Tuesday 11 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*

मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन

1212 212 122 1212 212 122

बने बनाये बुता बिगड़थे, घुचुर पुचुर अउ करे मा जादा।
कते उपर तैं उँचाबे उँगली, भराय बैरी घरे मा जादा।।

चिढ़ाय मा चिढ़ जथे बने मन, फटर फिटिर करथे बड़ तने मन।
अपन करा झन बला बला ला, नमक चुपर झन जरे मा जादा।

बने बने बर बुता बने कर, जिया लुभा सबके फूल अउ फर।
अँड़े भले रह गियान गुण बिन, नँवेल पड़थे फरे मा जादा।।

अकास थुकबे तिहीं छभड़बे, खने कुआँ मा खुदे हबरबे।
भभक भभक खुद के जिवरा जरथे, दुवेष पाले बरे मा जादा।

कभू बना पथरा कस जिया ला, कभू पिघल जा रे मोम बनके।
कभू बने काँच धीर खो झन, डराय जिवरा डरे मा जादा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Monday 10 August 2020

गोबर दे बछरू गोबर दे* - कहानी(खैरझिटिया)

*गोबर दे बछरू गोबर दे* - कहानी(खैरझिटिया)

गोबर दे बछरू गोबर दे-----,नानपन ले खेल खेल म ये गीत ला गावत झामिन अउ कामिन, दुनो जुड़वा दुखिया बहिनी मनके उम्मर कब अधियागे, पता घलो नइ चलिस। दुनो बहिनी ल बियावत बेरा दाई गुजर गे, त गोसाइसन के बिछोह म कुछ दिन बाद ददा। कामिन अउ झामिन ल ओखर दरुवहा कका स्वार्थी बरोबर उँखर धन के राहत ले पालिस, ताहन अपन ठिहा ले सातेच बछर के छोटे उमर म वो बपरी मन ल धकिया दिस। दुनो दुखिया बहिनी के दुख ल देख  गाँव म पंचायत बैठिस, पंच,पटइल मन फैसला करिस  कि, गाँव के दैहान मेर एकठन घर दिये जाय, अउ जीवन यापन बर गौठान के गोबर ल  बिने के काम दुनो बहिनी मन जब तक चाहे कर सकत हे। पंचायत के ओ दिन के फैसला अनुसार दुनो बहिनी मन, बरदी के गोबर ल बिने अउ उही मेर के बड़का घुरवा म सरोय बर फेक देवय, कुछ के छेना घलो थोपे, त कुछ ल कोई तुरते छर्रा, छीटा अउ लीपे बर ले लेवय। गाँव बने बड़े जान रिहिस, जिहाँ के खइरखा म  कई हजार गाय,भैस सकलाय। गोबर खातू अउ छेना ल बेंच दुनो बिहिनी ले देके अपन जिनगी के गाड़ा ल खींचय। *कहिथे न कि पथरा ल धूप,छाँव अउ हवा पानी नइ जानवव, कहे के मतलब पथना ल कतको मार पड़े फेर आँसू नइ बोहय, वइसने दुनो बहिनी मन पहाड़ कस दुख ल करम के लेखा समझ के झेलिस*, अउ कभू हार नइ मानिस।

