Monday 26 April 2021

तुलसीदास अउ छत्तीसगढ़-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 तुलसीदास अउ छत्तीसगढ़-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                   गोस्वामी तुलसीदास जी हमर छत्तीसगढ़ राज म रामचरित मानस के माध्यम ले गांव गांव अउ घर घर म पूज्यनीय हे, कोनो परब-तिहार, छट्ठी बरही, मरही हरनी सबे दुख सुख के बेरा म गोस्वामी जी के पावन कृति"रामचरितमानस" घरो घर म पढ़े सुने जाथे। चाहे कोनो गाँव होय या शहर जमे कोती गाँव गाँव, पारा पारा म एक दू ठन रमायण मण्डली खच्चित मिलथे। तुलसीकृत रामचरित के दोहा चौपाई जमे छत्तीसगढ़िया मनके अंतर आत्मा म समाय हे, ते पाय के कभू अइसे नइ लगिस कि गोस्वामी जी आन कोती के आय, सदा अइसे लगथे, कि हमरे अपने राज के आय। गोस्वामी महराज ह हम सब छत्तीसगढ़िया मन ल दुर्लभ प्रसाद देहे, अउ हम सबके दिलो दिमाक म सदियों ले राज करत आवत हे,, अउ अवइया समे घलो राज करही। तुलसीकृत रामचरित मानस अउ अवधी म लिखे अन्य ग्रंथ मन छत्तीसगढिया मन ल सहज ही समझ आ जथे, काबर कि माता कौशल्या के मइके छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी और अयोध्या के अवधी म एक दुसर के राज म अवई जवई ले दुनो भाषा आपस म चिपक गे रिहिस। यहू कारण तुलसीदास की के अवधी म रचित ग्रंथ ह छत्तीसगढ़िया मन बर अटपटा नइ लगय। तुलसीदास जी के जयंती छत्तीसगढ़ म धूमधाम से मनाये जाथे, ये दिन राम कथा पाठ अउ भजन कीर्तन जम्मो कोती होथे। सिरिफ छत्तीसगढ़ मन ही नही बल्कि पूरा भारत वर्ष तुलसीदास जी के राम चरित रूपी भव तरे बर डोंगा ल पाके कृतार्थ हें।

                  कथे कि तुलसीदास जी महाराज प्रभु कृपा अउ अपन आत्म शक्ति ले कलयुग के मनखे मन बर भगसागर तरे बर डोंगा(रामचरित मानस) के रचना करिन। तुलसीदास जी ल महर्षि बाल्मीकि जी के अवतार घलो माने जाथे। संगे सँग यहू कहे जाथे कि तुलसीदास जी ल शिव पार्वती, बजरंगबली के संगे संग भगवान राम, लक्ष्मण अउ जॉनकी समेत दर्शन देय रिहिस।


*चित्रकूट की घाट पर, भये सन्तन की भीड़।*

*तुलसीदास चन्दन घँसे, तिलक देत रघुवीर।*


 गोस्वामी जी के रचना म दोहा चौपाई अउ कतको प्रकार के छ्न्द के माध्यम से छत्तीसगढ़ सँउहत शोभा पाथे। पुनीत ग्रंथ ल पढ़के अइसे लगथे कि तुलसीदास जी महाराज छत्तीसगढ़ म घूम घूम के रामचरित मानस के रचना करे हे। भगवान राम अपन वनवास के बनेच समय छत्तीसगढ़ म गुजारे हे।जुन्ना समय म छत्तीसगढ़ दण्डकारण्य कहलावै, अउ तुलसीदास जी महाराज कतकोन बेर अपन रचना म इही नाम ल सँघेरे हे-


