Wednesday 27 November 2019

सहभागिता

सहभागिता

         चाहे मनुष्य हो या कोई भी जीव जंतु सहभागिता के साथ ही सबका जीवन सुचारु रूप से गतिमान होता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है,जिनकी सहभागिता घर परिवार से होते हुए गांव,शहर,राज्य और देश-विदेश तक देखने को मिलती है। सहभागिता को तलाशा जाए तो छोटे से छोटे जीव भी एक दूसरे के कार्य में सहभागी होते है। चौमास के लिए खानपान की व्यवस्था में लगे चीटियों की लंबी कतार सहभागिता का एक सहज उदाहरण है ,जो अपने से भी दुगना भार ढोते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर परस्पर सहभागिता प्रदर्शित करते हुए एक झुंड में मेहनत करते नजर आते हैं।कभी कभी तो किसी बड़े चीज को भी एक साथ कई चींटियाँ मिलकर अपने गंतव्य स्थान पर ले जाते दिखतें हैं ,इस कार्य में चींटियों की सहभागिता और सामंजस्य सहज ही दिखाई देती हैं।लकड़ियों और मिट्टियों में पाये जाने वाले दिमाकों की सहभागिता भी किसी से छुपी नही है,वें हमेशा एक साथ रहते हुए अपने जीवन यापन करते है ,उनकी सहभागिता का प्रमाण उनके द्वारा बनाये गये मिट्टी के अद्वितीय छोटे बड़े खोह को देखकर लगाया जा सकता है।छोटा सा जीव और इतना अच्छा निर्माण,ये सब एक दूसरे के परस्पर सहभागिता को परिलक्षित करते हैं।
               ग्रीष्म काल में तप्त धरती आषाढ़ की बूंदों के साथ शीतल हो जाती है,और जब बरसात में पानी बरसता है,तो रातों को रागमय करते हुये झिगुरों के स्वर,झुंड में उड़ते या अपने अपने व्यवस्थित जगहों पर लटके चमगादड़, मस्ती में उफनती नदी,तालाबो में टर्राते मेंढ़कों और यत्र तत्र झुंड में नजर आते कीट पतंगें भी सहभागिता को प्रदर्शित करते नजर आते है।उजालों की ओर खींची चली आती हुई हजारों कीट पतंगों की झुंड में सहभागिता तो दिखती है पर उनका कार्य समझ से परे लगते हैं।जिसे देखकर ऐसा लगता है कि ये जीव जंतु सिर्फ अपने खानपान सम्बंधी कार्य ही नही बल्कि जीवन के सभी क्रियाकलापों में परस्पर सहभागी होते हैं।
           चिड़ियों में भी सहभगिता को सहज ही देखा जा सकता है।भले ही घोंसला बनाकर रहने वाली चिड़ियाँ अपने घोसलें में अकेले रहते है,और बच्चे आने के बाद,जब वे बड़े होते है,तो उनको छोड़कर चले जाते है,फिर भी झुंड में दाना चुगना,एक स्थान से दूसरे स्थान पर झुंड में जाना,झुंड में करलव करना,ये सब उनकी सहभागिता को दिखाती है।पक्षी आसमान में भी बेतर्तीत नही उड़ते,एक निश्चित आकार बनाकर किसी एक के नेतृत्व में नयनाभिराम दृश्य प्रदर्शित करते हुये,उड़ान भरते है।रात होते ही अपने अपने घोसलों में अपने सभी साथियों के साथ लौट जाना,अपने उचित स्थान पर विश्राम करना,और सुबह होते ही एक साथ करलव करते हुये जगना,साथ ही किसी पेड़ में जहाँ अनेको पक्षी विश्राम कर रहे होते है,वहाँ  किसी भी प्रकार का संकट आ जाने पर सबका परस्पर एक साथ सजग होकर निपटना आपसी सहभागिता ही तो है।सिर्फ सुख में ही नही दुख में भी इनकी सहभागिता बराबर नजर आती हैं।
कुछ पक्षियाँ तो विदेशो से भी भारत वर्ष में अनुकूल जगह तलाश करते हुये आते है,और अपना प्रजनन आदि क्रियाकलापो से निवृत्त होकर बच्चों के साथ पुनः अपने पुराने स्थान पर लौट जाते है।इस दौरान उन सब में प्रगाढ़ सहभागिता रहती है।एक साथ अनुकूल स्थान में आना,एक साथ रहना,एक साथ सारे कार्य करना और एक साथ अपने गंतव्य को चले जाना।भले उनकी कियाविधि,भाव भाषा हमारी समझ से परे हो पर उनकी कार्य, निर्णय,लक्ष्य,नियम और सहभागिता को नकारा नही जा सकता।
