Tuesday 26 September 2023

डीजे अउ पंडाल- रोला छंद

 डीजे अउ पंडाल- रोला छंद


जस सेवा के धूम, होत हे कमती अब तो।

सजे हवै पंडाल, डांडिया नाचैं सब तो।।

नवा ओनहा ओढ़, करे हें मेकप भारी।

डी जे के सुन शोर, नँगत झूमैं नर नारी।


मूंदैं आँखी कान, आरती जस सेवा सुन।

भागैं मुँह ला मोड़, सुनत कोनो जुन्ना धुन।

दीया बाती धूप, हूम जग ला जे हीनें।

वोहर थपड़ी पीट, स्टेप गरबा के गीनें।


ना भक्ति ना भाव, दिखावा के दिन आगे।

बड़े लगे ना छोट, सबें देखव अघुवागे।

परम्परा के पाठ, भुलाके बड़ अँटियाये।

फेसन घेंच उठाय, मनुष ला फाँसत जाये।


चुभे जिया ला गीत, कान सुन बड़ झन्नाये।

नइहे होश हवास, उँहें सब हें सिर नाये।

ना मांदर ना ढोल, झोल डी जे मा होवै।

बचे खँचे गुण ज्ञान, दिखावा मा सब खोवै।


नाच गीत संगीत, सबें के बजगे बारा।

संगत सुर संस्कार, सुमत के टुटगे डारा।

कतको हें मतवार, कई हें मजनू लैला।

तन हावै उजराय, भरे हे मन मा मैला।


बइठे देवी देव, बरे बड़ बुगबुग बत्ती।

तभो भक्ति अउ भाव, दिखे नइ एको रत्ती।

मान मनुष  इतरायँ, देव ला माटी खड्डा।

मठ मंदिर अउ मंच, मजा के बनगे अड्डा।


डीजे अउ पंडाल, तिहाँ चंडाल हमागे।

मनखे हवैं मतंग, देवता देवी भागे।।

नवा जमाना ताय, चोचला इसने होही।

सबें चीज के स्वाद, धीर धर चुक्ता खोही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


करयँ हाँस के डांडिया, प्रेमा प्रिया प्रमोद।

कहै सुवा ला फालतू, देखत हवस विनोद।

Saturday 9 September 2023

राखी----भैया मोर राखी(गीत),,,,

 ,,,,भैया मोर राखी(गीत),,,,


नोहे रेशम,न धागा,न डोर भैया।

ये  राखी   मया  हरे  मोर  भैया।


पंछी कस बनही,भैया  ये तोर पाँखी।

सबो दुख ले बँचाही,मोर बांधे राखी।

लाही जिनगी म,खुशी के हिलोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया-----------|


सुरुज कस चमकही,तोर माथा के कुमकुम।

सुख रहै जिनगी भर,पाँव ला चुम चुम।

लेवत रहिबे सबर दिन,मोर सोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया-----------।


दाई  अउ  ददा के,तँय नाम जगाबे।

मोरो डेहरी म नित,आबे अउ जाबे।

लाहू लोटा म पानी,मया घोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया-------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795

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परेवना राखी देके आ

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परेवना कइसे जावौं रे,

भइया तीर तँय बता?

गोला-बारूद चलत हे मेड़ो म,

तँय राखी देके आ.............|


दाई-ददा के छँइहा म रहँव त,

बइठाके भइया ल मँझोत में।

बाँधौं राखी कुंकुंम लगाके,

घींव के दीया  के  जोत   में।

मोर   लगगे    बिहाव   अउ,

होगे भइया देस  के।

कइसे दिखथे मोर भइया ह,

आबे  रे   परेवना   देख  के।

सुख के सुघ्घर समाचार कहिबे,

जा भइया के संदेसा ला........|


सावन पुन्नी आगे जोहत होही,

मोर राखी के बाट रे।

धकर-लकर उड़ जा रे परेवना,

फइलाके दूनो पाँख रे।

चमचम-चमचम चमकत राखी,

भइया ल बड़ भाही रे।

नाँव जगा के ,दाई-ददा के,

बहिनी ल दरस देखाही रे।

जुड़ाही आँखी,ले जा रे राखी,

भइया  के  पता...............|


देखही तोला भइया ह परेवना,

बहिनी  के   सुरता  करही  रे।

जे हाथ म भइया के राखी बँधाही,

ते हाथ देस बर लड़ही रे।

थर-थर कापही बइरी मन ह,

गोली के बऊछार ले,

रक्षा करही राखी मोर भइया के,

बइरी अउ जर-बोखार ले।

जनम-जनम ले अम्मर रही रे,

भाई-बहिनी के नता...........।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                 बालको(कोरबा)