*दण्डक बन प्रभु कीन्ह सुहावन।जन मन अमित नाम किये पावन*


तुलसीदास जी महाराज रामचरित मानस के रचना करत बेरा छत्तीसगढ़ ल अपन अंतरात्मा ले देखे हे। तभे तो इहाँ के संत मुनि-दीन दुखी मनके पीरा ल हरत भगवान राम ल देखाय हे।उत्तर छत्तीसगढ़ म सरभंग ऋषि के आश्रम म पहुँचे के चित्रण गोस्वामी जी के रचना म मिलथे----


*तुरतहि रुचिर रूप तेहि पावा।देखि दुखी निज धाम पठावा*

*पुनि आए जहँ मुनि सरभंजा।सुंदर अनुज जानकी संगा*


पुत्र यज्ञ बर छत्तीसगढ़ ले सृंगी ऋषि के अयोध्या जाय के वर्णन, अउ श्री राम के  सिहावा पर्वत म बाल्मीकि आश्रम आय के वर्णन , गोस्वामी तुलसीदास जी अपन महाकाव्य म करे हे-

*सृंगी ऋषिहि वशिष्ट बोलावा। पुत्र काम शुभ यज्ञ करावा।*


*देखत बन सर सैल सुहाये।बाल्मीकि आश्रम प्रभु आये।*


येखर संगे संग गोस्वामी तुलसीदास जी ह, सिहावा पर्वत अउ महानदी के पावन जल के घलो बड़ मनभावन ढंग ले चित्रण करे हे-


*तब रघुवीर श्रमित सिय जानी। देखि निकट बटु शीतल पानी।*

*तहँ बसि कंद मूल फल खाई। प्रात नहाइ चले रघुराई।*


*राम दीख मुनि वायु सुहावन। सुंदर गिरि कानन जलु पावन*

*सरनि सरोज विटप बन फूले।गूँजत मंजु मधुप रस भूले।*


भगवान राम के आय ले, सन्त मन के संगे संग,,दण्डक बन के जीव जानवर मनके मनोदशा देखावत तुलसीदास जी लिखथे---


*खग मृग विपुल कोलाहल करही।बिरहित बैर मुदित मन चरही।*

*नव पल्लव कुसुमित तरु नाना।चंचरीक चटली कर गाना।*

*सीतल मंद सुगंध सुभाउ।सन्तत बटइ मनोहर बाउ।*

*कूह कूह कोकिल धुनि करही।सुनि रव सरस ध्यान मुनि टरही।*

*चक्रवाक बक खग समुदाई।देखत बनइ बरनि नहि जाई।*


न देखत बने, न बरनत, गोस्वामी जी के अइसन पंक्ति देखत कभू नइ लगे कि गोस्वामी जी दण्डक बन के शोभा ल आँखी म नइ देखे होही।


तुलसीदास जी महराज महानदी के तट म भगवान के रद्दा जोहत शबरी माता के घलो कथा बताये हे, राम जी के दर्शन माता शबरी पाय हे अउ संग म नवधा भक्ति के धारा घलो बहे हे-


*ताहि देइ गति राम उदारा।शबरी के आश्रम प्रभु धारा*

(पक्षी राज ल परम् गति देय के बाद प्रभु राम जी शबरी के आश्रम घलो पहुँचिस।)


तुलसीदास जी महराज शबरी के हाथ ले भगवान राम ल कंद मूल फल देय के घलो बात केहे हे-


*कंद मूल फल सुरस अति, दिए राम कहुँ आनि।*

*प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि*


जंगल म निवास करत दीन दुखी मुनि जन मनके रक्षा बर भगवान राम ल असुरन मन ले लड़े के बात घलो गोस्वामी जी कहे हे, रेंड नदी के तट म बसे रक्सगन्डा नामक जघा, खरौद म खरदूषण, राक्षसराज विराट, अउ मरीज के सँघार के घलो बात दण्डक बन ले जुड़े हे---


