Thursday 25 January 2024

बसंत पंचमी, मां शारदे पूजन

 वर दे माँ शारदे (सरसी छन्द)


दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।

गुण गियान यश धन बल बाढ़ै,बाढ़ै झन अभिमान।


तोर कृपा नित होवत राहय, होय कलम अउ धार।

बने बात ला पढ़ लिख के मैं, बढ़ा सकौं संस्कार।

मरहम बने कलम हा मोरे, बने कभू झन बान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


जेन बुराई ला लिख देवँव, ते हो जावय दूर।

नाम निशान रहे झन दुख के, सुख छाये भरपूर।

आशा अउ विस्वास जगावँव, छेड़ँव गुरतुर तान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


मोर लेखनी मया बढ़ावै, पीरा के गल रेत।

झगड़ा झंझट अधम करइया, पढ़के होय सचेत।

कलम चले निर्माण करे बर, लाये नवा बिहान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


अपन लेखनी के दम मा मैं, जोड़ सकौं संसार।

इरखा द्वेष दरद दुरिहाके, टार सकौं अँधियार।

जिया लमाके पढ़ै सबो झन, सुनै लगाके कान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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सुभगति छंद-शारद मां


दे ज्ञान माँ।वरदान माँ।

भव तारदे।माँ शारदे।


आनन्द दे।सुर छंद दे।

गुण ज्ञान दे।सम्मान दे।


सुख गीत दे।सत मीत दे।

सुरतान दे।अरमान दे।


दुख क्लेश ला।लत द्वेश ला।

दुरिहा भगा।सतगुण जगा।।


जोती जला।दे गुण कला।

माथा नवा।माँगौ दवा।


चढ़ हंस मा।सुभ अंस मा।

आ द्वार मा।भुज चार मा।


दुरिहा बला।अवगुण जला।

बिगड़ी बना।सतगुण जना।


वीणा सुना।मैं हँव उना।

पैंया परौं।अरजी करौं।


सद रीत दे।अउ जीत दे।

सत वार दे।माँ शारदे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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दोहा गीत- माँ शारदे


जयजय जय माँ शारदे,पाँव परत हँव तोर।

तोर शरण मा आय हौं, आरो लेबे मोर।।


तैं जननी सुर साज के, तिही ज्ञान आधार।

तोर कृपा के सध जथे, भव बाधा संसार।।

रखबे मोला बाँध के, अँचरा के माँ कोर।

जयजय जय माँ शारदे,पाँव परत हँव तोर।


नइ चाही माँ धन रतन, नइ चाही रँग रूप।

मन भीतर अज्ञान के, रहय न एको कूप।

वीणा के झंकार मा, गुँजै गली घर खोर।

जयजय जय माँ शारदे,पाँव परत हँव तोर।


झरत रहय माँ बोल मा, सबदिन सुर संगीत।

प्रेम देख मैं हार जँव, अहंकार लौं जीत।

दै सुकून नित सांझ हा, आस जगावै भोर।

जयजय जय माँ शारदे,पाँव परत हँव तोर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


जय माँ शारदे, बसन्त पंचमी की सादर बधाइयाँसगार्

Monday 22 January 2024

छंद सरगम

 जय गणेश


पहली सुमिरन तोर करत हँव, हे गौरी के लाला।

रबे सहाई मोर कलम के, बाँटत रहँव उजाला।।


कहूँ भगत के सदन बदन मा, दुख झन डेरा डारे।

बढ़े बुद्धि बल धन दोगानी, डर जर आफत हारे।।

सिरजे सत सुम्मत के कुरिया, उझरे इरसा झाला।

पहली सुमिरन तोर करत हँव, हे गौरी के लाला।


सबे गाँव घर गली खोर मा, आथस बनके संगी।

मन के भाव भजन ला पढ़के, देथस सुख सतरंगी।।

तोर रूप रँग सब ला भाथे, मुसक सवारी वाला।

पहली सुमिरन तोर करत हँव, हे गौरी के लाला।


मन मंदिर मा रहे बसेरा, तोर सदा हे देवा।

मन के भाव उड़ेल जगत के, करत रहँव नित सेवा।

आखर बने बने बर डोंगा, अउ बइरी बर भाला।

पहली सुमिरन तोर करत हँव, हे गौरी के लाला।



मूरत राम नाम के


मन मन्दिर मा राम नाम के, मूरत तैं बइठाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


राम नाम के माला जपके, शबरी दाई तरगे।

राम सिया के चरण पखारे, केंवट के दुख झरगे।

बन बजरंगबली कस सेवक, जघा चरण मा पाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।।


राम नाम के जाप करे ले, सुख समृद्धि सत आथे।

लोहा हा सोना हो जाथे, जहर अमृत बन जाथे।

जिहाँ राम हे तिहाँ कभू भी, दुख नइ डेरा डाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


एती ओती चारो कोती, प्रभु श्री राम समाये।

सुर नर मुनि खग गुनी गियानी, जड़ चेतन गुण गाये।

ये मउका नइ मिले दुबारा, जीवन सफल बनाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।



तुलसी तोर रमायण


जग बर अमरित पानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


शब्द शब्द मा राम रमे हे, शब्द शब्द मा सीता।

गूढ़ ग्यान गुण गोठ गँजाये, चिटिको नइहे रीता।

सत सुख शांति कहानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सब दिन बरसे कृपा राम के, दरद दुःख डर भागे।

राम नाम के महिमा भारी, भाग भगत के जागे।।

धर्म ध्वजा धन धानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सहज तारथे भवसागर ले, ये डोंगा कलजुग के।

दूर भगाथे अँधियारी ला, सुरुज सहीं नित उगके।

बेघर के छत छानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।


प्रश्न घलो कमती पड़ जाही, उत्तर अतिक भरे हे।

अधम अनाड़ी गुणी गियानी, सबके दुःख हरे हे।

मीठ कलिंदर चानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।



भोले बाबा 


डोल डोल के डारा पाना, भोला के गुण गाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें ।


सावन महिना भर भगतन मन, नहा खोर बिहना ले।

शिव मंदिर मा पान फूल धर, दिखथें डेरा डाले।।

चाँउर धतुरा चना दार सँग, नरियर दुबी चढ़ाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें ।


बम बम बोलत सबे चढ़ाथें, लोटा लोटा पानी।

मन के भाव भजन ला देखत, फल देथे शिव दानी।।

काँवरिया मन काँवर बोहे, बम बम रटन लगाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें।


चारों मूड़ा भक्ति भाव के ,बोहत रहिथे धारा।

शिव भोला के जयकारा मा, गुँजे गाँव घर पारा।।

रहि उपास लइका सियान सब, भोला के हो जाथें।

शिव भोला के पबरित महिना, सावन जब जब आथें ।



रामराज


राम राम कहि हाथ जोड़हीं, पाछू छुरी चलाही।

बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।


बचन ददा दाई के बिरथा, बिरथा गुरु के बानी।

अपने मन के काम करैं सब, होरा भूँजैं छानी।।

भाई भाई लड़त मरत हें, काय जमाना आगे।

स्वारथ के चक्कर फँसके, अपने अपन खिरागे।।

काय बने अउ का हे गिनहा, तेला समझ न पाही।

बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।


अहंकार मा सबे चूर हें, जप तप सत नइ जाने।

धन दौलत ला अपने माने, मनखें मन ला आने।।

अपन ठउर के रचना खातिर, पर के नेंव गिरायें।

रक्सा कस सब मनखें होगे, जीव मार के खायें।।

छोड़ सुमत अउ सत के रद्दा, झगरा रोज मताही।

बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।


कोन तियागे राज सिंहासन, कोन बने बनवासी।

पर के दुःख क्लेश हरे बर, कोन बिगाड़े रासी।।

बानर भालू खग के सँग मा, कोन ह बदे मितानी।

खुदे पियासे रहिके कउने, पर ला देवैं पानी।।

पर के बाँटा घलो नँगा के, तीन तेल के खाही।

बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।


बिन स्वारथ के सेवा करही, कोन बने बजरंगी।

अंगद कस अब दूत मिले नइ, न सुग्रीव कस संगी।।

भेदभाव ला कोन तोड़ही, कोन ह हरही पीरा।

कोन बुराई सँग मा लड़ही, तज के घरबन हीरा।।

हाँहाकार मचाही रावण, कुंभकरन अँटियाही।

बता भला अइसन मा कइसे, राम राज हा आही।।


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हरेली


खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा, बढ़े मया बरपेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।।


रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी, फुगड़ी खो खो माते।

खुडुवा खेलैं फेकैं नरियर, होय मया के बाते।।

भिरभिर भिरभिर भागत दिखथें, बैंहा जोर सहेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।।


सावन मास अमावस के दिन, बइगा मंतर मारे।

नीम डार मुँहटा मा खोंचे, दया मया सुख गारे।।

घंटी बाजै शंख सुनावय, कुटिया लगे हवेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।।


चन्दन बन्दन पान सुपारी, धरके माई पीला।

रापा गैंती नाँगर पूजँय, भोग लगाके चीला।।

हवै थाल मा खीर कलेवा, भरभर दूध कसेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।।


गहूँ पिसान ल सान मिलाये, नून अरंडी पाना।

लोंदी खाये बइला बछरू, राउत पाये दाना।।

लाल चिरैंया सेत मोंगरा, महकै फूल  चमेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।


बेर बियासी के फदके हे, रँग मा हवै किसानी।

भोले बाबा आस पुरावै, बरसै बढ़िया पानी।।

धान पान सब नाँचे मनभर, पवन करै अटखेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।।