                  998144175

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....@@राखी@@...(गीत)


बॉध मोर कलाई म,

राखी वो बहिनी..........|

हे तोर मोर मया के,

ये साखी वो बहिनी......|


ददा के आसीस हे,

दाई के दुलार हे  |

सावन पुन्नी,

भाई-बहिनी के तिहार हे |

बने रेसम के डोरी,

मोर जिनगी के पॉखी वो बहिनी...|

बॉध मोर................................|


रिमझिम सावन म,

मन मोर नाचे  |

बहिनी के मया ले,

गुथाही मोर हाथे  |

बिनती करव भगवान ले,

शुभ रहे तोर रासि वो बहिनी....|

बॉध मोर.............................|


तोर मया के डोरी,

मोर साथ रहे जिनगी भर |

तोर सुख-दुख म लामत,

मोर हाथ रहे जिनगी भर |

किरिया रॉखी हे,

कोन देखाही तोला ऑखी वो बहिनी..|

बॉध मोर ....................................|

                                 जीतेन्द्र वर्मा

                               बाल्को(कोरबा)


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राखी-बरवै छंद


राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।

भैया मोला देबे, मया दुलार।।


जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।

सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।


राखी रक्षा करही, बन आधार।

करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।


झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।

दया मया बरसाबे, देबे मान।।


हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।

नता बहिन भाई के, होही पोठ।।


धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।

बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।


राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।

आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।


सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।

जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।


लइकापन के सुरता, आथे रोज।

रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।


कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।

जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।


पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।

देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।


मोरो अँगना आबे, भैया मोर।

जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


रक्षाबन्धन की ढेरों बधाइयाँ💐💐

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)

 भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)


