Saturday 29 September 2018

नवा जमाना

नवा जुग (गीत)

मोर गाँव के धुर्रा मा राखड़ मिलगे,कइसे तिलक लगावौं।
बंजर होगे खेती खार सब,का चीज मैं उपजावौं।

सड़क सुते हे लात तान के,महल अटारी ठाढ़े हे।
मोर आँखी मा निंदिया नइहे,संसो अड़बड़ बाढ़े हे।
नाँव बुझागे रूख राई के,बंगबंग जिवरा बरत हे।
मन भीतरी मोर मातम हावै,बाहिर हाँका परत हे।
सिसक घलो नइ सकत हँव दुख मा,कइसे सुर लमावौं।

लोहा सोन चाँदी उपजत हे,बनत हवै मोटर अउ कार।
सब जीतत हे जिनगी के जंग,मोरे होवत हावय हार।
तरिया परिया हरिया नइहे,नइ हे मया के घर अउ गाँव।
हाँव हाँव अउ खाँव खाँव मा,चिरई करे न चाँव चाँव।
नवा जुग के अँधियारी कूप मा,भेड़ी कस झपावौं।

हवा पानी मा जहर घुरत हे,चुरत हे धरती दाई।
स्वारथ के घोड़ा भागत हे,लड़त हे भाई भाई।
हाय विधाता भूख मार दे,तन ला कर दे कठवा।
नवा जुग ला माथ नवाहूँ,जिनगी भर बन बठवा।
दुख पीरा म जिवरा डोले,माटी पूत मैं
आवौं।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

बाँस के जंगल

जंगल म बाँस के

जंगल  म  बाँस  के,
कइसे रहँव हाँस के।
खेवन खेवन खाँध खींचथे,
चीखथे सुवाद माँस के----

सुरसा कस  बाढ़े।
अँकड़ू बन वो ठाढ़े।
डहर बाट ल लील देहे,
थोरको मन नइ माढ़े।
कच्चा म काँटा के डर,
सुक्खा म डर फाँस के।
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माते हे बड़ गइरी।
झूमै मच्छर बइरी।
घाम घलो घुसे नही,
कहाँ बाजे पइरी।
कइसे फूकँव बँसुरी,
जर धर साँस के---।

झुँझकुर झाड़ी डार जर,
काम के न फूल फर।
सताये साँप बिच्छी के डर,
इँहा मोला आठो पहर।
बिछे हवे काँदी कचरा,
बिजराय फूल काँस के।
--------------------------।

शेर भालू संग होय झड़प।
कोन सुने मोर तड़प।
आषाढ़ लगे नरक।
जाड़ जड़े बरफ।
घाम घरी के आगी,
बने कारण नास के।
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मोर रोना गूँजे गाना सहीं।
हवा चले नित ताना सहीं।
लाँघन भूँखन परे रहिथौं,
हे सुख गड़े खजाना सहीं।
जब तक जिनगी हे,
जीयत हँव दुख धाँस के।
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पाना ल पीस पीस पी,
पेट के कीरा संग,
मोर पीरा मरगे।
मोर बनाये चटई खटिया,
डेहरी म माड़े माड़े सरगे।
प्लास्टिक सुहाये सबला,
लेवै समान काँस के।
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न कोयली न पँड़की,
झिंगरा नित झकझोरे।
नइ जानँव अँजोरी,
अमावस आसा टोरे।
न डाक्टर न मास्टर,
 हौं अड़हा जियौं खाँस खाँस के।
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जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Wednesday 26 September 2018

म्हाभुजंग प्रयात छंद

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के भुजंगप्रयात छंद(मयारू तोर मया)

मयारू मया तोर हे मोर आशा।
ढुला ना मया ला बना खेल पाशा।
करेजा हरे साग भाजी नही वो।
कटाही भुँजाही त कैसे रही वो।1।

मया तैं जता बाट देखा बने वो।
कते बात ला गाँठ बाँधे तने वो।
कचारे मया के धुरी ला बही तैं।
करे फोकटे वो दहीं के महीं तैं।2।

दया ना मया तोर हे तीर गोरी।
जराये जिया ला रचा रोज होरी।
करौं का करौंदा तिहीं हा बताना।
पियासे हवौं प्रीत पानी पियाना।3।

पीतर(हरिगीतिका छंद)

गोठ पुरखा के(हरिगीतिका छंद)

मैं छोड़ दे हौं ये धरा,बस नाम हावै साख गा।
पुरखा हरौं सुरता ल कर,पीतर लगे हे पाख गा।
रहिथस बिधुन आने समय,अपने खुशी अउ शोक मा।
चलते रहै बस चाहथौं,नावे ह मोरे लोक मा।

माँगौं नहीं भजिया बरा,चाहौं पुड़ी ना खीर गा।
मैं चाहथौं सत काम कर धरके जिया मा धीर गा।
लाँघन ला नित दाना खवा कँउवा कुकुर जाये अघा।
तैं मोर बदला दीन के दे डेहरी दाना चघा।

कर दे मदद हपटे गिरे के मोर सेवा जान के।
सम्मान दे तैं सब बड़े ला मोर जइसे मान के।
मैं रथौं परलोक मा माया मया ले दूर गा।
पीतर बने आथौं इहाँ पाथौं मया भरपूर गा।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Tuesday 25 September 2018

जय बाबा विश्वकर्मा(सरसी छंद)

जय बाबा विश्वकर्मा (सरसी छंद)

