Saturday 30 December 2023

विकास बर विनास(गीत)

 विकास बर विनास(गीत)


फकत लकड़हारा अउ, टँगिया बदनाम हे।

हाथ म विकास के, जल जंगल नीलाम हे।


सड़क झड़क दिस, भात बासी रुक्ख ला।

बेबस हे पर्यावरण, कहय काय दुक्ख ला।

सुख सुविधा स्वारथ मा, लूट खुले आम हे।

हाथ म विकास के, जल जंगल नीलाम हे।।


जंगल मा कब्जा, व्यपारी के हो गे।

खुले कारखाना, खेती बाड़ी सो गे।

जहर महुरा उगले, तभो नइ लगाम हे।।

हाथ म विकास के, जल जंगल नीलाम हे।


भुइयाँ खोदागे, सोन चाँदी के आस मा।

जल जंगल बेचागे, शहरी विकास मा।।

नवा नवा मसीन मा, कटत पेड़ तमाम हे।।

हाथ म विकास के, जल जंगल नीलाम हे।


सरकारी आदेश मा, पेड़ पहाड़ कटगे।

भुइयाँ सुरंग बनगे, नदी नरवा पटगे।।

पेड़ लगाओ कहिके, चोचला सुबे शाम हे।।

हाथ म विकास के, जल जंगल नीलाम हे।।


मरे जिवो होवत हे, प्रकृति के क्षरण।

नेत नियम भुलागे, हावय पर्यावरण।

बेमौसम हवा पानी, मरत ले घाम हे।

हाथ म विकास के, जल जंगल नीलाम हे।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

जरूर देखव-

https://youtu.be/qG4BPW_ssNw


हसदेव अरण्य बचाओ,, छत्तीसगढ़ बचाओ।।

मोर महिनत🌾

 🌾🌾मोर महिनत🌾🌾

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तउलागे तराजू बॉट म मोर महिनत।

बेंचागे मंडी हाट म मोर महिनत।।


अबड़ दिन सिधोयेव,जांगर टोर-टोर के,

सकलागे दुई  दिन रात म मोर महिनत।


चर्ररस-चर्ररस चलिस,हँसिया धान मा,

गँजागे करपा बन, पाँत म मोर महिनत।


लुवागे, सकलागे, मिंजाके भरागे बोरा म,

गड़त हे ब्यपारी के दाँत म मोर महिनत।।


तउल दिस लकर धकर, दे दिस दाम औने-पौने ,

चार ठन कागज बन,माड़े हे ऑट म मोर महिनत।


सपना संजोये रेहेंव, हँरियर धान ला नाचत देख,

दाना के दाम म दबगे,एके साँस म मोर महिनत।


उधार-बाड़ी,लागा-बोड़ी छुटत-छुटत,

कुछु नइ  बांचिस, हाथ म मोर महिनत।


               जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

                 बालको(कोरबा)

                  9981441795

मोर गाँव के मड़ई- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

 मोर गाँव के मड़ई- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


               किनकिन किनकिन जनावत पूस के जाड़ म ज्यादातर दिसम्बर के आखरी सोमवार या फेर जनवरी के पहली सोमवार के होथे, मोर गाँव खैरझिटी के मड़ई। हाड़ ल कपावत जाड़ म घलो मनखे सइमो सइमो करथे। राजनांदगांव- घुमका-जालबांधा रोड म लगे दईहान म, मड़ई के दिन गाय गरुवा के नही, बल्कि मनखे मनके भीड़ रथे। मड़ई के दू दिन पहली ले रामायण के आयोजन घलो होथे, ते पाय के सगा सादर घरो घर हबरे रइथे। लगभग दू हजार के जनसंख्या अउ तीर तखार 2-3 किलोमीटर के दुरिहा म चारो दिशा म बसे गाँव के मनखे मन, जब संझा बेरा मड़ई म सकलाथे, त पाँव रखे के जघा घलो नइ रहय। अउ जब मड़ई के बीचों बीच यादव भाई मन बैरंग धरके दोहा पारत,  दफड़ा दमउ संग नाचथे कुदथे त अउ का कहना। बिहना ले रंग रंग के समान, साग भाजी अउ मेवा मिठाई के बेचइया मन अपन अपन पसरा म ग्राहक मनके अगोरा करत दिखथें। एक जुवरिहा भीड़ बढ़त जथे, अउ संझौती 4-5 बजे तो झन पूछ। दुकानदार मनके बोली, रइचुली के चीं चा, लइका सियान मनके शोर अउ यादव भाई मनके दोहा दफड़ा दमउ के आवाज म पूरा गाँव का तीर तखार घलो गूँज जथे। मड़ई के सइमो सइमो भीड़ अउ शोर सबके मन ल मोह लेथे।

                        मड़ई म सबले जादा भीड़ भाड़ दिखथे, मिठई वाले मन कर। वइसे तो हमर गाँव म तीन चार झन मिठई वाले हे, तभो दुरिहा दुरिहा के मिठई बेचइया मन आथे, अउ रतिहा सबके मिठई घलो उरक जाथे। साग भाजी के पसरा म सबले जादा शोर रथे, उंखरो सबो भाजी पाला चुकता सिरा जथे। खेलौना, टिकली फुँदरी, झूला सबे चीज के एक लाइन म पसरा रहिथे। सबे बेचइया मन  भारी खुश रइथे,अउ अपन अपन अंदाज म हाँक पारथे। होटल के गरम भजिया-बड़ा, मिठई वाले के गरम जलेबी, लइका सियान सबे ल अपन कोती खीच लेथे।मड़ई म लगभग सबे समान के बेचइया आथे, चाहे फोटू वाला होय, चाहे साग-भाजी या फेर मनियारी समान। नवा नवा कपड़ा लत्ता म सजे सँवरे मनखे मन, चारो कोती दसो बेर घूम घूम के मजा उड़ावत समान लेथे। रंग रंग के फुग्गा, गाड़ी घोड़ा म लइका मन त, टिकली फुँदरी म दाई दीदी मनके मन रमे रइथे।

                   मड़ई के दिन मोर का, सबे के खुशी के ठिकाना नइ रहय।  ननपन ले अपन गाँव के मड़ई ल देखत घूमत आये हँव, आजो घलो घुमथों। पहली पक्की सड़क के जघा मुरूम वाले सड़क रिहिस, तीर तखार के मनखे मन रेंगत अउ गाड़ी बैला म घलो हमर गांव के मड़ई म आवँय, सड़क अउ जेन मेर मड़ई होय उँहा के धुर्रा के लाली आगास म छा जावय, अइसे लगय कि डहर बाट म आगी लग गेहे, जेखर लपट ऊपर उठत हे, अइसनेच हाल मड़ई ठिहा के घलो रहय। फेर सीमेंट क्रांकीट के जमाना म ये दृश्य अब नइ दिखे। चना चरपट्टी के जघा अब कोरी कोरी गुपचुप चाँट के ठेला दिखथे, संगे संग अंडा चीला अउ एगरोल के ठेला घलो जघा जघा मड़ई म अब लगे रहिथे। अब तो बेचइया मन माइक घलो धरे रइथे, उही म चिल्ला चिल्लाके अपन समान बेचत दिखथे। नवा नवा  किसम के झूलना घलो आथे, फेर अइसे घलो नइहे कि पुराना झूलना नइ आय। रात होवत साँठ पहली मड़ई लगभग उसल जावत रिहिस, फेर अब लाइट के सेती 7-8 बजे तक घलो मड़ई म चहल पहल रहिथे। होटल के भजिया बड़ा पहली घलो पुर नइ पावत रहिस से अउ आजो घलो नइ पुरे। पान ठेला के पान अउ गरम जलेबी बर पहली कस आजो लाइन लगाए बर पड़थे। मिठई वाले मन पहली गाड़ा म आवंय, अब टेक्कर,मेटाडोर म आथें। मड़ई के दिन बिहना ले गाँव म पहली खेल मदारी वाले वाले घलो आवत रिहिस फेर अब लगभग नइ आवय। पहली कस दूसर गाँव के मनखे मन घलो जादा नइ दिखे। 

                कभू कभू कोनो बछर दरुहा मंदहा अउ मजनू मनके उत्लंग घलो देखे बर मिलय, उनला बनेच मार घलो पड़े। गाँव के कोटवार, पंच पटइल के संग अब पुलिस वाला घलो दिखथे, ते पाय के झगड़ा लड़ई पहली कस जादा नइ होय। मैं मड़ई म नानकुन रेहेंव त दाई  मन संग घूमँव, अउ बड़े म संगी मन  संग, अब लइका लोग ल घुमावत घुमथों अउ संगी मन संग घलो। संगी संगवारी मन संग पान खाना, होटल म भजिया बड़ा खाना, एकात घाँव रयचूली झूलना, फोटू वाले ले फोटू लेना, मेहंदी लगवाना, खेलौना लेना अउ आखिर म मिक्चर मिठई लेवत घर चल देना, मड़ई म लगभग मोर सँउक रहय। एक चीज अउ पहली कस कुसियार मड़ई म नइ आय ते खलथे। स्कूल के गुरुजी मन संग बिहना घूमँव अउ संझा संगी संगवारी मन संग। पहली घर म जतेक भी सगा आय रहय, मड़ई के दिन सब 2-4 रुपिया देवय,ताहन का कहना दाई ददा के पैसा मिलाके 10, 20 रुपिया हो जावत रिहिस, जेमा मन भर खावन अउ खेलोना घलो लेवन, आज 500-600 घलो नइ पूरे। समय बदलगे तभो मोर गाँव के मड़ई लगभग नइ बदले हे, आजो गाँव भर जुरियाथे, कतको ब्रांड, मॉल-होटल आ जाय छा जाय, तभो गाँव भर अउ तीर तखार के मनखें मड़ई के बरोबर आंनद लेथे। मड़ई के दिन रतिहा बेरा नाचा पहली कस आजो होथे। *जिहाँ मन माड़ जाय, उही मड़ई आय।* जब मड़ई भीतर रबे, त मजाल कखरो मन, मड़ई ले बाहिर भटकय। आप सब ल मोर  गाँव के मड़ई के नेवता हे।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

जंगल बचाओ-सरसी छन्द

 जंगल बचाओ-सरसी छन्द


पेड़ लगावव पेड़ लगावव, रटत रथव दिन रात।

जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।


हवा दवा फर फूल सिराही, मरही शेर सियार।

हाथी भलवा चिरई चिरगुन, सबके होही हार।

खुद के खाय कसम ला काबर, भुला जथव लघिनात।

जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।


जंगल हे तब जुड़े हवय ये, धरती अउ आगास।

जल जंगल हे तब तक हावै,ये जिनगी के आस।

आवय नइ का लाज थोरको, पर्यावरण मतात।

जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।


सड़क खदान शहर के खातिर, बन होगे नीलाम।

उद्योगी बैपारी फुदकय, तड़पय मनखे आम।

लानत हे लानत हव घर मा, आफत ला परघात।

जंगल के जंगल उजड़त हे, काय कहँव अब बात।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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हसदेव अरण्य बचावव-कुंडलियाँ छंद


बन देथे फल फूल सँग, हवा दवा भरमार।

नदी बहे झरना झरे, चहके चिरई डार।

चहके चिरई डार, दहाड़े बघवा चितवा।

हाथी भालू साँप, सबे के बन ए हितवा।

हरियाली ला देख, नीर बरसावै नित घन।

सबके राखयँ लाज, पवन अउ पानी दे बन।


जल जंगल हसदेव के, हम सबके ए जान।

उजड़ जही येहर कहूँ, होही मरे बिहान।।

होही मरे बिहान, मात जाही करलाई।

हाथी भालू शेर, सबे मर जाही भाई।

बिन पानी बिन पेड़, आज होवय अउ ना कल।

होही हाँहाकार, उजड़ही यदि जल जंगल।


जंगल के जंगल लुटा, बने हवस रखवार।

पेड़ हरे जिनगी कथस, धरे एक ठन डार।

धरे एक ठन डार, दिखावा करथस भारी।

ठगठस रे सरकार, रोज तैं मार लबारी।

जेला कथस विकास, उही हा सुख लिही निगल।

जुलुम करत हस कार, बेच के जल अउ जंगल।


लोहा सोना कोयला, खोजत हस बन काट।

जीव जंतु सब मर जही, नदी नहर झन पाट।

नदी नहर झन पाट, दूरिहा भाग अडानी।

जंगल जिनगी आय, मोह तज जाग अडानी।

लगही सबके हाय, पाप के गघरी ढो ना।

माटी के तन आय, जोर झन लोहा सोना।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)



कुदरत के कई रूप-सार छंद

 कुदरत के कई रूप-सार छंद


कुदरत के कई रूप देख के, रबक जथे मन नैना।

अँगरी दाँत तरी दब जाथे, मुँह ले फूटे ना बैना।।


कई पेड़ जमकरहा मोठ्ठा, ठाढ़े कई गगन मा।

किसम किसम फर फूल देख के, बढ़े खुसी बड़ मन मा।।

हूँप हूँप कहि कुदे बेंदरा, गाना गाये मैना।

कुदरत के कई रूप देख के, रबक जथे मन नैना।।


मस्ती मा इतराय समुंदर, जलरँग धरके पानी।

नदिया झरना डिही डोंगरी, रोज सुनाय कहानी।।

घाटी पानी पथरा लाँघे, हाथी हिरना हैना।

कुदरत के कई रूप देख के, रबक जथे मन नैना।।


दुहरा तिहरा पथरा माड़े, देखत लगे अचंभा।

रूप प्रकृति के मन मोहें, लजा जाय रति रंभा।।

बने बने रखबों कुदरत ला, बने रही दिन रैना।

कुदरत के कई रूप देख के, रबक जथे मन नैना।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Monday 18 December 2023

देवारी तिहार-घनाक्षरी

 1,देवारी तिहार-घनाक्षरी


कातिक हे अँधियारी,आये परब देवारी।

सजे घर खोर बारी,बगरे अँजोर हे।

रिगबिग दीया बरे,अमावस देख डरे।

इरसा दुवेस जरे,कहाँ तोर मोर हे।

अँजोरी के होये जीत,बाढ़े मया मीत प्रीत।

सुनाये देवारी गीत,खुशी सबे छोर हे।।

लड़ी फुलझड़ी उड़े,बरा भजिया हे चुरे।

कोमढ़ा कोचई बुड़े,कड़ही के झोर हे।।


बैंकुंठ निवास होही, पाप जम्मों नास होही।

दीया बार चौदस के, चमकाले भाग ला।

नहा बड़े बिहना ले, यमराजा ला मनाले।

व्रत दान अपनाले, धोले जम्मों दाग ला।

ये दिन हे बड़ न्यारी, कथा कहानी हे भारी।

जीत जिनगी के पारी, जला द्वेष राग ला।

देव धामी ला सुमर, बाढ़ही तोरे उमर।

पा ले जी भजन कर, सुख शांति पाग ला।


आमा पान के तोरन, रंग रंग के जोरन।

रमे हें सबे के मन, देवारी तिहार मा।

लिपाये पोताये हवे, चँउक पुराये हवे।

दाई लक्ष्मी आये हवे, सबके दुवार मा।

अन्न धन देवत हे, दुख हर लेवत हे।

आज जम्मों सेवक हे, बहे भक्ति धार मा।

हाथ मा मिठाई हवे, जुरे भाई भाई हवै।

देवत बधाई हवै,गूँथ मया प्यार मा।


गौरा गौरी जागत हे,दुख पीरा भागत हे।

बड़ निक लागत हे,रिगबिग रात हा।।

थपड़ी बजा के सुवा,नाचत हे भौजी बुआ।

सियान देवव दुवा,निक लागे बात हा।।

दफड़ा दमऊ बजे,चारों खूँट हवे सजे।

धरती सरग लगे,नाँचे पेड़ पात हा।।

घुरे दया मया रंग,सबो तीर हे उमंग।

संगी साथी सबो संग,भाये मुलाकात हा।।


गौरा गौरी सुवा गीत,लेवै जिवरा ल जीत।

बैगा निभावय रीत,जादू मंतर मार के।।

गौरा गौरी कृपा करे,दुख डर पीरा हरे।

सुवा नाचे नोनी मन,मिट्ठू ल बइठार के।।

रात बरे जगमग,परे लछमी के पग।

दुरिहाये ठग जग,देवारी ले हार के।।

देवारी के देख दीया,पबरित होवै जिया।

सोभा बड़ बढ़े हवै,घर अउ दुवार के।


मया भाई बहिनी के, जियत मरत टिके।

भाई दूज पावन हे, राखी के तिहार कस।

उछाह उमंग धर, खुशी के तरंग धर।

आये अँगना मा भाई, बन गंगा धार कस।

इही दिन यमराजा, यमुना के दरवाजा।

पधारे रिहिस हवै, शुभ तिथि बार कस।

भाई बर माँगे सुख, दुख डर दर्द तुक।

बेटी माई मन होथें, लक्ष्मी अवतार कस।


कातिक के अँधियारी, चमकत हवै भारी।

मन मोहे सुघराई, घर गली द्वार के।।

आतुर हे आय बर, कोठी मा समाय बर।

सोनहा सिंगार करे, धान खेत खार के।।

सुखी रहे सबे दिन, मया मिले छिन छिन।

डर जर दुख दर्द, भागे दूर हार के।।

मन मा उजास भरे, सुख सत फुले फरे।

गाड़ा गाड़ा हे बधाई, देवारी तिहार के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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2, कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।

मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।

गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।

करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।

लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।

दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।


भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।

देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।

बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।

आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।

बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।

देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।


लेवव  जय  जोहार  जी,बॉटव  मया   दुलार।

जुरमिल मान तिहार जी,दियना रिगबिग बार।

दियना रिगबिग बार,अमावस हे अँधियारी।

कातिक पबरित मास,आय  हे  जी देवारी।

कर आदर सत्कार,बधाई सबला देवव।

मया  रंग  मा रंग,असीस सबे के लेवव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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3,मत्तग्यंद सवैया- देवारी


चिक्कन चिक्कन खोर दिखे अउ चिक्कन हे बखरी घर बारी।

हाँसत  हे  मुसकावत  हे  सज  आज  मने  मन  गा  नर नारी।

माहर  माहर  हे  ममहावत  आगर  इत्तर  मा  बड़  थारी।

नाचत हे दियना सँग देखव कातिक के रतिहा अँधियारी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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4,बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


सबे खूँट देवारी, के हे जोर।

उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।


छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।

किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।


चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।

गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।


काँटा काँदी कचरा, मानय हार।

मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।


जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।

दया मया मनखे मा, हे भरपूर।


चारो कोती मनखे, दिखे भराय।

मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।


बनठन के सब मनखे, जाय बजार।

खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।


पुतरी दीया बाती, के हे लाट।

तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।


लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।

दीया बाती वाले, देख बलाय।


कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।

नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।


जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।

टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।


हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।

खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।


पहली दिन घर आये, श्री यम देव।

मेटे सब मनखे के, मन के भेव।


दै अशीष यम राजा, मया दुलार।

सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।


तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।

पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।


दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।

सब संकट हा भागे, सुबे नहात।


नहा खोर चौदस के, देवय दान।

नरक मिले झन कहिके, गावय गान।


तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।

धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।


एक मई हो जावय, दिन अउ रात।

अँधियारी ला दीया, हवै भगात।


बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।

चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।


बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।

दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।


फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।

चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।


होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।

गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।


दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।

अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।


पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।

बहिनी मनके बोहै,भाई भार। 


कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।

देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।


देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।

देख देख के नाचे, तनमन मोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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कज्जल छंद- देवारी


मानत हें सब झन तिहार।

होके मनखे मन तियार।

उज्जर उज्जर घर दुवार।

सरग घलो नइ पाय पार।


बोहावै बड़ मया धार।

लामे हावै सुमत नार।

बारी बखरी खेत खार।

नाचे घुरवा कुँवा पार।


चमचम चमके सबे तीर।

बने घरो घर फरा खीर।

देख होय बड़ मन अधीर।

का राजा अउ का फकीर।


झड़के भजिया बरा छान।

का लइका अउ का सियान।

सुनके दोहा सुवा तान।

गोभाये मन मया बान।


फुटे फटाका होय शोर।

गुँजे गाँव घर गली खोर।

चिटको नइहे तोर मोर।

फइले हावै मया डोर।


जुरमिल के दीया जलायँ।

नाच नाच सब झन मनायँ।

सबके मन मा खुशी छायँ।

दया मया के सुर लमायँ।


रिगबिग दीया के अँजोर।

चमकावत हे गली खोर।

परलव पँवरी हाथ जोर।

लक्ष्मी दाई लिही शोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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आप सबो ला देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई

कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी

 कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी


देवारी के हे परब, तभो धरे हें हाथ।

बड़का धोखा होय हे, दर्जी मन के साथ।

दर्जी मन के साथ, छोड़ देहे बेरा हा।

हे गुलजार बजार, हवै सुन्ना डेरा हा।

पहली राहय भीड़, दुवारी अँगना भारी।

वो दर्जी के ठौर, आज खोजै देवारी।1


कपड़ा ला सिलवा सबें, पहिरे पहली हाँस।

उठवा के ये दौर मा, होगे सत्यानॉस।

होगे सत्यानॉस, काम खोजत हें दर्जी।

नइ ते पहली लोग, करैं सीले के अर्जी।

टाप जींस टी शर्ट, मार दे हावै थपड़ा।

शहर लगे ना गाँव, छाय हे उठवा कपड़ा।


दर्जी के घर मा रहै, कपड़ा के भरमार।

खुले स्कूल कालेज या, कोनो होय तिहार।

कोनो होय तिहार, गँजा जावै बड़ कपड़ा।

लउहावै सब रोज, बजावैं घर आ दफड़ा।

कपड़ा सँग दे नाप, सिलावैं सब मनमर्जी।

उठवा आगे आज, मरत हें लाँघन दर्जी।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

किरदार-हरिगीतिका छंद

 किरदार-हरिगीतिका छंद


कखरो इशारा मा नहीं अउ ना फँसे जंजाल मा।

जिनगी सदा नाँचत बिते कर्मा ददरिया ताल मा।।

टीका लगा कुंकुंम सही माटी वतन के माथ मा।

कलगी लगा पागा सजा थिरकँव सँगी मन साथ मा।।


बोझा मुड़ी मा बोह के संस्कृति परब संस्कार के।

सबके जिया मा घर बनावँव लोभ लालच झार के।।

आँसू कभू डर दुक्ख मा कखरो नयन ले झन झरे।

विनती करँव कर जोर के सुख शांति सत सब घर भरे।।


पंथी सुआ कर्मा ददरिया पंडवानी भोजली।

भगवत रमायण रामधुनि गौरा गुँजय गाँवे गली।।

मनखे जुरें बिसराय बर दुख नाच गम्मत संग मा।

देखत हबर जायें खुशी सब जायँ रच सुख रंग मा।।


मधुरस झरे हर मंच मा जादू चले संगीत के।

गाना बजाना ले तको शिक्षा मिले नित नीत के।।

छोटे बने सीखत रहँव किरपा करे करतार हर।

जिनगी रहे या मंच कोई लौं निभा किरदार हर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


कार्यक्रम- NTPC के सौजन्य से, डॉ अंबेडकर ऑडिटोरियम ntpc कोरबा में(गौरवशाली महिला स्वयं सहायता समूह बालकोनगर द्वारा)

छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर नवा पीढ़ी

 छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर नवा पीढ़ी


आलेख :- जीतेन्द्र कुमार वर्मा ' खैरझिटियां " बाल्को,कोरबा (छग)


                          हमर बबा के ददा बिना नउकरी के अपन जांगर के थेभा, अपन महतारी ला पालिस-पोसिस, हमर बबा तको बिना नउकरी के जाँगर चलावत अपन महतारी ला पालिस- पोसिस अउ इही कतार मा ददा तको, फेर आज मैं अउ मोर सहीं कतको नवा पीढ़ी के लइका मन महतारी के सेवा जतन करे बर सरकारी नवकरी के मुँह ताकत हें। एखर एके कारण हे, बबा के ददा होय चाहे बबा होय या मोर ददा उन सबके पास आधार रिहिस, खेती रिहिस। ओखरे दम मा महिनत करत अपन फर्ज निभाइन, फेर मैं या तो आधार ला बिसरा चुके हँव या फेर महिनत ले भागत हँव। बिना आधार के कखरो नैया पार नइ लगे। चील चाहे कतको ऊँचा आगास मा उड़े, भोजन पानी धरा मा ही पाथे। अइसनेच होवत हे, हमर भाँखा महतारी संग घलो। मनखे सेखी मा अपन आधार ला, बड़का के बताये सीख ला, उंखर धरे पाँत ला छोड़त हे, अउ देखावा मा कागज के पाँख लगाए, आगास अमरत हे। अइसन मा कइसे बनही? अउ का चीज सिद्ध परही। आधार अउ जाँगर-नाँगर छोड़े ले, न तो महतारी अउ न ही महतारी भाँखा, कखरो के बढ़वार नइ हो सके।

                     छत्तीसगढ़ी हम सब छतीसगढ़िया मन बर कोनो बोली या भाँखा नो हरे। छत्तीसगढ़ी हमर मान ए, सम्मान ए, या कहन ता  ये हम सब छतीसगढ़िया के पहिचान ए। ह हो हमर, अंतस के उद्गार ए, हमर महतारी बोली छत्तीसगढ़ी । छतीसगढ़ी ला हमर पुरखा मन अउ आज के वरिष्ट गुणी विद॒वान  मन अपन खाँध मा बोह के सरलग सजावत-सँवारत ये नवा युग मा, नवा पीढ़ी के आघू मा लाके खड़ा करे हे। महतारी भाँखा के बढ़वार बर करें पुरखा अउ वरिष्ट विद्वान मन के योगदान ला नइ भुलाये जा सके। चाहे वो कोनो साहित्यकार होय, कलाकार होय, समाज-सेवक होय या हमर संस्कृति संस्कार के साथ संवाहक, सबकें अहम योगदान हें। अइसने नवा पीढ़ी ला तको नवा जोश-जज्बा के साथ छत्तीसगढ़ी बर बूता करेल लगही। जइसे महतारी ला ओखर लइका ही महतारी कथे, वइसने हम सब ला छत्तीसगढ़ी के मान बर बेटा बरोबर सरलग कारज करेल लगही। चाहे जनम देवइया महतारी होय, चाहे माटी महतारी होय, या भाँखा महतारी, सबके सेवा हमर फर्ज अउ धरम करम आय। तभे तो कथों--   "सरग मा जघा पाही छत्तीसगढ़ी जोन बोलही।

हम छत्तीसगढ़िया नइ बोलबों छत्तीसगढ़ी ता कोन बोलहीं।।"

फेर हम सब ला सिर्फ बोलना भर नइहे, महतारी बरोबर छत्तीसगढ़ी भाँखा के मान गउन करेल लगही।


                    नवा पीढ़ी जिंखर करा पुरखा मनके धरे पाँत हे, वरिष्ट विद्वान मनके साथ हे, नवा-नवा तौर तरीका अउ तकनीक हाथ हे, संगे संग जोश-जज्बा अउ आत्मविश्वास हे।

फेर, का हे-छत्तीसगढ़ी मा? छत्तीसगढ़ी मा सुवा हे, छत्तीसगढ़ी मा ददरिया हे,  छत्तीसगढ़ी मा करमा हे, रहस हे, नाचा हे, गम्मत हे, पंथी हे, पंडवानी हे, लोरिक चंदा हे,भरथरी हे, रामधुनी हे, रामसत्ता हे, सेवा हे, जस हे, भाव हे, भजन हे, गीत हे, कविता हे, कहानी हे,निबंध हे , व्यंग्य हे·---- अरे का नइ हे छत्तीसगढ़ी मा? सबे चीज तो हे, अउ कहूँ यदि कुछु नइहे तो येला सिरजाय के जिम्मेदारी हे, नवा पीढ़ी ऊपर हे। 

                      आज के नवा पीढ़ी बड़ भागमानी हे, जेन मन ला सोसल मीडिया वरदान बरोबर मिले हे। जुन्ना सियान मन चिमनी के झिलमिल अँजोर मा कागत करिया करें या कोनो कला के रियाज करे, तेखर बाद छपे छपवाए या कोनो ला देखाय सुनाय बर पर के मुँह ताकँय। फेर आज जमे चीज चाहे कला होय, साहित्य होय या फेर आने अउ कुछु भी तुरते फेसबुक,वाट्सअप, यू ट्यूब के माध्यम ले हजारों-लाखों तक चंद सेकंड मा पहुँच जावत हे। सियान मन कहय कि "नेकी कर दरिया मा डाल" फेर आज सोसल मीडिया के जमाना मा कुछु भी कर फेसबुक,वाट्सअप, इंस्टाग्राम, यूट्यूब मा डार चलत हे। जइसने देखबे तइसने दिखथे, मैं युवा वर्ग मा बने बने चीज देखे हँव, उही ला ओरियाये बर जावत हँव। सोसल मीडिया के आय ले कला-साहित्य, गीत-संगीत सबे मा क्रांतिकारी परिवर्तन आय हे। सर्जक वर्ग लिखइया-गवइया-बजइया सहज सोसल मीडिया के जरिये दिख जथे ता सहज पाठक-दर्शक-स्रोता वर्ग तको मिल जथे। एखरे परिणाम आय जे आज युवा वर्ग सोसल मीडिया मा डूब के छत्तीसगढ़ी बर काम करत हें। चाहे हमर गोठ वाले त्रिवेंद्र साहू होय या मोर मितान वाले दिलीप देवांगन, चाहे सुपर शर्मा ब्लॉग वाले रवि शर्मा होय या कवि संग चाय वाले जितेंद्र वर्मा वैद्य, चाहे D न्यूज वाले दिनेश साहू होय या वैभव बेमेतरिहा, दीपक साहू, भीषम वर्मा, ईश्वर तिवारी, ईश्वर साहू आरुग,ईश्वर साहू बंधी,शरद यादव अक्स, रेणुका सिंह,दामिनी बंजारे,मिनेंद्र चन्द्राकर,तृप्ति सोनी------- सब सोसल मीडिया के भरपूर उपयोग करत छत्तीसगढ़ी भाँखा अउ छत्तीसगढ़ के संस्कृति संस्कार, पार-परब, स्थान अउ हमर महान विभूति मन के गुण गाथा मन ला जनजन तक सरलग पहुँचावत हें।


              सोसल मीडिया के जमाना मा आज रोज रोज नवा नवा गीत कविता जनमानस बीच आवत हे। हजारों संख्या मा गीतकार,गायक - गायिका व भावपक्ष मा अपन प्रतिभा देखावत युवा संगी मन  सहज दिखथे। मिनेश साहू, दिग्विजय वर्मा, क्रांति कार्तिक यादव, अनिल सलाम, ओपी देवागंन,शालिनी विश्वकर्मा, रामकुमार साहू, धनराज साहू, श्रवण साहू, किशन सेन,अमलेश नागेश,अश्वनी कोशरे, डी.पी. लहरे, डीमान सेन, कंचन जोशी, सहीवानी जंघेल, शोभामोहन  श्रीवास्तव, भूपेंद्र साहू, जितू विश्वकर्मा, बृजलाल दावना, महादेव हिरवानी, आराध्या साहू,ममता साहू, आरु साहू, स्वेच्छा साहू, सेलिना दावना, बरखा सिन्हा, कविता साहू, हिमानी वासनिक, अनुराग शर्मा, नितिन दुबे------- कस अउ कतकोन हस्ती हें, जेमन आनी बानी के गीत-संगीत' छत्तीसगढ़ मा परोसत हें। 