        रिमझिम रिमझिम पानी झरत सावन महीना म पेड़,पात ,नदी, नाला अउ भुइयाँ सँग जम्मो जीव जंतु प्रकृति के दया मया पाके, हरिया जथे। मयूर गा गाके नाचथे, किसान मन कर्मा ददरिया गाथे, दादुर अउ झिंगुरा मन राग धरके, रात रात भर गाथे। *फेर दुनो बहिनी  उदास रहय काबर कि बरदी के गोबर, पानी बादर म  एकमई हो जाय। तभो दुनो अतिक महिनत करे कि, जादा से जादा गोबर हाथ आ जाय।* एक दिन शहर जावत बेरा, दुनो बहिनी ल गाँव के मितानिन गोबर बिनत देख रूक गे, अउ टकटकी लगा के ओमन ल देखेल लगिस। भरे सावन महीना म घलो पछीना म तर बतर, कामिन डहर ल देखत झामिन कहिथे, देख तो बहिनी, ये दुखाही , हमला चील कस घूरत हे, कही हमर पेट म लात मारे के बिचार तो नइ बनात हे? झामिन के हाँ में हाँ मिलावत, कामिन कहिथे, हो सकथे बहिनी, आजकल सरकारी मनखे मनके भारी पावर रथे, गाँव,पंच,पटइल अउ अइटका बइठका ल घलो नइ माने। त का हमर हाथ ले, ये दुखाही ह गौठान ल नँगा लिही का, झामिन मितानिन ल तीर म आवत देख फड़फड़ात कहत हे। मितानिन तीर म आके कहिस, कि का तुमन ल सरकार के योजना के खबर हे? तुरते कामिन कथे, का ख़बर बहिनी, का राशनकार्ड ले नाम कटइय्या हे, या फेर हमर रोजी रोटी जवइइय्या हे, अउ हम अनपढ़  का जानबों?  न टीबी देखन, न रेडियो सुनन, न पेपर सेपर। अउ ये सरकार घलो तो आके नइ बताये। मितानिन कहिथे, अतेक डरे के बात नइहे, बल्कि ये तो खुशखबरी आय कि सरकार कोती ले अब गोबर के घलो दाम मिलही। झामिन कहिथे, बने हो जाही बहिनी, *अभी तो हमर मरना होगे हे, किसान मन गोबर खातू ल भुला, यूरिया डीपी धर लेहे, चूल्हा अउ छेना के जघा घर म गैस माड़ गेहे, अउ अब तो टाइल्स,पेंट-पुट्टी के जमाना म छर्रा छीटा घलो नँदा गय।*  मितानिन ढाढस धरावत कहिथे, अब संसो झन करव। वइसे के किलो गोबर सकेल लेत होहू एक दिन म ? दुनो बहिनी हाँसत कहिथे, भाजी पाला थोरे हरे, जे किलो बाट ल सनाबो बहिनी, आज तक तो झँउहा अउ कोल्लर  ल जानथन।  उँखर बात ल सुनके, मितानिन घलो हाँसत चलदिस। कामिन अउ झामिन ल मितानिन के बात सपना कस लगिस, अउ वोला तुरते बिसरावत अपन बुता म लगगे। जम्मो गोबर ल तिरियाके दुनो बहिनी बँइहा जोरे घर कोती चल दिस ।
           दुनो बहिनी के घर ल, गाँव के धान कोचिया कालू झाँकत कहिथे, कोनो हो वो। कालू के हुँक ल सुन कामिन आथे अउ कहिथे, कइसे ग रद्दा भुलागे हँव का ? जेन हमर घर आगे हव, न हमर किसान अन न दीवान, कहाँ के धान पान पाबो ददा? अरे नही, मैं कोनो रद्दा नइ भुलाये हँव, बल्कि ये बताये बर आय हँव कि, तुम्हर बरदी के गोबर ल  कल ले, मैं खरीदहूँ। माने अब मैं काली ले गोबर के कोचयई चालू करहूँ। कामिन मितानिन के बात ल उही समय सुरता करत घर म मुचमुचावत खुसर जाथे। दुनो बहिनी दूसर दिन बिहना फेर बरदी मा आ जथे, पाँच ठन पहट जेमा कई हजार गरवा गाय, जे पहातीच ले माड़े अउ दस बज्जी उसले। सबके गोबर बिने म बनेच महिनत लगे। तभो धकर लकर गोबर ल दुनो बहिनी घुरवा म न डार के एक जघा कालू के केहे अनुसार कुढ़ोवत गिस। बरदी उसले के बाद, कालू अपन नाप तौल के समान धरके गौठान म आगे, अउ सकलाय गोबर ल तऊले बर लगिस, तउलत ले कालू पछीना म गदगद ले नहा डरिस,आखिर म थक खागे, अउ अपन कोचयई के अनुभव म गोबर ल देखत कहिथे, तुम्हर ये गोबर ह, लगभग डेढ़ टन होही। का टन वन, कालू, हमन तो स्कूल के मुंह ल घलो नइ देखे हन,काँटा मारत  घलो होबे। अपन टन वन ल तैं अपने कर रख अउ ये बता कि, के पइसा  होइस? कालू  दू ठन नोट देखात कहिथे,ये ले 500 तोर अउ 500 तोर। दुनो बहिनी एक दूसर ल देख, गौठान के पाँव परत हाँसत कहिथे, जब गोबर ल सरोइया घुरवा के दिन बहुरथे कहिथे, त का गोबर बिनइया मनके दिन नइ बहुरही?  दुनो बहिनी भारी खुश हो गुनगुनाय बर धर लेथे। इती कालू गोबर ल चुंगड़ी म भरके चलदिस। कामिन झामिन के चेहरा खिले रहय,अउ काली के सपना ल मन ह आजे गढ़े लगगे कि काली घलो,500, 500 मिलही। ओतकी बेरा पड़ोस गाँव के आदमी बिसन  आके दुनो बहिनी ल कहिथे कि तुम्हर गोबर ल देव, मैं खरीदहूँ। झामिन मुंह छुपावत कहिथे, वोला तो गाँवे म बेंच डारेन। का ये गाँव म गोबर कोचिया घलो हे, अकचका के बिसन कहिथे। मोर नाँव बिसन हे, मैं साग भाजी बेचथों, अउ अब गोबर घलो लेहूँ, वइसे कतका रुपिया के होइस ,के किलो रिहिस ते। झामिन कहिथे, वो डेढ़ टन टन अइसे कुछु काहत रिहिस, अउ येदे 1000 दे हे। बिसन बात काटत कहिथे, मैं एक हजार के जघा बारा तेरा सौं देतेंव। दुनो बहिनी भइगे काहत मुँह घुमावत  घर  कोती चलदिस।

