Sunday 6 December 2020

महूँ आलोचक हो सकथँव*

महूँ आलोचक हो सकथँव*

 मोला जादा दिन तो लिखत नइ होय हे, अउ बने घलो नइ लिखँव, का महूँ आलोचक समीक्षक हो सकथँव? पुस्तक के पाठ, पेपर ल पढ़त पढ़त,मेंहा कालेज के जमाना म हिंदी म लिखत रेहेंव, एक,दू गिनत गिनत आधा सैकड़ा घलो होगे, तब मन म चलुक चढ़िस येला छपवा के नाक ऊँचा करे जाय। फेर येती तेती म मन बिदक के। लिखावट होते रिहिस फेर वो सपना ठंडा बस्ता म चल दिस। कॉलेज के पूरा होय के बाद काम धंधा बर आने गाँव आगेंव, अउ उहाँ के साहित्यिक माहौल ल झाँकेंव, तभो अपन चीज ल कोन हिनहीँ। कोर कसर कोनो बताबेच नइ करिस, मोला लगिस, मैं बढ़िया लिखत हँव। एक दिन अइसने महतारी भाँखा म लिखेंव अउ दू चार जघा पढेंव, बनेच वाहवाही मिलिस, वो दिन ले कलम ह छत्तीसगढ़ी च लिखहूँ कहिके अड़गे, दू चार बछर म बनेच अकन संग्रह घलो होगे, सब ताली बजाइस , फेर मोला लगिस अब येला छपवाये जाय, अउ नाम कमाये जाय। गँवागे मोर गाँव, अउ खेती अपन सेती नाम के दू पुस्तक छत्तीसगढ़ी म छपगे। छपे के बाद पता लगिस नाम वाम सब सपना ये। फेर आत्म सन्तुष्टि ले बढ़के का हे। एक दिन छंद कक्षा छंद सीखे बर गेंव। मोर हिंदी म हमेशा डिस्टेंसन आय , एम ए घलो करे हँव, तभो मात्रा गणना म फेल होगेंव। ले देके कक्षा म गुरुजी मनके निर्देशन म जमेंव। तब *पता लगिस कि जेन पुस्तक ल मैँ छपवाये हँव, वो मोर भावानुरूप फिट हे, फेर व्याकरण जे सुध नइहे हे, सही शब्द रूप, वचन, काल, पुरुष, लिंग म बनेच त्रुटि हे,, पहली बड़का कवि ल पढ़त सुनत देख ओखर पांव छूवत उन ल पुचपुचावत पुस्तक घलो दे देत रेहेंव, फेर वो दिन ले मोटरा बांध के तिरिया देहों* हिंदी के काव्य म लिंग त्रुति ल कोनो कोनो बताये रिहिस, तेखर सेती हिंदी ल छोड़ छत्तीसगढी म लिखत रेहेंव, फेर यहू म गलती?जबकि काल, वचन, लिंग, कारक, पुरुष सबे स्कूल कालेज के पढ़े चीज आय। *इही ल कहिथे पढ़ना अउ कढ़ना* पढ़े के बाद बिन पढ़े घलो कुछु नइ होय। जब तक कढ़ई नइ होवव तब तक। शुद्ध साहित्य देय बर भाव पक्ष के साथ साथ कला पक्ष म घलो पकड़ होना जरूरी हे।ये बाद म पता चलिस। मोर पुराना काव्य म पुरुष दोष, काल दोष, वर्तनी दोष,वचन दोष बनेच दिखथे, येला दूर करे के प्रयास चलत हे। वइसे कहे गेहे *परोपदेशे पण्डितव्यम*। मीठ मीठ लिखना समीक्षक के काम होही त, महूँ लिख सकथँव, फेर गलती खोजे बर साहित्य के सेवा शर्त उत्तर प्रतिउत्तर ल अभी जानेल लगही। एक समीक्षक गुणवान, जानकार होथे। वइसे साहित्य के सही आलोचक तो पाठक होथे, अउ पढ़े बिना आलोचक घलो आलोचना नइ करे। फेर मैं बिना विवाद में पड़े, मीठ मीठ लिख सकथँव, करू कसर लिखे बर अउ जानकारी चाही। आजकल तो पाठक हे न बने आलोचक?जेन हे तेला छोड़के, फेर मोर कस निर्विवाद आचोलक सब बन सकथे, जादा हाने सुने के घलो जरूरत नइहे। मीठ मीठ आलोचना बर जरूर सम्पर्क करहू। खैर कुछु नइ लिखाय हे तेखर सेती जउन आइस तउन लिख परेंव। फेर एक समीक्षक ल (वइसे तो आज मौलिक भाव कमसल हे तभो) भाव पक्ष के साथ साथ कला पक्ष अउ काव्य के प्रभाव ल जरूर देखना चाही। साहित्य का निर्माण म सहायक हे। कोन कोन रस ल समेटे हे। साहित्य के मूल्यांकन के तो अनेक पहलू हे। जानकार अपन अपन होसाब ले समीक्षा लिखथे। आज तो विकट स्थिति घलो आगे हे, समीक्षक के अलावा कोई बने पाठक घलो नइ मिले। समीक्षा करे म पहली जल्दबाजी नइ होवत रिहिस, कवि लेखक के साहित्य के प्रभाव समाज म कइसन पड़त हे, येखर आधार म घलो समीक्षक मन मूल्यांकन करे। आज के स्थिति चिंतनीय हे, पाठक खोजना पढ़त हे, त फेर वो साहित्य के समाज म प्रभाव के का बात करना। मूल्यांकन के विविध पहलू के चर्चा पटल म बहुत बढ़िया ढंग ले होय हे। एखर बर विचार पठाये गुनी साहित्यकार मन ल सादर नमन। 

 खैरझिटिया

फोटोग्राफी-खैरझिटिया

 फोटोग्राफी-खैरझिटिया


               रझरझ रझरझ पानी बरसत हे, मनखे मन संग जीव जंतु जमे मतंग हे। जीव जिनावर तो बिन अक्कल के बस खात पियत पड़े रहिथे बिचारा मन , फेर मनखे मन कर तो अक्कल के भरमार रहिथे। तभे तो पर्यावरण संरक्षण बर रात दिन एक करके  नारा लगाथे, अउ कूद कूद के पेड़ पौधा घलो पेड़ लगाथे। भले एक ठन पेड़ ल लगाय बर 15 झन झूमे रहय, फेर सुध तो सुध होथे, प्रकृति के जतन म तो लगे हे। वो बात अलग हे कि लगाये के बाद भले सब भुला जथे, पेड़ मरे चाहे जिये। अपन काम तो कर देथे बपुरा मन। 

              बड़खा मंच सजे हे, पोगा रेडिया पोरोर पोरोर बजत हे। जमे कार्यकर्ता सूट बूट पहिरे मगन हे। लइका लोग सियान सबे जुरियाय हे। गीत कविता के तैयारी घलो हे। रेडियो म बजत  *मोर खेती खार रुनझुन मन भँवरा नाचे झुमझुम*  गीत मन ल भावत हे।। पेड़ लगाओ के नारा गजब गूँजत हे, तरिया कस खनाय सड़क म मुरुम बिछ्त हे, काबर की मंत्री जी वृक्षारोपण करे बर अवइया हे। नही नही म मंच के अलग बगल मनखे मिलाके 100 आदमी तो रहिबे करे रिहिस ,अउ मंत्री जी संग जेला चंगुरवा आही ते अलग।  यहू संख्या कोरोना काल म रिहिस, जब जादा भीड़ भाड़ नइ करना हे। फेर पेड़ , जेखर रोपण करना रिहिस वो हर गिन के 10 ठन। खैर दसो पेड़ घलो बहुत होथे, बढ़ जाए त। गर्मी म जरत मनखे संग जीव जंतु बर एक पेड़ के छाँव घलो काफी होथे। लइका सियान जमे के हाथ म झंडा अउ गला म मंत्री जी के अगुवाई म मिले फेंटा गजब चमकत हे, भले ओ बपुरा मनके ओनहा कुर्था के गत नइहे। कार्यकर्ता मन कोन जन का काम म लगे हे ते, येती वोती मार भागत हे, जबकि जम्मो रेजा कुली मन बरोबर काम ल सिधोत हे तभो। एक झन गाड़ी म चढ़के आइस अउ खबर देथे के मंत्री जी 10 मिनट म पहुँच जही। ताहन का कहना बताये अनुसार जम्मो मनखे लाइन म खड़ा होके झंडा हलाये अउ  जयकार  करे म लग गे। मंत्री जी के गाड़ी बोमियावत पहुँच गे। फूल माला म मन्त्री जी के घेंच तोपागे। स्वागत सत्कार के बाद भाषण बाजी चालू होगे। उही रटटम रट्टा डयलाक गूँजत रहय जेन आम तौर म बड़े बड़े मंच ले मंत्री ,नेता मनके मुख ले निकलथे। हव बने सुरता करेव, गरीबी भागना हे, रोजगार देना हे, विकास लाना हे ,,,,,,,,आदि आदि। बिसलरी के बोतल के संग, काजू किसमिस के प्लेट घलो नेता मनके  आघू म माढ़गे। फेर बपुरा दर्शक जेन मन अघुवाई करे बर कोन जन कतका बेर ले ओड़ा ल देहे, उन ल पानी पुछइया घलो कोनो नइहे। बिचारा मन जब ले आये हे, तब ले खुद तो हारे हे अउ नेता के जय जयकार करत हे। मंत्री जी की मीठ बचन ल सुनके सब खुश हे, उही म उँखर पेट भरत हे।  उँखर पाछु तुतारी घलो चलत हे कोरोना हे मास्क लगावव। बिचारा मनके मुख बेंदरा कस करिया,पिवरा,लाल दिखत हे। फेर मंच म बैठे कार्यकर्ता मन घलो तोप लिही, त उन मन कोन पहचानही, नेता मन के मास्क घलो घेंच म झूलत हे।

             भाषण बाजी के बाद मंत्री मन अपन चेला चन्गुरवा के साथ खाल्हे उतरिस अउ पेड़ लगाय बर खने गढ्ढा मेर पहुँचिस। एक ठन पेड़ मंत्री ल दिस, बाकी 9 ठन ल आने में धरिस, फेर लगाये म धियान कहाँ हे कखरो? सब तो मंत्री संग फोटो आही कहिके ओखरे पेड़ ल आरती के थारी बरोबर धर लिस। आने में सब अपन अपन पेड़ ल अइसने खोंच दिस, अउ मंत्री जी के बाजू म खड़ा होगे। मार पेड़ लगाओ, अउ मंत्री जी के जयकार गूँजत हे। कोरोना काल म घलो पेलिक पेला होवत हे। फेर ये का मंत्री पेड़ ल धरे हे, चेला मन खड़े हे, पर फोटोग्राफर के अता पता नइहे। कार्यकर्ता मन दाँत ल कटरत हे, अभी तो रिहिस कहाँ गे रे। बिना फ़ोटो खिंचाय मंत्री जी घलो कइसे पेड़ लगा दिही। सब सन्न हे ,खोजो खोजो मात गेहे। मंत्री जी गुसियागे ये का तमाशा ये, फोटोग्राफर बिन पौधारोपण कइसे होही। दू तीन झन अधिकारी उप्पर गाज घलो गिरगे। तमक के मंत्री जी सस्पेंड कर देहूं कहि दिस, फेर उहू मन का करे, वो मन तो बकायदा फ़ोटो ग्राफर लगाय रिहिस, अब वो धोखा दे दिही तेला, वो मन का करही? फेर रिस तो रिस ए,का करे? कोनो मन काहत हे, कि फोटोग्राफर गाड़ी धर लकर धकर कोनो  विपत आय कस भागिस हे। कार्यकर्ता मन संग मंत्री जी घलो नाराज हे, कहूँ फोटोग्राफर घलो सरकारी होतिस, त तो ओखर खैर नइ रितिस। फेर का विपत आगे ,जउन अत्तिक बड़ कार्यक्रम ल छोड़ भाग गिस भगवान जाने? एती हल्ला होवत हे, कोनो दुसरा फोटोग्राफर बलाव, त कोनो काहत हे महँगा मोबाइल म फ़ोटो खींच लव, त कोनो काहत हे, थोड़ीक देर अउ खोज ली,अभी रूक जाव, पेड़ ल झन खोंचव। नही ते काली के पेपर अउ देश दुनिया म मंत्री जी के पेड़ लगावत फोटू कइसे बगरही? माने पेड़ लगई ले जादा फोटो के महत्व हे। कोन जन हमर पुरखा मन घलो फोटोग्राफर खोजथिस, त बड़े बड़े बर पीपर रहितिस कि नही?  अउ आज फ़ोटो जरूरी घलो हे काबर कि कोन का करत हे, तेखर पुख्ता सबूत घलो इही ताय। फ़ोटो बीमा आज कहाँ कोनो काम होथे। सोसल मीडिया के जमाना हे, उठत बइठत फ़ोटो मनखे मन बगरावत हे, मुँह ल अँइठ  अँइठ के। बिन फ़ोटो के उछाह के काम ल तो छोड़ दी, मरनी हरनी या कहे जाय त दुख के काम घलो नइ होय। फलाना ल श्रद्धाञ्जलि देवत फलाना, अइसनहो फ़ोटो दिखथे। घूमई फिरई , काम बुता सबके फ़ोटो चलत हे। नांगर जोतत फलाना, अब ले करम फूट गे न। फेर कइसनो होय केमरामेन के जाय ले सब अधर म लटकगे। तभो अपन अपन हिसाब ले उँधला  धुँधला खींचत हे,कि मंत्री जी थोड़े घेरी बेरी आही। खैर कार्यकर्ता मन संग मंत्री जी के मूड घलो खराब हे, बिन फोटो ग्राफर के। तभो मोबाइल म फ़ोटो खींच खिंचाके  एक ठन पेड़ ल जम्मो झन ख़ोचीस, अउ नास्ता पानी बर बैठ गे। बाकी 9 ठन पेड़ बने से गड़े घलो नइहे। बता जब आजे ये स्तिथि हे त, आघू के देख रेख भला कोन करही। चल कइसनो होय, छेरी पठरू के भोजन के तो जुगाड होगे। वोमन चरही, अउ उल्होही त अउ चरही, अउ उल्होही त अउ--------। फेर जेन दिमाक वाले प्राणी हे तेमन कहूँ टोर फेक दिही, त थोरे उल्होही। खैर आज वृक्षारोपण तो होगे, बाकी समय का होही, तेला का करना हे। बस एके चीज के कमी खलिस, वो हरे कैमरामैन। कैमरामैन रिहितिस, त हाँस हॉस के पेड़ लगावत सबके फ़ोटो रिहितिस। मंत्री जी दल बल समेत भाग गे, ओखर जाते ही कार्यकर्ता मन। बेचारा अगुवाई करइया दर्शक मन देखते रही गे। फोटोग्राफर के बारे म, कार्यकर्ता मन पता करिस त मालूम चलिस की फ़ोटो ग्राफर के परिवार वाले मनके कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आये हे, अउ गाड़ी म डॉक्टर मन उनला धरके लेजत हे। उहू बपुरा के का गलती हे।येती सभा म जुरे मन म घलो दहसत हे, कैमरामैन पॉजिटिव होही त?


 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

मनरेगा

 मनरेगा


           का कोनो किसान कर, धान बोय के बाद अउ कुछु बूता नइ रही त, वो बूता देखाय बर, फेर धान ल उसेल के वोमा धान बोही। मोर खियाल से तो नही। फेर ये मनरेगा म का होवत हे। एक साल खनत हे, त दुसर बछर उही ल पाटत हे। अउ करे त का करे? अब तो गाँव म डीही डोंगरी, अरिया परिया कुछु नइ बाँचे हे। एक ठन गउठान अउ एकलौता चरागन हे, जेमा चारा तो नही फेर गाय गरुवा के हाड़ा जरूर दिख जथे। सड़के सड़क बरदी रेंगथे अउ चरागन म थोर टेम रुक के फेर घर आ जथे। अरिया परिया म डबरी तरिया मनरेगा के चलते अतेक बन गे की अब रीता भुइयाँ के नामो निशान घलो नइहे। येखर बर पोगरी मनरेगा च घलो जिम्मेदार नइहे, बेजा कब्जा नाम के धंधा घलो भारी फले फुले हे। फेर हर बछर कस एहु बछर मनरेगा चलत हे। छोट बड़े सब बरोबर काम करत सरकार के योजना अनुसार पैसा कमावत हे। काम अब उही ल पाटे के चलत हे, जेन ल पउर खने गे रिहिस। अउ एखर अलावा मनरेगा के काम देखाय के कोनो गुंजाइस घलो नइहे। पाछू बछर के घटे घटना पंच, पटेल के आँखि ल उघार दे रिहिस, हर बछर चलत मनरेगा म एक ठन डबरी कुँवा कस गढ्ढा होगे रिहिस, ताहन का,,,, गाय गरुवा संग मनखे मन घलो कई बेर उहां फँस फँस के मरे मरे हे। उप्पर वाले साहब मन ल घलो येखर बर फटकार लग चुके हे। तेखरे पाई के अइसन नवा उदिम खने अउ पाटे के बरोबर चलत हे। अउ सबके बरोबर चूल्हा घलो जलत हे।

             मेट मुंसी मनके मन के अनुसार मुड़ नवाके काम करबे त मनरेगा म पछीना ओगरे के घलो जरूरत नइ पड़े। अउ कहूँ मरखंढा बइला कस मुड़ी उँचाबे त मरे बिहान हे। कमा कमा के जाँगर घलो थक जही। फेर दुसर प्रकार के कमैया लगभग नही के बरोबर मिलथे। जउन रिहिस तउन मन घलो सब चेत गे हे। बढ़िया सरकारी के स्किम के फायदा सब उठात हे। एक दू घण्टा देय बर लगथे जादा घलो नही अउ कभू उप्पर वाले साहेब मनके दौरा रहिथे, वो दिन काम ठिहा म ज्यादातर पुरुष मनके तास पता माते रहिथे, अउ महिला मन जुवा हेरत साहब बाबू मनके अगोरा करथे। 

          आज गाँव के चलत मनरेगा ल देखे बर साहब अवइया हे, सब काम बुता निपटा के अपन अपन ले कुछु खेल कहानी म रमे ओखर रद्दा जोहत हे। उहू साहब एखर सेती वो मेर आवत हे, काबर की वो जघा म गाड़ी आराम से पहुँच जाथे, नही ते गाँव के ओनहा कोन्हा म कोन साहेब अउ कोन बाबू पहुँचे। सब रिकार्ड ल देख के पइसा पास कर देवय। कुछ देर बाद गाड़ी के साइरन बजथे, सब कमैया कुदारी रापा धरके, अपन अपन ठिहा ल छोले छाले बर लग जथे। साहव गाड़ी ले उतरिस, ताहन कोनो सभा कस मेट मुंसी मन उँहचो फूल माला अउ गुलदस्ता भेंट करदिस, जम्मो कमैया जयकार करिस। अन्न दाता की जय,,,,,,, ताहन का कहना साहब के छाती फूल गे, जमे कमैया मनके हाथ हला के अभिवादन करिस। अउ मस्ट्रोल म साइन मारके अपन रद्दा नाप लिस। जमे कमैया मन घर जाये बर धरथे, ओतकी बेरा पटइल कहिथे, आज संझा पइसा मिलही, सब टाइम म पहुँच जहू। सबके खुसी के ठिकाना नइहे। सब घर जाके नहा खोर, संझा पइसा बर लाइन लगागे, खड़ा होगे, हर बार कस एकेक आदमी ले 10,10 रुपिया साहब बाबू के खर्चा पानी कहिके, काट के सब ल पइसा मिलगे। अब आप मन सोचत होहू की कोनो काटे पइसा बर आवाज काबर नइ उठाइस होही। मनरेगा बनिच साल ले चलत हे, आवाज उठायेस ताहन , एकात हप्ता बंद घलो हो जाथे, त काबर मुँह खोलना। शहर नगर म नोकरी चाकरी वाले मनखे मन घरे के काम करे बर शरमाथे, फेर गांव म छोट बड़े किसान सब मनरेगा म मिलजुल कमाथे। अइसने निर्विवाद सरकार के योजना चलही, त सरकार काबर कोनो दखलन्दाजी दिही। जनता खुश सब खुश। भले काम बुता अउ विकास चूल्हा म जाये।  सरकार के अइसन योजना चलते रहय अउ सबके पेट पलते रहय। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाँखा म अन्तर्सम्बन्ध

 हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाँखा म अन्तर्सम्बन्ध


          जइसे पानी ढलान कोती बहिथे, उसने भाषा घलो सरलता ल धरत जाथे। अब हिंदीच ल ले लौ संस्कृत- पाली- प्राकृत- तेखर बादअपभ्रंस होवत हिंदी। जइसे सरल सहज मनखे ल सबो चाहथे, वइसने भाषा के सरलता घलो ओखर अपनाये के कारण बनथे। पूर्वी हिंदी के अंतर्गत हमर छत्तीसगढ़ी भाषा आथे, जेमा अवधी, बघेली अउ हमर छत्तीसगढ़ी भाषा मिंझरे हे। ब्राम्ही लिपि ले उपजे जइसे हिंदी हे वइसने छत्तीसगढ़ी घलो हे। आज जब हमन हिंदी के बात करथन, तब आधुनिक युग के पहली के कवि सुर, तुलसी, कबीर, जायसी, केशव, बिहारी जैसे कवि मनके कालजयी रचना घलो हमर आँखी म झुलथे, जेमन के भाषा अवधी, ब्रज के साथ साथ कई ठन मिंझरा भाषा बोली रहिस। आधुनिक युग म तो ठेठ खड़ी बोली म जबर रचना होइस, जेमा भारतेंदु, पन्त, निराला, प्रसाद,महादेवी वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, जइसे कतको कवि लेखक मन अपन जीवन ल खपा दीन। मोर कहे के मतलब हे कि हिंदी के समानांतर ही ब्रज अउ अवधी अपन स्थान रखथे, त छत्तीसगढ़ी काबर नइ रखे? जबकि हमर भाँखा घलो लगभग हिंदी के सबे गुण ल समेटे हे।  हो सकथे हमर साहित्य कमसल होही, या फेर ब्रज अउ अवधी कस ऊंचाई नइ पाइस होही। फेर हमर साहित्य घलो पोठ हे, कतको उत्कृष्ठ साहित्य हमर पुरखा कवि मन लिखे हे अउ आजो लिखावत हे, अइसन उदिम होवत देख इही कल्पना मन म आथे कि वो दिन दूर नइहे जब छत्तीसगढ़ी घलो ब्रज, अवधी के साहित्य कस हिंदी म मिल जही। 

        अब बात हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के अन्तर्सम्बन्ध के हो जाय। दूनों भाँखा के महतारी एके आय(ब्राम्ही), दूनो के रंग रूप, चेहरा- मुहरा एक्के जइसे हे, दूनो सगे बहिनी बरोबर हे। आजकल के कवि लेखक मन हिंदी वर्णमाला के जम्मो आखर ल बउरत घलो हे, जे बड़ खुसी के बात आय। *आन राज के कई मनखे मन हमर छत्तीसगढ़ी के बारे म कहिथे कि हिंदी ल बिगाड़ दव त छत्तीसगढ़ी हो जही* का सच म अइसने हे???? आपो मन कस मोरो न हे। येखर ले बचे बर छत्तीसगढ़ी के पाँच परगट शब्द ल बउरे ल लगही अउ हिंदी ल तोड़ मरोड़ करे ले बचेल लगही। हमर भाँखा के व्याकरण घलो हिंदी ले पहली बने हे, जेन हम सब बर गर्व के बात ये। एक बात अउ *जइसे मैं उप्पर म परगट शब्द लिखेंव, जे हिंदी के प्रगट के अपभ्रंश ये। परगट कहे म घलो अर्थ म कोनो प्रकार के भटकाव नइ लगत हे, अउ ये छत्तीसगढ़ म पूर्णतः चलन म घलो हे। अइसने कई ठन शब्द हे, जे हिंदी के अपभ्रंश के रूप म हमर भाँखा म रचे बसे हे ,अउ चलत घलो हे। जइसे ह्रदय(हिरदे),उम्र(उमर), दर्द(दरद), बज्र(बजुर), तीर्थ(तीरथ), छतरी(छत्ता)त्यौहार(तिहार) आदि आदि। कई ठन शब्द ल चिटिक बदलाव के साथ घलो बउरथन, जइसे व्याकुल(ब्याकुल), विनास(बिनास), व्रत(बरत), पर्व(परब), व्यवहार(ब्यवहार), वरदान(बरदान), वंदन(बंदन), वजन(बजन), वन(बन) आदि आदि। फेर येला देख के कतको झन कहि देथे की छत्तीसगढी म "व" नइ होय,, तेहा नइ जमे। पहली चलत घलो रिहिस हे, फेर ये बात गलत हे की 'व' ल लिखेच नइहे। होवत , बोवत, खोवत, पोवत काखर शब्द ये,,,, हमरे न,, त कइसे "व" नइ होही। यदि पहली कस(व बर ब लिखबों) आजो करबों त वर(दूल्हा) ल बर कहिबो। तब तो पेड़ वाले बर, काबर वाले बर अउ दूल्हा वाले बर, सब एक्के म जर बर जही। आज के लइका मनके रामेश्वरी, जागेश्वरी, रामेश्वर, ईश्वर, श्रवण, आदि घलो होथे, तिखर मरना हो जही। वइसने अउ कई ठन आखर जइसे ष, श, त्र, क्ष मन संग घलो हे। शुक्ल अउ कृष्ण पक्ष लिखे बर आज कइसे करबों, पहली तो अंधियारी अउ अँजोरी पाख चलत रिहिस, फेर आज यदि येला बउरना हे त तो ये आखर म जरूरी हे, अइसनो आखर के भिं नाम वाले हमर राज म हे, तब वो आखर मन जरूरी हो जथे।मोर एके इशारा हे अर्थ संगत शब्द ल बउरे जाय, अउ निर्थक या जेन वो संज्ञा ल बदल देय ओखर ले परहेज करना चाही। जइसे हिंदी म प्रकृति अब येला परकिरिती, प्रकार ल परकार, प्रकास ल परकास, क्षमा ल छिमा,शक्कर ल सककर, रायगढ़ ल रइगढ़,आदि आदि। ये मन थोड़ीक भ्रम पैदा करथे, तेखर सेती येमा चिंतन जरूरी हे अउ सही अउ स्पस्ट शब्द के माँग आज होवत घलो हे।*

       हिंदी के आखर अउ शब्द छत्तीसगढ़ी म घुरे हे,काहन या फेर  छत्तीसगढ़ी के शब्द मन हिंदी म घुरे हे काहन,,, येला सिद्ध करे म हमला कोनो ल नइ घूरना चाही। काबर भाँखा गतिमान हे, पानी असन स्वरूप बदलत जथे, कखरो पोगरी घलो नोहे। *एक छत्तीसगढिया मनखे घलो हिंदी लगभग समझ जथे, अउ हिंदी वाले छत्तीसगढ़ी, त येखर ले बढ़के अउ का अन्तर्सम्बन्ध देखन* हिंदी वाले घलो सहज छत्तीसगढ़ी पढ़ सकथे,अउ छत्तीसगढ़ी वाले घलो आखर ज्ञान के बाद हिंदी। काबर के पहली घलो केहेंव दुनो के रंग, रूप, चेहरा-मुहरा एके हे दुनो के *क* एक्के हे दुनो के *ट* एक्के हे। हिंदी के पिक्चर ल घलो छत्तीसगढिया मन मन लगाके देखथे अउ समझथे ,अब छत्तीसगढ़ी के पिक्कर आन कोती काबर नइ देखे जाय येखर बर खुद ल सोचेल लगही। *ब्रज भाँखा ले हिंदी के शान बाढ़िस, अवधी भाँखा ले हिन्दीबके शान बाढ़िस त छत्तीसगढ़ी भाँखा ले हिंदी कु शान काबर नइ बाढ़ही*।खच्चित बाढ़ही फेर उसने साहित्य हमर बीच म आय उसने पठन पाठन अउ वाचन होय अतकी विनती हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