            पत्रकारिता/ टी.वी/ रेडियो/नाचा गम्मत/ ब्लॉग/ लोक गीत/ लोकनृत्य/सांस्कृतिक मंच/ कला जत्था/ सेवा/साहित्य/फिल्म------ आदि कतको माध्यम ले आज के नवा पीढ़ी छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी अउ छत्तीसगढ़ के सेवा करत हें। New 36, आखर अँजोर, मोर बस्तर, मोर भुइयाँ छतीसगढ़, सुरता.com, छत्तीसगढ़ी.इन, गुरतुर गोठ, छंद के छ,आरुग चौरा, मोर छत्तीसगढ़, गाँव के गोठ, गांव गुड़ी,आरुग चौरा------एखर आलावा अउ कतकोन आनलाइन ब्लॉग अउ टी- वी चैनल, पत्र- पत्रिका हें, सबे के वर्णन कर पाना सम्भव नइहे।  छत्तीसगढ़ी के सेवा युवा पीढ़ी मन छत्तीसगढ़ मा तो करते हें, संगे संग भारत ले बाहिर तको गणेश कर,मीनल मिश्रा, विभाश्री साहू-----आदि कतको मन छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर सरलग बूता करत हें।  संगे संग युवा पीढ़ी पाठ्यपुस्तक मा तको छतीसगढ़ी ला पूर्णतः लाये बर उदिम करत हें।


                  मंचीय युवा कवि मन, मंच ले सरलग  छत्तीसगढ़ी मा कविता पाठ करत हें। चाहे मनीराम साहू मितान होय, शशिभूषण स्नेही होय, घनश्याम कुर्रे होय, ग्वाला प्रसाद यादव होय, उमाकांत टैगोर होय, दिलीप वर्मा होय, ईश्वर साहू होय या सुकदेव सिंह अहिलेश्वर------- । प्रमोद साहू,धनेश साहू, ईश्वर बंधी------- कस कतको गुनी शख्स मन चित्रकारी के माध्यम ले छत्तीसगढ़ के कला संस्कृति संस्कार ला बगरावत हें। छत्तीसगढ़ी शब्द कोष बर होय या खेलकूद बर सबे मा युवा पीढ़ी मन के बरोबर भागीदारी दिखथे।


                कथे कि साहित्य समाज के आईना आय, फेर साहित्य सिरिफ आईना भर नही बल्कि अस्तित्व तको आय। अइसन मा नवा पीढ़ी साहित्य के सेवा करे बर कइसे पिछवा सकथे? अरुण निगम जी के "छंद के छ" रूपी आंदोलन ले एक छंदमय क्रांति आइस, जेखर परिणाम स्वरूप आज विशुद्ध छंद मा कोरी ले तको आगर छत्तीसगढ़ी छंद संग्रह साहित्य जगत आ चुके हे। रमेश चौहान, मनिराम साहू मितान, रामकुमार चंद्रवंसी, कन्हैया साहू'अमित', बोधनराम निषादराज, सुखदेवसिंह अहिलेश्वर,विजेन्द्र वर्मा, सुचि भवि, धनेश्वरी सोनी 'गुल', डी.पी लहरे 'मौज, जगदीश साहू, राजकुमार चौधरी, आशा देशमुख, शोभामोहन ------आदि कतकोन युवा छंदकार मनके छंदबद्ध संग्रह पढ़ सकत हन। सुधीर शर्मा जी, सरला शर्मा जी, विनोद वर्मा जी, अनिल भटपहरी, पीसी लाल यादव,अरुण निगम जी ------ अउ लोकाक्षर पटल के कतकोन विद्वान मन के निर्देशन  मा छत्तीसगढ़ी गद्य के लगभग सबे विधा मा युवा संगी मन सरलग काम करत हें । जेमा ओमप्रकाश साहू अंकुर, चंद्रहास साहू, हरिशंकर गजानन देवांगन, राजकुमार चौधरी 'रौना, मेहन्द्र बघेल, आशा देशमुख, हीरा लाल गुरुजी समय, चित्रा श्रीवास, देवचरण धुरी, हेमलाल सहारे, ग्यानु मानिकपुरी, अजय अमृतांशु,धरमेन्द्र निर्मल, नीलम जायसवाल,पोखनलाल जायसवाल------- आदि कतकोन संगी मन सरलग कहानी, निबंध, संस्मरण, व्यंग्य अउ गद्य के कतकोन विद्या मा काम करत हें। साहित्य के संग कला, संस्कृति, सेवासमाज अउ अन्य सबे क्षेत्र मा नवा पीढ़ीं छत्तीसगढ़ी के बढ़वार बर सतत लगे हें। सबके वर्णन तको सम्भव नइहे।


             फेर एक ठन बात अउ हे--- का नवा पीढ़ी मतलब हमी तुम्ही मन आन?  वो लइका जेन घर मा टाटा, बाय-बाय, गुडनाइट, गुडमार्निंग, काहत रथे, कविता सुना कथन ता कथे--जानी जानी यस पापा--ईटिंग सुगर नो पापा------का ये मन नवा पीढ़ी के नो हरे? का इंखर खांध मा छत्तीसगढ़ी के भार नइहे? का येमन ला छत्तीसगढ़ी के सेवा करे बर नइ लगे? हमन ला हमर बबा डोकरीदाई, नाना नानी मन कहानी कन्थली सुना सुना के अउ बड़े भाई मन खेल खेला खेला के छत्तीसगढ़ी के रंग मा रँगिन। का आज के नवा लइका मन ऊपर छत्तीसगढ़ी के रंग चढ़त हे?  का हमन हमर कका, बबा, भाई भगिनी कस नवा पीढ़ी ला जुन्ना बात बानी ला परोसत हन? का हमर छत्तीसगढ़ के संस्कृति संस्कार नवा पीढ़ी ला पहुँचत हे? यदि हाँ ता बने बात हे, अउ नही--- ता घोर चिंतनीय हे। मोला तो जेन दिखथे ते हिसाब ले लगथे ये नवांकुर पीढ़ी(नवा लइका मन) चुकता छत्तीसगढ़ी ले दूर भागत हे, जे हमर महतारी भाँखा बर अच्छा संकेत नोहे।


"चिरई के पीला चिंव चिंव करथे,

कौआ के काँव काँव।।

गइया के बछरू हम्मा कइथे,

हुड़ड़ा के हॉंव हाँव।।

फेर मंदरस कस गुरतुर बोली, बन बरसत हावय गोली।

मोर छत्तीसगढिया बेटा बदलत हे बिसराथे भाँखा बोली।।"


                  मनखे मन के बोली के इही बिडम्बना हे। अंत मा इही कहना चाहहूँ जइसे हमन ला सियान मन छत्तीसगढ़ी के प्रति हमर मन मा लगाव बढ़ाइन, वइसने खुद संग नवांकुर पीढ़ी ला तको छत्तीसगढ़ी कोती लेगेल लगही, तभे छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी के साख नवा पीढ़ी मा बचे रही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

दोहा-- धन्वन्तरि भगवान के ,

 दोहा--

धन्वन्तरि भगवान के , तेरस मा गुण गाव।

धनबल यस जस शांति सुख, सुमिरन करके पाव।।


धनतेरस-सार छंद


धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।

धनतेरस मा दीप जलाके, करत हवौं पहुनाई।।


चमकै चमचम ठिहा ठौर हा, दमकै बखरी बारी।

धन तेरस के दीया के सँग, आगे हे देवारी।।

भोग लगावौं फूल हार अउ , नरियर खीर मिठाई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।।


रखे सबे के सेहत बढ़िया , धन्वंतरि देवा हा।

करै कुबेर कृपा सब उप्पर, बरसै धन मेवा हा।।

सुख समृद्धि देबे सब ला, धन वैभव बरसाई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।।


देवारी कस सब दिन लागै, सबदिन बीतै सुख मा।

मनखे बन जिनगी जे जीये , दबे रहै झन दुख मा।

काय जीव का मनखे तनखे, दे सुख सब ला माई।

धन्वंतरि कुबेर के सँग मा, आबे लक्ष्मी दाई।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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सेहत सब ले बड़का धन- सार छन्द


जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।

सेहत सबले बड़का धन ए, धन दौलत धन जाली।।


काली बर धन जोड़त रहिथस, आज पेट कर उन्ना।

संसो फिकर करत रहिबे ता, काल झुलाही झुन्ना।।

तन अउ मन हा हावय चंगा, ता होली दीवाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।।


खाय पिये अउ सुते उठे के, होय बने दिनचरिया।

काया काली बर रखना हे, ता रख तन मन हरिया।

फरी फरी पी पुरवा पानी, देख सुरुज के लाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।।


हफर हफर के हाड़ा टोड़े, जोड़े कौड़ी काँसा।

जब खाये के पारी आइस, अटके लागिस स्वाँसा।।

उपरे उपर उड़ा झन फोकट, जड़ हे ता हे डाली।

जिबे आज ला जब तैं बढ़िया, तब तो रहिबे काली।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


भगवान धन्वंतरि ला स्वस्थ सुखी रखे।।।

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देवउठनी एकादशी(सरसी छंद)

 देवउठनी एकादशी(सरसी छंद)


एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।

घरघर तोरन ताव सजे हे,गड़े हवे खुशियार।


रिगबिगात हे तुलसी चँवरा,अँगना चँउक पुराय।

तुलसी सँग मा सालि-ग्राम के,ये दिन ब्याय रचाय।

कुंकुम हरदी चंदन बंदन,चूड़ी चुनरी हार---।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।


ब्याह रचाके पुण्य कमावै,करके कन्यादान।

कांदा कूसा लाई लाड़ू,खीर पुड़ी पकवान।

चढ़ा सँवागा नरियर फाटा,बन्दै बारम्बार---।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।


जागे निंदिया ले नारायण,होवय मंगल काज।

बर बिहाव अउ मँगनी झँगनी,मुहतुर होवै आज।

मेला मड़ई मातर जागे,बहय मया के धार--।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।


लइका लोग सियान सबे झन,नाचे गाये झूम।

मीत मितानी मया बढ़ावय,गाँव गली मा घूम।

करे जाड़ के सबझन स्वागत,सूपा चरिहा बार।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार--।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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देवउठनी तिहार- रूपमाला छंद 


देवउठनी आज हे छाये हवे उल्लास।

हूम के धुँगिया उड़े महकै धरा आगास।

चौंक चंदन मा फभे अँगना गली घर खोर।

शंख  घन्टी मन्त्र सुन नाँचे जिया बन मोर।


घींव के दीया बरै कलसा म हरदी रंग।

ब्याह बंधन मा बँधे बृंदा बिधाता संग।

आम पाना हे सजे मंडप बने कुसियार।

आरती  थारी  म  माड़े  फूल गोंदा हार।


जागथे ये दिन बिधाता होय मंगल काज।

दान दक्षिणा करे ले पुण्य मिलथे आज।

लागथे  मेला  मड़ाई  बाजथे  ढम ढोल।

रीस रंजिस छोड़ के मनखे रहै दिल खोल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)


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महँगा होगे गन्ना(कुकुभ छंद)


हाट बजार तिहार बार मा


जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।

तभो किसनहा पातर सीतर,साँगर मोंगर हे धन्ना।


भाव किसनहा मन का जाने,सब बेंचे औने पौने।

पोठ दाम ला पावय भैया,खेती नइ जानै तौने।

बिचौलिया बन बिजरावत हे,सेठ मवाड़ी अउ अन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना----।


पारस कस हे उँखर हाथ हा,लोहा हर होवै सोना।

ऊँखर तिजोरी भरे लबालब,उना किसनहा के दोना।

होरी डोरी धरके घूमय,सज धज के पन्ना खन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।


हे हजार कुशियार खेत मा,तभो हाथ हावै रीता।

करम ठठावै करम करैया,जग होवै हँसी फभीता।

दुख के घन हा घन कस बरसे,तनमन हा जाथे झन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।


कमा घलो नइ पाय किसनहा,खातू माटी के पूर्ती।

सपना ला दफनावत दिखथे,सँउहत महिनत के मूर्ती।

देखव जिनगी के किताब ले,फटगे सब सुख के पन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको कोरबा

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देवउठनी तिहार


खाये बर कुशियार ला,चाही चंगा दाँत।

चबा चबा चूसव रसा,रइही बढ़िया आँत।

खैरझिटिया

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देव उठनी तिहार के सादर बधाई

आनलेन पेमेंट-रोला छंद

 आनलेन पेमेंट-रोला छंद


आनलेन के दौर, हवै सब झन हा कहिथन।

फेर बखत ला देख, जुगत मा सबझन रहिथन।।

आनलेन पेमेंट, लेत हें पसरा ठेला।

बड़का मॉल दुकान, करैं नित पेलिक पेला।


अफसर बाबू सेठ, पुलिस नेता वैपारी।

माँगे नकदी नोट, कहत झन करबे चारी।।

भरे जेन के जेब, उही हा जेब टटोले।

उँखरे ले हे काम, कोन फोकट मुँह खोले।।


लुका लुका के नोट, धरत हावैं गट्ठी मा।

आनलेन पेमेंट, कहाँ चलथे भठ्ठी मा।।

मांगै नगदी नोट, बार भठ्ठी मुँह मंगा।

सरकारी हे छूट, लूट होवै बड़ चंगा।।


सट्टा पट्टी खेल, चलत हे चारो कोती।

विज्ञापन के धूम, लगत हे जस सुरहोती।

मिले हवै सरकार, खिलाड़ी अउ अभिनेता।

जनता ला बहकाँय, बताके विश्व विजेता।।


मुँहफारे घुसखोर, माँगथे नकदी रुपिया।

आनलेन पेमेंट, लेय ये कइसे खुफिया?

देखे जभ्भे नोट, तभे कारज निपटाये।

आनलेन के नाम, सुनत आँखी देखाये।।


आनलेन पेमेंट, देन कइसे छट्ठी मा।

आनलेन पेमेंट, देन कइसे भट्ठी मा।।

आनलेन मा बोल, देन कइसे नजराना।

आनलेन मा काज, करे नइ कोरट थाना।।


रोवत लइका लोग, मानही का बिन पइसा।

कइसे करहीं काम, जौन बर आखर भइसा।।

छोड़वाय बर संग, काय अब करना पड़ही।

आनलेन पेमेंट, बता का आघू बढ़ही?


