Monday 19 September 2022

सड़क- रोला छंद

 सड़क- रोला छंद


घाम घरी मा धूल, होय चिखला बरसा मा।

कहँव काय मैं हाल, काल रहिथे धरसा मा।

गाड़ी मोटर छोट, चले नित हाँफत हाँफत।

मजबूरी मा जायँ, सवारी काँपत काँपत।


नजर जिहाँ तक जाय, दिखै बस चिखला सरभर।

बन जाही कब काल, सड़क हा जाने काखर।

डंफर ट्रेलर कार, हाल ला देखत रोवय।

लागे रहिथे जाम, सुबे ले संझा होवय।


सड़क लगे पाताल, बने हे गड्ढा बड़का।

काटयँ पुलिस चलान, हाल ये सब ला टड़का।

धँस जावत हे गोड़, कहौं का गाड़ी घोड़ा।

आम आदमी रोय, सबे लँग बरसय कोड़ा।


सड़क तीर के गाँव, शहर मा मचै तबाही।

घर भीतर हे बंद, बंद हे आवा जाही।।

अनहोनी हो जाय, आय दिन गाँव शहर मा।

सड़क हवैं बदहाल, रहै कब तक जन घर मा।


नवा बने हे रोड, तभो ये हालत होगे।

नेता ठेकेदार, सबे झन खा पी सोगे।

हल्का छड़ सीमेंट, चले ना चार महीना।

देख सड़क के हाल,होत हे मुश्किल जीना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटिया

गाय गरुवा के पीरा

 गाय गरुवा के पीरा


पेट पाले बर मोर चरवाहा,खाय कमाय गे हे।

मैं सड़क म नइ आय हँव, मोला लाय गे हे।


मोर बर चरागन,न कोला बारी हे।

गउठान म बेजा कब्जा जारी हे।

परिया तरिया के दउहा नइहे।

बँचे बँम्हरी बोइर कउहा नइहे।

घर म कहाँ कोठा कोटना हे।

संसो म ओरमे मोर थोथना हे।

जम्मो कोती तारे तार,खेत खार रुँधाय गे हे।

मैं सड़क म नइ आय हँव,मोला लाय गे हे।1


कहाँ बियारा म ,अब पैरावट दिखथे।

मोर बर भला कोन,कांदी पैरा झिंकथे।

नाली म बोहावत हे,धोवन पसिया पानी।

कोनो ल कहाँ भाये,अब मोर हम्मा  बानी।

दू लउठी मैं अब,रोजेच के खावत हँव।

गाड़ी घोड़ा म,अखमुंदा झपावत हँव।

न खूँटा न काँसरा,मोर जघा म कुकूर 

बँधाय गे हे।

मैं सड़क म नइ आय हँव, मोला लाय गे हे।2।


रसायनिक दूध म लइका मोटावत हे।

मोर छेना गोबर अब कोन ल भावत हे।

टेक्टर हार्वेस्टर हे,बइला भैंसा होगे बला।

मोर नाम म माते हे,मारकाट घला।

मोर माखन मिश्री दूध मलाई।

अब काखर कर सकही भलाई।

मनखे सब हड़प लिस,मोर बर का बचाँय गे हे।

मैं सड़क म नइ आय हँव, मोला लाय गे हे।3।


अब कोन बछिया ल दान म गिनथे।

जे नही ते अब गाय गरु ल हिनथे।

पुराना जमाना के मँय किस्सा होगेंव।

अब तो राजनीति के घलो हिस्सा होगेंव।

गाँव म गोसैंया बैरी,जंगल म आन जानवर।

अब आस धर सरकार के,घुमौं आँवर भाँवर।

मँय पालतू फालतू होगेंव,मोर महत्ता गिराय गे हे।

मैं सड़क म नइ आय हँव, मोला लाय गे हे।4।


हाथी शेर चीता कस, मोरो खातिरदारी होय।

मोरो बर जंगल झाड़ी, खेत खार बारी होय।

शेर चीता कस चार झन, आघू पाछू मोरो घूमे।

जुन्ना जमाना कस, अभो सब मोर माथ चूमे।

शेर चीता कुकूर बिलई के, चमक गे हे भाग।

हम सिधवा के जिनगी म, लगगे हे अब आग।

हकीकत मा कुछु नही, बस पोथी म पढ़ाय गे हे।

मैं सड़क म नइ आय हँव, मोला लाय गे हे।5।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

Saturday 17 September 2022

सजन बिन सावन (गीत)

 सजन बिन सावन (गीत)


सार छंद


दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।

लक्ष्मण रेखा लाँघत हावै, घर घर बइठे रावन।


गरजे घुमड़े घड़घड़ घड़घड़ , बादर घेरी बेरी।

का हो जाही कोन घड़ी मा, फड़के आँखी डेरी।

कइसे जिनगी मोर पहाही, संसो लागे खावन।

दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।


जोहत जोहत बाट सजन के, नाड़ी हाथ जुड़ागे।

डंक साँप बिच्छू नइ मारे, काठ समझ के भागे।

सजन बिना बन बाग बगीचा, नइ लागे मनभावन।

दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।


नजर गड़त हे कतको झन के, देख अकेल्ला मोला।

आस लगाके बिहना जीथौं, साँझ मरे ये चोला।

नैन मुँदावय गला सुखावय, चेत लगे छरियावन।

दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)छत्तीसगढ़

कुंडलियाँ छंद

 कुंडलियाँ छंद


डालर कॉलर ला हमर, धरे हवै दिनरात।

बेर बछर देखे बिना, दै रुपिया ला मात।।

दै रुपिया ला मात, बढ़े तब तब महँगाई।

छोट मँझोलन रोय, मचे अड़बड़ करलाई।

ऊगत नइहे बाल, उतारे हाँवन झालर।

रुपिया होय धड़ाम, दिनों दिन बाढ़ै डालर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


(ऊगत नइहे बाल, उतारे हाँवन झालर।)- तुतारी आय।

शिव महिमा(शिव छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 शिव महिमा(शिव छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।

शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।


चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।

अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।


बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।

भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।


कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।

स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।


हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।

पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।


भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।

बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।


नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।

लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।


शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।

बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।


दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।

सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।


खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।

तोर मोर ला भुला। दै अशीष मुँह उला।


नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।

कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।


काल के कराल के। भूत  बैयताल के।

नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।


शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।

शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।


शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।

शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।


शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।

मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।


शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।

शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।


नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।

शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।


शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।

का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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शिव ल सुमर- शिव छंद


रोग डर भगा जही। काल ठग ठगा जही।

पार भव लगा जही। भाग जगमगा जही।


काम झट निपट जही। दुक्ख द्वेष कट जही।

मान शान बाढ़ही। गुण गियान बाढ़ही।।


क्रोध काल जर जही। बैर भाव मर जही।

खेत खार घर रही। सुख सुकुन डहर रही।


आस अउ उमंग बर। जिंदगी म रंग बर।

भक्ति कर महेश के। लोभ मोह लेश के।


सत मया दया जगा। चार चांद नित लगा।

जिंदगी सँवारही। भव भुवन ले तारही।।


देव मा बड़े हवै। भक्त बर खड़े हवै।

रोज शाम अउ सुबे। भक्ति भाव मा डुबे।


नीलकंठ ला सुमर। बाढ़ही सुमत उमर।

तन रही बने बने। रेंगबे तने तने।।


सोमवार नित सुमर। नाच के झुमर झुमर।

हूम धूप दे जला। देव काटही बला।।


दूध बेल पान ले। पूज शिव विधान ले।

तंत्र मंत्र बोल के। भक्ति भाव घोल के।


फूल ले मुठा मुठा। सोय भाग ला उठा।

भक्ति तीर मा रही।शक्ति तीर मा रही।।


फूल फल दुबी चढ़ा। नारियल चँउर मढ़ा।

आरती उतार ले।धूप दीप बार ले।।


शिव पुकार रोज के। भक्ति भाव खोज के।

ओम ओम जाप कर।भूल के न पाप कर।।


भूत भस्म भाल मा। दे चुपर कपाल मा।

ओमकार जागही। भाग तोर भागही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)


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सर्वगामी सवैया - खैरझिटिया

माथा म चंदा जटा जूट गंगा गला मा अरोये हवे साँप माला।

नीला  रचे  कंठ  नैना भये तीन नंदी सवारी धरे हाथ भाला।

काया लगे काल छाया सहीं बाघ छाला सजे रूप लागे निराला।

लोटा म पानी रुतो के रिझाले चढ़ा पान पाती ग जाके सिवाला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा

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घनाक्षरी(भोला बिहाव)-खैरझिटिया


अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,

भूत  प्रेत  साथ  मा  जी ,निकले  बरात  हे।

बइला  सवारी  करे,डमरू  त्रिशूल धरे,

जटा जूट चंदा गंगा,सबला  लुभात हे।

बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,

भभूत  लगाये  हवे , डमरू  बजात  हे।

ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,

भूत  प्रेत  पाछु  खड़े,अबड़ चिल्लात  हे।


भूत प्रेत झूपत हे,कुकूर ह भूँकत हे,

भोला के बराती मा जी,सरी जग साथ हे।

मूड़े मूड़ कतको के,कतको के गोड़े गोड़,

कतको के आँखी जादा,कोनो बिन हाथ हे।

कोनो हा घोंडैया मारे,कोनो उड़े मनमाड़े,

जोगनी परेतिन के ,भोले बाबा नाथ हे।

देव सब सजे भारी,होवै घेरी बेरी चारी,

अस्त्र शस्त्र धर चले,मुकुट जी माथ हे।


काड़ी कस कोनो दिखे,डाँड़ी कस कोनो दिखे,

पेट कखरो हे भारी,एको ना सुहात हे।

कोनो जरे कोनो बरे,हाँसी ठट्ठा खूब करे,

नाचत कूदत सबो,भोले सँग जात हे।

घुघवा हा गावत हे, खुसरा उड़ावत हे,

रक्शा बरत हावय,दिन हे कि रात हे।

हे मरी मसान सब,भोला के मितान सब,

देव मन खड़े देख,अबड़ मुस्कात हे।


गाँव मा गोहार परे,बजनिया सुर धरे,

लइका सियान सबो,देखे बर आय जी।

बिना हाथ वाले बड़,पीटे गा दमऊ धर,

बिना गला वाले देख,गीत ला सुनाय जी।

देवता लुभाये मन,झूमे देख सबो झन,

भूत प्रेत सँग देख,जिया घबराय जी।

आहा का बराती जुरे,देख के जिया हा घुरे,

रानी राजा तीर जाके,देख दुख मनाय जी।


फूल कस नोनी बर,काँटा जोड़ी पोनी बर,

रानी कहे राजा ला जी,तोड़ दौ बिहाव ला।

करेजा के चानी बेटी,मोर देख रानी बेटी,

कइसे जिही जिनगी,धर तन घाव ला।

पारबती आये तीर,माता ल धराये धीर,

सबो जग के स्वामी वो,तज मन भाव ला।

बइला सवारी करे,भोला त्रिपुरारी हरे,

माँगे हौ विधाता ले मैं,पूज इही नाव ला।


बेटी गोठ सुने रानी,मने मन गुने रानी,

तीनो लोक के स्वामी हा,मोर घर आय हे।

भाग सँहिरावै बड़,गुन गान गावै बड़,

हाँस मुस्काय सुघ्घर,बिहाव रचाय हे।

राजा घर माँदीं खाये,बराती सबो अघाये,

अचहर पचहर ,गाँव भर लाय हे।

भाँवर टिकावन मा,बार तिथि पावन मा,

पारबती हा भोला के,मया मा बँधाय हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको, कोरबा

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संसो किसान के-छंद त्रिभंगी

 संसो किसान के-छंद त्रिभंगी


तन मन नइ हरियर, बन नइ हरियर, काय हरेली मैं मानौं।

उना कुँवा तरिया, सुख्खा परिया, का खुमरी छत्ता तानौं।।

गाँवौं का कर्मा, बन अउ घर मा, भाग अपन सुख्खा जानौं।

मारौं का मंतर, अन्तस् गे जर, नीर कहाँ ले अब लानौं।।


खापौ का गेंड़ी, पग हे बेंड़ी, बोली मुँह नइ फूटत हे।

बिन होय बियासी, होगे फाँसी, प्राण धान के छूटत हे।।

का धीर धरौं अब, खुदे जरौं अब, आस जिया के टूटत हे।

बिन बरसे जाथे, टुहूँ दिखाते, घन बैरी सुख लूटत हे।।


आगी संसो के, भभके भारी, उलट पुलट मन चूरत हे।

आँखी पथरागे, चेत हरागे, बने सकल ना सूरत हे।।

आने कर सुख हे, मोरे दुख हे, पानी तक नइ पूरत हे।

काखर कर जावौं, कर फैलावौं, पथरा के सब मूरत हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

विश्व आदिवासी दिवस के आप सब ला सादर बधाई जंगल म बाँस के

 विश्व आदिवासी दिवस के आप सब ला सादर बधाई


जंगल म बाँस के


जंगल  म  बाँस  के,

कइसे रहँव हाँस के।

खेवन खेवन खाँध खींचथे,

चीखथे सुवाद माँस के।

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सुरसा कस  बाढ़े।

अँकड़ू बन वो ठाढ़े।

डहर बाट ल लील देहे,

थोरको मन नइ माढ़े।

कच्चा म काँटा खूँटी,

सुक्खा म डर फाँस के।

--------------------------।


माते हे बड़ गइरी।

झूमै मच्छर बइरी।

घाम घलो घुसे नही,

कहाँ बाजे पइरी।

कइसे फूकँव बँसुरी,

जर धर साँस के---।


झुँझकुर झाड़ी डार जर,

काम के न फूल फर।

सताये साँप बिच्छी के डर,

इँहा मोला आठो पहर।

बिछे हवे काँदी कचरा,

बिजराय फूल काँस के।

--------------------------।


शेर भालू संग होय झड़प।

कोन सुने मोर तड़प।

आषाढ़ लगे नरक।

जाड़ जड़े बरफ।

घाम घरी के आगी,

बने कारण नास के।

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मोर रोना गूँजे गाना सहीं।

हवा चले नित ताना सहीं।

लाँघन भूँखन परे रहिथौं,

सुख दुर्लभ गड़े खजाना सहीं।

जब तक जिनगी हे,

जीयत हँव दुख धाँस के।

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रोजे देखथों बाँस के फूल।

जिथौं गोभे हिय मा शूल।

बस नाम भर के हमन,

जल-जंगल-जमीन के मूल।

परदेशिया मन पनपगे,

हमन ला झाँस के।

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पाना ल पीस पीस पी,

पेट के कीरा संग,

मोर पीरा घलो मरगे।

मोर बनाये चटई खटिया,

डेहरी म माड़े माड़े सरगे।

प्लास्टिक के जुग आगे,

सब लेवै समान काँस के।

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न कोयली न पँड़की,

झिंगरा नित झकझोरे।

नइ जानँव अँजोरी,

अमावस आसा टोरे।

न डाक्टर न मास्टर,

 मैं अड़हा जियौं खाँस खाँस के।

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जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

