Friday 31 December 2021

लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)

 लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)


पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया।

अंतर्मन ला पबरित रख अउ, चाल चलन ला कर बढ़िया।


धरम करम धर जिनगी जीथें, सत के नित थामें झंडा।

खेत खार परिवार पार के, सेवा करथें बन पंडा।

मनुष मनुष ला एक मानथें, बुनें नहीं ताना बाना।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, नोहे ये कोनो हाना।

छत्तीगढ़िया के परिभाषा, दानी जइसे औघड़िया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


माटी ला महतारी कइथें, गारी कइथें चारी ला।

हाड़ टोड़ के सरग बनाथें, घर दुवार बन बारी ला।

देखावा ले दुरिहा रइथें, नइ जोरो धन बन जादा।

सिधवा मनखे बनके सबदिन, जीथें बस जिनगी सादा।

मेल मया मन माटी सँग मा, ले सेल्फी बस झन मड़िया।

पाटी पागा बपारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


कतको दुःख समाये रइथे, लाली लुगा किनारी मा।

महुर मेंहदी टिकली फुँदरी, लाल रचे कट आरी मा।

सुवा ददरिया करमा साल्हो, दवा दुःख पीरा के ए।

महल अटारी सब माटी ए, काया बस हीरा के ए।

सबदिन चमकन दे बस चमचम, जान बूझके झन करिया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


*छत्तीसगढ़िया(414) ल मात्रा भार मिलाय के सेती छत्तिसगढ़िया(44) पढ़े के कृपा करहू*

गजल- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

 गजल- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


बिछे जाल देख के मोर उदास हावे मन हा।

बुरा हाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।1


बढ़े हे गजब बदी हा, बहे खून के नदी हा।

छिले खाल देख के मोर उदास हावे मन हा।2


अभी आस अउ बचे हे, बुता खास अउ बचे हे।

खड़े काल देख के मोर उदास हावे मन हा।।3


गला आन मन धरत हे, सगा तक दगा करत हे।

चले चाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।4


कती खोंधरा बनावँव, कते मेर जी जुड़ावँव।

कटे डाल देख के मोर उदास हावे मन हा।5


धरे हाथ मा जे पइसा, उही लेगे ढील भँइसा।

गले दाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।।6


कई खात हे मरत ले, ता कहूँ धरे धरत ले।

उना थाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।7


जे कहाय अन्न दाता, सबे मारे वोला चाँटा।

झुके भाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।8


नशा मा बुड़े जमाना, करे नाँचना नँचाना।

नवा साल देख के मोर उदास हावे मन हा।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

नवा साल मा का नवा

 नवा साल मा का नवा


                   मनखे मन कस समय के उमर एक साल अउ बाढ़गे, अब 2021 ले 2022 होगे। बीते समय सिरिफ सुरता बनगे ता नवा समय आस। सुरुज, चन्दा, धरती, आगास, पानी, पवन सब उही हे, नवा हे ता घर के खूंटी मा टँगाय कलेंडर, जेमा नवा बछर भर के दिन तिथि बार लिखाय हे। डिजिटल डिस्प्ले के जमाना मा कतको महल अटारी मा कलेंडर घलो नइ दिखे, ता कतको गरीब ठिहा जमाना ले नइ जाने। आजकल जुन्ना बछर ला बिदा देय के अउ नवा बछर के परघवनी करे के चलन हे, फेर उहू सही रद्दा मा कम दिखथे। आधा ले जादा तो मौज मस्ती के बहाना कस लगथे। दारू कुकरी मुर्गी खा पी के, डीजे मा नाचत गावत कतको मनखे मन घुमत फिरत होटल,ढाबा, नही ते घर,छत मा माते रहिथे। अब गांव लगत हे ना शहर सबे कोती अइसनेच कहर सुनाथे, भकर भिकिर डीजे के शोर अउ हाथ गोड़ कनिहा कूबड़ ला झटकारत नवा जमाना के अजीब डांस संगे संग केक के कटई, छितई अउ एक दूसर ऊपर चुपरई, जइसन अउ कतकोन चोचला हे, जेला का कहना । 

              भजन पूजन तो अन्ग्रेजी नवा साल संग मेल घलो नइ खाय, ना कोनो कोती देखे बर मिले। लइका सियान सब अंग्रेजी नवा साल के चोचला मा मगन अधरतिहा झूमरत रहिथे, अउ पहात बिहनिया खटिया मा अचेत, वाह रे नवा साल। फेर आसाढ़, सावन, भादो ल कोनो जादा जाने घलो तो नही, जनवरी फरवरी के ही बोलबाला हे। ता भले चैत मा नवा साल मनाय के कतको उदिम करन, नवा महीना के रूप मा जनवरी ही जीतथे, ओखरे संग ही आज के दिन तिथि चलथे। खैर समय चाहे उर्दू मा चले, हिंदी मा चले या फेर अंग्रेजी मा, समय तो समय ये, जे गतिमान हे। सूरुज, चन्दा, पानी पवन सब अपन विधान मा चलत हे, मनखे मन कतका समय मा चलथे, ते उंखरें मन ऊपर हें। समय मा सुते उठे के समय घलो अब सही नइ होवत हे। लाइट, लट्टू,लाइटर रात ल आँखी देखावत हे, ता बड़े बड़े बंगला सुरुज नारायण के घलो नइ सुनत हे। मनखे अपन सोहलियत बर हाना घलो गढ़ डरे हे, जब जागे तब सबेरा---- अउ जब सोय तब रात। ता ओखर बर का एक्कीस अउ का बाइस, हाँ फेर नाचे गाये खाय पीये के बहाना, नवा बछर जरूर बन जथे।आज मनखे ना समय मा हे, ना विधान मा, ना कोनो दायरा मा। मनखे बलवान हे , फेर समय ले जादा नही।

           वइसे तो नवा बछर मा कुछु नवा होना चाही, फेर कतका होथे, सबे देखत हन। जब मनुष नवा उमर के पड़ाव मा जाथे ता का करथे? ता नवा साल मा का करही? केक काटना, नाचना गाना, पार्टी सार्टी तो करते हे, बपुरा मन।वइसे तो कोनो नवा चीज घर आथे ता वो नवा कहलाथे, फेर कोनो जुन्ना चीज ला धो माँज के घलो नवा करे जा सकथे। कपड़ा,ओन्हा, घर, द्वार, चीज बस सब नवा बिसाय जा सकथे, फेर तन, ये तो उहीच रहिथे, अउ तन हे तभे तो चीज बस धन रतन। ता तन मन ला नवा रखे के उदिम मनखे ला सब दिन करना चाही। फेर नवा साल हे ता कुछ नवा, अपन जिनगी मा घलो करना चाही। जुन्ना लत, बैर, बुराई ला धो माँज के, सत, ज्ञान, गुण, नव आस विश्वास ला अपनाना चाही। तन अउ मन ला नवा करे के कसम नवा साल मा खाना चाही, तभे तो कुछु नवा होही।  जुन्ना समय के कोर कसर ला नवा बेरा के उगत सुरुज संग खाप खवात नवा करे के किरिया खाना चाही। जुन्ना समय अवइया समय ला कइसे जीना हे, तेखर बारे मा बताथे। माने जुन्ना समय सीख देथे अउ नवा समय नव आस। इही आशा अउ नव विश्वास के नाम आय नवा बछर। हम नवा जमाना के नवा चकाचौंध  तो अपनाथन, फेर जिनगी जीये के नेव ला भुला जाथन। हँसी खुसी, बोल बचन, आदत व्यवहार, दया मया, चैन सुकून, सेवा सत्कार आदि मा का नवा करथन। देश, राज, घर बार बर का नवा सोचथन, स्वार्थ ले इतर समाज बर, गिरे थके, हपटे मन बर का नवा करथन। नवा नवा जिनिस खाय पीये,नवा नवा जघा घूमे फिरे  अउ नाचे गाये भर ले नवा बछर नवा नइ होय।

               नवा बछर ला नवा करे बर नव निर्माण, नव संकल्प, नव आस जरूरी हे। खुद संग पार परिवार,साज- समाज अउ देश राज के संसो करना हमरे मनके ही जिम्मेदारी हे। जइसे  कोनो हार जीते बर सिखाथे वइसने जुन्ना साल के भूल चूक ला जाँचत परखत नवा साल मा वो उदिम ला पूरा करना चाही। कोन आफत हमला कतका तंग करिस, कोन चूक ले कइसे निपटना रिहिस ये सब जुन्ना बेरा बताथे, उही जुन्ना बेरा ला जीये जे बाद ही आथे नव आस के नवा बछर। ता आवन ये नवा बछर ला नवा बनावन अउ दया मया घोर के नवा आसा डोर बाँधके, भेदभाव, तोर मोर, इरखा, द्वेष ला जला, सबके हित मा काम करन, पेड़,प्रकृति, पवन,पानी, छीटे बड़े जीव जन्तु सब के भला सोचन, काबर कि ये दुनिया सब के आय, पोगरी हमरे मनके नही, बिन पेड़,पवन, पानी अउ जीव जंतु बिना अकेल्ला हमरो जिनगी नइहे। नवा बछर के बहुत बहुत बधाई-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Thursday 30 December 2021

कुम्हड़ा पाक/ कोम्हड़ा पाग

 कुम्हड़ा पाक/ कोम्हड़ा पाग


                    कुम्हड़ा/मखना/ कोम्हड़ा के नार पहली घरो घर छानी म चारो कोती लामे रहय, अउ कोनो घर दर्जन भर त, कोनो घर कोरी कोरी घलो फरे। जेला सब पारा परोसी अउ सगा सोदर मन संग बाँट बिराज के खायें।  घर के बारी, अउ ओरिछा के खाल्हे आसाढ़ के लगती बोवाय अउ कुँवार कातिक म तैयार हो जाय। कुम्हड़ा पाक नवा खाई, दशहरा, देवारी, झरती कोठार अउ मेला मंड़ई के प्रमुख व्यंजन आय। घी ल कड़काके ओमा करिया तिली झोंक, कुटी कुटी कटाय या फेर किसाय कुम्हड़ा संग गुड़/शक्कर डार बने चूरत ले भूँज दे, अउ सुवाद बढ़ाये बर लौंग, लायची छीत दे, बस बन गे कुम्हड़ा पाक।  कोनो भी घर के हाँड़ी म ये कलेवा बने त पारा परोसी मन महक पाके,सहज जान जाय, तेखरे सेती कटोरी भर भर परोसी मन ल बाँटे घलो जाय। बने के बाद पातर रोटी,फरा अउ चीला संग कटोरी कटोरी नपा नपा के खाय के अलगे मजा रहय, जउन खाय होही तेखर मुँह म, सुरता करत खच्चित पानी आ गे होही। 

                          मेवा मिठाई अउ किसिम किसिम के कलेवा पहली घलो रिहिस, फेर कुम्हड़ा पाक के अपन अलग दबदबा रिहिस,माँग रिहिस। बिना ये कलेवा के कुँवार, कातिक, अगहन अउ पूस के घलो कोनो तीज तिहार या फेर उपास धास नइ होवत रिहिस। नवा जमाना म ये कलेवा धीर लगाके सिरावत जावत हे, अइसे घलो नही कि आज बनबे नइ करे, बनथे फेर गिनती के घर म। कोनो भी घरेलू कलेवा/व्यंजन बर बनेच जोरा करेल लगथे, त वइसने जमकरहा गजब सुवाद घलो तो रथे। जइसे गाजर के हलवा रइथे, उसने कोम्हड़ा पाग घलो रथे, पर गाजर के हलवा के चलन सबे कोती हे,कोम्हड़ा पाक  नँदावत जावत हे। आज मनखें शहरी चकाचोंध अउ महिनत देख तुरते ताही मिलइया फास्ट फूड कोती झपावत जावत हे, ते चिंतनीय हे। कुम्हड़ा पाक कस हमर सबे पारम्परिक  कलेवा मुंह के स्वाद के संगे संग शरीर ल ताकत, विटामिन, खनिज अउ  रोग राई ले घलो बचाथे।  कुम्हड़ा कस लौकी, रखिया, तूमा ल घलो पाके या पागे जाथे। रखिया पाक तो पेड़ा के रूप म भारत भर म प्रसिद्ध हे, फेर कुम्हड़ा  पाक के दायरा सिमित होवत जावत हे।  

                            पागे के अलावा कुम्हड़ा के साग,कढ़ी, बड़ी के घलो जमकरहा माँग हे। कुम्हड़ा पाक आजो गाँव के पसंदीदा कलेवा म एक हे, जेला मनखें मन एक बेर जरूर पाकथे, अउ खाथें। शहर कोती या शहर लहुटत गाँव, केक पिज़्ज़ा, बर्गर, चांट समोसा के चक्कर म,धीर लगाके ये कलेवा ल छोड़त जावत हे। घर म बनइया कलेवा ल मन लगाके बनाये अउ मन भर खाय के अलगे आनन्द हे। आज मनखे मन ल मारत हे, अउ ऊपरी देख दिखावा कोती जादा भागत हे, इही कारण आय के परम्परागत चीज दुरिहा फेकात जावत हे, उही म एक हे कोम्हड़ा पाग।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस म,, सरसी छंद(गीत)-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" चाय

 अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस म,,


सरसी छंद(गीत)-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                  चाय


लौंग लायची दूध डार के, बने बना दे चाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


चले चाय हा सरी जगत मा, का बिहना का साम।

छोटे बड़े सबे झन रटथे, चाय चाय नित नाम।

सुस्ती भागे चाय पिये ले, फुर्ती तुरते आय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


साहब बाबू सगा बबा के, चाय बढ़ाये मान।

चाय पुछे के हवै जमाना, चाय लाय मुस्कान।

रथे चाय के कतको आदी, नइ बिन चाय हिताय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


छठ्ठी बरही मँगनी झँगनी, बिना चाय नइ होय।

चले चाय के सँग मा चरचा, मीत मया मन बोय।

घर दुवार का होटल ढाबा, सबके मान बढ़ाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


चाहा पानी बर दे खर्चा, कहै कई घुसखोर।

करे चापलूसी कतको मन, चाहा कहिके लोर।

संझा बिहना चाय पियइया, चाय चाय चिल्लाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको,कोरबा

मोर गाँव के मड़ई- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

 मोर गाँव के मड़ई- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


               किनकिन किनकिन जनावत पूस के जाड़ म ज्यादातर दिसम्बर के आखरी सोमवार या फेर जनवरी के पहली सोमवार के होथे, मोर गाँव खैरझिटी के मड़ई। हाड़ ल कपावत जाड़ म घलो मनखे सइमो सइमो करथे। राजनांदगांव- घुमका-जालबांधा रोड म लगे दईहान म, मड़ई के दिन गाय गरुवा के नही, बल्कि मनखे मनके भीड़ रथे। मड़ई के दू दिन पहली ले रामायण के आयोजन घलो होथे, ते पाय के सगा सादर घरो घर हबरे रइथे। लगभग दू हजार के जनसंख्या अउ तीर तखार 2-3 किलोमीटर के दुरिहा म चारो दिशा म बसे गाँव के मनखे मन, जब संझा बेरा मड़ई म सकलाथे, त पाँव रखे के जघा घलो नइ रहय। अउ जब मड़ई के बीचों बीच यादव भाई मन बैरंग धरके दोहा पारत,  दफड़ा दमउ संग नाचथे कुदथे त अउ का कहना। बिहना ले रंग रंग के समान, साग भाजी अउ मेवा मिठाई के बेचइया मन अपन अपन पसरा म ग्राहक मनके अगोरा करत दिखथें। एक जुवरिहा भीड़ बढ़त जथे, अउ संझौती 4-5 बजे तो झन पूछ। दुकानदार मनके बोली, रइचुली के चीं चा, लइका सियान मनके शोर अउ यादव भाई मनके दोहा दफड़ा दमउ के आवाज म पूरा गाँव का तीर तखार घलो गूँज जथे। मड़ई के सइमो सइमो भीड़ अउ शोर सबके मन ल मोह लेथे।

