Friday 21 May 2021

लावणी छंद-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 लावणी छंद-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।

देखा देखी हमू कहत हन, इही हमर का जीत हरे।


धन्यवाद कहि बाप ल बेटा, अउ कहि बाप ह बेटा ला।

धन्यवाद कहि लुका जही ता, बने कबे का नेता ला।।

सुख दुख के सब साथी आवन, इही मया अउ मीत हरे।

धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।।।।।।


बखत परे मा काम आय के, करजा हा रथे उधारी।

दीन दुखी के पीरा हरथे, उँखरे होथे नित चारी।।

नेक नियत हा धन दौलत अउ, गुरतुर बानी गीत हरे।

धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।।।


धन्यवाद के बिना घलो तो, पुरखा मन गुणवान रिहिन।

मदद करैया मनखे मन हा, मनखे बीच महान रिहिन।।

बात बात मा बरसत हे ते, शब्द बता सत प्रीत हरे।।

धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Friday 14 May 2021

दोहा- राम जी

 दोहा-राम जी


थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।

आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।

खैरझिटिया


घनाक्षरी

आशा विश्वास धर, सियान के पाँव पर।

दया मया डोरी बर, रोज सुबे शाम के।।

घर बन एक जान, जीव सब एक मान।

जिया कखरो न चान, स्वारथ म लाम के।।

मीत ग मितानी बना, गुरतुर बानी बना।

खुद ल ग दानी बना, धर्म ध्वजा थाम के।।

डहर देखात हवे, जग ला बतात हवे।

अलख जगात हवे, चरित्र ह राम के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

वीर महाराणा प्रताप -आल्हा

 वीर महाराणा प्रताप -आल्हा


नौ  तारिक के  मई  महीना, नाचै  अउ गावै  मेवाड़।

बज्र शरीर म बालक जन्मे,काया लगे माँस ना हाड़।


उगे उदयसिंह के घर सूरज,जागे जयवंता के भाग।

राजपाठ के बने पुजारी,बैरी मन बर बिखहर नाग।


अरावली पर्वत सँग खेले,उसने काया पाय विसाल।

हे हजार हाथी के ताकत,धरे  हाथ  मा  भारी भाल।


सुरुज सहीं अंगार खुदे हे,अउ संगी हे आगी देव।

चेतक मा चढ़के जब गरजे,डगमग डोले बैरी नेव।


खेवन हार बने वो सबके,होवय जग मा जय जयकार।

मुगल राज सिंघासन डोले,देखे अकबर  मुँह ला फार।


चले  चाल अकबर तब भारी,हल्दी घाटी युद्ध रचाय।

राजपूत मनला बहलाके,अपन नाम के साख गिराय।


खुदे रहे डर मा खुसरे  घर ,भेजे  रण मा पूत सलीम।

चले महाराणा चेतक मा,कोन भला कर पाय उदीम।


कई हजार मुगल सेना ले,लेवय लोहा कुँवर प्रताप।

भाला भोंगे  सबला भारी,चेतक के गूँजय पदचाप।


छोट छोट नँदिया हे रण मा,पर्वत ठाढ़े हवे  विसाल।

डहर तंग विकराल जंग हे, हले घलो नइ पत्ता डाल।


भाला  धरके किंजरे रण मा, चले बँरोड़ा संगे संग।

बिन मारे बैरी मर जावव,कोन लड़े ओखर ले जंग।


धुर्रा  पानी  लाली होगे,बिछगे  रण  मा  लासे लास।

बइरी सेना काँपे थरथर,छोड़न लगे सलीम ह आस।


जन्मभूमि के रक्षा खातिर,लड़िस वीर बन कुँवर प्रताप।

करिस नहीं गुलामी कखरो,छोड़िस भारत भर मा छाप।


रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795

जय हनुमान-कुंडलियाँ छंद

 जय हनुमान-कुंडलियाँ छंद


भारी आहे आपदा, सबे हवै हलकान।

हाथ जोड़ सुमिरन करौं, दुरिहावव हनुमान।

दुरिहावव हनुमान, काल बनगे कोरोना।

शहर कहँव का गाँव, उजड़गे कोना कोना।

सब होगे मजबूर, खुशी मा चलगे आरी।

का विकास विज्ञान, सबे बर हे जर भारी।।


चंदा ला लेहन अमर, लेहन सूरज जीत।

कोरोना के मार मा, तभो पड़े हन चीत।

तभो पड़े हन चीत, सिरागे गरब गुमानी।

घर भीतर हन बंद, पियत हन पसिया पानी।

मति गेहे छरियाय, लटकगे गल मा फंदा।

टार रात अँधियार, पवन सुत बन आ चंदा।।


चारो कोती मातगे, हाल होय बेहाल।

सुरसा कस मुँह फार दिस, कोरोना बन काल।

कोरोना बन काल, लिलत हे येला वोला।

अइसन आफत देख, काँप जावत हे चोला।

आजा हे हनुमान, दुखी जन के सुन आरो।

नइ आवत हे काम, नता धन बल गुण चारो।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा(छग)


श्री हनुमान जयंती के आप ला सादर बधाई।।।

सपरिवार सदा स्वस्थ सुखी रहव।।।

कुंडलियाँ छ्न्द-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कुंडलियाँ छ्न्द-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*घरो घर सरकार के दारू*


दारू हा सरकार के, घर घर पहुँचय आज।

बिगड़े शिक्षा स्वास्थ हे, आय कहे मा लाज।

आय कहे मा लाज, देख के अइसन सब ला।

जनता हें लाचार, बजावै नेता तबला।

पीयाये बर मंद, हवै सरकार उतारू।

आफत के हे बेर, तभो घर पहुँचय दारू।


पानी बादर देख के, संसो करय किसान।

बंद बैंक बाजार हे, नइहे खातू धान।

नइहे खातू धान, किसानी कइसे होही।

बिन खातू बिन बीज, खेत मा काला बोही।

भटके बहिर किसान, करे बर धरती धानी।

पहुँचावय सरकार, घरों घर दारू पानी।।


जइसे दारू देत हव, तइसे दव सब चीज।

घर मा शिक्षा स्वास्थ सँग, देवव खातू बीज।

देवव खातू बीज, योजना ला सरकारी।

पावै मान किसान, भरे लाँघन के थारी।

रहिथे बड़ दुरिहाय, जरूरी सुविधा कइसे।

काबर नइ पहुँचाव, यहू ला दारू जइसे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Thursday 13 May 2021

दोहा-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 दोहा-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


नाम छोड़ नित काम के, पाछू नारी जाय।

हाथ मेहनत थाम के, सरग धरा मा लाय।।


मनखे सब रटते रथे, नारी नारी रोज।

तभो सुनत हे चीख ला, रुई कान मा बोज।


बोज रुई ला कान मा, होके मनुष मतंग।

करत हवैं कारज बुरा, महिला मनके संग।


लेख विधाता का लिखे, दुख हावै दिन रात।

काम बुता करथों सदा, खाथों भभ्भो लात।


नारी शक्ति महान हे, नारी जग आधार।

नारी ले निर्माण हे, नारी तारन हार।


शान दुई परिवार के, बेटी माई होय।

मइके ले ससुराल जा, सत सम्मत नित बोय।


आज राज नारी करे, चारो कोती देख।

अपन हाथ खुद हे गढ़त, अपने कर के लेख।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

शिव महिमा

 शिव छंद



शिव महिमा

डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।

शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।


चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।

अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।


बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।

भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।


कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।

स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।


हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।

पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।


भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।

बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।


नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।

लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।


शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।

बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।


दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।

सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।


खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।

तोर मोर ला भुला। दे अशीष मुँह उला।


नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।

कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।


काल के कराल के। भूत  बैयताल के।

नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।


शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।

शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।


शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।

शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।


शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।

मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।


शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।

शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।


नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।

शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।


शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।

का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।

खैरझिटिया

हाकली छंद(बरसात)

 हाकली छंद(बरसात)


