Thursday 7 January 2021

नोटबुक संग्रह

 Number of notes: 190


-------------------------

# 190

-------------------------

Date: 2021-01-08

Subject: 


1,गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


चलत रथस तने तने, धरा के बोझ बन झने।

अपन बुता ला कर बने, धरा के बोझ बन झने।1


कभू न पेड़ पात ला लगाय बर गतर चले।

करत रथस खने खने, धरा के बोझ बन झने।2


दया मया सबे बरो के इरसा द्वेष रंग मा।

दिखत हवस सने सने, धरा के बोझ बन झने।3


अपन करम ला भूल के, दुसर बुराई ला सदा।

चलत रथस गने गने, धरा के बोझ बन झने।4


अपन के तैं बड़ाई बर, दुसर के सँग लड़ाई बर।

रथस सदा ठने ठने, धरा के बोझ बन झने।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 189

-------------------------

Date: 2021-01-07

Subject: 


4,ग़ज़ल- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़*


*फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन*


*2122 1122 1122 22*


रोशनी धरके सुरुज दिन मा निकलथे रोजे।

कर अपन काम बुता शाम के ढलथे रोजे।1


रेंगथे रोज हपट गिर घलो नान्हे लइका।

जीतथे जंग वो जे हार के चलथे रोजे।2


बेत जइसे बही तैंहर बने रहिथस काबर।

फर मया के जिया मा मोर तो फलथे रोजे।3


मेहनत जौन करे तौन बढ़े सब युग मा।

भागथे काम ले ते हाथ ला मलथे रोजे।4


देख के मोर मया कार कलेचुप रहिथस।

पेड़ अउ पात हवा संग मा हलथे रोजे।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 188

-------------------------

Date: 2021-01-07

Subject: 


3,ग़ज़ल- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़*


*फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन*


*2122 1122 1122 22*


बुद्धि बल तोर हराही त बताबे मोला।

धीर सत तोर खराही त बताबे मोला।1


रोड मा गाय गरू  डार दिये हे डेरा।

कोई यदि गाय चराही त बताबे मोला।2


हाथ लंबा हवै कानून के कइथे सबझन।

चोर चंडाल धराही त बताबे मोला।3


आँख तैंहर कभू कोनो ल दिखाये झन कर।

तोला कोनो हा डराही त बताबे मोला।4


भर डरे उन्ना सबे कोठी सबे काठा ला।

फेर जब मन हा भराही त बताबे मोला।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 187

-------------------------

Date: 2021-01-05

Subject: 


नरवा नँरिया सूख गे, आग बरत हे घाम।

सुरुज देव बिजरात हे, करिया गेहे चाम।


खैरझिटिया।।



पथरा कस छाती घलो, होगे तोर कठोर।

दया मया सत सार हे,गरब गुमान ल घोर।

खैरझिटिया


दरके झन दीवार हा, छाभ मूंद के राख।

नइ ते झट जोरँग जही, कोशिस करले लाख।

खैरझिटिया।।


बोली गुरतुर बोल के,सबके मन ला जीत।

बोली गोली होय झन, बोल बढ़ाथे मीत।

खैरझिटिया


तरतर तरतर चूँहथे, सरलग तन ले धार।

तभो कमइया मन कभू, कहाँ मानथे हार।

खैरझिटिया


सोज पाथ मा जे चले, तेहर नइ पछताय।

चलथे गिनहा पाथ में, ते आँसू बोहाय।

खैरझिटिया।।



रतिहा चमके चांद हा, दिन मा सूरज देव।

सब बर हे एक्के मया, नाम कहूँ भी लेव।

खैरझिटिया।।


ये दुनिया माया हरे, माया ले दुरिहाव।

माया में रमके रहू, ता पाहू बड़ घाव।

खैरझिटिया।।


मनके मैना के कभू, कतरो झन गा पाँख।

उड़न देव आगास मा, सपना के धर आँख।

खैरझिटिया।।।


तन मा ओढ़े ओढ़ना, मन ला दिये उघार।

मन ला सुघ्घर साफ रख, जिनगी अपन सुधार।

खैरझिटिया।।।


हीरा मोती के रतन, तन मा ले हस लाद।

ले जाबे तैंहर बता, काय मरे के बाद।

खैरझिटिया


मोर मोर कहिके मरे, बता काय ये तोर।

मोर मोर ला छोड़के, मया जिया मा घोर।

खैरझिटिया


सादा सादा ओनहा, सादा टीका माथ।

तभो धरे हे पाँव हा, काबर उल्टा पाथ।

खैरझिटिया


रौब झाड़ना बंद कर, रौब रथे दिन चार।

हाड़ मास के तन हवै, हो जाही झट हार।

खैरझिटिया।।


रो के गा के जिंदगी, आघू बढ़ते रोज।

हार जीत होते रथे, रहे नही पथ सोज।

खैरझिटिया।।



माटी के मनखे हरस, पथरा कस बर्ताव।

खुद बर घाटा हे घलो, देवय पर ला घाव।

खैरझिटिया।।


जनम मरण के फेर ला, कोन दिही सुलझाय।

अतके सबझन जानथे, आथे तेहर जाय।

खैरझिटिया।।


यस जस बढ़ही तोर जी, रोज बने कर काम।

कारज ले पहिचान हे, कारज ले हे नाम।

खैरझिटिय


रण मा जा झन म्यान धर, होबे करही हार।

बैरी घलो सुजान हे, आँकत हस कम कार।

खैरझिटिया



सबदिन बस दुख बाँटथस, येला वोला जोर।

खुशी घलो ला बाँट ले, काय तोर अउ मोर।

खैरझिटिया



पाँख पाय हौं मैं कही, फोड़े थल मा काँच।

रटहा डारा मा चढ़े, जादा झन रे नाँच।

खैरझिटिया


बरी बिजौरी अब इहाँ, कोनो कहाँ बनाय।

तेखर सेती आषाढ़ में, मँहगाई छा जाय।

खैरझिटिया


तू तू मैं मैं मा टुटे, कतको घर संसार।

गारी गल्ला फोकटे, हवै फोकटे रार।

खैरझिटिया।।


हाय हाय करते करत, उम्मर दिये गुजार।

काय मिलिस तेला बता, पूछत हवै तिखार।

खैरझिटिया


बाग बगीचा के कभू, होवय झने उजार।

पेड़ पात मा छुपे हवै, के हे भैया सार।

खैरझिटिया


रखव ख्याल बन बाग के, बन सबके आधार।

बन बचाय बर सब झने,बन जावव रखवार।

खैरझिटिया।।।



थोर बहुत धन ला धरे, मनुष गजब इतराय।

अँकड़े बकरे तौन के, आज जातरी आय।

खैरझिटिया


ये तैं का करथस सगा, बोलस ना गोठियास।

छोट मोट ला छोड़ के, खोजत हस का खास।

खैरझिटिया।।


वजन दार कहि बात तैं, सबके मन ला जीत।

जेहर ज्ञानी अउ गुनी, बजे तेखरे गीत।

खैरझिटिया


लोख्खन ले बाहिर हवस, मानस नइ कुछु बात।

करबे यदि उत्पात ता, पड़ही जमके लात।

खैरझिटिया


गतर चले नइ काम बर, बाते भर ला जान।

काबर तैं खुद ला तभो, समझत हवस महान।

खैरझिटिया


नाक बोहावय जाड़ मा, सनसन बाजय कान।

काया काँपे रात दिन, निकल जात हे जान।

खैरझिटिया।।


रो के झन डरह्वाय कर, गलती करके रोज।

गारी गल्ला नइ मिले, काम करत चल सोज।

खैरझिटिया।।


महिना आगे पूस के,बिक्कट जाड़ जनाय।

कथरी कमरा का करे, मुँह हे पवन उलाय।

खैरझिटिया


दुख देखत डररात हस, सुख पाके इतराय।

करनी धरनी तोर कुछ, कभू समझ नइ आय।

खैरझिटिया


रखले मया सँकेल के, मया दया ए सार।

मया बिना मन नइ लगे, महिमा मया अपार।

खैरझिटिया


बाप खाँध मा बोझ हे, बेटा हाथ हलाय।

तने खड़े बेटा हवै, माथा ददा नवाय।

खैरझिटिया


ये माया अउ मोह मा, मनखे हवै भुलाय।

पहली पकड़े घेंच ला, तेखर बाद झुलाय।

खैरझिटिया


[1/5, 9:34 AM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: दोहा-


गुरू हाथ थामे बिना, जिनगी हे बेकार।

करम जगावै भाग ला, गुरू लगावै पार।


खैरझिटिया


*र* या *पार* से दोहा आमन्त्रित हे


दोहा के नीचे अपन नाँव लिख सकत हव💐🙏🏻🙏🏻

[1/5, 10:33 AM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: रद्दा ला चतवार के, रख ले भैया पाँव।

तभे ठिहा मिलही सहज, होही यस जस नाँव।


खैरझिटिया

[1/5, 11:33 AM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: नरवा नँरिया सूख गे, आग बरत हे घाम।

सुरुज देव बिजरात हे, करिया गेहे चाम।


खैरझिटिया

[1/5, 12:01 PM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: तन मा ओढ़े ओढ़ना, मन ला दिये उघार।

मन ला सुघ्घर साफ रख, जिनगी अपन सुधार।

खैरझिटिया

[1/5, 12:04 PM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: मनके मैना के कभू, कतरो झन गा पाँख।

उड़न देव आगास मा, सपना के धर आँख।

खैरझिटिया

[1/5, 12:08 PM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: सोज पाथ मा जे चले, तेहर नइ पछताय।

चलथे गिनहा पाथ में, ते आँसू बोहाय।

खैरझिटिया




-------------------------

# 186

-------------------------

Date: 2021-01-05

Subject: 


2,ग़ज़ल- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़*


*फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन*


*2122 1122 1122 22*


आजकल तोर उदिम मोला गिराये के हे।

कद बढ़े थोर बहुत तेला खिराये के हे।1


काल कर डारे खुदे साल नवा कहिके तैं।

लागथे अब ये बछर तोर सिराये  के हे।2 


बात बानी कभू कखरो तो सुनस नइ चिटिको।

नइ दवा जिद के हे काया के पिराये के हे।3


लालची बनके निकलबे कहूँ कोती झन तैं।

पथ मा अइसन ठिहा ना ठौर थिराये के हे।4


घर किराये के हरे कहि बिना जतने रहिथस।

सोच जिनगी मिले हे तौन किराये के हे।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 185

-------------------------

Date: 2021-01-04

Subject: 


कलम अउ हथियार-खैरझिटिया


            कलम ले निर्माण होथे, त हथियार ले विनास। कलम विचार के साधन आय, त हथियार युद्ध के। कहे के मतकब कलम विचार के म8दान म लड़थे त तलवार युद्ध के। कलम मनखे मनके आज के सबले बड़े जरूरत कलम हे, काबर की कलम ले ही मनखे-तनखे, जीव-जानवर, पेड़-प्रकृति सबके सिरजन सम्भव हे। येमा कोनो दू मत नइहे, कि हथियार ले कही जादा ताकतवर कलम हे।  कलम धरइया हाथ के तो उद्धार होबे करथे,ओखर संगे  संग वोमा दुसर के घलो उद्धार करे के ताकत होथे। कलम के डंका सिरिफ आज भर नइ बाजत हे, बल्कि कलम कई बछर पहली ले अपन ताकत ल देखावत हे, अउ आघू समय म घलो ताकतवर रही। कलम ताकतवर हे ,कलम म सिरजन के शक्ति हे तभे तो अनगढ़ लइका के हाथ म सबले पहली कलम धराये जाथे, ताकि वो लइका पढ़ लिख के अपन, अपन परिवार अउ देश राज म नाम कमाये। हथियार कतको चले, आखिर म ओखर फैसला कलम ले ही होथे। राजा पृथ्वीराज चौहान, के तलवार ल ओखर राजकवि चन्द्रबरदाई के कलम ह धार करत रिहिस, येला सबो जानथन। आजादी के लड़ाई म घलो लेखक कवि मनके कविता, लेख सबले बड़े हथियार रिहिस। अंगेज मन तलवार ले जादा कलम ले डरिन। कबीर, सुर, तुलसी, जायसी, केशव, बिहारी, रहीम के जमाना के हथियार भले जंग लगके, सड़ गे होही, फेर उँखर कलम आजो चमचम चमचम चमकत हे। माखनलाल चतुर्वेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, जय शंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, शमशेर बहादुर सिंह, गजानन्द माधव मुक्तिबोध, मुंसी प्रेमचंद, भीष्म साहनी, फणीश्वर नाथ रेणु आदि अनेक कवि लेखन मनके कलम रूपी तलवार आजो वैचारिक मैदान म प्रभावशाली अउ उपयोगी हे, उँखर धार जस के तस बने हे। कलम हथियार के काम कर सकथे फेर हथियार कलम के काम नइ कर सके। जतका डरावना हथियार हे ओतके कलम घलो। भले राजतंत्र तलवार के फम म चलिस होही फेर लोकतंत्र कलम के दम म ही चलही। हथियार बाहरी ताकत अउ स्वयं के सुरक्षा बर उपयोगी हे ,वइसने कलम घलो सब के सुरक्षा के गूढ़ गोठ बताथे। कलम, हथियार ल कइसे बउरना हे तेखर बारे म घलो बताथे। फेर हथियार कलम ल नइ अपन कोती कर  सके। कलम सही ल सही अउ गलत ल गलत कहय, उही श्रेष्ठ हे। कलमकार के तीन रूप हे, जेमा पहला वो जेन पर उपकार के काम आथे ते उत्कृष्ट कलम या कलमकार 

कहिलाथे, मध्यम कलम या कलमकार म कलमकार के स्वयं के गुणगान या स्वयंसुख रहिथे, अउ अधम कलम या कलमकार म चाटुकारिता, द्वेष ,दंगा, पर निंदा जइसे बुराई दिखथे।

           हथियार जेखर हाथ म हे, वो फकत योद्धा होय,ये कोनो जरूरी नइहे, वो कायर, कपटी अउ दगाबाज घलो हो सकथे। जइसे तलवार, सच्चाई बर उठे, एक सच्चा योद्धा के हाथ म ही शोभा पाथे, वइसने कलम घलो, उही शोभायमान होथे, जेमा निर्माण के ताकत होथे। तलवार आसानी से खरीदे जा सकथे, फेर कलम ल खरीदना हे त करम ल बने बनाये बर पड़थे। तभे कलम ओखर गाथा गाथे। कलम म भूत, वर्तमान के साथ साथ भविष्य ल घलो झाँके अउ सँजोय के ताकत होथे, जबकि तलवार भूत म घलो लहू बोहाइस, वर्तमान म घलो बोहात हे अउ भविष्य म घलो बोहाही। आज मनखे कलम छोड़ तलवार ल थामत हे,जे दुखद हे, जेमा सिर्फ विनास ही हे। तलवार ल सामने खड़े मनखे भर डरथे, फेर कलम के डर म कतको के होश ठिकाना लग जथे। जइसे तलवार चलाये बर योद्धा म जिगर होना चाही, वइसने कलमकार के ह्रदय घलो निर्मल होना चाही। कलमकार ल लोभ, मोह म नइ आना चाही, चाटुकारिता, अउ अल्प ज्ञान घलो निर्माण म बाधक होथे। कलमकार म सबे बर समान भाव, निर्मल मन, अउ सृजनात्मक अउ समयक विचार होना चाही।

         तलवार उही श्रेष्ठ जे सच्चाई बर उठे, अउ कलम उही श्रेष्ठ जे सच्चाई लिखे। तलवार उठही त विरोधी के ही सही पर खून बोहाबे करही, फेर कलम थमइया हाथ म ये ताकत होना चाही कि, खून खराबा के स्थिति घलो टल जाये। समाज म सत, शांति अउ समभाव बने रहय। कलमकार के महत्व एक योद्धा ले कही जादा हे। *तलवार कोनो राज या कोनो राजा ल जीत सकथे, फेर कलम मनखे के मन ल जीते के ताकत रखथे।*


अंत म राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के प्रसिद्ध कविता कलम या तलवार प्रस्तुत हे--


दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार 

मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार


अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान

या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान


कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली, 

दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली 


पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे, 

और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे 


एक भेद है और वहां निर्भय होते नर -नारी, 

कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारी 


जहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले, 

बादल में बिजली होती, होते दिमाग में गोले 


जहाँ पालते लोग लहू में हालाहल की धार, 

क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में नहीं हुई तलवार



जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 184

-------------------------

Date: 2021-01-04

Subject: 


1,ग़ज़ल- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़*


*फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन*


*2122 1122 1122 22*


जे नशा पान के चक्कर मा पड़े ते रोये।

फाकटे फोकटे बस रोज लड़े  ते रोये।1


माँग बेरा के समझ कतको हा बढ़गे आघू।

जौन एक्के जघा रहि जाय खड़े  ते रोये।2


फायदा हे बने मिलजुल के रहो सबझन सँग।

डार ले पान असन पकके झड़े  ते रोये।3


बेर ला देख के बदलेल घलो तो लगथे।

रात दिन जौन अपन जिद मा अड़े ते रोये।4


छत के बस पूछ परख होत हवै सब कोती।

आज नेवान तरी जौन गड़े ते रोये।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 183

-------------------------

Date: 2021-01-03

Subject: 


शिक्षा अउ संस्कार, जरूरी हावय दोनों।




-------------------------

# 182

-------------------------

Date: 2021-01-01

Subject: 


लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों। दया मया के धागा धरके, सुख शांति के पतंग उड़ाबों। दान धरम पूजा व्रत करबों, गाबों मिलजुल के गाना। छोट बड़े के भेद मिटाबों, धरबों इंसानी बाना। खीर कलेवा खिचड़ी खोवा,तिल गुड़ लाडू खाबों। नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों। सुरुज देव ले तेज नपाबों,मंद पवन कस मुस्काबों। सरसो अरसी चना गहूँ कस,फर फुलके जिया लुभाबों। रात रिसाही दिन बढ़ जाही, कथरी कम्म्बल घरियाबों। नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों। मान एक दूसर के करबों,द्वेष दरद दुख ले लड़बों। आन बान अउ शान बचाके, सबके अँगरी धर बढ़बों। लोभ मोह के पाके पाना, जुर मिल सब झर्राबों। नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों। जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को कोरबा(छत्तीसगढ़) ------------------------- # 51 ------------------------- Date: 2020-01-13 Subject: मकर सक्रांति(सार छंद) सूरज जब धनु राशि छोड़ के,मकर राशि मा जाथे। भारत  भर  के मनखे मन हा,तब  सक्रांति  मनाथे। दिशा उत्तरायण  सूरज के,ये दिन ले हो जाथे। कथा कई ठन हे ये दिन के,वेद पुराण सुनाथे। सुरुज  देवता  सुत  शनि  ले,मिले  इही  दिन जाये। मकर राशि के स्वामी शनि हा,अब्बड़ खुशी मनाये। कइथे ये दिन भीष्म पितामह,तन ला अपन तियागे। इही  बेर  मा  असुरन  मनके, जम्मो  दाँत  खियागे। जीत देवता मनके होइस,असुरन नाँव बुझागे। बार बेर सब बढ़िया होगे,दुख के घड़ी भगागे। सागर मा जा मिले रिहिस हे,ये दिन गंगा मैया। तार अपन पुरखा भागीरथ,परे रिहिस हे पैया। गंगा  सागर  मा  तेखर  बर ,मेला  घलो  भराथे। भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे। उत्तर मा उतरायण खिचड़ी,दक्षिण पोंगल माने। कहे  लोहड़ी   पश्चिम  वाले,पूरब   बीहू   जाने। बने घरो घर तिल के लाड़ू,खिचड़ी खीर कलेवा। तिल अउ गुड़ के दान करे ले,पावय सुघ्घर मेवा। मड़ई  मेला  घलो   भराये, नाचा   गम्मत   होवै। मन मा जागे मया प्रीत हा,दुरगुन मन के सोवै। बिहना बिहना नहा खोर के,सुरुज देव ला ध्यावै। बंदन  चंदन  अर्पण करके,भाग  अपन सँहिरावै। रंग  रंग  के  धर  पतंग  ला,मन भर सबो उड़ाये। पूजा पाठ भजन कीर्तन हा,मन ला सबके भाये। जोरा  करथे  जाड़ जाय के,मंद  पवन  मुस्काथे। भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे। जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को(कोरबा) ------------------------- # 50 -------------------------




-------------------------

# 181

-------------------------

Date: 2021-01-01

Subject: 


तुम्ही तो हो


 तुम सागर के मोती हो। 

तुम जीवन के ज्योति हो।

 पर्व खुशी के तुम ही हो,

तुम पावन सुरहोती हो । 


ज्ञान के साक्षात मूर्ति हो तुम। 

अभावों के पूर्ति हो तुम।

 सुगम पथ तुम,तीव्र रथ तुम,

 पवन,जल के फूर्ति हो तुम। ××××××


तुम शांति के सेज हो।

 तुम सूरज के तेज हो। 

बेरंग जिंदगी के पट को, 

 रंगने वाले रंगरेज हो। 

सबसे पहले उठ जाती हो, और आखिर में सोती हो-----


तुम ही हो शुभ गुण राशि। 

तुम ही हो मथुरा और कासी। 

 साथ तुम्हारे रहती हरपल,

 सुख शांति बनकर दासी।


 ममता की मूरत। 

मनभावन सूरत। 

आज और कल की,

 तुम ही हो जरूरत। 

दर्द दबाकर भीतर भीतर, सिसक सिसक कर रोती हो---


खैरझिटिया




-------------------------

# 180

-------------------------

Date: 2021-01-01

Subject: 


----------------------------------- अंधकार को क्यो बढ़ाने चले हो? प्रकाशित दीपक बुझाने चले हो? जहॉ हर मानव समान है, वहॉ जात-पात का डाला घेरा| सच्चाई को ठुकराकर, झूठ का लगाया फेरा| कानून-कायदा तोड़कर, मन की उडा़न भरता रहा| जो आया मन में वही, आजतक करता रह | अपनी बनाई झूठी कायदा क्यो निभाने चले हो? अंधकार को क्यो बढा़ने चले हो? प्यार बरसती संसार में, तूने छल कर दी| शॉतिमय वातावरण में, कोलाहल कर दी| रिस्तो की डोर को, पल में कॉट दिया| सेवा-भाव भुलाकर, कुकर्म को छॉट लिया| दिखावे की आड़ में,सच्चाई क्यो मिटाने चले हो? अंधकार को..................................? जो बचपन में खेला, मॉ की ऑचल में| वही बेटा बदल गया, आज और कल में | बेटा और बॉप में, आज कौन बड़ा है, राह में बड़प्पन लिये, पैसा खड़ा है | माया में लिप्त होकर,क्यो माया गान गाने चले हो? अंधकार...........................? अंहकार का दास बने हो, अपना हर ईमान बेचकर| अंहकारी न जी पाते है, पर मग्न हो क्यो यह देखकर| सत्य प्रीत का है यह जीवन, देखें कहानी किस्सा में, पावन थी माता सीता, न जली अग्नि परीक्षा में| पर दुराचारी होकर, तन अपना क्यो तपाने चले हो? अंधकार को..................................? माया का पंख लगाकर, छितिज में क्यो उड़ रहे हो? सेवा-सतसंग कभी न किया, उनसे हमेशा दूर रहे हो| स्वार्थी जीवन जीता रहा, किया न कभी उपकार| जीवन संभालो अपना बंदे, धर्म को मान आधार | जो जग में अनमोल है,वही क्यो भूलाने चले हो? अंधकार को...................? जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को(कोरबा)




-------------------------

# 179

-------------------------

Date: 2021-01-01

Subject: 


नव वर्ष मंगलमय हो


बिदा कर गाके गीत,बारा मास गये बीत।

का खोयेस का पायेस,तेखर बिचार कर।।

गाँठ बाँध बने बात,गिनहा ला मार लात।

उन्नीस के अटके ला,बीस मा जी पार कर।।

बैरी झन होय कोई,दुख मा न रोय कोई।

तोर मोर छोड़ संगी,सबला जी प्यार कर।।

जग म जी नाम कमा,सबके मुहुँ म समा।

बढ़ा मीत मितानी ग,दू ल अब चार कर।।


अँकड़ गुमान फेक,ईमान के आघू टेक।

तोर मोर म जी मन, काबर सनाय हे।।।

दुखिया के दुख हर,अँधियारी म जी बर।

कतको लाँघन परे, कतको अघाय हे।।।

उही घाट उही बाट,उही खाट उही हाट।

उसनेच घर बन,तब नवा काय हे।। ।।।।

नवा नवा आस धर,काम बुता खास कर।

नवा बना तन मन,नवा साल आय हे।।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया

बाल्को,कोरबा


नवा बछर के आप ला झारा झारा जोहार,सादर बधाई,नमन💐💐💐💐🙏




-------------------------

# 178

-------------------------

Date: 2020-12-31

Subject: 


4,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


खुशी मा आन के अंगार बोहाबे।

अपन भर बर बता का प्यार बोहाबे।


बड़े होगे हवस बतिया घलो बढ़िया।

बने कइही कते यदि लार बोहाबे।


नदी मा पानी हे पूरा उतरबे झन।

कहूँ अँड़बे ता धारो धार बोहाबे।


गुरू ग्यानी गुनी बड़का के कर संगत।

कहा नइ मानबे हर बार बोहाबे।


बिना पतवार के डोंगा बने जिनगी।

बता लहरा बिना वो पार बोहाबे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


5,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


लगत हे धन रतन बड़ पाय बइठे हस।

कलेचुप तैं तभे मिटकाय बइठे हस।1


मरत ले मंद गाँजा भाँग ला पी के।

नशा मा चूर हो भकवाय बइठे हस।2


अपन बूता घलो ला टार नइ पावस।

धरा के बोझ बन मोटाय बइठे हस।3


सबे झन जानथे कइसे हवस तेला।

तभो दुल्हिन असन सरमाय बइठे हस।4


उदर मा भात बासी का हमाही अउ।

मरत ले मार गारी खाय बइठे हस।5


उना कोठी घलो भरगे हरागे मति।

तभे तो आज तक ललचाय बइठे हस।6


मनुष अस काम कर अउ नाम कर जग मा।

झरे पाना असन मुरझाय बइठे हस।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 177

-------------------------

Date: 2020-12-31

Subject: 


3,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


नचा सरसर बहत सबला हवा जइसे।

बने रह तैं सबे झन बर दवा जइसे।


जे पाले पेट ला परके भरोसा मा।

उही रहिथे कुकुर कस पोंसवा जइसे।


मनुष आवस मरम ला जानथस तभ्भो।

करत हस काम काबर जोजवा जइसे।


महीना चैत अउ बैसाख मा धरती।

लगे गरमे गरम तीपे तवा जइसे।


जमाना हे दिखाये के दिखा गुण ज्ञान।

कलेचुप झन रहे कर भोकवा जइसे।


कटे नइ एक्को दिन देखे बिना तोला।

मिले कर झन मया मा तन्खवा जइसे।


बढ़े हे जाड़ काँपे हाड़ हुहु हुहु बड़।

लगे नइ जनवरी बच्छर नवा जइसे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 176

-------------------------

Date: 2020-12-30

Subject: 


2,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


धरम के रथ ला हाँके के जरूरत हे।

थके अर्जुन ला बाँके के जरूरत हे।


दिखत हे देख लत गत तोर भँगभँग ले।

सुजी मा सत के टाँके  के जरूरत हे।


बिना जबरन बकत हस बनके बड़बोला।

मुँदे बर मुँह ला आँके के जरूरत हे।


बढ़ाये बर बने बिरवा सुमत सत के।

झिटी झाटा ला फाँके के जरूरत हे।


दुसर मन ला गलत ठहराये के पहिली।

अपन अंतस मा झाँके के जरूरत हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 175

-------------------------

Date: 2020-12-29

Subject: 


बछर 2020 म खोये कुछ महान व्यक्तित्व-



                           वइसे मौत तो मौत ए, फेर बत्तर, चाँटी, माखी, कुकुर, बिलई, बघवा, भलुवा अउ मनखे , सबके मरे म मानवीय संदेवना अलग अलग होथे। मनखे  होय चाहे कोनो जिनावर  दुनो के संवेदना आपसी लगाव म ही जादा होथे। मनखे मन के संवेदना सगा, सम्बन्धी के साथ साथ वो व्यक्ति जेखर ले ओ प्रभावित रथे या फेर जेखर ले श्रद्धा रखथे ओखरो प्रति देखे बर मिलथे। तभे तो राजनेता,अभिनेता,संत, ज्ञानी अउ कोनो महान हस्ती के निधन होय म आँखी छलक जथे। बछर 2020 बैरी बनके आइस, जे छोटे तो छोटे बड़े बड़े हस्ती ल घलो अपन गिरप्त म ले लिस। कोनो आम आदमी के मौत ले ओखर घर परिवार नता रिस्ता अउ  जादा होगे त पास पड़ोसी दुखी होथे। फेर कुछ अइसे मौत होथे जे, सबे ल झकझोर देथे। वइसे तो आना अउ जाना प्रकृति के नियम आय, तभो दुख सबके जाये म होथे,फेर कखरो असमय चल देना, अउ बहुत जादा पीड़ा पहुँचाथे। कला, साहित्य,समाज, राजनीति, खेल, फ़िल्म  सबे क्षेत्र म ए बछर अपूर्णीय क्षति देखे बर मिलिस।हमर बीच ले सदा दिन बर चीर निद्रा म सोये कुछु ऐसे हस्ती के नाम आज मैं श्रद्धांजलि स्वरूप, उन महान हस्ती मन ल नमन करत, रखे बर जावत हँव।

               राजनेता देवी प्रसाद त्रिपाठी, राजनेता अश्विनी कुमार चोपड़ा, साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद्य, साहित्यकार गिरिराज किशोर,राजनीतिज्ञ हंसराज भारद्वाज,फुटबॉल खिलाड़ी प्रदीप बनर्जी, अटॉर्नी जनरल अशोक देसाई, रंगकर्मी उषा गांगुली, सायर राहत इंदौरी, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, राज नेता जसवंत सिंह, राजनेता तरुण गोगोई, राजनेता अहमद पटेल, राजनेता भंवर लाल मेघवाल आदि के संग संग फिल्म सिटी मुम्बई ले अभिनेता इरफान खान, अभिनेता शशि कपूर, गायक संगीतकार एसपी बालासुब्रमण्यम, गायक अभिजीत, सुशांत सिंह राजपुत, प्रेक्षा मेहता,योगेश गौर, सेजल शर्मा, मोहित बघेल, निम्मी, मनमीत ग्रेवाल, साईं गुंडेवार, सफीक अंसारी, अमोस, सचिन कुमार,बासु चटर्जी, कोरियोग्राफर सरोज खान,जगदीप, समीर शर्मा,दिलीप कुमार भटनागर, संजीव कुलकर्णी, चिरंजीवी सरजा आदि मनके अतिरिक्त अउ कई झन महान हस्ती मनके अपूर्णीय क्षति दुखद हे।

            येखर आलावा हमर छत्तीसगढ़ ले घलो कई नेता, साहित्यकार, पत्रकार, समाजसेवी मन हमर ले दुरिहागे, उन सबला घलो सादर नमन अउ  अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।

2020 म परलोक सिधारे राजनेता  अजीत जोगी, राज नेता मोतीलाल बोरा, राजनेता झिथरू राम बघेल, अशोक सिंह, धनेश राम राठिया, पत्रकार पूरन साहू, पत्रकार शशिकांत शर्मा,वरिष्ठ पत्रकार अउ सम्पादक ललित सुरजन जी, आकाशवाणी रायपुर के उद्घोषक रामकुमार सिंह, साहित्यकार डॉ गणेश खरे,राजनीतिज्ञ घना राम साहू, महेंद्र सिंह टेकाम, मनोज प्रजापति, पूर्व न्यायाधीश अजय कुमार त्रिपाठी, डी पी धृतलहरे, शोभा सोनी, अमरनाथ अग्रवाल, कैलाश त्रिवेदी, किरण माहेश्वरी, बॉलीवुड के नवोदित कलाकार नेहा साहू,लोककलाकार प्रताप कुरेटी, छालीवुड अउ बॉलीवुड के कलाकार गायक भैया लाल हेड़उ,जर्नलिस्ट आनंद विश्वकर्मा, समाज सेवी बचना राम जी, हीरा सिंह मरकाम, अउ चिकित्सा के क्षेत्र म डॉक्टर बी पी बघेल, डॉक्टर रमेश के संगे सँग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल अग्रवाल जइसे महान हस्ती मन संग अउ कतको अपूर्णीय क्षति ए बछर होइस। धन गँवाथे ल मिल जथे फेर तन एक बार साथ छोड़िस ताहन कभू नइ पास आये, अउ कहूँ  पास रहिथे त सिरिफ सुरता। बैरी बछर 2020 हमर अइसन महान हस्ती मन ल हम सब  ले छीन लिस। 


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 174

-------------------------

Date: 2020-12-29

Subject: 


जावत हे बछर 2020 -खैरझिटिया


                  मनखे चाहे कतको बलवान हो जाय, फेर सब ले बड़े बलवान होथे समय। देख न इही बछर 2020 ल, जे कोरोना धरके आइस, अउ ज्ञानी, गुणी, धनी,वीर, सबला

अपन आघू घुटका टेके बर मजबूर कर दिस। कइथे महिनत म सब सम्भव हे,फेर यदि समय साथ नइ देय त ,कुछु सम्भव नइ हो सके। ये कोरोना काल म लाखों, करोड़ो मनखे मनके सँजोये कतकोन सपना धरे के धरे  रिहिगे। मनखे पिंजरा के पंछी बरोबर लाकडाउन म, घर म धँधागे।ये आफत सिरिफ हमर देश भर म नही, बल्कि सबे जगत ल झकझोर दिस। रोज कमइया अउ खवइया  बपुरा मनके पेट म डाँका पड़गे। काम धंधा छुटगे, किस्मत फुटगे,अउ सपना घलो टुटगे। रेल अउ बस के पहिया थम गे, लाकडाउन लगे ले, इती उती फँसे, गरीब मनखे मन जुन्ना जुग कस , अपन ठिहा कोती हाथ गोड़ के माँस उकलत अउ लहू फूटत म घलो, रेंगें बर विवस होगे। कतकोन मन रेंगत रेंगत बीच डहर म ही साँस लेय बर छोड़ दिन , त कतको मन अइसन आफत ल नइ झेल सकिस अउ खुदे प्राण ल त्याग दिन।