                        मड़ई म सबले जादा भीड़ भाड़ दिखथे, मिठई वाले मन कर। वइसे तो हमर गाँव म तीन चार झन मिठई वाले हे, तभो दुरिहा दुरिहा के मिठई बेचइया मन आथे, अउ रतिहा सबके मिठई घलो उरक जाथे। साग भाजी के पसरा म सबले जादा शोर रथे, उंखरो सबो भाजी पाला चुकता सिरा जथे। खेलौना, टिकली फुँदरी, झूला सबे चीज के एक लाइन म पसरा रहिथे। सबे बेचइया मन  भारी खुश रइथे,अउ अपन अपन अंदाज म हाँक पारथे। होटल के गरम भजिया-बड़ा, मिठई वाले के गरम जलेबी, लइका सियान सबे ल अपन कोती खीच लेथे।मड़ई म लगभग सबे समान के बेचइया आथे, चाहे फोटू वाला होय, चाहे साग-भाजी या फेर मनियारी समान। नवा नवा कपड़ा लत्ता म सजे सँवरे मनखे मन, चारो कोती दसो बेर घूम घूम के मजा उड़ावत समान लेथे। रंग रंग के फुग्गा, गाड़ी घोड़ा म लइका मन त, टिकली फुँदरी म दाई दीदी मनके मन रमे रइथे।

                   मड़ई के दिन मोर का, सबे के खुशी के ठिकाना नइ रहय।  ननपन ले अपन गाँव के मड़ई ल देखत घूमत आये हँव, आजो घलो घुमथों। पहली पक्की सड़क के जघा मुरूम वाले सड़क रिहिस, तीर तखार के मनखे मन रेंगत अउ गाड़ी बैला म घलो हमर गांव के मड़ई म आवँय, सड़क अउ जेन मेर मड़ई होय उँहा के धुर्रा के लाली आगास म छा जावय, अइसे लगय कि डहर बाट म आगी लग गेहे, जेखर लपट ऊपर उठत हे, अइसनेच हाल मड़ई ठिहा के घलो रहय। फेर सीमेंट क्रांकीट के जमाना म ये दृश्य अब नइ दिखे। चना चरपट्टी के जघा अब कोरी कोरी गुपचुप चाँट के ठेला दिखथे, संगे संग अंडा चीला अउ एगरोल के ठेला घलो जघा जघा मड़ई म अब लगे रहिथे। अब तो बेचइया मन माइक घलो धरे रइथे, उही म चिल्ला चिल्लाके अपन समान बेचत दिखथे। नवा नवा  किसम के झूलना घलो आथे, फेर अइसे घलो नइहे कि पुराना झूलना नइ आय। रात होवत साँठ पहली मड़ई लगभग उसल जावत रिहिस, फेर अब लाइट के सेती 7-8 बजे तक घलो मड़ई म चहल पहल रहिथे। होटल के भजिया बड़ा पहली घलो पुर नइ पावत रहिस से अउ आजो घलो नइ पुरे। पान ठेला के पान अउ गरम जलेबी बर पहली कस आजो लाइन लगाए बर पड़थे। मिठई वाले मन पहली गाड़ा म आवंय, अब टेक्कर,मेटाडोर म आथें। मड़ई के दिन बिहना ले गाँव म पहली खेल मदारी वाले वाले घलो आवत रिहिस फेर अब लगभग नइ आवय। पहली कस दूसर गाँव के मनखे मन घलो जादा नइ दिखे। 

                कभू कभू कोनो बछर दरुहा मंदहा अउ मजनू मनके उत्लंग घलो देखे बर मिलय, उनला बनेच मार घलो पड़े। गाँव के कोटवार, पंच पटइल के संग अब पुलिस वाला घलो दिखथे, ते पाय के झगड़ा लड़ई पहली कस जादा नइ होय। मैं मड़ई म नानकुन रेहेंव त दाई  मन संग घूमँव, अउ बड़े म संगी मन  संग, अब लइका लोग ल घुमावत घुमथों अउ संगी मन संग घलो। संगी संगवारी मन संग पान खाना, होटल म भजिया बड़ा खाना, एकात घाँव रयचूली झूलना, फोटू वाले ले फोटू लेना, मेहंदी लगवाना, खेलौना लेना अउ आखिर म मिक्चर मिठई लेवत घर चल देना, मड़ई म लगभग मोर सँउक रहय। एक चीज अउ पहली कस कुसियार मड़ई म नइ आय ते खलथे। स्कूल के गुरुजी मन संग बिहना घूमँव अउ संझा संगी संगवारी मन संग। पहली घर म जतेक भी सगा आय रहय, मड़ई के दिन सब 2-4 रुपिया देवय,ताहन का कहना दाई ददा के पैसा मिलाके 10, 20 रुपिया हो जावत रिहिस, जेमा मन भर खावन अउ खेलोना घलो लेवन, आज 500-600 घलो नइ पूरे। समय बदलगे तभो मोर गाँव के मड़ई लगभग नइ बदले हे, आजो गाँव भर जुरियाथे, कतको ब्रांड, मॉल-होटल आ जाय छा जाय, तभो गाँव भर अउ तीर तखार के मनखें मड़ई के बरोबर आंनद लेथे। मड़ई के दिन रतिहा बेरा नाचा पहली कस आजो होथे। *जिहाँ मन माड़ जाय, उही मड़ई आय।* जब मड़ई भीतर रबे, त मजाल कखरो मन, मड़ई ले बाहिर भटकय। आप सब ल मोर  गाँव के मड़ई के नेवता हे।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

..खेती अपन सेती.......

 जय जवान जय किसान


......खेती अपन सेती.......

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किसन्हा के भाग मेटा झन जाय |

बाँचे-खोंचे भुँइया बेचा झन जाय ||


भभकत हे चारो मुड़ा ईरसा के आगी,

कुंदरा  किसनहा के लेसा  झन जाय |


अँखमुंदा भागे नवा जमाना के गाड़ी,

किसनहा बपुरा मन रेता  झन जाय|


मूड़  मुड़ागे,ओढ़ना - चेंदरा चिरागे,

फेर सिर पागा, गल फेटा झन जाय|


बधथन बधना, बिधाता तीर जाके रात-दिन,

कि सावन-भादो भर गोड.के लेटा झन जाय|


भूंजत हे भुंजनिया, सब बिजरात हे हमला,

अवइया पीढ़ी ल खेती बर चेता झन जाय |


हँसिया-तुतारी,नांगर -बइला-  गाडी़,

कहीं अब इती-उती फेका झन जाय |


साहेब बाबू बने के बाढ़त हे आस ,

देख के हमला किसानी के पेसा झन जाय|


दँउड़े हन खेत-खार म खोर्रा पॉंव घाव ले,

कहूँ बंभरी  कॉटा  तहूँ ल ठेसा झन जाय |


नइ धराय मुठा म् रेती, खेती अपन सेती,

भूख मरे बर खेत कखरो बेटा झन जाय|


                 जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

                      बाल्को( कोरबा)


किसान दिवस के सादर बधाई।

लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)

 लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)


पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया।

अंतर्मन ला पबरित रख अउ, चाल चलन ला कर बढ़िया।


धरम करम धर जिनगी जीथें, सत के नित थामें झंडा।

खेत खार परिवार पार के, सेवा करथें बन पंडा।

मनुष मनुष ला एक मानथें, बुनें नहीं ताना बाना।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, नोहे ये कोनो हाना।

छत्तीगढ़िया के परिभाषा, दानी जइसे औघड़िया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


माटी ला महतारी कइथें, गारी कइथें चारी ला।

हाड़ टोड़ के सरग बनाथें, घर दुवार बन बारी ला।

देखावा ले दुरिहा रइथें, नइ जोरो धन बन जादा।

सिधवा मनखे बनके सबदिन, जीथें बस जिनगी सादा।

मेल मया मन माटी सँग मा, ले सेल्फी बस झन मड़िया।

पाटी पागा बपारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


कतको दुःख समाये रइथे, लाली लुगा किनारी मा।

महुर मेंहदी टिकली फुँदरी, लाल रचे कट आरी मा।

सुवा ददरिया करमा साल्हो, दवा दुःख पीरा के ए।

महल अटारी सब माटी ए, काया बस हीरा के ए।

सबदिन चमकन दे बस चमचम, जान बूझके झन करिया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


*छत्तीसगढ़िया(414) ल मात्रा भार मिलाय के सेती छत्तिसगढ़िया(44) पढ़े के कृपा करहू*

Wednesday 22 December 2021

.....खेती अपन सेती.......


 

जय जवान जय किसान


......खेती अपन सेती.......

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किसन्हा के भाग मेटा झन जाय |

बाँचे-खोंचे भुँइया बेचा झन जाय ||


भभकत हे चारो मुड़ा ईरसा के आगी,

कुंदरा  किसान  के  लेसा  झन जाय |


अँखमुंदा भागे नवा जमाना के गाड़ी,

हमर कस रेंगइया मन रेता  झन जाय|


मूड़  मुड़ागे,ओढ़ना - चेंदरा चिरागे,

फेर सिर पागा, गल फेटा झन जाय|


बधथन बधना, बिधाता तीर जाके रात-दिन,

कि सावन-भादो भर गोड.के लेटा झन जाय|


भूंजत हे भुंजनिया, सब बिजरात हे हमला,

अवइया पीढ़ी ल खेती बर चेता झन जाय |


हँसिया-तुतारी,नांगर -बइला-  गाडी़,

कहीं अब इती-उती फेका झन जाय |


साहेब बाबू बने के बाढ़त हे आस ,

देख के हमला किसानी के पेसा झन जाय|


दँउड़े हन खेत-खार म खोर्रा पॉंव घाव ले,

कहूँ बंभरी  कॉटा  तहूँ ल ठेसा झन जाय |


नइ धराय मुठा म् रेती, खेती अपन सेती,

भूख मरे बर खेत कखरो बेटा झन जाय|


                 जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

                      बाल्को( कोरबा)


किसान दिवस के सादर बधाई।

Friday 10 December 2021

छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ छंद के छ परिवार

 छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ छंद के छ परिवार


                    9 मई 2016 म, जनकवि कोदूराम दलित जी के सुपुत्र श्री अरुण निगम जी द्वारा स्थापित ऑनलाइन वाट्सअप कक्षा छंद के छ, छत्तीसगढ़ी साहित्य म छंदबद्ध गीत कविता के बाढ़ लादिस। 2016 ले लेके आज 2021 तक कुल 17 सत्र सरलग संचालित हे, जेमा लगभग 50,60 प्रकार के छंद ल छत्तीसगढ़ के लगभग सबे जिला के 250 ले जादा कवि मन सीखत अउ सिखावत हे। आवन छंद के छ ल बने ढंग ले जानन--


*काय ये छंद के छ*- 

वइसे तो "छंद के छ" श्री अरुण निगम जी द्वारा 2015 म प्रकाशित एक पुस्तक ए, जेमा लगभग 50 प्रकार के छंद, विधान अउ एक एक उदाहरण सहित छपे हे। छत्तीसगढ़ी म छंदमय काव्य ल पुष्पित पल्लवित करे बर जनकवि श्री कोदूराम दलित जी के नाम सामने आथे, ओखरे लिखे सियानी गोठ ले प्रभावित होके, दलित जी के सपना ल साकार करे बर सुपुत्र श्री अरुण निगम जी विचार किरिन कि मैं छंद सीखे के बाद 2 ले 4 पुस्तक अउ छपा सकत हँव, फेर यदि ये विधान ल छत्तीसगढ़ के कवि मन ल बताहूँ त, सिरिफ 2,4 छंदमय पुस्तक नही बल्कि कोरी कोरी पुस्तक छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के मान बढ़ाही। इही सोच के श्री निगम जी अपन दू चार करीबी अउ बने लिखइया कवि मन ल मना के, मई 2016 म, सोसल मीडिया के सदुपयोग करत "छंद के छ" नामक पहली सत्र के कक्षा चलाइन। जेमा  छंद के मूलभूत जानकारी अउ मात्रा गणना ले चालू करके छंद कइसे लिखे जाथे तेखर बारे म एक एक करके सिखाये बताये लगिन। सत्र  एक के बाद दूसरा अउ दूसरा सत्र के बाद तीसरा सत्र चले लगिस, साधक मन  लगाके छन्द लिखे पढ़े लगिन। सत्र बढ़त गिस अउ छंद के छ के नाम घलो बढ़त गिस, दुरिहा दुरिहा जिला के कवि मन छंद सीखे पढ़े मन दिलचस्पी देखात गिन। ये प्रकार ले सिरिफ तीने सत्र म "छंद के छ" के नाम के चर्चा, न सिर्फ सोसल मीडिया म बल्कि छत्तीसगढ़ के जमे नवा जुन्ना कवि/ लेखक मन करे लगिन। आज छंद के छ एक आंदोलन के रूप ले चुके हे, जेमा छत्तीसगढ़ के लगभग सबे जिला के साधक मन एक परिवार के रूप म गुरु शिष्य परम्परा के निर्वहन करत छंद सीखत सिखावत हे। अब यदि छत्तीसगढ़ म कोनो ल कहन कि, छंद के छ काय ए? त ये सिर्फ एक पुस्तक नही, बल्कि एके जवाब आथे- छंद सीखे सिखाये के आन लाइन कक्षा। छत्तीसगढ़ प्रतियोगी परीक्षा म आन लाइन गुरुकुल के नाम से छंद के छ  ल जाने जाथे।  कम शब्द म कहन त---छंद के छ संयम अउ समर्पण ले सुसज्जित, एक आन लाइन कक्षा ए, एक आंदोलन ए, एक परिवार ए।


