Thursday 23 June 2022

गीत- बतर के बेरा(रोला छंद)


 

गीत- बतर के बेरा(रोला छंद)


आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे


गरजे बड़ आगास, जिया हा थरथर काँपे।

आँखी अपन उघार, बिजुरिया भुइयाँ नाँपे।

छाय घटा घनघोर, रात कस दिन तक लागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


घाम घरी भर काम, करे के किरिया खाके।

शहर नगर मा पाँव, रखे हस जोड़ी जाके।

बितगे बैरी घाम, सुरुज मा नरमी छागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


ले दे के दिन काट, बाट नैना जोहत हे।

गरमी भर बरसात, असन सरलग बोहत हे।

बरस बरस दिन रात, चार महिना हे जागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


बरसिस नैनन रोज, मातगिस तन मा गैरी।

छुटगिस भूख पियास, रात दिन बनगिस बैरी।

उसलत नइहे गोड़, हाथ हलना बिसरागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


दे देंतेंव उधार, नयन जल मैं बादर ला।

बरसा होतिस रोज, छोड़ते नइ तैं घर ला।

होगिस गर्मी काल, मोर सुख चैन गँवागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


खुश हो चातक मोर, गीत गावत हें मनभर।

बइला नांगर जोर, ददरिया छेड़य हलधर।

अमुवा निमुवा डार, झूलना डोर बँधागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


दँउड़ दँउड़ गरु गाय, चरत हे कांदी हरियर।

नदिया नरवा ताल, पियत हे पानी फरिहर।

काय जवान सियान, लोग लइका बइहागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


कतको कीट पतंग, चलै दल मा मिल-जुल के।

चिरई चोंच उलाय, चरै चारा झुल-झुल के।

खुद के गत ला सोच, बदन तज मन हा भागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


मछरी झींगुर साँप, मेचका मारे ताना।

मैं रोवौं दिन रात, बाकि सब गावैं गाना।

माटी तक बोहाय, मोर जिनगी मस्कागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


होगे हँव हलकान, बितावत गरमी भर ला।

पा बरसा के शोर, शोरियाले तैं घर ला।

गे जे रिहिस बिदेश, कमैया सब जुरियागे।

आजा राजा मोर, बतर के बेरा आगे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday 11 June 2022

गीतिका छंद(जोरा खेती किसानी के)



गीतिका छंद(जोरा खेती किसानी के)


उठ बिहनिया काम करके,सोझियाबों खेत ला।

कोड़  खंती    मेड़  रचबों, पालबों तब पेट ला।

धान  होही  खेत  भीतर,मेड़  मा  राहेर जी।

सोन उपजाबोन मिलके,रोज जाँगर पेर जी।


हे  किसानी  के समय अब,काम ला झट टारबों।

बड़  झरे  काँटा  झिटी हे,गाँज बिन बिन बारबों।

काँद दूबी हे उगे चल,खेत ला चतवारबों।

जोर के गाड़ा म खातू,खार मा डोहारबों।


काम ला करबोंन डँटके,साँझ अउ मुँधियार ले।

संग  मा  रहिबोन  हरदम,हे  मितानी  खार  ले।

रोज बासी पेज धरके,काम करबों खेत मा।

हे बचे बूता अबड़ गा, काम  बइठे चेत मा।


रूख बँभरी के तरी मा,घर असन डेरा हवे।

ए मुड़ा ले ओ मुड़ा बस,मोर बड़ फेरा हवे।

हाथ  धर  रापा कुदारी,मेड़ के मुँह बाँधबों।

आय पानी रझरझा रझ,फेर नांगर फाँदबों।


जेठ हा बुलकत हवे अब,आत हे आसाड़ हा।

हे   चले   गर्रा   गरेरा ,डोलथे  बड़   डार  हा।

अब उले दर्रा सबो हा,भर जही जी खेत के।

झट  सुनाही  ओह  तोतो,हे  अगोरा नेत के।


धान  बोये  बर  नवा मैं,हँव बिसाये टोकरी।

खेत बर बड़ संग धरथे, मोर नान्हें छोकरी।

कोड़हूँ टोकॉन कहिथे,भात खाहूँ मेड़ मा।

तान  चिरई के सुहाथे ,गात रहिथे पेड़ मा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