संस्मरण--मोर आठवी पेपर छूट गे

 संस्मरण--मोर आठवी पेपर छूट गे


रतिहा के 4 बजे बाबू जी के संग साइकिल म बइठ के राजनांदगांव के जुन्ना बस स्टेण्ड पहुँच गेंव, अउ उहाँ ले पहाती के पहली बस म बइठ के दूनों झन कापसी बर निकल गेंन। हव उही कापसी जेन एक समय म हड्डी जोड़े बर भारी प्रसिद्ध रिहिस, अउ अभो घलो हड्डी टूटे के उपचार उँहा होथे, पर पहली कस नही। बस म चढ़के ममा गाँव इरई जावन त खिड़की मेर बइठ के आजू बाजू ल झाँकव, अउ बड़ मजा लेवँव, फेर ये पहली दफा होइस जेमा आँखी ले आँसू झरत रहय, काबर की मोर जेवनी हाथ के हड्डी ह टूट के आड़ी होगे हे कहिके गाँव के डॉक्टर ह बता दे रहय। अउ ओखर ले बड़े दुख ये बात ये रहय कि हप्ता भर बाद मोर आठवी क्लास के बोर्ड परीक्षा होवइया रिहिस। पेपर तैयारी लगभग पूरा कर डर रेंहेंव फेर होनी ल कोन टार सकथे। बस म बइठे बइठे मन म आय कि कापसी म हड्डी जोइड़या तुरते जोड़ दिही त मैं पेपर म घलो बइठ जाहूँ। अइसने गुनत सोचत कब कापसी आगे आरो घलो नइ लगिस, बस के बाहर झँकई तो दूर आघू पाछु कोन बइठे रिहिस तहू ल नइ देख पायेंव।  दरद के मारे हाथ उठाना घलो मुश्किल रहय,बाबू जी सरलग धीर धरावत रहय। कापसी म पहुँचेंन त भारी भीड़। लाइन म लगे के बाद मोरो नम्बर आइस, उँहा बइद महराज ह कुछु पाना के लेप ल छोट कमचिल संग पट्टी म बाँध दिस, अउ किहिस 21 दिन बाद फेर देखाहू। मोर आँखी ले आँसू तरतरी धर लिस,जउन सोचे रेंहेंव ते नइ हो पाइस। अब पेपर देवाना तो असम्भवच होगे।  भइगे घड़ी घड़ी भगवान ल सुमरत रहँव। दूनो झन इलाज के बाद  बस म बइठ के अपन गाँव आगेन। दूसर दिन आँखी म आँसू धरे स्कूल गेंव अउ सर मन ल अपन हाल ल बतायेंव। वो समय मोर स्कूल के प्राचार्य श्री एम एल साहू सर जी रिहिस, संग म जांगड़े सर अउ मंडलोई सर मन घलो सुझाव दिन कि आजे मेडिकल बना के आवेदन लगादे, यदि हो पाही त पूरक वाले मन संग पेपर देय के मौका मिल जाही। फेर ये काम ल झट कर काबर कि पेपर चालू होनेच वाला हे, बोर्ड ल सूचना देना जरूरी हे। ताहन फेर का बाबू जी संग तुरते  शहर(नांदगांव)आगेंव अउ डॉ सदानी करा मेडिकल बनाके, तुरते स्कूल म जमा करेंव, स्कूल म घलो सर मन तुरते आवेदन बनाके, ऊपर बोर्ड म सूचना भेजिन। दू दिन बाद साहू सर कर गेंव त बताइस कि तोर मेडिकल जमा होगे हे, अउ तें अब पूरक परीक्षा के समय पेपर देबे, जा अब जल्दी हाथ ल ठीक कर। मोर मन नइ माढ़त रहय, मोर जम्मो तैयारी धरे के धरे रहिगे। मन म विचार आइस कि डेरी हाथ म लिख के पेपर देहूं, जिद  म पूरा दिन भर लिखेल सीखेंव, फेर कभू तो नइ लिखे रेंहेंव, अउ मुख्य परीक्षा एक दिन बाद चालू होवइया रिहिस,   वो दिन रातभर घलो डेरी हाथ म लिखे के प्रयास करेंव, मोर जेवनी हाथ के लेखनी बनेच रहय फेर डेरी हाथ म घलो धीरे धीरे जादा अच्छा तो नही पर पहली पहली सीखती लइका मन कस लिखा जावत रिहिस। बिहना फेर स्कूल पहुँच गेंव अउ सर ल केहेंव कि मुख्य पेपर म ही बइठहूँ, ये दे डेरी हाथ म घलो अइसन लिख डरथँव, पास होय के पूर्तिन नम्बर आ जाही। जे प्रश्न म कमती लिखे के रही वोला धीरे धीरे लिख डरहूँ। मंडलोई सर मोर बात ल सुनके कथे, बेटा तोर अतेक अच्छा राइटिंग बनथे जेवनी म, जेवनी हाथ जइसन लिखना दू चार दिन म सम्भव नइहे, तैयारी  तो तोर हेवेच घर म बइठ के अउ पढ़ अउ पूरक वाले मन संग पेपर दे देबे, जब तोर हाथ ठीक हो जही तब। मैं मानते नइ रेहेंव, पूरा स्टाफ समझाइस, तब अपन मन ल मार के हामी भर देंव। दूसर दिन स्कूल म मुख्य परीक्षा चालू होगे, स्कूल के तीर म आके स्कूल ल झाँकत रहँव, अउ छुट्टी होय त सबके प्रश्न पत्र ल देखँव, मोला बड़ सरल लगय, फेर का कर सकतेंव, मोला तो बाद म पेपर देना रिहिस। हर साल कक्षा म प्रथम आय के सपना देखे रेंहेंव ते वो साल रट ले टूटे कस लगिस। मोर गाँव म दसवीं तक स्कूल हे, अपन समय म मैं, पहली ले दसवी तक  प्रथम आये हँव बस आठवी ल छोड़ के, काबर कि मैं वो समय मुख्य परीक्षा नइ देवा पाये रेहेंव। पढ़ई लिखई दुख अउ दरद म होबे नइ करे, घड़ी घड़ी हाथ के जुड़े के संसो सताय अउ मुख म हे भगवान रहय। मुख्य पेपर घलो होगे। 21 दिन बाद फेर कापसी जाके, पट्टी बँधवायेंव। कुछ दिन बाद हाथ के पट्टी ल 21 दिन के पहलीच हेर के देखेंव, जेन हड्डी ल टूट गेहे केहे रिहिस, ते तो छुये म जस के तस लगे। बाबू दाई ल घलो बतायेंव। उही समय मोर बड़े फूफा गाँव आये रिहिस, ओहर किहिस कि हमर गाँव तीर भवानी मन्दिर के पास करेला गाँव म एक बइद हे, उहू अच्छा हड्डी जोड़थे, मोरो एक पँइत ईलाज करे हे। ताहन फेर का बाबू जी संग उँहे बर निकल गेंव। उँहचो मैं बतायेंव की हड्डी येदे टूट  गेहे, ताहन उहू हर खींच खांच कुछ लेप के संग 21 दिन बर पट्टी कर दिस। अउ कहिस कि ओखर ले पहली झन निकालबे, फेर 21 दिन बाद आहू। पट्टी कराके घर आगेंव, पूरा दिन रात संसो म कटे, पढ़े लिखे के मन घलो नइ लगे। एके चिंता रहय मोर हाथ कब बने होही। दाई बाबू अउ भाई मनके मया दुलार म ये दुख भरे दिन ला भगवान भरोसा काटत रेंहेंव। 21 दिन पूरे के बाद पट्टी खोल के देखेंव त फेर जस के तस। पास परोस के मन किहिस, कि कापसी ही जाना रिहिस कहाँ करेला चल देव, कापसी म ही येखर ईलाज हो पातिस, मरता का न करता।। फेर उँहें बर चल देंन, फेर उँहा पट्टी कर दिस। हाथ ल लटकाय लटकाय मोला अइसे लगेल धर लिस कि मोर हाथे नइहे। खाना, पीना, नाहाना धोना, खेलना कूदना सब हराम होगे रिहिस। बेरा बीतत गिस, आठवी के परिणाम घलो आगे,मोर कक्षा के रीना देवांगन 70% अंक लेके प्रथम आगे। मोला मोर हालात बर बड़ दुख लागिस, कि वो साल मैं पहली बेर अपन प्रथम आय के वादा ल पूरा नइ कर पायेंव। कथे न धन, दौलत सुख चैन सब स्वस्थ शरीर म ही सुहाथे,अउ जर बुखार म ये सब फालतू होथे। मोला मोर हाथ के संसो रहय। एक दिन फेर दाई बाबू ल  बिना बताये पट्टी ल खोल के देखेंव, जस के तस टूट के खसके हड्डी हाथ म छुये ले उसनेच लगे। अब तो मोर धीरज खरागे, ददा दाई मन घलो तंग आगे। राजनांदगांव म रथे मोर ममा मामी, ये गीत मोर बर फीट हे, काबर की  मोर बड़े ममा मामी म उँहिचे रहय, ममा शहर म नोकरी करे। अउ मोर हाल ल सुनके उहू मन मोला देखे बर गाँव आये रिहिन, ममा कथे अब तो हड्डी वाले डॉक्टर ल ही दिखाना चाही। तुरते फेर शहर के डॉक्टर कर चल देन। डॉक्टर के केबिन म गेंव त डॉक्टर किहिस, कइसे का होगे हे, कइसे टूट गे तोर हाथ ह? मैं बतायेंव कि एक दिन संझा साइकिल के टायर ल उप्पर फेक फेंक के झोंकत रेंहेंव, अचानक एक बेर उप्पर ले गिरत चक्का ल झोंकत झोंकत सीधा कोहनी अउ कलाई के बीच म लगगे अउ हड्डी टूट गे। अउ टूटे के बाद येदे आड़ी होगे हे, तेहा जुड़ते नइहे। डॉक्टर छू के देखिस, अउ छूते साँठ कथे, येमा कुछु चीज गड़े हे। हड्डी टूट के अइसन आड़ी नइ होय हे। अब हम का जानी, वो दिन संझा जइसे चक्का हाथ म पड़िस , दर्द के मारे चितियागे रेंहेंव, अउ गांव के डॉक्टर ल दिखायेंव त (एक तो वोला दर्द के मारे छुवन घलो नइ देवत रेंहेंव) वो किहिस लगथे हड्डी ह टूट के आड़ी होगे हे। अउ छुये म लगे घलो। उही ल सच मान के ईलाज बर जघा जघा घूमत रेंहेंव। डॉक्टर एक्स रे लिखेस। एक्सरे ले साफ होगे कि हड्डी नइ टूटे हे, बल्कि वो चक्का के तार ह (लगभग 6,7 सेंटीमीटर) टूट के हाथ म घूँसे हे। तार के बात ल सुन के डॉक्टर हमन ल बलाके पूछिस कत्तिक दिन होगे हे? बतायेंन कि लगभग अढ़ाई महीना, डॉक्टर माथा धरलिस अउ कथे, अत्तिक दिन ले का करत रेहेव, कहूँ  लोहा के जहर हाथ म फैल गे होही, त हाथ ल घलो काटेल पड़ सकत हे। डॉक्टर के बात ल सुनके मोर होस उड़ गे काबर की लोहा के पइजन के बारे म देखे रेंहेंव, मोर एक झन संगी तरिया म कपड़ा धोवत रिहिस, अउ ओखर थैली के आलपिन वोला गड़ गे रिहिस, त हप्तच भर म ओखर आधा अँगरी ल काटेल लगे रिहिस। फेर मोर तो बनेच दिन होगे रहय। हे भगवान मोर का होही? तुरते आपरेसन के तैयारी होइस। नानकुन टाँका लगाके तार ल निकालिस, अउ डॉक्टर किहिस सुक्र मना बाबू भगवान के दया ले लोहा के एको पैजन ह तोर हाथ म नइ फइले हे, येदे जम्मो जहर तार म ही जमगेहे, तार जंग लग लग के हाथे म बनेच मोठ होगे रहिस। जइसे तार निकलिस, दरद घलो गायब होगे, अउ हाथ ल मैं तुरते  मोड़ माड़ घलो डरेंव। डॉक्टर दरद के कारण बताइस की हाथ के दू हड्डी के बीचों बीच तार ह टूट के गड़गे रिहिस त जरा से हिलाय म घलो दरद करे।  मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, काबर कि मोर हाथ बने होगे रिहिस। डॉ अग्रवाल ल धन्यवाद करके घर आयेंव अउ सोचेंव हे भगवान आज तैं मोर हाथ ल बचा लेस, मोर लापरवाही म  अत्तिक दिन म घलो पैजन नइ होइस, तोर लीला अपरम पार हे। कास  मैं डॉक्टर तीर पहिली जाये रहितेंव, त मोर पेपर घलो नइ छुटतिस|  फेर जे होना रथे ते होके रथे, वो दिन ले बइगा गुनिया मन डहर जाये बर कान पकड़ लेंव, सबले पहली प्राथमिकता डॉक्टर ल देथंव। पूरक के परीक्षा घलो होगे, परिणाम म मोला सिर्फ 65% मार्क्स मिलिस। अउ सर्टिफिकेट म पूरक घलो लिखागे। कँउवा कान लेगे येला सच माने के पहली कान डहर घलो देखना चाही। कोनो भी घटना के जड़ तक जाये बिना वोला आत्मसात नही करना चाही, सच जाने के बाद ही कदम उठाना चाही, नही ते अइसने होथे। येला मैं सॅंउहत भोगे हँव। वो तो भगवान के कॄपा हे जे मोर हाथ सलामत रहिगे, वो दिन ले मैंहर आज तक लगभग हर सोमवार के एक दिन भगवान के धन्यवाद स्वरूप उपवास घलो रथों। अंत मा इही कहूँ, कुछ स्वास्थ्यगत परेसानी आये मा बइगा गुनिया तीर तको जावव फेर पहली तकनीकी अउ डॉक्टर के राय लेना चाही। नही ते बड़ पछतावा होथे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

कइसनो होय कक्षा म फस्ट आना हे

 कइसनो होय कक्षा म फस्ट आना हे


कपहा पेंट चिरहा कुरथा पहिरे नाक बोहावत लइका के पीठ ल ठोंकत सालभर पढ़ाय के बाद मोर स्कूल के पहली  गुरुजी मिट्ठू राम साहू जी ह, नतीजा घोषित करत कथे कि जीतेंन्द्र के परीक्षा परिणाम कक्षा म सबले जादा हे, ओहर क्लास म प्रथम आय हे। ताहन का कहना मोर छाती फुलगे अउ उही दिन ले मन म वो फर्स्ट आय के लालच घलो घर कर गे। दूसरी, तीसरी , चौथी अउ पाँचवी म घलो सरलग प्रथम आयेंव। 26 जनवरी बर हर साल पंच सरपंच के मुँह घलो ताकंव कि मोला कक्षा  म प्रथम आये के ईनाम मिलही, काबर कि हर साल 15 अगस्त के सरपंच महोदय माइक म अपन उद्बोधन म ये बात कहय कि जउन छात्र मन अपन क्लास म प्रथम आही ओला 51 रुपिया के ईनाम मिलही। फेर 26 जनवरी बर लगे हर साल भुला जाय। खैर लालच तो रहय फेर नइ मिलत हे कहिके अपन पढ़ई लिखई ल कमती नइ करेंव। छठवीं, सातवी, नवमी अउ दसवीं म घलो प्रथम आयेंव। दसवी म मोर सन 2000 म 74% नम्बर आये रहिस त स्कूल सम्मान जरूर करे रिहिस।फेर आठवीं म मोर जेवनी हाथ म टायर के तार गड़े के बाद हाथ टुटे के भोरहा म अउ बैगई गुनियई के चक्कर म मुख्य परीक्षा ले वंचित हो गेंव, पूरक म शामिल होय बर पड़गे। वो साल के अंतिम दौर दुख भरे रिहिस ,पढ़ई लिखई ठप्प होगे रिहिस। फेर भगवान कृपा ले उबरेंव। हमन चार भाई हवन एक साल तो हमन चारो भाई अपन अपन कक्षा म प्रथम घलो आये रेहेंन, कहे के मतलब पढ़ई लिखई के घर म बढ़िया माहौल रहय। मोर न तो बाबू जी एको क्लॉस पढ़े रिहिस न दाई। तभो बिना टाइम टेबल के कभू नइ पढेंन। ये तो होइस मोर गांव के पढ़ाई अब 11 वी पढ़े बर राजनांदगांव के नामी स्कूल स्टेट हाई स्कूल म दाखिल होगेंव। उहाँ तो कई किसम के लइका , एक ले बढ़ के एक पढ़ैया, मोर पसीना छूट गे, एक तो गाँव के लइका बने हिंदी बोले बर घलो नइ आय अउ उँहा शहर के गुरुजी अउ शहरी सहपाठी। मोला पिक्चर के डायलाग सुरता आय अपन गली म तो कुकूर भी शेर होथे। फेर बाहिर म----? तभो बहुत महिनत करेंव  अउ कक्षा 11 वी म 89%अंक के साथ तीसरा स्थान म सिमट गेंव। 90% अउ 91% वाले साथी विनोद साहू अउ सोमनाथ पांडे क्रमशः  द्वितीय , प्रथम  रिहिस। आघू बछर बने पढ़हूँ कहिके मन ल धीर धरावत रही गेंव। 10 वी क्लास के बाद से ही गर्मी छुट्टी म राजनांदगांव काम बुता म आ जावत रेंहेंव। पूरा गर्मी भर कुली कबाड़ी के काम करके फेर आषाढ़ लगत पढ़ाई म लग जावंव, जबकि मोर शहर वाले संगी मन गर्मी म ट्यूशन पढ़े। कई बेर तो अइसनो मौका आइस की सहपाठी संगी मन के बनत घर म घलो काम करे करे हँव। 12 क्लास चालू होइस फेर उही साल सीबीएसई पैटर्न लागू हो गे रहय। वइसे तो 11 म आदेश आगे रिहस फेर स्कूल के हाथ म पेपर रिहिस तेखर सेती माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पुस्तक ल ही पढ़ावत रिहिस। फेर 12 म सब कुछ चेंज होगे रिहिस, अलगे पैटर्न रहय,मोठ मोठ पुस्तक अउ नवा नवा सिलेबस इंग्लिश के जादा रोल रहय। वो बछर पढ़े म बड़ तकलीफ होइस। 12 के रिजल्ट आइस,, मैथ्स, बायो अउ आर्ट मिलाके 189 झन म सिर्फ 9 झन पास होइस, मोर तो नामे नइ रिहिस। मैं पूरा नरवस होगेंव। अउ मोर संग कतको साथी मन घलो। वो समय से आज तक स्टेट स्कूल अपन पहली के स्टेंडर्ड ल नइ बना सकिस, लइका मन सब छिदिर बिदिर होगे, ताहन फेर का स्कूल प्रबंधन ल वो कोर्स ल खारिज करे बर घलो पड़गे। मोला लगे कि ये सीबीएससी कोर्स ह मोर सपना ल तोड़े बर आय रिहिस। वो समय घलो पांडे जी 60% के साथ प्रथम अउ विनोद जी 59% के साथ द्वितीय रिहिस। पूरक  के दाग मोर जिनगी म दूसरा बेर लगगे। एक बेर सोचेंव फिर से पढ़हूँ ,फेर मोला सर मन समझाइस कि पूरक पेपर दे के देख तेखर बाद सोंचबे। फिजिक्स म सात नम्बर कमती आय रिहिस चूँकि सीबीएससी अजमेर ले परीक्षा संचालित रिहिस त  ग्रेस देके पास करे के पावधान नइ रिहिस। पूरक के रिजल्ट आइस 60% अंक के साथ पास होगेंव। फेर मन डोले ल धरिस कि यदि प्रथम नइ आ सकबे त 60% तो जरूर आय। फेर ये मोर असमर्थता  रिहिस, जे अपन खामी उप्पर मरहम चुपरे बर दिमाक म 60%के आडिया आइस। कॉलेज म  तो हाल बेहाल होगे, पढ़ाई घलो इंग्लिश म होय लगिस, कक्षा म प्रथम आय के सपना ल छोड़ घलो देंव। गाना-बजाना, गीत-कविता, काम बुता आदि  सब में ध्यान बँट गे। भविष्य के चिंता सताये बर धर लिस, पढ़ लिख के नोकरी मिलही कि नही। दाई ददा मन आस बाँधे रहय। *कभू सोचँव कास लड़की होतेंव त बर बिहाव होके अपन चूल्हा चाकी करतेंव, फोकट नोकरी चाकरी के चिंता तो नइ रितिस।* कालेज म शुरू ले NSS म रेहेंव, जेखर ले मोर सांस्कृतिक पक्ष अउ मजबूत होइस,गाँव म तो सेवा, भजन चलते रहय। अपन ज्ञान ल बढ़ाये बर पइसा के डर म ट्यूशन घलो कभू नइ करेंव। कालेज म एको साल प्रथम नइ आयेंव फेर प्रथम ईयर म फाउंडेटन कोर्स, द्वितीय वर्ष केमेस्ट्री अउ तृतीय वर्ष म फिजिक्स म टॉप करेंव। कालेज सम्मान घलो करिस। कुल 60.44% के साथ स्नातक पास करेंव। अउ कालेज म ही फिजिक्स पढाहूँ कहिके आवेदन लगाएंव, उही बीच म घनघोर जंगल छुरिया ब्लाक के औंधी म शिक्षा कर्मी वर्ग 3 के फार्म डाले रेंहेंव तेखर बुलावा आइस। येखर पहली 12 वी बेस म ही रेलवे म गैंगमेन ट्रैकमैन के परीक्षा दिए रेंहेंव, अउ कालेज के आखरी बछर म ही बाल्को प्लांट के कैम्पस अटेंन करे रेंहेंव। ग्राम औंधी म शिक्षाकर्मी के नोकरी करतेंव तेखर पहली 10 अगस्त 2006 के राखी तिहार के दिन,अखण्ड रामायण म बैठे रेंहेंव त,बाल्को डहर ले नोकरी के काल आगे। वो समय बाल्को 5000 अउ गुरुजी म 2832 रुपिया कुछ तंखा रिहिस मैं बाल्को म जाए खातिर कोरबा आगेंव अउ 14 अगस्त 2006 के ड्यूटी ज्वाइन कर लेंव। कैम्पस म पेपर देवाये के घलो अजीब  संजोग रिहिस।  मैं अपन महतारी के संग धान बेचे बर पास के गांव के सोसाइटी गे रेंहेंव, अउ उही मेर हाईस्कूल म घलो, गेस्ट मैट्स टीचर के पोस्ट निकले रिहिस, त सब मार्कसीट वगैरह रखे रेंहेंव, उंहे जमा करहूँ कहिके। एक झन ग्रेडर धान के मूल्यांकन करे बर आइस त ओखर हाथ म रहे वो दिन के पेपर म कालेज प्रांगण म बाल्को के होवइया कैंपस के विज्ञापन रहय, वोला देखते ही ऊँहिचे बस बइठ के(हमेशा साइकिल म जाँव वो दिन पहली बेर बस म कालेज  गेंव) कालेज चल देंव, बने से पेपर घलो देंव, सब सर्टिफिकेट ल घलो देखायेंव, 50 म 46 नम्बर पाके इंटरव्यु म घलो शामिल होगेंव।अउ गाँव के दुकान के फोन नम्बर देके घर आ गे रेंहेंव। 

               बाल्को म आये के बाद गोरमेंट कालेज म MSC मैथ्स बर आवेदन करेंव फेर बाद म पता चलिस के वो साल कोनो स्टूडेंट नइ होय के कारण कालेज ह नइ पढ़ाये, मैं हिंदी  बर  फार्म ल बदल देंव, हिंदी विषय के बनेच पढ़इया रहय फेर मोला मोर संकल्प सताये लागिस प्रथम वाला, अउ वो दरी साकार घलो होइस। काम के साथ साथ पढ़ई करत एम ए हिंदी म दूनो साल कक्षा म प्रथम आयेंव। अइसन बिल्कुल नइहे कि मोला हिंदी के जादा ज्ञान हे, अभो घलो हिंदी कविता लिखे बर हाथ कांपते, विशेषकर व्याकरण के ज्ञान होय के बाद, वो समय सिर्फ पढ़ के प्रथम आये रेंहेंव।  एम.ए. म मोला 62%मार्क्स मिलिस,मोला बड़ खुशी होइस। भगवान ल बार बार धन्यवाद करेंव, नोकरी चाकरी घलो मिल गे रिहिस। गाँव म ट्यूशन पढ़ाये के आदत रिहिस  त कोरबा म कइसे छूट जातिस,उहचो पढावंव।विभागीय प्रमोशन बर एम बी ए घलो करेंव, उहचो 60%ले ऊपर ग्रेड मिलिस। पढ़े के लालच बने रिहिस अर्थशात्र के तक फार्म भरेंव दू पेपर दे रेंहेंव ताहन होली म आँखी म गुलाल घूँसे के बाद आंख म एम्फेक्सन होगे तेखर सेती बाकी पेपर छूट गे, अउ ईलाज बर चैन्नई चल देंव। उहँचे पहली बार 2012 म समुंदर देखेंव। अर्थशास्त्र के दू पेपर म 100 म 76 अउ 73 आये रिहिस। फेर बाकी तो जीरो रिहिस। हिंदी ल ही आघू बढ़ाये के विचार मन म आइस, त हिंदी म नेट अउ सेट के एग्जाम घलो  निकालेंव, फेर पोस्ट जादा नइ निकले के कारण ओखर फायदा नइ मिलिस, अभो घलो बाल्को म नोकरी चलत हे। पढाई लिखाई म का सपना रिहिस अउ कतका निभायेंव आप मनके सामने हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

बाजा के शौक-संस्मरणात्मक आत्मकथा

 बाजा के शौक-संस्मरणात्मक आत्मकथा


मोर जिनगी के 21 बछर जनम भूमि खैरझिटी(राजनांदगांव) म दाई,ददा, घर- गांव अउ खेत-खार के छाँव म ठेठ गँवइहा स्टाइल म कटिस। मोला मोर लइकन पन के एकठन करामत के सुरता आवत हे। कक्षा सातवी के पेपर होय के बाद गरमी छुट्टी लग गे रहय। गाँव म भागवत पढ़े बर एक झन महराज अपन एक झन चेला के संग पधारे रहय। कोनो परब तिहार होय, या कोनो उत्सव,या फेर खेल कूद या नाचा गम्मत, मोर खुशी के ठिकाना नइ रहय, पंडाल के बनत ले लेके आखिरी बेरा तक उही मेर ओड़ा डार देत रेहेंव। लीपे, बहारे, सब्बल धरके गड्ढा कोड़ के खंभा गड़ाये, तोरन ताव सजाये म घलो बड़ आनन्द आय। वो दिन घलो इही सब काम म हाथ बँटाय के बाद दूसर दिन 9 दिन बर भागवत चालू होगे। महराज ह पंडाल ले थोड़ीक दुरिहा वाले घर म ठहरे रहय, जेला बाजा गाजा के संग परघावत भजन मंडली वाले मन पंडाल तक रोज लाने अउ लेजे घलो, महूँ वोमा थपड़ी पीटत,नही ते झाँझ मंजीरा बजावत शामिल रहँव। गांव भर के मनखे मन रोज भागवत सुने बर सकलाय। बनेच भक्तिमय माहौल रहय, महू संगी साथी मन संग कभू सुनत त कभू उही मेर खेलत रहँव। दू दिन के बाद तीसर दिन बिहनिया 8:30 महराज ल परघा के मंच तक लाना रिहिस, 9 बजे भागवत शुरू हो जावत रिहिस। फेर वो दिन ढोलक बजइया कोनो नइ रिहिस।झांझ मंजीरा म ही भजन गावत महराज ल लावत रिहिस मैं एक ठन ढोलक ल धर लेंव, अउ चलत भजन म थोर बहुत मिलाके ढोलक ल ठोंकत बढ़ गेंव। वइसे कभू तो सीखे पढ़े नइ रेंहेंव फेर सेवा-जस होय ते घरी छुवे बर मिल जावत रिहिस, सियान मन देखे त ,लइका मन भागो रे कहिके चमका देवय। वो दिन संझा घलो मैं एकठन ढोलक ल पहली ले धर लेंव अउ एक झन तो मुख्य वादक रहिबे करे रिहिस। कई सियान मन किहिस रख दे , एक झन तो बजाइय्या हे, ततकी बेर महराज कथे, बजावन दव जी, बेरा बखत म काम आथे, आज बिहना तो लइका बिचारा ह अलवा जलवा बजावत रिहिस न। महराज के बात ल कोन काटे, मैं वो बजकार संग मिलाके ढोलक बजायेंव, दू ठन तो गाना रहय, हाथ वो ताल म जमे कस लगिस। दूसर दिन घलो ढोलक बजाये के सपना रात भर खटिया म सुते सुते देखत रहिगेंव, अउ भगवान ले विनती करेंव कि कोनो बाजा बजाइय्या झन रहितिस, अउ रहितिस भी त एक झन, ताहन महूँ गला म दूसर ढोलक ल अरो के चलतेंव। खुसी के मारे नींद घलो नइ आइस। पहाती नहा खोर के फेर पहुँच गेंव। नीर सोचई सच घलो होगे, फेर कोनो नइ रिहिस बाजा बजइया, ताहन का कहना जेन सियान  मन रख रख काहत रिहिस तिही मन ह, ले बाबू बजा कहिके गला म अरो दिस ।मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, दादरा कस ताल पीटत महराज ल मंच तक लेंगेंव, अउ संझा लानेंव घलो। फेर सँझा कोई न कोई बजकार रहय,पर दूसर ढोलक ह मोर बर फिक्स होगे रिहिस। महराज वइसे तो बिन बाजा पेटी के कथा कहय फेर एक दिन ओखर भजन म सब ताली बजावत रहय त मैं ढोलक ल डरे डर म धीरे धीरे मिलावत रहंव, महराज के चेला कथे - बने बजावत हस, बजा बढ़िया जोर से। ताहन का महराज के भजन-गाना-गीत घलो ढोलक के ताल देख लम्बा खींचा गे। अउ वो दिन ले महराज ह अपन चेला के तीर म महू ल ढोलक धरवा के बइठार देवत रिहिस। लेजना, लानना के अलावा अब कथा के बीच बीच के गाना मन म मंच म बइठे ढोलक ल ठोंकव। ढोलक के आय ले बनेच माहौल घलो बन जावत रिहिस,काबर की तालीच भरोसा म कोनो भजन कत्तिक तानही, महराज के चेला जे नानचुन झोला म हाथ ल डार के बइठे रहय तेहर मंजीरा ल धर लिस। संगीतमय समा ले महराज खुश अउ सुनइया मन तक खुश। देखते देखत आखरी दिन होगे, महराज मोला नाम ले जाने। नटवर नाँगर नन्दा भजो रे मन गोविंदा--इही कीर्तन आखरी बेरा म चलत रहय।

मोर हाथ तो ढोलक म बरोबर ताल देवत रिहिस फेर मन उदास रिहिस, कि काली ये सब बन्द हो जाही। मोर आँखी ले आँसू झरत देख महराज पूछिस का होगे बाबू, मैं कहेंव काली मैं का करहूँ?आप मन तो काली चल देहू।  महराज मजाक करत कथे, त का तहूँ जाबे हमर संग? मैं मुड़ी डोला के हव केहेंव। महराज के, तैं का करबे ल सुन,मैं तपाक से केहेंव आप मन संग ढोलक बजाहूँ, अतेक कहिके फेर रोय बर धर लेंव। महराज रहय मथुरा के छत्तीसगढ़ म ओखर भागवत एक दू जघा अउ रहिस। चढ़ोतरी वगैरह होय के बाद घलो मैं उही मेर रेंहेंव, अउ आखिर बार बाजा बजावत परघावत ओखर ठहरे ठिहा म गेंव। सब सियान मनके घर जाये के बाद मोला बलाही कहिके महराज के आघू आघू म होवत रेंहेंव, आखिर म बलाइस अउ किहिस, तोर दाई ददा मन तोला जावन दिही? मैं फटाक कहेंव हव। का पता कहत महराज कथे वइसे तुम्हर गाँव ले 10 किलोमीटर दुरिहा म नगपुरा हे उँहा अगला भागवत होही। जा बने पूछ के आ घर ले ताहन ,सुबे के बस म  जजमान मन ले बिदा लेके निकलबों? मैं बड़ खुश होगेंव, अउ रतिहा झट ख़ाना खाके महराज के ठिहा म पहुँच गेंव, महराज मन के आराम करे के बेरा होवत रिहिस, मैं जाके झूठ बोलत केहेंव दाई बाबू दूनो ल बताये हँव, ओमन जा किहिस, अउ बात बनावत यहूँ केहेंव की वोमन आखरी दिन नकपुरा आही, मोला लेगे बर। बाजा बजाये के मोह अत्तिक मन म सवार रिहिस कि झूठ मूठ के सबकुछ गढ़ डरेंव। जबकि ददा दाई ल कुछु भी बताये नइ रेंहेंव। सुबे आहूं कहिके घर आगेंव अउ लुका के एकठन ताँत के झोला म दू जोड़ी कपड़ा ल भर के रख देंव। फेर रात भर नींद नइ आइस। बिहना नहा के कलेचुप सीधा बस स्टैंड म पहुँच गेंव, अउ महराज ल बतायेंव येदे मोरो कपड़ा लत्ता हे। गाँव भर के मनखे मन महराज ल विदा करे बर आय रिहिस, मैं कोनो ल नइ बताएंव कि महुँ महराज संग जावत हँव,चुपचाप एक तीर म खड़े रेंहेंव अउ बस आइस ताहन कलेचुप सबके नजर ले बचके चढ़ गेंव गाँव वाला मन महराज के पाँव पल्लगी म भुलाये रिहिस, थोड़ीक देर म चेला घलो चढ़गे वो मोला देखिस, अउ महराज चढ़िस ताहन बस चल पड़िस। वो दिन बाबू जी घलो गोतियार के नाहवन म दूसर गाँव गे रिहिस। मैं तो सबके नजर ले बचके भाग गे रेंहेंव। रतिहा विश्राम करे के बाद दुसर दिन भागवत चालू होइस। मोर बर एक ठन ढोलक समिति वाले मन कर ले जुगाड़े गिस। पहली दिन जम्मो भजन कीर्तन म ढोलक बजायेव ,अउ चेला  के मंजीरा घलो गूँजिस। अब हमन तीन झन होगे रेहेन ।मैं ,महराज अउ ओखर चेला। साथ म सोवई  अउ रंग  रंग के खवई म दाई ददा घर गांव के सुध भुलागे। येती मोला घर ले निकले दू रात बितगे रिहिस दाई के हाल बेहाल रहिस, गांव म जे भागवत करात रिहिस तेला पूछिस, देखे हव का टूरा ल कहूँ महराज के सँग तो नइ चलदिस हे, उँखर मनले तो मैं बचके कलेचुप बस म बइठे रेंहेंव कोन का जानही। कई झन मन किहिस की बस स्टैंड म आखरी बार दिखे रहिस। कतको मन किहिस, कि महराज के सँग भागे होही, काबर की 9 दिन ले तो ओखरे संग चिपके रहय। कतको मन महराज ल खिसियाये लगिस कि महराज ल तो बताना चाही। बाबू गाँव ले आइस त पता करिस कि महराज के भागवत अभी कहाँ चलत हे। अभी कस पहली कहाँ फोन ,एक तो दू दिन बाद म बाबू  गाँव ले आइस वो भी कका बलाए बर गिस तब। येती दाई अकेल्ल्ला का करतिस, भाई मन तक छोटे छोटे , मही खुद 13 बछर के बड़का (चार भाई म) रेंहेंव। ले दे के पता चलिस के नगपुरा म भागवत होवत हे, ताहन  बाबू अउ कका दूनो बिहना साइकिल धरके निकलगे। येती भागवत के दूसरा दिन चलत रिहिस, बनेच भीड़ घलो रहय। कथा म सब रमे रहय अउ महूँ ढोलक के संग कथा म मगन रेंहेंव। बाबू अउ कका स्रोता मनके  संग म बइठ के भागवत के उसले के रद्दा जोहत रिहिस। मोला उहाँ पाके उँखर तरवा ठनकत रहय, फेर संत समागम म हो हल्ला हो जही कहिके कलेचुप रिहिस। भागवत उसले के बाद मोर नजर बाबू अउ कका ऊपर पड़के। मोर तो हाथ पाँव काँपे लगिस। महराज जिहाँ ठहरे रहय तिहाँ दूनो झन तमकत आइस अउ पहली तो महराज ल सुनाइस कि काबर कखरो लइका ल अइसने ले आथो महराज जी कहिके, महराज समझगे कि मैं झूठ बोल के आये हँव। महराज बाबू ल किहिस की मैं तो केहे रेहेंव भई, घर म पूछ कहिके, त ये बाबू ह हव पूछ डरे हँव, जाये बर केहे हे किहिस, त लान परेंव, वइसे महूँ ल एक बार बताना रिहिस, फेर जल्दीबाजी अउ विदा के चक्कर म ध्याने नइ आइस। रिस म कका दू लउठी सूँटिया घलो दिस। अउ साइकिल म जघा के घर ले आइस। गाँव भर म मोर गँवाये के हल्ला पर गे रिहिस, अउ सब जानिस त, खिसियाये, वाह रे लइका कहिके। दाई घलो दू तीन बाहरी जमाये रिहिस। कोन जन का होगे रिहिस ते, मैं वो दरी बाजा के मोह म बइहागे रेंहेंव। दाई बाबू मन कभू अपन ले अलग नइ करे रिहिस, मोला सुरता आवत हे,मोर 5 वी क्लास के बाद नवोदय डोंगरगढ़ म सलेक्शन घलो होय रिहिस फेर नानकुन लइका कहाँ अत्तिक दुरिहा अकेल्ल्ला रही कहिके नइ भेजे रिहिस। दू दिन लइका नइ दिखे त कत्तिक दुख होथे तेला दाई ददा के अलावा कोन जानही। अउ लइका के प्रति वो मोह,मया,लगाव ल ददा बने के बाद अनुभव करथों। बिना बताये कोनो कदम नइ उठाना चाही।


जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Monday 7 September 2020

सवैयासवैया

 किरीट सवैया

सावन मास म पावन मास म, बादर हा जल ढारत हे।
गावय दादुर झींगुर हा,मयुरा घन देख पुकारत हे।
काम बुता गढ़गे बढ़गे, मन आस उमंग ल गारत हे।
ताल अघावय जीव हितावय बादर दुःख के हारत हे।

खैरझिटिया

बड़े अउ छोट म भेद करे तउने घर के न सियान सुहाय।
बँधे रणबाँकुर के कनिहा तलवार बिना न मियान सुहाय।
भले सचमें सच बात कहे नइ तो लबरा के बियान सुहाय।
फरे रुखवा कस जेन नँवे नइ तेन करा न गियान सुहाय।

उना गुण ग्यान रथे जतके ततके अउ रोब जताय उही ह।
धरे इरखा अउ द्वेष रथे मत मीत मया ल मताय उही ह।
सनाय रथे जेन स्वारथ मा सच मा सबला ग सताय उही ह।
धराय रथे धन धान सही नइ आवय काम भताय उही ह।

पास परोसी म खोजे ग ओखी मताये लड़ाई मरोड़े कलाई।
आँखी दिखाये खुशी ला नँगाये चुरा आन कौंरा ग खाये मलाई।
माया सँकेले मया मीत ठेले ग बाढ़े बदी बैर धोखा छलाई।
स्वार्थी बने देख हावै तने आदमी आज के भूल गेहे भलाई।

Tuesday 11 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला*

मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन

1212 212 122 1212 212 122

बने बनाये बुता बिगड़थे, घुचुर पुचुर अउ करे मा जादा।
कते उपर तैं उँचाबे उँगली, भराय बैरी घरे मा जादा।।

चिढ़ाय मा चिढ़ जथे बने मन, फटर फिटिर करथे बड़ तने मन।
अपन करा झन बला बला ला, नमक चुपर झन जरे मा जादा।

बने बने बर बुता बने कर, जिया लुभा सबके फूल अउ फर।
अँड़े भले रह गियान गुण बिन, नँवेल पड़थे फरे मा जादा।।

अकास थुकबे तिहीं छभड़बे, खने कुआँ मा खुदे हबरबे।
भभक भभक खुद के जिवरा जरथे, दुवेष पाले बरे मा जादा।

कभू बना पथरा कस जिया ला, कभू पिघल जा रे मोम बनके।
कभू बने काँच धीर खो झन, डराय जिवरा डरे मा जादा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Monday 10 August 2020

गोबर दे बछरू गोबर दे* - कहानी(खैरझिटिया)

*गोबर दे बछरू गोबर दे* - कहानी(खैरझिटिया)

गोबर दे बछरू गोबर दे-----,नानपन ले खेल खेल म ये गीत ला गावत झामिन अउ कामिन, दुनो जुड़वा दुखिया बहिनी मनके उम्मर कब अधियागे, पता घलो नइ चलिस। दुनो बहिनी ल बियावत बेरा दाई गुजर गे, त गोसाइसन के बिछोह म कुछ दिन बाद ददा। कामिन अउ झामिन ल ओखर दरुवहा कका स्वार्थी बरोबर उँखर धन के राहत ले पालिस, ताहन अपन ठिहा ले सातेच बछर के छोटे उमर म वो बपरी मन ल धकिया दिस। दुनो दुखिया बहिनी के दुख ल देख  गाँव म पंचायत बैठिस, पंच,पटइल मन फैसला करिस  कि, गाँव के दैहान मेर एकठन घर दिये जाय, अउ जीवन यापन बर गौठान के गोबर ल  बिने के काम दुनो बहिनी मन जब तक चाहे कर सकत हे। पंचायत के ओ दिन के फैसला अनुसार दुनो बहिनी मन, बरदी के गोबर ल बिने अउ उही मेर के बड़का घुरवा म सरोय बर फेक देवय, कुछ के छेना घलो थोपे, त कुछ ल कोई तुरते छर्रा, छीटा अउ लीपे बर ले लेवय। गाँव बने बड़े जान रिहिस, जिहाँ के खइरखा म  कई हजार गाय,भैस सकलाय। गोबर खातू अउ छेना ल बेंच दुनो बिहिनी ले देके अपन जिनगी के गाड़ा ल खींचय। *कहिथे न कि पथरा ल धूप,छाँव अउ हवा पानी नइ जानवव, कहे के मतलब पथना ल कतको मार पड़े फेर आँसू नइ बोहय, वइसने दुनो बहिनी मन पहाड़ कस दुख ल करम के लेखा समझ के झेलिस*, अउ कभू हार नइ मानिस।

        रिमझिम रिमझिम पानी झरत सावन महीना म पेड़,पात ,नदी, नाला अउ भुइयाँ सँग जम्मो जीव जंतु प्रकृति के दया मया पाके, हरिया जथे। मयूर गा गाके नाचथे, किसान मन कर्मा ददरिया गाथे, दादुर अउ झिंगुरा मन राग धरके, रात रात भर गाथे। *फेर दुनो बहिनी  उदास रहय काबर कि बरदी के गोबर, पानी बादर म  एकमई हो जाय। तभो दुनो अतिक महिनत करे कि, जादा से जादा गोबर हाथ आ जाय।* एक दिन शहर जावत बेरा, दुनो बहिनी ल गाँव के मितानिन गोबर बिनत देख रूक गे, अउ टकटकी लगा के ओमन ल देखेल लगिस। भरे सावन महीना म घलो पछीना म तर बतर, कामिन डहर ल देखत झामिन कहिथे, देख तो बहिनी, ये दुखाही , हमला चील कस घूरत हे, कही हमर पेट म लात मारे के बिचार तो नइ बनात हे? झामिन के हाँ में हाँ मिलावत, कामिन कहिथे, हो सकथे बहिनी, आजकल सरकारी मनखे मनके भारी पावर रथे, गाँव,पंच,पटइल अउ अइटका बइठका ल घलो नइ माने। त का हमर हाथ ले, ये दुखाही ह गौठान ल नँगा लिही का, झामिन मितानिन ल तीर म आवत देख फड़फड़ात कहत हे। मितानिन तीर म आके कहिस, कि का तुमन ल सरकार के योजना के खबर हे? तुरते कामिन कथे, का ख़बर बहिनी, का राशनकार्ड ले नाम कटइय्या हे, या फेर हमर रोजी रोटी जवइइय्या हे, अउ हम अनपढ़  का जानबों?  न टीबी देखन, न रेडियो सुनन, न पेपर सेपर। अउ ये सरकार घलो तो आके नइ बताये। मितानिन कहिथे, अतेक डरे के बात नइहे, बल्कि ये तो खुशखबरी आय कि सरकार कोती ले अब गोबर के घलो दाम मिलही। झामिन कहिथे, बने हो जाही बहिनी, *अभी तो हमर मरना होगे हे, किसान मन गोबर खातू ल भुला, यूरिया डीपी धर लेहे, चूल्हा अउ छेना के जघा घर म गैस माड़ गेहे, अउ अब तो टाइल्स,पेंट-पुट्टी के जमाना म छर्रा छीटा घलो नँदा गय।*  मितानिन ढाढस धरावत कहिथे, अब संसो झन करव। वइसे के किलो गोबर सकेल लेत होहू एक दिन म ? दुनो बहिनी हाँसत कहिथे, भाजी पाला थोरे हरे, जे किलो बाट ल सनाबो बहिनी, आज तक तो झँउहा अउ कोल्लर  ल जानथन।  उँखर बात ल सुनके, मितानिन घलो हाँसत चलदिस। कामिन अउ झामिन ल मितानिन के बात सपना कस लगिस, अउ वोला तुरते बिसरावत अपन बुता म लगगे। जम्मो गोबर ल तिरियाके दुनो बहिनी बँइहा जोरे घर कोती चल दिस ।
           दुनो बहिनी के घर ल, गाँव के धान कोचिया कालू झाँकत कहिथे, कोनो हो वो। कालू के हुँक ल सुन कामिन आथे अउ कहिथे, कइसे ग रद्दा भुलागे हँव का ? जेन हमर घर आगे हव, न हमर किसान अन न दीवान, कहाँ के धान पान पाबो ददा? अरे नही, मैं कोनो रद्दा नइ भुलाये हँव, बल्कि ये बताये बर आय हँव कि, तुम्हर बरदी के गोबर ल  कल ले, मैं खरीदहूँ। माने अब मैं काली ले गोबर के कोचयई चालू करहूँ। कामिन मितानिन के बात ल उही समय सुरता करत घर म मुचमुचावत खुसर जाथे। दुनो बहिनी दूसर दिन बिहना फेर बरदी मा आ जथे, पाँच ठन पहट जेमा कई हजार गरवा गाय, जे पहातीच ले माड़े अउ दस बज्जी उसले। सबके गोबर बिने म बनेच महिनत लगे। तभो धकर लकर गोबर ल दुनो बहिनी घुरवा म न डार के एक जघा कालू के केहे अनुसार कुढ़ोवत गिस। बरदी उसले के बाद, कालू अपन नाप तौल के समान धरके गौठान म आगे, अउ सकलाय गोबर ल तऊले बर लगिस, तउलत ले कालू पछीना म गदगद ले नहा डरिस,आखिर म थक खागे, अउ अपन कोचयई के अनुभव म गोबर ल देखत कहिथे, तुम्हर ये गोबर ह, लगभग डेढ़ टन होही। का टन वन, कालू, हमन तो स्कूल के मुंह ल घलो नइ देखे हन,काँटा मारत  घलो होबे। अपन टन वन ल तैं अपने कर रख अउ ये बता कि, के पइसा  होइस? कालू  दू ठन नोट देखात कहिथे,ये ले 500 तोर अउ 500 तोर। दुनो बहिनी एक दूसर ल देख, गौठान के पाँव परत हाँसत कहिथे, जब गोबर ल सरोइया घुरवा के दिन बहुरथे कहिथे, त का गोबर बिनइया मनके दिन नइ बहुरही?  दुनो बहिनी भारी खुश हो गुनगुनाय बर धर लेथे। इती कालू गोबर ल चुंगड़ी म भरके चलदिस। कामिन झामिन के चेहरा खिले रहय,अउ काली के सपना ल मन ह आजे गढ़े लगगे कि काली घलो,500, 500 मिलही। ओतकी बेरा पड़ोस गाँव के आदमी बिसन  आके दुनो बहिनी ल कहिथे कि तुम्हर गोबर ल देव, मैं खरीदहूँ। झामिन मुंह छुपावत कहिथे, वोला तो गाँवे म बेंच डारेन। का ये गाँव म गोबर कोचिया घलो हे, अकचका के बिसन कहिथे। मोर नाँव बिसन हे, मैं साग भाजी बेचथों, अउ अब गोबर घलो लेहूँ, वइसे कतका रुपिया के होइस ,के किलो रिहिस ते। झामिन कहिथे, वो डेढ़ टन टन अइसे कुछु काहत रिहिस, अउ येदे 1000 दे हे। बिसन बात काटत कहिथे, मैं एक हजार के जघा बारा तेरा सौं देतेंव। दुनो बहिनी भइगे काहत मुँह घुमावत  घर  कोती चलदिस।

            पइसा पाके झामिन बड़ खुश रहय, सँझौती बेरा पुचपुचावत , गाँव म लगइया बाजार कोती बेनी हलावत, चल दिस। झामिन के जाते ही कालू उँखर घर हबरगे, कामिन ल अउ 200 देवत किहिस, अब मैं तुम्हर गोबर ल रोज लेहूँ। इती झामिन के मुलाकात बाजार म बिसन ले होगे।  बिसन  अउ झामिन  बाजार म दू चार बेर आमने सामने होइस, फेर बिसन, कुछु बोल नइ सकिस।आखिर म हिम्मत करके जावत जावत मुँह घुमाये कहिथे, तुमन दू बहिनी हव का अइसे नइ हो सके, कि आप मन अपन हिस्सा के गोबर ल मोर तीर बेच दव। झामिन बिसन ले नजर मिलाथे, फेर कुछु बोले नही, अउ अपन घर आ जथे। दुनो बहिनी पहाती फेर गौठान म चल देथे, अउ अपन बुता म लग जथे। बरदी उसलते साँठ बिसन अउ कालू दुनो पहुँचगे। झामिन,बिसन ल अउ कामिन, कालू ल गोबर बेचबों कहिके बाताबाती होय बर धर लिस, ओतकी बेरा बिसन कहिथे, ले का होही, आधा आधा कर लेथन, कालू घलो  मूड़ी हला दिस। *गोबर के कुड़ही के दू टुकड़ा होगे, मानो दुनो के मया बँटागे।*  600, 600 रुपिया थमा के दुनो कोचिया बरदी ले चल देथे। एती झामिन अउ कामिन घलो एक दूसर ल देख के मुँह अँइठ लेथे। अउ लरधंग लरधंग दुनो मरखण्डी बछिया बरोबर घर आके तिलमिलाय बर धर लेथे।  बढ़त मन मुटाव म, उँखर घर घलो खँड़ा जथे। हाथ के पइसा, एक दूसर के जरूरत अउ नानपन के मया ल भुला दिस। गाँव भर के मनखे मन जौन झामिन अउ कामिन के मया के गुणगान करे, उहू मन देखते रिहिगे। झामिन के मया बिसन बर, अउ कामिन के मया कालू बर दिन ब दिन बाढ़ेल लगिस। बिसन अउ कालू मितानिन ले डरे कि कही, वोहर दुनो बहिनी मन ल गोबर के सही दाम झन बता देवै, अउ यदि जान जाही, त ओमन ह गोबर ल आने तीर बेंच दिही। फेर दुनो कोती ले, बाढ़त मया म दुनो कोचिया बिहाव के बँधना म बँधा जथे।  बिहाव के बाद घलो,दुनो बहिनी गोबर बिनय अउ आधा आधा दुनो साढ़ू बाँट के बेचे बर ले जावय।  हाथ म आवत पइसा अउ नवा नवा गोसँइया सँग दुनो के जिनगी बढ़िया गुजरे लगिस। बिसन अउ कालू दुनो साढ़ू  गाँव के बरदी के गोबर के सँगे सँग आसपास म घलो गोबर खरीदय अउ बेचे। झामिन अउ कामिन घलो गोबर बिनइया बनिहारिन लगा डारिस। सियान मन कइथे गरीबी म मया बढ़ाथे अउ अमीरी म कम्पीटिशन(प्रतियोगिता)। अउ अइसने  घटिस घलो एक घर टीवी, फ्रीज, कूलर आइस ताहन दूसर घर आवत देरी घलो नइ लगिस। दुनो देखा सीखी गाय गरुवा घलो बिसा डरिस। दुनो बहिनी भले अपन आधा उम्मर ल गरीबी अउ बेसहारा होके जीये रिहिस फेर बचे जिनगी बढ़िया कटेल धरलिस।  गांव वाले मन उँखर दुख अउ कंगाली ल देखे रहिस, त बढ़ोतरी ल देख इही काहत ,दुनो के उप्पर रोष नइ जतावय कि जब बाँटे भाई परोसी अउ एके भाई बर बिहाय दू सगे बहिनी देरानी जेठानी कस लड़ सकथे, त इँखरो बीच छोट मोट मन मुटाव सहज हे।

                  गोबर के पइसा मिले ले गाँव म अब गोबर के पोटी घलो देखना नोहर होगे। झामिन अउ कामिन मन तो रोजे गोबर चोरइय्या ल हात हूत काहत, अउ कभू कभू गरिवावत घलो दिखे। गाय गरु जे सड़क म बइठे, मोटर गाड़ी के भेंट चढ़ जावत रिहिस, उहू मन ल, उँखर गोसाइया मन चेत करे बर धर लिस। गोबर के माँग ले गाय भैस के मान बढ़ेल लग्गिस। शहर नगर का, गाँव घर म घलो बाम्हन पुरोहित मन ये कहि दिस कि यदि गोबर नइ मिलही त माटी के गौरी गणेश घलो चलही, यहू म पूजा सफल हो जही। गोबरेच खोजना जरूरी नइहे। गोबर के भाव मिलत देख, कामिन अउ कालू के मन म लालच हमाय बर धरलिस,देखते देखत गाँव के गौठान गढ्ढा होय बर लगगे, काबर कि गोबर के सँग  अब, कामिन भुइयाँ के मास ल उकाले बर लगगे कहे के मतलब पहली गोबर भर ल बिने अब वजन बाढ़ही कहिके माटी घलो ल सँग म उखाड़े बर धरलिस,। अउ करिया दिखइया  जतेक प्रकार  के भी मल रहय  चाहे वो छेरी बोकरा के होय या कुकुर माकर के, आधा आधा गोबर ल बाँटे के बाद कालू अउ कामिन ओमा मिलावट करे बर घलो लग्गिस। बिसन अउ झामिन ले जादा कालू अउ कामिन पइसा कमाये बर धर लिस, तभो झामिन अउ बिसन ईमानदारी ल नइ छोडिस।  फेर बुराई कतेक दिन छुपही,एक दिन कालू ल फटकार पड़थे अउ जुर्माना घलो हो जथे, जतका  मिलावट म कमाये रिहिस ओखर ले जादा, जुर्माना म सिरा जथे। पुलिस अउ कोर्ट केस होय ले, बिसन अउ झामिन मन बचाथे, ते दिन ले  कालू मिलावट करे बर चेत जथे।  दुनो बहिनी के छरियाय मया पहली कस तो नही, फेर परोसी बरोबर जरूर जुड़ जथे।  दुनो बहिनी घर गाय गरुवा के सँगे सँग धन दौलत के बढ़वार लगातार होय लगिस। अँगना म मेछरावत बछरू के पीला  ल देख  गोबर माँगत, डेरउठी म बइठे कामिन अउ झामिन गँवाय दिन के सुरता करत गावत हे,,,,,,, *गोबर दे बछरू गोबर दे*,,,,,,,,,,,,, फेर  पहली कस ये गीत  कोनो खेल खेल म नइ रिहिस,,,,,,,,,,,  बल्कि पइसा के लालच म रिहिस, कि, रे बछरू तैं गोबर दे, ताहन वोला बेच पइसा पाबों। दुनो बहिनी के आँखी इही सब सोचत एकाएक मिलथे, फेर एक दूसर ल नइ देखिस तइसे, फेर  राग लमा गाये बर धर लेथे,,,,, गोबर दे बछरू गोबर दे-----------।

(बछरू गोबर दय, अउ सरकार ओखर दाम दय, ताकि झामिन कामिन कस कतको दुखियारी मन अपन जिनगी सँवार सकयँ)

    जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
      बाल्को,कोरबा(छग)
        9981441795

गीत-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गीत-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

किसान के कलपना

झड़ी बादर के बेरा,,,
डारे राहु केतु डेरा,,,,
संसो मा सरत सरी अंग हे।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


फुतकी उड़त रद्दा हे, पाँव जरत हावै।
बिन पानी बादर पेड़ पात, मरत हावै।
चुँहे तरतर पछीना,,,,,,
का ये सावन महीना,,,,
दुःख के संग मोर ठने जंग हे----।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।

आसाढ़ सावन हा, जेठ जइसे लागे।
तरिया नदियाँ घलो, मोर संग ठगागे।
हाय हाय होत हावै,,,
जम्मे जीव रोत हावै,,,
हरियर धरती के नइ रंग हे------।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।

बूंद बूंद बरखा बर, मैंहर ललावौं। 
झटकुन आजा, दिन रात बलावौं। 
नइ गिरबे जब पानी,,,,,
कइसे होही किसानी,,,,
मोर सपना बरत बंग बंग हे----।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

-------------मया के पाती---------------

 --------------मया के पाती---------------


   ------- -----------  ठउर- बाल्को, कोरबा

                      -- दिनाँक- 07/08/2020


*मोर मया ल छोड़, कखरो मया मा झन अरझबे।*
*खून ले लिखत हँव पाती,सियाही झन समझबे।*

मोर मयारु,
               ----------,
               मया का होथे? गउकिन नइ जानव। फेर तोला देखे बिना न नींद आय न चैन, तोर सुरता अन्तस् मा अउ तोर मुखड़ा आँखी म समाये रथे। जेती देखथों तेती तिहीं दिखथस। तैं देखे होबे मैं बइहा बरन तोर आघू पीछू किंजरत रहिथों, कोन जनी मोला का होगे हे, का सिरतोन म मया होगे हे? हाँ, मोला तो लगथे हो गेहे, फेर तोर हामी बिना का मया?  मैं ये पाती नइ लिखतेंव, फेर का करँव? तोला देखथंव त मुँह ले बोली भाँखा चिटिको नइ फुटे। मोर हाथ गोड़ म कपकपी अउ जिया म डर हमा जथे। मोर जिया म तोर बर मया तो बनेच दिन ले हिलोर मारत हे, फेर वो मया के लहरा भँवरी कस घूम घूम के उही मेर सिरा जावत रिहिस, आज तक किनारा नइ पा सकिस। तेखर सेती मैं अपन मन के बात  बताये बर तोला ये मया पाती पठोवत हँव। तोला अपन संगी संगवारी संग हाँसत मुस्कात देख मोला अब्बड़ खुशी होथे। मोर मन मया के अगास म पंछी बरोबर उड़त सोंचथे कि उही मंदरस कस बानी कहूँ मोर बर छलकही तब का होही, कोन जनी कतेक खुशी मन मे समाही। तोर मया बिन मोर जिनगी अमावस कस कारी रात हे, जेमा चमचम चमकत पुन्नी के चन्दा बन उजियारा फैलादे। ये पाती लिखे के बाद, मैं अब तोर आघू पीछू घलो नइ हो सकँव।  मोर मन म तो तैं बसे हस, तोर मन म का हे? जवाब के अगोरा रही, 

                                      " तोर मयारू"
                                        खैरझिटिया

सेहत(चौपाई छंद)- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 सेहत(चौपाई छंद)- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*आफत तन में आय जब, मन कइसे सुख पाय*
*तन मन तनतन होय तब, माया मोह सुहाय*

हाड़ माँस के तैं काया धर।
हाय हाय झन कर माया बर।
सब बिरथा काया के सुख बिन।
जतन बदन के करले निस दिन।

तन खेलौना हाड़ माँस के।
जे चाबी मा चले साँस के।
जी ले जिनगी हाँस हाँस के।
दुःख दरद डर धाँस धाँस के।

पी ले पानी खेवन खेवन।
सबे समै खा समै मा जेवन।
समै मा सुत जा समै मा जग जा।
भोजन बने करे मा लग जा।

झन होवय कमती अउ जादा।
कोशिस कर होवय नित सादा।
गरम गरम खा ताजा ताजा।
बजही तभे खुशी के बाजा।

देख रेख कर सबे अंग के।
उही सिपाही सबे जंग के।
हरा भरा रख तन फुलवारी।
तैं माली अउ तैं गिरधारी।

योग ध्यान हे तन बर बढ़िया।
गतर चला बन छत्तीसगढ़िया।
तन के कसरत हवै जरूरी।
चुस्ती फुर्ती सुख के धूरी।

चलुक चढा झन नसा पान के।
ये सब दुश्मन जिया जान के।
गरब गुमान लोभ अउ लत हा।
करथे तन अउ मन ला खतहा।

मूंगा मोती कहाँ सुहावै।
जब काया मा दरद हमावै।
तन तकलीफ उहाँ बस दुख हे।
तन के सुख तब मनके सुख हे।

जतन रतन कस अपन बदन ला।
सजा सँवार सदन कस तन ला।
तन मशीन बरोबर ताये।
जे नइ माने ते दुख पाये।

तन के तार जुड़े हे मन ले।
का का करथस तन बर गन ले।
गुजत बनाले सुख पाये बर।
आलस तन के दुरिहाये बर।

तन हे चंगा तब मन चंगा।
रहे कठौती मा तब गंगा।
कारज कर झन बने लफंगा।
बने बुता बर बन बजरंगा।।

*सेहत ए सुख साधना, सेहत गरब गुमान*
*सेहत ला सिरजाय जे,उही गुणी इंसान*

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Friday 7 August 2020

नाती के पाती

 नाती के पाती


                                     ठउर-बाल्को,कोरबा

                                     तारिख-05/08/2020

*यहाँ कुशल सब भाँति भलाई*

    *वहाँ कुशल राखे रघुराई*

बबा,

       पायलागी गो।

       आप ल ये बतावत अबड़ उछाह होवत हे, कि तीजा पोरा लट्ठावत हे, घर मा झाँपी झाँपी ठेठरी, खुरमी कलेवा बनही। यहू दरी मैं आप मन बर मँझोलन मोटरा म ठेठरी अउ खुरमी ल कूट के गठिया देहूं, ताहन पहली कस बनेच दिन ले फँकियात रहू। गँइंज दिन होगे बबा, तोला देखे नइ हँव, सपना म घलो दरस नइ देखावस। अउ सपना म आहू घलो कइसे ये नवा जमाना के चकाचौंध म मिही तोर सुरता नइ करँव। हाथ म मोबाइल, घर म टीवी, भरर भरर भागत मोटर गाड़ी कार अउ ज्ञान विज्ञान के नवा चोचला तोला छेंक देथे। अउ बबा आजो घलो यदि लोकाक्षर म चिठ्ठी पाती विषय नइ होतिस त आपला मैं सुरता नइ करतेंव। अउ अब सुरता म चढ़ गे हव तब तुम्हर संग बिताये बेरा रहिरहि के उबाल मारत हे। *तोर पिठँइयाँ के पार, आज के ये अगास अमरत झूला ह घलो नइ पा सके।* तोर बनाये ढँकेल गाड़ी जेमा मैं रेंगे बर सीखेंव, आजो नजरे नजर म झूलत हे। तोर खाँसर गाड़ा के मजा महँगा मोटर कार घलो नइ दे सके। *गोरसी के आँवर भाँवर संगी संगवारी मन संग आगी तापत सुने तोर कहानी कन्थली आजो रटृम रट्टा याद हे। तोर संग घूमे बाजार हाट अउ गांव गँवतरी के सुरता भुलाये नइ भुले। आज मोर हाथ के महँगा मोबाइल भले लाख ज्ञान बाँटे फेर तोर बताये गुण गियान के गोठ के पार नइ पा सके।*

सिरतोन म बबा, वो बेरा के तोर मया के आघू, आज के सरी दुनिया भर के सैर सपाटा अउ सुख सुविधा फिक्का हे। जब तैं डोरी ल लामी लामा लमाके ढेरा आँटस, त पारा भरके लइका बड़ मजा करत चिल्लावत भागन। तोर कोकवानी लउठी के डर घलो रहय, फेर आज न तो दाई ददा के डर हे न कोनो आन के। सुतत उठत जागत बइठत, मिले तोर पबरित मया दुलार आजो अन्तस् म हिलोर मारत हे।

                बने हे बबा, तैं ये धरती ल छोड़ दे हस  काबर कि आजकल के लइका मन तो सियान मनके तीर म ओधत घलो नइ हे। आज उन ला न लइका लोग पुछे, न नाती नतुरा। बपुरा मन जुन्ना जमाना के कोनो छेल्ला जिनावर बरोबर घर के एक कोंटा म फेंकाय, खटिया म पँचत हे। सियान बर आज, न मान गउन हे, न उंखर सेवा सत्कार। सब नवा जमाना के रंग म रंग के अपनेच म मगन अउ मस्त हे, चाहे लइका लोग होय चाहे कोनो बड़का। तैं तो हमला गीत गा गाके, पुचकार पुचकार खेला के बड़े करेस, फेर आज के दुधमुहा लइका मन ल घलो दाई ददा मन सियान कर नइ छोड़त हे। उंखर देखरेख बर नौकरानी संग  स्कूल खुलगे हे। आज सियान मनके न घर में, न घर के बाहर गाँव गुड़ी म पहली कस कोनो पुछारी हे। फेर बबा ये गूगल कतको ज्ञान बाँट लय, मोबाइल ,टीवी कतको मनखे के मन मोह डरय, तोर सिखाये पढ़ाये खेलाये कस लइका नइ बना सकय। आज जुन्ना जमाना के जम्मो जिनिस ल मनखे खोधर खोधर के खोजत हे, फेर जीयत जुन्ना मनखे उपर धियान नइ देवत हे। तहूँ देखत होबे बबा, त आँखी डबडबा जात होही। *जीयत मा, न मया हे, न नाम। अउ मरे के बाद उही भगवान राम।*  आज के जमाना म *"बबा मरे चाहे बँचे सब,,,,,,,,,,, बरा खावत हे।"*

