Sunday 28 February 2021

मधुशाला छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 मधुशाला छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


दारुभट्ठी


गाँव गली पथ शहर नगर मा, दिख जाथे दारू भट्ठी।

इहाँ बड़े छोटे नइ लागे, सब आथे दारू भट्ठी।

सब ला एक समान समझ के, कहै जेब कर लौ खाली,

अपन तिजोरी मा पइसा नित, खनकाथे दारू भट्ठी।।


भीड़ भाड़ रहिथे मनखे के, चहल पहल रहिथे भारी।

रदखद दिखथे चारो कोती, करे नही कोनो चारी।

कतको झन छुप छुपके लेवैं, कतको झन खुल्लम खुल्ला,

झगरा माते दिखे इही कर, दिखे इही कर बड़ यारी।।


कोनो कोनो गम कहि ढोंके, कोनो पीये मस्ती मा।

साहब बाबू कका बबा का, सब सवार ये कस्ती मा।

लड़भड़ाय पीये पाये ते, खुदे मूड़ माड़ी फोड़े,

कतको पड़े अचेत इही कर, कतको भूँके बस्ती मा।।


बिलायती कोनो पीये ता, कोनो देशी अउ ठर्रा।

रोक पियइया ला नइ पावै, गरमी पानी घन गर्रा।

अद्धी पाव जुगाड़ करे बर, कतको पाँव परत दिखथे,

नसा पान के कतको आदी, पीथें खीसा नित झर्रा।।


मालामाल आज अउ होगे, जेन रिहिस काली कँगला।

चिंता छोड़ पियइया पीये, बेंच भाँज घर बन बँगला।

रोज पियइया बाढ़त हावय, हाँसत हे दारू भट्ठी।

खाय हवै किरिया कतको मन, नइ छोड़े दारू सँग ला।।


पूल समुंदर में पी बाँधे, टार सके नइ जे ढेला।

चोर पुलिस सबझन के डेरा, भट्ठी मेर भरे मेला।

दारू छोड़व कहे सुबे ते, संझा दिखथे भट्ठी मा,

रोजगार तक देवै भट्ठी, हें दुकान पसरा ठेला।।


छट्ठी बरही सब मा दारू, नइ सुहाय मुनगा मखना।

पी के मोम लगे कतको मन, ता कतको लागय पखना।

तालमेल तक दिखे गजब के, दिखे गजब दोस्ती यारी,

एक लेय बिन बोले दारू, एक जुगाड़े झट चखना।।


कतको सज धज बड़े बने हे, खुद बर खुद हार बनाके।

सब दिन हीने हें गरीब ला, ऊँच नीच पार बनाके।

एक पियइया होय बेवड़ा, फेर एक के फेंसन हे,

भला बुरा भट्ठी ला बोले, बड़का मन बार बनाके।।


हरे आज के थोरे दारू, सुन शराब के गाना ला।

कतको बाढ़े किम्मत चाहे, कोन भुले मयखाना ला।

अनदेखा करके सब पीथें, नसा नास के हाना ला,

गोद लिये सरकार फिरत हे, भट्ठी भरे खजाना ला।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Tuesday 16 February 2021

वर दे माँ शारदे (सरसी छन्द)

 वर दे माँ शारदे (सरसी छन्द)


दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।

गुण गियान यश जश बढ़ जावय,बाढ़ै झन अभिमान।


तोर कृपा नित होवत राहय, होय कलम अउ धार।

बने बात ला पढ़ लिख के मैं, बढ़ा सकौं संस्कार।

मरहम बने कलम हा मोरे, बने कभू झन बान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


जेन बुराई ला लिख देवँव, ते हो जावय दूर।

नाम निशान रहे झन दुख के, सुख छाये भरपूर।

आशा अउ विस्वास जगावँव, छेड़ँव गुरतुर तान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


मोर लेखनी मया बढ़ावै, पीरा के गल रेत।

झगड़ा झंझट अधम करइया, पढ़के होय सचेत।

कलम चले निर्माण करे बर, लाये नवा बिहान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


अपन लेखनी के दम मा मैं, जोड़ सकौं संसार।

इरखा द्वेष दरद दुरिहाके, टार सकौं अँधियार।

जिया लमाके पढ़ै सबो झन, सुनै लगाके कान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Friday 5 February 2021

आषाढ़-खैरझिटिया

 "आषाढ़"


            लकलक लकलक जरत भुइयाँ मानसून के हबरे ले वइसने जुड़ हो जथे,जइसे कोनो भभकत अँगेठा या आगी म गघरा भर पानी उल्दा जथे।रिमझिम रिमझिम पानी जब आषाढ़ धरके आथे,तब सबले जादा खुशी किसान मन ल होथे।अउ काबर नइ होही?इही आषाढ़ म किसान मन अपन महिनत ले सपना रूपी धान के बिजहा ल धरती दाई के कोरा म छितथे।आसाढ़ के आय ले धरती महतारी हरियर सवांगा म सजगे मुसुर मुसुर मुस्कायेल लग जथे।डारा पाना पुरवाही म हाथ हला हला के नाचथे।बादर के गरजई घुमरई अउ कड़कड़ कड़कड़ बिजुरी किसान मन बर एक ताल के काम करथे,जेखर सुर ताल म किसान मन अपन जाँगर अउ नाँगर ल साज के धरती दाई के कोरा म,करमा ददरिया के तान छेड़त,ओहो तोतो के अउ खन खन बाजत बइला के घुँघरू संग ,मगन होके महिनत करत नाचथे।फेर आने मनखे मन बर आसाढ़ या मानसून सिर्फ गर्मी ले राहत आय।वो मन गर्मी ले हदास खा जथे,फेर किसान उही जरत,भभकत गरमी म,मानसून के रद्दा जोहत किसानी के जम्मो जोरा ल करथे।मेड़ पार अउ मुही ल बाँधना,खँचका-डिपरा ल बरोबर चालना,काँटा खूँटी ल बिनना,काँद दूबी ल खनना ये सबो बुता ल तो उही भभकत गर्मी म साजथे।अउ घर म घलो उही गर्मी म आषाढ़ के आये के पहली पैरा धरथे,परदा भाँड़ी म पंदोली देथे,बखरी बारी ल रंग रंग के साग भाजी बोय बर चतवारथे,नार बियार ल चढ़ाये बर ढेंखरा लानथे,चौमास बर लकड़ी छेना ल भितराथे,छानी परवा ल घलो उही गर्मी म छाथे।अइसन घर - बन के जम्मो बूता ल साध के किसान मन आशा के जोती बारे मॉनसून अउ आषाढ़ के अगोरा करथे।अउ जब पानी के पहिली बूँद मूड़ म परथे तब मार खुशी म नाचेल धर लेथे।ताहन का पूछना,भिनसरहा उठ के बइला ल खवा पिया के नाँगर धरके खेत कोती पाँव बढ़ाथे।बइला ल जब किसान भिनसरहा कोटना म पानी पियाथे तब ओखर गला के घण्टी अउ किसान के मुख ले निकले सुघ्घर सिसरी(सीटी) मनभावन लगथे।एखर आनंद उही ले सकथे जेन कभू गाँव म सुने होही या देखे होही।

           आसाढ़ म किसान सँग ओखर पूरा परिवार नाचत झूमत खेती किसानी म लग जथे।बाँवत के बेरा के वर्णन कोनो बढ़िया कैमरा ले फोटू खींचे कस लगथे।चारो मुड़ा खेत।खेत म सइमो-सइमो करत कमइया,टुकनी बोरी म माढ़े धान,हरिया भर नाँगर नाँस म बनत सुघ्घर कूँड़,बइला के गला के खनकत घण्टी,किसान के मुख ले बरसत करमा ददरिया अउ ओहो तोतो के आवाज,निंदईया महतारी मनके हाथ के खनकत चूड़ी,खार म रटत पपीहा,पड़की अउ तीतुर के सुघ्घर बोल मन ल मोह लेथे। नान्हे नान्हे लइका मन हाथ म कुदारी धरे मनमाड़े कूदत नाचत टोकन कोड़थे।ये सब दृश्य मन म अपार खुशी भर देथे।एखर आनंद भी उही मनखे उठा सकथे जेन बाँवत के बेरा म कभू सपड़े होही।लिख के कवि या लेखक घलो वो मनोरम दृश्य अउ आनंद ल नइ दे सकय।ये परम् आनंद के अनुभूति सिर्फ उही मेर मिल सकथे।कतको बूता करे कखरो तन मन म थकासी नइ दिखे।बिहनिया ले सँझा काम बूता म लगे किसान पाछू बरस के जम्मो दुख पीरा ल भुलाके आसाढ़ म नवा आस जगाके,जाँगर टोर महिनत करथे।

               आषाढ़ के पहली बारिस जब भुइयाँ  ल चुमथे तब माटी महतारी सौंधी महक म महकेल लग जथे।वो महक ल लिख के बया करना असंभव हे।उही पहली बारिस के संग भुइयाँ म पड़े जम्मो लमेरा,बन,बिजहा धीरे धीरे अपन आँखी उघारथे।जेमा रंग रंग के काँदी,चरोटा,लटकना,धनधनी, उरदानी,अउ छिंद,परसा,बोइर,आम,जाम,अमली,बम्हरी,
कउहा,करंज,के फर पिकी फोड़के जागे बर धर लेथे। आषाढ़ मास म करिया करिया राय जाम पेड़ उप्पर कारी घटा कस दिखथे।लइका मन ओला टोरे बर टोली बनाके ए रुख ले वो चिल्लावत फेरा लगाथे।हाट बाजार म घलो ये फर अब्बड़ बिकथे।गाँव के गौठान म गरुवा गाय आषाढ़ के संग सकलायेल लगथे,काबर की डोली म धान पान बोवाथे।हरियर हरियर चारो मुड़ा चारा देखके गाय गरुवा के मन म घलो अपार खुशी होथे।गर्मी म लहकत लहकत दिन बिताये अउ सुख्खा काँद पात खाय के बाद आषाढ़ म हरियर चारा अउ पीये बर पानी सबो जघा गाय गरुवा म मिलेल लगथे।

            धरती दाई आषाढ़ म अपन नरी के पियास बुझावत ससन भर पानी पीथे। रझरझ रझरझ पानी बरसे ले तरिया,बाँधा, कुँवा बउली म पानी भरेल लग जथे।नरवा ,नँदिया,झरना,म धार बढ़ेल लगथे।चारो मुड़ा खोचका डबरा म पानी भर जथे।गली खोर म चिखला घलो मात जथे।कोनो साहब बाबू सूट बूट पहिरे चिखला पानी के डर ले पँवठा म पाँव मड़ावत धीर लगाके चलथे त उही म किसान मनखे बिन चप्पल के चभरंग चभरंग गीत गावत खुशी म बढ़थे।
लइका मन मनमाड़े खुशी म चिल्लावत चिल्लावत आषाढ़ के बरसा के मजा लेवत घड़ी घड़ी भींगथे।अउ रंग रंग के खेल खेलथे,गोल गोल घानी मूंदी घूमथे।बरसा के धार म पात पतउवा ल बोहा के थपड़ी पीटत अबड़ मजा करथे।फाँफा फुरफुन्दी के पाछू पाछू भागथे।अउ सबले खास बात जम्मो लइका मन खेलत खेलत "घानी मूंदी घोर दे,पानी दमोर दे कहिके"चिल्लावत फिरथे।इही मास म स्कूल घलो खुलथे।ममादाई के घर गरमी छुट्टी बिताये के बाद कापी बस्ता धरके फेर स्कूल म पढ़े लिखे बर जाथे।

      घुरवा,डबरा तरिया,नरवा,कुँवा,बउली के पानी म मछरी मन मेछरायेल लगथे।तरिया के घठोंदा बाढ़े बर धर लेथे।कहे के मतलब ये की तरिया म पानी भरे ले घाट घठोंदा उपरात जाथे।मेचका अउ झींगुर रट लगायेल लग जथे।बरसा के पानी पाके तलमलावत साँप, बिच्छी ,केकरा अउ कतको कीरा मकोड़ा अपन अपन बीला ले बाहिर निकलथे।पिरपिटी साँप जोथ्था जोथ्था इती उती देखे बर मिल जथे।ये मउसम म ये सब जीव मनके अब्बड़ डर रहिथे।कभू कभू घर कुरिया म घलो घूँस जथे।रंग रंग के कीरा ये मउसम म जघा जघा दिखथे।बउग बत्तर रतिहा अँजोर ल देख अब्बड़ उड़ियाथे।संगे संग रंग रंग के फाँफ़ा फुरफुन्दी घलो उड़थे।झिमिर झिमिर बरसत पानी म कौवा काँव काँव करत पाँख फड़फड़ावत छानी म बइठे रहिथे।त गौरइय्या ह दल के दल अँगना म बरसा म भींगत भींगत चिंव चिंव करत दाना चरथे।

        आषाढ़ ले सबला आस रहिथे।चाहे छोटे से छोटे जीव रहे या कोनो बड़का हाथी।आषाढ़ के बरखा सबला नवा जीवन देथे।आषाढ़ म किसान मन हम सबके पेट के थेभा धान के खेती करथे, उँखर महिनत ले ही सबके पेट बर दाना मिलथे।जइसे पेट भरे के बाद ही जीव मन आने काम ल सिधोथे वइसने खेती म ही दुनिया के आने सबो बूता टिके हवे।आषाढ़ आय के बाद किसान म अपन देवी देवता ल  मनाये  बर कतको अकन तिहार घलो मानथे।जेमा जुड़वास पहली तिहार होथे,जेन आषाढ़ मास के अँधियारी पाँख म अठमी के मनाये जाथे।ये दिन किसान मन अपन गाँव के शीतला दाई म तेल हरदी जघा के खेती किसानी अउ गाँव के समृद्धि बर बारम्बार पूजा अर्चना अउ वंदना करथे।ओखर बाद बारो महीना तीज तिहार के क्रम चलत रहिथे।हमर भारत भइयाँ म तिहार बार खेती के हिसाब ले चलथे।सावन महीना के हरेली ल पहली बड़का तिहार केहे जाथे।

आषाढ़ के बोहावत पानी  ल बचाये बर घलो हम सबला उदिम करना चाही ताकि भूजल  स्तर  म बढ़ोतरी होय,तरिया नदिया,बाँधिया म पानी भरे रहय। अउ बछर भर पानी के तंगई झन होय।आषाढ़ के बने बरसा बने किसानी के निसानी आय,अउ बने किसानी सुखमय जिनगानी के निसानी आय।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)

नोट बुक 5फरवरी

 Number of notes: 210


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# 210

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Date: 2021-02-05

Subject: 


किसान संग धान के बिजहा घलो ढेला भीतरी बादल ल टकटकी लगाय रात दिन देखे। आषाढ़ महीना म घलो बूंद बूंद ल


मनमाड़े बाजा बजत रहय,कोन जन मन कती मुड़ाय हे ते फेर तन




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# 209

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Date: 2021-02-04

Subject: 


सुरुज न8कलथे त चन्द्रा ल भूल जाथे मनखे।




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# 208

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Date: 2021-02-03

Subject: 


ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


पाँव मा बेड़ी बँधे हे ता कहाँ आजाद हन।

पर भरोसा जिंदगी कइसे बता आबाद हन।1


हम बने बर हन बने अउ टेंड़गा बर टेंड़गा।

मीत बर मधुरस हरन ता बैरी बर फौलाद हन।2


शांति सुख ला कोन तजथे कोन तजथे धन रतन।

फेर झटके सुख हमर सब का हमन अपवाद हन।3


नइ करन कभ्भू हमन चारी चुगली फोकटे।

बैर बाँधे आय नइ पर मीत बर उस्ताद हन।4


मेहनत मा तो हमी के ये जमाना हे टिके।

बोझ नोहन हम जमी बर बल्कि हम जयदाद हन।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 207

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Date: 2021-02-03

Subject: 


22(5)ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


आगाज से मतलब नही अंजाम चाही बने।

हाँ काम से मतलब नही परिणाम चाही बने।1


सूरज लुकाये रोज के गरमी घरी मा भले।

सरदी समय घर अंगना मा घाम चाही बने।2


देवय दरद दूसर ला बेपरवाह होके जौने।

पीरा भगाये बर उहू ला बाम चाही बने।3


बिन शोर अउ संदेश के तरसे घलो कान अब।

मन मा खुशी भर दै तिसन पैगाम चाही बने।4


आफत बुला झन रात दिन करके हटर हाय तैं।

जिनगी जिये बर जान ले आराम चाही बने।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 206

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Date: 2021-02-02

Subject: 


नइ समझ सकेस मोर अवकात अभी तक।

मोर भाग मा भोर नही हे बस रात अभी तक।


देखे हस मोर तैं कहाँ अवकात ला अभी।




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# 205

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Date: 2021-01-29

Subject: 


छत्तीसगढ़ सरस्वती साहित्य समिति बाल्को द्वारा कवि सम्मेलन सम्पन्न


"निस्तेजित हो सूर्य किरण चलने लगे पश्चिम की ओर।

झुरमुट में सुनाई दे पक्षियों के मनभावन शोर।

तब समझो शाम ढलने लगी है"- बंसीलाल यादव अभिलाषी


खेल रही है पानी से, छिपकर नाना नानी से।

हँसकर बोला करती है, चुपचुप तितली रानी से।-माणिक विश्वकर्मा"नवरंग"


गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर 26 जनवरी की शाम,  छत्तीसगढ़ साहित्य समिति के साहित्यकारों ने माँ भारती और वीर शहीदों को काव्यांजलि अर्पित किया। इस पावन अवसर पर देश भक्ति की धारा खूब बही, साथ ही पेड़ प्रकृति, बसंत बहार और सृंगार के गीत कविता और गजल आकर्षक और मनभावन के क्रेंद रहे। कार्यक्रम का आयोजन बंसीलाल यादव अभिलाषी के निवास स्थान भदरापारा बाल्को में हुवा। कार्यक्रम का शुभारंभ माँ शारदे की पूजा अर्चना के साथ हुई। माँ सरस्वती वंदना के साथ साथ छत्तीसगढ़ महतारी और भारत माता की भी वंदना की गई। समिति के संरक्षक गेंदलाल शुक्ल, अध्यक्ष महावीर चन्द्रा दीन, सचिव बंसीलाल यादव अभिलाषी और कोषाध्यक्ष पी सी पटेल आदि ने कोरबा, एनटीपीसी और बाल्को से पधारे  समस्त कवियों को श्रीफल और पुष्प गुच्छ प्रदान कर आत्मीय अभिनंदन किये। अतिथियों के उद्बोधन के पश्चात , जुटे समस्त कवियों के मुखार वृंद से हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषा में मनभावन गीत कविता और गजल की बरसात हुई। डॉ माणिक विश्वकर्मा नवरंग ने नई कविता के साथ साथ गजलनुमा शानदार बाल कविता पेश किया। दिलीप अग्रवाल और मुकेश चतुर्वेदी ने अपने व्यंग्य बाण देश के गद्दारों और भ्रष्ट लोगो पर छोड़े। वरिष्ठ साहित्य दादा उमेश अग्रवाल जी ने जीवन की सत्यता को प्रकृति से जोड़ते हुए, शानदार कविता पढा। जनाब युनूस दनियालपुरी ने सृंगारिक गजल कहे तो जनाब इकबाल अंजान ने मनभावन देशभक्ति गीत प्रस्तुत किया। महावीर चन्द्रा दीन, जीतेंन्द्र वर्मा खैरझिटिया, डाँ गिरिजा शर्मा, बंसीलाल यादव आदि कवियों ने गाँव और प्रकृति को अपने कविता में बाँधा तो राकेश खरे, अजय सागर गुप्ता, महंत शर्मा हरिभक्त ने वर्तमान व्यवस्था,समाज और संस्कृति को। आशुतोष शुक्ला की नई कविता सबको नई दिशा देने वाली थी। पीसी पटेल ने विविध दोहे पढ़कर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।डॉ विनोद कुमार सिंह और अजय सागर गुप्ता के मुक्तक आर्कषक और मनभावन थे। कार्यक्रम का काव्यमय उम्दा सन्चालन डॉ मणिक विश्वकर्मा नवरंग ने किया।

              उपस्थित कवियों और स्रोताओं में डॉ माणिक विश्वकर्मा नवरंग, उमेश अग्रवाल, जनाब युनूस दनियालपुरी, जनाब इकबाल अन्जान, डॉ गिरिजा शर्मा, दिलीप अग्रवाल, महावीर चन्द्रा दीन, पूरनचंद पटेल, बंसीलाल यादव, गेंदलाल शुक्ल,डॉ विनोद कुमार सिंह, मुकेश चतुर्वेदी, महंत शर्मा हरिभक्त, अजय सागर गुप्ता, राकेश कुमार खरे, जीतेंन्द्र वर्मा खैरझिटिया,सरस्वती यादव, पूजा राठौर, लक्ष्मीन बाई बरेठ, कन्हैया लाल बरेठ, आदित्य यादव, ओमप्रकाश यादव, सरस्वती यादव, प्रभात यादव, यशोधरा यादव, व्योम यादव आदि का नाम शामिल है।




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# 204

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Date: 2021-01-26

Subject: 


मले मूड़ मा धूल माटी धरा के शिवाना म ठाढ़े हवे वीर गा।

लगे तोप गोला सही तेज काया त ओधे भला कौन ह तीर गा।

नवाये मुड़ी जेन माँ भारती तीर ओला खवाये बला खीर गा।दिखाए कहु देश ल आँखी बैरी त फेके  भवाके जिया चिर गा।।




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# 203

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Date: 2021-01-26

Subject: 


.मोर गॉव अब शहर बनगे.....


शहरिया आरो म सिरागे ,

सियन्हिन के ताना |

लहलहावत खेतखार म बनगे,

बड़े-बड़े कारखाना |

नदिया नहर जबर होगे ,डाहर बनगे बड़ चंवड़ा|

पड़की परेवा फुरफुंदी नंदात हे,नंदात हे तितली भंवरा|

सड़क तीर के बर पीपर कटगे, कटगे अमली आमा|

सियान के किस्सा नई भॉय,सब देखे टीभी डरामा|

पाहट के आहट,अउ संझा के शॉति आज कहर बनगे...|

मैय हॉसव कि रोववौ,मोर गॉव आज  शहर बनगे.........|


संगमरमर के मंदिर ह,देवत हवे नेवता|

कहॉ पाबे गली म,अब बंदन चुपरे देवता?

तरिया ढोड़गा सुन्ना होगे,घर म होगे पखाना सावर|

बोंदवा होगे बिन रूख राई के,डंगडंग ले गड़गे टावर|

मया के बोली करकस होगे,लईका होगे हुशियार|

अत्तिक पढ़ लिख डारे हे,दाई ददा ल देथे बिसार|

बिहनिया के ताजा हवा घलो,अब जहर बनगे....|

मै हॉसव कि रोववौ,मोर गॉव आज शहर बनगे...|


मंदिर-मस्जिद गुरूद्वारा संग, सबला बॉट डरिस|

जंगल अउ रीता भुंइया ल,चुकता चॉट डरिस|

छत के घर म, कसके तमासा| सबकोई छेल्ला ,

नइ करेय कोई कखरो आसा|

होरी देवारी तीजा पोरा,घर के डेहरी म सिमटागे|

चाहे कोनो परब तिहार होय,सब एक बरोबर लागे|

नक्सा खसरा संग आदमी बदलगे,नइहे गाना बजाना|

चाकू छुरी बंदूक निकलगे,  सजगे  मयखाना |

चपेटागे बखरी बियारा,पैडगरी अब फोरलेन डहर बनके....|

मै हॉसव कि रोववौ मोर गॉव आज  शहर बनगे.....


    जीतेन्द्र कुमार वर्मा

   खैरझिटी(राजनॉदगॉव)




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# 202

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Date: 2021-01-26

Subject: 


घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


आज बिहना के होती, एती वोती चारो कोती।

तन मन मा सबे के, देश भक्ति जागे हवै।

खुश हे दाई भारती, होवय पूजा आरती।

तीन रंग के तिरंगा, गगन मा छागे हवै।

दिन तिथि खास धर, आशा विश्वास भर।

गणतंत्रता दिवस, के परब आगे हवै।

भेदभाव ला भुलाके, जय हिंद जय गाके।

झंडा फहराये बर, सब सँकलागे हवै।


खैरझिटिया


कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


जय जय भारत देश के, जय जय हिंदुस्तान।

जय जय जय माँ भारती, जय सैनिक बलवान।

जय सैनिक बलवान, तान के रेंगें सीना।

दै बैरी ला मात, तभे सम्भव हे जीना।

जेन दिखाये आँख, ओखरो कर देथे छय।

सीमा के रखवार, वीर सैनिक मनके जय।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 201

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Date: 2021-01-26

Subject: 


अपन देस(शक्ति छंद)


पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।

करौं बंदना नित करौं आरती।

बसे मोर मन मा सदा भारती।


पसर मा धरे फूल अउ हार मा।

दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।

बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।

सबो खूँट बगरे अँजोरी रहे।


बसे बस मया हा जिया भीतरी।

रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।

इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।

तभो  हे  घरो घर बिना बेंस के।

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चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।

सजाके बनावौं ग रानी सहीं।

किसानी करौं अउ सियानी करौं।

अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।


वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।

करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।

फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।

वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।

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जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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गणतंत्र दिवस की ढेरों बधाइयां




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# 200

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Date: 2021-01-25

Subject: 


30, गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


चारा के बिना मछरी गरी मा लहे कइसे।

धन कोड़िहा के घर मा भराये रहे कइसे।


छानी ला सजाये मा ठिहा ठौर टिके नइ।

नेवान जे घर के बने तेहा ढहे कइसे।


बड़ बाढ़गे हे गरमी हवा मा नही नरमी।

बिन पेड़ पतउवा के पवन जुड़ बहे कइसे।


घर गाँव गली खोर मा रोवत हवे बेटी।

अतलंग जमाना के सदा वो सहे कइसे।


माँ बाप के करजा हवे बेटा के उपर बड़।

बेटा ला जतन बर ददा दाई कहे कइसे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




2,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


सुख चैन सबो तोर सखा भंग हो जाही।

का आन खुदे से घलो यदि जंग हो जाही।


बन पुरवा बसंती कहूँ बन बाग नचाबे।

बेरंग पड़े जिनगी हा सतरंग हो जाही।


चलबे बने पथ मीत मया सत धरे सबदिन।

डर दुःख दरद तोर निचट तंग हो जाही।


कोठी मा रतन धन रही अउ बाँह मा ताकत।

ता बैरी जमाना घलो हा संग हो जाही।


सब बर मया धरके बढ़े चलबे सबे दिन तैं।

दुश्मन घलो हा देख तोला दंग हो जाही।


चंगा रही तनमन तभे देवारी चमकही।

होरी मा सराबोर सरी अंग हो जाही।


जब घेर लिही गम हा डराही नही मन हा।

गमगीन जिया मा घलो तब उमंग हो जाही।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


3,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़*

 

*मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन*


*221 1221 1221 122*


पथरा के जिया मोम कभू होय नही का।

अंतस हा बता तोर कभू रोय नही का।1


काटे चिरे के काम करत रोज हे मनखे।

भगवान घलो मन मा मया मोय नही का।2


तैं चील असन आँखी गड़ा रोज डराथस।

थक तोर कभू नैन घलो  सोय नही का।3


मन हा कहूँ हे करिया करे काय ता तरिया।

मन मैल ला सतसंग घलो धोय नही का।4


दाना घलो नइ होय तभो करथे किसानी।

थक हार कमइया हा गहूँ बोय नही का।5


नित डाँटथे फटकारथे बेटा ला बरजथे।

रिस बाँध के रोटी बता माँ पोय नही का।6


कोनो ला कहे कुछ ना मनाये कभू दुख ना।

परिवार के बोझा ला ददा ढोय नही का।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 199

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Date: 2021-01-23

Subject: 


आजाद हिंद फौज के सच्चा सिपाही ला नमन।

चमन,हमन,दमन, समन,गमन,अमन




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# 198

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Date: 2021-01-23

Subject: 


31,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


पेट बड़ खनाय हे सही मा अउ अघाय के।

अन्न पानी नइ तको हे भाग मा भुखाय के।1


जौन करजा लेत बेरा पाँव ला परत रिहिस।

तौन नाम लेत नइहे करजा ला चुकाय के।2


लत मनुष के गे बिगड़ नजर घुमाले सब डहर।

काम धाम हे करत पिरीत सत भुलाय के।3


छोट अउ बड़े खड़े लिहाज छोड़ के लड़े।

बाप ला घुरत हे बेटा आँख तक उठाय के।4


रेल चलथे पाट मा ता गाड़ी घोड़ा बाट मा।

आदमी उदिम करत हे रात दिन उड़ाय के।5


राग रंग साधना ये साज बाज साधना।

साधना लगन हरे जिनिस नही चुराय के।6


तोप ढाँक लाख चाहे दिख जथे बुराई हा।

 नइ लगे गियान गुण ला काखरो गनाय के।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


2,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


आय हे बसंत देख बाग मा बहार हे।

फूल के सुगंध हा पवन उपर सवार हे।1


मौर बाँध आमा हा मुचुर मुचुर गजब करे।

लाल लाल रंग मा पलास के सिंगार हे।2


भौंरा गुनगुनात हे ता तितली मन लुभात हे।

कूह कूह कूह कोयली करत पुकार हे।3


माते हे चना गहूँ मसूर सरसो अरसी हा।

साग भाजी तक सजे हे खेत जस बजार हे।4


आइना सही लगे नदी कुँवा के नीर हा।

बन गगन के रूप मा चमक धमक सुधार हे।5


राग छेड़ के पवन गवात हे नचात हे।

पात सुर मिलात हावे जइसे रे सितार हे।6


घाम नइहे जाड़ नइहे नइहे संसो अउ फिकर।

सबके मनके भीतरी उठे खुशी गुबार हे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


3,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


धान उगाबों चल सखा धरे कुदाल हल सखा।

बेटा अन किसान के सबे के बनबों बल सखा।1


जेन आन तेन रहिबों कोन कहिही का बता।

फोकटे करत दिखावा रूप झन बदल सखा।2


हे हमर दिमाग मा भराय बड़ गियान गुण।

काय करना आन मनके फोकटे नकल सखा।3


करबों काम ला हमर गा करबों नाम ला अमर।

काम मा कभू दुसर के देन नइ दखल सखा।4


कोठी उन्ना नइ रही खजाना उन्ना नइ रही।

तोर मोर जिंदगी तभो रही सफल सखा।5


बात मान बड़का मनके कर सहीं करम धरम।

पश्चिमी पवन चलत हे तैंहा झन फिसल सखा।6


एक दिन किसान के जवान के मितान के।

नाँव गाँव बड़ चमकही बात हे अटल सखा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


4,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


प्यार रंग मा सने फिरत हवस बही बने।

बाप माँ ला भूल गेस कोन ता कही बने।1


ध्यान ला जमा के रख गियान गुण कमा के रख।

लेवना तथे निकलथे दूध जब दही बने।2


मनखे मनके सोच ला समझ सके कहूँ नही।

सबके सब हवे गलत ता कोन हे सही बने।3


हंस के सुभाव देख हाँसथे सबे इहाँ।

कोकड़ा के भेष धर गरी सदा लही बने।4


हाँ नही कहत रहव ग देख ताक के समय।

हर जघा न हाँ बने न हर जघा नही बने।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


5,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


धरके धीर जे चले ते मनखे धीर हे कहाँ।

देश बर जे मर मिटे ते शूर वीर हे कहाँ।1


साधु रूप धर दनुज किवाड़ खटखटात हे।

सीता छटपटात हे लखन लकीर हे कहाँ।2


तोर मोर फेर मा वतन के बारा हाल हे।

माता भारती के तन बदन मा चीर हे कहाँ।3


हन गियानी कहिके मनखे लोक लाज बेच दिस।

बेच दिस दया मया बचे जमीर हे कहाँ।4


धन खजाना के घमंड मा मरत हे आदमी।

मीत सत मया दया हा मनखे तीर हे कहाँ।5


जेती देख तेती बस जहर के बरसा होत हे।

सबके जे गला मा उतरे मीठ खीर हे कहाँ।6


जीव शिव हा तंग हे मनुष गजब मतंग हे।

मंद पीये मांस खाये नीर छीर हे कहाँ।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


6,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़*


*फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*212 1212 1212 1212*


अमरे बर अगास फोकटे अड़े हे तोर घर।

देखे भर मा नाम के गजब बड़े हे तोर घर।1


मोर घर हा नींद भाँजे रोज लात तान के।

एक पग मा चुरमुराय बस खड़े हे तोर घर।2


आघू मा दुवार अउ पिछोत बारी मोर हे।

साज सज्ज़ा बस दिखावटी जड़े हे तोर घर।3


मोर घर मा भाई बहिनी माँ ददा बबा हवै।

भूत बंगला असन रिता पड़े हे तोर घर।4


पी घलो जहर ला मोर घर अमर हे देख ले।

दुःख डर दरद ले का कभू लड़े हे तोर घर।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 197

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Date: 2021-01-23

Subject: 


छेरछेरा(सार छंद)


कूद  कूद के कुहकी पारे,नाचे   झूमे  गाये।

चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।


पाख अँजोरी  पूस महीना,आवय छेरिक छेरा।

दान पुन्न के खातिर अड़बड़,पबरित हे ये बेरा।


कइसे  चालू  होइस तेखर,किस्सा  एक  सुनावौं।

हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।


युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर  के  द्वारे।

राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।


आठ साल बिन राजा के जी,काटे दिन फुलकैना।

हैहय    वंशी    शूर  वीर   के ,रद्दा  जोहय   नैना।


सबो  चीज  मा हो पारंगत,लहुटे  जब  राजा हा।

कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।


राजा अउ रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।

राज रतनपुर  हा मनखे मा,मेला असन भराये।


सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।

रहे  पूस  पुन्नी  के  बेरा,खुले रहे दरवाजा।


कोनो  पाये रुपिया पइसा,कोनो  सोना  चाँदी।

राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।


राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।

पूस  महीना  के  ये  बेरा, सबके  झोली भरबों।


ते  दिन  ले ये परब चलत हे, दान दक्षिणा होवै।

ऊँच नीच के भेद भुलाके,मया पिरित सब बोवै।


राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो होय ये जोरा।

कोसलपुर   माटी  कहलाये, दुलरू  धान  कटोरा।


मिँजई कुटई होय धान के,कोठी हर भर जावै।

अन्न  देव के घर आये ले, सबके मन  हरसावै।


अन्न दान तब करे सबोझन,आवय जब ये बेरा।

गूँजे  सब्बे  गली  खोर मा,सुघ्घर  छेरिक छेरा।


वेद पुराण  ह घलो बताथे,इही समय शिव भोला।

पारवती कर भिक्षा माँगिस,अपन बदल के चोला।


ते दिन ले मनखे मन सजधज,नट बन भिक्षा माँगे।

ऊँच  नीच के भेद मिटाके ,मया पिरित  ला  टाँगे।


टुकनी  बोहे  नोनी  घूमय,बाबू मन  धर झोला।

देय लेय मा ये दिन सबके,पबरित होवय चोला।


करे  सुवा  अउ  डंडा  नाचा, घेरा गोल  बनाये।

झाँझ मँजीरा ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।


दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।

हरे  बछर  भरके  तिहार  ये,छेरिक  छेरा  गा  लौ।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




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# 196

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Date: 2021-01-18

Subject: 


पहेली बुझौव्वल


 हाथ गोड़ बिन आथे जाथे।

दया मया सुखदुख बतियाथे।

लग जाथे सबझन के छाती।

का सखि दूल्हा,ना सखि पाती।


आवत हावय हेरव राचर।

आघू सुल्लू पाछू चाकर।

बिना जीव के हाड़ा हाड़ा।

का सखि दूल्हा,ना सखि गाड़ा।


आघू हरियर पाछू सादा।

खाये दाई बाबू दादा।

कम अउ जादा करे वसूली।

का सखि दूल्हा,ना सखि मूली।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा




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# 195

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Date: 2021-01-14

Subject: 


सोसल मीडिया अउ साहित्य लेखन-जीतेन्द्र वर्मा


       आज माँदी भात के कोनो पुछारी नइहे, मनखे बफे सिस्टम कोती भागत हे। जिहाँ के साज-सज्जा अउ आनी बानी के मेवा मिष्ठान, खान पान के भारी चरचा घलो चलथे। भले मनखे कहि देथे, कि पंगत म बैठ के खवई म ही आदमी मनके मन ह अघाथे, फेर आखिर म उहू बफे कोती खींचा जथे। मनखे के मन ला कोन देखे हे, आज तन के पहिरे कपड़ा मन के मैल ल तोप देथे। आज कोट अउ सूटबूट के जमाना हे, ओखरे पुछारी घलो हे ,चिरहा फटहा(उज्जर मन) ल कोन पूछत हे। अइसने बफे सिस्टम आय साहित्य अउ साहित्यकार बर सोसल मीडिया। भले अंतस झन अघाय पर पेट तो भरत हे, भले खर्चा होवत हे, पर चर्चा घलो तो होवत हे। कलम कॉपी माँदी बरोबर मिटकाय पड़े हे। 

         सोसल मीडिया के आय ले अउ छाय ले ही पता लगिस कि फलाना घलो कवि, लेखक ए। जुन्ना जमाना के कतको लेखक जे पाठ, पुस्तक, मंच अउ प्रपंच ले दुरिहा सिरिफ साहित्य सेवा करिस, ओला आज कतकोन मन नइ जाने। अउ उँखर लिखे एको पन्ना घलो नइ मिले। फेर ये नवा जमाना म सोसल मीडिया के फइले जाला जमे जमाना ल छिन भर म जनवा देवत हे कि फलाना घलो साहित्यकार ए, अउ ए ओखर रचना। सोसल मीडिया ,साहित्य कार के जरूरत ल चुटकी बजावत पूरा कर देवत हे, कोनो विषय , वस्तु के जानकारी झट ले दे देवत हे, जेखर ले साहित्यकार मन ल कुछु भी चीज लिखे अउ पढ़े  म कोनो दिक्कत नइ होवत हे। पहली  प्रकृति के सुकुमार कवि पंत के रचना ल पढ़ना रहय त पुस्तक घर या फेर पुस्तक खरीद के पढ़े बर लगे, फेर आज तो पंत लिखत देरी हे, ताहन पंत जी के जम्मो गीत कविता आँखी के आघू म दिख जथे। 

             सोसल मीडिया ल बउरना घलो सहज हे, *न कॉपी न पेन-लिख जेन लिखना हे तेन।* शुरू शुरू म थोरिक लिखे पढ़े म अटपटा लगथे ताहन बाद म आदत बनिस, ताहन छूटे घलो नही। सोसल मीडिया के प्लेटफार्म सिर्फ साहित्यकार मन भर बर नही,सब बर उपयोगी हे। गूगल देवता बड़ ज्ञानी हे, उँखर कृपा सब उपर बरसत रइथे, बसरते माँग अउ उपयोग के माध्यम सही होय। आज साहित्यकार मन अपन रचना ल कोनो भी कर भेज सकत हे, अपन रचना ल कोनो ल भी देखाके सुधार कर सकत हे। पेपर  अउ पुस्तक म छपाय के काम घलो ये माध्यम ले सहज, सरल अउ जल्दी हो जावत हे। आय जाय के झंझट घलो नइहे। सोसल मीडिया म कोनो भी चीज जतेक जल्दी चढ़थे ,ओतके जल्दी उतरथे घलो, येखर कारण हे मनखे मनके बाहरी लगाव, अन्तस् ल आनंद देय म सोसल मीडिया आजो असफल हे। कोरोनच काल म देख ले रंग रंग के मनखे जोड़े के उदिम आइस, आखिर म सब ठंडा होगे। चाहे कविता बर मंच होय या फेर मेल मिलाप, चिट्ठी पाती अउ बातचीत के मीडिया समूह। पहली कोनो भी सम्मान पत्र के भारी मान अउ माँग रहय फेर ये कोरोना काल के दौरान अइसे लगिस कि सम्मान पत्र फोकटे आय। कोनो भी चीज के अति अंत के कारण बनथे, इही होवत घलो हे सोसल मीडिया म। सोसल मीडिया म सबे मनखे पात्र भर नही बल्कि सुपात्र हे, तभे तो कुछु होय ताहन ,जान दे तारीफ। *वाह, गजब, उम्दा, बेहतरीन जइसे कतको शब्द म सोसल मीडिया के तकिया कलाम बन गेहे।* सब ल अपन बड़ाई भाथे, आलोचना आज कोनो ल नइ रास आवत हे। मनखे घलो दुरिहा म रहिगे कखरो का कमी निकाले, तेखर ले अच्छा वाह, आह कर देवत हे। सात समुंद पार बधाई जावत हे, हैपी बर्थ डे, हैपी न्यू इयर,  हैपी फादर्स डे,हैपी फलाना डे। फेर उही हैपी फादर्स डे या मदर डे लिखइया मन ददा दाई ल मिल के बधाई , पायलागि नइ कर पावत हे, सिर्फ सोसल मीडिया म दाई, ददा, बाई, भाई, संगी साथी के मया दिखथे, फेर असल म दुरिहाय हे। अइसे घलो नइहे कि सबेच मन इही ढर्रा म चलत हे, कई मन असल म घलो अपनाय हे।

       सोसल मीडिया हाथी के खाय के दाँत नइ होके दिखाय के दाँत होगे हे। जम्मो छोटे बड़े मनखे येमा बरोबर रमे हे। सोसल मीडिया साहित्यकार मन बर वरदान साबित होइस। लिख दे, गा दे अउ फेसबुक वाट्सअप म चिपका दे। नाम, दाम ल घलो सोसल मीडिया तय कर देवत हे। सोसल मीडिया म जतका लिखे जावत हे, ओतका पढ़े नइ जावत हे, ते साहित्य जगत बर बने नइहे। ज्ञान ही जुबान बनथे, बिन ज्ञान के बोलना या लिखना जादा  प्रभावी नइ रहे। सोसल मीडिया के उपयोग ल साहित्यकार मन नइ करत हे, बल्कि सोसल मीडिया के उपयोग साहित्यकार मन खुद ल साबित करे बर करत हे, खुद ल देखाय बर करत हे। कुछु भी पठो के वाहवाही पाय के चाह बाढ़ गेहे। कुछु मन तो कॉपी पेस्ट म घलो मगन हे, बस पठोये विषय वस्तु ल इती उती बगराये म लगे हे, वो भी बिन पढ़े। कॉपी पेस्ट म सही रचनाकार के नाम ल घलो कई झन मेटा देवत हे। सोसल मीडिया सहज, सरल, कम लागत अउ त्वरित काम करइया प्लेटफार्म आय, जे साहित्य, समाज, ज्ञान ,विज्ञान के साथ साथ  दुर्लभ जइसे शब्द ल भी हटा देहे। येखर भरपूर सकारात्मक  उपयोग करना चाही। छंद के छ परिवार सोसल मीडिया के बदौलत 150 ले जादा, प्रदेश भर के साधक मन ल संघेरके 50, 60 ले जादा प्रकार के छंद आजो सिखावत हे। 2016 ले  छंदपरिवार सरलग  छत्तीसगढ़ी साहित्य के मानक रूप म  काम  करत हे। सिसने अउ कई ठन समूह घलो हे जे येखर सकारात्मक उपयोग करत हे। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा




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# 194

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Date: 2021-01-13

Subject: 


29,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


आज नइ दिखे सुख बाँटे तिसन युवा कोनो।

काँटा ला डहर के काँटे तिसन युवा कोनो।1


नइ मिले कहूँ कोती दीया धरके खोजे मा।

मीत ममता सत ला छाँटे तिसन युवा कोनो।2


आज के जमाना मा नइ मिले इहाँ काबर।

काम हे गलत ता डाँटे तिसन युवा कोनो।3


देख जेला तेहर बस अमृत धन धरइया हे।

नइ मिले जहर ला चाँटे तिसन युवा कोनो।4


दरुहा मँदहा मिल जाथे पर कहाँ कभू मिलथे।

डोर एकता के आँटे तिसन युवा कोनो।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)



2,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


चाँद का सुरुज का, हे सब जहान कागज मा।

पर हमाय नइ मनखे के, बियान कागज मा।1


गोभ देथे छाती ला गोठ बात भाला कस।

मीठ मीठ हावे सबके जुबान कागज मा।2


बिन ठिहा ठउर के कतको गली गली भटके।

ऊँच ऊँच बड़ बन गेहे मकान कागज मा।3


नइ दिखाय एक्को कन प्यार व्यार मिलथे तब।

अब मितानी तक देखाथे मितान कागज मा।4


जेला देख तेला बस चाह हावे कागज के।

लागथे मनुष मनके हे निशान कागज मा।5


सुख घलो हे कागज मा दुख घलो हे कागज मा।

सोय मनखे मन देखाथे उड़ान कागज मा।6


काई कस जमे मन मा तोर मोर के मैला।

हे पुराण कागज मा अउ कुरान कागज मा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


3,ग़ज़ल - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम*


*फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन*


*212 1222 212 1222*


मोह के गरी मा मन ला कभू लहन झन दे।

सत मया के मंदिर मा झूठ छल रहन झन दे।1


चाल हा रही बढ़िया हाल ता रही बढ़िया।

काम कर गलत कोनो ला कुछू कहन झन दे।2


कीमती हे पानी पानी हरे जी जिनगानी।

फोकटे कहूँ कोती भी कभू बहन झन दे।3


वीर बनके चलते जा धीर बनके चलते जा।

अति घलो जिया ला जादा कभू सहन झन दे।4


आग राग इरसा के भभके चारो कोती बड़।

मीत मत मया के मीनार ला दहन झन दे।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 193

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Date: 2021-01-10

Subject: 


छेरछेरा

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धान धराये हे,कोठी म।

दान-पून  के,ओखी म।

पूस    पुन्नी    के   बेरा,

हे गाँव-गाँव म,छेरछेरा।


छोट - रोंठ  सब  जुरे  हे।

मया दया गजब घुरे   हे।

सबो के अंगना  - दुवारी।

छेरछेरा मांगे ओरी-पारी।

नोनी   मन   सुवा   नाचे,

बाबू   मन  डंडा    नाचे।

मेटे    ऊँच  -  नीच    ल,

दया  -  मया   ल   बांचे।

नाचत   हे  मगन   होके,

बनाके     गोल     घेरा।

पूस    पुन्नी     के   बेरा,

हे गाँव-गाँव  म,छेरछेरा।


सइमो- सइमो करत  हे,

गाँव   के   गली   खोर।

डंडा- ढोलक-मंजीरा म,

थिरकत    हवे     गोड़।

पारत              कुहकी,

घूमे      गाँव         भर।

छेरछेरा   के   राग    म,

झूमे    गाँव          भर।

कोनो  केहे  मुनगा  टोर,

त   केहे ,  धान  हेरहेरा।

पूस    पुन्नी    के    बेरा,

हे गाँव-गाँव म, छेरछेरा।


भरत   हे    झोरा  - बोरा,

ठोमहा - ठोमहा  धान म।

अड़बड़   पून   भरे   हवे,

छेरछेरा    के    दान   म।

चुक ले अंगना लिपाय हे।

मड़ई  -  मेला   भराय हे।

हूम - धूप - नरियर धरके,

देबी - देवता ल,मनाय हे।

रोटी - पिठा  म  ममहाय,

सबझन      के       डेरा।

पूस    पुन्नी     के    बेरा,

हे  गाँव-गाँव  म,छेरछेरा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795


छेरछेरा परब की आप सबला बहुत बहुत बधाई




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# 192

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Date: 2021-01-10

Subject: 


24,गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


बात मा बूता बने ता, तोप ताने कर कभू झन।

पर ठिहा ला बारे बर, बारूद लाने कर कभू झन।1


काम करथस रीस धरके, रेंगथस खुद तैं टमर के।

पर बिगाड़ा होही कहिके, खाई खाने कर कभू झन।2


जानथस खुद के ठिकाना, कोन कोती हावे जाना।

फोकटे पर बुध मा उलझे खाक छाने कर कभू झन।3


घाव तन के भर जथे पर, नइ भरे मन के लगे हा।

बात करुहा बोल जिवरा, कखरो चाने कर कभू झन।4


का भरोसा दे दिही कब कोन मनखे मन हा धोखा।

भेद अंतस भीतरी के खोल आने कर कभू झन।5


ओनहा कपड़ा असन सब छूट जाथे मैल तन के।

मैल मन के जाय नइ तैं, मन ला साने कर कभू झन।6


धूल धुँगिया के असन तो रोज के अफवाह उड़थे।

आँखी मा देखे बिना कुछु बात माने कर कभू झन।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 191

