Thursday 25 October 2018

सवैया

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के सवैया

1,मतगयन्द सवैया(देवारी)
चिक्कन चिक्कन खोर दिखे अउ चिक्कन हे बखरी घर बारी।
हाँसत हे मुसकावत हे सज आज खुशी म सबे नर नारी।
माहर माहर हे ममहावत आगर इत्तर मा बड़ थारी।
नाचत हे दियना सँग देखव कातिक के रतिहा अँधियारी।

2,दुर्मिल सवैया(जय गणराज)
अरजी बिनती कर जोर करौं प्रभु मोर छुड़ावव राग ल हो।
धरके भटकौं बिरथा धन दौलत रोज सँकेलँव ताग ल हो।
तन भीतर बंम्बर मोह बरे प्रभु आन बुझावव आग ल हो।
सबके बिगड़ी ल बनाय गजानन मोर बनावव भाग ल हो।

3,मदिरा सवैया(बेजा कब्जा)
छेंकत हें सब खोर गली धरसा ह घलो नइ बाँचत हे।
मोर हरे कहिके सब जंगल झाड़ पहाड़ ल नापत हे।
गाँव गली घर खोर म झंझट देखव रोज ग मातत हे।
लालच मा सब छेंकत हावय फेर सबो बर आफत हे।

Monday 22 October 2018

घनाक्षरी

@@@घनाक्षरी@@@

मन म बुराई लेके,आलस के आघू टेके,
तप जप सत फेके,कैसे जाबे पार गा।
झन कर भेदभाव,दुख पीरा न दे घाव,
बढ़ाले अपन नाँव,जोड़ मया तार गा।
बोली के तैं मान रख,बँचाके सम्मान रख,
उघारे ग कान रख,नइ होवै हार गा।
पीर बन राम सहीं,धीर बन राम सहीं,
वीर बन राम सहीं,बुराई ल मार गा।

आशा विश्वास धर,सियान के पाँव पर,
दया मया डोरी बर,रेंग सुबे शाम के।
घर बन एक मान,जीव सब एक जान,
जिया कखरो न चान,छाँव बन घाम के।
मीत ग मितानी बना,गुरतुर बानी बना,
खुद ल ग दानी बना,धर्म ध्वजा थाम के।
रद्दा ग देखावत हे,जग ला बतावत हे,
अलख जगावत हे,चरित्र ह राम के।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Wednesday 17 October 2018

किसनहा आशिक


📝किसन्हा आसिक📝
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.....माटी ले जुंड़बोन.....
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नखरा नवा जमाना के,
मनखे ल चुरोना कस कांचही |
माटी ले जुंड़बोन  मितान,
तभे जिवरा  बांचही |
फिरिज टीभी कम्पूटर सस्तात हे,
मंहगात हे चांऊर दार |
सपना म घलो सपनाय नही खेती,
बेंचात हे खेतखार |
उद्धोग ढॉबा लाज बनत हे,
टेकत हे महल अटारी|
स्वारथ म रौंदाय भूंईया,
नईहे कोनो संगवारी |
पेट म मुसवा कुदही,
त कोन भला नांचही........ |
मांटी ले जुंड़बोन मितान,
तभे जिवरा बांचही |
खेती आज बेटी होगे,
भात नईहे कोनो |
चाहे देखावा कतरो बखाने,
फेर अपनात नईहे कोनो |
करजा म किसान ,
कलहर-कलहर के अधमरहा होगे |
मेहनत भर ओखर तीर ,
ब्यपारी तीर थरहा होगे |
भूख मरही किरसी भूंईया भारत,
म बिदेसिया घलो हांसही.......|
मांटी ले जुंड़बोन मितान,
तभे जिवरा बांचही  |
तंहू हस नंवकरी म,
मंहू हंव नंवकरी म,
पईसा हे ईफरात |
फेर दुच्छा हे हंड़िया,
दुच्छा हे परात |
कल कारखाना अंखमुंदा लगात  हे |
दार-चांउर छोंड़,आनी-बानी के चीज बनात हे|
हाय पईसा-हाय पईसा होगे,
का दुच्छा पेंट पईसा ल चांटही....?
मांटी ले जुंड़बोन मितान,
तभे जिवरा बांचही |
           