            अउ पायलागी गो

                                        चिट्ठी पठोइया

                                  तोर बड़का नाती- खैरझिटिया

Thursday 6 August 2020

नींद ससन भर आही - गीत(सार छंद)

नींद ससन भर आही - गीत(सार छंद)

बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।
संझा बिहना सुख मा कटही, मन मा खुशी हमाही।

तामझाम तकलीफ बाँटथे, जीवन जी ले सादा।
जादा मना खुशी अउ दुख झन, जोर घलो धन जादा।
अपन आप ला बने बनाले, सरी जगत गुण गाही।
बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।

संसो फिकर घलो हा चिटिको, नैन मुँदन नइ देवै।
ऊँच नीच खाना पीना हा, नींद चैन हर लेवै।
अपन काम ला खुदे टारले, तन कसरत हो जाही।
बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।

रोज शबासी लेवत चल गा, झन खा एको गारी।
चलत रहा सत के रद्दा मा, तज के झूठ लबारी।
गरब गुमान घलो झन करबे, नइ ते दुःख झपाही।
बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।

जान अपन कस सबे जीव ला, ले ले सबके आरो।
बेर देख के फल खावत चल, मीठ करू अउ खारो।
बचपन के बेरा लहुटाले, तन मन तोर हिताही।
बने काम तैं करत रबे ता, नींद ससन भर आही।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Tuesday 4 August 2020

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

किसान के कलपना

झड़ी बादर के बेरा,,,
डारे राहु केतु डेरा,,,,
संसो मा सरत सरी अंग हे।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


फुतकी उड़त रद्दा हे, पाँव जरत हावै।
बिन पानी बादर पेड़ पात, मरत हावै।
चुँहे तरतर पछीना,,,,,,
का ये सावन महीना,,,,
दुःख के संग मोर ठने जंग हे----।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।

आसाढ़ सावन हा, जेठ जइसे लागे।
तरिया नदियाँ घलो, मोर संग ठगागे।
हाय हाय होत हावै,,,
जम्मे जीव रोत हावै,,,
हरियर धरती के नइ रंग हे------।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।

बूंद बूंद बरखा बर, मैंहर ललावौं। 
झटकुन आजा, दिन रात बलावौं। 
नइ गिरबे जब पानी,,,,,
कइसे होही किसानी,,,,
मोर सपना बरत बंग बंग हे----।
नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Monday 3 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन 

212 212 212 212  

दुःख अउ सुख मा जिनगी पहाही इहाँ।
कोई जाही ता कोई हा आही इहाँ।1

धन मया के उपर आज भारी हवै।
धन सकेलत सबे सिर मुड़ाही इहाँ।2

कोई हिटलर हवै कोई औरंगजेब।
फेर इतिहास हा दोहराही इहाँ।3

राज हे लाज ला बेच देहे तिंखर।
जौन लड़ही झगड़ही ते खाही इहाँ।4

जेन पर के भरोसा भरे पेट ला।
वो मनुष काय नामा जगाही इहाँ।5

काटही बेर गिनगिन मनुष मोठ मन।
हाड़ा कस मनखे मन नित कमाही इहाँ।6

घाम करथे जबर बरसा बरसे अबड़।
आ जही का भयंकर तबाही इहाँ।7

चोर के धन चुरा चोर हा लेजही।
राज ला बाँट खाही सिपाही इहाँ।8

खा पी सुरसा घलो तो कलेचुप हवै।
का मनुष धन रतन धर अघाही इहाँ।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

बिना खाये उदर आगी, बता कइसे बुझाही जी।
विपत नाचत रही सिर मा, भला का नींद आही जी।

लगे सावन घलो बैसाख, आगी कस धरा हे तात।
कटागे रुख गँवागे सुख, मनुष अब जर भुँजाही जी।

बिगाड़े घर घलो ला ये, बिगाड़े पर घलो ला ये।
नसा हा नास के जड़ ए, खुशी धन तन सिराही जी।

ददा दाई ला धुत्कारे, खुशी सुख सत मया बारे।
सुने नइ बात ला बेटा, कहाँ जाके झपाही जी।

गरब मा राख के नौ माह, झेलिस दुख गजब दाई।
निकम्मा पूत हा होवय, ता छाती नइ ठठाही जी।

भलाई के जमाना गय, करे पापी धरम के छय।
बुराई हा जगत मा, एक दिन लाही तबाही जी।

चले चरचा गुमानी के, दबे गुण ज्ञान  ग्यानी के।
धँधाये जेल मा सत ता, बुराई नइ हमाही जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[7/23, 1:06 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

नफा खोजत उड़य नित बाज, देखे मा फरक हे जी।
मरे नइ लाजवंती लाज, देखे मा फरक हे जी।।1

मरे मनखे ला दफनाये, उहाँ कौने घुमे जाये।
हरे मुमताज के मठ ताज, देखे मा फरक हे जी।2

हवै दाई ददा लाँघन, लुटाये पूत पर बर धन।
करे माँ बाप कइसे नाज, देखे मा फरक हे जी।3

उहू बोलय विपत हरहूँ, यहू कहिथे खुशी भरहूँ।
सबे नेता हे एके आज, देखे मा फरक हे जी।4

बढ़े अउ ना घटे धन, कर खुजाये जेवनी डेरी।
दुनो मा होय खुजली खाज, देखे मा फरक हे जी।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[7/26, 5:00 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

का गलत का सहीं हे बता बात मा।
रोष जादा कभू झन जता लात मा।1

हाड़ अउ मांस के तन मा काके गरब।
काँपथे जाड़ मा जर जथे तात मा।।2

साग भाजी हवा अउ दवा दै उही।
जान हे जान ले पेड़ अउ पात मा।3

आदमी अस ता रह आदमी बीच में ।
बाढ़थे मीत ममता मुलाकात मा।।4

छोड़ लड़ना झगड़ना अरझ के मनुष।
तोर मैं मोर धन अउ धरम जात मा।5

भाँप के बेर ला लउठी धरके निकल।
नइ भगाये कुकुर कौवा हुत हात मा।6

हाँ बँटत दिख जथे धन रतन हा कभू।
नइ मिले अब मया मीत खैरात मा।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा (छग)
[7/27, 5:05 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

मोर जिनगी मा आबे अपन जान के।
मोला मितवा बनाबे अपन जान के।1

मोल मोरे गिराही जमाना कहूँ।
सोन कस तैं नपाबे अपन जान के।2

मोर दिल मा मया पलपलावत रही।
हाथ तैंहा बढ़ाबे अपन जान के।3

मान जाबे मया के सबे बात ला।
जादा झन तैं सताबे अपन जान के।4

मैं पतंगा अँजोरी सदा खोजथौं।
दीप बन जगमगाबे अपन जान के।5

असकटावत रबे तैं अकेल्ला कहूँ।
नाम लेके बलाबे अपन जान के।6

धन रतन देश दुनिया हवै फालतू।
जग मया के घुमाबे अपन जान के।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[8/1, 4:24 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: Date: Aug 1, 2020

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

तैं बुरा अउ भला सबला जानत हवस।
फेर नइ बात कखरो रे मानत हवस।1

आन बर बड़ मया पलपलावत हवै।
देख दाई ददा तोप तानत हवस।।2

जाग गे सोय हा, आत हे खोय हा।
तैं डहर धर गलत खाक झानत हवस।3

मोल जानेस नइ तैं समय के कभू।
आग लगगे कुँवा तब रे खानत हवस।4

का करत हस करम तैं अपन देख ले।
सत मया मीत अउ रीत चानत हवस।5

बह जथे धार हा पथ बनाके खुदे।
रोक के धार नदियाँ उफानत हवस।6

आय हे जातरी खुद चपक झन नरी।
तैं दवा कहिके दारू ला लानत हवस।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा (छत्तीसगढ़)
[8/1, 9:54 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

तोर अउ मोर मा हे घिरे आदमी।
नित लड़त हे कसोरा भिरे आदमी।1

थल ल दाबत हवे जल ल सोंखत हवे।
अउ अगासे ल जिद मा तिरे आदमी।2

भूख सुख बर भुलाके धरम अउ करम।
भेड़िया बनके भटकत फिरे आदमी।3

एक छिन मा बढ़े एक छिन मा अड़े।
एक छिन स्वार्थी बनके गिरे आदमी।4

बोल मा भर जहर धर गलत सँग डहर।
मीत ममता मया ला चिरे आदमी।5

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[8/2, 9:52 AM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

बात नइ माने जे लात खाये बिना।
छोड़बे कइसे वोला ठठाये बिना।1

हाथ देबे ता धरथे गला ला सबे।
पाल लइका घलो सिर चढ़ाये बिना।2

बन बुरा बर बुरा अउ बने बर बने।
काम कर ले सदा मटमटाये बिना।3

खात कौरा नँगाही कुटाही जबर।
पेट भरगे कहन नइ अघाये बिना।4

छाय हावय सबे तीर लत लोभ मद।
साफ करबोन सबला सनाये बिना।5

पाँख रहिके पँखेड़ू  धरा खोजथे।
देख मानुष जिये नइ उड़ाये बिना।6

बात करथे हवा संग गाड़ी धरे।
चेत चढ़थे कहाँ ले झपाये बिना।7

टोर जांगर घलो एक लाँघन पड़े।
एक खाये पछीना गिराये बिना।8

दूध माड़े रथे ता दही बन जथे।
लेवना का निकलथे मथाये बिना।9

साज अउ बाज बिरथा बिना साधना।
धार हँसिया रहे नइ पजाये बिना।10

सामने आय नइ सच सहज मा कभू।
पेड़ ले फल गिरे नइ हलाये बिना।11

काम ला देख के जे नयन मूंद दै।
खाय बर जाग जाथे जगाये बिना।12

बिन मया आदमी आदमी काय ए।
घर कहाये नही छत छवाये बिना।13

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा
[8/2, 11:08 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

मोह मद मा फँसे आदमी मन इहाँ।
फोकटे के हँसे आदमी मन इहाँ।।1

साँप कस धर जहर घूमथे सब डहर।
शांति सुख ला डँसे आदमी मन इहाँ।2

ढोर बन मिल जथे चोर बन मिल जथे।
माथ चंदन घँसे आदमी मन इहाँ।।3

तोर अउ मोर मा धन रतन जोर मा।
डोर धर गल कँसे आदमी मन इहाँ।4

छोड़ के गाँव ला अउ मया छाँव ला।
हे शहर मा धँसे आदमी मन इहाँ।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
[8/3, 9:27 PM] jeetendra verma खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

दुःख अउ सुख मा जिनगी पहाही इहाँ।
कोई जाही ता कोई हा आही इहाँ।1

धन मया के उपर आज भारी हवै।
धन सकेलत सबे सिर मुड़ाही इहाँ।2

कोई हिटलर हवै कोई औरंगजेब।
फेर इतिहास हा दोहराही इहाँ।3

राज हे लाज ला बेच देहे तिंखर।
जौन लड़ही झगड़ही ते खाही इहाँ।4

जेन पर के भरोसा भरे पेट ला।
वो मनुष काय नामा जगाही इहाँ।5

काटही बेर गिनगिन मनुष मोठ मन।
हाड़ा कस मनखे मन नित कमाही इहाँ।6

घाम करथे जबर बरसा बरसे अबड़।
आ जही का भयंकर तबाही इहाँ।7

चोर के धन चुरा चोर हा लेजही।
राज ला बाँट खाही सिपाही इहाँ।8

खा पी सुरसा घलो तो कलेचुप हवै।
का मनुष धन रतन धर अघाही इहाँ।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)

भोजली दाई(मनहरण घनाक्षरी)

माई खोली म माढ़े हे,भोजली दाई बाढ़े हे
ठिहा ठउर मगन हे,बने पाग नेत हे।
जस सेवा चलत हे, रहिरहि हलत हे,
खुशी छाये सबो तीर,नाँचे घर खेत हे।
सावन अँजोरी पाख,आये दिन हवै खास,
चढ़े भोजली म धजा,लाली कारी सेत हे।
खेती अउ किसानी बर,बने घाम पानी बर
भोजली मनाये मिल,आशीष माँ देत हे।

भोजली दाई ह बढ़ै,लहर लहर करै,
जुरै सब बहिनी हे,सावन के मास मा।
रेशम के डोरी धर,अक्षत ग रोली धर,
बहिनी ह आये हवै,भइया के पास मा।
फुगड़ी खेलत हवै,झूलना झूलत हवै,
बाँहि डार नाचत हे,मया के गियास मा।
दया मया बोवत हे, मंगल ग होवत हे,
सावन अँजोरी उड़ै,मया ह अगास मा।

अन्न धन भरे दाई,दुख पीरा हरे दाई,
भोजली के मान गौन,होवै गाँव गाँव मा।
दिखे दाई हरियर,चढ़े मेवा नरियर,
धुँवा उड़े धूप के जी ,भोजली के ठाँव मा।
मुचमुच मुसकाये,टुकनी म शोभा पाये,
गाँव भर जस गावै,जुरे बर छाँव मा।
राखी के बिहान दिन,भोजली सरोये मिल,
बदे मीत मितानी ग,भोजली के नाँव मा।

राखी के पिंयार म जी,भोजली तिहार म जी,
नाचत हे खेती बाड़ी,नाचत हे धान जी।
भुइँया के जागे भाग,भोजली के भाये राग,
सबो खूँट खुशी छाये,टरै दुख बान जी।
राखी छठ तीजा पोरा,सुख के हरे जी जोरा,
हमर गुमान हरे,बेटी माई मान जी।
मया भाई बहिनी के,नोहे कोनो कहिनी के,
कान खोंच भोजली ला,बनाले ले मितान जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Saturday 1 August 2020

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल -जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
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212 212 212 212  

तैं बुरा अउ भला सबला जानत हवस।
फेर नइ बात कखरो रे मानत हवस।1

आन बर बड़ मया पलपलावत हवै।
देख दाई ददा तोप तानत हवस।।2

जाग गे सोय हा, आत हे खोय हा।
तैं डहर धर गलत खाक झानत हवस।3

मोल जानेस नइ तैं समय के कभू।
आग लगगे कुँवा तब रे खानत हवस।4

का करत हस करम तैं अपन देख ले।
सत मया मीत अउ रीत चानत हवस।5

बह जथे धार हा पथ बनाके खुदे।
रोक के धार नदियाँ उफानत हवस।6

आय हे जातरी खुद चपक झन नरी।
तैं दवा कहिके दारू ला लानत हवस।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा (छत्तीसगढ़)

बइरी पइरी(गीत)😥😥

😥बइरी  पइरी(गीत)😥😥

कइसे बजथस रे पइरी बता।
मोर  पिया  के,मोर पिया के,
अब  नइ मिले  पता......।।

पहिली सुन,छुनछुन तोर,
दँउड़त    आय     पिया।
अब   वोला    देखे   बर,
तरसत  हे  हाय   जिया।
ओतकेच   घुँघरू  हे,
ओतकेच के साज हे।
फेर काबर बइरी तोर,
बदले    आवाज   हे।
फरिहर  मोर मया ल,
झन तैं मता..........।।

का करहूँ राख अब,
पाँव    मा    तोला।
धनी मोर नइ दिखे,
संसो   होगे  मोला।
पहिरे पहिरे तोला,
अब पाँव लगे भारी।
पिया के बिन कते,
सिंगार  करे  नारी।
धनी  के   रहत  ले,
तोर मोर हे नता..।।

देख नइ  सकेस,
मोर सुख पइरी।
बँधे बँधे पाँव म,
होगेस तैं बइरी।
पिया  के  मन  ला,
काबर नइ भावस।
मया  के गीत अब,
काबर नइ गावस।
मैं बड़ दुखयारी,
मोला झन सता--।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)

Tuesday 28 July 2020

बरवै छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बरवै छंद- जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" 

आ रे बादर(गीत)

धान पान रुख राई, सबे सुखाय।
ना पानी ना काँजी, सावन काय।

अगिन बरत हे भुइयाँ, हरगे चेत।
बूंद बूंद बर बिलखै, डोली खेत।
मरे मोर कस मछरी, मेंढक मोर।
सबके सुख चोराये, बादर चोर।
सुध बुध अब सब खोगे, मन अकुलाय।
ना पानी ना काँजी, सावन काय।।

निकल जही अइसन मा, मोरे जान।
जादा तैं तड़पा झन, हे भगवान।।
जल्दी आजा जल धर, बादर देव।
खेत किसानी के तैं, आवस नेव।।
भुइयाँ छाँड़य दर्रा, ताल अँटाय।
ना पानी ना काँजी, सावन काय।।

बेटी के बिहाव अउ, बेटा प्रान।
तोर तीर हे अटके, गउ ईमान।।
देखत रहिथौं तोला, बस दिन रात।
जिनगी मोर बचा दे, आ लघिनात।
बाँचे खोंचे भुइयाँ, झन बेंचाय।।
ना पानी ना काँजी, सावन काय।।

जाँगर टोर सकत हौं, तन जल ढार।
फेर तोर बिन हरदम, होथे हार।
रावण राज लगत हे, सावन मास।
दावन मा बेचाये, खुसी उजास।।
गड़े जिया मा काँटा, धीर खराय।
ना पानी ना काँजी, सावन काय।।

भाग भोंग के मोरे, झन तैं भाग।
करजा बोड़ी बढ़ही, झन दे दाग।
मैं हर साल कलपथौं, छाती पीट।
तैं चुप देखत रहिथस, बनके ढीट। 
बस बरसा बरसा दे, ले झन हाय।
ना पानी ना काँजी, सावन काय।।

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Monday 27 July 2020

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" तुलसी तोर रमायण(गीत)

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

तुलसी तोर रमायण(गीत)

जग बर अमरित पानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

शब्द शब्द मा राम रमे हे, शब्द शब्द मा सीता।
गूढ़ ग्यान गुण गोठ गँजाये, चिटिको नइहे रीता।
सत सुख शांति कहानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

सब दिन बरसे कृपा राम के, दरद दुःख डर भागे।
राम नाम के महिमा भारी, भाग भगत के जागे।।
धर्म ध्वजा धन धानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।

सहज तारथे भवसागर ले, ये डोंगा कलजुग के।
दूर भगाथे अँधियारी ला, सुरुज सहीं नित उगके।
बेघर के छत छानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

प्रश्न घलो कमती पड़ जाही, उत्तर अतिक भरे हे।
अधम अनाड़ी गुणी गियानी, सबके दुःख हरे हे।
मीठ कलिंदर चानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।
कतको के जिनगानी बनगे, तुलसी तोर रमायण।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

तुलसी दास जयंती की बहुत बहुत बधाई

Saturday 25 July 2020

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

तीजा पोरा

मुचुर मुचुर मन मुसकावत हे, देख करत तोला जोरा।
महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।

कभू अकेल्ला कहाँ रहे हँव, तोर बिना मैं महतारी।
जावन नइ दँव मैंहर तोला, देवत रह कतको गारी।
बेटी बर हे सरग बरोबर, दाई के पावन कोरा।
महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।

अपन पीठ मा ममा चघाके, मोला ननिहाल घुमाही।
भाई बहिनी संग खेलहूँ, मोसी मन सब झन आही।
मया ममादाऊ के पाहूँ, खाहूँ खाजी अउ होरा।
महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।

कइसे रथे उपास तीज के, नियम धियम होथे कइसन।
सीखे पढ़े महूँ ला लगही, नारी मैं तोरे जइसन।
गिनगिन सावन मास काटहूँ, भादो के करत अगोरा।
महूँ ममा घर जाहूँ दाई, तोर संग तीजा पोरा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Friday 24 July 2020

नाँग साँप (कहानी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

Thursday 23 July 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

चुलुक तैं मंद मउहा के, लगाबे झन कभू भैया।
ये दुनिया हाट माया के, ठगाबे झन कभू भैया।1

रतन धन साथ नइ जावै, मया मोह काम नइ आवै।
बुझत दीया हरे तन, बगबगाबे झन कभू भैया।2

धरा के देवता आये, जगत मा तोला जे लाये।
ठिहा ले बाप माई ला, भगाबे झन कभू भैया।3

भरे बारूद घर भीतर, पड़ोसी ला डराये बर।
अगिन पर घर जलाये बर, दगाबे झन कभू भैया।4

गजब कन रूप नारी के, बहिन बेटी सुवारी माँ।
छुपे काली घलो रहिथे, जगाबे झन कभू भैया।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

नफा खोजत उड़य नित बाज, देखे मा फरक हे जी।
मरे नइ लाजवंती लाज, देखे मा फरक हे जी।।1

मरे मनखे ला दफनाये, उहाँ कौने घुमे जाये।
हरे मुमताज के मठ ताज, देखे मा फरक हे जी।2

हवै दाई ददा लाँघन, लुटाये पूत पर बर धन।
करे माँ बाप कइसे नाज, देखे मा फरक हे जी।3

उहू बोलय विपत हरहूँ, यहू कहिथे खुशी भरहूँ।
सबे नेता हे एके आज, देखे मा फरक हे जी।4

बढ़े अउ ना घटे धन, कर खुजाये जेवनी डेरी।
दुनो मा होय खुजली खाज, देखे मा फरक हे जी।5

करे सबझन अपन मनके, करम बढ़िया कहत तनके।
बने गिनहा दुई हे काज, देखे मा फरक हे जी।6

गुमानी चार के चोचला, टिकथे कहाँ जादा।
ढहे राजा घलो के राज, देखे मा फरक हे जी।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Wednesday 22 July 2020

खेल खेल में-संस्मरण

खेल खेल में-संस्मरण

           आजकल पेड़ -पात, साग-भागी, कुकरी-बकरी संग अउ कतको चीज, दवई-दारू अउ सूजी-पानी म डंगडंग ले बाढ़ जावत हे। का मनखे एखर ले अछूता हे? आज प्रकृति के नियम धियम  सब अस्त व्यस्त होगे हे। जे नइ हो सके उहू सम्भव होवत हे। खैर, छोड़व----- काबर कि नवा जमाना म सब जायज हे। जइसे लइकच मन ल देखव जे मन बिन खेलकूद के घलो बड़े हो जावत हे। दू ढाई साल के लइका कहिथन त हमर आघू उंखर लड़कपन,तोतला बानी, शोर- शराबा अउ उंखर खेलकूद सुरता आये बर लग जथे। फेर आज जमाना बड़ रप्तार म भागत हे, नान नान लइका मन आज सियान बरोबर टिफिन धरके गाड़ी चढ़, अपन भार ले जादा कॉपी पुस्तक ल पीठ म लाद, स्कूल जावत हे, अउ उँहा ले थक हार के आय के बाद घर म घलो पढ़त लिखत हे। अउ बाँचे खोंचे बेरा ल बइरी टीवी अउ मोबाइल नँगा लेवत हे। आगी पागी के होस नही उहू मन सबे चीज ल रट डारे हे, ये कोनो गलत नोहे , फेर लइका मनके आज शारीरिक कसरत कम होगे हे। जेन ल हमन अपन लइकई पन म खेल खेल संगी संगवारी बनाके सीखन तेला, आज लइका मन पढ़ अउ  रट के सीखत हे।
              आज के नान नान लइका मन के ये स्थिति ल देख मोला अपन बचपन याद आवत हे। दाई ददा खवा पिया के छोड़ देवय, ताहन  हमन छोटे बड़े सबे मिलके एक ले बढ़के एक खेल खेलन। स्कूल घलो छः बरस गेन, जब डेरी हाथ ले जेवनी कान, अउ जेवनी हाथ ले डेरी कान बराबर छुवाय लगिस तब। छः साल के होवत ले दउड़ दउड़ के गांव गली ,खेत खार म खेलेन । लिखई पढ़ई ल तो स्कूल म सीखेंन, फेर कई ठन जानकारी ल खेले खेल म सीख ले रेहेन। आज के लइका मन पुस्तक ल देख पढ़ के,अपन शरीर के अंग जानथे, या ददा दाई मन बताथे तब जानथे, फेर  मोला सुरता आवत हे एक खेल के जेमा सबे संगवारी मन संग गोल घेरा बनाके घूमन अउ चिल्लावत मजा लेवत काहन- *गोल गोल रानी- इता इता पानी।* पाँव ले चालू होके ये खेल चुन्दी म खतम होय। ये खेल रोजे खेलन, जेखर ले अपन शरीर के जमे अंग ल खेल खेल म जान जावन। आज के लइका मन स्कूल में ताहन दाई ददा के संग घर में घलो रट रट के गिनती सीखथे, फेर हमन अइसन कई ठन खेल अउ गीत ल, एक-दू बेर खेलके अउ गाके, कभू नइ भुलाय तइसन सुरता कर लेवन। लइकापन म बाँटी जीत,बिल्लस,गोटा, चोट-बदा(बाँटी डूबउल), कस कतको खेल, खेलके गिनती के एक, दो, तीन ----- सीखेंन। बाँटी ,बिल्लस, गोटा जइसे  खेल,खेलके  हमर निसाना घलो तेज होय अउ शरीर घलो चंगा रहय।
लुका छुपउल म घलो गिनती दस तक बोलई ले सीख जावन। तिरी पासा, चोर पुलिस जइसे खेल  म घलो गिनती के उपयोग होय।
            रंग के ज्ञान घलो स्कूल जाय के पहली हो गए रिहिस, *इटी पीटी रंग कोन से कलर* वाले खेल खेलके।
सूरज,चन्दा, पानी, पवन  ल घलो खेल म जान डरे रेहेन।
नदी - पहाड़ , खेलके खचका - डिपरा अउ फोटो जितउल म एक जइसे दिखे वाले चीज छाँटे के जानकारी अउ घाम  छाँव म घाम छाँव के जानकारी हो जावत रिहिस। गिल्ला, भौरा , पिट्ठुल, रस्सी कूद, फुगड़ी, खो, कबड्डी,डंडा पिचरंगा,घलो शरीर ल चंगा रखे के साथ साथ दिमाक ल खोले। बड़े संगी मन संग खेल खेल म उंखर जानकारी ल हमू मन ले लेवन। सगा पुताना खेल म ज्ञान अउ मजा के बात भर नही बल्कि जिनगी के जम्मो बूता ल सीखे म मदद मिले। बाजार हाट जाना, समान बेचना लेना, पइसा कौड़ी के हिसाब, नता रिस्ता के जानकारी के संगे संग अउ कतको जीवन उपयोगी जानकारी ये खेल म मिले, जउन आज स्कूलो म नइ मिल पावत हे। गीत कविता सुनई गवई तो रोजेच होय, स्कूल जाय के पहिली कतको गीत कविता याद रहय। बर बिहाव, बाजा बराती, जइसे खेल खेलके  कतको संगी मन संगीत म घलो अपन पकड़ बना लेवत रिहिस। मोला सुरता आवत हे मोर बचपन के संगी उगेश के जउन पहली डब्बा, दुब्बी ल न सिर्फ पिटे बल्कि बढ़िया बजाय, आज वो तबला ढोलक बजाए म उस्ताद हे। ननपन म बबा, डोकरी दाई अउ कका के कहानी सुने बर घलो बराबर टेम देवन। तरिया नरवा म नहा के तँउरे बर घलो सीख जावन। पेड़ चढ़ना, भागना, नाचना, गाना अउ बूता काम म हाथ बँटाना सब खेल खेल म हो जावत रिहिस।
          आज लइका मन ल बताय बर लगथे कि  कुकुर भूं भूं कहिथे, बिल्ली म्याऊँ कहिथे, चिरई  चिंव कहिथे। फेर हमन तो कुकुर ल एक ढेला मार घलो देवन, अउ ओखर कुँई कुँई अउ भूं भूं ल सुनन  तब जानन। *काँउ मॉउ मेकरा के जाला* ये खेल ले शेर,कुकुर, बिलई, भालू, बेंदरा कस कतको जानवर के आवाज ल जान डरत रेहे। बारी बखरी के खेल(घिनिन मानन बटकी भवड़ा)  ले साग भाजी के नाम  मन घलो सुरता रहय। येमा भागी ,पाला, फल, पेड़ ल बढ़ाय, बचाय, अउ तोड़ें ,बेचे के घलो जानकारी रहय। दिन के नाम घलो आज इतवार है, चूहे को बुखार है, कहिके सातो दिन ल रट डारत रेहेन। तिहार बार, खेती खार, हाट बाजार, सगा सोदर आना जाना, नाच गान, सब खेल के हिस्सा रहय। कतको हाना, पहेली घलो खेल खेल म याद रहय। छोट बड़े संग जुरियाय पारा मुहल्ला के संगी मन संग, कई किसम के खेल खेलन, सबके वर्णन कर पाना मुश्किल हे, सबे खेल कोई न कोई ज्ञान अउ शरीर के कसरत ले जुड़े रहय। पतंग उड़ाना, तुतरु बजाना, कागज संग माटी के कई किसम के चीज बनाना, हमर निर्माण क्रिया ल घलो दर्शाये। आज गाँव घलो शहर बनत जावत हे, कुछ कुछ गाँव ल छोड़ ताहन लगभग सबे गाँव के लइका मन  शहरी बनके ये सब खेल मेल ले दुरिहागे हे। गाँव म आज भी कुछ खेल के कल्पना कर  सकथन, फेर शहर नगर के लइका मन तो किताब कॉपी , मोबाइल टीवी म ब्यस्त हे। आज घलो मोर मन वो दिन ल याद करके उही बेरा म  खींचा जथे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Sunday 19 July 2020

बसंत के दूत-जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बसंत के दूत-जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

               पूस महीना जब धुँधरा,कोहरा अउ ठुठरत जाड़ ल गठियाके  जाय बर धरथे,तब माँगे महीना माँघ बसंती रंग के सृंगार करे पहुना बरोबर नाचत गावत  हबरथे।माँघ महीना म पुरवा सरसर सरसर गुनगुनाय ल धर लेथे।सुरुज नारायण घलो जइसे जइसे बेरा बाढ़त जाथे अपन तेज ल बढ़ायेल लगथे।जाड़ ल जावत देख चिरई -चिरगुन,जीव- जानवर  पेड़-पउधा,बाग-बगइचा अउ मनखे मनके मन मतंग बरोबर दया मया अउ सुख शांति के अगास म उडियाय बर लग जथे।खेत खार म उन्हारी,उतेरा जेमा चना,गहूँ, तिवरा, सरसो,मसूर,राहेर,अरसी के संगे संग बखरी बारी के धनिया,मेथी,गोभी,पॉलक अउ रंग रंग के साग भाजी पुरवइया हवा म ममहायेल लग जथे।तरिया, नँदिया,नरवा के पानी धीर लगाके लहरा मारत,रद्दा रेंगत मनखे ल तँउरे बर बलाथे त ऊँच ऊँच बर,पीपर,कउहा,सेम्हर,बम्हरी,साल,सरई,तेंदू,चार,आमा,
डुमर अउ कतको पेड़ मतंग होके नाचेल धर लेथे।बाग बगइचा म रंग रंग के फूल  तितली,भौरा के संगे संग मन भौरा ल घलो अपन तीर खिंचेल धर लेथे।अमरइया म कोयली के गाना,पेड़ तरी म बंधाये झूलना अउ पेड़ म झूलत झोत्था झोत्था मउर मन ल मोह लेथे।बोइर पेड़  म लटलट ले लदाये हरियर पिंवरी अउ लाल फर ल देख के बिना एकात ढेला मारे जिवरा नइ अघाय। हवा म झूलत कोकवानी अमली देख भला काखर मुँह म पानी नइ आय?गरती,तेंदू,चार ,महुवा,पिकरी,डूमर खावत कतको चिरई मन मनभर गीत गाथे।अउ बसंत के सुघ्घर दर्शन करावत गीत गाथे।