कुंडलियाँ छंद

 कुंडलियाँ छंद


सत्ता खातिर रोज के, होवत हे गठजोड़।

नेता मन पद पाय बर, भागे पार्टी छोड़।

भागे पार्टी छोड़, मिले एखर ओखर ले।

पाँच साल बर वोट, पाय हे कुछु कर ले।

मत मरियादा मान, उड़त हे बनके पत्ता।

होय हार या जीत, सबे सपनावैं  सत्ता।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

विश्व आदिवासी दिवस की ढेरों बधाइयाँ मैं रहवया जंगल के- आल्हा छन्द

 विश्व आदिवासी दिवस की ढेरों बधाइयाँ


मैं रहवया जंगल के- आल्हा छन्द


झरथे झरना झरझर झरझर, पुरवाही मा नाचय पात।

हवै कटाकट डिही डोंगरी, कटथे जिंहा मोर दिन रात।


डारा पाना काँदा कूसा, हरे मोर मेवा मिष्ठान।

जंगल झाड़ी ठिहा ठिकाना, लगथे मोला सरग समान।


कोसा लासा मधुरस चाही, नइ चाही मोला धन सोन।

तेंदू मउहा चार चिरौंजी, संगी मोर साल सइगोन।


मोर बाट ला रोक सके नइ, झरना झिरिया नदी पहाड़।

सुरुज लुकाथे बन नव जाथे, खड़े रथौं सब दिन मैं ठाड़।


घर के बाहिर हाथी घूमय, बघवा भलवा बड़ गुर्राय।

चोंच उलाये चील सोचथे, लगे काखरो मोला हाय।


छोट मोट दुख मा घबराके, जाय मोर नइ जिवरा काँप।

रोज भेंट होथे बघवा ले, कभू संग सुत जाथे साँप।।


काल देख के भागे दुरिहा, मोर हाथ के तीर कमान।

झुँझकुर झाड़ी ऊँच पहाड़ी, रथे रात दिन एक समान।


रेंग सके नइ कोनो मनखे, उहाँ घलो मैं देथौं भाग।

आलस अउ जर डर जर जाथे, हवै मोर भीतर बड़ आग।


बदन गठीला तन हे करिया, चढ़ जाथौं मैं झट ले झाड़।

सोन उपजाथौं महिनत करके, पथरा के छाती ला फाड़।


घपटे हे अँधियारी घर मा, सुरुज घलो नइ आवय तीर।

देख मोर अइसन जिनगी ला, थरथर काँपे कतको वीर।


शहर नगर के शोर शराबा, नइ जानौं मोटर अउ कार।

माटी ले जुड़ जिनगी जीथौं, जल जंगल के बन रखवार।


आँधी पानी बघवा भलवा, देख डरौं नइ बिखहर साँप।

मोर जिया हा तभे काँपथे, जब होथे जंगल के नाँप।


पथरा कस ठाहिल हे छाती, पुरवा पानी कस हे चाल।

मोर उजाड़ों झन घर बन ला, झन फेकव जंगल मा जाल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गीत-परेवना राखी देके आ ----------------------------

 गीत-परेवना राखी  देके  आ

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परेवना कइसे जावौं रे, भइया तीर तँय बता?

गोला-बारूद चलत हे मेड़ो म,तँय राखी देके आ...|


दाई-ददा के छँइहा म रहँव त,बइठाके भइया ल मँझोत में।

बाँधौं राखी कुंकुंम लगाके, घींव के दीया  के जोत   में।

मोर   होगे  बिहाव  अउ, होगे भइया देस  के।

कइसे दिखथे मोर भइया ह, आबे रे परेवना देख के।

मोर सुख के समाचार कहिबे,जा भइया के संदेसा ला..।


सावन पुन्नी आगे जोहत होही, मोर राखी के बाट रे।

धकर-लकर उड़ जा रे परेवना,फइलाके दूनो पाँख रे

चमचम-चमचम चमकत राखी,भइया ल बड़ भाही रे

नाँव जगा के ,दाई-ददा के,बहिनी ल दरस देखाही रे।

जुड़ाही आँखी,ले जा रे राखी, जा भइया  के  पता......।


देखही तोला भइया ह परेवना,मोरे सुरता  करही रे।

जे हाथ म राखी ह बँधाही,ते हाथ देस बर लड़ही रे

थरथर काँपही बइरी मन ह,गोली के बऊछार ले।

रक्षा करही राखी भइया के,बइरी अउ जर-बोखार ले।

जनम-जनम ले अम्मर रही रे,भाई-बहिनी के नता..।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"     

 बालको(कोरबा)                 

रक्षाबन्धन की ढेरों बधाइयाँ💐💐

गीत-राखी*

 *गीत-राखी*


बाँध मोर कलाई मा, राखी बहिनी।

तोर मोर मया के,साखी वो बहिनी।


सावन महीना भर नैना बाट तकथे।

पुन्नी हबरथे मोर किस्मत चमकथे।

रेशम के डोरी, मोर पाँखी वो बहिनी।

बाँध मोर कलाई मा राखी बहिनी---।


दाई के आशीष हे, ददा के दुलार हे।

सावन पुन्नी,भाई बहिनी के तिहार हे।

सदा शुभ रही हमर,राशि वो बहिनी।

बाँध मोर कलाई मा, राखी बहिनी--।


लामे रही जिनगी भर मया के डोरी।

बाधा बिघन के,  जरा देहूँ होरी।

देखाही कोन तोला,आँखी वो बहिनी।

बाँध मोर कलाई मा, राखी बहिनी---।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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गीत


न रेशम न धागा न डोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया।।


तोर मोर नत्ता के, इही डोरी साखी।

दुख दरद ले बचाही, तोला मोर राखी।

लाही जिनगी मा सुख के हिलोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया----------


देखे बर तोला तरसत रहिथे नैना।

उड़थे सावन भर मोर मन मैना।।

लेवत रहिबे सुख दुख के शोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया---------


सुरता के संदूक ला मिल दूनो खोलबों।

मया अउ पीरा के दू बोली बोलबों।

बसे रही अन्तस् मा घर खोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया---------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

राखी-बरवै छंद

 राखी-बरवै छंद


राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।

भैया मोला देबे, मया दुलार।।


जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।

सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।


राखी रक्षा करही, बन आधार।

करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।


झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।

दया मया बरसाबे, देबे मान।।


हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।

नता बहिन भाई के, होही पोठ।।


धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।

बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।


राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।

आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।


सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।

जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।


लइकापन के सुरता, आथे रोज।

रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।


कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।

जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।


पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।

देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।


मोरो अँगना आबे, भैया मोर।

जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

जय बाबा विश्वकर्मा (सरसी छंद)

 जय बाबा विश्वकर्मा (सरसी छंद)


देव दनुज मानव सब पूजै,बन्दै तीनों लोक।

बबा विश्वकर्मा के गुण ला,गावै ताली ठोक।


धरा धाम सुख सरग बनाइस,सिरजिस लंका सोन।

पुरी द्वारिका हस्तिनापुर के,पार ग पावै कोन।


चक्र बनाइस विष्णु देव के,शिव के डमरु त्रिशूल।

यमराजा के काल दंड अउ,करण कान के झूल।


इंद्र देव के बज्र बनाइस,पुष्पक दिव्य विमान।

सोना चाँदी मूँगा मोती,बीज भात धन धान।


बादर पानी पवन बनाइस,सागर बन पाताल।

रँगे हवे रुख राई फुलवा,डारा पाना छाल।


घाम जाड़ आसाढ़ बनाइस,पर्वत नदी पठार।

खेत खार पथ पथरा ढेला,सबला दिस आकार।


दिन के गढ़े अँजोरी ला वो,अउ रतिहा अँधियार।

बबा विश्वकर्मा जी सबके,पहिली सिरजनकार।


सबले बड़का कारीगर के,हवै जंयती आज।

भक्ति भाव सँग सुमिरण करले,होय सुफल सब काज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

भगवान विश्वकर्मा सबके आस पुरावै

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)

 भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)


भोजली दाई ह बढ़ै, लहर लहर करै,

जुरै सब बहिनी हे, सावन के मास मा।

रेशम के डोरी धर, अक्षत ग रोली धर,

बहिनी ह आये हवै, भइया के पास मा।

फुगड़ी खेलत हवै, झूलना झूलत हवै,

बाँहि डार नाचत हे, जुरे दिन खास मा।

दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,

सावन अँजोरी उड़ै, मया ह अगास मा।


धान पान बन डाली, भुइयाँ के हरियाली।

सबे खूँट खुशहाली, बाँटे दाई भोजली।

पानी कांजी बने बने, सब रहै तने तने।

दुख डर दरद ला, काँटे दाई भोजली।

माई खोली मा बिराज, सात दिन करे राज।

भला बुरा मनखे ला, छाँटे दाई भोजली।

लहर लहर लहराये, नवा नत्ता बनवाये।

मीत मितानी के डोर, आँटे दाई भोजली।


माई कुरिया मा माढ़े,भोजली दाई हा बाढ़े।

ठिहा ठउर मगन हे, बने पाग नेत हे।

जस सेवा चलत हे, पवन म  हलत हे,

खुशी छाये सबो तीर, नाँचे घर खेत हे।

सावन अँजोरी पाख, आये दिन हवै खास,

चढ़े भोजली म धजा, लाली कारी सेत हे।

खेती अउ किसानी बर, बने घाम पानी बर

भोजली मनाये मिल, आशीष माँ देत हे।


अन्न धन भरे दाई, दुख पीरा हरे दाई,

भोजली के मान गौन, होवै गाँव गाँव मा।

दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,

धुँवा उड़े धूप के जी , भोजली के ठाँव मा।

मुचमुच मुसकाये, टुकनी म शोभा पाये,

गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।

राखी के बिहान दिन, भोजली सरोये मिल,

बदे मीत मितानी ग, भोजली के नाँव मा।


राखी के पिंयार म जी, भोजली तिहार म जी,

नाचत हे खेती बाड़ी, नाचत हे धान जी।

भुइँया के जागे भाग, भोजली के भाये राग,

सबो खूँट खुशी छाये, टरै दुख बान जी।

राखी छठ तीजा पोरा, सुख के हरे जी जोरा,

हमर गुमान हरे, बेटी माई मान जी।

मया भाई बहिनी के, नोहे कोनो कहिनी के,

कान खोंच भोजली ला, बनाले ले मितान जी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


भोजली तिहार के बधाई,,जोहार जोहार

स्वतंत्रता दिवस अमर रहे, जय जय जय भारत जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: बागीश्वरी सवैया

 स्वतंत्रता दिवस अमर रहे, जय जय जय भारत


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: बागीश्वरी सवैया


मले  मूड़  मा  धूल  माटी  धरा के सिवाना म ठाढ़े हवे वीर गा।

लगे तोप गोला सहीं वीर काया त ओधे भला कोन हा तीर गा।

नवाये  मुड़ी  जेन  माँ  भारती तीर वोला खवाये बुला खीर गा।

दिखाये  कहूँ देश ला आँख बैरी त फेके भँवाके जिया चीर गा।


जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को,कोरबा(छग)


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अमृत महोत्सव (आल्हा छंदगीत)


आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।

जनम धरे हन भारत भू मा, हम सब ला हावयँ बड़ नाज।


स्कूल दफ्तर कोट कछेरी, गली खोर घर बन अउ बाट।

सबे खूँट लहराय तिरंगा, तोर मोर के खाई पाट।।

हर हिन्दुस्तानी के भीतर, भारत माता करथे राज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


रही सबर दिन सुरता हम ला, बलिदानी मनके बलिदान।

टूटन नइ देन उँखर सपना, नइ जावन देवन स्वभिमान।

सुख समृद्धि के पहिराबों, भारत माँ के सिर मा ताज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


सब दिन रही तिरंगा दिल मा, सबदिन करबों जयजयकार।

छोटे बड़े सबे सँग सबदिन, रखबों लमा मया के तार।।

छोड़ सुवारथ सुमता गारत, देश धरम बर करबों काज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


जंगल झाड़ी झरना नदिया, खेत खदान हवय भरमार।

सोना उगले भारत भुइयाँ, कोई नइ पा पाये पार।

रक्षा खातिर लड़बों भिड़बों, बैरी उपर गिराबों गाज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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एक दिन के देश भक्ति (सरसी छन्द)-

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देशभक्ति चौदह के जागे, सोलह के छँट जाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


आय अगस्त महीना मा जब, आजादी के बेर।

देश भक्ति के गीत बजे बड़, गाँव शहर सब मेर।

लइका संग सियान मगन हे, झंडा हाथ उठाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


रँगे बसंती रंग म कोनो, कोनो हरा सफेद।

गावै हाथ तिरंगा थामे, भुला एक दिन भेद।

तीन रंग मा सजे तिरंगा, लहर लहर लहराय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


ये दिन आये सबझन मनला, बलिदानी मन याद।

गूँजय लाल बहादुर गाँधी, भगत सुभाष अजाद।

देशभक्ति के भाव सबे दिन, अन्तस् रहे समाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: अपन देस(शक्ति छंद)


पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।

करौं बंदना नित करौं आरती।

बसे मोर मन मा सदा भारती।


पसर मा धरे फूल अउ हार ला।

दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।

बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।

सबे खूँट बगरे अँजोरी रहे।

बसे बस मया हा जिया भीतरी।

रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।


इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।

तभो हे घरो घर बिना बेंस के--।

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।


चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।

सजाके बनावौं ग रानी सहीं।

किसानी करौं अउ सियानी करौं।

अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।

वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।

करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।


फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।

वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: स्वतंत्रता दिवस अमर रहे,,,


बलिदानी (सार छंद)


कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।

देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।

महतारी के आन बान बर,कोन ह झेले गोली।

कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।

छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।

हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।

मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।

हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।

देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।

अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।

हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।

देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।

पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।

भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।

लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।

डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारा   मारी।

अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।

बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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: दोहा गीत(हमर तिरंगा)


लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।

इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।

हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।

नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।

जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।

संसो  कहाँ  सुबे   हवे, नइहे  संसो   रात।

महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।

लहर------------------------------ आज।


उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।

भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।

गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।

उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।

का  का  मैं  बतियाँव गा,हवै सोनहा राज।

लहर------------------------------लाज।


तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।

जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।

कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।

रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।

जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।

लहर-----------------------------लाज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा,छत्तीसगढ़


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: कइसे जीत होही(सार छंद)


हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी।

जे मन चाहै ये माटी हा,होवै चानी चानी----।


देश प्रेम चिटको नइ जानै,करै बैर गद्दारी।

भाई चारा दया मया ला,काटै धरके आरी।

झगरा झंझट मार काट के,खोजै रोज बहाना।

महतारी  ले  मया करै नइ,देवै रहि रहि ताना।

पहिली ये मन ला समझावव,लात हाथ के बानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


राजनीति  के  खेल निराला,खेलै  जइसे  पासा।

अपन सुवारथ बर बन नेता,काटै कतको आसा।

मातृभूमि के मोल न जानै,मानै सब कुछ गद्दी।

मनखे  मनके मन मा बोथै,जात पात के लद्दी।

फौज  फटाका  धरै फालतू,करै मौज मनमानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


तमगा  ताकत  तोप  देख  के,काँपै  बैरी  डर मा।

फेर बढ़े हे भाव उँखर बड़,देख विभीषण घर मा।

घर मा  ये  मन  जात  पात  के,रोज मतावै गैरी।

ताकत हावय हाल देख के,चील असन अउ बैरी।

हाथ  मिलाके  बैरी  मन ले,बारे  घर  बन छानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


खावय ये माटी के उपजे,गावय गुण परदेशी।

कटघेरा मा डार वतन ला,खुदे लड़त हे पेशी।

अँचरा फाड़य महतारी के,खंजर गोभय छाती।

मारय काटय घर वाले ला,पर ला भेजय पाती।

पलय बढ़य झन ये माटी मा,अइसन दुश्मन जानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी-----।


घर के बइला नाश करत हे, हरहा होके खेती।

हारे हन इतिहास झाँक लौ,इँखरे मन के सेती।

अपन देश के भेद खोल के,ताकत करथे आधा।

जीत भला  तब कइसे होही,घर के मनखे बाधा।

पहिली पहटावय ये मन ला,माँग सके झन पानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छग


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जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: गीत


देस बर जीबो,देस बर मरबो।

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चल माटी के काया ल,हीरा करबो।

देस   बर    जीबो , देस बर  मरबो।

   

सिंगार करबों,सोन चिरँइयाँके।

गुन   गाबोंन , भारत  मइया के।

सुवारथ  के सुरता ले, दुरिहाके।

धुर्रा चुपर के माथा म,भुइयाँ के।


घपटे अंधियारी भगाय बर,भभका धरबो।

देस    बर    जीबो  ,  देस    बर     मरबो।


उंच - नीच    ल ,    पाटबोन।

रखवार बन देस ल,राखबोन।

हवा    म    मया  ,  घोरबोन।

हिरदे ल हिरदे ले , जोड़बोन।


चल  दुख-पीरा  ल , मिल  हरबो।

देस   बर  जीबों  , देस बर मरबो।


हम ला गरब-गुमान  हे,

ए   भुइयाँ  ल  पाके।

खड़े   रबों   मेड़ो   म ,

जबर छाती फइलाके।

फोड़ देबों वो आँखी ल,

जेन हमर भुइयाँ  बर गड़ही।

लड़बों मरबों  देस  बर ,

तभे काया के करजा उतरही।


तँउरबों बुड़ती समुंद म,उक्ती पहाड़ चढ़बो।

देस     बर    जीबो   ,  देस    बर     मरबो।


          जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बाल्को(कोरबा)

              9981441795


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अमृत महोत्सव (गीत)


तोरो हाथ मा हवै तिरंगा, मोरो हाथ मा हे।

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे--


आजादी के अमृत उत्सव, जुरमिल सबे मनाबों।

बलिदानी मन के सुरता कर, श्रद्धा सुमन चढ़ाबों।

चरण पखारत हावै सागर, हिमधर माथ मा हे---

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे-----


जात धरम भाँखा नइ जानन, रंग रूप ना भेष।

सबके दिल मा हवै तिरंगा, सबके बड़का देश।।

लहरावत स्कूल दफ्तर सँग, घर गली पाथ मा हे--

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे------


परब परंपरा संस्कृति, सरी दुनिया मा छाये।

धानी धरती नदिया पर्वत, गौरव गाथा गाये।

आँखी कोन देखाही हम ला, बैरी मन नाथ मा हे--

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे------


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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आल्हा छंद- रे बइरी


महतारी के रक्षा खातिर, धरे हवँव मैं मन मा रेंध।

खड़े हवँव नित छाती ताने, काय मार पाबे तैं सेंध।


मोला झन तैं छोट समझबे, अपन राज के मैंहा वीर।

अब्बड़ ताकत हवै बाँह मा, दू फाँकी देहूँ रे चीर।।


तन अउ मन ला करे लोहाटी, बासी चटनी पसिया नून।

देख तोर करनी धरनी ला, बड़ उफान मारे तन खून।।


नाँगर मूठ कुदारी धरधर, पथना कस होगे हे हाथ।

तोर असन कतको हरहा ला, पहिराये हौं मैंहर नाथ।


ललहूँ पटुकू कमर कँसे हौं, चप्पल भँदई सोहे पाँव।

अड़हा जान उलझबे झन तैं, उल्टा पड़ जाही रे दाँव।


कोन खेत के तँय मुरई रे, मोला का तँय लेबे जीत।

परही मुटका कँसके तोला, छिनभर मा हो जाबे चीत।


हवै हवा कस चाल मोर रे, कोन भला पा पाही पार।

चाहे कतको हो खरतरिहा, होही खच्चित ओखर हार।


देश राज बर नयन गड़ाबे, देहूँ खँड़ड़ी मैं ओदार।

महानदी अरपा पैरी मा, बोहत रही लहू के धार।


उड़ा जबे रे बइरी तैंहा, कहूँ मार पाहूँ मैं फूँक।

खड़े खड़े बस देखत रहिबे, होवय नही मोर ले चूँक।


देख मोर नैना भीतर रे, गजब भरे हावय अंगार।

पाना डारा कस तोला मैं, छिन भर मा देहूँ रे बार।


गोड़ हाथ हर पूरे बाँचे, नइ लागय मोला हथियार।

अपन राज के आनबान बर, सुतत उठत रहिथौं तैंयार।


भाला बरछी बम अउ बारुद, भेद सके नइ मोरे चाम।

दाँत कटर देहूँ ततकी मा, तोर बुझा जाही रे नाम।।


जब तक जीहूँ ये माटी मा, बनके रहिहूँ बब्बर शेर।

डर नइहे कखरो ले मोला, करहू काय कोलिहा घेर।


नाँव खैरझिटिया हे मोरे, खरतरिहा माटी के लाल।

चुपेचाप रह घर मा खुसरे, नइ ते हो जाही जंजाल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

स्वतंत्रता दिवस अमर रहे,,, बलिदानी (सार छंद)

 स्वतंत्रता दिवस अमर रहे,,,


बलिदानी (सार छंद)


कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।

देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।

महतारी के आन बान बर,कोन ह झेले गोली।

कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।

छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।

हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।

मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।

हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।

देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।

अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।

हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।

देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।

पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।

भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।

लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।

डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारा   मारी।

अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।

बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

खमर्छठ(सार छंद)

 खमर्छठ(सार छंद)


खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।

चना गहूँ राहेर भुँजाये ,झड़के बहिनी भाई।


भादो मास खमर्छठ होवय,छठमी तिथि अँधियारी।

लीपे  पोते  घर  अँगना  हे,चुक  ले दिखे दुवारी।


बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।

हलषष्ठी के करे सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।


घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।

पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।


चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।

हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।


पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।

लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।


लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।

छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।


खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।

महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।


भैंस दूध के भोग लगाये,भरभर मउहा दोना।

करे दया हलषष्ठी  देवी,टारे दुख जर टोना।


पीठ म  पोती   दे बर दाई,पिंवरी  माटी  घोरे |

लइका मनके पाँव ल दाई, सगरी मा धर बोरे।


चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।| 

महतारी के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।


द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।

रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।


घँसे पीठ मा महतारी मन,पोती कइथे जेला।

रक्षा कवच बने लइका के,भागे दुःख झमेला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


खमर्छठ परब के बहुत बहुत बधाई

आठे परब के सादर बधाई मोला किसन बनादे (सार छंद)

 आठे परब के सादर बधाई


मोला किसन बनादे (सार छंद)


पाँख  मयूँरा  मूड़ सजादे,काजर गाल लगादे|

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


बाँध कमर मा करिया करधन,बाँध मूड़ मा पागा|

हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|

चंदन  टीका  माथ लगादे ,पहिरा माला मुंदी|

फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चुंदी|

हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |

घींव  लेवना  चाँट  चाँट  के,खाहूँ थाली थाली |

मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ,दाई लोरी गादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी मीठ बजाहूँ|

तेंदू  लउड़ी  हाथ थमादे,गाय  चराके आहूँ|

महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    

गोकुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल घर भीतर।

मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी|

बँसुरी  धरे  रेंगहूँ   मैंहा ,भइया  नाँगर  डाँड़ी|

कनिहा मा कँस लाली गमछा,पीताम्बर ओढ़ादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|

संसो  झन करबे वो दाई,खेल कूद घर आहूँ|

पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई ,किसन बरन तैं चोला|

रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|

पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |

बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|

दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,दाई आस पुरादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "

बालको (कोरबा )


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1,मदिरा सवैया


मोहन माखन माँगत हे मइया मुसकावत देखत हे।

गोकुल के सब गोपिन ला घनश्याम दहीं बर छेकत हे।

देख गुवालिन के मटकी धरके पथरा मिल फेकत हे।

तारन हार हरे हरि हा पँवरी म सबे सिर टेकत हे।


2, मतगयंद सवैया


देख रखे हँव माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।

रोवत हावय गाय गरू झट लेज मधूबन तीर चराना।

कान ल मोर सुहाय नही कुछु आ मुरलीधर गीत सुनाना।

काल बने बड़ कंस फिरे झट आ मनमोहन प्राण बचाना।


गोप गुवालिन के सँग मोहन रास मधूबन तीर रचावै।

कंगन देख बजे बड़ हाथ के पैजन पाँव के गीत सुनावै।

मोहन के बँसरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके मन भावै

एक घड़ी म दिखे सबके सँग एक घड़ी सबले दुरिहावै।


चोर सहीं झन आ ललना झन खा ललना मिसरी बरपेली।

तोर हरे सब दूध दहीं अउ तोर हरे सब माखन ढेली।

आ ललना झट बैठ दुहूँ मँय दूध दहीं ममता मन मेली।

मोर जिया ल चुरा नित नाचत गावत तैं करके अटखेली।


गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं गा।

फूल गुलाब न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं गा।

मोर सबे सुख शांति उड़े मुरलीधर रास रचे न कहीं गा।

दर्शन दे झट आ मनमोहन हाथ धरे हँव दूध दहीं गा।


धर्म ध्वजा धरनी धँसगे झटले अब आ करिया फहराना।

खोर गली म भरे हे दुशासन द्रौपति के अब लाज बचाना।

शासक संग समाज सबे ल सुशासन के सत पाठ पढ़ाना।

झाड़ कदम्ब जमे कटगे यमुना मतगे मनमोहन आना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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लोकछंद- रामसत्ता


विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।

दीन दुखी के डर दुख हरके, धर्म ध्वजा फहराये हो राम।


एक समय देवकी बसदेव के, राजा कंस ब्याह रचाये।

उही बेर मा आकाशवाणी, कंस के काने मा सुनाये।।

आठवाँ सुत हा मारही तोला, सुनत कंस भारी बगियाये।

बाँध छाँद बसदेव देवकी ला, कारागर मा झट ओइलाये।।

*सुख शांति के देखे सपना, एके छिन छरियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।1


राजा कंस हा होके निर्दयी, देवकी बसदेव पूत मारे।

करँय किलौली दूनो भारी, रही रही के आँसू ढारे।।

थर थर काँपे तीनो लोक हा, कंस करे अत्याचारी।

भादो अठमी के दिन आइस, प्रभु अवतरे के बारी।।

*बिजुरी चमके बादर गरजे, नदी ताल उमियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।2


अधरतिहा अवतरे कन्हैया, बेड़ी भाँड़ी सब टुटगे।

देवी देवता फूल बरसाये, राजा बसदेव देख उठगे।।

देख मनेमने गुनय बसदेव, निर्दयी राजा के हे डर।

धरे कन्हैया ला टुकनी में, चले बसदेव नंद के घर।।

*यमुना बाढ़े शेषनांग ठाढ़े, गिरधारी मुस्काये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।3


छोड़ कन्हैया ला गोकुल में, माया ला धरके लाये।

समै के काँटा रुकगे रिहिस, बसदेव सुधबुध बिसराये।।

रोइस माया तब जागिस सब, आइस दौड़त अभिमानी।

पुत्र नोहे पुत्री ए राजा, हाथ जोड़ बोले बानी।।

*विष्णु के छल समझ कंस हा, मारे बर ऊँचाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।4


छूटे कंस के हाथ ले माया, होय देख पानी पानी।

तोर काल होगे हे पैदा, सुन के काँपे अभिमानी।।

जतका नान्हे लइका हावै, कहै मार देवव सब ला।

सैनिक मन के आघू मा, करे किलौली कई अबला।

*रोवै नर नारी मन दुख मा, हाँहाकार सुनाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।5


राजा कंस के काल मोहना, गोकुल मा देखाय लीला।

दाई ददा संग सब ग्राम वासी, नाचे गाये माई पीला।।

छम छम बाजे पाँव के पइरी, ठुमुक ठुमुक चले कन्हैया।

शेषनाग के अवतारे ए, संग हवै बलदऊ भइया।।

*किसन बलदऊ ला मारे बर, कंस हा करे उपाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।6


कंस के कहना मान पुतना, गोकुल नगरी मा आये।

भेस बदल के कान्हा ला धर, गोरस अपन पिलाये।।

उड़े गगन मा मौका पाके, कान्हा ला धरके पुतना।

चाबे स्तन ला कान्हा हा, तब भारी भड़के पुतना।।

*असल भेस धर गिरे भूमि मा, पुतना प्राण गँवाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।7