*हर शनिवार अउ रविवार के होथे आनलाइन गोष्ठी के आयोजन*- 

छंद एक शास्त्रीय विधा आय, जे विशेष मात्रा अउ अपन विशेष लय के कारण विविध नाम ले जाने जाथे। जइसे दोहा छंद, सोरठा छंद, रोला छंद, कुंडलियाँ छंद, अमृतध्वनि छंद, आल्हा छंद, बरवै छंद -------आदि आदि। सबे छंद के मात्रा विधान के संगे संग लय ताल घलो अलग अलग होथे। छंद के छ के मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करना हे, एखर संगे संग छंदकार ल लिखे के साथ पढ़े बर घलो सिखाना हे, तभे तो मार्च 2017 ले सरलग हर शनिवार अउ रविवार के आनलाइन गोष्ठी के आयोजन होथे। जेमा सबे साधक मन बढ़ चढ़के भाग लेथें। साधक मन ल कोन छंद ल कइसे  लिखना हे, वो उँखर कक्षा म सिखाये जाथे, अउ कोन छंद ल कइसे पढ़ना या गाना हे, तेला गोष्ठी म। गोष्ठी म परिपक्व होके, छंद परिवार के साधक मन कवि सम्मेलन के मंच मन म घलो छंदबद्ध  गीत कविता के प्रस्तुति देवत हें, अउ ताली बटोरत हें। छंद के छ के ही प्रभाव ए, जे आजकल कवि सम्मेलन के मंच मन म घलो छंदबद्ध विविध  गीत,कविता पढ़े सुने जावत हे। गोष्ठी के एक अउ खास बात हे- हर सप्ताह अलग अलग साधक मन ल गोष्ठी के संचालन करे के दायित्व देय जाथे, जेखर ले हर साधक संचालन करे बर सीखत हें।  गोष्ठी के दिन कोनो परब सपड़ जथे त वो दिन वो परब या फेर दिवस आधारित गोष्ठी होथे, जेमा सबो साधक मन एके प्रकार के विषय म गीत कविता प्रस्तुत करथें। जइसे होली हे, त सब साधक होली आधारित काव्य पाठ करथें। गोष्ठी म बीच बीच म छत्तीसगढ़ के विज्ञ साहित्यकार, गीतकार, कलाकार मन पहुना बनके घलो आथें, अउ मन लगाके छंदबद्ध गीत कविता सुनके आशीष देथें,  एखर से वो पहुना मन छंद परिवार के  नवा जुन्ना साधक मन ला जानथें अउ आपसी मया मेल बढ़थे। छत्तीसगढ़ के कतको नामी शक्स मन छ्न्द के छ परिवार के गोष्ठी म पहुना बनके आयें हें, जेमा  लोक गायिका स्वर कोकिल श्री मति कविता वासनिक जी, कवियित्री अउ अभिनेत्री श्री मति संतोष झाँझी जी, वरिष्ठ साहित्यकार सरला शर्मा जी, गजलकार श्री दिनेश  गौतम जी, अभिनेत्री अउ गायिका श्रीमती शैलजा ठाकुर जी, गीतकार, गायक श्री महादेव हिरवानी जी, साहित्यकार बलदाऊ राम  साहू जी, गजलकार जनाब लतीफ खान जी, साहित्यकार, प्रकाशक अउ शिक्षाविद श्री सुधीर शर्मा जी, वरिष्ठ साहित्यकार गजलकार श्री माणिकविश्वकर्मा नवरंग जी, लोक गायिका श्री मति अनुराग ठाकुर ------आदि के अलावा कई बड़े साहित्यकार अउ कलाकार मन अतिथि के रूप म शामिल हो चुके हे। उहू मन छंद परिवार के अइसन उदिम ले भारी खुश होइन,अउ रंग रंग के छंद के संगे संग सुमधुर राग रंग ल सुनके खूब प्रशंसा करिन। 2017 ले अनवरत चलत छंदबद्ध काव्य गोष्ठी आजो राग रंग के आकर्षण के केंद्र होथे।


*छंद के छ के सत्र अउ साधकगण*


  सत्र 1 ले लेके सत्र17 तक, लगभग सबे जिला के साधक मन शामिल हें,नाम गिनावन त- जशपुर, रायगढ़, कोरबा, जांजगीर चाम्पा, मुंगेली, बिलासपुर, बलौदाबाजार, रायपुर, दुर्ग, भिलाई, राजनांदगांव, बालोद, महासमुंद, गरियाबन्द, कबीरधाम, कांकेर आदि।


*छन्द के छ - सत्रवार साधक*


सत्र - 1 (09 मई 2016)

1. हेमलाल साहू 

2. रमेशकुमार सिंह चौहान, 

3. सुनील शर्मा 

4. सूर्यकान्त गुप्ता 

5. मिथिलेश शर्मा 

6. लोचन देशमुख 

7. देवेन्द्र हरमुख 

8. श्रीमती शकुन्तला शर्मा

9. मिलन मलरिहा


सत्र - 2  (28 सितंबर 2016)

1. चोवाराम वर्मा 

2. गजानन पात्रे 

3. दिलीप कुमार वर्मा 

4. कन्हैया साहू 

5. असकरण दास जोगी 

6. सुनील शर्मा

7. सुखन जोगी 

8. श्रीमती बसंती वर्मा 

9. श्रीमती रश्मि गुप्ता 

10. श्रीमती आशा देशमुख

11. रेखा पालेश्वर


सत्र - 3 (07 जनवरी 2017) 

1. ज्ञानुदास मानिकपुरी 

2. मनीराम साहू 

3. जितेंद्र वर्मा खैरटिया 

4. मोहनलाल वर्मा

5. हेमंत मानिकपुरी 

6. दुर्गाशंकर इज्जतदार 

7. अजय अमृतांशु 

8. श्रीमती रश्मि गुप्ता

9. सुखदेव सिंह अहिलेश्वर



सत्र - 4 ब(29 अप्रैल 2017)

1. आर्य प्रजापति 

2. मोहन कुमार निषाद 

3. महेतरू मधुकर 

4. संतोष फरिकार 

5. तेरस राम कैवैर्त्य 

6. पुखराज यादव 

7. सुरेश पैगवार

8. ललित साहू जख्मी  

9. श्रवण साहू 

10. श्रीमती दीपिका झा

11. बलराम चंद्रकार


सत्र 4 अ - (29 अप्रैल 2017) 

1. पुष्कर सिंह राज @

2. राजेश कुमार निषाद 

3. अरुण कुमार वर्मा @

4. अनिल जांगड़े गौंतरिहा @

5. जितेंद्र कुमार मिश्र @

6. पोखन जायसवाल 

7. दिनेश रोहित चतुर्वेदी @

8. जगदीश हीरा साहू 

9. कौशल कुमार साहू 

10. तोषण चुरेन्द्र


सत्र - 5 (28 सितंबर 2017) 

1. पुरुषोत्तम ठेठवार 

2. विद्यासागर खूँटे @

3. मेहतरु मधुकर @

4. परमेश्वर अंचल @

5. बोधनराम निषादराज 

6. मथुरा प्रसाद वर्मा

7. श्रीमती ज्योति गभेल 

8. श्रीमती नीलम जायसवाल 

9. श्रीमती प्रियंका गुप्ता @

10. श्रीमती आशा आजाद


सत्र - 6   (10 जनवरी 2018)

1. राजकिशोर धीरही 

2. रामकुमार साहू 

3. ललित साहू जख्मी 

4. दीनदयाल टंडन 

5  जगदीश हीरा साहू 

6. गुमान प्रसाद साहू 

7 मीता अग्रवाल 

8. बलराम चंद्रकार 

9. शुचि भवि 

10. बालक दास निर्मोही 

11. कुलदीप सिन्हा 

12.राम कुमार चंद्रवंशी 

13. महेंद्र कुमार माटी 

14. अनिल पाली 

15. धनसाय यादव 

16. ईश्वर लाल साहू आरुग 

17. गजराज दास महंत 



सत्र - 7 (अ) 04 जून 2018

1. अशोक धीवर जलक्षत्री 

2. राधेश्याम पटेल 

3. सावन गुजराल 

4.उमाकांत टैगोर 

5. राजकुमार बघेल 

6. नवीन कुमार तिवारी @

7. निर्मल राज @

8. योगेश शर्मा @

9. सीमा साहू @

10. सुधा शर्मा 

11. केवरा मीरा यदु



सत्र 7 (ब)  04 जून 2018

1.दीपक कुमार साहू 

2.मिनेश कुमार साहू 

3. द्वारिका प्रसाद लहरे 

4. संदीप परगनिहा @

5. महेंद्र कुमार बघेल 

6. गजराज दास महंत 

7. युवराज वर्मा @

8. हीरालाल गुरुजी 

9. अनुभव तिवारी @

10. ईश्वर साहू बंधी

 

सत्र - 8 (10 जनवरी 2019)

1. गीता विश्वकर्मा @

2. चित्रा श्रीवास 

3. तुलेश्वरी धुरंधर @

4. दीपाली ठाकुर @

5. शोभा मोहन श्रीवास्तव 

6. सुनीता कुर्रे @

7. स्नेह लता सीतापुर सरगुजा @

8. मीना जांगड़े @

9. सरस्वती चौहान 

10. रामकली कारे

11. शशि साहू कुल 11 


सत्र - 9 (26 जनवरी 2019)

सर्वश्री

1. अश्वनी कोसरे 

2. चंद्रेश्वर सिंह दीवान

3. ज्वाला प्रसाद कश्यप

4. धनराज साहू @

5. विरेंद्र कुमार साहू 

6. संतोष कुमार साहू 

7. केशव पाल

8. नमेन्द्र कुमार गजेंद्र

9. लक्ष्मीनारायण देवांगन

10. कमलेश वर्मा

11. जितेंद्र कुमार निषाद

12. श्लेष चंद्रकार


सत्र - 10 (29 सितंबर 2019) 

1. अमित टंडन 

2. जुगेश कुमार बंजारे 

3 तोरण लाल साहू 

4 दीपक कुमार निषाद 

5 देवेंद्र पटेल 

6 बृजलाल भावना 

7 भागवत प्रसाद साहू 

8 लालेश्वर अरुणाभ 

9. लीलेश्वर देवांगन 

10 हरीश अष्टबंधु


सत्र 11 - (12 जनवरी 2020)

1. तेजराम नायक 

2. अनिल सलाम 

3. सुखमोती चौहान @

4. धनेश्वरी सोनी 

5. धनराज साहू बागबाहरा @

6. विजेंद्र वर्मा 

7. मोहनदास बंजारे 

8. जितेंद्र कुमार साहिर 

9. मनोज कुमार वर्मा 

10. मिलन मलरिहा


सत्र - 12  (25 मई 2020) 

1. डर्मेंद्र कुमार रौना 

2.अमृत दास साहू 

3. इंद्राणी साहू 

4. एकलव्य साहू 

5  ओम प्रकाश साहू अंकुर 

6. गोवर्धन परतेती 

7. धनराज साहू मनहोरा खुज्जी 

8. नंदकुमार साहू नादान 

9. मनीष साहू 

10. रमेश कुमार मंडावी 

11. राजकुमार चौधरी 

12. शिव प्रसाद लहरे

13. शेर सिंह परतेती


सत्र - 13 (28 सितम्बर 2020) 

1.अशोक कुमार जायसवाल 

2. कमलेश मांझी 

3. चंद्रहास पटेल 

4. टिकेश्वर साहू 

5. प्रिया देवांगन

6. दीपक तिवारी 

7. नारायण प्रसाद वर्मा 

8. पूरन जायसवाल

9. रीझे यादव 

10.सुनील शर्मा नील 

11. गजराज दास महंत

12. सुरेश निर्मलकर 

13. भागबली उइके


सत्र - 14 (10 जनवरी 2021)

1. अजय शेखर नेताम नैऋत्य

2. अनुज छत्तीसगढ़िया 

3. अन्नपूर्णा देवांगन 

4. केतन साहू खेतिहर

5. तिलक लहरे 

6. मेनका वर्मा 

7. राकेश कुमार साहू 

8. वसुंधरा पटेल 

9. संगीता वर्मा 

10. सुजाता शुक्ला 

11. देवचरण धुरी

12. पद्मा साहू 

13. मनोज यादव


सत्र - 15 (14 मई 2021) 


1. आशुतोष साहू 

2 डी.एल. भास्कर 

3 दूज राम साहू 

4 धर्मेंद्र डहरवार 

5 नंद किशोर साहू 

6 नागेश कश्यप 

7 नारायण प्रसाद साहू 

8 प्रदीप कुमार वर्मा 

9 भागवत प्रसाद 

10 महेंद्र कुमार घृतलहरे 

11 रमेश चोरिया 

12 रवि बाला राजपूत 

13 राजेंद्र कुमार निर्मलकर 1

4 रोशन लाल साहू 

15 सुमित्रा कामड़िया


सत्र - 16(28 सितम्बर 2021)


1. डीलेश्वर साहू 

2. दिलीपकुमार पटेल 

3. नेहरुलाल यादव 

4. पुर्नोत्तम साहू 

5. भीजराम वर्मा 

6. ममता हीर राजपूत 

7. मुकेश उयके 

8. राज निषाद 

9. वीरू कंसारी 

10. शीतल बैस 

11. केदारनाथ जायसवाल


सत्र - 17 (28 सितम्बर 2021)

1. कृष्णा पारकर 

2. तिलेश कुमार यादव 

3. दयालू भारती 

4. दुष्यन्त कुमार साहू 

5. द्रोण कुमार सार्वा 

6. भैलेन्द्र रात्रे 

7. मनीष कुमार वर्मा 

8. शैल शर्मा 

9. साँवरिया निषाद

10. चूड़ामणि वर्मा 

11. बाल्मीकि साहू


 हर बछर तीन बेर लगभग 10 या 12 साधक ल लेके एक नवा सत्र के शुभारंभ होथे- नवा साल बर(जनवरी), अक्ति बर(मई) अउ दलित जी के जन्म जयंती बर(सितम्बर)। कोनो कोनो सत्र बर जादा साधक मनके नाम आय के कारण वो सत्र ल अ अउ ब म बाँट दिये जाथे। 



कक्षा के गुरुजी- 

छंद के छ परिवार के मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़वार हे, अउ ये तभे सम्भव हे जब लिखइया अउ सीखइया रहय, तेखर सेती छंद परिवार "सीखो अउ सिखावव" के नारा लेके आघू बढ़त हे, अउ एखरे प्रमाण ए कि, आज छंद परिवार ले 200 ले आगर साधक मन सीखत अउ सिखावत हें। सत्र 1,2 अउ 3 ल श्री अरुण कुमार निगम जी खुदे छंद लेखन म पारंगत करिन, तेखर बाद इही सीखे पढ़े साधक मन आन कक्षा म गुरु के दायित्व सम्हालत गिन अउ सत्र बढ़त गिस। आज श्री अरुणकुमार निगम जी के आलावा श्री चोवाराम  वर्मा बादल जी, श्री दिलीप कुमार वर्मा जी, श्री आशा देशमुख जी, श्री मनीराम साहू मितान जी, श्री मोहनलाल वर्मा जी, श्री अजय अमृतांशु जी, श्री जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया जी, श्री ग्यानु मॉनिकपुरी जी, श्री सुखदेवसिंह अहिलेश्वर जी, श्री गजानन्द पात्रे जी, श्री बलराम चंद्राकर जी, श्री महेंद्र बघेल जी, श्री राम कुमार चन्द्रवंसी जी,  श्री मति शोभामोहन श्रीवास्तव जी,श्री बोधनराम निषादराज जी, श्री मथुरा प्रसाद वर्मा जी, श्री वीरेंद्र साहू जी, डॉ मीता अग्रवाल जी, श्री कमलेश कुमार वर्मा जी, श्री डी पी लहरे जी, श्री अश्वनी कोशरे जी--- आदि मन गुरुजी के भूमिका निभावत हें। गुरु शिष्य परम्परा के बानगी छंद परिवार म सहज दिखथे।


स्थापना दिवस समारोह--

आनलाइन कक्षा म जुड़े साधक मन जब आपस म मिलथें तब उँखर खुशी के ठिकाना नइ रहय, इही मया मेल, भेंट भलाई खातिर छंद परिवार मनाथें- स्थापना दिवस समारोह। ये दिवस बिना कोनो नेता मंत्री के छंद परिवार अउ आसपास के विज्ञ साहित्यकार, कलाकार मनके उपस्थिति म सम्पन्न होथे। स्थापना दिवस समारोह म जउन साधक मन छंदबद्ध पुस्तक छपवाये रहिथे ओखर विमोचन घलो होथे। अउ पधारे जम्मो साहित्यकार मन  कविता पाठ करथें। स्थापना दिवस समारोह मई महीना म मताये जाथे।  पहली स्थापना दिवस समारोह 2017 म, वरिष्ठ छंद साधिका श्री मति शकुंतला शर्मा जी के संयोजन म भिलाई म सम्पन्न होइस। दूसर स्थापना दिवस समारोह 2018 म छंदकार मनीराम साहू मितान जी के संयोजन म सिमगा म सम्पन्न होइस। तीसर स्थापना दिवस समारोह 2019 म कबीरधाम के साधक मनके संयोजन म कवर्धा म सम्पन्न होइस। कोविड-19 के कारण 20 अउ 21 म स्थापना दिवस समारोह बाधित रिहिस।