उद्योगी के हाथ, हवै पावर अउ टॉवर।

रोवय धोवय नेट, इहाँ चौबीसों ऑवर।।

निच्चट हे इस्पीड, फोर जी फाइभ जी के।

सब झन हवन गुलाम, नेट के नौटंकी के।


डिजिटल होही देश, बता कइसे गा भइया।

पर के कुकरी गार, संग दूसर सेवइया।।

नेटजाल सरकार, बुने अउ देवैं सुविधा।

सोसल सेवा होय, तभे दुरिहाही दुविधा।।


आनलेन पेमेंट, कहाँ देथें लेथें सब।

तोर मोर बड़ छोट, यहू मा मिलथे देखब।।

ठगजग तक हें खूब, देख के काँपे चोला।

बढ़िया हो हर काम, तभे तो भाही मोला।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

आहे जाड़ रे(गीत)

 आहे जाड़ रे(गीत)


आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे।

आहे जाड़ रे,आहे जाड़ रे।

बूता धरके मोर गाँव म हजार रे,,,,,।


अधनिंदियाँ दाई उठ के पहाती,

सिधोवत हे लकर धकर चूल्हा चाकी।

खेत कोती जाये बर ददा ह मोरे,

उठ के बिहनिया चटनी बासी झोरे।

बबा तापत हे, आगी भूर्री बार रे,,,,,,,।

आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे,,,,,,,,,,,,,,।


धान ह काहत हवै, जल्दी घर लान।

बियारा ह काहत हवै, जल्दी दौंरी फाँद।

चना गहूँ रटत हे, ओनार जल्दी मोला।

दुच्छा हौं कहिके, खिसियात हवै कोला।

सइमो सइमो करय, खेत खार रे,,,,,,,,,।

आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे,,,,,,,,,,,,,,,,।


थरथराये चोला गजब हुहु हुहु कापे।

डबकत पानी कस,मुँह ले निकले भापे।

तभो ले कमइया के बूता चलत हे।

दया मया मनखे बीच, जँउहर पलत हे।

कोन पाही कमइया के, पार रे,,,,,,,,,,।

आहे जाड़ रे, आहे जाड़ रे,,,,,,,,,,,,,,।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गीत--आ जाबे नदिया तीर म

 गीत--आ जाबे नदिया तीर म


आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ।

कुनकुन-कुनकुन जाड़ जनावै, मँय कोयली कस बोलत हौं या ।


महुर लगे तोर पांव लाली, धूर्रा म सनाय मोर पांव पिंवरा हे ।

चिंव-चिंव करे चिरई-चिरगुन, नाचत झुमरत मोर जिवरा हे ।।

फूल गोंदा कचनार केंवरा, चारों खुंट ममहाये रे ।

तोर मया बर रोज बिहनिया, तन-मन मोर पुन्नी नहाये रे । 

मया के दीया बरे मजधारे, मारे लहरा मँय डोलत हौं या ।

आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ------------------


कातिक के जुड़ जाड़ म घलो, अगोरत होगेंव तात रे ।

आमा-अमली ताल तलैया, देखत हे तोर बॉट रे ।

परसा पारी जोहत हावै, फगुवा राग सुनाही रे । 

होरी जरे कस तन ह भभके, देखत तोला बुझाही रे ।।

आमा मँउर कस सपना ल, झोत्था-झोत्था जोरत हौं या।

आ जाबे नंदिया तीर म, अगोरत हौं या -----------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


कातिक पुन्नी अउ संत श्री गुरुनानक जयंती के सादर बधाई

छंद त्रिभंगी- छत्तीसगढ़ी भाँखा

 https://youtu.be/4Cg8K-SM8kA?feature=shared


छंद त्रिभंगी- छत्तीसगढ़ी भाँखा


सबके मन भावय, गजब सुहावय हमर गोठ, छत्तीसगढ़ी।

झन गा बिसरावव,सब गुण गावव,करव पोठ,छत्तीसगढ़ी।

भर भर के झोली, बाँटव बोली, सबे तीर, छत्तीसगढ़ी।

कमती हे का के, देखव खाके, मीठ खीर, छत्तीसगढ़ी।

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महतारी भाँखा- दोहा गीत


दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।

मधुरस कस गुरतुर गजब, छत्तीसगढ़ी बोल।


खुशबू माटी के उड़े, बसे हवै सब रंग।

तन अउ मन ला रंग ले, रख ले हरदम संग।

हरे दवा नित खा खवा, बोल बने तैं तोल।

दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।


परेवना पँड़की रटय, बोले बछरू गाय।

गुरतुर भाँखा हा हमर, सबके मन ला भाय।

जंगल झाड़ी डोंगरी, गावय महिमा डोल।

दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।


इहिमे कवि अउ संत मन, करिन सियानी गोठ।

कहे सुने मा रोज के, भाँखा होही पोठ।।

महतारी ले कर मया, देखावा ला छोल।

दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।

 

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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छत्तीसगढ़ी बानी(लावणी छंद)- जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।

पी के नरी जुड़ा लौ सबझन, सबके मिही निशानी अँव।


महानदी के मैं लहरा अँव, गंगरेल के दहरा अँव।

मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी, ठिहा ठौर के पहरा अँव।

दया मया सुख शांति खुशी बर, हरियर धरती धानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।।।।।


बनके सुवा ददरिया कर्मा, माँदर के सँग मा नाचौं।

नाचा गम्मत पंथी मा बस, द्वेष दरद दुख ला काचौं।

बरा सुँहारी फरा अँगाकर, बिही कलिंदर चानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


फुलवा के रस चुँहकत भौंरा, मोरे सँग भिनभिन गाथे।

तीतुर मैना सुवा परेवना, बोली ला मोर सुनाथे।

परसा पीपर नीम नँचइया, मैं पुरवइया रानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।


मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।

झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी, छेड़े नित मोर तराना।

रास रमायण रामधुनी अउ, मैं अक्ती अगवानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


ग्रंथ दानलीला ला पढ़लौ, गोठ सियानी धरलौ जी।

संत गुणी कवि ज्ञानी मनके, अंतस बयना भरलौ जी।

मिही अमीर गरीब सबे के, महतारी अभिमानी अँव।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी अँव, गुरतुर गोरस पानी अँव।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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बिसराथे भाँखा बोली


मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसराथे भांखा बोली । 

बड़ई नइ करे अपन भांखा के, करथें नित ठिठोली ।।


गिल्ली भँवरा बांटी भुलाके, खेले किरकेट हॉकी । 

माटी ले दुरिहाके रातदिन, मारत रहिथें फाँकी ।। 

चिरई के पिला चिंव-चिंव करथें, कँउवा के काँव-काँव ।

गइया के बछरू हम्मा कइथें, हुँड़रा के हाँव-हाँव ।।

मंदरस कस गुत्तुर बोली बन, बरसत हवय गोली ।

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसराथे भांखा बोली ।


हरर-हरर जिनगी भर करें, छोड़े मीत मितानी ।

देखावा ह आगी लगे हे, मारे बस फुटानी ।।

पाके माया गरब करत हे, बरोवत हवैं पिरीत ला ।

नइ जाने सत दया-मया ल, तोड़त फिरथें रीत ला।।

होटल-ढाबा लाज ह भाये, नइ झांके रंधनी खोली। 

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसरात हे भांखा बोली।।


छत्तीसगढ़ महतारी के भला, कोवने नाम जगाही ?

हमर छोड़ के कोन भला, छत्तीसगढ़िया कहाही ?

सनहन पेज, मही बासी, अउ अंगाकर अब नइ चुरे ।

सिंगार करे बर माटी के, छत्तीसगढ़िया मन नइ जुरें ।।

तीजा-पोरा ल कइसे मनाही ? नइ जाने देवारी-होली।

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे, बिसरात हे भांखा बोली।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


राजभाषा दिवस के सादर बधाई

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रील बनई- दोहा चौपाई

 रील बनई- दोहा चौपाई


पर्दा के तक चीज ला, देखावत हे रील।

का होही अब कोन जन, आघू अउ पा ढील।।


रील बनइया टूरी टूरा। पगला गय हें सच मा पूरा।।

पाये बर कमेंट व्यू लाइक। धरें फिरें नित बक्सा माइक।।


दिखथें मन के गावत नाँचत। लोकलाज सत गत ला काँचत।।

काय सही अउ काय गलत हें। बिन जाँचे परखें झुमरत हें।।


कोनो ज्ञान बघारत दिखथे। कोनो घर बन बारत दिखथे।।

कोनो करत दिखे मनमानी। कोनो बहथे बनके पानी।।


बहरुपिया बन कोनो नाँचे। कोनो उल्टा कविता बाँचे।।

कई कोन जन काये बोले। कोनो बोले ता विष घोले।।


भिड़े हवैं घर भर कतको के। रील बनाये सुधबुध खोके।।

रील बनइया अउ देखइया। गिनती मा नइहे गा भइया।।


पहिर ओढ़ झकझक ले भौजी। रील बनावै नित मनमौजी।

सास ससुर बइठे धर तरवा। देय पँदोली हँस मनसरवा।।


करें नुमाइश कतको तन के। कतको मन नाँचे बन ठन के।।

दर्शक मन ला खींचे खातिर। कतको खेल करें बन शातिर।।


कतको नाँचत दिखे अकेल्ला। खोज खाज के हेल्ला मेल्ला।

कतको नाँचे डहर-बाट मा। कतको पर्वत नदी पाट मा।।


देखावा के राजा रानी। देखावा के दानी ज्ञानी।।

मरही हरनी छट्ठी बरही। रील भीतरी सबके खरही।।


फेमस होये बर मनखे मन। बने फिरें सावित्री सरवन।।

जोंतत हावैं जिद के हरिया।  पार करत हें हद के दरिया।।


इती उती के विडियो फोटू। खींच खींच के डारे छोटू।।

रील बनाये के चक्कर मा। कलह तको होवै बन घर मा।।


अजब नशा सब ला चढ़ गय हे। रीति नीति तन मन बर भय हे।।

बने चीज बगरइया कम हें। गलत चीज उपजत बड़ घम हें।।


बचे रहे इंसानियत, बचे रहे इंसान।

रील खील बन मत गड़े, लाये झन तूफान।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

होटल मा रहना खाना-कुकुभ छंद

 होटल मा रहना खाना-कुकुभ छंद


होटल मा रहना अउ खाना, हरे एक ठन मजबूरी।

मजबूरी ला शान समझ झन, झोंक मेहनत मजदूरी।।


गाँव शहर घर डहर बाट मा, खुलगे बड़ होटल ढाबा।

फुलत फलत हे दिनदिन भारी, धन जोड़े काबा काबा।।

बैपारी मन खीचै सब ला, चला चला गुरतुर छूरी।

होटल मा रहना अउ खाना, हरे एक ठन मजबूरी।।


आँखी मूँद झपावैं मनखें, चक्कर मा देखावा के।

ऐसी फ्रिज के करजा छूटे, जरहा रोटी तावा के।।

भात दार सब मिले तउल मा, पेट देय नइ मंजूरी।

होटल मा रहना अउ खाना, हरे एक ठन मजबूरी।।


जेखर कर नइ घर दुवार अउ, जेखर नइ रिस्ता नाँता।

जेखर जाँगर हवैं खियाये, जे घर नइ चूल्हा जाँता।।

वो मन खोजैं होटल ढाबा, मृग बन भटकत कस्तूरी।

होटल मा रहना अउ खाना, हरे एक ठन मजबूरी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

वाह रे पानी-सार छंद

 वाह रे पानी-सार छंद


पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।

खेवन खेवन पानी बरसे, सफरी सरना सोगे।


का कुँवार का कातिक कहिबे,लागत हावै सावन।

रोहों पोहों खेत खार हे, बरसा बनगे रावन।।

धान सोनहा करिया होगे, लगगे कतको रोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


लूवे टोरे के बेरा मा, कइसे करयँ किसनहा।

आसा के सूरज हा बुड़गे,बुड़गे डोली धनहा।

जाँगर टोरिस जउन रोज वो, दुख मा अउ दुख भोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।।


करजा बोड़ी के का होही, संसो फिकर हबरगे।

देखमरी बादर ला छागे, देखे सपना मरगे।

चले धार कोठार खेत मा, सोच सोच सुध खोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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कहर कुदरत के-सार छंद

 कहर कुदरत के-सरसी छंद


कुदरत के आघू मा कखरो, का गल पाही दाल।

बने बने मा जिनगी आये, कहर ढाय ता काल।।


सात समुंदर लहरा मारय, अमरै पेड़ पहाड़।

बरसै गरजै बादर रझरझ, बिजुरी मार दहाड़।।

पवन बवंडर बन ढाये ता, जगत उड़े बन पाल।

कुदरत के आघू मा कखरो, का गल पाही दाल।।


रेती पथरा माटी गोंटी, धुर्रा धूका जाड़।

लावा लद्दी बरफ बिमारी, जिनगी देय बिगाड़।।

सुरुज नरायण के बिफरे ले, बचही काखर खाल।

कुदरत के आघू मा कखरो, का गल पाही दाल।।


धरती डोलय मचय तबाही, काँपय जिवरा देख।

सुक्खा गरमी बाढ़ बिगाड़ै, लिखे लिखाये लेख।।

कुदरत के कानून एक हे, काय धनी कंगाल।

कुदरत के आघू मा कखरो, का गल पाही दाल।।


हुदरत हे कुदरत ला मनखे, होय गरब मा चूर।

धन बल गुण विज्ञान हे कहिके, कूदयँ बन लंगूर।।

जतन करत नित जीना पड़ही, कुदरत के बन लाल।

कुदरत के आघू मा कखरो, का गल पाही दाल।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


बिफर जाय पानी पवन, ता काखर अवकात।

धनी बली ज्ञानी गुणी, सबे उड़ँय बन पात।।

खैरझिटिया


मिचौंग तूफान प्रभावी झन होय

लावणी छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"* आत्मा वीर नारायण के

 लावणी छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"*


आत्मा वीर नारायण के


दुख पीरा हा हमर राज मा,जस के तस हे जन जन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


जे मन के खातिर लड़ मरगे,ते मन बुड़गे स्वारथ मा।

तोर मोर कहि लड़त मरत हे, काँटा बोवत हें पथ मा।

कोन करे अब सेवा पर के,माटी के खाँटी बनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


अधमी सँग मा अधमी बनके,माई पिला सिरावत हे।

पइसा आघू घुटना टेकत,सत स्वभिमान गिरावत हे।

परदेशी के पाँव पखारय,अपने बर ठाढ़े तन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


बाप नाँव ला बेटा बोरे, महतारी तक ला छोड़े।

राज धरम बर का लड़ही जे,भाई बर खँचका कोड़े।

गुन गियान के अता पता नइ, गरब करत हे वो धन के।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


लाँघन ला लोटा भर पानी,लटपट मा मिल पावत हे।

कइसे जिनगी जिये बिचारा,रो रो पेट ठठावत हे।

अपने होगे अत्याचारी,मुटका मारत हे हनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


नेता बयपारी मन गरजे,अँगरेजन जइसन भारी।

कोन बने बेटा बलिदानी,दुख के बोहय अब धारी।

गद्दी ला गद्दार पोटारे, करत हवय कारज मनके।

देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।


छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

रील मा नही रीयल मा दिखव- सार छंद

 रील मा नही रीयल मा दिखव- सार छंद


दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।

हाँसँय फाँसँय नाँचँय गावँय, खड़ें खील मा मनखें।।


जिनगी ला पिच्चर समझत हें, हिरो हिरोइन खुद ला।

धरा छोंड़ के उड़ें हवा मा, अपन गँवा सुध बुध ला।।

लोक लाज सत रीत नीत तज, हवैं ढील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


दुनिया ला देखाये खातिर, बदल रूप रँग बानी।

कभू फिरें बनके बड़ दानी, कभू गुणी अउ ज्ञानी।।

मया प्रीत तज मोती खोजें, उतर झील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


हवैं चरित्तर आज मनुष के, हाथी दाँत बरोबर।

मुख मा राम बगल मा छूरी, दाबे फिरें सबे हर।।

सपना देखें सरी जगत के, खुसर बील मा मनखें।

दिखना चाही रीयल मा ता, दिखें रील मा मनखें।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको,कोरबा(छग)

अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस म,, सरसी छंद(गीत)-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस म,,


सरसी छंद(गीत)-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                  चाय


लौंग लायची दूध डार के, बने बना दे चाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


चले चाय हा सरी जगत मा, का बिहना का साम।

छोटे बड़े सबे झन रटथे, चाय चाय नित नाम।

सुस्ती भागे चाय पिये ले, फुर्ती तुरते आय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


साहब बाबू सगा बबा के, चाय बढ़ाये मान।

चाय पुछे के हवै जमाना, चाय लाय मुस्कान।

रथे चाय के कतको आदी, नइ बिन चाय हिताय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


छठ्ठी बरही मँगनी झँगनी, बिना चाय नइ होय।

चले चाय के सँग मा चरचा, मीत मया मन बोय।

घर दुवार का होटल ढाबा, सबके मान बढ़ाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


चाहा पानी बर दे खर्चा, कहै कई घुसखोर।

करे चापलूसी कतको मन, चाहा कहिके लोर।

संझा बिहना चाय पियइया, चाय चाय चिल्लाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको,कोरबा

दारू पीके सीसी फोड़े- सार छंद

 दारू पीके सीसी फोड़े- सार छंद


दारू पीके सीसी फोड़े, करथें अतियाचारी।

पेट पाँव कतको के कटगे, बहे लहू के धारी।।


पार्टी पिकनिक कहिके रोजे, नदी पहाड़ म जाके।

खाये पीये नाँचे गाये, पर्यावरण मताके।।

काँचे काँच म पटगे हावै, नदी बाट बन बारी।

दारू पीके सीसी फोड़े, हत रे अतियाचारी।।


समझाये दरुहा ला कउने, सुने बात ना बानी।

माते ताहन करे बिगाड़ा, होरा भूंजे छानी।।

धरहा धरहा काँच देख के, काँपे पोटा भारी।

दारू पीके सीसी फोड़े, हत रे अतियाचारी।।


दरुहा मन के करनी के फल, आने कोनो भोगे।

लइका लोग सियान कई के, बड़ करलाई होगे।।

हाय लगे हत्यारा मन ला, थमे काज ये कारी।

दारू पीके सीसी फोड़े, हत रे अतियाचारी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


*पार्टी सार्टी करो फेर सीसी बॉटल ला फोड़ के कखरो हाय झन लेवव*

आल्हा छंद(संत गुरु घासीदास) - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 


आल्हा छंद(संत गुरु घासीदास) - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


हमर राज के  धन धन माटी, बाबा लेइस हे अवतार।

सत के सादा झंडा धरके,रीत नीत ला दिहिन सुधार।


जात पात अउ छुआ छूत बर, खुदे बनिस बाबा हथियार।

जग के खातिर अपने सुख ला,बाबा घासी दिहिन बिसार।


रूढ़िवाद ला मेटे खातिर,सदा करिस बढ़ चढ़ के काम।

हमर राज के कण कण मा जी,बसे हवे बाबा के नाम।


बानी मा नित मिश्री घोरे,धरम करम के अलख जगाय।

मनखे मनखे एक बता के,सुम्मत के रद्दा देखाय।


संत हंस कस उज्जर चोला,गूढ़ ग्यान के गुरुवर खान।

अँवरा धँवरा पेड़ तरी मा,बाँटे सबला सत के ज्ञान।


जंगल झाड़ी ठिहा ठिकाना,बघवा भलवा घलो मितान।

मनखे मन मा प्रीत जगाइस,सत के सादा झंडा तान।


झूठ बसे झन मुँह मा कखरो, खावव कभू न मदिरा माँस।

बाबा घासी जग ला बोले, धरम करम साधौ नित हाँस।


दुखिया मनके बनव सहारा,मया बढ़ा लौ बध लौ मीत।

मनखे मनखे काबर लड़ना,गावव सब झन मिलके  गीत।


सत के ध्वजा सदा लहरावय,सदा रहे घासी के नाँव।

जेखर बानी अमरित घोरे,ओखर मैं महिमा नित गाँव।


रचनाकार -  श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795

रऊनिया म...

