Sunday 20 August 2017

अब का पोरा-जाँता जी ?

अब का पोरा-जाँता जी ?

अब का पोरा जाँता जी?
ठाढे़ अँकाल   के   मारे,
होगेव चउदा बाँटा जी |
अब का पोरा जाँता जी।

सपना ल दर-दर जाँता म,
कब तक मन ल बाँधव ?
चांउर-दार पिसान नइहे,
का  कलेवा   राँधव  ?
भभकत  मँहगाई  म,
अलथी कलथी भुंजात हौ |
भात- बासी ल तको,
चटनी  कस  खात  हौ   |
उबके हे लोर तन भर,
पड़े हे गाल म चाँटा जी....|
अब का पोरा जाँता जी....?

सिरतोन के बइला भूख मरे,
का  जिनिस  खवाहूं  |
माटी के बइला बनाके,
अब का करम ठठाहूं |
किसान  अउ गाय-गरूवा,
जघा-जघा कुटात हे |
सहर-नगर म कहॉ,
कोनो पोरा मनात हे ?
कइसे नाचे नंदियॉ बइला,
गड़गे गोड़ म काँटा जी.......|
अब का पोरा जाँता जी.......|

गांव के गरीब किसन्हा,
कब तक चिमोटे रिही |
जुग अउ समाज के संग,
बिधाता के जुलूम होते रिही|
अइसन जमाना म,
पोरा-जाँता नँदा झिन जाय |
बइला के जघा म किसन्हा,
फँदा    झिन    जाय |
हिरदे छर्री-दर्री होगे,
कोन लगाही टाँका जी......|
अब का पोरा-जाँता जी....?

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

पोरा तिहार के आप सबो ल गाड़ा गाड़ा बधाई🙏🙏

Saturday 19 August 2017

छत्तीसगढ़िया वीर बेटा(आल्हा)

छत्तीसगढ़िया वीर बेटा(आल्हा)

महतारी के रक्षा खातिर,धरे हवँव मैं मन मा रेंध।
खड़े  हवँव  मैं छाती ताने,बइरी मारे कइसे सेंध।

मोला झन तैं छोट समझबे,अपन राज के मैंहा वीर।
अब्बड़ ताकत  बाँह भरे हे , रख देहूँ बइरी ला चीर।

तन  ला मोर करे लोहाटी ,पसिया चटनी बासी नून।
बइरी मन ला देख देख के,बड़ उफान मारे गा खून।

नाँगर  मूठ  कुदारी  धरधर , पथना  कस होगे हे हाथ।
अबड़ जबर कतको हरहा ला,पहिराये हँव मैंहा नाथ।

कते  खेत  के  तैं मुरई  रे, ते  का  लेबे  मोला  जीत।
परही मुटका कसके तोला,छिन मा तैं हो जाबे चीत।

आँखी कहूँ गड़ाबे बइरी,देहूँ  मैं  खड़ड़ी ओदार।
महानदी अरपा पइरी मा,बोहत रही लहू के धार।

उड़ा  जबे  बइरी तैं दुरिहा ,कहूँ मार परहूँ मैं फूँक।
खड़े खड़े बस देखत रहिबे,होवे नहीं मोर ले चूक।

मोर झाँक के आँखी देखव,गजब भरे हावय अंगार।
पाना  डारा कस बइरी ला,एके  छिन  मा  देहूँ  बार।

हाथ   गोड़  हा  पूरे  बाँचे ,नइ  चाही  मोला  हथियार।
अपन राज के आनबान बर,खड़े हवँव मैं सदा तियार।

ललहूँ पटको कमर कसे हँव,चप्पल भँदई हावय पाँव।
अड़हा  झन  तैं कभू जानबे,छिन मा तोर बुझाहूँ नाँव।

भाला बरछी गोला बारुद ,भेद सके नइ मोरे चाम।
दाँत  कटर देहूँ ततकी मा,मेटा जही सबो के नाम।

हवे  हवा कस चाल मोर जी,कोन भला पाही गा पार।
चाहे कतको हो खरतरिहा,होही खच्चित ओखर हार।

जब  तक  जीहूँ  ए  माटी  मा,बनके  रइहूँ  बब्बर  शेर।
डर नइ हे मोला कखरो ले,का करही कोलिहा मन घेर।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को