भोजली दाई ह बढ़ै, लहर लहर करै,

जुरै सब बहिनी हे, सावन के मास मा।

रेशम के डोरी धर, अक्षत ग रोली धर,

बहिनी ह आये हवै, भइया के पास मा।

फुगड़ी खेलत हवै, झूलना झूलत हवै,

बाँहि डार नाचत हे, जुरे दिन खास मा।

दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,

सावन अँजोरी उड़ै, मया ह अगास मा।


धान पान बन डाली, भुइयाँ के हरियाली।

सबे खूँट खुशहाली, बाँटे दाई भोजली।

पानी कांजी बने बने, सब रहै तने तने।

दुख डर दरद ला, काँटे दाई भोजली।

माई खोली मा बिराज, सात दिन करे राज।

भला बुरा मनखे ला, छाँटे दाई भोजली।

लहर लहर लहराये, नवा नत्ता बनवाये।

मीत मितानी के डोर, आँटे दाई भोजली।


माई कुरिया मा माढ़े,भोजली दाई हा बाढ़े।

ठिहा ठउर मगन हे, बने पाग नेत हे।

जस सेवा चलत हे, पवन म  हलत हे,

खुशी छाये सबो तीर, नाँचे घर खेत हे।

सावन अँजोरी पाख, आये दिन हवै खास,

चढ़े भोजली म धजा, लाली कारी सेत हे।

खेती अउ किसानी बर, बने घाम पानी बर

भोजली मनाये मिल, आशीष माँ देत हे।


अन्न धन भरे दाई, दुख पीरा हरे दाई,

भोजली के मान गौन, होवै गाँव गाँव मा।

दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,

धुँवा उड़े धूप के जी , भोजली के ठाँव मा।

मुचमुच मुसकाये, टुकनी म शोभा पाये,

गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।

राखी के बिहान दिन, भोजली सरोये मिल,

बदे मीत मितानी ग, भोजली के नाँव मा।


राखी के पिंयार म जी, भोजली तिहार म जी,

नाचत हे खेती बाड़ी, नाचत हे धान जी।

भुइँया के जागे भाग, भोजली के भाये राग,

सबो खूँट खुशी छाये, टरै दुख बान जी।

राखी छठ तीजा पोरा, सुख के हरे जी जोरा,

हमर गुमान हरे, बेटी माई मान जी।

मया भाई बहिनी के, नोहे कोनो कहिनी के,

कान खोंच भोजली ला, बनाले ले मितान जी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


भोजली तिहार के बधाई,,जोहार जोहार

मोर गॉव ल काय होगे........ ----------------------------------

 .......मोर गॉव ल काय होगे........

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पीपर के पाना डोले त डर लागे |

कोयली कुहु-कुहु बोले त डर लागे |

रद्दा म रक्सा रहि रहिके दिखत हे |

जाँव कते कोती जघा-जघा बिपत हे |

जिंहा मयना मन भाय,

तिहाँ साँय साँय होगे ........|

हे बिधाता! 

मोर गॉंव ल काय होगे........|


न जाड़ म जुड़ हे,

न असाड़ म पानी |

सावन भादो घलो,

लकलकाय हे छानी |

चुल्हा ले गुंगवा गुंगवात नइहे |

पेट भर जेवन कभू खात नइ हौं |

का  काम बुता करौं,

सबो आँय बाँय होगे...............|

हे बिधाता !

मोर गॉंव ल काय होगे ............|


सोवा परगे हे,गॉंव के गॉंव म |

कोनो नइ जुरे हे,बर पीपर छॉंव म |

लइका मनके,

गिल्ली-भंवरा माते नइहे |

अटकन-मटकन खेले के ,

चँवरा बाचे नइहे |

न गॉंगर चुरे न ठेठरी,

बनेच दिन खीर खाय होगे.......|

हे बिधाता !

मोर गॉंव ल काय होगे............ |


टेस-टेस म अँइठत हें सबो |

टीभी मोबाइल तीर बइठत हें सबो |

न साल्हो हे न सुवा हे |

जघा-जघा मौंत के कुंवा हे |

पहिली जइसे कुछु नइहे,

राम राम हेलो हाय होगे.........|

हे बिधाता:

मोर गॉंव ल काय होगे..............|


             जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

            बाल्को ( कोरबा )

कलंक मनखे -सरसी छन्द

 कलंक मनखे -सरसी छन्द


गलत करे के पहली सोंचैं, लाख घांव इंसान।

अइसन सबक सिखादे उन ला, विनती हे भगवान।।


अत्याचार करत हें भारी, सुनँय गुनँय नइ बात।

मानव होके मानवता ला, मारत फिरथें लात।।

डर हे ना पछतावा चिटको, गरजे बन शैतान।

गलत करे के पहली सोंचैं, लाख घांव इंसान।।


अस्मत लूटे अत्याचारी, मद मउहा में चूर।

बेटी माई बेबस मनखे, दुख पाये भरपूर।।

नेता गुंडा साब सिपैहा, पाय हवै वरदान।

गलत करे के पहली सोंचैं, लाख घांव इंसान।।


करनी के फल भुगते तुरते, तुरते होय नियाँव।

बजे काल के डंका अइसे, होय झने चिंव चाँव।।

मारे काटे लूटे पाटे, तेखर मरे बिहान।

गलत करे के पहली सोंचैं, लाख घांव इंसान।।


न्याय तंत्र हा ये कलजुग के, बनके रहिगे खेल।

कैदी मन के कदर बढ़े हे, घर जइसे हे जेल।।

चोर सिपैहा भाई भाई, बिगड़े हवै विधान।

गलत करे के पहली सोंचैं, लाख घांव इंसान।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)



छत्तीसगढ़ के महान सपूत गीत संगीत के जादूगर स्व.खुमान साव जी ल,उंखर जनम जयंती के बेरा मा शत शत नमन---- जब तक छत्तीसगढ़ रही,खुमान साव जी के गीत संगीत सबर दिन राज करही--