पुतना बध सुन तृणावर्त ला, कंस भेजे गोकुल नगरी।

बनके आय बवंडर दानव, होगे धूले धूल नगरी।।

मारे लात फेकाये दानव, प्राण पखेडू उड़े तुरते।

बगुला भेस बनाके बकासुर, गोकुल मा आये उड़ते।

भारी भरकम देख बगुला ला, नर नारी घबराये हो राम।

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।8


अपन चोंच मा मनमोहना ला, धरके बगुला उड़िड़ाये।

चोंच फाड़ बगुला ला मारे, कंस सुनत बड़ घबराये।।

बछरू रूप धरे बरसासुर, मोहन ला मारे आये।

खुदे बरसासुर हा मरगे, अघासुर आ डरह्वाये।।

*गुफा समझ सब ग्वाल बाल मन, अजगर मुख मा जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।9


कंस के भेजे सब दानव मन, एक एक करके मरगे।

गोकुल वासी जय बोलावै, दानव मन मरके तरगे।।

माखन खावै दही चोरावै, मटकी फोड़े गुवालिन के।

मुँह उला के जग देखावै, माटी खावै बिनबिन के।।

*कदम पेड़ मा बइठ कन्हैया, मुरली मधुर बजाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।10


पेड़ बने दुई यक्ष रिहिन हे, कान्हा उन ला उबारे।

गेंद खेलन सब ग्वाल बाल संग, मोहन गय यमुना पारे।

रहे कालिया नाग जल मा, चाबे नइ कोनो बाँचे।

कालीदाह मा कूदे कन्हैया, नाँग नाथ फन मा नाँचे।

*गोबर्धन के पूजा करके, इन्द्र के घमंड उतारे हो  राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।11


मधुर मधुर मुरली धुन छेड़े, रास रचाये मधुबन मा।

गाय बछरू ला गोकुल के, कान्हा चराये कानन मा।।

सिखाय नाहे बर गोपियन ला, चीर हरण करके कान्हा।

राधा ला भिंगोये रंग मा, पिचकारी भरके कान्हा।।

*कृष्ण बलदउ ला अक्रूर जी, मथुरा लेके जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।12


गोकुल मधुबन मरघट्टी कस, बिन कान्हा के लागत हे।

मनखे मन कठवा कस होगे, सूतत हे ना जागत हे।।

यमुना आँसू मा भरगे हे, रोवय जम्मो नर नारी।

कान्हा जाके मथुरा नगरी, दुखियन के दुख ला हारी।

*कंस ममा ला मुटका मारे, लहू के धार बोहाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।13


अत्याचारी कंस मरगे, जरासन्त शिशुपाल पाल मरे।

असुरन मनके नाँव बुझागे, विदुर सुदामा सखा तरे।।

दुशासन चिर खींचत थकगे, बने सहारा दुरपति के।

महाभारत ला पांडव जीतिस, कौरव फल पाइस अति के।

*हरि कथा हे अपरम पारे, खैरझिटिया का सुनाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।14


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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कलजुग म घलो आबे कान्हा

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स्वारथ म  रक्सा  बनके मनखे,

सिधवा गोप-गुवाल ल मारत हे।

कालीदाह   के   कालिया   नाग,

गली - गली   म    फुस्कारत हे।

बरसत हे ईरसा-दुवेस लड़ई-झगरा,

मया  के  गोवरधन उठाबे कान्हा।।

कलजुग  म  घलो  आबे   कान्हा।।


देवकी-बसदेव  ल  का  किबे,

जसोदा-नन्द  घलो  रोवत  हे।

कहाँ बाजे बंसुरी,कती रचे रास?

घर - घर  महाभारत  होवत   हे।

सड़क डहर म बइठे हे तोर गईया,

मधुबन म ले जाके चराबे कान्हा।

कलजुग  म  घलो आबे   कान्हा।


दूध - दही  ले  दुरिहाके  मनखे,

मन्द - मऊहा   म  डूब   गे  हे।

अलिन-गलिन म  सोवा  परे हे,

कदम  के  रुखवा  टूट  गे  हे।

घेंच म बांधे घूमे भरस्टाचार के हांड़ी,

आके  दही  लूट  देखादे  कान्हा।

कलजुग  म  घलो  आबे  कान्हा।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

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........माते हे दही लूट..........

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गोकुल गँवागे,ब्रिज बोहागे |

सिरागे जम्मो सुख.............|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


परिया तरिया पार लुटागे |

डहर गाँव खेत-खार लुटागे |

नांगर बक्खर बखरी -बारी,

खेक्सा,करेला,सेमी नार लुटागे |

कागज कस फूल ममहाय नही|

गाय-गरवा कोनो ल भाय नही |

न गोपी हे न ग्वाला हे |

जम्मो मनचलहा, मतवाला हे |

नइ पीये दूध दही,

सब ढ़ोकत हें मँउहा घूट...............|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


जसोदा के लोरी लुटागे |

नंद ग्राम के  होरी लुटागे |

दुहना,मथनी,डोरी लुटागे |

किसन बलदाऊ के जोड़ी लुटागे |

पेंट पुट्टी के दिवाल म,

आठे कन्हैया नइ नाँचे |

घर घर भरे असुर के मारे,

गोकुल- मधुबन नइ बाँचे |

अपनेच पेट के देखइया सब,

सुदामा मरत हे भूख.................|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


पहली कस दही,

अब जमे नही |

घीव-लेवना नोहर होगे,

कड़ही तको बने नही |

दूध दही होटल म होत हे |

ग्वाल-बाल गली-गली म रोत हे |

न गौठान हे,न चरागन हे,

कहॉ बाजे बंसरी,नइ हे कदम रूख.....|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


                जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                        बाल्को(कोरबा )

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स्वभिमानी- गीत(16-16 मात्रा)

 स्वभिमानी- गीत(16-16 मात्रा)


अफसर बाबू नेता गुंडा, कखरो ले पहिचान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।


बाजा असन बजाके जाथे, जउने आथे तउने हम ला।

जादा बर जिद कभू करन नइ, सबदिन माँगत रहिथन कम ला।

का देखावा रुपिया पइसा, पेट भरे बर धान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।


बने ढंग ले करनी के फल, हाथ घलो नइ आय हमर गा।

खड़े रथे नित डँगनी धरके, बिचौलिया मन खाय अमर गा।

सीले रहिथन मुँह ला सब दिन, अधर भरे मुस्कान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।


जीभ लमइया के झोली मा, सबे सहज आ जावत हावयँ।

काम कमइया एती ओती, दर दर भटका खावत हावयँ।

हमर असन के कहाँ पुछारी, ये जग मा ईमान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।


कोट कछेरी सचिव सिपइहा, डाँका डारे थैली मा।

लेवैं कोल्लर कोल्लर भरके, देवैं पउवा पैली मा।

अंधेरी होवत हें भारी, सत साखी भगवान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।


नियम धियम हमरे बर हावय, हमरे बर हे गलत सही हा।

आँख दिखाथे सबे हमी ला, गड़े सबे ला हमर नही हा।।

चमचागिरी करत हें सबझन, स्वभिमानी इंसान कहाँ हे।

सबे चीज मा पाछू हावन, किस्मत मेहरबान कहाँ हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कुंडलियाँ छंद

 कुंडलियाँ छंद


साल पछत्तर बीत गे, हम ला पाय सुराज।

तभो कई ठन चीज में, पाछू हावन आज।।

पाछू हावन आज, गिनावन काला काला।

बूता दू ठन होय, चार हें गड़बड़ झाला।।

रोजगार बिन रोय, मनुष मन सौ मा सत्तर।

बिगड़े शिक्षा स्वास्थ, बीत गे साल पछत्तर।।


सेवा शिक्षा स्वास्थ हा, बनगे हें बिजनेस।

मनमानी माँगे रकम, लोक लाज ला लेस।

लोक लाज ला लेस, चलत हे कतको बूता।

बड़े बड़े अउ होय, छोट के घींसय जूता।।

कुर्सी वाले खाय, हाँस के सब दिन मेवा।

फुदरत हे वैपार, नाम के हावय सेवा।।


वैपारी के राज हे, रोय किसान जवान।

छोट मोट के हाथ मा, नून तेल ना धान।

नून तेल ना धान, जुटा पावत हे कतको।

महँगाई ला देख, उतर जावत हे पटको।

ना काली ना आज, छोट के आइस बारी।

कर काला बाजार, बढ़त हावयँ वैपारी।


बड़का मन के साथ मा, खड़े हवै सरकार।

भरै खजाना ला उँखर, आम मनुष ला मार।

आम मनुष ला मार, करत हावय मनमर्जी।

कहाँ मरे मोटाय, लाख मांगै वर अर्जी।

शासन अउ सरकार, आम जन ला दै हड़का।

ताल मेल बइठार, बइठ खावैं मिल बड़का।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तीजा पोरा


मुचुर मुचुर मन मुसकावत हे, देख करत तोला जोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


कभू अकेल्ला कहाँ रहे हँव, तोर बिना मैं महतारी।

जावन नइ दँव मैंहर तोला, देवत रह कतको गारी।

बेटी बर हे सरग बरोबर, दाई के पावन कोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


अपन पीठ मा ममा चघाके, मोला ननिहाल घुमाही।

भाई बहिनी संग खेलहूँ, मोसी मन सब झन आही।

मया ममा दाऊ के पाहूँ, खाहूँ खाजी अउ होरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


कइसे रथे उपास तीज के, नियम धियम होथे कइसन।

सीखे पढ़े महूँ ला लगही, नारी मैं तोरे जइसन।

गिनगिन सावन मास काटहूँ, भादो के करत अगोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

पोरा तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई कुकुभ छंद-पोरा जाँता

 पोरा तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई


कुकुभ छंद-पोरा जाँता


सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।

राँध ठेठरी खुरमी भजिया,करे हवै सबझन जोरा।


भादो मास अमावस के दिन,पोरा के परब ह आवै।

बेटी माई मन हर ये दिन,अपन ददा घर सकलावै।

हरियर धनहा डोली नाचै,खेती खार निंदागे हे।

होगे हवै सजोर धान हा,जिया उमंग समागे हे।

हरियर हरियर दिखत हवै बस,धरती दाई के कोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।1


मोर होय पूजा नइ कहिके,नंदी बइला हर रोवै।

भोला जब वरदान ल देवै,नंदी के पूजा होवै।

तब ले नंदी बइला मनके, पूजा होवै पोरा में।

सजा धजा के भोग चढ़ावै,रोटी पीठा जोरा में।

पूजा पाठ करे मिल सबझन,सुख पाये झोरा झोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।2


कथे इही दिन द्वापर युग में,पोलासुर उधम मचाये।

मनखे तनखे बइला भँइसा,सबझन ला बड़ तड़पाये।

किसन कन्हैया हर तब आके,पोलासुर दानव मारे।

गोकुलवासी खुशी मनावै,जय जय सब नाम पुकारे।

पूजा ले पोरा बइला के,भर जावय उना कटोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।3


दूध भराये धान म ये दिन,खेत म नइ कोनो जावै।

परब किसानी के पोरा ये,सबके मनला बड़ भावै।

बइला मनके दँउड़ करावै,सजा धजा के बड़ भारी।

पोरा परब तिहार मनावय,नाचयँ गावयँ नर नारी।

खेले खेल कबड्डी खोखो,नारी मन भीर कसोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।4


बाबू मन बइला ले सीखे,महिनत अउ काम किसानी

नोनी मन पोरा जाँता ले,होवय हाँड़ी के रानी।

पूजा पाठ करे बइला के,राखै पोरा में रोटी।

भरे अन्न धन सबके घर में,नइ होवै किस्मत खोटी।

परिया में मिल पोरा पटके,अउ पीटे बड़ ढिंढोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।5


सुख समृद्धि धन धान्य के,मिल सबे मनौती माँगे।

दुःख द्वेष ला दफनावै अउ,मया मीत ला उँच टाँगे।

धरती दाई संग जुड़े के,पोरा देवय संदेशा।

महिनत के फल खच्चित मिलथे,कभू रहै नइ अंदेशा।

लइका लोग सियान सबे झन,पोरा के करै अगोरा।

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।6


छंदकार-जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

पता-बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)


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पोरा(ताटंक छंद)


बने हवै माटी के बइला,माटी के पोरा जाँता।

जुड़े हवै माटी के सँग मा,सब मनखे मनके नाँता।


बने ठेठरी खुरमी भजिया,बरा फरा अउ सोंहारी।

नदिया बइला पोरा पूजै, सजा आरती के थारी।


दूध धान मा भरे इही दिन,कोई ना जावै डोली।

पूजा पाठ करै मिल मनखे,महकै घर अँगना खोली।


कथे इही दिन द्वापर युग मा,कान्हा पोलासुर मारे।

धूम मचे पोला के तब ले,मनमोहन सबला तारे।


भादो मास अमावस पोरा,गाँव शहर मिलके मानै।

हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बेटी माई ला लानै।


चंदन हरदी तेल मिलाके,घर भर मा हाँथा देवै।

धरती दाई अउ गोधन के,आरो सब मिलके लेवै।


पोरा पटके परिया मा सब,खो खो अउ खुडुवा खेलै।

संगी साथी सबो जुरै अउ,दया मया मिलके मेलै।


बइला दौड़ घलो बड़ होवै,गाँव शहर मेला लागै।

पोरा रोटी सबघर पहुँचै,भाग किसानी के जागै।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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आज पोरा हे

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चूरे   हे   ठेठरी-खुरमी,

चूरे   हे   बरा-भजिया।

टिपटिप ले भरे हे तरिया,

छापा  चलत हे नदिया।

नाचत हे,डोली म धान।

होवत हे,खेती के  मान।

बेटी माई घर अमराय बर,

रोटी-पिठा म ,भरे  झोरा हे।

आज पोरा हे,आज पोरा हे।


माड़े  हे माटी के बइला,

माटी के पोरा -  जांता।

अधियागे      किसानी,

जंउहर  जुड़े  हे नाता।

बाजत    हे       घण्टी,

नाचत     हे      बइला।

झन पूछ लइका मनके,

खेलई  -  कूदई    ला।

घरो - घर बेटी के अगोरा हे।

आज पोरा हे,आज पोरा हे।


कहूँ  मेर   फुगड़ी माते हे,

त  कहूँ  मेर   खो-कबड्डी।

कतको अतलंगहा टुरामन,

बइठे  हे   धरे  तास  गड्डी।

रोटी - पिठा ले फुले हे पेट।

नई गेहे  आज  कोनो खेत।

किसानी   के   तिहार पोरा,

जुड़ धरती दाई के कोरा हे।

आज पोरा हे,आज पोरा हे।

    जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

        बालको(कोरबा)

