बढ़ोना अउ झरती कोठार
हमर पहली के बूता काम, नेंग जोग, रीति रिवाज अउ पार परम्परा आज नवा जमाना मा कथा कन्थली बरोबर होगे हे, काबर कि धीरे धीरे वो सब आज नँदावत जावत हे। अइसने आज नँदावत खेती किसानी के एक नेंग आय बढ़ोना अउ झरती कोठार। खेत खलिहान अउ ओमा बोये फसल किसान मनके जिनगी के एक धड़कन होथे, तभे तो किसान मन अपन खेत खलिहान अउ धान पान ला देवता बरोबर पूजथें अउ बेरा बेरा मा बरोबर मान गउन करत, फसल के बढ़वार के संग सब बर सुख समृद्धि के कामना करथें। अक्ति तिहार बर टेड़गी डोली मा ठाकुरदैया ले लाए धान ला बोके, बोनी मुहतुर करे के परम्परा हे, ता धान लुए के बेरा जब, लुवाई के काम उसरने वाला रथे ता बढ़ोना के नेंग करे जाथे। बढ़ोना माने फसल काटे के बूता खतम होना। किसान मन धान के फसल जब पूरा कटने वाला रथे, ता एक कोंटा मा थोरिक धान ला छोड़ देथें अउ छोड़े धान मेर जम्मों लुवइया मनके हँसिया ला मढ़ाके, नरियर फूल-दूबी चढ़ाके, हूम-धूप जलाके, मिठाई नही ते कोनो पकवान भोग लगाके धरती दाई के पूजा करथें। घर वाले किसान संग वो बेरा मा जतका धान लुवइया आय रथें, सब बढ़ोना नेंग मा शामिल होथें अउ माटी महतारी ला बढ़िया फसल देय बर नमन, जोहार करथें, अउ आने वाले साल मा अउ बढ़िया फसल के वर मांगत माथ नॅवाथें। बढ़ोना के पकवान/मिठाई अउ प्रसादी ला खेत मा काम करइया मनके संगे संग घर लाके पारा परोसी ला घलो बाँटे जाथें, जेखर ले सब जान जाथें कि धान बढ़गे हे, लुए के बूता झरगे हे। कतको किसान मन खेत मा फांता घलो बनाथें, जेला घर के डेहरी मा लाके टाँगथें। फांता जेला धान के झालर घलो कथन। फांता ला बढ़िया फसल होय के प्रतीक के रूप मा घर मा टाँगे जाथे। बढ़ोना के नेंग लगभग सबे किसान मन करथें। आज भले हार्वेस्टर के जमाना हे, तभो बढ़ोना होथेच। किसान मन धान लुना चालू घलो टेड़गी डोली ले हूमजग देके करथें। टेड़गी डोली के मुहतुर करई ल गजब शुभ माने जाथे।
बढ़ोना कस एक नेंग अउ होथे, जेला झरती कोठार कथन। खेत के जम्मों धान पान ला कोठार मा लाके सिधोये जाथे। माने खेत के धान ला भारा बांध के, गाड़ा मा जोर जोर के कोठार मा लाके, खरही गांजे जाथे अउ पैर डार के मिंजे ओसाये के बाद कोठी मा नाप के धरे जाथे। खेत ले कोठार आये बड़का बड़का धान के खरही देखत मन गदगद हो जथे। पहली किसान मन धान के खरही ला खेत के जम्मों काम बूता झरराये के बाद धीरे धीरे महीना भर मा मिंजे, ओसाये अउ कोठी मा धरे। काबर कि खेती किसानी ही उंखर मुख्य कार्य रहय। आज थ्रेसर हार्वेस्टर के जमाना मा हप्ता भर मा लुवई मिंजई झर जावत हे, तभो मनखें वो बचे समय ला ठलहा गंवा देवत हे। झरती कोठार माने धान पान मिंजे धरे के काम झर जाना।