            जंगलो में यत्र तत्र कुलाँचे भरते हिरणों,हाथियों,जंगली भैसों और अन्य कई जानवरों के झुंड,सहज ही  विचरण करते हुये नजर आ जाते है।वें सब एक साथ खाते, पीते ,घूमते और आराम फरमाते है,साथ ही किसी भी संकटो से एकजुट होकर लड़ते है।ये सब उनकी सहभागिता का प्रबल पक्ष है।बन्दर भी हमेशा झुंड में रहते हैं और अपने सारे क्रियाकलाप झुंड में ही करते है।कहा जाता है कि झुंड से बिछुड़कर हाथी,खतरनाक हो जाता है,वैसे ही बन्दर भी अपने साथियों से अलग होकर नही रह पाता है।उनकी सहभागिता ही उनका जीवन है।भेड़,बकरी,गाये भैसें आदि भी अपनी भूख मिटाने और विपदाओं से निपटने के लिये परस्पर सभी कार्यों में सहभागी होकर चलते हैं।किसी भी नेतृत्व करने वाले सजातीय या अपने चरवाहे का ईमानदारी से अनुशरण करते है।
             पौराणिक कथा अनुसार त्रेता युग में तो वानरों ने ही भगवान श्री राम चन्द्र जी का ,माता सीता की खोज और लंका विजय में बहुमूल्य योगदान दिया था।बानरों ने ही मिलकर समुद्र में पुल बाँधा था।बानरों की सहभागिता से ही भगवान राम,रावण पर जीत हासिल किया था।यहाँ एक बात देखने वाली है कि जिस प्रकार चींटी,चींटी से,पक्षी पक्षी से व अन्य जानवर अपने ही सजातीय से अधिकतर सुख दुख व काम काज में सहभागी नजर आते है,पर वानर उस युग में मनुष्यों के सुख दुख के साथी बने थे।
           सहभागिता का एक उत्तम उदाहरण मधुमख्खियों में भी देखा जा सकता है।कहते है ,कि मधु बनाने में रानी मधुमक्खी के वचनानुसार बाकी सारे मधुमख्खी अपने अपने कार्य पूर्णतः सहभागिता दिखाते हुये निभाते है।फूलो से रस चूसना,छत्ते में एक निश्चित स्थान पर बैठना,किसी संकट का एक साथ निश्चित दल द्वारा सामना करना,ये सब उनकी आपसी सहभागिता का ही प्रमाण है।
            हमने ऊपर देखा कि छोटे से छोटे जीवों में भी सहभागिता होती है,फिर तो मनुष्य में न हो ये नामुमकिन है। मनुष्य को इस धरती का सबसे दिमाग वाला प्राणी माना जाता है,तभी तो मानव सहज रूप से ही सहभागिता समेटे सर्वत्र शोभायमान होते है।मनुष्य ही ऐसा प्राणी है,जो अपने,पराये,सजातीय,विजातीय आदि सबके सुख दुख में बराबर सहभागिता निभाते नजर आते है।बच्चें जन्म लेते ही तो किसी भी कार्य मे सहभागी नही होते है पर जैसे ही थोड़े बड़े होते है और खेलने कूदने लग जाते है ,तो वें पहली बार अपने साथियों के साथ खेल कूद में सहभागी बन जाते है।कई रचनात्मक खेल उनकी सहभागिता में संचालित होती है।बच्चों की खेलकूद में आपसी सहभागिता से उनको पूर्णानंद की प्राप्ति होती।कई खेल ऐसे भी निर्मित हो जाते है जो किसी विशेष बच्चे के सहभागिता बगैर संचालित भी नही होते हैं।पर दुखद आज शहरी क्षेत्रों या कुछ ग्रामीण क्षेत्रो में बच्चें मोबाइल या ऊँच नीच के भेद के बीच,या माँ बाप की इच्छा न होने या कई अन्य कारणों से इस सहभागिता से वंचित हो रहे हैं।जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते है,उनकी सहभागिता की सीमा भी बढ़ती जाती है।घर से मुहल्ला,मुहल्ला से स्कूल,स्कूल से गाँव आदि आदि।
             बच्चे जब स्कूल जाते है तो उनकी सहभागिता स्कूल में भी परिलक्षित होती है।स्कूल के समस्त कार्यों और कार्यक्रमों में बच्चें बराबर सहभागी होते है।।भले ही आज बच्चें स्कूल में शारीरिक कार्य न करता हो पर पहले स्कूल के सारे कार्य विधार्थियो के उप्पर ही निर्भर था।सभी कार्यो में सभी विधार्थियों का बराबर सहयोग और सहभागिता नजर आती थी।