रिमझिम रिमझिम जल बरसे,ताल तलैया बड़ हरसे।

गड़गड़ गड़गड़ नभ गरजे,लइका मन ला माँ बरजे।1


रहि रहि झड़ी म भींगत हे, घर भीतर नइ नींगत हे।

पथरा  ढेला  फेकत हे,माड़ी के  बल  टेकत हे।2।


हाँसत हे अउ गावत हे, अबड़ मजा सब पावत हे।

कुरता  पेंट सनाय  हवै,गढ्ढा  कोड़  बनाय  हवै।3।


खाये बिन एको कँवरा,ए चँवरा ले वो चँवरा।

घानी मूंदी घूमत हे,सब लइका बीच सुमत हे।4।


संगी साथी जुरमिल के,नाचत हे डोंगा ढिलके।

गिर गिर घेरी घाँव उठै,मीत मितानी मया गुथै।5


पाँख हलावत हे मयना,कँउवा के छिनगे चयना।

ठिहा उजरगे हे कतको,नइ सूखत हावय पटको।6


काँदी काँदा कुसा जगै,हरियर हरियर धरा लगै।

बूता  बाढ़े  हे अबड़े,बेर  किसानी  के  हबरे।7।


छानी परवा टपकत हे,गोड़ म लेटा चपकत हे।

फुरफूँदी बड़ उड़त हवै,फरा अँगांकर चुरत हवै।8


कतको धर बइठे तरवा, चूँहत हे छानी परवा।

मछरी पार म चढ़त हवै,बगुला मंतर पढ़त हवै।9


फाँदे हावय बबा गरी,नइ खावँव कहि जरी बरी।

चूल्हा बड़ गुँगवावत हे,झड़ी म घर मे दावत हे।10


सइमो सइमो खेत करे,बइला हरियर काँद चरे।

घण्टी गर के बाजत हे,काम बुता मा सब रत हे।11


निकले बरसाती खुमरी,भाय ददरिया अउ ठुमरी।

बाढ़त हे दनदन थरहा,मजा करे बइला हरहा।12


टरटर मेंढक गावत हे,झींगुर राग लमावत हे।

बत्तर फाँफा मच्छर हे,बगरे बीमारी जर हे।13


किरा मकोड़ा के डर हे,करिया नागिन बिखहर हे।

बिच्छल सब्बो तीर हवै,धीर म भइया खीर हवै।14


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

सखी छंद

 सखी छंद


मन चंगा अउ तन चंगा,तभे कठौती मा गंगा।

जेहर बिहना ले जागे,ओखर किस्मत हा भागे।


करे अलाली जौने हा, दुख पाये बड़ तौने हा।

भोजन खावै जे ताजा,ओहर काया के राजा।


सुध लेवय जे काया के,अधिकारी सुख माया के।

तन मा मदिरा जे डाले,वो बिखहर नागिन पाले।


गिनहा रद्दा जे जाये,गारी गल्ला वो खाये।

करम बने जेखर होथे,नींद ससन भर वो सोथे।


मीत मितानी जे राखे,ओखर अंजोरी पाखे।

फिकर करे जे काली के,पिंवरा पाना डाली के।


आज म जिनगी जे जीथे,वो हरदम अमरित पीथे।

मीठा बोली जे बोले,जिनगी मा मधुरस घोले।


बात बड़े के जे माने,वो जिनगी जीना जाने।

धरम करम ला जे छोड़े,वो दुख कोती पग मोड़े।


पर पीरा मा जे हाँसे, गड़ जावै उहुला ला फाँसे।

जे बिरवा मा फर लागे,ओखर सब पाछे आगे।


बैर लड़ाई जे पाले,अपने जिनगी वो घाले।

छटकारे पर बर आँखी,झड़ जावव सुख के पाँखी।


जे पर बर खँचका कोड़े,ओखर गड्ढा मा गोड़े।

जौन दुवा सबके पाये,वोहर दुनिया मा छाये।


खैरझिटिया

डमरू घनाक्षरी

 डमरू घनाक्षरी

 अकड़ बड़, बकर बकर बड़।

करत रथस नित, मटमट मटमट।।

सुनस गुनस नइ, सुमत चुनस नइ।

असत फुनस नइ, कहिथस रटपट।।

लिख अउ पढ़ तँय, सत गुण धर तँय।

मनुष असन रह, कर झन खटपट।।

बचन मधुर कह, मिलजुल नित रह।

लँदर फँदर तज, झटपट झटपट।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कपड़ा(सखी छंद)

 कपड़ा(सखी छंद)


कपड़ा ले सब तन ढाँके,कपड़ा ले मनखे आँके।

कपड़ा महँगा जौने के,चारी होवय तौने के।1।।।


पट परिधान वसन नामे,अंबर चीर ह जग थामे।

चीर पहिर मारे सेखी,लेय जरे देखा देखी।2।।।।


टेरी काट ऊनी सूती, कपड़ा के मोजा जूती।

कपड़ा चद्दर कथरी मा,कपड़ा तंबू छतरी मा।3।


कपड़ा होथे डोला में,कपड़ा झंडा झोला में।

कपड़ा के होथे छन्नी,कपड़ा बन जाथे चन्नी।4।


कोटी कुर्था बंगाली,नीला पीला अउ लाली।

पहिरे साहब सर माली,कपड़ा कार्पेट त जाली।5।


टोपी टाई के थप्पी,पागा साफा कनचप्पी।

स्वेटर साल रहे चेंदी,गुँड़ड़ी बन गघरा पेंदी।6।


कपड़ा के बनथे पोंछा,कपड़ा के होय अँगोछा।

कपड़ा तिरपाल बने गा,पैरासुट जाल बने गा।7।


साज सजाना सामियाना,कपड़ा के ताना बाना।

कपड़ा के बैनर पर्दा,रोके रूमाल ह गर्दा।8।।।


कपड़ा के धुकनी पंखा,बटुवा मा राखय तंखा।

होथे कपड़ा के पाती,काम अबड़ नाना जाती।8।


कई किसम के कपड़ा हे,आज अबड़ जी लफड़ा हे।

कोई घूमय तन ढाके,कोई कटवाये नाके।9।।


फेसन के अब युग आगे,कपड़ा लत्ता ह कटागे।

बदलत हे अब पहिनाँवा,पश्चिम मारत हे झाँवा।10।


किसम किसम रंग म होथे,मोह मया कपड़ा मोथे।

कपड़ा के महिमा भारी,कइसे कर पावौं चारी।11।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




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# 118

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Date: 2019-06-27

Subject: 


सखी छंद


मन चंगा अउ तन चंगा,तभे कठौती मा गंगा।

जेहर बिहना ले जागे,ओखर किस्मत हा भागे।


करे अलाली जौने हा, दुख पाये बड़ तौने हा।

भोजन खावै जे ताजा,ओहर काया के राजा।


सुध लेवय जे काया के,अधिकारी सुख माया के।

तन मा मदिरा जे डाले,वो बिखहर नागिन पाले।


गिनहा रद्दा जे जाये,गारी गल्ला वो खाये।

करम बने जेखर होथे,नींद ससन भर वो सोथे।


मीत मितानी जे राखे,ओखर अंजोरी पाखे।

फिकर करे जे काली के,पिंवरा पाना डाली के।


आज म जिनगी जे जीथे,वो हरदम अमरित पीथे।

मीठा बोली जे बोले,जिनगी मा मधुरस घोले।


बाते बड़े के जे माने,वो जिनगी जीना जाने।

धरम करम ला जे छोड़े,वो तकदीर अपन मोड़े।


पर पीरा मा जे हाँसे,अपन खुशी ला वो फाँसे।

जे बिरवा मा फर लागे,ओखर सब पाछे आगे।


बैर लड़ाई जे पाले,अपने जिनगी ला घाले।

छटकारे पर बर आँखी,झड़ जावव सुख के पाँखी।


जे पर बर खँचका कोड़े,ओखर गड्ढा मा गोड़े।

जौन दुवा सबके पाये,वोहर दुनिया मा छाये।


खैरझिटिया

होली गीत

 होली गीत


इरखा द्वेष जराबों, चलो रे संगी होली मनाबों।

अन्तस् ले अन्तस् मिलाबों, चलो रे संगी-----।


मन रूपी जंगल भीतरी जाबों।

अवगुण के छाँट लकड़ी लाबों।

गाँज के अगिन लगाबों, चलो रे संगी-----।


तन ला रंगबों मन ला रंगाबो।

घर ला रंगबों बन ला रंगबों।।

आघू पाँव बढ़ाबों, चलो रे संगी-----------।


सत सुम्मत ला देबों पँदोली।

भरबों सबके खाली झोली।।

हँसबो अउ हँसवाबों, चलो रे संगी---------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छंद के छ के होली-दोहा गीत

 छंद के छ के होली-दोहा गीत


"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग।

साधक सब जुरियाय हे,देवत हावै राग।


आज छंद परिवार मा,माते हवै धमाल।

सुधा सुनीता केंवरा,छीचत हवै गुलाल।

सरस्वती सुचि ज्योति शशि,चित्रा ला भुलवार।

आशा मीता मन लुका,करय रंग बौछार।

रामकली धानेश्वरी,भागे सबला फेक।

नीलम वासंती तिरत,लाने उनला छेक।

शोभा  संग तुलेश्वरी,गाये सुर ला पाग।

"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग----


बादल बरसत हे अबड़,धरे गीत अउ छंद।

ढोल बजाय दिलीप हा, मुस्की ढारे मंद।।

मोहन मनी मिनेश मिल,केतन मिलन महेंद्र।

गावत हे गाना गजब,मथुरा अनिल गजेंद्र।।

ईश्वर अजय अशोक सँग,हे ज्ञानू राजेश।

घोरे हावय रंग ला,भागय हेम सुरेश।।

मुचमुचाय जीतेन्द्र हा,भिनसरहा ले जाग।

"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग--------


दुर्गा दीपक दावना,सँग गजराज जुगेश।

श्लेष ललित सुखदेव ला,ताकय छुप कमलेश।

लीलेश्वर जगदीश सँग,बइहाये बलराम।

लहरे अउ कुलदीप के,करे चीट कस चाम।

पोखन तोरन मातगे,माते हे वीरेंद्र।

उमाकांत अउ अश्वनी,सँग माते वीजेंद्र।

सरा ररा सूर्या कहे,भिरभिर भिरभिर भाग।

"छंद के छ"के मंच मा,माते हावै फाग-----


पुरषोत्तम धनराज ला,खीचत हे संदीप।

कौशल रामकुमार मन,फुग्गा फेके छीप।

बोधन अउ चौहान के,रँगदिस गाल गुमान।

सत्यबोध राधे अतनु,भगवत हे परसान।।

राजकुमार मनोज हा,पूरन ला दौड़ाय।

अरुण निगम गुरुदेव हा,देखदेख मुस्काय।

सब साधक मा हे भरे,मया दया गुण त्याग।

"छंद के छ"के मंच मा,माते हावै फाग-----


बारह तेरह का कहँव, चौदह तक हे सत्र।

होली के भेजत हवँव, सबला बधई पत्र।

का जुन्ना अउ का नवा, सबे एक परिवार।

हमर लोक साहित्य के, बोहे हावै भार।

आगर कोरी पाँच हे,हमर छंद परिवार।

छूटे जिंखर नाम हे, उन सबला जोहार।

पहुना सत्यप्रकाश हे, हमर जगे हें भाग।

"छंद के छ"के मंच मा,माते हावै फाग-----


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा

रोला छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 रोला छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