*दंडक बन पुनीत प्रभु करहू।उग्र साप मुनिवर कर हरहू*

*बास करहु तहँ रघुकुल राया। कीजे सकल मुनिह पर दाया।*


गोस्वामी तुलसीदास जी के महाकाव्य ले सहज ही पता लगथे कि ज्यादातर अरण्य कांड के घटना दण्डक बन याने छत्तीसगढ़ ले जुड़े हे। जेमा- पंचवटी निवास, खरदूषण वध, मारीच प्रसंग, सीताहरण, शबरी कृपा आदि


 वइसे तो आने आने  राज के मनखे मन पंचवटी ल अपन अपन क्षेत्र (मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र,उत्तराखण्ड) म होय के बात करथे, फेर सीताबेंगरा, जोगीमारा गुफा म स्थित  लक्षमण गुफा अउ लक्षमण रेखा के साथ साथ गोस्वामी तुलसीदास जी के कतको चौपाई , अउ घटना क्रम जेमा, मारीच वध, खरदूषण वध, आदि छत्तीसगढ़ म होय के पुख्ता सबूत देथे-


*पंचवटी बसि श्री रघुनायक। करत चरित सुर मुनि सुखदायक।*


सूर्पनखा अपन नाक कान कटे के बाद खरदूषण ल जाके कइथे-

*खरदूषण पहि गइ बिलपाता। धिग धिग तव पौरुष बल भ्राता।*


*धुँवा देखि खरदूषण केरा।जाइ सुपरखा रावण केरा।*


एक सुनत जानकारी अनुसार अपन जीवन के आखिर समय म लवकुश जन्मस्थली म तीन दिन बर गोस्वामी जी छत्तीसगढ़ आये रहिन अउ उँहे अपन कृति कवितावली के तीन ठन छ्न्द ल सिरजाइन। रामचरित मानस ल पढ़त सुनत अइसे लगथे कि तुलसीदास जी ह छत्तीसगढ़ म ही रहिके, छत्तीसगढ़ी संग मिलत जुलत भाषा म छत्तीगढ़िया मनके कल्याण बर रामचरित मानस के रचना करे हे। छत्तीसगढ़ ल रासमय करे म गोस्वामी जी के अहम योगदान हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Saturday 24 April 2021

लाकडाउन काल होगे

 लाकडाउन काल होगे


              अहा का विपत आगे हे, मनखे ल समाजिक प्राणी कथे तभो समाज म नइ उठ बइठ पावत हे। वाह रे कोरोना तोर झट परे रोना। तोर सेती गाँव शहर सबे जघा चमाचम लाकडाउन हे। दुनिया म पइसा कौड़ी के हिसाब ले तीन प्रकार के मनखे हे-अमीर, मध्यम अउ गरीब। अमीर अउ मध्यम वर्गीय मन कइसनो करके अइसन आफत के समय ल घर म रहिके काटत हें, फेर गरीब मन खुदे कटा जावत हे। हमर जनसंख्या के आधा ले जादा परिवार के गुजारा भीड़ ले होथे, फेर शासन प्रशासन के फरमान के बाद, डाकडाउन के बेरा म , अइसन परिवार मनके आय के जरिया सिरागे हे। रोज के रोज कमइया खवइया आज बेबस अउ लाचार हे। कुछ सरकारी अउ प्रायवेट वाले मनके नवकरी चलत हे ,त कुछ ल सरकार घर बैठे पइसा देवत हे, फेर डेली वेज म  कोनो दुकान, होटल या मिल म रोज काम करइया नवकर चाकर मन,होटल, ढाबा, दुकान मिल, फैक्टरी के बन्द होय ले, बिन पइसा के घर म उदास  पड़े हे। कतको मनखे मन तिहार बार अउ समय सीजन के हिसाब ले घलो काम धंधा करथे, उहू मन घर म धँधागे हे।