देव दनुज मानव सब पूजै,बन्दै तीनों लोक।
बबा विश्वकर्मा के गुण ला,गावै ताली ठोक।

सतयुग मा जे सरग बनाये,त्रेता लंका सोन।
द्वारिका पुरी हस्तिनापुर के,पार ग पावै कोन।

चक्र बनाये विष्णु देव के,शिव के डमरु त्रिशूल।
यमराजा के काल दंड अउ,करण कान के झूल।

इंद्र देव के बज्र बनाये,पुष्पक दिव्य विमान।
सोना चाँदी मूँगा मोती,देव लोक धन धान।

बादर पानी पवन गढ़े हे,सागर बन पाताल।
रंगे हवे रूख राई फुलवा,डारा पाना छाल।

घाम जाड़ आसाढ़ गढ़े हे,पर्वत नदी पठार।
बीज भात अउ पथरा ढेला,दिये बने आकार।

दिन के गढ़े अँजोरी ला वो,अउ रतिहा अँधियार।
बबा विश्वकर्मा सबे चीज के,पहिली सिरजनकार।

सबले बड़का कारीगर के,हवै जंयती आज।
अंतस मा बइठार लेव जी,होय सुफल सब काज।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
भगवान विश्वकर्मा सबके आस पुरावै

बने बात ,हरिगीतिका छंद

बने बात (हरिगीतिका छंद)

किरपा करे कोनो नही,बिन काम होवै नाम ना।
बूता  घलो   होवै  बने,गिनहा मिले जी दाम ना।
चोरी  धरे  धन  नइ  पुरे,चाँउर  पुरे  ना दार जी।
महिनत म लक्ष्मी हा बसे,देखौ पछीना गार जी।

संगी  रखव  दरपन  सहीं,जेहर दिखावय दाग ला।
गुणगान कर धन झन लुटै,धूकै हवा झन आग ला।
बैरी  बनावौ  मत  कभू,राखौ  मया मीत खाँप के।
रद्दा बने चुन के चलौ,अड़चन ल पहिली भाँप के।

सम्मान दौ सम्मान लौ,सब फल मिले ये लोक  मा।
आना  लगे  जाना लगे,जादा  रहव  झन शोक मा।
सतकाम बर आघू बढ़व,संसो फिकर ला छोड़ के।
नैना  उघारे  नित रहव, कतको खिंचइया गोड़ के।

बानी  बनाके  राखथे ,नित  मीठ  राखव  बोल गा।
अपने खुशी मा हो बिधुन,ठोंकव न जादा ढोल गा।
चारी   करे   चुगली   करे,आये   नही  कुछु  हाथ  मा।
सत आस धर सपना ल गढ़,तब ताज सजही माथ मा।

पइसा  रखे  कौड़ी  रखे,सँग  मा रखे नइ ग्यान गा।
रण बर चले धर फोकटे,तलवार ला तज म्यान गा।
चाटी  हवे   माछी  हवे , हाथी  हवे  संसार  मा।
मनखे असन बनके रहव,घूँचव न पाछू हार मा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

रोला छंद

""""""""गर्मी छुट्टी(रोला छंद)

बन्द हवे इस्कूल,जुरे सब लइका मन जी।
बाढ़य कतको घाम,तभो घूमै बनबन जी।
मजा उड़ावै घूम,खार बखरी अउ बारी।
खेले  खाये खूब,पटे  सबके  बड़ तारी।

किंजरे धरके खाँध,सबो साथी अउ संगी।
लगे जेठ  बइसाख,मजा  लेवय  सतरंगी।
पासा  कभू  ढुलाय,कभू  राजा अउ रानी।
मिलके खेले खेल,कहे मधुरस कस बानी।

लउठी  पथरा  फेक,गिरावै  अमली मिलके।
अमरे आमा जाम,अँकोसी मा कमचिल के।
धरके डॅगनी हाथ,चढ़े सब बिरवा मा जी।
कोसा लासा हेर ,खाय  रँग रँग के खाजी।

घूमय खारे  खार,नहावय  नँदिया  नरवा।
तँउरे ताल मतंग,जरे जब जब जी तरवा।
आमाअमली तोड़,खाय जी नून मिलाके।
लाटा खूब बनाय,कुचर अमली ला पाके।

खेले खाय मतंग,भोंभरा  मा गरमी के।
तेंदू कोवा चार,लिमउवा फर दरमी के।
खाय कलिंदर लाल,खाय बड़ ककड़ी खीरा।
तोड़  खाय  खरबूज,भगाये   तन   के  पीरा।

पेड़ तरी मा लोर,करे सब हँसी ठिठोली।
धरे  फर  ला  जेब,भरे बोरा अउ झोली।
अमली आमा देख,होय खुश घर मा सबझन।
कहे  करे बड़ घाम,खार  मा  जाहू  अबझन।

दाइ ददा समझाय,तभो कोनो नइ माने।
किंजरे  घामे घामे,खेल  भाये  ना आने।
धरे गोंदली जेब,जेठ ला बिजरावय जी।
बर पीपर के छाँव,गाँव गर्मी भावय जी।

झट बुलके दिन रात,पता कोई ना पावै।
गर्मी छुट्टी आय,सबो  मिल मजा उड़ावै।
बाढ़े मया पिरीत,खाय अउ खेले मा जी।
तन मन होवै पोठ,घाम  ला झेले मा जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"बाल्को(कोरबा)