Saturday 31 December 2022

नूतन वर्ष 2023 के आप सबो ल सपरिवार बधाई, नमन

 उत्तरोत्तर उन्नति करो, जीवन में हो हर्ष।

सुख समृद्धि सत शान्ति ले,आये नूतन वर्ष।।


बधाई नवा बछर के(सार छंद)


हवे  बधाई   नवा   बछर   के,गाड़ा  गाड़ा  तोला।


सुख पा राज करे जिनगी भर,गदगद होके चोला।


सबे  खूँट  मा  रहे  अँजोरी,अँधियारी  झन  छाये।


नवा बछर हर अपन संग मा,नवा खुसी धर आये।


बने चीज  नित नयन निहारे,कान सुने सत बानी।


झरे फूल कस हाँसी मुख ले,जुगजुग रहे जवानी।


जल थल का आगास नाप ले,चढ़के उड़न खटोला।


हवे  बधाई  नवा  बछर  के,गाड़ा  गाड़ा  तोला----।


धन बल बाढ़े दिन दिन भारी,घर लागे फुलवारी।


खेत  खार  मा  सोना  उपजे,सेमी  गोभी  बारी।


बढ़े बाँस कस बिता बिता बड़,यश जश मान पुछारी।


का  मनखे  का  जीव जिनावर, पटे  सबो सँग तारी।


राम रमैया कृष्ण कन्हैया,करे कृपा शिव भोला-----।


हवे  बधाई  नवा  बछर के,गाड़ा  गाड़ा  तोला------।


बरे बैर नव जुग मा बम्बर,बाढ़े भाई चारा।


ऊँच नीच के भेद सिराये,खाये झारा झारा।


दया मया के होय बसेरा,बोहय गंगा धारा।


पुरवा गीत सुनावै सबला,नाचे डारा पारा।


भाग बरे पुन्नी कस चंदा,धरे कला गुण सोला।


हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला---।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को(कोरबा)


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गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


नवा बछर मा नवा आस धर,नवा करे बर पड़ही।


द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


साधे खातिर अटके बूता,डॅटके महिनत चाही।


भूलचूक ला ध्यान देय मा,डहर सुगम हो जाही।


चलना पड़ही नवा पाथ मा,सबके अँगरी धरके।


उजियारा फैलाना पड़ही, अँधियारी मा बरके।


गाँजेल पड़ही सबला मिलके,दया मया के खरही।


द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


जुन्ना पाना डारा झर्रा, पेड़ नवा हो जाथे।


सुरुज नरायण घलो रोज के,नवा किरण बगराथे।


रतिहा चाँद सितारा मिलजुल,रिगबिग रिगबिग बरथे।


पुरवा पानी अपन काम ला,सुतत उठत नित करथे।


मानुष मन सब अपन मुठा मा,सत सुम्मत ला धरही।


द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


गुरतुर बोली जियरा जोड़े,काँटे चाकू छूरी।


घर बन सँग मा देश राज के,संसो हवै जरूरी।


जीव जानवर पेड़ पकृति सँग,बँचही पुरवा पानी।


पर्यावरण ह बढ़िया रइही, तभे रही जिनगानी।


दया मया मा काया रचही,गुण अउ ज्ञान बगरही।


द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा(छग)


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गजल- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


बिछे जाल देख के मोर उदास हावे मन हा।


बुरा हाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।1


बढ़े हे गजब बदी हा, बहे खून के नदी हा।


छिले खाल देख के मोर उदास हावे मन हा।2


अभी आस अउ बचे हे, बुता खास अउ बचे हे।


खड़े काल देख के मोर उदास हावे मन हा।।3


गला आन मन धरत हे, सगा तक दगा करत हे।


चले चाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।4


कती खोंधरा बनावँव, कते मेर जी जुड़ावँव।


कटे डाल देख के मोर उदास हावे मन हा।5


धरे हाथ मा जे पइसा, उही लेगे ढील भँइसा।


गले दाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।।6


कई खात हे मरत ले, ता कहूँ धरे धरत ले।


उना थाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।7


जे कहाय अन्न दाता, सबे मारे वोला चाँटा।


झुके भाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।8


नशा मा बुड़े जमाना, करे नाँचना नँचाना।


नवा साल देख के मोर उदास हावे मन हा।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को, कोरबा(छग)


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घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


