Monday, 8 December 2025

सपना

 ...............सपना.............

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रतिहा रोत रहेंव,

रहि-रहि के सपना म |

डरे-डर म,सुते सुते,

दबे-दबे   दसना  म  |


जंगल गे रेहेंव, 

पिकनिक मानेल |

करेन हो हल्ला,

नाचेन- गायेन |

भूँकर-भूँकर के,

गोल्लर कस,

उछर-उछर के खायेन |

मँउहा मारिस मितान मन,

मँय मन मडा़येव चखना म|

रतिहा रोत रेहेंव,

रहि-रहि के सपना म....|


जिंहा बँसरी बाजे,

तिहा डिस्को बाजत हे|

जिहा राहस राचे,

तिहा जुआ  मातत हे |

मॉस मछरी कस मजा,

नइहे मटर मखना म....|

रतिहा रोत रेहेंव,

रहि-रहि के सपना म...|


चारो मुड़ा सीसी-बॉटल,

अऊ गुटका पाऊच पड़े हे|

बीड़ी-सिकरेट म,

झुंझकुर झाड़ी अऊ पेड़़ जरे हे|

हुरहा हलिस पहाड़,

चपकागेव बड़का पखना म...|

रतिहा रोत रेहेंव,

रहि-रहि के सपना म............|


अलगागे गोड़ के जोंड़,

कुटी-कुटी टुटगे कनिहा,

दाई-ददा बरजत रिहिस,

अति करेल पिकनिक झनि जा|

टुटिस सपना ताहन कहॉ के पथना,

गोड़ खुसरे राहय खटिया के गँथना म..|

रतिहा रोत रेहेव,

रहि-रहि के सपना म........................|


सिरतोन म का ददा,

सपना म घलो नइ गोड़ तोड़वांव |

कान धरलेव अतलंगहा बन,

पिकनिक नई जांव |


             जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बाल्को(कोरबा)

Thursday, 27 November 2025

आनलेन पेमेंट-रोला छंद

 आनलेन पेमेंट-रोला छंद


आनलेन के दौर, हवै सब झन हा कहिथन।

फेर बखत ला देख, जुगत मा सबझन रहिथन।।

आनलेन पेमेंट, लेत हें पसरा ठेला।

बड़का मॉल दुकान, करैं नित पेलिक पेला।


अफसर बाबू सेठ, पुलिस नेता वैपारी।

माँगे नकदी नोट, कहत झन करबे चारी।।

भरे जेन के जेब, उही हा जेब टटोले।

उँखरे ले हे काम, कोन फोकट मुँह खोले।।


लुका लुका के नोट, धरत हावैं गट्ठी मा।

आनलेन पेमेंट, कहाँ चलथे भठ्ठी मा।।

मांगै नगदी नोट, बार भठ्ठी मुँह मंगा।

सरकारी हे छूट, लूट होवै बड़ चंगा।।


सट्टा पट्टी खेल, चलत हे चारो कोती।

विज्ञापन के धूम, लगत हे जस सुरहोती।

मिले हवै सरकार, खिलाड़ी अउ अभिनेता।

जनता ला बहकाँय, बताके विश्व विजेता।।


मुँहफारे घुसखोर, माँगथे नकदी रुपिया।

आनलेन पेमेंट, लेय ये कइसे खुफिया?

देखे जभ्भे नोट, तभे कारज निपटाये।

आनलेन के नाम, सुनत आँखी देखाये।।


आनलेन पेमेंट, देन कइसे छट्ठी मा।

आनलेन पेमेंट, देन कइसे भट्ठी मा।।

आनलेन मा बोल, देन कइसे नजराना।

आनलेन मा काज, करे नइ कोरट थाना।।


रोवत लइका लोग, मानही का बिन पइसा।

कइसे करहीं काम, जौन बर आखर भइसा।।

छोड़वाय बर संग, काय अब करना पड़ही।

आनलेन पेमेंट, बता का आघू बढ़ही?