           माँघ तिथि पंचमी देवी सरस्वती के पूजा पाठ  के दिन होथे,ये दिन ले फागुन के गीत,झाँझ,मंजीरा गली गली चौरा चौरा म सुनायेल धर लेथे।बसंत ऋतु के स्वागत सत्कार म नाचा - गम्मत,मड़ई ,मेला,गीत कविता चारो मुड़ा गूँजेल लग जथे।बसंत ऋतु  म परसा,सेम्हर  लाली लाली फूल म लदाये बर लग जथे।बिरवा के पिवरी पात झरथे अउ नवा पान फोकियायेल लगथे।बसंत ऋतु सब ऋतु ले खास होथे,ये समय घर,बन,बारी,बखरी,खेत,खार,नदी,पहाड़ सबो चीज म खुशी सहज दिखथे।गावत झरना,चिरई चिरगुन,पुरवा अउ नाचत पेड़-पात,लइका सियान सबो जघा दिख जथे।सरसो,राहेर,चना ,गहूँ,अरसी, मसूर,लाख,लाखड़ी सबो रंग रंग के फूल धरके नाचे गाये कस लगथे।बसंत ऋतु म कोयली के गाना,नँगाड़ा के थाप,फाग अउ मेला मड़ई मन मोह लेथे।ये सब ला देख देख सबके मन  म खुशी दउड़त रथे।भुइयाँ कस दसना म रंग रंग के खेल खेलत लइका मन मतंग रथे।
          पहली मनखे मनके मन म बसन्त के वास होवय तरिया,नँदिया,डोली,डंगरी,घाट,बाट,बारी  बखरी,बाग बगइचा, खेत खार घर के दुवारी ले नजर आय।प्रकृति के कोरा म ठिहा ठउर रहय,चिरई- चिरगुन छानी परवा म नाचे गाये।घर के दुवारी म लाली दसमत,अँगना म तुलसी के चौरा,गमकत गोंदा, ममहावत दवना,घमाघम फुले अउ झूले मुनगा,बारी म सेमी नार,भाजी पाला,झूलत केरा खाम,अउ कतको मनमोहक छटा अइसने मन लुभावत रहय,आज ये दृश्य देखे बर नइ मिले।कँउवा  के कांव कांव  लटपट म सुनाथे,तब कोयली,मैना,सुवा,गौरैया के गीत ल छोड़ दे।
 फेर जब जब बसंत आथे अन्तस् म ये सब हिलोर लेय बर धर लेथे।बिन परसा फूल देखे घलो ओखर लाली रंग अन्तस् म अपन सुन्दराई ल बगरा देथे।।
            मनखे मन प्रकृति ले दिनों दिन दुरिहावत हावय।निर्माण के चक्कर म दिनों दिन उजाड़ सहज होगे हे।पेड़ पउधा,बारी बखरी,नंदिया तरिया,खेत खार सब म मनखे मन अपन स्वारथ के झंडा गाड़ देहे।उहाँ कहाँ कोयली,कहाँ पुरवइया, कहाँ अमरइया अउ काय बसंत?फेर आज कवि मन बसंत के दूत बरोबर कोयली कस गावत गावत अपन लेखनी म नदिया,तरिया ,झरना,डोंगरी,पहाड़,सरसो,चना, गहूँ,डूमर,अमरइया,सुवा,मैना,परसा,तेंदू,चार,चिरौंजी अउ जम्मो बसंत के सुघराई ल उकेरत हे।जेला पढ़ सुन के बसंत अन्तस म बस जावत हे।कोन जन बाँचे खोंचे अमरइया म अउ के दिन कोयली गाही,अउ बसंत के सन्देश दे पाही।आज तो बड़े बड़े महल अउ फोर लेन डहर सहज दिख जथे फेर सरसो,अरसी,लाख,लाखड़ी,चना,गहूँ, मसूर, धनिया ,परसा,डूमर,कदम्ब,पीपर,अउ प्रकृति के कतको सनमोल सुघराई खोजे म घलो नइ मिले।आज मनखे अपन सुख सुविधा बर प्रकृति के उजाड़ करत हे।कोनो मौसम बखत या फेर बार होय सब एके बरोबर लगथे।का माँघ अउ का फागुन।वइसे तो बसन्त ऋतु म कुहकइया कारी कोयली बसन्त के दूत आय फेर आज ओखरो संख्या धीर लगाके कमती होवत जावत हे।आज बसन्त के दूत कोयली नही कलमकार कवि मन आय ,जेन अपन गीत कविता म बसंत के सुघ्घर वर्णन करथे।अउ बसंत ऋतु के जम्मो सुघराई ल सबके अन्तस् म पहुँचाथे।बसंत आज सिर्फ  कवि के गीत कविता म सुरक्षित हे।बसंती छटा अउ रंग रंग के रंग ल समेटे कवि कोयल कस जब जब बसंत आही तब तब बसंत के दूत बनके जम्मो बसन्ती सुघराई ल गा गा के सुनाही अउ सबके अन्तस् म आनन्द भरही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Friday 17 July 2020

##$सावन महीना(गीत)###

##$सावन महीना(गीत)###

सावन आथे त मन मा,उमंग भर जाथे।
हरियर हरियर सबो तीर,रंग भर जाथे।

बादर  ले  झरथे,रिमझिम  पानी।
पुरवाही गाथे, हरसथे जिनगानी।
होरा जोंधरी,अंगाकर अउ चीला।
करथे झड़ी त,खाथे  माई  पिला।
खुलकूद लइका मन,मतंग घर जाथे।
सावन आथे त मन मा-------------।

भर जाथे तरिया,नँदिया डबरा डोली।
मन ला लुभाथे,झिंगरा मेचका बोली।
खेती किसानी,अड़बड़ माते रहिथे।
पुरवाही घलो ,मतंग  होके   बहिथे।
हँसी खुसी के जिया मा,तरंग भर जाथे।
सावन आथे त मन मा,---------------।

होथे जी हरेली  ले,मुहतुर तिहार।
सावन पुन्नी आथे,राखी धर प्यार।
आजादी के दिन, तिरंगा फहरथे।
भोले बाबा सबके,पीरा  ल हरथे।
भक्ति म भोला के सरी,अंग भर जाथे।
सावन आथे त मन मा--------------।

चिरई चिरगुन चरथे,भींग भींग चारा।
चलथे  पुरवाही, हलथे  पाना  डारा।
छत्ता  खुमरी  मोरा,माड़े रइथे दुवारी।
सावन महीना के हे,महिमा बड़ भारी।
बस  छाथे मया हर,हर जंग हर जाथे।
सावन आथे त मन मा--------------।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Monday 1 June 2020

विविध कविता खैरझिटिया

Number of notes: 184

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# 184
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Date: 2020-06-01
Subject: 

कुकुभ छंद(गीत)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

तैं सपना मा जबजब आथस,झटले रतिहा कट जाथे।
तोर मया ला पाके मोरे,संसो फिकर ह हट जाथे।।

बोल कोयली कस गुरतुर हे,भर देथे मन मा आसा।
आघू पाछू होवत रहिथौं,तोर मया जइसे लासा।।
लहरावय जब तोर केंस हा,कारी बदरी छँट जाथे।
तोर मया ला पाके मोरे,संसो फिकर ह हट जाथे।।

मुचमुच मुसकी मया बढ़ाथे,तोर रेंगना मन भाथे।
देखे बिना जिया नइ माने,सुरता रहिरहि के आथे।
हमर मया ला देख जलइया,रद्दा चलत अपट जाथे।
तोर मया ला पाके मोरे,संसो फिकर ह हट जाथे।।

खोपा पारे पाटी बाँधे, पहिरे लुगरा लाली के।
कनिहा लचकावत जब चलथस,झरथे फुलवा डाली के।
हमर दुनो के नैन मिले ता, सुख छाथे दुख घट जाथे।
तोर मया ला पाके मोरे,संसो फिकर ह हट जाथे।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 183
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Date: 2020-06-01
Subject: 

कइसे,मन चंगा त कठौती म गंगा?

बुढ़वा बिसावत हे, चश्मा अउ टोपी।
खुद ल समझ कान्हा,खोजत हे गोपी।
मुँह म दाँत नइहे,पेट मा आँत नइहे।
जी निकले परत हे, अंतस मा अमात नइहे।
जिद के शेषनांग धर,मथत हे समुंदर ला।
चिड़िया चुग्गे खेत,त खोजत हे फूल फर ला।
महल बनावत हे, दीया तरी पतंगा।
कइसे,मन चंगा त कठौती म गंगा।।

जेखर सइत्ता नइ हे,ते सत्यवान हे।
गज भर ठिहा नही,ते दीवान हे।
अँगठा छाप अरोये हे,डिग्री के माला।
कंगला के घर लगे हे तालाच ताला।
अमीर अँगरी अउ थारी चाँटत हे।
देश चलइय्या ढेरा आँटत हे।
अमरबेल पेड़ ऊपर,उपकार करत हे।
बेत के पवधा घलो,फूलत फलत हे।
परोपकारी डारत हे,पर काज म अड़ंगा।
कइसे,मन चंगा त कठौती म गंगा।।

ददा के न दाई के,ते नारा रटे भाई भाई के।
तिल जाने न ताड़ जाने,ते पहाड़ बनाय राई के।
चना के झाड़ चढ़े,बने हे जउन बड़े।
तेहर सीना ताने,चले विश्व युद्ध लड़े।
जेखर मन ह बोहे हे,दुर्गुण ल गदहा सरी।
ते प्रवर्चन झाड़त हे, बइठे पीपर तरी।
भले तंग ढ़काय हे, फेर मन हे नंगा।
कइसे,मन चंगा त कठौती म गंगा।।

चाहे नही जेहर,करम के आगी म तपना।
ते सुतत जागत देखत हे,बने बने के सपना।
जघा जघा अपन मूर्ति बनही कहिके नाँचत हे।
अपने मुख ले अपने,गुण ज्ञान ल बाँचत हे।
जेला परवाह नइहे,दूसर के घेंच के।
ते साधु बनत हे,दया मया सत ल बेंच के।
हाथ हला,बलात हे बदमाश बिल्ला रंगा।
कइसे,मन चंगा त कठौती म गंगा।।

होते साँट लइका जवान नइ होय।
वो का काटही जे कुछु नइ बोय।
बम्हरी के रुख मा,आमा नइ फरे।
कच्चा लकड़ी बिन सुखाय नइ बरे।
थूके थूक म बरा चुरे नही।
हदरहा ल कुछु चीज पुरे नही।
कहाँ के खजाना लुटा पाही भीखमंगा।
मरहा मेचका का मचाही दंगा।।
कइसे,मन चंगा त कठौती म गंगा।।

समय म रहिके काम करेल लगही।
मन म मया मीत सत भरेल लगही।
छुटही झोल झमेला,लोभ मोह पचरंगा।
तभे होही मन चंगा अउ कठौती म गंगा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 182
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Date: 2020-05-31
Subject: 

मैं बाजा अँव का,

बाई कइथे गगरी ल कचार दुहूँ मुड़ी मा।
सियान मन गिरियावत रहिथे,गाँव के गुड़ी मा।
थोर थार पीथँव,फेर हौस हवास मा रिथँव।
सब झन आँखी गड़ाके देखथे, 
का मैं कोनो राजा अँव का।
जे नही ते बजाथो,मैं बाजा अँव का।



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# 181
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Date: 2020-05-31
Subject: 

अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी

तैं सरग ले सुघ्घर,अउ मैं नरक के द्वार।
तै ठाहिल पटपर भाँठा,मैं चिखला कोठार।
तोर जिनगी ताजमहल कस उज्जर,
अउ मोर जिनगी, करिया जेल गोरी।
अइसने म कइसे होही,
तोर अउ मोर मेल गोरी।

छप्पन भोग माढ़े हवै,तोर चारो कोती।
चाबत हौं मैं नानकुन,सुख्खा जरहा रोटी।
खीर मेवा पकवान कस,तैं करे भूख के नास।
मैं हड़िया मा लटके हौं, बने चिबरी भात।
तैं हवा संग उड़ागेस,
अउ मैं बढ़त हौं जिनगी ल ढँकेल गोरी।
अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी

आगर इत्तर माहुर मोहर,सेंट के भरमार के।
चंपा चमेली मोगरा कस,महके महार महार तैं।
तन धोवा निरमल हो जाथे, वो गंगा के धार तैं।
मोर झन पूछ ठिकाना,मैं खजवइय्या तेल गोरी।
अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।

तैं कहाँ सरग के परी,उड़े अगास मा पंख लगाके।
मैं रेंगत हौं उलंड-घोलंड के,चिखला पानी मा सनाके।
संगमरमर के तैं ईमारत,तोर नाम जमाना मा छागे।
ओदरहा मोर ठौर ठिहा मा,नइ आये कोनो भगाके।
तै छाये क्रिकेट हाँकी कस,
मैं लुकाछुपउल के खेल गोरी।
अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।।

तैं कहाँ मथुरा अउ काँसी, मैं हरौं फाँसी के दासी।
तिहीं खींचे अपन करम के रेखा,मोर हवै बिगड़हा राशि।
चंपा चमेली कमल कुमुदिनी,गोंदा कस तैं गमके।
इती उती उड़ात हौं, मैं फूल बने बेसरम के।
तै कम्प्यूटर के सीपीयू,मैं सस्तहा सेल गोरी।
अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी

तैं कहाँ पिंकी अउ रिंकी,मैं बुधारू मंगलू।
तैं जनम के मालामाल,मैं जनमजात कंगलू।
मैं हँसिया अउ तुतारी,तैं कहाँ बारूद के गोला।
नवा डिजाइन के बैग तैं, अउ मैं चिरहा झोला।
मैं मरहा मेचका,अउ तैं मछरी व्हेल गोरी।
अइसने म कइसे होही,तोर अउ मोर मेल गोरी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 180
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Date: 2020-05-31
Subject: 

कुंडलियाँ(विश्वास)

दुख फलते फुलते वहीं, जहाँ नहीं विश्वास।
आशा और विश्वास बिन,मानव भ्रम का दास।
मानव भ्रम का दास, बने फिर दर-दर भटके।
करें गलत हर काम, सही रस्ते से हटके।
जहाँ बसे विश्वास,वहाँ है पथ साहस सुख।
बिन इसके इंसान, धैर्य खो पायेगा दुख।
खैरझिटिया



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# 179
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Date: 2020-05-30
Subject: 

🌹 *संचालक सूची*🌹

*आज के कविगोष्ठी के संचालक-*

*1 - श्रीमती सुधा शर्मा*
*2 - सरस्वती चौहान*

*संचालक  संगी के अनुपस्थित म कोनो भी साधक संचालन कर सकथे, नही  त क्रमानुसार अगला साधक के संचालन के जिम्मेदारी* 

*अंग्रेजी अल्फाबेट के अनुसार साधक मन के सूची*

सर्व श्री /श्रीमती/कु ---
अजय अमृतांशु
आशा आजाद
आशा देशमुख
अशोक धीवर जलक्षत्री
अश्वनी कोसरे
अमित टण्डन
अनिल सलाम
बोधन राम निषाद 
बृजलाल दावना
भागवत साहू
चित्रा श्रीवास
चोवाराम वर्मा"बादल"
दिलीप कुमार वर्मा
द्वारिका प्रसाद लहरे
देव भुंईसारवा
धनेश्वरी सोनी
दुर्गाशंकर इजारदार
धनराज साहू
दीपक निषाद
गजानंद पात्रे सत्यबोध
गुमान प्रसाद साहू
ज्ञानुदास मानिकपुरी
हेमलाल साहू
जितेंद्र वर्मा खैरझिटिया
जगदीश हीरा साहू 
जुगेश जी
कमलेश वर्मा
केंवरा यदु मीरा
ज्योति गवेल
ज्वाला कश्यप
कुलदीप सिन्हा
केंवरा यदु मीरा
लीलेश्वर देवांगन
लालेश्वर साहू
महेंद्र बघेल
महेंद्र देवांगन माटी
मनीराम साहू मितान
मीता अग्रवाल
मोहनलाल वर्मा
मथुरा प्रसाद वर्मा
मिलन मिलरिहा
मनोज वर्मा
नेमेंद्र कुमार गजेंद्र
नीलम जायसवाल
पुरुषोत्तम ठेठवार
पोखन लाल जायसवाल
राधेश्याम पटेल
राजेश निषाद
राजकुमार बघेल
रामकली कारे
रामकुमार चन्द्रवंशी
संतोष कुमार साहू
सरस्वती चौहान
सुकमोती चौहान
सुधा शर्मा
सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
सुनीता कुर्रे
सुरेश पैगवार
शशि साहू
श्लेष चंद्राकर
शोभा मोहन श्रीवास्तव
शुचि भवि
तुलेश्वरी धुरंधर
तेजराम नायक
उमाकांत टैगोर
वासंती वर्मा
विरेन्द्र कुमार साहू 
विजेंद्र वर्मा

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

*आज(शनिवार) संझा 6 बजे ले छंदमय काव्य गोष्ठी सरलग दू दिन तक जारी रही*



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# 178
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Date: 2020-05-30
Subject: 

बागीश्वरी सवैया

हवा हा नचावै बिछे घाँस नाँचे धरा के हरा रंग हे ओनहा।
खजाना बढ़ावै जमाना उगावै गहूँ धान सम्पत्ति ए सोनहा।
धरा धाम सेवा करे कोन आही हटाही अँधेरा भला कोन हा।
बुता काम आथे बने बेर लाथे कभू होय ना भाग हा रोनहा।

खैरझिटिया



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# 177
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Date: 2020-05-28
Subject: 

*आज नवा छंद सीखबों*

*चकोर सवैया*
विधान- 7 घाँव रगण अउ अंत म गुरु लघु।
या
7×211+21

उदाहरण-
खून ल छानय ताकत लानय बेल बिके जब बाढ़य घाम ।
लू लग जावय जी घबरावय बेल पना तब आवय काम।
डायरिया अउ दस्त मिटावय कब्ज के होवय काम तमाम।
शर्बत बेल के पीयव पेल के ठंढक दै पहुँचाय अराम।

खैरझिटिया



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# 176
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Date: 2020-05-27
Subject: 

सार छंद-छँइहाँ

किम्मत कतका हवै छाँव के,तभे समझ मा आथे।
घाम घरी जब सुरुज देव हा,आगी असन जनाथे।

गरम तवा कस धरती लगथे,सुरुज आग के गोला।
जीव जंतु अउ मनखे तनखे,जरथे सबके चोला।।
तरतर तरतर झरे पछीना,रहिरहि गला सुखाथे।
घाम घरी जब सुरुज देव हा,आगी असन जनाथे।

गरमे गरम हवा हा चलथे,जलथे भुइयाँ भारी।
जेठ महीना जरे चटाचट, टघले महल अटारी।
पेड़ तरी के जुड़ छँइहाँ मा,अंतस घलो हिताथे।
घाम घरी जब सुरुज देव हा,आगी असन जनाथे।

मनखे मन बर ठिहा ठउर हे,जीव जंतु बर का हे।
तरिया नदिया पेड़ पात हा,उँखर एक थेभा हे।
ठाढ़ घाम मा टघलत काया, छाँव देख हरियाथे।
घाम घरी जब सुरुज देव हा,आगी असन जनाथे।

पेड़ तरी के घर जुड़ रहिथे,पेड़ तरी सुरतालौ।
हरे पेड़ पवधा हा जिनगी,मनभर पेड़ लगालौ।
पानी पवन हवै पवधा ले,खुशी इही बरसाथे।
घाम घरी जब सुरुज देव हा,आगी असन जनाथे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा



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# 175
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Date: 2020-05-26
Subject: 

शरबत बेल के



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# 174
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Date: 2020-05-26
Subject: 

*लाकडाउन अउ ऑनलाइन कविता पाठ*

"छंद के छ" छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के समृद्धि बर अनवरत महिनत करत हे।2016 ले सतत रूप ले चलत ये आंदोलन आज कोनो परिचय के मोहताज नइहे।आज छंदबद्ध कविता के बौछार सहज देखे बर मिलत हे,चाहे छंद परिवार के साधक होय या कोनो अन्य कवि होय,छंदबद्ध रचना करइय्या कवि मनके संख्या बढ़ गेहे।आज ले चार बछर पहिली *हिंदी म घलो छत्तीसगढ़ म छंदबद्ध रचना के ओतका चलन अउ चुलुक नइ रिहिस,फेर जब छंद परिवार छंद म रचना करेल लगिस त हिंदी के रचनाकार मन के ध्यान घलो,छंद ऊपर गिस अउ उहू मन लिखेल लगिस।आज सोसल मीडिया म छंद बरसा देखे जा सकत हे।येमा कोनो दू मत नइहे कि छंद के छ  साहित्यकार मन ल छंद कोती आकर्षित करिस*। गुरुदेव अरुण निगम जी के परिकल्पना आज बरोबर फलीभूत होवत हे,हमर महतारी भाषा साहित्य छंदबद्ध होके मनमोहक अउ सशक्त होवत हे,पोठ होवत हे। आज हमर भाषा साहित्य ऊपर अन्य भाषा वाले साहित्यकार,पाठक मनके घलो नजर हे, लोगन मन पढ़त हे अउ बड़ाई घलो करत हे, कुछ मन चिढ़त घलो हे, फेर हमला का करना हे। अपन काम करत सदा आघू बढ़ना हे।
             आज पूरा विश्व कोरोना के घोर संकट ले गुजरात हे, मनखे मन घर म धँधा गेहे,एक दूसर ले मेल मिलाप नइ हो पावत हे, त अइसन म कोनो साहित्यिक आयोजन के परिकल्पना करना भी मुश्किल हे।त कवि मन का करे? लिखइया कवि मन पूरा रम के कलम चलावत हे,रोज सोसल मीडिया म एक ले बढ़के एक पोस्ट आवत हे। *अइसन म मंचीय कवि मन कइसे चुप बइठे,त उहू मन सोसल मीडिया के भरसक उपयोग करे बर लग गेहे।* आज ऑनलाइन कविता पाठ जोर शोर ले चलत हे।जम्मो झन अपन कविता ल आडियो,वीडियो रूप म सोसल मीडिया म सम्प्रेषित करत हे।कई बड़े बड़े साहित्यिक संस्था अइसन ऑनलाइन कवि सम्मेलन,अउ गोष्ठी के लाभ उठावत हे।कवि मन लाकडाऊन म घलो रच के लिखत हे, अउ गावत घलो हे। फेर *जब कोनो एक्का दुक्का (छत्तीसगढ़ ही नही बल्कि पूरा भारत) ऑनलाइन कवि गोष्ठी के प्रचलन रिहिस,तब मार्च 2016 म,होली के पावन अवसर म छंद परिवार ऑनलाइन कवि गोष्ठी के आयोजन करिस।जेमा सत्र 3 तक के साधक मन भाग ले रिहिन।वो दिन ले हर शनिवार अउ रविवार के छंद के छ के छंदमय काव्य गोष्ठी  लगातार चलत हे।कभू कभू तो कोनो  परब विशेष म घलो कवि गोष्ठी के आयोजन होवत रहिथे।सत्र 1 से 3 तक के साधक( लगभग 20,25)मन ले शुरू होय ये गोष्ठी  म आज लगभग 70 ले 80 साधक मन हर शनिवार अउ रविवार के भाग लेथे।इही गोष्ठी के दौरान एक समय हमर बीच पहुना मन घलो पधारत रिहिन,जेमा कविता वासनिक जी,रजनीश झाँझी जी,दिनेश  गौतम जी,बलदाऊ साहू जी,लतीफ खान जी,सुधीर शर्मा जी,माणिकविश्वकर्मा नवरंग जी के अलावा कई बड़े साहित्यकार अउ कलाकार मनके नाम शामिल हे।उहू मन छंद परिवार के अइसन उदिम ले भारी खुश होइन,अउ रंग रंग के छंद के संगे संग सुमधुर राग ल सुनके खूब प्रशंसा करिन*। ये आनलाइन गोष्ठी के एके उद्देश्य हे, *लेखन के साथ साथ साधक मन ,छंद विशेष के धुन जाने,अउ गायन म घलो पारंगत होवय* ।आज कवि मन लाकडाउन म जम के सोसल मंच म,भड़ास निकालत हे, रोज नवा नवा आडियो,वीडियो सुने देखे बर मिलत हे, जे बड़ खुशी के बात हे। फेर छंद परिवार तो अइसन गोष्ठी 2016 ले आयोजित करत हे,जेमा कोनो 10,5 कवि नइ होय, बल्कि 60,65 कवि मन छंदबद्ध कविता पढ़थे।अउ सबले बड़े बात हर हप्ता दू कवि मनके संचालक करे के पारी घलो होथे, जेमा हर कवि ल संचालन के मौका मिलथे,जेखर ले  सबे कवि मनमें संचालन करे के साहस बढ़थे। छंद के छ परिवार महतारी भाषा के मान सम्मान बर पूर्णतः समर्पित हे, लेखन अउ गायन दोनो दिशा म आनलाइन कक्षा,अउ गोष्ठी के माध्यम ले सतत उदिम करत हे।आज छंद परिवार के 1 से 12 तक के सत्र संचालित हे।परम् पूज्य बड़े गुरुदेव अउ जम्मो वरिष्ट साधक (गुरु) मन बधाई के पात्र हे,जिंखर उदिम ले *सीखे अउ सिखाय* के ये आंदोलन अनवरत चलत हे।
 
  जय जोहार।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
साधक-सत्र-3



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# 173
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Date: 2020-05-25
Subject: 

गीतिका छंद-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

तन अपन तैं झन तपा मद मोह माया मा बँधा।
मिल जथे दाना सहज कहि पिंजरा मा झन धँधा।
वो सुवा के बात अलगे जे छुवे आगास ला।
का हिता पाबे बता अंतस दबाके के आस ला।

झन अधर्मी बन कभू कर दान दक्षिणा धर धरम।
नींद खातिर हे जरूरी शांति सुख अउ सत करम।
नींद जब आये नही तब रात हा बिरथा हवै।
बोल आवै नइ समझ तब बात हा बिरथा हवै।

खोद झन खाई कभू खुद रे तिहीं जाबे झपा।
हदरही झन कर कभू बाँटा दुसर के झन नपा।
तन रहे ना धन रहे तैं फोकटे झन कर गरब।
चार दिन दुख साथ रइही चार दिन रइही परब।

सोंच ले सब काम बनथे अउ बिगड़थे सोंच ले।
सोंच ला रख ले सहीं मन मा मया सत खोंच ले।
जीव ला जीते जियत जाने नही संसार हा।
देवता हो जाय फोटू मा चढ़े जब हार हा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 172
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Date: 2020-05-24
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतकारिब मुसम्मन मकसुर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फऊलुन फ़अल
अरकान-122 122 122 12

कसम खाके रानी तैं आये नही।
बिना तोर जिनगी पहाये नही।।

नयम मा बसे तोर सुरता रथे।
भुलाये घलो तो भुलाये नही।

समझ चेंदरा तैं चला झन छुरी।
चिराये जिया ता कपाये नही।।

सुहाये नही अन्न पानी बही।
दरस बिन जिया मोर अघाये नही।

रहूँ जोहते बाट सातों जनम।
मया मोर कभ्भू खियाये नही।

चिन्हारी मया के हरे गोदना।
जियत अउ मरत जे मिटाये नही।

 सबे दिन बरे रूप चमचम गजब।
बता चंदा कइसे लजाये नही।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 171
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Date: 2020-05-23
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतकारिब मुसम्मन मकसुर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फऊलुन फ़अल
अरकान-122 122 122 12

उझारत खनत बेर लागे नही।
बुराई गनत बेर लागे नही।।

गरब मा कहूँ चूर राजा रथे।
भिखारी बनत बेर लागे नही।

तने लोहा हर ठोंके अउ पीटे मा।
रबड़ ला तनत बेर लागे नही।।

मिले साधु संगत सहज मा कहाँ।
अधम मा सनत बेर लागे नही।।

मया मीत सत बर लगे दिन अबड़।
लड़ाई ठनत बेर लागे नही।।

बड़े होय तुरते कहाँ बोकरा।
बली बर हनत बेर लागे नही।

सुखी जिंदगी के कठिन सूत्र हे।
विपत मा छनत बेर लागे नही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 170
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Date: 2020-05-23
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहरे मुतकारिब मुसम्मन मकसुर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फऊलुन फ़अल
अरकान-122 122 122 12

बिना काम के जीत होही कहाँ।
बिना साज संगीत होही कहाँ।।

जिया हे कहूँ काठ पथरा असन।
उहाँ तब मया मीत होही कहाँ।।

करें सब करम छोड़ के सत धरम।
उहाँ कायदा रीत होही कहाँ।।

बरसही नही घन अँषड़हूँ कहूँ।
भला तब बता शीत होही कहाँ।

जकड़ कुर्सी नेता पहाही समय।
दुबारा मनोनीत होही कहाँ।।

बिना खाय पीये भला काखरो।
बता जिनगी व्यतीत होही कहाँ।

रही लोभ लालच सदा संग मा।
दरद दुःख डर चीत होही कहाँ।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा



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# 169
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Date: 2020-05-23
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बहरे मुतकारिब मुसम्मन मकसुर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फऊलुन फ़अल
अरकान-122 122 122 12

रुलाये उही हा हँसाये उही।
फँसाये उही हा छुड़ाये उही।

जमाना के डोंगा खजाना हरे।
गिराये उही हा उठाये उही।।

अधर्मी मनुष मन सबे दिन अँड़े।
जे नेकी करे मुड़ नवाये उही।

खचाखच खजाना भरे जेखरे।
बने लालची धन नपाये उही।

अपन तन के संसो चिटिक नइ करे।
दुसर बर पछीना गलाये उही।।

मया मीत राखे धरा संग मा।
किसानी करे सोन उगाये उही।

दरद भूख के जानथे जेन हा।
भुखाये ल भोजन कराये उही।

फिकर कल के छोड़े जिये आज मा।
बने जिंदगानी पहाये उही।।

भरे आधा गगरी असन जौन हे।
दिखावा करे बर सधाये उही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 168
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Date: 2020-05-20
Subject: 

चोपाई छंद-बेसरम

*उगथे पवधा बेसरम, तरिया डबरी तीर।*
*गुण ला मैं बतात हौं, सुनले धरके धीर।*

बँगला पान बरोबर पाना। हाल हवा मा गावै गाना।
हाँसे मुचमुच फूल गुलाबी। ठाटबाट ले लगे नवाबी।

नाम बेसरम थेथर आवै। कहूँ मेर गुलबसी कहावै। 
समझ बेहया मनुष न भावै। नइ तो एखर बाग बनावै।

अपने दम ये जागे बाढ़े। सब सीजन मा रहिथे ठाढ़े।
एखर नाम मा हावै गारी। हमर राज मा अड़बड़ भारी।