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Date: 2021-01-10

Subject: 


1222 1222 1222*

5,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


लगत हे धन रतन बड़ पाय बइठे हस।

कलेचुप तैं तभे मिटकाय बइठे हस।1


मरत ले मंद गाँजा भाँग ला पी के।

नशा मा चूर हो भकवाय बइठे हस।2


अपन बूता घलो ला टार नइ पावस।

धरा के बोझ बन मोटाय बइठे हस।3


सबे झन जानथे कइसे हवस तेला।

तभो दुल्हिन असन सरमाय बइठे हस।4


उदर मा भात बासी का हमाही अउ।

मरत ले मार गारी खाय बइठे हस।5


उना कोठी घलो भरगे हरागे मति।

तभे तो आज तक ललचाय बइठे हस।6


मनुष अस काम कर अउ नाम कर जग मा।

झरे पाना असन मुरझाय बइठे हस।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 190

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Date: 2021-01-08

Subject: 


1212 1212 1212 1212*


1,गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


चलत रथस तने तने, धरा के बोझ बन झने।

अपन बुता ला कर बने, धरा के बोझ बन झने।1


कभू न पेड़ पात ला लगाय बर गतर चलिस।

करत रथस खने खने, धरा के बोझ बन झने।2


दया मया सबे बरो के इरसा द्वेष रंग मा।

दिखत हवस सने सने, धरा के बोझ बन झने।3


अपन करम ला भूल के, दुसर बुराई ला सदा।

चलत रथस गने गने, धरा के बोझ बन झने।4


अपन के तैं बड़ाई बर, दुसर के सँग लड़ाई बर।

रथस सदा ठने ठने, धरा के बोझ बन झने।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


2,,गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


जनम जनम ये लोक मा, रही धरा के देवता।

जनम दिये तिही हरे, सही धरा के देवता।1


दया मया पा हाँसही, बने करम मा नाँचही।

करम रही गलत त, टोकही  धरा के देवता।2


खवाय हे पियाय हे, उठाय हे सुताय हे।

तभो कभू कहे कहीं, नही धरा के देवता।3


कहूँ दिखाही आँख पूत, खाही चैन सुख ल लूट।

मता सकत हवै, दहीं मही धरा के देवता।4


कपूत पूत बन जही,बबूल बर हा बन जही।

फसल तभो हाँ हाँस, रोपही धरा के देवता।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


3,गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


चलत चलत मा मिल जथे सरल सहज डहर घलो।

खुशी के हो या फेर गम के कट जथे पहर घलो।1


लहर के काम हे किनारा मा ढकेल लानना।

कभू कभू डुबाय देथे बीच मा लहर घलो।2


रतन निकलही धन निकलही कहिके लालची बने।

मथव झने समुंद ला निकल जथे जहर घलो।3


पलोय नइ सके कभू जे खेत खार बाग बन।

हवे इसन मा फोकटे बड़े बड़े नहर घलो।4


ललात हावे गाँव हा विकास ला बुलात हे।

विकास के विनास मा सहम गे हे शहर घलो।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


4,गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़*


*मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन*


*1212 1212 1212 1212*


सियान के बताय हा, सियान के सिखाय हा।

बखत पड़े मा काम आथे, टरथे हाय हाय हा।


कमाई आम आदमी के काम आय देश के।

खपे खुदे के कोठी मा अमीर के कमाय हा।


अमीर का गरीब के पुछारी घलो होत हे।

ठठाय मूड़ रोज रोज बीच के सताय हा।


भुखाय के उना हे थाल भूख प्यास बनगे काल।

उसर पुसर के खात हावे रात दिन अघाय हा।


उही मनुष हे काम के जे काम आय आन के।

अपन उदर ला पाल लेथे घोड़ा गदहा गाय हा।


अँकड़ गुमान जौन तीर तौन बाँटही का खीर।

रुतोय नीर जागथे का बीजहा घुनाय हा।


नवा जमाना के नवा फलत फुलत हे चोचला।

दिखे बदन मा ओनहा फटे छँटे कपाय हा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 189

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Date: 2021-01-07

Subject: 


4,ग़ज़ल- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़*


*फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन*


*2122 1122 1122 22*


रोशनी धरके सुरुज दिन मा निकलथे रोजे।

कर अपन काम बुता शाम के ढलथे रोजे।1


रेंगथे रोज हपट गिर घलो नान्हे लइका।

जीतथे जंग वो जे हार के चलथे रोजे।2


बेत जइसे बही तैंहर बने रहिथस काबर।

फर मया के जिया मा मोर तो फलथे रोजे।3


मेहनत जौन करे तौन बढ़े सब युग मा।

भागथे काम ले ते हाथ ला मलथे रोजे।4


देख के मोर मया कार कलेचुप रहिथस।

पेड़ अउ पात हवा संग मा हलथे रोजे।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 188

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Date: 2021-01-07

Subject: 


3,ग़ज़ल- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़*


*फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन*


*2122 1122 1122 22*


बुद्धि बल तोर हराही त बताबे मोला।

धीर सत तोर खराही त बताबे मोला।1


रोड मा गाय गरू  डार दिये हे डेरा।

कोई यदि गाय चराही त बताबे मोला।2


हाथ लंबा हवै कानून के कइथे सबझन।

चोर चंडाल धराही त बताबे मोला।3


आँख तैंहर कभू कोनो ल दिखाये झन कर।

तोला कोनो हा डराही त बताबे मोला।4


भर डरे उन्ना सबे कोठी सबे काठा ला।

फेर जब मन हा भराही त बताबे मोला।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 187

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Date: 2021-01-05

Subject: 


नरवा नँरिया सूख गे, आग बरत हे घाम।

सुरुज देव बिजरात हे, करिया गेहे चाम।


खैरझिटिया।।



पथरा कस छाती घलो, होगे तोर कठोर।

दया मया सत सार हे,गरब गुमान ल घोर।

खैरझिटिया


दरके झन दीवार हा, छाभ मूंद के राख।

नइ ते झट जोरँग जही, कोशिस करले लाख।

खैरझिटिया।।


बोली गुरतुर बोल के,सबके मन ला जीत।

बोली गोली होय झन, बोल बढ़ाथे मीत।

खैरझिटिया


तरतर तरतर चूँहथे, सरलग तन ले धार।

तभो कमइया मन कभू, कहाँ मानथे हार।

खैरझिटिया


सोज पाथ मा जे चले, तेहर नइ पछताय।

चलथे गिनहा पाथ में, ते आँसू बोहाय।

खैरझिटिया।।



रतिहा चमके चांद हा, दिन मा सूरज देव।

सब बर हे एक्के मया, नाम कहूँ भी लेव।

खैरझिटिया।।


ये दुनिया माया हरे, माया ले दुरिहाव।

माया में रमके रहू, ता पाहू बड़ घाव।

खैरझिटिया।।


मनके मैना के कभू, कतरो झन गा पाँख।

उड़न देव आगास मा, सपना के धर आँख।

खैरझिटिया।।।


तन मा ओढ़े ओढ़ना, मन ला दिये उघार।

मन ला सुघ्घर साफ रख, जिनगी अपन सुधार।

खैरझिटिया।।।


हीरा मोती के रतन, तन मा ले हस लाद।

ले जाबे तैंहर बता, काय मरे के बाद।

खैरझिटिया


मोर मोर कहिके मरे, बता काय ये तोर।

मोर मोर ला छोड़के, मया जिया मा घोर।

खैरझिटिया


सादा सादा ओनहा, सादा टीका माथ।

तभो धरे हे पाँव हा, काबर उल्टा पाथ।

खैरझिटिया


रौब झाड़ना बंद कर, रौब रथे दिन चार।

हाड़ मास के तन हवै, हो जाही झट हार।

खैरझिटिया।।


रो के गा के जिंदगी, आघू बढ़ते रोज।

हार जीत होते रथे, रहे नही पथ सोज।

खैरझिटिया।।



माटी के मनखे हरस, पथरा कस बर्ताव।

खुद बर घाटा हे घलो, देवय पर ला घाव।

खैरझिटिया।।


जनम मरण के फेर ला, कोन दिही सुलझाय।

अतके सबझन जानथे, आथे तेहर जाय।

खैरझिटिया।।


यस जस बढ़ही तोर जी, रोज बने कर काम।

कारज ले पहिचान हे, कारज ले हे नाम।

खैरझिटिय


रण मा जा झन म्यान धर, होबे करही हार।

बैरी घलो सुजान हे, आँकत हस कम कार।

खैरझिटिया



सबदिन बस दुख बाँटथस, येला वोला जोर।

खुशी घलो ला बाँट ले, काय तोर अउ मोर।

खैरझिटिया



पाँख पाय हौं मैं कही, फोड़े थल मा काँच।

रटहा डारा मा चढ़े, जादा झन रे नाँच।

खैरझिटिया


बरी बिजौरी अब इहाँ, कोनो कहाँ बनाय।

तेखर सेती आषाढ़ में, मँहगाई छा जाय।

खैरझिटिया


तू तू मैं मैं मा टुटे, कतको घर संसार।

गारी गल्ला फोकटे, हवै फोकटे रार।

खैरझिटिया।।


हाय हाय करते करत, उम्मर दिये गुजार।

काय मिलिस तेला बता, पूछत हवै तिखार।

खैरझिटिया


बाग बगीचा के कभू, होवय झने उजार।

पेड़ पात मा छुपे हवै, के हे भैया सार।

खैरझिटिया


रखव ख्याल बन बाग के, बन सबके आधार।

बन बचाय बर सब झने,बन जावव रखवार।

खैरझिटिया।।।



थोर बहुत धन ला धरे, मनुष गजब इतराय।

अँकड़े बकरे तौन के, आज जातरी आय।

खैरझिटिया


ये तैं का करथस सगा, बोलस ना गोठियास।

छोट मोट ला छोड़ के, खोजत हस का खास।

खैरझिटिया।।


वजन दार कहि बात तैं, सबके मन ला जीत।

जेहर ज्ञानी अउ गुनी, बजे तेखरे गीत।

खैरझिटिया


लोख्खन ले बाहिर हवस, मानस नइ कुछु बात।

करबे यदि उत्पात ता, पड़ही जमके लात।

खैरझिटिया


गतर चले नइ काम बर, बाते भर ला जान।

काबर तैं खुद ला तभो, समझत हवस महान।

खैरझिटिया


नाक बोहावय जाड़ मा, सनसन बाजय कान।

काया काँपे रात दिन, निकल जात हे जान।

खैरझिटिया।।


रो के झन डरह्वाय कर, गलती करके रोज।

गारी गल्ला नइ मिले, काम करत चल सोज।

खैरझिटिया।।


महिना आगे पूस के,बिक्कट जाड़ जनाय।

कथरी कमरा का करे, मुँह हे पवन उलाय।

खैरझिटिया


दुख देखत डररात हस, सुख पाके इतराय।

करनी धरनी तोर कुछ, कभू समझ नइ आय।

खैरझिटिया


रखले मया सँकेल के, मया दया ए सार।

मया बिना मन नइ लगे, महिमा मया अपार।

खैरझिटिया


बाप खाँध मा बोझ हे, बेटा हाथ हलाय।

तने खड़े बेटा हवै, माथा ददा नवाय।

खैरझिटिया


ये माया अउ मोह मा, मनखे हवै भुलाय।

पहली पकड़े घेंच ला, तेखर बाद झुलाय।

खैरझिटिया


[1/5, 9:34 AM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: दोहा-


गुरू हाथ थामे बिना, जिनगी हे बेकार।

करम जगावै भाग ला, गुरू लगावै पार।


खैरझिटिया


*र* या *पार* से दोहा आमन्त्रित हे


दोहा के नीचे अपन नाँव लिख सकत हव💐🙏🏻🙏🏻

[1/5, 10:33 AM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: रद्दा ला चतवार के, रख ले भैया पाँव।

तभे ठिहा मिलही सहज, होही यस जस नाँव।


खैरझिटिया

[1/5, 11:33 AM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: नरवा नँरिया सूख गे, आग बरत हे घाम।

सुरुज देव बिजरात हे, करिया गेहे चाम।


खैरझिटिया

[1/5, 12:01 PM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: तन मा ओढ़े ओढ़ना, मन ला दिये उघार।

मन ला सुघ्घर साफ रख, जिनगी अपन सुधार।

खैरझिटिया

[1/5, 12:04 PM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: मनके मैना के कभू, कतरो झन गा पाँख।

उड़न देव आगास मा, सपना के धर आँख।

खैरझिटिया

[1/5, 12:08 PM] जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: सोज पाथ मा जे चले, तेहर नइ पछताय।

चलथे गिनहा पाथ में, ते आँसू बोहाय।

खैरझिटिया




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# 186

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Date: 2021-01-05

Subject: 


2,ग़ज़ल- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़*


*फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन*


*2122 1122 1122 22*


आजकल तोर उदिम मोला गिराये के हे।

कद बढ़े थोर बहुत तेला खिराये के हे।1


काल कर डारे खुदे साल नवा कहिके तैं।

लागथे अब ये बछर तोर सिराये  के हे।2 


बात बानी कभू कखरो तो सुनस नइ चिटिको।

नइ दवा जिद के हे काया के पिराये के हे।3


लालची बनके निकलबे कहूँ कोती झन तैं।

पथ मा अइसन ठिहा ना ठौर थिराये के हे।4


घर किराये के हरे कहि बिना जतने रहिथस।

सोच जिनगी मिले हे तौन किराये के हे।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 185

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Date: 2021-01-04

Subject: 


कलम अउ हथियार-खैरझिटिया


            कलम ले निर्माण होथे, त हथियार ले विनास। कलम विचार के साधन आय, त हथियार युद्ध के। कहे के मतकब कलम विचार के म8दान म लड़थे त तलवार युद्ध के। कलम मनखे मनके आज के सबले बड़े जरूरत कलम हे, काबर की कलम ले ही मनखे-तनखे, जीव-जानवर, पेड़-प्रकृति सबके सिरजन सम्भव हे। येमा कोनो दू मत नइहे, कि हथियार ले कही जादा ताकतवर कलम हे।  कलम धरइया हाथ के तो उद्धार होबे करथे,ओखर संगे  संग वोमा दुसर के घलो उद्धार करे के ताकत होथे। कलम के डंका सिरिफ आज भर नइ बाजत हे, बल्कि कलम कई बछर पहली ले अपन ताकत ल देखावत हे, अउ आघू समय म घलो ताकतवर रही। कलम ताकतवर हे ,कलम म सिरजन के शक्ति हे तभे तो अनगढ़ लइका के हाथ म सबले पहली कलम धराये जाथे, ताकि वो लइका पढ़ लिख के अपन, अपन परिवार अउ देश राज म नाम कमाये। हथियार कतको चले, आखिर म ओखर फैसला कलम ले ही होथे। राजा पृथ्वीराज चौहान, के तलवार ल ओखर राजकवि चन्द्रबरदाई के कलम ह धार करत रिहिस, येला सबो जानथन। आजादी के लड़ाई म घलो लेखक कवि मनके कविता, लेख सबले बड़े हथियार रिहिस। अंगेज मन तलवार ले जादा कलम ले डरिन। कबीर, सुर, तुलसी, जायसी, केशव, बिहारी, रहीम के जमाना के हथियार भले जंग लगके, सड़ गे होही, फेर उँखर कलम आजो चमचम चमचम चमकत हे। माखनलाल चतुर्वेदी, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत, जय शंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, नागार्जुन, केदारनाथ अग्रवाल, शमशेर बहादुर सिंह, गजानन्द माधव मुक्तिबोध, मुंसी प्रेमचंद, भीष्म साहनी, फणीश्वर नाथ रेणु आदि अनेक कवि लेखन मनके कलम रूपी तलवार आजो वैचारिक मैदान म प्रभावशाली अउ उपयोगी हे, उँखर धार जस के तस बने हे। कलम हथियार के काम कर सकथे फेर हथियार कलम के काम नइ कर सके। जतका डरावना हथियार हे ओतके कलम घलो। भले राजतंत्र तलवार के फम म चलिस होही फेर लोकतंत्र कलम के दम म ही चलही। हथियार बाहरी ताकत अउ स्वयं के सुरक्षा बर उपयोगी हे ,वइसने कलम घलो सब के सुरक्षा के गूढ़ गोठ बताथे। कलम, हथियार ल कइसे बउरना हे तेखर बारे म घलो बताथे। फेर हथियार कलम ल नइ अपन कोती कर  सके। कलम सही ल सही अउ गलत ल गलत कहय, उही श्रेष्ठ हे। कलमकार के तीन रूप हे, जेमा पहला वो जेन पर उपकार के काम आथे ते उत्कृष्ट कलम या कलमकार 

कहिलाथे, मध्यम कलम या कलमकार म कलमकार के स्वयं के गुणगान या स्वयंसुख रहिथे, अउ अधम कलम या कलमकार म चाटुकारिता, द्वेष ,दंगा, पर निंदा जइसे बुराई दिखथे।

           हथियार जेखर हाथ म हे, वो फकत योद्धा होय,ये कोनो जरूरी नइहे, वो कायर, कपटी अउ दगाबाज घलो हो सकथे। जइसे तलवार, सच्चाई बर उठे, एक सच्चा योद्धा के हाथ म ही शोभा पाथे, वइसने कलम घलो, उही शोभायमान होथे, जेमा निर्माण के ताकत होथे। तलवार आसानी से खरीदे जा सकथे, फेर कलम ल खरीदना हे त करम ल बने बनाये बर पड़थे। तभे कलम ओखर गाथा गाथे। कलम म भूत, वर्तमान के साथ साथ भविष्य ल घलो झाँके अउ सँजोय के ताकत होथे, जबकि तलवार भूत म घलो लहू बोहाइस, वर्तमान म घलो बोहात हे अउ भविष्य म घलो बोहाही। आज मनखे कलम छोड़ तलवार ल थामत हे,जे दुखद हे, जेमा सिर्फ विनास ही हे। तलवार ल सामने खड़े मनखे भर डरथे, फेर कलम के डर म कतको के होश ठिकाना लग जथे। जइसे तलवार चलाये बर योद्धा म जिगर होना चाही, वइसने कलमकार के ह्रदय घलो निर्मल होना चाही। कलमकार ल लोभ, मोह म नइ आना चाही, चाटुकारिता, अउ अल्प ज्ञान घलो निर्माण म बाधक होथे। कलमकार म सबे बर समान भाव, निर्मल मन, अउ सृजनात्मक अउ समयक विचार होना चाही।

         तलवार उही श्रेष्ठ जे सच्चाई बर उठे, अउ कलम उही श्रेष्ठ जे सच्चाई लिखे। तलवार उठही त विरोधी के ही सही पर खून बोहाबे करही, फेर कलम थमइया हाथ म ये ताकत होना चाही कि, खून खराबा के स्थिति घलो टल जाये। समाज म सत, शांति अउ समभाव बने रहय। कलमकार के महत्व एक योद्धा ले कही जादा हे। *तलवार कोनो राज या कोनो राजा ल जीत सकथे, फेर कलम मनखे के मन ल जीते के ताकत रखथे।*


अंत म राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर के प्रसिद्ध कविता कलम या तलवार प्रस्तुत हे--


दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार 

मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार


अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान

या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान


कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली, 

दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली 


पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे, 

और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे 


एक भेद है और वहां निर्भय होते नर -नारी, 

कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारी 


जहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले, 

बादल में बिजली होती, होते दिमाग में गोले 


जहाँ पालते लोग लहू में हालाहल की धार, 

क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में नहीं हुई तलवार



जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 184

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Date: 2021-01-04

Subject: 


1,ग़ज़ल- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़*


*फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन*


*2122 1122 1122 22*


जे नशा पान के चक्कर मा पड़े ते रोये।

फाकटे फोकटे बस रोज लड़े  ते रोये।1


माँग बेरा के समझ कतको हा बढ़गे आघू।

जौन एक्के जघा रहि जाय खड़े  ते रोये।2


फायदा हे बने मिलजुल के रहो सबझन सँग।

डार ले पान असन पकके झड़े  ते रोये।3


बेर ला देख के बदलेल घलो तो लगथे।

रात दिन जौन अपन जिद मा अड़े ते रोये।4


छत के बस पूछ परख होत हवै सब कोती।

आज नेवान तरी जौन गड़े ते रोये।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 183

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Date: 2021-01-03

Subject: 


शिक्षा अउ संस्कार, जरूरी हावय दोनों।




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# 182

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Date: 2021-01-01

Subject: 


लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों। दया मया के धागा धरके, सुख शांति के पतंग उड़ाबों। दान धरम पूजा व्रत करबों, गाबों मिलजुल के गाना। छोट बड़े के भेद मिटाबों, धरबों इंसानी बाना। खीर कलेवा खिचड़ी खोवा,तिल गुड़ लाडू खाबों। नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों। सुरुज देव ले तेज नपाबों,मंद पवन कस मुस्काबों। सरसो अरसी चना गहूँ कस,फर फुलके जिया लुभाबों। रात रिसाही दिन बढ़ जाही, कथरी कम्म्बल घरियाबों। नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों। मान एक दूसर के करबों,द्वेष दरद दुख ले लड़बों। आन बान अउ शान बचाके, सबके अँगरी धर बढ़बों। लोभ मोह के पाके पाना, जुर मिल सब झर्राबों। नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों। जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को कोरबा(छत्तीसगढ़) ------------------------- # 51 ------------------------- Date: 2020-01-13 Subject: मकर सक्रांति(सार छंद) सूरज जब धनु राशि छोड़ के,मकर राशि मा जाथे। भारत  भर  के मनखे मन हा,तब  सक्रांति  मनाथे। दिशा उत्तरायण  सूरज के,ये दिन ले हो जाथे। कथा कई ठन हे ये दिन के,वेद पुराण सुनाथे। सुरुज  देवता  सुत  शनि  ले,मिले  इही  दिन जाये। मकर राशि के स्वामी शनि हा,अब्बड़ खुशी मनाये। कइथे ये दिन भीष्म पितामह,तन ला अपन तियागे। इही  बेर  मा  असुरन  मनके, जम्मो  दाँत  खियागे। जीत देवता मनके होइस,असुरन नाँव बुझागे। बार बेर सब बढ़िया होगे,दुख के घड़ी भगागे। सागर मा जा मिले रिहिस हे,ये दिन गंगा मैया। तार अपन पुरखा भागीरथ,परे रिहिस हे पैया। गंगा  सागर  मा  तेखर  बर ,मेला  घलो  भराथे। भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे। उत्तर मा उतरायण खिचड़ी,दक्षिण पोंगल माने। कहे  लोहड़ी   पश्चिम  वाले,पूरब   बीहू   जाने। बने घरो घर तिल के लाड़ू,खिचड़ी खीर कलेवा। तिल अउ गुड़ के दान करे ले,पावय सुघ्घर मेवा। मड़ई  मेला  घलो   भराये, नाचा   गम्मत   होवै। मन मा जागे मया प्रीत हा,दुरगुन मन के सोवै। बिहना बिहना नहा खोर के,सुरुज देव ला ध्यावै। बंदन  चंदन  अर्पण करके,भाग  अपन सँहिरावै। रंग  रंग  के  धर  पतंग  ला,मन भर सबो उड़ाये। पूजा पाठ भजन कीर्तन हा,मन ला सबके भाये। जोरा  करथे  जाड़ जाय के,मंद  पवन  मुस्काथे। भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे। जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को(कोरबा) ------------------------- # 50 -------------------------




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# 181

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Date: 2021-01-01

Subject: 


तुम्ही तो हो


 तुम सागर के मोती हो। 

तुम जीवन के ज्योति हो।

 पर्व खुशी के तुम ही हो,

तुम पावन सुरहोती हो । 


ज्ञान के साक्षात मूर्ति हो तुम। 

अभावों के पूर्ति हो तुम।

 सुगम पथ तुम,तीव्र रथ तुम,

 पवन,जल के फूर्ति हो तुम। ××××××


तुम शांति के सेज हो।

 तुम सूरज के तेज हो। 

बेरंग जिंदगी के पट को, 

 रंगने वाले रंगरेज हो। 

सबसे पहले उठ जाती हो, और आखिर में सोती हो-----


तुम ही हो शुभ गुण राशि। 

तुम ही हो मथुरा और कासी। 

 साथ तुम्हारे रहती हरपल,

 सुख शांति बनकर दासी।


 ममता की मूरत। 

मनभावन सूरत। 

आज और कल की,

 तुम ही हो जरूरत। 

दर्द दबाकर भीतर भीतर, सिसक सिसक कर रोती हो---


खैरझिटिया




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# 180

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Date: 2021-01-01

Subject: 


----------------------------------- अंधकार को क्यो बढ़ाने चले हो? प्रकाशित दीपक बुझाने चले हो? जहॉ हर मानव समान है, वहॉ जात-पात का डाला घेरा| सच्चाई को ठुकराकर, झूठ का लगाया फेरा| कानून-कायदा तोड़कर, मन की उडा़न भरता रहा| जो आया मन में वही, आजतक करता रह | अपनी बनाई झूठी कायदा क्यो निभाने चले हो? अंधकार को क्यो बढा़ने चले हो? प्यार बरसती संसार में, तूने छल कर दी| शॉतिमय वातावरण में, कोलाहल कर दी| रिस्तो की डोर को, पल में कॉट दिया| सेवा-भाव भुलाकर, कुकर्म को छॉट लिया| दिखावे की आड़ में,सच्चाई क्यो मिटाने चले हो? अंधकार को..................................? जो बचपन में खेला, मॉ की ऑचल में| वही बेटा बदल गया, आज और कल में | बेटा और बॉप में, आज कौन बड़ा है, राह में बड़प्पन लिये, पैसा खड़ा है | माया में लिप्त होकर,क्यो माया गान गाने चले हो? अंधकार...........................? अंहकार का दास बने हो, अपना हर ईमान बेचकर| अंहकारी न जी पाते है, पर मग्न हो क्यो यह देखकर| सत्य प्रीत का है यह जीवन, देखें कहानी किस्सा में, पावन थी माता सीता, न जली अग्नि परीक्षा में| पर दुराचारी होकर, तन अपना क्यो तपाने चले हो? अंधकार को..................................? माया का पंख लगाकर, छितिज में क्यो उड़ रहे हो? सेवा-सतसंग कभी न किया, उनसे हमेशा दूर रहे हो| स्वार्थी जीवन जीता रहा, किया न कभी उपकार| जीवन संभालो अपना बंदे, धर्म को मान आधार | जो जग में अनमोल है,वही क्यो भूलाने चले हो? अंधकार को...................? जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" बाल्को(कोरबा)




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# 179

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Date: 2021-01-01

Subject: 


नव वर्ष मंगलमय हो


बिदा कर गाके गीत,बारा मास गये बीत।

का खोयेस का पायेस,तेखर बिचार कर।।

गाँठ बाँध बने बात,गिनहा ला मार लात।

उन्नीस के अटके ला,बीस मा जी पार कर।।

बैरी झन होय कोई,दुख मा न रोय कोई।

तोर मोर छोड़ संगी,सबला जी प्यार कर।।

जग म जी नाम कमा,सबके मुहुँ म समा।

बढ़ा मीत मितानी ग,दू ल अब चार कर।।


अँकड़ गुमान फेक,ईमान के आघू टेक।

तोर मोर म जी मन, काबर सनाय हे।।।

दुखिया के दुख हर,अँधियारी म जी बर।

कतको लाँघन परे, कतको अघाय हे।।।

उही घाट उही बाट,उही खाट उही हाट।

उसनेच घर बन,तब नवा काय हे।। ।।।।

नवा नवा आस धर,काम बुता खास कर।

नवा बना तन मन,नवा साल आय हे।।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया

बाल्को,कोरबा


नवा बछर के आप ला झारा झारा जोहार,सादर बधाई,नमन💐💐💐💐🙏




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# 178

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Date: 2020-12-31

Subject: 


4,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


खुशी मा आन के अंगार बोहाबे।

अपन भर बर बता का प्यार बोहाबे।


बड़े होगे हवस बतिया घलो बढ़िया।

बने कइही कते यदि लार बोहाबे।


नदी मा पानी हे पूरा उतरबे झन।

कहूँ अँड़बे ता धारो धार बोहाबे।


गुरू ग्यानी गुनी बड़का के कर संगत।

कहा नइ मानबे हर बार बोहाबे।


बिना पतवार के डोंगा बने जिनगी।

बता लहरा बिना वो पार बोहाबे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


5,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


लगत हे धन रतन बड़ पाय बइठे हस।

कलेचुप तैं तभे मिटकाय बइठे हस।1


मरत ले मंद गाँजा भाँग ला पी के।

नशा मा चूर हो भकवाय बइठे हस।2


अपन बूता घलो ला टार नइ पावस।

धरा के बोझ बन मोटाय बइठे हस।3


सबे झन जानथे कइसे हवस तेला।

तभो दुल्हिन असन सरमाय बइठे हस।4


उदर मा भात बासी का हमाही अउ।

मरत ले मार गारी खाय बइठे हस।5


उना कोठी घलो भरगे हरागे मति।

तभे तो आज तक ललचाय बइठे हस।6


मनुष अस काम कर अउ नाम कर जग मा।

झरे पाना असन मुरझाय बइठे हस।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 177

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Date: 2020-12-31

Subject: 


3,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


नचा सरसर बहत सबला हवा जइसे।

बने रह तैं सबे झन बर दवा जइसे।


जे पाले पेट ला परके भरोसा मा।

उही रहिथे कुकुर कस पोंसवा जइसे।


मनुष आवस मरम ला जानथस तभ्भो।

करत हस काम काबर जोजवा जइसे।


महीना चैत अउ बैसाख मा धरती।

लगे गरमे गरम तीपे तवा जइसे।


जमाना हे दिखाये के दिखा गुण ज्ञान।

कलेचुप झन रहे कर भोकवा जइसे।


कटे नइ एक्को दिन देखे बिना तोला।

मिले कर झन मया मा तन्खवा जइसे।


बढ़े हे जाड़ काँपे हाड़ हुहु हुहु बड़।

लगे नइ जनवरी बच्छर नवा जइसे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 176

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Date: 2020-12-30

Subject: 


2,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


धरम के रथ ला हाँके के जरूरत हे।

थके अर्जुन ला बाँके के जरूरत हे।


दिखत हे देख लत गत तोर भँगभँग ले।

सुजी मा सत के टाँके  के जरूरत हे।


बिना जबरन बकत हस बनके बड़बोला।

मुँदे बर मुँह ला आँके के जरूरत हे।


बढ़ाये बर बने बिरवा सुमत सत के।

झिटी झाटा ला फाँके के जरूरत हे।


दुसर मन ला गलत ठहराये के पहिली।

अपन अंतस मा झाँके के जरूरत हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 175

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Date: 2020-12-29

Subject: 


बछर 2020 म खोये कुछ महान व्यक्तित्व-



                           वइसे मौत तो मौत ए, फेर बत्तर, चाँटी, माखी, कुकुर, बिलई, बघवा, भलुवा अउ मनखे , सबके मरे म मानवीय संदेवना अलग अलग होथे। मनखे  होय चाहे कोनो जिनावर  दुनो के संवेदना आपसी लगाव म ही जादा होथे। मनखे मन के संवेदना सगा, सम्बन्धी के साथ साथ वो व्यक्ति जेखर ले ओ प्रभावित रथे या फेर जेखर ले श्रद्धा रखथे ओखरो प्रति देखे बर मिलथे। तभे तो राजनेता,अभिनेता,संत, ज्ञानी अउ कोनो महान हस्ती के निधन होय म आँखी छलक जथे। बछर 2020 बैरी बनके आइस, जे छोटे तो छोटे बड़े बड़े हस्ती ल घलो अपन गिरप्त म ले लिस। कोनो आम आदमी के मौत ले ओखर घर परिवार नता रिस्ता अउ  जादा होगे त पास पड़ोसी दुखी होथे। फेर कुछ अइसे मौत होथे जे, सबे ल झकझोर देथे। वइसे तो आना अउ जाना प्रकृति के नियम आय, तभो दुख सबके जाये म होथे,फेर कखरो असमय चल देना, अउ बहुत जादा पीड़ा पहुँचाथे। कला, साहित्य,समाज, राजनीति, खेल, फ़िल्म  सबे क्षेत्र म ए बछर अपूर्णीय क्षति देखे बर मिलिस।हमर बीच ले सदा दिन बर चीर निद्रा म सोये कुछु ऐसे हस्ती के नाम आज मैं श्रद्धांजलि स्वरूप, उन महान हस्ती मन ल नमन करत, रखे बर जावत हँव।

               राजनेता देवी प्रसाद त्रिपाठी, राजनेता अश्विनी कुमार चोपड़ा, साहित्यकार कृष्ण बलदेव वैद्य, साहित्यकार गिरिराज किशोर,राजनीतिज्ञ हंसराज भारद्वाज,फुटबॉल खिलाड़ी प्रदीप बनर्जी, अटॉर्नी जनरल अशोक देसाई, रंगकर्मी उषा गांगुली, सायर राहत इंदौरी, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी, राज नेता जसवंत सिंह, राजनेता तरुण गोगोई, राजनेता अहमद पटेल, राजनेता भंवर लाल मेघवाल आदि के संग संग फिल्म सिटी मुम्बई ले अभिनेता इरफान खान, अभिनेता शशि कपूर, गायक संगीतकार एसपी बालासुब्रमण्यम, गायक अभिजीत, सुशांत सिंह राजपुत, प्रेक्षा मेहता,योगेश गौर, सेजल शर्मा, मोहित बघेल, निम्मी, मनमीत ग्रेवाल, साईं गुंडेवार, सफीक अंसारी, अमोस, सचिन कुमार,बासु चटर्जी, कोरियोग्राफर सरोज खान,जगदीप, समीर शर्मा,दिलीप कुमार भटनागर, संजीव कुलकर्णी, चिरंजीवी सरजा आदि मनके अतिरिक्त अउ कई झन महान हस्ती मनके अपूर्णीय क्षति दुखद हे।

            येखर आलावा हमर छत्तीसगढ़ ले घलो कई नेता, साहित्यकार, पत्रकार, समाजसेवी मन हमर ले दुरिहागे, उन सबला घलो सादर नमन अउ  अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।

2020 म परलोक सिधारे राजनेता  अजीत जोगी, राज नेता मोतीलाल बोरा, राजनेता झिथरू राम बघेल, अशोक सिंह, धनेश राम राठिया, पत्रकार पूरन साहू, पत्रकार शशिकांत शर्मा,वरिष्ठ पत्रकार अउ सम्पादक ललित सुरजन जी, आकाशवाणी रायपुर के उद्घोषक रामकुमार सिंह, साहित्यकार डॉ गणेश खरे,राजनीतिज्ञ घना राम साहू, महेंद्र सिंह टेकाम, मनोज प्रजापति, पूर्व न्यायाधीश अजय कुमार त्रिपाठी, डी पी धृतलहरे, शोभा सोनी, अमरनाथ अग्रवाल, कैलाश त्रिवेदी, किरण माहेश्वरी, बॉलीवुड के नवोदित कलाकार नेहा साहू,लोककलाकार प्रताप कुरेटी, छालीवुड अउ बॉलीवुड के कलाकार गायक भैया लाल हेड़उ,जर्नलिस्ट आनंद विश्वकर्मा, समाज सेवी बचना राम जी, हीरा सिंह मरकाम, अउ चिकित्सा के क्षेत्र म डॉक्टर बी पी बघेल, डॉक्टर रमेश के संगे सँग स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कन्हैयालाल अग्रवाल जइसे महान हस्ती मन संग अउ कतको अपूर्णीय क्षति ए बछर होइस। धन गँवाथे ल मिल जथे फेर तन एक बार साथ छोड़िस ताहन कभू नइ पास आये, अउ कहूँ  पास रहिथे त सिरिफ सुरता। बैरी बछर 2020 हमर अइसन महान हस्ती मन ल हम सब  ले छीन लिस। 


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 174

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Date: 2020-12-29

Subject: 


जावत हे बछर 2020 -खैरझिटिया


                  मनखे चाहे कतको बलवान हो जाय, फेर सब ले बड़े बलवान होथे समय। देख न इही बछर 2020 ल, जे कोरोना धरके आइस, अउ ज्ञानी, गुणी, धनी,वीर, सबला

अपन आघू घुटका टेके बर मजबूर कर दिस। कइथे महिनत म सब सम्भव हे,फेर यदि समय साथ नइ देय त ,कुछु सम्भव नइ हो सके। ये कोरोना काल म लाखों, करोड़ो मनखे मनके सँजोये कतकोन सपना धरे के धरे  रिहिगे। मनखे पिंजरा के पंछी बरोबर लाकडाउन म, घर म धँधागे।ये आफत सिरिफ हमर देश भर म नही, बल्कि सबे जगत ल झकझोर दिस। रोज कमइया अउ खवइया  बपुरा मनके पेट म डाँका पड़गे। काम धंधा छुटगे, किस्मत फुटगे,अउ सपना घलो टुटगे। रेल अउ बस के पहिया थम गे, लाकडाउन लगे ले, इती उती फँसे, गरीब मनखे मन जुन्ना जुग कस , अपन ठिहा कोती हाथ गोड़ के माँस उकलत अउ लहू फूटत म घलो, रेंगें बर विवस होगे। कतकोन मन रेंगत रेंगत बीच डहर म ही साँस लेय बर छोड़ दिन , त कतको मन अइसन आफत ल नइ झेल सकिस अउ खुदे प्राण ल त्याग दिन।

                लइका मनके पढ़ाई लिखाई घलो राँई छाँई होगे। पढ़ई लिखई करके नोकरी के रद्दा जोहत संगवारी मन बर ए बछर काल बन गे, जे मन एक एक छिन ल कीमती मान के पढ़ाई करिस, वो मन सालभर बर ए साल घरे म बंद होगे। कतको संगी मन अपन पढ़ाई लिखाई ल अउ धार करिस त कतको मन हतास अउ निराश घलो होइन। काबर के डार के चुके बेंदरा अउ आसाढ़ के चुके किसान। वइसे  विवसता तो छोटे बड़े सबे मन झेलिन, फेर मार खाइस तेमा छोट मनखे ही शामिल रहिन, कथे न चिरई कुंदरा ले नइ निकलही त कइसे पलही। उही हाल होगे अइसन लाचार मनखे मनके, उन मन के घर म रहे त खाय। लाकडाउन म टीवी अउ मोबाइल भारी छागे। मनखे मोबाइल म घूस गे। पढ़ाई , लिखाई, गवई, बजई सबे सोसल मीडिया म शुरुवाती समय भारी जोर पकडिस, फेर आखिर म टाँय टाँय फीस घलो होगे। कतकोन तो मोबाइल ल ही अपन दुनिया मान लिन। फेसबुक अउ वाट्सअप म बउरागे।  घर म घलो मनखे परिवार संग एके जघा बइठे बइठे अकेल्ला होगे। चाऊंर दार  कस महँगा डाटा रिचार्ज ल छोटे बड़े सब करिन, अउ अब तो आदत बनगे,नेट बिना नींद घलो नइ आय। डाटा कंपनी वाले मनके बल्ले बल्ले होगे, ग्राहक एकदम से बढ़गे। बढ़े से एक अउ सुरता आवत हे कई वैपारी मनके बढ़वार घलो आहा आफत काल म दिखिस, अउ काबर नइ दिखही?काला बाजारी, जमाखोरी जे होय लगिस। नमक जइसे चीज के अफवाह ले बाजार गरम होगे रिहिस। चाऊंर, दार, तेल, फूल, आलू, प्याज मिलना मुश्किल हो गे रिहिस। अउ मिलत भी रिहिस त मनमाने भाव म। फेर पेट म उभरे भूख के घाव ल भरे बर, का भाव? सबे मजबूर होके बिसाइन अउ कइसनो करके जिनगी बिताइन।

                 बर बिहाव बाजा बैंड बराती सबके बारा बजगे।कलाकार मनके कला कल्हरे बर लग गिस, मजदूर मनके मजदूरी छिनागे। देश विदेश ले मनखे लहुट के अपन कुंदरा, अउ महल अटारी म आगे। कुंदरा म कल्हरई त अटारी म अट्टहास घलो सुनाइस। छोटे बड़े सबके घर मा सिपाही बरोबर सेनेटाइजर नांव के नवा चीज माड़गे। एक बछर एखरे थेभा म निकल गे। शुरू शुरू म कोरोना बैरी आइस त लगत रिहिस कि, ओखर पाँव म जमे जगत हा पलक झपकत समा जही, फेर धीर लगाके बेरा सहज होत गिस, मनखे मनके भयानक डर ह कमती होइस। कथे न भय ह भूत ए, वइसने होइस घलो डरे डर म कतकोन निपट गिन।

टीवी अउ येती वोती कोरोना के हाल बेहास स्थिति ल सुनके अइसे लगत रिहिस कि, कलयुग अबक तबक बस सिरा जही, फेर जाको राखे साँईयाँ मार सके न कोय। अइसन आफत के बेरा मन एक डहर कुछ मनखे मन के  लालच दिखत, त कुछ मन देवदूत बरोबर सेवा घलो करिन।

               एक तरफ मनखे मन लाचार दिखिन, त दुसर डहर प्रकृति म सृंगार। पर्वत, पठार, पेड़, पात, नदी,नाला, हवा, पानी सब सजे बर लग गिन। पशु,पंछी, मनके मनमोहक तान गूँजे बर धर लिस। अइसन होना लगभग असंभव रिहिस, जे कोरोना काल म संभव हो सकिस। येखर साथ साथ बनेच जुन्ना विवादित मुद्दा मन घलो ये बछर पार पाके,जेमा राम मन्दिर निर्माण, धारा 370, 35(A), CAA, अटल टनल, चंद्रयान आदि। कोरोना काल म कई बड़े बड़े हस्ती मन परलोक सिधार गिन, जिंखर भरपाई असम्भव हे। थोर बहुत कोनो खाँसे,छीके त आन मनखे का,सगा सम्बन्धी मन घलो दुरिहाय बर लग जावत रिहिस, जानो मानो सर्दी खाँसी अभिच के बीमारी आय। येखर सेती कतको मन तो डरे के मारे अपन सर्दी खाँसी ल, आन ल नइ बताइन अउ काल के शिकार हो गिन। रोज रोज कोरोना ले होवइया मौत, मतंग मनखे मनके मन म घलो मातम मता दिस। वाह रे बैरी कोरोना, तो झट परे रोना, बछर 2020 ल चुक्ता चाँट डरेस। मन पंछी के पाँख, पिंजरा म धंधाये धंधाये खियागे,त कतको लोभी के पाँख अउ काया मोटागे। ये दे अब तो दिसम्बर घलो जवइया हे,अउ अवइया हे बछर 2021। 2021, इक्कीस रुपिया बरोबर सब बर शुभ होय। अवइया नवा साल म कोरोना बैरी के नामो निशान झन रहे। सबे कोती सुख, शांति, खुशी अउ समृद्धि होय, इही कामना अवइया बछर 2021 ले हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 173

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Date: 2020-12-28

Subject: 


1222 1222 1222

1,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


समझ पाना हे मुश्किल ये जमाना ला।

बुरा झन मान कखरो बोल ताना ला।1


तुम्हर मनके बने सब काम टरकत हे

भला कइसे नही तैं गाबे गाना ला।2


गली मा अंधा के रीता सिंहासन हे।

बनाबों अंधा मा राजा वो काना ला।3


खिंचा झन जा मया सच मान के कखरो।

परख के देख ले पहली फँसाना ला।4


ससन भर नींद तैं लेथस सजाके सेज।

हटाके देख गदिया अउ सिदाना ला।5


मिले रुपिया किलो चाँउर रटत रहिथस।

बिसा नइ पाय कतको मन किराना ला।6


दुनो झन जानथौ गलती हवै काखर।

तभो खोजत फिरत हौ कार थाना ला।7


दरद दुख अउ फिकर खावै नही कभ्भू।

धरे चल सत सुमत के तैंहा बाना ला।8


सरग इँहिचे नरग इँहिचे मरे मा का।

सरग जइसे बना रह आशियाना ला।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


6,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम*


*मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन*


*1222 1222 1222*


झुले नइ कान में बाला सहीं काबर।

गला मा नइ हवे माला सहीं काबर।


उड़न दे पाँख फैलाके जगाके आस।

मया ला रोकथस ताला सहीं काबर।


जिया ला जीत गुरतुर बात तैं कहिके।

जिया ला  गोभथस भाला सहीं काबर।


बढ़े बाँटे मया ये जानथन तभ्भो।

मया ला बाँटथस लाला सहीं काबर।


पियासे के बुझावत प्यास बढ चल तैं।

नदी होके रथस नाला सहीं काबर।


हरे कहिथस अटारी पोगरी तोरे।

ठिहा मोरे धरमशाला सहीं काबर।


हरँव छत्तीगढ़िया मैं सबे ले अँव रे बढ़िया मैं।

बुनत रहिथस भरम जाला सहीं काबर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 172

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Date: 2020-12-26

Subject: 


8,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222 122 


उठे ला अउ उठाना चाहथस ना।

दबे ला अउ दबाना चाहथस ना।


करेस आँखी मुँदे अब्बड़ करम कांड।

अपन मुँह अब लुकाना चाहथस ना।


लबारी तोर तो तोपात नइहे।

सही ला तैं छुपाना चाहथस ना।


धरे जल मीठ बढ़त हस नदी कस।

समुंदर मा तैं समाना चाहथस ना।


करत हस फोकटे फोकट तैं तारीफ।

अपन बूता बनाना चाहथस ना।


मिही दे हँव गरी बर चारा तोला।

मुँही ला अब फँसाना चाहथस ना।


अबड़ मुश्किल हवे सत के डहर हा 

सही मा तन तपाना चाहथस ना।


निकल गे तोर बूता काम अब ता।

समझ पासा ढुलाना चाहथस ना।



जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 171

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Date: 2020-12-26

Subject: 


2122 2122 2122


8,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


कुछ न कुछ करके दिखाना हे जरूरी।

फर्ज मनखे के निभाना हे जरूरी।1


राही के रूके के कोनो ठाँव कस नइ।

घर मया के अब बसाना हे जरूरी।2


सच मा अड़बड़ हे जरूरी खाना पीना।

फेर पी खाके पचाना हे जरूरी।3


काम मा कोनो विघन ले बचना हे ता।

राह ले रोड़ा  हटाना हे जरूरी।4


सात फेरा लेय भर मा होय नइ कुछु।

संग जीयत ले निभाना हे जरूरी।5


मेचका जइसे कुआँ मा खुसरे झन रह।

सब डहर मा आना जाना हे जरूरी।6


सब समय मा अँड़ना अउ लड़ना हे फोकट।

देख बेरा सिर झुकाना हे जरूरी।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 170

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Date: 2020-12-25

Subject: 


7,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 

 

बता दे नइ पता का भूल होगे।

मया के फुलवा कइसे शूल होगे।


करम मा मोर नइहे पथ बरोबर।

कभू चढ़ ता कभू बड़ ढूल होगे।


जुड़े कइसे हमर मन हा बता तैं।

मया के टुटहा अब तो पूल होगे।


मया के बिरवा झट जोरंग जाही।

निचट कमजोर अब तो मूल होगे।


महकही अउ कतिक दिन मोर तन मन।

मया टूटे पड़े अब फूल होगे।


जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 169

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Date: 2020-12-24

Subject: 


6,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 

 

समुंदर के असन पानी धरे मा।

पियासे मर जबे तैंहर घरे मा।


सरग के चाह हे ता काम करथन।

चलो मरबों सरग मिलथे मरे मा।


अपन जिनगी पियारा हे सबे ला।

फरक हे बड़ कहे मा अउ करे मा।


जरस चाहे बरस वोला का करना।

नमक चुपरे सदा मनखे जरे मा।


मुकर जाथे कसम किरिया खा नेता।

तभो आघू रथे वादा करे मा।


सुहावै नइ अपन मुख मा बड़ाई।

छलकथे गगरी हा थोरे भरे मा।


तरू होवय या होवय कोई मनखे।

झुके रइथे नॅवे रइथे फरे मा।


वो सुलझाही का झगरा आन मनके।

लड़ाई देख भागे जे डरे मा।


जिया भीतर बसावव सत मया मीत।

बुराई जाय नइ होरी बरे मा।


 जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 168

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Date: 2020-12-24

Subject: 