 छत्तीसगढ़ के महान सपूत गीत संगीत के जादूगर स्व.खुमान साव जी ल,उंखर जनम जयंती के बेरा मा शत शत नमन---- जब तक छत्तीसगढ़ रही,खुमान साव जी के गीत संगीत सबर दिन राज करही--


धान कटोरा के दुबराज,करबे तैंहर सब जुग राज।

सुसकत हावय सरी समाज,सुरता तोर लमाके आज।1।


चंदैनी गोदा मुरझाय,संगी साथी मुड़ी ठठाय।

तोर बिना दुच्छा संगीत,लेवस तैं सबके मन जीत।2।


हारमोनियम धरके हाथ,तबला ढोलक बेंजो साथ।

बाँटस मया दया सत मीत,गावस बने सजा के गीत।3।


तोर दिये जम्मो संगीत,हमर राज के बनके रीत।

सुने बिना नइ जिया अघाय,हाय साव तैं कहाँ लुकाय।4।


झुलथस नजर नजर मा मोर,काल बिगाड़े का कुछु तोर।

तोर कभू नइ नाम मिटाय,जिया भीतरी रही लिखाय।5।


तोर पार ला पावै कोन,तैंहर पारस अउ तैं सोन।

मस्तुरिहा सँग जोड़ी तोर,देय धरा मा अमरित घोर।6।


तोर उपर हम सबला नाज,शासन ले हे बड़े समाज।

माटी गोंटी मुरुख सकेल,खेलत हें देखावा खेल।7।


छत्तीसगढ़ के तैं हर शान, सबझन कहे खुमान खुमान।

धन धन धरा ठेकवा धाम, गूँजय गीत सुबे अउ शाम।8।


सबके अन्तस् मा दे घाव,बसे सरग मा दुलरू साव।

सच्चा छत्तीसगढ़िया पूत,शारद मैया के तैं दूत।9।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटी, राजनांदगांव(छग)

कमर्छठ

 खमर्छठ(सार छंद)


खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।

चना गहूँ राहेर भुँजाये ,झड़के बहिनी भाई।


भादो मास खमर्छठ होवय,छठमी तिथि अँधियारी।

घर लिपाय पोताय सुहावै, महकत रहै दुवारी।।


बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।

हलषष्ठी के करे सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।


घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।

पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।


चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।

हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।


पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।

लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।


लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।

छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।


खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।

महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।


भैंस दूध के भोग लगाये,भरभर मउहा दोना।

करे दया हलषष्ठी  देवी,टारे दुख जर टोना।


पीठ म  पोती   दे बर दाई,पिंवरी  माटी  घोरे |

लइका मनके पाँव ल दाई, सगरी मा धर बोरे।


चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।| 

महतारी के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।


द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।

रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।


घँसे पीठ मा महतारी मन,पोती कइथे जेला।

रक्षा कवच बने लइका के,भागे दुःख झमेला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


खमर्छठ परब के बहुत बहुत बधाई

कृष्ण--आठे परब के सादर बधाई

 आठे परब के सादर बधाई


मोला किसन बनादे (सार छंद)


पाँख  मयूँरा  मूड़ सजादे,काजर गाल लगादे|

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


बाँध कमर मा करिया करधन,बाँध मूड़ मा पागा|

हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|

चंदन  टीका  माथ लगादे ,पहिरा माला मुंदी|

फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चुंदी|

हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |

घींव  लेवना  चाँट  चाँट  के,खाहूँ थाली थाली |

मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ,दाई लोरी गादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी मीठ बजाहूँ|

तेंदू  लउड़ी  हाथ थमादे,गाय  चराके आहूँ|

महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    

गोकुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल घर भीतर।

मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी|

बँसुरी  धरे  रेंगहूँ   मैंहा ,भइया  नाँगर  डाँड़ी|

कनिहा मा कँस लाली गमछा,पीताम्बर ओढ़ादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|