दिवाली मिलन समारोह-

 दिवाली मिलन समारोह के मुख्य उद्देश्य घलो आपसी मेल, मिलाप हे। ये समारोह नवम्बर महीना के आसपास आयोजित कर जाथे। पहली दिवाली मिलन समारोह 2017 म श्री चोवाराम वर्मा बादल जी के संयोजन म हथबन्द जिला बलौदाबाजार म सम्पन्न होइस। दूसर दिवाली मिलन समारोह 2018 म श्री बलराम चंद्राकर अउ  श्री सूर्यकान्त गुप्ता जी के संयोजन म रायपुर म सम्पन्न होइस। 2019 के दिवाली मिलन समारोह श्री सुरेश पैगवार जी के संयोजन म जांजगीर नैला म आयोजित रिहिस, फेर जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी उही समय हम सब ला छोड़ के परलोक सिधार गिन, ते पाय के नवम्बर 2019 के दिवाली मिलन समारोह मस्तुरिया जी ल समर्पित आयोजन रिहिस।  2020 के दीपावली मिलन समारोह कोरोना  महामारी के कारण नइ हो पाइस। 2021 म चतुर्थ दिवाली मिलन समारोह श्री विजेंद्र वर्मा अउ बलराम चंद्राकर जी के संयोजन म भिलाई म सम्पन्न होइस।

                येखर आलावा श्री अजय अमृतांशु जी के संयोजन म 2017 म सुरता दलित जी, नाम से एक आयोजन बलौदाबाजार जिला म होय रिहिस, अउ 2019 के अन्तर्राष्ट्रीय  पुस्तक मेला रायपुर म छंद के छंद परिवार ल एक सत्र कवि सम्मेलन बर प्रदान करे गे रिहिस।

Thursday 14 October 2021

गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

 गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"



*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*



*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*



*2212 2212 2212*




अब बता


बिन काम के पद नाम होगे अब बता।

पैसा पहुँच मा काम होगे अब बता।।1


दू टेम के रोटी कहाँ होइस नशीब।

गारत पछीना शाम होगे अब बता।2


केंवट के शबरी के पुछइया कोन हे।

रावण के थेभा राम होगे अब बता।3


कहिथें चिन्हाथे खून के रिस्ता नता।

बिरवा ले बड़का खाम होगे अब बता।4


नइ मोल मिल पावत हे असली सोन के।

लोहा सहज नीलाम होगे अब बता।5


फल फूल तारिक चीज बस अउ आदमी।

का खास सब तो आम होगे अब बता।6


धन जोर के करबोंन का रटते हवन।

कोठी फुटिस गोदाम होगे अब बता।7



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

धुंध के ओनहा(गीत)

 धूंध के ओनहा(गीत)


पहिरे हे पहट हा, धूंध के ओनहा।

दिखत नइहे एकोकनी, कोनो कोनहा।


पा के बड़ इतराये, पूस के जाड़ ला।

सुते कभू सड़क मा, अमरे कभू झाड़ ला।

बनगे दुशासन, सुरुज टोनहा---।

पहिरे हे पहट हा, धूंध के ओनहा----


मनमाड़े डुबके हे, करिया समुंदर मा।

मोती निकाल के, धरे हवय कर मा।।

आगे बन लुटेरा , घाम सोनहा-----।

पहिरे हे पहट हा, धूंध के ओनहा---


दुबके हे गाय गरु, दुबके दीदी भैया।

तभो नाचत गावत हे, पहट ताता थैया।

देखे सुघराई, जागे जल्दी जोन हा।

पहिरे हे पहट हा, धूंध के ओनहा--


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

@@@कलमकार@@@

 @@@कलमकार@@@


कलमकार  हरौं, चाँटुकार  नही।

दरद झेल सकथौं,फेर मार नही।


दुख के दहरा म,अन्तस् ल बोरे हँव।

अपन लहू म,कलम ल चिभोरे हँव।

मैं तो मया मधुबन चाहथौं,

मरुस्थल थार नही-----------


बने बात के गुण,गाथौं घेरी बेरी।

चिटिक नइ सुहाये,ठग-जग हेरा फेरी।

सत अउ श्रद्धा मा,माथ नँवथे बरपेली,

फेर फोकटे दिखावा स्वीकार नही-------


हारे ला ,हौंसला देथौं मँय।

दबे स्वर ला,गला देथौं मँय।

सपना निर्माण के देखथौं,

चाहौं  कभू उजार नही---------


समस्या बर समाधान अँव मैं।

प्रार्थना आरती अजान अँव मैं।

मनखे अँव साधारण मनखे,

कोनो ज्ञानी ध्यानी अवतार नही-------


फोकटे तारीफ,तड़पाथे मोला।

गिरे थके के संसो,सताथे मोला।

जीते बर उदिम करहूँ जीयत ले,

मानौं कभू हार नही-------------


ऊँच नीच भेदभाव पाटथौं।

कलम ले अँजोरी बाँटथौं।

तोड़थौं इरसा द्वेष क्लेश,

फेर मया के तार नही----------


भुखाय बर पसिया,लुकाय बर हँसिया अँव।

महीं कुलीन,महीं घँसिया अँव।

मँय मीठ मधुरस हरौं,

चुरपुर मिर्चा झार नही----------


हवा पानी अगास पाताल।

कहिथौं मँय सबके हाल।

का सजीव का निर्जीव मोर बर,

मँय लासा अँव,हँथियार नही-------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

..........तो मार मुझे.............


 

...........तो मार मुझे.............

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माना     नजरें , गलत   थी    मेरी,

पर नजरें तेरी सही है,तो मार मुझे।


हाँ दिल में  बैर, पाल  रखा  था  मैंने,

पर तेरे दिल में बैर नही है,तो मार मुझे।


आज तो बुराई घर घर, घर कर गई है,

यदि सच में बुराई यही है,तो मार मुझे।


मैं तो कब का मर चुका हूँ,श्रीराम के हाथो,

तेरे  दिल  में  राम  कही  है, तो  मार  मुझे।


मैं तो बहक गया था,हाल बहन का देखकर,

वो सनक तेरी रग में बही है,तो मार मुझे।


मैंने तो लुटा दिया,घर परिवार सब कुछ,

मेरे कारण तेरी आस ढही है,तो मार मुझे।


मुझे मारकर आखिर, क्या मिलेगा?

ये माटी का पुतला वही है,तो मार मुझे।


मैं तो हर बार मरने को,  तैयार  बैठा हूँ,

यदि बुराई कम हो रही है ,तो मार मुझे।


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बालको(कोरबा)

विजयदशमी पर्व की आप सबको ढेरों बधाइयाँ

Saturday 18 September 2021

तीजा सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 तीजा

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


लइका लोग ल धरके गेहे,मइके मोर सुवारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।


कभू भात चिबरी हो जावै,कभू होय बड़ गिल्ला।

   बर्तन भँवड़ा झाड़ू पोछा,हालत होगे ढिल्ला।

   एक बेर के भात साग हा,चलथे बिहना संझा।

मिरी मसाला नमक मिले नइ,मति हा जाथे कंझा।

दिखै खोर घर अँगना रदखद,रदखद हाँड़ी बारी।

   खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।1।


सुते उठे के समय बिगड़गे,घर बड़ लागै सुन्ना।

  नवा पेंट कुर्था मइलागे,पहिरँव ओन्हा जुन्ना।

कतको कन कुरथा कुढ़वागे,मूड़ी देख पिरावै।

     ताजा पानी ताजा खाना,नोहर होगे हावै।

कान सुने बर तरसत हावै,लइकन के किलकारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।2।


खाये बर कहिही कहिके,ताकँव मुँह साथी के।

चना चबेना मा अब कइसे,पेट भरे हाथी के।

मोर उमर बढ़ावत हावै,मइके मा वो जाके।

राखे तीजा के उपास हे,करू करेला खाके।

चारे दिन मा चितियागे हँव,चले जिया मा आरी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

पता-बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)


राखी-बरवै छंद

 राखी-बरवै छंद


राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।

भैया मोला देबे, मया दुलार।।


जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।

सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।


राखी रक्षा करही, बन आधार।

करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।


झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।

दया मया बरसाबे, देबे मान।।


हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।

नता बहिन भाई के, होही पोठ।।


धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।

बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।


राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।

आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।


सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।

जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।


लइकापन के सुरता, आथे रोज।

रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।


कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।

जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।


पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।

देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।


मोरो अँगना आबे, भैया मोर।

जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Sunday 15 August 2021

बचपन बरसा मा(गीत)

 बचपन बरसा मा(गीत)


बचपना हिलोर मारे रे,रिमझिम बरसात मा।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा......।


कागज के डोंगा बना धार मा,बोहावन।

घानी मूँदी खेलन,अड़बड़ मजा पावन।

पाछू पाछू भागन,देख फाँफा फुरफुंदी।

रहिरहि के भींगन, झटकारन बड़ चुंदी।

दया मया रहय,हमर बोली बात मा.......।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।


घर ले निकलन,ददा दाई ले बचके।

धार  ल  रोकन, माटी पथरा रचके।

तरिया  के पार में,बइठे गोटी फेंकन।

गोरसी के आगी में,हाथ गोड़ सेंकन।

मन रमे राहय,माटी गोटी पात मा........।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।


बरसा के बेरा,करे झक्कर झड़ी।

खेलेल  बुलाये,संगी साथी गड़ी।

रीता नइ राहन,हमन एको घड़ी।

खोइला मिठाये,भाये काँदा बड़ी।

सबे खुशी राहय,गाँव गली देहात मा....।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।


झूलन बंभरी मा,खेत खार जावन।

नदी पहाड़ खेलन,लोहा गड़ावन।

बिच्छल रद्दा मा, मनमाड़े उंडन।

माटी ह  गाँवे के,लागे जी कुंदन।

बिन माँगे मया मिले,वो दरी खैरात मा...।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

शिव सुमरनी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 शिव सुमरनी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।

शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।


चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।

अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।


बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।

भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।


कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।

स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।


हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।

पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।


भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।

बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।


नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।

लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।


शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।

बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।


दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।

सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।


खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।

तोर मोर ला भुला। दै अशीष मुँह उला।


नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।

कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।


काल के कराल के। भूत  बैयताल के।

नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।


शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।

शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।


शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।

शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।


शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।

मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।


शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।

शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।


नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।

शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।


शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।

का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

सावन महीना के स्वागत करत ###$सावन महीना(गीत)###

 सावन महीना के स्वागत करत


###$सावन महीना(गीत)###


सावन आथे त मन मा,उमंग भर जाथे।

हरियर हरियर सबो तीर,रंग भर जाथे।


बादर  ले  झरथे,रिमझिम  पानी।

जिया जुड़ाथे,खिलथे जिनगानी।

मेंवा मिठाई,अंगाकर अउ चीला।

करथे झड़ी त,खाथे  माई  पिला।

खुलकूद लइका मन,मतंग घर जाथे।

सावन आथे त मन मा-------------।


भर जाथे तरिया,नँदिया डबरा डोली।

मन ला लुभाथे,झिंगरा मेचका बोली।

खेती किसानी,अड़बड़ माते रहिथे।

पुरवाही घलो ,मतंग  होके   बहिथे।

हँसी खुसी के जिया मा,तरंग भर जाथे।

सावन आथे त मन मा,---------------।


होथे जी हरेली  ले,मुहतुर तिहार।

सावन पुन्नी आथे,राखी धर प्यार।

आजादी के दिन, तिरंगा लहरथे।

भोले बाबा सबके,पीरा  ल हरथे।

भक्ति म भोला के सरी,अंग भर जाथे।

सावन आथे त मन मा--------------।


चिरई चिरगुन चरथे,भींग भींग चारा।

चलथे  पुरवाही, हलथे  पाना  डारा।

छत्ता  खुमरी  मोरा,माड़े रइथे दुवारी।

सावन महीना के हे,महिमा बड़ भारी।

बस  छाथे मया हर,हर जंग हर जाथे।

सावन आथे त मन मा--------------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

शिव ल सुमर

 शिव भोला ल अइसनो पहली घाँव मनाये के प्रयास


शिव ल सुमर


रोग डर भगा जही। काल ठग ठगा जही।

पार भव लगा जही। भाग जगमगा जही।


काम झट निपट जही। दुक्ख द्वेष कट जही।

मान शान बाढ़ही। गुण गियान बाढ़ही।।


क्रोध काल जर जही। बैर भाव मर जही।

खेत खार घर रही। सुख सुकुन डहर रही।


आस अउ उमंग बर। जिंदगी म रंग बर।

भक्ति कर महेश के। लोभ मोह लेश के।


सत मया दया जगा। चार चांद नित लगा।

जिंदगी सँवारही। भव भुवन ले तारही।।


देव मा बड़े हवै। भक्त बर खड़े हवै।

रोज शाम अउ सुबे। भक्ति भाव मा डुबे।


नीलकंठ ला सुमर। बाढ़ही सुमत उमर।

तन रही बने बने। रेंगबे तने तने।।


सोमवार नित सुमर। नाच के झुमर झुमर।

हूम धूप दे जला। देव काटही बला।।


दूध बेल पान ले। पूज शिव विधान ले।

तंत्र मंत्र बोल के। भक्ति भाव घोल के।


फूल ले मुठा मुठा। सोय भाग ला उठा।

भक्ति तीर मा रही।शक्ति तीर मा रही।।


फूल फल दुबी चढ़ा। नारियल चँउर मढ़ा।

आरती उतार ले।धूप दीप बार ले।।


शिव पुकार रोज के। भक्ति भाव खोज के।

ओम ओम जाप कर।भूल के न पाप कर।।


भूत भस्म भाल मा। दे चुपर कपाल मा।

ओमकार जागही। भाग तोर भागही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली। हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।

 सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।


रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी,फुगड़ी खो खो माते।

खुडुवा  खेले  फेंके  नरियर,होय  मया  के  बाते।

भिरभिर भिरभिर भागत हावय,बैंहा जोर सहेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली----।


सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे।

नीम डार मुँहटा मा खोंचे,दया  मया मिल गारे।

घंटी  बाजै  शंख सुनावय,कुटिया  लगे हवेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे  हवै हरेली-।


चन्दन बन्दन पान सुपारी,धरके माई पीला।

रापा  गैंती नाँगर पूजय,भोग लगाके चीला।

हवै  थाल  मा खीर कलेवा,दूध म भरे कसेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली-।


गहूँ पिसान ल सान मिलाये,नून अरंडी पाना।

लोंदी  खाये  बइला  बछरू,राउत पाये दाना।

लाल चिरैंया सेत मोंगरा,महकै फूल  चमेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।


बेर बियासी के फदके हे,रँग मा हवै किसानी।

भोले बाबा आस पुरावय,बरसै बढ़िया पानी।

धान पान सब नाँचे मनभर,पवन करे अटखेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली---।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795


हरेली तिहार के आप सबला सादर बधाई

साँप मनके पीरा(सार छंद)

 साँप मनके पीरा(सार छंद)


मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।

सबे खूँट सीमेंट छाय हे, ना साँधा ना छानी।।


जाके कती लुकावँव मैंहा, कोनो ठउर बतादौ।

भटकँव नही कहूँ कोती मैं, घर ला मोर सुखादौ।

रझरझ रझरझ गिरथे पानी, तरिया कुँवा भराथे।

मोर बिला भरका नइ बाँचे, पानी मा बुड़ जाथे।।

छत के घर मा सपटँव कइसे, दिख जाथँव आँखी मा।

उड़ा भगावँव कइसे दुरिहा, नइ हँव मैं पाँखी मा।

पानी बादर के बेरा मा, नित पेरावँव घानी-------।

मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।


कटत हवय नित जंगल झाड़ी, नइहे भोंड़ू भाँड़ी।

डिही डोंगरी परिया नइहे, देख जुड़ाथे नाड़ी।

लउठी धरे खड़े हावव सब, कइसे जान बचावौं।

आथँव ठिहा ठिकाना खोजत, चाबे बर नइ आवौं।

चाबे मा कतको मर जाथे, बिक्ख हवै बड़ मोरे।

देख डराथस मोला तैंहर,अउ मोला डर तोरे।

महुँला देवव ठिहा ठिकाना, मनुष आज के ज्ञानी।

मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

किसान के कलपना

 गीत- 


किसान के कलपना


झड़ी बादर के बेरा,,,

डारे राहु केतु डेरा,,,,

संसो मा सरत सरी अंग हे।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।



फुतकी उड़त रद्दा हे, पाँव जरत हावै।

बिन पानी बादर पेड़ पात, मरत हावै।

चुँहे तरतर पछीना,,,,,,

का ये सावन महीना,,,,

दुःख के संग मोर ठने जंग हे----।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