            पइसा पाके झामिन बड़ खुश रहय, सँझौती बेरा पुचपुचावत , गाँव म लगइया बाजार कोती बेनी हलावत, चल दिस। झामिन के जाते ही कालू उँखर घर हबरगे, कामिन ल अउ 200 देवत किहिस, अब मैं तुम्हर गोबर ल रोज लेहूँ। इती झामिन के मुलाकात बाजार म बिसन ले होगे।  बिसन  अउ झामिन  बाजार म दू चार बेर आमने सामने होइस, फेर बिसन, कुछु बोल नइ सकिस।आखिर म हिम्मत करके जावत जावत मुँह घुमाये कहिथे, तुमन दू बहिनी हव का अइसे नइ हो सके, कि आप मन अपन हिस्सा के गोबर ल मोर तीर बेच दव। झामिन बिसन ले नजर मिलाथे, फेर कुछु बोले नही, अउ अपन घर आ जथे। दुनो बहिनी पहाती फेर गौठान म चल देथे, अउ अपन बुता म लग जथे। बरदी उसलते साँठ बिसन अउ कालू दुनो पहुँचगे। झामिन,बिसन ल अउ कामिन, कालू ल गोबर बेचबों कहिके बाताबाती होय बर धर लिस, ओतकी बेरा बिसन कहिथे, ले का होही, आधा आधा कर लेथन, कालू घलो  मूड़ी हला दिस। *गोबर के कुड़ही के दू टुकड़ा होगे, मानो दुनो के मया बँटागे।*  600, 600 रुपिया थमा के दुनो कोचिया बरदी ले चल देथे। एती झामिन अउ कामिन घलो एक दूसर ल देख के मुँह अँइठ लेथे। अउ लरधंग लरधंग दुनो मरखण्डी बछिया बरोबर घर आके तिलमिलाय बर धर लेथे।  बढ़त मन मुटाव म, उँखर घर घलो खँड़ा जथे। हाथ के पइसा, एक दूसर के जरूरत अउ नानपन के मया ल भुला दिस। गाँव भर के मनखे मन जौन झामिन अउ कामिन के मया के गुणगान करे, उहू मन देखते रिहिगे। झामिन के मया बिसन बर, अउ कामिन के मया कालू बर दिन ब दिन बाढ़ेल लगिस। बिसन अउ कालू मितानिन ले डरे कि कही, वोहर दुनो बहिनी मन ल गोबर के सही दाम झन बता देवै, अउ यदि जान जाही, त ओमन ह गोबर ल आने तीर बेंच दिही। फेर दुनो कोती ले, बाढ़त मया म दुनो कोचिया बिहाव के बँधना म बँधा जथे।  बिहाव के बाद घलो,दुनो बहिनी गोबर बिनय अउ आधा आधा दुनो साढ़ू बाँट के बेचे बर ले जावय।  हाथ म आवत पइसा अउ नवा नवा गोसँइया सँग दुनो के जिनगी बढ़िया गुजरे लगिस। बिसन अउ कालू दुनो साढ़ू  गाँव के बरदी के गोबर के सँगे सँग आसपास म घलो गोबर खरीदय अउ बेचे। झामिन अउ कामिन घलो गोबर बिनइया बनिहारिन लगा डारिस। सियान मन कइथे गरीबी म मया बढ़ाथे अउ अमीरी म कम्पीटिशन(प्रतियोगिता)। अउ अइसने  घटिस घलो एक घर टीवी, फ्रीज, कूलर आइस ताहन दूसर घर आवत देरी घलो नइ लगिस। दुनो देखा सीखी गाय गरुवा घलो बिसा डरिस। दुनो बहिनी भले अपन आधा उम्मर ल गरीबी अउ बेसहारा होके जीये रिहिस फेर बचे जिनगी बढ़िया कटेल धरलिस।  गांव वाले मन उँखर दुख अउ कंगाली ल देखे रहिस, त बढ़ोतरी ल देख इही काहत ,दुनो के उप्पर रोष नइ जतावय कि जब बाँटे भाई परोसी अउ एके भाई बर बिहाय दू सगे बहिनी देरानी जेठानी कस लड़ सकथे, त इँखरो बीच छोट मोट मन मुटाव सहज हे।

                  गोबर के पइसा मिले ले गाँव म अब गोबर के पोटी घलो देखना नोहर होगे। झामिन अउ कामिन मन तो रोजे गोबर चोरइय्या ल हात हूत काहत, अउ कभू कभू गरिवावत घलो दिखे। गाय गरु जे सड़क म बइठे, मोटर गाड़ी के भेंट चढ़ जावत रिहिस, उहू मन ल, उँखर गोसाइया मन चेत करे बर धर लिस। गोबर के माँग ले गाय भैस के मान बढ़ेल लग्गिस। शहर नगर का, गाँव घर म घलो बाम्हन पुरोहित मन ये कहि दिस कि यदि गोबर नइ मिलही त माटी के गौरी गणेश घलो चलही, यहू म पूजा सफल हो जही। गोबरेच खोजना जरूरी नइहे। गोबर के भाव मिलत देख, कामिन अउ कालू के मन म लालच हमाय बर धरलिस,देखते देखत गाँव के गौठान गढ्ढा होय बर लगगे, काबर कि गोबर के सँग  अब, कामिन भुइयाँ के मास ल उकाले बर लगगे कहे के मतलब पहली गोबर भर ल बिने अब वजन बाढ़ही कहिके माटी घलो ल सँग म उखाड़े बर धरलिस,। अउ करिया दिखइया  जतेक प्रकार  के भी मल रहय  चाहे वो छेरी बोकरा के होय या कुकुर माकर के, आधा आधा गोबर ल बाँटे के बाद कालू अउ कामिन ओमा मिलावट करे बर घलो लग्गिस। बिसन अउ झामिन ले जादा कालू अउ कामिन पइसा कमाये बर धर लिस, तभो झामिन अउ बिसन ईमानदारी ल नइ छोडिस।  फेर बुराई कतेक दिन छुपही,एक दिन कालू ल फटकार पड़थे अउ जुर्माना घलो हो जथे, जतका  मिलावट म कमाये रिहिस ओखर ले जादा, जुर्माना म सिरा जथे। पुलिस अउ कोर्ट केस होय ले, बिसन अउ झामिन मन बचाथे, ते दिन ले  कालू मिलावट करे बर चेत जथे।  दुनो बहिनी के छरियाय मया पहली कस तो नही, फेर परोसी बरोबर जरूर जुड़ जथे।  दुनो बहिनी घर गाय गरुवा के सँगे सँग धन दौलत के बढ़वार लगातार होय लगिस। अँगना म मेछरावत बछरू के पीला  ल देख  गोबर माँगत, डेरउठी म बइठे कामिन अउ झामिन गँवाय दिन के सुरता करत गावत हे,,,,,,, *गोबर दे बछरू गोबर दे*,,,,,,,,,,,,, फेर  पहली कस ये गीत  कोनो खेल खेल म नइ रिहिस,,,,,,,,,,,  बल्कि पइसा के लालच म रिहिस, कि, रे बछरू तैं गोबर दे, ताहन वोला बेच पइसा पाबों। दुनो बहिनी के आँखी इही सब सोचत एकाएक मिलथे, फेर एक दूसर ल नइ देखिस तइसे, फेर  राग लमा गाये बर धर लेथे,,,,, गोबर दे बछरू गोबर दे-----------।