 ....रऊनिया म...

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हाथ-पॉव म का किबे?

जाड़ हमागे हे जिया म|

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म|


अगोरा हे चाहा के,

बिहनिया ले उठ के|

टुकुर-टुकुर देखे लइका,

खटिया म सुत के|

फेंक-फेंक के फरिया ल,

गोड़ ल मढ़ात हे|

किनकिनात भुइयाँ,

चाबे ल कुदात हे|

चुल्हा तीर म,

बइठे हे बहिनी जकड़ी|

अऊ हुरसे ऊपर हुरसत हे,

चुल्हा म लकड़ी |

बखरी के बिहनिया ले,

नइ हिटे हे सँकरी |

बबा लादे हे कमरा,

डोकरी दाई ओढ़े हे कथरी|

अंगरा-अंगेठा  भूर्री चाही,

कइसे जाड़ भगाही दिया म....?

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म ..........|


छेरी-बोकरा;बईला-भंईस्सा,

कुड़कुड़ा गेहे जाड़ म|

जमकरहा सीत परे हे कॉदी म,

मुंदरहा नइ हे कोनो खेत-खार म|

ऊगिस घाम ,तिपिस चाम |

कमइया मनके,बाजिस काम|

धान गंजाय कोठार म,

गहूं -चना गेहे जाम |

बिहनिया के बेरा,

कोन टेंड़े टेंड़ा|

ताते-तात खवइया ल,

नइ भात हवे केरा|

सियान बइठे लइका धरे,

दाई धरे मुखारी ल,

चॉंऊर निमारत बहू बइठे,

रॉध-गढ़ के हाड़ी ल |

तापत बइठे घाम टुरा,

किताब धरे भिंया म.........|

कतरो बेरा पहा जथे,

बईठे-बईठे रऊनिया म.......|


घंटा भर नंहवइया,

छिन म नहा डरिस |

तापत-तापत घाम ल ,

दिन ल पहा डरिस |

किनकिनाय दॉत,

कुड़कुड़ाय जॉंगर|

तभो ले कमइया के,

नइ छुटे नांगर |

जइसने बाढ़े जाड़,

तइसने बाढ़े बुता |

अतलंगहा टुरा मन तापे बर,

बार देहे चरिहा सूपा |

आनि -बानि के साग-भाजी,

तात-तात चूरे हे |

गिल्ली,भंवरा-बॉटी खेले बर,

लईका मन जुरे हे |

जमकरहा जाड़ म ,

बड़ मया बाढ़े हे गिंया म....|

कतरो बेरा पहा जथे,

बइठे-बइठे रऊनिया म......|


रचनाकाल-2004

           📝 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"📝

                 बाल्को( कोरबा )

Saturday 7 October 2023

गीत-शाकाहार

 गीत-शाकाहार


कंद मूल फर फूल पान खा, बनव सबे झन शाकाहार।

मछरी कुकरी भेड़ बोकरा, हरे राक्षसी जन आहार।।


महतारी कस धरती दाई, देथें धान पान फर साग।

सेवा करके पा लौ मेवा, हँस हँस खावव सँहिरा भाग।।

फर फुलवारी के नइ पाये, माँस मटन चिटिको कन पार।

फल फुलवा भाजी पाला खा, बनव सबे झन शाकाहार।।


काँदा कूसा के गुण भारी, खाव राँध के दुनो जुवार।

खाय मौसमी फर जर भाजी, तन के भागे रोग हजार।।

खनिज लवण प्रोटीन विटामिन,  सबे तत्व होथे भरमार।

फल फुलवा भाजी पाला खा, बनव सबे झन शाकाहार।।


कई किसम के होय वायरस, मास मटन ले भागव दूर।

जीव जानवर ला झन मारव, अपन पेट बर बनके क्रूर।।

कृषि भूमि भारत उपजाथे, भक्कम फर जर चाँउर दार।

फल फुलवा भाजी पाला खा, बनव सबे झन शाकाहार।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


विश्व शाकाहार दिवस के बधाई

कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


            ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,बापू,,,,,,,,,,,,,,,,


नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरखा चश्मा खादी।

सत्य अंहिसा प्रेम सिरागे, बढ़गे बैरी बरबादी।


गली गली मा लहू बहत हे, लड़त हवै भाई भाई।

तोर मोर के तोता पाले, खनत हवै सबझन खाई।

हरौं तोर चेला जे कहिथे, नशा पान के ते आदी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


कतको के कोठी छलकत हे, कतको के गिल्ला आँटा।

धन बल कुर्सी अउ स्वारथ मा, सुख होगे चौदह बाँटा।

देश प्रेम के भाव भुलागे, बनगे सब अवसरवादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।


दया मया बर दाई तरसे, बरसे बाबू के आँखी।

बेटी बहिनी बाई काँपे, नइ फैला पाये पाँखी।

लउठी वाले भैंस हाँकथे, हवै नाम के आजादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


राम राज के दउहा नइहे, बाजे रावण के डंका।

भाव भजन अब करै कोन हा, खुद मा हे खुद ला शंका।

दया मया सत खँगत जात हे, बड़ बढ़गे बिपत फसादी।

नइहे बापू तोर पुजारी, ना चरचा चश्मा खादी।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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सार छंद- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


***शत शत नमन-लाल बहादुर शास्त्री जी ला****


जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।

लाल बहादुर शास्त्री जी के, चलो करिन जयकारा।।


पद पइसा लत लोभ भुलाके, जीइस जीवन सादा।

बोलिस कम हे जिनगी भर अउ, काम करिस हे जादा।

रिहिस मीत बर मीठ बताशा, बइरी मन बर आरा।।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


आजादी के रथ ला हाँकिस, फाँकिस दुख दुर्गुन ला।

नित नियाव के झंडा गाड़िस, बता पाप अउ पुन ला।

रिहिस उठाये सिर मा सब दिन, देशभक्ति के भारा।।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


ताशकन्द मा कइसे सुतगिन, जेन कभू नइ सोवै।

देख समाधी विजय घाट के, यमुना रहिरहि रोवै।।

लाल बहादुर लाल धरा के, नभ के चाँद सितारा।

जय जवान अउ जय किसान के, जग ला दिस हे नारा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


गांधी शास्त्री जयंती के अवसर मा दुनो हस्ती ला शत शत नमन

हरहा बने फिरे

 हरहा बने फिरे


खाये पिये हे तौन हा मरहा बने फिरे।

टन्नक घलो तो आज अजरहा बने फिरे।1


जानत हवे कहानी तभो मनखे मन इहाँ।

कछवा के चाल देख के खरहा बने फिरे।2


तंखा मिले के बाद भी कतको सफेदपोश।

दू पइसा अउ मिले कही लरहा बने फिरे।3


चिक्कन चरत हे चारा बचे आन बर कहाँ।

गोल्लर असन दिखे उही हरहा बने फिरे।4


उल्टा जमाना आय हे का मैं कहँव भला।

जौने फले फुले न ते थरहा बने फिरे।5


साहेब बाबू नेता गियानी गुनी धनी।

इँखरो तो लोग लइका लफरहा बने फिरे।6


काखर ठिकाना हे कहाँ कब कोन बदल जही।

फुलवा घलो तो आज के धरहा बने फिरे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कलमकार न बने

 कलमकार न बने


जो चाटुकार है वो कलमकार न बने।

बस प्रेमपत्र बन रहें, अखबार न बने।।1


जिनको नही है कद्र, अपने आन बान की।

वो देश राज गाँव के, रखवार न बने।।2


चुपचाप खीर खाने की,आदत हैं जिनकी,

वो बंद रहें बस्ते में, बाजार न बने।।3


धन हराम का हो, किसी के तिजोरी में।

तो फाँस गले का बने, उपहार न बने।।4


स्वार्थ में सने हुये जो, रहते हैं सदा।

औरो का मैल धोने, गंगा धार न बने।।5


झूठ का पुलिंदा, बाँधने वाले सावधान।

सच होश उड़ा देगा, होशियार न बने।।6


वीर शिवा जी नही, न क्षत्रसाल है।

भूषण समझ के खुद को, खुद्दार न बने।।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

आन लाइन बाजार-रोला छंद

 आन लाइन बाजार-रोला छंद


सजे हवै बाजार, ऑनलाइन बड़ भारी।

घर बइठे समान, बिसावत हें नर नारी।।

होवत हे पुरजोर, खरीदी मोबाइल मा।

छोटे बड़े दुकान, पड़त हावैं मुश्किल मा।


देवत रहिथें छूट, लुभाये बर ग्राहक ला।

घर मा दे पहुँचाय, तेल तरकारी तक ला।

साबुन सोडा साल, सुई सोफा सोंहारी।

हवै मँगावत देर, पहुँच जाथे झट द्वारी।।


शहर लगे ना गाँव, सबे कोती छाये हे।।

बाढ़त हावै माँग, बेर डिजिटल आये हे।

सबे किसम के चीज, ऑनलाइन होगे हें।

बड़े लगे ना छोट, सबे येमा खोगे हें।


होमशॉप फ्लिपकार्ट, अमेजन अउ कतको कन।

खुलगे हे बाजार, मगन हें इहि मा सब झन।।

सुविधा बढ़गे आज, राज हे पढ़े लिखे के।

तुरते होवै काम, जरूरत हवै सिखे के।।


जतिक फायदा होय, ततिक नुकसान घलो हे।

का बिहना का साँझ, रोज के हलो हलो हे।।

लोक लुभावन फोन, मुफत मा ए वो बाँटे।

जे चक्कर मा आय, तौन आफत ला छाँटे।।


बिना जान पहिचान, काखरो बुध मा आना।

खाता खाली होय, पड़े पाछू पछताना।।

करव सोंच विचार, झपावौ झन बन भेंड़ी।

पासवर्ड आधार, आय खाता के बेंड़ी।।


आघू करही राज, ऑनलाइन हटरी हा।

दिखही सबके ठौर, बँधे इँखरे गठरी हा।

लूटपाट ले दूर, रही के होवै सेवा।।

करैं बने जे काम, तौन नित पावैं मेवा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

पितर- कुकुभ छंद

 पितर- कुकुभ छंद


पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।

ये धरती मा जनम लेय के, करिन हमर बढ़वार।


खेत खार बन बाट बनाइन, बसा मया के गाँव।

जतिन करिन पानी पुरवा के, सुन चिरई के चाँव।

जीव जानवर पेड़ पात सँग, रखिन जोड़ के तार।।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।


रीत नीत अउ धरम करम के, सदा पढ़ाइन पाठ।

अपन भरे बर कोठी काठा, बनिन कभू नइ काठ।

जियत मरत नइ छोड़िन हें सत,नेत नियम संस्कार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


डिही डोंगरी मंदिर मंतर, सब उँकरे ए दान।

गाँव गुड़ी के मान बढ़ाइन, अपन सबे ला मान।

एक अकेल्ला रिहिन कभू नइ,दिखिन सबे दिन चार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।


उँखरे कोड़े तरिया बवली, जुड़ बर पीपर छाँव।

जब तक ये धरती हा रइही, चलही उंखर नाँव।

गुण गियान के गुँड़ड़ी गढ़के, चलिन बोह सब भार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


पाप पुण्य पद प्रीत रीत के, करिन पितर निर्माण।

स्वारथ खातिर आज हमन हन, धरे तीर अउ बाण।

देख आज के गत बुढ़वा बर, बइठे हे थक हार।

पुरखा मन के सुरता कर गुण, गावँव बारम्बार।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Tuesday 26 September 2023

डीजे अउ पंडाल- रोला छंद

 डीजे अउ पंडाल- रोला छंद


जस सेवा के धूम, होत हे कमती अब तो।

सजे हवै पंडाल, डांडिया नाचैं सब तो।।

नवा ओनहा ओढ़, करे हें मेकप भारी।

डी जे के सुन शोर, नँगत झूमैं नर नारी।


मूंदैं आँखी कान, आरती जस सेवा सुन।

भागैं मुँह ला मोड़, सुनत कोनो जुन्ना धुन।

दीया बाती धूप, हूम जग ला जे हीनें।

वोहर थपड़ी पीट, स्टेप गरबा के गीनें।


ना भक्ति ना भाव, दिखावा के दिन आगे।

बड़े लगे ना छोट, सबें देखव अघुवागे।

परम्परा के पाठ, भुलाके बड़ अँटियाये।

फेसन घेंच उठाय, मनुष ला फाँसत जाये।


चुभे जिया ला गीत, कान सुन बड़ झन्नाये।

नइहे होश हवास, उँहें सब हें सिर नाये।

ना मांदर ना ढोल, झोल डी जे मा होवै।

बचे खँचे गुण ज्ञान, दिखावा मा सब खोवै।


नाच गीत संगीत, सबें के बजगे बारा।

संगत सुर संस्कार, सुमत के टुटगे डारा।

कतको हें मतवार, कई हें मजनू लैला।

तन हावै उजराय, भरे हे मन मा मैला।


बइठे देवी देव, बरे बड़ बुगबुग बत्ती।

तभो भक्ति अउ भाव, दिखे नइ एको रत्ती।

मान मनुष  इतरायँ, देव ला माटी खड्डा।

मठ मंदिर अउ मंच, मजा के बनगे अड्डा।


डीजे अउ पंडाल, तिहाँ चंडाल हमागे।

मनखे हवैं मतंग, देवता देवी भागे।।

नवा जमाना ताय, चोचला इसने होही।

सबें चीज के स्वाद, धीर धर चुक्ता खोही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


करयँ हाँस के डांडिया, प्रेमा प्रिया प्रमोद।

कहै सुवा ला फालतू, देखत हवस विनोद।

Saturday 9 September 2023

राखी----भैया मोर राखी(गीत),,,,

 ,,,,भैया मोर राखी(गीत),,,,


नोहे रेशम,न धागा,न डोर भैया।

ये  राखी   मया  हरे  मोर  भैया।


पंछी कस बनही,भैया  ये तोर पाँखी।

सबो दुख ले बँचाही,मोर बांधे राखी।

लाही जिनगी म,खुशी के हिलोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया-----------|


सुरुज कस चमकही,तोर माथा के कुमकुम।

सुख रहै जिनगी भर,पाँव ला चुम चुम।

लेवत रहिबे सबर दिन,मोर सोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया-----------।


दाई  अउ  ददा के,तँय नाम जगाबे।

मोरो डेहरी म नित,आबे अउ जाबे।

लाहू लोटा म पानी,मया घोर भैया।

ये राखी मया हरे मोर भैया-------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795

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परेवना राखी देके आ

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परेवना कइसे जावौं रे,

भइया तीर तँय बता?