उद्योगी के हाथ, हवै पावर अउ टॉवर।

रोवय धोवय नेट, इहाँ चौबीसों ऑवर।।

निच्चट हे इस्पीड, फोर जी फाइभ जी के।

सब झन हवन गुलाम, नेट के नौटंकी के।


डिजिटल होही देश, बता कइसे गा भइया।

पर के कुकरी गार, संग दूसर सेवइया।।

नेटजाल सरकार, बुने अउ देवैं सुविधा।

सोसल सेवा होय, तभे दुरिहाही दुविधा।।


आनलेन पेमेंट, कहाँ देथें लेथें सब।

तोर मोर बड़ छोट, यहू मा मिलथे देखब।।

ठगजग तक हें खूब, देख के काँपे चोला।

बढ़िया हो हर काम, तभे तो भाही मोला।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Saturday, 22 November 2025

ग़ज़ल – आम आदमी

 ग़ज़ल – आम आदमी

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं आम आदमी हूँ, फिर से छला जाऊँगा।  

कोई कहीं बुलाए, दौड़ा चला जाऊँगा।।1


मुझे खौफ़ इस क़दर है, क्या कहूँ मैं गैरों को।  

चूल्हे की आग में मैं, खुद ही जला जाऊँगा।।2


बहुमंजिला महल हो, सोना जड़ित हो शय्या।  

उस ठौर में बताओ, कैसे भला जाऊँगा।।3


हर युग में गिर रहा हूँ, हर युग में घिर रहा हूँ।  

कोई मुझे बताए, मैं कब फला जाऊँगा।।4


बदहाल ज़िंदगी है, चिंता कहाँ किसी को।  

ऊँच-नीच की भट्ठी में, हर पल गला जाऊँगा।।5


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

विद्या ददाति विनयम-जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया'

 विद्या ददाति विनयम-जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया'


                       "विद्याददाति विनयम" बचपन ले ये सूक्त वाक्य ल पढ़त-सुनत आवत हन, कि विद्या माने शिक्षा/ज्ञान/समझ ले मनखें मा विनम्रता आथे, फेर का ये देखे बर मिलथे? आखिर विद्या/ज्ञान/समझ काय ए?  आज के हिसाब से, पहली ले लेके बड़का बड़का डिग्री इही तो ज्ञान आय न? इही तो समझ बढाथें न? जे जतका बड़े डिग्री धारी ते वोतके बड़े ज्ञानी, है न? ता फेर वो ज्ञानी के  ज्ञान/शिक्षा/समझ वोखर बानी, काम-काज अउ आदत- व्यवहार मा झलकना चाही, पर अइसन तो अब दिखबे नइ करे, बल्कि आज तो जे जतके ज्ञानी ते ततके अभिमानी। अइसन मा विद्या ले विनय वाले बात तो लबारी होगे। अनपढ़, नासमझ घलो अइसन नइ करे जउन आज डिग्रीधारी बड़का बड़का ज्ञानी मन करत दिखथें। डिग्रीधारी डॉक्टर, मास्टर, वकील, अफसर, बाबू, इंजीनियर अउ बड़े बड़े पदवी मा बइठे, आपके जानती मा, के झन मनखें विनयशील हें? के झन ईमानदार हे? के झन के डिग्री मा समझदारी झलकथे? शायद मोला डाटा बताये के जरूरत नइहें, काबर कि सिर्फ पेड़े भर फर मा लद के झुके दिखथे, पर मनुष एक्का दुक्का। ता अइसन काबर? का हमर शिक्षा नीति या फेर जेन ज्ञान दिए जावत हे, तिही मा कमी बेसी हे? ये आज चिंतन के विषय हे। बड़े बड़े स्कूल-कॉलेज के लइका मन रद्दा बाट मा मुँहफोर बकत दिखथें। मान गउन, इज्जत-आदर, छोटे-बड़े संग सही-गलत के तको खियाल नइ रखें। आज ज्यादातर पढ़े लिखे मन अंधाधुन मोटर गाड़ी कुदावत, मोबाइल मा दिन रात समय गँवावत, मंद-मउहा, सिगरेट अउ ड्रग्स के नसा मा चूर, होटल-ढाबा मा खावत घूमत अँटियात हें। डिस्को-नाइट क्लब, पब, कौसिनो जइसे बेकार जघा मा आज के मनखें मनके अड्डा हें। येमा पढ़इया लिखइया लइका मन संग बड़े बड़े साहब, सिपैहा सब शामिल दिखथें। का इही सब बुराई मन आय पढ़े लिखे के पहिचान? मनखें अनपढ़ रहिके कतको धीर-वीर, समझदार हो जाय, फेर आज आखर ज्ञान,देश दुनिया के जनइया ही पढ़े लिखे कहाथें।

