखत हें। विद्यालय जे ज्ञान के मंदिर कहावै ते आज शोरूम/दुकान बनगे हे। पइसा देव ,डिग्री लेव। अइसन मा भला समझदारी, सहजता, विनम्रता जइसन चीज कइसे मिलही? लइका मन दाई ददा के बात बानी ला घलो नइ सुनत हें, ता आन के बरजना ला का मानही? इंज्वाय, इस्टाइल, एटीट्यूड, पर्सनाल्टी कहिके पढ़इया-लिखइया मन आज का का नइ करत हें, अउ जउन करत हें तेला सब तो देखते हन।
"विद्या ददाति विनयं,विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्॥"
मतलब विद्या ले विनय, विनय ले पात्रता, पात्रत्रा ले धन, धन ले धर्म अउ धर्म ले सुख के प्राप्ति होथे। ये सोला आना सच हे, फेर आज विद्या पाके मनखें कइसनों होय धन कमाए के सोचत हें। अनपढ़ घलो जांगर खपा के अपन दिन गुजारथे, फेर पढ़े लिखे मन आज अपन जिम्मेदारी, विधि-विधान अउ फर्ज ले भागत दिखथें। साहब, बाबू, डॉक्टर, मास्टर, अभियंता-------कस कतकोन मन ला निर्माण के जिम्मेदारी मिले हें, फेर आज स्वार्थ, हवस अउ जादा के चाह मा मनखें मन विनाश करे बर घलो तियार दिखथें। ऑनलाइन ठगी, लूट, चापलूसी, अनैतिक कृत्य, मिलावट, कालाबाजारी, स्मगलिंग, जासूसी, अपहरण, लफुटी, वसूली-----जइसे काम आज पढ़े लिखे मनखें मन डंका बजाके करत हें, काबर कि पदवी धारी लगभग सबे झन के इही हाल हे। अभिच देखे हन बड़का बड़का डिग्रीधारी डॉक्टर आतंकवादी हो जावत हे। मास्टर मनके आय दिन शिकायत आवत हे। टीटी, पटवारी, साहब-सिपैहा मन घूसखोरी मा सने मिलत हें। खोज-खबर देवइया, जज-वकील, साहब- बाबू, पुलिस-प्रशासन पैसा मा बिक जावत हें। जइसे जइसे देश मा शिक्षा अउ शिक्षित व्यक्ति मन के संख्या बढ़त हें, तइसे तइसे विसंगति अउ बुराई घलो बढ़त जावत हे।जे चिंता अउ चिंतन के बिषय आय।
एक अनपढ़ बनिहार धान के खेत ला निंदत बेरा, बन/खरपतवार ला ही फेकथे, रिस या बदला मा धाने धान ला नइ खने। वो समय मा आथे, समय मा जाथे, समय मा खाथे, ता पढ़े लिखे मन अपन फर्ज ले काबर डिग जथे? काबर लालच या स्वार्थ मा मेहनताना मिले के बावजूद भी लूट मचाय मा तुले रथें? पढ़ लिख के मनखें आज अपन तन मन ला क़ाबू मा नइ कर पावत हें, परलोभ अउ मोह मा पर जावत हे, उजाड़ के बाना बोहे हें, ता फेर पढ़े लिखे के का मतलब? आज पढ़े लिखे मनखें मन ये सब करत हें, ता अनपढ़, अज्ञानी के बारे मा का कहन? अइसे नही के सबे पढ़े लिखे मन अइसन करत हे, आज भी ईमानदारी अउ मानवता के मिशाल हे, फेर नगण्य। पढ़ाई/शिक्षा/विद्या/तालीम तर्क वितर्क के साथ साथ तौर तरीका घलो सीखाथे, फेर कहाँ दिखथे- समझदारी, सकारात्मकता, सृजन अउ मानवता जइसे शैक्षणिक बोध? भला मनखें तीर मानवता नइ रही ता काखर तीर रही। पढ़े लिखे मनखें के आदत व्यवहार, कथनी करनी मा विद्या झलकना चाही, तभे विद्या अउ विनय वाले सूक्त वाक्य शोभा पाही।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)...