पढ़ाई के साथ साथ खेल- कूद,व्यायाम,काम,सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि आदि में बच्चें बराबर सहभागी होते थे।पहले की तरह कुछ प्रतिभावान बच्चें आज भी कुछ विशेष कार्य या खेलकूद के लिए न सिर्फ अपने  स्कूल में बल्कि अन्य स्कुलों के भी कार्यक्रमों में सहभागी होते है।जितनी सहभागिता शिक्षको की स्कूल के प्रति होती है,उतनी ही सहभागिता बच्चों की भी होती है।बच्चें स्कूल से ही छोटे-बड़े और कई प्रकार के कार्य में सहभागिता निभाने की कला सीखते है,जिससे वे आगे चलकर अपने आपको घर,गाँव,समाज,राज्य और देश के सभी नेक कार्यों में सहभागी बनाता है।
             घर में रहने वाले सभी सदस्यगण घर के प्रति सहभागी होते है।सभी सदस्यों के कार्य भले ही अलग अलग  हो सकते है पर मूल उद्देश्य घर में सबकी सहभागिता के साथ घर का समूल विकास होता है।इसी सहभागिता के चलते ही घर के सदस्यगण एक दूसरे के सुख दुख और घर में किसी भी कार्य के लिये सदैव तत्पर रहते है।चाहे घर की साफ सफाई हो,शान शौकत हो या घर वालों का कोई अन्य काम हो,आपसी सहभागिता से सब सुचारू रूप से संचालित होता है।आज तो घर में परिवारों की संख्या लगभग सीमित होने लगी है पर पहले सयुंक्त परिवार होता था।परिवार में बहुत लोग रहते थे,फिर भी इसी सहभागिता के चलते हँसते गाते परिवार वाले जिंदगी व्यतित करते थे।घर में होने वाले सभी कार्यों में सभी सदस्यगण बराबर सहभागिता निभाते थे।आज भी सबकी आपसी सामंजस्य और सहभागिता के चलते घर परिवार सुचारू रूप से संचालित हो रहे है।परिवार की मुख्या के अनुसार परिवार के सदस्य गण आपसी सहभागिता निभाते हुये परस्पर काम करते है।घर परिवार के प्रति प्रत्येक व्यक्ति की सहभागिता ही उस घर की तरक्की का द्योतक होता है।
              गाँवों में लगभग सभी त्योहार या कोई भी कार्यक्रम धूम धाम से मिलजुल कर मनाया जाता है।ऐसे सभी पर्वों में समस्त ग्रामवासियों की सहभागिता को सहज ही देख सकते है।सभी लोग पूर्णतः समर्पित होकर ऐसे पर्वों में सम्मिलित होते है,जिससे सबको आनंद की प्राप्ति होती है।कोई भी त्यौहार कई चरणों में या कई प्रकार के नियमों के साथ संचालित होता है,जिसे एक अकेला कुछ नही कर सकता,ऐसे में गाँव के सभी लोग अपनी अपनी दक्षता अनुसार संचालित होने वाली गतिविधियों में अपनी सहभागिता देकर कार्यक्रम या किसी भी पर्व को धूम धाम से मनाते है।सबका सहयोग और सहभागिता ही किसी भी कार्यक्रमों या पर्वों की सफलता का कारण होता है।
             कृषि कार्यों में भी सहभागिता को देखा जा सकता है।एक किसान अकेला पैदावार नही उपजा सकता,उनको कृषि कार्य में उनके परिवार वालो या मजदूरो या गाँव वालों की सहभागिता की जरूरत पड़ती है।जुताई,बोवाई,निंदाई,लुवाई,मिंसाई से लेकर मंडी ,बाजार तक उपज को पहुँचाने में घर वालों की समर्पित सहभागिता और अन्य व्यक्तियों या श्रम शक्तियों का सहयोग आवश्यक होता है।किसान अपने कार्यों को सम्पादित करने के बाद अन्य किसानों के कार्यो का भी सहभागी होते है।एक दूसरे का कार्य मिलजुल कर आपसी सहयोग और सद्भावना से पूर्ण करते है।खेतों में आने वाली आफतो  से भी सभी किसान फसलों की सुरक्षा में सहभागी होकर कार्य करते है।किसानों की इसी तरह की सद्भावना,सहयोग और सहभागिता ही रंग लाती है,जिससे फसलों के पैदावार में इजाफा होता है।आजकल देखा जा रहा है,की कई लोग अपने आपको बेरोजगार कहकर खुद को और सरकार को कोसते है,उनको भी चाहिए कि इस कृषि रूपी महायज्ञ में सहभागी बनकर अपने मेहनत और ज्ञान की आहुति दें।जिससे कृषि भूमि भारत का परचम सर्वत्र सर्वदा लहराते रहे।
           एक अकेला शैल्य चिकित्सक चाहे कितना भी अपने काम पर दक्ष क्यो न हो,उनको उनकी ऑपरेशन दल में अन्य लोगो की सहभागिता की आवश्यकता होती है।

