Friday 1 December 2017

क्रोध मा मॉं काली(कुण्डलियाँ छंद)

जस गीत(कुंडलिया छंद)

काली गरजे काल कस,आँखी हावय लाल।
खाड़ा  खप्पर  हाथ हे,बने असुर  के काल।
बने  असुर के  काल,गजब  ढाये रन भीतर।
मार काट कर जाय,मरय दानव जस तीतर।
गरजे बड़ चिचियाय,धरे हाथे मा थाली।
होवय  हाँहाकार,खून  पीये बड़ काली।

सूरज ले बड़ ताप मा,टिकली चमके माथ।
गल मा माला  मूंड के,बाँधे  कनिहा  हाथ।
बाँधे  कनिहा  हाथ,देंह  हे  कारी कारी।
चुंदी हे छरियाय,दाँत हावय जस आरी।
बहे  लहू  के  धार,लाल  होगे बड़ भूरज।
नाचत हे बिकराल,डरय चंदा अउ सूरज।

घबराये तीनो तिलिक,काली ला अस देख।
सबके बनगे  काल वो,बिगड़े   ब्रम्हा लेख।
बिगड़े  ब्रम्हा  लेख, देख  रोवय  सुर दानँव।
काली बड़ बगियाय,कहे कखरो नइ मानँव।
भोला सुनय गोहार,तीर काली के आये।
पाँव तरी गिर  जाय,देख काली घबराये।

काली देखय पाँव मा,भोला हवय खुँदाय।
जिभिया भारी लामगे,आँखी आँसू आय।
आँखी आँसू आय,शांत  काली  हो जाये।
होवय जय जयकार,फूल  देवन बरसाये।
बंदव   माता  पाँव,बजाके    घंटा  ताली।
जय हो देबी तोर,काल कस माता काली।

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)