(बछरू गोबर दय, अउ सरकार ओखर दाम दय, ताकि झामिन कामिन कस कतको दुखियारी मन अपन जिनगी सँवार सकयँ)

    जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
      बाल्को,कोरबा(छग)
        9981441795

गीत-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गीत-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

किसान के कलपना

झड़ी बादर के बेरा,,,
डारे राहु केतु डेरा,,,,
संसो मा सरत सरी अंग हे।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


फुतकी उड़त रद्दा हे, पाँव जरत हावै।
बिन पानी बादर पेड़ पात, मरत हावै।
चुँहे तरतर पछीना,,,,,,
का ये सावन महीना,,,,
दुःख के संग मोर ठने जंग हे----।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।

आसाढ़ सावन हा, जेठ जइसे लागे।
तरिया नदियाँ घलो, मोर संग ठगागे।
हाय हाय होत हावै,,,
जम्मे जीव रोत हावै,,,
हरियर धरती के नइ रंग हे------।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।

बूंद बूंद बरखा बर, मैंहर ललावौं। 
झटकुन आजा, दिन रात बलावौं। 
नइ गिरबे जब पानी,,,,,
कइसे होही किसानी,,,,
मोर सपना बरत बंग बंग हे----।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

-------------मया के पाती---------------

 --------------मया के पाती---------------


   ------- -----------  ठउर- बाल्को, कोरबा

                      -- दिनाँक- 07/08/2020


*मोर मया ल छोड़, कखरो मया मा झन अरझबे।*
*खून ले लिखत हँव पाती,सियाही झन समझबे।*

मोर मयारु,
               ----------,
               मया का होथे? गउकिन नइ जानव। फेर तोला देखे बिना न नींद आय न चैन, तोर सुरता अन्तस् मा अउ तोर मुखड़ा आँखी म समाये रथे। जेती देखथों तेती तिहीं दिखथस। तैं देखे होबे मैं बइहा बरन तोर आघू पीछू किंजरत रहिथों, कोन जनी मोला का होगे हे, का सिरतोन म मया होगे हे? हाँ, मोला तो लगथे हो गेहे, फेर तोर हामी बिना का मया?  मैं ये पाती नइ लिखतेंव, फेर का करँव? तोला देखथंव त मुँह ले बोली भाँखा चिटिको नइ फुटे। मोर हाथ गोड़ म कपकपी अउ जिया म डर हमा जथे। मोर जिया म तोर बर मया तो बनेच दिन ले हिलोर मारत हे, फेर वो मया के लहरा भँवरी कस घूम घूम के उही मेर सिरा जावत रिहिस, आज तक किनारा नइ पा सकिस। तेखर सेती मैं अपन मन के बात  बताये बर तोला ये मया पाती पठोवत हँव। तोला अपन संगी संगवारी संग हाँसत मुस्कात देख मोला अब्बड़ खुशी होथे। मोर मन मया के अगास म पंछी बरोबर उड़त सोंचथे कि उही मंदरस कस बानी कहूँ मोर बर छलकही तब का होही, कोन जनी कतेक खुशी मन मे समाही। तोर मया बिन मोर जिनगी अमावस कस कारी रात हे, जेमा चमचम चमकत पुन्नी के चन्दा बन उजियारा फैलादे। ये पाती लिखे के बाद, मैं अब तोर आघू पीछू घलो नइ हो सकँव।  मोर मन म तो तैं बसे हस, तोर मन म का हे? जवाब के अगोरा रही, 

                                      " तोर मयारू"
                                        खैरझिटिया

सेहत(चौपाई छंद)- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 सेहत(चौपाई छंद)- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*आफत तन में आय जब, मन कइसे सुख पाय*
*तन मन तनतन होय तब, माया मोह सुहाय*

हाड़ माँस के तैं काया धर।
हाय हाय झन कर माया बर।
सब बिरथा काया के सुख बिन।
जतन बदन के करले निस दिन।

तन खेलौना हाड़ माँस के।
जे चाबी मा चले साँस के।
जी ले जिनगी हाँस हाँस के।
दुःख दरद डर धाँस धाँस के।

पी ले पानी खेवन खेवन।
सबे समै खा समै मा जेवन।
समै मा सुत जा समै मा जग जा।
भोजन बने करे मा लग जा।

झन होवय कमती अउ जादा।
कोशिस कर होवय नित सादा।
गरम गरम खा ताजा ताजा।
बजही तभे खुशी के बाजा।