             मनुष्य अनेकों जीव जंतुओं के कार्यों या मदद में भी सहभागी बन सकता है।और कई लोग बनते भी है।ब्रम्हांड में सभी जीवों का बराबर हक है,उनकी संरक्षण बहुत जरूरी है,आज कुछ जीव प्रतिकूल वातावरण के चलते विलुप्त हो रहे है ,तो कुछ लालची  मनुष्यों द्वारा खत्म कर दिया जा रहा है।ऐसे में मनुष्यों को ही आगे आना चाहिए,और समाज या सरकार द्वारा चलाये जा रहे ऐसे नेक कार्य में बढ़ चढ़ का भाग लेना चाहिये।जीवों के संरक्षण,संवर्धन और विकास में अपनी सहभागिता निभानी चाहिये।ताकि पारिस्थितिक सन्तुलन बने रहे।
              आज कई तरह की कुरीतियाँ समाज में व्याप्त है,जिसके उन्मूलन हेतू सरकार प्रयासरत है,इसमें भी सबको अपनी सहभागिता प्रदर्शित करनी चाहिए।क्योंकि हमारी समाजिक बुराइयों से लड़ने के लिये हमे ही आगे आना पड़ेगा।इसके लिए सबकी सहभागिता नितांत आवश्यक है।जिस तरह हम समाज के अच्छे कार्यों में  बढ़चढ का अपनी सहभागिता देते है,उसी तरह कुछ बुराइयां आज भी यथावत है,उसके उन्मूलन हेतु भी हमे अपनी सहभागिता निभानी चाहिये।हर नेक कार्यो में सभी मानवों का बराबर सहयोग जरूरी है,तभी समाज,राज्य,और देश का नाम रोशन होगा।
          प्रकृति द्वारा प्रदत्त निशुल्क उपहार जल,थल और वायु
आज मनुष्यो के कारनामो का भेंट चढ़ गया है।प्रकृति का मोहक रूप प्रदूषित हो चुका है।जंगल कट रहे है,वायु में जहरीली गैस विसर्जित हो रही है,नदियो,तलाबों का पानी जहर बन गया है।शुद्ध पानी,शुद्ध हवा,चिलचिलाती धूप में छाँव खोजने पर भी मिलना मुश्किल हो गया है।धरा पानी की आस में पाताल तक खुद चुका है।कई तरह की विपदा अकाल,बाढ़, भूकम्प बढ़ रही है।आज मनुष्य खुद को बनाने के लिए प्रकृति का बिगाड़ कर रहा है।पर्यावरण संरक्षण के लिए भी हम सबकी  सहभागिता आज की आवश्यकता है।पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्य करने की जिम्मेदारी कुछ लोगो की नही,अपितु प्रत्येक मानव की है।सबको बढ़चढ़ का पेड़ लगाना चाहिये।जल,थल,वायु के संरक्षण हेतु सदैव तत्पर होकर हम सबको अपनी जिम्मेदारी मान कर इसके संरक्षण में सहभागिता निभानी चाहिये।
                        घर से निकलकर व्यक्ति अपने गाँव,समाज,राष्ट्र,जल,जमीन,जंगल आदि में भी अपनी सहभागिता प्रदर्शित करती है।किसी भी कार्य मे सहभागी होना व्यक्ति की मनःस्थिति और उसकी समर्पण को बताता है।सहभागिता थोपी नही जा सकती।व्यक्ति सहयोग के लिये बाध्य हो सकता है मगर सहभागिता के लिए नही।पर यह भी जरूरी है कि वह घर,परिवार के साथ साथ समाज,देश आदि के कार्य में भी सहभागी बने।क्योकि जीव जंतु भी अपने अपने कार्यो में अपने सजातियों के साथ मिलकर परस्पर सहभागिता निभाते हुये अपनी जिंदगी व्यतित करते है,तो फिर मनुष्य,मनुष्य के काम में सहभागी न बने तो लज्जापूर्ण बात होगी।सहभागिता ही मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी की श्रेणी में ले जाता हैं,क्योकि मनुष्य अपने गुण ज्ञान के दम पर ,सही गलत को परख कर अच्छे कार्यो में सहभागी बनते है।जो दायित्व या सहभागिता एक व्यक्ति का अपने परिवार के लिये होता है,उतनी ही सहभागिता देश,राज्य,समाज के लिए भी होनी चाहिये,नही तो क्या मनुष्य और क्या जानवर।

