Saturday 15 October 2022

छत्तीसगढ़ी कविता मन मा देवारी

 *"छत्तीसगढ़ी कविताओं में दीपावली"*


                            कातिक अमावस्या के होवइया दीपावली तिहार हमर छत्तीसगढ़ के बड़का तिहार मा एक हे, जेखर जोरा बर जम्मो छत्तीसगढ़िया मन पाख भर पहली ले लग जथें। ये तिहार मा बरसा के पानी मा चोरो बोरो होय घर-कोठा, बारी-बखरी, गली-खोर जम्मों साफ सफाई होके, लीपा पोता के मुचमुच मुचमुच करत दिखथें। छोटे बड़े जम्मों मनखे अपन अपन घर अंगना के सुघराई ला बढ़ाये बर उछाह मा बूता करथें। ये तिहार के आरो पाके बरसा लगभग थम जाय रथे, जाड़ दस्तक देय बर लग जथे,खेत खार के पके धान पान छभाये मुंदाये कोठार मा सकलाय बर हवा संग दोहा पारके नाचत दिखथे। धनतेरस, नरक चौदस, सुरहोत्ती, गोवर्धन पूजा अउ भाई दूज ये प्रकार के देवारी पांच दिन के परब होथे। उज्जर उज्जर घर दुवार, नवा नवा ओनहा कपड़ा, किसम किसम के रंग- रंगोली, दाई लक्ष्मी अउ गोवर्धन महराज के घरों घर डेरा, आगास मा बरत गियास, रिगबिगावत दीया, फटाफट फूटत फटाका, दफड़ा दमउ मा मनमोहक राउत भाई मन के दोहा, गौरा गौरी अउ सुवा गीत, सबके मन ला मोह लेथे। अइसन मा कलमकार कवि मन ये समा ला अपन शब्द मा बाँधे बिना कइसे रही सकथे। आवन कवि मन के गीत कविता मा देवारी तिहार के दर्शन करत, ये पावन परब के आनन्द लेवन–

              कवि मनके कलम ले निकले आखर वो बेरा ला परिभाषित करथे। पड़ोसी देश मन संग छिड़े युध्द के आरो लेवत *जनकवि कोदूराम दलित जी*, देश के रक्षा खातिर बलिदान दें चुके, सैनिक मन ला देवारी तिहार मा अपन श्रद्धा सुमन अर्पित करत लिखथें-

आइस सुग्घर परब सुरहुती अउ देवारी

चल नोनी हम ओरी-ओरी दिया बारबो

जउन सिपाही जी-परान होमिन स्वदेश बर

पहिली उँकरे आज आरती हम उतारबो।


           देवारी तिहार के दिन राउत भाई मन घरो घर जोहार करत, गोधन ऊपर सोहाई बाँधत दफड़ा दमउ मा दोहा पारथे, उही दोहा मा देशभक्ति के रंग घोरे के किलौली करत *जनकवि कोदूराम दलित जी*, राउत भाई मन ले कहिथें–

राउत भइया चलो आज सब्बो झन मिलके

देश जागरण के दोहा हम खूब पारबो

सेना मा जाये खातिर जे राजी होही

आज उही भइया ला हम मन तिलक सारबो।


                       हमर जम्मो परब तिहार सुख समृद्धि के कामना अउ दया मया के संगे संग जिनगी जिये के तको सीख देथे, तभे तो अंजोरी बगरावत दीया ला देख के *डाँ पीसी लाल यादव जी*  लिखथें-

दिया ले सिखो मनखे

पीरित गीत लिखो मनखे

तन-मन ले एक रूप

सिरतोन म दिखो मनखे।।


                  देवारी के सुघराई अउ लइका मन के उछाह उमंग ला अपन शब्द मा बाँधत *मोहन डहरिया जी* लिखथें-

आगे देवारी के दिन रे संगी

गली-गली उजियारा हे

फोरत लइका फटाफट फटाका

सबो के मन उजियारा हे


                  सुरहोत्ती के दिन घरो घर माता लक्ष्मी के पूजा होथे, फेर कुछ मनखे मन ये दिन जुवा चित्ती तको खेलत दिखथें, जे बने बात नोहे, उही ला उजागर करत, मनखे मन ला अइसन बुराई ले दूर रहे बर काहत *राजेश चौहान* जी लिखथें-