देख रेख कर सबे अंग के।
उही सिपाही सबे जंग के।
हरा भरा रख तन फुलवारी।
तैं माली अउ तैं गिरधारी।

योग ध्यान हे तन बर बढ़िया।
गतर चला बन छत्तीसगढ़िया।
तन के कसरत हवै जरूरी।
चुस्ती फुर्ती सुख के धूरी।

चलुक चढा झन नसा पान के।
ये सब दुश्मन जिया जान के।
गरब गुमान लोभ अउ लत हा।
करथे तन अउ मन ला खतहा।

मूंगा मोती कहाँ सुहावै।
जब काया मा दरद हमावै।
तन तकलीफ उहाँ बस दुख हे।
तन के सुख तब मनके सुख हे।

जतन रतन कस अपन बदन ला।
सजा सँवार सदन कस तन ला।
तन मशीन बरोबर ताये।
जे नइ माने ते दुख पाये।

तन के तार जुड़े हे मन ले।
का का करथस तन बर गन ले।
गुजत बनाले सुख पाये बर।
आलस तन के दुरिहाये बर।

तन हे चंगा तब मन चंगा।
रहे कठौती मा तब गंगा।
कारज कर झन बने लफंगा।
बने बुता बर बन बजरंगा।।

*सेहत ए सुख साधना, सेहत गरब गुमान*
*सेहत ला सिरजाय जे,उही गुणी इंसान*

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Friday 7 August 2020

नाती के पाती

 नाती के पाती


                                     ठउर-बाल्को,कोरबा

                                     तारिख-05/08/2020

*यहाँ कुशल सब भाँति भलाई*

    *वहाँ कुशल राखे रघुराई*

बबा,

       पायलागी गो।

       आप ल ये बतावत अबड़ उछाह होवत हे, कि तीजा पोरा लट्ठावत हे, घर मा झाँपी झाँपी ठेठरी, खुरमी कलेवा बनही। यहू दरी मैं आप मन बर मँझोलन मोटरा म ठेठरी अउ खुरमी ल कूट के गठिया देहूं, ताहन पहली कस बनेच दिन ले फँकियात रहू। गँइंज दिन होगे बबा, तोला देखे नइ हँव, सपना म घलो दरस नइ देखावस। अउ सपना म आहू घलो कइसे ये नवा जमाना के चकाचौंध म मिही तोर सुरता नइ करँव। हाथ म मोबाइल, घर म टीवी, भरर भरर भागत मोटर गाड़ी कार अउ ज्ञान विज्ञान के नवा चोचला तोला छेंक देथे। अउ बबा आजो घलो यदि लोकाक्षर म चिठ्ठी पाती विषय नइ होतिस त आपला मैं सुरता नइ करतेंव। अउ अब सुरता म चढ़ गे हव तब तुम्हर संग बिताये बेरा रहिरहि के उबाल मारत हे। *तोर पिठँइयाँ के पार, आज के ये अगास अमरत झूला ह घलो नइ पा सके।* तोर बनाये ढँकेल गाड़ी जेमा मैं रेंगे बर सीखेंव, आजो नजरे नजर म झूलत हे। तोर खाँसर गाड़ा के मजा महँगा मोटर कार घलो नइ दे सके। *गोरसी के आँवर भाँवर संगी संगवारी मन संग आगी तापत सुने तोर कहानी कन्थली आजो रटृम रट्टा याद हे। तोर संग घूमे बाजार हाट अउ गांव गँवतरी के सुरता भुलाये नइ भुले। आज मोर हाथ के महँगा मोबाइल भले लाख ज्ञान बाँटे फेर तोर बताये गुण गियान के गोठ के पार नइ पा सके।*

सिरतोन म बबा, वो बेरा के तोर मया के आघू, आज के सरी दुनिया भर के सैर सपाटा अउ सुख सुविधा फिक्का हे। जब तैं डोरी ल लामी लामा लमाके ढेरा आँटस, त पारा भरके लइका बड़ मजा करत चिल्लावत भागन। तोर कोकवानी लउठी के डर घलो रहय, फेर आज न तो दाई ददा के डर हे न कोनो आन के। सुतत उठत जागत बइठत, मिले तोर पबरित मया दुलार आजो अन्तस् म हिलोर मारत हे।

                बने हे बबा, तैं ये धरती ल छोड़ दे हस  काबर कि आजकल के लइका मन तो सियान मनके तीर म ओधत घलो नइ हे। आज उन ला न लइका लोग पुछे, न नाती नतुरा। बपुरा मन जुन्ना जमाना के कोनो छेल्ला जिनावर बरोबर घर के एक कोंटा म फेंकाय, खटिया म पँचत हे। सियान बर आज, न मान गउन हे, न उंखर सेवा सत्कार। सब नवा जमाना के रंग म रंग के अपनेच म मगन अउ मस्त हे, चाहे लइका लोग होय चाहे कोनो बड़का। तैं तो हमला गीत गा गाके, पुचकार पुचकार खेला के बड़े करेस, फेर आज के दुधमुहा लइका मन ल घलो दाई ददा मन सियान कर नइ छोड़त हे। उंखर देखरेख बर नौकरानी संग  स्कूल खुलगे हे। आज सियान मनके न घर में, न घर के बाहर गाँव गुड़ी म पहली कस कोनो पुछारी हे। फेर बबा ये गूगल कतको ज्ञान बाँट लय, मोबाइल ,टीवी कतको मनखे के मन मोह डरय, तोर सिखाये पढ़ाये खेलाये कस लइका नइ बना सकय। आज जुन्ना जमाना के जम्मो जिनिस ल मनखे खोधर खोधर के खोजत हे, फेर जीयत जुन्ना मनखे उपर धियान नइ देवत हे। तहूँ देखत होबे बबा, त आँखी डबडबा जात होही। *जीयत मा, न मया हे, न नाम। अउ मरे के बाद उही भगवान राम।*  आज के जमाना म *"बबा मरे चाहे बँचे सब,,,,,,,,,,, बरा खावत हे।"*