         9981441795

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सुरता मइके के-गीत

 : सुरता मइके के-गीत


सावन काँटेंव मैं गिनगिन, सुरता मा दाई वो।

कि आही तीजा लेय बर, भादो मा भाई वो।।


मइके के सुरता, नजरे नजर म झुलथे।

देखतेंव दसमत पेड़ ल, के फूल फुलथे।

मोर थारी अउ लोटा म, कोन बासी खाथे।

तुलसी चौरा म बिहना, पानी कोन चढ़ाते।

हे का चकचक ले उज्जर, कढ़ाई दाई वो--

आही तीजा------


गाय गरुवा मोर बिन, सुर्हरथे कि नही।

खेकसी कुंदरू बारी म फरथे कि नही।

कुँवा तरिया म पानी कतका भरे रहिथे।

का मोला अगोरत,परोसिन खड़े रहिथे।

कोन करथे मोर कुरिया म पढाई दाई वो---

आही तीजा------


दुरिहा दिये दाई, तैंहर अपन कोरा ले।

मइके लाही कहिके,मोला तीजा पोरा में।

जल्दी भेज न दाई बाट जोहत हँव वो।

मइके के सुरता म मैं हा रोवत हँव वो।

एकेदरी थोरे सुरता भुलाही दाई वो---

आही तीजा---


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

खेल खेल में जिनगी के मेल-संस्मरण खेल दिवस के सादर बधाई

 खेल खेल में  जिनगी के मेल-संस्मरण

खेल दिवस के सादर बधाई

           आजकल पेड़ -पात, साग-भाजी, कुकरी-बोकरी संग अउ कतको चीज, दवई-दारू अउ सूजी-पानी म डंगडंग ले बाढ़ जावत हे। का मनखे एखर ले अछूता हे? आज प्रकृति के नियम धियम  सब अस्त व्यस्त होगे हे। जे नइ हो सके उहू सम्भव होवत हे। खैर, छोड़व----- काबर कि नवा जमाना म सब जायज हे। जइसे लइकच मन ल देखव जे मन बिन खेलकूद के घलो बड़े हो जावत हे। दू ढाई साल के लइका कहिथन त हमर आघू उंखर लड़कपन,तोतला बानी, शोर- शराबा अउ उंखर खेलकूद सुरता आये बर लग जथे। फेर आज जमाना बड़ रप्तार म भागत हे, नान नान लइका मन आज सियान बरोबर टिफिन धरके गाड़ी चढ़, अपन भार ले जादा कॉपी पुस्तक ल पीठ म लाद, स्कूल जावत हे, अउ उँहा ले थक हार के आय के बाद घर म घलो पढ़त लिखत हे। अउ बाँचे खोंचे बेरा ल बइरी टीवी अउ मोबाइल नँगा लेवत हे। आगी पागी के होस नही उहू मन सबे चीज ल रट डारे हे, ये कोनो गलत नोहे , फेर लइका मनके आज शारीरिक कसरत कम होगे हे। जेन ल हमन अपन लइकई पन म खेल-खेलके संगी संगवारी बनाके सीखन तेला, आज लइका मन पढ़ अउ  रट के सीखत हे।

              आज के नान नान लइका मन के ये स्थिति ल देख मोला अपन बचपन याद आवत हे। दाई ददा खवा पिया के छोड़ देवय, ताहन  हमन छोटे बड़े सबे मिलके एक ले बढ़के एक खेल खेलन। स्कूल घलो छः बरस म गेन, जब डेरी हाथ ले जेवनी कान, अउ जेवनी हाथ ले डेरी कान बराबर छुवाय लगिस तब। छः साल के होवत ले दउड़ दउड़ के गांव गली ,खेत खार म खेलेन । लिखई पढ़ई ल तो स्कूल म सीखेंन, फेर कई ठन जानकारी ल खेले खेल म सीख ले रेहेन। आज के लइका मन पुस्तक ल देख पढ़ के,अपन शरीर के अंग जानथे, या ददा दाई मन बताथे तब जानथे, फेर  मोला सुरता आवत हे एक खेल के जेमा सबे संगवारी मन संग गोल घेरा बनाके घूमन अउ चिल्लावत मजा लेवत काहन- *गोल गोल रानी- इता इता पानी।* पाँव ले चालू होके ये खेल चुन्दी म खतम होय। ये खेल रोजे खेलन, जेखर ले अपन शरीर के जमे अंग ल खेल खेल म जान जावन। आज के लइका मन स्कूल में, ताहन दाई ददा के संग घर में घलो रट रट के गिनती सीखथे, फेर हमन अइसन कई ठन खेल अउ गीत ल, एक-दू बेर खेलके अउ गाके, कभू नइ भुलाय तइसन सुरता कर लेवन। लइकापन म बाँटी जीत,बिल्लस,गोटा, चोट-बदा(बाँटी डूबउल), कस कतको खेल, खेलके गिनती के एक, दो, तीन ----- सीखेंन। बाँटी ,बिल्लस, गोटा जइसे  खेल,खेलके  हमर निसाना घलो तेज होय अउ शरीर घलो चंगा रहय।

लुका छुपउल म घलो गिनती दस तक बोलई ले सीख जावन। तिरी पासा, चोर पुलिस जइसे खेल  म घलो गणित गिनती के उपयोग होय।

            रंग के ज्ञान घलो स्कूल जाय के पहली हो गए रिहिस, *इटी पीटी रंग कोन से कलर* वाले खेल खेलके।

सूरज,चन्दा, पानी, पवन  ल घलो खेल म जान डरे रेहेन।

नदी - पहाड़ , खेलके खचका - डिपरा अउ फोटो जितउल म एक जइसे दिखे वाले चीज छाँटे के जानकारी अउ घाम  छाँव म घाम छाँव के जानकारी हो जावत रिहिस। गिल्ला, भौरा , पिट्ठुल, रस्सी कूद, फुगड़ी, खो, कबड्डी,डंडा पिचरंगा,घलो शरीर ल चंगा रखे के साथ साथ दिमाक ल खोले। बड़े संगी मन संग खेल खेल म उंखर जानकारी ल हमू मन ले लेवन। सगा पुताना खेल म ज्ञान अउ मजा के बात भर नही बल्कि जिनगी के जम्मो बूता ल सीखे म मदद मिले। बाजार हाट जाना, समान बेचना-लेना, पइसा कौड़ी के हिसाब, नता रिस्ता के जानकारी के संगे संग अउ कतको जीवन उपयोगी जानकारी ये खेल म मिले, जउन आज स्कूलो म नइ मिल पावत हे। गीत कविता सुनई गवई तो रोजेच होय, स्कूल जाय के पहिली कतको गीत कविता याद रहय। बर बिहाव, बाजा बराती, जइसे खेल खेलके  कतको संगी मन संगीत म घलो अपन पकड़ बना लेवत रिहिस। मोला सुरता आवत हे मोर बचपन के संगी उगेश के जउन पहली डब्बा, दुब्बी ल न सिर्फ पीटे बल्कि बढ़िया बजाय, आज वो तबला ढोलक बजाए म उस्ताद हे। ननपन म बबा, डोकरी दाई अउ कका के कहानी सुने बर घलो बराबर टेम देवन। तरिया नरवा म नहा के तँउरे बर घलो सीख जावन। पेड़ चढ़ना, भागना, नाचना, गाना अउ बूता काम म हाथ बँटाना सब खेल खेल म हो जावत रिहिस।

          आज लइका मन ल बताय बर लगथे कि  कुकुर भूं भूं कहिथे, बिल्ली म्याऊँ कहिथे, चिरई  चिंव चिंव कहिथे। फेर हमन तो कुकुर ल एक ढेला मार घलो देवन, अउ ओखर कुँई कुँई अउ भूं भूं ल सुनन  तब जानन। *काँउ मॉउ मेकरा के जाला- कंघुर * ये खेल ले शेर,कुकुर, बिलई, भालू, बेंदरा कस कतको जानवर के आवाज ल जान डरत रेहे। बारी बखरी के खेल(घिनिन मानन बटकी भवड़ा)  ले साग भाजी के नाम  मन घलो सुरता रहय। येमा भाजी ,पाला, फल, पेड़ ल बढ़ाय, बचाय, अउ तोड़ें ,बेचे के घलो जानकारी रहय। दिन के नाम घलो आज इतवार है, चूहे को बुखार है, कहिके सातो दिन ल रट डारत रेहेन। तिहार बार, खेती खार, हाट बाजार, सगा सोदर अवई-जवई, नाच गान, सब खेल के हिस्सा रहय। कतको हाना-पहेली घलो खेल खेल म याद रहय। छोट बड़े संग जुरियाय पारा मुहल्ला के संगी मन संग, कई किसम के खेल खेलन, सबके वर्णन कर पाना मुश्किल हे, सबे खेल कोई न कोई ज्ञान अउ शरीर के कसरत ले जुड़े रहय। पतंग उड़ाना, तुतरु बजाना, कागज संग माटी के कई किसम के चीज बनाना, हमर निर्माण क्रिया ल घलो दर्शाये। आज गाँव घलो शहर बनत जावत हे, कुछ कुछ गाँव ल छोड़ दे,ताहन लगभग सबे गाँव के लइका मन  शहरी बनके ये सब खेल मेल ले दुरिहागे हे। गाँव म आज भी कुछ खेल के कल्पना कर  सकथन, फेर शहर नगर के लइका मन तो किताब कॉपी , मोबाइल टीवी म ब्यस्त हे। आज घलो मोर मन वो दिन ल याद करके उही बेरा म  खींचा जथे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

मरना हे तीजा मा सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 मरना हे तीजा मा


सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


लइका लोग ल धरके गय हे,मइके मोर सुवारी।

खुदे बनाये अउ खाये के, अब आ गय हे पारी।


कभू भात चिबरी हो जावै,कभू होय बड़ गिल्ला।

बर्तन भँवड़ा झाड़ू पोछा, हालत होगे ढिल्ला।

एक बेर के भात साग हा,चलथे बिहना संझा।

मिरी मसाला नून मिले नइ,मति हा जाथे कंझा।

दिखै खोर घर अँगना रदखद, रदखद हाँड़ी बारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।1।


सुते उठे के समय बिगड़गे,घर बड़ लागै सुन्ना।

नवा पेंट कुर्था मइलागे, पहिरँव ओन्हा जुन्ना।

कतको कन कपड़ा कुढ़वागे,मूड़ी देख पिरावै।

ताजा पानी ताजा खाना, नोहर हो गय हावै।

कान सुने बर तरसत हावै,लइकन के किलकारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।2।


खाय पिये बर कहिही कहिके,ताकँव मुँह साथी के।

चना चबेना मा अब कइसे,पेट भरे हाथी के।

मोर उमर बढ़ावत हावै,मइके मा वो जाके।

राखे तीजा के उपास हे,करू करेला खाके।

चारे दिन मा चितियागे हँव,चले जिया मा आरी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आ गय हे पारी।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

धनहा डोली(गीत)......

 .

.....धनहा डोली(गीत)......

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चल  घुमाहूँ  तोला, धनहा     डोली।

सुनाहूँ पड़की तीतुर,पपीहा के बोली।


मेड़ -पार  म  उगे   हवे,रंग - रंग  के   काँदी।

खेत   म  खेलत  हवे ,डँड़ई ,कोतरी ,सराँगी।

नाचत हवे रुख राई संग,पँड़री-पँड़री कांसी।

कते  रुख  तरी  खाथों , बइठ   मैंहा   बासी?

तहूँ ला  खवाहूँ  ,मुंग - मुंगेसा  ओली-ओली।

चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली................।


मेचका के टर-टर हे,पुरवा के सर-सर हे।

मुही के  पानी झरे , झर-झर झर-झर हे।

भादो  महीना  ,  सजोर  दिखय    धान।

नाच  देथे कई परता,खेतेच म किसान।

सँसो  -  फिकर  के , जर जाही  होली ।

चल घुमाहूँ तोला,धनहा डोली..........।


बइठ के मेड़  म ,  तन - मन  ल हरियाबों।

कोलिहापुरी ,फोटका, फुट- फुटैना खाबों।

कर्मा - ददरिया  सुनबों, धान  निंदइया के।

असल रूप चल  देखबों,धरती मइया के।

हँसबों   मुस्काबों अउ , करबों   ठिठोली।

चल घुमाहूँ तोला, धनहा डोली.............।


                     जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                            बालको(कोरबा)

                            9981441795


एक जुन्ना गीत

गणेश चतुर्थी के आप सबों ल सादर बधाई

 गणेश चतुर्थी के आप सबों ल सादर बधाई


गणपति देवा-आल्हा छंद गीत(खैरझिटिया)


मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।

गली गली घर खोर म बइठे, घोरत हवै भक्ति के रंग।


तोरन ताव तने सब तीरन, चारो कोती होवय शोर।

हूम धूप के धुवाँ उड़ावय, बगरै चारो खूँट अँजोर।

लइका लोग सियान सबे के, मन मा छाये हवै उमंग।

मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।


संझा बिहना होय आरती, लगे खीर अउ लड्डू भोग।

कृपा करे जब गणपति देवा, भागे जर डर विपदा रोग।

चार हाथ मा शोभा पाये, बड़े पेट मुख हाथी अंग।

मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।


होवय जग मा पहली पूजा, सबले बड़े कहावय देव।

ज्ञान बुद्धि बल धन के दाता, सिरजावै जिनगी के नेव।

भगतन मन ला पार लगावै, होय अधर्मी असुरन तंग।

मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गँवागे हे मोर गॉंव ####

 #### गँवागे हे मोर गॉंव ####


सियान के ऑंवर-भॉंवर,

जुरियायँ राहयँ लइका |

तारा-कुची लगे नइ राहय,

बस ओधे राहय फइका |

रहे भाई बरोबर परोसी,

फूल मितान पारा-पारा |

सुख-दुख म साथ राहयँ,

सब खायँ  झारा- झारा|

सबके बने गॉंव के गॉंव संग |

आदर राहय बड़का के नॉव संग |

उहाँ माते हे आज,  

हॉंव-हॉंव ,खॉंव-खॉंव...............|

कोनो देखे हो का गा?