कमर्छठ


खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे, फोड़े दाई लाई।

चना गहूँ राहेर भुँजाये, झड़के बहिनी भाई।।


भादो मास कमर्छठ होवय, छठमी तिथि अँधियारी।

लीपे पोते घर अँगना हे, चुक ले दिखे दुवारी।।

बड़े बिहनिया नहा खोर के, दतुन घँसे मउहा के।

हलषष्ठी के करे सुमरनी, सब कोनो जुरियाके।।

घर के बाहिर सगरी कोड़े, बइठाये छठ माई।

खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे, फोड़े दाई लाई।।


सगरी के मिल पूजा करके, गिनगिन डारें पानी।

पड़ड़ी काँसी पान फूल धर, मुस्काये छठ रानी।।

चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा, हे छै जात खिलोना।

हूम धूप बन्दन चंदन मा, महकै सगरी कोना।।

द्वापर युग मा पहिली पूजा, करिन देवकी दाई।

खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे, फोड़े दाई लाई।।


पसहर चाँउर भात बने हे, बने हवै छै भाजी।

लाई नरियर के परसादी, लइका मनबर खाजी।।

लइका मन के रक्षा खातिर, हे उपास महतारी।

छै ठन कहिनी बैठ सुने सब, करे नेंग बड़ भारी।।

रानी उतरा नेंग जोग कर, लइका के सुख पाई।

खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे, फोड़े दाई लाई।।


खेत खार मा नइ तो रेंगे, गाय दूध नइ पीये।

महतारी के मया गजब हे, लइका मन बर जीये।।

भैंस दूध के भोग लगाये, भरभर मउहा दोना।

करे दया हलषष्ठी दाई, टारे दुख जर टोना।।

पिंवरीं पोती देय पीठ मा, अँचरा बीच छुपाई।

खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे, फोड़े दाई लाई।।


चिरई बिलई कुकुर अघाये, सब ला भोग लगाये।

महतारी के दान धरम ले, सुख समृद्धि सत आये।।

घँसे पीठ मा महतारी मन, पोती कइथे जेला।

रक्षा कवच बने लइका के, भागे दुःख झमेला।।

सुख माँगै लइका बर दाई, ममता मया लुटाई।

खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे, फोड़े दाई लाई।।



मरना हे तीजा मा


लइका लोग ल धरके गय हे, मइके मोर सुवारी।

खुदे बनाये अउ खाये के, अब आ गय हे पारी।।


कभू भात चिबरी हो जावै, कभू होय बड़ गिल्ला।

बर्तन भँवड़ा झाड़ू पोछा, हालत होगे ढिल्ला।।

एक बेर के भात साग हा, चलथे बिहना संझा।

मिरी मसाला नून मिले नइ, मति हा जाथे कंझा।।

दिखै खोर घर अँगना रदखद, रदखद हाँड़ी बारी।

खुदे बनाये अउ खाये के, अब आ गय हे पारी।।


सुते उठे के समय बिगड़गे, घर बड़ लागै सुन्ना।

नवा पेंट कुर्था मइलागे, पहिरँव ओन्हा जुन्ना।।

कतको कन कपड़ा कुढ़वागे, मूड़ी देख पिरावै।

ताजा पानी ताजा खाना, नोहर हो गय हावै।।

कान सुने बर तरसत हावै, लइकन के किलकारी।

खुदे बनाये अउ खाये के, अब आ गय हे पारी।।


खाय पिये बर कहिही कहिके, ताकँव मुँह साथी के।

चना चबेना मा अब कइसे, पेट भरे हाथी के।।

उम्मर मोर बढ़ावत हावै, मइके मा वो जाके।

राखे तीजा के उपास हे, करू करेला खाके।।

चारे दिन मा चितियागे हँव, चले जिया मा आरी।

खुदे बनाये अउ खाये के, अब आ गय हे पारी।।



मोला किसन बनादे 


मोर पाँख ला मूड़ सजादे, काजर गाल लगादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई, मोला किसन बनादे।।


बाँध कमर मा करिया करधन, बाँध मूड़ मा पागा।

हाथ अरो दे करिया चूड़ा, बाँध गला मा धागा।।

चंदन टीका माथ लगादे, पहिरा माला मुंदी।

फूल मोंगरा के गजरा ला, मोर बाँध दे चुंदी।।

हार गला बर लान बनादे, दसमत लाली लाली।

घींव लेवना चाँट चाँट के, खाहूँ थाली थाली।।

मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ, गुरतुर लोरी गादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई, मोला किसन बनादे।।


दूध दहीं ला पीयत जाहूँ, बंसी मीठ बजाहूँ।

तेंदू लउठी हाथ थमादे, गाय चराके आहूँ।।

महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    

गोकुल कस सब गाँव गली हे, ग्वाल बाल घर भीतर।।

मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी।

बँसुरी धरे रेंगहूँ मैंहा, भइया नाँगर डाँड़ी।।

कनिहा मा कँस लाली गमछा, पीताम्बर ओढ़ादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई, मोला किसन बनादे।।


गोप गुवालीन संग खेलहूँ, मीत मितान बनाहूँ।

संसो झन करबे वो दाई, खेल कूद घर आहूँ।।

पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई, किसन बरन तैं चोला।

रही रही के कही सबो झन, कान्हा करिया मोला।।

पाँव ददा दाई के परहूँ, मिलही मोला मेवा।

बइरी मन ला मार भगाहूँ, करहूँ सबके सेवा।।

दया मया ला बाँटत फिरहूँ, दाई आस पुरादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई, मोला किसन बनादे।।



पुन्नी के चंदा


पुन्नी रात म चमचम चमकत, नाँचत हावै चंदा।

अँधियारी रतिहा ला छपछप, काँचत हावै चंदा।


बरै चँदैनी सँग में रिगबिग, सबके मन ला भाये।

घटे बढ़े नित पाख पाख में, एक्कम दूज कहाये।।

कभू चौथ के कभू ईद के, बनके जिया लुभाये।

शरद पाख सज सोला कला म, अमृत बूंद बरसाये।।

सबके मन में दया मया ला, बाँचत हावै चंदा।

पुन्नी रात म चमचम चमकत, नाँचत हावै चंदा।।


बिन चंदा के हवै अधूरा, लइका मन के लोरी।

चकवा रटन लगावत हावै, चंदा जान चकोरी।।

कोनो मया म करे ठिठोली, चाँद म महल बनाहूँ।

कहे पिया ला कतको झन मन, चाँद तोड़ के लाहूँ।।

बिरह म रोवत बिरही ला अउ, टाँचत हावै  चंदा।

पुन्नी रात म चमचम चमकत, नाँचत हावै चंदा।।


सबे तीर उजियारा हावै, नइहे दुःख उदासी।

चिक्कन चिक्कन घर दुवार हे, शुभ हे सबके रासी।।

गीता रामायण गूँजत हे, कविता गीत सुनाये।

खीर चुरत हे चौक चौक में, मिलजुल भोग लगाये।।

धरम करम ला मनखे मनके, जाँचत हावै चंदा।

पुन्नी रात म चमचम चमकत, नाँचत हावै चंदा।।



तोर रूप दगहा रे चंदा


तोर रूप दगहा हे चंदा, तभो लुभाये सब ला।

मोर रूप हा चमचम चमकै, तबले तड़पौ अबला।


तोर कला ले मोर कला हा, हावै कतको जादा।

तभो मोर परदेशी बलमा, कहाँ निभाइस वादा।।

चकवा रटन लगाये तोरे, मोर पिया दुरिहागे।

करधन ककनी बिछिया कँगना, रद्दा देख खियागे।।

मोर रुदन सुन सुर ले भटके, बेंजो पेटी तबला।

तोर रूप दगहा हे चंदा, तभो लुभाये सब ला।।


पाख अँजोरी अउ अँधियारी, घटथस बढ़थस तैंहा।

मया जिया मा हावै आगर, करौं बता का मैंहा।

कहाँ हिरक के देखे तभ्भो, मोर सजन अलबेला।

धीर धरे हँव आही कहिके, लाद जिया मा ढेला।

रोवै नैना निसदिन मोरे, भला गिनावौ कब ला।

तोर रूप दगहा हे चंदा, तभो लुभाये सब ला।।


पथरा गय हे आँखी मोरे, निंदिया घलो गँवागे।

मोर रात दिन एक बरोबर, रद्दा जोहँव जागे।।

तोर संग चमके रे चंदा, कतको अकन चँदैनी।

मोर मया के फुलुवा झरगे, पइधे माहुर मैनी।।

जिया भीतरी बार दीयना, रोज मनाथँव रब ला।

तोर रूप दगहा हे चंदा, तभो लुभाये सबला।।


अबक तबक नित आही कहिके, मन ला धीर धरावौ।

आजा राजा आजा राजा, कहिके रटन लगावौ।।

पवन पेड़ पानी पंछी सब, रहिरहि के बिजराये।

कइसे करौं बता रे चंदा, पिया लहुट नइ आये।।

काड़ी कस काया हा होगे, कपड़ा होगे झबला।

तोर रूप दगहा हे चंदा,  तभो लुभाये सब ला।।



धनतेरस


धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।

धनतेरस मा दीप जलाके, करत हवौं पहुनाई।।


चमकै चमचम ठिहा ठौर हा, दमकै बखरी बारी।

धन तेरस के दीया के सँग, आगे हे देवारी।।

भोग लगावौं फूल हार अउ , नरियर खीर मिठाई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।।


रखे सबे के सेहत बढ़िया , धन्वंतरि देवा हा।

करै कुबेर कृपा सब उप्पर, बरसै धन मेवा हा।।

सुख समृद्धि देबे सब ला, धन वैभव बरसाई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।।


देवारी कस सब दिन लागै, सबदिन बीतै सुख मा।

मनखे बन जिनगी जे जीये , दबे रहै झन दुख मा।।

काय जीव का मनखे तनखे, दे सुख सब ला माई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।।