परेवना राखी देके आ

परेवना  राखी  देके  आ
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परेवना      कइसे   जाओं    रे,भईया     तीर      तंय     बता?
गोला-बारूद  चलत हे  मेड़ो म,तंय     राखी    देके  आ.......|

दाई-ददा के  छईंहा म  राहव त,बईठार के भईया ल मंझोत  में।
बांधो राखी कुंकुंम-चंदन लगाके,घींव   के  दिया   के  जोत   में।
मोर   लगगे    बिहाव   अउ,भईया      होगे     देस   के।
कइसे  दिखथे मोर भईया ह,आबे  रे   परेवना   देख  के।
सुख के मोर समाचार कहिबे,जा भईया के संदेसा ला.....|

सावन पुन्नी आगे जोहत होही,भईया ह मोर राखी के बाट रे।
धकर-लकर उड़ जा रे परेवना,फईलाके    दूनो    पाँख    रे।
चमचम-चमचम चमकत राखी,भईया    ल    बड़    भाही  रे।
नांव  जगा  के ; दाई - ददा के,बहिनी  ल  दरस   देखाही  रे।
जुड़ाही आँखी,ले जा रे राखी,दे जा भईया   के  पता........|

देखही  तोला  भईया ह  परेवना ,त  बहिनी  के   सुरता  करही  रे।
जे हाथ म भईया के राखी बँधाही,ते हाथ देस बर जुग-जुग लड़ही रे।
थर-थर   कापही   बईरी   मन   ह,भईया  के  गोली  के  बऊछार  ले,
रक्छा करही राखी मोर  भईया के,बईरी     अउ   जर  -  बोखार  ले।
जनम - जनम   ले  अम्मर  रहे   रे,
भाई -  बहिनी  के नता.............|
            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
                 बालको(कोरबा)
                  9981441795

मोर मितान

मोर मितान

गांव म रहिथे मोर मितान।
हवे  सहर मा मोर मकान।
मैं कमाथों  पैसा  रातदिन,
वो  उगाथे  गहूँ अउ धान।

माटी  के  घर खपरा छानी।
तभो मितान हवे बड़ दानी।
गला  म  फेटा  मूड़  म  पागा।
फोकटे फोकट करे नइ लागा।
दिखे  हाथ  मोर गोरा गोरा।
ओखर हाथ म परे हे फोरा।
पीथे  कुँवा  बोरिंग  के पानी।
बासी पेज ओखर जिनगानी।
पहिली  ले अउ वो  पतरागे।
मोर तन म बड़ मास भरागे।
हँड़िया कस मोर पेट निकलगे,
चश्मा  चढ़े  हवे   मोर   कान।

गाड़ी  घोड़ा शान मोर ए।
पैसा कउड़ी मान मोर ए।
चीज  देखवा  के हे घर मा।
नाम हवे बड़ मोर शहर मा।
मितान  के बोली मंदरस हे।
हाथ गोड़ हा पथरा कस हे।
ताकत हवे बाँह मा भारी।
खाथे बासी भरभर थारी।
तात तात  मैं तीन तेल खाथों।
टीभी देख मैं दिन ला पहाथों।
सेज सुपाती पलंग गद्दा मा,
सुतथों   मैंहा   लाद   तान।

ओधे  रहिथे  दिनभर गेट।
अबड़ हवे मोर घर के रेट।
पारा  परोसी   से  का  लेना।
नइ बारन लकड़ी अउ छेना।
घर ले जुड़े हे ओखर ब्यारा।
जिंहा माड़े हे खाँसर गाड़ा।
घर  के  आघू बड़का चँवरा।
बइला बंधाये करिया धँवरा।
बड़का अँगना अउ दुवारी।
बइठ मितानिन करे मुखारी।
डिस्को रीमिक्स मोर मुँह मा,
ओखर  मिठाये   सुवा  गान।

जाति  धरम  बसे मोर बानी।
वो बस जाने खेती किसानी।
तिहार बार वो हाँस के माने।
गाँव  भर  ला परिवार जाने।
पाले  हँव घर मे कुकुर मैं।
रहिथों दाई ददा ले दूर मैं।
गमला  माड़े   मोर   दुवारी।
उगे हवे बड़ फूल फुलवारी।
चले नही मोला गुड़ शक्कर।
खेवन  खेवन  आथे चक्कर।
खाथों  रोज  दवई   गोली,
नपे तुले हे मोर खानपान।