आसाढ़ सावन हा, जेठ जइसे लागे।

तरिया नदियाँ घलो, मोर संग ठगागे।

हाय हाय होत हावै,,,

जम्मे जीव रोत हावै,,,

हरियर धरती के नइ रंग हे------।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


बूंद बूंद बरखा बर, मैंहर ललावौं। 

झटकुन आजा, दिन रात बलावौं। 

नइ गिरबे जब पानी,,,,,

कइसे होही किसानी,,,,

मोर सपना बरत बंग बंग हे----।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday 14 August 2021

देशभक्ति

 

देशभक्ति

एक दिन के देश भक्ति (सरसी छन्द)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देशभक्ति चौदह के जागे, सोलह के छँट जाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


आय अगस्त महीना मा जब, आजादी के बेर।

देश भक्ति के गीत बजे बड़, गाँव शहर सब मेर।

लइका संग सियान मगन हे, झंडा हाथ उठाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


रँगे बसंती रंग म कोनो, कोनो हरा सफेद।

गावै हाथ तिरंगा थामे, भुला एक दिन भेद।

तीन रंग मा सजे तिरंगा, लहर लहर लहराय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


ये दिन आये सबझन मनला, बलिदानी मन याद।

गूँजय लाल बहादुर गाँधी, भगत सुभाष अजाद।

देशभक्ति के भाव सबे दिन, अन्तस् रहे समाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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2, अपन देस(शक्ति छंद)


पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।

करौं बंदना नित करौं आरती।

बसे मोर मन मा सदा भारती।


पसर मा धरे फूल अउ हार मा।

दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।

बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।

सबो खूँट बगरे अँजोरी रहे।


बसे बस मया हा जिया भीतरी।

रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।

इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।

तभो  हे  घरो घर बिना बेंस के।

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चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।

सजाके बनावौं ग रानी सहीं।

किसानी करौं अउ सियानी करौं।

अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।


वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।

करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।

फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।

वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।

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जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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3, कइसे जीत होही(सार छंद)


हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी।

जे मन चाहै ये माटी हा,होवै चानी चानी----।


देश प्रेम चिटको नइ जानै,करै बैर गद्दारी।

भाई चारा दया मया ला,काटै धरके आरी।

झगरा झंझट मार काट के,खोजै रोज बहाना।

महतारी  ले  मया करै नइ,देवै रहि रहि ताना।

पहिली ये मन ला समझावव,लात हाथ के बानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


राजनीति  के  खेल निराला,खेलै  जइसे  पासा।

अपन सुवारथ बर बन नेता,काटै कतको आसा।

मातृभूमि के मोल न जानै,मानै सब कुछ गद्दी।

मनखे  मनके मन मा बोथै,जात पात के लद्दी।

फौज  फटाका  धरै फालतू,करै मौज मनमानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


तमगा  ताकत  तोप  देख  के,काँपै  बैरी  डर मा।

फेर बढ़े हे भाव उँखर बड़,देख विभीषण घर मा।

घर मा  ये  मन  जात  पात  के,रोज मतावै गैरी।

ताकत हावय हाल देख के,चील असन अउ बैरी।

हाथ  मिलाके  बैरी  मन ले,बारे  घर  बन छानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


खावय ये माटी के उपजे,गावय गुण परदेशी।

कटघेरा मा डार वतन ला,खुदे लड़त हे पेशी।

अँचरा फाड़य महतारी के,खंजर गोभय छाती।

मारय काटय घर वाले ला,पर ला भेजय पाती।

पलय बढ़य झन ये माटी मा,अइसन दुश्मन जानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी-----।


घर के बइला नाश करत हे, हरहा होके खेती।

हारे हन इतिहास झाँक लौ,इँखरे मन के सेती।

अपन देश के भेद खोल के,ताकत करथे आधा।

जीत भला  तब कइसे होही,घर के मनखे बाधा।

पहिली पहटावय ये मन ला,माँग सके झन पानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छग

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4, बलिदानी (सार छंद)


कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।

देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।

महतारी के आन बान बर,कोन ह झेले गोली।

कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।

छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।

हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।

मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।

हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।

देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।

अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।

हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।

देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।

पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।

भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।

लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।

डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारा   मारी।

अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।

बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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5, हमर तिरंगा(दोहा गीत)


लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।

इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।

हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।

नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।

जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।

सुबे  कहाँ  संसो  हवे, नइहे  संसो   रात।

महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।

इही--------------------------------- लाज।


उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।

भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।

गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।

उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।

का का मैं बतियाँव गा, गजब भरे हे राज।

लहर------------------------------लाज।


तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।

जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।

कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।

रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।

जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।

लहर-----------------------------लाज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


स्वतंत्रता दिवस अउ आठे तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई

Sunday 8 August 2021

अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस

 अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के आप सबला सादर बधाई


जंगल म बाँस के


जंगल  म  बाँस  के,

कइसे रहँव हाँस के।

खेवन खेवन खाँध खींचथे,

चीखथे सुवाद माँस के।

------------------------।


सुरसा कस  बाढ़े।

अँकड़ू बन वो ठाढ़े।

डहर बाट ल लील देहे,

थोरको मन नइ माढ़े।

कच्चा म काँटा खूँटी,

सुक्खा म डर फाँस के।

--------------------------।


माते हे बड़ गइरी।

झूमै मच्छर बइरी।

घाम घलो घुसे नही,

कहाँ बाजे पइरी।

कइसे फूकँव बँसुरी,

जर धर साँस के---।


झुँझकुर झाड़ी डार जर,

काम के न फूल फर।

सताये साँप बिच्छी के डर,

इँहा मोला आठो पहर।

बिछे हवे काँदी कचरा,

बिजराय फूल काँस के।

--------------------------।


शेर भालू संग होय झड़प।

कोन सुने मोर तड़प।

आषाढ़ लगे नरक।

जाड़ जड़े बरफ।

घाम घरी के आगी,

बने कारण नास के।

----------------------।


मोर रोना गूँजे गाना सहीं।

हवा चले नित ताना सहीं।

लाँघन भूँखन परे रहिथौं,

सुख दुर्लभ गड़े खजाना सहीं।

जब तक जिनगी हे,

जीयत हँव दुख धाँस के।

----------------------------।


रोजे देखथों बाँस के फूल।

जिथौं गोभे हिय मा शूल।

हमर पीढ़ी आगी कस खपगे।

परदेशिया मन आगे पनपगे,

नँगा लिस जल जंगल जमीन,

हम सबला झाँस के।

-------------------------।


पाना ल पीस पीस पी,

पेट के कीरा संग,

मोर पीरा घलो मरगे।

मोर बनाये चटई खटिया,

डेहरी म माड़े माड़े सरगे।

प्लास्टिक के जुग आगे,

सब लेवै समान काँस के।

------------------------।


न कोयली न पँड़की,

झिंगरा नित झकझोरे।

नइ जानँव अँजोरी,

अमावस आसा टोरे।

न डाक्टर न मास्टर,

 मैं अड़हा जियौं खाँस खाँस के।

------------------------------------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

Friday 30 July 2021

बइरी पइरी

 बइरी  पइरी


कइसे बजथस रे पइरी बता।

मोर  पिया  के,मोर पिया के,

अब  नइ मिले  पता.......।।


पहिली सुन,छुनछुन तोर,

दँउड़त    आय     पिया।

अब   वोला    देखे   बर,

तरसत  हे  हाय   जिया।

ओतकेच   घुँघरू  हे,

ओतकेच के साज हे।

फेर काबर बइरी तोर,

बदले    आवाज   हे।

फरिहर  मोर मया ल,

झन तैं मता..........।।


का करहूँ राख अब,

पाँव    मा    तोला।

धनी मोर नइ दिखे,

संसो   होगे  मोला।

पहिरे पहिरे तोला,

पाँव   लगे   भारी।

पिया के बिन कते,

सिंगार  करे  नारी।

धनी  के   रहत  ले,

तोर मोर हे नता..।


देख नइ  सकेस,

मोर सुख पइरी।

बँधे बँधे पाँव म,

होगेस तैं बइरी।

पिया के मन अब,

काबर नइ भावस।

मया  के गीत बैरी,

काबर नइ गावस।

बुलादे पिया ल,

अब झन तैं सता....।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

Wednesday 28 July 2021

गीत-मछरी


 

गीत-मछरी


गरी म लहत हे, मछरी आनी बानी।

रझरझ गिरत हे, बड़ सावन मा पानी।।


कोमलकाल कटरंगा, केवई कटही कतला।

रुदवा रेछा रुखचग्घा, रोहू मोट्ठा पतला।।

सोंढुल सिंघी सरांगी, डड़ई डंडवा ढेसरा।

केंउ कोटरी कुप्पा, टेंगना खेगदा खेसरा।।

भाँकुड़ भेंड़ो भेर्री, भुंडा खोकसी कानी।।

रझरझ गिरत हे, बड़ सावन मा पानी।।


बामी ग्रासकाल गिनवा, मोहराली मोंगरी।

लुड्डू लुडुवा लपची, मिर्कल मुरल कोतरी।

पब्दा पढ़िना पेड़वा, बराकुड़ा तेलपिया।

बंजू बिजरवा चंदैनी, चिंगरी टोर कोकिया।

अरछा घँसरा वेला, हिनसा रावस रानी।

रझरझ गिरत हे, बड़ सावन मा पानी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(कोरबा)

Monday 12 July 2021

कला के बरगद अउ नवा कलाकार

 कला के बरगद अउ नवा कलाकार


*कला*- कला के कई प्रकार हे, गायन,वादन, लेखन, चित्रकला, मूर्तिकला, सिलाई, कढाई, बुनाई, कारीगरी आदि आदि। सबे कला ल लिख पाना सम्भव नइ हे। जीवन जीना घलो एक कला ये। कला जीवन म रंग घोरथे, अन्तस् के टूटे तार ला जोड़थे। कोनो भी कला ला बिना साधना अउ कखरो पंदोली के बने ढंग ले साध पाना सम्भव नइहे। कला समर्पण अउ साधना के पर्याय ये।


*बरगद*- बरगद एक विशाल पेड़ ये। जेखर जड़, डारा अउ पाना बनेच दुरिहा तक फइले रहिथे। बर तरी के जुड़ छाँव, बर म बइठे चिरई चिरगुन के चाँव चाँव, सबके मन ला मोह लेथे। बर  अपन बर कम फेर दूसर बर जादा उपयोगी होथे। तेखरे सेती तो बर पेड़ के उपमा कोनो महान व्यक्ति ल देय जाथे। बर सब बर होथे, हाथी ले लेके चाँटी तक सबके काम आथे। गाँव मा,बर खाल्हे कोनो एक मनखे या फेर कोनो एक जीव नही, बल्कि पूरा गाँव पलथे। अउ कहूँ कोनो बाहिर ले भटकत पहुँच जथे त उहू ल थेभा बर पेड़ ही देथे। सियान मनके पासा, लइका मनके गिल्ली भौरा-बाँटी, पंच मनके बइठका -पंचायत, बाजार हाट, खेल मदारी, बरात, नाचा गम्मत सबे बर तरी निपट जथे। चिटरा, चिरई,कुकुर, बिलई, गाय गरुवा सबके थेभा होथे बर। छोटे छोटे नार बियार, बेला घलो बर के उप्पर चढ़के मछराथे। बर के विशालता बर खाल्हे जाके बइठे मा सहज पता लगथे।


*नवा कलाकार*- कला के रद्दा मा नवा रेंगइया कलाकार। नवा कलाकार के अन्तस् मा नव आसा अउ विश्वास के संगे संग सीखे के ललक अउ साधना करे के शक्ति होथे। गरब गुमान ले परे होके, कुछु भी नवा मिल जाय, वोला अपनाय के कला नवा कलाकार मा होना जरूरी हे। नवा कलाकार मा साधना अउ समर्पण के संगे संग सबले गुण ज्ञान ग्रहण करे के कला होना चाही। नवा कलाकार उम्मर मा नवा होय यहू जरूरी नइहे, वो हर व्यक्तिव जेन कोनो भी कला के क्षेत्र मा नेवरिया हे, नवा कलाकार आय।


*कला के बरगद अउ नवा कलाकार*

         नवा कलाकार भले नवा या कम उम्मर के हो सकथे, फेर  *कला के बरगद* बने बर कलाकार ल अपन अनुभव अउ गुण ज्ञान के डारा खांधा ले सजके विशाल अउ विस्तृत बने बर पड़थे। जइसे बरगद छोटे बड़े अउ तोर मोर नइ चिन्हे वइसने कला के बरगद के व्यक्तिव होना चाही। कला के बरगद उही आय जेन अन्य कलाकार मन बर थेभा बने, उँखर कला ल निखारे, उहू मन ल अपन कस बनाये। कला के बरगद कहे ले महानता के संगे संग गुरुत्व के बोध घलो होथे। काबर कि गुरु घलो अपन चेला ला सदा बढ़ाये बर समर्पित रहिथे। अंतर सिर्फ अतकी हे गुरु के छाँव ओखर शिष्य भर बर होथे, फेर बरगद के छाँव ठाँव, डहर चलत राहगीर बर घलो होथे। बरगद जइसन विशाल हिरदय वाले कलाकार, कला के जतन अउ बढ़वार बर सदा समर्पित रहिथे।


*कला के बरगद दाऊ रामचन्द्र देशमुख*- वइसे तो हमर राज मा एक ले बढ़के एक कलाकार अउ महान हस्ती होइन, जिंखर उदिम ले कला जगत आज सरलग जगमगावत हे। आज घलो बरगद कस विशाल हिरदय वाले कलाकार हें, जेमन सतत रूप ले कला के बढ़वार मा लगे हे, तभो एक नाम सुरता आथे, दाऊ रामचन्द देशमुख जी के। जेन कला बर अपन तन मन अउ धन सबो ल समर्पित कर दिन। उँखर बरगद कस विशाल हिरदय के तरी मा कतको कलाकार मन फलिन फुलिन। देखमुख जी बचपन ले नाचा मा रुचि रखत रहिन, अउ  छत्तीसगढ़ के कला संस्कृति ल जगर मगर करे बर नाचा बर बिकट उदिम करिन। उँखरे प्रयास ले बड़े बड़े कलाकार मन एक मंच मा जुरियाइन, अउ कला के अलख जगाइन। कला के बरगद बने बर   कलाकार होना जरूरी नइहे, जरूरी हे त वो विशाल हिरदय जे कला ल पूजे, अपन सोच ले वोला बढ़ाये अउ बने कलाकार ल पहिचाने। देशमुख जी खुद नाचिस न गाइस, पर चँदैनी गोंदा के स्थापना करके सरी दुनिया ला नाचाइस अउ गवाइस। देशमुख जी के कल्पना ला साकार करे बर छहत्तीसगढ़ भर के कलाकार मन उँखर साथ दिन। आज घलो उँखर योगदान ल नइ भुलाये जा सके।

