Monday 7 September 2020

सवैयासवैया

 किरीट सवैया

सावन मास म पावन मास म, बादर हा जल ढारत हे।
गावय दादुर झींगुर हा,मयुरा घन देख पुकारत हे।
काम बुता गढ़गे बढ़गे, मन आस उमंग ल गारत हे।
ताल अघावय जीव हितावय बादर दुःख के हारत हे।

खैरझिटिया

बड़े अउ छोट म भेद करे तउने घर के न सियान सुहाय।
बँधे रणबाँकुर के कनिहा तलवार बिना न मियान सुहाय।
भले सचमें सच बात कहे नइ तो लबरा के बियान सुहाय।
फरे रुखवा कस जेन नँवे नइ तेन करा न गियान सुहाय।

उना गुण ग्यान रथे जतके ततके अउ रोब जताय उही ह।
धरे इरखा अउ द्वेष रथे मत मीत मया ल मताय उही ह।
सनाय रथे जेन स्वारथ मा सच मा सबला ग सताय उही ह।
धराय रथे धन धान सही नइ आवय काम भताय उही ह।

पास परोसी म खोजे ग ओखी मताये लड़ाई मरोड़े कलाई।
आँखी दिखाये खुशी ला नँगाये चुरा आन कौंरा ग खाये मलाई।
माया सँकेले मया मीत ठेले ग बाढ़े बदी बैर धोखा छलाई।
स्वार्थी बने देख हावै तने आदमी आज के भूल गेहे भलाई।