               इंजीनिरिंग, मेडीकल अउ बड़े बड़े कॉलेज, हास्टल मन मा रैगिंग के नाम मा मार पीट, पार्टी सार्टी के नाम मा अश्लीलता, शोर- शराबा, गाली-गलौज, बेढंगा मौज मस्ती आज सहज देखे बर मिलथे। केक, स्प्रे, गुब्बारा आदि अउ कतको चीज ला फेकना-फाकना, बर्थ डे ब्वाय कहिके वोला मारना पीटना, लड़की-लड़का होय के बाद भी अश्लील नाच अउ गारी गल्ला देना, आंय बाँय कपड़ा लत्ता पहिनना, ये सब काय ए? येला पढ़े लिखे लइका मन रोजे करत हें। अइसन मा का आघू उंखर आदत व्यवहार मा विनम्रता अउ समझदारी झलकही? कहाँ जावत हे हमर शिक्षा? नैतिकता के तो नाँवे बुझागे हे। सभ्य, सहजता, सत्यता कुछ तो पढ़े लिखे मा झलके। आज तो चोर चंडाल बरोबर पढ़े लिखे मन ही समाज ला लूटत हें, बर्गालात हें, गलत नियम धियम परोसत हें। रीति नीति, नेत-नियम, संस्कृति- संस्कार ला बरो के सेवा- सत्कार अउ ईमानदारी के कसम खाके पद पाय साहब सिपैहा भ्रष्ट होके, ज्ञान अउ पद के नाम ला डुबोवत हें। शिक्षा के अपमान शिक्षित मन ही करत हें। घूसखोरी, दादागिरी, देखमरी, लालची, हवसी, मुँहजोरी, कामचोरी, स्वार्थी, दुश्मनी, जिद्दी, उज्जटपन असन अउ कतकोन बुराई जे शिक्षा ले भागथे कथे, ते शिक्षित मनखें मन के रग रग मा दिखत हें।  विद्यालय जे ज्ञान के मंदिर कहावै ते आज शोरूम/दुकान बनगे हे। पइसा देव ,डिग्री लेव। अइसन मा भला समझदारी, सहजता, विनम्रता जइसन चीज कइसे मिलही? लइका मन दाई ददा के बात बानी ला घलो नइ सुनत हें, ता आन के बरजना ला का मानही? इंज्वाय, इस्टाइल, एटीट्यूड, पर्सनाल्टी कहिके पढ़इया-लिखइया मन आज का का नइ करत हें, अउ जउन करत हें तेला सब  तो देखते हन।

           "विद्या ददाति विनयं,विनयाद् याति पात्रताम्।

            पात्रत्वात् धनमाप्नोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्॥"

मतलब  विद्या ले विनय, विनय ले पात्रता, पात्रत्रा ले धन, धन ले धर्म अउ धर्म ले सुख के प्राप्ति होथे। ये सोला आना सच हे, फेर आज विद्या पाके मनखें कइसनों होय धन कमाए के सोचत हें। अनपढ़ घलो जांगर खपा के अपन दिन गुजारथे, फेर पढ़े लिखे मन आज अपन जिम्मेदारी, विधि-विधान अउ फर्ज ले भागत दिखथें। साहब, बाबू, डॉक्टर, मास्टर, अभियंता-------कस कतकोन मन ला निर्माण के जिम्मेदारी मिले हें, फेर आज स्वार्थ, हवस अउ जादा के चाह मा मनखें मन विनाश करे बर घलो तियार दिखथें। ऑनलाइन ठगी, लूट, चापलूसी, अनैतिक कृत्य, मिलावट, कालाबाजारी, स्मगलिंग, जासूसी, अपहरण, लफुटी, वसूली-----जइसे काम आज पढ़े लिखे मनखें मन डंका बजाके करत हें, काबर कि पदवी धारी लगभग सबे झन के इही हाल हे। अभिच देखे हन बड़का बड़का डिग्रीधारी डॉक्टर आतंकवादी हो जावत हे। मास्टर मनके आय दिन शिकायत आवत हे। टीटी, पटवारी, साहब-सिपैहा मन घूसखोरी मा सने मिलत हें। खोज-खबर देवइया, जज-वकील, साहब- बाबू, पुलिस-प्रशासन पैसा मा बिक जावत हें। जइसे जइसे देश मा शिक्षा अउ शिक्षित व्यक्ति मन के संख्या बढ़त हें, तइसे तइसे विसंगति अउ बुराई घलो बढ़त जावत हे।जे चिंता अउ चिंतन के बिषय आय।