5,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


हवा मा आजकल नर्मी बहुत हे।

मनुष मा फेर अब गर्मी बहुत हे।1


कलेचुप आँख तोपे काम टरका।

अधम मा लिप्त बेशर्मी बहुत हे।2


अपन दुख ले खुदे ला हे निपटना।

ना नेकी अउ ना तो धर्मी बहुत हे।3


बढ़े बेरोजगारी देख सब तीर।

पता नइ काम के कर्मी बहुत हे।4


रसायन हानिकारक हे कथस बस।

बना कम्पोस्ट चल वर्मी बहुत हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 167

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Date: 2020-12-24

Subject: 


4,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


उगत हस अउ ढलत हस, का कहँव अब।

सहीं हस के गलत हस, का कहँव अब।1


बने हस बड़का पग नइहे धरा मा।

हवा मा उड़ चलत हस, का कहँव अब।2


भरोसा आन मन करही भला का।

अपन मन ला छलत हस, का कहँव अब।3


शिकायत एक या दू झन ला नइहे।

सबे झन ला खलत हस, का कहँव अब।4


फरे हँव कहिके देखावत फिरत हस।

हलाये बिन हलत हस, का कहँव अब।5


धरे उप्पर धरत हस धन रतन खूब।

समुंदर ले जलत हस, का कहँव अब।6


ना पाना के ठिकाना ना तना के।

करू फर तक फलत हस, का कहँव अब।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 166

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Date: 2020-12-23

Subject: 


लकड़ी जलगे उठे हे धुँवा।

नइ जात हे ऊपर रुठे हे धुवाँ।




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# 165

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Date: 2020-12-23

Subject: 


3,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


भरम के भूत ला झारेल लगही।

दरद दुख द्वेष ला टारेल लगही।


करे मनचलहा बनके काम मन हा।

मनाही हाँका अब पारेल लगही।


बुझत हे दीया हा इंसानियत के।

मया के तेल अब ढारेल लगही।


कमाये बर खुसी धन बल ठिकाना।

पछीना तोला ओगारेल लगही।


भरोसा मा दुसर के हाँकबे डींग।

बखत बेरा मा मुँह फारेल लगही।


नशा पानी ला नइ त्यागबे कहूँ ता।

लड़ाई जिनगी के हारिल लगही।


वतन के काम बर आघू आके।

सुवारथ के दनुज मारेल लगही।

 

जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 164

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Date: 2020-12-23

Subject: 


2,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


बने हे बड़खा तिंखरे तो मजा हे।

सजा छोटे मँझोलन बर सदा हे।


नवा जुग हे चलव आँख उघारे।

गाँव घर गली सब कोती दगा हे।


अपन जिनगी सबला हे पियारा।

हे पहली जान तब काकी कका हे।


निराला हे गजब कुर्सी के खेला।

उही पद पइसा नेता ला पता हे।


जिहाँ के माटी खा बचपन कटिस हे

उहाँ अब आना जाना तक मना हे।


सिरागे जादा के चक्कर मा कतको।

इही लालच हा तो बड़खा बला हे।


बढ़े का कारखाना कस किसानी।

पवन पानी  सबे दूसर करा हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा (छग)




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# 163

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Date: 2020-12-23

Subject: 


1,गजल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़ 

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन

1222  1222. 122 


बने बेरा कहूँ कोती नइ दिखे।

छँटे घेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


हे हाँवे हाँव चारो खूँट अड़बड़।

खुशी डेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


बगइचा बाग बर आँखी तरस गे।

फरे केरा कहूँ कोती नइ दिखे।


बबा ना डोकरी दाई के आरो।

घुमत ढेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


लुवागे अउ मिंजागे धान तभ्भो।

गँजे पेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


सँझा बिहना भजन गावत भगत के।

लगत फेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


मैं मेरा के जमाना मा अब तो।

तैं तेरा कहूँ कोती नइ दिखे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 162

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Date: 2020-12-22

Subject: 


1,गजल-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन

फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन

2122 1122 22   


तोर उद्धार पढ़े मा होही।

ज्ञान गुण सत ला कढ़े मा होही।


पग धरा मा रही ता सुख मिलही।

दुःख आगास चढ़े मा होही।


होय नइ कुछु छुपा झन गलती ला।

झगड़ा पर दोष मढ़े मा होही।


गाँव घर बन के तरक्की निसदिन।

देखे सब सपना गढ़े मा होही।


झट मिलन आत्मा के परमात्मा ले।

नदिया कस आघू बढ़े मा होही।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 161

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Date: 2020-12-21

Subject: 


4,गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


पाप के गगरी भरे का, छेदरा हावै तरी मा।

पुण्य दरदर खाय ठोकर, डार के डोरी नरी मा।


खुद ला पीना हे तभो ले, खुद ला जीना हे तभो ले।

आज देखव मनखे मन, घोरे जहर पानी फरी मा।


ना गियानी ना धियानी, बेंदरा जइसे हे मुँहरन।

मानते नइहे टुरा हा, जान अटके हे परी मा।


लौट के आबे तैं दुच्छा,बन शिकारी बन मा झन जा।

जान ले चारा के बिन अब, नइ फँसे मछरी गरी मा।


काम ना संजीवनी दे , प्राण लक्ष्मण हा गँवाये।

कंस रावण जी उठत हे , पेड़ पत्ता अउ जरी मा।


बीत गे सावन घलो हा, बिन झड़ी के का बतावौं।

रदरदारद बरसे पानी, दाई के रखिया बरी मा।


हाँड़ी हँड़िया नइ सुहावै, नइ सुहावै घर के भाजी।

सब भुलाये ढाबा होटल, मास मद अंडा करी मा।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


5,गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


बात मा बूता बने ता, तोप ताने कर कभू झन।

पर ठिहा ला बारे बर, बारूद लाने कर कभू झन।1


काम करथस रीस धरके, रेंगथस खुद तैं टमर के।

पर बिगाड़ा होही कहिके, खाई खाने कर कभू झन।2


जानथस खुद के ठिकाना, कोन कोती हावे जाना।

फोकटे पर बुध मा उलझे खाक छाने कर कभू झन।3


घाव तन के भर जथे पर, नइ भरे मन के लगे हा।

बात करुहा बोल जिवरा, कखरो चाने कर कभू झन।4


का भरोसा दे दिही कब कोन मनखे मन हा धोखा।

भेद अंतस भीतरी के खोल आने कर कभू झन।5


ओनहा कपड़ा असन सब छूट जाथे मैल तन के।

मैल मन के जाय नइ तैं, मन ला साने कर कभू झन।6


धूल धुँगिया के असन तो रोज के अफवाह उड़थे।

आँखी मा देखे बिना कुछु बात माने कर कभू झन।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 160

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Date: 2020-12-20

Subject: 


गंगोदक सवैया

विधान-

212×8

या आठ घाँव रगण


उदाहरण


आदमी के ठिहा ठौर हावै निराला,निराला कहाँ फेर हे आदमी।

मार मा पीट मा शेर जैसे बने,ता बुता काम मा ढेर हे आदमी।

थोरको ना सुने थोरको ना गुने, मोह  मा चूर अंधेर हे आदमी।

काखरो मान सम्मान जाने नही,आज देखौ कते मेर हे आदमी।


खैरझिटिया




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# 159

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Date: 2020-12-20

Subject: 


3,गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


जाड़ मा मैंहर जमे रेंहेंव, गरमी पा गलत हौं।

मैं पिघल के पथ बनाके, ठौर खोजत अब चलत हौं।


लाम गेहे खाँधा डारा, नाचथौं मैं हाथ उँचाके।

तोर उगाये छोट बिरवा, आज फूलत अउ फलत हौं।


मार पथरा फर लगे तब, पर उदिम कर फर लगे बर।

का भरोसा काट देबे, बिन हलाये मैं हलत हौं।


साँस के दिन तक रही अब, का ठिकाना जिंदगी के।

जेल के भीतर धँधाये बिन हवा पानी पलत हौं।


जोगनी के राज मा मैं, रोशनी धरके करौं का।

झट सुँई  घुमगे समय के, बिन उगे मैंहा ढलत हौं।


मौत औं मैं मौन रहिथौं, नापथौं मैं काम बूता।

तीर मा झट आ जहूँ बस, आज कल कहिके टलत हौं।


भूख मारे के उदिम हे, दर्द सारे के उदिम हे।

चांद तारा तैं अमर, मैं पानी मा भजिया तलत हौं।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 158

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Date: 2020-12-18

Subject: 


2,गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


एक ले हे प्यार काबर, एक ले तकरार काबर।

एक झन बढ़िया हवे ता, एक हे बेकार काबर।


मनखे अस ता मान रख, खुद के असन तैं सब झने के।

कर कलेचुप काम बढ़िया, पारथस गोहार काबर।


नइ जुरिस जीते जियत मा, पार ना परिवार कोनो।

साँस रुकगे ता जुरे हे, आदमी मन चार काबर।


का जमाना आय हावै, हाट होगे जिंदगी हा।

सेवा शिक्षा आस्था मा, होत हे वैपार काबर।


पेड़ नइहे पात नइहे, गाँव चिटिको भात नइहे।

धूल माटी के जघा मा, राख के गुब्बार काबर।


तोर दिल मा हे मया अउ तोर दिल मा हे दया ता।

आँख मा अंगार काबर, हाथ मा तलवार काबर।


सुख मा सुरता नइ करस अउ, देख दुख भगवान कहिथस।

तोर दुख ला टार तैंहा, वो लिही अवतार काबर।


सत धरे बिन दशरहा अउ, का दिवाली दिल मिले बिन,

जिंदगी मा रंग नइ ता, रंग के बौछार काबर। 


कारखाना मा उपजही, धान गेहूँ अउ चना का।

पेट के थेभा इही ये, बेचथस बन खार काबर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 157

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Date: 2020-12-17

Subject: 


छत्तीसगढ़ सरस्वती साहित्य समिति बाल्को नगर कोरबा द्वारा काव्य गोष्ठी और विदाई समारोह  आयोजित किया गया। मां सरस्वती की पूजा अर्चना और सुमधुर गीतकार कृष्ण कुमार चंद्रा की सरस्वती वंदना के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। उपस्थित सभी साहित्यकारों ने बालको से सेवानिवृत्त हुए, छत्तीसगढ़ सरस्वती साहित्य समिति के सम्माननीय सदस्य लालजी साहू 'लाल छत्तीसगढ़िया' के व्यक्तित्व और कृतित्व पर अपने अपने विचार प्रस्तुत किए। तत्पश्चात उनको समिति के सदस्यों द्वारा साल, श्रीफल और प्रतीक चिन्ह  अर्पित किया गया। लालजी साहू लगातार सरस्वती साहित्य समिति बाल्को नगर कोरबा से जुड़े रहे। कार्यक्रम के दौरान लाल जी साहू की जीवन संगिनी सुशीला साहू भी उपस्थित रही, उनका भी सम्मान समिति के सदस्यों द्वारा किया गया।

                  कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। जिसमें छत्तीसगढ़ सरस्वती साहित्य  समिति बालको नगर कोरबा के माननीय अध्यक्ष महावीर चंद्रा द्वारा स्वरचित गीता के गोठ नामक पुस्तक से  मनभावन श्लोक और छंद पढ़े गए तथा सचिव बंसी लाल यादव जी द्वारा वर्तमान समय में चल रहे किसान आंदोलन और असमय बरसात को विषय बनाकर काव्य पाठ किया गया। कोरबा के सुमधुर गीतकार कृष्ण कुमार चंद्र जी द्वारा मैं कोरबा ले बोलत हँव नामक कोरबा का परिचयात्मक मनभावन गीत प्रस्तुत किया गया, तथा सुमधुर गीतकार, गजल कार गीता विश्वकर्मा द्वारा हरिगीतिका छंद में मां सरस्वती की वंदना और सुधा देवांगन द्वारा एकादशाक्षरा छंद में लाल जी साहू के लिए विदाई प्रस्तुत किया। लोक कलाकार और कवि  धरम साहू द्वारा कोरोना काल से संबंधित गीत और कवियित्री निर्मला ब्राह्मणी द्वारा उत्कृष्ट मुक्तक प्रस्तुत किया गया। सुमधुर कंठ के धनी कवियित्री और समाज सेविका लता चंद्र  द्वारा विदाई गीत और ठंड मौसम पर मनभावन प्रस्तुति दी गई। जितेंद्र कुमार वर्मा खैरझिटिया द्वारा मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव नामक  गीत लावणी छंद में प्रस्तुत किया गया। छत्तीसगढ़ के उभरते युवा कवि और कुशल वक्ता डिकेश्वर साहू द्वारा लाल जी साहू  को सादर विदाई देते हुए भाव पुष्प अर्पित किया गया। कार्यक्रम का कुशल संचालन गीतकार कृष्ण कुमार चंद्रा  द्वारा किया गया तथा अंत में उपस्थित सभी साहित्यकारों का आभार प्रदर्शन जितेंद्र कुमार वर्मा खैरझिटिया द्वारा प्रस्तुत किया गया। उपस्थित श्रोताओं द्वारा काव्य पाठ की भूरी भूरी प्रशंसा की गई ।




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# 156

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Date: 2020-12-17

Subject: 


1,गज़ल- जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रमल मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन 

2122 2122 2122 2122


झन अँड़े रह बड़ हवा हे, डार कस खुद ला झुका दे।

जर जही घर बार कखरो, आग झन भभके बुता दे।


काँटा खूँटी काँद बोबे, ता तहूँ बदनाम होबे।

सब झने सँहराही तोला, प्रेम के पउधा उगा दे।


जड़ बिना नइ पेड़ होवै, मनखे न इंसानियत बिन।

नेव बिन मीनार ढहथे, कतको बड़ चाहे उठा दे।


मैं किसानी का करौं, अब कोन सुनथे मोर बयना।

जल पवन हा तोर से, आथे बुलाये ता बुला दे।


एक डरथे भीड़ ले अउ, एक चलथे भीड़ धरके।

घर घलो मा आही नेता, भीड़ मनखे के जुटा दे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 155

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Date: 2020-12-16

Subject: 


5,ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


बिन गुरू के ज्ञान भइगे।

माते रण मा म्यान भइगे।1


पाँव उठे नइ थोरको भी।

बात  मा ऊड़ान भइगे।2


मैल जमते जाय मन मा।

रात दिन बस स्नान भइगे।3


काँपे खुर्शी देख नेता।

जनता हे हलकान भइगे।4


देश हा कइसे सुधरही।

मंद मा मतदान भइगे।5


भाव कौड़ी के बिकत हे।

आज सत ईमान भइगे।6


आधा तोपाय आधा उघरा।

वाह रे परिधान भइगे।7


का दया अउ का मया अब।

हिरदे हे चट्टान भइगे।8


जाने नइ गुण ज्ञान तेखर।

होत हे गुण गान भइगे।9


तरिया परिया हरिया सब गय।

गोड़ा ना गौठान भइगे।10


मात गेहे बड़ मनुष मन।

का कहौं भगवान भइगे।11


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 154

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Date: 2020-12-13

Subject: 


3,ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


विस्की अउ ना रम सही हे।

बड़ खुशी ना गम सही हे।1


तोर उजड़ही आशियाना।

बोल बारुद बम सही हे।2


का ठिहा का ठौर पाबे।

आस ना संयम सही हे।3


जादा मा डर हे जरे के।

चीज बस तब कम सही हे।4


मरगे मनखे मोर मैं मा।

छोड़ चक्कर हम सही हे।5


बारे घर बन ला उजाला।

ता रहन दे तम सही हे।6


चोचला बड़ हे बड़े के।

आम मन लमसम सही हे।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 153

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Date: 2020-12-13

Subject: 


2,ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


ताल सुर बाजा सिरागे।

तइहा के खाजा सिरागे।1


मार देहू भाग जा मा,

मत मया आजा सिरागे।2


जातरी आगे कई के।

रंक का राजा सिरागे।3


फ्रीज सजगे हे घरो घर।

चीज सब ताजा सिरागे।4


मनखे मनके का ठिकाना।

सबके अंदाजा सिरागे।5


बन मा बन गे बाट बड़का।

साल अउ साजा सिरागे।6


खैरझिटिया अब खड़े रह।

आस दरवाजा  सिरागे।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा




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# 152

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Date: 2020-12-12

Subject: 


4,ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*



नव के चल तब नाम होही।

अँड़बे ता संग्राम होही।1


पेट भरही भात बासी।

अउ बड़े बादाम होही।2


सोंचबे अउ करबे अच्छा।

मन मुताबिक काम होही।3


काम करबे नित बुरा ता।

बड़ बुरा अंजाम होही।4


नइ रही खेती किसानी।

कोठी का गोदाम होही।5


जब सिराही द्वेष दंगा।

घर गली तब धाम होही।6


राम कहना मानबे ता।

तोरो घर मा राम होही।7


जाड़ मा झन काँप जादा।

धीर धर झट घाम होही।8


कर करम नित खैरझिटिया।

 झट सुबे अउ शाम होही।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 151

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Date: 2020-12-11

Subject: 


1,*ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


तोर बर थोरे लहर हे।

तोर बर थोरे नहर हे।1


गाँव अब गुँगवात हावै।

तोर बर थोरे शहर हे।2


एक छिन लटपट पहाथे।

दुख भरे आठो पहर हे।3


चुक्ता अमरित हा सिरागे।

तोर बर बाँचे जहर हे।4


शांति सुख नइ भाग मा तोर।

सब तिरन माते कहर हे।5




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# 150

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Date: 2020-12-09

Subject: 


जंगल म जाड़ पूस के

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पूस   के  जाड़ , पहाथे  लटपट।

मोर कुंदरा म घाम,आथे लटपट।


मोर बाँटा के घाम ल खाके,

सरई - सइगोन  मोटात  हे।

पथरा -  पेड़  -  पहाड़   म,

मोर  जिनगी  चपकात  हे।

गुंगवात  रिथे   दिन - रात,

अँगरा    अउ       अँगेठा।

सेंकत    रिथे    दरद    ल,

मोर    संग    बेटी  - बेटा।

कहाँ ले साल-सुटर -कमरा पाहूं?

तन  चेंदरा  म,  तोपाथे  लटपट।

पूस   के  जाड़ , पहाथे  लटपट।

मोर कुंदरा म घाम,आथे लटपट।


मोर  भाग  दुख  , अतरा    होगे   हे।

भोग-भोग के मोर तन,पथरा होगे हे।

सपना म  सुख ,  घलो   दिखे   नही।

मोर भाग ल भगवान,बने लिखे नही।

कोरा म लइका, कुड़कुडाय  पड़े हे।

खेलइया-कूदइया ,घुरघुराय  पड़े  हे।

56 भोग ; 56  जनम म, नइ   मिले,

पेट; पेज-पसिया म, अघाथे लटपट।

पूस    के   जाड़ ,  पहाथे    लटपट।

मोर  कुंदरा  म  घाम, आथे  लटपट।


दिन  बूड़त  सोवा  पर जथे।

बिहनिया ले आगी बर जथे।

सीत  -  कोहरा   अउ  धुंध।

मोर  सपना  ल   देथे   रुंध।

बघवा - भलवा के माड़ा हे।

मोर  तन  उँखर ,  चारा  हे।

काटत रिथों गिन-गिन छिन-छिन,

आंखी  म  नींद  , हमाथे लटपट।

पूस   के  जाड़ ,  पहाथे  लटपट।

मोर कुंदरा म घाम, आथे लटपट।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795




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# 149

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Date: 2020-12-06

Subject: 


4,ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


का मनुष का जानवर तैंहा बुला पुचकार के।

आ जही सब तीर मा तैं देख दाना डार के।1


जानवर ले गय बिते मनखे दिखत हे आज के।

घर अपन उजरात हावै पर ठिहा ला बार के।2


बैर झन कर बैर झन धर बैर देही बोर गा।

फलही फुलही अउ महकही बोदे बिजहा प्यार के।3


बनके स्वार्थी का कमाबे धन धरे तजबे धरा।

जानवर बन काय जीना मीत ममता मार के।4


आदमी सिधवा डरत हे मोठ होवै चोर हा।

नइहे डर बदमास मनला डाँड़ कारागार के।5


सत सुमत अउ मीत तजके का धरत हस हाथ मा।

काटना अउ भोंगना तो काम हे तलवार के।6


काम आवै नइ गरब हा कंस रावण गय झपा।

मान कहना खैरझिटिया देख झन मुँह फार के।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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# 148

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Date: 2020-12-06

Subject: 


नइ भरे गगरी पाप के, भूलका हे तरी मा।

फसल मुझात हे, बरसे बादरर बरी मा।




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# 147

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Date: 2020-12-05

Subject: 


3,ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


रिस हवय तनमन मा अब्बड़, मुँह फुलाये आय हँव।

चुप रहे हँव आज तक मैं, मुँह उलाये आय हँव।1


तैं बुलाथस रोज मोला, पर भरोसा तोर का।

मैं कहाँ घर लाँघथौं पर, अब बुलाये आय हँव।2


मन तिजोरी मा मया के, हे खजाना बड़ अकन।

हारहूँ सब तोर कर, पासा ढुलाये आय हँव।3


मोर नरमी देख के, पोनी घलो जाथे लजा।

चाब डर या लील डर मैं, गुलगुलाये आय हँव।4


नइ घुलत हे रँग मया के, तोर घोरे मा बही।

कर चिटिक चिंता झने, मैंहर घुलाये आय हँव।5


आज मदिरालय मा ठाढ़े, जाम ढोंकत हँव गजब।

मोला झन कहिबे शराबी, गम भुलाये आय हँव।6


खाय हँव धोखा गजब, मैं हर मया बाजार मा।

हाँस ले रे खैरझिटिया, गुदगुदाये आय हँव।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 146

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Date: 2020-12-05

Subject: 


आहे जाड़ रे(गीत)


आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे।

आहे जाड़ रे,आहे जाड़ रे।

बूता धरके मोर गाँव म हजार रे,,,,,।


अधनिंदियाँ दाई उठ के पहाती,

सिधोवत हे लकर धकर चूल्हा चाकी।

खेत कोती जाये बर ददा ह मोरे,

उठ के बिहनिया चटनी बासी झोरे।

बबा तापत हे, आगी भूर्री बार रे,,,,,,,।

आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे,,,,,,,,,,,,,,।


धान ह काहत हवै, जल्दी घर लान।

बियारा ह काहत हवै, जल्दी दौंरी फाँद।

चना गहूँ रटत हे, ओनार जल्दी मोला।

दुच्छा हौं कहिके, खिसियात हवै कोला।

सइमो सइमो करय, खेत खार रे,,,,,,,,,।

आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे,,,,,,,,,,,,,,,,।


थरथराये चोला गजब हुहु हुहु कापे।

डबकत पानी कस,मुँह ले निकले भापे।

तभो ले कमइया के बूता चलत हे।

दया मया मनखे बीच, जँउहर पलत हे।

कोन पाही कमइया के, पार रे,,,,,,,,,,।

आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे,,,,,,,,,,,,,,।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 145

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Date: 2020-12-05

Subject: 


2,ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


दिन गजब अंधेर आगे नींद परही का बता।

डेहरी मा शेर आगे नींद परही का बता।1


लड़ लुड़ी के देश ले अंग्रेज ला खेदारे हन।

दिन गुलामी फेर आगे नींद परही का बता।2


जिंदगी सुख मा बितावौं रोज मैंहा हाँस के।

दुख खुशी ला घेर आगे नींद परही का बता।3


फूल झरथे फर लहुटथे धीरे धीरे पाकथे।

डोंहड़ूँ मा चेर आगे नींद परही का बता।4


धान धन दौलत धराये मोर कोठी मा रिहिस।

राख माटी ढेर आगे नींद परही का बता।5


बाढ़गे मनखे भले पर नइ चढ़े हे चेत हा।

सोंच घुटना मेर आगे नींद परही का बता।6


सोंचबे ते होय ना अउ नइ कबे ते हो जथे।

नैन मूँदत बेर आगे नींद परही का बता।7


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 144

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Date: 2020-12-04

Subject: 


1,ग़ज़ल--जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़*


फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन


*2122 2122 2122 212*


मोर सँग तैंहर मया के गीत गाबे का बता।

जौन गेहे हार थक तेला उठाबे का बता।1


भूल जाथस मीत ममता भूल जाथस सत मया।

तान के पड़ही तमाचा ता भुलाबे का बता।2


जौन तोरे बस मा हावै काम उसने कर सदा।

रोंठ हे मछरी गरी ले ता फँसाबे का बता।3


देख सिधवा भाव खाथस आँख देखावत रथस।

दोगला अतलंगहा ले जीत पाबे का बता।4


कोई सीथा मा अघाये कोई छप्पन भोग मा।

चीज बस धन सोन चाँदी खा अघाबे का बता।5


गाय नइहे बरदी मा सकलाय हे गरदी गजब।

शेर बघवा भालू ला तैंहा चराबे का बता।6


मैं भगइया भूत के अँव मैं मसक देथौं नरी।

हाथ छोड़ा भागबे या तीर आबे का बता।7


ताक झन मुँह काखरो अहसान लेना छोड़ दे।

पर भरोसा पेट भरही ता हिताबे का बता।8


तैं कहाथस सेठ साहब नाव हे अउ जात हे।

का कभू छत्तीसगढ़िया तैं कहाबे का बता।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 143

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Date: 2020-12-01

Subject: 


राजभाषा दिवस के पावन अवसर म, लोकाक्षर परिवार के पाँच दिवसीय विशेष आयोजन


बहुत अकन विचार आइस,*

*बहुत अकन होइस गोठ।।*

*सच मा हमर  छत्तीसगढ़ी,*

*हावय जब्बर पोठ।*


         लोकाक्षर परिवार डहर ले,छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के पावन अवसर म पाँच दिवसीय आयोजन गजब सुघ्घर अउ मनभावन रिहिस। येखर बर अइसन महायज्ञ के रचयिया अउ होम करइया(भाग लेवइया)  जम्मो संगी साथी मन ल सादर बधाई अउ नमन। 118 झन सुधिजन मन ले सजे सँवरे ये समूह एक मिशाल आय, जिहाँ रोज सार्थक अउ समर्पित चर्चा छत्तीसगढ़ी भाँखा म होथे। विगत पाँच दिन ले छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस के अवसर म विशेष आयोजन रिहिस, जेमा चर्चा, परिचर्चा अउ विचार मंथन के संगे संग आखिर दिन मनभावन काव्य गोष्ठी आयोजित होइस। वइसे तो सबे दिन के कार्यक्रम आकर्षक रिहिस, तभो, गोष्ठी जादा प्रभावी अउ मनभावन लगिस।

                 गोष्ठी म एक ले बढ़के एक गीत कविता तो सुने बर मिलबेच करिस, येखर आलावा छंद परिवार के सदस्य मन मनभावन छन्द बर्षा घलो करिन। छंद के छ के संस्थापक परम् पूज्य गुरुदेव अरुण निगम जी के आशीष प्रताप ले महू ल ये कार्यक्रम म भाग लेय के अवसर मिलिस। गोष्ठी म भाग लेके अद्भत अउ मनभावन प्रस्तुति बर परम् पूज्य गुरुदेव अरुण निगम जी,दीदी शकुंतला तरार जी, दीदी सुधा वर्मा जी, आदरणीय राम नाथ साहू सर जी, गुरु चोवा राम वर्मा बादल जी, गुरु दिलीप वर्मा सर जी, गुरुदीदी आशा देशमुख जी, दीदी शशि साहू जी, भैया मिलन मिल्हरिया जी, दीदी केवरायदु मीरा जी, भैया अजय अमृतांशु जी,भैया महेंद्र बघेल जी, भैया पोखनलाल जायसवाल जी, भैया पूरन लाल जायसवाल जी,कवि मोहन निषाद जी, भैया अनुज छत्तीसगढिया जी,भैया गया प्रसाद साहू जी,भाई राजेश निषाद जी, भैया ज्ञानू मानिकपुरी जी, दीदी वासन्ती वर्मा जी, दीदी शोभामोहन श्रीवास्तव जी, भैया मनीराम साहू मितान जी, भैया ओमप्रकास अंकुर जी, मयारुख भैया सूर्यकांत गुप्ता कांत जी, परम् आदरनीय बलदारु राम साहू सर जी, भैया बोधन निषाद जी, भैया जगदीश साहू हीरा जी, भैया सुखदेव सिंह अहिलेश्वर जी, अउ बड़े भैया शशि भूषण स्नेही जी, आप सब मन खूब रंग जमायेव।आप सबके मुखारबिंद ले मनभावन गीत कविता सुनके हिरदय जुड़ा गे।


         संगे संग सरलग चार दिन तक तर्क वितर्क अउ विचार आलेख के रूप म पटल म घलो बरोबर आइस।जेमा सदा सक्रिय रहइया भैया गयाप्रसाद साहू जी, परम् आदरणीय सर विनोद वर्मा जी, पूज्यनीय दीदी सरला शर्मा जी, परम् पूज्य गुरुदेव अरुण निगम जी, भैया पोखन लाल जायसवाल जी, परम् सम्माननीय भैया रामनाथ साहू जी,प्रोफेसर साहब  अनिल भटपहरी जी, भैया सत्य धर बाँधे जी,भैया बलराम चन्द्राकर जी, भैया अनुज छत्तीसगढ़िया जी, दीदी सुधा वर्मा जी, आप सबके विषयानुरूप विचार प्रभावी अउ उपयोगी रिहिस। वइसे तो लोकाक्षर परिवार हर दिन विषयानुरूप सक्रिय रथे, तभो राजभाषा दिवस के पावन अवसर म आयोजित पाँच दिवसीय कार्यक्रम मनमोहक अउ आकर्षक रिहिस, नवा उत्साह जगाइस। ये समूह के निर्माता परम् आदरणीय सुधीर वर्मा सर जी, एडमिन गुरुदेव निगम जी अउ दीदी सरला शर्मा जी, के संगे संग लोकाक्षर  परिवार के मया बरोबर मिलत रहय।कखरो नाम छूट गे घलो होही त, माफी देय के कृपा करहू। सबके लाजवाब प्रस्तुति बर अंतस ले बधाई, अउ सादर नमन।।


जीतेंन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 142

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Date: 2020-12-01

Subject: 


4,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


दाई ददा का देवता ले कम हवे।

कइसे उँखर जिनगी तभो बड़ तम हवे।1


होके मनुष नइ काम आवस काखरो।

फोकट धरे धन धान अउ दमखम हवे।2


बोली बचन जेखर भरे बम हवे।




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# 141

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Date: 2020-11-30

Subject: 


3,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


सब दिन डँसे मँहगाई हा नागिन असन।

उगले जहर सग भाई हा नागिन असन।1


सत सार ला अजगर निगल गे झूठ के।

अब तो लगे अच्छाई हा नागिन असन।2


कब लाँघ पाहूँ का पता दुख के डहर।

बढ़ते हवे लंबाई हा नागिन असन।3


घर घर मिले सत ला सतइया आदमी।

हे चाल अउ चतुराई हा नागिन असन।


परबुधिया बनके मनुष कारज करे।

खतरा हवे उकसाई हा नागिन असन।5


बेकार हे करना इहाँ पर आसरा।

दुख देत हे परछाँई हा नागिन असन।6


मनमोहनी कइसे अचानक होय हे।

हिरणी असन रेंगाई हा नागिन असन।7


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा




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# 140

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Date: 2020-11-30

Subject: 


2,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


खुद गल अरोये हार ता का काम के।

माँगे मिले प्रुस्कार ता का काम के।1


जल बर ललाये खेत बन अउ बाग हा।

बोहय गली मा धार ता का काम के।2


अँटियात हस अब्बड़ रतन धन जोड़ के।

नइहे सखा दू चार ता का काम के।3


कइथे सबो मन ले ही जीत अउ हार हे।

यदि बइठे हस मन मार ता का काम के।4


कर खैरझिटिया कुछु अपन दम मा तहूँ।

दूसर लगाये पार  ता का काम के।5


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 139

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Date: 2020-11-28

Subject: 


छत्तीसगढ़ी बानी(लावणी छंद)- जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।

पी के नरी जुड़ा लौ सबझन, सबके मिही निशानी अँव।


महानदी के मैं लहरा अँव, गंगरेल के दहरा अँव।

मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी, ठिहा ठौर के पहरा अँव।

दया मया सुख शांति खुशी बर, हरियर धरती धानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।।।।।


बनके सुवा ददरिया कर्मा, माँदर के सँग मा नाचौं।

नाचा गम्मत पंथी मा बस, द्वेष दरद दुख ला काचौं।

बरा सुँहारी फरा अँगाकर, बिही कलिंदर चानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


फुलवा के रस चुँहकत भौंरा, मोरे सँग भिनभिन गाथे।

तीतुर मैना सुवा परेवना, बोली ला मोर सुनाथे।

परसा पीपर नीम नँचइया, मैं पुरवइया रानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।


मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।

झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी, छेड़े नित मोर तराना।

रास रमायण रामधुनी अउ, मैं अक्ती अगवानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


ग्रंथ दानलीला ला पढ़लौ, गोठ सियानी धरलौ।

संत गुणी कवि ज्ञानी मनके, अंतस बयना भरलौं।

मिही अमीर गरीब सबे के, महतारी अभिमानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 138

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Date: 2020-11-28

Subject: 


1,गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम*


*मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन*


*2212 2212 2212*


चूल्हा ले उठ सब खूँट छाये हे धुँवा।

आशा भुखाये मा जगाये हे धुँवा।1


रतिहा जलिस या फेर काँपिस जाड़ मा।

बन बाट ला  बिहना चुराये हे धुँवा।2


बड़ कोहरा बिहना दिखे जड़काल मा।

घर बाट ला मुख मा दबाये हे धुँवा।3


सिगरेट गाँजा बीड़ी  ले सबदिन निकल।

तनमन के बड़ बारा बजाये हे  धुँवा।4


चिमनी ले निकले ता करे अब्बड़ गरब।

आगास ला सिर मा उँचाये हे धुँवा।5


मिरचा निमक बारे भरम झारे मनुष।

हुमधूप के  देवन ला भाये हे धुँवा।6


चल खैरझिटिया छोड़ के चिंता फिकर।

उप्पर डहर सबदिन उड़ाये हे धुँवा।7


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 137

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Date: 2020-11-24

Subject: 


छोट बाल गोपाल के, जनम दिवस हे आज।

सूरज कस चमकै सदा, करे जगत मा राज।




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# 136

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Date: 2020-11-23

Subject: 


कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


आलू राजा साग के, आज रूप देखाय।

किम्मत भारी हे बढ़े, हाड़ी ले दुरिहाय।।

हाड़ी ले दुरिहाय, हाथ नइ आवत हावै।

बिन आलू के संग, साग भाजी नइ भावै।

हे कालाबाजार, काय कर सकही कालू।

एक बहावै नीर, एक हाँसे धर आलू।।


होवत हावय सब जघा, आलू के बड़ बात।

का कहिबे छोटे बड़े, सबला हे रोवात।

सबला हे रोवात, सहारा जे सब दिन के।

आये आलू आज, सैकड़ा मा तक गिन के।

आलू के बिन साग, कई ठन रोवत हावय।

महँगा जम्मों चीज, दिनों दिन होवत हावय।


जादा के अउ चाह मा, बुरा करव ना काम।

होय बुरा के एक दिन, गजब बुरा अंजाम।

गजब बुरा अंजाम, भोगथे बुरा करइया।

का वैपारी सेठ, सबे मनखे अव भइया।

करव बने नित काम, राख के बने इरादा।

बित्ता भर के पेट, काय कमती अउ जादा।


दाना पानी छीन के, झन लेवव जी हाय।

जीये खाये के जिनिस, सहज सदा मिल जाय।

सहज सदा मिल जाय, अन्न पानी सब झन ला।

मनखे झन कहिलाव, बरो के मनखेपन ला।

फैलाके अफवाह, जेन करथे मनमानी।

हजम कभू नइ होय, उसन ला दाना पानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 135

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Date: 2020-11-23

Subject: 


शेरके पंजा के निशान देख।

2122

आदमी हवै परेशान देख।




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# 134

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Date: 2020-11-21

Subject: 


जेन ल ननपन ले सुनत आवत हन, आज परम् पूज्य गुरुदेव के कृपा ले उन ला, गोष्ठी म पहुना बरोबर पाके अंतस म आनंद भरगे,,,

दीदी जी ल सादर नमन, सादर अभिनंदन हमर गोष्ठी म💐💐💐💐💐


*ठाकुर दीदी आय हे, महकत हे घर खोर।*

*छंद के छ परिवार हा, नमन करे कर जोर।*


*हम सबके जागे हवे, आज जबर जी भाग।*

*धनी सबे सुर साज के, दीदी जी अनुराग।*


*सुन सुन के बाढ़े हवन, दीदी जी के गीत।*

*बाजय जब संगीत ता, बाढ़य मया पिरीत।*


*सुर सरगम जानौं नही, कइसे राग लमाँव।*

*दीप सुरुज के सामने, कइसे भला जलाँव।*


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 133

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Date: 2020-11-14

Subject: 


बाहिर मा उजियार हे, मन भीतर हे अँधियार।

तब अइसन देवारी,




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# 132

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Date: 2020-11-14

Subject: 


देवारी तिहार के आप ल  बहुत बहुत बधाई


कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।

मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।

गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।

करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।

लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।

दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।


भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।

देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।

बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।

आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।

बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।

देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 131

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Date: 2020-11-13

Subject: 


बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


सबे खूँट देवारी, के हे जोर।

उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।


छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।

किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।


चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।

गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।


काँटा काँदी कचरा, मानय हार।

मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।


जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।

दया मया मनखे मा, हे भरपूर।


चारो कोती मनखे, दिखे भराय।

मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।


बनठन के सब मनखे, जाय बजार।

खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।


पुतरी दीया बाती, के हे लाट।

तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।


लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।

दीया बाती वाले, बड़ चिल्लाय।


कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।

नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।


जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।

टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।


हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।

खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।


पहली दिन घर आये, श्री यम देव।

मेटे सब मनखे के, मन के भेव।


दै अशीष यम राजा, मया दुलार।

सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।


तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।

पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।


दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।

सब संकट हा भागे, सुबे नहात।


नहा खोर चौदस के, देवय दान।

नरक मिले झन कहिके, गावय गान।


तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।

धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।


एक मई हो जावय, दिन अउ रात।

अँधियारी ला दीया, हवै भगात।


बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।

चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।


बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।

दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।


फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।

चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।


होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।

गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।


दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।

अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।


पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।

बहिनी मनके बोहै,भाई भार। 


कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।

देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।


देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।

देख देख के नाचे, तनमन मोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


देवारी तिहार के बहुत बहुत बधाई




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# 130

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Date: 2020-11-10

Subject: 


2,गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


नाचा हरे ये जिंदगी जे नाँचथे ते बाँचथे।

मइलाय तन मन ला जिही नित काँचथे ते बाँचथे।1


छाती ठठाये होही का मातम मनाये होही का।

सुख दुख सबे मा एक जइसे हाँसथे ते बाँचथे।2


जादा धरे के चाह मा जादा करे के चाह मा।

 कतकोन गिरथे राह मा, गत जाँचथे ते बाँचथे।3


झगरा लड़ाई मा भलाई हे कहाँ सोंचव जरा।

सुमता मया सत डोर ला, जे गाँथथे ते बाँचथे।4


पर के बुराई ला गिनइया खुद गिनाथे एक दिन।

खुद के करम ला जौन हा, नित नाँपथे ते बाँचथे।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 129

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Date: 2020-11-09

Subject: 


1,गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन


2212 2212 2212 2212 


निंदिया नयन मा मोर तो, एको कनी आये नही।

कोठी उना हो या भरे, संसो फिकर जाये नही।1


उम्मर बढ़त जावत हवै, सुख चैन दुरिहावत हवै।

जे बचपना मा रास आये, तौन अब भाये नही।2


सीमेंट मा भुइयाँ पटा, लागत हवै बड़ अटपटा।

बन बाग तक गेहे कटा, कारी घटा छाये नही।3


पत्थर के दिल मनखे धरे, रक्सा असन करनी करे।

कइसन जमाना आय हावै, फूल हरसाये नही।4


अंधेर हे पर देर ना, विश्वाश मनके हेर ना।

पड़थे असत ला हारना, सत ला लगे हाये नही।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 128

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Date: 2020-10-18

Subject: 


पिंयर-पिंयर करपा

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आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर -पिंयर हँसिया के बेंठ।

पिंयर -पिंयर   पैरा     डोरी।

पिंयर- पिंयर  लुगरा   पहिरे।

धान       लुवे            गोरी।

     पिंयर -पिंयर  पागा  बांधे।

     पिंयर -पिंयर  पहिरे धोती।

     पिंयर -पिंयर  बइला  फांदे,

     जाय किसान खेत  कोती।

खुसी        छलकत        हे,

किसन्हा    के ,अंग-अंग म।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर  -  पिंयर     धुर्रा        उड़े,

पिंयर  -  पिंयर    मटासी   माटी।

पिंयर  -  पिंयर पीतल बंगुनिया म,

मेड़   म   माड़े    चटनी  -  बासी।

     पिंयर -पिंयर  बंभरी  के फूल,

     पिंयर -पिंयर  सुरुज  के घाम।

     पिंयर -पिंयर    करपा    माड़े,

     किसान पाये महिनत के दाम।

सपना   के    डोर     लमा,

उड़ जा बइठ   पतंग    म।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795




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# 127

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Date: 2020-10-16

Subject: 


सुते के करे ढंगचाल हलाय डुलाय घलो न हले




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# 126

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Date: 2020-10-11

Subject: 


......मयखाना......

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लगता है; खुल चुका है,

'मयखाना' दिल की दहलीज पर |


मदहोश लब्जे है,

चिढ़ता है,हर चीज पर |


बरसा सी बरसे बदजुबानी,

बेसरमी की बीज पर |


पावन परब में भी प्रीत नही है,

न दिवाली, न ईद पर |


पीने वालो में जुबान शराबी,

पीकर अड़ा है जिद पर |


हाथ मारे,पॉंव गिराये,

इसां है कलंकित रीत पर |


हर जां में मद का नशा है,

क्या अमीर- गरीब पर ?


     जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

     बाल्को( कोरबा )




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# 125

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Date: 2020-10-06

Subject: 


.....कब आबे बेटा गाँव........