बधाई नवा बछर के


हवे बधाई नवा बछर के, गाड़ा गाड़ा तोला।

सुख पा राज करे जिनगी भर, गदगद होके चोला।।


सबे खूँट मा रहे अँजोरी, अँधियारी झन छाये।

नवा बछर हा अपन संग मा, नवा खुशी धर आये।।

बने चीज नित नयन निहारे, कान सुने सत बानी।

झरे फूल कस हाँसी मुख ले, जुगजुग रहे जवानी।।

जल थल का आगास नाप ले, चढ़के उड़न खटोला।

हवे बधाई नवा बछर के, गाड़ा गाड़ा तोला।।


धन बल बाढ़े दिन दिन भारी, घर लागे फुलवारी।

खेत खार मा सोना उपजे,बसेमी गोभी बारी।।

बढ़े बाँस कस बिता बिता बड़, यश जश मान पुछारी।

का मनखे का जीव जिनावर, पटे सबो सँग तारी।।

राम रमैया कृष्ण कन्हैया,करे कृपा शिव भोला।

हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला।।


बरे बैर नव जुग मा बम्बर, बाढ़े भाई चारा।

ऊँच नीच के भेद सिराये, खाये झारा झारा।।

दया मया के होय बसेरा, बोहय गंगा धारा।

पुरवा गीत सुनावै सबला, नाचै आरा पारा।।

भाग बरे पुन्नी कस चंदा, धरे कला गुण सोला।

हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला।।



नवा बछर मा नवा आस


नवा बछर मा नवा आस धर, नवा करे बर पड़ही।

द्वेष दरद दुख पीरा हरही, देश राज तब बढ़ही।।


साधे खातिर अटके बूता, डँटके महिनत चाही।

भूलचूक ला ध्यान देय मा, डहर सुगम हो जाही।।

चलना पड़ही नवा पाथ मा, सबके अँगरी धरके।

उजियारा फैलाना पड़ही, अँधियारी मा बरके।।

गाँजे पड़ही सबला मिलके, दया मया के खरही।

द्वेष दरद दुख पीरा हरही, देश राज तब बड़ही।।


जुन्ना पाना डारा झर्रा, पेड़ नवा हो जाथे।

सुरुज नरायण घलो रोज के, नवा किरण बगराथे।।

रतिहा चाँद सितारा मिलजुल, रिगबिग रिगबिग बरथे।

पुरवा पानी अपन काम ला, सुतत उठत नित करथे।।

मानुष मन सब अपन मुठा मा, सत सुम्मत ला धरही।

द्वेष दरद दुख पीरा हरही, देश राज तब बड़ही।।


गुरतुर बोली जियरा जोड़े, काँटे चाकू छूरी।

घर बन सँग मा देश राज के, संसो हवै जरूरी।।

जीव जानवर पेड़ पकृति सँग, बँचही पुरवा पानी।

पर्यावरण ह बढ़िया रइही, तभे रही जिनगानी।।

दया मया मा काया रचही, गुण अउ ज्ञान बगरही।

द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।।




छेरिकछेरा


दान अन्न धन के सब करलव, सुनके छेरिकछेरा।

जतके देहू ततके बढ़ही, धन दौलत शुभ बेरा।।


पूस पाख मा पुन्नी के दिन, बगरै नवा अँजोरी।

परब छेरछेरा हा आँटै, मया पिरित के डोरी।।

लइका लोग सियान सबे मिल, नाचै गाना गायें।।

धिनधिन धिनधिन ढोलक बाजे, डंडा ताल सुनायें।

थपड़ी कुहकी झांझ मँजीरा, सुनत टरै दुख घेरा।

दान अन्न धन के सब करलव, सुनके छेरिकछेरा।।


दया मया के सागर लहरै, नाचै जीवन नैया।

गोंदा गमकै घर अँगना मा, गाय गीत पुर्वैया।।

करे जाड़ जोरा जाये के, मांघ नेवता पाये।

बर पीपर हा पात झराये, आमा हा मउराये।।

सेमी गोभी भाजी निकले, झूलै मुनगा केरा।।

दान अन्न धन के सब करलव, सुनके छेरिकछेरा।


मीत मया मन भीतर घोरत, दान देव बन दाता।

भरे अन्न धन मा कोठी ला, सबदिन धरती माता।।

रांध कलेवा खाव बाँट के, रिता रहे झन थारी।

झारव इरसा द्वेष बैर ला, टारव मिल अँधियारी।।

सइमो सइमो करै खोर हा, सइमो सइमो डेरा।

दान अन्न धन के सब करलव, सुनके छेरिकछेरा।।



छेरछेरा तिहार


कूद कूद के कुहकी पारे, नाचे झूमे गाये।

चारो कोती छेरिक छेरा, सुघ्घर गीत सुनाये।।


पाख अँजोरी पूस महीना, आवय छेरिक छेरा।

दान पुन्न के खातिर अड़बड़, पबरित हे ये बेरा।।


कइसे चालू  होइस तेखर, किस्सा एक सुनावौं।

हमर राज के ये तिहार के, रहि रहि गुण ला गावौं।।


युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर  के  द्वारे।

राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।।


आठ साल बिन राजा के जी, काटे दिन फुलकैना।

हैहय वंशी शूर वीर के, रद्दा जोहय नैना।।


सबो चीज मा हो पारंगत, लहुटे जब राजा हा।

कोसल पुर मा उत्सव होवय, बाजे बड़ बाजा हा।।


राजा अउ रानी फुलकैना, अब्बड़ खुशी मनाये।

राज रतनपुर  हा मनखे मा, मेला असन भराये।।


सोना चाँदी रुपिया पइसा, बाँटे रानी राजा।

रहे पूस पुन्नी के बेरा, खुले रहे दरवाजा।।


कोनो  पाये रुपिया पइसा, कोनो सोना-चाँदी।

राजा के घर खावन लागे, सब मनखे मन माँदी।।


राजा रानी करिन घोषणा, दान इही दिन करबों।

पूस महीना के ये बेरा, सबके झोली भरबों।।


ते दिन ले ये परब चलत हे, दान दक्षिणा होवै।

ऊँच नीच के भेद भुलाके, मया पिरित सब बोवै।।


राज पाठ हा बदलत गिस नित, तभो होय ये जोरा।

कोसलपुर माटी कहलाये, दुलरू धान कटोरा।।


मिँजई कुटई होय धान के, कोठी हर भर जावै।

अन्न देव के घर आये ले, सबके मन हरसावै।।


अन्न दान तब करे सबोझन, आवय जब ये बेरा।

गूँजे सब्बे गली खोर मा, सुघ्घर छेरिक छेरा।।


वेद पुराण ह घलो बताथे, इही समय शिव भोला।

पारवती कर भिक्षा माँगिस, अपन बदल के चोला।।


ते दिन ले मनखे मन सजधज, नट बन भिक्षा माँगे।

ऊँच नीच के भेद मिटाके, मया पिरित ला टाँगे।।


टुकनी बोहे नोनी घूमय, बाबू मन धर झोला।

देय लेय मा ये दिन सबके, पबरित होवय चोला।।


करे सुवा अउ डंडा नाचा, घेरा गोल बनाये।

झाँझ मँजीरा ढोलक बाजे, ठक ठक डंडा भाये।।


दान धरम ये दिन मा करलौ, जघा सरग मा पा लौ।

हरे बछर भरके तिहार ये, छेरिक छेरा गा लौ।।



मकर सक्रांति


सूरज जब धनु राशि छोड़ के, मकर राशि मा जाथे।

भारत भर के मनखे मन हा, तब सक्रांति मनाथे।।


दिशा उत्तरायण सूरज के, ये दिन ले हो जाथे।

कथा कई ठन हे ये दिन के, वेद पुराण सुनाथे।।

सुरुज  देवता हा सुत शनि ले, मिले इही दिन जाये।

मकर राशि के स्वामी शनि हा, अब्बड़ खुशी मनाये।।

कइथे ये दिन भीष्म पितामह, तन ला अपन तियागे।

इही बेर मा असुरन मनके, जम्मो दाँत खियागे।।


जीत देवता मनके होइस, असुरन नाँव बुझागे।

बार बेर सब बढ़िया होगे, दुख के घड़ी भगागे।।

सागर मा जा मिले रिहिस हे, ये दिन गंगा मैया।

तार अपन पुरखा भागीरथ, परे रिहिस हे पैया।।

गंगा सागर मा तेखर बर, मेला घलो भराथे।

भारत भर के मनखे मन हा, तब सक्रांति मनाथे।।


उत्तर मा उतरायण खिचड़ी, दक्षिण पोंगल माने।

कहे लोहड़ी  पश्चिम वाले, पूरब बीहू जाने।।

बने घरो घर तिल के लाड़ू, खिचड़ी खीर कलेवा।

तिल अउ गुड़ के दान करे ले, पावय सुघ्घर मेवा।।

मड़ई मेला घलो भराये, नाचा गम्मत होवै।

मन मा जागे मया प्रीत हा, दुरगुन मन के सोवै।।

बड़े बिहनिया नहा खोर के, सुरुज देव ला ध्यावै।

बंदन चंदन अर्पण करके, भाग अपन सँहिरावै।।

रंग रंग के धर पतंग ला, मन भर सबो उड़ाये।

पूजा पाठ भजन कीर्तन हा, मन ला सबके भाये।।

जोरा करथे जाड़ जाय के, मंद पवन मुस्काथे।

भारत भर के मनखे मन हा, तब सक्रांति मनाथे।।


रंग के तिहार मा रँग जाबों


चलव सँगी रँग के तिहार मा, सब दिन बर रँग जाबों।

दया मया सत सुम्मत घोरे, तन मन दुनों रँगाबों।।


नीर नदी नरवा तरिया के, रहै सबे दिन सादा।

झन मइलाय अँटाये कभ्भू, सबें करिन मिल वादा।।

रचे रहै धरती हरियर मा, बन अउ बाग बचाबों।।

चलव सँगी रँग के तिहार मा, सब दिन बर रँग जाबों।।


बने रहे सूरज के लाली, नील गगन मन भाये।

चंदन लागे पिंवरा धुर्रा, महर महर ममहाये।।

परसा अउ सेम्हर कस फुलके, सबके जिया लुभाबों।

चलव सँगी रँग के तिहार मा, सब दिन बर रँग जाबों।।


जे रँग जे हे अधिकारी, वो रँग वोला देबों।

भेद करन नइ जड़ चेतन मा, सबके सुध मिल लेबों।।

दुःख द्वेष डर लत लालच ला, होरी सरिक जलाबों।

चलव सँगी रँग के तिहार मा, सब दिन बर रँग जाबों।।



हिंदी नवा बछर


फागुन के रँग कहाँ उड़े हे, कहाँ उड़े हे मस्ती।

नवा बछर धर चैत हबरगे, गूँजय घर बन बस्ती।।


चैत चँदैनी चंदा चमकै, चमकै रिगबिग जोती।

नवरात्री के पबरित महिना, लागै जस सुरहोती।।

जोत जँवारा  तोरन  तारा, छाये चारों कोती।

झाँझ मँजीरा माँदर बाजै, झरै मया के मोती।।

दाई दुर्गा के दर्शन ले, तरगे कतको हस्ती।

फागुन के रँग कहाँ उड़े हे, कहाँ उड़े हे मस्ती।।


कोयलिया बइठे आमा मा, बोले गुरतुर बोली।

परसा सेम्हर पेड़ तरी मा, बने हवै रंगोली।।

साल लीम मा पँढ़री पँढ़री, फूल लगे हे भारी।

नवा पात धर नाँचत हावै, बाग बगइचा बारी।।

खेत खार अउ नदी ताल के, नैन करत हे गस्ती।

फागुन के रँग कहाँ उड़े हे, कहाँ  उड़े हे मस्ती।।


बर खाल्हे मा माते पासा, पुरवाही मन भावै।

तेज बढ़ावै सुरुज नरायण, ठंडा जिनिस सुहावै।।

अमरे बर आगास गरेरा, रहि रहि के उड़ियावै।

गरती चार चिरौंजी कउहा, मँउहा बड़ ममहावै।।

लाल कलिंदर खीरा ककड़ी, होगे हावै सस्ती।

फागुन के रँग कहाँ उड़े हे, कहाँ उड़े हे मस्ती।।


खेल मदारी नाचा गम्मत, होवै भगवत गीता।

चना गहूँ सरसो घर आगे, खेत खार हे रीता।।

चरे  गाय गरुवा मन मनके, घूम घूम के चारा।

बर बिहाव के बाजा बाजै, दमकै गमकै पारा।।

चैत अँजोरी नवा साल मा, पार लगे भव कस्ती।

फागुन के रँग  कहाँ  उड़े  हे, कहाँ उड़े हे मस्ती।।



चमचम चमके चैत महीना


चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।

चैत महीना पावन लागे, गमके घर बन डेरा।।