गोला-बारूद चलत हे मेड़ो म,

तँय राखी देके आ.............|


दाई-ददा के छँइहा म रहँव त,

बइठाके भइया ल मँझोत में।

बाँधौं राखी कुंकुंम लगाके,

घींव के दीया  के  जोत   में।

मोर   लगगे    बिहाव   अउ,

होगे भइया देस  के।

कइसे दिखथे मोर भइया ह,

आबे  रे   परेवना   देख  के।

सुख के सुघ्घर समाचार कहिबे,

जा भइया के संदेसा ला........|


सावन पुन्नी आगे जोहत होही,

मोर राखी के बाट रे।

धकर-लकर उड़ जा रे परेवना,

फइलाके दूनो पाँख रे।

चमचम-चमचम चमकत राखी,

भइया ल बड़ भाही रे।

नाँव जगा के ,दाई-ददा के,

बहिनी ल दरस देखाही रे।

जुड़ाही आँखी,ले जा रे राखी,

भइया  के  पता...............|


देखही तोला भइया ह परेवना,

बहिनी  के   सुरता  करही  रे।

जे हाथ म भइया के राखी बँधाही,

ते हाथ देस बर लड़ही रे।

थर-थर कापही बइरी मन ह,

गोली के बऊछार ले,

रक्षा करही राखी मोर भइया के,

बइरी अउ जर-बोखार ले।

जनम-जनम ले अम्मर रही रे,

भाई-बहिनी के नता...........।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                 बालको(कोरबा)

                  998144175

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....@@राखी@@...(गीत)


बॉध मोर कलाई म,

राखी वो बहिनी..........|

हे तोर मोर मया के,

ये साखी वो बहिनी......|


ददा के आसीस हे,

दाई के दुलार हे  |

सावन पुन्नी,

भाई-बहिनी के तिहार हे |

बने रेसम के डोरी,

मोर जिनगी के पॉखी वो बहिनी...|

बॉध मोर................................|


रिमझिम सावन म,

मन मोर नाचे  |

बहिनी के मया ले,

गुथाही मोर हाथे  |

बिनती करव भगवान ले,

शुभ रहे तोर रासि वो बहिनी....|

बॉध मोर.............................|


तोर मया के डोरी,

मोर साथ रहे जिनगी भर |

तोर सुख-दुख म लामत,

मोर हाथ रहे जिनगी भर |

किरिया रॉखी हे,

कोन देखाही तोला ऑखी वो बहिनी..|

बॉध मोर ....................................|

                                 जीतेन्द्र वर्मा

                               बाल्को(कोरबा)


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राखी-बरवै छंद


राखी धरके आहूँ, तोरे द्वार।

भैया मोला देबे, मया दुलार।।


जब रेशम के डोरी, बँधही हाथ।

सुख समृद्धि आही अउ, उँचही माथ।


राखी रक्षा करही, बन आधार।

करौं सदा भगवन ले, इही पुकार।


झन छूटे एको दिन, बँधे गठान।

दया मया बरसाबे, देबे मान।।


हाँस हाँस के करबे, गुरतुर गोठ।

नता बहिन भाई के, होही पोठ।।


धन दौलत नइ माँगौं, ना कुछु दान।

बोलत रहिबे भैया, मीठ जुबान।।


राखी तीजा पोरा, के सुन शोर।

आँखी आघू झुलथे, मइके मोर।।


सरग बरोबर लगथे, सुख के छाँव।

जनम भूमि ला झन मैं, कभू भुलाँव।।


लइकापन के सुरता, आथे रोज।

रखे हवँव घर गाँव ल, मन मा बोज।।


कोठा कोला कुरिया, अँगना द्वार।

जुड़े हवै घर बन सँग, मोर पियार।।


पले बढ़े हँव ते सब, नइ बिसराय।

देखे बर रहिरहि के, जिया ललाय।


मोरो अँगना आबे, भैया मोर।

जनम जनम झन टूटे, लामे डोर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


रक्षाबन्धन की ढेरों बधाइयाँ💐💐

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)

 भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)


भोजली दाई ह बढ़ै, लहर लहर करै,

जुरै सब बहिनी हे, सावन के मास मा।

रेशम के डोरी धर, अक्षत ग रोली धर,

बहिनी ह आये हवै, भइया के पास मा।

फुगड़ी खेलत हवै, झूलना झूलत हवै,

बाँहि डार नाचत हे, जुरे दिन खास मा।

दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,

सावन अँजोरी उड़ै, मया ह अगास मा।


धान पान बन डाली, भुइयाँ के हरियाली।

सबे खूँट खुशहाली, बाँटे दाई भोजली।

पानी कांजी बने बने, सब रहै तने तने।

दुख डर दरद ला, काँटे दाई भोजली।

माई खोली मा बिराज, सात दिन करे राज।

भला बुरा मनखे ला, छाँटे दाई भोजली।

लहर लहर लहराये, नवा नत्ता बनवाये।

मीत मितानी के डोर, आँटे दाई भोजली।


माई कुरिया मा माढ़े,भोजली दाई हा बाढ़े।

ठिहा ठउर मगन हे, बने पाग नेत हे।

जस सेवा चलत हे, पवन म  हलत हे,

खुशी छाये सबो तीर, नाँचे घर खेत हे।

सावन अँजोरी पाख, आये दिन हवै खास,

चढ़े भोजली म धजा, लाली कारी सेत हे।

खेती अउ किसानी बर, बने घाम पानी बर

भोजली मनाये मिल, आशीष माँ देत हे।


अन्न धन भरे दाई, दुख पीरा हरे दाई,

भोजली के मान गौन, होवै गाँव गाँव मा।

दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,

धुँवा उड़े धूप के जी , भोजली के ठाँव मा।

मुचमुच मुसकाये, टुकनी म शोभा पाये,

गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।

राखी के बिहान दिन, भोजली सरोये मिल,

बदे मीत मितानी ग, भोजली के नाँव मा।


राखी के पिंयार म जी, भोजली तिहार म जी,

नाचत हे खेती बाड़ी, नाचत हे धान जी।

भुइँया के जागे भाग, भोजली के भाये राग,

सबो खूँट खुशी छाये, टरै दुख बान जी।

राखी छठ तीजा पोरा, सुख के हरे जी जोरा,

हमर गुमान हरे, बेटी माई मान जी।

मया भाई बहिनी के, नोहे कोनो कहिनी के,

कान खोंच भोजली ला, बनाले ले मितान जी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


भोजली तिहार के बधाई,,जोहार जोहार

मोर गॉव ल काय होगे........ ----------------------------------

 .......मोर गॉव ल काय होगे........

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पीपर के पाना डोले त डर लागे |

कोयली कुहु-कुहु बोले त डर लागे |

रद्दा म रक्सा रहि रहिके दिखत हे |

जाँव कते कोती जघा-जघा बिपत हे |

जिंहा मयना मन भाय,

तिहाँ साँय साँय होगे ........|

हे बिधाता! 

मोर गॉंव ल काय होगे........|


न जाड़ म जुड़ हे,

न असाड़ म पानी |

सावन भादो घलो,

लकलकाय हे छानी |

चुल्हा ले गुंगवा गुंगवात नइहे |

पेट भर जेवन कभू खात नइ हौं |

का  काम बुता करौं,

सबो आँय बाँय होगे...............|

हे बिधाता !

मोर गॉंव ल काय होगे ............|


सोवा परगे हे,गॉंव के गॉंव म |

कोनो नइ जुरे हे,बर पीपर छॉंव म |

लइका मनके,

गिल्ली-भंवरा माते नइहे |

अटकन-मटकन खेले के ,

चँवरा बाचे नइहे |

न गॉंगर चुरे न ठेठरी,

बनेच दिन खीर खाय होगे.......|

हे बिधाता !

मोर गॉंव ल काय होगे............ |


टेस-टेस म अँइठत हें सबो |

टीभी मोबाइल तीर बइठत हें सबो |

न साल्हो हे न सुवा हे |

जघा-जघा मौंत के कुंवा हे |

पहिली जइसे कुछु नइहे,

राम राम हेलो हाय होगे.........|

हे बिधाता:

मोर गॉंव ल काय होगे..............|


             जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

            बाल्को ( कोरबा )

कलंक मनखे -सरसी छन्द

 कलंक मनखे -सरसी छन्द


गलत करे के पहली सोंचैं, लाख घांव इंसान।

अइसन सबक सिखादे उन ला, विनती हे भगवान।।


अत्याचार करत हें भारी, सुनँय गुनँय नइ बात।

मानव होके मानवता ला, मारत फिरथें लात।।

डर हे ना पछतावा चिटको, गरजे बन शैतान।

गलत करे के पहली सोंचैं, लाख घांव इंसान।।


अस्मत लूटे अत्याचारी, मद मउहा में चूर।

बेटी माई बेबस मनखे, दुख पाये भरपूर।।

नेता गुंडा साब सिपैहा, पाय हवै वरदान।

गलत करे के पहली सोंचैं, लाख घांव इंसान।।


करनी के फल भुगते तुरते, तुरते होय नियाँव।

बजे काल के डंका अइसे, होय झने चिंव चाँव।।

मारे काटे लूटे पाटे, तेखर मरे बिहान।

गलत करे के पहली सोंचैं, लाख घांव इंसान।।


न्याय तंत्र हा ये कलजुग के, बनके रहिगे खेल।

कैदी मन के कदर बढ़े हे, घर जइसे हे जेल।।

चोर सिपैहा भाई भाई, बिगड़े हवै विधान।

गलत करे के पहली सोंचैं, लाख घांव इंसान।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)



छत्तीसगढ़ के महान सपूत गीत संगीत के जादूगर स्व.खुमान साव जी ल,उंखर जनम जयंती के बेरा मा शत शत नमन---- जब तक छत्तीसगढ़ रही,खुमान साव जी के गीत संगीत सबर दिन राज करही--

 छत्तीसगढ़ के महान सपूत गीत संगीत के जादूगर स्व.खुमान साव जी ल,उंखर जनम जयंती के बेरा मा शत शत नमन---- जब तक छत्तीसगढ़ रही,खुमान साव जी के गीत संगीत सबर दिन राज करही--


धान कटोरा के दुबराज,करबे तैंहर सब जुग राज।

सुसकत हावय सरी समाज,सुरता तोर लमाके आज।1।


चंदैनी गोदा मुरझाय,संगी साथी मुड़ी ठठाय।

तोर बिना दुच्छा संगीत,लेवस तैं सबके मन जीत।2।


हारमोनियम धरके हाथ,तबला ढोलक बेंजो साथ।

बाँटस मया दया सत मीत,गावस बने सजा के गीत।3।


तोर दिये जम्मो संगीत,हमर राज के बनके रीत।

सुने बिना नइ जिया अघाय,हाय साव तैं कहाँ लुकाय।4।


झुलथस नजर नजर मा मोर,काल बिगाड़े का कुछु तोर।

तोर कभू नइ नाम मिटाय,जिया भीतरी रही लिखाय।5।


तोर पार ला पावै कोन,तैंहर पारस अउ तैं सोन।

मस्तुरिहा सँग जोड़ी तोर,देय धरा मा अमरित घोर।6।


तोर उपर हम सबला नाज,शासन ले हे बड़े समाज।

माटी गोंटी मुरुख सकेल,खेलत हें देखावा खेल।7।


छत्तीसगढ़ के तैं हर शान, सबझन कहे खुमान खुमान।

धन धन धरा ठेकवा धाम, गूँजय गीत सुबे अउ शाम।8।


सबके अन्तस् मा दे घाव,बसे सरग मा दुलरू साव।

सच्चा छत्तीसगढ़िया पूत,शारद मैया के तैं दूत।9।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटी, राजनांदगांव(छग)

कमर्छठ

 खमर्छठ(सार छंद)


खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।

चना गहूँ राहेर भुँजाये ,झड़के बहिनी भाई।


भादो मास खमर्छठ होवय,छठमी तिथि अँधियारी।

घर लिपाय पोताय सुहावै, महकत रहै दुवारी।।


बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।

हलषष्ठी के करे सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।


घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।

पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।


चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।

हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।


पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।

लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।


लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।

छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।


खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।

महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।


भैंस दूध के भोग लगाये,भरभर मउहा दोना।

करे दया हलषष्ठी  देवी,टारे दुख जर टोना।


पीठ म  पोती   दे बर दाई,पिंवरी  माटी  घोरे |

लइका मनके पाँव ल दाई, सगरी मा धर बोरे।


चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।| 

महतारी के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।


द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।

रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।


घँसे पीठ मा महतारी मन,पोती कइथे जेला।

रक्षा कवच बने लइका के,भागे दुःख झमेला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


खमर्छठ परब के बहुत बहुत बधाई

कृष्ण--आठे परब के सादर बधाई

 आठे परब के सादर बधाई


मोला किसन बनादे (सार छंद)


पाँख  मयूँरा  मूड़ सजादे,काजर गाल लगादे|

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


बाँध कमर मा करिया करधन,बाँध मूड़ मा पागा|

हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|

चंदन  टीका  माथ लगादे ,पहिरा माला मुंदी|

फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चुंदी|

हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |

घींव  लेवना  चाँट  चाँट  के,खाहूँ थाली थाली |

मुचुर मुचुर मुसकावत सोहूँ,दाई लोरी गादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी मीठ बजाहूँ|

तेंदू  लउड़ी  हाथ थमादे,गाय  चराके आहूँ|

महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    

गोकुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल घर भीतर।

मधुबन जइसे बाग बगीचा, रुख राई बन झाड़ी|

बँसुरी  धरे  रेंगहूँ   मैंहा ,भइया  नाँगर  डाँड़ी|

कनिहा मा कँस लाली गमछा,पीताम्बर ओढ़ादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|

संसो  झन करबे वो दाई,खेल कूद घर आहूँ|

पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई ,किसन बरन तैं चोला|

रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|

पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |

बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|

दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,दाई आस पुरादे।

हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |


जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "

बालको (कोरबा )


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1,मदिरा सवैया


मोहन माखन माँगत हे मइया मुसकावत देखत हे।

गोकुल के सब गोपिन ला घनश्याम दहीं बर छेकत हे।

देख गुवालिन के मटकी धरके पथरा मिल फेकत हे।

तारन हार हरे हरि हा पँवरी म सबे सिर टेकत हे।


2, मतगयंद सवैया


देख रखे हँव माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।

रोवत हावय गाय गरू झट लेज मधूबन तीर चराना।

कान ल मोर सुहाय नही कुछु आ मुरलीधर गीत सुनाना।

काल बने बड़ कंस फिरे झट आ मनमोहन प्राण बचाना।


गोप गुवालिन के सँग मोहन रास मधूबन तीर रचावै।

कंगन देख बजे बड़ हाथ के पैजन पाँव के गीत सुनावै।

मोहन के बँसरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके मन भावै

एक घड़ी म दिखे सबके सँग एक घड़ी सबले दुरिहावै।


चोर सहीं झन आ ललना झन खा ललना मिसरी बरपेली।

तोर हरे सब दूध दहीं अउ तोर हरे सब माखन ढेली।

आ ललना झट बैठ दुहूँ मँय दूध दहीं ममता मन मेली।

मोर जिया ल चुरा नित नाचत गावत तैं करके अटखेली।


गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं गा।

फूल गुलाब न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं गा।

मोर सबे सुख शांति उड़े मुरलीधर रास रचे न कहीं गा।

दर्शन दे झट आ मनमोहन हाथ धरे हँव दूध दहीं गा।


धर्म ध्वजा धरनी धँसगे झटले अब आ करिया फहराना।

खोर गली म भरे हे दुशासन द्रौपति के अब लाज बचाना।

शासक संग समाज सबे ल सुशासन के सत पाठ पढ़ाना।

झाड़ कदम्ब जमे कटगे यमुना मतगे मनमोहन आना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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लोकछंद- रामसत्ता


विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।

दीन दुखी के डर दुख हरके, धर्म ध्वजा फहराये हो राम।


एक समय देवकी बसदेव के, राजा कंस ब्याह रचाये।

उही बेर मा आकाशवाणी, कंस के काने मा सुनाये।।

आठवाँ सुत हा मारही तोला, सुनत कंस भारी बगियाये।

बाँध छाँद बसदेव देवकी ला, कारागर मा झट ओइलाये।।

*सुख शांति के देखे सपना, एके छिन छरियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।1


राजा कंस हा होके निर्दयी, देवकी बसदेव पूत मारे।

करँय किलौली दूनो भारी, रही रही के आँसू ढारे।।

थर थर काँपे तीनो लोक हा, कंस करे अत्याचारी।

भादो अठमी के दिन आइस, प्रभु अवतरे के बारी।।

*बिजुरी चमके बादर गरजे, नदी ताल उमियाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।2


अधरतिहा अवतरे कन्हैया, बेड़ी भाँड़ी सब टुटगे।

देवी देवता फूल बरसाये, राजा बसदेव देख उठगे।।

देख मनेमने गुनय बसदेव, निर्दयी राजा के हे डर।

धरे कन्हैया ला टुकनी में, चले बसदेव नंद के घर।।

*यमुना बाढ़े शेषनांग ठाढ़े, गिरधारी मुस्काये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।3


छोड़ कन्हैया ला गोकुल में, माया ला धरके लाये।

समै के काँटा रुकगे रिहिस, बसदेव सुधबुध बिसराये।।

रोइस माया तब जागिस सब, आइस दौड़त अभिमानी।

पुत्र नोहे पुत्री ए राजा, हाथ जोड़ बोले बानी।।

*विष्णु के छल समझ कंस हा, मारे बर ऊँचाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।4


छूटे कंस के हाथ ले माया, होय देख पानी पानी।

तोर काल होगे हे पैदा, सुन के काँपे अभिमानी।।

जतका नान्हे लइका हावै, कहै मार देवव सब ला।

सैनिक मन के आघू मा, करे किलौली कई अबला।

*रोवै नर नारी मन दुख मा, हाँहाकार सुनाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।5


राजा कंस के काल मोहना, गोकुल मा देखाय लीला।

दाई ददा संग सब ग्राम वासी, नाचे गाये माई पीला।।

छम छम बाजे पाँव के पइरी, ठुमुक ठुमुक चले कन्हैया।

शेषनाग के अवतारे ए, संग हवै बलदऊ भइया।।

*किसन बलदऊ ला मारे बर, कंस हा करे उपाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।6


कंस के कहना मान पुतना, गोकुल नगरी मा आये।

भेस बदल के कान्हा ला धर, गोरस अपन पिलाये।।

उड़े गगन मा मौका पाके, कान्हा ला धरके पुतना।

चाबे स्तन ला कान्हा हा, तब भारी भड़के पुतना।।

*असल भेस धर गिरे भूमि मा, पुतना प्राण गँवाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।7


पुतना बध सुन तृणावर्त ला, कंस भेजे गोकुल नगरी।

बनके आय बवंडर दानव, होगे धूले धूल नगरी।।

मारे लात फेकाये दानव, प्राण पखेडू उड़े तुरते।

बगुला भेस बनाके बकासुर, गोकुल मा आये उड़ते।

भारी भरकम देख बगुला ला, नर नारी घबराये हो राम।

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।8


अपन चोंच मा मनमोहना ला, धरके बगुला उड़िड़ाये।

चोंच फाड़ बगुला ला मारे, कंस सुनत बड़ घबराये।।

बछरू रूप धरे बरसासुर, मोहन ला मारे आये।

खुदे बरसासुर हा मरगे, अघासुर आ डरह्वाये।।

*गुफा समझ सब ग्वाल बाल मन, अजगर मुख मा जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।9


कंस के भेजे सब दानव मन, एक एक करके मरगे।

गोकुल वासी जय बोलावै, दानव मन मरके तरगे।।

माखन खावै दही चोरावै, मटकी फोड़े गुवालिन के।

मुँह उला के जग देखावै, माटी खावै बिनबिन के।।

*कदम पेड़ मा बइठ कन्हैया, मुरली मधुर बजाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।10


पेड़ बने दुई यक्ष रिहिन हे, कान्हा उन ला उबारे।

गेंद खेलन सब ग्वाल बाल संग, मोहन गय यमुना पारे।

रहे कालिया नाग जल मा, चाबे नइ कोनो बाँचे।

कालीदाह मा कूदे कन्हैया, नाँग नाथ फन मा नाँचे।

*गोबर्धन के पूजा करके, इन्द्र के घमंड उतारे हो  राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।11


मधुर मधुर मुरली धुन छेड़े, रास रचाये मधुबन मा।

गाय बछरू ला गोकुल के, कान्हा चराये कानन मा।।

सिखाय नाहे बर गोपियन ला, चीर हरण करके कान्हा।

राधा ला भिंगोये रंग मा, पिचकारी भरके कान्हा।।

*कृष्ण बलदउ ला अक्रूर जी, मथुरा लेके जाये हो राम।*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।12


गोकुल मधुबन मरघट्टी कस, बिन कान्हा के लागत हे।

मनखे मन कठवा कस होगे, सूतत हे ना जागत हे।।

यमुना आँसू मा भरगे हे, रोवय जम्मो नर नारी।

कान्हा जाके मथुरा नगरी, दुखियन के दुख ला हारी।

*कंस ममा ला मुटका मारे, लहू के धार बोहाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।13


अत्याचारी कंस मरगे, जरासन्त शिशुपाल पाल मरे।

असुरन मनके नाँव बुझागे, विदुर सुदामा सखा तरे।।

दुशासन चिर खींचत थकगे, बने सहारा दुरपति के।

महाभारत ला पांडव जीतिस, कौरव फल पाइस अति के।

*हरि कथा हे अपरम पारे, खैरझिटिया का सुनाये हो राम*

विष्णु के अवतार कन्हैया, द्वापर युग मा आये हो राम।14


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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कलजुग म घलो आबे कान्हा

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स्वारथ म  रक्सा  बनके मनखे,

सिधवा गोप-गुवाल ल मारत हे।

कालीदाह   के   कालिया   नाग,

गली - गली   म    फुस्कारत हे।

बरसत हे ईरसा-दुवेस लड़ई-झगरा,

मया  के  गोवरधन उठाबे कान्हा।।

कलजुग  म  घलो  आबे   कान्हा।।


देवकी-बसदेव  ल  का  किबे,

जसोदा-नन्द  घलो  रोवत  हे।

कहाँ बाजे बंसुरी,कती रचे रास?

घर - घर  महाभारत  होवत   हे।

सड़क डहर म बइठे हे तोर गईया,

मधुबन म ले जाके चराबे कान्हा।

कलजुग  म  घलो आबे   कान्हा।


दूध - दही  ले  दुरिहाके  मनखे,

मन्द - मऊहा   म  डूब   गे  हे।

अलिन-गलिन म  सोवा  परे हे,

कदम  के  रुखवा  टूट  गे  हे।

घेंच म बांधे घूमे भरस्टाचार के हांड़ी,

आके  दही  लूट  देखादे  कान्हा।

कलजुग  म  घलो  आबे  कान्हा।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

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गीत-करिया कन्हैया आ


मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।

बंसी के बजइया आ----

माखन खवैया आ------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


तोर बिना गोकुल न, तोर बिना मधुबन।

तोरबिन बन बाग सुन्ना, तोरबिन भव भुवन।।

मोर पाँख पहरैया आ-----

नाग के नथैया आ-------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


नंद यशोदा रोवैं, रोवैं गोपी ग्वाला।

राधा के आँखी के, बोहै नदी नाला।।

चीर हरैया आ-----

पीर हरैया आ------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


हवा चलत नइहे, पत्ता हलत नइहे।

गरवा चरत नइहे, बिरवा फरत नइहे।।

गोवर्धन उठैया आ------

भवपार लगैया आ------

करिया कन्हैया आ----

मधुबन मा रास रचैया, गउवा के चरैया आ।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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रामसत्ता-दशावतार गाथा


कल्कि रूप धर ये कलयुग मा, आके दरस देखादे हो राम।

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


पहली लिये तैं मत्स्य अवतारे।

जल परलय ले जग ला उबारे।।

*सत्यव्रत ला तत्वज्ञान दे, मत्स्य पुराण सुनाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


कच्छप रूप दुसर तैं बनाये।

देव दानव मनके भाग जगाये।।

*मंदराचल पर्वत ला बोह के, सागर मंथन कराये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


तीसर रूप बरहा अवतारे।

हिरण्याक्ष के भुजा उखाड़े।।

*समुंद में डूबे धरती ला, तैंहर बाहिर निकाले हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


चौथा रूप मा नरसिंह बनके।

बने सहाई तैं सुर जन के।।

*हिरण्यकश्यप मार गिराके, प्रह्लाद पार लगाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


पाँचवा रूप धर वामन अवतारे।

राजा बलि के गरब उतारे।।

*नाप पाँव मा तीनो लोक, लीला गजब देखाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


परसुराम के ले अवतारे।

सहस्रबाहु ला दिये पछाड़े।।

*क्षत्रिय मनके गरब तोड़ के,जपतप जग ला सिखाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


सातवां अवतार मा बन राम।

त्रेता युग ला तारे तमाम।।

*मर्यादा पुरुषोत्तम बनके, रावण मार गिराये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


आठवा रूप मा बन गोपाला।

कहाये नंद यशोदा के लाला।।

*अर्जुन के रथ हाँक कन्हैया, धर्म ध्वजा लहराये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


नवम रूप मा बुद्ध बनके।

बनगेस राजा तैं जन जन के।।

*सत मारग धर जपतप करके,ज्ञान के धार बोहाये हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


कल्कि रूप धर आजा प्रभु जी।

कलजुग ला सिरजा जा प्रभु जी।।

*सुमरत हावन तोला भगवन, आके दरश देखाजा हो राम।*

*सब दिन लाज बेचाये हवस तैं,आ अब लाज बचादे हो राम।*


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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........माते हे दही लूट..........

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गोकुल गँवागे,ब्रिज बोहागे |

सिरागे जम्मो सुख.............|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


परिया तरिया पार लुटागे |

डहर गाँव खेत-खार लुटागे |

नांगर बक्खर बखरी -बारी,

खेक्सा,करेला,सेमी नार लुटागे |

कागज कस फूल ममहाय नही|

गाय-गरवा कोनो ल भाय नही |

न गोपी हे न ग्वाला हे |

जम्मो मनचलहा, मतवाला हे |

नइ पीये दूध दही,

सब ढ़ोकत हें मँउहा घूट...............|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


जसोदा के लोरी लुटागे |

नंद ग्राम के  होरी लुटागे |

दुहना,मथनी,डोरी लुटागे |

किसन बलदाऊ के जोड़ी लुटागे |

पेंट पुट्टी के दिवाल म,

आठे कन्हैया नइ नाँचे |

घर घर भरे असुर के मारे,

गोकुल- मधुबन नइ बाँचे |

अपनेच पेट के देखइया सब,

सुदामा मरत हे भूख.................|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


पहली कस दही,

अब जमे नही |

घीव-लेवना नोहर होगे,

कड़ही तको बने नही |

दूध दही होटल म होत हे |

ग्वाल-बाल गली-गली म रोत हे |

न गौठान हे,न चरागन हे,

कहॉ बाजे बंसरी,नइ हे कदम रूख.....|

जँउहर गॉंव-गॉंव म,

 माते हे दही लूट........|


                जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                        बाल्को(कोरबा )

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हाय--गाय-- कुंडलियाँ छंद

 हाय--गाय-- कुंडलियाँ छंद


काखर का गत हो जही, कोई पाय न जान।

गोधन के गत देख के, मुँद झन आँखी कान।।

मुँद झन आँखी कान, आज तैं चिंतन कर ले।

दूध दही घीं देय, तउन बहिरागे घर ले।।

माता घलो कहाय, नवावैं सब झन नित सर।

मरे कटे वो आज, काल का होही काखर।।


खैरझिटिया


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छेल्ला गरु गाय होगे।


जतके गोबर गौठान होइस, ततके बाय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


भाई बटवारा मा, ब्यारा नइ बाँचिस।

हार्वेस्टर के लुवई मा, चारा नइ बाँचिस।

गौठान कब्जागे, चरागन रुँधागे।

चरवाहा बपुरा, बिन बूता ऊँघागे।

कुकुर पलई फेसन होगे, गोधन हर्राय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


कूकर मा भात चूरे, नइ निकले पसिया।

ता भला काला पीही, गाय पँड़डू बछिया।

दूध दही घींव लेवना, दुकान मा बेंचात हे।

राउत भाई बहिनी मन,फोकटे हो जात हे।

ना दुहना ना मथनी, गजब दिन करोनी खाय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


गोबर कचरा काँदी पैरा, सबला फटफट लागे।

कोठा उप्पर बिल्ड़िंग बनगे, सुखयारिन बहू आगे।

यूरिया डीपी कस अउ बनगे, रंग रंग के खातू।

घुरवा गरुवा छोड़ छाड़ के, खुश हे आज बरातू।

गाय गरु के सड़क सहारा,बिन गोसँइयाँ हाय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


खेत मा नइहे, बइला बछवा के काम।

ता कोन करे ओखर, सेवा सुबे शाम।

ना लीपे बर गोबर चाही, ना बारे बर छेना।

ता गाय बइला बछवा ले, कोनो ला का लेना।

गौ सेवा गोविंद सेवा, पोथी मा लिखाय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


ना गाड़ा ना खाँसर, ना बेलन ना दँउरी।

अमेजन मा छेना,अमेजन मा गौरा गउरी।

केमिकल के स्वाद, जीभ ला भावत हे।

अमूल देवभोग साँची, घरों घर आवत हे।

स्वारथ सधत सेवा रिहिस, अब काय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


पहिली गौ महिमा संग,सेवा अउ गोदान चले।

पढ़े लिखे तक मन, सवारथ ले अंजान चले।।

विज्ञान के युग, गाय गरुवा ला गरू करदिस।

सुर-सुनता के संसार ला,  करू कर दिस।।

चुपचाप सब चलत रिहिस,हल्ला हर्राय होगे।

गांव गांव मा छेल्ला, आज गरु गाय होगे।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday 1 July 2023

नियत बचाके रख रे मनखे- तातंक छन्द

 नियत बचाके रख रे मनखे- तातंक छन्द


नियत बचाके रख रे मनखे, बचही पुरवा पानी हा।

लूट मचा झन बनगे लोभी, सिरा जही जिनगानी हा।


कब्जा झन पर्वत नदिया बन, झन खा पेड़उ पाती ला।

जादा झन निकाल खनिज जल, छेद धरा के छाती ला।।

सता प्रकृति ला अब झन जादा, के दिन रही जवानी हा।

नियत बचाके रख रे मनखे, बचही पुरवा पानी हा।।


चरै तोर बइला विकास के, सुख के धनहा डोली ला।

तोरे बइला तुहिंला पटके, गुनय सुनय ना बोली ला।।

हवै भोंगरा छत अउ छानी, आगी लगे फुटानी हा।

नियत बचाके रख रे मनखे, बचही पुरवा पानी हा।।


माटी मा गारा मिलगे गे हे, महुरा पुरवा पानी मा।

साँस लेय बर जुगत जमाथस, का हे अब जिनगानी मा।

काली बर बस काल बचे हे, सरगे तोर सियानी हा।

नियत बचाके रख रे मनखे, बचही पुरवा पानी हा।।


पेड़ लगावत फोटू ढिलथस, कभू बाँचतस नारा तैं।

सात जनम के ख्वाब देखथस, बइठे रटहा डारा तैं।

चाँद सितारा ला देखत हस, तड़पय धरती रानी हा।

नियत बचाके रख रे मनखे, बचही पुरवा पानी हा।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