                   एक अनपढ़ बनिहार धान के खेत ला निंदत बेरा, बन/खरपतवार ला ही फेकथे, रिस या बदला मा धाने धान ला नइ खने। वो समय मा आथे, समय मा जाथे, समय मा खाथे, ता पढ़े लिखे मन अपन फर्ज ले काबर डिग जथे? काबर लालच या स्वार्थ मा मेहनताना मिले के बावजूद भी लूट मचाय मा तुले रथें? पढ़ लिख के मनखें आज अपन  तन मन ला क़ाबू मा नइ कर पावत हें, परलोभ अउ मोह मा पर जावत हे, उजाड़ के बाना बोहे हें, ता फेर पढ़े लिखे के का मतलब? आज पढ़े लिखे मनखें मन ये सब करत हें, ता अनपढ़, अज्ञानी के बारे मा का कहन? अइसे नही के सबे पढ़े लिखे मन अइसन करत हे, आज भी ईमानदारी अउ मानवता के मिशाल हे, फेर नगण्य। पढ़ाई/शिक्षा/विद्या/तालीम तर्क वितर्क के साथ साथ तौर तरीका घलो सीखाथे, फेर कहाँ दिखथे- समझदारी, सकारात्मकता, सृजन अउ मानवता जइसे शैक्षणिक बोध? भला मनखें तीर मानवता नइ रही ता काखर तीर रही। पढ़े लिखे मनखें के आदत व्यवहार, कथनी करनी मा विद्या झलकना चाही, तभे विद्या अउ विनय वाले सूक्त वाक्य शोभा पाही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)...

