Thursday 22 November 2018

मुक्ताहारा सवैया

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के सवैया छंद

1,गंगोदक सवैया(लीम के पेड़)
लीम के पेड़ देथे हवा रोज ताजा जगालौ सबे तीर हे काम के।
दाँत सफ्फा करै रोग राई हरै तोड़ चाबौ मुखारी सुबे शाम के।
फायदा का कहौं लीम के तेल के होय पाना ग डारा सबो दाम के।
बैठ पंछी घलो हा लुभाये जिया ला रखौ लीम के पेड़ ला थाम के।

2,सुमुखी सवैया(हाय पइसा)
धरा म खड़े मनखे मन देखव हाथ लमाय अगास हवै।
करै मनके धन मा तनके बल बुद्धि घलो सब नास हवै।
रुतोवय नीर जराय जिया बगरा अँधियार गियास हवै।
कहाँ करथे सत काम कभू रुपिया पइसा बस खास हवै।

3,मुक्ताहारा सवैया(जुलूम जुलूस के)
भरे रिस मा मनखे मन बार दिये कतको घर मोटर कार।
धरे लउठी चिचियावत हे लहरावत हे टँगिया तलवार।
गली घर खोर के होय उजार थमे पहिया चुप हाट बजार।
जुलूस जुलूम करे ग हजार नफा बर चार धरे हथियार।

Tuesday 20 November 2018

बागीश्वरी सवैया

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के सवैया छंद

1,सुखी सवैया(लइकापन)
बरदी नरवा तरिया परिया म सबो झन जा मिल कूदन खेलन।
कतको बड़का बिरवा ह रहे अमली अमुवा फर टोरन झेलन।
सब संग म अब्बड़ आय मजा दँउरी चढ़ जाँवन खाँसर बेलन।
फुतका कुधरा म सनाय रहे तन फेर जिया म मया बड़ मेलन।

2,महाभुजंग प्रयात छंद(आना के जमाना)
रहे हाथ मा चार आना ग भैया खुशी के रहे ना ठिकाना ग भैया।
जमाये रहे धाक आना सबो तीर का बैंक बाजार थाना ग भैया।
तिजोरी म बाजे बड़े छोट के गा चले देख आना जमाना ग भैया।
पुछारी कहाँ हे चँवन्नी अठन्नी आये नही एक दाना ग भैया।

बागीश्वरी सवैया(वीर जवान)
मले मूड़ मा धूल माटी धरा के सिवाना म ठाढ़े हवे वीर गा।
दिखे तोप गोला सहीं आग काया त आधे भला कोन हा तीर गा।
नँवाये मुड़ी जेन माँ भारती पाँव ओला खवाये बरा खीर गा।
गड़ाये कहूँ देश मा आँख बैरी त फेंके भँवाके जिया चीर गा।

सवैया

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" के सवैया छंद

1,मंदारमाला सवैया(वाह रे मनखे)
काया म माया चढ़ाये फिरे गा मया के ठिहा ठौर खाली करे।
टोरे भरोसा बने लालची आज के संत चोरी ग काली करे।
कैसे बढ़े बाग बारी के पौधा ग छेरी सहीं काम माली करे।
माने नहीं आदमी बात बानी ग खाये उही छेद थाली करे।

2,सर्वगामी सवैया(ताजा खाना पीना)
तातेच खाना मिठाये सुहाये बिमारी ल बासी ग खाना ह लाने।
ताजा रहे साग भाजी घलो हा पियौ तात पानी ग रोजेच छाने।
धोवौ बने हाथ खाये के बेरा म कौंरा कभू पेट जादा न ताने।
खाये ग कौंरा पँचाये बने तेन गा आदमी रोग राई न जाने।

3,आभार सवैया(मीठ बानी)
बोली बने बोल भाही सबे हा कहाँ रास आथे ग कोनों ल चारी ह।
चोरी चकारी म बाढ़े नही शान नत्ता मया ला मताये ग गारी ह।
ओखी ग मारे बुता ला बिगाड़े त कैसे भला तोर होही पुछारी ह।
बोली म घोरे मया मीत जौने पटे ओखरे गा सबे संग तारी ह।