             1


बिदा कर गाके गीत,बारा मास गये बीत।


का खोयेस का पायेस,तेखर बिचार कर।।


गाँठ बाँध बने बात,गिनहा ला मार लात।


बाइस के अटके ला,तेइस मा पार कर।।


बैरी झन होय कोई,दुख मा न रोय कोई।


तोर मोर छोड़ संगी,सबला जी प्यार कर।।


जग म जी नाम कमा,सबके मुहुँ म समा।


बढ़ा मीत मितानी ग,दू ल अब चार कर।।


              2


गुजर गे बारा मास,बँचे जतके हे आस।


पूरा कर ये बछर,हटा जमे रोक टोंक।।


मुचमुच हाँस रोज,पथ धर चल सोज।


बुता काम बने कर,खुशी खुशी ताल ठोंक।


दिन मजा मा गुजार,बांटत मया दुलार।


खाले तीन परोसा जी,लसून पियाज छोंक।।


नवा नवा आस लेके,दिन तिथि खास लेके।


हबरे बछर नवा,हमरो बधाई झोंक।।


              3


होय झन कभू हानि,चले बने जिनगानी।


बने रहे छत छानी,बने मुड़की मिंयार।।


फूल के बिछौना रहै, महकत दौना रहे।


जीव शिव प्रकृति के,सदा मिले जी पिंयार।।


आदर सम्मान बढ़े,भाग नित खुशी गढ़े।


सपना के नौका चढ़े,होके घूम हुसियार।।


होवै दिन रात बने,मनके के जी बात बने।


नवा साल खास बने,भागे दूर अँधियार।।


               4


सबे चीज के गियान,पा के बनो गा सियान।


गाँव घर देश राज,छाये चारो कोती नाम।।


मीठ करू खारो लेके,सबके जी आरो लेके।


सेवा सतकार करौ,धरम करम थाम।।


खुशी खुशी बेरा कटे,दुख के बादर छँटे।


जिनगानी मा समाये,सुख शांति सुबे शाम।।


हमरो झोंको बधाई,संगी संगवारी भाई।


नवा बछर मा बने,अटके जी बुता काम।।


                5


अँकड़ गुमान फेक,ईमान के आघू टेक।


तोर मोर म जी मन, काबर सनाय हे।।।


दुखिया के दुख हर,अँधियारी म जी बर।


कतको लाँघन परे, कतको अघाय हे।।।


उही घाट उही बाट,उही खाट उही हाट।


उसनेच घर बन,तब नवा काय हे।। ।।।।


नवा नवा आस धर,काम बुता खास कर।


नवा बना तन मन,नवा साल आय हे।।।।


जीतेंद्र वर्मा""खैरझिटिया


बाल्को,कोरबा


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Happy new year 2023

नवा साल मा का नवा

नवा साल मा का नवा

                   मनखे मन कस समय के उमर एक साल अउ बाढ़गे, अब 2022 ले 2023 होगे। बीते समय सिरिफ सुरता बनगे ता नवा समय आस। सुरुज, चन्दा, धरती, आगास, पानी, पवन सब उही हे, नवा हे ता घर के खूंटी मा टँगाय कलेंडर, जेमा नवा बछर भर के दिन तिथि बार लिखाय हे। डिजिटल डिस्प्ले के जमाना मा कतको महल अटारी मा कलेंडर घलो नइ दिखे, ता कतको गरीब ठिहा जमाना ले नइ जाने। आजकल जुन्ना बछर ला बिदा देय के अउ नवा बछर के परघवनी करे के चलन हे, फेर उहू सही रद्दा मा कम दिखथे। आधा ले जादा तो मौज मस्ती के बहाना कस लगथे। दारू कुकरी मुर्गी खा पी के, डीजे मा नाचत गावत कतको मनखे मन घुमत फिरत होटल,ढाबा, नही ते घर,छत मा माते रहिथे। अब गांव लगत हे ना शहर सबे कोती अइसनेच कहर सुनाथे, भकर भिकिर डीजे के शोर अउ हाथ गोड़ कनिहा कूबड़ ला झटकारत नवा जमाना के अजीब डांस संगे संग केक के कटई, छितई अउ एक दूसर ऊपर चुपरई, जइसन अउ कतकोन चोचला हे, जेला का कहना । 