            अउ पायलागी गो

                                        चिट्ठी पठोइया

                                  तोर बड़का नाती- खैरझिटिया

Thursday 6 August 2020

नींद ससन भर आही - गीत(सार छंद)

नींद ससन भर आही - गीत(सार छंद)

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।
संझा बिहना सुख मा कटही, मन मा खुशी हमाही।

तामझाम तकलीफ बाँटथे, जीवन जी ले सादा।
जादा मना खुशी अउ दुख झन, जोर घलो धन जादा।
अपन आप ला बने बनाले, सरी जगत गुण गाही।
बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।

संसो फिकर घलो हा चिटिको, नैन मुँदन नइ देवै।
ऊँच नीच खाना पीना हा, नींद चैन हर लेवै।
अपन काम ला खुदे टारले, तन कसरत हो जाही।
बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।

रोज शबासी लेवत चल गा, झन खा एको गारी।
चलत रहा सत के रद्दा मा, तज के झूठ लबारी।
गरब गुमान घलो झन करबे, नइ ते दुःख झपाही।
बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।

जान अपन कस सबे जीव ला, ले ले सबके आरो।
बेर देख के फल खावत चल, मीठ करू अउ खारो।
बचपन के बेरा लहुटाले, तन मन तोर हिताही।
बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Tuesday 4 August 2020

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

किसान के कलपना

झड़ी बादर के बेरा,,,
डारे राहु केतु डेरा,,,,
संसो मा सरत सरी अंग हे।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


फुतकी उड़त रद्दा हे, पाँव जरत हावै।
बिन पानी बादर पेड़ पात, मरत हावै।
चुँहे तरतर पछीना,,,,,,
का ये सावन महीना,,,,
दुःख के संग मोर ठने जंग हे----।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।

आसाढ़ सावन हा, जेठ जइसे लागे।
तरिया नदियाँ घलो, मोर संग ठगागे।
हाय हाय होत हावै,,,
जम्मे जीव रोत हावै,,,
हरियर धरती के नइ रंग हे------।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।

बूंद बूंद बरखा बर, मैंहर ललावौं। 
झटकुन आजा, दिन रात बलावौं। 
नइ गिरबे जब पानी,,,,,
कइसे होही किसानी,,,,
मोर सपना बरत बंग बंग हे----।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Monday 3 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

दुःख अउ सुख मा जिनगी पहाही इहाँ।
कोई जाही ता कोई हा आही इहाँ।1

धन मया के उपर आज भारी हवै।
धन सकेलत सबे सिर मुड़ाही इहाँ।2

कोई हिटलर हवै कोई औरंगजेब।
फेर इतिहास हा दोहराही इहाँ।3

राज हे लाज ला बेच देहे तिंखर।
जौन लड़ही झगड़ही ते खाही इहाँ।4

जेन पर के भरोसा भरे पेट ला।
वो मनुष काय नामा जगाही इहाँ।5

काटही बेर गिनगिन मनुष मोठ मन।
हाड़ा कस मनखे मन नित कमाही इहाँ।6

घाम करथे जबर बरसा बरसे अबड़।
आ जही का भयंकर तबाही इहाँ।7

चोर के धन चुरा चोर हा लेजही।
राज ला बाँट खाही सिपाही इहाँ।8

खा पी सुरसा घलो तो कलेचुप हवै।
का मनुष धन रतन धर अघाही इहाँ।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

बिना खाये उदर आगी, बता कइसे बुझाही जी।
विपत नाचत रही सिर मा, भला का नींद आही जी।

लगे सावन घलो बैसाख, आगी कस धरा हे तात।
कटागे रुख गँवागे सुख, मनुष अब जर भुँजाही जी।

बिगाड़े घर घलो ला ये, बिगाड़े पर घलो ला ये।
नसा हा नास के जड़ ए, खुशी धन तन सिराही जी।

ददा दाई ला धुत्कारे, खुशी सुख सत मया बारे।
सुने नइ बात ला बेटा, कहाँ जाके झपाही जी।

गरब मा राख के नौ माह, झेलिस दुख गजब दाई।
निकम्मा पूत हा होवय, ता छाती नइ ठठाही जी।

भलाई के जमाना गय, करे पापी धरम के छय।
बुराई हा जगत मा, एक दिन लाही तबाही जी।

चले चरचा गुमानी के, दबे गुण ज्ञान  ग्यानी के।
धँधाये जेल मा सत ता, बुराई नइ हमाही जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[7/23, 1:06 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

नफा खोजत उड़य नित बाज, देखे मा फरक हे जी।
मरे नइ लाजवंती लाज, देखे मा फरक हे जी।।1

मरे मनखे ला दफनाये, उहाँ कौने घुमे जाये।
हरे मुमताज के मठ ताज, देखे मा फरक हे जी।2