पेट--जयकारी (चौपई) छंद

 पेट--जयकारी (चौपई) छंद 


पेट देख के होवय गोठ,कखरो पातर कखरो मोठ।

पेट देख के जाहू जान,कोन सेठ मजदूर किसान।1।


पेट करावय करम हजार,कोनो खावय दर-दर मार।

नाचा गम्मत होय व्यपार,सजे पेट बर हाट बाजार।2।


पेट पालथे कोनो हाँस,कोनो ला गड़ जाथे फाँस।

धरे पेट बर कोनो तीर,ता कोनो बन जावय वीर।3।


मचे पेट बर कतको रार,कोनो बेंचें खेती खार।

पेट पलायन कभू कराय,गाँव ठाँव सबला छोड़ाय।4।


नाप नाप के कतकों पेट,खान पान ला करथें सेट।

कई भूख मा पेट ठठाय,कोनो खा पी के अँटियाय।5।


कखरो पेट ल भाये नून,कतको झन पी जावय खून।

कोनो खोजे मँदिरा माँस,पेट फुलावय कोनो हाँस।6।


पेट भरे तब लालच आय,धन दौलत मनखे सिरजाय।

पेट जानवर के दमदार,तभो धरे नइ चाँउर यार।7।


बित्ता भर वाले ला देख,रटे पेट ताकय कर रेख।

रखे पेट खातिर धन जोर,कतको मन बन जावय चोर।8।


ऊँच नीच जब खाना होय,पचे नहीं बीमारी बोय।

पेट पीरा हर लेवय चैन,पेट कभू बरसावय नैन।9।


लाँघन ला दौ दाना दान,पेट हरे सबझन के जान।

दाना चाही दूनो जून,पेट भरे ता मिले सुकून।10।


ढोंगी अधमी पावै दुःख, मरे पेट ओ मन के भूख।

करे जउन मन हा सतकाम,पेट भरे सबके गा राम।11।


 जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

अरझगे बेर बर म

 ........अरझगे बेर बर म

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अगोरत हे बबा,

बड़ बेर ले बेर ल।

घाम उतरही कहिके,

देखत हे बर पेड़ ल।


हरियर-हरियर पाना म,

अरझगे सोनहा घाम।

बिन सेके तन ल,

नइ भाय बुता काम।


कथरी,कमरा म,

जाड़ जात  नइहे।

अंगरा,अंगेठा,भुर्री,

भात नइहे।


घाम के अगोरा म।

बबा बइठे बोरा म।

खेलाय नान्हे नाती ल,

बईठार अपन कोरा म।।


लामे डारा-खांधा,

अउ घम-घम ले छाये पाना।

बर पेड़ घेरी बेरी ,

बबा ल मारे ताना।


एक कन दिख के,लुका जात हे।

घाम बर बबा,भूखा जात हे।

करिया कँउवा काँव-काँव करत,

बिजरात हे बबा ल।

बिहनिया ले बिकट जाड़,

जनात हे बबा ल।


पँडकी,सल्हई,गोड़ेला,पुचपुची,

ए डारा ले वो डारा उड़ाय।

रिस म बबा बर पेड़ ल,

कोकवानी लउठी देखाय।


थोरिक बेरा म,

भुँइयॉ म घाम बगरगे।

बबा केहे लउठी देख,

बर पेड़ ह डरगे।


पाके घाम बबा हाँसत हे।

थपड़ी पीटत नाती सँग नाचत हे।

बइठे-बइठे मुहाटी म,

बबा घाम तापत हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

बढ़ोना अउ झरती कोठार

 बढ़ोना अउ झरती कोठार


                   हमर पहली के बूता काम, नेंग जोग, रीति रिवाज अउ पार परम्परा आज नवा जमाना मा कथा कन्थली बरोबर होगे हे, काबर कि धीरे धीरे वो सब आज नँदावत जावत हे। अइसने आज नँदावत खेती किसानी के एक नेंग आय बढ़ोना अउ झरती कोठार। खेत खलिहान अउ ओमा बोये फसल किसान मनके जिनगी के एक धड़कन होथे, तभे तो किसान मन अपन खेत खलिहान अउ धान पान ला देवता बरोबर पूजथें अउ बेरा बेरा मा बरोबर मान गउन करत, फसल के बढ़वार के संग सब बर सुख समृद्धि के कामना करथें। अक्ति तिहार बर टेड़गी डोली मा ठाकुरदैया ले लाए धान ला बोके, बोनी मुहतुर करे के परम्परा हे, ता धान लुए के बेरा जब, लुवाई के काम उसरने वाला रथे ता बढ़ोना के नेंग करे जाथे। बढ़ोना माने फसल काटे के बूता खतम होना। किसान मन धान के फसल जब पूरा कटने वाला रथे, ता एक कोंटा मा थोरिक धान ला छोड़ देथें अउ छोड़े धान मेर जम्मों लुवइया मनके हँसिया ला मढ़ाके, नरियर फूल-दूबी चढ़ाके, हूम-धूप जलाके, मिठाई नही ते कोनो पकवान भोग लगाके धरती दाई के पूजा करथें। घर वाले किसान संग वो बेरा मा जतका धान लुवइया आय रथें, सब बढ़ोना नेंग मा शामिल होथें अउ माटी महतारी ला बढ़िया फसल देय बर नमन, जोहार करथें, अउ आने वाले साल मा अउ बढ़िया फसल के वर मांगत माथ नॅवाथें। बढ़ोना के पकवान/मिठाई अउ प्रसादी ला खेत मा काम करइया मनके संगे संग घर लाके पारा परोसी ला घलो बाँटे जाथें, जेखर ले सब जान जाथें कि धान बढ़गे हे, लुए के बूता झरगे हे। कतको किसान मन खेत मा फांता घलो बनाथें, जेला घर के डेहरी मा लाके टाँगथें। फांता जेला धान के झालर घलो कथन। फांता ला बढ़िया फसल होय के प्रतीक के रूप मा घर मा टाँगे जाथे। बढ़ोना के नेंग लगभग सबे किसान मन करथें। आज भले हार्वेस्टर के जमाना हे, तभो बढ़ोना होथेच। किसान मन धान लुना चालू घलो टेड़गी डोली ले हूमजग देके करथें। टेड़गी डोली के मुहतुर करई ल गजब शुभ माने जाथे। 

                  बढ़ोना कस एक नेंग अउ होथे, जेला झरती कोठार कथन। खेत के जम्मों धान पान ला कोठार मा लाके सिधोये जाथे। माने खेत के धान ला भारा बांध के, गाड़ा मा जोर जोर के कोठार मा लाके, खरही गांजे जाथे अउ पैर डार के मिंजे ओसाये के बाद कोठी मा नाप के धरे जाथे। खेत ले कोठार आये बड़का बड़का धान के खरही देखत मन गदगद हो जथे। पहली किसान मन धान के खरही ला खेत के जम्मों काम बूता झरराये के बाद धीरे धीरे महीना भर मा मिंजे, ओसाये अउ कोठी मा धरे। काबर कि खेती किसानी ही उंखर मुख्य कार्य रहय। आज थ्रेसर हार्वेस्टर के जमाना मा हप्ता भर मा लुवई मिंजई झर जावत हे, तभो मनखें वो बचे समय ला ठलहा गंवा देवत हे। झरती कोठार माने धान पान मिंजे धरे के काम झर जाना। 