बरसात (गीतिका छ्न्द)


 बरसात (गीतिका छ्न्द)

घन घटा घनघोर धरके, बूँद बड़ बरसात हे।
नाच के गाके मँयूरा, नीर ला परघात हे।
ताल डबरी एक होगे, काम के हे शुभ लगन।
दिन किसानी के हबरगे, कहि कमैया हें मगन।।

ढोंड़िहा धमना हा भागे, ए मुड़ा ले ओ मुड़ा।
साँप बिच्छू बड़ दिखत हे, डर हवैं चारो मुड़ा।
बड़ चमकथे बड़ गरजथे, देख ले आगास ला।
धर तभो नाँगर किसनहा, खेत बोंथे आस ला।

घूमथे बड़ गोल लइका, नाचथें बौछार मा।
हाथ मा चिखला उठाके, पार बाँधे धार मा।
जब गिरे पानी रदारद, नइ सुनें तब बात ला।
नाच गाके दिन बिताथें, देख के बरसात ला।

लोग लइका जब सनावैं, धोयँ तब ऍड़ी गजब।
नाँदिया बइला चलावैं, चढ़ मचें गेड़ी गजब।
छड़ गड़उला खेल खेलैं, छोड़ गिल्ली भाँवरा।
लीम आमा बर लगावैं, अउ लगावैं आँवरा।।

ताल डबरी भीतरी ले, बोलथे टर मेचका।
ढेंखरा उप्पर मा चढ़के, डोलथे बड़ टेटका।
खोंधरा झाला उझरगे, का करे अब मेकरा।
टाँग के डाढ़ा चलत हें, चाब देथें केकरा।।

पार मा मछरी चढ़े तब, खाय बिनबिन कोकड़ा।
रात दिन खेलैं गरी मिल, छोकरा अउ डोकरा।
जब करे झक्कर झड़ी, सब खाय होरा भूँज के।
पाँख खग बड़ फड़फड़ाये, मन लुभाये गूँज के।।

खेत मा डँटगे कमैया, छोड़ के घर खोर ला।
लोर गेहे बउग बत्तर, देख के अंजोर ला।
फुरफुँदी फाँफा उड़े बड़, अउ उड़ें चमगेदरी।
सब कहैं कर जोर के घन, झन सताबे ए दरी।

होय परसानी गजब जब, रझरझा पानी गिरे।
काखरो घर ओदरे ता, काखरो छानी गिरे।
सज धरा सब ला लुभावै, रूप हरिहर रंग मा।
गीत गावै नित कमैया, काम बूता संग मा।

ओढ़ना कपड़ा महकथे, नइ सुखय बरसात मा।
झूमथें भिनभिन अबड़, माछी मछड़ दिन रात मा।
मतलहा पानी रथे, बोरिंग कुवाँ नद ताल के।
जर घरो घर मा हबरथे, ये समै हर साल के।

चूंहथे छानी अबड़, माते रथे घर सीड़ मा।
जोड़ के मूड़ी पुछी कीरा, चलैं सब भीड़ मा।
देख के कीरा कई, बड़ घिनघिनासी लागथे।
नींद घुघवा के परे नइ, रात भर नित जागथे।

नीर मोती के असन, घन रोज बरसाते हवे।
मन हरेली तीज पोरा, मा मगन माते हवे।
धान कोदो जोंधरी, कपसा तिली हे खेत मा।
लहलहावै पा पवन, छप जाय फोटू चेत मा।

बूँद तक बरसै नही, कतको बछर आसाढ़ मा।
ता कभू घर खेत पुलिया, तक बहे बड़ बाढ़ मा।
बाढ़ अउ सूखा पड़े ता, झट मरे मन आस हा।
चाल के पानी गिरे तब, भाय मन चौमास हा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

मन(जयकारी छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 मन(जयकारी छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