          

                    यदि घर मा ददा ल बर के संज्ञा देबो त कोनो अतिशयोक्ति नइ होही। काबर कि घर बर ददा सदा बर पेड़ कस उपकार करथे। लइका लोग के हर सुख दुख के ध्यान रखथे। भले ददा पढ़े बर नइ जाने फेर लइका मनला ज्ञानवान बनाये बर सतत महिनत करथे। वइसने कला के बरगद  घलो कोनो बड़का कलाकार होय, ये जरूरी नइहे। ओखर समर्पण अउ पावन सोच ही काफी हे।जेखर ले नान्हे बड़े जम्मो कला साधक लाभांवित होथे।


               कलाकार, कला पाके एक महान व्यक्तिव या कलाकार बन सकथे, फेर कला के बरगद बने बर वोला कला के क्षेत्र मा पूरा समर्पित होय बर पड़थे, सतत कला के बढ़वार बर उदिम करेल लगथे, अउ अन्य कलाकार मन ल घलो बढ़ाये बर पड़थे। आज घलो सबे कला ह बराबर फलत फुलत हे। सबे कला के गुरु मन सतत रूप ले गुण अउ ज्ञान बाँटत हें। बर पेड़ कतको विशाल हो जाय जस के तस रहिथे अउ परोपकार करथे, वइसने कला म सिद्धहस्त बरगद कस विशाल हृदय वाले कलाकार ल कला के बढ़वार मा समर्पित रहना चाही। 


                वइसे तो बरगद के छाँव मा अउ बरगद तो का कोनो आने पेड़ घलो नइ पनपे, फेर ओहर अतिक विशाल  अउ कालजयी रथे कि जनम जनम सबके काम आ सकथे। ओखर तना घलो जड़ बनके धरती मा गड़थे। अब कहूँ बरगद के ये स्थिति ला आधार बनाके कहिबों कि, कला के बरगद तरी घलो अइसने कुछु नइ पनपे, त हमर नादानी होही। बरगद एक प्रतीक आय जे मनखे के विशाल निर्मल हिरदय, अउ परोकारी सुभाव अउ समर्पण ल देखाथे। जे सिर्फ अपने तक सिमित हे, त वो बरगद कइसे होइस। वोला वो क्षेत्र मा बरगद के उपमा देना ही बेकार हे, हाँ भले वो महान कलाकार हो सकथे, फेर कला के बरगद नही। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

आ रे!बादर

 आ रे!बादर


अस  आड. असाड. म, फभे  नही|

नइ गिरही पानी,त दुख ल कबे नही|

तोपाय हे ढेला म,मोर सपना मोर आस|

तोर अगोरा हे रे! बादर,नही ते हो जही नास|

छीत दे चुरवा-चुरवा करके,

बीजा जाम जाय|

मोर हॉड़ी के इही सहारा,

सब कोई इहिच ल खाय|

खेत बनगे मरघट्टी,

मुरदा बनगे बीजा|

पानी छीत जिया ले,

कइसे मनाहू हरेली तीजा|


मोला सरग नही,बस फल चाही,

जांगर अऊ नांगर के पूरती|

लहलहाय रहे मोर खेती-खार,

तन-बदन म रही  फुरती|

मैं सपना सँजोथँव,

बस आस म खेती के|

लेथो करजा म कपड़ा-लत्ता,

टिकली-फुंदरी बेटी के|

मोर ले जादा कोन भला,

तोर नाम लेथे|

फेर तोर ले जादा तो सेठ-साहूकार मन,

मसका-पालिस वाले ल देथे|


पानी के बाँवत,पानी के बियासी,

पानी के पोटरई-पकई रे !बादर|

तोर रूप देख घरी-घरी घुरघुरासी लगथे,

का नइ दिखे तोला मोर करलई रे !बादर|

गोहार लगात हँव मैं,

गली-गली बेटा-बेटी संग|

सबो खेलथे मोर संग ,

झन खेल तैं, मोर खेती संग|

सुन के मोर कलपना,

लेवाल बन आय हे ब्यपारी|

बचाले बेचाय ले बॉचे भुँइया,

इही मोर भाई-बहिनी,

इही मोर बाप-महतारी|

भले मरे के बाद ,

फेक नरक म घानी दे दे|

फेर जीते जीयत झन मार,

मोर सपना ल समय म पानी दे दे|


        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

           बाल्को(कोरबा)

           ९९८१४४१७९५

Sunday 11 July 2021

रथ यात्रा(गीत)

 रथ यात्रा(गीत)


अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।

कृष्ण  सुभद्रा   देवी   बइठे,बइठे  हे  बलराम।


चमचम चमचम रथ हा चमके,ढम ढम बाजय ढोल।

जुरे  हवैं  भगतन  बड़  भारी,नाम  जपैं  जय  बोल।

झूल झूल के रथ सब खीँचय,करै कृपा भगवान।

गजा - मूंग  के  हे  परसादी,बँटत  हवै  पकवान।

तीनों भाई  बहिनी लागय,सुख के सुघ्घर घाम।

अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।


दूज अँसड़हूँ पाख अँजोरी,तीनों होय सवार।

भगतन मन ला दर्शन देवै,बाँटय मया दुलार।

सुख अउ दुख के आरो लेके,सबके आस पुराय।

भगतन मनके दुःख हरे बर,अरज दूज मा आय।

नाचत  गावत  मगन सबे हें, रथ के डोरी थाम।

अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


जय जगन्नाथ

Monday 5 July 2021

घरोधा

 

######गीत######

अपनेच घरौंदा ले,,,
मैहा बहिरात हौं..|
आंसू म फिले अँचरा ल,,,
जिया बार के सुखात हौं..|

मोर टुटहा पाटी अउ
दोलगाहा खटिया,|
ससन भर नींद मोला,
देत रिहिस रतिहा |
मोर खदर के झिपारी,
अउ खपरा के छानी |
पियास बुझात रिहिस,
करसा के जुड़ पानी |
फेर दुतल्ला मकान....
अब मय नइ समात हौं ......|
आंसू म फिले............|

मोर खेत खार परिया हे|
गिन के बचे हरिया हे|
कोठी कोठा उन्ना हे,
भाग घलो करिया हे|
नाम के किसन्हा,
मालिक कोनो असल हे|
धान गंहू चना नही,
बोये समय के फसल हे|
जेन ल देव सहारा...
ओखरे दुख ल पात हौं....|
आंसू म फिले................|
                       जीतेन्द्र वर्मा
                  बाल्को (कोरबा)

Wednesday 23 June 2021

कबीर साहेब(कुंडलियाँ छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कबीर साहेब(कुंडलियाँ छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


धरहा करके लेखनी, कहिस बात ला सार।
सत के जोती बार के, दुरिहाइस अँधियार।
दुरिहाइस अँधियार, सुरुज कस संत कबीरा।
हरिस आन के पीर, झेल के खुद दुख पीरा।
एक तुला सब तोल, बताइस बढ़िया सरहा।
करिस ढोंग मा वार, बात कहिके बड़ धरहा।

बानी संत कबीर के, दुवा दवा अउ बान।
साधु सुने सत बात ला, लोभी तोपे कान।
लोभी तोपे कान, कहे जब गोठ कबीरा।
लोहा होवय सोन, चमक खो देवय हीरा।
तन मन निर्मल होय, झरे जब अमरित पानी।
तोड़य गरब गुमान, कबीरा के सत बानी।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Wednesday 16 June 2021

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बरसात मा लइका


लइका मन हा नाँचथें, होथे जब बौछार।

माटी मा जाथें सना, रोक रोक जल धार।।

रोक रोक जल धार, खेलथें चिखला पानी।

कखरो सुनयँ न बात, बरजथें दादी नानी।

जायँ कलेचुप खोर, हेर के राचर फइका।

पावयँ जब बरसात, मगन सब नाँचयँ लइका।


पावै जब बरसात ला, लाँघै घर अउ द्वार।

माटे के रँग मा रचे, रोकै जल के धार।

रोकै जल के धार, गली मा भागै पल्ला।

संगी सब सकलायँ, मचावै नंगत हल्ला।

खेलै हँस हँस खेल, पात कागज बोहावै।

नाचै गावै खूब, मजा बरसा के पावै।।


अबके लइकन मन कहाँ, बारिस मा इतराय।

जुड़ जर के डर हे कही, घर भीतर मिटकाय।

घर भीतर मिटकाय, भिंगै का कुरथा चुन्दी।

का कागज के नाव, खेल का घानी मुन्दी।

हवै मुबाइल हाथ, सहारा टीवी सबके।

होगे हें सुखियार, देख लइकन मन अबके।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Monday 14 June 2021

आषाढ़ मा उगे लमेरा-रोला छ्न्द




आषाढ़ मा उगे लमेरा-रोला छ्न्द

आये जब आषाढ़, रझारझ बरसे पानी।
झाँके पीकी फोड़, लमेरा आनी बानी।
किसम किसम के काँद, नार बन बिरवा जागे।
नजर जिंहाँ तक जाय, धरा बस धानी लागे।

बम्हरी बगई बेल, बेंमची अउ बोदेला।
बच बगनखा बकूल, बोदिला बदउर बेला।
बन तुलसी बोहार, जिमीकाँदा अउ जीरा।
खदर खैर खरबूज, खेड़हा कुमढ़ा खीरा।

काँसी कुसुम कनेर, कुकुरमुत्ता करमत्ता।
कँदई अउ केवाँछ, भेंगरा फुलही पत्ता।
कुँदरू कुलथी काँस, करेला काँदा कूसा।
कर्रा कैथ करंज, करौंदा करिया रूसा।

सन चिरचिरा चिचोल, चरोटा अउ चुनचुनिया।
लटकन लीम लवांग, लजोनी लिमऊ लुनिया।
गूमी गुरतुर लीम, गोड़िला गाँजा मुनगा।
गुखरू गुठलू जाम, गोमती गोंदा झुनगा।

दवना दुग्धी दूब, मेमरी अउ मोकैया।
धतुरा धन बोहार, बजंत्री बाँस चिरैया।
साँवा शिव बम्भूर, सेवती सोंप सिंघाड़ा।
आदा अंडी आम , आँवला अउ गोंटारा।

माछी मुड़ी मजीठ, मुँगेसा मूँग मछरिया।
कउहा कँउवा काँद, केकती अउ केसरिया।
बन रमकलिया छींद, कोलिहापुरी कलिंदर।
रक्सी रंगनबेल, खेकसी पोनी पसहर।

भसकटिया दसमूर, पदीना पोई पठवन।
गुलखैरा गुड़मार, सेनहा साजा दसवन।
गुड़सुखडी गिन्दोल, गोकर्णी गँउहा गुड़हर।
फरहद फरसा फूट, फोटका परसा फुड़हर।

देवधूप खम्हार, मोखला अरमपपाई।
उरदानी फन्नास, सारवा अउ कोचाई।
गुढ़रू चिनिया बेर, सन्दरेली सिलियारी।
उरईबूटा भाँट, खोटनी रखिया ज्वाँरी।
 
हँफली हरदी चेंच, डँवर धनधनी अमारी।
बाँदा बर बरियार, मेंहदी बाँकसियारी।
चिरपोटी चनसूर, कोदिला कोपट कसही।
रागी रामदतोन, कोचिला केनी कटही।

बिच्छीसुल शहतूत, कोरई अउ कोलीयारी।
लिली सुदर्शन फर्न, सबे ला भावै भारी।
लिख पावौं सब नाम,मोर बस में नइ भैया।
बरसा घड़ी अघाय, धरा सँग ताल तलैया।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Thursday 10 June 2021

अगोरा असाड़ के हे

 अगोरा असाड़ के हे


बइला मेछरात हे, असकटात हे नाँगर ।

खेती-किसानी बर, ललचात हे  जाँगर।

कॉटा-खूटी  बिनागे  हे।

तन मन मा उमंग हमा गेहे।

बँधा गेहे मुही ,जेन मेड़-पार के हे।

अब तो अगोरा,असाड़ के हे।


बिजहा लुकलुकात हे, कोठी ले खेत  जाय बर।

मन करत हे मेड़ म, चटनी बासी-पेज खाय बर।

खेत कोती मेला लगही अब।

बन दूबी कांदी जगही अब।

पीये बर पानी पपीहा कस भुइयाँ,

खड़े मुहँ फार के हे |

अब तो अगोरा असाड़ के हे|


झँउहा-टुकनी,रापा-कुदारी।

अगोरत हे अपन अपन पारी ।

बड़का बाबू सधाये हे धान जोरे बर।

नान्हे नोनी सुर्रह्त हे टोकान कोड़े बर।

तियार हे खेले बर खेती के जुआ,

जे किसान पऊर सब चीज हार गेहे।

अब तो अगोरा असाड़ं के हे।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" धरती दाई

 लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


धरती दाई


जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।

पेड़ पात बिन दिखे बोंदवा, धरती के ओना कोना।।


टावर छत मीनार हरे का, धरती के गहना गुठिया।

मुँह मोड़त हें कलम धरइया, कोन धरे नाँगर मुठिया।

बाँट डरे हें इंच इंच ला, तोर मोर कहिके सबझन।

नभ लाँघे बर पाँख उगा हें, धरती मा रहिके सबझन।

माटी ले दुरिहाना काबर, आखिर हे माटी होना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।।


दाना पानी सबला देथे, सबके भार उठाय हवै।

धरती दाई के कोरा मा, सरी संसार समाय हवै।

मनखे सँग मा जीव जानवर, सब झन ला पोंसे पाले।

तेखर उप्पर आफत आहे, कोन भला ओला टाले।

धानी रइही धरती दाई, तभे उपजही धन सोना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।


होगे हे विकास के सेती, धरती के चउदा बाँटा।

छागे छत सीमेंट सबे कर, बिछगे हे दुख के काँटा।

कभू बाढ़ मा बूड़त दिखथे, कभू घाम मा उसनावै।

कभू काँपथे थरथर थरथर, कभू दरक छाती जावै।

देखावा धर मनुष करत हे, स्वारथ बर जादू टोना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

तुलसीदास अउ छत्तीसगढ़-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 तुलसीदास अउ छत्तीसगढ़-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                   गोस्वामी तुलसीदास जी हमर छत्तीसगढ़ राज म रामचरित मानस के माध्यम ले गांव गांव अउ घर घर म पूज्यनीय हे, कोनो परब-तिहार, छट्ठी बरही, मरही हरनी सबे दुख सुख के बेरा म गोस्वामी जी के पावन कृति"रामचरितमानस" घरो घर म पढ़े सुने जाथे। चाहे कोनो गाँव होय या शहर जमे कोती गाँव गाँव, पारा पारा म एक दू ठन रमायण मण्डली खच्चित मिलथे। तुलसीकृत रामचरित के दोहा चौपाई जमे छत्तीसगढ़िया मनके अंतर आत्मा म समाय हे, ते पाय के कभू अइसे नइ लगिस कि गोस्वामी जी आन कोती के आय, सदा अइसे लगथे, कि हमरे अपने राज के आय। गोस्वामी महराज ह हम सब छत्तीसगढ़िया मन ल दुर्लभ प्रसाद देहे, अउ हम सबके दिलो दिमाक म सदियों ले राज करत आवत हे,, अउ अवइया समे घलो राज करही। तुलसीकृत रामचरित मानस अउ अवधी म लिखे अन्य ग्रंथ मन छत्तीसगढिया मन ल सहज ही समझ आ जथे, काबर कि माता कौशल्या के मइके छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी और अयोध्या के अवधी म एक दुसर के राज म अवई जवई ले दुनो भाषा आपस म चिपक गे रिहिस। यहू कारण तुलसीदास की के अवधी म रचित ग्रंथ ह छत्तीसगढ़िया मन बर अटपटा नइ लगय। तुलसीदास जी के जयंती छत्तीसगढ़ म धूमधाम से मनाये जाथे, ये दिन राम कथा पाठ अउ भजन कीर्तन जम्मो कोती होथे। सिरिफ छत्तीसगढ़ मन ही नही बल्कि पूरा भारत वर्ष तुलसीदास जी के राम चरित रूपी भव तरे बर डोंगा ल पाके कृतार्थ हें।