गँवागे हे मोर गॉंव...................|


फुतकी उड़त रद्दा म,

पहिली रेंगें म मया बाढ़े|

कोनो गिरगे सड़क म,

त आज देखत रीथें सब ठाढ़े|

तोर-मोर जिहॉ नइ रिहिस,

उहॉं का हमागे हे |

ताग-ताग बर लड़त हें,

स्वारथ के सॉप चाबे हे |

जिहॉं धन-दौलत करम रिहिस,

मंदिर रिहिस बड़का के पॉंव........|

कोनो देखे हो का गा,

गँवागे हे मोर गॉंव......................|


झगरा-लड़ई होय जघा-जघा,

गोल्लर कस भुकरे मनखे |

मन ल मइलात हें,

सिंगार करत हें तन के |

मितान बर मया उरक गे|

सियान बर दया उरक गे |

फेक गँवइहॉ ताज ल,

बनगें सब बिलायती |

चार आखर पढ़के,

करत हें पंचायती |

बिदेसी बरोड़ा म,

उड़ागे हे समाज |

निरदई हें अधमी हें,

बेंच देहें लोक-लाज |

बर पीपर तरी धुका चलत हे,

जुड़ नइहे नीम छॉंव............|

कोनो देखे हो का गा,

गँवागे हे मोर गॉंव................|

             

           जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

           बाल्को(कोरबा)

शत शत नमन- किस्मत बाई देवार जी ल,

 शत शत नमन- किस्मत बाई देवार जी ल, 


किस्मत किस्मत के

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कखरो किस्मत किस्मत बाई कस,

करिया          झन             होय।

अइसने    कोनो    कलप-कलप     मरही,

त ओखर नरी म करमा-ददरिया झन होय।


झन होय कोनो कला के गियानी।

बने राहय मनखे अड़हा-अग्यानी।

दुःख      के      बात   ए,

कलाकार कलमकार कर।

पइसा-कउड़ी    नइ    हे,

जिनगी  के  उदिम  मा,

दू       बून्द       आंसू        चलही,

फेर आंसू झर-झर तरिया झन होय।

कखरो किस्मत किस्मत  बाई कस,

करिया         झन               होय।


हे     भगवान !    कलाकार          बना,

त खाय-पीये बर धन-दउलत अपार बना।

कला झन दे वो मनखे ल,जे तरसे पाई-पाई बर,

तरसाना हे त रोजी-मंजूरी करइया बनिहार बना।

जे जनम-जनम ले तरसत हे दाना-दाना बर।

नेता बैपारी पोठाट हे,जियत हे रंग-रंग के 

खाना बर।

मेहनत   के थोरको   फल तो मिले,

जनम जात खेत बारी परिया झन होय।

कखरो किस्मत किस्मत बाई कस,

करिया         झन              होय।


कोन सुध लिही, कला अउ कलाकार के?

बइठे हे बड़े मन,आंखी म फरिया  डार के।

का अइसने गत होथे,बड़का नेता ब्यपारी के?

कला ल झन नांव मिले,गरीबी अउ लाचारी के।

सूजी गोभातिस  त   सहि   लेतेन,

फेर  सूजी   सरिया      झन होय।

कखरो किस्मत किस्मत बाई कस,

करिया          झन             होय।


           जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

               बालको(कोरबा)

                9981441795

[पूण्य तिथि के बेरा म,किस्मत बाई देवार जी को अश्रुपूरित श्रद्धाञ्जलि]


उनके फेमस गीत


'चौरा में गोंदा रसिया मोर बारी मा पाताल रे चौरा मा गोंदा’ 

 ‘चल संगी जुर मिल कमाबो रे..’

 ‘करमा सुने ला चले आबे गा करमा तहूं ला मिला लेबो’, 

‘मैना बोले सुवाना के साथ मैना बोले

......मोर गॉव ल काय होगे........ ----------------------------------------------

 .......मोर गॉव ल काय होगे........

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पीपर के पाना डोले त डर लागे |

कोयली कुहु-कुहु बोले त डर लागे |

रद्दा म रक्सा रहि रहिके दिखत हे |

जाँव कते कोती जघा-जघा बिपत हे |

जिंहा मयना मन भाय,

तिहाँ साँय साँय होगे ........|

हे बिधाता! 

मोर गॉंव ल काय होगे........|


न जाड़ म जुड़ हे,

न असाड़ म पानी |

सावन भादो घलो,

लकलकाय हे छानी |

चुल्हा ले गुंगवा गुंगवात नइहे |

पेट भर जेवन कभू खात नइ हौं |

का  काम बुता करौं,

सबो आँय बाँय होगे...............|

हे बिधाता !

मोर गॉंव ल काय होगे ............|


सोवा परगे हे,गॉंव के गॉंव म |

कोनो नइ जुरे हे,बर पीपर छॉंव म |

लइका मनके,

गिल्ली-भंवरा माते नइहे |

अटकन-मटकन खेले के ,

चँवरा बाचे नइहे |

न गॉंगर चुरे न ठेठरी,

बनेच दिन खीर खाय होगे.......|

हे बिधाता !

मोर गॉंव ल काय होगे............ |


टेस-टेस म अँइठत हें सबो |

टीभी मोबाइल तीर बइठत हें सबो |

न साल्हो हे न सुवा हे |

जघा-जघा मौंत के कुंवा हे |

पहिली जइसे कुछु नइहे,

राम राम हेलो हाय होगे.........|

हे बिधाता:

मोर गॉंव ल काय होगे..............|


             जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

            बाल्को ( कोरबा )

कुंडलियाँ छंद- बंगाला

 कुंडलियाँ छंद- बंगाला

आँखी अउ देखात हे, बंगाला बन बाज।

सपड़े हवैं दलाल या,आफत आहे आज।

आफत आहे आज, बाढ़ पानी हें भारी।

या फिर पइध दलाल, करयँ काला बाजारी।

बंगाला उड़ियाय, अचानक बाँधे पाँखी।

महँगाई ला देख, भींग जावत हे आँखी।


छोटे बड़े दलाल मिल,जमा करत हें माल।

महँगाई बाढ़ें अबड़, हाल होय बेहाल।।

हाल होय बेहाल, नचावै सब्जी भाजी।

तेल फूल फल दूध, हाथ नइ आये खाजी।

घर बन खेती खार, सबे बर चाही नोटे।

व्यय जादा कम आय,देख रोवैं जन छोटे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


तुम्हर कोती के रुपिया तोला चलत हे?

छत्तीसगढ़ के महान सपूत गीत संगीत के जादूगर स्व.खुमान साव जी ल,उंखर जनम जयंती के बेरा मा शत शत नमन---- जब तक छत्तीसगढ़ रही,खुमान साव जी के गीत संगीत सबर दिन राज करही--

 छत्तीसगढ़ के महान सपूत गीत संगीत के जादूगर स्व.खुमान साव जी ल,उंखर जनम जयंती के बेरा मा शत शत नमन---- जब तक छत्तीसगढ़ रही,खुमान साव जी के गीत संगीत सबर दिन राज करही--


धान कटोरा के दुबराज,करबे तैंहर सब जुग राज।

सुसकत हावय सरी समाज,सुरता तोर लमाके आज।1।


चंदैनी गोदा मुरझाय,संगी साथी मुड़ी ठठाय।

तोर बिना दुच्छा संगीत,लेवस तैं सबके मन जीत।2।


हारमोनियम धरके हाथ,तबला ढोलक बेंजो साथ।

बाँटस मया दया सत मीत,गावस बने सजा के गीत।3।


तोर दिये जम्मो संगीत,हमर राज के बनके रीत।

सुने बिना नइ जिया अघाय,हाय साव तैं कहाँ लुकाय।4।


झुलथस नजर नजर मा मोर,काल बिगाड़े का कुछु तोर।

तोर कभू नइ नाम मिटाय,जिया भीतरी रही लिखाय।5।


तोर पार ला पावै कोन,तैंहर पारस अउ तैं सोन।

मस्तुरिहा सँग जोड़ी तोर,देय धरा मा अमरित घोर।6।


तोर उपर हम सबला नाज,शासन ले हे बड़े समाज।

माटी गोंटी मुरुख सकेल,खेलत हें देखावा खेल।7।


छत्तीसगढ़ के तैं हर शान, सबझन कहे खुमान खुमान।

धन धन धरा ठेकवा धाम, गूँजय गीत सुबे अउ शाम।8।


सबके अन्तस् मा दे घाव,बसे सरग मा दुलरू साव।

सच्चा छत्तीसगढ़िया पूत,शारद मैया के तैं दूत।9।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटी, राजनांदगांव(छग)

तिहार देख ले-(गीत)

 तिहार देख ले-(गीत)

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आ हमर गांव के ,  तिहार देख ले।

सुग्घर लीपे-पोते,घर दुवार देख ले।


काय हरे हरेली,काय हरे तीजा-पोरा।

कोन-कोन तिहार बर,कइसन होथे जोरा।

झूमैं नाचैं सबो झन,मिंझरे पिंयार देख ले।

आ हमर गांव के ,  तिहार देख ले------।


राखी पुन्नी सवनाही,सोम्मारी कमरछठ।

राँध के बरा सोहारी,खाथैं सबो छक।

झुलना झूलै कन्हैया,मिंयार देख ले।

आ हमर गांव के ,  तिहार देख ले।


मुसवा संग मुस्काये,गली-गली गनपति।

जस गाये दाई दुर्गा के,मनाये सरसती।

राम जी के जीतई ,रावन के हार देख ले।

आ हमर गांव के ,  तिहार देख ले------


रामधुनी रामसत्ता,भागवत रमायेन।

दियना देवारी के,जगमग जलायेन।

परसा संग माते,खेत-खार देख ले।

आ हमर गांव के ,  तिहार देख ले।


पूजा-पाठ बर-बिहाव,मड़ई अक्ति छेरछेरा।

सुवा-करमा नाचा गम्मत म,बीते कतको बेरा।

बस नाँव के तिहार नही,असल सार देख ले।

आ हमर गांव के ,  तिहार देख ले--------


               जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

                  बाल्को(कोरबा)

तोरे विदाई देवा

 तोरे विदाई देवा


तोरे  बिदाई  देवा।

लागे बड़ जीव लेवा।

झन जा तैं छोड़ मोला,

करहूँ काखर सेवा---।।


घर दुवार सुन्ना लगही,

जाबे जब तैंहा।

करहूँ काखर संग,

गोठ बात मैंहा।।

कौने ल भोग लगाहूँ,

लड्डू खीर मेवा----।।


झरझर आँसू झरही,

सुरता म तोरे।

लइकामन रोही गाही,

आसन तीर लोरे।

रटन लगाही जिवरा,

बनके परेवा-------।


आरती सजावौं रोज,

गुण ला तोर गावौं।

तोर चरण म बइठे,

मूड़ी नवावौं।

रहिरहि नैन म झुलही,

हार फूल जनेवा----।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)छग

पितर पाख-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 पितर पाख-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


भगवान गणेश भादो शुक्ल पक्ष के चतुर्थी ले चतुर्दशी तक ग्यारह दिन ले विराजमान रहिथे, लइका लोग संग सियान मन घलो खूब सेवा जतन करथे। गली गली खोर खोर सइमा सइमो करथे। भगवान गणेश के विसर्जन के बाद,कुँवार लगते ही पितर पाख हबर जथे।घरों घर बनत बरा सोंहरी अउ हूम धूप के खुशबू ले चारो मुड़ा महर महर ममहाय बर लग जथे। पितर पाख म मनखे मन अपन गुजरे पुरखा मनके मान गउन म दान दक्षिणा  अउ भजन कीर्तन करथे।संगे संग दीन हीन, ब्राम्हण अउ पास परोसी, ल भोजन घलो कराथे। पाख भर घरों घर म बरा सोंहारी चुरथे। कोनो अपन पुरखा ल एकक्म, त कोनो दूज तीज, त कोनो साते आठे के मानथे। पितर पाख के पन्द्रह दिन भर कखरो न कखरो घर माई पितर रहिबेच करथे। पितर पाख म गुजरे पुरखा आथे कहिके ये बेरा सिर्फ इंखरे पूजा पाठ होथे, भगवान मनके पूजा पाठ घलो बन्द रहिथे। हमर छत्तीसगढ़ म पितर लगभग सबे कोई मनाथे। चाहे वो अपन ददा दाई या पुरखा के सेवा जतन करे रहय या झन करे रहय, फेर पितर पाख म पुरखा मनके सुरता जरूर करथे। वास्तव म तो मनखे मन ल जीते जियत अपन ददा दाई के बढ़िया सेवा जतन करना चाही। कई झन करथे घलो, फेर कतको मन नइ घलो करे। कथे जेन मन अपन ददा दाई के सेवा जतन बढ़िया करे रहिथे, उन मन ल उँखर पितर मन आके बढ़िया आशीष देथे। अउ जेन मन नइ मानिस वो मन कतको पितर मान ले नइ पुन लगे। पितर पाख म पुरखा मनके सुरता के संगे संग उँखर गुण ज्ञान ल  अपनाय के घलो उदिम करे जाथे, उँखर अधूरा सपना ल पूरा करे के प्रयास घलो लइका मन करथे। पितर पाख म दान दक्षिणा के जबर महत्ता हे, कथे ये समय अपन पुरखा जे सुरता म दिए दान दक्षिणा अबड़ फलते फुलथे, अउ घर म गुण गियान अउ धन  रतन के बढ़वार होथे। पितर पाख म मनखे मन संग कौवा मन ल घलो रंग रंग के खाये बर मिलथे। कतको सियान मन तो कथे के पुरखा मन कौआ बनके छानी म आके काँव काँव करथे, तेखरे सेती तो छानी म खीर पूड़ी अउ उरिद दार ल घलो फेके जाथे। आजकल के मनखे मन  मन पितर वितर मनई ल कोसथे घलो, कि ददा दाई के सेवा जियत म होय,मरे म भूत प्रेत बर का मया? बात तो सही हे, तभो ले लगभग सबे मनात हे, महापुरुष मन ल तो घलो सुरता करके उँखर ज्ञान गुण ले सीख लेथन, का पितर मनई वइसने नइ हो सके, हो सकथे, फेर सोच सोच के फरक आय, जेन चलागन चलत हे, वो कोनो गलत नोहे, पर देख देखावा जादा बने घलो नही। पितर मनाये ले पुरखा मन के प्रति मया बने रइथे। मन म भाव भक्ति , अउ दान दक्षिणा के भाव घलो उमड़थे।पितर के बहाना पास पड़ोसी अउ गाँव भर मिलके खाना पीना घलो करथे, जेखर ले दया मया घलो बढ़थे। त पितर मनाय म कोनो हर्ज नइहे।तिहार बार मेल मिलाप अउ मया दया के परिचायक होथे, तेखर सेती सब मनखे एक साथ मिलके मनाथे घलो। वइसने पितर पाख घलो ये, जेन आदर सत्कार, अउ पाप पुण्य के सीख घलो देथे। अपन पुरखा ल दुख देके पितर मनाये म कुछु नइ मिले, पितर मनके आशीष पाय बर जीते जियत घलो उँखर सेवा होना जरूरी हे। खैर पितर पाख चलत हे घरों घर बरा , खीर,भजिया घलो चुरत हे। मनखे मन अपन पुरखा बर दतोन मुखारी लोटा म पानी अउ खीर पूड़ी घलो रखे हे। पितर मन आय हे की नही उही मन जाने , फेर मनखे मन बरोबर खीर पूड़ी झोरत हे, कौवा कुकुर घलो काँव काँव हांव हांव करत घूम घूम के खावत हे।  कौआ ले,एक ठन कहूँ मेर पढ़े बात सुरता आवत हे, कइथे कि कौआ मन भादो म प्रजनन करथे। ओमन ल वो समय जादा अउ पोष्टिक भोजन के जरूरत पड़थे। अउ पितर पाख भर छानी परवा म उरिद के दार के संगे संग खीर पूड़ी ओमन ल सहज म मिल जथे।  अउ दिखथे घलो, ये समय माई अउ पिला कौवा मन छानी म बड़ काँव काँव करत। उँखर पिला मनके बढ़वार ये बेरा पितर पाख के रोटी पीठा ले हो जथे। कौआ मनके के संख्या बढ़े ले, बर पीपर के बढ़वार ल घलो जोड़े जाथे। कहिथे कि बर अउ पीपर अइसन शापित पेड़ हरे जेन सिरिफ कौआ मनके मल म रहे बीज द्वारा जगथे। तभे तो उटपुटाँग जघा म नान्हे नान्हे बर पीपर जगे दिख जथे। जेला हमन जतन करके बढ़िया जघा लगाथन घलो, अउ सबला अइसन जघा म जगे बर पीपर ल बने जघा म उगाना चाही अउ ओखर जतन करना चाही। बर पीपर के पेड़ हमर बर कतका उपयोगी हे येला सबे जानथन। यदि अइसन बात हे, त कौआ मनके संरक्षक अउ बढ़वार जरूरी हे, काबर सिरिफ  पितर पाख के रोटी पीठा के भरोसा रहय। फेर पहली के सियान मन ये पाख म  अपन पुरखा मनके सुरता म,कौआ मन ल खीर पूड़ी खावत आवत हे, कोन जन अभिन के मन कतका दिन खवाही? यदि बर अउ पीपर के पौधा सच म उँखर मल द्वारा उत्सर्जित बीज म ही पनपथे, तब तो कौआ ल पुरखा माने म कोनो बुराई घलो नइहे। आज पुरखा मनके लगाये बर पीपर सहज दिखथे, नवा पीढ़ी ल घलो सिर्फ बर पीपर ही नही सबे पेड़ के बढ़वार अउ संरक्षण बर उदिम करना चाही। पितर ले मया बाढ़थे, पितर ले पुरखा मन के मान गउन होथे, पितर ले भुखाय ल घलो भोजन मिलथे, पितर म कौआ कुकुर अघाथे, त पितर मनाये म का बुराई हे। हॉं फेर उही बात कहूँ जीते जियत पुरखा मन के सेवा सत्कार जरूरी हे। तभे उँखर मरे के बाद हमर पितर मनई ह सफल होही। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