                लइका मनके पढ़ाई लिखाई घलो राँई छाँई होगे। पढ़ई लिखई करके नोकरी के रद्दा जोहत संगवारी मन बर ए बछर काल बन गे, जे मन एक एक छिन ल कीमती मान के पढ़ाई करिस, वो मन सालभर बर ए साल घरे म बंद होगे। कतको संगी मन अपन पढ़ाई लिखाई ल अउ धार करिस त कतको मन हतास अउ निराश घलो होइन। काबर के डार के चुके बेंदरा अउ आसाढ़ के चुके किसान। वइसे  विवसता तो छोटे बड़े सबे मन झेलिन, फेर मार खाइस तेमा छोट मनखे ही शामिल रहिन, कथे न चिरई कुंदरा ले नइ निकलही त कइसे पलही। उही हाल होगे अइसन लाचार मनखे मनके, उन मन के घर म रहे त खाय। लाकडाउन म टीवी अउ मोबाइल भारी छागे। मनखे मोबाइल म घूस गे। पढ़ाई , लिखाई, गवई, बजई सबे सोसल मीडिया म शुरुवाती समय भारी जोर पकडिस, फेर आखिर म टाँय टाँय फीस घलो होगे। कतकोन तो मोबाइल ल ही अपन दुनिया मान लिन। फेसबुक अउ वाट्सअप म बउरागे।  घर म घलो मनखे परिवार संग एके जघा बइठे बइठे अकेल्ला होगे। चाऊंर दार  कस महँगा डाटा रिचार्ज ल छोटे बड़े सब करिन, अउ अब तो आदत बनगे,नेट बिना नींद घलो नइ आय। डाटा कंपनी वाले मनके बल्ले बल्ले होगे, ग्राहक एकदम से बढ़गे। बढ़े से एक अउ सुरता आवत हे कई वैपारी मनके बढ़वार घलो आहा आफत काल म दिखिस, अउ काबर नइ दिखही?काला बाजारी, जमाखोरी जे होय लगिस। नमक जइसे चीज के अफवाह ले बाजार गरम होगे रिहिस। चाऊंर, दार, तेल, फूल, आलू, प्याज मिलना मुश्किल हो गे रिहिस। अउ मिलत भी रिहिस त मनमाने भाव म। फेर पेट म उभरे भूख के घाव ल भरे बर, का भाव? सबे मजबूर होके बिसाइन अउ कइसनो करके जिनगी बिताइन।

                 बर बिहाव बाजा बैंड बराती सबके बारा बजगे।कलाकार मनके कला कल्हरे बर लग गिस, मजदूर मनके मजदूरी छिनागे। देश विदेश ले मनखे लहुट के अपन कुंदरा, अउ महल अटारी म आगे। कुंदरा म कल्हरई त अटारी म अट्टहास घलो सुनाइस। छोटे बड़े सबके घर मा सिपाही बरोबर सेनेटाइजर नांव के नवा चीज माड़गे। एक बछर एखरे थेभा म निकल गे। शुरू शुरू म कोरोना बैरी आइस त लगत रिहिस कि, ओखर पाँव म जमे जगत हा पलक झपकत समा जही, फेर धीर लगाके बेरा सहज होत गिस, मनखे मनके भयानक डर ह कमती होइस। कथे न भय ह भूत ए, वइसने होइस घलो डरे डर म कतकोन निपट गिन।

टीवी अउ येती वोती कोरोना के हाल बेहास स्थिति ल सुनके अइसे लगत रिहिस कि, कलयुग अबक तबक बस सिरा जही, फेर जाको राखे साँईयाँ मार सके न कोय। अइसन आफत के बेरा मन एक डहर कुछ मनखे मन के  लालच दिखत, त कुछ मन देवदूत बरोबर सेवा घलो करिन।

               एक तरफ मनखे मन लाचार दिखिन, त दुसर डहर प्रकृति म सृंगार। पर्वत, पठार, पेड़, पात, नदी,नाला, हवा, पानी सब सजे बर लग गिन। पशु,पंछी, मनके मनमोहक तान गूँजे बर धर लिस। अइसन होना लगभग असंभव रिहिस, जे कोरोना काल म संभव हो सकिस। येखर साथ साथ बनेच जुन्ना विवादित मुद्दा मन घलो ये बछर पार पाके,जेमा राम मन्दिर निर्माण, धारा 370, 35(A), CAA, अटल टनल, चंद्रयान आदि। कोरोना काल म कई बड़े बड़े हस्ती मन परलोक सिधार गिन, जिंखर भरपाई असम्भव हे। थोर बहुत कोनो खाँसे,छीके त आन मनखे का,सगा सम्बन्धी मन घलो दुरिहाय बर लग जावत रिहिस, जानो मानो सर्दी खाँसी अभिच के बीमारी आय। येखर सेती कतको मन तो डरे के मारे अपन सर्दी खाँसी ल, आन ल नइ बताइन अउ काल के शिकार हो गिन। रोज रोज कोरोना ले होवइया मौत, मतंग मनखे मनके मन म घलो मातम मता दिस। वाह रे बैरी कोरोना, तो झट परे रोना, बछर 2020 ल चुक्ता चाँट डरेस। मन पंछी के पाँख, पिंजरा म धंधाये धंधाये खियागे,त कतको लोभी के पाँख अउ काया मोटागे। ये दे अब तो दिसम्बर घलो जवइया हे,अउ अवइया हे बछर 2021। 2021, इक्कीस रुपिया बरोबर सब बर शुभ होय। अवइया नवा साल म कोरोना बैरी के नामो निशान झन रहे। सबे कोती सुख, शांति, खुशी अउ समृद्धि होय, इही कामना अवइया बछर 2021 ले हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 173

-------------------------

Date: 2020-12-28

Subject: 


1,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


समझ पाना हे मुश्किल ये जमाना ला।

बुरा झन मान कखरो बोल ताना ला।1


तुम्हर मनके बने सब काम टरकत हे

भला कइसे नही तैं गाबे गाना ला।2


गली मा अंधा के रीता सिंहासन हे।

बनाबों अंधा मा राजा वो काना ला।3


खिंचा झन जा मया सच मान के कखरो।

परख के देख ले पहली फँसाना ला।4


ससन भर नींद तैं लेथस सजाके सेज।

हटाके देख गदिया अउ सिदाना ला।5


मिले रुपिया किलो चाँउर रटत रहिथस।

बिसा नइ पाय कतको मन किराना ला।6


दुनो झन जानथौ गलती हवै काखर।

तभो खोजत फिरत हौ कार थाना ला।7


दरद दुख अउ फिकर खावै नही कभ्भू।

धरे चल सत सुमत के तैंहा बाना ला।8


सरग इँहिचे नरग इँहिचे मरे मा का।

सरग जइसे बना रह आशियाना ला।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 172

-------------------------

Date: 2020-12-26

Subject: 


8,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222 122 


उठे ला अउ उठाना चाहथस ना।

दबे ला अउ दबाना चाहथस ना।


करेस आँखी मुँदे अब्बड़ करम कांड।

अपन मुँह अब लुकाना चाहथस ना।


लबारी तोर तो तोपात नइहे।

सही ला तैं छुपाना चाहथस ना।


धरे जल मीठ बढ़त हस नदी कस।

समुंदर मा तैं समाना चाहथस ना।


करत हस फोकटे फोकट तैं तारीफ।

अपन बूता बनाना चाहथस ना।


मिही दे हँव गरी बर चारा तोला।

मुँही ला अब फँसाना चाहथस ना।


अबड़ मुश्किल हवे सत के डहर हा 

सही मा तन तपाना चाहथस ना।


निकल गे तोर बूता काम अब ता।

समझ पासा ढुलाना चाहथस ना।



जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 171

-------------------------

Date: 2020-12-26

Subject: 


2122 2122 2122


8,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


कुछ न कुछ करके दिखाना हे जरूरी।

फर्ज मनखे के निभाना हे जरूरी।1


राही के रूके के कोनो ठाँव कस नइ।

घर मया के अब बसाना हे जरूरी।2


सच मा अड़बड़ हे जरूरी खाना पीना।

फेर पी खाके पचाना हे जरूरी।3


काम मा कोनो विघन ले बचना हे ता।

राह ले रोड़ा  हटाना हे जरूरी।4


सात फेरा लेय भर मा होय नइ कुछु।

संग जीयत ले निभाना हे जरूरी।5


मेचका जइसे कुआँ मा खुसरे झन रह।

सब डहर मा आना जाना हे जरूरी।6


सब समय मा अँड़ना अउ लड़ना हे फोकट।

देख बेरा सिर झुकाना हे जरूरी।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 170

-------------------------

Date: 2020-12-25

Subject: 


7,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 

 

बता दे नइ पता का भूल होगे।

मया के फुलवा कइसे शूल होगे।


करम मा मोर नइहे पथ बरोबर।

कभू चढ़ ता कभू बड़ ढूल होगे।


जुड़े कइसे हमर मन हा बता तैं।

मया के टुटहा अब तो पूल होगे।


मया के बिरवा झट जोरंग जाही।

निचट कमजोर अब तो मूल होगे।


महकही अउ कतिक दिन मोर तन मन।

मया टूटे पड़े अब फूल होगे।


जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 169

-------------------------

Date: 2020-12-24

Subject: 


6,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 

 

समुंदर के असन पानी धरे मा।

पियासे मर जबे तैंहर घरे मा।


सरग के चाह हे ता काम करथन।

चलो मरबों सरग मिलथे मरे मा।


अपन जिनगी पियारा हे सबे ला।

फरक हे बड़ कहे मा अउ करे मा।


जरस चाहे बरस वोला का करना।

नमक चुपरे सदा मनखे जरे मा।


मुकर जाथे कसम किरिया खा नेता।

तभो आघू रथे वादा करे मा।


सुहावै नइ अपन मुख मा बड़ाई।

छलकथे गगरी हा थोरे भरे मा।


तरू होवय या होवय कोई मनखे।

झुके रइथे नॅवे रइथे फरे मा।


वो सुलझाही का झगरा आन मनके।

लड़ाई देख भागे जे डरे मा।


जिया भीतर बसावव सत मया मीत।

बुराई जाय नइ होरी बरे मा।


 जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 168

-------------------------

Date: 2020-12-24

Subject: 


5,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


हवा मा आजकल नर्मी बहुत हे।

मनुष मा फेर अब गर्मी बहुत हे।1


कलेचुप आँख तोपे काम टरका।

अधम मा लिप्त बेशर्मी बहुत हे।2


अपन दुख ले खुदे ला हे निपटना।

ना नेकी अउ ना तो धर्मी बहुत हे।3


बढ़े बेरोजगारी देख सब तीर।

पता नइ काम के कर्मी बहुत हे।4


रसायन हानिकारक हे कथस बस।

बना कम्पोस्ट चल वर्मी बहुत हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 167

-------------------------

Date: 2020-12-24

Subject: 


4,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


उगत हस अउ ढलत हस, का कहँव अब।

सहीं हस के गलत हस, का कहँव अब।1


बने हस बड़का पग नइहे धरा मा।

हवा मा उड़ चलत हस, का कहँव अब।2


भरोसा आन मन करही भला का।

अपन मन ला छलत हस, का कहँव अब।3


शिकायत एक या दू झन ला नइहे।

सबे झन ला खलत हस, का कहँव अब।4


फरे हँव कहिके देखावत फिरत हस।

हलाये बिन हलत हस, का कहँव अब।5


धरे उप्पर धरत हस धन रतन खूब।

समुंदर ले जलत हस, का कहँव अब।6


ना पाना के ठिकाना ना तना के।

करू फर तक फलत हस, का कहँव अब।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 166

-------------------------

Date: 2020-12-23

Subject: 


लकड़ी जलगे उठे हे धुँवा।

नइ जात हे ऊपर रुठे हे धुवाँ।




-------------------------

# 165

-------------------------

Date: 2020-12-23

Subject: 


3,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


भरम के भूत ला झारेल लगही।

दरद दुख द्वेष ला टारेल लगही।


करे मनचलहा बनके काम मन हा।

मनाही हाँका अब पारेल लगही।


बुझत हे दीया हा इंसानियत के।

मया के तेल अब ढारेल लगही।


कमाये बर खुसी धन बल ठिकाना।

पछीना तोला ओगारेल लगही।


भरोसा मा दुसर के हाँकबे डींग।

बखत बेरा मा मुँह फारेल लगही।


नशा पानी ला नइ त्यागबे कहूँ ता।

लड़ाई जिनगी के हारिल लगही।


वतन के काम बर आघू आके।

सुवारथ के दनुज मारेल लगही।

 

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 164

-------------------------

Date: 2020-12-23

Subject: 


2,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


बने हे बड़खा तिंखरे तो मजा हे।

सजा छोटे मँझोलन बर सदा हे।


नवा जुग हे चलव आँख उघारे।

गाँव घर गली सब कोती दगा हे।


अपन जिनगी सबला हे पियारा।

हे पहली जान तब काकी कका हे।


निराला हे गजब कुर्सी के खेला।

उही पद पइसा नेता ला पता हे।


जिहाँ के माटी खा बचपन कटिस हे

उहाँ अब आना जाना तक मना हे।


सिरागे जादा के चक्कर मा कतको।

इही लालच हा तो बड़खा बला हे।


बढ़े का कारखाना कस किसानी।

पवन पानी  सबे दूसर करा हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा (छग)




-------------------------

# 163

-------------------------

Date: 2020-12-23

Subject: 


1,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


बने बेरा कहूँ कोती नइ दिखे।

छँटे घेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


हे हाँवे हाँव चारो खूँट अड़बड़।

खुशी डेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


बगइचा बाग बर आँखी तरस गे।

फरे केरा कहूँ कोती नइ दिखे।


बबा ना डोकरी दाई के आरो।

घुमत ढेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


लुवागे अउ मिंजागे धान तभ्भो।

गँजे पेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


सँझा बिहना भजन गावत भगत के।

लगत फेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


मैं मेरा के जमाना मा अब तो।

तैं तेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 162

-------------------------

Date: 2020-12-22

Subject: 


1,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


तोर उद्धार पढ़े मा होही।

ज्ञान गुण सत ला कढ़े मा होही।


पग धरा मा रही ता सुख मिलही।

दुःख आगास चढ़े मा होही।


होय नइ कुछु छुपा झन गलती ला।

झगड़ा पर दोष मढ़े मा होही।


गाँव घर बन के तरक्की निसदिन।

देखे सब सपना गढ़े मा होही।


झट मिलन आत्मा के परमात्मा ले।

नदिया कस आघू बढ़े मा होही।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 161

-------------------------

Date: 2020-12-21

Subject: 


4,गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


पाप के गगरी भरे का, छेदरा हावै तरी मा।

पुण्य दरदर खाय ठोकर, डार के डोरी नरी मा।


खुद ला पीना हे तभो ले, खुद ला जीना हे तभो ले।

आज देखव मनखे मन, घोरे जहर पानी फरी मा।


ना गियानी ना धियानी, बेंदरा जइसे हे मुँहरन।

मानते नइहे टुरा हा, जान अटके हे परी मा।


लौट के आबे तैं दुच्छा,बन शिकारी बन मा झन जा।

जान ले चारा के बिन अब, नइ फँसे मछरी गरी मा।


काम ना संजीवनी दे , प्राण लक्ष्मण हा गँवाये।

कंस रावण जी उठत हे , पेड़ पत्ता अउ जरी मा।


बीत गे सावन घलो हा, बिन झड़ी के का बतावौं।

रदरदारद बरसे पानी, दाई के रखिया बरी मा।


हाँड़ी हँड़िया नइ सुहावै, नइ सुहावै घर के भाजी।

सब भुलाये ढाबा होटल, मास मद अंडा करी मा।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)




-------------------------

# 160

-------------------------

Date: 2020-12-20

Subject: 


गंगोदक सवैया

विधान-

212×8

या आठ घाँव रगण


उदाहरण


आदमी के ठिहा ठौर हावै निराला,निराला कहाँ फेर हे आदमी।

मार मा पीट मा शेर जैसे बने,ता बुता काम मा ढेर हे आदमी।

थोरको ना सुने थोरको ना गुने, मोह  मा चूर अंधेर हे आदमी।

काखरो मान सम्मान जाने नही,आज देखौ कते मेर हे आदमी।


खैरझिटिया




-------------------------

# 159

-------------------------

Date: 2020-12-20

Subject: 


3,गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


जाड़ मा मैंहर जमे रेंहेंव, गरमी पा गलत हौं।

मैं पिघल के पथ बनाके, ठौर खोजत अब चलत हौं।


लाम गेहे खाँधा डारा, नाचथौं मैं हाथ उँचाके।

तोर उगाये छोट बिरवा, आज फूलत अउ फलत हौं।


मार पथरा फर लगे तब, पर उदिम कर फर लगे बर।

का भरोसा काट देबे, बिन हलाये मैं हलत हौं।


साँस के दिन तक रही अब, का ठिकाना जिंदगी के।

जेल के भीतर धँधाये बिन हवा पानी पलत हौं।


जोगनी के राज मा मैं, रोशनी धरके करौं का।

झट सुँई  घुमगे समय के, बिन उगे मैंहा ढलत हौं।


मौत औं मैं मौन रहिथौं, नापथौं मैं काम बूता।

तीर मा झट आ जहूँ बस, आज कल कहिके टलत हौं।


भूख मारे के उदिम हे, दर्द सारे के उदिम हे।

चांद तारा तैं अमर, मैं पानी मा भजिया तलत हौं।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 158

-------------------------

Date: 2020-12-18

Subject: 


2,गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


एक ले हे प्यार काबर, एक ले तकरार काबर।

एक झन बढ़िया हवे ता, एक हे बेकार काबर।


मनखे अस ता मान रख, खुद के असन तैं सब झने के।

कर कलेचुप काम बढ़िया, पारथस गोहार काबर।


नइ जुरिस जीते जियत मा, पार ना परिवार कोनो।

साँस रुकगे ता जुरे हे, आदमी मन चार काबर।


का जमाना आय हावै, हाट होगे जिंदगी हा।

सेवा शिक्षा आस्था मा, होत हे वैपार काबर।


पेड़ नइहे पात नइहे, गाँव चिटिको भात नइहे।

धूल माटी के जघा मा, राख के गुब्बार काबर।


तोर दिल मा हे मया अउ तोर दिल मा हे दया ता।

आँख मा अंगार काबर, हाथ मा तलवार काबर।


सुख मा सुरता नइ करस अउ, देख दुख भगवान कहिथस।

तोर दुख ला टार तैंहा, वो लिही अवतार काबर।


सत धरे बिन दशरहा अउ, का दिवाली दिल मिले बिन,

जिंदगी मा रंग नइ ता, रंग के बौछार काबर। 


कारखाना मा उपजही, धान गेहूँ अउ चना का।

पेट के थेभा इही ये, बेचथस बन खार काबर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 157