                  कथे कि तुलसीदास जी महाराज प्रभु कृपा अउ अपन आत्म शक्ति ले कलयुग के मनखे मन बर भगसागर तरे बर डोंगा(रामचरित मानस) के रचना करिन। तुलसीदास जी ल महर्षि बाल्मीकि जी के अवतार घलो माने जाथे। संगे सँग यहू कहे जाथे कि तुलसीदास जी ल शिव पार्वती, बजरंगबली के संगे संग भगवान राम, लक्ष्मण अउ जॉनकी समेत दर्शन देय रिहिस।


*चित्रकूट की घाट पर, भये सन्तन की भीड़।*

*तुलसीदास चन्दन घँसे, तिलक देत रघुवीर।*


 गोस्वामी जी के रचना म दोहा चौपाई अउ कतको प्रकार के छ्न्द के माध्यम से छत्तीसगढ़ सँउहत शोभा पाथे। पुनीत ग्रंथ ल पढ़के अइसे लगथे कि तुलसीदास जी महाराज छत्तीसगढ़ म घूम घूम के रामचरित मानस के रचना करे हे। भगवान राम अपन वनवास के बनेच समय छत्तीसगढ़ म गुजारे हे।जुन्ना समय म छत्तीसगढ़ दण्डकारण्य कहलावै, अउ तुलसीदास जी महाराज कतकोन बेर अपन रचना म इही नाम ल सँघेरे हे-


*दण्डक बन प्रभु कीन्ह सुहावन।जन मन अमित नाम किये पावन*


तुलसीदास जी महाराज रामचरित मानस के रचना करत बेरा छत्तीसगढ़ ल अपन अंतरात्मा ले देखे हे। तभे तो इहाँ के संत मुनि-दीन दुखी मनके पीरा ल हरत भगवान राम ल देखाय हे।उत्तर छत्तीसगढ़ म सरभंग ऋषि के आश्रम म पहुँचे के चित्रण गोस्वामी जी के रचना म मिलथे----


*तुरतहि रुचिर रूप तेहि पावा।देखि दुखी निज धाम पठावा*

*पुनि आए जहँ मुनि सरभंजा।सुंदर अनुज जानकी संगा*


पुत्र यज्ञ बर छत्तीसगढ़ ले सृंगी ऋषि के अयोध्या जाय के वर्णन, अउ श्री राम के  सिहावा पर्वत म बाल्मीकि आश्रम आय के वर्णन , गोस्वामी तुलसीदास जी अपन महाकाव्य म करे हे-

*सृंगी ऋषिहि वशिष्ट बोलावा। पुत्र काम शुभ यज्ञ करावा।*


*देखत बन सर सैल सुहाये।बाल्मीकि आश्रम प्रभु आये।*


येखर संगे संग गोस्वामी तुलसीदास जी ह, सिहावा पर्वत अउ महानदी के पावन जल के घलो बड़ मनभावन ढंग ले चित्रण करे हे-


*तब रघुवीर श्रमित सिय जानी। देखि निकट बटु शीतल पानी।*

*तहँ बसि कंद मूल फल खाई। प्रात नहाइ चले रघुराई।*


*राम दीख मुनि वायु सुहावन। सुंदर गिरि कानन जलु पावन*

*सरनि सरोज विटप बन फूले।गूँजत मंजु मधुप रस भूले।*


भगवान राम के आय ले, सन्त मन के संगे संग,,दण्डक बन के जीव जानवर मनके मनोदशा देखावत तुलसीदास जी लिखथे---


*खग मृग विपुल कोलाहल करही।बिरहित बैर मुदित मन चरही।*

*नव पल्लव कुसुमित तरु नाना।चंचरीक चटली कर गाना।*

*सीतल मंद सुगंध सुभाउ।सन्तत बटइ मनोहर बाउ।*

*कूह कूह कोकिल धुनि करही।सुनि रव सरस ध्यान मुनि टरही।*

*चक्रवाक बक खग समुदाई।देखत बनइ बरनि नहि जाई।*


न देखत बने, न बरनत, गोस्वामी जी के अइसन पंक्ति देखत कभू नइ लगे कि गोस्वामी जी दण्डक बन के शोभा ल आँखी म नइ देखे होही।


तुलसीदास जी महराज महानदी के तट म भगवान के रद्दा जोहत शबरी माता के घलो कथा बताये हे, राम जी के दर्शन माता शबरी पाय हे अउ संग म नवधा भक्ति के धारा घलो बहे हे-


*ताहि देइ गति राम उदारा।शबरी के आश्रम प्रभु धारा*

(पक्षी राज ल परम् गति देय के बाद प्रभु राम जी शबरी के आश्रम घलो पहुँचिस।)


तुलसीदास जी महराज शबरी के हाथ ले भगवान राम ल कंद मूल फल देय के घलो बात केहे हे-


*कंद मूल फल सुरस अति, दिए राम कहुँ आनि।*

*प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि*


जंगल म निवास करत दीन दुखी मुनि जन मनके रक्षा बर भगवान राम ल असुरन मन ले लड़े के बात घलो गोस्वामी जी कहे हे, रेंड नदी के तट म बसे रक्सगन्डा नामक जघा, खरौद म खरदूषण, राक्षसराज विराट, अउ मरीज के सँघार के घलो बात दण्डक बन ले जुड़े हे---


*दंडक बन पुनीत प्रभु करहू।उग्र साप मुनिवर कर हरहू*

*बास करहु तहँ रघुकुल राया। कीजे सकल मुनिह पर दाया।*


गोस्वामी तुलसीदास जी के महाकाव्य ले सहज ही पता लगथे कि ज्यादातर अरण्य कांड के घटना दण्डक बन याने छत्तीसगढ़ ले जुड़े हे। जेमा- पंचवटी निवास, खरदूषण वध, मारीच प्रसंग, सीताहरण, शबरी कृपा आदि


 वइसे तो आने आने  राज के मनखे मन पंचवटी ल अपन अपन क्षेत्र (मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र,उत्तराखण्ड) म होय के बात करथे, फेर सीताबेंगरा, जोगीमारा गुफा म स्थित  लक्षमण गुफा अउ लक्षमण रेखा के साथ साथ गोस्वामी तुलसीदास जी के कतको चौपाई , अउ घटना क्रम जेमा, मारीच वध, खरदूषण वध, आदि छत्तीसगढ़ म होय के पुख्ता सबूत देथे-


*पंचवटी बसि श्री रघुनायक। करत चरित सुर मुनि सुखदायक।*


सूर्पनखा अपन नाक कान कटे के बाद खरदूषण ल जाके कइथे-

*खरदूषण पहि गइ बिलपाता। धिग धिग तव पौरुष बल भ्राता।*


*धुँवा देखि खरदूषण केरा।जाइ सुपरखा रावण केरा।*


एक सुनत जानकारी अनुसार अपन जीवन के आखिर समय म लवकुश जन्मस्थली म तीन दिन बर गोस्वामी जी छत्तीसगढ़ आये रहिन अउ उँहे अपन कृति कवितावली के तीन ठन छ्न्द ल सिरजाइन। रामचरित मानस ल पढ़त सुनत अइसे लगथे कि तुलसीदास जी ह छत्तीसगढ़ म ही रहिके, छत्तीसगढ़ी संग मिलत जुलत भाषा म छत्तीगढ़िया मनके कल्याण बर रामचरित मानस के रचना करे हे। छत्तीसगढ़ ल रासमय करे म गोस्वामी जी के अहम योगदान हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

जय हनुमान-कुंडलियाँ छंद

 जय हनुमान-कुंडलियाँ छंद


भारी आहे आपदा, सबे हवै हलकान।

हाथ जोड़ सुमिरन करौं, दुरिहावव हनुमान।

दुरिहावव हनुमान, काल बनगे कोरोना।

शहर कहँव का गाँव, उजड़गे कोना कोना।

सब होगे मजबूर, खुशी मा चलगे आरी।

का विकास विज्ञान, सबे बर हे जर भारी।।


चंदा ला लेहन अमर, लेहन सूरज जीत।

कोरोना के मार मा, तभो पड़े हन चीत।

तभो पड़े हन चीत, सिरागे गरब गुमानी।

घर भीतर हन बंद, पियत हन पसिया पानी।

मति गेहे छरियाय, लटकगे गल मा फंदा।

टार रात अँधियार, पवन सुत बन आ चंदा।।


चारो कोती मातगे, हाल होय बेहाल।

सुरसा कस मुँह फार दिस, कोरोना बन काल।

कोरोना बन काल, लिलत हे येला वोला।

अइसन आफत देख, काँप जावत हे चोला।

आजा हे हनुमान, दुखी जन के सुन आरो।

नइ आवत हे काम, नता धन बल गुण चारो।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा(छग)


श्री हनुमान जयंती के आप ला सादर बधाई।।।

सपरिवार सदा स्वस्थ सुखी रहव।।।

ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*

 ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


पैदा होवत पर निकलगे।

फूल के बिन फर निकलगे।1


बाहिरी मा खोज होइस।

चोर घर भीतर निकलगे।2


दू भगाये लड़ते रहिगे।

पेट तीसर भर निकलगे।3


सर्दी अउ खाँसी जनम के।

आज बड़का जर निकलगे।4


घुरघुरावत जी रिहिस बड़।

हौसला पा डर निकलगे।5


गाय गरुवा मन घरे के।

सब फसल ला चर निकलगे।6


जेन ला झमझेन दाता।

साँप वो बिखहर निकलगे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

मजबूर मैं मजदूर(रोला छंद)

 मजबूर मैं  मजदूर(रोला छंद)


करहूँ का धन जोड़, मोर तो धन जाँगर ए।

गैंती  रापा  संग , मोर   साथी   नाँगर  ए।

मोर  गढ़े  मीनार, देख   लौ  अमरे  बादर।

मिहीं  धरे  हौं  नेंव, पूछ लौ जाके घर घर।


भुँइयाँ ला मैं कोड़, ओगराथँव पानी जी।

जाँगर  रोजे  पेर,धरा  करथौं  धानी  जी।

बाँधे हवौं समुंद,कुँआ नदियाँ अउ नाला।

बूता  ले दिन  रात,हाथ  उबके  हे छाला।


सच  मा हौं मजबूर,रोज महिनत कर करके।

बिगड़े  हे  तकदीर,ठिकाना  नइ   हे  घर के।

थोरिक सुख आ जाय,बिधाता मोरो आँगन।

महूँ  पेट भर खाँव, पड़े  हावँव बस  लाँघन।


घाम  जाड़  आसाड़, कभू नइ  सुरतावँव मैं।

करथों अड़बड़ काम,फेर फल नइ पावँव मैं।

हावय तन मा जान,छोड़ दँव महिनत कइसे।

धरम  करम  हे  काम,पूजथँव   देबी  जइसे।


जुन्ना कपड़ा ओढ़, ढाँकथों करिया  तन ला।

कभू जागही भाग, मनावत रहिथों मन ला।

रिहिस कटोरा हाथ, देख  ओमा  सोना हे।

भूख  मरँव  दिन  रात, भाग मोरे रोना  हे।


आँधी कहुँती आय, उड़ावै घर हा मोरे।

छीने सुख अउ चैन, बढ़े डर जर हा मोरे।

बइठे बइठे खाँव, महूँ हा चाहौं सबदिन।

फेर चँउर ना दार, बितावौं बस दिन गिनगिन।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

मजदूर दिवस अमर रहे🙏🙏

सन्त कवि कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़

 सन्त कवि कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़


                   संत कवि कबीर दास जी के नाम जइसे ही हमर मुखारबिंद म आथे, त ओखर जीवन-दर्शन, साखी-शबद अउ जम्मों सीख सिखौना नजर आघू झूल जथे। *वइसे तो कबीरदास जी के अवतरण हमर राज ले बाहिर होय रिहिस, तभो ले, सन्त कवि कबीर दास जी अउ ओखर शिक्षा दीक्षा हमर छत्तीसगढ़ म अइसे रचबस गेहे, जेला देखत सुनत कभू नइ लगिस कि कबीरदास जी आन राज के सिध्द रिहिन।* कबीर दास जी के नाम छत्तीसगढ़ भर म रोज सुबे शाम गूँजत रहिथे। इहाँ के बड़खा आबादी कबीरपंथी हें, जेला कबीरहा घलो कहिथें,येमा कोनो जाति विशेष नही, बल्कि सबे जाति धरम के मनखे मन कबीर साहब के पंथ ल स्वीकारे हें। छत्तीसगढ़ ल कबीरमय करे म कबीर दास जी के पट चेला धनी धरम दास(जुड़ावन साहू) जी के बड़खा योगदान हे। सुने म मिलथे कि , एक बेर कबीरदास जी नानक देव संग पंथ के प्रचार प्रसार बर छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा म अपन पावन पग ल मढ़ाये रहिस हे, उही समय ,जुड़ावन साहू जी कबीरदास जी ले अतका प्रभावित होइस कि अपन जम्मों धन दौलत ल कबीरदास के चरण कमल म अर्पित कर दिन, अउ ओखर दास बनगिन(जुड़ावन ले दीक्षा पाके धरम दास होगिन)। अउ हमर परम् सौभाग्य कि धनी धरम दास जी महाराज अपन गद्दी छत्तीसगढ़ म बनाइन, अउ इँहिचे रहिके कबीरपंथ ल आघू बढ़ाइन, अउ छत्तीगढ़िया मन अड़बड़ संख्या म जुड़िन घलो। धनी धरम दास जी ह कबीर के मुखाग्र साखी शब्द मन ल अपन कलम म ढालिस, ओ भी  हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म। वइसे तो कबीरदास जी के भाषा  ल पंचमेल खिचड़ी या सधुक्कड़ी कहे जाथे, तभो ओखर प्रकशित पोथी म छत्तीसगढ़ी के प्रभाव दिखतेच बनथे--


धर्मदास के कुछ छतीसगढ़ी पदः-


मैं तो तेरे भजन भरोसो अविनाशी

तिरथ व्रत कछु नाही करे हो

वेद पड़े नाही कासी

जन्त्र मन्त्र टोटका नहीं जानेव

नितदिन फिरत उदासी

ये धट भीतर वधिक बसत हे

दिये लोग की ठाठी

धरमदास विनमय कर जोड़ी

सत गुरु चरनन दासी

सत गुरु चरनन दासी

**

आज धर आये साहेब मोर। 

हुल्सि हुल्सि घर अँगना बहारौं, 

मोतियन चऊँक पुराई। 

चरन घोय चरनामरित ले हैं 

सिंधासन् बइ ठाई। 

पाँच सखी मिल मंगल गाहैं, 

सबद्र मा सुरत सभाई।

**

संईया महरा, मोरी डालिया फंदावों। 

काहे के तोर डोलिया, काहे के तोर पालकी 

काहै के ओमा बाँस लगाबो 

आव भाव के डोलिया पालकी 

संत नाम के बाँस लगावो 

परेम के डोर जतन ले बांधो, 

ऊपर खलीता लाल ओढ़ावो 

ज्ञान दुलीचा झारि दसाबो, 

नाम के तकिया अधर लगावो 

धरमदास विनवै कर जोरी, 

गगन मंदिर मा पिया दुलरावौ।"