रंग फगुनवा छिटके हावय, चिपके हे सुख आसा।

दया मया के फुलवा फुलगे, भागे दुःख हतासा।।

हूम धूप मा महकत हावै, गलियन बाग बसेरा।

चमचम चमचम चाँद चँदैनी, चमके रतिहा बेरा।।


नवा बछर अउ नवराती के, बगरे हवै अँजोरी।

चकवा संसो मा पड़ गेहे, खोजै कहाँ चकोरी।।

धरा गगन दूनो चमकत हे, कती लगावै फेरा।

चमचम चमचम चाँद चँदैनी, चमके रतिहा बेरा।।


नवा नवा हरियर लुगरा मा, सजे हवै रुख राई।

गाना गावै जिया लुभाये, सुरुर सुरुर पुरवाई।।

साल नीम हा फूल धरे हे, झूलत हे फर केरा।

चमचम चमचम चाँद चँदैनी, चमके रतिहा बेरा।।


बर बिहाव के लाड़ू ढूलय, ऊलय धरती दर्रा।

घाम तरेरे चुँहै पसीना, चले बँरोड़ा गर्रा।।

बारी बखरी ला राखत हे, बबा चलावत ढेरा।

चमचम चमचम चाँद चँदैनी, चमके रतिहा बेरा।।



मड़वा तरी


बर बिहाव के बाजा बाजे, छाहे आमा डारा।

गदबिद गदबिद करत हवै घर, गाँव गली अउ पारा।।


मड़वा भीतर बइठे दुलरू, मुचुर मुचुर मुस्कावै।

गीत डोकरी दाई गावै, मामी तेल चढावै।।

कका कमर मटकावत हवै, लगा लगा के नारा।

बर बिहाव के बाजा बाजे, छाहे आमा डारा।।


दीदी भाँटो मामा मामी, सब पहुना सकलाहे।

नेंग जोग मड़वा मा होवै, पारा भर जुरियाहे।।

लाड़ू खीर बरा सोंहारी, खावै झारा झारा।।

बर बिहाव के बाजा बाजे, छाहे आमा डारा।।


बबा ददा दाई भाई सँग, खुश हे आजी आजा।

रात करत हे रिगबिग रिगबिग, दिनभर बाजे बाजा।।

माड़ जाय मन मड़वा भीतर, चमके तोरन तारा।

बर बिहाव के बाजा बाजे, छाहे आमा डारा।।



एक दिन के दिवस


का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा।

नेत नियम कुछु आय समझ ना,धरा दुहू का लोटा।।


दाई ददा गुरू ज्ञानी ला, दिन तिथि मा झन बाँधौ।

देखावा मा उधौ बनौ ना, देखावा मा माँधौ।।

दया मया नित बड़े छोट ला, हाँस हाँस के बाँटौ।

फूल गुलाब धरे एके दिन, कखरो सर झन चाँटौ।।

पश्चिम के परचम लहरावत, बनव न सिक्का खोटा।

का का दिवस मनाथौ भैया, सुनके  काँपे  पोटा।।


हूम देय कस काज करौ झन, करौ झने देखावा।

अइसन दिवस मनावौ झन जे, फूटय बनके लावा।।

मीत मितानी रोजे बढ़ही, रोजे धन दोगानी।

एक दिवस मा काम चले नइ, भजौ मीठ नित बानी।।

थामव कर मा डोर मया के, झन धर घूमव सोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया, सुनके काँपे पोटा।।


दाई बाबू के पूजा तो, रोजे होना  चाही।

रोजे जागे देश प्रेम हा, तभे बात बन पाही।।

पवन पेड़ पानी ला जतनौ, रोजे पुण्य कमावौ।

धरती दाई के सुध लेवव, पर्यावरण बचावौ।।

गौरया के गीत सुनौ नित, मारव झन जी गोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया, सुनके काँपे पोटा।।


चर दिनिया हे मानुष काया, हाँसी खुशी गुजारौ।

धरत हवै भुतवा पश्चिम के, दया मया ले झारौ।।

संस्कृति अउ संस्कार बचावौ, आदत नियत सुधारौ।

सबके दिल मा बसव बने बन, कखरो घर झन बारौ।।

सोज्झे मुरुख बनावत फिरथौ, अपन उठा के टोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया, सुनके काँपे पोटा।।


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लाल बहादुर शास्त्री जी 


जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।

लाल बहादुर शास्त्री जी के, चलो करिन जयकारा।।


पद पइसा लत लोभ भुलाके, जीइस जीवन सादा।

बोलिस कम हे जिनगी भर अउ, काम करिस हे जादा।

रिहिस मीत बर मीठ बताशा, बइरी मन बर आरा।।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


आजादी के रथ ला हाँकिस, फाँकिस दुख दुर्गुन ला।

नित नियाव के झंडा गाड़िस, बता पाप अउ पुन ला।

रिहिस उठाये सिर मा सब दिन, देशभक्ति के भारा।।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


ताशकन्द मा कइसे सुतगिन, जेन कभू नइ सोवै।

देख समाधी विजय घाट के, यमुना रहिरहि रोवै।।

लाल बहादुर लाल धरा के, नभ के चाँद सितारा।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।




भुलागेन बलिदानी मन ला


कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।

देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।

महतारी के आन बान बर,कोन ह झेले गोली।

कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।

छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।

हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।

मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।

हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।

देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।

अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।

हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।

देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।

पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।

भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।

लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।

डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारा   मारी।

अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।

बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।



कइसे जीत होही


हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी।

जे मन चाहै ये माटी हा,होवै चानी चानी----।


देश प्रेम चिटको नइ जानै,करै बैर गद्दारी।

भाई चारा दया मया ला,काटै धरके आरी।

झगरा झंझट मार काट के,खोजै रोज बहाना।

महतारी  ले  मया करै नइ,देवै रहि रहि ताना।

पहिली ये मन ला समझावव,लात हाथ के बानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


राजनीति  के  खेल निराला,खेलै  जइसे  पासा।

अपन सुवारथ बर बन नेता,काटै कतको आसा।

मातृभूमि के मोल न जानै,मानै सब कुछ गद्दी।

मनखे  मनके मन मा बोथै,जात पात के लद्दी।

फौज  फटाका  धरै फालतू,करै मौज मनमानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


तमगा  ताकत  तोप  देख  के,काँपै  बैरी  डर मा।

फेर बढ़े हे भाव उँखर बड़,देख विभीषण घर मा।

घर मा  ये  मन  जात  पात  के,रोज मतावै गैरी।

ताकत हावय हाल देख के,चील असन अउ बैरी।

हाथ  मिलाके  बैरी  मन ले,बारे  घर  बन छानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


खावय ये माटी के उपजे,गावय गुण परदेशी।

कटघेरा मा डार वतन ला,खुदे लड़त हे पेशी।

अँचरा फाड़य महतारी के,खंजर गोभय छाती।

मारय काटय घर वाले ला,पर ला भेजय पाती।

पलय बढ़य झन ये माटी मा,अइसन दुश्मन जानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी-----।


घर के बइला नाश करत हे, हरहा होके खेती।

हारे हन इतिहास झाँक लौ,इँखरे मन के सेती।

अपन देश के भेद खोल के,ताकत करथे आधा।

जीत भला  तब कइसे होही,घर के मनखे बाधा।

पहिली पहटावय ये मन ला,माँग सके झन पानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।





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अमरइया मा जाबों


चलो सँगी खेले बर खुडुवा,अमरइया मा जाबों।

दाई अँचरा कस जुड़ छइहाँ, ओढ़ ओढ़ इतराबों।


पवन धूकथे पंखा रहि रहि, सुरुज देव बिजराथे।

छमछम नाचय पाना डारा, गीत कोयली गाथे।

ढेला फेक गिराबों आमा, मिलजुल के सब खाबों।

चलो सँगी खेले बर खुडुवा,अमरइया मा जाबों।


गरमी घरी तको जुड़ रहिथे, अमरइया के छइहाँ।

जिहाँ पहुँच सब खेल खेलबों, जोर सबे झन बइहाँ।

आम तरी मा बाँध झूलना, झुलबों अउ झूलाबों।

चलो सँगी खेले बर खुडुवा,अमरइया मा जाबों।


बइहाँ जोड़े पेड़ खड़े हे, सहि जुड़ बादर पानी।

हवा दवा फल फूल लुटाथे, सबदिन बनके दानी।

ठिहा ठौर हे जीव जंतु के, देख देख हरसाबों।

चलो सँगी खेले बर खुडुवा,अमरइया मा जाबों।


गली खोर घर खेत खार सँग, साथी ताल तलैया।

गिल्ली डंडा बाँटी भँवरा, के हम सब खेलैया।।

चंदन जइसे धुर्रा माटी, माथा तिलक लगाबों।

चलो सँगी खेले बर खुडुवा,अमरइया मा जाबों।




काया काली बर


जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।

सेहत सबले बड़का धन ए, धन दौलत धन जाली।।


काली बर धन जोड़त रहिथस, आज पेट कर उन्ना।

संसो फिकर करत रहिबे ता, काल झुलाही झुन्ना।।

तन अउ मन हा हावय चंगा, ता होली दीवाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।।


खाय पिये अउ सुते उठे के, होय बने दिनचरिया।

काया काली बर रखना हे, ता रख तन मन हरिया।

फरी फरी पी पुरवा पानी, देख सुरुज के लाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।।


हफर हफर के हाड़ा टोड़े, जोड़े कौड़ी काँसा।

जब खाये के पारी आइस, अटके लागिस स्वाँसा।।

उपरे उपर उड़ा झन फोकट, जड़ हे ता हे डाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।



नींद ससन भर आही 


बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।

संझा बिहना सुख मा कटही, मन मा खुशी हमाही।


तामझाम तकलीफ बाँटथे, जीवन जी ले सादा।

मना खुशी अउ दुख झन अब्बड़, जोर रतन झन जादा।

अपन आप ला बने बनाले, सरी जगत गुण गाही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