संसो  झन करबे वो दाई,खेल कूद घर आहूँ|

पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई ,किसन बरन तैं चोला|

रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|

पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |

बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|

दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,दाई आस पुरादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "

बालको (कोरबा )


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1,मदिरा सवैया


मोहन माखन माँगत हे मइया मुसकावत देखत हे।

गोकुल के सब गोपिन ला घनश्याम दहीं बर छेकत हे।

देख गुवालिन के मटकी धरके पथरा मिल फेकत हे।

तारन हार हरे हरि हा पँवरी म सबे सिर टेकत हे।


2, मतगयंद सवैया


देख रखे हँव माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।

रोवत हावय गाय गरू झट लेज मधूबन तीर चराना।

कान ल मोर सुहाय नही कुछु आ मुरलीधर गीत सुनाना।

काल बने बड़ कंस फिरे झट आ मनमोहन प्राण बचाना।


गोप गुवालिन के सँग मोहन रास मधूबन तीर रचावै।

कंगन देख बजे बड़ हाथ के पैजन पाँव के गीत सुनावै।

मोहन के बँसरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके मन भावै

एक घड़ी म दिखे सबके सँग एक घड़ी सबले दुरिहावै।


चोर सहीं झन आ ललना झन खा ललना मिसरी बरपेली।

तोर हरे सब दूध दहीं अउ तोर हरे सब माखन ढेली।

आ ललना झट बैठ दुहूँ मँय दूध दहीं ममता मन मेली।

मोर जिया ल चुरा नित नाचत गावत तैं करके अटखेली।


गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं गा।

फूल गुलाब न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं गा।

मोर सबे सुख शांति उड़े मुरलीधर रास रचे न कहीं गा।

दर्शन दे झट आ मनमोहन हाथ धरे हँव दूध दहीं गा।


धर्म ध्वजा धरनी धँसगे झटले अब आ करिया फहराना।

खोर गली म भरे हे दुशासन द्रौपति के अब लाज बचाना।

शासक संग समाज सबे ल सुशासन के सत पाठ पढ़ाना।

झाड़ कदम्ब जमे कटगे यमुना मतगे मनमोहन आना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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लोकछंद- रामसत्ता


विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।

दीन दुखी के डर दुख हरके, धर्म ध्वजा फहराये हो राम।


एक समय देवकी बसदेव के, राजा कंस ब्याह रचाये।

उही बेर मा आकाशवाणी, कंस के काने मा सुनाये।।

आठवाँ सुत हा मारही तोला, सुनत कंस भारी बगियाये।

बाँध छाँद बसदेव देवकी ला, कारागर मा झट ओइलाये।।

*सुख शांति के देखे सपना, एके छिन छरियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।1


राजा कंस हा होके निर्दयी, देवकी बसदेव पूत मारे।

करँय किलौली दूनो भारी, रही रही के आँसू ढारे।।

थर थर काँपे तीनो लोक हा, कंस करे अत्याचारी।

भादो अठमी के दिन आइस, प्रभु अवतरे के बारी।।

*बिजुरी चमके बादर गरजे, नदी ताल उमियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।2


अधरतिहा अवतरे कन्हैया, बेड़ी भाँड़ी सब टुटगे।

देवी देवता फूल बरसाये, राजा बसदेव देख उठगे।।

देख मनेमने गुनय बसदेव, निर्दयी राजा के हे डर।

धरे कन्हैया ला टुकनी में, चले बसदेव नंद के घर।।

*यमुना बाढ़े शेषनांग ठाढ़े, गिरधारी मुस्काये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।3


छोड़ कन्हैया ला गोकुल में, माया ला धरके लाये।

समै के काँटा रुकगे रिहिस, बसदेव सुधबुध बिसराये।।

रोइस माया तब जागिस सब, आइस दौड़त अभिमानी।

पुत्र नोहे पुत्री ए राजा, हाथ जोड़ बोले बानी।।

*विष्णु के छल समझ कंस हा, मारे बर ऊँचाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।4