अब बता-गजल

 अब बता-गजल


बिन काम के पद नाम होगे अब बता।

पैसा पहुँच मा काम होगे अब बता।।1


दू टेम के रोटी कहाँ होइस नशीब।

गारत पछीना शाम होगे अब बता।2


केंवट के शबरी के पुछइया कोन हे।

रावण के थेभा राम होगे अब बता।3


कहिथें चिन्हाथे खून के रिस्ता नता।

बिरवा ले बड़का खाम होगे अब बता।4


नइ मोल मिल पावत हे असली सोन के।

लोहा सहज नीलाम होगे अब बता।5


फल फूल तारिक चीज बस अउ आदमी।

का खास सब तो आम होगे अब बता।6


धन जोर के करबोंन का रटते हवन।

कोठी फुटिस गोदाम होगे अब बता।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 हिंदी दिवस


घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

             1

कहिनी कविता बसे,कृष्ण राम सीता बसे,

हिंदी भाषा जिया के जी,सबले निकट हे।

साकेत के सर्ग म जी,छंद गीत तर्ज म जी,

महाकाव्य खण्डकाय,हिंदी मा बिकट हे।

प्रेम पंत अउ निराला,रश्मिरथी मधुशाला,

उपन्यास एकांकी के,कथा अविकट हे।

साहित्य समृद्ध हवै,भाषा खूब सिद्ध हवै,

भारत भ्रमण बर,हिंदी हा टिकट हे।1।।।

               2

नस नस मा घुरे हे, दया मया हा बुड़े हे,

आन बान शान हरे,भाषा मोर देस के।

माटी के महक धरे,झर झर झर झरे,

सबे के जिया मा बसे,भेद नहीं भेस के।

भारतेंदु के ये भाषा,सबके बने हे आशा,

चमके सूरज कस,दुख पीरा लेस के।

सबो चीज मा आगर,गागर म ये सागर,

भारत के भाग हरे,हिंदी घोड़ा रेस के।2।

                3

सबे कोती चले हिंदी,घरो घर पले हिंदी।

गीत अउ कहानी हरे, थेभा ये जुबान के।।

समुंद के पानी सहीं, बहे गंगा रानी सहीं।

पर्वत पठार सहीं, ठाढ़े सीना तान के।।

ज्ञान ध्यान मान भरे,दुख दुखिया के हरे।

निकले आशीष बन,मुख ले सियान के।।

नेकी धर्मी गुणी धीर,भक्त देव सुर वीर।

बहे मुख ले सबे के,हिंदी हिन्दुस्तान के।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)छत्तीसगढ़


हिंदी दिवस की आप सबको सादर बधाई

कानून के आँखी म पट्टी-,जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 कानून के आँखी म पट्टी-,जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


                     जान ले बढ़के का हे? तभो मनखे जान ल जोखिम म लेके जियत हे। रोज के हाय हटर, अउ चारो मुड़ा  मुँह उलाय खड़े काल कतको ल रोज लील देवत हे। तभो मनखे कहाँ चेतत हे। आज मनखे मनके मौत घलो कुकुर बिलई कस सहज होगे हे, तभे तो मनखे मन आज  माड़े अर्थी ल घलो देख के रेंग देवत हे। अर्थी कर सिरिफ घर वाले, सगा सम्बन्धी अउ एकात झन भावुक मनखे भर दिखथे। नही ते एक जमाना रहय, कहूँ एक भी मौत होय त देखो देखो हो जाय, मनखे दुख म डूब जाय। फेर आज आन बर काखर तीर टाइम हे। धन दौलत संग मरनी हरनी सबे चीज म तोर मोर होगे हे। मरे के हजार अलहन हे, फेर जिये के दू चार आसरा, तभो मनखे मन दया, मया, सत, सुमत जइसन जरूरी चीज ल बरो के  मुर्दा बरोबर जीयत हे। बड़खा बड़खा सड़क ल देख के यमदूत मन घलो संसो म हे, कि ये मनखे मन बिन बेरा मरे के साधन बना डरे हे। हाय रे अँखमुंदा भागत गाड़ी, हाय रे नेवरिया चलइया, हाय रे जल्दीबाजी अउ हाय रे दरुहा मँदहा तुम्हर मारे बने सम्भल के चलत मनखे मन घलो निपट जावत हे। 


          चार दिनिया जिनगी पाके घलो मनखे मन अति करत हे, कोन जन अजर अमर रितिस त का करतिस ते। रोज अपराध बाढ़त हे। इही ल रोके बर आज रोज नवा नवा कानून कायदा बनत हे, तभो अपराध रुके के नांव नइ लेवत हे। कानून म कई प्रकार के सजा हे, फेर मनखे मन डरथे कहाँ। हाँ,, डरत उही हे जेन बपुरा मन गरीब अउ अनपढ़ हे, पुलिस ल देख घलो उँखर पोटा काँप जथे। फेर पढ़े लिखे अउ पइसा वाले म डर नाँव के चीज नइहे, अउ रहना भी नइ चाही, पर अपराध करके कानून ले मुँहजोरी बने थोरे हे। पर जमाना अइसने हे, पद पइसा के आघू कानून कायदा घलो लाचार हे। धरम करम के डर ल तो छोड़िच दे।


                जंगल तीर के एक ठन गाँव म विकास के गाड़ी पहुँच गे, लोगन मन पढ़ लिख के हुसियार होगे, स्कूल कालेज कोर्ट कछेरी सब बन गे, अब जंगल अउ गाँव कहना सार्थक घलो नइ रही गे। कागत म कानून कायदा लिखाय हे, तभो ले जीयत मनखे मन, गलती ऊपर गलती करत हे, फेर एक झन *मरे मनखे* के फांदा होगे, काबर कि उही गाँव के एक झन पढ़े लिखे आदमी ह, कोर्ट म केस करदिस, कि फलाना ह,अपन जमाना म कानून कायदा के गजब धज्जी उड़ाय हे, बन बिरवा ला अँखमुंदा काटे हे, जंगल के कतको जीव जिनावर मन ल घलो मारे हे।  कानून म ये सब करना अपराध हे तेखर सेती वोला उम्र कैद के सजा होगे। फेर वोहा कानून ले लड़े बर जिंदा नइ रिहिस, दू चार पेसी देखे के बाद जज वकील मन सजा सुना दिन। आदेश जारी होइस वोला पकड़ के जेल म डारे जाय, खोजबीन म पता चलिस कि वो तो परलोक वासी होगे हे, अब गाज गिरिस ओखर परिवार वाले मन ऊपर। बड़े बेटा आन जात म बिहाव कर डरे रहय त, वो समाज से बहिष्कृत रिहिस, ददा ले कोनो नता नही। पुलिस वोला कुछु करिस घलो नही , फेर  छोटे बेटा घर ओखर ददा के फोटू  टँगाय रहय, उही ल पुलिस मन धरिस अउ कोर्ट लेग गे। उहू अकचका गे रहय, का होवत हे कहिके, आखिर म सब चीज जाने के बाद कहिस- कि, ददा के जमाना म शिकार के चलन रिहिस, जंगल म रहय अउ पेड़ पात के सहारा जिये, अब वो जऊन करिस जीयत म सजा पातिस मरे म काबर? अउ येमा मोर का गलती हे? जवाब आइस कि तोर गलती ये हे कि तैं ओखर टूरा अस। कार्यवाही आघू बढ़िस, छोटे बेटा अपन पक्ष रखे बर वकील करिस, लाखो रुपिया खर्चा करिस, पइसा भरात गिस तारिक बढ़त गिस एक दिन ओखरो देहांत होगे। अब बारी आइस ओखर लइका मन के। ओखरो दू लइका रहय, एक झन कही दिस, मैं ददा बबा नइ माँनव, त दूसर जे ददा बबा के मया म बँधाय रहय ते केस लड़े बर तैयार होइस। आखिर म कम पइसा खर्चा अउ कमती धियान देय के कारण वो केस हारगे। अब उमर कैद के सजा अर्थ दंड म बदल गे, वो मरे आदमी ल 10,000 के जुर्माना होइस, अउ फाइल ल बन्द करे बर ओतका पइसा के माँग करिस। ओखर नाती  इती उती करके पइसा पटाइस, तब जाके वो फाइल बंद होइस। कहूँ नइ पइसा फेकतिस त बपुरा ल घलो हथकड़ी लग सकत रिहिस, कानून ए भई, अभियुक्त तो चाहिच। देख आज कोनो राजा महाराजा मनके पोथी ल झन खोले, नही ते जे अपन आप ल,फलाना वीर के वंसज काहत हे,तहू कन्नी काट लिही, काबर कि वो जमाना म लड़ई झगड़ा, इकार शिकार चलते रिहिस।


              अउ कखरो फाइल खुले झन, नही ते आज के जमाना म वो मरे मनखे के कोई नइ मिलही, त ओखर आत्मा ल केस लड़े बर पड़ जाही। मरे आदमी के केस म कई साहेब सिपइहा पइसा पीट मोटा गे। जउन बबा ददा के मया म बँधाय रिहिस, तउन फोकटे फोकट पेरा गे। तभे तो कानून के डर म आज मनखे मन कोनो घटना ल, देख सृन के घलो आँखी कान ल मूंद देवत हे। इहाँ जीयत मनखे मन अत्याचार के ऊपर अत्याचार करत हे, अउ जे कुछ बोल नइ सके(मरे आदमी कस), जे कोट कछेरी ले डरथे, तेला सोज्झे फोकटे फोकट सजा मिल जावत हे। चाल बाज, पद पइसा, अउ पहुँच के जमाना हे। गलत ह सही अउ सही ह गलत, ये कोर्ट के मैदान म साबित हो जावत हे। *नियाव के उप्पर वाले देवता शुन्न हे,त नीचे वाले देवता मन टुन्न,* पद,पइसा, मंद मउहा के भारी नशा हे। अतिक अकन कानून कायदा अउ दंड विधान होय के बाद घलो अपराध के नइ थमना, अउ सिधवा मनखे ल सजा हो जाना कानून के मुँह म तमाचा पड़े जइसे हे। कोनो सरकारी पद पाये बर अदालती कार्यवाही नइ होना चाही, फेर सरकार चलाये बर जे नेता के पद होथे, तेमा सब चलथे, वाह रे कानून। कतको बड़े करम कांड होय पइसा के दम म सही हो जावत हे, बड़े बड़े अत्याचारी मन साबुत बरी हो जावत हे। का कानून के आँखी म पट्टी एखरे सेती बंधाय हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कुंडलियाँ