              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
                बाल्को(कोरबा

Thursday 11 October 2018

कलमकार

@@@कलमकार@@@

कलमकार  हरौं, चाँटुकार  नही।
दरद झेल सकथौं,फेर मार नही।

दुख के दहरा म,अन्तस् ल बोरे हँव।
अपन लहू म,कलम ल चिभोरे हँव।
मैं तो मया मधुबन चाहथौं,
मरुस्थल थार नही-----------

बने बात के गुण,गाथौं घेरी बेरी।
चिटिक नइ सुहाये,ठग-जग हेरा फेरी।
सत अउ श्रद्धा मा,माथ नँवथे बरपेली,
फेर फोकटे दिखावा स्वीकार नही-------

हारे ला ,हौंसला देथौं मँय।
दबे स्वर ला,गला देथौं मँय।
सपना निर्माण के देखथौं,
चाहौं  कभू उजार नही---------

समस्या बर समाधान अँव मैं।
प्रार्थना आरती अजान अँव मैं।
मनखे अँव साधारण मनखे,
कोनो ज्ञानी ध्यानी अवतार नही-------

फोकटे तारीफ,तड़पाथे मोला।
गिरे थके के संसो,सताथे मोला।
जीते बर उदिम करहूँ जीयत ले,
मानौं कभू हार नही-------------

ऊँच नीच भेदभाव पाटथौं।
कलम ले अँजोरी बाँटथौं।
तोड़थौं इरसा द्वेष क्लेश,
फेर मया के तार नही----------

भुखाय बर पसिया,लुकाय बर हँसिया अँव।
महीं कुलीन,महीं घँसिया अँव।
मँय मीठ मधुरस हरौं,
चुरपुर मिर्चा झार नही----------

हवा पानी अगास पाताल।
कहिथौं मँय सबके हाल।
का सजीव का निर्जीव मोर बर,
मँय लासा अँव,हँथियार नही-------

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

छप्पय छंद

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के छप्पय छंद

1,खुदखुशी
विनती हे कर जोर,गला झन फंदा डारव।
जिनगी हे अनमोल,हँसी अउ खुशी गुजारव।
जाना हे यम द्वार,एक दिन सब्बो झन ला।
जीवन अपन सँवार,रखव ये जग मा तन ला।
जीना हे दिन चार गा,थोरिक सोंच बिचार गा।
आखिर तो जाना हवै,अलहन खड़े हजार गा।

2,सागर तीर
बइठे सागर तीर,मजा लेवव लहरा के।
फोकट करौ न नाप,रेत पानी दहरा के।
कुदरत के ये देन,पार पाना मुश्किल हे।
इहाँ ठिहा घर ठौर,असन कतको ठन बिल हे।
सागर जब शांत हे, तब तक तट मा खेल लौ।
करनी झन बिरथा करौ,दया मया नित मेल लौ।

3,पर्यावरण संरक्षण
पर्यावरण बँचाव,उजारौ झन बिरवा बन।
पुरवा पानी साफ,रहै ठाँनव ये सब झन।
गलत कभू झन होय,भूल के सपना मा जी।
होही घर बन राख,लगाहू जब जब आगी।
करौ जतन जुरमिल सबो,होही तब उद्धार जी।
पुरवा पानी बन धरा,जिनगी के हे सार जी।

Monday 8 October 2018

तोर साथ

.........    तोर साथ    .........
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तोर साथ ,   मोर   साँस  बन    जहि।
मिलाबों हाथ,बैरी बर फाँस बन जहि।

के दिन भुकरही,पूँजीवाद के गोल्लर?
बर  एकता  के डोरी, नाथ  बन जहि।

झुँझकुर झाड़ी,ठाड़-ठाड़ काँटा ले झन डर्रा,
हटा  मिलजुल  के, रेंगे  बर  पात  बन जहि।

झन अँटिया,फोकटे-फोकट पैसा-कउड़ी म।
मिलके  नाच - गा, जिनगी  रास  बन  जहि।

झन  कलकलान दे,  काली कस कोनो ल,
नही ते जीयत मनखे घलो,लास बन जहि।

हाड़ा  कस  हँव, फेर  हाँकत  हँव  ए  जुग  ल,
दुरिहाहूँ महिनत ले,त तोर तन मॉस बन जहि।