Tuesday 19 November 2019

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया

छत्तीसगढ़ी गजल

बहर-2122 2122 212

खोट धर झन खोद खाई फोकटे।
कर धरम बर झन लड़ाई फोकटे।1

शांति के संदेश बाँटै सब धरम।
कर न दूसर के बुराई फोकटे।2।

चक्ख ले नमकीन खारो अउ करू।
रोज के मेवा मिठाई फोकटे।3।।।।

बैर इरखा हे जिया मा तोर ता।
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई फोकटे।4

सत सुमत धरके सदा सत काम कर।
छोड़ ठग जग के कमाई फोकटे।5।

जीव शिव सबके हे दुर्लभ जिंदगी।
काट झन बनके कसाई फोकटे।6

खैरझिटिया खोंचका झन खन कभू।
खुद के होही जग हँसाई फोकटे।7।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Monday 18 November 2019

महँगा होगे गन्ना(कुकुभ छंद)


महँगा होगे गन्ना(कुकुभ छंद)

हाट बजार तिहार बार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।
तभो किसनहा पातर सीतर,साँगर मोंगर हे धन्ना।

भाव किसनहा मन का जाने,सब बेंचे औने पौने।
पोठ दाम ला पावय भैया,खेती नइ जानै तौने।
बिचौलिया बन बिजरावत हे,सेठ मवाड़ी अउ अन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना----।

पारस कस हे उँखर हाथ हा,लोहा हर होवै सोना।
ऊँखर तिजोरी भरे लबालब,उना किसनहा के दोना।
होरी डोरी धरके घूमय,सज धज के पन्ना खन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।

हे हजार कुशियार खेत मा,तभो हाथ हावै रीता।
करम ठठावै करम करैया,होवै जग हँसी फभीता।
दुख के घन हा घन कस बरसे,तनमन हा जाथे झन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।

कमा घलो नइ पाय किसनहा,खातू माटी के पूर्ती।
सपना ला दफनावत दिखथे,सँउहत महिनत के मूर्ती।
देखव जिनगी के किताब ले,फटगे सब सुख के पन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको कोरबा

करजा छूट देहूं लाला


करजा छूट देहूँ लाला(गीत)

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
तँय संसो झन कर,मोर मन नइहे काला।

मोर थेभा मोर बेटा,बेटी अउ सुवारी।
मोरेच जतने खेत खार,घर बन बारी।
येला छोड़ नइ पीयँव,कभू मैंहा हाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

तैंहा सोचत रहिथस,बिगाड़ होतिस मोरे।
घर बन खेत खार सब,नाँव होतिस तोरे।
नइ मानों मैहा हार,लोर उबके चाहे छाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

जब जब दुकाल पड़थे,तब तोर नजर गड़थे।
मोर ठिहा ठउर खेत ल,हड़पे के मन करथे।
नइ आँव तोर बुध म,झन बुन मेकरा जाला।
धान  लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

भूला जा वो दिन ला,जब तोर रहय जलवा।
अब जाँगर नाँगर हे,नइ चाँटन तोर तलवा।
असल खरतरिहा ले,अब पड़े हे पाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)