खेत खार डबरी अउ परिया। एखर घर ए नरवा तरिया।
होथे झुँझकुर एखर झाड़ी। बाढ़े रहिथे आड़ा आड़ी।।

ये गरीब के बाँस कहावै। एखर थेभा बेर पहावै।
गाँथ बाँध के आड़ा आड़ी। रूँधय घर बन खेती बाड़ी।

पाठ पठउहाँ पीटे भदरी। बना खोंधरा भैया बदरी।
टट्टा राचर रुँधना बनथे। जाने ते एखर गुण गनथे।

गोल गोल फर भँवरा जइसे। लइका मन खेले नइ कइसे।
एखर लउठी गजब काम के। बरे चूल मा सुबे शाम के।

जइसे उपयोगी ए घर मा। तइसे फोड़ा फुंसी जर मा।
एखर पान भगाथे पीरा। पीस लगाये मरथे कीरा।

दाद खाज खजरी बीमारी। मिटे दूध मा एक्केदारी।
सावचेत जे करे मुखारी। भागे पायरिया बीमारी।

चाबे बिच्छी बड़ अगियाये। पान बेसरम जलन मिटाये।
धीरे धीरे हरे जहर जर। पत्ता पीस लगाले एखर।

उबके हे तन मा कसटूटी। तभो काम आवै ये बूटी।
दूध चुँहाये मा झट माड़े। घावे गोंदर पपड़ी छाड़े।

सरसो तेल मिलाके पाना। पीस लगाके सुजन भगाना।
लासा असन दूध हा चटके। आँख कान कोती झन छटके।

सुघर एखरो फोटू आथे। कुकुर कोलिहा इँहे लुकाथे।
एक जरी ले होय हजारो। कम होवय एखरो अब आरो।

भले बेसरम नाम कहाये। तभो काम येहर बड़ आये।
बेसरम ल जब पड़े बेसरम। आय होश अउ आँख बरे झम।

काम नीच हे जे मनखे के। वोला कोसे गारी देके।
लाज शरम ला जौन भुलाये। उही बेसरम मनुष कहाये।

काम बेसरम आवै कतको। फेर मनुष मन करे न अतको।
बिरथा हावै तब ये गारी। कहाँ मनुष मा हे खुददारी।।

पवधा मरे बढ़े मनखे मन। हवै बेसरम जइसे ते मन।
इती उती उपजत हे भारी। करत हवै नित कारज कारी।

कहे बेसरम मनखे मन ला। झन गरियावै मोरे तन।
अपन पटन्तर देथव मोला। हवै मोर जइसे का चोला।

*मनुष बेसरम होय ता, कुछु काम नइ आय।*
*हवै बेसरम गुण गजब, लिख जीतेन्द्र लजाय।*

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 167
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Date: 2020-05-18
Subject: 

कुंडलियाँ

भटके भोजन के लिए, हो करके भयभीत।
 भूख भगाये क्या भला, जग की झूठी रीत।
 जग की झूठी रीत, पेट भर पाये कैसे।
कामगार मजदूर ,कमाये खाये कैसे ।
करें मेहनत खूब, अधर में फिर भी लटके।
हो करके मजबूर , जानवर जैसे भटके।

खैरझिटिया


कुंडलियाँ-पलायन

दाना पानी के लिये, जो छोड़े घर द्वार।
दर्द पलायन का वही,बतलायेंगे यार।
बतलायेंगे यार,काटते दिन है कैसे।
आफत नही न और,पलायन के दुख जैसे।
होकर के मजबूर,छोड़ते ठौर ठिकाना।
जा करके परदेश,जुटाते है कुछ दाना।

खैरझिटिया

कुंडलियाँ-दर्पण

टुकड़ा है ये काँच का, घर घर शोभा पाय।
झूठ कहाँ दर्पण कहे,जस को तस दिखलाय।
जस को तस दिखलाय,देख लो खुद को इसमें।
कहने को सच बात, आज हिम्मत है किसमें।
दर्पण रोज निहार,सजाये सब निज मुखड़ा।
तजते नही स्वभाव,काँच का हर इक टुकड़ा।

खैरझिटिया



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# 166
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Date: 2020-05-16
Subject: 

रोला छंद-मजदूर

सबके दुख ला जोर, चलत हे काम कमैया।
सबला पार लगाय, तेखरे  बूड़य नैया।।
घर दुवार ला छोड़, बनाइस पर के घर ला।
तेखर कोन भगाय, भूख दुख डर अउ जर ला।

जागे कइसे भाग, भरोसा मा जाँगर के।
ठिहा बने ना ठौर, सहारा ना नाँगर के।।
देवै देख हँकाल, सबे झन देके गारी।
सबले बड़का रोग,गरीबी के बीमारी।।

थोर थोर मा रोष, करे मालिक मुंसी मन।
काटत रहिथे रोज, दरद दुख डर मा जीवन।
उही बढ़ा के भीड़, उही चपकावै पग मा।
ठिहा ओखरे बार, करे उजियारा जग मा।

पाले बर परिवार, नाचथे बने बेंदरा।
उनला दे अलगाय, बदन के फटे चेंदरा।
जिये धरे नित धीर, कभू तो सुख घर आही।
फेर बतावव कोन, कतिक पीढ़ी खट जाही।

खावय दाना नाँप,देख के पैसा खरचय।
ओखर कर का चीज,कहाँ अउ कोनो परिचय।
पैसा धरके हाथ, जमाना रँउदे उनला।
कइसे कोन बचाय, गहूँ के भीतर घुन ला।

कबे मनुष ला काय, हवा पानी नइ छोड़े।
ताप बाढ़ भूकंप, हौंसला निसदिन तोड़ें।
बिजुरी हवा गरेर, महामारी हा मारे।
गतर चलावै तौन, अपन जिनगानी हारे।

संसो फिकर ला छोड़, हकन के जउन कमाये।
तेखर बिरथा भाग, हाय कइसन दिन आये।
बली चढ़त हे देख, बोकरा कस नित चोला।
आँखी नम हो जाय,लिखत ले अइसन रोला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 165
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Date: 2020-05-15
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम 
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 

अरकान-122 122 122 122  

रही मन मढ़ाना त तोला बलाहूँ।
ठिहा पड़ही छाना त तोला बलाहूँ।

अकेल्ला चबाहूँ चना कस धरे धन।
सिराही खजाना त तोला बलाहूँ।

सेज सेज गद्दी म सोहूँ सनन भर।
चिराही सिराना त तोला बलाहूँ।

मयारू ले करहूँ मया मैं कलेचुप।
कुदाही फलाना त तोला बलाहूँ।

रथे खैरझिटिया जिया तीर तोरे।
जलाही जमाना त तोला बलाहूँ।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 164
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Date: 2020-05-14
Subject: 

बस मैं मेरे से बना,ये कैसा परिवार।
जुड़े रहे बन मतलबी,फिर भागे पंख पसार।
मतलब रहते तक जुड़े,फिर आये दरार।



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# 163
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Date: 2020-05-14
Subject: 

चकोर सवैया

हाथ हला के हवा सँग मा हरसावत झूमय पीपर पात।
पात घमाघम डार चमाचम पेड़ तरी नइ धूप हे आत।
सूरज झाँकय पान हटा दिन लागत हे जस पूनम रात।
गावत गीत चले पुरवा ह उमंग मया उर मा उपजात।

खैरझिटिया



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# 162
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Date: 2020-05-14
Subject: 

कविता लिखे के पहली

1,का कवि *खुद ल सम्बोधित करत हे*, यदि हाँ, त-

* मैं,मोर,मोला,मैहर(एकवचन म)अउ हमर,(बहुवचन म),हो सकत हे।

*तीनो काल,*उत्तम पुरुष*(स्वयं उत्तम पुरुष बर होथे) म,मैं देखत हौं/मैं देख डरेंव या देखेंव/मैं देखहूँ। अइसने बहुवचन बनही

2,यदि कोई *सेकंड पर्सन* ल सम्बोधित करत हन त-
*तँय,तोर,तोला,तँयहर (एकवचन म) तुमन,तुम्हर,(बहुवचन में)
* तीनो काल *मध्यम पुरुष*(स्वयं के अलावा कोई सेकंड पर्सन मध्यम पुरूष होही)

तँय देखत हस/तँय देखेस/तँय देखबे(एकवचन)
तुमन देखत हव/तुमन देख डरेव/तुमन देखहू(बहुवचन)

3,यदि रचना म कवि स्वयं अउ सेंकड पर्सन के अलावा कोनो *तीसर पर्सन* के बारे म बात करत हे या वोला सम्बोधित करत हे, त-

वो,वोहर,ओखर,ओमन,उनला,हो सकत हे, तब पुरुष *अन्य पुरुष*रही।

तीनो काल(अन्य पुरुष म)
ओहर देखत हे/ओहर देखिस/ओहर देखही(एकवचन)

ओमन देखत हे/ओमन देखिस/ओमन देखही(बहुवचन)

*एखर आलावा होथे लिंग,जेमा हमर भाखा म कुछ छूट हे, तभो उचित प्रयोग जरूरी रही,जइसे- बेलबेलहा टूटा, बेलबेलही टूरी*

*रचना लिखत बेरा कर्ता, कर्म अउ कारक चिन्ह के घलो उचित प्रयोग जरूरी हे, कर्ता कोन हे(काखर उप्पर बात कहे जात हे), का कर्म हे अउ कारक चिन्ह  घलो बहुते जरूरी हे, बिना कारक या विभक्ति के वाक्य पूर्ण नइ होय)*

बुधारू दारू बर भट्ठी कोती गिस/जावत हे/जाही

येमा-
बुधारू- *कर्ता*
जाना- *क्रिया* 
बर- *विभक्ति या कारक* चिन्ह(एखरो सात प्रकार हे)

दारू- *कर्म कारक* भट्ठी  *अन्य शब्द होही* होही।

रचना लिखत बेरा भाषा के शुद्धता अउ मान्य रूप के प्रयोग करना चाही।नकारात्मक अउ गलत प्रभाव छोड़े अइसनो रचना साहित्य के श्रेणी म नइ आवय।

महूँ गुरुदेव के आशीष अउ अन्य गुरु मनके सानिध्य म सीखत हँव, गलती स्वभाविक हे, जाने के बाद घलो,फेर एक दू बेर खुदे पढ़े म समझ आ जथे।

*रचना उही जे खुद ल पूर्णतः संतुष्ट करे सबो विधान म*



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# 161
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Date: 2020-05-12
Subject: 

आगी मा अफवाह के,गाँव शहर भुंजाय।
नून मिलत नइहे कही,
नांदगांव ले फैल के,



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# 160
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Date: 2020-05-12
Subject: 

तोर सेती हरे ये।



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# 159
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Date: 2020-05-12
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम 
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 

अरकान-122 122 122 122  

खजाना के खनखन, धरे के धरे हे।
वो मस्ती वो बनठन, धरे के धरे हे।।

जरत हे धरा हा, बरे बन हरा हा।
बिना मेघ के घन, धरे के धरे हे।।

समय मा विपत के, कहाँ कोई आइस।
जमे जोरे जन धन, धरे के धरे हे।।

नही नीर नरमी, करे खूब गरमी।
खड़े झाड़ अउ बन,धरे के धरे हे।

गिराये समय हा, उठाये समय हा।
तने तोर तन मन, धरे के धरे हे।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा



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# 158
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Date: 2020-05-12
Subject: 

कुंडलियाँ-मृत्युभोज

दाने दाने  को कई, मोहताज हर रोज।
उसमें भी देना पड़े, ये कैसा है भोज।
ये कैसा है भोज, पड़े जो दुख में देना।
मृत्युभोज की माँग, करे वो दानव सेना।
जो कुटुंब परिवार, अशुभ शुभ  समय न जाने।
उनको हैं धिक्कार, रटे जो दाने दाने।

खैरझिटिया

मैं मेरे से है बना, मानव का परिवार।
उसमें भी तो स्वार्थ वस,नित पड़ रही दरार।
नित पड़ रही दरार,कहाँ टिक पाये नाता।
है मानव मजबूर,अहम को छोड़ न पाता।
दौलत के चहुँओर,लगाये हरदम फेरे।
जहाँ स्वार्थ लत लोभ,वहाँ होगें मैं मेरे।

मैं जोगी मेरा सभी,जीव जंतु परिवार।
मानव भर का ही नही,सबका है संसार।
सबका है संसार,सभी प्राणी है अपने।
क्या होना मतवार,सँजोकर झूठे सपने।
धन दौलत का लोभ,छोड़कर बनो वियोगी।
मेरा सब परिवार,यही जानू मैं जोगी।

सुख समृद्धि।



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# 157
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Date: 2020-05-12
Subject: 

कुंडलियाँ

बाग बगीचा गाँव की, पुरवा पानी पात।
खीचें अमराई मुझे, मैना बोले बात।।
मैना बोले बात, सुबह संध्या दोपहरी।
भरे ह्रदय में आस, सूर्य की किरण सुनहरी।
बरगद पीपल नीम, घास सी हरी गलीचा।
घर आँगन को घेर,खड़े हैं बाग बगीचा।

खैरझिटिया

जल बिन जीवन है कहाँ, जल बिन जले जहान।
संरक्षण जल का करे, वो इंसान महान।
वो इंसान महान,मूल्य जो जल का जाने।
कल की कर परवाह,लगे जो नीर बचाने।
व्यर्थ बहेगा आज, नसीब नही होगा कल।
रखना होगा ध्यान,सभी का जीवन है जल।

कुंडलियाँ-भूख

भूखा दुख किसको कहे, कहाँ हाथ फैलाय।
अगिन भयंकर भूख का,कैसे बिन अन्न बुझाय।
कैसे बिन अन्न बुझाय,उदर की भड़की ज्वाला।
दरदर फिरे फकीर,गले तक खाये लाला।
क्या मेवा मिष्ठान,मिले बस रूखा सूखा।
सहे गरीबी मार, पेट भर सके न भूखा।



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# 156
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Date: 2020-05-11
Subject: 

जयकारी छंद (मोर गाँव )

मोर गाँव मा हे लोहार।हँसिया बसुला करथे धार।
रोजे बिहना ले मुँधियार।चुकिया करसी गढ़े कुम्हार।

टेंड़ा टेंड़े बारी खार।दिनभर बूता करे मरार।
ताजा ताजा देवै साग।तब हाँड़ी के जागे भाग।

राउत भागे होत बिहान।गरुवा सँकलाये गउठान।
दूध दहीं के बोहय धार।गाय गरुवा हे भरमार।

फेके रहिथे केंवट जाल।मछरी बर नरवा अउ ताल।
रंग रंग के मछरी मार।बेंचे तीर तखार बजार।

लाला धरके बइठे नोट।सीलय दर्जी कुरथा कोट।
सोना चाँदी धरे सुनार।बेंचे बिन पारे गोहार।

सबले जादा हवै किसान।माटी बर दे देवय जान।
संसो फिकर सबे दिन छोड़।करे काम नित जाँगर टोड़।

उपजावै गेहूँ जौ धान।तभे बचे सबझन के जान।
बुता करइया हे बनिहार।गमके गाँव गली घर खार।

बढ़ई गढ़ते कुर्सी मेज।दरवाजा खटिया अउ सेज।
डॉक्टर मास्टर वीर जवान।साहब बाबू गुणी सुजान।

कपड़ा लत्ता धोबी धोय।पहट पहटनिन रोटी पोय।
पूजा पाठ पढ़े महाराज।शान गाँव के घसिया बाज।

कुचकुच काटे ठाकुर बाल।चिरई चिरगुन चहकय डाल।
कुकुर कोलिहा करथे हाँव।बइगा  गुनिया   बाँधे  गाँव।

हवै शीतला सँहड़ा देव।महाबीर मेटे डर भेव।
भर्री भाँठा डोली खार।धरती दाई के उपहार।

छत्तीसगढ़ी गुरतुर बोल।दफड़ा  दमऊ  बाजे  ढोल।
रंग रंग  के  होय तिहार।लामय मीत मया के नार।

धूर्रा खेले  लइका  लोग।बाढ़े मया कटे जर रोग।
गिल्ली भँउरा बाँटी खेल।खाये अमली आमा बेल।

तरिया नरवा बवली कूप।बाँधा के मनभावन रूप।
पनिहारिन रेंगे कर जोर।चिक्कन चाँदुर हे घर खोर।

पीपर पेड़ तरी सँकलाय।पासा पंच पटइल ढुलाय।
लइकामन हा खेले खेल।का रंग नदी पहाड़ अउ रेल।

किस्सा कहिनी बबा सुनाय।दाई के लोरी मन भाय।
पंथी गौरा गौरी गीत।सुवा ददरिया मन लै जीत।

चौक चौक बर पीपर पेड़।कउहा बम्हरी नाचय मेड़।
नदियाँ नरवा तीर कछार।चिंवचिंव चिरई के गोहार।

सुख दुख मा गाँवे के गाँव।जुरै बिना बोले हर घाँव।
तोर मोर के भेद भुलाय।जुलमिल जिनगी सबे पहाय।

सरग बरोबर लागै गाँव।पड़े हवै माँ लक्ष्मी पाँव।
हवै गाँव मा मया भराय।जे दुरिहावय ते पछताय।

छत छानी के घर हे खास।करे देवता धामी वास।
दाई तुलसी बैइठे द्वार।मोर गाँव मा आबे यार।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)



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# 155
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Date: 2020-05-11
Subject: 

चौपई छंद (मोर गाँव मा)

मोर  गाँव  मा  हे  लोहार।
हँसिया बसुला करथे धार।
रोजे  बिहना   ले  मुँधियार।
चुकिया करसी गढ़े कुम्हार।

टेंड़ा  टेंड़े  बारी    खार।
दिनभर बूता करे मरार।
ताजा  ताजा देवै साग।
तब हाँड़ी के जागे भाग।

राउत भागे होत बिहान।
गरुवा सँकलाये गउठान।
दूध दहीं के बोहय धार।
बइला भँइसा हे भरमार।

फेके रहिथे केंवट जाल।
मछरी बर नरवा अउ ताल।
रंग रंग के मछरी मार।
बेंचे तीर तखार बजार।

लाला धरके बइठे नोट।
सीलय दर्जी कुरथा कोट।
सोना चाँदी धरे सुनार।
बेंचे बिन पारे गोहार।

सबले जादा हवै किसान।
माटी बर दे देवय जान।
संसो फिकर सबे दिन छोड़।
करे काम नित जाँगर टोड़।

उपजावै गेहूँ जौ धान।
तभे बचे सबझन के जान।
बुता करइया हे बनिहार।
गमके गली गाँव घर खार।

बढ़ई गढ़ते कुर्सी मेज।
दरवाजा खटिया अउ सेज।
डॉक्टर मास्टर वीर जवान।
सेवा  करय  लगाके  जान।

कपड़ा लत्ता धोबी धोय।
पहट पहटनिन रोटी पोय।
पूजा पाठ पढ़े महाराज।
शान गाँव के घसिया बाज।

कुचकुच काटे ठाकुर बाल।
चिरई चिरगुन चहकय डाल।
कुकुर कोलिहा करथे हाँव।
बइगा  गुनिया   बाँधे  गाँव।

हवै शीतला सँहड़ा देव।
सतबहिनी मेटे डर भेव।
भर्री भाँठा डोली खार।
धरती दाई के उपहार।

छत्तीसगढ़ही गुरतुर बोल।
दफड़ा  दमऊ  बाजे  ढोल।
रंग रंग  के  होय तिहार।
लामय मीत मया के नार।

धूर्रा खेले  लइका  लोग।
बाढ़े मया कटे जर रोग।
गिल्ली भँउरा बाँटी खेल।
खाये अमली आमा बेल।

तरिया नरवा बवली कूप।
बाँधा के मनभावन रूप।
पनिहारिन रेंगे कर जोर।
चिक्कन चाँदुर हे घर खोर।

पीपर पेड़ तरी सँकलाय।
पासा पंच पटइल ढुलाय।
लइकामन हा खेले खेल।
का रंग नदी पहाड़ अउ रेल।

किस्सा कहिनी बबा सुनाय।
दाई के लोरी मन भाय।
पंथी गौरा गौरी गीत।
सुवा ददरिया मन लै जीत।

सुख दुख मा गाँवे के गाँव।
जुरै बिना बोले हर घाँव।
तोर मोर के भेद भुलाय।
जुलमिल जिनगी सबे पहाय।

सरग बरोबर लागै गाँव।
पड़े हवै माँ लक्ष्मी पाँव।
हवै गाँव मा मया भराय।
जे दुरिहावय ते पछताय।

चौक चौक बर पीपर पेड़।
कउहा बम्हरी नाचय मेड़।
नँदिया नरवा हवै कछार।
मोर  गाँव मा आबे  यार।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

🙏🙏



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# 154
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Date: 2020-05-10
Subject: 

दाई(चौपई छंद)

दाई  ले   बढ़के   हे   कोन।
दाई बिन नइ जग सिरतोन।
जतने घर बन लइका लोग।
दुख  पीरा  ला  चुप्पे भोग।

बिहना रोजे पहिली जाग।
गढ़थे  दाई   सबके  भाग।
सबले  आखिर  दाई सोय।
नींद  घलो  पूरा  नइ  होय।

चूल्हा चौका चमकय खोर।
राखे   दाई   ममता     घोर।
चिक्कन चाँदुर  चारो  ओर।
महके अँगना अउ घर खोर।

सबले  बड़े   हवै  बरदान।
लइकामन बर गोरस पान।
चुपरे  काजर  पउडर तेल।
लइकामन तब खेले  खेल।

कुरथा कपड़ा राखे  कॉच।
ताहन पहिरे सबझन हाँस।
चंदा मामा दाई तीर।
रांधे रोटी रांधे खीर।

लोरी  कोरी   कोरी  गाय।
दूध दहीं अउ मही जमाय।
अँचरा भर भर बाँटे प्यार।
छाती  बहै  दूध  के  धार।

लकड़ी  फाटा  छेना थोप।
झेले घाम जाड़ अउ कोप।
बाती  बरके  भरके तेल।
तुलसी संग करे मन मेल।

काँटा भले गड़े हे पाँव।
माँगे नहीं धूप मा छाँव।
बाँचे   खोंचे   दाई   खाय।
सेज सजा खोर्रा सो जाय।

दुख ला झेले दाई हाँस।
चाहे छुरी गड़े या फाँस।
करजा छूट सके गा कोन।
दाई   देबी   ए  सिरतोन।

कोन सहे दाई कस भार।
बादर सागर सहीं अपार।
बंदव माँ ला बारम्बार।
कर्जा नइ मैं सकँव उतार।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

जय हो जय महतारी मोर।

शंकर छंद-खैरझिटिया

महतारी कोरा मा लइका,खेल खेले  नाच।
माँ के राहत ले लइका ला,आय नइ कुछु आँच।
दाई दाई काहत लइका,दूध पीये हाँस।
महतारी हा लइका मनके,हरे सच मा साँस।

करिया टीका माथ गाल मा,कमर करिया डोर।
पैजन चूड़ा खनखन खनके,सुनाये घर खोर।
लइका के किलकारी गूँजै,रोज बिहना साँझ।
महतारी के लोरी सँग मा,बजै बाजा झाँझ।

धरे रथे लइका ला दाई,बाँह मा पोटार।
अबड़ मया महतारी के हे,कोन पाही पार।
बिन दाई के लइका के गा,दुक्ख जाने कोन।
दाई हे तब लइका मनबर,हवे सुख सिरतोन।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 153
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Date: 2020-05-10
Subject: 

कुंडलियाँ-

कोरोना हा काल कस,ठाढ़े हे मुँह फार।
तभो फलत फूलत हवै,दारू के बयपार।
दारू के बयपार,चलावै खुद शासन हा।
बंद स्कूल कालेज,मिलै लटपट राशन हा।
छठ्ठी मरनी ब्याह,सबे के परगे रोना।
भट्ठी भक्कम भीड़,कहाँके जर कोरोना।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा



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# 152
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Date: 2020-05-09
Subject: 

*बूता* देवै कामनाम,बूता लेमिले जी दाम।
*बूता* बने बने हे ता,सब सँहिराय बड़।
*बूता* कहूँ गिनहा हे,ते मनुष चिनहा हे।
*बूता* सेती एती ओती,गारी गल्ला खाय बड़।
*बूता* जेन करे बने,तेन रेंगे तने तने।
*बूता* इतिहास बने,सबला सुनाय बड़।
*बूता* करे नही तेला,कोनो ना बनाये चेला।
*बूता* बने दुनिया मा, प्रसिद्धि देवाय बड़।

खैरझिटिया



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# 151
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Date: 2020-05-09
Subject: 

कुंडलियाँ-नारी

तुम सूरज तुम चंद्रमा, तुम्हीं समुद्र अथाह।
जीवन का आगाज तुम,तुम मंजिल तुम राह।
तुम मंजिल तुम राह,तुम्हीं मूरत ममता की ।
तुम जननी आधार,शांति सुख सत समता की।
तुमसे है संसार,पवन जल थल वन भू रज।
तुम देवी स्वरूप,खुशी के हो तुम सूरज।।

खैरझिटिया

नारी रवि का तेज है, शशि का शीतल छाँव।
जीवन का ठहराव है, मीत प्रीत का गाँव।
मीत प्रीत का गाँव, त्याग मूरत ममता की।
जग जननी आधार,शांति सुख सत समता की।
नारी देवी रूप, जगत के पालन हारी।
जल थल नभ पाताल, साधते सबको नारी।

खैरझिटिया



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# 150
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Date: 2020-05-09
Subject: 

वीर महाराणा प्रताप -आल्हा

भरे  घाम   मा  मई   महीना,नाचै  अउ गावै   मेवाड़।
बज्र शरीर म बालक जन्मे,काया दिखे माँस ना हाड़।

उगे उदयसिंह के घर सूरज,जागे जयवंता के भाग।
राजपाठ के बने पुजारी,बैरी मन बर बिखहर नाग।

अरावली पर्वत सँग खेले,उसने काया पाय विसाल।
हे हजार हाथी के ताकत,धरे  हाथ  मा  भारी भाल।

सूरज  सहीं  खुदे  हे राजा,अउ संगी हे आगी देव।
चेतक मा चढ़के जब गरजे,डगमग डोले बैरी नेव।

खेवन हार बने वो सबके,होवय जग मा जय जयकार।
मुगल राज सिंघासन डोले,देखे अकबर  मुँह ला फार।

चले  चाल अकबर तब भारी,हल्दी घाटी युद्ध रचाय।
राजपूत मनला बहलाके,अपन नाम के साख गिराय।

खुदे रहे डर मा खुसरे  घर ,भेजे  रण मा पूत सलीम।
चले महाराणा चेतक मा,कोन भला कर पाय उदीम।

कई हजार मुगल सेना ले,लेवय लोहा कुँवर प्रताप।
भाला भोंगे  सबला भारी,चेतक के गूँजय पदचाप।

छोट छोट नँदिया हे रण मा,पर्वत ठाढ़े हवे  विसाल।
डहर तंग विकराल जंग हे, हले घलो नइ पत्ता डाल।

भाला  धरके किंजरे रण मा, चले बँरोड़ा संगे संग।
बिन मारे बैरी मर जावव,कोन लड़े ओखर ले जंग।

धुर्रा  पानी  लाली होगे,बिछगे  रण  मा  लासे लास।
बइरी सेना काँपे थरथर,छोड़न लगे सलीम ह आस।

जन्मभूमि के रक्षा खातिर,लड़िस वीर बन कुँवर प्रताप।
करिस नहीं गुलामी कखरो,छोड़िस भारत भर मा छाप।

रचनाकार - श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795



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# 149
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Date: 2020-05-07
Subject: 

कुंडलियाँ-मजदूर

मजबूरी में जिंदगी,कैसे करे व्यतीत।
दबकर दुख के पग तले,कबतक गाये गीत।
कबतक गाये गीत,घाव तनमन में लेकर।
खुद भूखे मजदूर,शान शौकत सुख देकर।
क्या बन श्रम के दास,लाँघ पायेंगें दूरी।
बहा पसीना खून,सहेंगे या मजबूरी।

खैरझिटिया



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# 148
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Date: 2020-05-07
Subject: 

दुर्मिल सवैया-गरमी

ककड़ी खरबूज कलिंदर खूब नपावव खावव हे गरमी।
जुड़ बेल पना लिमुवा अमुवा रस पीयत जावव हे गरमी।
बिहना निपटावव काज सबे मँझनी सुरतावव हे गरमी।
कम भोजन खावव रोज नहावव रोग भगावव हे गरमी।

खैरझिटिया

नित पूजय मा पथरा ह घलो मनके सब बात सुने सजना।
दुखिया बनके अटकौं भटकौं बदरा कस धान फुने सजना।
बस तोर मया मन मोर बसे तबले तँय घेंच चुने सजना।
कइसे कटही जिनगी बिन तोर इही मन मोर गुने सजना।

खैरझिटिया



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# 147
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Date: 2020-05-05
Subject: 

किरीट सवैया

विधान-आठ भगण
           या 211×8

उदाहरण-
घाम घरी जुड़ छाँव सुहावय प्यास घलो जुड़ नीर बुझावय।
छाँछ दही अमझोर मही लिमुवा रस खातिर जी ललचावय।
ताल नदी तँउरे ल बलावय  खाय कलिंदर ते इतरावय।
आज बिना फ्रिज कूलर के गरमी कखरो नइ तो कट पावय।

खैरझिटिया



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# 146
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Date: 2020-05-04
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम 
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 

अरकान-122 122 122 122  

नचाही नही साँप जब तक सपेरा।।
अघाही भला कइसे तब तक सपेरा।

डँसे साँप बाँचे जिया जान कइसे।
हरे काल कहि बइठे कब तक सपेरा।।

बलाये कभू जन भगाये कभू जन।
उठे ता कभू जाय दब तक सपेरा।

कभू ताव देखा कहे छोड़ देंहूँ।
ठठाते हवे छाती अब तक सपेरा।

सपेरा ये सरकार अउ साँप दारू।
परोसे बदी झेल सब तक सपेरा।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 145
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Date: 2020-05-03
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम।
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122

मया मोर बर नइ लगे का।
दया थोरको नइ जगे का।।

अधर मा अटकगे ये जिनगी।
बिना गोड़ गाड़ी भगे का।।

हँकाले ददा दाई भाई।
उँखर बर दुसर अउ सगे का।

बँधाये हवौं मैं मया मा।
फँसाके तैं मोला ठगे का।

भरोसा करे नइ नयन मूँद।
भला कोनो वोला ठगे का।

रुतोबे दगाबाज पानी।
बिना राख 
अगिन गोरसी के दगे का।

खैरझिटिया



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# 144
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Date: 2020-05-03
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम 
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 

अरकान-122 122 122 122  

करेजा अगिन कस जरे तोर सेती।
ठिहा ठौर घर बन बरे तोर सेती।।

बनाके घरौंदा उझारे पिरोहिल।
जिया देख भारी डरे तोर सेती।

तिहीं तितली भौरा तिहीं कोयली अस।
फुले पलास आमा फरे तोर सेती।

कभू झन झरे तोर आँखी ले आँसू।
लबालब समुंदर भरे तोर सेती।

टिके कोन हा रूप ला देख तोरे।
फुले छोड़ फुलवा झरे तोर सेती।

चमकथस बिहनिया सँझा का मँझनिया।
उगे बिन सुरुज हा ढरे तोर सेती।।

चँदैनी चमकथे हँसी देख तोरे।
बहाना चँदरमा करे तोर सेती।।

खुले केश ला देख के करिया बादर।
बरस धरती के पग परे तोर सेती।।

मया हे अँजोरी रटत खैरझिटिया।
बतर कस झपा के मरे तोर सेती।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 143
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Date: 2020-05-02
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम 
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 