-------------------------

Date: 2020-12-17

Subject: 


छत्तीसगढ़ सरस्वती साहित्य समिति बाल्को नगर कोरबा द्वारा काव्य गोष्ठी और विदाई समारोह  आयोजित किया गया। मां सरस्वती की पूजा अर्चना और सुमधुर गीतकार कृष्ण कुमार चंद्रा की सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। उपस्थित सभी साहित्यकारों ने बालको से सेवानिवृत्त हुए, छत्तीसगढ़ सरस्वती साहित्य समिति के सम्माननीय सदस्य लालजी साहू 'लाल छत्तीसगढ़िया' के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपने अपने विचार प्रस्तुत किए। तत्पश्चात उनको समिति के सदस्यों द्वारा साल, श्रीफल और प्रतीक चिन्ह  अर्पित किया गया। लालजी साहू लगातार सरस्वती साहित्य समिति बाल्को नगर कोरबा से जुड़े रहे। कार्यक्रम के दौरान लाल जी साहू की जीवन संगिनी सुशीला साहू भी उपस्थित रही, उनका भी सम्मान समिति के सदस्यों द्वारा किया गया।

                  कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें छत्तीसगढ़ सरस्वती साहित्य  समिति बालको नगर कोरबा के माननीय अध्यक्ष महावीर चंद्रा द्वारा स्वरचित गीता के गोठ नामक पुस्तक से  मनभावन श्लोक और छंद पढ़े गए तथा सचिव बंसी लाल यादव जी द्वारा वर्तमान समय में चल रहे किसान आंदोलन और असमय बरसात को विषय बनाकर काव्य पाठ किया गया। कोरबा के सुमधुर गीतकार कृष्ण कुमार चंद्र जी द्वारा मैं कोरबा ले बोलत हँव नामक कोरबा का परिचयात्मक मनभावन गीत प्रस्तुत किया गया, तथा सुमधुर गीतकार, गजल कार गीता विश्वकर्मा द्वारा हरिगीतिका छंद में मां सरस्वती की वंदना और सुधा देवांगन द्वारा एकादशाक्षरा छंद में लाल जी साहू के लिए विदाई प्रस्तुत किया। लोक कलाकार और कवि  धरम साहू द्वारा कोरोना काल से संबंधित गीत और कवियित्री निर्मला ब्राह्मणी द्वारा उत्कृष्ट मुक्तक प्रस्तुत किया गया। सुमधुर कंठ के धनी कवियित्री और समाज सेविका लता चंद्र  द्वारा विदाई गीत और ठंड मौसम पर मनभावन प्रस्तुति दी गई। जितेंद्र कुमार वर्मा खैरझिटिया द्वारा मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव नामक  गीत लावणी छंद में प्रस्तुत किया गया। छत्तीसगढ़ के उभरते युवा कवि और कुशल वक्ता डिकेश्वर साहू द्वारा लाल जी साहू  को सादर विदाई देते हुए भाव पुष्प अर्पित किया गया। कार्यक्रम का कुशल संचालन गीतकार कृष्ण कुमार चंद्रा  द्वारा किया गया तथा अंत में उपस्थित सभी साहित्यकारों का आभार प्रदर्शन जितेंद्र कुमार वर्मा खैरझिटिया द्वारा प्रस्तुत किया गया। उपस्थित श्रोताओं द्वारा काव्य पाठ की भूरी भूरी प्रशंसा की गई ।




-------------------------

# 156

-------------------------

Date: 2020-12-17

Subject: 


1,गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


झन अँड़े रह बड़ हवा हे, डार कस खुद ला झुका दे।

जर जही घर बार कखरो, आग झन भभके बुता दे।


काँटा खूँटी काँद बोबे, ता तहूँ बदनाम होबे।

सब झने सँहराही तोला, प्रेम के पउधा उगा दे।


जड़ बिना नइ पेड़ होवै, मनखे न इंसानियत बिन।

नेव बिन मीनार ढहथे, कतको बड़ चाहे उठा दे।


मैं किसानी का करौं, अब कोन सुनथे मोर बयना।

जल पवन हा तोर से, आथे बुलाये ता बुला दे।


एक डरथे भीड़ ले अउ, एक चलथे भीड़ धरके।

घर घलो मा आही नेता, भीड़ मनखे के जुटा दे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 155

-------------------------

Date: 2020-12-16

Subject: 


5,ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


बिन गुरू के ज्ञान भइगे।

माते रण मा म्यान भइगे।1


पाँव उठे नइ थोरको भी।

बात  मा ऊड़ान भइगे।2


मैल जमते जाय मन मा।

रात दिन बस स्नान भइगे।3


काँपे खुर्शी देख नेता।

जनता हे हलकान भइगे।4


देश हा कइसे सुधरही।

मंद मा मतदान भइगे।5


भाव कौड़ी के बिकत हे।

आज सत ईमान भइगे।6


आधा तोपाय आधा उघरा।

वाह रे परिधान भइगे।7


का दया अउ का मया अब।

हिरदे हे चट्टान भइगे।8


जाने नइ गुण ज्ञान तेखर।

होत हे गुण गान भइगे।9


तरिया परिया हरिया सब गय।

गोड़ा ना गौठान भइगे।10


मात गेहे बड़ मनुष मन।

का कहौं भगवान भइगे।11


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 154

-------------------------

Date: 2020-12-13

Subject: 


3,ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


विस्की अउ ना रम सही हे।

बड़ खुशी ना गम सही हे।1


तोर उजड़ही आशियाना।

बोल बारुद बम सही हे।2


का ठिहा का ठौर पाबे।

आस ना संयम सही हे।3


जादा मा डर हे जरे के।

चीज बस तब कम सही हे।4


मरगे मनखे मोर मैं मा।

छोड़ चक्कर हम सही हे।5


बारे घर बन ला उजाला।

ता रहन दे तम सही हे।6


चोचला बड़ हे बड़े के।

आम मन लमसम सही हे।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 153

-------------------------

Date: 2020-12-13

Subject: 


2,ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


ताल सुर बाजा सिरागे।

तइहा के खाजा सिरागे।1


मार देहू भाग जा मा,

मत मया आजा सिरागे।2


जातरी आगे कई के।

रंक का राजा सिरागे।3


फ्रीज सजगे हे घरो घर।

चीज सब ताजा सिरागे।4


मनखे मनके का ठिकाना।

सबके अंदाजा सिरागे।5


बन मा बन गे बाट बड़का।

साल अउ साजा सिरागे।6


खैरझिटिया अब खड़े रह।

आस दरवाजा  सिरागे।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा




-------------------------

# 152

-------------------------

Date: 2020-12-12

Subject: 


4,ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*



नव के चल तब नाम होही।

अँड़बे ता संग्राम होही।1


पेट भरही भात बासी।

अउ बड़े बादाम होही।2


सोंचबे अउ करबे अच्छा।

मन मुताबिक काम होही।3


काम करबे नित बुरा ता।

बड़ बुरा अंजाम होही।4


नइ रही खेती किसानी।

कोठी का गोदाम होही।5


जब सिराही द्वेष दंगा।

घर गली तब धाम होही।6


राम कहना मानबे ता।

तोरो घर मा राम होही।7


जाड़ मा झन काँप जादा।

धीर धर झट घाम होही।8


कर करम नित खैरझिटिया।

 झट सुबे अउ शाम होही।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 151

-------------------------

Date: 2020-12-11

Subject: 


1,*ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


तोर बर थोरे लहर हे।

तोर बर थोरे नहर हे।1


गाँव अब गुँगवात हावै।

तोर बर थोरे शहर हे।2


एक छिन लटपट पहाथे।

दुख भरे आठो पहर हे।3


चुक्ता अमरित हा सिरागे।

तोर बर बाँचे जहर हे।4


शांति सुख नइ भाग मा तोर।

सब तिरन माते कहर हे।5




-------------------------

# 150

-------------------------

Date: 2020-12-09

Subject: 


जंगल म जाड़ पूस के

------------------------------------------

पूस   के  जाड़ , पहाथे  लटपट।

मोर कुंदरा म घाम,आथे लटपट।


मोर बाँटा के घाम ल खाके,

सरई - सइगोन  मोटात  हे।

पथरा -  पेड़  -  पहाड़   म,

मोर  जिनगी  चपकात  हे।

गुंगवात  रिथे   दिन - रात,

अँगरा    अउ       अँगेठा।

सेंकत    रिथे    दरद    ल,

मोर    संग    बेटी  - बेटा।

कहाँ ले साल-सुटर -कमरा पाहूं?

तन  चेंदरा  म,  तोपाथे  लटपट।

पूस   के  जाड़ , पहाथे  लटपट।

मोर कुंदरा म घाम,आथे लटपट।


मोर  भाग  दुख  , अतरा    होगे   हे।

भोग-भोग के मोर तन,पथरा होगे हे।

सपना म  सुख ,  घलो   दिखे   नही।

मोर भाग ल भगवान,बने लिखे नही।

कोरा म लइका, कुड़कुडाय  पड़े हे।

खेलइया-कूदइया ,घुरघुराय  पड़े  हे।

56 भोग ; 56  जनम म, नइ   मिले,

पेट; पेज-पसिया म, अघाथे लटपट।

पूस    के   जाड़ ,  पहाथे    लटपट।

मोर  कुंदरा  म  घाम, आथे  लटपट।


दिन  बूड़त  सोवा  पर जथे।

बिहनिया ले आगी बर जथे।

सीत  -  कोहरा   अउ  धुंध।

मोर  सपना  ल   देथे   रुंध।

बघवा - भलवा के माड़ा हे।

मोर  तन  उँखर ,  चारा  हे।

काटत रिथों गिन-गिन छिन-छिन,

आंखी  म  नींद  , हमाथे लटपट।

पूस   के  जाड़ ,  पहाथे  लटपट।

मोर कुंदरा म घाम, आथे लटपट।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795




-------------------------

# 149

-------------------------

Date: 2020-12-06

Subject: 


4,ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


का मनुष का जानवर तैंहा बुला पुचकार के।

आ जही सब तीर मा तैं देख दाना डार के।1


जानवर ले गय बिते मनखे दिखत हे आज के।

घर अपन उजरात हावै पर ठिहा ला बार के।2


बैर झन कर बैर झन धर बैर देही बोर गा।

फलही फुलही अउ महकही बोदे बिजहा प्यार के।3


बनके स्वार्थी का कमाबे धन धरे तजबे धरा।

जानवर बन काय जीना मीत ममता मार के।4


आदमी सिधवा डरत हे मोठ होवै चोर हा।

नइहे डर बदमास मनला डाँड़ कारागार के।5


सत सुमत अउ मीत तजके का धरत हस हाथ मा।

काटना अउ भोंगना तो काम हे तलवार के।6


काम आवै नइ गरब हा कंस रावण गय झपा।

मान कहना खैरझिटिया देख झन मुँह फार के।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""""

5,ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


आगाज से मतलब नही अंजाम चाही बने।

हाँ काम से मतलब नही परिणाम चाही बने।1


सूरज लुकाये रोज के गरमी घरी मा भले।

सरदी समय घर अंगना मा घाम चाही बने।2


देवय दरद दूसर ला बेपरवाह होके जौने।

पीरा भगाये बर उहू ला बाम चाही बने।3


बिन शोर अउ संदेश के तरसे घलो कान अब।

मन मा खुशी भर दै तिसन पैगाम चाही बने।4


आफत बुला झन रात दिन करके हटर हाय तैं।

जिनगी जिये बर जान ले आराम चाही बने।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 148

-------------------------

Date: 2020-12-06

Subject: 


नइ भरे गगरी पाप के, भूलका हे तरी मा।

फसल मुझात हे, बरसे बादरर बरी मा।




-------------------------

# 147

-------------------------

Date: 2020-12-05

Subject: 


3,ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


रिस हवय तनमन मा अब्बड़, मुँह फुलाये आय हँव।

चुप रहे हँव आज तक मैं, मुँह उलाये आय हँव।1


तैं बुलाथस रोज मोला, पर भरोसा तोर का।

मैं कहाँ घर लाँघथौं पर, अब बुलाये आय हँव।2


मन तिजोरी मा मया के, हे खजाना बड़ अकन।

हारहूँ सब तोर कर, पासा ढुलाये आय हँव।3


मोर नरमी देख के, पोनी घलो जाथे लजा।

चाब डर या लील डर मैं, गुलगुलाये आय हँव।4


नइ घुलत हे रँग मया के, तोर घोरे मा बही।

कर चिटिक चिंता झने, मैंहर घुलाये आय हँव।5


आज मदिरालय मा ठाढ़े, जाम ढोंकत हँव गजब।

मोला झन कहिबे शराबी, गम भुलाये आय हँव।6


खाय हँव धोखा गजब, मैं हर मया बाजार मा।

हाँस ले रे खैरझिटिया, गुदगुदाये आय हँव।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 146

-------------------------

Date: 2020-12-05

Subject: 


आहे जाड़ रे(गीत)


आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे।

आहे जाड़ रे,आहे जाड़ रे।

बूता धरके मोर गाँव म हजार रे,,,,,।


अधनिंदियाँ दाई उठ के पहाती,

सिधोवत हे लकर धकर चूल्हा चाकी।

खेत कोती जाये बर ददा ह मोरे,

उठ के बिहनिया चटनी बासी झोरे।

बबा तापत हे, आगी भूर्री बार रे,,,,,,,।

आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे,,,,,,,,,,,,,,।


धान ह काहत हवै, जल्दी घर लान।

बियारा ह काहत हवै, जल्दी दौंरी फाँद।

चना गहूँ रटत हे, ओनार जल्दी मोला।

दुच्छा हौं कहिके, खिसियात हवै कोला।

सइमो सइमो करय, खेत खार रे,,,,,,,,,।

आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे,,,,,,,,,,,,,,,,।


थरथराये चोला गजब हुहु हुहु कापे।

डबकत पानी कस,मुँह ले निकले भापे।

तभो ले कमइया के बूता चलत हे।

दया मया मनखे बीच, जँउहर पलत हे।

कोन पाही कमइया के, पार रे,,,,,,,,,,।

आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे,,,,,,,,,,,,,,।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 145

-------------------------

Date: 2020-12-05

Subject: 


2,ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


दिन गजब अंधेर आगे नींद परही का बता।

डेहरी मा शेर आगे नींद परही का बता।1


लड़ लुड़ी के देश ले अंग्रेज ला खेदारे हन।

दिन गुलामी फेर आगे नींद परही का बता।2


जिंदगी सुख मा बितावौं रोज मैंहा हाँस के।

दुख खुशी ला घेर आगे नींद परही का बता।3


फूल झरथे फर लहुटथे धीरे धीरे पाकथे।

डोंहड़ूँ मा चेर आगे नींद परही का बता।4


धान धन दौलत धराये मोर कोठी मा रिहिस।

राख माटी ढेर आगे नींद परही का बता।5


बाढ़गे मनखे भले पर नइ चढ़े हे चेत हा।

सोंच घुटना मेर आगे नींद परही का बता।6


सोंचबे ते होय ना अउ नइ कबे ते हो जथे।

नैन मूँदत बेर आगे नींद परही का बता।7


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 144

-------------------------

Date: 2020-12-04

Subject: 


1,ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


मोर सँग तैंहर मया के गीत गाबे का बता।

जौन गेहे हार थक तेला उठाबे का बता।1


भूल जाथस मीत ममता भूल जाथस सत मया।

तान के पड़ही तमाचा ता भुलाबे का बता।2


जौन तोरे बस मा हावै काम उसने कर सदा।

रोंठ हे मछरी गरी ले ता फँसाबे का बता।3


देख सिधवा भाव खाथस आँख देखावत रथस।

दोगला अतलंगहा ले जीत पाबे का बता।4


कोई सीथा मा अघाये कोई छप्पन भोग मा।

चीज बस धन सोन चाँदी खा अघाबे का बता।5


गाय नइहे बरदी मा सकलाय हे गरदी गजब।

शेर बघवा भालू ला तैंहा चराबे का बता।6


मैं भगइया भूत के अँव मैं मसक देथौं नरी।

हाथ छोड़ा भागबे या तीर आबे का बता।7


ताक झन मुँह काखरो अहसान लेना छोड़ दे।

पर भरोसा पेट भरही ता हिताबे का बता।8


तैं कहाथस सेठ साहब नाव हे अउ जात हे।

का कभू छत्तीसगढ़िया तैं कहाबे का बता।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 143

-------------------------

Date: 2020-12-01

Subject: 


राजभाषा दिवस के पावन अवसर म, लोकाक्षर परिवार के पाँच दिवसीय विशेष आयोजन


बहुत अकन विचार आइस,*

*बहुत अकन होइस गोठ।।*

*सच मा हमर  छत्तीसगढ़ी,*

*हावय जब्बर पोठ।*


         लोकाक्षर परिवार डहर ले,छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के पावन अवसर म पाँच दिवसीय आयोजन गजब सुघ्घर अउ मनभावन रिहिस। येखर बर अइसन महायज्ञ के रचयिया अउ होम करइया(भाग लेवइया)  जम्मो संगी साथी मन ल सादर बधाई अउ नमन। 118 झन सुधिजन मन ले सजे सँवरे ये समूह एक मिशाल आय, जिहाँ रोज सार्थक अउ समर्पित चर्चा छत्तीसगढ़ी भाँखा म होथे। विगत पाँच दिन ले छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर म विशेष आयोजन रिहिस, जेमा चर्चा, परिचर्चा अउ विचार मंथन के संगे संग आखिर दिन मनभावन काव्य गोष्ठी आयोजित होइस। वइसे तो सबे दिन के कार्यक्रम आकर्षक रिहिस, तभो, गोष्ठी जादा प्रभावी अउ मनभावन लगिस।