आगे रंग तिहार, चलत हे बड़ पिचकारी।

बाजे मांदर झाँझ, नँगाड़ा तासक भारी।

लइका संग सियान, मगन सब मिलजुल नाँचे।

चिक्कन कखरो गाल, आज के दिन नइ बाँचे।


भजिया बरा बनाय, खाय सब झन मिलजुल के।

होके मस्त मतंग, फाग मा नाँचे खुलके।।

काय बड़े का छोट, पटत हे सबके तारी।

कोई होगे लाल, गाल कखरो हे कारी।


धरती संग अगास, रंग गेहे होली मा।

परसा सेम्हर साल, प्लास नाँचे डोली मा।

नवा नवा हे पात, फूल हे आनी बानी।

सज धज हे तइयार, गजब के धरती रानी।


छोड़ तोर अउ मोर, तभे होली हे होली।

मिल अन्तस् ला खोल, बोल मधुरस कस बोली।

चुपर मया के रंग, धोय मा नइ धोवाये।

नीला पीला लाल, रंग दू दिन के ताये।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छंद-कुंडलियाँ छंद

 छंद-कुंडलियाँ छंद


काली के सब काम ला,आजे देवव टार।

काली काली झन रटव,आजे हावय सार।

आजे हावय सार,आज मा जीना चाही।

बीते बेर बिसार,तभे सुख के दिन  आही।

करव बने नित काम,रहव झन कभ्भू खाली।

रखव मया सत साथ ,पता का होही काली।1।


बारव जोती ज्ञान के,अन्तस् मन उजराव।

सोच सदा बढ़िया रखव,मान गउन नित पाव।

मान गउन नित पाव,करौ झन कारज गिनहा।

ये काया अनमोल,छोड़ लव एखर  चिनहा।

भरम भूत दुरिहाव,जिया के जाला झारव।

मन राखव नित साफ,द्वेष इरसा ला बारव।2।


जामे नान्हे पेड़ हे,एती वोती देख।

समय हवै बरसात के,लेवौ बने सरेख।

लेवौ बने सरेख,बगीचा बाग बनालौ।

अमली आमा जाम,लगाके मनभर खालौ।

हवा दवा फर देय,पेंड जिनगी ला थामे।

बढ़िया जघा लगाव,मरे झन पौधा जामे।3।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

एक दिन के दिवस(सार छंद)

 एक दिन के दिवस(सार छंद)


का  का  दिवस  मनाथौ  भैया,सुनके  काँपे  पोटा।

नेत नियम कुछु आय समझ ना,धरा दुहू का लोटा।


चर दिनिया हे मानुष काया,हाँसी खुशी गुजारौ।

धरत हवै भुतवा पश्चिम के,दया मया ले झारौ।

संस्कृति अउ संस्कार बचावौ,आदत नियत सुधारौ।

सबके जिया मा बसव बने बन,कखरो घर झन बारौ।

सोज्झे मुरुख बनावत फिरथौ,अपन उठा के टोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा-----।


दाई  बाबू  के  पूजा  तो,रोजे होना  चाही।

रोजे जागे देश प्रेम हा,तभे बात बन पाही।

पवन पेड़ पानी ला जतनौ,रोजे पुण्य कमावौ।

धरती  दाई  के  सुध  लेवव,पर्यावरण बचावौ।

गौरया के गीत सुनौ नित,मारव झन जी गोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा।


हूम  देय  कस  काज करौ झन,करौ झने देखावा।

अइसन दिवस मनावौ झन जे,फूटय बनके लावा।

मीत  मितानी  रोजे  बढ़ही,रोजे  धन  दोगानी।

एक दिवस मा काम चले नइ,कहौ मीठ नित बानी।

थामव कर मा डोर मया के,झन धर घूमव सोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा--।


दाई ददा गुरु ज्ञानी ला, दिन तिथि मा झन बाँधौ।

देखावा मा उधौ बनव ना, देखावा मा माँधौ।

छोट बड़े ला दया मया नित, हाँस हाँस के बाँटौ।

धरे एक दिन फूल गुलाब ल, कखरो सिर झन चाँटौ।

पश्चिम के परचम लहरावत, बनव न सिक्का खोटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा--।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरखिटिया"

बाल्को(कोरबा)

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" का तोला परघाँव(सरसी छ्न्द)

 गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

का तोला परघाँव(सरसी छ्न्द)


का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।

कोरोना हे काल बरोबर, घड़ी घड़ी घबराँव।।


चहल-पहल नइहे मंदिर मा, नइहे तोरन ताव।

डर हे बस अन्तस् के भीतर, भक्ति हवै ना भाव।

जिया बरत हे बम्बर मोरे, कइसे जोत जलाँव।

का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।


मनखे मनखे ले दुरिहागे, खोगे सब सुख चैन।

लइका संग जवान सबे के, बरसत हावै नैन।

मातम पसरे हवै देख ले, शहर लगे ना गाँव।

का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।


जियई मरई सब एक्के लागे, मचगे हाँहाकार।

रक्तबीज कस बढ़े कोरोना, लेके आ अवतार।

आफत भारी हवै टार दे,परौं तोर मैं पाँव।

का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गीत

 गीत

मया होगे हे, मया हो गेहे।

चैन जिया के खो गेहे।।


मन नइ लागे कुछु करे के,

 सुध बुध तक भुलागे हौं।

कइसे लहुटँव प्रीत डहर ले, 

अड़बड़ आघू आगे हौं।


जागे दिन अउ रात जिया हा,

नैन भले मोर सो गे हे-----।।


मारे ताना मोला जमाना, 

तभ्भो धरे हँव प्रीत के बाना।

भूख लगे ना प्यास लगे, 

अधर मा रहिथे प्रीत के गाना।


मोहनी सुरतिया मन मा मोरे,

अइसन मया मो गे हे---------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तुलसी तोर रमायण(भजन)


जग बर अमरित पानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


शब्द शब्द मा राम रमे हे, शब्द शब्द मा सीता।

गूढ़ ग्यान गुण गोठ गँजाये, चिटिको नइहे रीता।

सत सुख शांति कहानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सब दिन बरसे कृपा राम के, दरद दुःख डर भागे।

राम नाम के महिमा भारी, भाग भगत के जागे।।

धर्म ध्वजा धन धानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सहज तारथे भवसागर ले, ये डोंगा कलजुग के।

दूर भगाथे अँधियारी ला, सुरुज सहीं नित उगके।

बेघर के छत छानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।


प्रश्न घलो कमती पड़ जाही, उत्तर अतिक भरे हे।

अधम अनाड़ी गुणी गियानी, सबके दुःख हरे हे।

मीठ कलिंदर चानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


तुलसी दास जयंती की बहुत बहुत बधाई

अइसे म भागही कोरोना

 अइसे म भागही कोरोना


                 हमर भारत देश गाँव के देश ये, गाँव म ही हमर जनसंख्या के आधा ले जादा आबादी निवास करथे।  गाँव म हॉस्पिटल अउ डिग्री धारी डॉक्टर नही बल्कि हल्का फुल्का जानकार डॉक्टर जेला, सरकार झोला छाप कहिके लताड़थे, उही मन जमाना ले सेवा करत आवत हे, छोट मोट बीमारी ओखरे दवा पानी म ठीक होत आय हे, जादच बढ़थे तभो गाँव वाले मन शहर कोती जाथे। उही डॉक्टर मन गाँव वाले मन बर भगवान आय। वर्तमान समय म सरी दुनिया कोरोना के दंश ल झेलत हे, येमा भारत घलो अछूता नइहे। दिन ब दिन मरीज मनके संख्या बढ़त जावत हे, हॉस्पिटल म बिस्तर घलो कम पड़ जावत हे। शहर त शहर, गांव के जम्मो मनखे मन घलो ये रोग के इलाज बर शहरे कोती भागत हे। कोरोना के भयावह डर देखाके, सरकार गाँव के डॉक्टर मनके हाथ ल बाँध देहे, अइसन म भयावह स्थिति बनबेच करही। गाँव के मनखे  हॉस्पिटल के हालत ल देखत शुरुवात म ये रोग के प्रति कोनो प्रकार के ध्यान नइ देवत हे, अउ जब बाढ़ जावत हे, त हॉस्पिटल जाये बर मजबूर हो जावत हें।  का कोरोना हॉस्पिटले म सरकार के ठप्पा वाले डॉक्टर मन से ही ठीक होवत हे? का कोरोना के दवाई सिर्फ उँहिंचे हे? यदि कोरोना के कोनो प्रामाणिक दवाई हे त वोला का गाँव के डॉक्टर मन नइ दे सके? का हॉस्पिटल म ही जाना जरूरी हे? हाँ भले जब रोग बढ़ जावत हे या ऑक्सीजन के जरूरत पड़त हे त बात अलग हे। जेन सुरक्षा हास्पिटल के डॉक्टर खुद बर अपनाथे, उही सुरक्षा ल जरूरी करत गाँव के डॉक्टर मन ल घलो ये रोग के मरीज मनके सेवा करे बर प्रोत्साहित करें बर पड़ही, तभे ये सरलग बाढ़त कोरोना ल रोके जा सकत हे, नही ते आदमी डरे म दम तोड़ दिही, प्राथमिक सहायता अउ दवाई देवइया ल आघू लाय बर पड़ही, तभे हमर विशाल जनसंख्या कोरोना ले लड़ पाही, अउ भयमुक्त हो पाही। आधा तो रोग ले जादा डर छाये हे, ये डर अउ ये रोग तभे भागही जब एखर इलाज सहज सुलभ ढंग ले होही।