संसो फिकर घलो हा चिटिको, नैन मुँदन नइ देवै।

ऊँच नीच खाना पीना हा, नींद चैन हर लेवै।

अपन काम ला खुदे टारले, तन कसरत हो जाही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


रोज शबासी लेवत चल गा, झन खा एको गारी।

चलत रहा सत के रद्दा मा, तज के झूठ लबारी।

गरब गुमान घलो झन करबे, नइ ते दुःख झपाही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


जान अपन कस जमे जीव ला, ले ले सबके आरो।

बेर देख के फल खावत चल, मीठ करू अउ खारो।

बचपन के बेरा लहुटाले, तन मन तोर हिताही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।



जिनगी के गाड़ी


धीरे  धीरे  जुन्नावत  हे, ये जिनगी के गाड़ी।

हाथ गोड़ मुँह ढिल्ला होवै,पाकै मेछा दाढ़ी।।


सुख  के बेरा सरलग भागिस,हवा घलो नइ लागिस।

हाँसत गावत खेलत खावत,जिनगी हा अधियागिस।

केश झरत हे रूप मरत हे, देख  जुड़ावै नाड़ी।

धीरे धीरे जुन्नावत  हे, ये जिनगी के गाड़ी----।


बालपना के बात बिसरगे, गये जवानी रानी।

गरब करे  के का बाँचे हे,ये तन बोहत पानी।

धँधर रपट मा बेरा बुलके, जोड़त कौड़ी काड़ी।

धीरे धीरे जुन्नावत  हे, ये जिनगी के गाड़ी-----।


लइका लोग सियान सबे के,संसो अड़बड़ खाये।

घर दुवार परिवार पार हा, रहिरहि  रात जगाये।

रोज दंदरे कनिहा कूबड़, मूड़ पिरावै माड़ी।

धीरे धीरे जुन्नावत  हे, ये जिनगी के गाड़ी-।




भाजी साग खवादे


रोज रोज के भाँटा आलू,लगगे अब बिट्टासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।


चना चनौरी चेंच चरोटा,चौलाई चुनचुनिया।

मुसकेनी मेथी अउ मुनगा,मुरई मास्टर लुनिया।

कुरमा कांदा कुसमी कुल्थी,कोचाई करमत्ता।

गुमी लाखड़ी गोभी बर्रे,बरबट्टी के पत्ता।

प्याज अमारी पटवा पालक,सरसो के मैं दासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


रोपा गुड़रू मखना झुरगा,कजरा कुसुम करेला।

पोई अउ बोहार जरी के,हरौं बही मैं चेला।।

उरिद लाल चिरचिरा खोटनी,कोइलार तिनपनिया।

भथुवा पहुना लहसुनवा खा, चलहूँ छाती तनिया।

भूँज बघार बनाबे बढ़िया,अड़बड़ लगे ललासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।


खेत खार बारी बखरी ले,झट लाबों चल टोरी।

खनिज लवण अउ रथे विटामिन,दुरिहाथे कमजोरी।

तेल बाँचही नून बाँचही,समय घलो बच जाही।

भाजी पाला ला खाये ले,तन मा ताकत आही।

भाजी कड़ही बरी खोइला,खाथे कोसल वासी।

खाये के हावै मन जोही,भाजी के सँग बासी।।






बासी बासी बासी


साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन रासी।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


काम बूता बर होत बिहनया, पड़थे जल्दी जाना।

जुड़े जुड़ मा काम सिधोथँव, खाके बासी खाना।

बिन गुण जाने पेट भरे बर, खाथँव बारा मासी।

साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन रासी।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


बड़ही कहिके बँचे भात ला, बोर देथौं मैं रतिहा।

सीथा खाथौं चारेच कौंरा, पेट भर पीथौं पसिया।

पर के हाड़ी के गंध सुंघ के, लगथे गजब ललासी।

साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन रासी।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


छोट कुड़ेड़ा के बासी तक, घर भर ला पुर जाथे।

सीथा अउ पसिया हा मिलके, भूख पियास दुरिहाथे।

महल अटारी बाँध बाँधथँव, करथौं बाँवत बियासी।

साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन रासी।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


बासी खावत उमर गुजरगे, होगे जर्जर काया।

नाँगर पुरतिन जाँगर मिलथे, राम मिले ना माया।

बासी खवइया बासी होगे, हो गे जग मा हाँसी।

साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन रासी।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।