                 गोष्ठी म एक ले बढ़के एक गीत कविता तो सुने बर मिलबेच करिस, येखर आलावा छंद परिवार के सदस्य मन मनभावन छन्द बर्षा घलो करिन। छंद के छ के संस्थापक परम् पूज्य गुरुदेव अरुण निगम जी के आशीष प्रताप ले महू ल ये कार्यक्रम म भाग लेय के अवसर मिलिस। गोष्ठी म भाग लेके अद्भत अउ मनभावन प्रस्तुति बर परम् पूज्य गुरुदेव अरुण निगम जी,दीदी शकुंतला तरार जी, दीदी सुधा वर्मा जी, आदरणीय राम नाथ साहू सर जी, गुरु चोवा राम वर्मा बादल जी, गुरु दिलीप वर्मा सर जी, गुरुदीदी आशा देशमुख जी, दीदी शशि साहू जी, भैया मिलन मिल्हरिया जी, दीदी केवरायदु मीरा जी, भैया अजय अमृतांशु जी,भैया महेंद्र बघेल जी, भैया पोखनलाल जायसवाल जी, भैया पूरन लाल जायसवाल जी,कवि मोहन निषाद जी, भैया अनुज छत्तीसगढिया जी,भैया गया प्रसाद साहू जी,भाई राजेश निषाद जी, भैया ज्ञानू मानिकपुरी जी, दीदी वासन्ती वर्मा जी, दीदी शोभामोहन श्रीवास्तव जी, भैया मनीराम साहू मितान जी, भैया ओमप्रकास अंकुर जी, मयारुख भैया सूर्यकांत गुप्ता कांत जी, परम् आदरनीय बलदारु राम साहू सर जी, भैया बोधन निषाद जी, भैया जगदीश साहू हीरा जी, भैया सुखदेव सिंह अहिलेश्वर जी, अउ बड़े भैया शशि भूषण स्नेही जी, आप सब मन खूब रंग जमायेव।आप सबके मुखारबिंद ले मनभावन गीत कविता सुनके हिरदय जुड़ा गे।


         संगे संग सरलग चार दिन तक तर्क वितर्क अउ विचार आलेख के रूप म पटल म घलो बरोबर आइस।जेमा सदा सक्रिय रहइया भैया गयाप्रसाद साहू जी, परम् आदरणीय सर विनोद वर्मा जी, पूज्यनीय दीदी सरला शर्मा जी, परम् पूज्य गुरुदेव अरुण निगम जी, भैया पोखन लाल जायसवाल जी, परम् सम्माननीय भैया रामनाथ साहू जी,प्रोफेसर साहब  अनिल भटपहरी जी, भैया सत्य धर बाँधे जी,भैया बलराम चन्द्राकर जी, भैया अनुज छत्तीसगढ़िया जी, दीदी सुधा वर्मा जी, आप सबके विषयानुरूप विचार प्रभावी अउ उपयोगी रिहिस। वइसे तो लोकाक्षर परिवार हर दिन विषयानुरूप सक्रिय रथे, तभो राजभाषा दिवस के पावन अवसर म आयोजित पाँच दिवसीय कार्यक्रम मनमोहक अउ आकर्षक रिहिस, नवा उत्साह जगाइस। ये समूह के निर्माता परम् आदरणीय सुधीर वर्मा सर जी, एडमिन गुरुदेव निगम जी अउ दीदी सरला शर्मा जी, के संगे संग लोकाक्षर  परिवार के मया बरोबर मिलत रहय।कखरो नाम छूट गे घलो होही त, माफी देय के कृपा करहू। सबके लाजवाब प्रस्तुति बर अंतस ले बधाई, अउ सादर नमन।।


जीतेंन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 142

-------------------------

Date: 2020-12-01

Subject: 


4,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


दाई ददा का देवता ले कम हवे।

कइसे उँखर जिनगी तभो बड़ तम हवे।1


होके मनुष नइ काम आवस काखरो।

फोकट धरे धन धान अउ दमखम हवे।2


बोली बचन जेखर भरे बम हवे।




-------------------------

# 141

-------------------------

Date: 2020-11-30

Subject: 


3,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


सब दिन डँसे मँहगाई हा नागिन असन।

उगले जहर सग भाई हा नागिन असन।1


सत सार ला अजगर निगल गे झूठ के।

अब तो लगे अच्छाई हा नागिन असन।2


कब लाँघ पाहूँ का पता दुख के डहर।

बढ़ते हवे लंबाई हा नागिन असन।3


घर घर मिले सत ला सतइया आदमी।

हे चाल अउ चतुराई हा नागिन असन।


परबुधिया बनके मनुष कारज करे।

खतरा हवे उकसाई हा नागिन असन।5


बेकार हे करना इहाँ पर आसरा।

दुख देत हे परछाँई हा नागिन असन।6


मनमोहनी कइसे अचानक होय हे।

हिरणी असन रेंगाई हा नागिन असन।7


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा




-------------------------

# 140

-------------------------

Date: 2020-11-30

Subject: 


2,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


खुद गल अरोये हार ता का काम के।

माँगे मिले प्रुस्कार ता का काम के।1


जल बर ललाये खेत बन अउ बाग हा।

बोहय गली मा धार ता का काम के।2


अँटियात हस अब्बड़ रतन धन जोड़ के।

नइहे सखा दू चार ता का काम के।3


कइथे सबो मन ले ही जीत अउ हार हे।

यदि बइठे हस मन मार ता का काम के।4


कर खैरझिटिया कुछु अपन दम मा तहूँ।

दूसर लगाये पार  ता का काम के।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 139

-------------------------

Date: 2020-11-28

Subject: 


छत्तीसगढ़ी बानी(लावणी छंद)- जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।

पी के नरी जुड़ा लौ सबझन, सबके मिही निशानी अँव।


महानदी के मैं लहरा अँव, गंगरेल के दहरा अँव।

मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी, ठिहा ठौर के पहरा अँव।

दया मया सुख शांति खुशी बर, हरियर धरती धानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।।।।।


बनके सुवा ददरिया कर्मा, माँदर के सँग मा नाचौं।

नाचा गम्मत पंथी मा बस, द्वेष दरद दुख ला काचौं।

बरा सुँहारी फरा अँगाकर, बिही कलिंदर चानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


फुलवा के रस चुँहकत भौंरा, मोरे सँग भिनभिन गाथे।

तीतुर मैना सुवा परेवना, बोली ला मोर सुनाथे।

परसा पीपर नीम नँचइया, मैं पुरवइया रानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।


मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।

झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी, छेड़े नित मोर तराना।

रास रमायण रामधुनी अउ, मैं अक्ती अगवानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


ग्रंथ दानलीला ला पढ़लौ, गोठ सियानी धरलौ।

संत गुणी कवि ज्ञानी मनके, अंतस बयना भरलौं।

मिही अमीर गरीब सबे के, महतारी अभिमानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 138

-------------------------

Date: 2020-11-28

Subject: 


1,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


चूल्हा ले उठ सब खूँट छाये हे धुँवा।

आशा भुखाये मा जगाये हे धुँवा।1


रतिहा जलिस या फेर काँपिस जाड़ मा।

बन बाट ला  बिहना चुराये हे धुँवा।2


बड़ कोहरा बिहना दिखे जड़काल मा।

घर बाट ला मुख मा दबाये हे धुँवा।3


सिगरेट गाँजा बीड़ी  ले सबदिन निकल।

तनमन के बड़ बारा बजाये हे  धुँवा।4


चिमनी ले निकले ता करे अब्बड़ गरब।

आगास ला सिर मा उँचाये हे धुँवा।5


मिरचा निमक बारे भरम झारे मनुष।

हुमधूप के  देवन ला भाये हे धुँवा।6


चल खैरझिटिया छोड़ के चिंता फिकर।

उप्पर डहर सबदिन उड़ाये हे धुँवा।7


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 137

-------------------------

Date: 2020-11-24

Subject: 


छोट बाल गोपाल के, जनम दिवस हे आज।

सूरज कस चमकै सदा, करे जगत मा राज।




-------------------------

# 136

-------------------------

Date: 2020-11-23

Subject: 


कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


आलू राजा साग के, आज रूप देखाय।

किम्मत भारी हे बढ़े, हाड़ी ले दुरिहाय।।

हाड़ी ले दुरिहाय, हाथ नइ आवत हावै।

बिन आलू के संग, साग भाजी नइ भावै।

हे कालाबाजार, काय कर सकही कालू।

एक बहावै नीर, एक हाँसे धर आलू।।


होवत हावय सब जघा, आलू के बड़ बात।

का कहिबे छोटे बड़े, सबला हे रोवात।

सबला हे रोवात, सहारा जे सब दिन के।

आये आलू आज, सैकड़ा मा तक गिन के।

आलू के बिन साग, कई ठन रोवत हावय।

महँगा जम्मों चीज, दिनों दिन होवत हावय।


जादा के अउ चाह मा, बुरा करव ना काम।

होय बुरा के एक दिन, गजब बुरा अंजाम।

गजब बुरा अंजाम, भोगथे बुरा करइया।

का वैपारी सेठ, सबे मनखे अव भइया।

करव बने नित काम, राख के बने इरादा।

बित्ता भर के पेट, काय कमती अउ जादा।


दाना पानी छीन के, झन लेवव जी हाय।

जीये खाये के जिनिस, सहज सदा मिल जाय।

सहज सदा मिल जाय, अन्न पानी सब झन ला।

मनखे झन कहिलाव, बरो के मनखेपन ला।

फैलाके अफवाह, जेन करथे मनमानी।

हजम कभू नइ होय, उसन ला दाना पानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 135

-------------------------

Date: 2020-11-23

Subject: 


शेरके पंजा के निशान देख।

2122

आदमी हवै परेशान देख।




-------------------------

# 134

-------------------------

Date: 2020-11-21

Subject: 


जेन ल ननपन ले सुनत आवत हन, आज परम् पूज्य गुरुदेव के कृपा ले उन ला, गोष्ठी म पहुना बरोबर पाके अंतस म आनंद भरगे,,,

दीदी जी ल सादर नमन, सादर अभिनंदन हमर गोष्ठी म💐💐💐💐💐


*ठाकुर दीदी आय हे, महकत हे घर खोर।*

*छंद के छ परिवार हा, नमन करे कर जोर।*


*हम सबके जागे हवे, आज जबर जी भाग।*

*धनी सबे सुर साज के, दीदी जी अनुराग।*


*सुन सुन के बाढ़े हवन, दीदी जी के गीत।*

*बाजय जब संगीत ता, बाढ़य मया पिरीत।*


*सुर सरगम जानौं नही, कइसे राग लमाँव।*

*दीप सुरुज के सामने, कइसे भला जलाँव।*


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 133

-------------------------

Date: 2020-11-14

Subject: 


बाहिर मा उजियार हे, मन भीतर हे अँधियार।

तब अइसन देवारी,




-------------------------

# 132

-------------------------

Date: 2020-11-14

Subject: 


देवारी तिहार के आप ल  बहुत बहुत बधाई


कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।

मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।

गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।

करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।

लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।

दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।


भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।

देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।

बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।

आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।

बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।

देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 131

-------------------------

Date: 2020-11-13

Subject: 


बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


सबे खूँट देवारी, के हे जोर।

उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।


छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।

किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।


चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।

गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।


काँटा काँदी कचरा, मानय हार।

मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।


जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।

दया मया मनखे मा, हे भरपूर।


चारो कोती मनखे, दिखे भराय।

मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।


बनठन के सब मनखे, जाय बजार।

खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।


पुतरी दीया बाती, के हे लाट।

तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।


लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।

दीया बाती वाले, बड़ चिल्लाय।


कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।

नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।


जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।

टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।


हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।

खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।


पहली दिन घर आये, श्री यम देव।

मेटे सब मनखे के, मन के भेव।


दै अशीष यम राजा, मया दुलार।

सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।


तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।

पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।


दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।

सब संकट हा भागे, सुबे नहात।


नहा खोर चौदस के, देवय दान।

नरक मिले झन कहिके, गावय गान।


तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।

धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।


एक मई हो जावय, दिन अउ रात।

अँधियारी ला दीया, हवै भगात।


बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।

चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।


बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।

दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।


फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।

चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।


होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।

गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।


दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।

अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।


पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।

बहिनी मनके बोहै,भाई भार। 


कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।

देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।


देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।

देख देख के नाचे, तनमन मोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


देवारी तिहार के बहुत बहुत बधाई




-------------------------

# 130

-------------------------

Date: 2020-11-10

Subject: 


2,गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


नाचा हरे ये जिंदगी जे नाँचथे ते बाँचथे।

मइलाय तन मन ला जिही नित काँचथे ते बाँचथे।1


छाती ठठाये होही का मातम मनाये होही का।

सुख दुख सबे मा एक जइसे हाँसथे ते बाँचथे।2


जादा धरे के चाह मा जादा करे के चाह मा।

 कतकोन गिरथे राह मा, गत जाँचथे ते बाँचथे।3


झगरा लड़ाई मा भलाई हे कहाँ सोंचव जरा।

सुमता मया सत डोर ला, जे गाँथथे ते बाँचथे।4


पर के बुराई ला गिनइया खुद गिनाथे एक दिन।

खुद के करम ला जौन हा, नित नाँपथे ते बाँचथे।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 129

-------------------------

Date: 2020-11-09

Subject: 


1,गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


निंदिया नयन मा मोर तो, एको कनी आये नही।

कोठी उना हो या भरे, संसो फिकर जाये नही।1


उम्मर बढ़त जावत हवै, सुख चैन दुरिहावत हवै।

जे बचपना मा रास आये, तौन अब भाये नही।2


सीमेंट मा भुइयाँ पटा, लागत हवै बड़ अटपटा।

बन बाग तक गेहे कटा, कारी घटा छाये नही।3


पत्थर के दिल मनखे धरे, रक्सा असन करनी करे।

कइसन जमाना आय हावै, फूल हरसाये नही।4


अंधेर हे पर देर ना, विश्वाश मनके हेर ना।

पड़थे असत ला हारना, सत ला लगे हाये नही।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 128

-------------------------

Date: 2020-10-18

Subject: 


पिंयर-पिंयर करपा

--------------------------------

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर -पिंयर हँसिया के बेंठ।

पिंयर -पिंयर   पैरा     डोरी।

पिंयर- पिंयर  लुगरा   पहिरे।

धान       लुवे            गोरी।

     पिंयर -पिंयर  पागा  बांधे।

     पिंयर -पिंयर  पहिरे धोती।

     पिंयर -पिंयर  बइला  फांदे,

     जाय किसान खेत  कोती।

खुसी        छलकत        हे,

किसन्हा    के ,अंग-अंग म।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर  -  पिंयर     धुर्रा        उड़े,

पिंयर  -  पिंयर    मटासी   माटी।

पिंयर  -  पिंयर पीतल बंगुनिया म,

मेड़   म   माड़े    चटनी  -  बासी।

     पिंयर -पिंयर  बंभरी  के फूल,

     पिंयर -पिंयर  सुरुज  के घाम।

     पिंयर -पिंयर    करपा    माड़े,

     किसान पाये महिनत के दाम।

सपना   के    डोर     लमा,

उड़ जा बइठ   पतंग    म।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795




-------------------------

# 127

-------------------------

Date: 2020-10-16

Subject: 


सुते के करे ढंगचाल हलाय डुलाय घलो न हले




-------------------------

# 126

-------------------------

Date: 2020-10-11

Subject: 


......मयखाना......

------------------------------------

लगता है; खुल चुका है,

'मयखाना' दिल की दहलीज पर |


मदहोश लब्जे है,

चिढ़ता है,हर चीज पर |


बरसा सी बरसे बदजुबानी,

बेसरमी की बीज पर |


पावन परब में भी प्रीत नही है,

न दिवाली, न ईद पर |


पीने वालो में जुबान शराबी,

पीकर अड़ा है जिद पर |


हाथ मारे,पॉंव गिराये,

इसां है कलंकित रीत पर |


हर जां में मद का नशा है,

क्या अमीर- गरीब पर ?


     जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

     बाल्को( कोरबा )




-------------------------

# 125

-------------------------

Date: 2020-10-06

Subject: 


.....कब आबे बेटा गाँव........