                 हॉस्पिटल म सेवा देवइया मन घलो कोनो आन लोक के तो प्राणी नोहे, उही मन मनखेच आय। जब वो मन कोरोना के मरीज ल ठीक कर सकत हे, त मोर खियाल से दवा पानी उपलब्ध कराये जाय त, गाँव के डॉक्टर म घलो ठीक कर सकत हे, अउ नही त मरीज के संख्या ल तो जरूर कम कर सकत हे। पहली ले साव चेत करत दवाई पानी देय म रोग नइ बाढ़ पाही। येखर बर वो जम्मो दवाई ल सहज उपलब्ध कराय बर पड़ही, जे हॉस्पिटल म भर्ती होय के बाद चलथे। कोरोना के रोगी घर म बिना डॉक्टर के कोरेण्टाइन होके आखिर का कर सकही, कोनो न कोनो थेभा तो चाही न, ऊंखर मन बर स्पेशल शहर ले तो कोनो डॉक्टर नइ आवय, त घर म कोरेण्टाइन के का फायदा। हर गाँव म कोई न कोई डॉक्टर सूजी पानी देथे, बात बात म कोनो ब्लाक या शहर के अस्पताल म जाना सहज नइ हे। अस्पताल म सूजी लिख देथे, त लगइया भी तो चाही, का सुजीच लगाये बर वो मरीज अस्पताल म भर्ती रहिथे, नही न, आखिर म इही डॉक्टर मन तो काम आथे। हो सकथे कुछ मन कम जानत होही, फेर सबे डॉक्टर ल झोला छाप कहिके गरियाना गलत हे। पहली जमाना से आज तक इंखरे थेभा म गाँव के स्वास्थ भला चंगा हे। ये महामारी ल देखत उन सबला जिम्मेदारी देय के जरूरत हे। आवश्यक सुरक्षा के संग सरकार अपन दिशा निर्देश देके उन सबला काम  सौपे त सहज अइसन महामारी ले निपटे जा सकत हे। भले आज डॉक्टर नर्स के संख्या पहली ले बहुत जादा बाढ़ गेहे, तभो सुदूर गाँव म स्वास्थ सेवा देवइया, उही गाँव के डॉक्टर मन हे। कुछ सरकारी या डिग्री धारी डॉक्टर मन शहर के नजदीक वाले गांव म सेवा देथे, जेमन सुबे क्लीनिक खोलथे अउ संझा बन्द करके शहर भाग जाथे। का तबियत रात म नइ बिगड़त होही, तब कोन काम आथे, यहू बात ल सोचना चाही।


                  मान ले कोनो मनखे के गोड़ टूट गेहे, अउ यदि ओखर घर दू तीन कदम दुरिहा हे त वो बपुरा दर्द ल सहत कूद फांद के घर घलो चल देथे, फेर कहूँ कई कोस दुरिहा हे त,,,, ओखर मन म संसो छा जथे, वो घबरा जथे, डर जथे। अउ जहाँ डर तहाँ जर स्वाभाविक हे। आज कोरोनाकाल म घलो इही स्तिथि देखे बर मिलत हे, इलाज के सुविधा कई कोस दुरिहा म हे, इही कहूँ नजदीक हो जही, त मरीज ल सम्बल मिलही, ओखर डर भय भागही, येखर बर नजदीक के जेन जानकार डॉक्टर हे ओला सेवा के अवसर दे बर पड़ही। सबे चीज डिग्री म सम्भव नइहे, कुछ म दिमाक अउ अनुभव घलो काम करथे। गाँव होय या फेर शहर होय सबे कोती के मनखे मन अपन जर बुखार बर एक झन डॉक्टर धरे रहिथे, फेर आज वो डॉक्टर मन मजबूर होके हाथ बाँध के बइठे हे, मरीज ल प्राथमिक साथ अउ सलाह नइ मिलत हे। कथे न अपन अपन होथे, आज उही अपन के सलाह, साथ के अभाव के कारण डर बाढ़त हे अउ जर घलो। 


               सरकारी अस्पताल मरीज मन ले भराय हे, प्रायवेट चिन्हित अस्पताल म घलो जघा नइहे, आज ये भयावह स्थिति हे, मरीज बिगड़े हालत म अस्पताल आवत हे, आखिर हालत बिगड़त काबर हे, हो सकथे उन ला प्राथमिक उपचार नइ मिल पावत होही। का छोटे छोटे क्लीनिक वाले अउ गाँव शहर के जानकार डॉक्टर मन कोरोना बर कुछु नइ कर सकय। मोर खियाल ले जेन अतिक दिन ले सूजी पानी, दवा दारू करत हे, ते मन बहुत कुछ कर सकत हे, बसर्ते ऊंखर बंधाये हाथ ल सरकार खोले, अउ उनला आघू लावय। कोरोना हे कहिके गम्भीर बीमारी ले तड़पत मनखे मन ल कोविड हॉस्पिटल म डार देना घलो दुखद हे। डाकडाउन म काम धंधा बंद हे, कतको घर दाना पानी के घलो किल्लत मच गेहे, अइसन समय म घलो कतको मन दवाई दारू नइ कर सकत हे, अउ कोरोना ल बढ़ा डरत हे। सरकार ल जानकार डॉक्टर मनके माध्यम ले उंखर मदद करना चाही। अस्पताल म भर्ती होय के नवबत झन आय ये डहर सोचे के जरूरत हे, आज तो सर्दी खाँसी बुखार माने कोरोनच होगे हे, त पहली ले सचेत रहन अउ दवा पानी करन। कतको जघा तो बिना कोरोना टेस्ट के सर्दी खाँसी बुखार के दवाई घलो नइ मिलत हे, ते दुखद स्थिति हे। कतको मन टेस्ट म पॉजिटिव आय के डर म टेस्ट नइ करावत हे, कि  कहीं पॉजिटिव आही त सरकार धर बाँध के अस्पताल म डार दिही। कतको झन अस्पताल म दम तोड़त मरीज मन ल देख के सदमा म हे, अउ अस्पताल ले बचना घलो चाहत हे। सही सलाह अउ दिलासना देवइया नजदीक के डॉक्टर मन ल येखर बर आघू लाय बर पड़ही, कोरोना के टेस्ट अउ इलाज के दायरा(गांव गांव तक) बढ़ाय बर पड़ही, तभे कोरोना के डर भागही, अउ जब डर भागही, तभे जर भागही।


(मोर लिखे के मतलब कोनो ल बने गिनहा या छोटे बड़े साबित करना नही, बल्कि सबे कोती अइसन महामारी के इलाज के प्रक्रिया ल सरल सहज बनाय बर जोर देना हे)


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

जय हनुमान-कुंडलियाँ छंद

 जय हनुमान-कुंडलियाँ छंद


भारी आहे आपदा, सबे हवै हलकान।

हाथ जोड़ सुमिरन करौं, दुरिहावव हनुमान।

दुरिहावव हनुमान, काल बनगे कोरोना।

शहर कहँव का गाँव, उजड़गे कोना कोना।

सब होगे मजबूर, खुशी मा चलगे आरी।

का विकास विज्ञान, सबे बर हे जर भारी।।


चंदा ला लेहन अमर, लेहन सूरज जीत।

कोरोना के मार मा, तभो पड़े हन चीत।

तभो पड़े हन चीत, सिरागे गरब गुमानी।

घर भीतर हन बंद, पियत हन पसिया पानी।

मति गेहे छरियाय, लटकगे गल मा फंदा।

टार रात अँधियार, पवन सुत बन आ चंदा।।


चारो कोती मातगे, हाल होय बेहाल।

सुरसा कस मुँह फार दिस, कोरोना बन काल।

कोरोना बन काल, लिलत हे येला वोला।

अइसन आफत देख, काँप जावत हे चोला।

आजा हे हनुमान, दुखी जन के सुन आरो।

नइ आवत हे काम, नता धन बल गुण चारो।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा(छग)