मोर दरद देखिस नइ कोनो, देख डरिस बासी ला।

महल भीतरी बासी खाइस, बूता जोंग दासी ला।

भूख बैरी ला बासी चढ़ाथौं, मान के मथुरा काँसी।

साग दार कमती पड़ जाथे, पुरे न राशन रासी।

तब खाथौं मैं चटनी सँग मा, नून डार के बासी।।







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किसम किसम के धान


धान कटोरा हा धन धरके, मुचुर मुचुर मुस्काही।

धरती दाई के कोरा मा, धान गजब लहराही।।


हवै धान के नाम हजारो, कहौं काय मैं भाई।

देशी अउ हरहुना संकरित, मोटा पतला माई।

लाली हरियर कारी पढ़री, धान चँउर तक होथें।

सुविधा देख किसनहा मन हा, खेत खार मा बोथें।

मुंदरिया मरहन महमाया, मछलीपोठी मेहर।

मालवीय मकराम माँसुरी, कार्तिक कैमा कल्चर।

चनाचूर चिन्नउर चेपटी, छतरी चीनीशक्कर।।

बाहुबली बलवान बंगला, बाँको बिरसा बायर।

बिरनफूल बुढ़िया बइकोनी, बिसनी बरही माही।

धान कटोरा हा धन धरके, मुचुर मुचुर मुस्काही।


पंत पूर्णिमा पंकज परहा, परी प्रसन्ना प्यारी।

पूर्णभोग पानीधिन पंसर, नाकपुरी नरनारी।

आईआर अर्चना झिल्ली, अजय इंदिरासोना।

समलेश्वरी सुजाता साम्भा, सागरफेन सरोना।

कालाजीरा कनक कामिनी, करियाझिनी कलिंगा।

साहीदावत सफरी सरना, सरजू सिंदुरसिंगा।।

स्वेतसुंदरी सादसरोना, सहभागी सुरमतिया।

गंगाबारू गुड़मा गोकुल, गोल्डसीड गुरमटिया।

बासमती दुबराज सुगंधा, विष्णुभोग ममहाही।

धान कटोरा हा धन धरके, मुचुर मुचुर मुस्काही।


क्रांति किरण कस्तूरी केसर, नयना बुधनी काला।

कालमूंछ केरागुल कोड़ा, बरसाधानी बाला।

कंठभुलउ केकड़ा ककेरा, कदमफूल कनियाली।

कावेरी कमोद कर्पूरी, कामेश कुकुरझाली

रामकली राजेंद्रा रासी, राधा रतना रीता।

सहयाद्री सन सोनाकाठी, सोनम सरला सीता।

जसवाँ जीराफूल जोंधरा, जगन्नाथ जयगुंडी।

जया जयंती जयश्री जीरा, लौंगफूल लोहुंडी।

सत्यकृष्ण साठिया शताब्दी , बादशाह अन साही।

धान कटोरा हा धन धरके, मुचुर मुचुर मुस्काही।


पूसा पायोनियर नन्दिनी, नाजिर नुआ नगेसर।

गटवन गर्राकाट गायत्री, खैरा रानीकाजर।

रतनभाँवरा राजेलक्ष्मी, आदनछिल्पा रामा।

तिलकस्तूरी तुलसीमँजरी, जवाँफूल सतभामा।

गाँजागुड़ा नवीन नँदौरी, काली कुबरीमोहर।

दन्तेश्वरी दँवर डॅक दुर्गा, दांगी खैरा नोहर।

हहरपदुम हंसा सन बोरो, हरदीगाभा ठुमकी।

लुचई भुसवाकोट भेजरी, लूनासंपद झुमकी।

कलम फाल्गुनी फूलपाकरी, इलायची मन भाही।

धान कटोरा हा धन धरके, मुचुर मुचुर मुस्काही।




जइसे गिरे असाढ़ म पानी


जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।

निकलै कई किसम के कीरा, रेंगय मुँह ला फारे।


रंग रंग के साँप निकलथे, रंग रंग के कीरा।

सावचेत नइ रहे म होथे, तन मन ला बड़ पीरा।

भरका बिला म पानी भरथे, गिल्ला रहिथे मिट्टी।

सलमल सलमल भागत दिखथे, इती उती पिरपिट्टी।

कीरा काँटा साँप बिच्छु ले, कतको जिनगी हारे।

जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।


रसल वाइपर अजगर डोमी, माम्बा अउ मुड़हेरी।

सुतत उठत बस झूलत रहिथे, नयन म घेरी बेरी।

फिरे करैत ढोड़िहा धमना, जिया देख के काँपे।

बारिस घरी काल बन घूमय, कई किसम के साँपे।

ठौर ठिहा बन खेत खार में, रइथे डेरा डारे।

जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।


फाँफा फुरफुन्दी चमगादड़, झिंगुरा मुसवा चाँटा।

कान खजूरा बत्तर अँधरी, बिच्छी कीरा काँटा।

डाढ़ा टाँग केकरा रेंगय, मेंढक टरटर बोले।

किलबिल किलबिल कीरा करथे, देखत जिवरा डोले।

झन सोवव बिन खाट धरा में, रेंगव नयन उघारे।

जइसे गिरे असाढ़ म पानी, भुइयाँ भभकी मारे।




सजन बिन सावन 


दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।

लक्ष्मण रेखा लाँघत हावै, घर घर बइठे रावन।


गरजे घुमड़े घड़घड़ घड़घड़ , बादर घेरी बेरी।

का हो जाही कोन घड़ी मा, फड़के आँखी डेरी।

कइसे जिनगी मोर पहाही, संसो लागे खावन।

दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।


देखत देखत राह सजन के, नाड़ी हाथ जुड़ागे।

डंक साँप बिच्छू नइ मारे, काठ समझ के भागे।

सजन बिना बन बाग बगीचा, नइ लागे मनभावन।

दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।


नजर गड़त हे कतको झन के, देख अकेल्ला मोला।

आस लगा बिहना मैं जीथौं, साँझ मरे नित चोला।

नैन मुँदावय गला सुखावय, चेत लगे छरियावन।

दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।




सावन बइरी


चमक चमक के गरज गरज के,बरस बरस के आथे।

बादर  बइरी  सावन   महिना,मोला   बड़  बिजराथे।


काटे नहीं कटे दिन रतिहा,छिन छिन लगथे भारी।

सुरुर  सुरुर  चलके   पुरवइया,देथे   मोला   गारी।

रहि रहि के रोवावत रहिथे,बइरी सावन आके।

हाँस हाँस के नाचत रहिथे,डार पान बिजराके।

ताना  मारत  मारत  मोला,झींगुर गीत सुनाथे।

बादर बइरी सावन महिना,मोला बड़ बिजराथे।


छोड़  गये  परदेस  पिया तैं ,पाँव बजे ना पैरी।

टिकली फुँदरी माला मुँदरी,होगे सब झन बैरी।

महुर  मेंहदी  मूँगा मोती,बिछिया अँइठी लच्छा।

तोर बिना हे मोला जोड़ी,लगे नहीं कुछु अच्छा।

देख मेचका नाचत कूदत,खुश हो टर टर गाथे।

बादर बइरी सावन महिना,मोला बड़ बिजराथे।


हरियर  हरियर  होगे डोली,हरियर बखरी बारी।

तोर बिना जिनगी मा मोरे,छाय घटा अँधियारी।

बरसे बादर रिमझिम रिमझिम,चिरई गाये गाना।

जाँवर  जोड़ी  नाच नाच के,खावत रहिथे दाना।

धरके  बासी  मोर  जँवारा ,रोज  खेत  मा  जाथे।

बादर बइरी सावन महिना,मोला बड़ बिजराथे।


कउँवा बाटत रहिथे चारा,उड़ उड़ के छानी मा।

मोरो  मन  होथे  भींगे  के ,तोर संग  पानी  मा।

परेवना  के  पाँख देख के,माँगत रहिथों पाँखीं।

फेर देख मोला उड़ जाथे,बरसत रहिथे आँखी।

देख परोसिन अपन पिया ला,चीला राँध खवाथे।

बादर बइरी सावन महिना,मोला बड़ बिजराथे।


भुँइया अबड़ हितागे हावय,पाके मनभर पानी।

रोज जरत हे जिवरा मोरे ,हलाकान जिनगानी।

आँखी  मोरे  करिया  गेहे ,बादर  ले बड़ जादा।

झटकुन राजा  तैंहर आजा,करके गे हस वादा।

छत्ता धरके सब झक्कर मा, घुम घुम मजा उड़ाथे।

बादर बइरी सावन महिना,मोला बड़ बिजराथे।


नैना मोरे झड़ी करे तब,बादर डरके भागे।

नैन  निहारे  रद्दा  तो रे,बइठ  दुवारी जागे।

मोर  बने  बइरी  रे  धन  तैं,जोड़ी  ला भड़काये।

आजा राजा नइ चाही कुछु,रही जहूँ बिन खाये।

सजनी सजन बइठ ये बेरा, हाँस हाँस बतियाथे।

बादर बइरी सावन महिना,मोला बड़ बिजराथे।


पेट अन्न पानी नइ जाने ,जब ले तँय घर छोड़े।

रद्दा  ला  मैं  जोहत रहिथों ,बइठे माड़ी  मोड़े।

धरे  गाल  मैं  बइठे  हावँव,हाथ  हले ना डोले।

आस मरत हे आजा राजा,मुँह नइ बोली बोले।

माटी के ढेला कस जोड़ी, सब सपना घुर जाथे।

बादर बइरी सावन महिना,मोला बड़ बिजराथे।





साँप मनके पीरा


मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।

सबे खूँट सीमेंट छाय हे, ना साँधा ना छानी।।


जाके कती लुकावँव मैंहा, कोनो ठउर बतादौ।

भटकँव नही कहूँ कोती मैं, घर ला मोर सुखादौ।।

रझरझ रझरझ गिरथे पानी, तरिया कुँवा भराथे।

मोर बिला भरका नइ बाँचे, पानी मा बुड़ जाथे।।

छत के घर मा सपटँव कइसे, दिख जाथँव आँखी मा।

उड़ा भगावँव कइसे दुरिहा, नइ हँव मैं पाँखी मा।।

पानी बादर के बेरा मा, नित पेरावँव घानी-------।

मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।।


कटत हवय नित जंगल झाड़ी, नइहे भोंड़ू भाँड़ी।

नइहे डिही डोंगरी परिया, देख जुड़ाथे नाड़ी।।

लउठी धरे खड़े हावव सब, कइसे जान बचावौं।

आथँव ठिहा ठिकाना खोजत, चाबे बर नइ आवौं।।

चाबे मा कतको मर जाथे, बिक्ख हवै बड़ मोरे।

देख डराथस मोला तैंहर, अउ मोला डर तोरे।।

महुँला देवव ठिहा ठिकाना, मनुष आज के ज्ञानी।

मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।।








वाह रे पानी


पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।

खेवन खेवन पानी बरसे, सफरी सरना सोगे।


का कुँवार का कातिक कहिबे,लागत हावै सावन।

रोहों पोहों खेत खार हे, बरसा बनगे रावन।।

धान सोनहा करिया होगे, लगगे कतको रोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


लूवे टोरे के बेरा मा, कइसे करयँ किसनहा।

आसा के सूरज हा बुड़गे,बुड़गे डोली धनहा।

जाँगर टोरिस जउन रोज वो, दुख मा अउ दुख भोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।।


करजा बोड़ी के का होही, संसो फिकर हबरगे।

देखमरी बादर ला छागे, देखे सपना मरगे।

चले धार कोठार खेत मा, सोच सोच सुध खोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।