            जे मन ये भयानक रोग के रोगी हे, तेला अस्पताल के चिन्ता हे, कि रक्तबीज कस बढ़त कोरोना म ओखर इलाज  हो पाही की नही।  अस्पताल वाले ल बेड अउ आक्सीजन सिलेंडर के चिंता हे, कतको विद्यार्थी मन ल अपन पढ़ई लिखई के चिंता हे, कतको नेता मन ला कुर्सी के चिंता हे, व्यपारी मन ल वैपार के चिंता हे, खात पियत आदमी मन ल अपन इम्युनिटी बनाके रखे के चिंता हे, फेर एक तपका अइसनो घलो हे जेला काली का होही, तेखर चिंता हे, ओला पेट भरे बर रोटी के चिंता हे। आँखी सरलग नदिया बरोबर बहत हे, अइसन समय म, उहू मन ल तो कोरोना ले लड़े बर अपन स्वास्थ्य ल धियान म रखना पड़ही। फेर ओखर तो पेटे नइ भरत हे, इम्युनिटी भला कइसे बढ़ही। एकात हप्ता के लाकडाउन ल पानी पसिया पीके, छाती म पथरा लाद के काट घलो सकथे, फेर पाख अउ महीना भर के समय, दुख ल धरे काटे त, कइसे काटे। कोरोना म वोमन जब मरही तब मरही ,फिरहाल तो भुखमरी अउ संसो म मर जावत हे। रोज कमइया खवइया अउ भीड़ जिंखर जीविका के आधार आय, लाकडाउन म उंखर जिनगी असहाय होगे हे। जीविका यापण करे बर कतको मन रोज जाँगर पेरथे त कतको मन कोनो छोटे मोटे काम धंधा करथे। फेर आज सब चीज बन्द हे, ओमन बेबस होके, घर म धँधा गेहे। मदद करइया मन घलो एक दू दिन पेज पसिया पीया सकथे, फेर जादा दिन तक कोन काखर ठेका लेहे।  डाकडाउन के निर्णय कोरोना ले बचे बर सरकारी फरमान हे, त ये तपका के मनखे मनके संसो करना भी सरकार अउ प्रशासन के कर्तव्य हे। बीमारी के रोकथाम होय कहिके कोनो ल तन मन से बीमार करना ठीक नोहे। ये भयानक महामारी के  उपाय यदि लाकडाउन आय, त अइसन मनखे मन ऊपर धियान देना भी जरूरी हे, जेला दू टेम के रोटी नइ मिल पॉवत हे। आखिर ओमन अपन पेट बर लड़े कि स्वास्थ्य बर। पेटे नइ भरही त का शिक्षा अउ स्वास्थ्य। आवन कुछु काम धंधा ऊपर विचार करीं----


*फेरी वाले* ---

कतको मनखे मन अपन जीवका यापन करे बर, कतको किसम के समान ल शहर गांव म घूम घूम के चिल्ला चिल्ला के बेंचथे। जइसे मनियारी समान वाले, लोहा लख्खड़, प्लासटिक के कबाड़ लेवइया, पेपर लेवइया, लइका मनके खिलौना, कपड़ा-लत्ता, साबुन-सोडा, फल, साग-भाजी, दरी-चद्दर, झाड़ू, फूल, गमला, पेड़ पौधा, गुपचुप चाँट, लाड़ू मुर्रा, पॉपकॉर्न,कुल्फी, बरफ, प्लास्टिक समान, डबलरोटी,अंडा, भुट्टा, दार-चाँउर, जूता-चप्पल, बरतन, जइसे कई समान के बेचइया मन घर म बइठे बइठे के दिन रही सकही। एखर संगे संग खेल मदारी,सर्कस वाले, मिक्सी-कुकर बनइया, कैंची धार करइया, सबके घर घूम घूम के काम करइया आदि सबके हाल बेहाल हें। वइसे दूध,डबलरोटी, अंडा अउ साग भाजी ल कुछ समय बर छूट देहे, तभो कतकोन के अभो रोना हे।


