जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के सवैया
1,मतगयन्द सवैया(देवारी)
चिक्कन चिक्कन खोर दिखे अउ चिक्कन हे बखरी घर बारी।
हाँसत हे मुसकावत हे सज आज खुशी म सबे नर नारी।
माहर माहर हे ममहावत आगर इत्तर मा बड़ थारी।
नाचत हे दियना सँग देखव कातिक के रतिहा अँधियारी।
2,दुर्मिल सवैया(जय गणराज)
अरजी बिनती कर जोर करौं प्रभु मोर छुड़ावव राग ल हो।
धरके भटकौं बिरथा धन दौलत रोज सँकेलँव ताग ल हो।
तन भीतर बंम्बर मोह बरे प्रभु आन बुझावव आग ल हो।
सबके बिगड़ी ल बनाय गजानन मोर बनावव भाग ल हो।
3,मदिरा सवैया(बेजा कब्जा)
छेंकत हें सब खोर गली धरसा ह घलो नइ बाँचत हे।
मोर हरे कहिके सब जंगल झाड़ पहाड़ ल नापत हे।
गाँव गली घर खोर म झंझट देखव रोज ग मातत हे।
लालच मा सब छेंकत हावय फेर सबो बर आफत हे।
1,मतगयन्द सवैया(देवारी)
चिक्कन चिक्कन खोर दिखे अउ चिक्कन हे बखरी घर बारी।
हाँसत हे मुसकावत हे सज आज खुशी म सबे नर नारी।
माहर माहर हे ममहावत आगर इत्तर मा बड़ थारी।
नाचत हे दियना सँग देखव कातिक के रतिहा अँधियारी।
2,दुर्मिल सवैया(जय गणराज)
अरजी बिनती कर जोर करौं प्रभु मोर छुड़ावव राग ल हो।
धरके भटकौं बिरथा धन दौलत रोज सँकेलँव ताग ल हो।
तन भीतर बंम्बर मोह बरे प्रभु आन बुझावव आग ल हो।
सबके बिगड़ी ल बनाय गजानन मोर बनावव भाग ल हो।
3,मदिरा सवैया(बेजा कब्जा)
छेंकत हें सब खोर गली धरसा ह घलो नइ बाँचत हे।
मोर हरे कहिके सब जंगल झाड़ पहाड़ ल नापत हे।
गाँव गली घर खोर म झंझट देखव रोज ग मातत हे।
लालच मा सब छेंकत हावय फेर सबो बर आफत हे।