जब तक मन मा हवै उमंग, तब तक हे जिनगी मा रंग।

मर जावै जब मन के आस, तब हो जावैं सबे निरास।


हबरे तब डर जर अउ दुक्ख, भागे नींद चैन अउ भुक्ख।

मन के जब हो जावै हार, नइ भावै तब घर संसार।


करे काट नइ अमरित धार, सूखय दया मया के नार।

होय ह्रदय के धड़कन  तेज, नींद घलो नइ देवै सेज।


सच अउ झूठ परख नइ पाय, कतको गिनहा कदम उठाय।

कतको खुद हो जावय राख, कतको करे दुसर ला खाख।


टूटय जब मनके अरमान, तब गड़ जावै अंतस बान।

बोली बयना बीख समान, अंतस मन ला देवै चान।


कतको ला नइ आवै लाज, करे काज बन धोखाबाज।

धोखा खाके जी घबराय, तभो हताशा मन मा छाय।


रखना चाही जिया कठोर, मार सके झन डर दुख जोर।

करना चाही कारज नाँप, लोटे झन अंतस मा साँप।।


मिले बखाना अउ ना श्राप, यहू बिगाड़े मन के ग्राफ।

करौ कभू झन दगा अनीत, दुवा कमावव मिलही जीत।


भरे दवा मा तनके घाव, मन बर चाही बढ़िया भाव।

आशा मया दया विश्वास, लावय जीवन मा उल्लास।


तन ले जादा मन हे रोठ, तेखर करथे दुनिया गोठ।

ओखर कभू होय नइ हार, मन दरिया अउ मन पतवार।


जेखर मन मा मातम छाय, तेखर जिनगी मा हे हाय।

छोट छोट दुख मा घबराय, हो निराश बस माथ ठठाय।


तन के थेभा मन हा ताय, मन हा सुख के दीप जलाय।

मन जिनगी के आवय आस, बुझ जावै ता जिनगी नास।


अलहन के पथ हवै हजार, सुख सत के दरवाजा चार।

जिंहा होय सुख के बौछार, उँहा भिंगावौ तन मन यार।


दया मया सत राखव मीत, हार भागही होही जीत।

जीते बर जिनगी के जंग, हवै जरूरी आस उमंग।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Friday 10 June 2022

गीत-नकली(सार छंद)

 गीत-नकली(सार छंद)


नवा जमाना नकली कोती, नवगे हे सँगवारी।

हँसी खुशी आँसू हे नकली, नकली रिस्तादारी।


नकली चाँद सुरुज बनगे हे, नकली घर फर बिरवा।

घुरगे मनखे के जिनगी मा,नकली जिनिस ह निरवा।

मनखे मनके नकली सँग मा, पटत हवै बड़ तारी।

नवा जमाना नकली कोती, नवगे हे सँगवारी।।


असली के असलियत उघारे, परखे सिर पग पाँखी।

नकली चीज बिसाये हँसके, बउरे मूंदें आँखी।।

सस्ती नकली चीज बिकत हे, असली महँगा भारी।

नवा जमाना नकली कोती, नवगे हे सँगवारी।।


बुढ़वा के हे बाल घमाघम, दाँत हवै खिसखिस ले।

देखे भर मा बढ़िया लागे, काम बुता बर फिसले।।

कोन कहे नकली ला नकली, सबझन हवै पुजारी।

नवा जमाना नकली कोती, नवगे हे सँगवारी।।


नकली ओढ़त नकली पहिरत, मनखे नकली होगे।

अन्तस् भीतर के सत सुम्मत, दया मया तक सोगे।

बैर बदी लत होवय नकली, होवय असली यारी।

नवा जमाना नकली कोती, नवगे हे सँगवारी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


Wednesday 1 June 2022

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी

 अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


तैं सरग ले सुघ्घर,अउ मैं नरक के द्वार।

तै ठाहिल पटपर भाँठा,मैं चिखला कोठार।

तैं उर्वर बाहरा,अउ मैं बंजर भर्री।

मोर नैन झिमिर झामर,तोर नैन कर्री।

तोर जिनगी ताजमहल कस उज्जर,

अउ मोर जिनगी, करिया जेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,

तोर अउ मोर मेल गोरी।


छप्पन भोग माढ़े हवै,तोर चारो कोती।

चाबत हौं मैं नानकुन,सुख्खा जरहा रोटी।

खीर मेवा पकवान कस,तैं करे भूख के नास।

मैं हड़िया मा लटके हौं, बने चिबरी भात।

तैं हवा संग उड़ागेस,

अउ मैं बढ़त हौं जिनगी ल ढँकेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