पैसा बैंक  मा  माड़े  हावय।
बीपी सुगर मोर बाढ़े हावय।
मितान रेंगे टेंग टेंग भारी।
ओखर पटे सबसँग तारी।
बर पीपर छँइहा मनभावन।
हाट  सजथे  लगथे  दावन।
सीतला बरदी तरिया नरवा।
छेरी बोकरा संग मा गरवा।
मॉल मेला होटल ढाबा।
देथे खुसी काबा काबा।
पानी काँजी मैंहा पीथों,
फिल्टर  मा   मैं   छान।

देस बर जीबों देस बर मरबों

देस बर जीबों देस बर मरबों

चल माटी के काया ल,हीरा करबों।
देस बर जीबो, देस बर  मरबों।
 
सिंगार करबों,सोन चिंरइयाँ के।
गुन   गाबोंन, भारत  मइया के।
स्वारथ  के सुरता ले, दुरिहाके।
धुर्रा चुपर के माथा म,भुइयाँ के।
घपटे अंधियारी भगाय बर,भभका धरबों।
देस बर जीबो, देस बर मरबों...............।

उँच  - नीच    ला ,  पाटबोन।
रखवार बन देस ल,राखबोन।
हवा     म    मया,   घोरबोन।
हिरदे ल हिरदे ले, जोड़बोन।
चल  दुख-पीरा ल, मिल  हरबों।
देस   बर  जीबों, देस बर मरबों।

मोला गरब-गुमान  हे,
ए  भुइयाँ  ल    पाके।
खड़े    रहूं    मेड़ो  म ,
जबर छाती फइलाके।
फोड़ दुहुं वो आँखी ल,
जे मोर भुइयाँ बर गड़ही।
लड़हूँ - मरहूँ   देस    बर ,
तभे काया के करजा उतरही।
तंउरबों बुड़ती समुंद म,उक्ती पहाड़ चढ़बो।
चल   देस   बर जीबो, देस बर मरबो.......।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" के दोहे


श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के दोहे

@@@@@@करम@@@@@@@

करम  सार  हावय इँहा,जेखर  हे  दू  भेद।
बने  करम ला राख लौ,गिनहा ला दे खेद।

बिना करम के फल कहाँ,मिलथे मानुष सोच।
बने   करम   करते   रहा,बिना  करे   संकोच।

करे  करम  हरदम  बने,जाने  जेहर  मोल।
जिनगी ला सार्थक करे,बोले बढ़िया बोल।

करम  करे  जेहर   बने,ओखर  बगरे नाम।
करम बनावय भाग ला,करम करे बदनाम।

करम  मान नाँगर जुड़ा,सत  के  बइला फाँद।
छीच मया ला खेत भर,खन इरसा कस काँद।

काया बर करले करम,करम हवे जग सार।
जीत करम ले हे मिले, मिले  करम ले हार।

करम सरग के फइरका,करम नरक के द्वार।
करम गढ़े जी  भाग ला,देवय  करम  उजार।  

बने करम कर देख ले,अड़बड़ मिलथे मान।
हिरदे  घलो हिताय बड़,बाढ़े अड़बड़ शान।

मिल जाये जब गुरु बने,वो सत करम पढ़ाय।
जिनगी  बने  सँवार   के,बॉट  सोझ  देखाय।

हाथ   धरे  गुरुदेव  के,जावव जिनगी जीत।
धरम करम कर ले बने,बाँट मया अउ मीत।

करम जगावय भाग ला,लेगय गुरु भवपार।
बने  करम बिन जिन्दगी,सोज्झे  हे  बेकार।

##############ज्ञान#############

ज्ञान रहे ले साथ मा ,बाढ़य जग मा शान।
माथ  ऊँचा  हरदम रहे,मिले  बने सम्मान।

बोह भले सिर ज्ञान ला,माया मोह उतार।
आघू मा जी ज्ञान के,धन बल जाथे हार।

लोभ मोह बर फोकटे,झन कर जादा हाय।
बड़े बड़े धनवान मन ,खोजत  फिरथे राय।

ज्ञान मिले सत के बने,जिनगी तब मुस्काय।
आफत  बेरा  मा  सबे,ज्ञान काम बड़ आय।

विनय मिले बड़ ज्ञान ले ,मोह ले अहंकार।
ज्ञान  जीत  के  मंत्र  ए, मोह हरे खुद हार।