चुंदी-मुड़ी पकगे बेटा,

थक्कगे हमरो जाँगर |

कलम चलायेल सीखेस रे बाबू,

टँगाय हे अब टूट के नाँगर |

एक बेर धरेस शहर के रस्ता |

ताहन लगगे तोला उँहा के चस्का |

सब झन पूछथे,,,,,

बड़ चलथे तोर नाँव....|

कब आबे बेटा गाँव....|2


सँकलाय हे खोलखा म,

तोर पुस्तक कापी |

टँगाय हे अरगेसनी म,

तोर कुरता साफी |

भराय हे खेलौना ले,

घर के गोड़ा |

तोर ढ़केल गाड़ी,

कुकुर बिलई अउ घोड़ा |

ढुलत हे तोर लोहाटी बॉटी

कुरिया अउ डेरउठी म।

कुकुर कोलिहा ल धुतकारत रथों,

तोर गिल्ली डंडा वाले लउठी म |

रोटी के लालच म,

रोज मुहाटी म आके,

करिया कऊवा करथे काँव ........|

कब आबे बेटा गाँव................|2


न पानी पीये,न पेरा भूँसा खाय |

बुढ़ागे हवे तोला देखत-देखत,

तोर दुलौरिन  गाय |

तोर पोंसवा कुकुर खोरात-खोरात,

जोहत रइथे बाट |

छेरी,बोकरा,बइला,भँइस्सा,

नइ हे पघुरात |

आजा रे छेदउला बेटा ,

 कतरो उतबिरित कर,

अब नइ खिसियाँव..........|

कब आबे बेटा गाँव..........|2


कभू होरी म आवस,

त कभू देवारी म |

छप्पन भोग मढ़ाके रखथों,

तोर कॉच के थारी म |

संगी संगवारी आके पुछथे तोला |

देखे बर तरसत रिथे मोर  चोला  |

तोला आही कहिके साल म,

दू बेर देवारी,अऊ दू बेर होरी मनाँव....|

कब आबे बेटा गाँव.......................|2


तोर कुरिया नानकुन होगे,

तोर खटिया म अब घुन होगे |

छाती फूलगे तोर गुण ले बेटा,

फेर करेजा ह मोर सुन्न होगे |

दरस देखाबे आँखी के राहत ले,

अउ पार लगाबे जब सकलाँव.....|

कब आबे बेटा गाव.................|2


                       जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                       बाल्को(कोरबा)




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# 124

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Date: 2020-10-01

Subject: 


कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बापू,,,,,,,,,,,,,,,,


नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।

सत्य अंहिसा प्रेम सिरागे, बढ़गे बैरी बरबादी।


गली गली मा लहू बहत हे, लड़त हवै भाई भाई।

तोर मोर के फेर म पड़के, खनत हवै सबझन खाई।

हरौं तोर चेला जे कहिथे, नशा पान के ते आदी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


कतको के कोठी छलकत हे, कतको के गिल्ला आँटा।

धन बल खुर्शी अउ स्वारथ मा, सुख होगे चौदह बाँटा।

देश प्रेम के भाव भुलागे, बनगे सब अवसरवादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


दया मया बर दाई तरसे, बरसे बाबू के आँखी।

बेटी बहिनी बाई काँपे, नइ फैला पाये पाँखी।

लउठी वाले भैंस हाँकथे, हवै नाम के आजादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


राम राज के दउहा नइहे, बाजे रावण के डंका।

भाव भजन अब करै कोन हा, खुद मा हे खुद ला शंका।

दया मया सत खँगत जात हे, बाढ़ै बड़ बिपत फसादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 123

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Date: 2020-10-01

Subject: 


फुदरत हे अँगठा छाप हा।

बाढ़े हे अब्बड़ ताप हा।1


हे मोर बर आने नाप हा।

अउ तोर बर आने नाप हा।



नइ खाय एको खाप हा।

नइ सुनये पदचाप हा।

बड़ काम आथे छाप हा।

बाढ़त हवे बड़ पाप हा।

कलपत हवे बढ़ बाप हा।

का कमती हे जाप हा।


पानी बनही भाप हा।




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# 122

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Date: 2020-09-30

Subject: 


कइसनो होय कक्षा म फस्ट आना हे


कपहा पेंट चिरहा कुरथा पहिरे नाक बोहावत लइका के पीठ ल ठोंकत सालभर पढ़ाय के बाद मोर स्कूल के पहली  गुरुजी मिट्ठू राम साहू जी ह, नतीजा घोषित करत कथे कि जीतेंन्द्र के परीक्षा परिणाम कक्षा म सबले जादा हे, ओहर क्लास म प्रथम आय हे। ताहन का कहना मोर छाती फुलगे अउ उही दिन ले मन म वो फर्स्ट आय के लालच घलो घर कर गे। दूसरी, तीसरी , चौथी अउ पाँचवी म घलो सरलग प्रथम आयेंव। 26 जनवरी बर हर साल पंच सरपंच के मुँह घलो ताकंव कि मोला कक्षा  म प्रथम आये के ईनाम मिलही, काबर कि हर साल 15 अगस्त के सरपंच महोदय माइक म अपन उद्बोधन म ये बात कहय कि जउन छात्र मन अपन क्लास म प्रथम आही ओला 51 रुपिया के ईनाम मिलही। फेर 26 जनवरी बर लगे हर साल भुला जाय। खैर लालच तो रहय फेर नइ मिलत हे कहिके अपन पढ़ई लिखई ल कमती नइ करेंव। छठवीं, सातवी, नवमी अउ दसवीं म घलो प्रथम आयेंव। दसवी म मोर सन 2000 म 74% नम्बर आये रहिस त स्कूल सम्मान जरूर करे रिहिस।फेर आठवीं म मोर जेवनी हाथ म टायर के तार गड़े के बाद हाथ टुटे के भोरहा म अउ बैगई गुनियई के चक्कर म मुख्य परीक्षा ले वंचित हो गेंव, पूरक म शामिल होय बर पड़गे। वो साल के अंतिम दौर दुख भरे रिहिस ,पढ़ई लिखई ठप्प होगे रिहिस। फेर भगवान कृपा ले उबरेंव। हमन चार भाई हवन एक साल तो हमन चारो भाई अपन अपन कक्षा म प्रथम घलो आये रेहेंन, कहे के मतलब पढ़ई लिखई के घर म बढ़िया माहौल रहय। मोर न तो बाबू जी एको क्लॉस पढ़े रिहिस न दाई। तभो बिना टाइम टेबल के कभू नइ पढेंन। ये तो होइस मोर गांव के पढ़ाई अब 11 वी पढ़े बर राजनांदगांव के नामी स्कूल स्टेट हाई स्कूल म दाखिल होगेंव। उहाँ तो कई किसम के लइका , एक ले बढ़ के एक पढ़ैया, मोर पसीना छूट गे, एक तो गाँव के लइका बने हिंदी बोले बर घलो नइ आय अउ उँहा शहर के गुरुजी अउ शहरी सहपाठी। मोला पिक्चर के डायलाग सुरता आय अपन गली म तो कुकूर भी शेर होथे। फेर बाहिर म----? तभो बहुत महिनत करेंव  अउ कक्षा 11 वी म 89%अंक के साथ तीसरा स्थान म सिमट गेंव। 90% अउ 91% वाले साथी विनोद साहू अउ सोमनाथ पांडे क्रमशः  द्वितीय , प्रथम  रिहिस। आघू बछर बने पढ़हूँ कहिके मन ल धीर धरावत रही गेंव। 10 वी क्लास के बाद से ही गर्मी छुट्टी म राजनांदगांव काम बुता म आ जावत रेंहेंव। पूरा गर्मी भर कुली कबाड़ी के काम करके फेर आषाढ़ लगत पढ़ाई म लग जावंव, जबकि मोर शहर वाले संगी मन गर्मी म ट्यूशन पढ़े। कई बेर तो अइसनो मौका आइस की सहपाठी संगी मन के बनत घर म घलो काम करे करे हँव। 12 क्लास चालू होइस फेर उही साल सीबीएसई पैटर्न लागू हो गे रहय। वइसे तो 11 म आदेश आगे रिहस फेर स्कूल के हाथ म पेपर रिहिस तेखर सेती माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पुस्तक ल ही पढ़ावत रिहिस। फेर 12 म सब कुछ चेंज होगे रिहिस, अलगे पैटर्न रहय,मोठ मोठ पुस्तक अउ नवा नवा सिलेबस इंग्लिश के जादा रोल रहय। वो बछर पढ़े म बड़ तकलीफ होइस। 12 के रिजल्ट आइस,, मैथ्स, बायो अउ आर्ट मिलाके 189 झन म सिर्फ 9 झन पास होइस, मोर तो नामे नइ रिहिस। मैं पूरा नरवस होगेंव। अउ मोर संग कतको साथी मन घलो। वो समय से आज तक स्टेट स्कूल अपन पहली के स्टेंडर्ड ल नइ बना सकिस, लइका मन सब छिदिर बिदिर होगे, ताहन फेर का स्कूल प्रबंधन ल वो कोर्स ल खारिज करे बर घलो पड़गे। मोला लगे कि ये सीबीएससी कोर्स ह मोर सपना ल तोड़े बर आय रिहिस। वो समय घलो पांडे जी 60% के साथ प्रथम अउ विनोद जी 59% के साथ द्वितीय रिहिस। पूरक  के दाग मोर जिनगी म दूसरा बेर लगगे। एक बेर सोचेंव फिर से पढ़हूँ ,फेर मोला सर मन समझाइस कि पूरक पेपर दे के देख तेखर बाद सोंचबे। फिजिक्स म सात नम्बर कमती आय रिहिस चूँकि सीबीएससी अजमेर ले परीक्षा संचालित रिहिस त  ग्रेस देके पास करे के पावधान नइ रिहिस। पूरक के रिजल्ट आइस 60% अंक के साथ पास होगेंव। फेर मन डोले ल धरिस कि यदि प्रथम नइ आ सकबे त 60% तो जरूर आय। फेर ये मोर असमर्थता  रिहिस, जे अपन खामी उप्पर मरहम चुपरे बर दिमाक म 60%के आडिया आइस। कॉलेज म  तो हाल बेहाल होगे, पढ़ाई घलो इंग्लिश म होय लगिस, कक्षा म प्रथम आय के सपना ल छोड़ घलो देंव। गाना-बजाना, गीत-कविता, काम बुता आदि  सब में ध्यान बँट गे। भविष्य के चिंता सताये बर धर लिस, पढ़ लिख के नोकरी मिलही कि नही। दाई ददा मन आस बाँधे रहय। *कभू सोचँव कास लड़की होतेंव त बर बिहाव होके अपन चूल्हा चाकी करतेंव, फोकट नोकरी चाकरी के चिंता तो नइ रितिस।* कालेज म शुरू ले NSS म रेहेंव, जेखर ले मोर सांस्कृतिक पक्ष अउ मजबूत होइस,गाँव म तो सेवा, भजन चलते रहय। अपन ज्ञान ल बढ़ाये बर पइसा के डर म ट्यूशन घलो कभू नइ करेंव। कालेज म एको साल प्रथम नइ आयेंव फेर प्रथम ईयर म फाउंडेटन कोर्स, द्वितीय वर्ष केमेस्ट्री अउ तृतीय वर्ष म फिजिक्स म टॉप करेंव। कालेज सम्मान घलो करिस। कुल 60.44% के साथ स्नातक पास करेंव। अउ कालेज म ही फिजिक्स पढाहूँ कहिके आवेदन लगाएंव, उही बीच म घनघोर जंगल छुरिया ब्लाक के औंधी म शिक्षा कर्मी वर्ग 3 के फार्म डाले रेंहेंव तेखर बुलावा आइस। येखर पहली 12 वी बेस म ही रेलवे म गैंगमेन ट्रैकमैन के परीक्षा दिए रेंहेंव, अउ कालेज के आखरी बछर म ही बाल्को प्लांट के कैम्पस अटेंन करे रेंहेंव। ग्राम औंधी म शिक्षाकर्मी के नोकरी करतेंव तेखर पहली 10 अगस्त 2006 के राखी तिहार के दिन,अखण्ड रामायण म बैठे रेंहेंव त,बाल्को डहर ले नोकरी के काल आगे। वो समय बाल्को 5000 अउ गुरुजी म 2832 रुपिया कुछ तंखा रिहिस मैं बाल्को म जाए खातिर कोरबा आगेंव अउ 14 अगस्त 2006 के ड्यूटी ज्वाइन कर लेंव। कैम्पस म पेपर देवाये के घलो अजीब  संजोग रिहिस।  मैं अपन महतारी के संग धान बेचे बर पास के गांव के सोसाइटी गे रेंहेंव, अउ उही मेर हाईस्कूल म घलो, गेस्ट मैट्स टीचर के पोस्ट निकले रिहिस, त सब मार्कसीट वगैरह रखे रेंहेंव, उंहे जमा करहूँ कहिके। एक झन ग्रेडर धान के मूल्यांकन करे बर आइस त ओखर हाथ म रहे वो दिन के पेपर म कालेज प्रांगण म बाल्को के होवइया कैंपस के विज्ञापन रहय, वोला देखते ही ऊँहिचे बस बइठ के(हमेशा साइकिल म जाँव वो दिन पहली बेर बस म कालेज  गेंव) कालेज चल देंव, बने से पेपर घलो देंव, सब सर्टिफिकेट ल घलो देखायेंव, 50 म 46 नम्बर पाके इंटरव्यु म घलो शामिल होगेंव।अउ गाँव के दुकान के फोन नम्बर देके घर आ गे रेंहेंव। 

               बाल्को म आये के बाद गोरमेंट कालेज म MSC मैथ्स बर आवेदन करेंव फेर बाद म पता चलिस के वो साल कोनो स्टूडेंट नइ होय के कारण कालेज ह नइ पढ़ाये, मैं हिंदी  बर  फार्म ल बदल देंव, हिंदी विषय के बनेच पढ़इया रहय फेर मोला मोर संकल्प सताये लागिस प्रथम वाला, अउ वो दरी साकार घलो होइस। काम के साथ साथ पढ़ई करत एम ए हिंदी म दूनो साल कक्षा म प्रथम आयेंव। अइसन बिल्कुल नइहे कि मोला हिंदी के जादा ज्ञान हे, अभो घलो हिंदी कविता लिखे बर हाथ कांपते, विशेषकर व्याकरण के ज्ञान होय के बाद, वो समय सिर्फ पढ़ के प्रथम आये रेंहेंव।  एम.ए. म मोला 62%मार्क्स मिलिस,मोला बड़ खुशी होइस। भगवान ल बार बार धन्यवाद करेंव, नोकरी चाकरी घलो मिल गे रिहिस। गाँव म ट्यूशन पढ़ाये के आदत रिहिस  त कोरबा म कइसे छूट जातिस,उहचो पढावंव।विभागीय प्रमोशन बर एम बी ए घलो करेंव, उहचो 60%ले ऊपर ग्रेड मिलिस। पढ़े के लालच बने रिहिस अर्थशात्र के तक फार्म भरेंव दू पेपर दे रेंहेंव ताहन होली म आँखी म गुलाल घूँसे के बाद आंख म एम्फेक्सन होगे तेखर सेती बाकी पेपर छूट गे, अउ ईलाज बर चैन्नई चल देंव। उहँचे पहली बार 2012 म समुंदर देखेंव। अर्थशास्त्र के दू पेपर म 100 म 76 अउ 73 आये रिहिस। फेर बाकी तो जीरो रिहिस। हिंदी ल ही आघू बढ़ाये के विचार मन म आइस, त हिंदी म नेट अउ सेट के एग्जाम घलो  निकालेंव, फेर पोस्ट जादा नइ निकले के कारण ओखर फायदा नइ मिलिस, अभो घलो बाल्को म नोकरी चलत हे। पढाई लिखाई म का सपना रिहिस अउ कतका निभायेंव आप मनके सामने हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 121

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Date: 2020-09-30

Subject: 


एक संस्मरण सरिक आत्मकथा


रतिहा के 4 बजे बाबू जी के संग साइकिल म बैठ के राजनांदगांव  के जुन्ना बस स्टेण्ड पहुँच गेंव, अउ उहाँ ले पहाती के पहली बस म बइठ के दूनों झन कापसी बर निकल गेंन। हव उही कापसी जेन एक समय म हड्डी जोड़े बर भारी प्रसिद्ध रिहिस, अउ अभो घलो हड्डी टूटे के उपचार उँहा होथे, पर पहली कस नही। बस म चढ़के ममा गाँव इरइ ई जावन त खिड़की मेर बइठ के आजू बाजू ल झाँकन, अउ बड़ मजा लेवन, फेर ये पहली दफा होइस जेमा आँखी ले आँसू झरत रहय, काबर की मोर जेवनी हाथ के हड्डी ह टूट के आड़ी होगे हे कहिके गाँव के डॉक्टर ह बता दे रहय। अउ ओखर ले बड़े दुख ये बात ये रहय कि हप्ता भर बाद मोर आठवी क्लास के बोर्ड परीक्षा रहय। तैयारी पूरा कर डर रेंहेंव फेर होनी ल कोन टार सकथे। बस म बइठे बइठे मन म आय कि कापसी म हड्डी जोइड़या तुरते जोड़ दिही त मैं पेपर म घलो बइठ जाहूँ। अइसने गुनत सोचत कब कापसी आगे आरो घलो नइ लगिस, बस के बाहर झँकई तो दूर आघू पाछु कोन बइठे रिहिस तहू ल नइ देख पायेंव।  दरद के मारे हाथ उठाना घलो मुश्किल रहय,बाबू जी सरलग धीर धरावत रहय। कापसी म पहुँचेंन त भारी भीड़। लाइन म लगे के बाद मोरो नम्बर आइस, उँहा बइद महराज ह कुछु पाना के लेप ल कमचिल  के साथ के पट्टी म बाँध दिस, अउ किहिस 21 दिन बाद फेर देखाहू। मोर आँखी ले आँसू तरतरी धर लिस,जउन सोचे रेंहेंव ते नइ हो पाइस। अब पेपर देवाना तो असम्भवच होगे।  भइगे घड़ी घड़ी भगवान त सुमरत रहँव। दूनो झन इलाज के बाद  बस म बइठ के अपन गाँव आगेन। दूसर दिन आँखी म आँसू धरे स्कूल गेंव अउ सर मन ल अपन हाल ल बतायेंव। वो समय मोर स्कूल के प्राचार्य श्री एम एल साहू सर जी रिहिस, संग म जांगड़े सर अउ मंडलोई सर मन घलो सुझाव दिन कि आजे मेडिकल बना के आवेदन लगादे,यदि हो पाही त पूरक वाले मन संग पेपर देय के मौका मिल जाही। फेर ये काम ल झट कर काबर कि पेपर चालू होनेच वाला हे, बोर्ड ल सूचना देना जरूरी हे।ताहन फेर का बाबू जी संग तुरते  शहर(नांदगांव)आगेंव अउ डॉ सदानी करा मेडिकल बनाके, तुरते स्कूल म जमा करेंव, स्कूल म घलो सर मन तुरते आवेदन बनाके, ऊपर बोर्ड म भेजिन। दू दिन बाद साहू सर कर गेंव त बताइस कि तोर मेडिकल जमा होगे हे, अउ तें अब पूरक परीक्षा के समय पेपर देबे। मोर मन नइ माढ़त रहय, मोर जम्मो तैयारी धरे के धरे रहिगे। मन म विचार आइस कि डेरी हाथ म लिख के पेपर देहूं, जिद  म पूरा दिन भर लिखेल सीखेंव, फेर कभू तो नइ लिखे रेंहेंव, अउ मुख्य परीक्षा एक दिन बाद चालू होवइया रिहिस,   वो दिन रातभर घलो डेरी हाथ म लिखे के प्रयास करेंव, मोर जेवनी हाथ के लेखनी बनेच रहय फेर डेरी हाथ म घलो धीरे धीरे जादा अच्छा तो नही पर पहली पहली सीखती लइका मन कस लिखा जावत रिहिस। बिहना फेर स्कूल पहुँच गेंव अउ सर ल केहेंव कि मुख्य पेपर म ही बइठहूँ, ये दे डेरी हाथ म घलो अइसन लिख डरथंव, पास होय के पूर्तिन नम्बर आ जाही। जे प्रश्न म कमती लिखे के रही वोला धीरे धीरे लिख डरहूँ। मंडलोई सर मोर बात ल सुनके कथे, बेटा तोर अतेक अच्छा राइटिंग बनथे जेवनी म, ओखर जइसन लिखना दू चार दिन म सम्भव नइहे, तैयारी  तो तोर हेवेच घर म बइठ के अउ पढ़ अउ पूरक वाले मन संग पेपर दे देबे, जब तोर हाथ ठीक हो जही तब। मैं मानते नइ रेहेंव, पूरा स्टाफ समझाइस, तब अपन मन ल मार के हामी भर देंव। दूसर दिन स्कूल म मुख्य परीक्षा चालू होगे, स्कूल के तीर म आके स्कूल ल झाँकत रहंव, अउ छुट्टी होय त सबके प्रश्न पत्र ल देखँव, मोला बड़ सरल लगय, फेर का कर सकतेंव, मोला तो बाद म पेपर देना रिहिस। हर साल कक्षा म प्रथम आय के सपना देखे रेंहेंव ते वो साल रट ले टूटे कस लगिस। मोर गाँव म दसवीं तक स्कूल हे, अपन समय म मैं, पहली ले दसवी तक  प्रथम आये हँव बस आठवी ल छोड़ के, काबर कि मैं वो समय मुख्य परीक्षा नइ देवा पाये रेहेंव। पढ़ई लिखई दुख अउ दरद म होबे नइ करे, घड़ी घड़ी हाथ के जुड़े के संसो सताय अउ मुख म हे भहवाँ रहय। मुख्य पेपर घलो होगे। एक दिन हाथ के पट्टी ल 21 दिन के पहलीच हेर के देखेंव, जेन हड्डी ल टूट गेहे केहे रिहिस, ते तो छुये म जस के तस लगे। बाबू दाई ल घलो बतायेंव। उही समय मोर बड़े फूफा गाँव आये रिहिस, ओहर किहिस कि हमर गाँव तीर भवानी मन्दिर के पास करेला गाँव म एक बइद हे, उहू अच्छा हड्डी जोड़थे, मोरो एक पँइत ईलाज करे हे। ताहन फेर का बाबू जी संग उँहे बर निकल गेंन। उँहचो मैं बतायेंव की हड्डी येदे टूट  गेहे, ताहन उहू हर खींच खांच कुछ लेप के संग 21 दिन बर पट्टी कर दिस। अउ कहिस कि ओखर ले पहली झन निकालबे, फेर 21 दिन बाद आहू। पट्टी कराके घर आगेंव, पूरा दिन रात संसो म कटे, पढ़े लिखे के मन घलो नइ लगे। एके चिंता रहय मोर हाथ कब बने होही। दाई बाबू अउ भाई मनके मया दुलार म ये दुख भरे दिन ला भगवान भरोसा काटत रेंहेंव। 21 दिन पूरे के बाद पट्टी खोल के देखेंव त फेर जस के तस। पास परोस के मन किहिस, कि कापसी ही जाना रिहिस कहाँ करेला चल देव, कापसी म ही येखर ईलाज हो पाही, मरता का न करता।। फेर उँहा बर चल देंन, फेर उँहा पट्टी कर दिस। हाथ ल लटकाय लटकाय मोला अइसे लगेल धर लिस कि मोर हाथे नइहे। खाना, पीना, नाहाना धोना, खेलना कूदना सब हराम होगे रिहिस। बेरा बीतत गिस, आठवी के परिणाम घलो आगे,मोर कक्षा के रीना देवांगन 70% अंक लेके प्रथम आगे। मोला बड़ दुख लागिस, कि वो साल मैं पहली बेर अपन प्रथम आय के वादा ल पूरा नइ कर पायेंव। कथे न धन, दौलत सुख चैन सब स्वस्थ शरीर म ही सुहाथे,अउ जर बुखार म ये सब फालतू होथे। मोला मोर हाथ के संसो रहय। एक दिन फेर दाई बाबू ल  बिना बताये पट्टी ल खोल के देखेंव, जस के तस टूट के खसके हड्डी हाथ म छुये ले उसनेच लगे। अब तो मोर धीरज खरागे, ददा दाई मन घलो तंग आगे। राजनांदगांव म रथे मोर ममा मामी, ये गीत मोर बर फीट हे,काबर की  मोर बड़े ममा मामी म उँहिचे रहय, ममा शहर म नोकरी करे। अउ मोर हाल ल सुनके उहू मन मोला देखे बर गाँव आये रिहिन, ममा कथे अब तो हड्डी वाले डॉक्टर ल ही दिखाना चाही। तुरते फेर शहर के डॉक्टर कर चल देन। डॉक्टर के केबिन म गेंव त डॉक्टर किहिस, कइसे का होगे हे, कइसे टूट गे तोर हाथ ह? मैं बतायेंव कि एक दिन संझा साइकिल के टायर ल उप्पर फेक फेंक के झोंकत रेंहेंव, अचानक एक बेर उप्पर ले गिरत चक्का ल झोंकत झोंकत सीधा कोहनी अउ कलाई के बीच म लगगे अउ हड्डी टूट गे। अउ टूटे के बाद येदे आड़ी होगे हे, ते हा जुड़ते नइहे। डॉक्टर छू के देखिस, अउ छूते साँठ कथे, येमा कुछु चीज गड़े हे। हड्डी टूट के अइसन आड़ी नइ होय हे। अब हम का जानी, वो दिन संझा जइसे चक्का हाथ म पड़िस , दर्द के मारे चितियागे रेंहेंव, अउ गांव के डॉक्टर ल दिखायेंव त (एक तो वोला दर्द के मारे छुवन घलो नइ देवत रेंहेंव) वो किहिस लगथे हड्डी ह टूट के आड़ी होगे हे। अउ छुये म लगे घलो। उही ल सच मान के ईलाज बर जघा जघा घूमत रेंहेंव। डॉक्टर एक्सरे लिखेस। एक्सरे ले साफ होगे कि हड्डी न टूट के वो चक्का के तार ह (लगभग 6,7 सेंटीमीटर) टूट के हाथ म घूँसे हे। तार के बात ल सुन के डॉक्टर हमन ल बलाके पूछिस कत्तिक दिन होगे हे? बतायेंन कि लगभग अढ़ाई महीना, डॉक्टर माथा धरलिस अउ कथे, अत्तिक दिन ले का करत रेहेव, कहूँ  लोहा के जहर हाथ म फैल गे होही, त हाथ ल घलो काटेल पड़ सकत हे।डॉक्टर के बात ल सुनके मोर होस उड़ गे काबर की लोहा के पइजन के बारे म देखे रेंहेंव, मोर एक झन संगी तरिया म कपड़ा धोवत रिहिस, अउ ओखर थैली के आलपिन वोला गड़ गे रिहिस, त हप्तच भर म ओखर आधा अँगरी ल काटेल लगे रिहिस। फेर मोर तो बनेच दिन होगे रहय। हे भगवान मोर का होही? तुरते आपरेसन के तैयारी होइस। नानकुन टाँका लगाके तार ल निकालिस, अउ डॉक्टर किहिस सुक्र मना बाबू भगवान के दया ले लोहा के एको पैजन ह तोर हाथ म नइ फइले हे, येदे जम्मो जहर तार म ही जमगेहे, तार जंग लग लग के हाथे म थोरिक मोठ होगे रहिस। जइसे तार निकलिस, दरद घलो गायब होगे, अउ हाथ ल मैं तुरते  मोड़ माड़ घलो डरेंव। डॉक्टर दरद के कारण बताइस की हाथ के दू हड्डी के बीचों बीच तार ह टूट के गड़ गे रिहिस त जरा से हिलाय म घलो दरद करे।  मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, काबर कि मोर हाथ बने होगे रिहिस। डॉ अग्रवाल ल धन्यवाद करके घर आयेंव अउ सोचेंव हे भगवान आज तैं मोर हाथ ल बचा लेस, मोर लापरवाही म  अत्तिक दिन म घलो पैजन नइ होइस। कास म मैं डॉक्टर तीर पहिली जाये रहितेंव, त मोर पेपर घलो नइ छुटतिस|  फेर जे होना रथे ते होके रथे, वो दिन ले बइगा गुनिया मन डहर जाये बर कान पकड़ लेंव, सबले पहली प्राथमिकता डॉक्टर ल देथंव। पूरक के परीक्षा घलो होगे, परिणाम म मोला सिर्फ 65% मार्क्स मिलिस। अउ सर्टिफिकेट म पूरक घलो लिखागे। कँउवा कान लेगे येला सच माने के पहली कान डहर घलो देखना चाही। कोनो भी घटना के जड़ तक जाये बिना वोला आत्मसात नही करना चाही, सच जाने के बाद ही कदम उठाना चाही, नही ते अइसने होथे, मैं सॅंउहत भोगे हँव। वो तिं भगवान के कॄपा हे जे मोर हाथ सलामत रहिगे, वो दिन ले मैं हर आज तक लगभग हर सोमवार के एक दिन भगवान के धन्यवाद स्वरूप उपवास घलो रथों। 


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा




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# 120

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Date: 2020-09-30

Subject: 


10,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


सबके बने मंजिल शहर।

बिन दिल के बनगे दिल शहर।1


सुनवाई करथे शान से।

बन बाग के कातिल शहर।2


जिनगी जिये बन जानवर।

मनखे मा नइ शामिल शहर।3


खेती किसानी सत मया।

सबला करे चोटिल शहर।4


का होथे जस ममता मया।

का जानही जाहिल शहर।5


आघू बढ़े के आस मा।

लेहे खुशी ला लिल शहर।6


हीरा बरत हे हाथ मा।

का जानही कंडिल शहर।7


बस एक दिन इतवार के।

होवै हरू बोझिल शहर।8


जी भैया तैं कान आँख मूंद।

हे मोर बर मुश्किल शहर।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 119

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Date: 2020-09-29

Subject: 


बाजा के शौक-संस्मरणात्मक आत्मकथा


मोर जिनगी के 21 बछर जनम भूमि खैरझिटी(राजनांदगांव) म दाई,ददा, घर- गांव अउ खेत-खार के छाँव म ठेठ गँवइहा स्टाइल म कटिस। मोला मोर लइकन पन के एकठन करामत के सुरता आवत हे। कक्षा सातवी के पेपर होय के बाद गरमी छुट्टी लग गे रहय। गाँव म भागवत पढ़े बर एक झन महराज अपन एक झन चेला के संग पधारे रहय। कोनो परब तिहार होय, या कोनो उत्सव,या फेर खेल कूद या नाचा गम्मत, मोर खुशी के ठिकाना नइ रहय, पंडाल के बनत ले लेके आखिरी बेरा तक उही मेर ओड़ा डार देत रेहेंव। लीपे, बहारे, सब्बल धरके गड्ढा कोड़ के खंभा गड़ाये, तोरन ताव सजाये म घलो बड़ आनन्द आय। वो दिन घलो इही सब काम म हाथ बँटाय के बाद दूसर दिन 9 दिन बर भागवत चालू होगे। महराज ह पंडाल ले थोड़ीक दुरिहा वाले घर म ठहरे रहय, जेला बाजा गाजा के संग परघावत भजन मंडली वाले मन पंडाल तक रोज लाने अउ लेजे घलो, महूँ वोमा थपड़ी पीटत,नही ते झाँझ मंजीरा बजावत शामिल रहँव। गांव भर के मनखे मन रोज भागवत सुने बर सकलाय। बनेच भक्तिमय माहौल रहय, महू संगी साथी मन संग कभू सुनत त कभू उही मेर खेलत रहँव। दू दिन के बाद तीसर दिन बिहनिया 8:30 महराज ल परघा के मंच तक लाना रिहिस, 9 बजे भागवत शुरू हो जावत रिहिस। फेर वो दिन ढोलक बजइया कोनो नइ रिहिस।झांझ मंजीरा म ही भजन गावत महराज ल लावत रिहिस मैं एक ठन ढोलक ल धर लेंव, अउ चलत भजन म थोर बहुत मिलाके ढोलक ल ठोंकत बढ़ गेंव। वइसे कभू तो सीखे पढ़े नइ रेंहेंव फेर सेवा-जस होय ते घरी छुवे बर मिल जावत रिहिस, सियान मन देखे त ,लइका मन भागो रे कहिके चमका देवय। वो दिन संझा घलो मैं एकठन ढोलक ल पहली ले धर लेंव अउ एक झन तो मुख्य वादक रहिबे करे रिहिस। कई सियान मन किहिस रख दे , एक झन तो बजाइय्या हे, ततकी बेर महराज कथे, बजावन दव जी, बेरा बखत म काम आथे, आज बिहना तो लइका बिचारा ह अलवा जलवा बजावत रिहिस न। महराज के बात ल कोन काटे, मैं वो बजकार संग मिलाके ढोलक बजायेंव, दू ठन तो गाना रहय, हाथ वो ताल म जमे कस लगिस। दूसर दिन घलो ढोलक बजाये के सपना रात भर खटिया म सुते सुते देखत रहिगेंव, अउ भगवान ले विनती करेंव कि कोनो बाजा बजाइय्या झन रहितिस, अउ रहितिस भी त एक झन, ताहन महूँ गला म दूसर ढोलक ल अरो के चलतेंव। खुसी के मारे नींद घलो नइ आइस। पहाती नहा खोर के फेर पहुँच गेंव। नीर सोचई सच घलो होगे, फेर कोनो नइ रिहिस बाजा बजइया, ताहन का कहना जेन सियान  मन रख रख काहत रिहिस तिही मन ह, ले बाबू बजा कहिके गला म अरो दिस ।मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, दादरा कस ताल पीटत महराज ल मंच तक लेंगेंव, अउ संझा लानेंव घलो। फेर सँझा कोई न कोई बजकार रहय,पर दूसर ढोलक ह मोर बर फिक्स होगे रिहिस। महराज वइसे तो बिन बाजा पेटी के कथा कहय फेर एक दिन ओखर भजन म सब ताली बजावत रहय त मैं ढोलक ल डरे डर म धीरे धीरे मिलावत रहंव, महराज के चेला कथे - बने बजावत हस, बजा बढ़िया जोर से। ताहन का महराज के भजन-गाना-गीत घलो ढोलक के ताल देख लम्बा खींचा गे। अउ वो दिन ले महराज ह अपन चेला के तीर म महू ल ढोलक धरवा के बइठार देवत रिहिस। लेजना, लानना के अलावा अब कथा के बीच बीच के गाना मन म मंच म बइठे ढोलक ल ठोंकव। ढोलक के आय ले बनेच माहौल घलो बन जावत रिहिस,काबर की तालीच भरोसा म कोनो भजन कत्तिक तानही, महराज के चेला जे नानचुन झोला म हाथ ल डार के बइठे रहय तेहर मंजीरा ल धर लिस। संगीतमय समा ले महराज खुश अउ सुनइया मन तक खुश। देखते देखत आखरी दिन होगे, महराज मोला नाम ले जाने। नटवर नाँगर नन्दा भजो रे मन गोविंदा--इही कीर्तन आखरी बेरा म चलत रहय।

मोर हाथ तो ढोलक म बरोबर ताल देवत रिहिस फेर मन उदास रिहिस, कि काली ये सब बन्द हो जाही। मोर आँखी ले आँसू झरत देख महराज पूछिस का होगे बाबू, मैं कहेंव काली मैं का करहूँ?आप मन तो काली चल देहू।  महराज मजाक करत कथे, त का तहूँ जाबे हमर संग? मैं मुड़ी डोला के हव केहेंव। महराज के, तैं का करबे ल सुन,मैं तपाक से केहेंव आप मन संग ढोलक बजाहूँ, अतेक कहिके फेर रोय बर धर लेंव। महराज रहय मथुरा के छत्तीसगढ़ म ओखर भागवत एक दू जघा अउ रहिस। चढ़ोतरी वगैरह होय के बाद घलो मैं उही मेर रेंहेंव, अउ आखिर बार बाजा बजावत परघावत ओखर ठहरे ठिहा म गेंव। सब सियान मनके घर जाये के बाद मोला बलाही कहिके महराज के आघू आघू म होवत रेंहेंव, आखिर म बलाइस अउ किहिस, तोर दाई ददा मन तोला जावन दिही? मैं फटाक कहेंव हव। का पता कहत महराज कथे वइसे तुम्हर गाँव ले 10 किलोमीटर दुरिहा म नगपुरा हे उँहा अगला भागवत होही। जा बने पूछ के आ घर ले ताहन ,सुबे के बस म  जजमान मन ले बिदा लेके निकलबों? मैं बड़ खुश होगेंव, अउ रतिहा झट ख़ाना खाके महराज के ठिहा म पहुँच गेंव, महराज मन के आराम करे के बेरा होवत रिहिस, मैं जाके झूठ बोलत केहेंव दाई बाबू दूनो ल बताये हँव, ओमन जा किहिस, अउ बात बनावत यहूँ केहेंव की वोमन आखरी दिन नकपुरा आही, मोला लेगे बर। बाजा बजाये के मोह अत्तिक मन म सवार रिहिस कि झूठ मूठ के सबकुछ गढ़ डरेंव। जबकि ददा दाई ल कुछु भी बताये नइ रेंहेंव। सुबे आहूं कहिके घर आगेंव अउ लुका के एकठन ताँत के झोला म दू जोड़ी कपड़ा ल भर के रख देंव। फेर रात भर नींद नइ आइस। बिहना नहा के कलेचुप सीधा बस स्टैंड म पहुँच गेंव, अउ महराज ल बतायेंव येदे मोरो कपड़ा लत्ता हे। गाँव भर के मनखे मन महराज ल विदा करे बर आय रिहिस, मैं कोनो ल नइ बताएंव कि महुँ महराज संग जावत हँव,चुपचाप एक तीर म खड़े रेंहेंव अउ बस आइस ताहन कलेचुप सबके नजर ले बचके चढ़ गेंव गाँव वाला मन महराज के पाँव पल्लगी म भुलाये रिहिस, थोड़ीक देर म चेला घलो चढ़गे वो मोला देखिस, अउ महराज चढ़िस ताहन बस चल पड़िस। वो दिन बाबू जी घलो गोतियार के नाहवन म दूसर गाँव गे रिहिस। मैं तो सबके नजर ले बचके भाग गे रेंहेंव। रतिहा विश्राम करे के बाद दुसर दिन भागवत चालू होइस। मोर बर एक ठन ढोलक समिति वाले मन कर ले जुगाड़े गिस। पहली दिन जम्मो भजन कीर्तन म ढोलक बजायेव ,अउ चेला  के मंजीरा घलो गूँजिस। अब हमन तीन झन होगे रेहेन ।मैं ,महराज अउ ओखर चेला। साथ म सोवई  अउ रंग  रंग के खवई म दाई ददा घर गांव के सुध भुलागे। येती मोला घर ले निकले दू रात बितगे रिहिस दाई के हाल बेहाल रहिस, गांव म जे भागवत करात रिहिस तेला पूछिस, देखे हव का टूरा ल कहूँ महराज के सँग तो नइ चलदिस हे, उँखर मनले तो मैं बचके कलेचुप बस म बइठे रेंहेंव कोन का जानही। कई झन मन किहिस की बस स्टैंड म आखरी बार दिखे रहिस। कतको मन किहिस, कि महराज के सँग भागे होही, काबर की 9 दिन ले तो ओखरे संग चिपके रहय। कतको मन महराज ल खिसियाये लगिस कि महराज ल तो बताना चाही। बाबू गाँव ले आइस त पता करिस कि महराज के भागवत अभी कहाँ चलत हे। अभी कस पहली कहाँ फोन ,एक तो दू दिन बाद म बाबू  गाँव ले आइस वो भी कका बलाए बर गिस तब। येती दाई अकेल्ल्ला का करतिस, भाई मन तक छोटे छोटे , मही खुद 13 बछर के बड़का (चार भाई म) रेंहेंव। ले दे के पता चलिस के नगपुरा म भागवत होवत हे, ताहन  बाबू अउ कका दूनो बिहना साइकिल धरके निकलगे। येती भागवत के दूसरा दिन चलत रिहिस, बनेच भीड़ घलो रहय। कथा म सब रमे रहय अउ महूँ ढोलक के संग कथा म मगन रेंहेंव। बाबू अउ कका स्रोता मनके  संग म बइठ के भागवत के उसले के रद्दा जोहत रिहिस। मोला उहाँ पाके उँखर तरवा ठनकत रहय, फेर संत समागम म हो हल्ला हो जही कहिके कलेचुप रिहिस। भागवत उसले के बाद मोर नजर बाबू अउ कका ऊपर पड़के। मोर तो हाथ पाँव काँपे लगिस। महराज जिहाँ ठहरे रहय तिहाँ दूनो झन तमकत आइस अउ पहली तो महराज ल सुनाइस कि काबर कखरो लइका ल अइसने ले आथो महराज जी कहिके, महराज समझगे कि मैं झूठ बोल के आये हँव। महराज बाबू ल किहिस की मैं तो केहे रेहेंव भई, घर म पूछ कहिके, त ये बाबू ह हव पूछ डरे हँव, जाये बर केहे हे किहिस, त लान परेंव, वइसे महूँ ल एक बार बताना रिहिस, फेर जल्दीबाजी अउ विदा के चक्कर म ध्याने नइ आइस। रिस म कका दू लउठी सूँटिया घलो दिस। अउ साइकिल म जघा के घर ले आइस। गाँव भर म मोर गँवाये के हल्ला पर गे रिहिस, अउ सब जानिस त, खिसियाये, वाह रे लइका कहिके। दाई घलो दू तीन बाहरी जमाये रिहिस। कोन जन का होगे रिहिस ते, मैं वो दरी बाजा के मोह म बइहागे रेंहेंव। दाई बाबू मन कभू अपन ले अलग नइ करे रिहिस, मोला सुरता आवत हे,मोर 5 वी क्लास के बाद नवोदय डोंगरगढ़ म सलेक्शन घलो होय रिहिस फेर नानकुन लइका कहाँ अत्तिक दुरिहा अकेल्ल्ला रही कहिके नइ भेजे रिहिस। दू दिन लइका नइ दिखे त कत्तिक दुख होथे तेला दाई ददा के अलावा कोन जानही। अउ लइका के प्रति वो मोह,मया,लगाव ल ददा बने के बाद अनुभव करथों। बिना बताये कोनो कदम नइ उठाना चाही।


जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 118

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Date: 2020-09-29

Subject: 


9,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


बड़ हिरदे धड़के आजकल।

बड़ नैना फड़के आजकल।1


सुख चैन ला दे हँव गँवा।

चक्कर म पड़के आजकल।2


लगगे झड़ी मन भीतरी।

बिजुरी ह कड़के आजकल।3


कुहकत हवे मन कोयली।

दिल कतको तड़के आजकल।4


तोर मोर मया ला देख के।

दुनिया ह भड़के आजकल।5


भरके मया अंतस अपन।

चलथौं मैं अड़के आजकल।6


लेहूँ बना तोला अपन।

दुनिया ले लड़के आजकल।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 117

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Date: 2020-09-29

Subject: 


8,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


घायल करे भाला सबे।

लालच करे लाला सबे।1


नेता गिरी मा का कहन।

बदलत दिखे पाला सबे।2


कतको हे जिम्मेदार बड़।

नइ होय मतवाला सबे।3


सोना मिटावय भूख ना।

नइ भाय ऊजाला सबे।4


बेरा बखत पानी घलो।

नइ देय नल नाला सबे।5


फल फूल पाही पेड़ हा।

कटगे हवे डाला सबे।6


पिसथे गहूँ के संग घुन।

नइ हे बुरा काला सबे।7


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 116

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Date: 2020-09-29

Subject: 


7,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


बढ़िया करम कर रोज के।

सतगुण धरत चल खोज के।1


जौने निचट डरपोकना।

कविता करै वो ओज के।2


परिणाम बड़ होथे बुरा।

कखरो भी ओवर डोज के।3


नइ काम आये टेंड़गा।

हे माँग सिधवा सोज के।4


चंदन चुपर के माथ मा।

उपवास हे खा बोज के।5


पर ला कहे जे जंगली।

 ते ले मजा वनभोज के।6


होटल सिनेमा बार पब।

अड्डा हे मस्ती मौज के।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 115

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Date: 2020-09-28

Subject: 


6,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


बम्बर बरे अब पेड़ हा।

कइसे फरे अब पेड़ हा।1


 दै फूल फल औषध हवा।

का का करे अब पेड़ हा।2


मनखे जतन करथन कथे।

तभ्भो मरे अब पेड़ हा।3


घर गाँव बन रद्दा शहर।

काखर हरे अब पेड़ हा।4


बरसा घरी बुड़ जात हे।

लू मा जरे अब पेड़ हा।5


के दिन जी पाही भला।

दुख डर धरे अब पेड़ हा।6


जीवन बचा ले काट झन।

पँइया परे अब पेड़ हा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 114

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Date: 2020-09-28

Subject: 


5, गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


झरना बने झरथे नदी।

सागर चरण परथे नदी।1


गाँव अउ शहर तट मा बसा।

दुख डर दरद दरथे नदी।2


बन बाग बारी सींच के।

आशा मया भरथे नदी।3


चंदा सितारा संग मा।

बुगबाग बड़ बरथे नदी।4


नभ तट तरू के दाग ला।

दर्पण बने हरथे नदी।5


बढ़ जाय बड़ बरसात मा।

गरमी घरी डरथे नदी।6


धर कारखाना के जहर।

जीते जियत मरथे नदी।7


तरसे खुदे जब प्यास मा।

दुख दाब घिरलरथे नदी।8


देथे लहू तन चीर के।

दुख देख ओगरथे नदी।9


जाथे जभे सागर ठिहा।

आराम तब करथे नदी।10


खुद पथ बना चलथे तभे।

तारे बिना तरथे नदी।11


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 113

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Date: 2020-09-27

Subject: 


छप्पय छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


दुख माँ बाप मनाय, जनम बेटी लेवय जब।

बेटा घर मा आय, लुटावय धन दौलत तब।

भेदभाव के बीज, कोन बोये हे अइसन।

बेटी मन तक काम, करे बेटा के जइसन।

बेटी मनके आन हा, बेटी मनके शान हा।

छुपे कहाँ जग मा हवै, जानय सकल जहान हा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा




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# 112

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Date: 2020-09-27

Subject: 


4,छत्तीसगढ़ी गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


खाके कसम आये नही।

पानी पवन भाये नही।1


देखे बिना तोला बही।

दिल के दरद जाये नही।2


कूँ कूँ सुने बिन कोयली।

मन आमा मउराये नही।3


प्यासा पपीहा ला कभू।

नद ताल ललचाये नही।4


रोवात हस तैं जिनगी भर।

सपना म हँसवाये नही।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 111

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Date: 2020-09-27

Subject: 


3,छत्तीसगढ़ी गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


धर चामटी शैतान बर।

का के मया बैमान बर।1


सब ला उड़ा के ले जथे।

मुश्किल हे का तूफान बर।2


गलती कहाँ खुद के दिखे।

किरिया कसम हे आन बर।3


बिल्डर बनाये बंगला।

डोली सिरागे धान बर।4


भरगे भरम मा हे जिया।

नइहे जघा भगवान बर।5


सागर सबे दिन खात हे।

आघू कुवाँ हे दान बर।6


सबला खबोसे बइठे हे।

कमती तभो इंसान बर।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 110

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Date: 2020-09-27

Subject: 


2,छत्तीसगढ़ी गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


काखर गहूँ काखर जवा।

काखर जहर काखर दवा।1


काखर तिजोरी हे उना।

छलकत भरे काखर सवा।2


काखर पुराना हे वसन।

काखर फटे काखर नवा।3


सिध्धो अघाये कोन हा।

रोटी चुरे काखर तवा।4


काखर हरे धरती गगन।

काखर अनल काखर हवा।5


काखर ठिहा उजियार हे।

काखर बचे काखर खवा।6


सब खेल ऊँच अउ नीच के।

काखर गड़ा काखर रवा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 109

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Date: 2020-09-27

Subject: 


1,गजल- जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम*

मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन

2212  2212


अवगुण धरे कोरी उही।

बारत हवै होरी उही।1


मन नइ चले जेखर कभू।

सिरतों म हे खोरी उही।2


जाँगर खताये जेखरे।

सबदिन करे चोरी उही।3


निर्भस दिखे थक हार के।

खोजत हवै डोरी उही।4


मन हे निचट करिया तभो।

कहिलात हे गोरी उही।5


आधा भरे जेमन रथे।

बड़ करथे मुँहजोरी उही।6


कौवा ले करकस हे गला।

गावत हवे लोरी उही।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)




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# 108

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Date: 2020-09-26

Subject: 


4,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


हँसिया के धार लइका आजकल के।

मिरचा के झार लइका आजकल के।1


भाजी भाँटा देख के मुँह ला फुलोये।

झड़के क़ुकरी गार लइका आजकल के।2


बात बानी जान दे का पूछना हे।

काम बर मुँह फार लइका आजकल के।3


छोड़ देथे मोड़ देथे आस सपना।

थोरको खा मार लइका आजकल के।4


सोये सोये रोज सपना मा पहुँचथे।

चाँद के वो पार लइका आजकल के।5


घर ठिहा दाई ददा भाई भुलाके।

दूर जोड़े तार लइका आजकल के।6


फर लगे ना फूल लागे खैरझिटिया।

बनगे प्लास्टिक नार लइका आजकल के।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 107

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Date: 2020-09-26

Subject: 


जनता ल काय पसंद हे


वइसे तो सबझन ला भैया,भारत देश पसंद हे।

फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।


रोजगार के राह देखत हे, बेरोजगार युवा हा।

फलय फूलय कहाँ अब,कखरो आशीष दुवा हा।

दागी बागी दंगी गुंडा,सबला घेंच पसंद हे------।

फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।


बली के बोकरा बनके जनता,मारत हे मँहगाई।

नेता गुंडा व्यपारी मन,खावै सदा मिठाई।

कुर्सी के खिलाड़ी मन ला,दाँव पेंच पसंद हे----।

फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।


कोनो नियम कानून आवै,जनता रोज पिसावै।

पक्ष विपक्ष सब मिल बाँट के,एक्के थारी मा खावै।

कुर्सी खातिर नेता मन ला,जीवन भर रेस पसंद हे।

फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।


लइका ल लेस पसंद हे,टूरा ल टेस पसंद हे।

टूरी ल केंस पसंद हे,भाजी म चेंच पसंद हे।

कोनो ल चेस पसंद हे,कोनो ल बेस पसंद हे।

सुख शांति सबे चाहे,कोनो ल नइ क्लेस पसंद हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




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# 106

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Date: 2020-09-25

Subject: 


3,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


देखा सीखी बाय लागे आज सबला।

कोन जन ये काय लागे आज सबला।1


चुप रहैया मनखे सिधवा नइ सुहाये।

बिगड़े मनखे गाय लागे आज सबला।2

 

चोचला बड़ बाढ़ गेहे चारो कोती।

संझा बिहना चाय लागे आज सबला।3


पथरा के दिल हे दया के नाम नइहे।

कुछु करे नइ हाय लागे आज सबला।4


साग भाजी घर मा हे ना घर मा मुर्गी।

दार तक बिजराय लागे आज सबला।5


सिर झुकाना सबके बस मा हे बता का।

भीख तक व्यवसाय लागे आज सबला।6


नाम होही काम करले खैरझिटिया।

तोर सपना आय लागे आज सबला।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 105

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Date: 2020-09-25

Subject: 


मोर कुछु का कोन करही जा बता दे।




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# 104

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Date: 2020-09-25

Subject: 


2,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


जब ले पइसा कौड़ी एको पास नइहे।

मोर बर जल थल पवन आगास नइहे।1


आन मनखे का भला अब साथ देही।

खून के रिस्ता घलो ले आस नइहे।2


रट लगाके फड़ फड़ाके चूर हौं मैं।

मन पपीहा ला तनिक अब प्यास नइहे।3


जानवर तक मन मुताबित घूम लेथ

मोर मन पंछी ला ये अहसास नइहे।4


ठंड हावय घाम हावय दुख बरोबर।

सुख बरोबर मोर बर चौमास नइहे।5


छाय अँधियारी हवय चारो मुड़ा मा।

सुख खुशी के थोरको आभास नइहे।6


भोगते हस तैं सजा ला खैरझिटिया।

साथ देवै कोन कोई खास नइहे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 103

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Date: 2020-09-23

Subject: 


1,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रमल मुसद्दस सालिम*

फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन


*2122    2122    2122*


देख दुनिया के तमाशा ला कलेचुप।

खा मिलत हे ता बताशा ला कलेचुप।1


पीट झन तैंहर ढिंढोरा फोकटे के।

पूरा कर ले मन के आशा ला कलेचुप।2


जोड़े सब ला तोड़थे जालिम जमाना।

दरके मा तैं छाभ लाशा ला कलेचुप।3


सब जुरे सुख के समय मा जानथस तो।

झेल जम्मो दुख निराशा ला कलेचुप।4


फोकटे हे हाय हाये खैरझिटिया।

लेत चल नित चैन स्वाशा ला कलेचुप।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 102

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Date: 2020-09-22

Subject: 


6,छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


मया के अर्थ हा देखव बदल चुके हावय।

सुवा जिया मा सुवारथ के पल चुके हावय।1


लगाय कोन हा घायल के घाव मा मरहम।

बइद घलो तो जहर धर निकल चुके हावय।2


अगिन बरत हवे बम्बर सबे डहर छल के।

सबर बरफ सही सबके टघल चुके हावय।3


का हथकड़ी घलो हत्यारा हाथ मा लगही।

अवइया फैसला तक तो टल चुके हावय।4


भरोसा करबे भला कइसे कखरो उप्पर मा।

माँ बाप ला घलो तो पूत छल चुके हावय।5


का बाँच पाही मया के फसल कहूँ कोती।

अगिन दुवेश के सब खूँट जल चुके हावय।6


बता चढौ़ भला कइसे मचान मा मैंहर।

टिकाय सीढ़ी घलो तो फिसल चुके हावय।7


ठिहा ठिकाना कहाँ हे जियत मनुष मन बर।

मशान घाट मा नेंवान डल चुके हावय।8


जलाय चल बने आशा के जुगनू जी जीतेन्द्र।

डहर दिखइया सुरज हा तो ढल चुके हावय।9


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 101

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Date: 2020-09-21

Subject: 


दबाय माटी ला चोला धरे माटी के।

चरे, बरे, फरे,डरे,हरे, जरे।




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# 100

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Date: 2020-09-21

Subject: 


5,छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


फुले फले कहाँ बाँस अउ बबूल कागज के।

न भौरा आय न तितली हे फूल कागज के।1


पड़े हे कोंटा मा फेकाय कतको फाइल पत्ता।

बिना रकम कहाँ झड़ पाही धूल कागज के।2


दया मया मिले कागज मा धन हरे कागज।

करे जिया घलो ला छल्ली शूल कागज के।3


घड़ी घड़ी टुटे कतको नियम धियम कानून।

बना डरे हे मनुष मन हा रूल कागज के।4


ठिहा ठउर घलो कागज जिया घलो हे कागज।

करे करम सबे मनखे हे भूल कागज के।5


खिंचाय हे इहाँ कागज मा जिनगी के रेखा।

करत हवे सबे तोफा कुबूल कागज के।।6


जमाना पूरा हे कागज हे माँग हे भारी।

निभात हवे सबे मनखे उशूल कागज के।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 99

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Date: 2020-09-21

Subject: 


छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता-खैरझिटिया


सरी जगत म विविधता भरे पड़े हे, सबे चीज म विविधता हे, वइसने भाषा म घलो देखे बर मिलथे। विश्व के सबे मनखे अपन देशकाल, वातावरण या फेर चलन- चलागन के हिसाब ले भाँखा ल सीखथे। सबे मनखे बहुभाषी होय, यहू सम्भव नइहे। त फेर एक दूसर के ज्ञान-विज्ञान,साहित्य अउ संस्कृति ल जाने पर हमला जरूरत पड़थे अनुवादक के या अनुवाद के। मनखे मन अपन चेत ल बढ़ात अपन प्राथमिक भाषा के साथ साथ कतको किसम के भाषा घलो जाने बर लग गेहे। फेर सबके बस म घलो नइहे।अनुवाद के प्रक्रिया बनेच जुन्ना हे। मनखे मन अपन सुविधा बर समझ से परे विषय-वस्तु के अनुवाद कोनो जानकार ले करा के , खुद संग अउ जमे जनमानस ल ओखर से परिचित कराथे, इही अनुवाद के ख़ासियत आय। अनुवादक के भूमिका घलो चुनोती ले भरे रहिथे, काबर की भाव म यदि बिखराव होगे तभो वो साहित्य या विषय वस्तु के महत्ता समाप्त होय बर धर लेथे। अनुवादक दूनो भाँषा(जेन भाषा म अनुवाद करना हे, अउ जेन भाषा के अनुवाद करना हे) के खाँटी जानकार होथे, तभे अनुवाद प्रभावशाली अउ जस के तस मनखे मन के अन्तस् म विचरण करथे। अनुवाद तो आवश्यकता पड़े म होबेच करथे, फेर पहली ले दू चार भाषा म अनुवाद होय ले वो विषय वस्तु, फ़िल्म या साहित्य के माँग बढ़ जथे। आजकल सिनेमा जगत ल ही देख लव, कोई भी पिक्चर के दू ले जादा भाषा म डबिंग होके, आवत हे येखर कारण ओखर माँग घलो बढ़ जावत हे।

              छत्तीसगढ़ी साहित्य-संस्कृति  घलो बड़ पोठ हे, फेर आन राज ल छोड़ दी, हमरे राज म कतको झन छत्तीसगढ़ी भाँखा नइ जाने, येखर संगे संग हमर भाँखा के साहित्य संस्कृति ल आन तक पहुँचाये बर छत्तीसगढ़ी साहित्य के आन आन प्रचलित भाषा म अनुवाद घलो जरूरी हे। *अनुवाद अपन साहित्य ल आन ल जनवाये बर जतके उपयोगी हे, ओतके उपयोग आन साहित्य ल जाने बर घलो हे, कहे के मतलब अनुवाद दोनों माध्यम म जरूरी हे, जाने बर अउ जनवाये बर घलो।* कतको झन के विचार घलो आथे कि हिंदी जनइय्या मन छत्तीसगढ़ी पढ़ डरथे अउ छत्तीसगढ़ी बोलइया मन हिंदी त ये दुनो भाषा म अनुवाद के कोनो जरूरत नइहे। फेर मोर विचार म सही अउ गलत दूनो हो सकत हे, काबर कि कई साहित्यकार मन अपन अपन साहित्यिक भाषा के प्रयोग करथे जेला बगैर अनुवाद के समझ पाना मुश्किल होथे, माने हिंदी(विशुद्ध) के घलो हिंदी(सरल) म अनुवाद  के जरूरत पड़थे। वइसने छत्तीसगढ़ी म घलो कई लेखक कवि मनके ठेठ भाषा सहज  समझ नइ आय, एखरो सरलीकरण के आवश्यकता पड़थे। अब अइसन स्थिति म तो अनुवाद जरुरिच हो जथे। चाहे हिंदी, होय छत्तीसगढ़ी होय या फेर कोनो आन भाषा के साहित्य अनुवाद आज के माँग आय, लोगन तक सरल सहज रूप से पहुँचे बर।

           वइसे देखा जाय त हम छत्तीसगढिया मन लगभग हिंदी ल समझ जथन फेर हमर छत्तीसगढ़ी ल आन मन नइ समझ पाय, त येखर बर छत्तीसगढ़ी के हिंदी म अनुवाद जरूरी हे। अउ कोई भी भाषा साहित्य के जतके भाषा म अनुवाद होथे वो साहित्य के माँग वोतके बढ़ जथे। चाहे रामायण महाकाव्य होय चाहे विष्णुशर्मा के पंचतन्त्र होय , हमर आघू म उदाहरण स्वरूप जगर मगर करत हे। कई दफा अइसनो होथे, जेला उही भाषा म पढ़े के चुलुक रथे, एखर बर वो भाषा ल पढ़े लिखे ल लगथे, एखर उदाहरण देवकीनंदन खत्री के चन्द्रकान्ता उपन्यास हे। जेखर विशालता ल देखत पाठक मन अनुवाद के अपेक्षा करे बगैर हिंदी ल सीखिन अउ वो उपन्यास ल पढ़िन, आज भले चंद्रकांत के कई भाषा म अनुवाद हो चुके होही, फेर जब ये उन्यास लिखाइस तब हिंदी के पाठक घलो बड़ बाढ़िस। हिंदी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद अउ छत्तीसगढ़ी के हिंदी अनुवाद कस अंग्रेजी, बांग्ला, तेलगु, तमिल अउ आदि कतको भाषा म अनुवाद होना चाही। तभे छत्तीसगढी भाखा साहित्य चारो मुड़ा बगरही। येखर बर बहुभाषी व्यक्तिव के कलमकार मन ल आघू आना चाहिए, काबर की ये हमर साहित्यिक अउ सांस्कृतिक महत्ता बर उपयोगी साबित होही। हिंदी के छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी के हिंदी दूनो भाषा म अनुवाद लगभग नही के बरोबर हे, त इंग्लिश या कोनो आन भाषा म अनुवाद के बारे म का कही। अनुवाद समय के माँग आय, येमा घलो आज काम करे के आवश्यकता हे। अउ हमर साहित्कार संगी मन करत घलो हे, येखर बर ओमन बधाई के पात्र हे।

                 *अब एक प्रश्न मन म आथे कि, का अनुवादक होय बर साहित्यकार होना जरूरी हे? का खुदे लिखही तभे वो साहित्यकार कहलाही? यहू घलो एकात दिन विमर्श के विषय बने*


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 98

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Date: 2020-09-20

Subject: 


.मोर गॉव अब शहर बनगे.....