चुंदी-मुड़ी पकगे बेटा,

थक्कगे हमरो जाँगर |

कलम चलायेल सीखेस रे बाबू,

टँगाय हे अब टूट के नाँगर |

एक बेर धरेस शहर के रस्ता |

ताहन लगगे तोला उँहा के चस्का |

सब झन पूछथे,,,,,

बड़ चलथे तोर नाँव....|

कब आबे बेटा गाँव....|2


सँकलाय हे खोलखा म,

तोर पुस्तक कापी |

टँगाय हे अरगेसनी म,

तोर कुरता साफी |

भराय हे खेलौना ले,

घर के गोड़ा |

तोर ढ़केल गाड़ी,

कुकुर बिलई अउ घोड़ा |

ढुलत हे तोर लोहाटी बॉटी

कुरिया अउ डेरउठी म।

कुकुर कोलिहा ल धुतकारत रथों,

तोर गिल्ली डंडा वाले लउठी म |

रोटी के लालच म,

रोज मुहाटी म आके,

करिया कऊवा करथे काँव ........|

कब आबे बेटा गाँव................|2


न पानी पीये,न पेरा भूँसा खाय |

बुढ़ागे हवे तोला देखत-देखत,

तोर दुलौरिन  गाय |

तोर पोंसवा कुकुर खोरात-खोरात,

जोहत रइथे बाट |

छेरी,बोकरा,बइला,भँइस्सा,

नइ हे पघुरात |

आजा रे छेदउला बेटा ,

 कतरो उतबिरित कर,

अब नइ खिसियाँव..........|

कब आबे बेटा गाँव..........|2


कभू होरी म आवस,

त कभू देवारी म |

छप्पन भोग मढ़ाके रखथों,

तोर कॉच के थारी म |

संगी संगवारी आके पुछथे तोला |

देखे बर तरसत रिथे मोर  चोला  |

तोला आही कहिके साल म,

दू बेर देवारी,अऊ दू बेर होरी मनाँव....|

कब आबे बेटा गाँव.......................|2


तोर कुरिया नानकुन होगे,

तोर खटिया म अब घुन होगे |

छाती फूलगे तोर गुण ले बेटा,

फेर करेजा ह मोर सुन्न होगे |

दरस देखाबे आँखी के राहत ले,

अउ पार लगाबे जब सकलाँव.....|

कब आबे बेटा गाव.................|2


                       जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                       बाल्को(कोरबा)




-------------------------

# 124

-------------------------

Date: 2020-10-01

Subject: 


कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बापू,,,,,,,,,,,,,,,,


नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।

सत्य अंहिसा प्रेम सिरागे, बढ़गे बैरी बरबादी।


गली गली मा लहू बहत हे, लड़त हवै भाई भाई।

तोर मोर के फेर म पड़के, खनत हवै सबझन खाई।

हरौं तोर चेला जे कहिथे, नशा पान के ते आदी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


कतको के कोठी छलकत हे, कतको के गिल्ला आँटा।

धन बल खुर्शी अउ स्वारथ मा, सुख होगे चौदह बाँटा।

देश प्रेम के भाव भुलागे, बनगे सब अवसरवादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


दया मया बर दाई तरसे, बरसे बाबू के आँखी।

बेटी बहिनी बाई काँपे, नइ फैला पाये पाँखी।

लउठी वाले भैंस हाँकथे, हवै नाम के आजादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


राम राज के दउहा नइहे, बाजे रावण के डंका।

भाव भजन अब करै कोन हा, खुद मा हे खुद ला शंका।

दया मया सत खँगत जात हे, बाढ़ै बड़ बिपत फसादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 123

-------------------------

Date: 2020-10-01

Subject: 


फुदरत हे अँगठा छाप हा।

बाढ़े हे अब्बड़ ताप हा।1


हे मोर बर आने नाप हा।

अउ तोर बर आने नाप हा।



नइ खाय एको खाप हा।

नइ सुनये पदचाप हा।

बड़ काम आथे छाप हा।

बाढ़त हवे बड़ पाप हा।

कलपत हवे बढ़ बाप हा।

का कमती हे जाप हा।


पानी बनही भाप हा।




-------------------------

# 122

-------------------------

Date: 2020-09-30

Subject: 


कइसनो होय कक्षा म फस्ट आना हे


कपहा पेंट चिरहा कुरथा पहिरे नाक बोहावत लइका के पीठ ल ठोंकत सालभर पढ़ाय के बाद मोर स्कूल के पहली  गुरुजी मिट्ठू राम साहू जी ह, नतीजा घोषित करत कथे कि जीतेंन्द्र के परीक्षा परिणाम कक्षा म सबले जादा हे, ओहर क्लास म प्रथम आय हे। ताहन का कहना मोर छाती फुलगे अउ उही दिन ले मन म वो फर्स्ट आय के लालच घलो घर कर गे। दूसरी, तीसरी , चौथी अउ पाँचवी म घलो सरलग प्रथम आयेंव। 26 जनवरी बर हर साल पंच सरपंच के मुँह घलो ताकंव कि मोला कक्षा  म प्रथम आये के ईनाम मिलही, काबर कि हर साल 15 अगस्त के सरपंच महोदय माइक म अपन उद्बोधन म ये बात कहय कि जउन छात्र मन अपन क्लास म प्रथम आही ओला 51 रुपिया के ईनाम मिलही। फेर 26 जनवरी बर लगे हर साल भुला जाय। खैर लालच तो रहय फेर नइ मिलत हे कहिके अपन पढ़ई लिखई ल कमती नइ करेंव। छठवीं, सातवी, नवमी अउ दसवीं म घलो प्रथम आयेंव। दसवी म मोर सन 2000 म 74% नम्बर आये रहिस त स्कूल सम्मान जरूर करे रिहिस।फेर आठवीं म मोर जेवनी हाथ म टायर के तार गड़े के बाद हाथ टुटे के भोरहा म अउ बैगई गुनियई के चक्कर म मुख्य परीक्षा ले वंचित हो गेंव, पूरक म शामिल होय बर पड़गे। वो साल के अंतिम दौर दुख भरे रिहिस ,पढ़ई लिखई ठप्प होगे रिहिस। फेर भगवान कृपा ले उबरेंव। हमन चार भाई हवन एक साल तो हमन चारो भाई अपन अपन कक्षा म प्रथम घलो आये रेहेंन, कहे के मतलब पढ़ई लिखई के घर म बढ़िया माहौल रहय। मोर न तो बाबू जी एको क्लॉस पढ़े रिहिस न दाई। तभो बिना टाइम टेबल के कभू नइ पढेंन। ये तो होइस मोर गांव के पढ़ाई अब 11 वी पढ़े बर राजनांदगांव के नामी स्कूल स्टेट हाई स्कूल म दाखिल होगेंव। उहाँ तो कई किसम के लइका , एक ले बढ़ के एक पढ़ैया, मोर पसीना छूट गे, एक तो गाँव के लइका बने हिंदी बोले बर घलो नइ आय अउ उँहा शहर के गुरुजी अउ शहरी सहपाठी। मोला पिक्चर के डायलाग सुरता आय अपन गली म तो कुकूर भी शेर होथे। फेर बाहिर म----? तभो बहुत महिनत करेंव  अउ कक्षा 11 वी म 89%अंक के साथ तीसरा स्थान म सिमट गेंव। 90% अउ 91% वाले साथी विनोद साहू अउ सोमनाथ पांडे क्रमशः  द्वितीय , प्रथम  रिहिस। आघू बछर बने पढ़हूँ कहिके मन ल धीर धरावत रही गेंव। 10 वी क्लास के बाद से ही गर्मी छुट्टी म राजनांदगांव काम बुता म आ जावत रेंहेंव। पूरा गर्मी भर कुली कबाड़ी के काम करके फेर आषाढ़ लगत पढ़ाई म लग जावंव, जबकि मोर शहर वाले संगी मन गर्मी म ट्यूशन पढ़े। कई बेर तो अइसनो मौका आइस की सहपाठी संगी मन के बनत घर म घलो काम करे करे हँव। 12 क्लास चालू होइस फेर उही साल सीबीएसई पैटर्न लागू हो गे रहय। वइसे तो 11 म आदेश आगे रिहस फेर स्कूल के हाथ म पेपर रिहिस तेखर सेती माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पुस्तक ल ही पढ़ावत रिहिस। फेर 12 म सब कुछ चेंज होगे रिहिस, अलगे पैटर्न रहय,मोठ मोठ पुस्तक अउ नवा नवा सिलेबस इंग्लिश के जादा रोल रहय। वो बछर पढ़े म बड़ तकलीफ होइस। 12 के रिजल्ट आइस,, मैथ्स, बायो अउ आर्ट मिलाके 189 झन म सिर्फ 9 झन पास होइस, मोर तो नामे नइ रिहिस। मैं पूरा नरवस होगेंव। अउ मोर संग कतको साथी मन घलो। वो समय से आज तक स्टेट स्कूल अपन पहली के स्टेंडर्ड ल नइ बना सकिस, लइका मन सब छिदिर बिदिर होगे, ताहन फेर का स्कूल प्रबंधन ल वो कोर्स ल खारिज करे बर घलो पड़गे। मोला लगे कि ये सीबीएससी कोर्स ह मोर सपना ल तोड़े बर आय रिहिस। वो समय घलो पांडे जी 60% के साथ प्रथम अउ विनोद जी 59% के साथ द्वितीय रिहिस। पूरक  के दाग मोर जिनगी म दूसरा बेर लगगे। एक बेर सोचेंव फिर से पढ़हूँ ,फेर मोला सर मन समझाइस कि पूरक पेपर दे के देख तेखर बाद सोंचबे। फिजिक्स म सात नम्बर कमती आय रिहिस चूँकि सीबीएससी अजमेर ले परीक्षा संचालित रिहिस त  ग्रेस देके पास करे के पावधान नइ रिहिस। पूरक के रिजल्ट आइस 60% अंक के साथ पास होगेंव। फेर मन डोले ल धरिस कि यदि प्रथम नइ आ सकबे त 60% तो जरूर आय। फेर ये मोर असमर्थता  रिहिस, जे अपन खामी उप्पर मरहम चुपरे बर दिमाक म 60%के आडिया आइस। कॉलेज म  तो हाल बेहाल होगे, पढ़ाई घलो इंग्लिश म होय लगिस, कक्षा म प्रथम आय के सपना ल छोड़ घलो देंव। गाना-बजाना, गीत-कविता, काम बुता आदि  सब में ध्यान बँट गे। भविष्य के चिंता सताये बर धर लिस, पढ़ लिख के नोकरी मिलही कि नही। दाई ददा मन आस बाँधे रहय। *कभू सोचँव कास लड़की होतेंव त बर बिहाव होके अपन चूल्हा चाकी करतेंव, फोकट नोकरी चाकरी के चिंता तो नइ रितिस।* कालेज म शुरू ले NSS म रेहेंव, जेखर ले मोर सांस्कृतिक पक्ष अउ मजबूत होइस,गाँव म तो सेवा, भजन चलते रहय। अपन ज्ञान ल बढ़ाये बर पइसा के डर म ट्यूशन घलो कभू नइ करेंव। कालेज म एको साल प्रथम नइ आयेंव फेर प्रथम ईयर म फाउंडेटन कोर्स, द्वितीय वर्ष केमेस्ट्री अउ तृतीय वर्ष म फिजिक्स म टॉप करेंव। कालेज सम्मान घलो करिस। कुल 60.44% के साथ स्नातक पास करेंव। अउ कालेज म ही फिजिक्स पढाहूँ कहिके आवेदन लगाएंव, उही बीच म घनघोर जंगल छुरिया ब्लाक के औंधी म शिक्षा कर्मी वर्ग 3 के फार्म डाले रेंहेंव तेखर बुलावा आइस। येखर पहली 12 वी बेस म ही रेलवे म गैंगमेन ट्रैकमैन के परीक्षा दिए रेंहेंव, अउ कालेज के आखरी बछर म ही बाल्को प्लांट के कैम्पस अटेंन करे रेंहेंव। ग्राम औंधी म शिक्षाकर्मी के नोकरी करतेंव तेखर पहली 10 अगस्त 2006 के राखी तिहार के दिन,अखण्ड रामायण म बैठे रेंहेंव त,बाल्को डहर ले नोकरी के काल आगे। वो समय बाल्को 5000 अउ गुरुजी म 2832 रुपिया कुछ तंखा रिहिस मैं बाल्को म जाए खातिर कोरबा आगेंव अउ 14 अगस्त 2006 के ड्यूटी ज्वाइन कर लेंव। कैम्पस म पेपर देवाये के घलो अजीब  संजोग रिहिस।  मैं अपन महतारी के संग धान बेचे बर पास के गांव के सोसाइटी गे रेंहेंव, अउ उही मेर हाईस्कूल म घलो, गेस्ट मैट्स टीचर के पोस्ट निकले रिहिस, त सब मार्कसीट वगैरह रखे रेंहेंव, उंहे जमा करहूँ कहिके। एक झन ग्रेडर धान के मूल्यांकन करे बर आइस त ओखर हाथ म रहे वो दिन के पेपर म कालेज प्रांगण म बाल्को के होवइया कैंपस के विज्ञापन रहय, वोला देखते ही ऊँहिचे बस बइठ के(हमेशा साइकिल म जाँव वो दिन पहली बेर बस म कालेज  गेंव) कालेज चल देंव, बने से पेपर घलो देंव, सब सर्टिफिकेट ल घलो देखायेंव, 50 म 46 नम्बर पाके इंटरव्यु म घलो शामिल होगेंव।अउ गाँव के दुकान के फोन नम्बर देके घर आ गे रेंहेंव। 

               बाल्को म आये के बाद गोरमेंट कालेज म MSC मैथ्स बर आवेदन करेंव फेर बाद म पता चलिस के वो साल कोनो स्टूडेंट नइ होय के कारण कालेज ह नइ पढ़ाये, मैं हिंदी  बर  फार्म ल बदल देंव, हिंदी विषय के बनेच पढ़इया रहय फेर मोला मोर संकल्प सताये लागिस प्रथम वाला, अउ वो दरी साकार घलो होइस। काम के साथ साथ पढ़ई करत एम ए हिंदी म दूनो साल कक्षा म प्रथम आयेंव। अइसन बिल्कुल नइहे कि मोला हिंदी के जादा ज्ञान हे, अभो घलो हिंदी कविता लिखे बर हाथ कांपते, विशेषकर व्याकरण के ज्ञान होय के बाद, वो समय सिर्फ पढ़ के प्रथम आये रेंहेंव।  एम.ए. म मोला 62%मार्क्स मिलिस,मोला बड़ खुशी होइस। भगवान ल बार बार धन्यवाद करेंव, नोकरी चाकरी घलो मिल गे रिहिस। गाँव म ट्यूशन पढ़ाये के आदत रिहिस  त कोरबा म कइसे छूट जातिस,उहचो पढावंव।विभागीय प्रमोशन बर एम बी ए घलो करेंव, उहचो 60%ले ऊपर ग्रेड मिलिस। पढ़े के लालच बने रिहिस अर्थशात्र के तक फार्म भरेंव दू पेपर दे रेंहेंव ताहन होली म आँखी म गुलाल घूँसे के बाद आंख म एम्फेक्सन होगे तेखर सेती बाकी पेपर छूट गे, अउ ईलाज बर चैन्नई चल देंव। उहँचे पहली बार 2012 म समुंदर देखेंव। अर्थशास्त्र के दू पेपर म 100 म 76 अउ 73 आये रिहिस। फेर बाकी तो जीरो रिहिस। हिंदी ल ही आघू बढ़ाये के विचार मन म आइस, त हिंदी म नेट अउ सेट के एग्जाम घलो  निकालेंव, फेर पोस्ट जादा नइ निकले के कारण ओखर फायदा नइ मिलिस, अभो घलो बाल्को म नोकरी चलत हे। पढाई लिखाई म का सपना रिहिस अउ कतका निभायेंव आप मनके सामने हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 121

-------------------------

Date: 2020-09-30

Subject: 