बजट अउ आम आदमी

 बजट अउ आम आदमी


आँसों  फेर बजट ला, देखत हे आम आदमी।

आसा के आगी मा हाथ, सेकत हे आम आदमी।।


कखरो मुख मा कहाँ, नाम गाँव रथे इंखर,

ये जग मा सबर दिन, नेपत हे आम आदमी।


पेट्रोल डीजल टोल टेक्स, कुछु मा नइहे राहत,

आहत हो गाड़ी कार ला, बेचत हे आम आदमी।।


न कभू मरे न कभू मोटाय, का खाय का बचाय,

घानी के बने बइला तेल, पेरत हे आम आदमी।।


का बड़े का छोटे, सब खाय इंखरे कमाई ला,

अर्थव्यवस्था ला बोहे, लेगत हे आम आदमी।।


देश राज संस्कृति, अउ संस्कार के बन पुजारी।

खुद के ठिहा ठौर ला, लेसत हे आम आदमी।।


पिसाके दू पाटा बीच, तेल नून आँटा बीच,

सब दिन बस पापड़, बेलत हे आम आदमी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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आम आदमी


सरकार के उपकार मा, हलाल बनके आम आदमी।

बनत रिहिस मसाल पर,मलाल बनगे आम आदमी।।


न ऊपर वाले जाने, ना नीचे वाले कभू माने ,

सिरिफ सपना मा,जलाल बनगे आम आदमी।।


असकटाके गुलामी के बेड़ी मा,नित फंदाय फंदाय,

खास बने के चाह मा, दलाल बनगे आम आदमी।।


शान शौकत के सपना ला, कभू पाँख नइ लगिस,

आन के सुरा शौक बर, कलाल बनगे आम आदमी।


दुबके दुबके नाम गाँव अउ, पद पार के संसो मा,

माँगे बर हक अपन, अलाल बनगे आम आदमी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


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करजा परजा बर


सत मत धरम करम के, सदा जय होना चाही।

लत लोभ बैर बुराई के घर, प्रलय होना चाही।।


बड़का उही जे गार पछीना पेट परिवार ला पाले,

करजा काट के अमीरी गरीबी, तय होना चाही।।


काबिल के सर मा, सजै सबर दिन ताज तोरण,

चोर चमचा मन के मन मा,डर भय होना चाही।।


नाम नही काम बोले, नेता अफसर अधिकारी के,

छेरी कस फोकटे फोकट नइ मय मय होना चाही।


सजा छूट विधि विधान सबो बर रहै एक बरोबर,

आम आदमी के मन मा झन संसय होना चाही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया

बाल्को कोरबा(छग)

हमर भाँखा हमर अभिमान-

 हमर भाँखा हमर अभिमान-


             चिरई चिरगुन, कुकुर बिलई, गाय गरुवा सबे के मुख के आवाज निकलथे, जेला हमन नरियई या चिल्लई कही देथन, फेर मनखे के मुख ले निकले आवाज ला भाँखा या बोली कहिथन, काबर कि मनखे मन के बोली भाँखा एक खांखा मा चलथे, कहे के मतलब एक बेर बने या बोले बात बोली सरलग वो शब्द या फेर वो बूता काम बर बउरे जाथे। चिरई चिरगुन मन का बोलथे तेखर बर तो इहिच कहिबों- "खग ही जाने खग की भाषा"। फेर गाय गरुवा चिरई चिरगुन घलो हमर थोर बहुत भाँखा ला समझथे तभे तो कुकुर बिलई गाय गरुवा ला आआ, हई आ, ले ले---- कहे मा आ जथे अउ हूत,हात, भाग --- कहे मा भगा जथे।

 हमर महतारी बोली भाँखा छत्तीसगढ़ी आय। एखर जनम कब होइस कइसे होइस तेखर बारे मा कुछु कही पाना सम्भव नइहे। बोली भाँखा ला स्थापित करे मा कतका उदिम लगे होही सोच के थरथरासी लगथे, काबर कि कोनो अंचल या क्ष्रेत्र के भाँखा बोली वो क्षेत्र के सबें रहवासी ला मान्य होथे, अउ तर्कसंगत घलो अउ ओला आन क्षेत्र जे मन घलो नइ डिगा सके। जइसे टेड़ा ल टेड़ के पानी निकाले बर पड़थे, ता वो टेड़ा होगे अउ ओखर पटिया पाटी, जे अपन काल मा मान्य रिहिस अउ आजो  मान्य या चलन मा हे। आज येला बदले नइ जा सके। गांव या अंचल के नामकरण घलो भौगोलिक, राजनीतिक, धार्मिक या अन्य कोनो परिदृश्य मा होवय, जइसे भांठा भुइयां के सेती भांठागाँव, खैर के लकड़ी के कारण खैरझिटी, डीही डोंगरी या देव धामी के कारण देवडोंगढ़, अमलीडीही, डोंगरगढ़ आदि आदि। आज भले स्थल या स्थान विशेष के नाम ल शाब्दिक अभाव या आधुनिकता  के कारण बदलत सुनथन, फेर ओखर मूल कतको बदलना उही रथे। पर वस्तु विशेष या क्रिया विशेष के नाम ला नइ बदल सकन। पंखा पंखा ही कहाही, ढेंकी ढेंकी ही कहाही, लमती, चकरी, टेड़गी तको उहीच कहाही। फेर नइ जाने तेमन ओ वस्तु के रंग रूप अनुसार कुछु आन तान बतावत गोठीयावत काम घलो चला लेथे।  कई ठन शब्द  या बोली अपभ्रंस, देशज रूप मा  घलो चलथे, पर लिखित या भाँखा के रूप मा जस के तस नइ लिखे जाय। कोनो अंचल विशेष मा सरलग बउरे जाने वाला बोली ही भाँखा के रूप लेथे। कोनो चीज जब नवा रूप मा अस्तित्व मा आथे ता ओखर नामकरण ओखर अविष्कारक मन करथे, अइसने काम बूता के नामकरण घलो होय होही। जानकार जे मन वो वस्तु या बूता काम ला आन भाँखा मा का कथे तेला जानत रिहिस होही ता उसनेच शब्द लिस होही, काबर की कई शब्द कई भाँखा मा एके रथे। अउ अनजान या येला का कथे अइसन चीज बस बर नवा शब्द गढ़ीन होही, फेर एखर बारे मा कुछु ठोसलगहा प्रमाण नइ हे। वो समय मनखे के सम्पर्क घलो सिमित राहय अउ आना जाना घलो सहज नइ रहय, ते पाय के हर अंचल के भाँखा बोली लगभग अलगे मिलथे।

             भाँखा घलो पानी कस ऊंच ले नीच कोती भागथे , कहे के मतलब सरलता कोती मुड़ जथे। दुनिया मा असंख्य भाँखा हे, सबके अपन अलग अलग अस्तिवव घलो हे। कतको भाँखा के अलगेच लिपि हे ता कतको भाँखा कई लिपि मा ही बउरावत रथे। बोली के जब तक समझइया नइ रही वो भाँखा नइ बन सके। छत्तीसगढ़ी बोली छत्तीसगढ़ भर मा बोले अउ समझे जाथे। जब भाँखा बनिस ता वो समय जेन भी चीज या जेन भी काम धाम वो अंचल विशेष मा चलत रिहिस वो सबके नामकरण होइस होही। जइसे हमर छत्तीसगढ़ मा ढेरा आँटना, मछरी धरना, मुही बाँधना, निंदई करना, धान मिंजना जइसन असंख्य काम--- । अब वो समय कम्प्यूटर, ट्रेक्टर, हार्वेस्टर नइ रिहिस ता कम्प्यूटर, ट्रेक्टर या हार्वेस्टर। चलाये बर अलग से शब्द नइ बनिस, बल्कि मशीन के नाम के अनुसार जब आइस तब अपना लेय गिस। आजो अइसने होवत हे कोनो भी नवा चीज न सिरिफ छत्तीसगढ़ी भाँखा मा बल्कि जम्मे भाँखा बोली मा जस के तस आवत हे,  येला बदले या अपभ्रंस करे के जरूरत घलो नइहे। भाँखा के बारे मा सोचबे ता एकठन अचरज घलो होथे जइसे कतको जुन्ना अउ जरूरी शब्द के नाम कतको भाँखा मा एके दिखथे, उदाहरण बर नाक, कान, दाँत ----  आदि कस कतको अकन शब्द हिंदी या अन्य बोली भाँखा मा वइसनेच मिलथे। जब भौह बर छत्तीसगढ़ी बोली मा चंडी/बटेना/टेपरा बनाइस ता कान ला कान ही काबर किहिस होही, या कान कहिस ता आन भाषी मन तको जस के तस कइसे अपनाइस होही। या हिंदी के शब्द कान ला  छत्तीसगढ़ी मा घलो कान लिस ता भौह ला चंडी काबर किहिस? खैर ये सब ला उही मन जाने।   कतको शब्द के एक ले जादा नाम तको दिखथे। एखर ले साबित होथे, भाँखा के निर्माण कोनो एक व्यक्ति या अंचल विशेष ले नइ होय हे, बल्कि जम्मे कोती के खोज खबर अउ महिनत,मान मनउवल मिले हे। इही क्रम मा सुरता आवत हे, आज कतको संगी मन धन्यवाद या धनबाद या धनेवाद कहिके छत्तीसगढ़ी शब्द बनाथे ,फेर ये उचित नइहे। काबर कि जुन्ना काल मा ये बात बात मा धन्यवाद कहे के परम्परा हमर छत्तीसगढ़ मा नइ रिहिस, बल्कि सेवा के बदला सेवा, अउ बड़े के छोटे के प्रति किये कोनो काम धाम कर्तव्य मा गिनती आवय। ददा अपन लइका बर खजानी लावय ता लइका ददा ला धन्यवाद नइ काहय, दाई रोटी खवावय तभो लइका गबर गबर खाये, धन्यवाद कहिके अभिवादन नइ करे। काबर कि वो दाई ददा के कर्तव्य अउ आदतन निःस्वार्थ बूता रहय,  जेखर करजा लइका बड़े होके चुकावै, धन्यवाद कहिके नइ बोचके। फेर आज तो लइका का दाई, ददा , भाई, बहिनी, यार दोस्त सबें एक दूसर ला धन्यवाद कहत फिरत हे। खैर छोड़व यदि कहना हे ता कहव, फेर छत्तीसगढ़ी भाँखा कहिके बिगाड़ के झन बोलव। मोर कहे के मतलब हे  हमर भाँखा प्राचीन हे जे चीज वो समय रिहिस ओखर बर प्रचलित शब्द हे, अउ नइ रिहिस तेखर बर नइहे। यदि नइहे ता वोला उही रूप मा शामिल करन अउ हवे या महिनत करके जुन्ना सगा सियान ले पूछन। आज कतको अकन प्रचलित ठेठ शब्द मन नइ बउराय के कारण उड़ावत जावत हे, जे हमर पुरखा मनके महिनत के उचित मान सम्मान नोहे।  दाई ला ओखर लइका ही दाई कही, कोनो आन नही अउ दाई के सेवा घलो लइका ल करेल लगही ,काबर की महतारी के करजा ले उऋण होना सम्भव नइहे, वइसने भाँखा घलो हमर महतारी आय अउ हम सब जम्मो छत्तीसगढिया मन ओखर लइका। अब कतका सेवा जतन, मान सम्मान करथन हमरे उपर हे। 

            आवन इही क्रम मा हमर शरीर के अंग मन के नाम ला जानन कि कोन अंग ला छत्तीसगढ़ी मा का कथे---


हिंदी ले छत्तीसगढ़ी नाम


बाल/केश-चुन्दी

सिर- मूड़

मस्तक-माथा/कपार

भौंह- चंडी/टेपरा/बटेना

पुतली-पुतरी

आँख- आँखी

पलक- बिरौनी

मुँह- मुँहु

कान के बाहरी भाग- कनपट्टी

सिर के पीछे के भाग- चेथी

गला- घेंच/ टोंटा

गाल- कपोल

होट- ओंठ

ठुड्डी- दाढ़ी

कंधा-खाँध

कोहनी- हुद्दा

कलाई-मुरुवा

बाँह-बाँही

उंगली- अँगरी

अँनूठा-अंगठा/ठेंगा

नाखून- नख

जंघा-जांग

हड्डी-हाड़ा

तर्जनी उंगली- डुड़ी अँगरी

मध्यमा- माई अँगरी

अनामिका- पैंती अँगरी

कनिष्ठ- छीनी अँगरी

पंजा- थपोल

पैर- गोड़

टखना-घुटवा

नाभि- बोड़ड़ी

तलवा-पंवरी/तरपंवरी

धमनी/शिरा- नस/रग

कमर-कनिहा

चेहरा-थोथना

ताली-थपड़ी/थपौड़ी

हाथ को कुछ चीज को उठाने के लिये आधा सर्कल में जोड़ना-पसर

मुट्ठी- मुठा

घुटना- माड़ी

आँत-पोटा

काँख-खखोरी

कलेजा-करेजा

मूँछ-मेछा


क्रमशः

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

सार छंद- होगे मरना भारी

 सार छंद- होगे मरना भारी


खेत रुँधागे सड़क तीर के, होगे मरना भारी।

रहिरहि रोय किसान छेंव के, कइसे बूता टारी।


धरसा के बिन थमके गाड़ा, थमके नाँगर बइला।

छेंव खेत सब होगे बिरथा, चैन खुशी गे अइला।

फारम बनगे सड़क तीर मा, पइधे हें वैपारी।।

खेत रुँधागे सड़क तीर के, होगे मरना भारी।।


सड़क तीर मा जे पइधे हे, ते देखे बन गिधवा।

डहर बाट नइहे कहि डर मा, बेंचैं खेती सिधवा।

चक के चक्कर मा हावय बड़, रुँधना बँधना जारी।

खेत रुँधागे सड़क तीर के, होगे मरना भारी।।


हरिया भर नइ जघा रिता हे, नइ बाँचे हे परिया।

हाय हाय गरु गाय करत हे, गय किसान अउ करिया।

भारी भरकम हे दुख तब ले, चुप शासन अधिकारी।

खेत रुँधागे सड़क तीर के, होगे मरना भारी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

बराती मन के टेस- सरसी छन्द

 बराती मन के टेस- सरसी छन्द


मारयँ अड़बड़ टेस बरतिया, मारयँ अड़बड़ टेस।

पहिर जींस टोपी अउ चश्मा, अजब गजब धर भेस।।


अँटियावैं बड़ जवान जइसे, लइका संग सियान।

कोनो बरजे कोनो बोले, देवयँ कहाँ धियान।।

मुँहजोरी अउ सीनाजोरी, करयँ लाज ला लेस।

मारयँ अड़बड़ टेस बरतिया, मारयँ अड़बड़ टेस।।


रंग रूप चुन्दी के लागे, जइसे कुकरा पाँख।

अहड़ा हड़हा टूरा तक हा, रेंगयँ फैला काँख।

बाँटी भौरा के खेलैया, खोजयँ कैरम चेस।

मारयँ अड़बड़ टेस बरतिया, मारयँ अड़बड़ टेस।


डिस्को भँगड़ा नागिन नाचत, कतको गिरयँ उतान।

पिचिर पिचिर बड़ थुकयँ बरतिया, खाके गुटका पान।

नाचे खाये पीये तक मा, दिखें लगावत रेस।

मारयँ अड़बड़ टेस बरतिया, मारयँ अड़बड़ टेस।।


नशा बराती मा खुद होथे, तेमा अद्धी पाव।

रहे कलेचुप हाथ गोड़ नइ, देवयँ लेवयँ घाव।

जिया लुभातिस राम सही ता, बन किंजरे लंकेस।

मारयँ अड़बड़ टेस बरतिया, मारयँ अड़बड़ टेस।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


मारयँ अड़बड़ टेस बरतिया, मारयँ अड़बड़ टेस।

पहिर जींस टोपी अउ चश्मा, अजब गजब धर भेस।।

डिस्को भँगड़ा नागिन नाचत, कतको गिरयँ उतान।

पिचिर पिचिर बड़ थुकयँ बरतिया, खाके गुटका पान।

बाँटी भौरा के खेलैया, खोजयँ कैरम चेस।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)