Monday 19 November 2018

देव उठनी तिहार के सादर बधाई

देव उठनी तिहार के सादर बधाई

रूपमाला छन्द

देवउठनी आज हे छाये हवे उल्लास।
हूम के धुँगिया उड़े महकै धरा आगास।
चौंक चंदन मा फभे अँगना गली घर खोर।
शंख  घन्टी मन्त्र सुन नाँचे जिया बन मोर।

घींव के दीया बरै कलसा म हरदी रंग।
ब्याह बंधन मा बँधे बृंदा बिधाता संग।
आम पाना हे सजे मंडप बने कुसियार।
आरती  थारी  म  माड़े  फूल गोंदा हार।

जागथे ये दिन देवता  होय मंगल काज।
दान दक्षिणा करे ले पुण्य मिलथे आज।
लागथे  मेला  मड़ाई  बाजथे  ढम ढोल।
रीस रंजिस नइ रहै मनखे रहै दिल खोल।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा

Thursday 8 November 2018

मातर हे मोर गाँव म


मातर हे मोर गाँव म
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देवारी के बिहान दिन,
मातर हे मोर गाँव  म।
नेवता   हे झारा-झारा,
घरो-घर उघरा राचर हे,
मोर  गाँव म---------।

गाँव-गुढ़ी   के  मान  म।
सकलाबोन गऊठान म।
राऊत भाई मन,मातर जागही।
सिंग - दमऊ - दफड़ा बाजही।
खीर-पुड़ी  बरा-सोंहारी,
संग     घरो  - घर    चूरे,
अंगाकर हे मोर गाँव म।
देवारी  के  बिहान दिन,
मातर हे  मोर  गाँव  म।
गाय-गरु संग,गाँव के गाँव नाचही।
अरे  ररे  हो कहिके,दोहा  बाँचही।
डाँड़   खेलाही , गाय - बछरू   ल,
खीर  -  पुड़ी  के ,परसाद  बाँटही।
अंगना - दुवारी  कस , सबके  मन,
चातर हे मोर गाँव म।
देवारी के बिहान दिन,
मातर हे मोर गाँव  म।
घरो-घर गोबरधन,
भगवान  देख ले।
मेमरी-सिलिहारि
संग खोंचाय हे,
धान  देख   ले।
डोली-डंगरी,गली-खोर संग,
नाचे लइका-सियान देख ले।
मया मोठ हे,
बैर पातर हे मोर गाँव म।
देवारी  के  बिहान  दिन,
मातर  हे  मोर  गाँव  म।
नेवता   हे    झारा-झारा,
घरो-घर   उघरा राचर हे,
मोर   गाँव   म---------।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

Friday 2 November 2018

सवैया

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" के सवैया छंद

1,किरीट सवैया(जड़काला)
साँझ सुबे ह सुहाय नही रतिहा बइरी कस लागत हावय।
जाँगर जाड़ म हे अँकड़े अँखिया रतिहा भर जागत हावय।
नाक बहै अउ दाँत बजे बड़ जाड़ म देखव का गत हावय।
सूरज देव घलो तरसावय होत बिहान ले भागत हावय।

2,चकोर सवैया(धान लुवई)
हाथ धरे धरहा हँसिया बड़ मारत हे ग उछाह उफान।
मूड़ म ललहूँ पटकू ल लपेट किसान चले ग लुवे बर धान।
गावत हे करमा सुर मा मन भावत हावय जेखर तान।
धान दिखे चरपा चरपा पिंवरा करपा बड़ पावय मान।

3,अरसात सवैया(अंत समे)
मोर कही झपटे धन दौलत फोकट रोज करे अतलंग जी।
मीत मया सत छोड़ दया तँय काबर छेड़त हावस जंग जी।
के दिन काम दिही धन दौलत साथ न देवय रूप न रंग जी।
छूट जही सब अंत समे बस तोर रही करनी हर संग जी।