कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।
राँध ठेठरी खुरमी भजिया,करे हवै सबझन जोरा।
भादो मास अमावस के दिन,पोरा के परब ह आवै।
बेटी माई मन हा ये दिन,अपन ददा घर सकलावै।
हरियर धनहा डोली नाचै,खेती खार निंदागे हे।
होगे हवै सजोर धान हा,जिया उमंग समागे हे।
हरियर हरियर दिखत हवै बस,धरती दाई के कोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।1
मोर होय पूजा नइ कहिके,नंदी बइला हा रोवै।
भोला तब वरदान ल देवै,नंदी के पूजा होवै।
तब ले नंदी बइला मनके, पूजा होवै पोरा मा।
सजा धजा के भोग चढ़ावै,रोटी पीठा जोरा मा।
पूजा पाठ करे मिल सबझन,सुख पाये झोरा झोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।2
कथे इही दिन द्वापर युग मा,पोलासुर उधम मचाये।
मनखे तनखे बइला भँइसा,सबझन ला बड़ तड़पाये।
किसन कन्हैया हा तब आके,पोलासुर दानव मारे।
गोकुलवासी खुशी मनावै,जय जय सब नाम पुकारे।
पूजा ले पोरा बइला के,भर जावय उना कटोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।3
दूध भराये धान म ये दिन,खेत म नइ कोनो जावै।
परब किसानी के पोरा ये,सबके मनला बड़ भावै।
बइला मनके दँउड़ करावै,सजा धजा के बड़ भारी।
पोरा परब तिहार मनावय,नाचय गावय नर नारी।
खेले खेल कबड्डी खोखो,नारी मन भीर कसोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।4
बाबू मन बइला ले सीखे,महिनत अउ काम किसानी
नोनी मन पोरा जाँता ले,होवय हाँड़ी के रानी।
पूजा पाठ करे बइला के,राखै पोरा मा रोटी।
भरे अन्न धन सबके घर मा,नइ होवै किस्मत खोटी।
परिया मा मिल पोरा पटके,अउ पीटे बड़ ढिंढोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।5
सुख समृद्धि धन धान्य के,मिल सबे मनौती माँगे।
दुःख द्वेष ला दफनावै अउ,मया मीत ला उँच टाँगे।
धरती दाई संग जुड़े के,पोरा देवय संदेशा।
महिनत के फल खच्चित मिलथे,नइ तो होवै अंदेशा।
लइका लोग सियान सबे झन,पोरा के करै अगोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।6
छंदकार-जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
पता-बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)
पोरा(ताटंक छंद)
बने हवै माटी के बइला,माटी के पोरा जाँता।
जुड़े हवै माटी के सँग मा,सब मनखे मनके नाँता।
बने ठेठरी खुरमी भजिया,बरा फरा अउ सोंहारी।
नदिया बइला पोरा पूजै, सजा आरती के थारी।
दूध धान मा भरे इही दिन,कोई ना जावै डोली।
पूजा पाठ करै मिल मनखे,महकै घर अँगना खोली।
कथे इही दिन द्वापर युग मा,कान्हा पोलासुर मारे।
धूम मचे पोला के तब ले,मनमोहन सबला तारे।
भादो मास अमावस पोरा,गाँव शहर मिलके मानै।
हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बेटी माई ला लानै।
चंदन हरदी तेल मिलाके,घर भर मा हाँथा देवै।
धरती दाई अउ गोधन के,आरो सब मिलके लेवै।
पोरा पटके परिया मा सब,खो खो अउ खुडुवा खेलै।
संगी साथी सबो जुरै अउ,दया मया मिलके मेलै।
बइला दौड़ घलो बड़ होवै,गाँव शहर मेला लागै।
पोरा रोटी सबघर पहुँचै,भाग किसानी के जागै।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया",
बाल्को(कोरबा)