आगर इत्तर माहुर मोहर,सेंट के भरमार के।

चंपा चमेली मोगरा कस,महके महार महार तैं।

तन धोवा निरमल हो जाथे, वो गंगा के धार तैं।

मोर झन पूछ ठिकाना,मैं खजवइय्या तेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।


तैं कहाँ सरग के परी,उड़े अगास मा पंख लगाके।

मैं रेंगत हौं उलंड-घोलंड के,चिखला पानी मा सनाके।

संगमरमर के तैं ईमारत,तोर नाम जमाना मा छागे।

ओदरहा मोर ठौर ठिहा मा,नइ आये कोनो भगाके।

तै छाये क्रिकेट हाँकी कस,

मैं लुकाछुपउल के खेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।।


तैं कहाँ मथुरा अउ काँसी, मैं हरौं फाँसी के दासी।

तिहीं खींचे अपन करम के रेखा,मोर हवै बिगड़हा राशि।

चंपा चमेली कमल कुमुदिनी,गोंदा कस तैं गमके।

इती उती उड़ात हौं, मैं फूल बने बेसरम के।

तै कम्प्यूटर के सीपीयू,मैं सस्तहा सेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी


तैं कहाँ पिंकी अउ रिंकी,मैं बुधारू मंगलू।

तैं जनम के मालामाल,मैं जनमजात कंगलू।

मैं हँसिया अउ तुतारी,तैं कहाँ बारूद के गोला।

नवा डिजाइन के बैग तैं, अउ मैं चिरहा झोला।

मैं मरहा मेचका,अउ तैं मछरी व्हेल गोरी।

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


बहुत पहिली(2005-06) के रचना

छत्तीसगढ़ के भाजी-खैरझिटिया

 छत्तीसगढ़ के भाजी-खैरझिटिया


हमर राज के साग मा,भाजी पावय मान।

आगर दू कोरी हवै,सुनव लगाके कान।।


चना चनौरी चौलई,चेंच चरोटा लाल।

चुनचुनिया बर्रे कुसुम,खाव उँचाके भाल।


मुसकेनी मेथी गुमी,मुरई मास्टर प्याज।

तिनपनिया अउ लहसुवा,करे हाट मा राज।


खाव खोटनी खेड़हा, खरतरिहा बन जाव।

पटवा पालक ला झड़क,तन के रोग भगाव।


कुल्थी कांदा करमता,कजरा गोल उरीद।

कुरमा कुसमी कोचई,के हे कई मुरीद।।


झुरगा गोभी लाखड़ी,भथवा गुड़डू  टोर।

राँधव भूँज बखार के,महकै घर अउ खोर।


पोई अउ सरसो मिले,मिले अमारी साग।

मछेरिया बोहार के,बने बनाये भाग।।।


करू करेला के घलो,भाजी होथे खास।

रोपा पहुना बरबटी,आथे सबला रास।।


मखना मुनगा मा मिले,विटामीन भरपूर।

कोइलार लुनिया करे,कमजोरी ला दूर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

कुकुभ छंद(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कुकुभ छंद(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तैं सपना मा जबजब आथस,झटले रतिहा कट जाथे।

तोर मया ला पाके मोरे,संसो फिकर ह हट जाथे।।


मुचमुच मुसकी मया बढ़ाथे,तोर रेंगना मन भाथे।

देखे बिना जिया नइ माने,सुरता रहिरहि के आथे।

मोर मया ला देख जलइया,रद्दा चलत अपट जाथे।

तोर मया ला पाके मोरे,संसो फिकर ह हट जाथे।।


बोल कोयली कस गुरतुर हे,भर देथे मन मा आसा।

आघू पाछू होवत रहिथौं,तोर मया जइसे लासा।।

लहरावय जब तोर केंस हा,कारी बदरी छँट जाथे।

तोर मया ला पाके मोरे,संसो फिकर ह हट जाथे।।


खोपा पारे पाटी बाँधे, पहिरे लुगरा लाली के।

कनिहा लचकावत जब चलथस,झरथे फुलवा डाली के।

हमर दुनो के नैन मिले ता, सुख छाथे दुख घट जाथे।

तोर मया ला पाके मोरे,संसो फिकर ह हट जाथे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)