धान लुवाई


पींयर पींयर पैरा डोरी, धरके कोरी कोरी।

भारा बाँधे बर जावत हे, देख किसनहा होरी।।


चले संग मा धरके बासी, धान लुवे बर गोरी।

काटय धान मढ़ावय करपा, सुघ्घर ओरी ओरी।


चरपा चरपा करपा माढ़य, मुसवा करथे चोरी।

चिरई चिरगुन चहकत खाये, पइधे भैंसी खोरी।


भारा बाँधे होरी भैया, पाग मया के घोरी।

लानय भारा ला ब्यारा मा, गाड़ा मा झट जोरी।


बड़े बगुनिया मा बासी हे, चटनी भरे कटोरी।

बासी खाये धान लुवइया, मेड़ म माड़ी मोड़ी।


हाँस हाँस के सिला बिनत हें, लइकन बोरी बोरी।

अमली बोइर हवै मेड़ मा, खावत हें सब टोरी।


बर्रे बन रमकलिया खोजे, खेत मेड़ मा छोरी।

लाख लाखड़ी जामत हावय, घटकत हवै चनोरी।


आशा के दीया बन खरही, बाँटे नवा अँजोरी।

ददा ददरिया मन भर झोरे, दाइ सुनावै लोरी।


महिनत माँगे खेत किसानी, सहज बुता ए थोरी।

लादे पड़थे छाती पथरा, चले न दाँत निपोरी।।



बरी अउ बादर


बरी बनाबे ताहन बादर, बरसो बरसो करथे।

घाम उगासे रहिथे बढ़िया, देखत बरी बिगड़थे।


पर्रा पर्रा बरी घाम बिन, भँभा चिटिक नइ पाये।

उरिद दार अउ रखिया तूमा, बिरथा सब हो जाये।।

शहर गांव अब देख मेहनत, इसन बुता ले डरथे।

बरी बनाबे ताहन बादर, बरसो बरसो करथे।।


हाँस हाँस के बरी बिजौरी, सबे चाहथें खाना।

फेर देख पिचकाट अबड़ के, चाहे कोन बनाना।।

कहूँ बनाबे हिम्मत करके, ता घन बैरी झरथे।

बरी बनाबे ताहन बादर, बरसो बरसो करथे।


बरसा घरी सहारा बनथे, बरी बिजौरी घर के।

दाई दीदी मन गर्मी मा, रखथें जोरा करके।।

चुरथे आलू मुनगा सँग मा, खाके टुरा फुदरथे।

बरी बनाबे ताहन बादर, बरसो बरसो करथे।।



मन अरझगे तरिया के कमल फूल मा


एक फूल ले दुसर फूल मा, मन बइठे जा जाके।

फँसा डरे हे अपन जाल मा, कमल फूल तरिया के।।


तरिया भीतर फूल पान हा, चौंक पुरे कस लागे।

दुर्योधन कस अहमी मन हा, धोखा खात झपागे।।

हँसे पार अउ पानी खिलखिल, मन दुबके शरमाके।

फँसा डरे हे अपन जाल मा, कमल फूल तरिया के।।


पात पीस के पिये कभू ता, कभू पोखरा खाये।

कभू ढेंस गुण सुन चुन राँधे, कभू फूल लहराये।।

पाँव परे माता लक्ष्मी के, पग मा कमल चढ़ाके।

फँसा डरे हे अपन जाल मा, कमल फूल तरिया के।।


डर देखा नहवइया मन ला, तरिया ले खेदारे।

कहे पोगरी मोर फूल ए, भौंरा तितली हारे।।

सुरुज देख के सँग सँग जागे, सोये सँग संझाके।

फँसा डरे हे अपन जाल मा, कमल फूल तरिया के।।






कुदरत के कई रूप


नाना रूप देख कुदरत के, ठहर जथे मन नैना।

अँगरी दाँत तरी दब जाथे, मुँह ले फुटे न बैना।।


कई पेड़ जमकरहा मोठ्ठा, अमरे कई गगन ला।

कई किसम के पान फूल फर, देय खुशी बड़ मन ला।।

हूँप हूँप कहि कुदे बेंदरा, गाना गाये मैना।

कुदरत के कई रूप देख के,ठहर जथे मन नैना।।


मस्ती मा इतराय समुंदर, जलरँग धरके पानी।

नदिया झरना डिही डोंगरी, रोज सुनाय कहानी।।

घाटी पानी पथरा लाँघे, हाथी हिरणा हैना।

कुदरत के कई रूप देख के, ठहर जथे मन नैना।।


दुहरा तिहरा पथरा माड़े, देखत लगे अचंभा।

रूप प्रकृति के मन मोहें, लजा जाय रति रंभा।।

बने बने रखबों कुदरत ला, बने रही दिन रैना।

कुदरत के कई रूप देख के, ठहर जथे मन नैना।।









गर्मी मा बरफ गोला


गजब सुहाथे घाम घरी मा, बरफ बरफ के खाजी।

लइका संग सियान खाय बर, हो जाथे झट राजी।।


काड़ी वाले होय बरफ या, रंग रंग के गोला।

रबड़ी कुल्फी बरफ मलाई, देय नियत ला डोला।।

सस्ता होवय या हो महँगा, कइथे सब झन ला जी।

गजब सुहाथे घाम घरी मा, बरफ बरफ के खाजी।।


आमा गन्ना नीम्बू रस मा, डार बरफ के चूरा।

ठंडा ठंडा मन भर पीले, जिया जुड़ाथे पूरा।।

बरफ संग मा सेवइ कतरी, खा के कहिबे वा जी।

गजब सुहाथे घाम घरी मा, बरफ बरफ के खाजी।


खुशी हमाथे मन मा भारी, देख बरफ के ठेला।

कोनो ला गर्मी नइ भाये, सब ठंडा के चेला।।

फोकट हे धन बल के गर्मी, जुड़ रख जिया जुड़ा जी।

गजब सुहाथे घाम घरी मा, बरफ बरफ के खाजी।।



घाम घरी के फर 


किसम किसम के फर बड़ निकले, घाम घरी घर बन मा।

रंग रूप अउ स्वाद देख सुन, लड्डू फूटय मन मा।।


पिकरी गंगाअमली आमा, कैत बेल फर डूमर।

जोत्था जोत्था छींद देख के, तन मन जाथें झूमर।।

झुलत कोकवानी अमली हा, डारे खलल लगन मा।

किसम किसम के फर बड़ निकले, घाम घरी घर बन मा।


तेंदू तीरे अपने कोती, चार खार मा नाँचै।

कोसम कारी कुरुलू कोवा, कखरो ले नइ बाँचै।

डिहीं डोंगरी के ये फर मन, राज करै जन जन मा।

किसम किसम के फर बड़ निकले, घाम घरी घर बन मा।


पके पपीता लीची लिमुवा, लाल कलिंदर चानी।

खीरा ककड़ी खरबुज अंगुर, करथे पूर्ती पानी।।

जर बुखार लू ला दुरिहाके, ठंडक लाथे तन मा।

किसम किसम के फर बड़ निकले, घाम घरी घर बन मा।



जेठ महीना


जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।

धनबोहर मा फूल फुले हे, टपकै आमा गरती।।


लाली फुलवा गुलमोहर के, गावत हावै गाना।

नवा पहिर के हरियर लुगरा, बिरवा मारे ताना।।

छल बल धर गरमाये मनखे, निकलै बेरा ढरती।

जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।।


निमुवा अमवा बर पीपर हा, जुड़ जुड़ छँइहा बाँटै।

तरिया नदिया कुँवा सुखावै, हवा बँवंडर आँटै।।

होय फूल फर कतको झरती, ता कतको के फरती।

जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।


जीव जंतु सब लहकै भारी, पानी तीरन लोरे।

भाजी पाला अब्बड़ निकलै, मोहे बासी बोरे।।

पेड़ प्रकृति हा जिनगी आये, सुख दुख देय सँघरती।

जेठ महीना जुलुम ढात हे, जरै चटाचट धरती।।




पतझड़


पतझड़ आरो ए बहार के, संसो फिकर तियागौ।

नैन मूंद के सुतव रात पा, देख सुरुज झट जागौ।


गरमी के जब आहट आथे, होय लगे कम पानी।

पात पेड़ झर्रा के जीथे, संत सरिक जिनगानी।।

हाँकै नियति सबे के गाड़ी, खड़े रहौ झन भागौ।

पतझड़ आरो ए बहार के, संसो फिकर तियागौ।।


नवा पात हा दुःख झेलथे, घाम झांझ के बेरा।

धीर धीरे नवा करव ता, रही खुशी मा डेरा।।

समय बिगाड़ै नइ सपना ला, लगन आस नित पागौ।

पतझड़ आरो ए बहार के, संसो फिकर तियागौ।।


देख खोंधरा के खग पतझड़, नव छत छानी खोजे।

मरे चढ़े परजीवी बेला, पियय रकत जे रोजे।।

जड़ चेतन सबके भल होही, पाँव नियति के लागौ।

पतझड़ आरो ए बहार के, संसो फिकर तियागौ।।








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मुसवा


कुरकुर-कुरकुर करे रात दिन,मुसवा करिया करिया।

कुटी  कुटी  कपड़ा  ला  काटे,मति हा जाथे छरिया।


खा खा के भोगाये हावै,धान चँउर फर भाजी।

भँदई पनही घलो तुनागे,नइ बाँचत हे खाजी।

कभू खोधरे परवा छानी,अउ घर अँगना कोड़े।

तावा के रोटी ला झड़के,आरुग कुछु नइ छोड़े।

चोरो बोरो घर हर लागे,कोला परगे परिया---------।

कुरकुर-कुरकुर करे रात दिन,मुसवा करिया करिया।


गदबिद गदबिद भागे भारी,खटिया मा चढ़ जावै।

हाथ  गोड़  ला घलो ककोने,नींद  कहाँ  ले आवै।

कुरिया कोठी कोठा कोला,सबे खूँट हे कोरा।

मुसवा  लेड़ी  मा भरगे हे,पाठ पठउँहा बोरा।

बरी बिजौरी बाँचत नइहे,नइ बाँचत हे फरिया------।

कुरकुर-कुरकुर करे रात दिन,मुसवा करिया करिया।


साँप असन पुछी दिखत हे,खरहा कस हे काया।

मनखे  तनखे  ला  नइ घेपे,मुसवा के बड़ माया।

आँखी लाल ठाढ़ मूँछ हे,देख बिलैया भागे।

छेना खरही माटी होगे,घर हा डोलन लागे।

भारी उधम मचावत हावै,चीं चीं चीं चीं नरिया------।

कुरकुर-कुरकुर करे रात दिन,मुसवा करिया करिया।





दारू पीके सीसी फोड़े


दारू पीके सीसी फोड़े, हत रे अतियाचारी।

पेट पाँव कतको के कटगे, बहे लहू के धारी।।


पार्टी पिकनिक कहिके रोजे, नदी पहाड़ म जाके।

खाये पीये नाँचे गाये, पर्यावरण मताके।।

काँचे काँच म पटगे हावै, नदी बाट बन बारी।

दारू पीके सीसी फोड़े, हत रे अतियाचारी।।


समझाये दरुहा ला कउने, सुने बात ना बानी।

माते ताहन करे बिगाड़ा, होरा भूंजे छानी।।

धरहा धरहा काँच देख के, काँपे पोटा भारी।

दारू पीके सीसी फोड़े, हत रे अतियाचारी।।


दरुहा मन के करनी के फल, आने कोनो भोगे।

लइका लोग सियान कई के, बड़ करलाई होगे।।

हाय लगे हत्यारा मन ला, थमे काज ये कारी।

दारू पीके सीसी फोड़े, हत रे अतियाचारी।।




हथकरघा के बेरा


सबे काम ला झट टारे बर, हे मशीन सब डेरा।

अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।


मुसर बाहना ढेंकी जाँता, सिललोढ़ा खलबत्ता।

आरा रेंदा गिरमिट सुंबा, हाथ भुलागे नत्ता।।

कोन गाँथथे माची खटिया, कोन आँटथे ढेरा।

अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।


अपन हाथ मा सूत कात के, पहिरिन गाँधी खादी।

मिला हाथ ले हाथ सुराजी, लड़भिड़ लिन आजादी।।

सबें हाथ अब ठलहा होगे, होवै तेरा मेरा।

अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।


अपन हाथ हे जगन्नाथ कहि, खुदे करैं सब बूता।

उहू दुसर के अब मुँह ताकें, पहिरे चश्मा जूता।।

नवा नवा तकनीक हबरगे, बदलै बसन बसेरा।

अइसन मा अब काय लहुटही, हथकरघा के बेरा।।





नकली चाल चलन


नवा जमाना नकली कोती, नवगे हे सँगवारी।

हँसी खुशी आँसू हे नकली, नकली रिस्तादारी।


नकली चाँद सुरुज बनगे हे, नकली घर फर बिरवा।

घुरगे मनखे के जिनगी मा,नकली जिनिस ह निरवा।

मनखे मनके नकली सँग मा, पटत हवै बड़ तारी।

नवा जमाना नकली कोती, नवगे हे सँगवारी।।


असली के असलियत उघारे, परखे सिर पग पाँखी।

नकली चीज बिसाये हँसके, बउरे मूंदें आँखी।।

सस्ती नकली चीज बिकत हे, असली महँगा भारी।

नवा जमाना नकली कोती, नवगे हे सँगवारी।।


बुढ़वा के हे बाल घमाघम, दाँत हवै खिसखिस ले।

देखे भर मा बढ़िया लागे, काम बुता बर फिसले।।

कोन कहे नकली ला नकली, सबझन हवै पुजारी।

नवा जमाना नकली कोती, नवगे हे सँगवारी।।


नकली ओढ़त नकली पहिरत, मनखे नकली होगे।