जुआ अउ चित्ती के मेटव बुराई

एमा नइये सुन काखरो भलाई

ऐई ए नरक दुवारी

सुन सँगवारी,सुन सँगवारी,आगे देवारी,आगे देवारी


           लगभग हमर सबो परब तिहार खेती किसानी ले जुड़े  हे, खेती बने बने होथे तभे तिहार बार रंग पकड़थे। अंकाल दुकाल तिहार बार के रंग ला फीका कर देथे। देवारी उछाह मंगल के परब आय, तभो अंकाल दुकाल के बेरा मा कभू कभू मुड़ धरके,मन मार बइठे रहे बर पड़ जथे, उही दुख ला देखत, *दानेश्वर शर्मा जी अउ सुशील यदु जी* कहिथें-

कइसे दसेरा अउ कइसे देवारी

रिसागे हम्मर भुइँया महतारी।

कइसे के लइका बर कुरता सियाबो

कइसे फटाका-दनाका चलाबो

*(दानेश्वर शर्मा जी)*


बादर घलो दगा देइस अब,आँखी होगे सुन्ना

लइका मन करहीं करलाई,हो जाही दुख दुन्ना

*(सुशील यदु जी)*

             

        वइसे तो देवारी तिहार के पांचों दिन धूम रथे, तभो शहर मा सुरहोती ला ता गांव मा गोवर्धन पूजा(अन्न कूट या देवारी) ला जोर शोर ले मनाये जाथे, गोधन महिमा बतावत *दुष्यन्त कुमार साहू* जी लिखथें-

देवारी तिहार म गाँव भर, गऊ माता के पूजा घलो करथन

पूजापाठ के बाद खिचड़ी खवाथन, पाछू हमन जूठा खाथन।।

                 मया मीत सुख समृद्धि के रद्दा मा कतको बुराई जेन रीत बनके जबरदस्ती बइठे रथे, तेन बाधक होथे। मनखे मन नेंग जोग हरे कहिके वो बाट मा रेंगत घलो दिख जथे। वइसने एक बुराई आय भरे सुरहोती मा जुवा के फड़ जमना, उही बात ला वरिष्ट कवि अउ छंदकार *अरुण निगम जी* सोरठा छंद मा कहिथें-

सुटुर-सुटुर दिन रेंग, जुगुर-बुगुर दियना जरिस।

आज जुआ के नेंग, जग्गू घर-मा फड़ जमिस।।


                 देवारी तिहार बर हनहुना धान पक के कोठार बियारा मा, दाई लक्ष्मी बनके आय बर लग जथे, उही ला *बरवै छंद मा,आशा देशमुख* जी लिखथें-

सोन बरोबर चमके,खेती खार।

खरही गांजे भरगे ,हे कोठार।

अन धन गउ मा करथे ,लक्ष्मी वास।

ये तिहार मन भरथे, अबड़ मिठास।


             दीया माटी के होके घलो अंजोर बगराथे, मनखे काया घलो माटी आय अउ आखिर मा माटी मा मिलना हे, अइसने आध्यात्म के बाती बरके दया मया के जोत मा, कुमत,इरसा,द्वेष रूपी अँधियारी ला दुरिहावत *अजय अमृतांशु जी* लिखथें-

माटी के दीया बरत,बड़ निक लागत आज।

देवारी आ गे हवय,जुरमिल करबों काज।।

जुरमिल करबों काज, तभे खुशहाली लाबों।

सुखी रहय परिवार,मया ला हम बगराबों।

आवव मिलके आज,कुमत के गड्ढा पाटी।

आघू पाछू ताय, सबों ला होना माटी।


                ज्यादातर तिहार बार मा मनखे मन अपन हैसियत के हिसाब ले जोरा जाँगर करत चीज बस खरीदथें, फेर कतको झन देख देखावा अउ लालच मा घलो आ जथे, भेदभाव के फेर मा पड़ जथे, उही ला देखत *अनुज छत्तीसगढ़िया जी* लिखथें-

करौ दिखावा झन तुम संगी, देवारी के नाम।

चीज अगरहा अब झन लेवव,जेकर नइ हे काम।। 

मया बाँट के देवारी मा, भेदभाव लौ टार।

बारौ दीया ओखर घर मा, जेन हवय लाचार।। 


              पाँच दिन के पावन परब के वर्णन करत *सरसी छंद मा,संगीता वर्मा* जी लिखथें-

धन तेरस मा यम के दियना,जुरमिल सुघर जलाव।

चौदस मा सब बड़े बिहनिया,चंदन माथ लगाव।।

माँ लक्ष्मी के कृपा बरसही, करव आरती गान।

अन्न कूट भाई दूज परब, दिही मया धन धान।


        हमर कोनो भी परब तिहार के संग कोई ना कोई धार्मिक आस्था जुड़े रथे, वइसने देवारी तिहार मा भगवान राम चौदह बछर वनवास काट के अयोध्या लौटे रिहिस, अउ जम्मो नरनारी मन वो रतिहा ला दीया बार के उजराये रिहिस, उही प्रसंग मा *दुर्मिल सवैया के माध्यम ले गुमान प्रसाद साहू* जी कहिथे-