*छोटे मोटे दुकान अउ ठेला ठपरी वाले*---


कतको मन दू पइसा के आस म टीन छप्पर छाके  छोटे मोटे दुकान चलावै, उहू मन आज बेबस पड़े हे। जइसे- छोटे छोटे कपड़ा दुकान, बरा भजिया के होटल, पान ठेला, चाय ठेला, जूता चप्पल दुकान, पंखा कूलर बनइया मिस्त्री, स्टूडियो अउ फ़ोटो कॉपी, फल अउ जूस ठेला, हजामत दुकान,फोटू बंधइया, पिसई कुटई वाले हालर मिल, फूल माला वाले, गद्दा वाले, माटी के बरतन वाले, बाँस के समान वाले, लोहा के समान वाले,चाँट गुपचुप वाले, सरबत ठेला, चिकन मटन दुकान, हवा पंचर वाले, बरफ गोला,अंडा रोल,टोस बिस्कुट, आदि कतको धंधा पानी बंद हे, अउ अइसन काम करइया मनखे मनके हालत तंग हे।


*शादी बिहाव अउ कोनो उत्सव म काम करइया*--


कोरोना के सेती शादी बिहाव ह घलो बेंड बराती बिन दुच्छा बुलक जावत हे ,एखर कारण अइसन समय म काम करइया कतको मनखे मन संसो म हे, फूल, साज सज्जा, केटरिंग के नवकर चाकर, बाजा गाजा वाले,नाचे गाये वाले, घोड़ी वाले, गाड़ी वाले, नाचा गम्मत वाले, फोटू वीडियो वाले संग अइसन बेरा म काम करइया बनिहार, भूतिहार सबे बेबस हे।


*ऑटो, टाँगा, रिक्सा वाले*--


कोरोना काल म अवई जवई घूमई फिरई बन्द हे ते पाय के ऑटो, रिक्सा, टॉगा अउ छोटे मोटे सवारी गाड़ी अउ समान ढुलइया गाड़ी चलइया मन घलो शासन प्रशासन के मुँह ताके बर मजबूर होगे हे।


*टूरिज्म*--


 हमर देख के कतको हिस्सा के जीवका के साधन सिर्फ अउ सिर्फ टूरिज्म आय, फेर कोरोना के चलते कोनो घुमइया फिरइया नइ आवत हे, ते पाय के अइसन जघा के मनखे मन घलो आफत भरे समय ह कइसे कटही कहिके चिंतित हे।


*मजदूर अउ अन्य*--


                        येखर आलावा रोज जाँगर खपा के पइसा कमइया कमिया संगी मन घलो कोरोना काल म बेबस घर म पड़े हे, दिहाड़ी मजदूर,लेबर कूली, घरों घर काम करइया बाई अउ नवकर,माली, धोबी, नाई, लोहार, कुम्हार, पेंटर, ड्राइवर, कलाकार,सबके बारा हाल होगे हे। कोरोना के डर में कोनो इंखर ले काम नइ लेवत हे। अउ बिन काम के कोन पइसा दिही। ट्रेन अउ सड़क म घूम घूम ताली बजाके पइसा मंगइया अउ भीख  मंगइया मन घलो करे त का करे। सरकार के दू रुपिया किलो वाले चाँउर ल घलो बिसाये बर कतकोन गरीब तीर पइसा नइहे हे। कतको कमइया मन बड़े बड़े शहर म जाके काम करे, लाकडाउन लगे ले ओमन अपन गांव लहुट गेहे अब उंखर बर अइसन आफत भरे समय ल काटना दूभर होगे हे। कोरोना काल म सब राशन दुकान बंद पड़े हे , येखर कारण रोजमर्रा के समान मन घलो बड़ मंहगा होगे हे। तेल, नून के जुगाड़ कर पाना कतको बर बड़ मुश्किल होगे हे, अइसन म वोमन गरीबी ले लड़े की कोरोना ले। लाकडाउन म मनखे त मनखे पोंसवा जीव जानवर मन घलो दाना पानी बर तड़प जावत हे, मंडी, बाजार होटल ढाबा बंद होय ले कुकुर माकर अउ गाय गरुवा मन भूख मर जावत हे, जेन सज्जन मन दू रोटी गउ माता ल खवाय उहू मन अपन हाथ ल बाँध लेहे। कुछ मनखे मन खुदे दाना पानी बर तरसत हे त ओमन भला जीव जानवर के सेवा कइसे करे। बिना दाना पानी काँदी पेरा के शहर नगर म पइधे गाय गरुवा के मरना होगे हे, उही हाल कुकुर अउ चिरई, बिलई के घलो हे। उहू एक चिंतनीय पक्ष हे। कोरोना ले बचे बर यदि लाकडाउन कारगर उपाय हे त, लॉकडाउन म प्रभावित मनखे अउ जीव जानवर मन ऊपर घलो धियान दे बर पड़ही तभे तो सब मिल के कोरोना ले लड़ पाबों।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Thursday 22 April 2021

