Saturday, 22 November 2025

ग़ज़ल – आम आदमी

 ग़ज़ल – आम आदमी

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं आम आदमी हूँ, फिर से छला जाऊँगा।  

कोई कहीं बुलाए, दौड़ा चला जाऊँगा।।1


मुझे खौफ़ इस क़दर है, क्या कहूँ मैं गैरों को।  

चूल्हे की आग में मैं, खुद ही जला जाऊँगा।।2


बहुमंजिला महल हो, सोना जड़ित हो शय्या।  

उस ठौर में बताओ, कैसे भला जाऊँगा।।3


हर युग में गिर रहा हूँ, हर युग में घिर रहा हूँ।  

कोई मुझे बताए, मैं कब फला जाऊँगा।।4


बदहाल ज़िंदगी है, चिंता कहाँ किसी को।  

ऊँच-नीच की भट्ठी में, हर पल गला जाऊँगा।।5


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

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