धान के बड़का बड़का खरही, पैरावट, पैर, रास आदि के का कहना? येला जेन देखे होही तिही ओखर सुखद अनुभव कर सकथें। सियान मन संग लइका मन घलो सीला बीनत, धान मिंजावत पैर मा खेलत कूदत, दाई ददा मन संग छोट मोट बूता करत बड़ आनंद पाँय। हरिया, पाँत, करपा, भारा, खरही, पैर कस खेती किसानी के काम मा एक अउ चीज देखे बर मिलथे, जेला रास कथन। रास धान के मिंजे ओसाये के बाद कोठर के एक कोंटा मा धान ला बढ़िया गांज के बनाये जाथे, सोझ कहन ता धान के कूढ़ी। कलारी, सूपा, मोखला कांटा, चुरी पाठ, गोंदा फूल, काठा, चरिहा, खरसी, बोर्झरी आदि रास मेर सजे रथे ता देखके अइसे लगथे, सँउहत अन्न के देवी पधारे हे। रास के धान ला काठा मा नाप नाप के चरिहा मा भरके कोठी या फेर बोरा मा भरे जाथे। नापत बेरा हर खांड़ी मा एक मुठा धान गिने बर किसान मा रखथें, अउ बीस खांड़ी होय के बाद एक गाड़ा के कूड़हा मड़ाथें। नापतोल के बात करन ता बीस काठा माने एक खाँड़ी, अउ बीस खाँड़ी माने एक गाड़ा। वइसने चार पैली के एक काठा होथे। आजकल अइसन काठा, पैली, चरिहा, मा नापजोख कमती होवत जावत हे। काठा मा जब धान नापथें ता पहली ला एक ना गिनके राम कथे, वइसने बीस काठा होय के बाद, भगवान के नाम लेवत एक कूड़हा रखथें। धान ला जब कोठी मा धरना होथे तब चरिहा मा भरके घर मा ले जाय के पहली एक लोटा पानी ओरछ के अन्न महतारी के सुवागत करत पायलागी करे जाथे। किसान मन झरती कोठार करथें ता सबो धान ला कोठी मा नइ रखें, कुछ ला बोरा चुंगड़ी मा भरके रखथें, काबर कि पौनी पसारी(ठाकुर, बैगा, चरवाहा, कोतवाल आदि सब के जेवर), दान दक्षिणा देय बर घलो लगथे। धान मिंजे के बाद घरो घर भाट भटरी मन दान पुण्य के आस मा आथे, अउ धान के दान लगभग सब किसान खुशी खुशी करथें, काबर कि अन्न दान ला महादान कहे गय हे। फसल होय के खुशी मा किसान मा दान देथें। आज तो धान ला मंगइया मन घलो मुँह फेरत पैसा माँगथें। फसल आय के बाद दान धरम के तिहार के रूप मा पूस पुन्नी बर छेरछेरा तिहार घलो मनाये जाथे। फसल आय के बाद मेला मड़ाई, नाचा गम्मत घलो गांव गांव मा होथे। हमर संस्कृति संस्कार अउ परब तिहार किसानी के अनुसार ही चलथे।
झरती कोठार के खुशी मा किसान मन घर मा बढ़िया बढ़िया पकवान अउ रोटी-पीठा राँधथें अउ पारा परोसी मन ला खवाथें। कोमहड़ा पाग, सेवई, तसमई अउ कतरा झरती कोठार मा बनबेच करथे। कोठार अउ कोठी संग धान के रास मा हूम देके गुरहा चीला चढ़ाए जाथे। रास जब नपा जाथे ता ओमा चढ़े मोखला कांटा अउ चूड़ी पाठ ला बोइर के छोटे पेड़(बोर्झरी) मा चढ़ाये के नेंग हे। झरती कोठार खरीफ फसल धान, कोदो आदि मुख्य खाद्यान फसल के बूता ला झर्राये के बाद करे जाथे। तेखर बाद किसान मन नगदी फसल के रूप मा खेत मा अरसी, सरसो, मसूर, चना, गहूं के खेती करथें। चौमासा भर के महीनत ला किसान मन पाके गदगद रथें। छत्तीसगढ़ जेखर नाम से जाने जाथे, वो धान के बड़ सुघर नेंग आय बढ़ोना अउ झरती कोठार के।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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