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" का तोला परघाँव(सरसी छ्न्द)

 गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

का तोला परघाँव(सरसी छ्न्द)


का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।

कोरोना हे काल बरोबर, घड़ी घड़ी घबराँव।।


चहल-पहल नइहे मंदिर मा, नइहे तोरन ताव।

डर हे बस अन्तस् के भीतर, भक्ति हवै ना भाव।

जिया बरत हे बम्बर मोरे, कइसे जोत जलाँव।

का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।


मनखे मनखे ले दुरिहागे, खोगे सब सुख चैन।

लइका संग जवान सबे के, बरसत हावै नैन।

मातम पसरे हवै देख ले, शहर लगे ना गाँव।

का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।


जियई मरई सब एक्के लागे, मचगे हाँहाकार।

रक्तबीज कस बढ़े कोरोना, लेके आ अवतार।

आफत भारी हवै टार दे,परौं तोर मैं पाँव।

का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" धरती दाई

 लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


धरती दाई


जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।

पेड़ पात बिन दिखे बोंदवा, धरती के ओना कोना।।


टावर छत मीनार हरे का, धरती के गहना गुठिया।

मुँह मोड़त हें कलम धरइया, कोन धरे नाँगर मुठिया।

बाँट डरे हें इंच इंच ला, तोर मोर कहिके सबझन।

नभ लाँघे बर पाँख उगा हें, धरती मा रहिके सबझन।

माटी ले दुरिहाना काबर, आखिर हे माटी होना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।।


दाना पानी सबला देथे, सबके भार उठाय हवै।

धरती दाई के कोरा मा, सरी संसार समाय हवै।

मनखे सँग मा जीव जानवर, सब झन ला पोंसे पाले।

तेखर उप्पर आफत आहे, कोन भला ओला टाले।

धानी रइही धरती दाई, तभे उपजही धन सोना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।


होगे हे विकास के सेती, धरती के चउदा बाँटा।

छागे छत सीमेंट सबे कर, बिछगे हे दुख के काँटा।

कभू बाढ़ मा बूड़त दिखथे, कभू घाम मा उसनावै।

कभू काँपथे थरथर थरथर, कभू दरक छाती जावै।

देखावा धर मनुष करत हे, स्वारथ बर जादू टोना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Tuesday 13 April 2021

सरई के सिंगार- दोहा गीत

 सरई के सिंगार- दोहा गीत


सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार।

रहिरहि के नचवात हे, गा गा गीत बयार।।


फूल लगे कलगी असन, ओन्हा जइसे पात।

माते फागुन मास मा, सरई हा दिन रात।।

नवा फूल अउ पान मा, गमकत हावै खार।

सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार......


बने रँगोली तरु तरी, झरथे जब जब फूल।

जंगल लेवय जी चुरा, सुधबुध जाये भूल।

अमरत हवय अगास ला, मानत नइहे हार।

सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार.....