ये पद मन पूर्णतः कबीरदास जी ले ही प्रभावित हे,


              धनी धरम दास जी के जनम घलो छत्तीसगढ़ ले इतर मध्यप्रदेश(उमरिया) म होय रहिस, फेर वो जुन्ना समय म मध्यप्रदेश के  मेड़ो तीर के गांव  सँग गौरेला पेंड्रा के जम्मो इलाका बिलासपुर के सँग जुड़े रहय, तेखर सेती धनी धरमदास जी म छत्तीगढ़िया पन कूट कूट के भरे रिहिस। अउ जब कबीर के साखी शबद रमैनी मन ल धनी धरम दास जी पोथी म उतारिन, त वो  जम्मों छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म सहज उतरगे। 

                   धनी धरम दास जी के परलोक गमन के बाद, ओखर सुपुत्र चूड़ामणि(मुक्तामणि नाम साहेब) साहब घलो छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के गद्दी ल सँभालिन, अउ कोरबा जिला के कुदुरमाल गाँव म अपन गद्दी बनाइन, कुदुरमाल के बाद कबीर गद्दी परम्परा आघू बढ़त गिस अउ रतनपुर, मण्डला, धमधा, सिंगोढ़ी, कवर्धा म घलो गुरुगद्दी बनिस। चूड़ामणि साहेब के बाद ओखर सुपुत्र सुदर्शन नाम साहेब रतनपुर म गुरुगद्दी परम्परा के निर्वहन करिन, तेखर बाद कुलपति नाम साहेब, प्रमोध नाम साहेब, केवल नाम साहेब -----आदि आदि गुरु मनके सानिध्य म कबीरपंथ छत्तीसगढ़ म फलन फूलन लगिस। *गुरुगद्दी के 12वा  गुरु महंत अग्रनाम साहेब ह दामाखेड़ा म धनी धरम दास जी महाराज के मठ सन 1903 म स्थापित करिन, जिहाँ आजो कबीरपंथी मनके विशाल मेला भराथे।* वइसे तो कबीर पंथ के मुख्यालय सन्त कवि कबीरदास जी के नाम म बने जिला कबीरधाम जिला म हे, फेर कबीर पंथी मन छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा म समाये हें। 

                   धनी धरम दास जी ल दक्षिण के गुरुगद्दी के कमान सौपत बेरा कबीरदास जी भविष्यबानी करे रिहिन कि, धरम दास जी के नेतृत्व म कबीरपंथ खूब  फलही फुलही, अउ उही होइस घलो। *धनी धरम दास जी, कबीर पंथ के 42 गुरुगद्दी के स्वामी मनके नाम लिख के चल देहे। वर्तमान म 14 वाँ गुरुगद्दी के स्वामी प्रकाशमुनि नाम साहेब जी हे।* छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी मन कबीरदास जी महाराज के नीति नियम ल हृदय ले स्वीकार करथें, अउ सुख दुख सबे बेरा कबीरदास जी महाराज के नाम लेथें। छत्तीसगढ़ म कबीरपंथी समुदाय म चौका आरती के परम्परा हें, जेमा कबीर साहेब के साखी शबद गूँजथें। कबीरपंथी छत्तीसगढ़ के उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो मुड़ा सहज मिल जथे, अउ जेमन कबीर पंथी नइहे उहू मन कबीरदास जी के सीख सिखौना ल नइ भुला सकें। सबे जाति वर्ग समुदाय म कबीरदास जी महाराज के छाप हे। छत्तीसगढ़ भर म कबीर जयंती धूमधाम ले मनाये जाथे। जघा जघा मेला भराथे। *दामाखेड़ा, कुदुरमाल, कवर्धा, सिरपुर* आदि जघा कबीरपंथी मनके पावन तीर्थ आय, जिहाँ न सिर्फ कबीर पंथी बल्कि जम्मो जाति समुदाय सँकलाथे।

           कबीरदास जी दलित मनके मसीहा, पीड़ित मनके उद्धारक, दबे कुचले मनके आवाज रिहिन, समाजिक अन्याय अउ विषमता के  घोर विरोधी अउ न्याय संग समता के संस्थापक रिहिन। तेखरे सेती न सिर्फ हिन्दू मन बल्कि मुस्लिम अउ ईसाई मन घलो कबीरदास जी के अनुसरण करिन। कबीरदास जी के दोहा, साखी सबद न सिर्फ कबीरपंथी बल्कि छत्तीसगढ़ के घरों घर म टीवी रेडियो टेप टेपरिकार्डर के माध्यम ले मन ल बाँधत सरलग सुनाथे। कबीरदास जी महराज धनी धरम दास जी कारण छत्तीसगढ़ के कण कण म विराजित हे। कबीरदास जी के दोहा साखी सबद मनके कोनो सानी नइहे, विरोध के सुर के संगे संग जिनगी जिये के सार जम्मो छत्तीगढ़िया मन ल अपन दीवाना बना लेहे। पूरा भारत भर म छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के सबले जादा आश्रम अउ गद्दी संस्थान हे। कतको छत्तीगढ़िया मन आपस म *साहेब* कहिके अभिवादन करथें। अउ जादा का लिखँव महूँ, कबीरहा आँव।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया

 कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया


कबीरदास जी महाराज निर्गुण भक्ति धारा के महान संत, समाज सुधारक दीन दुखी मनके हितवा रिहिन, अउ बेबाक अपन बात ल कहने वाला सिद्ध पुरुष रिहिन। उंखर दिये ज्ञान उपदेश न सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि भारत भर के मनखे मनके अन्तस् मा राज करथें। कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़ के ये पावन प्रसंग म,मैं उंखर कुछ दोहा, जेन छत्तीसगढ़ के मनखे मनके अधर म सबे बेर समाये रहिथे, ओला सँघेरे के प्रयास करत हँव, ये दोहा मन आजो सरी संसार बर दर्पण सरीक हे, ये सिर्फ पढ़े लिखें मनखे मनके जुबान म ही नही, बल्कि जेन अनपढ़ हे तिंखरो मनके अधर ले बेरा बेरा म सहज बरसथे-----


                 जब जब हमर मन म कभू कभू भक्ति भाव उपजथे, अउ हमला सुरता आथे कि माया मोह म अतेक रम गे हन, कि भाव भजन बर टेम नइहे, त कबीरदास जी के ये दोहा अधर म सहज उतर जथे- 

*लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।*

*पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट ।।*

(देवारी तिहार म जब राउत भाई मन दफड़ा दमउ के ताल म, दोहा पारथे, तभो ये दोहा सहज सुने बर मिलथे।)


          कबीरदास जी के ये दोहा, तो लइका संग सियान सबे ल, समय के महत्ता के सीख देथे, अउ आज काली कोनो कहिथें, त इही दोहा कहे अउ सुने बर मिलथे-

*काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।*

*पल में प्रलय होएगी, बहुरी करेगा कब ।।*


लोक मंगल के भाव जब अन्तस् म जागथे, त कखरो कमी, आफत -विपत देख अन्तस् आहत होथे, त हाथ जोड़ छत्तीगढ़िया मनके मुख ले इही सुनाथे-

*साईं इतना दीजिये, जा के कुटुम्ब समाए ।*

*मैं भी भुखा न रहू, साधू ना भुखा जाय ।।*


                 मनखे के स्वभाव हे सुख म सोये अउ दुख म कल्हरे के, कहे के मतलब सुख के बेरा सब ओखर अउ दुख आइस त ऊपर वाला के देन। फेर जब समय रहत ये दोहा हमला याद आथे, त सजग घलो हो जथन, अउ अपन अहम ल एक कोंटा म रख देथन। सुख अउ दुख हमरे करनी आय। गूढ़ ज्ञान ले भरे, कबीर दास जी के ये दोहा काखर मुख म नइ होही---

*दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।*

*जो सुख मे सुमीरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।*


                     कहूँ भी मेर कुछु भी चीज के अति होवत दिखथे त सबे कथे- अति के अंत होही। कोनो भी चीज के अति बने नोहे। कतको मनके मुख म, कबीर साहेब के यहू दोहा रथे---

*अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,*

*अती का भला न बरसना, अती कि भलि न धूप ।*


मनखे ल आन के बुराई फट ले दिख जथे, अउ जब वोला कबीरदास जी के ये दोहा हुदरथे, त वो लज्जित हो जथे।कबीर साहेब कथे-

*बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,*

*जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।*


                        छत्तीसगढ़ का सरी संसार मया के टेकनी म टिके हे। मनखे पोथी पढ़े ले पंडित नइ होय, मया प्रेम मनखे ल विद्वान बनाथे। यहू दोहा जम्मो लइका सियान ल मुखाग्र याद हे-

*पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय*

*ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।*



मनखे के सही अउ देखावा म बहुत फरक होथे, तभे तो हमर सियान म हाना बरोबर कबीर साहेब के ये दोहा ल कहिथें-

*माटी का एक नाग बनाके, पूजे लोग लुगाय।*

*जिन्दा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाय ।।*


तन के मइल ल धोय ले जादा जरूरी मन के मइल ल धोना हे, मन जेखर मइला ते मनुष बइला। यहू दोहा ल सियान मन हाना बरोबर तुतारी मारत दिख जथे-

*मल मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल ।*

*नहाए गंगा गोमती, रहे बैल के बैल ।।*


          बोली ल गुरतुर होना चाही, तभे बोलइया मान पाथे।  छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा इही सुनाथे घलो, चाहे राउत भाई मनके दोहा म होय, या फेर लइका सियान मनके जुबान म,

बने बात बोले बर कोनो ल कहना हे त सबे कहिथें--

*ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।*

*औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होए ।।*



                   हम छत्तीगढ़िया मनके आदत रहिथे बड़ाई सुनना अउ बुराई म चिढ़ना, फेर जब वोला कबीर साहेब के ये दोहा सुरता आथे त रीस तरवा म नइ चढ़े, बल्कि सही गलत सोचे बर मजबूर कर देथें-

*निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय*

*बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।*



         मनखे के शरीर म माया मोह अतेक जादा चिपके रहिथे, कि तन सिराये लगथे तभो माया मोह ल नइ छोड़ पाय, त कबीर साहब के ये दोहा सबके मुखारबिंद म सहज आ जथे-

*माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर।*

*आसा त्रिष्णा णा मुइ, यों कही गया कबीर ॥*


 कबीरदास जी के बेबाकी के सबे कायल हन, कोनो जाति धरम ल बढ़ावा न देके सिरिफ इंसानियत ल बढ़ाइस-

*हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमान,*

*आपस में दोउ लड़ी मुए, मरम न कोउ जान।*


            दोस्ती अउ दुश्मनी ले परे रहिके, सन्त ह्रदय कस काम करे बर कोनो कहिथे त, इही सूरता आथे-

*कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर*

*ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।*


                  गुरु के महत्ता के बात ये दोहा ल छुये बिन कह पा सम्भव नइहे-

*गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।*

*बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥*

        

                  आजो कोई यदि अपन आप ल बड़े होय के डींग हाँकथे, त सियान का, लइका मन घलो इही कहिके तंज कँसथें-

*बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।*

*पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।*


                   निर्गुण भजन *बिरना बिरना बिरना---*  श्री कुलेश्वर ताम्रकार जी के स्वर म सीधा अन्तस् ल भेद देथे,वो भजन म ये दोहा सहज मान पावत हे, अउ इही दोहा हमर तुम्हर जिनगी के अटल सत्य घलो आय।

*माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।*

*एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।*


           घर म गुर्रावत जाँता, वइसे तो दू बेरा बर रोटी के व्यवस्था करथे, अउ कहूँ कबीरदास जी के ये दोहा मन म आ जाय, त अंतर मन  सुख दुख के पाट देख गहन चिंतन म पड़ जथे-

*चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय ।*

*दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ।*


लालच बुरी बलाय, अइसन सबे कथें, फेर काबर कथें तेला कबीरदास जी महाराज जनमानस के बीच म रखे हे, अउ जब लालच के बात आथे,या फेर मन म लालच आथे, त इही दोहा मनखे ल हुदरथे-

*माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए ।*

*हाथ मले औ सर धुनें, लालच बुरी बलाय ।*


               कबीरदास जी के दोहा संग जिनगी के अटल सत्य सबे के मन म समाहित रथे, मनखे जीते जियत ही राजा रंक आय, मरे म मुर्दा के एके गत हे, भले मरघटी तक पहुँचे म ताम झाम दिखथे।

*आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।*

*इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर।*


                    मनुष जनम ल ही सबे जीव जंतु के जनम ले श्रेष्ठ माने गेहे, अउ हे घलो, आज मनखे सब म राज करत हे। फेर जब कबीरदास जी के ये दोहा अन्तस् ल झकझोरथे, तब समझ आथे, मनखे हीरा काया धर कौड़ी बर मरत हे।

*रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।*

*हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।*


              धीर म ही खीर हे, इही बात ल कबीरदास जी महराज घलो केहे हे, जे सबके  अधर म समाये रथे, अउ मनखे ल धीर धरे के सीख देथे-

*धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।*

*माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।*


                      कबीरदास जी के ये दोहा मनखे ल इन्सानियत देखाय के, बने काम करे  के शिक्षा देवत कहत हे, कि भले जनम धरत बेरा हमन रोये हन अउ जमाना हाँसिस, फेर हमला अइसे कॉम करना हे, जे हमर बिछोह म जमाना रोय। 

*कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,*

*ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।*



                         काया के गरब वो दिन चूर चूर हो जथे जब हाड़, मास, केस सबे लकड़ी फाटा जस लेसा जथे। अइसन जीवन के अटल सत्य ले भला कोन अछूता हन-

*हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।*

*सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।*


              "अब पछताये होत का जब चिड़िया चुग गई खेत" काखर जुबान म नइहे। अवसर गुजर जाय म सबला कबीर साहेब के इही दोहा सुरता आथे-

*आछे  दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।*

*अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।*


                   आत्मा अउ परमात्मा के बारे म बतावत कबीर साहेब के ये दोहा, मनखे ल जनम मरण ले मुक्त कर देथे-

*जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है बाहर भीतर पानि ।*

*फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानि ।*


               छत्तीगढ़िया मन आँखी के देखे ल जादा महत्ता देथन, इही सार बात ल कबीरसाहेब घलो केहे हे-

*तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।*

*मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ।*


                आज जब चारो मुड़ा कोरोना काल बनके गरजत हे, मनखे हलकान होगे हे, तन का मन से घलो हार गेहे, त सबे कोती सुनावत हे, मन ल मजबूत करव, काबर की "मनके हारे हार अउ मनके जीते जीत"। पहली घलो ये दोहा शाश्वत रिहिस अउ आजो घलो मनखे के जीये बर थेभा हे, मन चंगा त  कठोती म गंगा हमर सियान मन घलो कहे हे-

*मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।*

*कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत ।*


                  "जइसे खाबे अन्न , तइसे रइही मन" ये हाना हमर छत्तीसगढ़ म सबे कोती सुनाथे, कबीर साहेब घलो तो इही बात ल केहे हे- संग म पानी अउ बानी के बारे म घलो लिखे हे-

*जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।*

*जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।*


         कबीरदास जी महाराज जइसन ज्ञानी सिद्ध दीया धरके खोजे म घलो नइ मिले, उंखर एक एक शब्द म जीवन के सीख हे। अन्याय अउ अत्याचार के विरोध हे। सत्य के स्थापना हे। दरद के दवा हे। केहे जाय त भवसागर रूपी दरिया बर डोंगा बरोबर हे। धन भाग धनी धरम दास जी जइसे चेला जेन, कबीर साहेब जी के शब्द मन ल पोथी बनाके हम सबला दिन। अउ धन भाग हमर छत्तीसगढ़ जेला अपन पावन गद्दी बनाइन। उंखरे पावन कृपा ले आज सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ कबीरमय हे।


साहेब बन्दगी साहेब


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)