 कुंडलियाँ


चिरई बइठे हाथ मा,कइसे चूमय गाल।

मनखे मनहा आज तो,बनगे हावै काल।

बनगे हावै काल, हवा पानी ला चुँहके।

मरे पखेड़ू भूख,छिंनय चारा ला मुँह के।

जंगल झाड़ी काट, करत हे मनके तिरई।

काखर कर बतियाय,अपन पीरा ला चिरई।


खैरझिटिया

हरिगीतिका छंद-ओजोन

 हरिगीतिका छंद-ओजोन


होथे परत ओजोन के समताप मण्डल के तरी।

रक्षा कवच बन छाय रहिथे रोज करथे चाकरी।।

घातक किरण निकले सुरुज ले हम सबे के काल बन।

छाये रहे ओजोन जब तब वो किरण नइ आय छन।।


सब झन जियत हन जिंदगी बनके विलासी रात दिन।

टीवी फिरिज बउरत हवन हाँसत हवन बन बाग बिन।।

ओ जोन हा ओजोन के जाने नही कुछु फायदा।

ते आँख मूंदें तोड़थे पर्यावरण के कायदा।।


एसी फिरिज के गैस मा ओजोन हा छेदात हे।

कतको बिमारी तेखरे सेती हमन ला खात हे।।  

कैंसर त्वचा के संग मा आँखी के छीने रोशनी।

बड़ हानिकारक हे किरण छन आय झन एको कनी।।


युग आधुनिक नभ मा उड़े पर नित जुड़े संकट नवा।

मिल खोजना पड़ही हमी ला खुद गढ़े दुख के दवा।

पर्यावरण के नाश होवै आस खोवय जिंदगी।

ठाढ़े हवै वो मोड़ मा हाँसै कि रोवै जिंदगी।।


नइ हन अमर कारज हमर नुकसान एखर झन करे।

का जानवर बन का मनुष रक्षा कवच सबके हरे।

सुध लेव मिलजुल के सबे बड़ कीमती ओजोन हे।

इहि हा बचाथे जिंदगी फीका रतन धन सोन हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


विश्व ओजोन-परत संरक्षण दिवस के सादर बधाई

Sunday 4 September 2022

भादो मनभावन*


 
























*भादो मनभावन*


                आसाढ़ सावन भर पानी पी पी के भुइँयाँ भादों मा अघाय कस लगथे, तभे तो तरिया डबरा मा पानी माढ़े अउ लहरा मारत दिखथे। मनमाड़े चलत धारी भादो के आरो पाके धीर धर लेथे। बँधिया,तरिया,ढ़ोंड़गा जे सावन भर दानी कस पानी फेकत रिहिस, वो बनिया बरोबर अब नाप नाप के जादच उपरहा भर ल झलकात दिखथे।सरलग चलत धूका- गर्रा, झड़ी-झक्कर, बिजुरी के चमकई अउ बादर के गरजई घलो कमती होय बर लग जथे। थोर बहुत डबरा खँचका के पानी ल अँटत देख करिया बादर बीच बीच मा हुरहा धुरहा आथे अउ पानी समो के भाग जथे। सुरुज नारायण जे आसाढ़ सावन भर लुकाय लुकाय फिरत रिहिस,भादो के आरो पाके आसमान मा घूमत फिरत आँखी देखाय बर धर लेथे। थमे पानी ल देख,चिरई चिरगुन मन भादो के आरो पाके उझरे झाला खोंदरा ल नवा सिरजाये के उदिम करत दिखथें।धान-पान, काँदी-कूसा सजोर होके पुरवइया मा नाचत गावत, झुमरत दिखथे। झड़ी बादर ले तंग चिरई चिरगुन, छेरी-बोकरा, गाय गरुवा झूम झूम  के घूम घूम  चारा चरत दिखथें। घर कुरिया बारिस मा पस्त दिखथें ता खेत खार, तरिया नदियाँ मतंग अउ मस्त। भादो के लगत घर कोठ मा रचे काई केरवस ल दाई महतारी मन उजराये बर लग जथें।


*तिहार बार*- 

हमर छत्तीसगढ़ राज का, हमर देश घलो कृषि प्रधान हे, जिहाँ के रहन सहन अउ तीज तिहार, खेती किसानी के हिसाब  ले चलथे। सावन अउ भादो तीज तिहार के महीना होथे। ये महीना मा अतेक जादा तीज तिहार होथे कि सबके बरनन कर पाना सम्भव घलो नइहे। अतेक तीज तिहार मनाये के तको कारण हे। ज्यादातर मनखे मन पहली खेती किसानी करैं, अउ बरसा घरी भरे पानी मा निंदई कोड़ई करत सरलग खेतेच मा  लगे रहैं। जेखर ले हाथ अउ गोड़ दूनो सेठरा जाय,अउ सरलग भींगई तको होय। मनखे मन काम बूता मा अतिक रमे रहैं, कि यदि कोई तिहार बार नइ होतिस ता हाथ गोड़ के घलो खियाल नइ रखतिस, काम के संग आराम घलो चाही, ते पाय के ये घरी अतिक तिहार मनाये के चलन हे। जे मनखे मन के तन के संगे संग मन ला घलो भला चंगा करथे। आजो ये चलागन चलते हे। भादो महीना मा बेटी माई मन निंदई कोड़ई करके तीजा के बहाना मइके जाथे, काबर कि काम कमई के मारे बनेच दिन ले घर ले नइ निकले रहैं। कमरछठ,तीजा-पोरा, नारबोध,कड़ाबन्द, इतवारी, सोमवारी, जन्माष्टमी, रामसताव, गणेश चतुर्थी कस बनेच अकन तिहार भादो महीना म मनाये जाथे। ये सब तिहार बार मनखे  मनखे बीच दया मया,उछाह उमंग के बरसा करे के संगे संग खेती किसानी, संस्कार-संस्कृति, पार अउ परम्परा ले मानुष ल जोड़े रखथें।


*तीजा तिहार*- 

भादो महीना के बड़का तिहार आय तीजा।  ये महतारी बहिनी मन के तिहार आय, जेला वो मन मइके मा रहिके मनाथे। ये दिन के रद्दा सबें बहिनी मन जोहत रथे, कि ददा नहीं ते भैया आही अउ तीजा ले जाही। जे बेटी ददा दाई के अंगना मा ननपन ले खेलिस खइस, फेर बिहाव के बाद वो अंगना के दुरिहागिस, अइसन मा वो पावन ठिहा मा फेर जब महतारी बहिनी मन पाँव रखथे ता सरग के सुख घलो, उन मन ला कमती लगथे। दाई, ददा, बहिनी, भाई के मया के धार अउ ननपन के जम्मो सुरता मा अन्तस् तक भींग जथे। तीजा के नेंग जोग ल तो सबें जानत हव,उपास कइसे रथे? का खाथें? कोन ल मनाथे? मोला लिखे के जरूरत नइहे। मइके के लुगरा तीजहारिन मन बर अनमोल होथे। तीजा मा संगी संगवारी संग जम्मों बहिनी ले मइके मा ये दरी भेंट होथे। ये पावन बेरा मा महतारी, बहिनी मन मइके जाके अपन जम्मों थकान अउ संसो ल बिसार देथें। मइके के माहौल उन ला एक बेर अउ ननपन के सुरता अउ  जुन्ना मस्ती मा डुबो देथे। तीजा संस्कृति संस्कार, मया दया अउ सुख शांति के बरसा करथे।  जमाना ले चलत आवत तीजा ला बहिनी महतारी मन बड़ उछाह अउ उमंग ले मनाथें। अउ जड़-चेतन, घर बार, खेत खार, पार परिवार  सबके सुख शांति के कामना करथें।


*खेत खार अउ फूल फुलवारी के सुघराई*-

खेत मा भराय पानी अउ ओमा तँउरत मछरी, मेचका, केकरा संग, सजोर  होके नाचत गावत धान ल देख मारे खुसी के, किसान खेतेच मा नाच अउ गा देथे। निंदइया मनके कर्मा ददरिया अउ सनन सनन चलत पुरवाही मन ल मता देथे। पड़की, पपीहा अउ तीतुर के मीठ बोली खेत खार मा रहिरहि राग रंग घोरत रहिथे। मेड पार मा फुले- फरे मुंगेसा,कोलिहापुरी, फोटका,फूट अउ काँसी काँद- दूबी मन ल मोह लेथे। काँसी के पोनी कस पड़ड़ी फूल देख जिया मा उमंग हमा जथे। तुलसीदास जी महाराज काँसी के फूल ल देखत लिखे हे- 

*फुले काँस सकल महि छाई।जनु बरसा कृत प्रकट बुढ़ाई।*

माने धरती मा काँसी ल फुले देख अइसे लगत हे, मानो बरसा ऋतु हा अपन बुढ़ापा प्रकट करत हे।  मेड़ पार के बम्हरी मा सोनहा फूल लद जथे।  बम्हरी के सोनहा फूल देख अधर म सहज ही माटी पूत लक्ष्मण मस्तुरिहा जी के ये गीत आ जथे- *हरियर हरियर बम्हरी म सोन के खिनवा।*

संग मा फागुन चैत मा फुलइया सरई ला सइगोंन बिजरावत दिखथे, ता मधुमास मा मउरइया आमा ल रियाँ अउ फागुन मा नचइया परसा अउ अमलतास ला पिंयर गुलमोहर। मोर कहना गलत होही ता भादो मा सइगोंन, रियाँ अउ पिंयर गुलमोहर ल देख के खुदे आंकलन कर सकथव, न गुलमोहर, अमलतास अउ परसा ले कमती दिखथे, न रियाँ आमा ले अउ न सइगोन साल ले। जइसे परसा अउ अमलतास माघ फागुन मा सड़क गांव गली खेत खार मा आगी बरोबर बरत दिखथें, ठीक वइसने भादो मा पिंवरी गुलमोहर शहर, गांव, गली, रद्दा बाट मा पिवरा पिवरा फूल मा लदाय लहसत, नाचत गावत दिखथे। मधुमास मा मउरे आमा कस रियाँ, भादो मा सजे सँवरे रथे। सइगोंन के बड़े  बड़े पाना घलो  फूल मा लुकाय दिखथें, कहे के मतलब सइगोंन अतका फुले रहिथे कि ओखर जबर पाना ह घलो नइ दिखे, सिर्फ फुले फूल नजर आथें। मन ला ललचावत   कदम्ब के फूल ला देखत दाई के लोरी "झूलना के झूल कदम्ब जे फूल"  अउ "यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे" ये कविता अन्तस् मा उमड़े बर लग जथे। भादों घरी पिंयर गुलमोहर कस हिंगलाज घलो गली, खोर, डहर, बाट मा माते रहिथे, दूनो के फूल घलो लगभग एके दिखथें, अंतर रथे ता सिर्फ ऊंचाई के। एक ऊँच पेड़ आय अउ एक छोट झाड़ीनुमा पौधा। नदिया नरवा तरिया अउ मेड़ पार म उगे बेसरम अउ धतुरा के पौधा घलो भादो मा हल्का गुलाबी रंग मा मनमोहत मुस्कावत दिखथें। एके गुच्छा मा कतको रंग ल समेटे मोकैया के फूल जघा जघा मुचमुचावत, भौरा तितली संग मनखे मनके जिया ल ललचावत दिखथे।

                 फुले कउहा,कसही,बोइर,जाम अउ छोट फर धर झूलत अमली भादो मा मनभावन लगथे। पड़री पड़री तिली के फूल, पिवरी पिवरी फूल धरे बम्हरी, मूँगेसा, फूट, सोयाबीन, कोलिहापुरी अउ बोदेला खेतखार मा भादो मास भर मगन रहिथे। कीमती झुमका कस शिव बम्भूर के मनभावन फूल घलो दिखे बर लग जथे। भादो मा पानी मा बूड़े धान, फूल झराके पोटराये बर लगथे। खेत के मेड़ मा सोयाबीन,तिली संग जागे पटवा के फूल जउन देखे होही ते भागमानी आय, देखे मा ही ओखर फूल के सुघराई समझ आही, लिख के कहना मुश्किल हे। कनिहा भर बाढ़े काँदी बन कचरा अउ लाम लाम लामे बेल बूटा देखत मन मा उमंग हमा जथे।


*घर अउ बारी-बखरी*

आसाढ़  मा बोय साग भाजी भादो मा फूल फर धरके नार बियार मा झूलत रथे। रमकलिया के छोट पौधा मा पिवरी सफेद अउ लाली रंग के मेल ले बने मनभावन फूल अइसे लगथे मानो कोनो पेंटर ह कागज मा उकेरे हे। मनमाड़े घपटे तोरई,करेला,कुंदरू,कोमढ़ा,पोपट,खेकसी घलो फूल फर के इतरावत रथे। भादो मा थोर थोर साग भाजी बारी बखरी ले निकले बर लग जथे, चारो कोती लामे नार बियार, अउ बाढ़े भाजी पाला ल देख मन झूमर जथे। काँद काँदी म घलो फूल आ जाय रहिथे। घर अउ बारी बखरी मा फुले बैजंत्री,चिरइयाँ के किसम किसम के रंग जिया ल खींच लेथे। नीला नीला फुले सूँतई के फूल(अपराजिता) नार बियार सुद्धा देवारी घरी लटके कोनो झालर बरोबर मनभावन लगथे। घर के दुवारी मा घउदे दसमत, कागज फूल(फाटक फूल), माते सादा सोहागी, मनमाड़े घउदे गोंदा अउ मोंगरा बरसा के पानी ले लड़ भिड़ के भादो मा खुलखुल खुलखुल हाँसत दिखथें,मानो जीत जे खुशी मनावत हें।


*कुवाँ,तरिया,नरवा*

आसाढ़ सावन भर पानी पी पी के भादो मा तरिया कुवाँ नरवा कोटकोट ले अघाये दिखथें। पार, पचरी, तट,तीर सब धोवा मँजा के उज्जर दिखथें। पानी पाके मछरी,मेचका मनमाड़े मगन होके तँउरत दिखथे। रंग रंग के कमल कोकमा तरिया ढ़ोंड़गा के सुघराई ला बढ़ावत दिखथें। बरसा के पानी घरी मतलाये कुवाँ,तरिया, नरवा के पानी भादो के आरो पाके फरिहर होय बर लग जथे, पानी भीतर  तँउरत मछरी केकरा घलो चकचक ले दिखेल  धर लेथे। उबुक चुबुक करत घाट घठोंधा राहत के साँस लेवत, मनखे मन ला अपन ऊपर चढ़े नाहत-खोरत देख मगन रहिथे। तरिया नरवा भराय पानी ला पइसा बरोबर हिसाब किताब लगा के जतके जरूरी हे ततके बोहावत दिखथे। कहे के मतलब जादा होथे तभे उलट भागथे, नही ते टिपटिप ले भरे रहिथे। 


                तिहार बार के मजा उड़ावत झूमत नाचत गावत, रंग रंग के रोटी पीठा खावत, काबा काबा काँदी डोहारत, खेत खार के मुही पानी बाँधत फोड़त, धान पान ल निंदत चालत, नजर भर निहारत, किसम किसम के भाजी पाला खावत, पेड़-पात, फूल-फर के सुघराई देखत देखत भादो कब बुलक जथे पतच नइ चले। अन्तर मन ले देखे,सोचे,गुने, सुने अउ नजर भर निहारे जाय ता,हमर हिंदी पंचाग के छठवा महीना भादो बड़ मनभावन हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)