Saturday 18 September 2021

तीजा सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 तीजा

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


लइका लोग ल धरके गेहे,मइके मोर सुवारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।


कभू भात चिबरी हो जावै,कभू होय बड़ गिल्ला।

   बर्तन भँवड़ा झाड़ू पोछा,हालत होगे ढिल्ला।

   एक बेर के भात साग हा,चलथे बिहना संझा।

मिरी मसाला नमक मिले नइ,मति हा जाथे कंझा।

दिखै खोर घर अँगना रदखद,रदखद हाँड़ी बारी।

   खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।1।


सुते उठे के समय बिगड़गे,घर बड़ लागै सुन्ना।

  नवा पेंट कुर्था मइलागे,पहिरँव ओन्हा जुन्ना।

कतको कन कुरथा कुढ़वागे,मूड़ी देख पिरावै।

     ताजा पानी ताजा खाना,नोहर होगे हावै।

कान सुने बर तरसत हावै,लइकन के किलकारी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।2।


खाये बर कहिही कहिके,ताकँव मुँह साथी के।

चना चबेना मा अब कइसे,पेट भरे हाथी के।

मोर उमर बढ़ावत हावै,मइके मा वो जाके।

राखे तीजा के उपास हे,करू करेला खाके।

चारे दिन मा चितियागे हँव,चले जिया मा आरी।

खुदे बनाये अउ खाये के,अब आगे हे पारी।3।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

पता-बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)


राखी-बरवै छंद

 राखी-बरवै छंद


राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।

भैया मोला देबे, मया दुलार।।


जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।

सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।


राखी रक्षा करही, बन आधार।

करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।


झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।

दया मया बरसाबे, देबे मान।।


हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।

नता बहिन भाई के, होही पोठ।।


धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।

बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।


राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।

आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।


सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।

जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।


लइकापन के सुरता, आथे रोज।

रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।


कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।

जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।


पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।

देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।


मोरो अँगना आबे, भैया मोर।

जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)