              भजन पूजन तो अन्ग्रेजी नवा साल संग मेल घलो नइ खाय, ना कोनो कोती देखे बर मिले। लइका सियान सब अंग्रेजी नवा साल के चोचला मा मगन अधरतिहा झूमरत रहिथे, अउ पहात बिहनिया खटिया मा अचेत, वाह रे नवा साल। फेर आसाढ़, सावन, भादो ल कोनो जादा जाने घलो तो नही, जनवरी फरवरी के ही बोलबाला हे। ता भले चैत मा नवा साल मनाय के कतको उदिम करन, नवा महीना के रूप मा जनवरी ही जीतथे, ओखरे संग ही आज के दिन तिथि चलथे। खैर समय चाहे उर्दू मा चले, हिंदी मा चले या फेर अंग्रेजी मा, समय तो समय ये, जे गतिमान हे। सूरुज, चन्दा, पानी पवन सब अपन विधान मा चलत हे, मनखे मन कतका समय मा चलथे, ते उंखरें मन ऊपर हें। समय मा सुते उठे के समय घलो अब सही नइ होवत हे। लाइट, लट्टू,लाइटर रात ल आँखी देखावत हे, ता बड़े बड़े बंगला सुरुज नारायण के घलो नइ सुनत हे। मनखे अपन सोहलियत बर हाना घलो गढ़ डरे हे, जब जागे तब सबेरा---- अउ जब सोय तब रात। ता ओखर बर का बाईस अउ का तेइस, हाँ फेर नाचे गाये खाय पीये के बहाना, नवा बछर जरूर बन जथे।आज मनखे ना समय मा हे, ना विधान मा, ना कोनो दायरा मा। मनखे बलवान हे , फेर समय ले जादा नही।
           वइसे तो नवा बछर मा कुछु नवा होना चाही, फेर कतका होथे, सबे देखत हन। जब मनुष नवा उमर के पड़ाव मा जाथे ता का करथे? ता नवा साल मा का करही? केक काटना, नाचना गाना, पार्टी सार्टी तो करते हे, बपुरा मन।वइसे तो कोनो नवा चीज घर आथे ता वो नवा कहलाथे, फेर कोनो जुन्ना चीज ला धो माँज के घलो नवा करे जा सकथे। कपड़ा,ओन्हा, घर, द्वार, चीज बस सब नवा बिसाय जा सकथे, फेर तन, ये तो उहीच रहिथे, अउ तन हे तभे तो चीज बस धन रतन। ता तन मन ला नवा रखे के उदिम मनखे ला सब दिन करना चाही। फेर नवा साल हे ता कुछ नवा, अपन जिनगी मा घलो करना चाही। जुन्ना लत, बैर, बुराई ला धो माँज के, सत, ज्ञान, गुण, नव आस विश्वास ला अपनाना चाही। तन अउ मन ला नवा करे के कसम नवा साल मा खाना चाही, तभे तो कुछु नवा होही।  जुन्ना समय के कोर कसर ला नवा बेरा के उगत सुरुज संग खाप खवात नवा करे के किरिया खाना चाही। जुन्ना समय अवइया समय ला कइसे जीना हे, तेखर बारे मा बताथे। माने जुन्ना समय सीख देथे अउ नवा समय नव आस। इही आशा अउ नव विश्वास के नाम आय नवा बछर। हम नवा जमाना के नवा चकाचौंध  तो अपनाथन, फेर जिनगी जीये के नेव ला भुला जाथन। हँसी खुसी, बोल बचन, आदत व्यवहार, दया मया, चैन सुकून, सेवा सत्कार आदि मा का नवा करथन। देश, राज, घर बार बर का नवा सोचथन, स्वार्थ ले इतर समाज बर, गिरे थके, हपटे मन बर का नवा करथन। नवा नवा जिनिस खाय पीये,नवा नवा जघा घूमे फिरे  अउ नाचे गाये भर ले नवा बछर नवा नइ होय।
               नवा बछर ला नवा करे बर नव निर्माण, नव संकल्प, नव आस जरूरी हे। खुद संग पार परिवार,साज- समाज अउ देश राज के संसो करना हमरे मनके ही जिम्मेदारी हे। जइसे  कोनो हार जीते बर सिखाथे वइसने जुन्ना साल के भूल चूक ला जाँचत परखत नवा साल मा वो उदिम ला पूरा करना चाही। कोन आफत हमला कतका तंग करिस, कोन चूक ले कइसे निपटना रिहिस ये सब जुन्ना बेरा बताथे, उही जुन्ना बेरा ला जीये जे बाद ही आथे नव आस के नवा बछर। ता आवन ये नवा बछर ला नवा बनावन अउ दया मया घोर के नवा आसा डोर बाँधके, भेदभाव, तोर मोर, इरखा, द्वेष ला जला, सबके हित मा काम करन, पेड़,प्रकृति, पवन,पानी, छीटे बड़े जीव जन्तु सब के भला सोचन, काबर कि ये दुनिया सब के आय, पोगरी हमरे मनके नही, बिन पेड़,पवन, पानी अउ जीव जंतु बिना अकेल्ला हमरो जिनगी नइहे। नवा बछर के बहुत बहुत बधाई-----

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)