एक संस्मरण सरिक आत्मकथा


रतिहा के 4 बजे बाबू जी के संग साइकिल म बैठ के राजनांदगांव  के जुन्ना बस स्टेण्ड पहुँच गेंव, अउ उहाँ ले पहाती के पहली बस म बइठ के दूनों झन कापसी बर निकल गेंन। हव उही कापसी जेन एक समय म हड्डी जोड़े बर भारी प्रसिद्ध रिहिस, अउ अभो घलो हड्डी टूटे के उपचार उँहा होथे, पर पहली कस नही। बस म चढ़के ममा गाँव इरइ ई जावन त खिड़की मेर बइठ के आजू बाजू ल झाँकन, अउ बड़ मजा लेवन, फेर ये पहली दफा होइस जेमा आँखी ले आँसू झरत रहय, काबर की मोर जेवनी हाथ के हड्डी ह टूट के आड़ी होगे हे कहिके गाँव के डॉक्टर ह बता दे रहय। अउ ओखर ले बड़े दुख ये बात ये रहय कि हप्ता भर बाद मोर आठवी क्लास के बोर्ड परीक्षा रहय। तैयारी पूरा कर डर रेंहेंव फेर होनी ल कोन टार सकथे। बस म बइठे बइठे मन म आय कि कापसी म हड्डी जोइड़या तुरते जोड़ दिही त मैं पेपर म घलो बइठ जाहूँ। अइसने गुनत सोचत कब कापसी आगे आरो घलो नइ लगिस, बस के बाहर झँकई तो दूर आघू पाछु कोन बइठे रिहिस तहू ल नइ देख पायेंव।  दरद के मारे हाथ उठाना घलो मुश्किल रहय,बाबू जी सरलग धीर धरावत रहय। कापसी म पहुँचेंन त भारी भीड़। लाइन म लगे के बाद मोरो नम्बर आइस, उँहा बइद महराज ह कुछु पाना के लेप ल कमचिल  के साथ के पट्टी म बाँध दिस, अउ किहिस 21 दिन बाद फेर देखाहू। मोर आँखी ले आँसू तरतरी धर लिस,जउन सोचे रेंहेंव ते नइ हो पाइस। अब पेपर देवाना तो असम्भवच होगे।  भइगे घड़ी घड़ी भगवान त सुमरत रहँव। दूनो झन इलाज के बाद  बस म बइठ के अपन गाँव आगेन। दूसर दिन आँखी म आँसू धरे स्कूल गेंव अउ सर मन ल अपन हाल ल बतायेंव। वो समय मोर स्कूल के प्राचार्य श्री एम एल साहू सर जी रिहिस, संग म जांगड़े सर अउ मंडलोई सर मन घलो सुझाव दिन कि आजे मेडिकल बना के आवेदन लगादे,यदि हो पाही त पूरक वाले मन संग पेपर देय के मौका मिल जाही। फेर ये काम ल झट कर काबर कि पेपर चालू होनेच वाला हे, बोर्ड ल सूचना देना जरूरी हे।ताहन फेर का बाबू जी संग तुरते  शहर(नांदगांव)आगेंव अउ डॉ सदानी करा मेडिकल बनाके, तुरते स्कूल म जमा करेंव, स्कूल म घलो सर मन तुरते आवेदन बनाके, ऊपर बोर्ड म भेजिन। दू दिन बाद साहू सर कर गेंव त बताइस कि तोर मेडिकल जमा होगे हे, अउ तें अब पूरक परीक्षा के समय पेपर देबे। मोर मन नइ माढ़त रहय, मोर जम्मो तैयारी धरे के धरे रहिगे। मन म विचार आइस कि डेरी हाथ म लिख के पेपर देहूं, जिद  म पूरा दिन भर लिखेल सीखेंव, फेर कभू तो नइ लिखे रेंहेंव, अउ मुख्य परीक्षा एक दिन बाद चालू होवइया रिहिस,   वो दिन रातभर घलो डेरी हाथ म लिखे के प्रयास करेंव, मोर जेवनी हाथ के लेखनी बनेच रहय फेर डेरी हाथ म घलो धीरे धीरे जादा अच्छा तो नही पर पहली पहली सीखती लइका मन कस लिखा जावत रिहिस। बिहना फेर स्कूल पहुँच गेंव अउ सर ल केहेंव कि मुख्य पेपर म ही बइठहूँ, ये दे डेरी हाथ म घलो अइसन लिख डरथंव, पास होय के पूर्तिन नम्बर आ जाही। जे प्रश्न म कमती लिखे के रही वोला धीरे धीरे लिख डरहूँ। मंडलोई सर मोर बात ल सुनके कथे, बेटा तोर अतेक अच्छा राइटिंग बनथे जेवनी म, ओखर जइसन लिखना दू चार दिन म सम्भव नइहे, तैयारी  तो तोर हेवेच घर म बइठ के अउ पढ़ अउ पूरक वाले मन संग पेपर दे देबे, जब तोर हाथ ठीक हो जही तब। मैं मानते नइ रेहेंव, पूरा स्टाफ समझाइस, तब अपन मन ल मार के हामी भर देंव। दूसर दिन स्कूल म मुख्य परीक्षा चालू होगे, स्कूल के तीर म आके स्कूल ल झाँकत रहंव, अउ छुट्टी होय त सबके प्रश्न पत्र ल देखँव, मोला बड़ सरल लगय, फेर का कर सकतेंव, मोला तो बाद म पेपर देना रिहिस। हर साल कक्षा म प्रथम आय के सपना देखे रेंहेंव ते वो साल रट ले टूटे कस लगिस। मोर गाँव म दसवीं तक स्कूल हे, अपन समय म मैं, पहली ले दसवी तक  प्रथम आये हँव बस आठवी ल छोड़ के, काबर कि मैं वो समय मुख्य परीक्षा नइ देवा पाये रेहेंव। पढ़ई लिखई दुख अउ दरद म होबे नइ करे, घड़ी घड़ी हाथ के जुड़े के संसो सताय अउ मुख म हे भहवाँ रहय। मुख्य पेपर घलो होगे। एक दिन हाथ के पट्टी ल 21 दिन के पहलीच हेर के देखेंव, जेन हड्डी ल टूट गेहे केहे रिहिस, ते तो छुये म जस के तस लगे। बाबू दाई ल घलो बतायेंव। उही समय मोर बड़े फूफा गाँव आये रिहिस, ओहर किहिस कि हमर गाँव तीर भवानी मन्दिर के पास करेला गाँव म एक बइद हे, उहू अच्छा हड्डी जोड़थे, मोरो एक पँइत ईलाज करे हे। ताहन फेर का बाबू जी संग उँहे बर निकल गेंन। उँहचो मैं बतायेंव की हड्डी येदे टूट  गेहे, ताहन उहू हर खींच खांच कुछ लेप के संग 21 दिन बर पट्टी कर दिस। अउ कहिस कि ओखर ले पहली झन निकालबे, फेर 21 दिन बाद आहू। पट्टी कराके घर आगेंव, पूरा दिन रात संसो म कटे, पढ़े लिखे के मन घलो नइ लगे। एके चिंता रहय मोर हाथ कब बने होही। दाई बाबू अउ भाई मनके मया दुलार म ये दुख भरे दिन ला भगवान भरोसा काटत रेंहेंव। 21 दिन पूरे के बाद पट्टी खोल के देखेंव त फेर जस के तस। पास परोस के मन किहिस, कि कापसी ही जाना रिहिस कहाँ करेला चल देव, कापसी म ही येखर ईलाज हो पाही, मरता का न करता।। फेर उँहा बर चल देंन, फेर उँहा पट्टी कर दिस। हाथ ल लटकाय लटकाय मोला अइसे लगेल धर लिस कि मोर हाथे नइहे। खाना, पीना, नाहाना धोना, खेलना कूदना सब हराम होगे रिहिस। बेरा बीतत गिस, आठवी के परिणाम घलो आगे,मोर कक्षा के रीना देवांगन 70% अंक लेके प्रथम आगे। मोला बड़ दुख लागिस, कि वो साल मैं पहली बेर अपन प्रथम आय के वादा ल पूरा नइ कर पायेंव। कथे न धन, दौलत सुख चैन सब स्वस्थ शरीर म ही सुहाथे,अउ जर बुखार म ये सब फालतू होथे। मोला मोर हाथ के संसो रहय। एक दिन फेर दाई बाबू ल  बिना बताये पट्टी ल खोल के देखेंव, जस के तस टूट के खसके हड्डी हाथ म छुये ले उसनेच लगे। अब तो मोर धीरज खरागे, ददा दाई मन घलो तंग आगे। राजनांदगांव म रथे मोर ममा मामी, ये गीत मोर बर फीट हे,काबर की  मोर बड़े ममा मामी म उँहिचे रहय, ममा शहर म नोकरी करे। अउ मोर हाल ल सुनके उहू मन मोला देखे बर गाँव आये रिहिन, ममा कथे अब तो हड्डी वाले डॉक्टर ल ही दिखाना चाही। तुरते फेर शहर के डॉक्टर कर चल देन। डॉक्टर के केबिन म गेंव त डॉक्टर किहिस, कइसे का होगे हे, कइसे टूट गे तोर हाथ ह? मैं बतायेंव कि एक दिन संझा साइकिल के टायर ल उप्पर फेक फेंक के झोंकत रेंहेंव, अचानक एक बेर उप्पर ले गिरत चक्का ल झोंकत झोंकत सीधा कोहनी अउ कलाई के बीच म लगगे अउ हड्डी टूट गे। अउ टूटे के बाद येदे आड़ी होगे हे, ते हा जुड़ते नइहे। डॉक्टर छू के देखिस, अउ छूते साँठ कथे, येमा कुछु चीज गड़े हे। हड्डी टूट के अइसन आड़ी नइ होय हे। अब हम का जानी, वो दिन संझा जइसे चक्का हाथ म पड़िस , दर्द के मारे चितियागे रेंहेंव, अउ गांव के डॉक्टर ल दिखायेंव त (एक तो वोला दर्द के मारे छुवन घलो नइ देवत रेंहेंव) वो किहिस लगथे हड्डी ह टूट के आड़ी होगे हे। अउ छुये म लगे घलो। उही ल सच मान के ईलाज बर जघा जघा घूमत रेंहेंव। डॉक्टर एक्सरे लिखेस। एक्सरे ले साफ होगे कि हड्डी न टूट के वो चक्का के तार ह (लगभग 6,7 सेंटीमीटर) टूट के हाथ म घूँसे हे। तार के बात ल सुन के डॉक्टर हमन ल बलाके पूछिस कत्तिक दिन होगे हे? बतायेंन कि लगभग अढ़ाई महीना, डॉक्टर माथा धरलिस अउ कथे, अत्तिक दिन ले का करत रेहेव, कहूँ  लोहा के जहर हाथ म फैल गे होही, त हाथ ल घलो काटेल पड़ सकत हे।डॉक्टर के बात ल सुनके मोर होस उड़ गे काबर की लोहा के पइजन के बारे म देखे रेंहेंव, मोर एक झन संगी तरिया म कपड़ा धोवत रिहिस, अउ ओखर थैली के आलपिन वोला गड़ गे रिहिस, त हप्तच भर म ओखर आधा अँगरी ल काटेल लगे रिहिस। फेर मोर तो बनेच दिन होगे रहय। हे भगवान मोर का होही? तुरते आपरेसन के तैयारी होइस। नानकुन टाँका लगाके तार ल निकालिस, अउ डॉक्टर किहिस सुक्र मना बाबू भगवान के दया ले लोहा के एको पैजन ह तोर हाथ म नइ फइले हे, येदे जम्मो जहर तार म ही जमगेहे, तार जंग लग लग के हाथे म थोरिक मोठ होगे रहिस। जइसे तार निकलिस, दरद घलो गायब होगे, अउ हाथ ल मैं तुरते  मोड़ माड़ घलो डरेंव। डॉक्टर दरद के कारण बताइस की हाथ के दू हड्डी के बीचों बीच तार ह टूट के गड़ गे रिहिस त जरा से हिलाय म घलो दरद करे।  मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, काबर कि मोर हाथ बने होगे रिहिस। डॉ अग्रवाल ल धन्यवाद करके घर आयेंव अउ सोचेंव हे भगवान आज तैं मोर हाथ ल बचा लेस, मोर लापरवाही म  अत्तिक दिन म घलो पैजन नइ होइस। कास म मैं डॉक्टर तीर पहिली जाये रहितेंव, त मोर पेपर घलो नइ छुटतिस|  फेर जे होना रथे ते होके रथे, वो दिन ले बइगा गुनिया मन डहर जाये बर कान पकड़ लेंव, सबले पहली प्राथमिकता डॉक्टर ल देथंव। पूरक के परीक्षा घलो होगे, परिणाम म मोला सिर्फ 65% मार्क्स मिलिस। अउ सर्टिफिकेट म पूरक घलो लिखागे। कँउवा कान लेगे येला सच माने के पहली कान डहर घलो देखना चाही। कोनो भी घटना के जड़ तक जाये बिना वोला आत्मसात नही करना चाही, सच जाने के बाद ही कदम उठाना चाही, नही ते अइसने होथे, मैं सॅंउहत भोगे हँव। वो तिं भगवान के कॄपा हे जे मोर हाथ सलामत रहिगे, वो दिन ले मैं हर आज तक लगभग हर सोमवार के एक दिन भगवान के धन्यवाद स्वरूप उपवास घलो रथों। 


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा




-------------------------

# 120

-------------------------

Date: 2020-09-30

Subject: 


10,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


सबके बने मंजिल शहर।

बिन दिल के बनगे दिल शहर।1


सुनवाई करथे शान से।

बन बाग के कातिल शहर।2


जिनगी जिये बन जानवर।

मनखे मा नइ शामिल शहर।3


खेती किसानी सत मया।

सबला करे चोटिल शहर।4


का होथे जस ममता मया।

का जानही जाहिल शहर।5


आघू बढ़े के आस मा।

लेहे खुशी ला लिल शहर।6


हीरा बरत हे हाथ मा।

का जानही कंडिल शहर।7


बस एक दिन इतवार के।

होवै हरू बोझिल शहर।8


जी भैया तैं कान आँख मूंद।

हे मोर बर मुश्किल शहर।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 119

-------------------------

Date: 2020-09-29

Subject: 


बाजा के शौक-संस्मरणात्मक आत्मकथा


मोर जिनगी के 21 बछर जनम भूमि खैरझिटी(राजनांदगांव) म दाई,ददा, घर- गांव अउ खेत-खार के छाँव म ठेठ गँवइहा स्टाइल म कटिस। मोला मोर लइकन पन के एकठन करामत के सुरता आवत हे। कक्षा सातवी के पेपर होय के बाद गरमी छुट्टी लग गे रहय। गाँव म भागवत पढ़े बर एक झन महराज अपन एक झन चेला के संग पधारे रहय। कोनो परब तिहार होय, या कोनो उत्सव,या फेर खेल कूद या नाचा गम्मत, मोर खुशी के ठिकाना नइ रहय, पंडाल के बनत ले लेके आखिरी बेरा तक उही मेर ओड़ा डार देत रेहेंव। लीपे, बहारे, सब्बल धरके गड्ढा कोड़ के खंभा गड़ाये, तोरन ताव सजाये म घलो बड़ आनन्द आय। वो दिन घलो इही सब काम म हाथ बँटाय के बाद दूसर दिन 9 दिन बर भागवत चालू होगे। महराज ह पंडाल ले थोड़ीक दुरिहा वाले घर म ठहरे रहय, जेला बाजा गाजा के संग परघावत भजन मंडली वाले मन पंडाल तक रोज लाने अउ लेजे घलो, महूँ वोमा थपड़ी पीटत,नही ते झाँझ मंजीरा बजावत शामिल रहँव। गांव भर के मनखे मन रोज भागवत सुने बर सकलाय। बनेच भक्तिमय माहौल रहय, महू संगी साथी मन संग कभू सुनत त कभू उही मेर खेलत रहँव। दू दिन के बाद तीसर दिन बिहनिया 8:30 महराज ल परघा के मंच तक लाना रिहिस, 9 बजे भागवत शुरू हो जावत रिहिस। फेर वो दिन ढोलक बजइया कोनो नइ रिहिस।झांझ मंजीरा म ही भजन गावत महराज ल लावत रिहिस मैं एक ठन ढोलक ल धर लेंव, अउ चलत भजन म थोर बहुत मिलाके ढोलक ल ठोंकत बढ़ गेंव। वइसे कभू तो सीखे पढ़े नइ रेंहेंव फेर सेवा-जस होय ते घरी छुवे बर मिल जावत रिहिस, सियान मन देखे त ,लइका मन भागो रे कहिके चमका देवय। वो दिन संझा घलो मैं एकठन ढोलक ल पहली ले धर लेंव अउ एक झन तो मुख्य वादक रहिबे करे रिहिस। कई सियान मन किहिस रख दे , एक झन तो बजाइय्या हे, ततकी बेर महराज कथे, बजावन दव जी, बेरा बखत म काम आथे, आज बिहना तो लइका बिचारा ह अलवा जलवा बजावत रिहिस न। महराज के बात ल कोन काटे, मैं वो बजकार संग मिलाके ढोलक बजायेंव, दू ठन तो गाना रहय, हाथ वो ताल म जमे कस लगिस। दूसर दिन घलो ढोलक बजाये के सपना रात भर खटिया म सुते सुते देखत रहिगेंव, अउ भगवान ले विनती करेंव कि कोनो बाजा बजाइय्या झन रहितिस, अउ रहितिस भी त एक झन, ताहन महूँ गला म दूसर ढोलक ल अरो के चलतेंव। खुसी के मारे नींद घलो नइ आइस। पहाती नहा खोर के फेर पहुँच गेंव। नीर सोचई सच घलो होगे, फेर कोनो नइ रिहिस बाजा बजइया, ताहन का कहना जेन सियान  मन रख रख काहत रिहिस तिही मन ह, ले बाबू बजा कहिके गला म अरो दिस ।मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, दादरा कस ताल पीटत महराज ल मंच तक लेंगेंव, अउ संझा लानेंव घलो। फेर सँझा कोई न कोई बजकार रहय,पर दूसर ढोलक ह मोर बर फिक्स होगे रिहिस। महराज वइसे तो बिन बाजा पेटी के कथा कहय फेर एक दिन ओखर भजन म सब ताली बजावत रहय त मैं ढोलक ल डरे डर म धीरे धीरे मिलावत रहंव, महराज के चेला कथे - बने बजावत हस, बजा बढ़िया जोर से। ताहन का महराज के भजन-गाना-गीत घलो ढोलक के ताल देख लम्बा खींचा गे। अउ वो दिन ले महराज ह अपन चेला के तीर म महू ल ढोलक धरवा के बइठार देवत रिहिस। लेजना, लानना के अलावा अब कथा के बीच बीच के गाना मन म मंच म बइठे ढोलक ल ठोंकव। ढोलक के आय ले बनेच माहौल घलो बन जावत रिहिस,काबर की तालीच भरोसा म कोनो भजन कत्तिक तानही, महराज के चेला जे नानचुन झोला म हाथ ल डार के बइठे रहय तेहर मंजीरा ल धर लिस। संगीतमय समा ले महराज खुश अउ सुनइया मन तक खुश। देखते देखत आखरी दिन होगे, महराज मोला नाम ले जाने। नटवर नाँगर नन्दा भजो रे मन गोविंदा--इही कीर्तन आखरी बेरा म चलत रहय।