शहरिया शोर म सिरागे ,

सियन्हिन के ताना |

लहलहावत खेतखार म बनगे,

बड़े-बड़े कारखाना |

नदिया नहर जबर होगे ,डहर बनगे बड़ चँवड़ा|

पड़की परेवा फुरफुंदी नँदा, नँदागे तितली भँवरा|

सड़क तीर के बर पीपर कटगे, कटगे अमली आमा|

सियान के किस्सा नइ सुहावै,सब देखे टीवी ड्रामा|

पहट के आहट,अउ संझा के सुकून आज कहर बनगे...|

मँय हॉसव कि रोवौ,मोर गॉव आज  शहर बनगे.........|


संगमरमर के मंदिर ह,देवत हवे नेवता|

कहॉ पाबे गली म, बंदन चुपरे देवता?

तरिया ढोड़गा सुन्ना होगे,घर म होगे पखाना सावर|

बोंदवा होगे बिन रूख राई के,डंगडंग ले गड़गे टावर|

मया के बोली करकस होगे,लइका होगे हुशियार|

अत्तिक पढ़ लिख डारे हे,दाई ददा ल देहे बिसार|

बिहनिया के ताजा हवा घलो,अब जहर बनगे....|

मँय हॉसव कि रोवौ,मोर गॉव आज शहर बनगे...|


मंदिर-मस्जिद गुरूद्वारा संग, सबला बॉट डरिस|

जंगल अउ रीता भुंइया ल,चुकता चॉट डरिस|

छत के घर म, कसके तमासा|

सब कोई छेल्ला ,

नइ करे कोई कखरो आसा|

होरी देवारी तीजा पोरा,घर के डेहरी म सिमटागे|

चाहे कोनो परब तिहार होय,सब एक बरोबर लागे|

नक्सा खसरा संग आदमी बदलगे,नइहे गाना बजाना|

चाकू छुरी बंदूक निकलगे,  सजगे  मयखाना |

चपेटागे बखरी बियारा,पैडगरी अब फोरलेन डहर बनके....|

मै हॉसव कि रोववौ मोर गॉव आज  शहर बनगे.....


    जीतेन्द्र कुमार वर्मा

   खैरझिटी(राजनॉदगॉव)




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# 97

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Date: 2020-09-19

Subject: 


4,छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


जगे हमर मया बस देश बर तिमाही मा।

समाय फेर सदा दिन रथे सिपाही मा।1


सुने घलो नही आ कहिबे तेला कोनो भी।

निंगाय मूड़ मनुष मन इहाँ मनाही मा।2


सबे जिनिस हवे सागर मा मथ मथाही तब।

का पाबे घँस के बता नानकुन सुराही मा।3


सुहाय तोर मया बड़ सताय अउ सुरता।

बसे हे चेहरा मोरे कलम सियाही मा।4


हे कोन हा इहाँ पानी पवन ले ताकतवर।

ना धन ना जन सबे सिराही इहाँ तबाही मा।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा




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# 96

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Date: 2020-09-18

Subject: 


2,छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


बता तिहीं बिना काँटा गुलाब का आही।

गरीब घर खुशी धरके सहाब का आही।1


मँझोत मा हे कुवाँ अउ पिछोत खाई हे।

तिहीं बता तो समय अउ खराब का आही।2


हमर ठिहा मा खुशी आही बस फकत कहिथो।

सवाल हे अभो जसतस जवाब का आही।3


दिखे फसल भरे सावन मा बड़ दुबर पातर।

समय गँवाही ता फिर से शबाब का आही।4


छुपात मुँह ला फिरत रह जतर जतर कतको।

छुपाय चाल चरित ला नकाब का आही।5


मया पिरीत के धारा बहाय महतारी।

पिरीत के बता वोला हिसाब का आही।6


कभू इती ता कभू ओती बस भटकथे मन।

बताय बर बने रद्दा किताब का आही।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 95

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Date: 2020-09-17

Subject: 


3,छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


उघारे नैन जे रेंगें झपाय ना कभ्भू।

कुँवा जे पानी ला देवे पटाय ना कभ्भू।


उदर के आग घलो तो बुझाय खाये मा।

भुखाये जौन हे मनके अघाय ना कभ्भू।


पढ़े गढ़े बिना गुण ज्ञान मान का पाबे।

मिले का घीव दही तो जमाय ना कभ्भू।


मनुष हरे जभे खाही तभे तो गुण गाही।

कुकुर घलो बिना रोटी के आय ना कभ्भू।


परे हे चाल मा कीरा सबे ला देय ओ पीरा।

जी काखरो बने मनखे जलाय ना कभ्भू।


अपन गियान ला देखात अधभरा फिरथे।

भरे के शोर भी चिटिको सुनाय ना कभ्भू।


असाढ़ मा कुँवा तरिया उबुक चुबुक करथे।

समुंद कोनो घड़ी अकबकाय ना कभ्भू।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 94

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Date: 2020-09-17

Subject: 


1,छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ*

मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन (फ़ेलुन)

*1212 1122 1212 22*


नयन ला निंदिया घलो नइ सुताय पहली कस।

थके गतर हा रथे नइ कमाय पहली कस।।1


रबड़ हा तनके घलो रूप मा अपन आथे।

तने मनुष हा कभू नइ हो पाय पहली कस।2


का कोठ के घलो अब कान संग आँखी हे।

जिया के बात रहे  नइ लुकाय पहली कस।3


अघाय जिवरा रहय ते ललात हे अभ्भो।

उदर हा फेर कहाँ हे भुखाय पहली कस।4


नवा जमाना मा कुछु भी नवा कहाँ हे देखा।

हे पेंट जींस मा कपड़ा कपाय पहली कस।5


धँधाय हे ददा दाई उड़ाय बेटा हा।

तिरथ बरत कहाँ बेटा कराय पहली कस।6


सरग सही लगे घर गाँव बन डिही डोंगर।

परेवा पड़की कहाँ अब उड़ाय पहली कस।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 93

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Date: 2020-09-17

Subject: 


हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाँखा म अन्तर्सम्बन्ध


          जइसे पानी ढलान कोती बहिथे, उसने भाषा घलो सरलता ल धरत जाथे। अब हिंदीच ल ले लौ संस्कृत- पाली- प्राकृत- तेखर बादअपभ्रंस होवत हिंदी। जइसे सरल सहज मनखे ल सबो चाहथे, वइसने भाषा के सरलता घलो ओखर अपनाये के कारण बनथे। पूर्वी हिंदी के अंतर्गत हमर छत्तीसगढ़ी भाषा आथे, जेमा अवधी, बघेली अउ हमर छत्तीसगढ़ी भाषा मिंझरे हे। ब्राम्ही लिपि ले उपजे जइसे हिंदी हे वइसने छत्तीसगढ़ी घलो हे। आज जब हमन हिंदी के बात करथन, तब आधुनिक युग के पहली के कवि सुर, तुलसी, कबीर, जायसी, केशव, बिहारी जैसे कवि मनके कालजयी रचना घलो हमर आँखी म झुलथे, जेमन के भाषा अवधी, ब्रज के साथ साथ कई ठन मिंझरा भाषा बोली रहिस। आधुनिक युग म तो ठेठ खड़ी बोली म जबर रचना होइस, जेमा भारतेंदु, पन्त, निराला, प्रसाद,महादेवी वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, जइसे कतको कवि लेखक मन अपन जीवन ल खपा दीन। मोर कहे के मतलब हे कि हिंदी के समानांतर ही ब्रज अउ अवधी अपन स्थान रखथे, त छत्तीसगढ़ी काबर नइ रखे? जबकि हमर भाँखा घलो लगभग हिंदी के सबे गुण ल समेटे हे।  हो सकथे हमर साहित्य कमसल होही, या फेर ब्रज अउ अवधी कस ऊंचाई नइ पाइस होही। फेर हमर साहित्य घलो पोठ हे, कतको उत्कृष्ठ साहित्य हमर पुरखा कवि मन लिखे हे अउ आजो लिखावत हे, अइसन उदिम होवत देख इही कल्पना मन म आथे कि वो दिन दूर नइहे जब छत्तीसगढ़ी घलो ब्रज, अवधी के साहित्य कस हिंदी म मिल जही। 

        अब बात हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के अन्तर्सम्बन्ध के हो जाय। दूनों भाँखा के महतारी एके आय(ब्राम्ही), दूनो के रंग रूप, चेहरा- मुहरा एक्के जइसे हे, दूनो सगे बहिनी बरोबर हे। आजकल के कवि लेखक मन हिंदी वर्णमाला के जम्मो आखर ल बउरत घलो हे, जे बड़ खुसी के बात आय। *आन राज के कई मनखे मन हमर छत्तीसगढ़ी के बारे म कहिथे कि हिंदी ल बिगाड़ दव त छत्तीसगढ़ी हो जही* का सच म अइसने हे???? आपो मन कस मोरो न हे। येखर ले बचे बर छत्तीसगढ़ी के पाँच परगट शब्द ल बउरे ल लगही अउ हिंदी ल तोड़ मरोड़ करे ले बचेल लगही। हमर भाँखा के व्याकरण घलो हिंदी ले पहली बने हे, जेन हम सब बर गर्व के बात ये। एक बात अउ *जइसे मैं उप्पर म परगट शब्द लिखेंव, जे हिंदी के प्रगट के अपभ्रंश ये। परगट कहे म घलो अर्थ म कोनो प्रकार के भटकाव नइ लगत हे, अउ ये छत्तीसगढ़ म पूर्णतः चलन म घलो हे। अइसने कई ठन शब्द हे, जे हिंदी के अपभ्रंश के रूप म हमर भाँखा म रचे बसे हे ,अउ चलत घलो हे। जइसे ह्रदय(हिरदे),उम्र(उमर), दर्द(दरद), बज्र(बजुर), तीर्थ(तीरथ), छतरी(छत्ता)त्यौहार(तिहार) आदि आदि। कई ठन शब्द ल चिटिक बदलाव के साथ घलो बउरथन, जइसे व्याकुल(ब्याकुल), विनास(बिनास), व्रत(बरत), पर्व(परब), व्यवहार(ब्यवहार), वरदान(बरदान), वंदन(बंदन), वजन(बजन), वन(बन) आदि आदि। फेर येला देख के कतको झन कहि देथे की छत्तीसगढी म "व" नइ होय,, तेहा नइ जमे। पहली चलत घलो रिहिस हे, फेर ये बात गलत हे की 'व' ल लिखेच नइहे। होवत , बोवत, खोवत, पोवत काखर शब्द ये,,,, हमरे न,, त कइसे "व" नइ होही। यदि पहली कस(व बर ब लिखबों) आजो करबों त वर(दूल्हा) ल बर कहिबो। तब तो पेड़ वाले बर, काबर वाले बर अउ दूल्हा वाले बर, सब एक्के म जर बर जही। आज के लइका मनके रामेश्वरी, जागेश्वरी, रामेश्वर, ईश्वर, श्रवण, आदि घलो होथे, तिखर मरना हो जही। वइसने अउ कई ठन आखर जइसे ष, श, त्र, क्ष मन संग घलो हे। शुक्ल अउ कृष्ण पक्ष लिखे बर आज कइसे करबों, पहली तो अंधियारी अउ अँजोरी पाख चलत रिहिस, फेर आज यदि येला बउरना हे त तो ये आखर म जरूरी हे, अइसनो आखर के भिं नाम वाले हमर राज म हे, तब वो आखर मन जरूरी हो जथे।मोर एके इशारा हे अर्थ संगत शब्द ल बउरे जाय, अउ निर्थक या जेन वो संज्ञा ल बदल देय ओखर ले परहेज करना चाही। जइसे हिंदी म प्रकृति अब येला परकिरिती, प्रकार ल परकार, प्रकास ल परकास, क्षमा ल छिमा,शक्कर ल सककर, रायगढ़ ल रइगढ़,आदि आदि। ये मन थोड़ीक भ्रम पैदा करथे, तेखर सेती येमा चिंतन जरूरी हे अउ सही अउ स्पस्ट शब्द के माँग आज होवत घलो हे।*

       हिंदी के आखर अउ शब्द छत्तीसगढ़ी म घुरे हे,काहन या फेर  छत्तीसगढ़ी के शब्द मन हिंदी म घुरे हे काहन,,, येला सिद्ध करे म हमला कोनो ल नइ घूरना चाही। काबर भाँखा गतिमान हे, पानी असन स्वरूप बदलत जथे, कखरो पोगरी घलो नोहे। *एक छत्तीसगढिया मनखे घलो हिंदी लगभग समझ जथे, अउ हिंदी वाले छत्तीसगढ़ी, त येखर ले बढ़के अउ का अन्तर्सम्बन्ध देखन* हिंदी वाले घलो सहज छत्तीसगढ़ी पढ़ सकथे,अउ छत्तीसगढ़ी वाले घलो आखर ज्ञान के बाद हिंदी। काबर के पहली घलो केहेंव दुनो के रंग, रूप, चेहरा-मुहरा एके हे दुनो के *क* एक्के हे दुनो के *ट* एक्के हे। हिंदी के पिक्चर ल घलो छत्तीसगढिया मन मन लगाके देखथे अउ समझथे ,अब छत्तीसगढ़ी के पिक्कर आन कोती काबर नइ देखे जाय येखर बर खुद ल सोचेल लगही। *ब्रज भाँखा ले हिंदी के शान बाढ़िस, अवधी भाँखा ले हिन्दीबके शान बाढ़िस त छत्तीसगढ़ी भाँखा ले हिंदी कु शान काबर नइ बाढ़ही*।खच्चित बाढ़ही फेर उसने साहित्य हमर बीच म आय उसने पठन पाठन अउ वाचन होय अतकी विनती हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 92

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Date: 2020-09-17

Subject: 


जय बाबा विश्वकर्मा (सरसी छंद)


देव दनुज मानव सब पूजै,बन्दै तीनों लोक। 

बबा विश्वकर्मा के गुण ला,गावै ताली ठोक।


सतयुग मा जे सरग बनाये,त्रेता लंका सोन।

द्वारिका पुरी हस्तिनापुर के,पार ग पावै कोन।


चक्र बनाये विष्णु देव के,शिव के डमरु त्रिशूल।

यमराजा के काल दंड अउ,करण कान के झूल।


इंद्र देव के बज्र बनाये,पुष्पक दिव्य विमान।

सोना चाँदी मूँगा मोती,देव लोक धन धान।


बादर पानी पवन गढ़े हे,सागर बन पाताल।

रंगे हवे रूख राई फुलवा,डारा पाना छाल।


घाम जाड़ आसाढ़ गढ़े हे,पर्वत नदी पठार।

बीज भात अउ पथरा ढेला,दिये उही आकार।


दिन के गढ़े अँजोरी ला वो,अउ रतिहा अँधियार।

बबा विश्वकर्मा सबे चीज के,पहिली सिरजनकार।


सबले बड़का कारीगर के,हवै जयंती आज।

अंतस मा बइठार लेव जी,होय सुफल सब काज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


भगवान विश्वकर्मा जयंतिबकी आप सबको सादर बधाई




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# 91

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Date: 2020-09-16

Subject: 


2122 1212 22/212


सच कहूँ तो ताजगी है अभी।


जाने किस चीज की कमी है अभी।

पग मुक़ां पहले ही थमी है अभी।।


सूखकर हो गया मैं काँटा सा।

नैन में मेरे तो नमी है अभी।।


चैन की साँस ले रहा है वो।

मस्त मौला जो आदमी है अभी।


मोड़ दी तूने धार तलवार की,

जिस्म में दर्द तो नही है अभी।


उड़ने को पंख ले रहे हो यार।

हो सके तो चलो जमी है अभी।


कैद खाने में कैद हूँ फिरहाल।

पर गुनहगार तो बरी है अभी।


खैरझिटिया निराश क्या होना।

कर गुजरने को जिंदगी है अभी।


खैरझिटिया




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# 90

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Date: 2020-09-15

Subject: 


12,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


जिवरा ला जीत लेथे जी भाषा पिरीत के।

छोड़े  छुड़ाये नइ छुटे लासा पिरीत के।1


मनखे के संग जाय खिंचा जानवर घलो।

कोनो ला फेंक छल झने पासा पिरीत के।2


जग मा इही हे सार बढ़न दौ पिरीत ला।

झन काखरो टुटे कभू आशा पिरीत के।3


रहिथे मतंग रोज मया मा मयारु मन।

नोहे निशानी कखरो हतासा परीत के।4


कतकोन रूप हे मया के जान ले बने।

अंजाने हो बना ना तमासा पिरीत के।5


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 89

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Date: 2020-09-14

Subject: 


11,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


सागर कभू समाय ना गघरा गिलास मा।

पीये मा तक सिराय ना सौं पचास मा।1


मनखे कटत फिरत हवे अपने अपन जरत।

हावय मया जुड़ाव मा नइहे खटास मा।2


तरिया अँटाही कहिके चले मेचका समुंद।

मर जाय बीच राह मा सुख के तलास मा।3


अँधियार होय तब चले घुघवा शिकार मा।

हंसा हा चारा खोजथे दिन के उजास मा।4


कल्लात मनखे मन दिखे कुछु चीज बिगड़े तब।

बिगड़े बुता हा बनथे बता का भड़ास मा।5


बुझथे उदर के आगी ता कुदथे सबे इहाँ।

होवय घलो भजन नही लाँघन पियास मा।6


मन मा मइल रचत हवे झारे बहारे कोन।

मनखे जमे भुलाय हे तन के लिबास मा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 88

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Date: 2020-09-13

Subject: 


10,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


सब तीर मोर चरचा खुले आम हे इहाँ।

कोई बने हवे कोई बदनाम हे इहाँ।1


तैं कर दे  मोर जिवरा ला कतको कुटी कुटी।

टूटे फुटे जिनिस के घलो दाम हे इहाँ।2


बूता करैया हा कोई तैयार होय तो।

हर हाथ बर कई ठने जी काम हे इहाँ।3


कोनो दवा के नाम मा भागत घलो दिखे।

ता कोनो कोनो मन ला तिरत जाम हे इहाँ।4


मनभर तैं गोठ करले कहाँ होय रात हे।

ममता मया के गाँव मा शुभ शाम हे इहाँ।5


इंसान नेक कम मिले जादा छली ठगी।

छइहाँ ले बढ़के तो घलो बड़ घाम हे इहाँ।6


ईमान मनखे के बिके जइसे जमीन रे।

सच मा जिया के भीतरी का धाम हे इहाँ।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 87

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Date: 2020-09-12

Subject: 


ओखर कलम कभू नइ भोथराय

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जेन चिखथे समाज के, मीठ  खारो  करू ल।

जेन लिखथे मनखे के,दुख-पीरा हरू-गरू ल।

जेन लेथे सहर-डहर,घर-दुवार खार के आरो ल।

जेन रेंगाथे अपन संगे संग ,गिरे-थके हजारो ल।

चुचवात आंसू पोछ के ,जेन लोगन ला हँसाय।

सिरतोन म ओखर कलम , कभू नइ भोथराय।


जेन  बांधथे  सत ल,आखर म।

जेन बांधथे असत ल,साँकर म।

जेन भभका बारथे,अंधियार म।

खोंचक-डिपरा पाटथे,पिंयार म।

जेन   अंधरा   ल  घलो , सोज  रद्दा  देखाय।

सिरतोन म ओखर कलम,कभू नइ भोथराय।


जेन तगड़ा  काम के ,तारीफ करथे।

जेन लबरा - ठगरा ल, ठीक  करथे।

जेन गियान-धियान के,बिजहा बोथे।

जेन बन बदऊर  बर, बनिहार  होथे।

जेन कोड़िहा ल रेंगाय,सोवत मनखे ल जगाय।

सिरतोन म ओखर कलम , कभू नइ भोथराय। 


उघरा   ल  जेन ,फरिया देथे।

ऊज्जर बाँट के,करिया लेथे।

दूसर के घलो ,जेन काम आथे।

ओखरे  जमे कोती, नाम आथे।

मनखे म मया मोंके ,जेन मया के गीत सुनाय।

सिरतोन म ओखर कलम,कभू नइ भोथराय।


                        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                             बालको(कोरबा)

                             9981441795




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# 86

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Date: 2020-09-10

Subject: 


मोर हकीकत अउ मोर ख्वाब ये, मोर प्प्रोफाइल।

कतको ठन सवाल के जवाब ये, मोर प्प्रोफाइल।

मोर रंग रूप  भर ल नही, मोला घलो जान जहू,

आके पढ़ लौ खुल्ला किताब ये, मोर प्प्रोफाइल।


खैरझिटिया




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# 85

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Date: 2020-09-10

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


गियान गुण सत घलो धराथे, लगन लगाके धरत धरत मा।

सबे बुता हा सहज हो जाथे, घड़ी घड़ी बस करत करत मा।


धरे तिजोरी मा चार आना, दिखात फिरथे उहू खजाना।

कहाँ छलकथे कभू बता तो, समुंद हा नित भरत भरत मा।


पता चले तुरते मूंद देवव, रहे भले कतको छोटे भुलका।

बड़े बड़े हउला जल उरकथे,टिपिर टिपिर नित झरत झरत मा।


लगाव आगी बुगी कभू झन, ठिहा ठउर बन शहर डहर मा।

बदल जथे राख ढेर मा झट, बड़े बड़े बन बरत बरत मा।


समय खुशी के सदा रहे नइ, रहे नही दुख घलो सबे दिन।

हतास झन हो निराश झन हो, विजय हबरथे हरत हरत मा।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 84

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Date: 2020-09-10

Subject: 


हस्ता हुवा रोता हुवा गाता हुवा आदमी

जाता हुवा आता हुवा खाता हुवा आदमी




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# 83

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Date: 2020-09-09

Subject: 


9,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


खाये पिये हे तौन हा मरहा बने फिरे।

टन्नक घलो तो आज अजरहा बने फिरे।1


जानत हवे कहानी तभो मनखे मन इहाँ।

कछवा के चाल देख के खरहा बने फिरे।2


तंखा मिले के बाद भी कतको सफेदपोश।

दू पइसा अउ मिले कही लरहा बने फिरे।3


चिक्कन चरत हे चारा बचे आन बर कहाँ।

गोल्लर असन दिखे उही हरहा बने फिरे।4


उल्टा जमाना आय हे का मैं कहँव भला।

जौने फले फुले न ते थरहा बने फिरे।5


साहेब बाबू नेता गियानी गुनी धनी।

इँखरो तो लोग लइका लफरहा बने फिरे।6


काखर ठिकाना हे कहाँ कब वो बदल जही।

फुलवा घलो तो आज के धरहा बने फिरे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 82

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Date: 2020-09-09

Subject: 


आभार सवैया


खाये खवाये ल जाने नही तेन दानी सही मान पाये इहाँ आज।

खेती कमैया के उन्ना हे कोठी व्यपारी गहूँ धान पाये इहाँ आज।

जाने नही जे पढ़ाई लिखाई ते पैसा लुटा ज्ञान पाये इहाँ आज।

ढेला घलो ना भुखाये सँकेले अघाये तिही खान पाये इहाँ आज।


खैरझिटिया


गंगोदक


आदमी के ठिहा ठौर हावै निराला निराला कहाँ फेर हे आदमी।

मार मा पीट मा शेर जैसे बने ता बुता काम मा ढेर हे आदमी।

थोरको ना सुने थोरको ना गुणे  द्वेष  मा चूर अंधेर हे 

आदमी।

मीठ आमा के गूदा बने का कभू फेर गोही सहीं चेर हे आदमी।


दुर्मिल

सुरता भर मा कुछु होय नही, पुरखा मनके गुण ज्ञान धरौ।

तड़पे बिन खाय पिये उनला, नित चाँउर दार ग दान करौ।

मनखे मनखे सब एक रहौ, पुरखा ल रिझा सत डोर बरौ।

झन देवव कष्ट कहूँ ल कभू, दुखिया मनके दुख पीर हरौ।




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# 81

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Date: 2020-09-09

Subject: 


8,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


पाना के नइ पता हवे बस डार सजे हे।

कुरिया मा साख नइ हवे अउ द्वार हे सजे।1


फँसगे हवे बड़े बड़े ज्ञानी गुनी धनी।

नकली मया मा माया के बाजार हे सजे।2


खाके अघाही कइसे भुखाये हवे जउन।

खाये पिये के कुछ नही उपहार हे सजे।3


कोठी उना किसान के सबदिन रथे इहाँ।

बैपारी के ठिहा मा चँउर दार हे सजे।4


थपड़ी अमीर मन पिटे करतब ला देख के।

जोक्कड़ परी असन इहाँ लाचार हे सजे।5


ऑफिस के बूता काम मा बँटगे दिवस घलो।

बुध गुरु हवे उदास ता इतवार हे सजे।6


बेंचाय भेदभाव के बिजहा सबे तिरन।

दलबल धरम के नाम मा बैपार सजे हे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 80

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Date: 2020-09-08

Subject: 


7,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


सागर मरत हे आज गजब प्यास देख ले।

थक गे उड़त उड़त इहाँ आगास देख ले।1


खाये नँगा नँगा के अघाये हवे जउन।

लाँघन के भाग मा हवे उपवास देख ले।2


पानी पी पीके कोसे सबेदिन चलत फिरत।

हे मोर आज तो उही मन खास देख ले।3


बक खा धरे हे मूड़ ला जउने पढ़े लिखे।

पैसा मा पप्पू होगे हवे पास देख ले।4


भाजी भँटा के आज पुछारी हवे कहाँ।

खावत हवे हँसत सबे झन मास देख ले।5


माला मरे मा डारे मया बड़ घलो करे।

जीयत मा मनखे मन हवे बस्सात देख ले।6


मारे गजब फुटानी धरे चवन्नी चार।

खेलत हवे उही जुआ अउ तास देख ले।7


लइका के लगगे रे हवे लंका डहर लगन।

नइहे ठिहा परोस मा उल्लास देख ले।8


हे बोल बाला झूठ के चारो मुड़ा गजब।

सत ला घलो तो नइ मिले इंसाफ देख ले।9


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 79

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Date: 2020-09-07

Subject: 


6,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


माँ बाप जइसे देंवता पाबे भला कहाँ।

देबे दरद ता दिल मा समाबे भला कहाँ।1


सरकार सँग लगात हे दिनरात पेड़ सब।

सब्बे जघा भरे हे लगाबे भला कहाँ।2


झन छीत दाना फोकटे कोनो फँसे नही।

चतुरा हे चिड़िया जाल बिछाबे भला कहाँ।3


बसगे हवस शहर मा ठिहा खेत बेंच के।

आही विपत कहूँ ता लुकाबे भला कहाँ।4


रँगरँग के खाले रे बने जब तक पचत हवय।

बुढ़वा मा तीन तेल के खाबे भला कहाँ।5


कतको उपर उड़ा उगा डेना घमंड के।

माटी ले तोड़ के नता जाबे भला कहाँ।6


ना तोप बरछी भाला हे हिम्मत घलो नही।

शत्रु ला ता समर मा हराबे भला कहाँ।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 78

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Date: 2020-09-06

Subject: 


बिन जमने गाय दूध दिही का बता भला।




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# 77

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Date: 2020-09-06

Subject: 


5, छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


अपने अपन जरे मरे का काम के उहू।

खुद के बिगाड़ा खुद करे का काम के उहू।1


छाती ठठाये बीर हरौं कहिके जौन हा।

रण मा लड़ाई ले डरे का काम के उहू।2


बेटा उही जे माने ददा दाई के बचन।

जे मूँग छाती मा दरे का काम के उहू।3


चिरहा बदन के ओनहा उन्ना घलो उदर।

कोठी मा धन भरे सरे का काम के उहू।4


तड़पे परोसी भूख मा लइका सियान संग।

झड़कत हवस घरे घरे का काम के उहू।5


रटते रटत बबा कका परदेसी मन इहाँ।

पग छोड़ घेंच ला धरे का काम के उहू।6


नारा सुनाथे सब तनी बस पेड़ पेड़ के।

छेरी सहीं मनुष चरे का काम के उहू।7


जे प्यास नइ बुझा सके कोनो पियासे के।

हावै समुंद कस भरे का काम के उहू।8


भागे भभूत मा धरे डर भूत आन के।

जब खुद के नइ विपत टरे का काम के उहू।9


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 76

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Date: 2020-09-05

Subject: 


4,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


अलहन भरे पड़े हे तैं कर झन लकर धकर।

आये हवस ता जाबे तैं मर झन लकर धकर।1


हर घांव डुबकी मा मिले मोती घलो नही।

महुरा जहर घलो हे तैं धर झन लकर धकर।2


कइसे पता लगाबे कते साधु अउ छली।

अंजान के ठिहा मा ठहर झन लकर धकर।3


खाये के स्वाद लेले बइठ गोड़ ला लमा।

हावै बरी मा मुनगा चुचर झन लकर धकर।4


नइ हस बने पके ता का होही बता कदर।

ज्ञानी बने बिना तैं बगर झन लकर धकर।5


दाई ददा ला तिरिया अपन मा भुलाय रे।

सपना ला तोड़ मोड़ नजर झन लकर धकर।6


जिनगी के जंग जीतबे जोखा जमा बने।

तैयारी बिन समर मा उतर झन लकर धकर।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 75

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Date: 2020-09-05

Subject: 


(5) चौपई (जयकारी) छन्द 


धान कटोरा के दुबराज, कइसे दुबके तैंहर आज।

सुसकत हावय सरी समाज, रोवय तोर साज अउ बाज।।


चंदैनी गोदा मुरझाय, संगी साथी मुड़ी ठठाय।

तोर बिना दुच्छा संगीत, लेवस तैं सबके मन जीत।।


हारमोनियम धरके हाथ, तबला ढोलक बेंजो साथ।

बाँटस मया दया सत मीत, गावस बने मजा के गीत।


तोर दिये जम्मो संगीत, हमर राज के बनके रीत।

सुने बिना नइ जिया अघाय, हाय साव तैं कहाँ लुकाय।


झुलथस नजर नजर मा मोर, काल बिगाड़े का जी तोर।

तोर कभू नइ नाम मिटाय, सातो जुग मा रही लिखाय।


तोर पार ला पावै कोन, तैंहर पारस अउ तैं सोन।

मस्तुरिहा सँग जोड़ी तोर, देय धरा मा अमरित घोर।


तोर उपर हम सबला नाज, शासन ले हे बड़े समाज।

माटी गोंटी मुरुख सकेल, खेलत हवै दिखावा खेल।


*छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"*

बाल्को, जिला - कोरबा




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# 74

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Date: 2020-09-04

Subject: 


3,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


पत्ता असन हवा मा हाँ हलते रथे जिया।

बुझथे कभू कभू ता हॉं जलते रथे जिया।1


इरसा दुवेस देख के पलपल डरे मरे।

पाके मया दुलार ला पलते रथे जिया।2


सुख मा रहे हँसी खुशी सपना गजब गढ़े।

दुख मा बरफ के जइसे हाँ गलते रथे जिया।3


माया ला छोड़थे कहाँ मुख मोड़थे कहाँ।

फँस मोह के डहर मा बिछलते रथे जिया।4


कतको उदास हो सबे दिन रोते बस रथे।

कतको के हाँस हाँस कठलते रथे जिया।5


चुपचाप नइ रहय कभू पर ता अपन कहय।

सुख होय चाहे दुःख  मचलते रथे जिया।6


पथरा बने कभू ता कभू मोम तक बने।

बेरा बखत मा रूप बदलते रथे जिया।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 73

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Date: 2020-09-04

Subject: 


2,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


फैसन विदेशी देख हमागे इती उती।

छोटे बड़े के ओन्हा तुनागे इती उती।1


मिलजुल चले कतार मा चांटी घलो इहाँ।

मनखे हा जानबूझ भगागे इती उती।2


घुरवा के दिन बहुरथे रटे लालची मनुष।

परिया समेत खेत खवागे इती उती।3


पाले कुकूर संग मा ओहर रहे बने।

बइला हे मोर हरहा जे भागे इती उती।4


मनखे ला का कहँव मैं विधाता घलो चिन्हे।

सुख्खा हे मोर खेत भरागे इती उती।5


बढ़िया जिनिस हा हाथ मा टिकथे कहाँ कभू।

परसाद कस खुशी हा बँटागे इती उती।6


दबगे बुता करैया दरद दुख के पाँव मा।

ठलहा के नाम गाँव हा छागे इती उती।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 72

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Date: 2020-09-03

Subject: 


मनरेगा


           का कोनो किसान कर, धान बोय के बाद अउ कुछु बूता नइ रही त, वो बूता देखाय बर, फेर धान ल उसेल के वोमा धान बोही। मोर खियाल से तो नही। फेर ये मनरेगा म का होवत हे। एक साल खनत हे, त दुसर बछर उही ल पाटत हे। अउ करे त का करे? अब तो गाँव म डीही डोंगरी, अरिया परिया कुछु नइ बाँचे हे। एक ठन गउठान अउ एकलौता चरागन हे, जेमा चारा तो नही फेर गाय गरुवा के हाड़ा जरूर दिख जथे। सड़के सड़क बरदी रेंगथे अउ चरागन म थोर टेम रुक के फेर घर आ जथे। अरिया परिया म डबरी तरिया मनरेगा के चलते अतेक बन गे की अब रीता भुइयाँ के नामो निशान घलो नइहे। येखर बर पोगरी मनरेगा च घलो जिम्मेदार नइहे, बेजा कब्जा नाम के धंधा घलो भारी फले फुले हे। फेर हर बछर कस एहु बछर मनरेगा चलत हे। छोट बड़े सब बरोबर काम करत सरकार के योजना अनुसार पैसा कमावत हे। काम अब उही ल पाटे के चलत हे, जेन ल पउर खने गे रिहिस। अउ एखर अलावा मनरेगा के काम देखाय के कोनो गुंजाइस घलो नइहे। पाछू बछर के घटे घटना पंच, पटेल के आँखि ल उघार दे रिहिस, हर बछर चलत मनरेगा म एक ठन डबरी कुँवा कस गढ्ढा होगे रिहिस, ताहन का,,,, गाय गरुवा संग मनखे मन घलो कई बेर उहां फँस फँस के मरे मरे हे। उप्पर वाले साहब मन ल घलो येखर बर फटकार लग चुके हे। तेखरे पाई के अइसन नवा उदिम खने अउ पाटे के बरोबर चलत हे। अउ सबके बरोबर चूल्हा घलो जलत हे।

             मेट मुंसी मनके मन के अनुसार मुड़ नवाके काम करबे त मनरेगा म पछीना ओगरे के घलो जरूरत नइ पड़े। अउ कहूँ मरखंढा बइला कस मुड़ी उँचाबे त मरे बिहान हे। कमा कमा के जाँगर घलो थक जही। फेर दुसर प्रकार के कमैया लगभग नही के बरोबर मिलथे। जउन रिहिस तउन मन घलो सब चेत गे हे। बढ़िया सरकारी के स्किम के फायदा सब उठात हे। एक दू घण्टा देय बर लगथे जादा घलो नही अउ कभू उप्पर वाले साहेब मनके दौरा रहिथे, वो दिन काम ठिहा म ज्यादातर पुरुष मनके तास पता माते रहिथे, अउ महिला मन जुवा हेरत साहब बाबू मनके अगोरा करथे। 

          आज गाँव के चलत मनरेगा ल देखे बर साहब अवइया हे, सब काम बुता निपटा के अपन अपन ले कुछु खेल कहानी म रमे ओखर रद्दा जोहत हे। उहू साहब एखर सेती वो मेर आवत हे, काबर की वो जघा म गाड़ी आराम से पहुँच जाथे, नही ते गाँव के ओनहा कोन्हा म कोन साहेब अउ कोन बाबू पहुँचे। सब रिकार्ड ल देख के पइसा पास कर देवय। कुछ देर बाद गाड़ी के साइरन बजथे, सब कमैया कुदारी रापा धरके, अपन अपन ठिहा ल छोले छाले बर लग जथे। साहव गाड़ी ले उतरिस, ताहन कोनो सभा कस मेट मुंसी मन उँहचो फूल माला अउ गुलदस्ता भेंट करदिस, जम्मो कमैया जयकार करिस। अन्न दाता की जय,,,,,,, ताहन का कहना साहब के छाती फूल गे, जमे कमैया मनके हाथ हला के अभिवादन करिस। अउ मस्ट्रोल म साइन मारके अपन रद्दा नाप लिस। जमे कमैया मन घर जाये बर धरथे, ओतकी बेरा पटइल कहिथे, आज संझा पइसा मिलही, सब टाइम म पहुँच जहू। सबके खुसी के ठिकाना नइहे। सब घर जाके नहा खोर, संझा पइसा बर लाइन लगागे, खड़ा होगे, हर बार कस एकेक आदमी ले 10,10 रुपिया साहब बाबू के खर्चा पानी कहिके, काट के सब ल पइसा मिलगे। अब आप मन सोचत होहू की कोनो काटे पइसा बर आवाज काबर नइ उठाइस होही। मनरेगा बनिच साल ले चलत हे, आवाज उठायेस ताहन , एकात हप्ता बंद घलो हो जाथे, त काबर मुँह खोलना। शहर नगर म नोकरी चाकरी वाले मनखे मन घरे के काम करे बर शरमाथे, फेर गांव म छोट बड़े किसान सब मनरेगा म मिलजुल कमाथे। अइसने निर्विवाद सरकार के योजना चलही, त सरकार काबर कोनो दखलन्दाजी दिही। जनता खुश सब खुश। भले काम बुता अउ विकास चूल्हा म जाये।  सरकार के अइसन योजना चलते रहय अउ सबके पेट पलते रहय। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"




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# 71

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Date: 2020-09-03

Subject: 


1,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

अरकान-221 2121  1221 212


माछी सही मरी हे त हाथी गिधान हे।

खेती करे दलाल अधर मा किसान हे।1


काखर कलाई मा बता लगही ग हथकड़ी।

रखवार चोर मिलगे दुनो अब मितान हे।2


जीते जियत अँड़े लड़े सबदिन रटत रतन।

जाना हवै इहाँ ले त का के गुमान हे।3


मिलजुल बिताय जिंदगी सब जानवर घलो।

अपने अपन मनुष लड़े तब का सुजान हे।4


मरहम मया पिरीत के मनखे धरे रहव।

बोली हरे खड़ग त समझ हा मियान हे।5


चुरवा अकन भले रहा प्यासा के काम आ।

खारा हवै समुंद त बिरथा भरान हे।6


दुरिहाव झन निसेनी उपर मा चढ़े के बाद।

जेखर करा सियान हे ते कर बिहान हे।7


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 70

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Date: 2020-09-01

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे कामिल मुसम्मन सालिम

मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212


उना कोठी हा रही धान बेंचा जही उहू ता का काम के।

रही बस समान दुकान बेंचा जही उहू ता का काम के।


का समोसा चाँट मा भभके पेट अगिन बुझाही कमैया के।

कहूँ बासी चटनी अथान बेंचा जही उहू ता का काम के।


जिये जानवर घलो खा पी फेर हे बड़ दिमाक मनुष करा।

कहूँ मनखे के मया मान बेंचा जही उहू ता का काम के।


दिही काम बेरा बखत मा कहिके धरे रतन खपा के गतर।

धरे रहिबे पाँख उड़ान बेंचा जही उहू ता का काम के।


कथे साधना मा सँवरथे मनखे के ज्ञान गुण कला मान हा।

गुनी ज्ञानी मनके जुबान बेंचा जही उहू ता का काम के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




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# 69

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Date: 2020-08-31

Subject: 


फोटोग्राफी-खैरझिटिया


               रझरझ रझरझ पानी बरसत हे, मनखे मन संग जीव जंतु जमे मतंग हे। जीव जिनावर तो बिन अक्कल के बस खात पियत पड़े रहिथे बिचारा मन , फेर मनखे मन कर तो अक्कल के भरमार रहिथे। तभे तो पर्यावरण संरक्षण बर रात दिन एक करके  नारा लगाथे, अउ कूद कूद के पेड़ पौधा घलो पेड़ लगाथे। भले एक ठन पेड़ ल लगाय बर 15 झन झूमे रहय, फेर सुध तो सुध होथे, प्रकृति के जतन म तो लगे हे। वो बात अलग हे कि लगाये के बाद भले सब भुला जथे, पेड़ मरे चाहे जिये। अपन काम तो कर देथे बपुरा मन। 