दू दिन के जिनगी म,दुवा लेके जी जी"जीतेन्द्र"।
बखाना-सरापा  एक दिन तोर, नास  बन  जहि।

              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
               बालको(कोरबा)
               9981441795

कज्जल छंद(नवरात)

नवरात्रि(कज्जल छंद)

लागे महिना,हे कुँवार।
बोहावत हे,भक्ति धार।
सजा दाइ बर,फूल हार।
सुमिरन करके,बार बार।

महकै अँगना,गली खोल।
अन्तस् मा तैं,भक्ति घोल।
जय माता दी,रोज बोल।
मनभर माँदर,बजा ढोल।

सबे खूँट हे,खुशी छाय।
शेर सवारी,चढ़े आय।
आस भवानी,हा पुराय।
जस सेवा बड़,मन लुभाय।

पबरित महिना,हरे सीप।
मोती पा ले,मोह तीप।
घर अँगना तैं,बने लीप।
जगमग जगमग,जला दीप।

माता के तैं,रह उपास।
तोर पुराही,सबे आस।
आही जिनगी,मा उजास।
होही दुख अउ,द्वेष नास।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)




कज्जल छंद(देवारी)

कज्जल छंद
मानत हे सब झन तिहार।
घर कुरिया सब हे तियार।
उज्जर उज्जर घर दुवार।
महल घलो नइ पाय पार।

बोहावय जी मया धार।
लामे हावय सुमत नार।
बखरी बारी खेत खार।
नाचे  घुरवा कुँवा पार।

चमचम  चमके सबे तीर।
बने  घरो  घर फरा खीर।
महके  होयव  मन अधीर।
का राजा अउ का फकीर।

झड़के भजिया बरा छान।
नाचे लइका अउ सियान।
सुनके  दोहा  सुवा गान।
भरे अधर हे ग मुस्कान।

देवारी   हे    परब   आय।
हाँस हाँस  के सब मनाय।
सबके मन मा खुसी छाय।
दया  मया  के सुर लमाय।

रिगबिग  दीया  के अँजोर।
का घर अउ का गली खोर।
परले पँउरी हाथ जोर।
भाग बनाही दाइ तोर।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Thursday 4 October 2018

मौत दिंयार के

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के कुंडलियाँ छंद

1,करनी के फल
माटी कठवा ला करे,खाके जउन दिंयार।
तेखर नाँव बुझात हे,बाँटव सब ला प्यार।
बाँटव सब ला प्यार,ठिकाना का जिनगी के।
करके फोकट बैर,भला का पाहू जी के।
काँटय छाँटय जौन,होय मनखे या चाँटी।
करम करै बेकार,खुदे मिल जावै माटी।

2,आगी जंगल के
दहकत हे जंगल अबड़,बरै डार अउ पान।
भागत हे सब जीव मन,अपन बँचाके जान।
अपन बँचाके जान,छोड़ के जंगल झाड़ी।
हरियर हरियर पेड़,जरै जइसे गा काड़ी।
कतको जरगे जीव,पड़े कतको हे लहकत।
कइसे आग बुझाय,अबड़ जंगल हे दहकत।

3,दाना पानी चिरई बर
चहके चिरई डार मा,देख उलाये चोंच।
दाना पानी डार दे,मनखे थोरिक सोंच।
मनखे थोरिक सोंच,घाम हा गजब जनाये।
जल बिन कतको जीव,तड़प के गा मर जाये।
घाम सहे नइ जाय,बिकट भुँइया हा दहके।
पानी रखबे ढार,द्वार मा चिरई चहके।

देख देवारी दिनों दिन दुबरात हे

देख देवारी,दिनों-दिन दुबरात हे।
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अँगसा-सँगसा म दिया,कोन  जलाय?
दूसर संग अब  जिया , कोन  मिलाय?
कोन   हटाय  , कांदी  -  कचरा    ल?
कोन   पाटे ,  खोंचका -  डबरा     ल?
मनखे के मन म,हिजगा पारी हमात हे।
देख  देवारी ,दिनों - दिन , दुबरात    हे।