सजे साल ला देख के, गूलर डुमर लजाय।

मउहा सेम्हर मौन हे, परसा जलजल जाय।

बन के जम्मो पेड़ हा, नइ पावत हें पार।

सबके जिया लुभात हे, सरई के सिंगार...


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

फेर एक अउ खूनी खेल,,, दुखद

 फेर एक अउ खूनी खेल,,,  दुखद


काबर लालेच म खेलथस???

ंंंंंंंंंंंंंंंंंं

अऊ तो रंग बहुत हे.

काबर लालेच म खेलथस ?

हॉसत खेलत जिन्गी म,

काबर बारूद मेलथस. !!

पीके पानी फरी,

जुडा़ अपन नरी,

फेर काबर लहू पियत हस ?

मनखे अस मन म समा,

रक्सा कस का जियत हस !

हरिंयर रंग हरागे हे,

ललहूं होगे हे माटी !

थोरकन तो दया धरम देखा,

का पथरा के हे तोर छाती?

भरके बंदूक म  गोली,

निरदई कस ठेलथस......

अऊ तो रंग ............

.............खेलथस  ???


बंदूक गईंज चलायेस,

कभू राज चला के देख !

मारे हस जेखर गोंसईंया,बेटा ल,

ओखरो घर आके देख,!.

मनखे होके मनखे ल ,                                                                                                                                                                     खावत हस नोंच नोंच !

फिलगे हे अचरा आंसू म,

अब ताे दाई के आंसू पोंछ !

छेदा छेदा के बम बारूद म,

दाई के छाती चानी हाेगे हे !

तरिया ढोंड़गा नरवा के पानी,

ललहुं  बानी होगे हे  !

कोन देखाथे ऑखी तोला,

बता!! का बात ल पेलथस .?.......

अऊ तो रंग................

.....................खेलथस ??


जंगल के जीव जीवलेवा हे,

फेर तोर जइसे नही,!

कहां लुकाबे बनवासी बन,

जब राम आ जही!

छीत मया के रंग,

अऊ खेल रंग गुलाल ले,!

नाच पारा -पारा बाजे नंगाडा़!

निकल जंगल के जाल ले!

खेल खेल म का खेले तैं,

मनखे के जीव लेलेय तैं,

अति के अंत हब ले होही,

बात मोर मान ले!

लड़ना हे त देश बर लड़,

छाती फूलाके शान ले!

फूल-फूलवारी मितान बना,

आखिर काखर बात ल हेलथस??

अऊ तो रंग.....................

.............................खेलथस????

जीतेन्र्द वर्मा

खैरझिटी(राजनांदगांव)

एक दिन के दिवस(सार छंद)

 एक दिन के दिवस(सार छंद)


का  का  दिवस  मनाथौ  भैया,सुनके  काँपे  पोटा।

नेत नियम कुछु आय समझ ना,धरा दुहू का लोटा।


चर दिनिया हे मानुष काया,हाँसी खुशी गुजारौ।

धरत हवै भुतवा पश्चिम के,दया मया ले झारौ।

संस्कृति अउ संस्कार बचावौ,आदत नियत सुधारौ।

सबके जिया मा बसव बने बन,कखरो घर झन बारौ।

सोज्झे मुरुख बनावत फिरथौ,अपन उठा के टोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा-----।


दाई  बाबू  के  पूजा  तो,रोजे होना  चाही।

रोजे जागे देश प्रेम हा,तभे बात बन पाही।

पवन पेड़ पानी ला जतनौ,रोजे पुण्य कमावौ।

धरती  दाई  के  सुध  लेवव,पर्यावरण बचावौ।

गौरया के गीत सुनौ नित,मारव झन जी गोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा।