गुरुपद पारस  ताय जी,लोहा होवय सोन।
जावय नइ नजदीक जे,मूरख ए सिरतोन।

बाँट  बाँट  के  ज्ञान  ला,करे जेन निरमान।
वो पद देख पखार ले,गुरुपद पंकज जान।

अइसन  गुरुवर  के  चरण,बंदौं बारम्बार।
जेन ज्ञान के जोत ले,मेटय सब अँधियार।

&&&&&&&&नसा&&&&&&&&&

दूध  पियइया  बेटवा ,ढोंके  आज  शराब।
बोरे तनमन ला अपन,सब बर बने खराब।

सुनता बाँट तिहार मा,झन पी गाँजा मंद।
जादा लाहो लेव झन,जिनगी हावय चंद।

नसा करइया हे अबड़,बढ़  गेहे  अपराध।
छोड़व मउहा मंद ला,झनकर एखर साध।

दरुहा गँजहा मंदहा,का का नइ कहिलाय।
पी  खाके  उंडे   परे, कोनो हा  नइ  भाय।

गाँजा चरस अफीम मा,काबर गय तैं डूब।
जिनगी  हो  जाही  नरक,रोबे  बाबू  खूब।

फइसन कह सिगरेट ला,पीयत आय न लाज।
खेस खेस बड़ खाँसबे,बिगड़ जही सब काज।

गुटका  हवस दबाय तैं,बने  हवस  जी  मूक।
गली खोर मइला करे,पिचिर पिचिर गा थूक।

काया  ला   कठवा  करे,अउ  पाले  तैं   घून।
खोधर खोधर के खा दिही,हाड़ा रही न खून।

नसा नास कर देत हे, राजा हो या रंक।
नसा देख  फैलात हे,सबो खूंट आतंक।

टूटे  घर   परिवार    हा, टूटे  सगा   समाज।
चीथ चीथ के खा दिही,नसा हरे गया बाज।

घर  दुवार  बेंचाय के,नौबत  हावय आय।
मूरख माने नइ तभो,कोन भला समझाय।

नसा करइया चेत जा,आजे  दे  गा छोड़।
हड़हा होय शरीर हा,खपे हाथ अउ गोड़।

एती ओती  देख ले,नसा  बंद  के जोर।
बिहना करे विरोध जे,संझा बनगे चोर।

कइसे छुटही मंद हा,अबड़ बोलथस बोल।
काबर पीये  के  समय,नीयत  जाथे  डोल।

संगत  कर  गुरुदेव  के,छोड़व  मदिरा मास।
जिनगी ला तैं हाथ मा,कार करत हस नास।

नसा  करे ले रोज के,बिगड़े तन के तंत्र।
जाके गुरुवर पाँव मा,ले जिनगी के मंत्र।

रचनाकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)

Wednesday 16 August 2017

मैं बीर जंगल के(आल्हा छंद)

मैं वीर जंगल के(आल्हा)

झरथे  झरना  झरझर  झरझर,पुरवाही मा नाचे पात।
ऊँच ऊँच बड़ पेड़ खड़े हे,कटथे जिंहा मोर दिन रात।

पाना   डारा   काँदा   कूसा, हरे   हमर  मेवा  मिष्ठान।
जंगल झाड़ी ठियाँ ठिकाना,लगथे मोला सरग समान।

कोसा लासा मधुरस चाही,नइ चाही मोला धन सोन।
तेंदू  पाना  चार   चिरौंजी,संगी  मोर  साल  सइगोन।

घर के बाहिर हाथी घूमे,बघवा भलवा बड़ गुर्राय।
आँखी फाड़े चील देखथे,लगे काखरो मोला हाय।

छोट मोट दुख मा घबराके,जिवरा नइ जावै गा काँप।
रोज  भेंट  होथे  बघवा ले, कभू संग सुत जाथे साँप।

लड़े  काल  ले  करिया  काया,सूरुज  मारे  कइसे  बान।
झुँझकुर झाड़ी अड़बड़ भारी,लगे रात दिन एक समान।

घपटे  हे  अँधियारी  घर मा,सूरुज नइ आवै गा तीर।
बघवा भलवा हाथी सँग मा,रहिथौं मैं बनके गा बीर।

रेंग  सके  नइ कोनो मनखे,उँहा घलो मैं देथौं  भाग।
आलस जर जर भूँजा जाथे,हरे खुदे तन मोरे आग।