हवै दाई ददा लाँघन, लुटाये पूत पर बर धन।
करे माँ बाप कइसे नाज, देखे मा फरक हे जी।3

उहू बोलय विपत हरहूँ, यहू कहिथे खुशी भरहूँ।
सबे नेता हे एके आज, देखे मा फरक हे जी।4

बढ़े अउ ना घटे धन, कर खुजाये जेवनी डेरी।
दुनो मा होय खुजली खाज, देखे मा फरक हे जी।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[7/26, 5:00 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

का गलत का सहीं हे बता बात मा।
रोष जादा कभू झन जता लात मा।1

हाड़ अउ मांस के तन मा काके गरब।
काँपथे जाड़ मा जर जथे तात मा।।2

साग भाजी हवा अउ दवा दै उही।
जान हे जान ले पेड़ अउ पात मा।3

आदमी अस ता रह आदमी बीच में ।
बाढ़थे मीत ममता मुलाकात मा।।4

छोड़ लड़ना झगड़ना अरझ के मनुष।
तोर मैं मोर धन अउ धरम जात मा।5

भाँप के बेर ला लउठी धरके निकल।
नइ भगाये कुकुर कौवा हुत हात मा।6

हाँ बँटत दिख जथे धन रतन हा कभू।
नइ मिले अब मया मीत खैरात मा।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा (छग)
[7/27, 5:05 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

मोर जिनगी मा आबे अपन जान के।
मोला मितवा बनाबे अपन जान के।1

मोल मोरे गिराही जमाना कहूँ।
सोन कस तैं नपाबे अपन जान के।2

मोर दिल मा मया पलपलावत रही।
हाथ तैंहा बढ़ाबे अपन जान के।3

मान जाबे मया के सबे बात ला।
जादा झन तैं सताबे अपन जान के।4

मैं पतंगा अँजोरी सदा खोजथौं।
दीप बन जगमगाबे अपन जान के।5

असकटावत रबे तैं अकेल्ला कहूँ।
नाम लेके बलाबे अपन जान के।6

धन रतन देश दुनिया हवै फालतू।
जग मया के घुमाबे अपन जान के।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[8/1, 4:24 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: Date: Aug 1, 2020

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

तैं बुरा अउ भला सबला जानत हवस।
फेर नइ बात कखरो रे मानत हवस।1

आन बर बड़ मया पलपलावत हवै।
देख दाई ददा तोप तानत हवस।।2

जाग गे सोय हा, आत हे खोय हा।
तैं डहर धर गलत खाक झानत हवस।3

मोल जानेस नइ तैं समय के कभू।
आग लगगे कुँवा तब रे खानत हवस।4

का करत हस करम तैं अपन देख ले।
सत मया मीत अउ रीत चानत हवस।5

बह जथे धार हा पथ बनाके खुदे।
रोक के धार नदियाँ उफानत हवस।6

आय हे जातरी खुद चपक झन नरी।
तैं दवा कहिके दारू ला लानत हवस।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा (छत्तीसगढ़)
[8/1, 9:54 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

तोर अउ मोर मा हे घिरे आदमी।
नित लड़त हे कसोरा भिरे आदमी।1

थल ल दाबत हवे जल ल सोंखत हवे।
अउ अगासे ल जिद मा तिरे आदमी।2

भूख सुख बर भुलाके धरम अउ करम।
भेड़िया बनके भटकत फिरे आदमी।3

एक छिन मा बढ़े एक छिन मा अड़े।
एक छिन स्वार्थी बनके गिरे आदमी।4

बोल मा भर जहर धर गलत सँग डहर।
मीत ममता मया ला चिरे आदमी।5

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[8/2, 9:52 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

बात नइ माने जे लात खाये बिना।
छोड़बे कइसे वोला ठठाये बिना।1

हाथ देबे ता धरथे गला ला सबे।
पाल लइका घलो सिर चढ़ाये बिना।2

बन बुरा बर बुरा अउ बने बर बने।
काम कर ले सदा मटमटाये बिना।3

खात कौरा नँगाही कुटाही जबर।
पेट भरगे कहन नइ अघाये बिना।4

छाय हावय सबे तीर लत लोभ मद।
साफ करबोन सबला सनाये बिना।5

पाँख रहिके पँखेड़ू  धरा खोजथे।
देख मानुष जिये नइ उड़ाये बिना।6

बात करथे हवा संग गाड़ी धरे।
चेत चढ़थे कहाँ ले झपाये बिना।7

टोर जांगर घलो एक लाँघन पड़े।
एक खाये पछीना गिराये बिना।8

दूध माड़े रथे ता दही बन जथे।
लेवना का निकलथे मथाये बिना।9

साज अउ बाज बिरथा बिना साधना।
धार हँसिया रहे नइ पजाये बिना।10

सामने आय नइ सच सहज मा कभू।
पेड़ ले फल गिरे नइ हलाये बिना।11

काम ला देख के जे नयन मूंद दै।
खाय बर जाग जाथे जगाये बिना।12

बिन मया आदमी आदमी काय ए।
घर कहाये नही छत छवाये बिना।13

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
[8/2, 11:08 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

मोह मद मा फँसे आदमी मन इहाँ।
फोकटे के हँसे आदमी मन इहाँ।।1

साँप कस धर जहर घूमथे सब डहर।
शांति सुख ला डँसे आदमी मन इहाँ।2

ढोर बन मिल जथे चोर बन मिल जथे।
माथ चंदन घँसे आदमी मन इहाँ।।3

तोर अउ मोर मा धन रतन जोर मा।
डोर धर गल कँसे आदमी मन इहाँ।4

छोड़ के गाँव ला अउ मया छाँव ला।
हे शहर मा धँसे आदमी मन इहाँ।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[8/3, 9:27 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