छूटे कंस के हाथ ले माया, होय देख पानी पानी।

तोर काल होगे हे पैदा, सुन के काँपे अभिमानी।।

जतका नान्हे लइका हावै, कहै मार देवव सब ला।

सैनिक मन के आघू मा, करे किलौली कई अबला।

*रोवै नर नारी मन दुख मा, हाँहाकार सुनाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।5


राजा कंस के काल मोहना, गोकुल मा देखाय लीला।

दाई ददा संग सब ग्राम वासी, नाचे गाये माई पीला।।

छम छम बाजे पाँव के पइरी, ठुमुक ठुमुक चले कन्हैया।

शेषनाग के अवतारे ए, संग हवै बलदऊ भइया।।

*किसन बलदऊ ला मारे बर, कंस हा करे उपाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।6


कंस के कहना मान पुतना, गोकुल नगरी मा आये।

भेस बदल के कान्हा ला धर, गोरस अपन पिलाये।।

उड़े गगन मा मौका पाके, कान्हा ला धरके पुतना।

चाबे स्तन ला कान्हा हा, तब भारी भड़के पुतना।।

*असल भेस धर गिरे भूमि मा, पुतना प्राण गँवाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।7


पुतना बध सुन तृणावर्त ला, कंस भेजे गोकुल नगरी।

बनके आय बवंडर दानव, होगे धूले धूल नगरी।।

मारे लात फेकाये दानव, प्राण पखेडू उड़े तुरते।

बगुला भेस बनाके बकासुर, गोकुल मा आये उड़ते।

भारी भरकम देख बगुला ला, नर नारी घबराये हो राम।

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।8


अपन चोंच मा मनमोहना ला, धरके बगुला उड़िड़ाये।

चोंच फाड़ बगुला ला मारे, कंस सुनत बड़ घबराये।।

बछरू रूप धरे बरसासुर, मोहन ला मारे आये।

खुदे बरसासुर हा मरगे, अघासुर आ डरह्वाये।।

*गुफा समझ सब ग्वाल बाल मन, अजगर मुख मा जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।9


कंस के भेजे सब दानव मन, एक एक करके मरगे।

गोकुल वासी जय बोलावै, दानव मन मरके तरगे।।

माखन खावै दही चोरावै, मटकी फोड़े गुवालिन के।

मुँह उला के जग देखावै, माटी खावै बिनबिन के।।

*कदम पेड़ मा बइठ कन्हैया, मुरली मधुर बजाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।10


पेड़ बने दुई यक्ष रिहिन हे, कान्हा उन ला उबारे।

गेंद खेलन सब ग्वाल बाल संग, मोहन गय यमुना पारे।

रहे कालिया नाग जल मा, चाबे नइ कोनो बाँचे।

कालीदाह मा कूदे कन्हैया, नाँग नाथ फन मा नाँचे।

*गोबर्धन के पूजा करके, इन्द्र के घमंड उतारे हो  राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।11


मधुर मधुर मुरली धुन छेड़े, रास रचाये मधुबन मा।

गाय बछरू ला गोकुल के, कान्हा चराये कानन मा।।

सिखाय नाहे बर गोपियन ला, चीर हरण करके कान्हा।

राधा ला भिंगोये रंग मा, पिचकारी भरके कान्हा।।

*कृष्ण बलदउ ला अक्रूर जी, मथुरा लेके जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।12


गोकुल मधुबन मरघट्टी कस, बिन कान्हा के लागत हे।

मनखे मन कठवा कस होगे, सूतत हे ना जागत हे।।

यमुना आँसू मा भरगे हे, रोवय जम्मो नर नारी।

कान्हा जाके मथुरा नगरी, दुखियन के दुख ला हारी।

*कंस ममा ला मुटका मारे, लहू के धार बोहाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।13


अत्याचारी कंस मरगे, जरासन्त शिशुपाल पाल मरे।

असुरन मनके नाँव बुझागे, विदुर सुदामा सखा तरे।।

दुशासन चिर खींचत थकगे, बने सहारा दुरपति के।

महाभारत ला पांडव जीतिस, कौरव फल पाइस अति के।

*हरि कथा हे अपरम पारे, खैरझिटिया का सुनाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।14


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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कलजुग म घलो आबे कान्हा

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स्वारथ म  रक्सा  बनके मनखे,

सिधवा गोप-गुवाल ल मारत हे।

कालीदाह   के   कालिया   नाग,

गली - गली   म    फुस्कारत हे।

बरसत हे ईरसा-दुवेस लड़ई-झगरा,

मया  के  गोवरधन उठाबे कान्हा।।

कलजुग  म  घलो  आबे   कान्हा।।


देवकी-बसदेव  ल  का  किबे,

जसोदा-नन्द  घलो  रोवत  हे।

कहाँ बाजे बंसुरी,कती रचे रास?