गरब गठैला  तन के करथौं,चढ़ जाथौं मैं झट ले झाड़।
सोना उपजाथौं महिनत कर,पथरा के छाती ला फाँड़।

उतरौं  चढ़ौ  डोंगरी  घाटी ,तउरौं  मैं  नँदिया के धार।
कतको पीढ़ी इँहिचे खपगे,मानन नहीं हमन हा हार।

डर नइ लागे बघवा भलवा,डर नइ लागे बिखहर साँप।
मोर जीव  हा  तभे  कापथे,जब  होथे  जंगल  के नाँप।

पथरा  कस  छाती  ठाहिल हे,मोर हवा कस हावय चाल।
मोर उजाड़ौ झन घर बन ला,झन फेकव जंगल मा जाल।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

कमर छठ(खमर्छठ) सार छंद

खमर्छठ(सार छंद)

खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।
चना गहूँ राहेर संग मा,झड़के बहिनी भाई।

भादो मास खमर्छठ होवय,छठ तिथि अँधियारी।
लीपे  पोते  घर  अँगना  हे,चुक  ले दिखे दुवारी।

बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।
हलषष्ठी के  करे  सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।

घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।
पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।

चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।
हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।

पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।
लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।

लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।
छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।

खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।
महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।

भैंस दूध के भोग लगे हे,भरभर मउहा दोना।
करे  दया   हलषष्ठी   देवी,टारे  जादू   टोना।

पीठ  म   पोती   दे  बर  दाई,पिंवरी  माटी  घोरे।
लइका मनखे पाँव ल थोरिक,सगरी मा धर बोरे।

चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।
महतारी  के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।

द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।
रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।

टरे  घँसे  ले  महतारी के,झंझट दुख झमेला।
रक्षा कवच बने लइका के,पोती कइथे जेला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

हमर तिरंगा

@@@हमर तिरंगा(दोहा गीत)@@@

लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।
इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।
हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।
नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।
जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।
संसो  कहाँ  सुबे   हवे, नइहे  संसो   रात।
महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।
इही--------------------------------- लाज।

उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।
भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।
गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।
उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।
का का मैं बतियाँव गा, गजब भरे हे राज।
लहर------------------------------लाज।

तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।
जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।
कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।
रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।
जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।
लहर-----------------------------लाज।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

स्वतंत्रता दिवस अउ आठे तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई।।

Tuesday 1 August 2017

खेती नँवा ढंग ले

खेती नवा ढंग ले(छन्न पकैया)

छन्न  पकैया छन्न पकैया,ये युग हरे मसीनी।
चना गहूँ होवय खेती ले,खेती ले गुड़ चीनी।

छन्न  पकैया छन्न पकैया ,जुन्ना खेती सोवै।
बाँवत निदँई मतई सब्बो,नवा ढंग ले होवै।

छन्न पकैया छन्न पकैया,नइहे  बइला गाड़ा।
नाँगर जूड़ा नइहे घर मा,बनगे टेक्टर माड़ा।

छन्न  पकैया  छन्न  पकैया,तोर तीर सुख सोही।
करले जाँच बीज माटी के,धान पान बड़ होही।

छन्न  पकैया  छन्न   पकैया ,भर्री  धनहा  डोली।
नइ पावस नाँगर बइला अउ,ओहो तोतो बोली।

छन्न  पकैया  छन्न  पकैया,खुस  हो खाले मांदी।
दवई मा झट मर जाथे जी, बन दूबी अउ कांदी।

छन्न  पकैया  छन्न  पकैया ,डारे  खातू माटी।
माछी मच्छर मुसवा मरगे,डरगे चिरई चाँटी।

छन्न  पकैया छन्न पकैया,धान पान झट बाढ़े।
पइसा  कौड़ी  होना  चाही,देख पार मा ठाढ़े।

छन्न पकैया छन्न पकैया,होय बने जिनगानी।
ट्यूबवेल  खोदाये हावय,झरझर  बोहै पानी।

छन्न  पकैया छन्न पकैया,देख चीज का आगे।
देखत  देखत  धान  लुवागे,अउ झट मिंजागे।

छन्न  पकैया  छन्न  पकैया, हाँस  ले  मुस्काले।
नवा नवा जी साधन मनके ,तैंहा गुन ला गाले।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)