              बड़खा मंच सजे हे, पोगा रेडिया पोरोर पोरोर बजत हे। जमे कार्यकर्ता सूट बूट पहिरे मगन हे। लइका लोग सियान सबे जुरियाय हे। गीत कविता के तैयारी घलो हे। रेडियो म बजत  *मोर खेती खार रुनझुन मन भँवरा नाचे झुमझुम*  गीत मन ल भावत हे।। पेड़ लगाओ के नारा गजब गूँजत हे, तरिया कस खनाय सड़क म मुरुम बिछ्त हे, काबर की मंत्री जी वृक्षारोपण करे बर अवइया हे। नही नही म मंच के अलग बगल मनखे मिलाके 100 आदमी तो रहिबे करे रिहिस ,अउ मंत्री जी संग जेला चंगुरवा आही ते अलग।  यहू संख्या कोरोना काल म रिहिस, जब जादा भीड़ भाड़ नइ करना हे। फेर पेड़ , जेखर रोपण करना रिहिस वो हर गिन के 10 ठन। खैर दसो पेड़ घलो बहुत होथे, बढ़ जाए त। गर्मी म जरत मनखे संग जीव जंतु बर एक पेड़ के छाँव घलो काफी होथे। लइका सियान जमे के हाथ म झंडा अउ गला म मंत्री जी के अगुवाई म मिले फेंटा गजब चमकत हे, भले ओ बपुरा मनके ओनहा कुर्था के गत नइहे। कार्यकर्ता मन कोन जन का काम म लगे हे ते, येती वोती मार भागत हे, जबकि जम्मो रेजा कुली मन बरोबर काम ल सिधोत हे तभो। एक झन गाड़ी म चढ़के आइस अउ खबर देथे के मंत्री जी 10 मिनट म पहुँच जही। ताहन का कहना बताये अनुसार जम्मो मनखे लाइन म खड़ा होके झंडा हलाये अउ  जयकार  करे म लग गे। मंत्री जी के गाड़ी बोमियावत पहुँच गे। फूल माला म मन्त्री जी के घेंच तोपागे। स्वागत सत्कार के बाद भाषण बाजी चालू होगे। उही रटटम रट्टा डयलाक गूँजत रहय जेन आम तौर म बड़े बड़े मंच ले मंत्री ,नेता मनके मुख ले निकलथे। हव बने सुरता करेव, गरीबी भागना हे, रोजगार देना हे, विकास लाना हे ,,,,,,,,आदि आदि। बिसलरी के बोतल के संग, काजू किसमिस के प्लेट घलो नेता मनके  आघू म माढ़गे। फेर बपुरा दर्शक जेन मन अघुवाई करे बर कोन जन कतका बेर ले ओड़ा ल देहे, उन ल पानी पुछइया घलो कोनो नइहे। बिचारा मन जब ले आये हे, तब ले खुद तो हारे हे अउ नेता के जय जयकार करत हे। मंत्री जी की मीठ बचन ल सुनके सब खुश हे, उही म उँखर पेट भरत हे।  उँखर पाछु तुतारी घलो चलत हे कोरोना हे मास्क लगावव। बिचारा मनके मुख बेंदरा कस करिया,पिवरा,लाल दिखत हे। फेर मंच म बैठे कार्यकर्ता मन घलो तोप लिही, त उन मन कोन पहचानही, नेता मन के मास्क घलो घेंच म झूलत हे।

             भाषण बाजी के बाद मंत्री मन अपन चेला चन्गुरवा के साथ खाल्हे उतरिस अउ पेड़ लगाय बर खने गढ्ढा मेर पहुँचिस। एक ठन पेड़ मंत्री ल दिस, बाकी 9 ठन ल आने में धरिस, फेर लगाये म धियान कहाँ हे कखरो? सब तो मंत्री संग फोटो आही कहिके ओखरे पेड़ ल आरती के थारी बरोबर धर लिस। आने में सब अपन अपन पेड़ ल अइसने खोंच दिस, अउ मंत्री जी के बाजू म खड़ा होगे। मार पेड़ लगाओ, अउ मंत्री जी के जयकार गूँजत हे। कोरोना काल म घलो पेलिक पेला होवत हे। फेर ये का मंत्री पेड़ ल धरे हे, चेला मन खड़े हे, पर फोटोग्राफर के अता पता नइहे। कार्यकर्ता मन दाँत ल कटरत हे, अभी तो रिहिस कहाँ गे रे। बिना फ़ोटो खिंचाय मंत्री जी घलो कइसे पेड़ लगा दिही। सब सन्न हे ,खोजो खोजो मात गेहे। मंत्री जी गुसियागे ये का तमाशा ये, फोटोग्राफर बिन पौधारोपण कइसे होही। दू तीन झन अधिकारी उप्पर गाज घलो गिरगे। तमक के मंत्री जी सस्पेंड कर देहूं कहि दिस, फेर उहू मन का करे, वो मन तो बकायदा फ़ोटो ग्राफर लगाय रिहिस, अब वो धोखा दे दिही तेला, वो मन का करही? फेर रिस तो रिस ए,का करे? कोनो मन काहत हे, कि फोटोग्राफर गाड़ी धर लकर धकर कोनो  विपत आय कस भागिस हे। कार्यकर्ता मन संग मंत्री जी घलो नाराज हे, कहूँ फोटोग्राफर घलो सरकारी होतिस, त तो ओखर खैर नइ रितिस। फेर का विपत आगे ,जउन अत्तिक बड़ कार्यक्रम ल छोड़ भाग गिस भगवान जाने? एती हल्ला होवत हे, कोनो दुसरा फोटोग्राफर बलाव, त कोनो काहत हे महँगा मोबाइल म फ़ोटो खींच लव, त कोनो काहत हे, थोड़ीक देर अउ खोज ली,अभी रूक जाव, पेड़ ल झन खोंचव। नही ते काली के पेपर अउ देश दुनिया म मंत्री जी के पेड़ लगावत फोटू कइसे बगरही? माने पेड़ लगई ले जादा फोटो के महत्व हे। कोन जन हमर पुरखा मन घलो फोटोग्राफर खोजथिस, त बड़े बड़े बर पीपर रहितिस कि नही?  अउ आज फ़ोटो जरूरी घलो हे काबर कि कोन का करत हे, तेखर पुख्ता सबूत घलो इही ताय। फ़ोटो बीमा आज कहाँ कोनो काम होथे। सोसल मीडिया के जमाना हे, उठत बइठत फ़ोटो मनखे मन बगरावत हे, मुँह ल अँइठ  अँइठ के। बिन फ़ोटो के उछाह के काम ल तो छोड़ दी, मरनी हरनी या कहे जाय त दुख के काम घलो नइ होय। फलाना ल श्रद्धाञ्जलि देवत फलाना, अइसनहो फ़ोटो दिखथे। घूमई फिरई , काम बुता सबके फ़ोटो चलत हे। नांगर जोतत फलाना, अब ले करम फूट गे न। फेर कइसनो होय केमरामेन के जाय ले सब अधर म लटकगे। तभो अपन अपन हिसाब ले उँधला  धुँधला खींचत हे,कि मंत्री जी थोड़े घेरी बेरी आही। खैर कार्यकर्ता मन संग मंत्री जी के मूड घलो खराब हे, बिन फोटो ग्राफर के। तभो मोबाइल म फ़ोटो खींच खिंचाके  एक ठन पेड़ ल जम्मो झन ख़ोचीस, अउ नास्ता पानी बर बैठ गे। बाकी 9 ठन पेड़ बने से गड़े घलो नइहे। बता जब आजे ये स्तिथि हे त, आघू के देख रेख भला कोन करही। चल कइसनो होय, छेरी पठरू के भोजन के तो जुगाड होगे। वोमन चरही, अउ उल्होही त अउ चरही, अउ उल्होही त अउ--------। फेर जेन दिमाक वाले प्राणी हे तेमन कहूँ टोर फेक दिही, त थोरे उल्होही। खैर आज वृक्षारोपण तो होगे, बाकी समय का होही, तेला का करना हे। बस एके चीज के कमी खलिस, वो हरे कैमरामैन। कैमरामैन रिहितिस, त हाँस हॉस के पेड़ लगावत सबके फ़ोटो रिहितिस। मंत्री जी दल बल समेत भाग गे, ओखर जाते ही कार्यकर्ता मन। बेचारा अगुवाई करइया दर्शक मन देखते रही गे। फोटोग्राफर के बारे म, कार्यकर्ता मन पता करिस त मालूम चलिस की फ़ोटो ग्राफर के परिवार वाले मनके कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आये हे, अउ गाड़ी म डॉक्टर मन उनला धरके लेजत हे। उहू बपुरा के का गलती हे।येती सभा म जुरे मन म घलो दहसत हे, कैमरामैन पॉजिटिव होही त?


 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 68

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Date: 2020-08-28

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे कामिल मुसम्मन सालिम

मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212


मिले हाँ मा हाँ बने काम बर, कभू मोर मुख नही बोले झन।

झरे मंदरस के असन बचन हा, जहर भुला घलो घोले झन।


रमे काम मा सदा मन रहे, बिना काम के मिले मान ना।

रहे मोर नित बने लत नियत,जिया लोभ मा कभू डोले झन।


सदा राख भाई ल भाई कस, दिखा आँख ल दाँत झन कटर।

बने वो भरत बने वो लखन, ढहा लंका भेद ल खोले झन।


धरे हौं विपत धरे हौं दरद, तभो ले सड़क ठिहा घर गढ़ौ।

महूँ आँव मनखे के रूप काठ, समझ कोई छोले झन।


दिये हे जनम खपा तन बदन, सदा रात दिन करे हे जतन।

मया हे कतिक ददा दाई के, उठा ऊँगली कोई तोले झन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 67

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Date: 2020-08-27

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे कामिल मुसम्मन सालिम

मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212


लगे जोर थोर ढलान बर, बना ले निसेनी मचान बर।

धरे हस खड़ग गा मियान बर, गुरू नइहे फेर गियान बर।


बिना नाम के करे काम कोन, दिखावा बड़ हे चलत इहाँ।

बने पथरा कोन हा नेंव के, मरे मनखे मन सबे मान बर।


सबे फ्रीज के जमे खात हन, त का ताजा के हवे चोचला।

तभो डर समाये हे कार जी, बता बासी चटनी अथान बर।


मुँदे आँख ला धरे हस डहर, उठे हे जिया मा गरब लहर।

मया तोर उरके सियान बर, का करत हवस रे बिहान बर।


गढ़े सपना दूल्हा नवा नवा, चले बेटी बाबू मुड़ी नवा।

उठे माँग हे घड़ी घोड़ा के, ददा धन सकेले टिकान बर।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा (छग)




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# 66

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Date: 2020-08-26

Subject: 


पितर पाख-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


भगवान गणेश भादो शुक्ल पक्ष के चतुर्थी ले चतुर्दशी तक ग्यारह दिन ले विराजमान रहिथे, लइका लोग संग सियान मन घलो खूब सेवा जतन करथे। गली गली खोर खोर सइमा सइमो करथे। भगवान गणेश के विसर्जन के बाद,कुँवार लगते ही पितर पाख हबर जथे।घरों घर बनत बरा सोंहरी अउ हूम धूप के खुशबू ले चारो मुड़ा महर महर ममहाय बर लग जथे। पितर पाख म मनखे मन अपन गुजरे पुरखा मनके मान गउन म दान दक्षिणा  अउ भजन कीर्तन करथे।संगे संग दीन हीन, ब्राम्हण अउ पास परोसी, ल भोजन घलो कराथे। पाख भर घरों घर म बरा सोंहारी चुरथे। कोनो अपन पुरखा ल एकक्म, त कोनो दूज तीज, त कोनो साते आठे के मानथे। पितर पाख के पन्द्रह दिन भर कखरो न कखरो घर माई पितर रहिबेच करथे। पितर पाख म गुजरे पुरखा आथे कहिके ये बेरा सिर्फ इंखरे पूजा पाठ होथे, भगवान मनके पूजा पाठ घलो बन्द रहिथे। हमर छत्तीसगढ़ म पितर लगभग सबे कोई मनाथे। चाहे वो अपन ददा दाई या पुरखा के सेवा जतन करे रहय या झन करे रहय, फेर पितर पाख म पुरखा मनके सुरता जरूर करथे। वास्तव म तो मनखे मन ल जीते जियत अपन ददा दाई के बढ़िया सेवा जतन करना चाही। कई झन करथे घलो, फेर कतको मन नइ घलो करे। कथे जेन मन अपन ददा दाई के सेवा जतन बढ़िया करे रहिथे, उन मन ल उँखर पितर मन आके बढ़िया आशीष देथे। अउ जेन मन नइ मानिस वो मन कतको पितर मान ले नइ पुन लगे। पितर पाख म पुरखा मनके सुरता के संगे संग उँखर गुण ज्ञान ल  अपनाय के घलो उदिम करे जाथे, उँखर अधूरा सपना ल पूरा करे के प्रयास घलो लइका मन करथे। पितर पाख म दान दक्षिणा के जबर महत्ता हे, कथे ये समय अपन पुरखा जे सुरता म दिए दान दक्षिणा अबड़ फलते फुलथे, अउ घर म गुण गियान अउ धन  रतन के बढ़वार होथे। पितर पाख म मनखे मन संग कौवा मन ल घलो रंग रंग के खाये बर मिलथे। कतको सियान मन तो कथे के पुरखा मन कौआ बनके छानी म आके काँव काँव करथे, तेखरे सेती तो छानी म खीर पूड़ी अउ उरिद दार ल घलो फेके जाथे। आजकल के मनखे मन  मन पितर वितर मनई ल कोसथे घलो, कि ददा दाई के सेवा जियत म होय,मरे म भूत प्रेत बर का मया? बात तो सही हे, तभो ले लगभग सबे मनात हे, महापुरुष मन ल तो घलो सुरता करके उँखर ज्ञान गुण ले सीख लेथन, का पितर मनई वइसने नइ हो सके, हो सकथे, फेर सोच सोच के फरक आय, जेन चकागन चलत हे, वो कोनो गलत नोहे, पर देख देखावा जादा बने घलो नही। पितर मनाये ले पुरखा मन के प्रति मया बने रइथे। मन म भाव भक्ति , अउ दान दक्षिणा के भाव घलो उमड़थे।पितर के बहाना पास पड़ोसी अउ गाँव भर मिलके खाना पीना घलो करथे, जेखर ले दया मया घलो बढ़थे। त पितर मनाय म कोनो हर्ज नइहे।तिहार बार मेल मिलाप अउ मया दया के परिचायक होथे, तेखर सेती सब मनखे एक साथ मिलके मनाथे घलो। वइसने पितर पाख घलो ये, जेन आदर सत्कार, अउ पाप पुण्य के सीख घलो देथे। अपन पुरखा ल दुख देके पितर मनाये म कुछु नइ मिले, पितर मनके आशीष पाय बर जीते जियत घलो उँखर सेवा होना जरूरी हे। खैर पितर पाख चलत हे घरों घर बरा , खीर,भजिया घलो चुरत हे। मनखे मन अपन पुरखा बर दतोन मुखारी लोटा म पानी अउ खीर पूड़ी घलो रखे हे। पितर मन आय हे की नही उही मन जाने , फेर मनखे मन बरोबर खीर पूड़ी झोरत हे, कौवा कुकुर घलो काँव काँव हांव हांव करत घूम घूम के खावत हे।  कौआ ले,एक ठन कहूँ मेर पढ़े बात सुरता आवत हे, कइथे कि कौआ मन भादो म प्रजनन करथे। ओमन ल वो समय जादा अउ पोष्टिक भोजन के जरूरत पड़थे। अउ पितर पाख भर छानी परवा म उरिद के दार के संगे संग खीर पूड़ी ओमन ल सहज म मिल जथे।  अउ दिखथे घलो, ये समय माई अउ पिला कौवा मन छानी म बड़ काँव काँव करत। उँखर पिला मनके बढ़वार ये बेरा पितर पाख के रोटी पीठा ले हो जथे। कौआ मनके के संख्या बढ़े ले, बर पीपर के बढ़वार ल घलो जोड़े जाथे। कहिथे कि बर अउ पीपर अइसन शापित पेड़ हरे जेन सिरिफ कौआ मनके मल म रहे बीज द्वारा जगथे। तभे तो उटपुटाँग जघा म नान्हे नान्हे बर पीपर जगे दिख जथे। जेला हमन जतन करके बढ़िया जघा लगाथन घलो, अउ सबला अइसन जघा म जगे बर पीपर ल बने जघा म उगाना चाही अउ ओखर जतन करना चाही। बर पीपर के पेड़ हमर बर कतका उपयोगी हे येला सबे जानथन। यदि अइसन बात हे, त कौआ मनके संरक्षक अउ बढ़वार जरूरी हे, काबर सिरिफ  पितर पाख के रोटी पीठा के भरोसा रहय। फेर पहली के सियान मन ये पाख म  अपन पुरखा मनके सुरता म,कौआ मन ल खीर पूड़ी खावत आवत हे, कोन जन अभिन के मन कतका दिन खवाही? यदि बर अउ पीपर के पौधा सच म उँखर मल द्वारा उत्सर्जित बीज म ही पनपथे, तब तो कौआ ल पुरखा माने म कोनो बुराई घलो नइहे। आज पुरखा मनके लगाये बर पीपर सहज दिखथे, नवा पीढ़ी ल घलो सिर्फ बर पीपर ही नही सबे पेड़ के बढ़वार अउ संरक्षण बर उदिम करना चाही। पितर ले मया बाढ़थे, पितर ले पुरखा मन के मान गउन होथे, पितर ले भुखाय ल घलो भोजन मिलथे, पितर म कौआ कुकुर अघाथे, त पितर मनाये म का बुराई हे। हॉं फेर उही बात कहूँ जीते जियत पुरखा मनके सेवा सत्कार जरूरी हे। तभे उँखर मरे के बाद हमर पितर मनई ह सफल होही। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 65

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Date: 2020-08-26

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे कामिल मुसम्मन सालिम

मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212


बने काम कर जिया जीत गा, नचा मोला तैं सुना गीत गा।

बड़े धन खजाना कहाँ हवै, बड़े जग मा हे मया मीत गा।


करे ना गरब बड़े जे रथे, बने बात ला घलो नित कथे।

जे नँगाये कोनो के चैन सुख, उहू फोकटे हरे रीत गा।


रहे एक जइसे समय कहाँ, कभू आय दुख कभू आय सुख।

हे भिंगाय बरसा तपाय गरमी, जड़ाय जिवरा ला शीत गा।


मया हे जिहॉं दगा का उहाँ, तभो तो धरे हवे आदमी।

रहे साथ मा सबे जीव जंतु, धरे चले मया प्रीत गा।


भले हो गयेन अजाद हम, तभो तो गुलामी करत हवन।

बुरा हाल हे अभी देख लौ, बने तो रिहिस हे अतीत गा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 64

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Date: 2020-08-25

Subject: 


*का महूँ आलोचक हो सकथँव*


मोला जादा दिन तो लिखत नइ होय हे, अउ बने घलो नइ लिखँव, का महूँ आलोचक समीक्षक हो सकथँव? पुस्तक के पाठ, पेपर ल पढ़त पढ़त,मेंहा कालेज के जमाना म हिंदी म लिखत रेहेंव, एक,दू गिनत गिनत आधा सैकड़ा घलो होगे, तब मन म चलुक चढ़िस येला छपवा के नाक ऊँचा करे जाय। फेर येती तेती म मन बिदक के। लिखावट होते रिहिस फेर वो सपना ठंडा बस्ता म चल दिस। कॉलेज के पूरा होय के बाद काम धंधा बर आने गाँव आगेंव, अउ उहाँ के साहित्यिक माहौल ल झाँकेंव, तभो अपन चीज ल कोन हिनहीँ। कोर कसर कोनो बताबेच नइ करिस, मोला लगिस, मैं बढ़िया लिखत हँव। एक दिन अइसने महतारी भाँखा म लिखेंव अउ दू चार जघा पढेंव, बनेच वाहवाही मिलिस, वो दिन ले कलम ह छत्तीसगढ़ी च लिखहूँ कहिके अड़गे, दू चार बछर म बनेच अकन संग्रह घलो होगे, सब ताली बजाइस , फेर मोला लगिस अब येला छपवाये जाय, अउ नाम कमाये जाय। गँवागे मोर गाँव, अउ खेती अपन सेती  नाम के दू पुस्तक छत्तीसगढ़ी म छपगे। छपे के बाद पता लगिस नाम वाम सब सपना ये। फेर आत्म सन्तुष्टि ले बढ़के का हे। एक दिन छंद कक्षा छंद सीखे बर गेंव। मोर हिंदी म हमेशा डिस्टेंसन आय , एम ए घलो करे हँव, तभो मात्रा गणना म फेल होगेंव। ले देके कक्षा म गुरुजी मनके निर्देशन म जमेंव। तब *पता लगिस कि जेन पुस्तक ल मैँ छपवाये हँव, वो मोर भावानुरूप फिट हे, फेर व्याकरण जे सुध नइहे हे, सही शब्द रूप, वचन, काल, पुरुष, लिंग म बनेच त्रुटि हे,, पहली बड़का कवि ल पढ़त सुनत देख ओखर पांव छूवत उन ल पुचपुचावत पुस्तक घलो दे देत रेहेंव, फेर वो दिन ले मोटरा बांध के तिरिया देहों* हिंदी के काव्य म  लिंग त्रुति ल  कोनो कोनो बताये रिहिस, तेखर सेती हिंदी ल छोड़ छत्तीसगढी म लिखत रेहेंव, फेर यहू म गलती?जबकि काल, वचन, लिंग, कारक, पुरुष सबे स्कूल कालेज के पढ़े चीज आय। *इही ल कहिथे पढ़ना अउ कढ़ना* पढ़े के बाद बिन पढ़े घलो कुछु नइ होय। जब तक कढ़ई नइ होवव तब तक। शुद्ध साहित्य देय बर भाव पक्ष के साथ साथ कला पक्ष म घलो पकड़ होना जरूरी हे।ये बाद म पता चलिस। मोर पुराना काव्य म पुरुष दोष, काल दोष, वर्तनी दोष,वचन दोष बनेच दिखथे, येला दूर करे के प्रयास चलत हे। वइसे कहे गेहे *परोपदेशे पण्डितव्यम*।

           मीठ मीठ लिखना समीक्षक के काम होही त, महूँ लिख सकथँव, फेर गलती खोजे बर साहित्य के सेवा शर्त उत्तर प्रतिउत्तर ल अभी जानेल लगही। एक समीक्षक गुणवान, जानकार होथे। वइसे साहित्य के सही आलोचक तो पाठक होथे, अउ पढ़े बिना आलोचक घलो आलोचना नइ करे। फेर मैं बिना विवाद में पड़े, मीठ मीठ लिख सकथँव, करू कसर लिखे बर अउ जानकारी चाही। आजकल तो पाठक हे न बने आलोचक?जेन हे तेला छोड़के, फेर मोर कस निर्विवाद आचोलक सब बन सकथे, जादा हाने सुने के घलो जरूरत नइहे। मीठ मीठ आलोचना बर जरूर सम्पर्क करहू। खैर कुछु नइ लिखाय हे तेखर सेती जउन आइस तउन लिख परेंव।

    फेर एक समीक्षक ल (वइसे तो आज मौलिक भाव कमसल हे तभो) भाव पक्ष के साथ साथ कला पक्ष अउ काव्य के प्रभाव ल जरूर देखना चाही।  साहित्य का निर्माण म सहायक हे। कोन कोन रस ल समेटे हे। साहित्य के मूल्यांकन के तो अनेक पहलू हे। जानकार अपन अपन होसाब ले समीक्षा लिखथे। आज तो विकट स्थिति घलो आगे हे, समीक्षक के अलावा कोई बने पाठक घलो नइ मिले। समीक्षा करे म पहली जल्दबाजी नइ होवत रिहिस, कवि लेखक के साहित्य के प्रभाव समाज म कइसन पड़त हे, येखर आधार म घलो समीक्षक मन मूल्यांकन करे। आज के स्थिति चिंतनीय हे, पाठक खोजना पढ़त हे, त फेर वो साहित्य के समाज म प्रभाव के का बात करना। मूल्यांकन के विविध पहलू के चर्चा पटल म बहुत बढ़िया ढंग ले होय हे। एखर बर विचार पठाये गुनी साहित्यकार मन ल सादर नमन। 


खैरझिटिया




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# 63

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Date: 2020-08-25

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे कामिल मुसम्मन सालिम

मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212


बने काम कर जिया जीत गा, नचा मोला तैं सुना गीत गा।

बड़े धन खजाना कहाँ हवै, बड़े जग मा हे मया मीत गा।


बड़े वो हरे जे बताये राह बने, करे ना गरब घलो।

जे नँगाये मनखे के मीत ला उहू फोकटे हरे रीत गा।


रहे एक जइसे समय कहाँ, कभू आय दुख कभू आय सुख।

हे भिंगाय बरसा तपाय गरमी, जड़ाय जिवरा ला शीत गा।


मया हे जिहॉं दगा का उहाँ, तभो तो धरे हवे आदमी।

रहे साथ मा सबे जीव जंतु, धरे चले मया प्रीत गा।


भले हो गयेन अजाद हम, तभो तो गुलामी करत हवन।

बुरा हाल हे अभी देख लौ, बने तो रिहिस हे अतीत गा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 62

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Date: 2020-08-25

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे कामिल मुसम्मन सालिम

मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212


का का तैं कसम बता खाय हस, बने याद कर का निभाय हस।

गिरे ला चपक धरे छल कपट, मुँदे आँख ला जी दुखाय हस।


ये धरा मा आय के पहली तैं, कहे हस विधाता ला करहूँ भजन।

ढले अब उमर तभो देख ले, धुनी आज तक का रमाय हस।


न ददा न दाई न बहिनी भाई, परोसी सब लगे रे दुसर।

ठिहा धन रतन सबे ला जतन, हरे मोर कहिके नपाय हस।


दिनो दिन खुशी हा सिरात हे, मया मीत ममता चिरात हे।

हवा पानी धरती ला का कहँव, फरी हर जिनिस ला मताय हस।


भुला सुध अपन बने पगला बइहा सहीं, इती उती जात हौं।

सबे चैन सुख हा गँवागे, जब ले रे नैना बाण चलाय हस।


जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 61

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Date: 2020-08-24

Subject: 


गणपति देवा-आल्हा छंद गीत(खैरझिटिया)


मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।

गली गली घर खोर म बइठे, घोरत हवै भक्ति के रंग।


तोरन ताव तने सब तीरन, चारो कोती होवय शोर।

हूम धूप के धुवाँ उड़ावय, बगरै चारो खूँट अँजोर।

लइका लोग सियान सबे के, मन मा छाये हवै उमंग।

मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।


संझा बिहना होय आरती, लगे खीर अउ लड्डू भोग।

कृपा करे जब गणपति देवा, भागे जर डर विपदा रोग।

चार हाथ मा शोभा पाये, बड़े पेट मुख हाथी अंग।

मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।


होवै जग मा पहली पूजा, सबले बड़े कहावै देव।

ज्ञान बुद्धि बल धन के दाता, सिरजावै जिनगी के नेव।

भगतन मन ला पार लगावै, होय अधर्मी असुरन तंग।

मुस्कावत हे गौरी नंदन, मुचुर मुचुर मुसवा के संग।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 60

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Date: 2020-08-24

Subject: 


मुक्तक


1222×4


उठत बइठत सुतत जागत बुड़े रहिथे मुबाइल मा।

दिखावा के मया जोरे जुड़े रहिथे मुबाइल मा।

जमाना आय हे कइसन मनुष सब झन रमे येमा।

असल मा पाँख नइहे अउ उड़े रहिथे मुबाइल मा।


मया परदेश मा खोजय भुलाके पास पारा ला।

धरा ला कर धराशायी तुकत हे चाँद तारा ला।

मनुष अपने ठिहा बारे धरे हौं ज्ञान गुण कहिके।

बढ़ावय जिंदगी के पेड़ सुख के काट डारा ला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


मुक्तक


द्वेष बैर के बिजहा बोवै, धधकावै अंतस ज्वाला।

मार काट ला सहज मान के, फेकै बम बारुद भाला।

अत्याचारी भरे पड़े हे, मिले नही नेकी धर्मी।

मानवता के मान गिरावै, पहिर मनुष कंठी माला।


सहे मा लाज आथे ता कहे कर झन बुरा भैया।

गड़े मा होय पीरा ता धरे कर झन छुरा भैया।

हरस इंसान ता इंसानियत मन में जगा के चल,

करम बढ़िया करत बढ़ जा कभू झन घुरघुरा भैया।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा




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# 59

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Date: 2020-08-19

Subject: 


कहीं होय झन। सहीं होय झन। महीं होय, बस हाँ निकले, नहीं होय झन, बही, वही फिकर जेन बात के वही ,

जागही कोन जा। पाग, भाग, दाग,लाग,देह तियागही,बैरागही


सुते हे शहर  ठिहा बन डहर , बता कोन जागही आन बर।

हरे बर दरद

नचा मोला तैं सुना गीत गा, मया मीत धर जिया जीत जा।

तिही तोर छोड़ पागही कोन गा।




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# 58

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Date: 2020-08-18

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


कटे नही रोये मा घलो दिन, जिया जुड़ाये हँसेल लगथे।

उँचाय खातिर महल अटारी, नँवान बनके धँसेल लगथे।


तड़प तड़प जब हवै गा मरना, ता छल प्रपंच ले का हे डरना।

मिटाय बर भूख मीन बनके, गरी घलो मा फँसेल लगथे।


मया मा माया मिंझर जथे जब, बचन ले मनखे मुकर जथे तब।

उड़े पड़े जब मतंग मन हा, लगाम तब तो  कँसेल लगथे।


बदन मइल हा घलो निकलथे, घँसे मा  चमके रचे कढ़ाई।

मइल ह्रदय के रे धोय खातिर,गियान गुण सत घँसेल लगथे।


जहर बचन मा रथे सदा दिन, चलत रथस टेंड़गा सुमत बिन।

उदर अगिन के बुझाय खातिर, का अपने मन ला डँसेल लगथे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(कोरबा)




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# 57

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Date: 2020-08-17

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


कहाँ कहाँ तैं तलासी लेबे, घरे मा हे चोर अब बतातो।

अपन समझ जेला तैं खवाये, बरय उही डोर अब बतातो।1


उमर पुरत हे मनुष मनके, तभो करे लोभ धन रतन के।

बने जुवारी चले दुवारी, खवात हे खोर अब बतातो।2


कुकुर गजब घूम घूम खाँसे, गधा लदाये तभो ले हाँसे।

खुसुर खुसुर जौन खाय बैठे, दिखात हे लोर अब बतातो।3


कहाँ पहुँच मा अकास हावै, लमाय मा हाथ जे छुवावै।

सियार हा बघवा ले लड़े बर, लगात हे जोर अब बतातो।4


रटत रतन धन मरत हरत हस, हकर हकर जिनगी भर करत हस, 

मरे मा छूटे सरी कमाई, हरे काय तोर अब बतातो।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 56

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Date: 2020-08-16

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे कामिल मुसम्मन सालिम

मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212


का बताँव मोर का हाल हे, बिना जर के जइसे रे डाल हे।

का भरोसा आन के मैं करँव, इहाँ छइहाँ घलो काल हे।1


उहू आँख मूंद के बइठे हे, तहूँ सिर झुकाय लुकात हस।

उठे हाथ नइ घलो देश बर, का लहू मा तोर उबाल हे।2


मया मीत माँगे मिले नही, कभू भाग मोर खिले नही।

कुँवा बावली हा कहाँ ले भरे, इहाँ तो पियासे पताल हे।3


कहाँ सत डहर उहाँ सुख लहर, बने मन सदा सहे दुख दगा।

बिना सत घलो खुले भाग, झूठ बजार मा तो उछाल हे।4


कहाँ जिंदगी हे कहाँ मौत हे, सबे तीर मनखे मनके खौफ हे।

डरे मनखे मन लड़े मनखे मन, कहाँ सुलझे कोनो सवाल हे।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 55

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Date: 2020-08-16

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे कामिल मुसम्मन सालिम

मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन

11212 11212 11212 11212


चले गाड़ी देख अमीर के, हे अटारी देख अमीर के।

दबे नाँव रइथे गरीब के, हे पुछारी देख अमीर के।1


कई झन अघाड़ी कई पिछाड़ी, बने फिरै सदा दिन इँखर।

गुणी ज्ञानी मन घलो रोज करथे, बिगारी देख अमीर के।2


खुदे बेंचा जा ठिहा ठौर सुद्धा, तभो रकम लगे हाथ ना।

फले नइ फुले तभो दाम देथे, गा बारी देख अमीर के।3


रहे मन गरीब के तीर ना घलो, बोलथे सगा मन चलो।

सही सपना सब के तो संग मा,पटे तारी देख अमीर के।4


कहाँ थेभा फुटहा नसीब के, कहाँ कोई साथी गरीब के।

रथे चोर संग घलो सिपैहा, पुजारी देख अमीर के।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 54

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Date: 2020-08-15

Subject: 


1, एक दिन के देश भक्ति (सरसी छन्द)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देशभक्ति चौदह के जागे, सोलह के छँट जाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


आय अगस्त महीना मा जब, आजादी के बेर।

देश भक्ति के गीत बजे बड़, गाँव शहर सब मेर।

लइका संग सियान मगन हे, झंडा हाथ उठाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


रँगे बसंती रंग म कोनो, कोनो हरा सफेद।

गावै हाथ तिरंगा थामे, भुला एक दिन भेद।

तीन रंग मा सजे तिरंगा, लहर लहर लहराय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


ये दिन आये सबझन मनला, बलिदानी मन याद।

गूँजय लाल बहादुर गाँधी, भगत सुभाष अजाद।

देशभक्ति के भाव सबे दिन, अन्तस् रहे समाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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2, अपन देस(शक्ति छंद)


पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।

करौं बंदना नित करौं आरती।

बसे मोर मन मा सदा भारती।


पसर मा धरे फूल अउ हार मा।

दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।

बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।

सबो खूँट बगरे अँजोरी रहे।


बसे बस मया हा जिया भीतरी।

रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।

इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।

तभो  हे  घरो घर बिना बेंस के।

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चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।

सजाके बनावौं ग रानी सहीं।

किसानी करौं अउ सियानी करौं।

अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।


वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।

करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।

फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।

वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।

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जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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3, कइसे जीत होही(सार छंद)


हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी।

जे मन चाहै ये माटी हा,होवै चानी चानी----।


देश प्रेम चिटको नइ जानै,करै बैर गद्दारी।

भाई चारा दया मया ला,काटै धरके आरी।

झगरा झंझट मार काट के,खोजै रोज बहाना।

महतारी  ले  मया करै नइ,देवै रहि रहि ताना।

पहिली ये मन ला समझावव,लात हाथ के बानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


राजनीति  के  खेल निराला,खेलै  जइसे  पासा।

अपन सुवारथ बर बन नेता,काटै कतको आसा।

मातृभूमि के मोल न जानै,मानै सब कुछ गद्दी।

मनखे  मनके मन मा बोथै,जात पात के लद्दी।

फौज  फटाका  धरै फालतू,करै मौज मनमानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


तमगा  ताकत  तोप  देख  के,काँपै  बैरी  डर मा।

फेर बढ़े हे भाव उँखर बड़,देख विभीषण घर मा।

घर मा  ये  मन  जात  पात  के,रोज मतावै गैरी।

ताकत हावय हाल देख के,चील असन अउ बैरी।

हाथ  मिलाके  बैरी  मन ले,बारे  घर  बन छानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


खावय ये माटी के उपजे,गावय गुण परदेशी।

कटघेरा मा डार वतन ला,खुदे लड़त हे पेशी।

अँचरा फाड़य महतारी के,खंजर गोभय छाती।

मारय काटय घर वाले ला,पर ला भेजय पाती।

पलय बढ़य झन ये माटी मा,अइसन दुश्मन जानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी-----।


घर के बइला नाश करत हे, हरहा होके खेती।

हारे हन इतिहास झाँक लौ,इँखरे मन के सेती।

अपन देश के भेद खोल के,ताकत करथे आधा।

जीत भला  तब कइसे होही,घर के मनखे बाधा।

पहिली पहटावय ये मन ला,माँग सके झन पानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छग

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4, बलिदानी (सार छंद)


कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।

देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।

महतारी के आन बान बर,कोन ह झेले गोली।

कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।

छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।

हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।

मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।

हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।

देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।

अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।

हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।

देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।

पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।

भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।

लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।

डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारा   मारी।

अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।

बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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5, हमर तिरंगा(दोहा गीत)


लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।

इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।

हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।

नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।

जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।

सुबे  कहाँ  संसो  हवे, नइहे  संसो   रात।

महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।

इही--------------------------------- लाज।


उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।

भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।

गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।

उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।

का का मैं बतियाँव गा, गजब भरे हे राज।

लहर------------------------------लाज।


तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।

जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।

कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।

रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।

जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।

लहर-----------------------------लाज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


स्वतंत्रता दिवस अउ आठे तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई।।




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# 53

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Date: 2020-08-12

Subject: 


सवैया जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


1,मदिरा सवैया


मोहन माखन माँगत हे मइया मुसकावत देखत हे।

गोकुल के सब गोपिन ला घनश्याम दहीं बर छेकत हे।

देख गुवालिन के मटकी धरके पथरा मिल फेकत हे।

तारन हार हरे हरि हा पँवरी म सबे सिर टेकत हे।


2, मतगयंद सवैया


देख रखे हँव माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।

रोवत हावय गाय गरू झट लेज मधूबन तीर चराना।

कान ल मोर सुहाय नही कुछु आ मुरलीधर गीत सुनाना।

काल बने बड़ कंस फिरे झट आ मनमोहन प्राण बचाना।


गोप गुवालिन के सँग मोहन रास मधूबन तीर रचावै।

कंगन देख बजे बड़ हाथ के पैजन पाँव के गीत सुनावै।

मोहन के बँसरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके मन भावै

एक घड़ी म दिखे सबके सँग एक घड़ी सबले दुरिहावै।


चोर सहीं झन आ ललना झन खा ललना मिसरी बरपेली।

तोर हरे सब दूध दहीं अउ तोर हरे सब माखन ढेली।

आ ललना झट बैठ दुहूँ मँय दूध दहीं ममता मन मेली।

मोर जिया ल चुरा नित नाचत गावत तैं करके अटखेली।


गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं गा।

फूल गुलाब न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं गा।

मोर सबे सुख शांति उड़े मुरलीधर रास रचे न कहीं गा।

दर्शन दे झट आ मनमोहन हाथ धरे हँव दूध दहीं गा।



धर्म ध्वजा धरनी धँसगे झटले अब आ करिया फहराना।

खोर गली म भरे हे दुशासन द्रौपति के अब लाज बचाना।

शासक संग समाज सबे ल सुशासन के सत पाठ पढ़ाना।

झाड़ कदम्ब जमे कटगे यमुना मतगे मनमोहन आना।


खैरझिटिया


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


कृष्ण जम्माष्टमी के सादर बधाई




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# 52

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Date: 2020-08-12

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


बने बनाये बुता बिगड़थे, घुचुर पुचुर अउ करे मा जादा।

कते उपर तैं उँचाबे उँगली, भराय बैरी घरे मा जादा।।


चिढ़ाय मा चिढ़ जथे बने मन, फटर फिटिर करथे बड़ तने मन।

अपन करा झन बला बला ला, नमक चुपर झन जरे मा जादा।


बने बने बर बुता बने कर, जिया लुभा सबके फूल अउ फर।

अँड़े भले रह गियान गुण बिन, नँवेल पड़थे फरे मा जादा।।


अकास थुकबे तिहीं छभड़बे, खने कुआँ मा खुदे हबरबे।

भभक भभक खुद के जिवरा जरथे, दुवेष पाले बरे मा जादा।


कभू बना पथरा कस जिया ला, कभू पिघल जा रे मोम बनके।

कभू बने काँच धीर खो झन, डराय जिवरा डरे मा जादा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 51

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Date: 2020-08-11

Subject: 


पानी मा शिवनाथ नदी के,डुबक डुबक के नहाये।

कौशल पुर मा प्रभु राम जब, अपन ममा घर आये।




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# 50

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Date: 2020-08-11

Subject: 


मोला किसन बनादे (सार छंद)


पाँख  मयूँरा  मूड़ सजादे,काजर गाल लगादे|

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


बाँध कमर मा करिया करधन,बाँध मूड़ मा पागा|

हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|

चंदन  टीका  माथ लगादे ,पहिरा माला मुंदी|

फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चुंदी|

हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |

घींव  लेवना  चाँट  चाँट  के,खाहूँ थाली थाली |

मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ,दाई लोरी गादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी मीठ बजाहूँ|

तेंदू  लउड़ी  हाथ थमादे,गाय  चराके आहूँ|

महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    

गोकुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल घर भीतर।

मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी|

बँसुरी  धरे  रेंगहूँ   मैंहा ,भइया  नाँगर  डाँड़ी|

कनिहा मा कँस लाली गमछा,पीताम्बर ओढ़ादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|

संसो  झन करबे वो दाई,खेल कूद घर आहूँ|

पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई ,किसन बरन तैं चोला|

रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|

पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |

बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|

दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,दाई आस पुरादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "

बालको (कोरबा )




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# 49

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Date: 2020-08-10

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


अमीर कतको ले ले करजा, इती उती मुँह लुकात हावै।

कमा कमा के किसान बपुरा, लिये सबे ऋण चुकात हावै।


गरब हे मोला हरौं गँवइहाँ, चलौं धरा संग डार बँइहाँ।

हमर उपर नित धरा के धुर्रा, गुलाल जइसे बुकात हावै।


सजे हवै सोने सोन पुतरी, सुनार के सिर बँधाय सुतरी।

फसल उगइया भुखात हावै, धनुष धरइया तुकात हावै।


कलंक हा का दबे दबाये, अँड़े खड़े तौन मेंछराये।

झुके फरे फर मा जेन बिरवा, हवा धुका अउ झुकात हावै।


दुवा मिलत हे अभो बने ला, सुनाय गारी गिरे सने ला।

जिंखर परे चाल मा हे कीरा, उँखर उपर अभो थुकात हावै।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 48

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Date: 2020-08-10

Subject: 


सेहत(चौपाई छंद)- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*आफत तन में आय जब, मन कइसे सुख पाय*

*तन मन तनतन होय तब, माया मोह सुहाय*


हाड़ माँस के तैं काया धर।

हाय हाय झन कर माया बर।

सब बिरथा काया के सुख बिन।

जतन बदन के करले निस दिन।


तन खेलौना हाड़ माँस के।

जे चाबी मा चले साँस के।

जी ले जिनगी हाँस हाँस के।

दुःख दरद डर धाँस धाँस के।


पी ले पानी खेवन खेवन।

समै समै मा खाले जेवन।

समै मा सुत जा समै मा जग जा।

भोजन बने करे मा लग जा।


झन होवय कमती अउ जादा।

कोशिस कर होवय नित सादा।

गरम गरम खा ताजा ताजा।

बजही तभे खुशी के बाजा।


देख रेख कर सबे अंग के।

हरे सिपाही सबे जंग के।

हरा भरा रख तन फुलवारी।

तैं माली अउ तैं गिरधारी।


योग ध्यान हे तन बर बढ़िया।

गतर चला बन छत्तीसगढ़िया।

तन के कसरत हवै जरूरी।

चुस्ती फुर्ती सुख के धूरी।


चलुक चढा झन नसा पान के।

ये सब दुश्मन जिया जान के।

गरब गुमान लोभ अउ लत हा।

करथे तन अउ मन ला खतहा।


मूंगा मोती कहाँ सुहावै।

जब काया मा दरद हमावै।

तन तकलीफ उहाँ बस दुख हे।

तन के सुख तब मनके सुख हे।


जतन रतन कस अपन बदन ला।

सजा सँवार सदन कस तन ला।

तन मशीन बरोबर ताये।

जे नइ माने ते दुख पाये।


तन के तार जुड़े हे मन ले।

का का करथस तन बर गन ले।

जुगत बनाले सुख पाये बर।

आलस तन के दुरिहाये बर।


तन हे चंगा तब मन चंगा।

रहे कठौती मा तब गंगा।

कारज कर झन बने लफंगा।

बने बुता बर बन बजरंगा।।


*सेहत ए सुख साधना, सेहत गरब गुमान*

*सेहत ला सिरजाय जे,उही गुणी इंसान*


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 47

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Date: 2020-08-10

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


सबे बदलथे ता तैं बताना, का एक जइसे रही जमाना।

अपन करम तैं करत बढ़े जा, झझक झने का कही जमाना।


सहीं के सँग मा गलत घलो हे, फलत हवै ता गलत घलो हे।

बिचार करके कदम बढ़ाना, अपन डहर खींचही जमाना।।


बबा ददा पुरखा नइ तो होइस, उहू घलो आज होत हावै।

शराब सँग हे कबाब सँग हे, अभी तो अउ मातही जमाना।


चढ़े हवै तोला रंग येखर, लगय हँसी ठठ्ठा  जंग येखर।

सम्हल के चल रे मतंग मानव, बचा तभे बाँचही जमाना।


चटक चँदैनी ये चारदिनिया, बने बने ला नपा पछिनिया।

नयन उघारे रबे नही ता, डुबा दिही रे यही जमाना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 46

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Date: 2020-08-09

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


तुम्हर दरद हा पहाड़ जइसे, हमर दरद का दिखावटी हे।

हमन हवन जइसे तइसे दिखथन, तुम्हर चरित्तर बनावटी हे।


कहाँ महक फूल फर मा हावै, कहाँ चँउर दार हा मिठावै।

कहाँ के आरुग कुछु हा मिलथे, सबे जिनिस तो मिलावटी हे।


जतन रतन धन के सब करत हे, अपन अपन रट मरत हरत हे।

अजब गजब आगे हे जमाना, मया घलो हा गुँरावटी हे।

 

भुखाय मरगे तड़प तड़प के, जियत हे कतको हड़प झड़प के।

गरीब के घर मा नइहे छानी, अमीर के घर सजावटी हे।


गियान गुण बिन बने हे बड़खा, हवै कलमकार कोरी खरखा।

पढ़य गुणय अउ सुनय सबे के, कलम मा ओखर कसावटी हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 45

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Date: 2020-08-09

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


बने बतैया मिले घलो नइ, गलत बतैया भरे पड़े हे।

दुसर के करनी ला कोन भाथे,अपन जतैया भरे पड़े हे।


कहाँ गिरे ला बचाय खातिर,करे उदिम कौने गा मुसाफिर।

जतन करैया कहाँ हे कोनो, सतत सतैया भरे पड़े हे।।


गधा पहिर चलथे शेर खँड़ड़ी, दिखय घलो कौवा आज पढ़ड़ी।

कते बनैया हे मंदरस के, इहाँ ततैया भरे पड़े हे।


फिकर प्रकृति के करे ना मनखे, करत हवै सब उजाड़ मनके।

भले हरे जिंदगी पवन जल, तभो मतैया भरे पड़े हे।।


रटत हे नेता कि दुख भगाही, अबक तबक बस बिहान आही।

विपत हरैया कहाँ हे कोई, दरद दतैया भरे पड़े हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 44

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Date: 2020-08-08

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


धरे दू आना गजब फुदर झन, गरब बड़े हे बड़े बड़े के।

हमर असन के कब आही पारी, बुता पड़े हे बड़े बड़े के।


का काम आही का जग मा छाही, हमर करम अउ हमर उदिम हा।

हमर ठिहा के हे का पुछारी, महल अड़े हे बड़े बड़े के।


हरे सबे शान शौकत ओखर, मलत रबे हाथ खा खा ठोकर।

का खेल ला तैंहा जीत पाबे, नियत गड़े हे बड़े बड़े के।।


कते सही हे कते गलत हे, अभो लडाई गजब चलत हे।

अपन करम ला करत बढ़े जा, गतर सड़े हे बड़े बड़े के।


सगा घलो दे दगा भगागिस, अपन अपन रट के मन ठगागिस।

शहर डहर सँग गली गली मा, बबा खड़े हे बड़े बड़े के।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 43

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Date: 2020-08-08

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


अपन अपन ले सबे बकत हे, महूँ हा मोरे सिलाय हावै।

अबक तबक बस परान उड़ाही, जहर जमाना पिलाय हावै।


बिछे हवै काँटा खूँटी पथ मा, गिरत उठत बस चलत बढ़त हौं।

परे हे फोरा दिखे ददोरा, लहू बहत पग छिलाय हावै।2


करौं बिगारी खा खा के गारी, ना मैं भिखारी ना हे चिन्हारी।

भला अपन मनके मैं चलौं का, चलाय जउने खिलाय हावै।3


दुसर बिना कब उदर हा भरही, करम के लेखा कइसे सुधरही।

निगल सकौं ना उगल सकौं मैं, पता नही का लिलाय हावै।4


हरौं कमैया तभो ले भैया, उबुक चुबुक करथे मोर नैया।

पटक पटक मारे धन खजाना, गजब रे गोल्लर ढिलाय हावै।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 42

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Date: 2020-08-08

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


नयन मुँदे हस गरब वसन मा, डहर मा सत के झपात हस रे।

उगे कहाँ हे अभी पाँख हा, अगास उड़े बर नपात हस रे।।1


ठिहा ठिकाना बने बनाना, मया दया धर उमर पहाना।

कभू इती जा कभू उती जा, घिलर  घिलर तन खपात हस रे।


करम रही ना धरम रही ना, उहाँ सही मा शरम रही ना।

टिना हरस अउ कनक हरौं कहि, अपन बदन तैं तपात हस रे।3


मनुष जनम धर मरत हरत हस, दिखत कहाँ हस बने तने तैं।

लगत हवस जस कँदाय कपड़ा, जघा जघा ले कपात हस रे।4


हरौं कथस तैं गुनी गियानी, तभो रहय नइ बने सियानी।

खुदे पहाड़ा गलत पढ़त हस, दुसर घलो ला जपात हस रे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 41