घर - घर  महाभारत  होवत   हे।

सड़क डहर म बइठे हे तोर गईया,

मधुबन म ले जाके चराबे कान्हा।

कलजुग  म  घलो आबे   कान्हा।


दूध - दही  ले  दुरिहाके  मनखे,

मन्द - मऊहा   म  डूब   गे  हे।

अलिन-गलिन म  सोवा  परे हे,

कदम  के  रुखवा  टूट  गे  हे।

घेंच म बांधे घूमे भरस्टाचार के हांड़ी,

आके  दही  लूट  देखादे  कान्हा।

कलजुग  म  घलो  आबे  कान्हा।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

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गीत-करिया कन्हैया आ


मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।

बंसी के बजइया आ----

माखन खवैया आ------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


तोर बिना गोकुल न, तोर बिना मधुबन।

तोरबिन बन बाग सुन्ना, तोरबिन भव भुवन।।

मोर पाँख पहरैया आ-----

नाग के नथैया आ-------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


नंद यशोदा रोवैं, रोवैं गोपी ग्वाला।

राधा के आँखी के, बोहै नदी नाला।।

चीर हरैया आ-----

पीर हरैया आ------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


हवा चलत नइहे, पत्ता हलत नइहे।

गरवा चरत नइहे, बिरवा फरत नइहे।।

गोवर्धन उठैया आ------

भवपार लगैया आ------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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रामसत्ता-दशावतार गाथा


कल्कि रूप धर ये कलयुग मा, आके दरस देखादे हो राम।

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


पहली लिये तैं मत्स्य अवतारे।

जल परलय ले जग ला उबारे।।

*सत्यव्रत ला तत्वज्ञान दे, मत्स्य पुराण सुनाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


कच्छप रूप दुसर तैं बनाये।

देव दानव मनके भाग जगाये।।

*मंदराचल पर्वत ला बोह के, सागर मंथन कराये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


तीसर रूप बरहा अवतारे।

हिरण्याक्ष के भुजा उखाड़े।।

*समुंद में डूबे धरती ला, तैंहर बाहिर निकाले हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


चौथा रूप मा नरसिंह बनके।

बने सहाई तैं सुर जन के।।

*हिरण्यकश्यप मार गिराके, प्रह्लाद पार लगाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


पाँचवा रूप धर वामन अवतारे।

राजा बलि के गरब उतारे।।

*नाप पाँव मा तीनो लोक, लीला गजब देखाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


परसुराम के ले अवतारे।

सहस्रबाहु ला दिये पछाड़े।।

*क्षत्रिय मनके गरब तोड़ के,जपतप जग ला सिखाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


सातवां अवतार मा बन राम।

त्रेता युग ला तारे तमाम।।

*मर्यादा पुरुषोत्तम बनके, रावण मार गिराये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


आठवा रूप मा बन गोपाला।

कहाये नंद यशोदा के लाला।।

*अर्जुन के रथ हाँक कन्हैया, धर्म ध्वजा लहराये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


नवम रूप मा बुद्ध बनके।

बनगेस राजा तैं जन जन के।।

*सत मारग धर जपतप करके,ज्ञान के धार बोहाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


कल्कि रूप धर आजा प्रभु जी।

कलजुग ला सिरजा जा प्रभु जी।।

*सुमरत हावन तोला भगवन, आके दरश देखाजा हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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........माते हे दही लूट..........