अरकान-122 122 122 122  

गलत संग धरके मया चाँट झन रे।
ददा दाई भाई ठिहा बाँट झन रे।।

इहाँ ले हवै एक दिन सबला जाना।
नरी बर अपन डोर तैं आँट झन रे।।

जतन रुक्ख राई घटा दुक्ख भाई।
अपन स्वार्थ बर पेड़ तैं काँट झन रे।

सबे दिन रहे नइ ये काया जगत मा।
गरब बैर इरखा कभू छाँट झन रे।।

तहूँ हा करे हस गजब मौज मस्ती।
हरे नान्हे लइका फकत डाँट झन रे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 142
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Date: 2020-05-02
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम 
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 

अरकान-122 122 122 122  

विपत झेल छाती ठठालौ कलेचुप।
मिले जौन भी बाँट खालौ कलेचुप।

समै मा चलौ जी,समै मा ढलौ जी।
हवा देख मूड़ी नवालौ कलेचुप।।

गरज कब बरसही ये बदरा का जाने।
ठिहा ठौर छानी ल छालौ कलेचुप।।

जनम देय हावै ददा दाई सबला।
नता रिस्ता सबदिन निभालौ कलेचुप।

अवइया समै के ठिकाना भला का।
विपत बेर बर धन बनालौ कलेचुप।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 141
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Date: 2020-05-02
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम 
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 

अरकान-122 122 122 122  

डरा झन डरे ला रे बंदूक धरके।
झरा झन झरे ला रे बंदूक धरके।

सिपाही सही जोश धर जा सिवाना।
लड़ाई करे ला रे बंदूक धरके।

ठिहा ठौर घर के जतन कर सदा दिन।
जला झन घरे ला रे बंदूक धरके।

कभू झन निकलबे तमक के गरब मा।
मया सत चरे ला रे बंदूक धरके।।

डराबे कभू झन अकड़ खैरझिटिया।
गिरे अउ परे ला रे बंदूक धरके।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 140
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Date: 2020-05-02
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम 
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 

अरकान-122 122 122 122  

हमर गाँव घर खोर बर धर पकड़ हे।
जिहाँ तोर अउ मोर बर धर पकड़ हे।।

बहे जल के धारी ठिहा बीच ओखर ।
हमर नल कुँवा बोर बर धर पकड़ हे।

घुमै चोर छेल्ला चुराके रतन धन।
थके हारे कमजोर बर धर पकड़ हे।।

नदी मंद मउहा के बोहय शहर मा।
बिहड़ गाँव घनघोर बर धर पकड़ हे।।

धरे धन धनी मन ये जग ला नचावय।
हमर हाय हो शोर बर धर पकड़ हे।।

पुजावै बली कस बने आदमी मन।
कहाँ चोर अउ ढोर बर धर पकड़ हे।।

नयन मूंद चलबे त फलबे ये जग मा।
चिटिक आस अंजोर बर धर पकड़ हे।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 139
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Date: 2020-05-01
Subject: 

गीतिका छंद-मजदूर 

हे गजब मजबूर ये,मजदूर मन हर आज रे।
अन्न जल छानी नहीं,गिरगे मुड़ी मा गाज रे।।
रोज रहिरहि के जले,परके लगाये आग मा।
देख लौ इतिहास इंखर,सुख कहाँ हे भाग मा।।

खोद के पाताल ला,पानी निकालिस जौन हा।
प्यास मा छाती ठठावत,आज तड़पे तौन हा।
चार आना पाय बर, जाँगर खपावय रोज के।
सुख अपन बर ला सकिस नइ,आज तक वो खोज के।

खुद बढ़े कइसे भला,अउ का बढ़े परिवार हा।
सुख बहा ले जाय छिन मा,दुःख के बौछार हा।
नेंव मा पथरा दबे,तेखर कहाँ होथे जिकर।
सब मगन अपनेच मा हे,का करे कोनो फिकर।

नइ चले ये जग सहीं,महिनत बिना मजदूर के।
जाड़ बरसा हा डराये, घाम देखे घूर के।
हाथ फोड़ा चाम चेम्मर,पीठ उबके लोर हे।
आज तो मजदूर के,बूता रहत बस शोर हे।।

ताज के मीनार के,मंदिर महल घर बाँध के।
जे बनैया तौन हा,कुछु खा सके नइ राँध के।
भाग फुटहा हे तभो,भागे कभू नइ काम ले।
भाग परके हे बने,मजदूर मनके नाम ले।।

दू बिता के पेट बर,दिन भर पछीना गारथे।
काम करथे रात दिन,तभ्भो कहाँ वो हारथे।
जान के बाजी लगा के,पालथे परिवार ला।
पर ठिहा उजियार करथे,छोड़ के घर द्वार ला।

सोच सपना सुख जरे,रेती रतन धन बन झरे।
साँस रहिथे धन बने बस,तन तिजोरी मा भरे।
काठ कस होगे हवै अब,देंह हाड़ा माँस के।
जर जखम ला धाँस के,जिनगी जिये नित हाँस के।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 138
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Date: 2020-04-29
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम 
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन 

अरकान-122 122 122 122  

भरोसा म टिकथे मितानी सबे दिन।
जुआ खेल होथे किसानी सबे दिन।1

फिकर छोड़ कल के करे तैं करम रे।
दिही साथ का पुरवा पानी सबे दिन।2

अपन के मया मोह अपनेच होथे।
खवाही का दूसर खजानी सबे दिन।3

पलोबे कहूँ खेत बारी म पानी।
भरे बर ता लगही लगानी सबे दिन।4

बदलथे समै देख बचपन जवानी।
रहे नइ धरा धाम धानी सबे दिन।5

नँवे पेड़ नइ तौन टूटय हवा मा।
धरे रेंगबे झन गुमानी सबे दिन।6

बहुरथे घलो दिन ह घुरवा के भैया।
लगाये नही दुःख बानी सबे दिन।7

नयन नित उघारे समय देख चलबे।
कहाबे ये जग मा गियानी सबे दिन।8

करम कर ले अइसे कि जाने जमाना।
कही तोर सब झन कहानी सबे दिन।9

गजलकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 137
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Date: 2020-04-26
Subject: 

करसा मा पानी भरे,रतिहा चना भिंगोय।



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# 136
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Date: 2020-04-26
Subject: 

हरिगीतिका छंद-अक्ती

मिलजुल मनाबों चल चलीं,अक्ती अँजोरी पाख में।
करसा सजा दीया जला,तिथि तीज के बैसाख में।।
खेती किसानी के नवा, बच्छर हरे अक्ती परब।
छाहुर बँधाये बर चले,मिल गाँव भर तज के गरब।।

ठाकुरदिया में सब जुरे,दोना म धरके धान ला।
सब देंवता धामी मना,बइगा बढ़ावय मान ला।।
खेती किसानी के उँहे,बूता ल बइगा हर करे।
फल देय देवी देंवता,अन धन किसानी ले भरे।।

जाँगर खपाये के कसम,खाये कमइयाँ मन जुरे।
खुशहाल राहय देश हा,धन धान सुख सबला पुरे।।
मुहतुर किसानी के करे,सब पाल खातू खेत में।
चीला चढ़ावय बीज बोवय,फूल फूलय बेत में।।

ये दिन लिये अवतार हे, भगवान परसू राम हा।
द्वापर खतम होइस हवै,कलयुग बनिस धर धाम हा।
श्री हरि कथा काटे व्यथा,सुमिरण करे ले सब मिले।
धन दान दक्षिणा मा बढ़े,दुख में घलो सुख नइ हिले।

सब काज बर घर राज बर,ये दिन रथे मंगल घड़ी।
बाजा बजे भाँवर परे,ये दिन  झरे सुख के झड़ी।।
रितुवा बसंती जाय, आये झाँझ  झोला के समय।
मउहा झरे अमली झरे,आमा चखे बर मन लमय।

करसी घरोघर लाय सब,ठंडा रही पानी कही।
जुड़ चीज मन भाय बड़,छाँछ शरबत दूध दही।
ककड़ी कलिंदर काट के,खाये म आये बड़ मजा।
जुड़ नीम बर के छाँव भाये,घाम हे सब बर सजा।

लइकन जुरे पुतरा धरे,पुतरी बिहाये बर चले।
नाँचे गजब हाँसे गजब,मन मा मया ममता पले।
अक्ती जगावै प्रीत ला,सब गाँव गलियन घर शहर।
पर प्रीत बाँटे छोड़के,उगलत हवै मनखे जहर।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
9981441795



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# 135
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Date: 2020-04-25
Subject: 

मनहरण घनाक्षरी

अगास अमर झन,पताल टमड़ झन।
भुइयाँ मा रच बस,बने बने काम कर।।
बैर रिस द्वेष पाल,बन कखरो न काल।
मानुष काया ला तँय,झन बदनाम कर।।
कर झन तीन पाँच,जल थल हवा नाप।
हुशियारी ल दिखात,झन ताम झाम कर।।
ज्ञान गुण धरे रही, पैसा कौड़ी परे रही।
समे बलवान हवै,बेरा ल सलाम कर।।


धन सरी पड़े हवै,गाड़ी घोड़ा खड़े हवै।
ज्ञानी गुणी सबे ल जी,समय नचात हे।।
चढ़त हे सादा रंग, बदलत हवै ढंग।
पश्चिम के लहर ह,दुरिहा फेकात हे।।
हरहर कटकट, सब ला लेहे झटक।
जिनगी ल थाम देहे,कोरोना डरात हे।।
पेट के अगिन बुझे,अउ कुछु नइ सुझे।
घर बन किसानी के,महत्ता बतात हे।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया
बाल्को,कोरबा



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# 134
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Date: 2020-04-24
Subject: 

गजल

बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फउलुन फउलुन फउलुन
122 122 122

सजा शान शौकत लबारी।
करे तैं अपन मुँह म चारी।

उहू का मजा जिंदगी के।
जिहाँ लोभ लालच लचारी।

रथे भीड़ भीतर शहर में।
तभो काखरो नइ चिन्हारी।

दुई गज म ठाढ़े महल हे।
कहाँ खेत खलिहान बारी।

चुरे मॉस मछरी घरोघर।
कहाँ साग भाजी अमारी।

परोसी ह जाने नही ता।
हवै फोकटे नाम यारी।

तिजोरी भरे चार पइसा।
नचावत हवै बन मँदारी।

रही जिंदगी में खुशी हा।
पवन पेड़ पानी सुधारी।

करे बर गरब काय हावै।
मिले तन हवै ये उधारी।

खैरझिटिया



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# 133
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Date: 2020-04-23
Subject: 

सार छंद-चैत महीना(गीत)

चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।
चैत महीना पावन लागे,गमके घर बन डेरा।।

रंग फगुनवा छिटके हावय,चिपके हे सुख आसा।
दया मया के फुलवा फुलगे,भागे दुःख हतासा।
हूम धूप मा महकत हावै,गलियन बाग बसेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।

नवा बछर अउ नवराती के,बगरे हवै अँजोरी।
चकवा संसो मा पड़ गेहे,खोजै कहाँ चकोरी।
धरा गगन दूनो चमकत हे,कती लगावै फेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा। 

नवा नवा हरियर लुगरा मा,सजे हवै रुख राई।
गाना गावै जिया लुभाये,सुरुर सुरुर पुरवाई।
साल नीम हा फूल धरे हे,झूलत हे फर केरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।

बर बिहाव के लाड़ू ढूलय,ऊलय धरती दर्रा।
घाम तरेरे चुँहै पसीना,चले बँरोड़ा गर्रा।।
बारी बखरी ला राखत हे,बबा चलावत ढेरा।
चमचम चमचम चाँद चँदैनी,चमके रतिहा बेरा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 132
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Date: 2020-04-23
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल

बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फउलुन फउलुन फउलुन
122 122 122

ये जिनगी किसानी म अटके।
पवन संग पानी म अटके।।1

कहाँ नींद गदिया म आही।
जिया जान घानी म अटके।।2

दया अउ मया सत बरोये।
तिंखर बाण बानी म अटके।3

धरे धन रथे जेन जादा।
उँखर गुण गुमानी म अटके।4

बढ़े आदमी का वो आघू।
हवै जे गुलामी म अटके।5

मनुष आज बनगे ब्यपारी।
नता लाभ हानी म अटके।6

प्रलय हो जही खैरझिटिया।
सरी जग सुनामी म अटके।7

खैरझिटिया



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# 131
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Date: 2020-04-23
Subject: 

गजल -जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फऊलुन फऊलुन फऊलुन
122 122 122

छली बनके छलबे कभू झन।
बिना काम पलबे कभू झन।1

मनुष अस मया मीत रखबे।
करा कस पिघलबे कभू झन।2

रथे ठाढ़ काँटा डहर मा।
खुला पाँव चलबे कभू झन।3

असत डर कहर खूब ढाते।
हवा देख हलबे कभू झन।4

हवा भर भले देत रहिबे।
करू फेर फलबे कभू झन।5

बिगाड़ा करे तन ठिहा के।।
नसा बर फिसलबे कभू झन।6

जखम देख  के नून घोरे।
दवा कहिके मलबे कभू झन।7

खैरझिटिया



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# 130
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Date: 2020-04-23
Subject: 

गजल

मया मीत हरबे त रोबे।
कायरी करबे जरबे त रोबे।

बनाथे बुता काम जिनगी।
बुता ले मुकरबे  त रोबे।

डहर सत के लेथे परीक्षा।
चलत बेर डरबे त रोबे।।

करम के इहे फल ह मिलही।
बुरा संग धरबे त रोबे।।

सिराही धरे धन रतन हा।
बइठ ठलहा दरबे त रोबे।

चका चौंध बर चार दिनिया।
अपन घर ले टरबे त रोबे।।

 ठिहा ठौर आये प्रकृति हा।
उछिंद होके चरबे त रोबे।



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# 129
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Date: 2020-04-22
Subject: 

कोरोना देखा दिस अवकात मनखे ला।



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# 128
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Date: 2020-04-18
Subject: 

संकट के क्षण में सभी,होकर रहना एक।
कोरोना कस कतको ,जर दिही घुटना टेक।



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# 127
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Date: 2020-04-17
Subject: 

लावणी छंद(गीत)

चलचल जोही किरिया खाबों,सेवा करबों माटी के।
साग दार अउ अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।

कर दिनिया सुख चटक मटक बर, छइयाँ भुइयाँ नइ छोड़न।
पर के काज गुलामी खातिर,माटी ले मुँह नइ मोड़न।।
ठिहा बनाबों जनम भूमि मा,माटी मता मटासी के।।
साग दार अउ अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।

सबके पेट भरे के खातिर, दाना पानी फर चाही।
माटी ले सबझन दुरिहाबों,कइसे कोठी भर पाही।
अगिन पेट के काय बुझाही,चना चाँट चौपाटी के।
साग दार अउ अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।

जोर मोह माया ला कतको,बिरथा सब दुख के बेरा।
शहर नगर ये चटक चँदैनी, थेभा खेती बन डेरा।
खाय कमाये बर नइ जाँवन,नत्ता रिस्ता काटी के।
साग दार अउ अन्न उगाबों,मया छोड़ लोहाटी के।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 126
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Date: 2020-04-17
Subject: 

लावणी छंद-ताली थाली इँखरो बर

आफत के अइसन बेरा मा,पइसा पूरय सबझन बर।
धन्यवाद कहि ताली थाली,बजा बैंक वाले मन बर।

लगे हवै सेवा मा सरलग,छोड़ छाँड़ के डर जर ला।
खुले बैंक एटीएम हवै तब,पइसा पूरय घर घर ला।।
खिसा गरीब अमीर सबे के,नइ तरसत हावै धन बर।
धन्यवाद कहि ताली थाली,बजा बैंक वाले मन बर।।

पाकिट मा पइसा नइ होतिस, अड़चन के ये बेरा मा।
बता भला कइसे जल पातिस,चूल्हा कखरो डेरा मा।
कइसे आतिस चँउर दार फल,अउ भाजी पाला तन बर।
धन्यवाद कहि ताली थाली,बजा बैंक वाले मन बर ----।

डँटे पुलिस साहेब सिपैहा,डॉक्टर अउ सफई कर्मी।
थेभा हवय किसान पेट के, झन देखा तैं हर गर्मी।।
कफन बाँध के निकले हावै,देखव येमन हर रन बर।
धन्यवाद कहि ताली थाली,बजा बैंक वाले मन बर।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 125
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Date: 2020-04-16
Subject: 

छंद के छ परिवार डहर ले जनजागरण

दुर्मिल सवैया-कोरोना

दिन ला घर में रहिके अब काटव काटव रात घरे म सखा।
जर घेर लिही तकलीफ दिही त लगे नइ देर मरे म सखा।
सरकार सुझाय इलाज उपाय त दिक्कत काय करे म सखा।
खुद होय निरोग भगा जर रोग बने नइ काम डरे म सखा।

खैरझिटिया



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# 124
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Date: 2020-04-16
Subject: 

😰गीत😰😰

कतको  जिंदगी ,जहर माँगत हे रे।
दहरा म डूबत हे,लहर माँगत हे रे।

आसा   के  दीया  नइहे,
जी सके वो जिया नइहे।
कोनो    ल    का  किबे,
साहारा राम सिया नइहे।
घर मा घुँटत हे दम हा,डहर माँगत हे रे।
कतको    जिंदगी , जहर  माँगत  हे  रे।

दुख   के   पहाड़  धरके,
जीयत भरले हार धरके।
भटकत हे सबे चीज बर,
देखव   परिवार   धरके।
गाँवे म गँवागे हे ,शहर माँगत हे रे।
कतको  जिंदगी ,जहर माँगत हे रे।

आँखी    ह    झरना   होगे, 
जीयत जिनगी मरना होगे।
चूल्हा    जले    नहीं   अउ,
जले   तब    जरना   होगे।
संझा बिहना रोवै,दुपहर माँगत हे रे।
कतको   जिंदगी ,जहर  माँगत हे रे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795



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# 123
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Date: 2020-04-14
Subject: 

रूप घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                   1
मीत मया ममता के,सत सुख समता के।
दीन हीन रमता के,संविधान हे आधार।।

जिनगी ला गढ़े बर,आघू कोती बढ़े बर।
घूमे फिरे पढ़े बर, देय हवे अधिकार।।

उड़े बर पाँख हरे,अँधरा के आँख हरे।
ओखरोच आस हरे,थक गेहे जौन हार।।

सिढ़ही चढाये ऊँच,दुख डर जाये घुँच।
हाँसे जिया मुचमुच,होय सुख के संचार।।1

                    2
गिरे थके अपटे ला,डर डर सपटे ला।
तोर मोर के बँटे ला,थामे हवै संविधान।।

सुख समता के कोठी,पबरित एहा पोथी।
इती उती चारो कोती,जामे हवै संविधान।।

मुखिया के मुख कस,ममता के सुख कस।
छायादार रुख कस,लामे हवै संविधान।।

खुशनुमा हाल रखे,ऊँच नाम भाल रखे।
सबके खियाल रखे,नामे हवै संविधान।।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 122
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Date: 2020-04-14
Subject: 

कुकुभ छंद-पिंजरा के पंछी(गीत)

घर में बैठे देख मनुष ला,पिंजरा के पंछी बोले।
कइसे लगथे बता धँधाये,पाँव पाँख ला बिन खोले।

असकटात हस दू दिन मा तैं,अपने महल अटारी मा।
मन नइ माढ़त हावय तोरे,कुरिया अँगना बारी मा।
बित्ता भरके मोरे पिंजरा,तनमन ला रहिरहि छोले।
घर में बैठे देख मनुष ला,पिंजरा के पंछी बोले----

दाना पानी देके मोला,धाँधे रहितथ तँय रोजे।
अउ कहिथस मैं गावौं गुरतुर,डर दुख जिवरा मा बोजे।
बँधे बँधे पिंजरा मा जिनगी,डगमग डगमग नित डोले।
घर में बैठे देख मनुष ला,पिंजरा के पंछी बोले----

मन मोरो नइ माड़े भैया,पिंजरा के बीच धँधाये।
छूना ऊँच अगास चाहथौं, डेना पंखा फइलाये।
तोर गली मा आफत आ हे,पिंजरा के पंछी होले।
घर में बैठे देख मनुष ला,पिंजरा के पंछी बोले--

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 121
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Date: 2020-04-13
Subject: 

चौपाई-बेंदरा नाच

डमडम डमडम डमरू बाजे। झोला झँगड़ी खाँध म साजे।
गाँव म आये हवै मदारी। जुरियाये हे सब  नर नारी।।

सँग मा हवै बेंदरा जोंड़ा। सब झन देखे देके ओंड़ा।
डमरू बजा मदारी गाये। नाच बेंदरा बड़ देखाये।।

नाम बेंदरा के हे गोपी। पाँव म जूता सिर हे टोपी।
पहिर कुर्था पेंट बेंदरा। छीचत हावय सेंट बेंदरा।।

चश्मा आँख चढ़ाये भागे। हीरो असन बेंदरा लागे।
सम्हरे हवै बेंदरा खाँटी। नाम बँदरिया के हे नाँटी।

चले सुवारी ला लाये बर। चना हाथ मा धर खाये बर।
हाँस बेंदरा हाथ बढ़ाये। देख बँदरिया हा सरमाये।।

बात बँदरिया जब नइ माने। रिस म बेंदरा लउठी ताने।
दाँत पीस सबला बिजराये। काम बेंदरा के मन भाये।।

नाचय दोनों ताता थैया। मार मार के बड़ घोंडैया।
करतब करे बेंदरा भारी। थपड़ी पीटे सब नर नारी।

डमरू बँसुरी बाजे गाना। बरसे पइसा रुपिया आना।
कोनो चाँउर दार चढ़ाये। खेल देख के खुश हो जाये।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा



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# 120
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Date: 2020-04-12
Subject: 

दुर्मिल सवैया-कोरोना

जर  हे  हबरे डर  ये अबड़े  बिकराल  हलाहल नागिन ले।
फइले मनखे मन ले मनखे म बताव सबो झन ला बिन ले।
मन ला मजबूत रखौ तन ला बलवान बनाव विटामिन ले।
जर दूर करे बर  धाँध रखौ खुद ला घर मा कुछ तो दिन ले।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा



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# 119
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Date: 2020-04-12
Subject: 

सार छंद-गीत

धीरे  धीरे  जुन्नावत  हे, ये जिनगी के गाड़ी।
हाथ गोड़ मुँह ढिल्ला होवै,पाकै मेछा दाढ़ी।।

सुख  के बेरा सरलग भागिस,हवा घलो नइ लागिस।
हाँसत गावत खेलत खावत,जिनगी हा अधियागिस।
केश झरत हे रूप मरत हे, देख  जुड़ावै नाड़ी।
धीरे धीरे जुन्नावत  हे, ये जिनगी के गाड़ी----।

बालपना के बात बिसरगे, गये जवानी रानी।
गरब करे  के का बाँचे हे,ये तन बोहत पानी।
धँधर रपट मा बेरा बुलके, जोड़त कौड़ी काड़ी।
धीरे धीरे जुन्नावत  हे, ये जिनगी के गाड़ी-----।

लइका लोग सियान सबे के,संसो अड़बड़ खाये।
घर दुवार परिवार पार हा, रहिरहि  रात जगाये।
रोज दंदरे कनिहा कूबड़, मूड़ पिरावै माड़ी।
धीरे धीरे जुन्नावत  हे, ये जिनगी के गाड़ी-।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 118
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Date: 2020-04-11
Subject: 

शिव छंद-शिव ल सुमर

रोग डर भगा जही। काल ठग ठगा जही।
पार भव लगा जही। भाग जगमगा जही।

काम झट निपट जही। दुक्ख द्वेष कट जही।
मान शान बाढ़ही। गुण गियान बाढ़ही।।

क्रोध काल जर जही। बैर भाव मर जही।
खेत खार घर रही। सुख सुकुन डगर रही।

आस अउ उमंग बर। जिंदगी म रंग बर।
भक्ति कर महेश के। लोभ मोह लेश के।

सत मया दया जगा। चार चांद नित लगा।
जिंदगी सँवारही। भव भुवन ले तारही।।

देव मा बड़े हवै। भक्त बर खड़े हवै।
रोज शाम अउ सुबे। भक्ति भाव मा डुबे।

नीलकंठ ला सुमर। बाढ़ही सुमत उमर।
तन रही बने बने। रेंगबे तने तने।।

सोमवार नित सुमर। नाच के झुमर झुमर।
हूम धूप दे जला। देव काटही बला।।

दूध बेल पान ले। पूज शिव विधान ले।
तंत्र मंत्र बोल के। भक्ति भाव घोल के।

फूल ले मुठा मुठा। सोय भाग ला उठा।
भक्ति तीर मा रही।शक्ति तीर मा रही।।

फूल फल दुबी चढ़ा। नारियल चँउर मढ़ा।
आरती उतार ले।धूप दीप बार ले।।

शिव पुकार रोज के। भक्ति भाव खोज के।
ओम ओम जाप कर।भूल के न पाप कर।।

भूत भस्म भाल मा। दे चुपर कपाल मा।
ओमकार जागही। भाग तोर भागही।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)



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# 117
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Date: 2020-04-11
Subject: 

दोहा

महिनत मा घर बन बने,महिनत लाय सुराज।
देश  राज  बर  फोकटे,बैठांगुर  हे  आज ।1।

मिले बढ़ावा काम ला,होही तभे विकास।
काम बिना धन हा घलो,बने रहे नइ दास।2।

बइठे बइठे खाय मा,कतको माल सिराय।
काम बिना जिनगी घलो,फोकट कस हो जाय।3।

फोकट के हा नइ फलय,पुरै नही जी भीख।
देख हमर इतिहास ला,ले लेवव जी सीख।4।

काम निसानी जीत के,ठलहा बाँटय हार।
जाँगर नाँगर नाँस हा,होवय झन बेकार।5।

बइठे बइठे खाय के,बढ़त हवै बड़ रोग।
मुँह ताकै सरकार के,ठलहा बनके लोग।6।

कतको झन लाचार हे, कतको हे मजबूर।
उँखर समास्या ला सबो,कर देवौ जी दूर।7।

बिरथा बूता हा घलो,कभू काम नइ आय।
सेवा सत सत्कार हा,बिरथा कभू न जाय।8।

मिलजुल के सब झन करयँ,खेती बाड़ी काज।
कोनो लाँघन झन रहै,उपजय खूब अनाज।9।

खेती बाड़ी काज बर,सबे उठाये हाथ।
जतके खेती बाढ़ही,ततके उठही माथ।10।

रही किसानी बर बने,सुविधा साज समान।
मिलही बढ़िया दाम ता,पाही मान किसान।11।

राज किसान जवान के,हमर देश मा होय।
सेवा माटी के करै,अमन चैन सुख बोय।12।

खा खाके किरिया घलो,करै नही जे काज।
खुर्सी ओखर भाग मा,काली होय न आज।12।

भारत  माँ  के  लाज ला,बेंचे जे इंसान।
वोहर भारत देश मा, पावै कभू न मान।13।

देवय हिन्दुस्तान ला,भेदभाव के घाव।
वो पावै झन पद कभू,साव चेत हो जाव।14।

पद पाये बर मूड़ी नवा,बाँटत फिरथे नोट।
अइसन नेता ला कभू,देवौ झन जी वोट।15।

लालच मा आवव नही,लालच फोकट ताय।
लालच के धन धान हा,बन जाथे बड़ बाय।16।

भारत के निर्माण बर,जेहर करही काज।
सजे रहै सिर ओखरे,विजय तिलक अउ ताज।17

करव सबे मतदान जी,अन्तस् आँखी खोल।
हितवा मितवा कोन हे,पहली लेवव तोल।18।

वोट नोट मा माँगथे,लालच फंदा फेंक।
वोहर जिनगी मा अपन,काम करै नइ नेंक।19।

आये वोट तिहार हे,करव सबो मतदान।
बढ़िया नेता ला चुनव,अन्तस् गोठ ल मान।20।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 116
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Date: 2020-04-10
Subject: 

सुंदरी सवैया-करसी

बन गाँव गली घर खोर बियापय ब्याकुल रोज रथे जिनगानी।
तन धार झरे गल आग बरे जिनगी ह फँदाय लगे जस घानी।
गरमी हबरे करसी रब ले सब लेव बिसाय दिही जुड़ पानी।
जुड़ नीर म प्यास बुझाय तभे हिरदे ह हितावव होवय धानी।

खैरझिटिया



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# 115
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Date: 2020-04-10
Subject: 

बने बात बर कान हा,भैरा होगे देख।
हाथ म बुता बिगाड़ के,कहे करम के लेख।



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# 114
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Date: 2020-04-09
Subject: 

शिव छंद

डोर आँटथस तिहीं। मीत बाँटथस तिहीं।
तोर का बिचार हे। रोज मार धार हे।।

बैर बाँध तैं रथस। बोल बस करू कथस।
आय नइ शरम घलो। दान नइ धरम घलो।

प्यार के न पाठ हे। का जिया ह काठ हे।
मन बसे दिंयार हे। बस भरे विकार हे।।

पर कही खने कुवाँ। बस रटत हुवाँ हुवाँ।
काम तोड़ना हवै। आग छोड़ना हवै।।

गिर जबे बदाक ले। सोच रे दिमाक ले।
झूठ पाप छोड़ दे। भेदभाव तोड़ दे।।

सिर ठठा गुनत रबे। यदि असत चुनत रबे।
सत करम ह सार हे। बाकि सब म हार हे।

फोकटे विनास के।धर डहर न हाँस के।
तोर सब सिरा जही।रूप रंग किरा जही।

सत डहर म पाँव रख। गाँव घर म नाँव रख।
अब करम सुधार ले। मीत प्रीत प्यार ले।।



खैरझिटिया



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# 113
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Date: 2020-04-09
Subject: 

शिव छंद-कर बने काम बूता

सोच अउ विचार ले। पूछ बात चार ले।
जौन काम तोर हे। का सहीं सजोर हे।।

फोकटेच होय झन। काम द्वेष बोय झन।
तीर ना कमान धर। काखरो विनास बर।

साध काम काज ला। देख काल आज ला।
होय ना बिगाड़ कुछु। काखरो उजाड़ कुछु।

तोर तीर तार मा। गाँव खेत खार मा।
कर उजास रोज के। मीत प्रीत खोज के।

टार दुख विकार ला। तोड़ मोह तार ला।
काम के महत्व ला। जोड़ सार तत्व ला।

जीव जानवर सहीं। होय काम झन कहीं।
काम के प्रभाव ले। जीत जग स्वभाव ले।

काम ले महान बन। आन बान शान बन।
काम देय मान जस। सत मया मिलाप रस।

काम जिंदगी हरे। काम शांति सुख भरे।
काम रोज कर बने। मीत प्रीत सत सने।

काम नाम बाँटथे। जिंदगी ल आँटठे।
काम के अधार मा। नाम होय चार मा।

खैरझिटिया



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# 112
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Date: 2020-04-09
Subject: 

दुर्मिल सवैया(पुरवा)

सररावत  हे  मन  भावत  हे  रँग फागुन राग धरे पुरवा।
घर खोर गली बन बाग कली म उछाह उमंग भरे पुरवा।
बिहना मन भावय साँझ सुहावय दोपहरी म जरे पुरवा।
हँसवाय कभू त रुलाय कभू सब जीव के जान हरे पुरवा।