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Date: 2020-08-07

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*


मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन


1212 212 122 1212 212 122


रही कहूँ घर के ना ठिकाना, का नींद आही तिंही बताना।

सबे सुनावत रही गा ताना,  का नींद आही तिंही बताना।1


मिले मया ममता के ना बोली, दिखे जलत सुख खुशी के होली।

गड़ी घलो चाहही हराना,  का नींद आही तिंही बताना।2


बरत रही डोरी गर कँसे बर, कहत रही अउ कहूँ हँसे बर।

अबक तबक दीया हे बुझाना,का नींद आही तिंही बताना।3


चटक मटक मा सबे जमे हे, रतन खजाना मा मन रमे हे।

हवे हवा मा महल बनाना,, का नींद आही तिंही बताना।4


खुशी जुटाके अपन भरोसा, बने करम करबे खाके धोखा।

हुदर हुदर दुख दिही जमाना, का नींद आही तिंही बताना।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 40

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Date: 2020-08-07

Subject: 


--------------मया के पाती---------------


   ------- -----------  ठउर- बाल्को, कोरबा

                      -- दिनाँक- 07/08/2020


*मोर मया ल छोड़, कखरो मया मा झन अरझबे।*

*खून ले लिखत हँव पाती,सियाही झन समझबे।*


मोर मयारु,

               ----------,

               मया का होथे? गउकिन नइ जानव। फेर तोला देखे बिना न नींद आय न चैन, तोर सुरता अन्तस् मा अउ तोर मुखड़ा आँखी म समाये रथे। जेती देखथों तेती तिहीं दिखथस। तैं देखे होबे मैं बइहा बरन तोर आघू पीछू किंजरत रहिथों, कोन जनी मोला का होगे हे, का सिरतोन म मया होगे हे? हाँ, मोला तो लगथे हो गेहे, फेर तोर हामी बिना का मया?  मैं ये पाती नइ लिखतेंव, फेर का करँव? तोला देखथंव त मुँह ले बोली भाँखा चिटिको नइ फुटे। मोर हाथ गोड़ म कपकपी अउ जिया म डर हमा जथे। मोर जिया म तोर बर मया तो बनेच दिन ले हिलोर मारत हे, फेर वो मया के लहरा भँवरी कस घूम घूम के उही मेर सिरा जावत रिहिस, आज तक किनारा नइ पा सकिस। तेखर सेती मैं अपन मन के बात  बताये बर तोला ये मया पाती पठोवत हँव। तोला अपन संगी संगवारी संग हाँसत मुस्कात देख मोला अब्बड़ खुशी होथे। मोर मन मया के अगास म पंछी बरोबर उड़त सोंचथे कि उही मंदरस कस बानी कहूँ मोर बर छलकही तब का होही, कोन जनी कतेक खुशी मन मे समाही। तोर मया बिन मोर जिनगी अमावस कस कारी रात हे, जेमा चमचम चमकत पुन्नी के चन्दा बन उजियारा फैलादे। ये पाती लिखे के बाद, मैं अब तोर आघू पीछू घलो नइ हो सकँव।  मोर मन म तो तैं बसे हस, तोर मन म का हे? जवाब के अगोरा रही, 


                                      " तोर मयारू"

                                        खैरझिटिया




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# 39

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Date: 2020-08-06

Subject: 


नींद ससन भर आही - गीत(सार छंद)


बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।

संझा बिहना सुख मा कटही, मन मा खुशी हमाही।


तामझाम तकलीफ बाँटथे, जीवन जी ले सादा।

जादा मना खुशी अउ दुख झन, जोर घलो धन जादा।

अपन आप ला बने बनाले, सरी जगत गुण गाही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


संसो फिकर घलो हा चिटिको, नैन मुँदन नइ देवै।

ऊँच नीच खाना पीना हा, तन के सुख हर लेवै।

अपन काम ला खुदे टारले, तन कसरत हो जाही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


रोज शबासी लेवत चल गा, झन खा एको गारी।

चलत रहा सत के रद्दा मा, तज के झूठ लबारी।

गरब गुमान घलो झन करबे, नइ ते आफत आही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


जान अपन कस सबे जीव ला, ले ले सबके आरो।

बेर देख के फल खावत चल, मीठ करू अउ खारो।

बचपन के बेरा लहुटाले, तन मन तोर हिताही।

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 38

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Date: 2020-08-06

Subject: 


नींद ससन भर सोना हे ता, कर भैया तैं अइसन काम।

राग द्वेष ला दूर फेंक के, बने काम बूता ला थाम।


फोकट ठग जग कपट कमाई, नइ दे पावय चैन सुकून।

कखरो कहूँ बिगाड़ा करबे, रहिरहि अँउटत रइही खून।।


जिया जानथे बने गलत ला, झूठ बोल के झन झकझोर।

कत्तिक दिन ले हाँसत रहिबे, पर ला देके दुख डर लोर।




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# 37

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Date: 2020-08-05

Subject: 


नाती के पाती


                                     ठउर-बाल्को,कोरबा

                                     तारिख-05/08/2020


*यहाँ कुशल सब भाँति भलाई*

    *वहाँ कुशल राखे रघुराई*


बबा,

       पायलागी गो।

       आप ल ये बतावत अबड़ उछाह होवत हे, कि तीजा पोरा लट्ठावत हे, घर मा झाँपी झाँपी ठेठरी, खुरमी कलेवा बनही। यहू दरी मैं आप मन बर मँझोलन मोटरा म ठेठरी अउ खुरमी ल कूट के गठिया देहूं, ताहन पहली कस बनेच दिन ले फँकियात रहू। गँइंज दिन होगे बबा, तोला देखे नइ हँव, सपना म घलो दरस नइ देखावस। अउ सपना म आहू घलो कइसे ये नवा जमाना के चकाचौंध म मिही तोर सुरता नइ करँव। हाथ म मोबाइल, घर म टीवी, भरर भरर भागत मोटर गाड़ी कार अउ ज्ञान विज्ञान के नवा चोचला तोला छेंक देथे। अउ बबा आजो घलो यदि लोकाक्षर म चिठ्ठी पाती विषय नइ होतिस त आपला मैं सुरता नइ करतेंव। अउ अब सुरता म चढ़ गे हव तब तुम्हर संग बिताये बेरा रहिरहि के उबाल मारत हे। *तोर पिठँइयाँ के पार, आज के ये अगास अमरत झूला ह घलो नइ पा सके।* तोर बनाये ढँकेल गाड़ी जेमा मैं रेंगे बर सीखेंव, आजो नजरे नजर म झूलत हे। तोर खाँसर गाड़ा के मजा महँगा मोटर कार घलो नइ दे सके। *गोरसी के आँवर भाँवर संगी संगवारी मन संग आगी तापत सुने तोर कहानी कन्थली आजो रटृम रट्टा याद हे। तोर संग घूमे बाजार हाट अउ गांव गँवतरी के सुरता भुलाये नइ भुले। आज मोर हाथ के महँगा मोबाइल भले लाख ज्ञान बाँटे फेर तोर बताये गुण गियान के गोठ के पार नइ पा सके।*

सिरतोन म बबा, वो बेरा के तोर मया के आघू, आज के सरी दुनिया भर के सैर सपाटा अउ सुख सुविधा फिक्का हे। जब तैं डोरी ल लामी लामा लमाके ढेरा आँटस, त पारा भरके लइका बड़ मजा करत चिल्लावत भागन। तोर कोकवानी लउठी के डर घलो रहय, फेर आज न तो दाई ददा के डर हे न कोनो आन के। सुतत उठत जागत बइठत, मिले तोर पबरित मया दुलार आजो अन्तस् म हिलोर मारत हे।

                बने हे बबा, तैं ये धरती ल छोड़ दे हस  काबर कि आजकल के लइका मन तो सियान मनके तीर म ओधत घलो नइ हे। आज उन ला न लइका लोग पुछे, न नाती नतुरा। बपुरा मन जुन्ना जमाना के कोनो छेल्ला जिनावर बरोबर घर के एक कोंटा म फेंकाय, खटिया म पँचत हे। सियान बर आज, न मान गउन हे, न उंखर सेवा सत्कार। सब नवा जमाना के रंग म रंग के अपनेच म मगन अउ मस्त हे, चाहे लइका लोग होय चाहे कोनो बड़का। तैं तो हमला गीत गा गाके, पुचकार पुचकार खेला के बड़े करेस, फेर आज के दुधमुहा लइका मन ल घलो दाई ददा मन सियान कर नइ छोड़त हे। उंखर देखरेख बर नौकरानी संग  स्कूल खुलगे हे। आज सियान मनके न घर में, न घर के बाहर गाँव गुड़ी म पहली कस कोनो पुछारी हे। फेर बबा ये गूगल कतको ज्ञान बाँट लय, मोबाइल ,टीवी कतको मनखे के मन मोह डरय, तोर सिखाये पढ़ाये खेलाये कस लइका नइ बना सकय। आज जुन्ना जमाना के जम्मो जिनिस ल मनखे खोधर खोधर के खोजत हे, फेर जीयत जुन्ना मनखे उपर धियान नइ देवत हे। तहूँ देखत होबे बबा, त आँखी डबडबा जात होही। *जीयत मा, न मया हे, न नाम। अउ मरे के बाद उही भगवान राम।*  आज के जमाना म *"बबा मरे चाहे बँचे सब,,,,,,,,,,, बरा खावत हे।"*

            अउ पायलागी गो


                                        चिट्ठी पठोइया


                                  तोर बड़का नाती- खैरझिटिया




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# 36

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Date: 2020-08-04

Subject: 


10,छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 


212 212 212 212  


देख डरपोकना अउ डरत आज हे।

बैला हरहा हदर के चरत आज हे।1


पर भरोसा करे काय दाई ददा।

मूँग छाती मा बेटा दरत आज हे।2


खाय बर बड़ जुरे सब खुशी के समय।

दुःख ला देख मनखे टरत आज हे।3


जौन मनके गतर हा खताये हवै।

ओखरे काठा कोठी भरत आज हे।4


बैठ के होली मा होलिका हा हँसै।

भक्त प्रहलाद बम्बर बरत आज हे।5


काम बूता मा कोनो बढ़े तब बता।

देखइय्या के छाती जरत आज हे।6


घाम मा धान एती भुँजावत हवै।

बाढ़ मा धान वोती सरत आज हे।7


छोकरा धन ठिहा छोड़ बन मा बसै।

डोकरा धन रतन ला धरत आज हे।8


झूठ इरखा असत के उमर हा बढ़ै।

मीत ममता मया सत मरत आज हे।9


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 35

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Date: 2020-08-04

Subject: 


गीत


किसान के कलपना


झड़ी बादर के बेरा,,,

डारे राहु केतु डेरा,,,,

संसो मा सरत सरी अंग हे।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।



फुतकी उड़त रद्दा हे, पाँव जरत हावै।

बिन पानी बादर पेड़ पात, मरत हावै।

चुँहे तरतर पछीना,,,,,,

का ये सावन महीना,,,,

दुःख के संग मोर ठने जंग हे----।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


आसाढ़ सावन हा, जेठ जइसे लागे।

तरिया नदियाँ घलो, मोर संग ठगागे।

हाय हाय होत हावै,,,

जम्मे जीव रोत हावै,,,

हरियर धरती के नइ रंग हे------।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


बूंद बूंद बरखा बर, मैंहर ललावौं। 

झटकुन आजा, दिन रात बलावौं। 

नइ गिरबे जब पानी,,,,,

कइसे होही किसानी,,,,

मोर सपना बरत बंग बंग हे----।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 34

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Date: 2020-08-04

Subject: 


परम् पूज्य गुरुदेव ल अवतरण दिवस के बहुत बहुत बधाई अउ सादर पयलगी


कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बेरा मा मैं मोर के, कहिके तैं अउ तोर।

भाँखा के सम्मान बर, चले सबे ला जोर।

चले सबे ला जोर, गुरू जी अरुण निगम हा।

भरत हवय तब रोज, छंद के गागर कम हा।।

छंद के छ हा ताय, छंद सीखे के डेरा।

जुरमिल महिनत होय, मोर मैं के ये बेरा।


जुरियाये छोटे बड़े, गुरू शिष्य कहिलाय।

छंद के छ के क्लास हा, छंदकार सिरजाय।

छंदकार सिरजाय, राज भर मा कतको झन।

सीखे रोज सिखाय, लगाके सबझन तनमन।

गुरू निगम के सोंच, आज बढ़ चढ़ के धाये।

साहित पोठ बनायँ, सबे साधक जुरियाये।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 33

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Date: 2020-08-03

Subject: 


9,छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 


212 212 212 212  


दुःख अउ सुख मा जिनगी पहाही इहाँ।

कोई जाही ता कोई हा आही इहाँ।1


धन मया के उपर आज भारी हवै।

धन सकेलत सबे सिर मुड़ाही इहाँ।2


कोई हिटलर हवै कोई औरंगजेब।

फेर इतिहास हा दोहराही इहाँ।3


राज हे लाज ला बेच देहे तिंखर।

जौन लड़ही झगड़ही ते खाही इहाँ।4


जेन पर के भरोसा भरे पेट ला।

वो मनुष काय नामा जगाही इहाँ।5


काटही बेर गिनगिन मनुष मोठ मन।

हाड़ा कस मनखे मन नित कमाही इहाँ।6


घाम करथे जबर बरसा बरसे अबड़।

आ जही का भयंकर तबाही इहाँ।7


चोर के धन चुरा चोर हा लेजही।

राज ला बाँट खाही सिपाही इहाँ।8


खा पी सुरसा घलो तो कलेचुप हवै।

का मनुष धन रतन धर अघाही इहाँ।9


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 32

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Date: 2020-08-03

Subject: 


भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)



माई खोली म माढ़े हे,भोजली दाई बाढ़े हे


ठिहा ठउर मगन हे,बने पाग नेत हे।


जस सेवा चलत हे, पवन म हलत हे,


खुशी छाये सबो तीर,नाँचे घर खेत हे।


सावन अँजोरी पाख,आये दिन हवै खास,


चढ़े भोजली म धजा,लाली कारी सेत हे।


खेती अउ किसानी बर,बने घाम पानी बर


भोजली मनाये मिल,आशीश माँ देत हे।



अन्न धन भरे दाई,दुख पीरा हरे दाई,


भोजली के मान गौन,होवै गाँव गाँव मा।


दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,


धुँवा उड़े धूप के जी ,भोजली के ठाँव मा।


मुचमुच मुसकाये,टुकनी म शोभा पाये,


गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।


राखी के बिहान दिन,भोजली सरोये मिल,


बदे मीत मितानी ग,भोजली के नाँव मा।



भोजली दाई ह बढ़ै,लहर लहर करै,


जुरै सब बहिनी हे,सावन के मास मा।


रेशम के डोरी धर,अक्षत ग रोली धर,


बहिनी ह आये हवै,भइया के पास मा।


फुगड़ी खेलत हवै,झूलना झूलत हवै,


बाँहि डार नाचत हे,मया के गियास मा।


दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,


सावन अँजोरी उड़ै,मया ह अगास मा।



राखी के पिंयार म जी,भोजली तिहार म जी,


नाचत हे खेती बाड़ी,नाचत हे धान जी।


भुइँया के जागे भाग,भोजली के भाये राग,


सबो खूँट खुशी छाये,टरै दुख बान जी।


राखी छठ तीजा पोरा,सुख के हरे जी जोरा,


हमर गुमान हरे,बेटी माई मान जी।


मया भाई बहिनी के,नोहे कोनो कहिनी के,


कान खोंच भोजली ला,बनाले ले मितान जी



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को(कोरबा)




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# 31

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Date: 2020-08-02

Subject: 


श्री राम भजन-सार छंद


मन मन्दिर मा राम नाम के, मूरत तैं बइठाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


राम नाम के माला जपके, शबरी दाई तरगे।

राम सिया के चरण पखारे, केंवट के दुख झरगे।

बन बजरंगबली कस सेवक, जघा चरण मा पाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।।


राम नाम के जाप करे के, सुख समृद्धि सत आथे।

लोहा हा सोना हो जाथे, जहर अमृत बन जाथे।

जिहाँ राम हे तिहाँ कभू भी, दुख नइ डेरा डाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


एती ओती चारो कोती, प्रभु श्री राम समाये।

सुर नर मुनि खग गुनी गियानी, जड़ गुण गुण गाये।

ये मवका नइ मील दुबारा, जीवन सफल बनाले।

भव सागर ले सहज तरे बर, राम नाम गुण गाले।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छत्तीसगढ़)




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# 30

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Date: 2020-08-01

Subject: 


8,छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 


212 212 212 212  


मोह मद मा फँसे आदमी मन इहाँ।

फोकटे के हँसे आदमी मन इहाँ।।1


साँप कस धर जहर घूमथे सब डहर।

शांति सुख ला डँसे आदमी मन इहाँ।2


ढोर बन मिल जथे चोर बन मिल जथे।

माथ चंदन घँसे आदमी मन इहाँ।।3


तोर अउ मोर मा धन रतन जोर मा।

डोर धर गर कँसे आदमी मन इहाँ।4


छोड़ के गाँव ला अउ मया छाँव ला।

हे शहर मा धँसे आदमी मन इहाँ।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 29

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Date: 2020-08-01

Subject: 


7,छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 


212 212 212 212  


तोर अउ मोर मा हे घिरे आदमी।

नित लड़त हे कसोरा भिरे आदमी।1


थल ल दाबत हवे जल ल सोंखत हवे।

अउ अगासे ल जिद मा तिरे आदमी।2


भूख सुख बर भुलाके धरम अउ करम।

भेड़िया बनके भटकत फिरे आदमी।3


एक छिन मा बढ़े एक छिन मा अड़े।

एक छिन स्वार्थी बनके गिरे आदमी।4


बोल मा भर जहर धर गलत सँग डहर।

मीत ममता मया ला चिरे आदमी।5


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 28

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Date: 2020-08-01

Subject: 


6,छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 


212 212 212 212  


बात नइ माने जे लात खाये बिना।

छोड़बे कइसे वोला ठठाये बिना।1


हाथ देबे ता धरथे गला ला सबे।

पाल लइका घलो सिर चढ़ाये बिना।2


बन बुरा बर बुरा अउ बने बर बने।

काम कर ले सदा मटमटाये बिना।3


खात कौरा नँगाही कुटाही जबर।

पेट भरगे कहन नइ अघाये बिना।4


छाय हावय सबे तीर लत लोभ मद।

साफ करबोन सबला सनाये बिना।5


पाँख रहिके पँखेड़ू  धरा खोजथे।

देख मानुष जिये नइ उड़ाये बिना।6


बात करथे हवा संग गाड़ी धरे।

चेत चढ़थे कहाँ ले झपाये बिना।7


टोर जांगर घलो एक लाँघन पड़े।

एक खाये पछीना गिराये बिना।8


दूध माड़े रथे ता दही बन जथे।

लेवना का निकलथे मथाये बिना।9


साज अउ बाज बिरथा बिना साधना।

धार हँसिया रहे नइ पजाये बिना।10


सामने आय नइ सच सहज मा कभू।

पेड़ ले फल गिरे नइ हलाये बिना।11


काम ला देख के जे नयन मूंद दै।

खाय बर जाग जाथे जगाये बिना।12


बिन मया आदमी आदमी काय ए।

घर कहाये नही छत छवाये बिना।13


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा




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# 27

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Date: 2020-08-01

Subject: 


5,छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 


212 212 212 212  


तैं बुरा अउ भला सबला जानत हवस।

फेर नइ बात कखरो रे मानत हवस।1


आन बर बड़ मया पलपलावत हवै।

देख दाई ददा तोप तानत हवस।।2


जाग गे सोय हा, आत हे खोय हा।

तैं डहर धर गलत खाक झानत हवस।3


मोल जानेस नइ तैं समय के कभू।

आग लगगे कुँवा तब रे खानत हवस।4


का करत हस करम तैं अपन देख ले।

सत मया मीत अउ रीत चानत हवस।5


बह जथे धार हा पथ बनाके खुदे।

रोक के धार नदियाँ उफानत हवस।6


आय हे जातरी खुद चपक झन नरी।

तैं दवा कहिके दारू ला लानत हवस।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा (छत्तीसगढ़)




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# 26

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Date: 2020-07-31

Subject: 


😥😥बइरी  पइरी(गीत)😥😥


कइसे बजथस रे पइरी बता।

मोर  पिया  के,मोर पिया के,

अब  नइ मिले  पता......।।


पहिली सुन,छुनछुन तोर,

दँउड़त    आय     पिया।

अब   वोला    देखे   बर,

तरसत  हे  हाय   जिया।

ओतकेच   घुँघरू  हे,

ओतकेच के साज हे।

फेर काबर बइरी तोर,

बदले    आवाज   हे।

फरिहर  मोर मया ल,

झन तैं मता..........।।


का करहूँ राख अब,

पाँव    मा    तोला।

धनी मोर नइ दिखे,

संसो   होगे  मोला।

पहिरे पहिरे तोला,

अब पाँव लगे भारी।

पिया के बिन कते,

सिंगार  करे  नारी।

धनी  के   रहत  ले,

तोर मोर हे नता..।।


देख नइ  सकेस,

मोर सुख पइरी।

बँधे बँधे पाँव म,

होगेस तैं बइरी।

पिया  के  मन  ला,

काबर नइ भावस।

मया  के गीत अब,

काबर नइ गावस।

मैं बड़ दुखयारी,

मोला झन सता--।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)




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# 25

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Date: 2020-07-29

Subject: 


दुमिल सवैया-मजदूर


मजदूर रथे मजबूर तभो दुख दर्द जिया के उभारय ना।

पर के अँगना उजियार करे खुद के घर दीपक बारय ना।

चटनी अउ नून म भूख मितावय जाँगर के जर झारय ना।

सिधवा कमिया तनिया तनिया नित काम करे छिन हारय ना।

जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

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जलहरण घानाक्षरी-एकता


ईद के नमाज पढ़, देवारी के बाती बर।

नानक के ज्ञान धर, क्रिसमस मा सम्हर।।

मनखे के मान रख, गुतुर जुबान रख।

भेदभाव दूर फेंक, गला मिल खाँध धर।।

तोर मोर जात पात, भाँखा बोली उतपात।

अलहन लेके आये, जले अपनेच घर।।

हिंद वासी सब एक, देव ईश रब एक।

इरखा दुवेश छोड़, मन मा जी मया भर।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 24

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Date: 2020-07-29

Subject: 


बरवै छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" 


आ रे बादर(गीत)


धान पान रुख राई, सबे सुखाय।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।


अगिन बरत हे भुइयाँ, हरगे चेत।

बूंद बूंद बर बिलखै, डोली खेत।

मरे मोर कस मछरी, मेंढक मोर।

सबके सुख चोराये, बादर चोर।

सुध बुध अब सब खोगे, मन अकुलाय।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।।


निकल जही अइसन मा, मोरे जान।

जादा तैं तड़पा झन, हे भगवान।।

जल्दी आजा जल धर, बादर देव।

खेत किसानी के तैं, आवस नेव।।

भुइयाँ छाँड़य दर्रा, ताल अँटाय।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।।


बेटी के बिहाव अउ, बेटा जान।

तोर तीर हे अटके, गउ ईमान।।

देखत रहिथौं तोला, बस दिन रात।

जिनगी मोर बचा दे, आ लघिनात।

बाँचे खोंचे भुइयाँ, झन बेंचाय।।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।।


जाँगर टोर सकत हौं, तन जल ढार।

फेर तोर बिन हरदम, होथे हार।

रावण राज लगत हे, सावन मास।

दावन मा बेचाये, खुसी उजास।।

गड़े जिया मा काँटा, धीर खराय।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।।


भाग भोंग के मोरे, झन तैं भाग।

करजा बोड़ी बढ़ही, झन दे दाग।

मैं हर साल कलपथौं, छाती पीट।

तैं चुप देखत रहिथस, बनके ढीट। 

बस बरखा बरसा दे, ले झन हाय।

ना पानी ना काँजी, सावन काय।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 23

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Date: 2020-07-28

Subject: 


4,छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 


212 212 212 212  


का सही हे बता का गलत आज हे।

पात मिटकाय हे जड़ हलत आज हे।1


काखरो घर किसन अब कहाँ अवतरै।

कंस गाँवे गली मा पलत आज हे।।2


दुःख भोगत हवै रोज दाई ददा।

काय बेटा बियाये खलत आज हे।3


झूठ के बोलबाला सबे तीर मा।

हार थक सँच हथेली मलत आज हे।4


कोट के काम का मैं बतावौं कका।

उम्र भर देख पेशी चलत आज हे।5


धान बाढ़े नही ज्ञान बाढ़े नही।

बेत मा फूल अउ फल फलत आज हे।6


दुःख के रात कारी हा कइसे छँटै।

बिन उगे सुख सुरुज हा ढलत आज हे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 22

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Date: 2020-07-28

Subject: 


सुरता मइके के-गीत


सावन काँटेंव मैं गिनगिन, सुरता मा दाई वो।

कि आही तीजा लेय बर, भादो मा भाई वो।।


मइके के सुरता , नजरे नजर झुलथे।

देखतेंव दसमत पेड़ ल, के फूल फुलथे।

मोर थारी अउ लोटा म, कोन बासी खाथे।

तुलसी चौरा म बिहना, पानी कोन चढ़ाते।

हे का चकचक ले उज्जर, कढ़ाई दाई वो--

आही तीजा------


गाय गरुवा मोर बिन सुर्हरथे कि नही।

खेकसी कुंदरू बारी म फरथे कि नही।

कुँवा म पानी कतका भरे हवे।

का मोला अगोरत,पड़ोसिन खड़े हवे।

मोर कुरिया म कोन करथे पढाई दाई वो---

आही तीजा------


दुरिहा दिये दाई तैंहर अपन कोरा ले।

मइके लाही कहिके,मोला तीजा पोरा में।

जल्दी भेज न दाई बाट जोहत हँव वो।

मइके के सुरता म मैहा रोवत हँव वो।

एकेदरी थोरे सुरता भुलाही दाई वो---

आही तीजा---


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा




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# 21

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Date: 2020-07-27

Subject: 


सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तुलसी तोर रमायण(गीत)


जग बर अमरित पानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


शब्द शब्द मा राम रमे हे, शब्द शब्द मा सीता।

गूढ़ ग्यान गुण गोठ गँजाये, चिटिको नइहे रीता।

सत सुख शांति कहानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सब दिन बरसे कृपा राम के, दरद दुःख डर भागे।

राम नाम के महिमा भारी, भाग भगत के जागे।।

धर्म ध्वजा धन धानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।


सहज तारथे भवसागर ले, ये डोंगा कलजुग के।

दूर भगाथे अँधियारी ला, सुरुज सहीं नित उगके।

बेघर के छत छानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।


प्रश्न घलो कमती पड़ जाही, उत्तर अतिक भरे हे।

अधम अनाड़ी गुणी गियानी, सबके दुःख हरे हे।

मीठ कलिंदर चानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


तुलसी दास जयंती की बहुत बहुत बधाई




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# 20

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Date: 2020-07-27

Subject: 


3,छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 


212 212 212 212  


मोर जिनगी मा आबे अपन जान के।

मोला मितवा बनाबे अपन जान के।1


मोल मोरे गिराही जमाना कहूँ।

सोन कस तैं नपाबे अपन जान के।2


मोर दिल मा मया पलपलावत रही।

हाथ तैंहा बढ़ाबे अपन जान के।3


मान जाबे मया के सबे बात ला।

जादा झन तैं सताबे अपन जान के।4


मैं पतंगा अँजोरी सदा खोजथौं।

दीप बन जगमगाबे अपन जान के।5


असकटावत रबे तैं अकेल्ला कहूँ।

नाम लेके बलाबे अपन जान के।6


धन रतन देश दुनिया हवै फालतू।

जग मया के घुमाबे अपन जान के।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 19

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Date: 2020-07-26

Subject: 


2,छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 


212 212 212 212  


का गलत का सहीं हे बता बात मा।

रोष जादा कभू झन जता लात मा।1


हाड़ अउ मांस के तन मा काके गरब।

काँपथे जाड़ मा जर जथे तात मा।।2


साग भाजी हवा अउ दवा दै उही।

जान हे जान ले पेड़ अउ पात मा।3


आदमी अस ता रह आदमी बीच में ।

बाढ़थे मीत ममता मुलाकात मा।।4


छोड़ लड़ना झगड़ना अरझ के मनुष।

तोर मैं मोर धन अउ धरम जात मा।5


भाँप के बेर ला लउठी धरके निकल।

नइ भगाये कुकुर कौवा हुत हात मा।6


हाँ बँटत दिख जथे धन रतन हा कभू।

नइ मिले अब मया मीत खैरात मा।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा (छग)




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# 18

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Date: 2020-07-26

Subject: 


किरीट सवैया


सावन मास म पावन मास म, बादर हा जल ढारत हे।

गावय दादुर झींगुर हा,मयुरा घन देख पुकारत हे।

काम बुता गढ़गे बढ़गे, मन आस उमंग ल गारत हे।

ताल अघावय जीव हितावय बादर दुःख के हारत हे।


खैरझिटिया


बड़े अउ छोट म भेद करे तउने घर के न सियान सुहाय।

बँधे रणबाँकुर के कनिहा तलवार बिना न मियान सुहाय।

भले सचमें सच बात कहे नइ तो लबरा के बियान सुहाय।

फरे रुखवा कस जेन नँवे नइ तेन करा न गियान सुहाय।


उना गुण ग्यान रथे जतके ततके अउ रोब जताय उही ह।

धरे इरखा अउ द्वेष रथे मत मीत मया ल मताय उही ह।

सनाय रथे जेन स्वारथ मा सच मा सबला ग सताय उही ह।

धराय रथे धन धान सही नइ आवय काम भताय उही ह।


पारा परोसी म खोजे ग ओखी मताये लड़ाई मरोड़े कलाई।

आँखी दिखाये खुशी ला नँगाये चुरा आन कौंरा ग खाये मलाई।

माया सँकेले मया मीत ठेले बढ़ाये बदी बैर धोखा छलाई।

स्वार्थी बने देख हावै तने आदमी आज के भूल गेहे भलाई।




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# 17

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Date: 2020-07-26

Subject: 


लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


तीजा पोरा


मुचुर मुचुर मन मुसकावत हे, देख करत तोला जोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


कभू अकेल्ला कहाँ रहे हँव, तोर बिना मैं महतारी।

जावन नइ दँव मैंहर तोला, देवत रह कतको गारी।

बेटी बर हे सरग बरोबर, दाई के पावन कोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


अपन पीठ मा ममा चघाके, मोला ननिहाल घुमाही।

भाई बहिनी संग खेलहूँ, मोसी मन सब झन आही।

मया ममादाऊ के पाहूँ, खाहूँ खाजी अउ होरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


कइसे रथे उपास तीज के, नियम धियम होथे कइसन।

सीखे पढ़े महूँ ला लगही, नारी मैं तोरे जइसन।

गिनगिन सावन मास काटहूँ, भादो के करत अगोरा।

महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 16

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Date: 2020-07-25

Subject: 


1,छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 

फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 


212 212 212 212  


ठंडा कोती झपा झन गरम छोड़के।

जरहा रोटी नपा झन नरम छोड़के।1


धन गलत काम के नइ फलै अउ फुलै।

दुःख पाबे सदा सत करम छोड़के।2


बैर बाँधे जमाना डराये कहूँ।

लोहा ले सादगी डर शरम छोड़के।3


फोकटे ताकना काखरो मुँह ला का।

भाग के भाग भरले भरम छोड़के।4


जिंदगी पिंजरा के सुहाथे कहाँ।

भाग जा क़ैदखाना हरम छोड़के।5


आदमी बनके जी बन न रक्शा सहीं।

मांस मदिरा गटक झन धरम छोड़के।6


कल घलो पुर सके करले अइसन उदिम।

जल कटोरी मा भर झन डरम छोड़के।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 15

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Date: 2020-07-25

Subject: 


नाँग साँप (कहानी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                कथे न, राम राम के बेरा हाँव हाँव अउ खाँव खाँव, अइसने होइस घलो जब पहातिच बेरा शहर के एक ठन मुहल्ला म, किसन के  घर साँप दिखगे। कोनो दतवन चाबत, त कोनो लोटा धरे, त कोनो मन बिन मुँह - कान धोय घलो वो मेर पहुँच के किलबिल किलबिल करत रहय। पड़ोस के लइका  मनोज जेन दाई ददा के बिना लात घुसा खाय घलो नइ जागे तेखरो आँखी भिनसरहा ले उघर गे रहय, फेर अलाली  के मारे  कुछ देर  खटियच म पड़े पड़े गोहार ल  सुनिस, अउ आखिर म आँखी रमजत वो मेर हबरगे। जिहाँ देखथे कि बनेच मनखे सकलाय हे, अउ अपन अपन ले सबे चिल्लात हे। कोनो काहत हे- ओदे संगसा म खुसरे हे। कोनो काहत हे- रँधनी खोली कोती गेहे। कोनो काहत हे, दोनो हाथ ल फैलाबे तभो वो साँप ले छोटे पड़ जही। कोनो काहत हे- बड़ मोठ लामी लामा धनमा ये। कोनो कहे- करायेत हरे, त कोनो कहे- बिखहर डोमी आय। कोनो कहै नाँग साँप आय। मनोज के ददा घलो भीड़ म कहिथे, अरे नांग अउ डोमी एके आय।

उही भीड़ के सँग चिल्लावत, मनोज घलो कथे- बाकी साँप के तो पता नही फेर जब तक वो साँप फेन नइ काटही, नांग नइ हो सके। एक ठन साँप के आरो पाके कतको झन मनखे रूपी साँप मन बड़बड़ावत हे। एती किसन के मुँह घलो नइ उलत हे, लइका लोग सुद्धा, घर के बाहर थोथना ओरमाये खड़े हे। अउ करे त का, जेखर गला मा घाँटी ओरमथे, उही ओखर दुख ल जानथे, बाकी मन तो बस लफर लफर लुथे। सबे चिल्लावत हे ,फेर कोनो भगाये बर उदिम नइ करत हे। ले दे के एकझन सज्जन साँप पकड़इय्या ल धर के लाइस। पकड़इया ह बड़ महिनत करे के बाद साँप ल घर ले बाहिर निकालिस। साँप ह जुरियाय जम्मो मनखे मन ला देख के, फेन काट के तनियाय खड़े हो जथे। लोगन मन देख फेर फुसफुसात हे देखे जुन्नेट डोमी आय। ये भारी बिखहर होथे, एक घाँव चाबिस, मतलब राम नाम सत। येती मनोज अटियात  कहत हे, देखे में केहे रेहेंव, ते सहीं होइस न,फेन काटही कहिके, अब जान जाव नाँग सांप ए, जेना पूजा पाठ करना हे, दूध पियाना हे  तेमन देख लव, काबर कि ये देवता साँप होथे। एक झन चुप करात चिचियावत कहिथे,ते चुप रे,आज के लइका का जानबे, का का साँप होथे तेला, भगवान शंकर के फोटू ल भर देखे हस, अउ ये मेर डिंग हाँकत हस, कभू बाप पुरखा नाँग देखे रेहेस।  येती किसन के पोटा साँप ल देख के काँपत रहय। किसन कहिथे, येला कोई मार देवव, आज मोर घर म खुसरिस, काली तुँहर घर घूँस जही। आघू म खड़े एक झन मनखे कहिथे- बात तो बने काहत हस किसन,  फेर मोर डहर अँगरी काबर देखात हस, मोर घर काबर खुसरही।  वो मेर खड़े अउ मन फुसफुसावत कहिथे, काबर की तोर घर जादा धन दौलत हे। ततकी बेरा मनोज बात ल काटत कहिथे, इती के बात ल छोड़व। कइसे ग कका किसन, तैं जीव हत्या के बात करइया निरदई आदमी कइसे हो सकथस? बात वो किसन के अलग हे जउन नाँग नाथे रिहिस, फेर तँय तो निच्चट डरपोक आवस। हाँ नाँग देवता,तोर घर आय हे, बढ़िया पूजा पाठ कर, धन रतन बाढ़ही। ये मजाक के बेरा नइहे, किसन बिलखत कथे- अब तुही मन बतावव ददा, मोर घर  ले ये बला टरही।  ओतकी बेर साँप पकड़इय्या वो साँप ल चुंगड़ी म भरके, मनोज ल कहिथे, चल येला कहूँ मेर छोड़ के आबों। मनोज छाती ठोंकत कहिथे ,अइसन काम बर तो मैं बने हँव। अउ साँप घलो तो जीव आय, मारना पीटना बने बात नोहय। चल ये साँप ल खाली जघा म छोड़ आबों। तीर म ओखर ददा घलो रहय। वो मनोज ल कहिस -हव ",काम के न कौड़ी के, दँउरी के बजरंगा" अउ कामे का कर सकत हस, जा साँप पकड़े बर घलो सीख लेबे।  दुनो झन साँप ल चुंगड़ी म धरके निकल गे। इती किसन ला हाय जी लगिस। लोगन मन घलो छँटियाय लगिस।

                   साँप पकड़य्या के पाछू पाछू मनोज रेंगत कहिथे, अउ कतिक दुरिहा जाबों, ऐदे मेर छोड़ देथन। बेरा उग के चढ़त रहय, मनखे के चहल पहल बढ़ गे रहय। साँप ल छोड़े बर जइसे चुंगड़ी ल खोलेल धरथे, नजदीक के घर वाले करलावत निकलथे, हव छोड़ दव इही मेर, ताहन मोर घर खुसर जाय। चलो भागो ए कर ले।  दुनो फेर सड़क नापथे, सबो जघा मनखे मन देखे के बाद दुनो ल गरिया देवव। दुनो थक हार गे। आखिर में साँप पकड़य्या कहिथे, मोर ले गुनाह होगे जी मनोज, जे सांप ल पकड़ेव। फेर ये मोर बर थोरे हरे, भलाई के जमाना नइहे, मोरे मरना होगे।

दुनो लहुट के किसन घर कर आगे। किसन पुचपुचावत कहथे-बने करे दाऊ, तोर बिना मैं तो संसो म पड़ गे रेहेंव। ले चाय पीके जाबे। किसन के बात ल सुनके, मनोज कहिथे- का बने कका, साँप तो चुंगड़ी म हे। कोनो मन अपन तीर तखार म ढीलन नइ दिन। मुँह उठाके फेर आगेन। अब तोर नाँग ल तिहीं पूज, हमन चली। अरे अरे अइसे कइसे हो सकत हे, ये गलत ए, अउ ये कोनो मोर पोसवा थोरे आय, एखर मैं काय करहूँ, किसन बिलखत हे। मनोज का, सबे झन अपन अपन घर म खुसरगे।  किसन के मूड़ म  फेर पहाड़ टूट गे, ओखर दशा अगास ले गिरे अउ खजूर म अटके कस होगे। साँप धराय चुंगड़ी के दुरिहा म बैठे लइका लोग सुद्धा फेर रोय लगिस।

             अचानक मँझानिया, मनोज के ददा कल्हरत भागत चिल्लाथे, साँप साँप साँप। अरे भागो भागो, किसन घर के  डडडडडडडडडोमी नाँग हमर घर खुसर गेहे। मनोज घलो गिरत हपटत भागथे। अउ किसन तीर  जाके ओला खिसियाथे, जेन चुंगड़ी के आघू अपन भाग ऊपर रोवत राहय। मनोज के ददा झाँक के देखथे, चुंगड़ी भोंगरा रहय, ओखर मुहड़ा थोरिक खुल गे रहय। मनोज सोचथे, साँप पकड़इय्या लगथे, ढीले के बेरा बने से नइ बाँधे रिहिस। फेर अब साँप तो मनोज घर खुसर गेहे। किसन जान के खुश तो नइ होइस, तभो अइसे लगिस जइसे ओखर करेजा म लदे पथना, हट गे। लइका लोग सुद्धा खैर मनाइस। अउ मुंह बजावत कइथे, कइसे बाबू मनोज, अब कइसे लगत हे, जा तिहीं पूजा कर नाँग देवता के , सावन घलो चलत हे, नागपंचमी घलो अवइया हे। मनोज के ददा दाँत कटर के रिहिगे, देखते देखत मनखे मन फेर जुरियागे, हो हल्ला मात गे। कोनो काहत हे अइसन म बात नइ बने, पुलिस म खबर देना चाही। कोनो कहय पुलिस का करही, वन विभाग के अधिकारी मन  ल बतावव, उही मन ले जही। फेर वोमन फोकट म बिन पइसा कौड़ी के थोरे आही। अउ वन विभाग वन कोती रइथे, शहर नगर म कहाँ के। मनोज के ददा किसन ल देखत कहिथे, चल दुनो मिलके वन विभाग ल बलाबों।  किसन मुँह अँइठत घर म खुसर गे।  अचानक साँप मनोज के घर म एक डाहर ले दूसर डाहर जावत दिखथे, भीड़ फुसफुसाए लग जथे,  किसन के बला, मनोज घर  सपड़ गेहे, लगथे किसन बने आदमी नोहे, नाना जाति के गोठ उभरे बर धर लेथे। फेर जेन संसो कुछ देर पहली किसन के रिहिस, वो अब मनोज अउ ओखर घरवाले ल सतावत हे। अब तो साँप धरइय्या घलो नइ आँव काहत हे, उहू अपन दुख दर्द बतावत हे कि मैं पकड़ के अचार थोड़े डालहू ,ये शहर म दूर दूर तक  न परिया हे न खाली जघा, मैं काल काबर मोल लेवँव। मनोज के पड़ोसी मन ल घलो संसो सताये बर लग गिस, कही ये साँप हमर घर म आ जही तब। अब सबे केहेल धर लिस, साँप ल दूध पियाबे त चाब्बे करही, ओला पाले के बजाय मार देना चाही। मनोज के ददा अउ वो मुहल्ला के दू सियान लउठी धरके, साँप कोती बढ़थे। साँप डर के मारे एती वोती भागेल धर लेथे। लउठी पड़इय्यच रहिथे, मनोज तीर में जाके हाथ ल धर लेथे। अउ कहिथे- मोर बात वन विभाग के अधिकारी मनले होगे हे, झन मारव। ये साँप बिचारा आखिर रहे त कहाँ रहे, जम्मे कोती हमन अपन ठिहा ठौर बना डरे हन, न कोनो मेर रीता भुइयाँ हे, न परिया। यहू मन तो ये धरती के प्राणी आय, अगास या पताल के थोरे, फेर हम मानव मन स्वार्थ अउ आधुनिकता के चकाचौंध म जम्मे कोती क्रंकीट अउ सीमेंट बिछा डरे हन, सांप बिच्छू मन चकचक ले  दिख जावत हे, उँखर बर बिला भरका घलो नइ  बचायेन , रुख राई के तो बातेच ल छोड़ दव। न बारी बखरी हे, न कोठा ,न कोला आखिर साँप बिच्छु कस विवश प्राणी मन रहे त कहाँ रहे? अउ कहूँ दिख जाथे, त साँप ले जादा खतरनाक हम मानव मन वोला मार डरथन। शहर नगर सिर्फ मनखे मन बर होगे हे, गाय,गरवा  मन घलो  सड़क म बैठे रहिथे। हमर करनी के फल हमन असमय गर्मी, बरसा, आंधी तूफान ल तो भुगतते हन, फेर ये निरीह प्राणी मन बिन जबरन काल के मुख म समा जावत हे। हमला उँखरो बारे म सोचना चाही।  वो मेर खड़े जम्मो झन मनखे मन मनोज के बात ल सुनके कलेचुप मुँह लुकावत छँटेल धरलिस। कुछ देर बात वन्य जीव संरक्षण विभाग वाले कर्मचारी मन आगे, अउ साँप ल लेगत बेरा, मनोज ल बूता जोंगत कहिथे- सिरिफ साँप का, कोनो भी जीव  यदि कभू भी अइसने ये मुहल्ला या आसपास भटकत दिखही त आज ले तैं हमन ल खभर देबे। तोला हमन ट्रेनिंग घलो देबों, ताकि साँप बिच्छू अउ आने जानवर ल तैं पकड़ सकस। गारी गल्ला खावत, ठलहा पड़े, मनोज ल काम मिल जथे अउ  मुहल्ला वाले संग अपन ददा के घलो डाडला बन जथे। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 14

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Date: 2020-07-24

Subject: 


4,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222


बिना पाना बिना डारा, फरौं कइसे बता दे तैं।

नयन मुँह बाँध के चारा, चरौं कइसे बता दे तैं।1


खुसी के नीर हा निथरे, करम गागर हवै फुटहा।

अपन जिनगी मा सुख ला मैं, भरौं कइसे बता दे तैं।2


भगाये बर अँधेरा जोत जइसे, चाहथों बरना।

भला बिन तेल बाती के, बरौं कइसे बता दे तैं।3


छली छलिया कथे कोनो, कथे कोनो निचट बइहा।

मयारू तोर मनके मैं, हरौं कइसे बता दे तैं।4


नँगाये सुख कहाँ मिलथे, करम बिन भाग का खिलथे।

मुठा भर बाँध के रेती, धरौं कइसे बता दे तैं।5


खुदे के भार नइ सम्हले, झकोरा मा हले तन हा।

बने बर नेंव के पथरा, करौं कइसे बता दे तैं।6


छुटे नइ मोह हा तनके, रथे चिपके गजब जमके।

नवा पाना उगाये बर, झरौं कइसे बता दे तैं।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 13

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Date: 2020-07-23

Subject: 


3,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222


नफा खोजत उड़य नित बाज, देखे मा फरक हे जी।

मरे नइ लाजवंती लाज, देखे मा फरक हे जी।।1


मरे मनखे ला दफनाये, उहाँ कौने घुमे जाये।

हरे मुमताज के मठ ताज, देखे मा फरक हे जी।2


हवै दाई ददा लाँघन, लुटाये पूत पर बर धन।

करे माँ बाप कइसे नाज, देखे मा फरक हे जी।3


उहू बोलय विपत हरहूँ, यहू कहिथे खुशी भरहूँ।

सबे नेता हे एके आज, देखे मा फरक हे जी।4


बढ़े अउ ना घटे धन, कर खुजाये जेवनी डेरी।

दुनो मा होय खुजली खाज, देखे मा फरक हे जी।5


करे सबझन अपन मनके, करम बढ़िया कहत तनके।

बने गिनहा दुई हे काज, देखे मा फरक हे जी।6


गुमानी चार के चोचला, टिकथे कहाँ जादा।

ढहे राजा घलो के राज, देखे मा फरक हे जी।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 12

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Date: 2020-07-22

Subject: 


2,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222


चुलुक तैं मंद मउहा के, लगाबे झन कभू भैया।

ये दुनिया हाट माया के, ठगाबे झन कभू भैया।1


रतन धन साथ नइ जावै, मया मोह काम नइ आवै।

बुझत दीया हरे तन, बगबगाबे झन कभू भैया।2


धरा के देवता आये, जगत मा तोला जे लाये।

ठिहा ले बाप माई ला, भगाबे झन कभू भैया।3


भरे बारूद घर भीतर, पड़ोसी ला डराये बर।

अगिन पर घर जलाये बर, दगाबे झन कभू भैया।4


गजब कन रूप नारी के, बहिन बेटी सुवारी माँ।

छुपे काली घलो रहिथे, जगाबे झन कभू भैया।5


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 11

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Date: 2020-07-22

Subject: 


*सुमुखी सवैया*


विधान- सात बार जगण एक ठन लघु अउ  एकठन गुरु

             या

7×121+12


उदाहरण


धरा म खड़े मनखे मन देखव, हाथ लमाय अगास हवै।

करैं मनके धन धान धरे, बल बुद्धि घलो सब नास हवै।

रुतोवय नीर जरा जिवरा, बगरा अँधियार गियास हवै।

कहाँ करथे सतकाम कभू,रुपिया पइसा बस खास हवै।


खैरझिटिया




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# 10

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Date: 2020-07-21

Subject: 