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गोकुल गँवागे,ब्रिज बोहागे |

सिरागे जम्मो सुख.............|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


परिया तरिया पार लुटागे |

डहर गाँव खेत-खार लुटागे |

नांगर बक्खर बखरी -बारी,

खेक्सा,करेला,सेमी नार लुटागे |

कागज कस फूल ममहाय नही|

गाय-गरवा कोनो ल भाय नही |

न गोपी हे न ग्वाला हे |

जम्मो मनचलहा, मतवाला हे |

नइ पीये दूध दही,

सब ढ़ोकत हें मँउहा घूट...............|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


जसोदा के लोरी लुटागे |

नंद ग्राम के  होरी लुटागे |

दुहना,मथनी,डोरी लुटागे |

किसन बलदाऊ के जोड़ी लुटागे |

पेंट पुट्टी के दिवाल म,

आठे कन्हैया नइ नाँचे |

घर घर भरे असुर के मारे,

गोकुल- मधुबन नइ बाँचे |

अपनेच पेट के देखइया सब,

सुदामा मरत हे भूख.................|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


पहली कस दही,

अब जमे नही |

घीव-लेवना नोहर होगे,

कड़ही तको बने नही |

दूध दही होटल म होत हे |

ग्वाल-बाल गली-गली म रोत हे |

न गौठान हे,न चरागन हे,

कहॉ बाजे बंसरी,नइ हे कदम रूख.....|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


                जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                        बाल्को(कोरबा )

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हाय--गाय-- कुंडलियाँ छंद

 हाय--गाय-- कुंडलियाँ छंद


काखर का गत हो जही, कोई पाय न जान।

गोधन के गत देख के, मुँद झन आँखी कान।।

मुँद झन आँखी कान, आज तैं चिंतन कर ले।

दूध दही घीं देय, तउन बहिरागे घर ले।।

माता घलो कहाय, नवावैं सब झन नित सर।

मरे कटे वो आज, काल का होही काखर।।


खैरझिटिया


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छेल्ला गरु गाय होगे।


जतके गोबर गौठान होइस, ततके बाय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


भाई बटवारा मा, ब्यारा नइ बाँचिस।

हार्वेस्टर के लुवई मा, चारा नइ बाँचिस।

गौठान कब्जागे, चरागन रुँधागे।

चरवाहा बपुरा, बिन बूता ऊँघागे।

कुकुर पलई फेसन होगे, गोधन हर्राय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


कूकर मा भात चूरे, नइ निकले पसिया।

ता भला काला पीही, गाय पँड़डू बछिया।

दूध दही घींव लेवना, दुकान मा बेंचात हे।

राउत भाई बहिनी मन,फोकटे हो जात हे।

ना दुहना ना मथनी, गजब दिन करोनी खाय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


गोबर कचरा काँदी पैरा, सबला फटफट लागे।

कोठा उप्पर बिल्ड़िंग बनगे, सुखयारिन बहू आगे।

यूरिया डीपी कस अउ बनगे, रंग रंग के खातू।

घुरवा गरुवा छोड़ छाड़ के, खुश हे आज बरातू।

गाय गरु के सड़क सहारा,बिन गोसँइयाँ हाय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


खेत मा नइहे, बइला बछवा के काम।

ता कोन करे ओखर, सेवा सुबे शाम।

ना लीपे बर गोबर चाही, ना बारे बर छेना।

ता गाय बइला बछवा ले, कोनो ला का लेना।

गौ सेवा गोविंद सेवा, पोथी मा लिखाय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


ना गाड़ा ना खाँसर, ना बेलन ना दँउरी।

अमेजन मा छेना,अमेजन मा गौरा गउरी।

केमिकल के स्वाद, जीभ ला भावत हे।

अमूल देवभोग साँची, घरों घर आवत हे।

स्वारथ सधत सेवा रिहिस, अब काय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


पहिली गौ महिमा संग,सेवा अउ गोदान चले।

पढ़े लिखे तक मन, सवारथ ले अंजान चले।।

विज्ञान के युग, गाय गरुवा ला गरू करदिस।

सुर-सुनता के संसार ला,  करू कर दिस।।

चुपचाप सब चलत रिहिस,हल्ला हर्राय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)