हूम  देय  कस  काज करौ झन,करौ झने देखावा।

अइसन दिवस मनावौ झन जे,फूटय बनके लावा।

मीत  मितानी  रोजे  बढ़ही,रोजे  धन  दोगानी।

एक दिवस मा काम चले नइ,कहौ मीठ नित बानी।

थामव कर मा डोर मया के,झन धर घूमव सोंटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा--।


दाई ददा गुरू ज्ञानी ला, दिन तिथि मा झन बाँधौ।

देखावा मा उधौ बनव ना, देखावा मा माँधौ।

छोट बड़े ला दया मया नित, हाँस हाँस के बाँटौ।

धरे एक दिन फूल गुलाब ल, कखरो सिर झन चाँटौ।

पश्चिम के परचम लहरावत, बनव न सिक्का खोटा।

का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा--।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरखिटिया"

बाल्को(कोरबा)

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


का तोला परघाँव(सरसी छ्न्द)


का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।

कोरोना हे काल बरोबर, घड़ी घड़ी घबराँव।।


चहल - पहल नइहे मंदिर मा, नइहे तोरन ताव।

डर हे बस अन्तस् के भीतर, भक्ति हवै ना भाव।

जिया बरत हे बम्बर मोरे, कइसे जोत जलाँव।

का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।


मनखे मनखे ले दुरिहागे, खोगे सब सुख चैन।

लइका संग सियान सबे के, बरसत हावै नैन।

मातम पसरे हवै देख ले, शहर लगे ना गाँव।

का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।


जियई मरई एक्के लागे, होवय हाँहाकार।

रक्तबीज कस बढ़े कोरोना, लेके आ अवतार।

आफत भारी हवै टार दे,परौं तोर मैं पाँव।

का तोला परघाँव भवानी, का तोला परघाँव।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

नवा बछर (सार छंद)

 नवा बछर (सार छंद)


फागुन के  रँग कहाँ उड़े हे, कहाँ  उड़े हे मस्ती।

नवा बछर धर चैत हबरगे,गूँजय घर बन बस्ती।


चैत  चँदैनी  चंदा  चमकै,चमकै रिगबिग जोती।

नवरात्री के पबरित महिना,लागै जस सुरहोती।

जोत जँवारा  तोरन  तारा,छाये चारों कोती।

झाँझ मँजीरा माँदर बाजै,झरै मया के मोती।

दाई  दुर्गा  के  दर्शन ले,तरगे  कतको  हस्ती।

फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।


कोयलिया बइठे आमा मा,बोले गुरतुर बोली।

परसा  सेम्हर  पेड़  तरी  मा,बने  हवै रंगोली।

साल लीम मा पँढ़री पँढ़री,फूल लगे हे भारी।

नवा  पात धर नाँचत हावै,बाग बगइचा बारी।

खेत खार अउ नदी ताल के,नैन करत हे गस्ती।

फागुन  के रँग कहाँ उड़े  हे,कहाँ  उड़े हे मस्ती।


बर  खाल्हे  मा  माते पासा, पुरवाही मन भावै।

तेज बढ़ावै सुरुज नरायण,ठंडा जिनिस सुहावै।

अमरे बर आगास गरेरा,रहि रहि के उड़ियावै।

गरती चार चिरौंजी कउहा,मँउहा बड़ ममहावै।

लाल कलिंदर खीरा ककड़ी,होगे हावै सस्ती।

फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।


खेल मदारी नाचा गम्मत,होवै भगवत गीता।

चना गहूँ सरसो घर आगे,खेत खार हे रीता।

चरे  गाय गरुवा मन मनके,घूम घूम के चारा।

बर बिहाव के बाजा बाजै,दमकै गमकै पारा।

चैत अँजोरी नवा साल मा,पार लगे भव कस्ती।

फागुन के रँग  कहाँ  उड़े  हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरखिटिया"

बाल्को(कोरबा)


नवा बच्छर के आप सबला सादर बधाई🙏🏻🙏🏻💐💐🙏🏻💐🙏🏻💐🙏🏻🛕🛕