पाँच    दिन    के    तिहार    बर,
पाख   भर   पहिली  जोरा  होय।
छभई  - मुँदई ,   लिपई  -  पोतई,
साफ-सफई,कचरा  कोरा   होय।
नाचे नवा-नवा होके,गली -  खोर।
सुघराई राहय,ए छोर ले ओ छोर।
फेर मनखे अब ,जांगर  चोरात हे।
देख देवारी ,दिनों-दिन  दुबरात हे।

तेरस के यम दिया, कोन  जलाय हे?
चऊदस म बिहनिया ,कोन नहाय हे?
कोन दाई लक्षमी बर , चँऊक पुरे हे?
कहाँ कढ़ी म,कोमढ़ा-कोचेई बुड़े हे?
छिनमिनात हे,गोबरधन के गोबर ले,
भाई-दूज  बर  घर म ,कोन राहत हे?
देख देवारी, दिनों- दिन  दुबरात  हे।

कोठा म घलो कहाँ,गाय बँधाय हे।
सुपा म  कोन, सुखधना मड़ाय हे?
कति बाजत हे,सींग-दफड़ा-दमऊ?
कति  पहटिया,सोहई  धर आय हे?
अँटात हे तेल ,दिया के दिनों - दिन।
सिरात हे मया,जिया के दिनों -दिन।
का     करहि     फोड़     फटाका ?
मनखे   बम   कस   गोठियात    हे।
देख  देवारी , दिनों - दिन दुबरात हे।

पहिरे    हे   नवा- नवा  कुर्था,
फेर      मन   मइलाय      हे।
पीये      हे   मंद  -     मँऊहा,
मास   -   मटन     खाय    हे।
देख      तभो      पापी     ल ,
दाई           लक्षमी         तीर,
पइसा   माँगे    ल   आय  हे।
हुदरइया- कोचकइया  मिलथे,
नचइया    -     गवइया   नही।
ददा-दाई ल  ,बेटा नइ मिलत हे,
बहिनी     ल     भईया      नही।
कोन   जन  का   चीज  धरे  हे?
सबो अपने   अपन अँटियात हे।
देख देवारी,दिनों-दिन दुबरात हे।

    जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
     बालको(कोरबा)
     9981441795

दाई(शंकर छँद)

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के शंकर छंद
(महतारी)

महतारी कोरा मा लइका,खेल खेले नाँच।
माँ के राहत ले लइका ला,आय कुछु नइ आँच।
दाई दाई काहत लइका,दूध पीये हाँस।
महतारी हा लइका मनके,हरे सच मा साँस।1।

करिया टीका माथ गाल मा,कमर करिया डोर।
पैजन चूड़ा खनखन खनके,सुनाये घर खोर।
लइका के किलकारी गूँजै,रोज बिहना साँझ।
महतारी के लोरी सँग मा,बजै बाजा झाँझ।2।

धरे रथे लइका ला दाई,बाँह मा पोटार।
अबड़ मया महतारी के हे,कोन पाही पार।
बिन दाई के लइका के गा,दुक्ख जाने कोन।
दाई हे तब लइका मनबर,हवे सुख सिरतोन।3।

Tuesday 2 October 2018

काबर

एक ठन अइसने चलती फिरती मन म आगे

मनखे मनखे सब एक हे,
त मोर अउ पर काबर।

गुजारा कुँदरा म हो सकथे,
त आलीशान घर काबर।

गाँव गंगा मथुरा काँसी,
त भाथे शहर काबर।

बेरा सब हे एक बरोबर,
त सुबे शाम दोपहर काबर।

साँस रोक घलो मर सकथस,
त पीथस जहर काबर।

सुख शांति के तहूँ पुजारी,
त मचथे कहर काबर।

दया मया नइ हे जिवरा म,
त काँपथे थर थर काबर।

सताये नहीं संसो काली के,
त कोठी हे भर भर काबर।

पीये बर घर म पानी नही,
त फोकटे नहर काबर।

बात जावत हे जिया तक,
त बइठाना बहर काबर।

लाँघ सकथस कानून कायदा,
त खोजथस डहर काबर।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)