सजगे अँगना घर खोर गली सब मंगल दीप जलावत हे।

बनवास बिता रघुनंदन राम सिया अउ लक्ष्मण आवत हे।

खुश हे जनता नगरी भर के प्रभु के जयकार लगावत हे।

सब देव घलो मन फूल धरे प्रभु के पथ मा बरसावत हे।। 


          रिगबिगावत दीया गली घर खोर के अँधियारी ला दुरिहाथे, मन के अँधियारी ला भगाय बर ज्ञान जे जोत जलाये बर पड़ते,देवारी के परब ला इही भाव मा देखत *विजेन्द्र वर्मा जी, सरसी छंद मा कहिथे*-

परब आय हे सुघर देवारी,बाँटव सब ला प्यार।

परहित सेवा मा अरपन हो,जिनगी के दिन चार।।

जले ज्ञान के दीप सुघर जी,होय जगत उजियार।

येकर लौ मा सबो जघा ले,भागय द्वेष विकार।।


             सुरहोती मा माता लक्ष्मी धन दौलत संग दया मया अउ राग रंग के बरसा करथे। मया दया के पाग सबर दिन लाड़ू कस आपस मा बंधाये रहे, इही कामना करत *कुंडलिया छंद मा मनीराम साहू 'मितान'* जी लिखथें-

सुरहुत्ती मा सुर मिलय, मिलय सबो के राग।

चिटिक कनो छरियाय झन, रहय मया के पाग।

रहय मया के पाग,करी के लाड़ू जइसन।

मिलय खुशी भरमार,नँगत उत्साह भरे मन।

लक्ष्मी आय दुवार, सुरुज सुख लावय उत्ती

धन दौलत शुभ लाभ,दून देवय सुरहुत्ती।


                सुरहोती के दिन जगमगावत रतिहा ला शब्द मा पिरोवत *महेंद्र बघेल जी* लिखथें-

सुरहुत्ती शुभ रात मा, चहुॅंदिश होय ॲंजोर।

रिगबिग ले दीया बरे, गमकय ॲंगना खोर।


          परब तिहार,धर्म-आस्था के संगे संग संस्कार अउ संस्कृति के तको संवाहक होथे। देवारी मा छोटे बड़े नोनी मन कोस्टउँहा लुगरा पहिरे,गोल घेरा बनाके,थपड़ी पीटत, सुवा नाचथें, उही ला *जगदीश "हीरा" साहू* जी अउ *अरुण कुमार निगम जी* लिखथें-

नाचत हे सबझन सुआ, एक जगा जुरियाय।

लुगरा पहिरे लाल के, देखत मन भर जाय।।

देखत मन  भर जाय, सबो झन मिलके गावँय।

सुग्घर सबके राग, ताल मा ताल मिलावँय।।

*(जगदीश हीरा साहू)*


तरि नरि नाना गाँय, नान-नान नोनी मनन। 

सबके मन हरसाँय, सुआ-गीत मा नाच के।।

*(अरुण कुमार निगम)*


             सुवा के संगे संग गांव गांव मा बैगा बैगिन घर अउ गौरा चौरा मा महराज इसर देव के बिहाव संग गौरी गौरा गीत सहज सुने बर मिल जथे उही ला देखत  कुण्डलियाँ छंद मा *बोधनराम निषादराज* जी लिखथें-

गौरी गौरा के परब, सुग्घर  रीत  रिवाज।

परम्परा अद्भुत बने, छत्तीसगढ़ी साज।।

छत्तीसगढ़ी,साज सजे जी,देखव सुग्घर।

शंकर बिलवा,गौरा बनथे,गौरी उज्जर।।

रात-रात भर,बर बिहाव के,सजथे चौरा।

होत बिहनिया,करे विसर्जन,गौरी गौरा।।


              परब तिहार दया मया के संगे संगे मनखे ला जन्मभूमि ले घलो जोड़े के बूता करथे। देवारी तिहार के आरो पाके आन राज मा कमाए खाय बर गय जम्मो मनखे मन अपन गाँव मा सकलाये बर लग जथे, उही ला *परमानंद बृजलाल दावना* जी दोहा पारत कहिथें-

गांव छोड़ परदेस मा ,  बसे रहे सब आय।

अपन मयारू गांव मा अंतस के सुख पाय।।

                  

          आज मनखे के मन तिहार बार मा घलो स्वार्थ के घोड़ा मा चढ़े लाभ हानि के फेर मा पड़े देख देखावा अउ देखमरी ला पोटारे दिखथें, पहली कस निःस्वार्थ मया-दया अउ सुनता दुर्लभ होवत जावत हे, उही बात के चिंता करत *जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"* लिखथें-

अँगसा-सँगसा म दीया,कोन जलाय?