श्री हनुमान जयंती के आप ला सादर बधाई।।।

सपरिवार सदा स्वस्थ सुखी रहव।।।

ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*

 ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


पैदा होवत पर निकलगे।

फूल के बिन फर निकलगे।1


बाहिरी मा खोज होइस।

चोर घर भीतर निकलगे।2


दू भगाये लड़ते रहिगे।

पेट तीसर भर निकलगे।3


सर्दी अउ खाँसी जनम के।

आज बड़का जर निकलगे।4


घुरघुरावत जी रिहिस बड़।

हौसला पा डर निकलगे।5


गाय गरुवा मन घरे के।

सब फसल ला चर निकलगे।6


जेन ला झमझेन दाता।

साँप वो बिखहर निकलगे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

सन्त कवि कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़

 सन्त कवि कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़


                   संत कवि कबीर दास जी के नाम जइसे ही हमर मुखारबिंद म आथे, त ओखर जीवन-दर्शन, साखी-शबद अउ जम्मों सीख सिखौना नजर आघू झूल जथे। *वइसे तो कबीरदास जी के अवतरण हमर राज ले बाहिर होय रिहिस, तभो ले, सन्त कवि कबीर दास जी अउ ओखर शिक्षा दीक्षा हमर छत्तीसगढ़ म अइसे रचबस गेहे, जेला देखत सुनत कभू नइ लगिस कि कबीरदास जी आन राज के सिध्द रिहिन।* कबीर दास जी के नाम छत्तीसगढ़ भर म रोज सुबे शाम गूँजत रहिथे। इहाँ के बड़खा आबादी कबीरपंथी हें, जेला कबीरहा घलो कहिथें,येमा कोनो जाति विशेष नही, बल्कि सबे जाति धरम के मनखे मन कबीर साहब के पंथ ल स्वीकारे हें। छत्तीसगढ़ ल कबीरमय करे म कबीर दास जी के पट चेला धनी धरम दास(जुड़ावन साहू) जी के बड़खा योगदान हे। सुने म मिलथे कि , एक बेर कबीरदास जी नानक देव संग पंथ के प्रचार प्रसार बर छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा म अपन पावन पग ल मढ़ाये रहिस हे, उही समय ,जुड़ावन साहू जी कबीरदास जी ले अतका प्रभावित होइस कि अपन जम्मों धन दौलत ल कबीरदास के चरण कमल म अर्पित कर दिन, अउ ओखर दास बनगिन(जुड़ावन ले दीक्षा पाके धरम दास होगिन)। अउ हमर परम् सौभाग्य कि धनी धरम दास जी महाराज अपन गद्दी छत्तीसगढ़ म बनाइन, अउ इँहिचे रहिके कबीरपंथ ल आघू बढ़ाइन, अउ छत्तीगढ़िया मन अड़बड़ संख्या म जुड़िन घलो। धनी धरम दास जी ह कबीर के मुखाग्र साखी शब्द मन ल अपन कलम म ढालिस, ओ भी  हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म। वइसे तो कबीरदास जी के भाषा  ल पंचमेल खिचड़ी या सधुक्कड़ी कहे जाथे, तभो ओखर प्रकशित पोथी म छत्तीसगढ़ी के प्रभाव दिखतेच बनथे--


धर्मदास के कुछ छतीसगढ़ी पदः-


मैं तो तेरे भजन भरोसो अविनाशी

तिरथ व्रत कछु नाही करे हो

वेद पड़े नाही कासी

जन्त्र मन्त्र टोटका नहीं जानेव

नितदिन फिरत उदासी

ये धट भीतर वधिक बसत हे

दिये लोग की ठाठी

धरमदास विनमय कर जोड़ी

सत गुरु चरनन दासी

सत गुरु चरनन दासी

**

आज धर आये साहेब मोर। 

हुल्सि हुल्सि घर अँगना बहारौं, 

मोतियन चऊँक पुराई। 

चरन घोय चरनामरित ले हैं 

सिंधासन् बइ ठाई। 

पाँच सखी मिल मंगल गाहैं, 

सबद्र मा सुरत सभाई।

**

संईया महरा, मोरी डालिया फंदावों। 

काहे के तोर डोलिया, काहे के तोर पालकी 

काहै के ओमा बाँस लगाबो 

आव भाव के डोलिया पालकी 

संत नाम के बाँस लगावो 

परेम के डोर जतन ले बांधो, 

ऊपर खलीता लाल ओढ़ावो 

ज्ञान दुलीचा झारि दसाबो, 

नाम के तकिया अधर लगावो 

धरमदास विनवै कर जोरी, 

गगन मंदिर मा पिया दुलरावौ।"


ये पद मन पूर्णतः कबीरदास जी ले ही प्रभावित हे,


              धनी धरम दास जी के जनम घलो छत्तीसगढ़ ले इतर मध्यप्रदेश(उमरिया) म होय रहिस, फेर वो जुन्ना समय म मध्यप्रदेश के  मेड़ो तीर के गांव  सँग गौरेला पेंड्रा के जम्मो इलाका बिलासपुर के सँग जुड़े रहय, तेखर सेती धनी धरमदास जी म छत्तीगढ़िया पन कूट कूट के भरे रिहिस। अउ जब कबीर के साखी शबद रमैनी मन ल धनी धरम दास जी पोथी म उतारिन, त वो  जम्मों छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म सहज उतरगे। 

                   धनी धरम दास जी के परलोक गमन के बाद, ओखर सुपुत्र चूड़ामणि(मुक्तामणि नाम साहेब) साहब घलो छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के गद्दी ल सँभालिन, अउ कोरबा जिला के कुदुरमाल गाँव म अपन गद्दी बनाइन, कुदुरमाल के बाद कबीर गद्दी परम्परा आघू बढ़त गिस अउ रतनपुर, मण्डला, धमधा, सिंगोढ़ी, कवर्धा म घलो गुरुगद्दी बनिस। चूड़ामणि साहेब के बाद ओखर सुपुत्र सुदर्शन नाम साहेब रतनपुर म गुरुगद्दी परम्परा के निर्वहन करिन, तेखर बाद कुलपति नाम साहेब, प्रमोध नाम साहेब, केवल नाम साहेब -----आदि आदि गुरु मनके सानिध्य म कबीरपंथ छत्तीसगढ़ म फलन फूलन लगिस। *गुरुगद्दी के 12वा  गुरु महंत अग्रनाम साहेब ह दामाखेड़ा म धनी धरम दास जी महाराज के मठ सन 1903 म स्थापित करिन, जिहाँ आजो कबीरपंथी मनके विशाल मेला भराथे।* वइसे तो कबीर पंथ के मुख्यालय सन्त कवि कबीरदास जी के नाम म बने जिला कबीरधाम जिला म हे, फेर कबीर पंथी मन छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा म समाये हें। 

                   धनी धरम दास जी ल दक्षिण के गुरुगद्दी के कमान सौपत बेरा कबीरदास जी भविष्यबानी करे रिहिन कि, धरम दास जी के नेतृत्व म कबीरपंथ खूब  फलही फुलही, अउ उही होइस घलो। *धनी धरम दास जी, कबीर पंथ के 42 गुरुगद्दी के स्वामी मनके नाम लिख के चल देहे। वर्तमान म 14 वाँ गुरुगद्दी के स्वामी प्रकाशमुनि नाम साहेब जी हे।* छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी मन कबीरदास जी महाराज के नीति नियम ल हृदय ले स्वीकार करथें, अउ सुख दुख सबे बेरा कबीरदास जी महाराज के नाम लेथें। छत्तीसगढ़ म कबीरपंथी समुदाय म चौका आरती के परम्परा हें, जेमा कबीर साहेब के साखी शबद गूँजथें। कबीरपंथी छत्तीसगढ़ के उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो मुड़ा सहज मिल जथे, अउ जेमन कबीर पंथी नइहे उहू मन कबीरदास जी के सीख सिखौना ल नइ भुला सकें। सबे जाति वर्ग समुदाय म कबीरदास जी महाराज के छाप हे। छत्तीसगढ़ भर म कबीर जयंती धूमधाम ले मनाये जाथे। जघा जघा मेला भराथे। *दामाखेड़ा, कुदुरमाल, कवर्धा, सिरपुर* आदि जघा कबीरपंथी मनके पावन तीर्थ आय, जिहाँ न सिर्फ कबीर पंथी बल्कि जम्मो जाति समुदाय सँकलाथे।

           कबीरदास जी दलित मनके मसीहा, पीड़ित मनके उद्धारक, दबे कुचले मनके आवाज रिहिन, समाजिक अन्याय अउ विषमता के  घोर विरोधी अउ न्याय संग समता के संस्थापक रिहिन। तेखरे सेती न सिर्फ हिन्दू मन बल्कि मुस्लिम अउ ईसाई मन घलो कबीरदास जी के अनुसरण करिन। कबीरदास जी के दोहा, साखी सबद न सिर्फ कबीरपंथी बल्कि छत्तीसगढ़ के घरों घर म टीवी रेडियो टेप टेपरिकार्डर के माध्यम ले मन ल बाँधत सरलग सुनाथे। कबीरदास जी महराज धनी धरम दास जी कारण छत्तीसगढ़ के कण कण म विराजित हे। कबीरदास जी के दोहा साखी सबद मनके कोनो सानी नइहे, विरोध के सुर के संगे संग जिनगी जिये के सार जम्मो छत्तीगढ़िया मन ल अपन दीवाना बना लेहे। पूरा भारत भर म छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के सबले जादा आश्रम अउ गद्दी संस्थान हे। कतको छत्तीगढ़िया मन आपस म *साहेब* कहिके अभिवादन करथें। अउ जादा का लिखँव महूँ, कबीरहा आँव।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया

 कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया


कबीरदास जी महाराज निर्गुण भक्ति धारा के महान संत, समाज सुधारक दीन दुखी मनके हितवा रिहिन, अउ बेबाक अपन बात ल कहने वाला सिद्ध पुरुष रिहिन। उंखर दिये ज्ञान उपदेश न सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि भारत भर के मनखे मनके अन्तस् मा राज करथें। कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़ के ये पावन प्रसंग म,मैं उंखर कुछ दोहा, जेन छत्तीसगढ़ के मनखे मनके अधर म सबे बेर समाये रहिथे, ओला सँघेरे के प्रयास करत हँव, ये दोहा मन आजो सरी संसार बर दर्पण सरीक हे, ये सिर्फ पढ़े लिखें मनखे मनके जुबान म ही नही, बल्कि जेन अनपढ़ हे तिंखरो मनके अधर ले बेरा बेरा म सहज बरसथे-----


                 जब जब हमर मन म कभू कभू भक्ति भाव उपजथे, अउ हमला सुरता आथे कि माया मोह म अतेक रम गे हन, कि भाव भजन बर टेम नइहे, त कबीरदास जी के ये दोहा अधर म सहज उतर जथे- 

*लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।*

*पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट ।।*

(देवारी तिहार म जब राउत भाई मन दफड़ा दमउ के ताल म, दोहा पारथे, तभो ये दोहा सहज सुने बर मिलथे।)


          कबीरदास जी के ये दोहा, तो लइका संग सियान सबे ल, समय के महत्ता के सीख देथे, अउ आज काली कोनो कहिथें, त इही दोहा कहे अउ सुने बर मिलथे-

*काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।*

*पल में प्रलय होएगी, बहुरी करेगा कब ।।*


लोक मंगल के भाव जब अन्तस् म जागथे, त कखरो कमी, आफत -विपत देख अन्तस् आहत होथे, त हाथ जोड़ छत्तीगढ़िया मनके मुख ले इही सुनाथे-

*साईं इतना दीजिये, जा के कुटुम्ब समाए ।*

*मैं भी भुखा न रहू, साधू ना भुखा जाय ।।*


                 मनखे के स्वभाव हे सुख म सोये अउ दुख म कल्हरे के, कहे के मतलब सुख के बेरा सब ओखर अउ दुख आइस त ऊपर वाला के देन। फेर जब समय रहत ये दोहा हमला याद आथे, त सजग घलो हो जथन, अउ अपन अहम ल एक कोंटा म रख देथन। सुख अउ दुख हमरे करनी आय। गूढ़ ज्ञान ले भरे, कबीर दास जी के ये दोहा काखर मुख म नइ होही---

*दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।*

*जो सुख मे सुमीरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।*


                     कहूँ भी मेर कुछु भी चीज के अति होवत दिखथे त सबे कथे- अति के अंत होही। कोनो भी चीज के अति बने नोहे। कतको मनके मुख म, कबीर साहेब के यहू दोहा रथे---

*अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,*

*अती का भला न बरसना, अती कि भलि न धूप ।*


मनखे ल आन के बुराई फट ले दिख जथे, अउ जब वोला कबीरदास जी के ये दोहा हुदरथे, त वो लज्जित हो जथे।कबीर साहेब कथे-

*बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,*

*जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।*


                        छत्तीसगढ़ का सरी संसार मया के टेकनी म टिके हे। मनखे पोथी पढ़े ले पंडित नइ होय, मया प्रेम मनखे ल विद्वान बनाथे। यहू दोहा जम्मो लइका सियान ल मुखाग्र याद हे-

*पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय*

*ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।*



मनखे के सही अउ देखावा म बहुत फरक होथे, तभे तो हमर सियान म हाना बरोबर कबीर साहेब के ये दोहा ल कहिथें-

*माटी का एक नाग बनाके, पूजे लोग लुगाय।*

*जिन्दा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाय ।।*


तन के मइल ल धोय ले जादा जरूरी मन के मइल ल धोना हे, मन जेखर मइला ते मनुष बइला। यहू दोहा ल सियान मन हाना बरोबर तुतारी मारत दिख जथे-

*मल मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल ।*

*नहाए गंगा गोमती, रहे बैल के बैल ।।*


          बोली ल गुरतुर होना चाही, तभे बोलइया मान पाथे।  छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा इही सुनाथे घलो, चाहे राउत भाई मनके दोहा म होय, या फेर लइका सियान मनके जुबान म,

बने बात बोले बर कोनो ल कहना हे त सबे कहिथें--

*ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।*

*औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होए ।।*



                   हम छत्तीगढ़िया मनके आदत रहिथे बड़ाई सुनना अउ बुराई म चिढ़ना, फेर जब वोला कबीर साहेब के ये दोहा सुरता आथे त रीस तरवा म नइ चढ़े, बल्कि सही गलत सोचे बर मजबूर कर देथें-

*निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय*

*बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।*



         मनखे के शरीर म माया मोह अतेक जादा चिपके रहिथे, कि तन सिराये लगथे तभो माया मोह ल नइ छोड़ पाय, त कबीर साहब के ये दोहा सबके मुखारबिंद म सहज आ जथे-

*माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर।*

*आसा त्रिष्णा णा मुइ, यों कही गया कबीर ॥*


 कबीरदास जी के बेबाकी के सबे कायल हन, कोनो जाति धरम ल बढ़ावा न देके सिरिफ इंसानियत ल बढ़ाइस-

*हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमान,*

*आपस में दोउ लड़ी मुए, मरम न कोउ जान।*


            दोस्ती अउ दुश्मनी ले परे रहिके, सन्त ह्रदय कस काम करे बर कोनो कहिथे त, इही सूरता आथे-

*कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर*

*ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।*


                  गुरु के महत्ता के बात ये दोहा ल छुये बिन कह पा सम्भव नइहे-

*गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।*

*बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥*

        

                  आजो कोई यदि अपन आप ल बड़े होय के डींग हाँकथे, त सियान का, लइका मन घलो इही कहिके तंज कँसथें-

*बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।*

*पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।*


                   निर्गुण भजन *बिरना बिरना बिरना---*  श्री कुलेश्वर ताम्रकार जी के स्वर म सीधा अन्तस् ल भेद देथे,वो भजन म ये दोहा सहज मान पावत हे, अउ इही दोहा हमर तुम्हर जिनगी के अटल सत्य घलो आय।

*माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।*

*एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।*


           घर म गुर्रावत जाँता, वइसे तो दू बेरा बर रोटी के व्यवस्था करथे, अउ कहूँ कबीरदास जी के ये दोहा मन म आ जाय, त अंतर मन  सुख दुख के पाट देख गहन चिंतन म पड़ जथे-

*चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय ।*

*दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ।*


लालच बुरी बलाय, अइसन सबे कथें, फेर काबर कथें तेला कबीरदास जी महाराज जनमानस के बीच म रखे हे, अउ जब लालच के बात आथे,या फेर मन म लालच आथे, त इही दोहा मनखे ल हुदरथे-

*माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए ।*

*हाथ मले औ सर धुनें, लालच बुरी बलाय ।*


               कबीरदास जी के दोहा संग जिनगी के अटल सत्य सबे के मन म समाहित रथे, मनखे जीते जियत ही राजा रंक आय, मरे म मुर्दा के एके गत हे, भले मरघटी तक पहुँचे म ताम झाम दिखथे।

*आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।*

*इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर।*


                    मनुष जनम ल ही सबे जीव जंतु के जनम ले श्रेष्ठ माने गेहे, अउ हे घलो, आज मनखे सब म राज करत हे। फेर जब कबीरदास जी के ये दोहा अन्तस् ल झकझोरथे, तब समझ आथे, मनखे हीरा काया धर कौड़ी बर मरत हे।

*रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।*

*हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।*


              धीर म ही खीर हे, इही बात ल कबीरदास जी महराज घलो केहे हे, जे सबके  अधर म समाये रथे, अउ मनखे ल धीर धरे के सीख देथे-

*धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।*

*माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।*


                      कबीरदास जी के ये दोहा मनखे ल इन्सानियत देखाय के, बने काम करे  के शिक्षा देवत कहत हे, कि भले जनम धरत बेरा हमन रोये हन अउ जमाना हाँसिस, फेर हमला अइसे कॉम करना हे, जे हमर बिछोह म जमाना रोय। 

*कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,*

*ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।*



                         काया के गरब वो दिन चूर चूर हो जथे जब हाड़, मास, केस सबे लकड़ी फाटा जस लेसा जथे। अइसन जीवन के अटल सत्य ले भला कोन अछूता हन-

*हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।*

*सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।*


              "अब पछताये होत का जब चिड़िया चुग गई खेत" काखर जुबान म नइहे। अवसर गुजर जाय म सबला कबीर साहेब के इही दोहा सुरता आथे-

*आछे  दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।*

*अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।*


                   आत्मा अउ परमात्मा के बारे म बतावत कबीर साहेब के ये दोहा, मनखे ल जनम मरण ले मुक्त कर देथे-

*जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है बाहर भीतर पानि ।*

*फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानि ।*


               छत्तीगढ़िया मन आँखी के देखे ल जादा महत्ता देथन, इही सार बात ल कबीरसाहेब घलो केहे हे-

*तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।*

*मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ।*


                आज जब चारो मुड़ा कोरोना काल बनके गरजत हे, मनखे हलकान होगे हे, तन का मन से घलो हार गेहे, त सबे कोती सुनावत हे, मन ल मजबूत करव, काबर की "मनके हारे हार अउ मनके जीते जीत"। पहली घलो ये दोहा शाश्वत रिहिस अउ आजो घलो मनखे के जीये बर थेभा हे, मन चंगा त  कठोती म गंगा हमर सियान मन घलो कहे हे-

*मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।*

*कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत ।*


                  "जइसे खाबे अन्न , तइसे रइही मन" ये हाना हमर छत्तीसगढ़ म सबे कोती सुनाथे, कबीर साहेब घलो तो इही बात ल केहे हे- संग म पानी अउ बानी के बारे म घलो लिखे हे-

*जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।*

*जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।*


         कबीरदास जी महाराज जइसन ज्ञानी सिद्ध दीया धरके खोजे म घलो नइ मिले, उंखर एक एक शब्द म जीवन के सीख हे। अन्याय अउ अत्याचार के विरोध हे। सत्य के स्थापना हे। दरद के दवा हे। केहे जाय त भवसागर रूपी दरिया बर डोंगा बरोबर हे। धन भाग धनी धरम दास जी जइसे चेला जेन, कबीर साहेब जी के शब्द मन ल पोथी बनाके हम सबला दिन। अउ धन भाग हमर छत्तीसगढ़ जेला अपन पावन गद्दी बनाइन। उंखरे पावन कृपा ले आज सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ कबीरमय हे।


साहेब बन्दगी साहेब


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)






  

छत्तीसगढ़ अउ कबीर साहेब

 छत्तीसगढ़ अउ कबीर साहेब


             वइसे तो कबीर साहेब छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म बसथे, तभो आज कबीर साहेब के महत्ता छत्तीसगढ़ के गाँव-शहर, गली-खोर म देखे के प्रयास करबों। हमर छत्तीसगढ़ का,भारत भर म अइसन कोनो मनखे नइ होही जेन कबीर साहेब नइ जानत होही। संत कबीर कोनो जाति समुदाय के नही बल्कि, थके हारे, दबे कुचले, दीन हीन मनखे के थेभा रिहिन। छत्तीगढ़ भर म कबीर दास जी के नाम म कतको लइका लोग अउ घर दुवार के नाम दिख जथे, संगे संग गली खोर, गांव शहर म कबीर चौक, कबीरचौरा, कबीर पारा आदि कतको ठन चौक चौराहा घलो दिखथे। रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, रायगढ़ जइसे बड़का शहर म घलो कबीर साहेब के नाम म पारा मुहल्ला घलो हे। *बालोद जिला के अंतर्गत कबीर साहेब के नाम म एक भव्य भवन हे, जेला ए डी  सर जी ह जनसहयोग ले बनवाये रिहिस।* *कोरबा म कबीरदास जी के नाम म बड़का वाचनालय सुशोभित हे।*  छत्तीसगढ़ म कबीर दास जी के कतका प्रभाव हे, ये कबीरधाम नाम के हमर जिला ले अंदाजा लगाये जा सकथे। कहे के मतलब कबीर के नाम म चौक, चौराहा ही नही बल्कि 28 ठन जिला म एक ठन जिला ही कबीरधाम नाम के हे, जेला कवर्धा घलो कथन। *सुने म आथे की अपन जीवन काल म कबीरदास जी महाराज सकरी नदी के तट म छत्तीसगढ़ पधारे रिहिन, अउ उही मेर धनी धरम दास जी अपन गद्दी स्थापित करिन, ते पाय के वो स्थान कबीरधाम कहिलाथे।*


                         मनखे मनखे नाम, घर दुवार, गली खोर अउ गाँव शहर मनके नाम म, कबीरदास जी रचे बसे हे, वइसनेच हमर राज के जुन्ना विधा नाचा म घलो कबीर साहेब के प्रभाव दिखथे। पहली समय म कम साधन अउ बिना साज सज्जा के खड़े साज के चलन रहिस। रवेली अउ रिंगनी नाच पार्टी वो बेरा म खूब देखे सुने जावत रिहिस, जेमा मुख्य रूप ले सन्त समाज अउ दर्शक दीर्घा ल कबीर भजन ही परोसे जाय। कबीर साहेब अउ नाचा के जब नाम आथे त *कबीर नाच पार्टी मटेवा* के कलाकार मनके चेहरा अन्तस् म उतर जथे। श्री झुमुक़दास बघेल अउ नाहिक दास मानिकपुरी के जुगल प्रस्तुति सबके मन ल लुभा लेवय। कबीर के दोहा,साखी शबद, भजन,अउ गीत मुख्य आकर्षण के क्रेंद रहय। नाचा म जोक्कड़ मनके जोकड़ई म दर्शक दीर्घा ल हँसाये बर, कबीर के उलटबन्सी अउ दोहा खूब रोचक लगे।छत्तीसगढ़ म रामायण अउ भजन मण्डली म घलो कबीर साहेब के प्रभाव दिखथे।

                  कबीर दास जी के भजन मन जुन्ना बेरा म जतका प्रभावी रिहिस वइसनेच आजो हे। जीवन दर्शन ऊपर आधारित कबीर साहेब के दोहा, साखी, शबद के कोनो सानी नइहे। *कहत कबीर सुनो भाई साधो, माया तजि न जाय, झीनी रे झीनी चदरिया, साहेब तेरा भेद न जाने कोउ, कुछु लेना न देना मगन रहना, रहना नही देश बिराना, भजले साहेब बन्दगी, लागे मेरो मन फकीरी में*---आदि कतको भजन सुनत ही मनखे ल परम् सुख सहज मिल जथे। स्वरांजलि स्टूडियो ले छत्तीसगढ़ के दुलरुवा कवि अउ गायक  परम श्रध्देय मस्तुरिया जी *कबीर* नाम से एक कैसेट घलो निकाले रिहिस, जे भारी चलिस। जेमा कबीरदास जी के भजन ल अपन अंदाज म मस्तुरिया जी जनमानस के बीच रखे रिहिस। *बीजक मत पर माना, शबद साधना की जै, गुरु गोविंद खड़े, खबर नही आज, हमन है इश्क, माया तजि न जाय* कबीर दास जी के लिखे आदि भजन वी कैसेट म रिहिस। मस्तुरिया जी कबीर के नाम म खुद घलो कई ठन रचना करिन अउ वोला अपन स्वर दिन, जेमा हम तो तेरे साथी कबीरा हो, जइसे उम्दा भजन आजो मन ल मुग्ध कर देथे। कई लोक कलाकार मन घलो कबीरदास जी के भजन ल अपन स्वर दे हें।


                कबीरपंथी समुदाय, कबीर गद्दी आश्रम,  कबीर  के अमृत वाणी, साखी शबद सबे दृष्टि ले हमर छत्तीसगढ़ कबीरमय हे। दामाखेड़ा, कबीरधाम, कुदुरमाल, खरसिया, नादिया,बालोद,जइसन कई कबीर तीर्थ अउ अनेक आश्रम,  हमर छत्तीसगढ़ म बनेच संख्या म सुशोभित हे। कबीरदास जी महाराज छत्तीसगढ़ के कण कण म बिराजमान हे। सादा जीवन अउ उच्च विचार रखे, न सिर्फ कबीर पंथी बल्कि जमे छत्तीगढ़िया मन कबीर साहब के बताये रद्दा म चलही, त उंखर जीवन धन्य हो जाही। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

मनहरण घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 माँ

मनहरण घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


दूध के कटोरी लाये, चंदा ममा ल बुलाये।

लोरी गाके लइका ला, सुघ्घर सुताय जी।।

अँचरा के छाँव तरी, सरग हे पाँव तरी।

बड़ भागी वो हरे जे, दाई मया पाय जी।।

महतारी के बिना ग, दूभर हवे जीना ग।

घर बन सबे सुन्ना, कुछु नी सुहाय जी।।

महतारी के मया, झन दुरिहाना कभू।

सेवा कर जीयत ले, दाई देवी ताय जी।।



पेट काट काट दाई, मया बाँट बाँट दाई।

लाले लोग लइका ला, घर परिवार ला।।

दया मया खान दाई, हरे वरदान दाई।

शेषनाँग सहीं बोहे, सबे के वो भार ला।

लीपे पोते घर द्वार, दिखे नित उजियार।

हाँड़ी ममहाये बड़, पाये कोन पार ला।

सबे के सहारा दाई, गंगा कस धारा दाई।

माथा मैं नँवाओं नित, देवी अवतार ला।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)