दुःख अउ सुख मा जिनगी पहाही इहाँ।
कोई जाही ता कोई हा आही इहाँ।1

धन मया के उपर आज भारी हवै।
धन सकेलत सबे सिर मुड़ाही इहाँ।2

कोई हिटलर हवै कोई औरंगजेब।
फेर इतिहास हा दोहराही इहाँ।3

राज हे लाज ला बेच देहे तिंखर।
जौन लड़ही झगड़ही ते खाही इहाँ।4

जेन पर के भरोसा भरे पेट ला।
वो मनुष काय नामा जगाही इहाँ।5

काटही बेर गिनगिन मनुष मोठ मन।
हाड़ा कस मनखे मन नित कमाही इहाँ।6

घाम करथे जबर बरसा बरसे अबड़।
आ जही का भयंकर तबाही इहाँ।7

चोर के धन चुरा चोर हा लेजही।
राज ला बाँट खाही सिपाही इहाँ।8

खा पी सुरसा घलो तो कलेचुप हवै।
का मनुष धन रतन धर अघाही इहाँ।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)

माई खोली म माढ़े हे,भोजली दाई बाढ़े हे
ठिहा ठउर मगन हे,बने पाग नेत हे।
जस सेवा चलत हे, रहिरहि हलत हे,
खुशी छाये सबो तीर,नाँचे घर खेत हे।
सावन अँजोरी पाख,आये दिन हवै खास,
चढ़े भोजली म धजा,लाली कारी सेत हे।
खेती अउ किसानी बर,बने घाम पानी बर
भोजली मनाये मिल,आशीष माँ देत हे।

भोजली दाई ह बढ़ै,लहर लहर करै,
जुरै सब बहिनी हे,सावन के मास मा।
रेशम के डोरी धर,अक्षत ग रोली धर,
बहिनी ह आये हवै,भइया के पास मा।
फुगड़ी खेलत हवै,झूलना झूलत हवै,
बाँहि डार नाचत हे,मया के गियास मा।
दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,
सावन अँजोरी उड़ै,मया ह अगास मा।

अन्न धन भरे दाई,दुख पीरा हरे दाई,
भोजली के मान गौन,होवै गाँव गाँव मा।
दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,
धुँवा उड़े धूप के जी ,भोजली के ठाँव मा।
मुचमुच मुसकाये,टुकनी म शोभा पाये,
गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।
राखी के बिहान दिन,भोजली सरोये मिल,
बदे मीत मितानी ग,भोजली के नाँव मा।

राखी के पिंयार म जी,भोजली तिहार म जी,
नाचत हे खेती बाड़ी,नाचत हे धान जी।
भुइँया के जागे भाग,भोजली के भाये राग,
सबो खूँट खुशी छाये,टरै दुख बान जी।
राखी छठ तीजा पोरा,सुख के हरे जी जोरा,
हमर गुमान हरे,बेटी माई मान जी।
मया भाई बहिनी के,नोहे कोनो कहिनी के,
कान खोंच भोजली ला,बनाले ले मितान जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Saturday 1 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 

212 212 212 212  

तैं बुरा अउ भला सबला जानत हवस।
फेर नइ बात कखरो रे मानत हवस।1

आन बर बड़ मया पलपलावत हवै।
देख दाई ददा तोप तानत हवस।।2

जाग गे सोय हा, आत हे खोय हा।
तैं डहर धर गलत खाक झानत हवस।3

मोल जानेस नइ तैं समय के कभू।
आग लगगे कुँवा तब रे खानत हवस।4

का करत हस करम तैं अपन देख ले।
सत मया मीत अउ रीत चानत हवस।5

बह जथे धार हा पथ बनाके खुदे।
रोक के धार नदियाँ उफानत हवस।6

आय हे जातरी खुद चपक झन नरी।
तैं दवा कहिके दारू ला लानत हवस।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा (छत्तीसगढ़)

बइरी पइरी(गीत)😥😥

😥बइरी  पइरी(गीत)😥😥

कइसे बजथस रे पइरी बता।
मोर  पिया  के,मोर पिया के,
अब  नइ मिले  पता......।।

पहिली सुन,छुनछुन तोर,
दँउड़त    आय     पिया।
अब   वोला    देखे   बर,
तरसत  हे  हाय   जिया।
ओतकेच   घुँघरू  हे,
ओतकेच के साज हे।
फेर काबर बइरी तोर,
बदले    आवाज   हे।
फरिहर  मोर मया ल,
झन तैं मता..........।।

का करहूँ राख अब,
पाँव    मा    तोला।
धनी मोर नइ दिखे,
संसो   होगे  मोला।
पहिरे पहिरे तोला,
अब पाँव लगे भारी।
पिया के बिन कते,
सिंगार  करे  नारी।
धनी  के   रहत  ले,
तोर मोर हे नता..।।

देख नइ  सकेस,
मोर सुख पइरी।
बँधे बँधे पाँव म,
होगेस तैं बइरी।
पिया  के  मन  ला,
काबर नइ भावस।
मया  के गीत अब,
काबर नइ गावस।
मैं बड़ दुखयारी,
मोला झन सता--।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)