बरपेली   जिया  , कोन    मिलाय?

कोन हटाय, काँदी  -  कचरा    ल?

कोन  पाटे,खोंचका -  डबरा     ल?

मनखे के मन म,हिजगा पारी हमात हे।

देख  देवारी,दिनों - दिन , दुबरात    हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Friday 7 October 2022

आज के रावण

 आज के रावण


बिन डर के मनमर्जी करत हे,आज के रावण।

सीता संग लक्ष्मी सरसती हरत हे,आज के रावण।

अधमी ,स्वार्थी ,लालची अउ बहरूपिया हे,

राम लखन के रूप घलो धरत हे,,आज के रावण।


बहिनी के दुख दरद नइ जाने,आज के रावण।

मंदोदरी हे तभो मेनका लाने,आज के रावण।

न संगी न साथी न लंका न डंका,

तभो तलवार ताने,आज के रावण।


भला बनके भाई के भाग हरे,आज के रावण।

आगी बूगी म घलो नइ जरे,आज के रावण।

ज्ञान गुण के नामोनिशान नही जिनगी म,

घूमय हजारों बुराई धरे ,आज के रावण।


जाने नही एको जप तप ,आज के रावण।

दारू पीये शप शप, आज के रावण।

मुर्गी मटन मछरी ल, पेट म पचावव,

सबे चीज झड़के गप गप,आज के रावण।


हे गली गली घर घर भरे,आज के रावण।

तीर तलवार म नइ मरे,आज के रावण।

बनाये खुद बर झूठ के कायदा कानून,

दिनोदिन तरक्की करे,आज के रावण।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

सार छंद(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



सार छंद(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                  "धरती दाई "


चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।

बंजर होगे खेत खार सब,काय फसल उपजावौं।


सड़क सुते हे लात तान के,महल अटारी ठाढ़े।

मोर नैन  मा निंदिया नइहे,संसो दिनदिन बाढ़े।

नाँव  बुझागे  रुख राई के,धरा  बरत हे बम्बर।

मन भीतर मा मातम छागे,काय करौं आडम्बर।

सिसक सकत नइ हावौं दुख मा,कइसे राग लमावौं।

चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।


मोटर  गाड़ी  कार  बनत हे,उपजै सोना चाँदी।

नवा जमाना जल थल जीतै,पतरी परगे माँदी।

तरिया  परिया  हरिया  हरगे,बरगे मया ठिठोली।

हाँव हाँव अउ खाँव खाँव मा,झरगे गुरतुर बोली।

नव जुग हे अँधियार कुँवा कस,भेड़ी असन झपावौं।

चंदन  माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।


घुरय हवा पानी मा महुरा ,चूरय  धरती दाई।

सुरसा मुँह कस स्वारथ बाढ़य,टूटय भाई भाई।

हाय विधाता भूख मार दे,तन ला कर दे कठवा।

नवा समै ला माथ नवाहूँ,जिनगी भर बन बठवा।

ठिहा ठौर के कहाँ ठिकाना,दरदर भटका खावौं।

चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)



एसो के रावण

 एसो के रावण


एसो के रावण, घुर घुर के मरही।

बरसा बड़ बरसत हे,बुड़ के मरही।


कुँवार महीना घलो,पानीच पानी।

छत्ता ओढ़े बइठे हवै,माता रानी।

जम्मो कोती माते,हावै गैरी।

कोन हितवा हे,कोन हे बैरी।

बन के का,रक्सा अन्तःपुर के मरही।

एसो के रावण, घुर घुर के मरही----।


एसो जादा सजे कहाँ हे।

बाजा गाजा बजे कहाँ हे।

आँखी कान पेट धँस गेहे,

मेंछा घलो मँजे कहाँ हे।

पहली ले एसो,खड़े नइहे।

तलवार धरके,अँड़े नइहे।

कोरबा रायगढ़ अउ रायपुर के मरही।

एसो के रावण,घुर घुर के मरही------।


नइ बाजे डंका।

नइ बाँचे लंका।

लगन तिथि बार,

सब मा हे शंका।

हाल बेहाल हे,गरजे कइसे।

सब तो रावण हे,बरजे कइसे।

पानी अउ अभिमानी देख,चुर चुर के मरही।

एसो के रावण, घुर घुर के मरही-----------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)