                     धान के बड़का बड़का खरही, पैरावट, पैर, रास आदि के का कहना? येला जेन देखे होही तिही ओखर सुखद अनुभव कर सकथें। सियान मन संग लइका मन घलो सीला बीनत, धान मिंजावत पैर मा खेलत कूदत, दाई ददा मन संग छोट मोट बूता करत बड़ आनंद पाँय। हरिया, पाँत, करपा, भारा, खरही, पैर कस खेती किसानी के काम मा एक अउ चीज देखे बर मिलथे, जेला रास कथन। रास धान के मिंजे ओसाये के बाद कोठर के एक कोंटा मा धान ला बढ़िया गांज के बनाये जाथे, सोझ कहन ता धान के कूढ़ी। कलारी, सूपा, मोखला कांटा, चुरी पाठ, गोंदा फूल, काठा, चरिहा, खरसी, बोर्झरी आदि रास मेर सजे रथे ता देखके अइसे लगथे, सँउहत अन्न के देवी पधारे हे। रास के धान ला काठा मा नाप नाप के चरिहा मा भरके कोठी या फेर बोरा मा भरे जाथे। नापत बेरा हर खांड़ी मा एक मुठा धान गिने बर किसान मा रखथें, अउ बीस खांड़ी होय के बाद एक गाड़ा के कूड़हा मड़ाथें। नापतोल के बात करन ता बीस काठा माने एक खाँड़ी, अउ बीस खाँड़ी माने एक गाड़ा। वइसने चार पैली के एक काठा होथे। आजकल अइसन काठा, पैली, चरिहा, मा नापजोख कमती होवत जावत हे। काठा मा जब धान नापथें ता पहली ला एक ना गिनके राम कथे, वइसने बीस काठा होय के बाद, भगवान के नाम लेवत एक कूड़हा रखथें। धान ला जब कोठी मा धरना होथे तब चरिहा मा भरके घर मा ले जाय के पहली एक लोटा पानी ओरछ के अन्न महतारी के सुवागत करत पायलागी करे जाथे। किसान मन झरती कोठार करथें ता सबो धान ला कोठी मा नइ रखें, कुछ ला बोरा चुंगड़ी मा भरके रखथें, काबर कि पौनी पसारी(ठाकुर, बैगा, चरवाहा, कोतवाल आदि सब के जेवर), दान दक्षिणा देय बर घलो लगथे। धान मिंजे के बाद घरो घर भाट भटरी मन दान पुण्य के आस मा आथे, अउ धान के दान लगभग सब किसान खुशी खुशी करथें, काबर कि अन्न दान ला महादान कहे गय हे। फसल होय के खुशी मा किसान मा दान देथें। आज तो धान ला मंगइया मन घलो मुँह फेरत पैसा माँगथें। फसल आय के बाद दान धरम के तिहार के रूप मा पूस पुन्नी बर  छेरछेरा तिहार घलो मनाये जाथे। फसल आय के बाद मेला मड़ाई, नाचा गम्मत घलो गांव गांव मा होथे। हमर संस्कृति संस्कार अउ परब तिहार किसानी के अनुसार ही चलथे। 

                  झरती कोठार के खुशी मा किसान मन घर मा बढ़िया बढ़िया पकवान अउ रोटी-पीठा राँधथें अउ पारा परोसी मन ला खवाथें। कोमहड़ा पाग, सेवई, तसमई अउ कतरा झरती कोठार मा बनबेच करथे। कोठार अउ कोठी संग धान के रास मा हूम देके गुरहा चीला चढ़ाए जाथे। रास जब नपा जाथे ता ओमा चढ़े मोखला कांटा अउ चूड़ी पाठ ला बोइर के छोटे पेड़(बोर्झरी) मा चढ़ाये के नेंग हे। झरती कोठार खरीफ फसल धान, कोदो आदि मुख्य खाद्यान फसल के बूता ला झर्राये के बाद करे जाथे। तेखर बाद किसान मन नगदी फसल के रूप मा खेत मा अरसी, सरसो, मसूर, चना, गहूं के खेती करथें।  चौमासा भर के महीनत ला किसान मन पाके गदगद रथें। छत्तीसगढ़ जेखर नाम से जाने जाथे, वो धान के बड़ सुघर नेंग आय बढ़ोना अउ झरती कोठार के। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)