अन्तस् भीतर के सत सुम्मत, दया मया तक सोगे।

बैर बदी लत होवय नकली, होवय असली यारी।

नवा जमाना नकली कोती, नवगे हे सँगवारी।।


चंदन माटी राखड़ भइगे


चंदन माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।

बंजर होगे खेत खार सब,काय फसल उपजावौं।


सड़क सुते हे लात तान के,महल अटारी ठाढ़े।

मोर नैन  मा निंदिया नइहे,संसो दिनदिन बाढ़े।

नाँव  बुझागे  रुख राई के,धरा  बरत हे बम्बर।

मन भीतर मा मातम छागे,काय करौं आडम्बर।

सिसक सकत नइ हावौं दुख मा,कइसे राग लमावौं।

चंदन माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।


मोटर  गाड़ी  कार  बनत हे,उपजै सोना चाँदी।

नवा जमाना जल थल जीतै,पतरी परगे माँदी।

तरिया  परिया  हरिया  हरगे,बरगे मया ठिठोली।

हाँव हाँव अउ खाँव खाँव मा,झरगे गुरतुर बोली।

नव जुग हे अँधियार कुँवा कस,भेड़ी असन झपावौं।

चंदन माटी राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं---।


घुरय हवा पानी मा महुरा ,चूरय  धरती दाई।

सुरसा मुँह कस स्वारथ बाढ़य,टूटय भाई भाई।

हाय विधाता भूख मार दे,तन ला कर दे कठवा।

नवा समै ला माथ नवाहूँ,जिनगी भर बन बठवा।

ठिहा ठौर के कहाँ ठिकाना,दरदर भटका खावौं।

चंदन  माटी  राखड़ भइगे,का के तिलक लगावौं।



नोहर होगे उन्हारी


भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


पहली जम्मों गांव गांव मा, माते राहय खेती।

सरसो नाँचे तिवरा हाँसे, जेती देखन तेती।।

करे मसूर ह मुचमुच फुलके, चले मया के आरी।

भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


पुरवा गाये राग फगुनवा, चना गहूँ लहराये।

मेड़ कुंदरा कागभगोड़ा, अड़बड़ मन ला भाये।

चना चोरइया गाय बेंदरा, खाय मार अउ गारी।

भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।


कोन सिधोवव खेत किसानी, मनखे मन पगलागे।

खेत बेच के खाय खवाये, शहर गाँव मा आगे।।

सड़क झडक दिस खेत खार ला, बनगे महल अटारी।

भर्री भाँठा खार भँठागे, घटके कती उन्हारी।

चना गहूँ सरसो अरसी के, चक हे ना रखवारी।।







होगे मरना भारी


खेत रुँधागे सड़क तीर के, होगे मरना भारी।

रहिरहि रोय किसान छेंव के, कइसे बूता टारी।


धरसा के बिन थमके गाड़ा, थमके नाँगर बइला।

छेंव खेत सब होगे बिरथा, चैन खुशी गे अइला।

फारम बनगे सड़क तीर मा, पइधे हें वैपारी।।

खेत रुँधागे सड़क तीर के, होगे मरना भारी।।


सड़क तीर मा जे पइधे हे, ते देखे बन गिधवा।

डहर बाट नइहे कहि डर मा, बेंचैं खेती सिधवा।

लचक के चक्कर मा हावय बड़, रुँधना बँधना जारी।

खेत रुँधागे सड़क तीर के, होगे मरना भारी।।


हरिया भर नइ जघा रिता हे, नइ बाँचे हे परिया।

हाय हाय गरु गाय करत हे, गय किसान अउ करिया।

भारी भरकम हे दुख तब ले, चुप शासन अधिकारी।

खेत रुँधागे सड़क तीर के, होगे मरना भारी।।



संसो बेटी बिहाव के


बाढ़े बेटी के बिहाव के, संसो दिन दिन खाये।

मांघ बुलकगे के फागुन आगे, सगा एक नइ आये।।


कौड़ी कौड़ी जोड़ जोड़ के, जोरा कर डारे हौं।

पर घर जाही बेटी कहिके, बड़ आँसू ढारे हौं।।

नान्हे नान्हे नोनी मन के, बर बिहाव होगे हे।

फेर मोर बेटी के काबर, लगन बार सोगे हे।।

हाथ रँगाये बिन बेटी के, नइ तो नैन मुँदाये।

बाढ़े बेटी के बिहाव के, संसो दिन दिन खाये।।


बेटी ला पर घर भेजे बर, मैं पापी लउहावौं।

काय करौं कुछु आय समझ ना, बाप बने मैं हावौं।

परखत हावस हाय विधाता, ददा बनाके मोला।

दूल्हा राजा आवै अँगना, सुरिरत हौं मैं तोला।।

चारी चुगली चले गली, गारी घलो सुनाये।

बाढ़े बेटी के बिहाव के, संसो दिन दिन खाये।।





छँइहा के मोल


किम्मत कतका हवै छाँव के,तभे समझ मा आथे।

घाम घरी जब सुरुज देव हा,आगी असन जनाथे।


गरम तवा कस धरती लगथे,सुरुज आग के गोला।

जीव जंतु अउ मनखे तनखे,जरथे सबके चोला।।

तरतर तरतर चुँहे पछीना,रहिरहि गला सुखाथे।

घाम घरी जब सुरुज देव हा,आगी असन जनाथे।


गरमे गरम हवा हा चलथे,जलथे भुइयाँ भारी।

घाम घरी बड़ जरे चटाचट, टघले महल अटारी।

पेड़ तरी के जुड़ छँइहाँ मा,अंतस घलो हिताथे।

घाम घरी जब सुरुज देव हा,आगी असन जनाथे।


मनखे मन बर ठिहा ठउर हे,जीव जंतु बर का हे।

तरिया नदिया पेड़ पात हा,उँखर एक थेभा हे।

ठाढ़ घाम मा टघलत काया, छाँव देख हरियाथे।

घाम घरी जब सुरुज देव हा,आगी असन जनाथे।


पेड़ तरी के घर जुड़ रहिथे,पेड़ तरी सुरतालौ।

हरे पेड़ पवधा हा जिनगी,सबझन पेड़ लगालौ।

पानी पवन हवै पवधा ले,खुशी इही बरसाथे।

घाम घरी जब सुरुज देव हा,आगी असन जनाथे।




मुखारी


ब्रस मंजन के माँग बाढ़गे, दतुन देख फेकागे।

आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।


खेत खार अब कोन ह जावै, तोड़ै कोन मुखारी।

मंजन आगे आनी बानी, होवै मारा मारी।

करँव भला का बात शहर के, गाँव ह घलो झपागे।

आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।


बम्हरी नीम करंज जाम के, दतुन करे सब रोजे।

दवा बरोबर दतुन जान के, पहली सबझन खोजे।

दाँत मसूड़ा मुँह के रोग ह, करत मुखारी भागे।

आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।


एक मिनट मा दाँत चमकगे, चाबे के नइ झंझट।

जीभी आगे अब नइ हावय, चिड़ी करे के कंझट।

दाँत बरत हे मोती जइसे, चाबत चना खियागे।

आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।


दाँत घलो हा पोंडा परगे, ब्रस घँसे के सेती।

ठेठरी खुरमी चाब सके नइ, काय चबाही रेती।

शरद गरम नइ सहि पावत हे, असली नकली लागे।

आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।





रील अउ रीयल


दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।

हाँसँय फाँसँय नाँचँय गावँय, खड़ें खील मा मनखें।।


जिनगी ला पिच्चर समझत हें, हिरो हिरोइन खुद ला।

धरा छोंड़ के उड़ें हवा मा, अपन गँवा सुध बुध ला।।

लोक लाज सत रीत नीत तज, हवैं ढील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


दुनिया ला देखाये खातिर, बदल रूप रँग बानी।

कभू फिरें बनके बड़ दानी, कभू गुणी अउ ज्ञानी।।

मया प्रीत तज मोती खोजें, उतर झील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


हवैं चरित्तर आज मनुष के, हाथी दाँत बरोबर।

मुख मा राम बगल मा छूरी, दाबे फिरें सबे हर।।

सपना देखें सरी जगत के, खुसर बील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।



 दिखावा नवा जमाना के


जुन्ना कोनो धरम करम हा, ढोंग दिखावा आये।

बता आज ये बात बात मा, केक काटना काये?


फौज फटाका तोरण तारा, स्टेज बफे समियाना।

भकर भिकिर बड़ डीजे बाजे, चले नाचना गाना।

पइसा पानी कस बोहाये, तभो मनुष मुस्काये।।

बता आज ये बात बात मा, केक काटना काये?


छोटे मा संस्कार दिखे नइ, बड़े दिखे नइ सुलझे।

पार्टी कहिके पीये खाये, कहिदे कुछु ता उलझे।।

नता पार परिवार भुलागे, संगत नंगत भाये।

बता आज ये बात बात मा, केक काटना काये?


पंगत पूजा दान दक्षिणा, कहाँ हवै अब बाँचे।

पाँव दिखे नइ मनखे ला अब, फकत मूड़ मा नाँचे।

खुद ला गिनहा कहे कोन हा, छोटे बड़े भुलाये।

बता आज ये बात बात मा, केक काटना काये?




काखर गुण जस गावौं


अद्भुत प्रतिभा भरे पड़े हे, काखर गुण जस गावौं।

उड़े हवा मा मैं मैं कहिके, वोला का समझावौं।।


कोनो जल ला कोनो थल ला, कोनो नभ ला नाँपे।

लड़े शेर बघवा भलवा ले, देखत जिवरा काँपे।।

दुर्लभ कारज करे कलेचुप, काखर नाम गिनावौं।

अद्भुत प्रतिभा भरे पड़े हे, काखर गुण जस गावौं।।


कोनो अतुलित बल के स्वामी, कोनो धन के राजा।

कोनो अद्भुत नाचे गाये, कोनो पीटे बाजा।।

कतको करतब हवै करइया, देख दंग रहि जावौं।

अद्भुत प्रतिभा भरे पड़े हे, काखर गुण जस गावौं।।


कलाकार के कला गजब हे, हावय सेवक दानी।

शूरवीर रँग रूप तेज मा, हें बड़ ज्ञानी ध्यानी।।

कठिन साधना सत जप तप ला, रोजे माथ नवावौं।

अद्भुत प्रतिभा भरे पड़े हे, काखर गुण जस गावौं।।




पइसा अउ संगी


पइसा के राहत ले मिलथें, किसम किसम के संगी।

रोज चढ़ाथें चना झाड़ मा, ख्वाब दिखा सतरंगी।।


काम करयँ नइ कभू अकेल्ला, रटथें यारी यारी।

जुगत बनाथें खाय पिये के, घूम घूम के भारी।।

चाँटुकार के घोर चासनी, बात कहयँ बेढंगी।

पइसा के राहत ले मिलथें, किसम किसम के संगी।


जिया जीतथें जुरमिल फोकट, झूठमूठ कर दावा।

राहन नइ दय पहली जइसे, रंग रूप पहिनावा।।

बना डारथें सिधवा ला तक, अपने कस हुड़दंगी।

पइसा के राहत ले मिलथें, किसम किसम के संगी।


देवयँ नइ सुझाव फोकट मा, साहब बइगा गुनिया।

किसन सुदामा के जुग नोहे, मतलब के हे दुनिया।

रसा रहत ले चुहके मनभर, तजयँ देख के तंगी।

पइसा के राहत ले मिलथें, किसम किसम के संगी।




भागत मोटर गाड़ी


हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।

देखावा अउ जल्दी बाजी,फोड़त हावय माड़ी।


जाने जम्मो झन जोखिम हे,तभो करे अनदेखा।

अपने हाथ बिगाड़त फिरथे,अपन भाग के लेखा।

उहू आदमी लउहा लेवय,जे टारे नइ काड़ी-।

हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।


मनखे तनखे मोटर गाड़ी,दिनदिन भारी बाढ़े।

साव चेत हो चलना पड़ही,रथे गाय गरु ठाढ़े।

हाल दिखे बेहाल सड़क के,का जंगल अउ झाड़ी।

हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।


खुदे झपाये अउ दूसर के,हाड़ा गोड़ा टोड़े।

बात बरजना घलो न माने,नशापान नइ छोड़े।

उहू कुदावै मोटर गाड़ी,जउने हवै अनाड़ी--।

हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।


नवा नवा गाड़ी आगे हे,आगे नवा चलैया।

यमराजा लेआघू निकले,देख सड़क हा भैया।

दुर्घटना ला देख जुड़ाथे,हाथ पाँव अउ नाड़ी।

हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।