शंकर छ्न्द-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



महतारी


महतारी कोरा मा लइका, खेल खेले नाँच।

माँ के राहत ले लइका ला, आय कुछु नइ आँच।

दाई दाई काहत लइका, दूध पीये हाँस।

महतारी हा लइका मनके, हरे सच मा साँस।।



अंगरखा पहिरावै दाई, आँख काजर आँज।

सब समान ला मॉं लइका के,रखे धो अउ माँज।

धरे रहिथे लइका ला दाई, बाँह मा पोटार।

अबड़ मया महतारी के हे, कोन पाही पार।।



करिया टीका माथ गाल मा, लगाये माँ रोज।

हरपल महतारी लइका बर, खुशी लाये खोज।

लइका ला खेलाये दाई, बजा तुतरू झाँझ।

किलकारी सुन माँ खुश होवै, रोज बिहना साँझ।



महतारी ला नइ देखे ता, गजब लइका रोय।

पाये आघू मा दाई ला, कलेचुप तब सोय।

बिन दाई के लइका मनके, दुःख जाने कोन।

लइका मन बर दाई कोरा, सरग हे सिरतोन।।


-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

सन्त गुरु घासीदास अउ छत्तीसगढ़

 सन्त गुरु घासीदास अउ छत्तीसगढ़


                       "मनखे मनखे एक कहिके"  मानुष मन ल एक धागा म पिरोइया, संत गुरु घासीदास के पावन पग चिन्ह पाके हमर छत्तीसगढ़ धन्य हे। जब समाज म ऊँच नीच अउ छुवाछुत चरम सीमा म रहिस, ते समय हमर राज के  बलोदाबाजार जिला के गिरौदपुरी नाम के गाँव म महगू दास अउ माता अमरौतिन के कोरा म दीन दुखिया मनके सहारा बनके, 18 दिसम्बर सन 1756 म, सन्त घासीदास जी प्रगट होइस। गुरु घासीदास जी मानुष समाज म फइले बुराई ल देख के बहुत दुखी होइस। बलौदा बाजार जिला के छाता पहाड़ म औरा धौरा पेड़ तरी अखण्ड साधना म लीन होके, सदज्ञान पाके, अपन जिनगी ल संत घासीदास जी ह दीन हीन मनके नाम करदिस। चोरी, मद्यपान, अंधविश्वास, व्यभिचारी, झूठ अउ जीव हत्या जइसन समाज म व्याप्त सबे बुराई ल घासीदास जी दुरिहाय के प्रण लिस अउ समाज सेवा म सतत लग गे। घासीदास जी के सतुपदेश के मनखे मन म अतका प्रभाव पड़िस कि, एक नवा पंथ सतनाम पंथ, वो बेरा ले चले ल लगिस। अउ आजो घलो छत्तीसगढ़ के कोना कोना म सतनाम पंथ चलत हे। 

                          संत घासीदास जी के उपदेश हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म रहय, जेखर कारण जनमानस के अन्तस् म जस के तस समा जावव। गुरु घासीदास जी हमर छत्तीसगढ़ के आन बान शान आय। हमर छत्तीसगढ़ म भारी संख्या म सतनाम समाज उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो दिशा म विद्यमान हे। करमा सुवा ददरिया कस पंथी(गुरुमहिमा ज्ञान) घलो हमर लोक नृत्य आय। पंथी नृत्य म कई कलाकार मन सन्त घासीदास जी के महिमा गान न सिर्फ भारत बल्कि विदेश म घलो कर चुके हे। जेमा स्व मोहनदास बंजारे जी के नाम पहली पंक्ति म आथे। 

                       वइसे तो हर शहर गाँव गली म सन्त घासीदास जी के पावन स्तम्भ जैत खाम रिहिथे, फेर गिरौदपुरी म बने बड़ ऊँच जैत खाम न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि हमर भारत देश के धरोहर आय। छत्तीसगढ़ अउ गुरु घासीदास जी के बात जब होथे, त हमर बिलासपुर जिला म बने क्रेंदीय विश्वविद्यालय नजर आघू झूल जथे।  छत्तीसगढ़ सरकार संत घासीदास जी के नाम म हर बछर पुरुस्कार घलो देथे। गुरु घासीदास जी छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म बसथे, तभो घर, गाँव गली खोर के नाम तको बाबा जी के सतविचार ल अन्तस् म जगा देथे। 

                        हमर राज के गिरौदपुरी, छाता पहाड़, भंडारपुरी, तेलासी पुरी, खपरीपुरी आदि सतनाम पंथ के पावन तीर्थ  आजो मनखे मन ल आकर्षित करथें। संत घासीदास जी सतनाम पंथ के प्रथम गुरु होइस। आजो बाबा जी के वंशज अउ  गुरु परम्परा शुशोभित हे। बालक दास जी महराज, अगम दास जी महराज अउ मिनीमाता जइसे कई महान विभूति बाबा जी के ही वंशज आय, जिंखर ऊपर हम सब छत्तीगढ़िया मन ल गर्व हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

मया-जीतेन्द्र वर्मा

 मया-जीतेन्द्र वर्मा


मोर जिनगी होगे हे,अँधियार संगी रे।

छोड़ चल देहे मोला मोर,प्यार संगी रे।।


असाड़ आथे,त बिजुरी डरह्वाथे,

रोवाथे सावन के,बऊछार संगी रे।


भादो भर इती उती ,भटकत रहिथँव,

जरथाथँव रावन कस, कुँवार संगी रे।


संसो म बुलके,कातिक के देवारी,

अग्घन अगोरों,दीया बार संगी रे।


पूस  के जाड़ा हा, बनगे हे  काल,

रोवँव माँघ महीना मैं,हार संगी रे।


कवने हा रँगही , फागुन रंग  म?

कइसे अक्ति मनातेंव,तिहार संगी रे।


बइसाख बइरी,रहि-रहि बियापे,

जेठ भूंजे आगी म,डार संगी रे।


तोर बिना मन,नइ लागे "जीतेन्द्र"

नइ भाये महीना,दिन बार संगी रे।


       जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

            बाल्को(कोरबा)

अक्ती तिहार(दोहा चौपाई)

 अक्ती तिहार(दोहा चौपाई)


उल्लाला-

*बेरा मा बइसाख के,तीज अँजोरी पाख के।*

*सबे तीर मड़वा गढ़े,अक्ती भाँवर बड़ पड़े।*


हरियर मड़वा तोरन तारा,सजे आम डूमर के डारा।

लइका लोग सियान जुरें हे,लीप पोत के चौक पुरें हे।


पुतरी पुतरा के बिहाव बर,सकलाये हें सबे गाँव भर।

बाजे बाजा आय बराती,मगन फिरय सब सगा घराती


खीर बरा लाड़ू सोंहारी,खाये जुरमिल ओरी पारी।

अक्ती के दिन पावन बेरा,पुतरी पुतरा लेवव फेरा।  


सइमो सइमो करे गली घर,सबे मगन हें मया पिरित धर।

अचहर पचहर परे टिकावन,अक्ती बड़ लागे मनभावन।


दोहा-

*परसु राम भगवान के,गूँजय जय जय कार।*

*ये दिन भगवन अवतरे,छाये खुसी अपार।।*


शुभ कारज के मुहतुर होवय,ये दिन खेती बाड़ी बोवय।

बाढ़य धन बल यस जस भारी,आस नवा बाँधे नर नारी।


माँगै पानी बादर बढ़िया,जुरमिल के सब छत्तीसगढ़िया।

दोना दोना धान चढ़ावय,दाइ शीतला ला गोहरावय।


सोना चाँदी कोनो लेवय,दान दक्षिणा कोनो देवय।

पुतरी पुतरा के बिहाव सँग,पिंवरावै कतको झन के अँग।


दोहा-

*देवी देवन ला मना,शुरू करे  सब  काज।*

*पानी बादर के परख,करे किसनहा आज।*


*करसी मा पानी मढ़ा,बारह चना डुबाय।*

*भींगय जतकेकन चना,ततके पानी आय।*


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

हरिगीतिका छंद-अक्ती

 हरिगीतिका छंद-अक्ती


मिलजुल मनाबों चल चली अक्ती अँजोरी पाख में।

करसा सजा दीया जला तिथि तीज के बैसाख में।।

खेती किसानी के नवा बच्छर हरे अक्ती परब।

छाहुर बँधाये बर चले मिल गाँव भर तज के गरब।।


ठाकुरदिया में सब जुरे दोना म धरके धान ला।

सब देंवता धामी मना बइगा बढ़ावय मान ला।।

खेती किसानी के उँहे बूता सबे बइगा करे।

फल देय देवी देंवता अन धन किसानी ले भरे।।


जाँगर खपाये के कसम खाये कमइयाँ मन जुरे।

खुशहाल राहय देश हा धन धान सुख सबला पुरे।।

मुहतुर किसानी के करे सब पाल खातू खेत में।

चीला चढ़ावय बीज बोवय फूल फूलय बेत में।।


ये दिन लिये अवतार हे भगवान परसू राम हा।

द्वापर खतम होइस हवै कलयुग बनिस धर धाम हा।

श्री हरि कथा काटे व्यथा सुमिरण करे ले सब मिले।

धन धान बाढ़े दान में दुख में घलो मन नइ हिले।


सब काज बर घर राज बर ये दिन रथे मंगल घड़ी।

बाजा बजे भाँवर परे ये दिन झरे सुख के झड़ी।।

जाये महीना चैत आये झाँझ  झोला के समय।

मउहा झरे अमली झरे आमा चखे बर मन लमय।


करसी घरोघर लाय सब ठंडा रही पानी कही।

जुड़ चीज मन ला भाय बड़ शरबत मही मट्ठा दही।

ककड़ी कलिंदर काट के खाये म आये बड़ मजा।

जुड़ नीम बर के छाँव भाये,घाम हे सब बर सजा।


लइकन जुरे पुतरा धरे पुतरी बिहाये बर चले।

नाँचे गजब हाँसे गजब मन में मया ममता पले।

अक्ती जगावै प्रीत ला सब गाँव गलियन घर शहर।

पर प्रीत बाँटे छोड़के उगलत हवै मनखे जहर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

9981441795


अक्ती तिहार के बहुत बहुत बधाई