मोर हाथ तो ढोलक म बरोबर ताल देवत रिहिस फेर मन उदास रिहिस, कि काली ये सब बन्द हो जाही। मोर आँखी ले आँसू झरत देख महराज पूछिस का होगे बाबू, मैं कहेंव काली मैं का करहूँ?आप मन तो काली चल देहू।  महराज मजाक करत कथे, त का तहूँ जाबे हमर संग? मैं मुड़ी डोला के हव केहेंव। महराज के, तैं का करबे ल सुन,मैं तपाक से केहेंव आप मन संग ढोलक बजाहूँ, अतेक कहिके फेर रोय बर धर लेंव। महराज रहय मथुरा के छत्तीसगढ़ म ओखर भागवत एक दू जघा अउ रहिस। चढ़ोतरी वगैरह होय के बाद घलो मैं उही मेर रेंहेंव, अउ आखिर बार बाजा बजावत परघावत ओखर ठहरे ठिहा म गेंव। सब सियान मनके घर जाये के बाद मोला बलाही कहिके महराज के आघू आघू म होवत रेंहेंव, आखिर म बलाइस अउ किहिस, तोर दाई ददा मन तोला जावन दिही? मैं फटाक कहेंव हव। का पता कहत महराज कथे वइसे तुम्हर गाँव ले 10 किलोमीटर दुरिहा म नगपुरा हे उँहा अगला भागवत होही। जा बने पूछ के आ घर ले ताहन ,सुबे के बस म  जजमान मन ले बिदा लेके निकलबों? मैं बड़ खुश होगेंव, अउ रतिहा झट ख़ाना खाके महराज के ठिहा म पहुँच गेंव, महराज मन के आराम करे के बेरा होवत रिहिस, मैं जाके झूठ बोलत केहेंव दाई बाबू दूनो ल बताये हँव, ओमन जा किहिस, अउ बात बनावत यहूँ केहेंव की वोमन आखरी दिन नकपुरा आही, मोला लेगे बर। बाजा बजाये के मोह अत्तिक मन म सवार रिहिस कि झूठ मूठ के सबकुछ गढ़ डरेंव। जबकि ददा दाई ल कुछु भी बताये नइ रेंहेंव। सुबे आहूं कहिके घर आगेंव अउ लुका के एकठन ताँत के झोला म दू जोड़ी कपड़ा ल भर के रख देंव। फेर रात भर नींद नइ आइस। बिहना नहा के कलेचुप सीधा बस स्टैंड म पहुँच गेंव, अउ महराज ल बतायेंव येदे मोरो कपड़ा लत्ता हे। गाँव भर के मनखे मन महराज ल विदा करे बर आय रिहिस, मैं कोनो ल नइ बताएंव कि महुँ महराज संग जावत हँव,चुपचाप एक तीर म खड़े रेंहेंव अउ बस आइस ताहन कलेचुप सबके नजर ले बचके चढ़ गेंव गाँव वाला मन महराज के पाँव पल्लगी म भुलाये रिहिस, थोड़ीक देर म चेला घलो चढ़गे वो मोला देखिस, अउ महराज चढ़िस ताहन बस चल पड़िस। वो दिन बाबू जी घलो गोतियार के नाहवन म दूसर गाँव गे रिहिस। मैं तो सबके नजर ले बचके भाग गे रेंहेंव। रतिहा विश्राम करे के बाद दुसर दिन भागवत चालू होइस। मोर बर एक ठन ढोलक समिति वाले मन कर ले जुगाड़े गिस। पहली दिन जम्मो भजन कीर्तन म ढोलक बजायेव ,अउ चेला  के मंजीरा घलो गूँजिस। अब हमन तीन झन होगे रेहेन ।मैं ,महराज अउ ओखर चेला। साथ म सोवई  अउ रंग  रंग के खवई म दाई ददा घर गांव के सुध भुलागे। येती मोला घर ले निकले दू रात बितगे रिहिस दाई के हाल बेहाल रहिस, गांव म जे भागवत करात रिहिस तेला पूछिस, देखे हव का टूरा ल कहूँ महराज के सँग तो नइ चलदिस हे, उँखर मनले तो मैं बचके कलेचुप बस म बइठे रेंहेंव कोन का जानही। कई झन मन किहिस की बस स्टैंड म आखरी बार दिखे रहिस। कतको मन किहिस, कि महराज के सँग भागे होही, काबर की 9 दिन ले तो ओखरे संग चिपके रहय। कतको मन महराज ल खिसियाये लगिस कि महराज ल तो बताना चाही। बाबू गाँव ले आइस त पता करिस कि महराज के भागवत अभी कहाँ चलत हे। अभी कस पहली कहाँ फोन ,एक तो दू दिन बाद म बाबू  गाँव ले आइस वो भी कका बलाए बर गिस तब। येती दाई अकेल्ल्ला का करतिस, भाई मन तक छोटे छोटे , मही खुद 13 बछर के बड़का (चार भाई म) रेंहेंव। ले दे के पता चलिस के नगपुरा म भागवत होवत हे, ताहन  बाबू अउ कका दूनो बिहना साइकिल धरके निकलगे। येती भागवत के दूसरा दिन चलत रिहिस, बनेच भीड़ घलो रहय। कथा म सब रमे रहय अउ महूँ ढोलक के संग कथा म मगन रेंहेंव। बाबू अउ कका स्रोता मनके  संग म बइठ के भागवत के उसले के रद्दा जोहत रिहिस। मोला उहाँ पाके उँखर तरवा ठनकत रहय, फेर संत समागम म हो हल्ला हो जही कहिके कलेचुप रिहिस। भागवत उसले के बाद मोर नजर बाबू अउ कका ऊपर पड़के। मोर तो हाथ पाँव काँपे लगिस। महराज जिहाँ ठहरे रहय तिहाँ दूनो झन तमकत आइस अउ पहली तो महराज ल सुनाइस कि काबर कखरो लइका ल अइसने ले आथो महराज जी कहिके, महराज समझगे कि मैं झूठ बोल के आये हँव। महराज बाबू ल किहिस की मैं तो केहे रेहेंव भई, घर म पूछ कहिके, त ये बाबू ह हव पूछ डरे हँव, जाये बर केहे हे किहिस, त लान परेंव, वइसे महूँ ल एक बार बताना रिहिस, फेर जल्दीबाजी अउ विदा के चक्कर म ध्याने नइ आइस। रिस म कका दू लउठी सूँटिया घलो दिस। अउ साइकिल म जघा के घर ले आइस। गाँव भर म मोर गँवाये के हल्ला पर गे रिहिस, अउ सब जानिस त, खिसियाये, वाह रे लइका कहिके। दाई घलो दू तीन बाहरी जमाये रिहिस। कोन जन का होगे रिहिस ते, मैं वो दरी बाजा के मोह म बइहागे रेंहेंव। दाई बाबू मन कभू अपन ले अलग नइ करे रिहिस, मोला सुरता आवत हे,मोर 5 वी क्लास के बाद नवोदय डोंगरगढ़ म सलेक्शन घलो होय रिहिस फेर नानकुन लइका कहाँ अत्तिक दुरिहा अकेल्ल्ला रही कहिके नइ भेजे रिहिस। दू दिन लइका नइ दिखे त कत्तिक दुख होथे तेला दाई ददा के अलावा कोन जानही। अउ लइका के प्रति वो मोह,मया,लगाव ल ददा बने के बाद अनुभव करथों। बिना बताये कोनो कदम नइ उठाना चाही।


जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 118

-------------------------

Date: 2020-09-29

Subject: 


9,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


बड़ हिरदे धड़के आजकल।

बड़ नैना फड़के आजकल।1


सुख चैन ला दे हँव गँवा।

चक्कर म पड़के आजकल।2


लगगे झड़ी मन भीतरी।

बिजुरी ह कड़के आजकल।3


कुहकत हवे मन कोयली।

दिल कतको तड़के आजकल।4


तोर मोर मया ला देख के।

दुनिया ह भड़के आजकल।5


भरके मया अंतस अपन।

चलथौं मैं अड़के आजकल।6


लेहूँ बना तोला अपन।

दुनिया ले लड़के आजकल।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 117

-------------------------

Date: 2020-09-29

Subject: 


8,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


घायल करे भाला सबे।

लालच करे लाला सबे।1


नेता गिरी मा का कहन।

बदलत दिखे पाला सबे।2


कतको हे जिम्मेदार बड़।

नइ होय मतवाला सबे।3


सोना मिटावय भूख ना।

नइ भाय ऊजाला सबे।4


बेरा बखत पानी घलो।

नइ देय नल नाला सबे।5


फल फूल पाही पेड़ हा।

कटगे हवे डाला सबे।6


पिसथे गहूँ के संग घुन।

नइ हे बुरा काला सबे।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 116

-------------------------

Date: 2020-09-29

Subject: 


7,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


बढ़िया करम कर रोज के।

सतगुण धरत चल खोज के।1


जौने निचट डरपोकना।

कविता करै वो ओज के।2


परिणाम बड़ होथे बुरा।

कखरो भी ओवर डोज के।3


नइ काम आये टेंड़गा।

हे माँग सिधवा सोज के।4


चंदन चुपर के माथ मा।

उपवास हे खा बोज के।5


पर ला कहे जे जंगली।

 ते ले मजा वनभोज के।6


होटल सिनेमा बार पब।

अड्डा हे मस्ती मौज के।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 115

-------------------------

Date: 2020-09-28

Subject: 


6,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


बम्बर बरे अब पेड़ हा।

कइसे फरे अब पेड़ हा।1


 दै फूल फल औषध हवा।

का का करे अब पेड़ हा।2


मनखे जतन करथन कथे।

तभ्भो मरे अब पेड़ हा।3


घर गाँव बन रद्दा शहर।

काखर हरे अब पेड़ हा।4


बरसा घरी बुड़ जात हे।

लू मा जरे अब पेड़ हा।5


के दिन जी पाही भला।

दुख डर धरे अब पेड़ हा।6


जीवन बचा ले काट झन।

पँइया परे अब पेड़ हा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 114

-------------------------

Date: 2020-09-28

Subject: 


5, गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


झरना बने झरथे नदी।

सागर चरण परथे नदी।1


गाँव अउ शहर तट मा बसा।

दुख डर दरद दरथे नदी।2


बन बाग बारी सींच के।

आशा मया भरथे नदी।3


चंदा सितारा संग मा।

बुगबाग बड़ बरथे नदी।4


नभ तट तरू के दाग ला।

दर्पण बने हरथे नदी।5


बढ़ जाय बड़ बरसात मा।

गरमी घरी डरथे नदी।6


धर कारखाना के जहर।

जीते जियत मरथे नदी।7


तरसे खुदे जब प्यास मा।

दुख दाब घिरलरथे नदी।8


देथे लहू तन चीर के।

दुख देख ओगरथे नदी।9


जाथे जभे सागर ठिहा।

आराम तब करथे नदी।10


खुद पथ बना चलथे तभे।

तारे बिना तरथे नदी।11


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 113

-------------------------

Date: 2020-09-27

Subject: 


छप्पय छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


दुख माँ बाप मनाय, जनम बेटी लेवय जब।

बेटा घर मा आय, लुटावय धन दौलत तब।

भेदभाव के बीज, कोन बोये हे अइसन।

बेटी मन तक काम, करे बेटा के जइसन।

बेटी मनके आन हा, बेटी मनके शान हा।

छुपे कहाँ जग मा हवै, जानय सकल जहान हा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा




-------------------------

# 112

-------------------------

Date: 2020-09-27

Subject: 


4,छत्तीसगढ़ी गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


खाके कसम आये नही।

पानी पवन भाये नही।1


देखे बिना तोला बही।

दिल के दरद जाये नही।2


कूँ कूँ सुने बिन कोयली।

मन आमा मउराये नही।3


प्यासा पपीहा ला कभू।

नद ताल ललचाये नही।4


रोवात हस तैं जिनगी भर।

सपना म हँसवाये नही।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 111

-------------------------

Date: 2020-09-27

Subject: 


3,छत्तीसगढ़ी गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


धर चामटी शैतान बर।

का के मया बैमान बर।1


सब ला उड़ा के ले जथे।

मुश्किल हे का तूफान बर।2


गलती कहाँ खुद के दिखे।

किरिया कसम हे आन बर।3


बिल्डर बनाये बंगला।

डोली सिरागे धान बर।4


भरगे भरम मा हे जिया।

नइहे जघा भगवान बर।5


सागर सबे दिन खात हे।

आघू कुवाँ हे दान बर।6


सबला खबोसे बइठे हे।

कमती तभो इंसान बर।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 110

-------------------------

Date: 2020-09-27

Subject: 


2,छत्तीसगढ़ी गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


काखर गहूँ काखर जवा।

काखर जहर काखर दवा।1


काखर तिजोरी हे उना।

छलकत भरे काखर सवा।2


काखर पुराना हे वसन।

काखर फटे काखर नवा।3


सिध्धो अघाये कोन हा।

रोटी चुरे काखर तवा।4


काखर हरे धरती गगन।

काखर अनल काखर हवा।5


काखर ठिहा उजियार हे।

काखर बचे काखर खवा।6


सब खेल ऊँच अउ नीच के।

काखर गड़ा काखर रवा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 109

-------------------------

Date: 2020-09-27

Subject: 


1,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


अवगुण धरे कोरी उही।

बारत हवै होरी उही।1


मन नइ चले जेखर कभू।

सिरतों म हे खोरी उही।2


जाँगर खताये जेखरे।

सबदिन करे चोरी उही।3


निर्भस दिखे थक हार के।

खोजत हवै डोरी उही।4


मन हे निचट करिया तभो।

कहिलात हे गोरी उही।5


आधा भरे जेमन रथे।

बड़ करथे मुँहजोरी उही।6


कौवा ले करकस हे गला।

गावत हवे लोरी उही।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)




-------------------------

# 108

-------------------------

Date: 2020-09-26

Subject: 


4,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


हँसिया के धार लइका आजकल के।

मिरचा के झार लइका आजकल के।1


भाजी भाँटा देख के मुँह ला फुलोये।

झड़के क़ुकरी गार लइका आजकल के।2


बात बानी जान दे का पूछना हे।

काम बर मुँह फार लइका आजकल के।3


छोड़ देथे मोड़ देथे आस सपना।

थोरको खा मार लइका आजकल के।4


सोये सोये रोज सपना मा पहुँचथे।

चाँद के वो पार लइका आजकल के।5


घर ठिहा दाई ददा भाई भुलाके।

दूर जोड़े तार लइका आजकल के।6


फर लगे ना फूल लागे खैरझिटिया।

बनगे प्लास्टिक नार लइका आजकल के।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 107

-------------------------

Date: 2020-09-26

Subject: 


जनता ल काय पसंद हे


वइसे तो सबझन ला भैया,भारत देश पसंद हे।

फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।


रोजगार के राह देखत हे, बेरोजगार युवा हा।

फलय फूलय कहाँ अब,कखरो आशीष दुवा हा।

दागी बागी दंगी गुंडा,सबला घेंच पसंद हे------।

फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।


बली के बोकरा बनके जनता,मारत हे मँहगाई।

नेता गुंडा व्यपारी मन,खावै सदा मिठाई।

कुर्सी के खिलाड़ी मन ला,दाँव पेंच पसंद हे----।

फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।


कोनो नियम कानून आवै,जनता रोज पिसावै।

पक्ष विपक्ष सब मिल बाँट के,एक्के थारी मा खावै।

कुर्सी खातिर नेता मन ला,जीवन भर रेस पसंद हे।

फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।


लइका ल लेस पसंद हे,टूरा ल टेस पसंद हे।

टूरी ल केंस पसंद हे,भाजी म चेंच पसंद हे।

कोनो ल चेस पसंद हे,कोनो ल बेस पसंद हे।

सुख शांति सबे चाहे,कोनो ल नइ क्लेस पसंद हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




-------------------------

# 106

-------------------------

Date: 2020-09-25

Subject: 


3,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


देखा सीखी बाय लागे आज सबला।

कोन जन ये काय लागे आज सबला।1


चुप रहैया मनखे सिधवा नइ सुहाये।

बिगड़े मनखे गाय लागे आज सबला।2

 

चोचला बड़ बाढ़ गेहे चारो कोती।

संझा बिहना चाय लागे आज सबला।3


पथरा के दिल हे दया के नाम नइहे।

कुछु करे नइ हाय लागे आज सबला।4


साग भाजी घर मा हे ना घर मा मुर्गी।

दार तक बिजराय लागे आज सबला।5


सिर झुकाना सबके बस मा हे बता का।

भीख तक व्यवसाय लागे आज सबला।6


नाम होही काम करले खैरझिटिया।

तोर सपना आय लागे आज सबला।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 105

-------------------------

Date: 2020-09-25

Subject: 


मोर कुछु का कोन करही जा बता दे।




-------------------------

# 104

-------------------------

Date: 2020-09-25

Subject: 


2,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


जब ले पइसा कौड़ी एको पास नइहे।

मोर बर जल थल पवन आगास नइहे।1


आन मनखे का भला अब साथ देही।

खून के रिस्ता घलो ले आस नइहे।2


रट लगाके फड़ फड़ाके चूर हौं मैं।

मन पपीहा ला तनिक अब प्यास नइहे।3


जानवर तक मन मुताबित घूम लेथ

मोर मन पंछी ला ये अहसास नइहे।4


ठंड हावय घाम हावय दुख बरोबर।

सुख बरोबर मोर बर चौमास नइहे।5


छाय अँधियारी हवय चारो मुड़ा मा।

सुख खुशी के थोरको आभास नइहे।6


भोगते हस तैं सजा ला खैरझिटिया।

साथ देवै कोन कोई खास नइहे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




-------------------------

# 103

-------------------------

Date: 2020-09-23

Subject: 


1,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


देख दुनिया के तमाशा ला कलेचुप।

खा मिलत हे ता बताशा ला कलेचुप।1


पीट झन तैंहर ढिंढोरा फोकटे के।

पूरा कर ले मन के आशा ला कलेचुप।2


जोड़े सब ला तोड़थे जालिम जमाना।

दरके मा तैं छाभ लाशा ला कलेचुप।3


सब जुरे सुख के समय मा जानथस तो।

झेल जम्मो दुख निराशा ला कलेचुप।4


फोकटे हे हाय हाये खैरझिटिया।

लेत चल नित चैन स्वाशा ला कलेचुप।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 102

-------------------------

Date: 2020-09-22

Subject: 


6,छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


मया के अर्थ हा देखव बदल चुके हावय।

सुवा जिया मा सुवारथ के पल चुके हावय।1


लगाय कोन हा घायल के घाव मा मरहम।

बइद घलो तो जहर धर निकल चुके हावय।2


अगिन बरत हवे बम्बर सबे डहर छल के।

सबर बरफ सही सबके टघल चुके हावय।3


का हथकड़ी घलो हत्यारा हाथ मा लगही।

अवइया फैसला तक तो टल चुके हावय।4


भरोसा करबे भला कइसे कखरो उप्पर मा।

माँ बाप ला घलो तो पूत छल चुके हावय।5


का बाँच पाही मया के फसल कहूँ कोती।

अगिन दुवेश के सब खूँट जल चुके हावय।6


बता चढौ़ भला कइसे मचान मा मैंहर।

टिकाय सीढ़ी घलो तो फिसल चुके हावय।7


ठिहा ठिकाना कहाँ हे जियत मनुष मन बर।

मशान घाट मा नेंवान डल चुके हावय।8


जलाय चल बने आशा के जुगनू जी जीतेन्द्र।

डहर दिखइया सुरज हा तो ढल चुके हावय।9


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




-------------------------

# 101

-------------------------

Date: 2020-09-21

Subject: 


दबाय माटी ला चोला धरे माटी के।

चरे, बरे, फरे,डरे,हरे, जरे।




-------------------------