खेल खेल में-संस्मरण


           आजकल पेड़ -पात, साग-भागी, कुकरी-बकरी संग अउ कतको चीज, दवई-दारू अउ सूजी-पानी म डंगडंग ले बाढ़ जावत हे। का मनखे एखर ले अछूता हे? आज प्रकृति के नियम धियम  सब अस्त व्यस्त होगे हे। जे नइ हो सके उहू सम्भव होवत हे। खैर, छोड़व----- काबर कि नवा जमाना म सब जायज हे। जइसे लइकच मन ल देखव जे मन बिन खेलकूद के घलो बड़े हो जावत हे। दू ढाई साल के लइका कहिथन त हमर आघू उंखर लड़कपन,तोतला बानी, शोर- शराबा अउ उंखर खेलकूद सुरता आये बर लग जथे। फेर आज जमाना बड़ रप्तार म भागत हे, नान नान लइका मन आज सियान बरोबर टिफिन धरके गाड़ी चढ़, अपन भार ले जादा कॉपी पुस्तक ल पीठ म लाद, स्कूल जावत हे, अउ उँहा ले थक हार के आय के बाद घर म घलो पढ़त लिखत हे। अउ बाँचे खोंचे बेरा ल बइरी टीवी अउ मोबाइल नँगा लेवत हे। आगी पागी के होस नही उहू मन सबे चीज ल रट डारे हे, ये कोनो गलत नोहे , फेर लइका मनके आज शारीरिक कसरत कम होगे हे। जेन ल हमन अपन लइकई पन म खेल खेल संगी संगवारी बनाके सीखन तेला, आज लइका मन पढ़ अउ  रट के सीखत हे।

              आज के नान नान लइका मन के ये स्थिति ल देख मोला अपन बचपन याद आवत हे। दाई ददा खवा पिया के छोड़ देवय, ताहन  हमन छोटे बड़े सबे मिलके एक ले बढ़के एक खेल खेलन। स्कूल घलो छः बरस गेन, जब डेरी हाथ ले जेवनी कान, अउ जेवनी हाथ ले डेरी कान बराबर छुवाय लगिस तब। छः साल के होवत ले दउड़ दउड़ के गांव गली ,खेत खार म खेलेन । लिखई पढ़ई ल तो स्कूल म सीखेंन, फेर कई ठन जानकारी ल खेले खेल म सीख ले रेहेन। आज के लइका मन पुस्तक ल देख पढ़ के,अपन शरीर के अंग जानथे, या ददा दाई मन बताथे तब जानथे, फेर  मोला सुरता आवत हे एक खेल के जेमा सबे संगवारी मन संग गोल घेरा बनाके घूमन अउ चिल्लावत मजा लेवत काहन- *गोल गोल रानी- इता इता पानी।* पाँव ले चालू होके ये खेल चुन्दी म खतम होय। ये खेल रोजे खेलन, जेखर ले अपन शरीर के जमे अंग ल खेल खेल म जान जावन। आज के लइका मन स्कूल में ताहन दाई ददा के संग घर में घलो रट रट के गिनती सीखथे, फेर हमन अइसन कई ठन खेल अउ गीत ल, एक-दू बेर खेलके अउ गाके, कभू नइ भुलाय तइसन सुरता कर लेवन। लइकापन म बाँटी जीत,बिल्लस,गोटा, चोट-बदा(बाँटी डूबउल), कस कतको खेल, खेलके गिनती के एक, दो, तीन ----- सीखेंन। बाँटी ,बिल्लस, गोटा जइसे  खेल,खेलके  हमर निसाना घलो तेज होय अउ शरीर घलो चंगा रहय।

लुका छुपउल म घलो गिनती दस तक बोलई ले सीख जावन। तिरी पासा, चोर पुलिस जइसे खेल  म घलो गिनती के उपयोग होय।

            रंग के ज्ञान घलो स्कूल जाय के पहली हो गए रिहिस, *इटी पीटी रंग कोन से कलर* वाले खेल खेलके।

सूरज,चन्दा, पानी, पवन  ल घलो खेल म जान डरे रेहेन।

नदी - पहाड़ , खेलके खचका - डिपरा अउ फोटो जितउल म एक जइसे दिखे वाले चीज छाँटे के जानकारी अउ घाम  छाँव म घाम छाँव के जानकारी हो जावत रिहिस। गिल्ला, भौरा , पिट्ठुल, रस्सी कूद, फुगड़ी, खो, कबड्डी,डंडा पिचरंगा,घलो शरीर ल चंगा रखे के साथ साथ दिमाक ल खोले। बड़े संगी मन संग खेल खेल म उंखर जानकारी ल हमू मन ले लेवन। सगा पुताना खेल म ज्ञान अउ मजा के बात भर नही बल्कि जिनगी के जम्मो बूता ल सीखे म मदद मिले। बाजार हाट जाना, समान बेचना लेना, पइसा कौड़ी के हिसाब, नता रिस्ता के जानकारी के संगे संग अउ कतको जीवन उपयोगी जानकारी ये खेल म मिले, जउन आज स्कूलो म नइ मिल पावत हे। गीत कविता सुनई गवई तो रोजेच होय, स्कूल जाय के पहिली कतको गीत कविता याद रहय। बर बिहाव, बाजा बराती, जइसे खेल खेलके  कतको संगी मन संगीत म घलो अपन पकड़ बना लेवत रिहिस। मोला सुरता आवत हे मोर बचपन के संगी उगेश के जउन पहली डब्बा, दुब्बी ल न सिर्फ पिटे बल्कि बढ़िया बजाय, आज वो तबला ढोलक बजाए म उस्ताद हे। ननपन म बबा, डोकरी दाई अउ कका के कहानी सुने बर घलो बराबर टेम देवन। तरिया नरवा म नहा के तँउरे बर घलो सीख जावन। पेड़ चढ़ना, भागना, नाचना, गाना अउ बूता काम म हाथ बँटाना सब खेल खेल म हो जावत रिहिस। 

          आज लइका मन ल बताय बर लगथे कि  कुकुर भूं भूं कहिथे, बिल्ली म्याऊँ कहिथे, चिरई  चिंव कहिथे। फेर हमन तो कुकुर ल एक ढेला मार घलो देवन, अउ ओखर कुँई कुँई अउ भूं भूं ल सुनन  तब जानन। *काँउ मॉउ मेकरा के जाला* ये खेल ले शेर,कुकुर, बिलई, भालू, बेंदरा कस कतको जानवर के आवाज ल जान डरत रेहे। बारी बखरी के खेल(घिनिन मानन बटकी भवड़ा)  ले साग भाजी के नाम  मन घलो सुरता रहय। येमा भागी ,पाला, फल, पेड़ ल बढ़ाय, बचाय, अउ तोड़ें ,बेचे के घलो जानकारी रहय। दिन के नाम घलो आज इतवार है, चूहे को बुखार है, कहिके सातो दिन ल रट डारत रेहेन। तिहार बार, खेती खार, हाट बाजार, सगा सोदर आना जाना, नाच गान, सब खेल के हिस्सा रहय। कतको हाना, पहेली घलो खेल खेल म याद रहय। छोट बड़े संग जुरियाय पारा मुहल्ला के संगी मन संग, कई किसम के खेल खेलन, सबके वर्णन कर पाना मुश्किल हे, सबे खेल कोई न कोई ज्ञान अउ शरीर के कसरत ले जुड़े रहय। पतंग उड़ाना, तुतरु बजाना, कागज संग माटी के कई किसम के चीज बनाना, हमर निर्माण क्रिया ल घलो दर्शाये। आज गाँव घलो शहर बनत जावत हे, कुछ कुछ गाँव ल छोड़ ताहन लगभग सबे गाँव के लइका मन  शहरी बनके ये सब खेल मेल ले दुरिहागे हे। गाँव म आज भी कुछ खेल के कल्पना कर  सकथन, फेर शहर नगर के लइका मन तो किताब कॉपी , मोबाइल टीवी म ब्यस्त हे। आज घलो मोर मन वो दिन ल याद करके उही बेरा म  खींचा जथे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 9

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Date: 2020-07-20

Subject: 


शिव छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


(शिव महिमा)


डमडमी डमक डमक। शूल हा चमक चमक।

शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।



चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।

अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।



बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।

भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।



कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।

स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।



हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।

पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुःख हरे।



भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।

बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।



नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।

लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।



शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।

बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढा।



दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।

सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।



खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।

तोर मोर ला भुला। दय अशीष मुँह उला।



नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।

कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।



काल के कराल के। भूत  बैयताल के।

नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।



शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।

शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।



शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।

शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।



शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।

मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।



शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।

शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।



नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।

शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।



शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।

का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


9981441795




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# 8

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Date: 2020-07-20

Subject: 


कुंडलियाँ


झगरा झंझट झन रहे, झन झनके दुख झांझ।

झरझर झरना कस मया, झरे सुबे अउ सांझ।

झरे सुबे अउ झांझ, मया के झरझर झरना।

मनखे मनखे एक, फेर का लड़ना मरना।

बन बढ़िया इंसान, ज्ञान गुण सत जस बगरा।

नाम कमा सब खूँट, छोड़ के झंझट झगरा।


जीतेंद्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 7

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Date: 2020-07-19

Subject: 


आजा बादर(गीत)


तैं बरसबे के नही बता बादर।

लगथे घुरघुरासी,

आथे बड़ रोवासी,

अब जादा झन तैं,सता बादर-----।


दर्रा  हनत  डोली  हे,धान  मरत हावै।

आके तैं जियादे,मोर आस जरत हावै।

कोठी काठा उन्ना हे,उन्ना हे बोरा बोरी।

घाम  बड़  टँड़ेरत  हे,धान  बरय  होरी।

उमड़ घुमड़ आएस,

अउ धान ला बोआएस,

अब नइ हे तोर पता बादर--------।


देखत देखत तोला,तोर नाँव रटत रहिथों।

आस  धर  तोरे ,खेत  मा खटत  रहिथों।

तोला गिरही कहिके,जिनगी के जुआ खेले हौं।

भर  जा  भले  घर मा,जा खपरा ल उसेले हौं।

तोर मान गौन करथों,

तोर पँवरी रोज परथों,

काबर हस मोर ले खता बादर--------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




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# 6

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Date: 2020-07-19

Subject: 


1,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम

मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन

1222 1222 1222 1222


बिना खाये उदर आगी, बता कइसे बुझाही जी।

विपत नाचत रही सिर मा, भला का नींद आही जी।


लगे सावन घलो बैसाख, आगी कस धरा हे तात।

कटागे रुख गँवागे सुख, मनुष अब जर भुँजाही जी।


बिगाड़े घर घलो ला ये, बिगाड़े पर घलो ला ये।

नसा हा नास के जड़ ए, खुशी धन तन सिराही जी।


ददा दाई ला धुत्कारे, खुशी सुख सत मया बारे।

सुने नइ बात ला बेटा, कहाँ जाके झपाही जी।


गरब मा राख के नौ माह, झेलिस दुख गजब दाई।

निकम्मा पूत हा होवय, ता छाती नइ ठठाही जी।


भलाई के जमाना गय, करे पापी धरम के छय।

बुराई हा जगत मा, एक दिन लाही तबाही जी।


चले चरचा गुमानी के, दबे गुण ज्ञान  ग्यानी के।

धँधाये जेल मा सत ता, बुराई नइ हमाही जी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 5

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Date: 2020-07-18

Subject: 


सरसी छंद(गीत)-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                  चाय


लौंग लायची दूध डार के, बने बना दे चाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


चले चाय हा सरी जगत मा, का बिहना का साम।

छोटे बड़े सबे झन रटथे, चाय चाय नित नाम।

सुस्ती भागे चाय पिये ले, फुर्ती तुरते आय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


साहब बाबू सगा बबा के, चाय बढ़ाये मान।

चाय पुछे के हवै जमाना, चाय लाय मुस्कान।

रथे चाय के कतको आदी, नइ बिन चाय हिताय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


छठ्ठी बरही मँगनी झँगनी, बिना चाय नइ होय।

चले चाय के सँग मा चरचा, मीत मया मन बोय।

घर दुवार का होटल ढाबा, सबके मान बढ़ाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


चाहा पानी बर दे खर्चा, कहै कई घुसखोर।

करे चापलूसी कतको मन, चाहा तीरन लोर।

बिहना साँझ खैरझिटिया हा, चाय चाय चिल्लाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 4

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Date: 2020-07-18

Subject: 


##$सावन महीना(गीत)###


सावन आथे त मन मा,उमंग भर जाथे।

हरियर हरियर सबो तीर,रंग भर जाथे।


बादर  ले  झरथे,रिमझिम  पानी।

खुश होथे जिवरा,हरसथे जिनगानी।

होरा जोंधरी,अंगाकर अउ चीला।

करथे झड़ी त,खाथे  माई  पिला।

खुलकूद लइका मन,मतंग घर जाथे।

सावन आथे त मन मा-------------।


भर जाथे तरिया,नँदिया डबरा डोली।

मन ला लुभाथे,झिंगरा मेचका बोली।

खेती किसानी,अड़बड़ माते रहिथे।

पुरवाही घलो ,मतंग  होके   बहिथे।

हँसी खुसी के जिया मा,तरंग भर जाथे।

सावन आथे त मन मा,---------------।


होथे जी हरेली  ले,मुहतुर तिहार।

सावन पुन्नी आथे,राखी धर प्यार।

आजादी के दिन, तिरंगा फहरथे।

भोले बाबा सबके,पीरा  ल हरथे।

भक्ति म भोला के सरी,अंग भर जाथे।

सावन आथे त मन मा--------------।


चिरई चिरगुन चरथे,भींग भींग चारा।

चलथे  पुरवाही, हलथे  पाना  डारा।

छत्ता  खुमरी  मोरा,माड़े रइथे दुवारी।

सावन महीना के हे,महिमा बड़ भारी।

बस  छाथे मया हर,हर जंग हर जाथे।

सावन आथे त मन मा--------------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)




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# 3

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Date: 2020-07-18

Subject: 


भोले बाबा,,,,,,,,,,



डोल  डोल  के   डारा  पाना ,भोला  के  गुण   गाथे।


गरज गरज के बरस बरस के,सावन जब जब आथे।



सोमवार के दिन सावन मा,फूल पान सब खोजे।


मंदिर  मा  भगतन  जुरियाथे,संझा  बिहना रोजे।



लाली दसमत स्वेत फूड़हर,केसरिया ता कोनो।


दूबी  चाँउर  दूध  छीत  के,हाथ ला जोड़े दोनो।



बम बम भोला गाथे भगतन,धरे खाँध मा काँवर।


नाचत  गावत  मंदिर  जाके,घुमथे आँवर भाँवर।



बेल पान अउ चना दार धर,चल शिव मंदिर जाबों।


माथ  नवाबों  फूल  चढ़ाबों ,मन चाही  फल पाबों।



लोटा  लोटा  दूध  चढ़ाबों ,लोटा  लोटा  पानी।


भोले बाबा हा सँवारही,सबझन के जिनगानी।



साँप  गला  मा  नाँचे  भोला, गाँजा   धतुरा  भाये।


भक्तन बनके हवौं शरण मा,कभू दुक्ख झन आये।



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को(कोरबा)




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# 2

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Date: 2020-07-17

Subject: 


...........दाई दिखथे........

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दाई दिखथे,

ढेंकी के ठक-ठक में।

चुरोना के फट-फट में।

गोबर छेना के थप-थप में।

करछुल के खट-खट में।


दाई दिखथे,

अईरसा के पाग में।

भुंजे-बघारे साग में।

लोरी  के   राग   में।

लोग लइका के भाग में।


दाई दिखथे,

गघरी-गुंडी के पानी में।

गुंगवात खपरा छानी में।

बरनी के आमा चानी में।

लइका के तोतवा बानी में।


दाई दिखथे,

चांड़ी-टिपली डुवा में।

घाट-घठौदा कुंवा में।

गौरा भड़ोनी सुवा में।

लइका-लोग के दुवा में।


दाई दिखथे,

तुलसी चंवरा के दिया में।

दुख-पीरा भरे जिया में।

सुखाय छानी के बरी में।

गंजाय कथरी के घरी में।


दाई दिखथे,

लीपे-पोते घर-दुवार में।

बासी माड़े मेड़-पार में।

साग-भाजी नार-बियार में।

बेटा-बेटी के संस्कार में।

       जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

           बाल्को(कोरबा)




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# 1

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Date: 2020-07-16

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*


*फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा*


*212  212  212  2*


तोर ले तो गजब आस हावै।

मोर मन तोर रे पास हावै।1


छाये प्लास्टिक जमाना मा अइसन।

लोटा थारी न गिल्लास हावै।2


रोज मातम मनावँव इहाँ मैं।

देख माते  उहाँ रास हावै।3


हात कहिके कुकुर ला भगायेन।

देख सबके उही खास हावै।4


भाये मुर्दा घलो नाक ला आज।

हिरदे धड़के तिहाँ बास हावै।5


हार जाहूँ कहे दौड़ घोड़ा।

खर धरे आस अउ घास हावै।6


साधु सपना सजाये सँवारे।

बस दिखावा के सन्यास हावै।7


राज के होय उद्धार कइसे।

राम के रोज बनवास हावै।8


जे उजाड़े सदा बन बगीचा।

ओखरे घर अमलतास हावै।9


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 229

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Date: 2020-07-04

Subject: 


कुंडलियाँ छंद -दरुहा बरसात मा


ओधा मा बइठे हवै, अउ पीयत हे मंद।

छलत हवै तन ला अपन, बनके खुद जयचंद।

बनके खुद जयचंद, गुलामी करै काल के।

झगरा झंझट झूठ, चलै लत लोभ पाल के।

संगी साथी संग, पिये बर खोजै गोधा।

पिये हाँस के मंद, बइठ के पथना ओधा।


छपक छपक के रेंगथे, उठउठ अउ गिर जाय।

दरुहा के बरसा घरी, तन मन दुनो सनाय।

तन मन दुनो सनाय, हमाये काखर मुँह मा।

रहिरहि के बस्साय, गिरे डबरा अउ गुह मा।

बुता काम बतलाय, मेघ हा टपक टपक के।

चले हलाके घेंच, मंदहा छपक छपक के।


रोवै लइका लोग हा, पड़े हवै घर खेत।

छोड़ छाँड़ सब काम ला, दरुहा फिरे अचेत।

दरुहा फिरे अचेत, सुनय नइ कखरो बोली।

करै सबे ला तंग, गोठ ले छूटय गोली।

धन दौलत उरकाय, जहर घर बन मा बोवै।

लगगे हे चौमास, लोग लइका सब रोवै।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 228

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Date: 2020-07-04

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*


*फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा*


*212  212  212  2*


कखरो कर आज ईमान नइहे।

देख इंसान इंसान नइहे।।1


नाँव फैले सबे खूँट जेखर।

गाँव घर बीच पहिचान नइहे।2


ऊँच मीनार अमरे गगन ला।

धान बर खेत खलिहान नइहे।3


फँसगे मनखे धरम जात मा देख।

अब कबीरा न रसखान नइहे।4


राज अउ पाठ परजा सँभालै।

राजा के तीर गुणज्ञान नइहे।5


चेंदरा बाँध मनखे फिरे आज।

तन ढँकाये वो परिधान नइहे।6


साँप बिच्छी डरे बाघ भलुवा।

मनखे कस कोई शैतान नइहे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 227

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Date: 2020-07-03

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*


*फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा*


*212  212  212  2*


जंग हे तोर अउ मोर मा बड़।

गाँव घर सँग गली खोर मा बड़।1


गरजे रावण असन अधमी बनके।

धन अहंकार के जोर मा बड़।।2


नइ रहे जौन बिन जज पुलिस के।

आस हे ओला अब चोर मा बड़।3


मनखे मनके हरा गेहे मति हा।

हे मगज देख ले ढोर मा बड़।4


दुख दरद ला सहे नित कमैया।

कोड़िहा काँखथे लोर मा बड़।5


आगी बरही का मँझनी के बेरा।

देख जरथे सुरुज भोर मा बड़।6


गाँव घर छोड़ बसके शहर मा।

शांति खोजत हवै शोर मा बड़।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 226

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Date: 2020-07-03

Subject: 


छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*


*फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा*


*212  212  212  2*


पाँव पड़थे जमी मा कहाँ रे।

हाल हावै हमी मा कहाँ रे।1


सत दया आस विश्वास के बिन।

फल मिले तिगड़मी मा कहाँ रे।2


करही पुन्नी असन का अँजोरी।

चाँद हा अष्टमी मा कहाँ रे।3


भोग छप्पन हदर के जे खावै।

जी सके वो कमी मा कहाँ रे।4


मारथे काटथे बनके बैरी।

वो हवै आदमी मा कहाँ रे।5


शांति सत छोड़ के होय पूरा।

काम हा तमतमी मा कहाँ रे।6


कइसे पानी पवन पेट भरही।

धान बाढ़े नमी मा कहाँ रे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)




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# 225

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Date: 2020-07-02

Subject: 


छंद के छ अउ सोसल मीडिया


                  छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करे के उदिम ले चलत छंद के छ रूपी आंदोलन, सोसल मीडिया के भरपूर लाभ उठावत हे। मार्च 2016 ले सतत रूप ले आनलाइन कक्षा गतिमान हे, जिहाँ छत्तीसगढ़ के लगभग 20,22 जिला के नवा अउ जुन्ना कलमकार मन जुड़े हे, अउ छंद विद्या के ज्ञान अर्जित करत हे। आज छंद के छ परिवार म 120 ले आगर साधक संगी मन लगभग 50, 60 प्रकार के छंद म बरोबर कलम चलावत हे, एखर साथ साथ ऑनलाइन छंदमय काव्य गोष्ठी जेन 2017 ले लगातार चलत हे, तेखर माध्यम ले छंद के लय, ताल यति, गति ल घलो सीख जे अपन गायकी ल निखारत हे। छंद के छ के ये उदिम 2016 ले आजो सब ला सँग लेके , शालीनतापूर्वक बरोबर चलत हे। भविष्य म अउ साधक मन घलो जुड़ही, कई झन अभी ले, छंद परिवार के सम्पर्क में हे। आज  छंद के छ के 12 ठन कक्षा जारी हे, जिहाँ साधक मन छत्तीसगढ़ी साहित्य म छंदबद्ध रचना ल बढ़ाये बर लगे हे। 

           छंद के छ के ये उदिम पूर्णतः सोसल मीडिया उप्पर आधारित हे, वाट्सअप के माध्यम ले कक्षा अउ काव्य गोष्ठी दूनो संचालित होथे। छत्तीसगढ़ी साहित्य म छंदमय कई ठन पुस्तक छंद के छ के साधक मन निकाले हे, जेमा  निगम गुरुदेव के छंद के छ(जेन ये आंदोलन के आधार बनिस), चोवाराम वर्मा जी के छंद बिरवा, मनीराम मितान जी के आगी सोनाखान के, जगदीश साहू जी के सम्पूर्ण रामायण, रमेश चौहान जी के दोहा के रंग, आँखी रहिके अंधरा आदि एखर आलावा कई झन साधक मनके पुस्तक प्रकासाधीन हे। सोसल मीडिया के सहारा ही, साधक मनके छंद, छंदखजाना ब्लाग म प्रकाशित करे जाथे, जेखर पाठक न सिर्फ हमर राज, हमर देश बल्कि विदेश म घलो दिखथे। रायपुर, बिलासपुर दुर्ग भिलाई म क्लास चलाये ले आसपास के कवि या कोनो रुचि रखइया साधक मन भर जुड़ पातिस, पर सोशल मीडिया के मदद ले न सिर्फ रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, भिलाई के साधक मन जुड़े हे, बल्कि कोरबा, रायगढ़, जशपुर, कोरिया, कांकेर, राजनादगांव, कवर्धा, बलौदाबाजार, चाम्पा, बेमेतरा, गरियाबंद, महासमुन्द, बस्तर, बालोद, आदि जिला के कलमकार मन घलो जुड़े हे। अउ वाट्सअप के माध्यम ले छंद सीखत हे अउ सीखे के बाद गुरु बनके सीखवत घलो हे। गुरु शिष्य के ये परम्परा (सीखे अउ सीखाय के) पूर्णतः निःस्वार्थ अउ निःशुल्क हे।

छत्तीसगढ़ी छंद बर सोसल मीडिया के वाट्सअप बड़का सहारा बनिस, ओखर प्रताप ले आज छत्तीसगढ़ी म लगभग 5000 छंदबद्ध रचना छंद जे छ के साधक मन द्वारा हो चुके हे। 

           जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

           बाल्को, कोरबा




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# 224

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Date: 2020-07-02

Subject: 


बरसा 


मोरो मन नाचिस मंजुरी कस|

चुचवइस जब बादर ले   रस |

देख पानी टपकई,फोटका परई,M

झमाझम बिजुरी,अउ गरजई घुमरई।

पानी अऊ पूर्वा के मितानी,

डबरा अऊ घुरवा के मितानी,

कोठ म बोहाय रेला अऊ

टिपटिप चूंहे छॉनी||

सुन मैना के गुत्तुर बानी अऊ

बोली कँउवा के करकस.....|

मोरो मन नाचिस...............

..............................रस||


मन ह उड़ात हे बदरा संग,

सॉप डेड़हू निकलगेहे अदरा संग|

भंदई म चिखला जमके चिपके हे,

उमड़-घुमड़ बदरा रही रही के टिपके हे|

लइकामन झड़ी म 

कूदकूद के भींगत हे|

नेवन्निन बहु 

कुरिया म नींगत हे|

मिठात हे बबा ल,

कुनकुन सनहन पेज लसलस...|

मोरो मन .......................रस|


मुंदरहा ले ओहो तोतो अऊ

बाजे खनन खनन घंटी|

सब कीरा मकोरा ल रौंदत हे

चाहे पिहरे राहय कंठी|

बेंगुवा अऊ झिंगरा 

उत्ता-धुर्रा गॉवत हे|

हॉट-बाजार नही

खेतखार मन भावत हे|

बॉवत रे बियासी रे

भॉजी रे पाला रे|

रोहों पोंहों परे हे

सिधोव काला काला रे|

माई पिला निकले हे

कोनो बुता नइ बॉचे|

भुंइया हरियाय हे

 डारापाना नाचे |

तहूं गा सुवा - ददारिया

यदि मॉटी पूत अस......|

मोरो मन ..............रस|

                                जीतेन्द्र वर्मा

                  खैरझिटी(रॉजनॉदगॉव




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# 223

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Date: 2020-07-01

Subject: 


संस्कार भारती बालको इकाई द्वारा ऑनलाइन चित्रकला प्रतियोगिता सम्पन्न


संस्कार भारती बालको इकाई द्वारा ऑनलाइन चित्रकला प्रतियोगिता आयोजित किया गया। पाँच वर्गों में आयोजित इस प्रतियोगिता में लगभग नब्बे चित्रकारों ने भाग लिया। सभी प्रतिभागियों की चित्रकारी स्तरीय व नयनाभिराम था। वर्ग एक शिशु वर्ग, जिसमें छाता और गुब्बारे का चित्र बनाना था, इसमें हर्षिता स्वर्णकार प्रथम, पारुल पटेल द्वितीय और आरोही साहू तृतीय स्थान पर रही। साथ ही वर्ग दो, जिसमें प्राकृतिक दृश्यों का चित्रांकन करना था, उसमें मयंक वर्मा प्रथम, नव्या साहू द्वितीय, व असीता यादव तृतीय स्थान पर रही। तृतीय वर्ग, जिसमें कोरोना और प्राकृतिक आपदाओ  का चित्रांकन करना था,उसमें उन्नति सिंह, दीया पडवार और कात्यायनी साहू ने क्रमशः प्रथम द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त किया। वर्ग चार जिसका विषय स्वच्छता और बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ पर आधारित था, उसमें साहिल यादव और नेहा पडवार ने क्रमशः प्रथम द्वितीय स्थान प्राप्त किया। तथा अंतिम वर्ग जो कि स्वतंत्रत था,  जिसमें किसी भी वर्ग की आयु वाले प्रतिभागी भाग ले सकते थे, जिसका विषय भारत का गौरव अभिनंदन था। इस वर्ग में प्रथम स्थान राहुल यादव ,द्वितीय स्थान खुशबू साहू और तृतीय स्थान स्मिता पटेल ने अर्जित किया। इसके साथ  ही टीया सिंह, ध्रुति साहू, गगन वर्मा, सागरिका सिंह, आन्या योगी,प्रांजल साहू, मानस, सिद्दार्थ स्वर्णकार, छाया साहू, मुस्कान पटेल, जान्हवी साहू आदि प्रतिभागियो के चित्रों का चयन कर भी जिला स्तर पर भेजा गया। जिला स्तर पर चयनित प्रतिभागियों के चित्रों का राज्य स्तर पर मूल्यांकन होगा। बालको इकाई के  चित्रकला के निर्णायक थे, हरीश देवांगन,पुष्पेंद्र जायसवाल, जीतेन्द्र वर्मा,और श्रीमती वंदना वर्मा। इकाई के अध्यक्ष प्रभात शुक्ला, उपाध्यक्ष डॉ लता चंद्रा, कोष प्रभारी केशव साहू के साथ साथ सभी सदस्यों धरम साहू, गीता विश्वकर्मा, सुधा देवांगन, डॉ गिरिजा शर्मा, रामकली कारे, निर्मला ब्राम्हणी, चंदन, माखन,लोमस, नवल,दुर्गेश, विनय,आशीष आदि का भी बराबर सहयोग उक्त आयोजन में प्राप्त हुवा। इकाई के चित्रकला  का संयोजन जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया ने किया। सभी भाग लेने वाले प्रतिभागियों को संस्कार भारती छत्तीसगढ़ व बाल्को इकाई द्वारा सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा। साथ ही विजेता  प्रतिभागियों को विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। प्रतियोगिता का परिणाम गुरु पूर्णिमा के दिन घोषित किया जाएगा। संस्कार भारती बालको ईकाई कोरबा सभी प्रतिभागियों को उक्त प्रतियोगिता में भाग लेने पर सादर धन्यवाद ज्ञापित करता है




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# 222

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Date: 2020-07-01

Subject: 


छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ सोसल मिडिया


       पहली कहय कि *नेकी कर अउ दरिया म डार* फेर आज सिरिफ एके चीज दिखथे, कुछु भी कर , अउ  सोसल मीडिया म डार। अउ जरूरी घलो हे,  काबर की आज सोसल मीडिया के तार मनखे के धड़कन ले जुड़ गेहे। केहे के मतलब जमाना सोसल मीडिया के हे। आज लगभग हर हाथ म मोबाइल हे, अउ सुबे साम मनखे वोमा भिड़े, जम्मो कोती के शोर खबर अउ मनोरंजन के साथ साथ गियान घलो पावत हे। बबा के लगाये बर के आज सबूत नइहे, काबर कि वो जमाना सोसल मीडिया के नइ रिहिस। आज तो एक पेड़ ल लगावत 20, 25 झन दिखथे। अउ फोटू खिचाके सोसल मीडिया म वाहवाही बटोरथे। चाहे परब- तिहार होय, या बर बिहाव सबे सोसल मीडिया म मान पावत हे।

             जब सोसल मीडिया भारत म पाँव पसारत रिहिस त भारतीय सुधिजन मन  चिंता व्यक्त करिन कि  एखर ले अंग्रेजी के बोलबाला हो जही। फेर आज हिंदी  अंग्रेजी ले आँखी मिलाके बतियावत हे। अइसन म  *छत्तीसगढ़ी* काबर पिछवाय, उहू ल हमर राज के जम्मो झन मनखे मन बरोबर बउरत हे, फेसबुक वाटससप अउ कतको माध्यम म छत्तीसगढ़ी भाषा के लेख, कविता, गीत के आडियो, वीडियो भराय पड़े हे। सोसल मीडिया म हमर भाषा बरोबर जघा बना डरे हे, साहित्य  अउ गीत संगीत के बढ़वार लगातार दिखत हे। आज कवि अउ लेखक मनके कविता, गीत लेख  तरोताजा अउ तुरते  सोसल मीडिया के जरिये चारो कोती बगर जावत हे। छत्तीसगढ़ी भाषा अउ साहित्य ल नवा ऊँचाई मिलत हे। छत्तीसगढिया मन सोसल मीडिया म बरोबर भाषा साहित्य अउ छत्तीसगढ़ के पार परम्परा ल स्थापित करत हे। नवा कवि अउ लेखक मनके संगे संग हमर पुरखा साहित्यकार मनके  गीत,कविता, कहानी अउ विचार ल घलो गुणीजन मन सोसल मीडिया म पहुँचावत हे, उँखर अइसन उदिम ले हमर साहित्य नवा ऊंचाई म जावत हे। पुरखा मनके धरोहर आज सोसल मीडिया के शोभा बढ़ावत हे। उँखर सुरता म कतको उदिम हमर राज के गुणवान संगी मन करत हे, अउ सबला येमा हाथ घलो बटाना चाही, काबर की उँखर साहित्य अउ विचार नवा जमाना बर नवा रद्दा गढ़ही।

            *पुस्तक के पहुँच सिरिफ शिक्षित मनखे तक होवय, फेर सोसल मीडिया म साहित्य आडियो वीडियो रूप म अनपढ़ के अंतस ल घलो अमरत हे।*  आज सोसल मीडिया मनोरंजन, शिक्षा, अउ सूचना के बड़का जरिया बन गेहे, ओमा हमर साहित्य घलो जगमगावत हे। सोसल मीडिया, पठोय सबे चीज ल बरोबर सम्भाल के रखथे येमा कॉपी पुस्तक कस पानी, बादर , अउ दिंयार के डर घलो नइ रहय। आज लेखक कवि मन अपन कविता लेख के बरोबर प्रचार प्रसार भी ये माध्यम ले करत हे, अउ उन ल आह, वाह , लाइक कमेंट रूपी उत्साह के संगे संग ज्ञानीजन मनके मार्गदर्शन घलो मिलत हे। लाकड़ाऊन म सबले जादा साहित्यकार मनके थेभा सोसल मीडिया  बनिस। लिखई, पढ़ई के सँगे सँग आडियो वीडियो रूप म कवि मन खूब वाहवाही बटोरिन अउ बटोरत घलो हे। छत्तीसगढ़ी  म लिखई पढ़ई दिनोदिन बाढ़त हे, येला सोसल मीडिया घलो बरोबर सिद्ध करत हे।

                सोसल मीडिया के तार जमे कोती लमे हे, अइसन म हमर छत्तीसगढ़ी साहित्य न सिर्फ भारत म बल्कि विदेश म घलो पहुँचत हे। *छंद के छ* के कविता ब्लाग *छंदखजाना* के लाखों विदेशी पाठक मिलथे। अउ अइसन कतको ब्लाग हे जेला पूरा विश्व निहारत हे। आदरणीय संजीव तिवारी जी  कस कतको गुणीजन मन छत्तीसगढ़ी ल गूगल म स्थापित करत हे।  पुस्तक घलो सॉप्ट कापी जे रूप म आकर्षक ढंग ले छपत हे। आज हर कोई  मोबाइल  ले जुड़े हे, उठत बइठत सब लगे हे , अउ रंग रंग के जानकारी के साथ मनोरंजन घलो पावत हे। छत्तीसगढ़ी साहित्य के उत्थान बर सोसल मीडिया बड़का मचान बरोबर हे, जे विश्वभर ल परोसे के काम करत हे। 

            सोसल मीडिया  म झूठा वाहवाही घलो गजब फलत फूलत हे, बिन पढ़े आह, वाह चलत हे, जेन कभू कभू दुख लगथे, कतको झन  कखरो लेख कविता ल घलो चोरावत दिखथे, यहू गलत बात ये।  खैर छोड़व, *सबे  चीज के बने म बने होथे, अउ गलत म गलत।* सोसल मीडिया जतके नेता, व्यापारी,डॉक्टर, वैग्यानिक, फ़िल्म, अउ  गुणी ज्ञानी बर उपयोगी हे ओतके उपयोगी हम सब साहित्यकार मन बर हे, बशर्ते उपयोग के दशा दिशा सकारात्मक होय।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)




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# 221

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Date: 2020-07-01

Subject: 


आ रे , बादर

अस  आड. असाड. म, फभे  नही|

नइ गिरही पानी,त दुख ल कबे नही|

तोपाय हे ढेला म,मोर सपना मोर आस|

तोर अगोरा हे रे बादर,नही ते हो जही नास|

छीत दे चुरवा-चुरवा करके,

बीजा जाम जाय|

मोर हॉड़ी के इही सहारा,

सब कोई इहीच ल खाय|

खेत बनगे मरघट्टी,

मुरदा बनगे बीजा|

पानी छीत जिया ले,

कइसे मनाहूँ हरेली तीजा|

मोला सरग नही,बस फल चाही,

जांगर अऊ नांगर के पूरती|

लहलहाय  मोर खेती-खार,

तन-बदन म रही मोर फुरती|

कुछु सपना संजोथन,

बस आस म खेती के|

लेथो करजा म कपड़ा-लत्ता,

टिकली-फुंदरी बेटी के|

मोर ले जादा कोन भला,

तोर नाम लेथे|

फेर तोर ले जादा तो सेठ-साहूकार मन,

मसका-पालिस वाले ल देथे|

पानी के बांवत,पानी के बियासी,

पानी के पोटरई-पकई रे, बादर|

तोर रूप देख घरी-घरी घुरघुरासी लगथे,

नइ दिखे तोला मोर करलई रे, बादर|

गोहार लगाँव मैं किसान,

गली-खोर म बेटा-बेटी संग|

सबो खेलथे मोर संग ,

झन खेल रे!बादर, मोर खेती संग|

सुन के मोर कलपना,

लेवाल बन आय हे ब्यपारी|

बचाले बेचाय ले बॉचे भुइयाँ

इही मोर भाई-बहिनी,

इही मोर बाप-महतारी|

भले मरे के बाद ,

फेक नरक म घानी दे दे|

फेर जीते जीयत झन मार,

मोर सपना ल टेम में पानी दे दे|


        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

           बाल्को(कोरबा)

           ९९८१४४१७९५




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# 220

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Date: 2020-06-29

Subject: 


छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ समाज


           चाहे कोनो भाँखा होय, साहित्य समाज ले उपजथे अउ समाज म ही घुल मिल जाथे। फेर साहित्य के समाज म मानव भर मन नइ आय, ओखर समाज म पेड़ पौधा, जीव जंतु अउ जम्मो जिनिस शामिल हे, जेखर कल्पना कलम करथे। ये मोर पोगरी बिचार आय, कोनो सहमत हो सकथे त कतको नही घलो। साहित्य समाज के बुराई ल घलो उकेर के अच्छाई कोती खींचे के प्रयास करथे। जेन साहित्य म समाज विशेष बर कोनो चिंतन मनन नइ रहय, उहू का साहित्य। चाहे जुन्ना साहित्य होय या फेर नवा, सबो तो अपन कहानी कन्थली अउ कविता के माध्यम ले समाज ल जगाये के काम करे हे, अउ करत घलो हे। बुराई के परिणाम दुखदाई अउ अच्छाई ल सुखदाई बताय हे, अउ बताना घलो चाही, नही ते साहित्य म भटकाव आ जाही। यथार्थ घलो इही आय। मनखे म दया मया के  संचार करके पेड़ पात, जीव जंतु, जल थल वायु अउ जम्मो जिनिस म सकारात्मक भाव समाज म साहित्य जगाथे। तभो तो साहित्य ल समाज के दर्पण घलो केहे जाथे। अउ जब साहित्य दर्पण आय त वोमा समाज के गुण दोष दिखना भी चाही। जेन लेख समाज म विकृति पैदा करय, वो साहित्य कइसे हो सकथे।साहित्य भाँखा के समृद्धि, अउ समाज के द्योतक होथे। साहित्यकार ल तटस्थ न होके, सम्पूर्ण जीव जगत के प्रति उत्तरदायी होना चाही। आने के संग खुद के बुराई अउ अच्छाई ल घलो झाँकना चाही। इही बड़का साहित्यकार के निसानी आय। साहित्य म लोभ लालच अउ चाटुकारिता के छीटा घलो नइ पड़ना चाही,नही ते साहित्य के दशा अउ दिशा दोनो म दाग लग जाथे। साहित्य सीख देथे, साहित्य  गुण अउ ज्ञान देथे, साहित्य संस्कार घलो देथे, फेर  साहित्य रोटी नइ, यहू कहना गलत हे, साहित्य जब ज्ञान दे सकथे, त रोटी काबर नइ दे सकही। साहित्य म सबे चीज देय के ताकत हे। बशर्ते पाठक या स्रोता वोला कइसे ग्रहण करथे , वो ओखर ऊपर हे। 

            हमर पुरखा मनके साहित्य आजो धरोहर हे, उँखर कल्पना के पार पाये नइ जा सके या उँखर ले अच्छा अउ लिखाही नही, ये कहना घलो गलत हे। महिनत ले का नइ सम्भव हे। उँखर समय म जेन चलत रिहिस ओला ओमन बखूबी सामने लाइन। ओला आजो हमन पढ़त लिखत अउ देखत घलो हन। फेर कई झन साहित्यकार मन कल्पना के कलम धर अइसे अइसे रचना करिन जेन कालजयी होगे , अउ आजो  प्रासंगिक लगथे। उँखर चिंतन ल नमन हे, जेन मन भूत ,वर्तमान अउ भविष्य ल ले के चलिन। आजो के साहित्यकार मन ल घलो अपन कलम ल धरहा करके सकारात्मक भाव समाज म जगाना चाही। छत्तीसगढी साहित्य बासी पेज, खेती खार ल सीमित झन रहे, जमाना के संग कलम कदम मिलाके चले। अउ हो सके त अपन चितन मनन ले पुरखा साहित्यकार मन असन भविष्य ल घलो झाँके। तभे हमर भाँखा  मान पाही, अउ हम सबके नाक ऊँच होही। साहित्य सिर्फ कहानी कविता घलो नइ होय, साहित्य तो असीमित हे, साहित्य खोज आय, साहित्य   म सबे चीज समाहित हे। साहित्य ल ऊँचा उठाय बर साहित्यकार ल अपन सोच ल ऊपर उठाये ल पड़ही। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा




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# 219

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Date: 2020-06-29

Subject: 


ठिहा ठौर-कहानी


राम राम के बेरा हाँव हाँव अउ खाँव खाँव, अइसने होइस घलो जब पहातिच बेरा शहर के कृष्णा चँउक म, किसन के  घर साँप दिखगे। कोनो दतवन चाबत, त कोनो लोटा धरे, त कोनो मन बिन मुँह - कान धोय घलो वो मेर पहुँच के किलबिल किलबिल करत हे। पड़ोस के लइका  मनोज जेन दाई ददा के बिना लात घुसा खाय घलो नइ जागे तेखरो आँखी भिनसरहा ले उघर गे रहय, फेर अलाली  के मारे  कुछ देर  खटियच म पड़े पड़े गोहार ल सुनिस, अउ आखिर म आँखी रमजत वो मेर हबरगे। जिहाँ देखथे कि बनेच मनखे सकलाय हे, अउ अपन अपन ले सबे चिल्लात हे। कोनो काहत हे- ओदे संगसा म खुसरे हे। कोनो काहत हे- रँधनी खोली कोती गेहे। कोनो काहत हे, दोनो हाथ ल फैलाबे तभो वो साँप ले छोटे पड़ जही। कोनो काहत हे- बड़ मोठ लामी लामा धनमा ये। कोनो कहे- करायेत हरे। कोनो कहे- बिखहर डोमी आय।

उही भीड़ के सँग चिल्लावत, मनोज घलो कथे- बाकी साँप के तो पता नही फेर जब तक वो साँप फेन नइ काटही,  डोमी नइ हो सके। एक ठन साँप के आरो पाके कतको झन मनखे रूपी साँप मन बड़बड़ावत हे। एती किसन के मुँह घलो नइ उलत हे, लइका लोग सुद्धा, घर के बाहर थोथना ओरमाये खड़े हे। अउ करे त का, जेखर गला मा घाँटी ओरमथे, उही ओखर दुख ल जाने, बाकी मन तो बस लफर लफर लुथे। सबे चिल्लावत हे ,फेर कोनो भगाये बर उदिम नइ करत हे। ले दे के एकझन सज्जन साँप पकड़इय्या ल धर के लाइस। बड़ महिनत करे जे बाद साँप ल घर ले बाहिर निकालिस। साँप जुरियाय जम्मो मनखे मन ला देख के, फेन काट के तनियाय खड़े हो जथे। लोगन मन देख फेर फुसफुसात हे देखे जुन्नेट डोमी आय। ये भारी बिखहर होथे, एक घाँव चाबिस, मतलब राम नाम सत। येती मनोज तनियाय खड़े हे, देखे में केहे रेहेंव, ते सहीं होइस न,फेन काटही कहिके। एक झन चुप करात चिचियावत कहिथे,ते चुप रे,आज के लइका का जानबे, का का साँप होथे तेला, भगवान शंकर के फोटू ल भर देखे हस, कभू बाप पुरखा नाँग देखे रेहेस।  येती किसन के पोटा साँप ल देख के काँपत रहय। किसन कहिथे, येला कोई मार देवव, आज मोर घर म घुसरिस, काली अउ कखरो घर घूँस जही। आघू म खड़े एक झन मनखे कहिथे- बात तो बने काहत हस किसन,  फेर मोर डहर अँगरी काबर देखात हस, मोर घर काबर घुसही।  वो मेर खड़े अउ मन फुसफुसावत कहिथे, काबर की तोर घर जादा धन दौलत हे। ततकी बेरा मनोज बात ल काटत कहिथे, इती के बात ल छोड़व। कइसे ग कका किसन, तैं जीव हत्या के बात करइया निरदई आदमी कइसे हो सकथस, बात वो किसन के अलग हे जउन नाँग नाथे रिहिस। ते तो निच्चट डरपोक आवस। हाँ नाँग देवता आय तोर घर आय हे, बढ़िया पूजा पाठ कर, धन रतन बाढ़ही। किसन कहे - तुही मन बतावव ददा, मोर घर  ले ये बला टरे। साँप पकड़इय्या वो साँप ल चुंगड़ी म भरके, मनोज ल कहिथे, चल येला कहूँ मेर छोड़ के आबों। मनोज छाती ठोंकत कहिथे ,अइसन काम बर तो मैं बने हँव। अउ साँप घलो तो जीव आय, मारना पीटना बने बात नोहय। चल ये साँप ल खाली जघा म छोड़ आबों। तीर म ओखर ददा घलो रहय। वो मनोज ल कहिस -हव ",काम के न कौड़ी के, दँउरी के बजरंगा" अउ कामे का कर सकत हे। दुनो साँप ल चुंगड़ी म धरके निकल गे। इती किसन ला हाय जी लगिस। लोगन मन घलो छँटियाय लगिस।

                   साँप पकड़य्या के पाछू पाछू मनोज रेंगत कहिथे, अउ कतिक दुरिहा जाबों, ऐदे मेर छोड़ देथन। बेरा उग के चढ़त रहय, मनखे के चहल पहल बढ़ गे रहय। साँप ल छोड़े बर जइसे चुंगड़ी ल खोलेल धरथे, नजदीक के घर वाले करलावत निकलथे, हव छोड़ दव इही मेर, ताहन मोर घर खुसर जाय। चलो भागो ए कर ले।  दुनो फेर सड़क नापथे, सबो जघा मनखे मन देखे के बाद दुनो ल गरिया देवव। दुनो थक हार गे। आखिर में साँप पकड़य्या कहिथे, मोर ले गुनाह होगे जी मनोज, जे सांप ल पकड़ेव। फेर ये मोर बर थोरे हरे, भलाई के जमाना नइहे, मोरे मरना होगे।

दुनो लहुट के किसन घर कर आगे। किसन पुचपुचावत कहथे-बने करे दाऊ, तोर बिना मैं तो संसो म पड़ गे रेहेंव। ले चाय पीके जाबे। किसन के बात ल सुनके, मनोज कहिथे- का बने कका, साँप तो चुंगड़ी म हे। कोनो मन अपन आसपास ढीलन नइ दिन। मुँह उठाके फेर आगेन। अब तोर नाँग ल तिहीं पूज, हमन चली। अरे अरे अइसे कइसे हो सकत हे, ये गलत ए, अउ ये कोनो मोर पोसवा थोरे आय, एखर मैं काय करहूँ, किसन बिलखत हे। मनोज का, सबे झन भाग गे।  किसन के मूड़ म पहाड़ टूट गे, साँप के चुंगड़ी के दुरिहा म बैठे लइका लोग सुद्धा रोवत हे। 

             एकाएक मँझानिया, मनोज के ददा कल्हरत भागत चिल्लाथे, साँप साँप साँप। अरे भागो भागो, किसन घर के  डोमी नाँग हमर घर खुसर गेहे। मनोज गिरत हपटत भागथे, अउ किसन ल खिसियाथे, जेन चुंगड़ी के आघू अपन भा