खैरझिटिया

दुर्मिल सवैया(झरना)

झिरसा  हरसावय  झाँझ  सुहावय गीत धरे झरथे झरना।
सुख के झुलना झुलते नयना मन जीत खुशी भरथे झरना।
इठलावत आलस ला झकझोरत रोज बुता करथे झरना।
निकले जब सूरज हा बिहना तब जोत सही बरथे झरना।

खैरझिटिया

दुर्मिल सवैया-मजदूर

मजदूर रथे मजबूर तभो दुख दर्द जिया के उभारय ना।
पर के अँगना उजियार करे खुद के घर दीपक बारय ना।
चटनी अउ नून म भूख मितावय जाँगर के जर झारय ना।
सिधवा कमियाँ तनिया तनिया नित काज करे छिन हारय ना।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 111
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Date: 2020-04-09
Subject: 

तोर काया बर हे लाभकारी रे,बिहना उठ के कर दातुन मुखारी रे।



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# 110
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Date: 2020-04-08
Subject: 

बिना गाय गरवा के,नदिया तरिया नरवा के।
कइसे चलही रे सोच मनुष बिन तरवा के।



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# 109
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Date: 2020-04-08
Subject: 

अरविंद सवैया

हनुमान लला गुण ज्ञान कला भरदे अड़हा मन भीतर मोर।
नित हाथ म तोर रहे प्रभु मोर लगाम सहीं जिनगी रथ डोर।
सुख शांति मया सत मीत दया बरसात रबे जिनगी भर घोर।
दुख  पाप  छँटे मनखे न बँटे इरसा न डँटे कखरो घर खोर।

खैरझिटिया



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# 108
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Date: 2020-04-04
Subject: 

आलस तन का आंकलन,करते सभी सटीक।
चंगा तन का फैसला, नही बैठता ठीक।

हुशियारी से हौसला,होता नही बुलंद।
ज्ञान और गुण के बिना,सब दरवाजे बंद।

भौरे भी भयभीत है,नही फूल मकरंद।


मानुष 
इतना न इतराइये,पी करके मकरंद।

लाख मना कर लो उसे,कहाँ सुने वो बात।

आस और विश्वास का,है प्रतीक चिराग।

ढूंढ़े जलते दीप में,
आस और विश्वास से,चलो जलायें दीप।
दुख द्वेष न रहे,न हो दुःख द्वेष समीप।



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# 107
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Date: 2020-04-02
Subject: 

छंद त्रिभंगी(10,8,14 मात्रा म)

घर भीतर रह घिर,घर के बाहिर,डर हावै कोरोना के।
मनखे ले मनखे,रोग ह पनपे,पर हावै कोरोना के।
पके मांस आधा,भीड़ म जादा,घर हावै कोरोना के।
कफ बुखार जइसन,जुड़ हे तइसन,जर हावै कोरोना के।

खैरझिटिया



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# 106
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Date: 2020-03-31
Subject: 

कोरोना हा करदिस कंगाल जिंदगी।
बस मांस के लोंदा कंकाल जिंदगी।।

कोरोना हा करदिस हलाकान जिंदगी ला।
ले दे बढ़ाये रेहेंव खींचतान जिंदगी ला।



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# 105
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Date: 2020-03-29
Subject: 

कोरोना(चोपाई छंद)

रहिरहि सबला रोना पड़ही।पाछू जब कोरोना पड़ही।
हरे भंयकर ये बीमारी।जइसे दुख के बादल कारी।।

काँपे थरथर सारी दुनिया।हवै कलेचुप बइगा गुनिया।
तांडव करत हवै कोरोना।काम आय नइ जादू टोना।।

नइहे दवई सूजी पानी।अटके अध्धर मा जिनगानी।
आगे हे ये कइसन बेरा।काल लगावत हावै फेरा।।

घर भीतर मनखे धंधागे।कोरोना बैरी कस लागे।
फइले मनखे ले मनखे मा।परलय के ताकत हे येमा।

घर मा रहना हे हुशियारी।घर  बाहर पसरे बीमारी।
आपा झन खोवव गा भैया।धीर लगाके तरही नैया।

आफत आये हावै भारी।आय बिदेशी ये बीमारी।
मिलजुल लड़ना हे एखर ले।कोनो झन निकलौ जी घर ले।

खेवन खेवन हाथ ल धोवव।तन अउ मन ले चंगा होवव।
इती उती के बात ल छोड़व।कोरोना के कनिहा तोड़व।

जर बुखार अउ सर्दी खाँसी।होवत रहिथे बारा माँसी।
एखर लक्षण ला पहिचानव।जानकार के बयना मानव।

भीड़ भाड़ मा जाना छोड़व।बासी खाना खाना छोड़व।
आसपास के करव सफाई।कोरोना बर इही दवाई।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा



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# 104
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Date: 2020-03-23
Subject: 

नवा बछर (सार छंद)

फागुन के  रँग कहाँ उड़े हे, कहाँ  उड़े हे मस्ती।
नवा बछर धर चैत हबरगे,गूँजय घर बन बस्ती।

चैत  चँदैनी  चंदा  चमकै,चमकै रिगबिग जोती।
नवरात्री के पबरित महिना,लागै जस सुरहोती।
जोत जँवारा  तोरन  तारा,छाये चारों कोती।
झाँझ मँजीरा माँदर बाजै,झरै मया के मोती।
दाई  दुर्गा  के  दर्शन ले,तरगे  कतको  हस्ती।
फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।

कोयलिया बइठे आमा मा,बोले गुरतुर बोली।
परसा  सेम्हर  पेड़  तरी  मा,बने  हवै रंगोली।
साल लीम मा पँढ़री पँढ़री,फूल लगे हे भारी।
नवा  पात धर नाँचत हावै,बाग बगइचा बारी।
खेत खार अउ नदी ताल के,नैन करत हे गस्ती।
फागुन  के रँग कहाँ उड़े  हे,कहाँ  उड़े हे मस्ती।

बर  खाल्हे  मा  माते पासा, पुरवाही मन भावै।
तेज बढ़ावै सुरुज नरायण,ठंडा जिनिस सुहावै।
अमरे बर आगास गरेरा,रहि रहि के उड़ियावै।
गरती चार चिरौंजी कउहा,मँउहा बड़ ममहावै।
लाल कलिंदर ककड़ी खीरा,होगे हावै सस्ती।
फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।

खेल मदारी नाचा गम्मत,होवै भगवत गीता।
चना गहूँ सरसो घर आगे,खेत खार हे रीता।
चरे  गाय गरुवा मन मनके,घूम घूम के चारा।
बर बिहाव के बाजा बाजै,दमकै गमकै पारा।
चैत अँजोरी नवा साल मा,पार लगे भव कस्ती।
फागुन के रँग  कहाँ  उड़े  हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरखिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 103
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Date: 2020-03-18
Subject: 

आगे आगे नवा साल 

आगे आगे नवा साल,आगे आगे नवा साल।
डारा  पाना  गीत   गाये,पुरवाही  मा  हाल।

पबरित महीना हे,एक्कम  चैत अँजोरी के।
दिखे चक ले भुइँया हा,रंग लगे हे होरी के।
माता रानी आये हे,रिगबिग बरत हे जोती।
घन्टा शंख बाजत हे,संझा बिहना होती।
मुख  मा  जयकार  हवे ,तिलक  हवे  भाल।
आगे आगे नवा साल,आगे आगे नवा साल।

नवा  नवा  पाना  मा,रूख  राई नाचत हे।
परसा फुलके लाली,रहिरहि के हाँसत हे।
कउहा अउ मउहा हा इत्तर लगाये हे।
आमा  के  मौर मा छोट फर आये हे।
कोयली  नाचत गावत हे,लहसे आमा डाल।
आगे आगे नवा साल,आगे आगे नवा साल।

सोन फूल्ली बेंच बम्भरी,पयरी बेंचे चॉदी के।
मउहा  परसा   पाना  म, पतरी बने मांदी के।
अमली कोकवानी हा,सबला ललचाय।
मन  के  चरत  हावय,छेल्ला गरू गाय।
लइका  मन  नाचत  हे,झनपूछ हाल चाल।
आगे आगे नवा सालआगे आगे नवा साल।

खेत ले घर आगे हे,चना गहूँ सरसो अरसी।
गर्मी  के  दिन आवत  हे,बेंचावत हे करसी।
साग भाजी बारी म,निकलत हे जमके।
दीया  रोज  बरत  हे, गली खोर चमके।
बरतिया मन नाचत हे,दफड़ा दमऊ के ताल।
आगे  आगे नवा साल,आगे आगे नवा साल।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

चइत नवरात्री अउ हिन्दू नव बछर के गाड़ा गाड़ा बधाई



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# 102
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Date: 2020-03-13
Subject: 

रेंगे मुँह तोप, हवै बंद नाक।



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# 101
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Date: 2020-03-10
Subject: 

छंद के छ के होली-दोहा गीत

"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग।
साधक सब जुरियाय हे,देवत हावै राग।

आज छंद परिवार मा,माते हवै धमाल।
सुधा सुनीता केंवरा,छीचत हवै गुलाल।
सुचि सुखमोती ज्योति शशि,चित्रा ला भुलवार।
आशा मीता मन लुका,करय रंग बौछार।
रामकली धानेश्वरी,भागे सबला फेक।
नीलम वासंती तिरत,लाने उनला छेक।
शोभा  संग तुलेश्वरी,गाये सुर ला पाग।
"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग----

बादल बरसत हे अबड़,धरे गीत अउ छंद।
ढोल बजाय दिलीप हा, मुस्की ढारे मंद।।
मोहन मनी मिनेश मिल,माटी मिलन महेंद्र।
गावत हे गाना गजब,मथुरा अनिल गजेंद्र।।
ईश्वर अजय अशोक सँग,हे ज्ञानू राजेश।
घोरे हावय रंग ला,भागय हेम सुरेश।।
मुचमुचाय जीतेन्द्र हा,भिनसरहा ले जाग।
"छंद के छ"के मंच मा, माते हावै फाग--------

दुर्गा दीपक दावना,सँग गजराज जुगेश।
श्लेष ललित सुखदेव ला,ताकय छुप कमलेश।
लीलेश्वर जगदीश सँग,बइहाये बलराम।
लहरे अउ कुलदीप के,करे चीट कस चाम।
पोखन तोरन मातगे,माते हे वीरेंद्र।
उमाकांत अउ अश्वनी,सँग माते वीजेंद्र।
सरा ररा सूर्या कहे,भिरभिर भिरभिर भाग।
"छंद के छ"के मंच मा,माते हावै फाग-----

पुरषोत्तम धनराज ला,खीचत हे संदीप।
कौशल रामकुमार मन,फुग्गा फेके छीप।
बोधन अउ चौहान के,रँगदिस गाल गुमान।
सत्यबोध राधे अतनु,भगवत हे परसान।।
राजकुमार मनोज हा,धिरही ला दौड़ाय।
अरुण निगम गुरुदेव हा,देखदेख मुस्काय।
सब साधक मा हे भरे,मया समर्पण त्याग।
"छंद के छ"के मंच मा,माते हावै फाग-----

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा



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# 100
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Date: 2020-03-10
Subject: 

सेवा से दूर.........
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अंधकार को क्यो बढ़ाने चले हो?
प्रकाशित दीपक  बुझाने चले हो?
  जहॉ  हर   मानव  समान   है,
  वहॉ जात-पात का डाला घेरा|
  सच्चाई  को  ठुकराकर,
  झूठ  का  लगाया  फेरा|
  कानून-कायदा तोड़कर,
  मन की उडा़न भरता रहा|
  जो आया मन में वही,
  आजतक करता रह |
अपनी बनाई झूठी कायदा क्यो निभाने चले हो?
अंधकार  को  क्यो  बढा़ने  चले  हो?
  प्यार बरसती संसार में,
  तूने छल कर दी|
  शॉतिमय वातावरण में,
  कोलाहल कर दी|
  रिस्तो की डोर को,
  पल में कॉट दिया|
  सेवा-भाव भुलाकर,
  कुकर्म को छॉट लिया|
दिखावे की आड़ में,सच्चाई क्यो मिटाने चले हो?
अंधकार को..................................?
  जो बचपन में खेला,
  मॉ की ऑचल में|
  वही बेटा बदल गया,
  आज और कल में |
  बेटा और बॉप में,
  आज कौन बड़ा है,
  राह में बड़प्पन लिये,
  पैसा खड़ा है |
माया में लिप्त होकर,क्यो माया गान गाने चले हो?
अंधकार...........................?
  अंहकार का दास बने हो,
  अपना हर ईमान बेचकर|
  अंहकारी न जी पाते है,
  पर मग्न हो क्यो यह देखकर|
  सत्य प्रीत का है यह जीवन,
  देखें कहानी किस्सा में,
  पावन थी माता सीता,
  न जली अग्नि परीक्षा में|
पर दुराचारी होकर, तन अपना क्यो तपाने चले हो?
अंधकार को..................................?
  माया का पंख लगाकर,
  छितिज में क्यो उड़ रहे हो?
  सेवा-सतसंग कभी न किया,
  उनसे हमेशा दूर रहे हो|
  स्वार्थी जीवन जीता रहा,
  किया न कभी उपकार|
  जीवन संभालो अपना बंदे,
  धर्म को मान आधार |
जो जग में अनमोल है,वही क्यो भूलाने चले हो?
अंधकार को...................?
    जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
        बाल्को(कोरबा)



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# 99
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Date: 2020-03-08
Subject: 

घनाक्षरी-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

नइ घेपे कोनो ला वो,रँगे गाल दोनो ला वो।
भिरभिर भिरभिर,भागे गली खोर मा।
भूत कस दिखत हे,गला फाड़ चीखत हे।
नाक कान गली खोर,भरगेहे शोर मा।
रहिरहि नाचत हे, हिहिहिहि हाँसत हे।
मगन फिरत हवै,बंधे मया डोर मा।
नँगाड़ा मँजीरा धरे,पिचका मा रँग भरे।
होरी होरी रटत हे,फगुवा हे जोर मा।

खैरझिटिया



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# 98
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Date: 2020-03-05
Subject: 

काबर लालेच म खेलथस???
ंंंंंंंंंंंंंंंंंं
अऊ तो रंग बहुत हे.
काबर लालेच म खेलथस ?
हॉसत खेलत जिन्गी म,
काबर बारूद मेलथस. !!
पीके पानी फरी,
जुडा़ अपन नरी,
फेर काबर लहू पियत हस  ?
मनखे अस मन म समा,
रक्सा कस का जियत हस !
हरिंयर रंग हरागे हे,
ललहूं होगे हे माटी !
थोरकन तो दया धरम देखा,
का पथरा के हे तोर छाती?
भरके बंदूक म  गोली,
निरदई कस ठेलथस......
अऊ तो रंग ............
.............खेलथस  ???
बंदूक गईंज चलायेस,
कभू राज चला के देख !
मारे हस जेखर गोंसईंया,बेटा ल,
ओखरो घर आके देख,!.
मनखे होके मनखे ल ,                                                                                                                                                                     खावत हस नोंच नोंच !
फिलगे हे अचरा आंसू म,
अब ताे दाई के आंसू पोंछ !
छेदा छेदा के बम बारूद म,
दाई के छाती चानी हाेगे हे !
तरिया ढोंड़गा नरवा के पानी,
ललहुं  बानी होगे हे  !
कोन देखाथे ऑखी तोला,
बता!! का बात ल पेलथस .?.......
अऊ तो रंग................
.....................खेलथस ??
जंगल के जीव जीवलेवा हे,
फेर तोर जइसे नही,!
कहां लुकाबे बनवासी बन,
जब राम आ जही!
छीत मया के रंग,
अऊ खेल रंग गुलाल ले,!
नाच पारा -पारा बाजे नंगाडा़!
निकल जंगल के जाल ले!
खेल खेल म का खेले तैं,
मनखे के जीव लेलेय तैं,
अति के अंत हब ले होही,
बात मोर मान ले!
लड़ना हे त देश बर लड़,
छाती फूलाके शान ले!
फूल-फूलवारी मितान बना,
आखिर काखर बात ल हेलथस??
अऊ तो रंग.....................
.............................खेलथस????
जीतेन्र्द वर्मा
खैरझिटी(राजनांदगांव)



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# 97
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Date: 2020-03-04
Subject: 

मतगयन्द सवैया

* 211×7 या 7 भगण
* अंत म दो गुरु अनिवार्य
* कुल 23 वर्ण
* कारक के विभक्तियों को लघु की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है, 

उदाहरण

आदत  ले पहिचान बने अउ  आदत ले परखे नर नारी।
फोकट हे धन दौलत हा अउ फोकट हे घर खोर अटारी।
मीत  रहे  सबके  सबके सँग  बाँट मया भर तैंहर थारी।
तोर रहे  सब डाहर नाँव कभू झन होवय  आदत कारी।



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# 96
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Date: 2020-03-01
Subject: 

रंग तिहार(सरसी छंद)

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय   बुराई  नास।
सत के जोती जग मा बगरे,मन भाये मधुमास।

चढ़े मया के रँग दूसर दिन,होवय सुघ्घर फाग।
होरी   होरी  चारो   कोती, गूँजय  एक्के  राग।
ढोल नँगाड़ा बजे ढमाढम,बजे  मँजीरा  झाँझ।
रंग गुलाल उड़ावय भारी,का बिहना का साँझ।
करिया पिवँरा लाली हरियर,चढ़े रंग बड़ खास।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास....।

डूमर  गूलय  परसा फूलय, सेम्हर होगे लाल।
सरसो चना गहूँ बड़ नाचय,नाचे मउहा डाल।
गरती  तेंदू  चार  चिरौंजी,गावय  पीपर  पात।
अमली झूलय आमा मउरे,गीत कोयली गात।
घाम हवे ना जाड़ हवे जी,हवे मया के वास।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास।

होली  मा  हुड़दंग  मचावय,पीयय  गाँजा  भांग।
इती उती चिल्लावत घूमय,तिरिया असन सवांग।
तास जुआ अउ  दारू पानी,झगरा झंझट ताय।
अइसन मनखे गारी खावय,कोनो हा नइ भाय।
रंग मया के अंग लगाके,जगा जिया मा आस।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास..।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

होली तिहार के बधाई आप ला,



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# 95
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Date: 2020-02-25
Subject: 

गंग छंद

जहर हे बोली।लगे जस गोली।
मया ला मारे।गुण ज्ञान बारे।

बुने खुद जाला।खने खुद गाला।
तपा के काया।जुगाड़े माया।।

लबारी चारी।डुबाही यारी।
घर बन सिराही।काया पिराही।

आगी लगाही।ठेंगा दिखाही।
जोरे खजाना।तोरे खजाना।।

धरे हस खोखा।पाबे ग धोखा।
एक दिन तैंहा।कहत हँव मैंहा।

खुशी के बेरा।मोर अउ मेरा।
दुःख मा हारे।साथी पुकारे।

सच ला सुने ना।सच ला गुने ना।
काटे फरारी।थाम के आरी।

करथस अलाली।रट आज काली।
दुःख तैं पाबे।अबड़ पछताबे।

बाट धर सोजे।रेंग तैं रोजे।
तभे शुभ होही।सत सुख उल्होही।

खैरझिटिया



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# 94
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Date: 2020-02-20
Subject: 

छबि छंद

छाये बहार, चहुँओर यार।
आहे बसंत, सुख हे अनंत।

गावै बयार, नद ताल धार।
फइले उजास,भागे हतास।

सरसो तियार,बाँटे पिंयार।
नाचे पलास,कर ले तलास।

कइथे कनेर,उठ छोड़ ढेर।
बोइर बुलाय,आमा झुलाय।

जिवरा ललाय,अमली जलाय।
मुँह ला फुलाय,लइका रिसाय।

बन बाग मात,दिन मान रात।
होके मतंग,छीचे ग रंग।।

माँदर बजाय,होली जलाय।
सबला सुहाय,शुभ मास आय।

बाजे धमाल,होवय बवाल।
गा फाग गीत,ले बाँट प्रीत।

रचगे कपाल,हे गाल लाल।
फगुवा लुभाय,कनिहा झुलाय।

हे मीठ तान,मधुरस समान।
जब जब सुनाय,आलस चुनाय।

खैरझिटिया



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# 93
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Date: 2020-02-18
Subject: 

दरद दसमत के
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देखे हँव दरद ल,
दुवारी के दसमत के||
आज कटा-कटा के कल्हरत हे,
जे फूले राहय लटलट ले||

न नाक ल भाये,
न देवी देवता ल चढा़ये,
 कागज कस फूल,
के सेवा जतन भारी हे||
न नॉव के सुरता,
न देखे रेहेन बाप पुरखा,
तेखरे आज पुछारी हे||
सजात हे सबो दुवार ल,
रंग -रंग के फूल  रख के..||
देखे हँव दरद ल,
दुवारी के दसमत के...........||

 पहिली रहे पता घर के,
 के लाली दसमत हे मोर दुवार म||
देवता-धामी म चढे़ राहय,
नही ते हॉसत राहय हार म||
फेर फईले डारा-पाना
फईसन के आड़ आगे||
भले प्लास्टिक के नार लामे हे,
फेर असली पेड़ कटागे||
 जिहॉ दसमत के पेड़ तरी ,
दाई तुलसी सोये||
ते आज बइठ के गमला म,
रहि-रहि के रोये||
बनात हे फूलवारी,
गमला रख-रख के.........||
देखे हँव दरद ल,
दुवारी के दसमत के........||

कोनो खोजथे बिहनिया ले,
त छिन भर जिया जुडा़थे ||
मन माड़थे मोर,
जब देबी -देवता म चढा़थे||
मरत हे ए जुग म मोर मन,
"सियान के किस्सा कस"
"बेटी के इच्छा कस"
अब तो दॉंव लगे हे,
मोर अस्मत के......  ....||
देखे हँव दरद ल,
दुवारी के दसमत के......||

             जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'
                 बाल्को(कोरबा)



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# 92
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Date: 2020-02-17
Subject: 

छबि छंद

हावै उधार,करजा उतार।
सुन गा मितान,बन जा किसान।

बो धान पान,कहिला महान।
जग पेट पाल,कर ऊँच भाल।

ले भूख जीत,झन छोड़ रीत।
तैं जग अधार,दुख भूख टार।

जा खेत खार,गा गीत यार।
भुइयाँ सुधार,झन मान हार।

सिंह कस दहाड़,चढ़ जा पहाड़।
दरिया ल नाप,जाँगर ल खाप।

श्रम तोर पास,कर दे उजास।
तैं जोत आस,धरती अगास।

बन होशियार,बन जग मिंयार।
बरसा पिंयार,भागे दिंयार।

खैरझिटिया



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# 91
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Date: 2020-02-16
Subject: 

सुभगति छंद-आशा

आशा जिंहाँ,रद्दा तिंहाँ।
आशा गढ़े, तेहर बढ़े।

बिन आस के,विश्वास के।
नैया डुबे, नइहे सुबे।

आशा बिना,सोना टिना।
आशा रही,ता सब सही।

आशा हवे,ता सब नवे।
आशा जिंहाँ,दुख ना तिंहाँ।

सुख पथ इही, समरथ इही।
दीया हरे,जे नित बरे।

अंगार में,मजधार में।
जर दुःख में,भय भूक्ख में।

घर खार में,वैपार में।
आशा जगा,जिनगी भगा।

सब काम के,नित नाम के।
ये मन्त्र ए, सुख तन्त्र ए।

आशा धरे,ता दुख जरे।
हे आस ता,लिख दासता।

खैरझिटिया



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# 90
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Date: 2020-02-16
Subject: 

सुभगति छंद-शारद मां

दे ज्ञान माँ।वरदान माँ।
भव तारदे।माँ शारदे।

आनन्द दे।सुर छंद दे।
गुण ज्ञान दे।सम्मान दे।

सुख गीत दे।सत मीत दे।
सुरतान दे।अरमान दे।

दुख क्लेश ला।लत द्वेश ला।
दुरिहा भगा।सतगुण जगा।।

जोती जला।दे गुण कला।
माथा नवा।माँगौ दवा।

चढ़ हंस मा।सुभ अंस मा।
आ द्वार मा।भुज चार मा।

दुरिहा बला।अवगुण जला।
बिगड़ी बना।सतगुण जना।

वीणा सुना।मैं हँव उना।
पैंया परौं।अरजी करौं।

सद रीत दे।अउ जीत दे।
सत वार दे।माँ शारदे।

जीतेन्द्र



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# 89
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Date: 2020-02-14
Subject: 

शुभगति छंद-मास

माँस खाये।रोग लाये।।
मनुष तनके।असुर बनके।।

ये का करे।सुख ला हरे।।
दे दोष ना।आ होस मा।।

कुछ खाय मा।कहुँ जाय मा।
सावधानी।बरत प्राणी।।

पर देख मा।मर सेख मा।।
कुछु भी ल खा।झन मेछरा।।

रोग धरही।खुशी मरही।।
कल्हरत रबे।दुख मा दबे।।

ओखी लगा।झन दुख जगा।
खुद ध्यान दे।सुख आन दे।।

बड़ किसम के।रोग दमके।।
हद जे करे।वोला धरे।।

बेकार हे।अहार ये।।
खा साग ला।टरही बला।।

तैं खा बने।भोजन गने।।
तभे सुख हे।बाकि दुख हे।।

जीबे बने।रहिबे तने।।
तज माँस ला।गल फाँस ला।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा



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# 88
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Date: 2020-02-14
Subject: 

शुभगति छंद-बिहाव

मड़वा सजा।बाजा बजा।
हरदी रँगा।पगड़ी मँगा।

आही सगा।आरो लगा।
दूल्हा बने।चल गा तने।

संगी बुला।मुँह ला उला।
मस्ती मना।जिनगी बना।

लाड़ू ढुला।दुख ला भुला।
नाचत रहा।सुख दिन पहा।

घोड़ी चढ़े।चल गा बढ़े।
ये साल मा।खुशहाल मा।

बारात जा।लघिनात जा।
हावै लगन।रहिबे मगन।

दो एक ले।हो देख ले।
छाही खुशी।आही खुशी।

जोड़ी बिना।झन दिन गिना।
ला संगनी।सुख डंगनी।

खैरझिटिया



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# 87
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Date: 2020-02-14
Subject: 

कइसे बसंत आथे📝
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रितु बसंत बैठे बाजू म, 
बतियाय कवि ले|
मोर नॉव के बोझा ल,
तंय ढोवत हस अभी ले..... |||
 
 मंय सहर नगर ले दूर
डिही डोंगरी खेत-खार म रिथो|
मोर मन के बात ल,
पूरवईया बयार म किथो|

मंय आमा म मौंरे हों,
मंय परसा म फुलें हौ|
बंभरी म सोनहा खिनवा कस,
त अमली म झूले हौ|

मंय गंहू के  बाली बने हौं
महिं फुल महिं माली बने हौं|
झुले चिरई चढ़के फुलगी म,
महिं पाना महिं डॉली बने हौं|

 कोयली संग मंय  बोलथंव|
फगुवा म रंग मंय घोलथंव|
घमघम ले अरसी कस फुले हौ,
त पिंवरा सरसो का डोलथंव|

मंय मुंग मुंगेसा फुट फुटेना कस,
रंग रंग के खाजी|
लहलहावत खेतखार म,
आनि-बानि के भाजी|

मंय घाट-घठौंदा;बाग-बगईचा,
अलिन-गलिन म नाचत हौं|
कुहकी पारत मगन होके,
लईकामन कस हॉसत हौं|

बरखा आथे त पानी गिरथे,
सीत आथे त जाड़ लगथे,
अऊ गरमी गरमाथे|
तंय नई लिखतेस त कोन जानतिस?
कइसे बसंत आथे|
        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
           बाल्को(कोरबा)



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# 86
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Date: 2020-02-14
Subject: 

एक दिन के दिवस(सार छंद)

का  का  दिवस  मनाथौ  भैया,सुनके  काँपे  पोटा।
नेत नियम कुछु आय समझ ना,धरा दुहू का लोटा।

दाई ददा गुरू ज्ञानी ला,दिन तिथि मा झन बाँधौ।
देखावा मा उधौ बनौ ना,देखावा मा माँधौ।
दया मया नित बड़े छोट ला,हाँस हाँस के बाँटौ।
धरे एक दिन फूल गुलाब ल,कखरो सिर झन चाँटौ।
पश्चिम के परचम लहरावत,बनव न सिक्का खोटा।
का  का  दिवस  मनाथौ  भैया,सुनके  काँपे  पोटा।

हूम  देय  कस  काज करौ झन,करौ नही देखावा।
अइसन दिवस मनावौ झन जे,फूटय बनके लावा।
मीत  मितानी  रोजे  बढ़ही,रोजे  धन  दोगानी।
एक दिवस मा काम चले नइ,भजौ मीठ नित बानी।
थामव हाथ म डोर मया के,झन धर घूमव सोंटा।
का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा--।

दाई  बाबू  के  पूजा  तो,रोजे होना  चाही।
रोजे जागे देश प्रेम हा,तभे बात बन पाही।
पवन पेड़ पानी ला जतनौ,रोजे पुण्य कमावौ।
धरती  दाई  के  सुध  लेवव,पर्यावरण बचावौ।
गौरया के गीत सुनौ नित,मारव झन जी गोंटा।
का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा।

चर दिनिया हे मानुष काया,हाँसी खुशी गुजारौ।
धरत हवै भुतवा पश्चिम के,दया मया ले झारौ।
संस्कृति अउ संस्कार बचावौ,आदत नियत सुधारौ।
सबके जिया मा बसव बने बन,कखरो घर झन बारौ।
सोज्झे मुरुख बनावत फिरथौ,अपन उठा के टोंटा।
का का दिवस मनाथौ भैया,सुनके काँपे पोटा-----।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरखिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 85
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Date: 2020-02-13
Subject: 

शुभगति छंद

माँस खाये।रोग लाये।।
वाह मनखे।असुर बनके।।

ये का करे।सुख ला हरे।।
दे दोष ना।आ होस मा।।

कुछ खाय मा।कहुँ जाय मा।
सावधानी।बरत प्राणी।।

पर देख मा।मर सेख मा।।
कुछु भी ल खा।झन मेछरा।।

रोग धरही।खुशी मरही।।
कल्हरत रबे।दुख मा दबे।।

ओखी लगा।झन दुख जगा।
खुद ध्यान दे।सुख आन दे।।

बड़ किसम के।रोग दमके।।
हद जे करे।वोला धरे।।

बेकार हे।अहार ये।।
खा साग ला।टरही बला।।

तैं खा बने।भोजन गने।।
तभे सुख हे।बाकि दुख हे।।

जीबे बने।रहिबे तने।।
तज माँस ला।गल फाँस ला।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा



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# 84
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Date: 2020-02-13
Subject: 

सुभगति छंद-पुस्तक

पुस्तक धरे।करनी करे।।
सत गुण भरे।ओहर तरे।।

राजा पढ़े।आजा पढ़े।
ज्ञानी पढ़े।ध्यानी पढ़े।।

सुख शांति ए।ये क्रांति ए।।
ये मीत ए। ये गीत ए।।

ये जीत ए।ये रीत ए।।
संगीत ए।सुर प्रीत ए।।

सागर हरे।घर बन हरे।।
मोती हरे।जोती हरे।।

कल आज ए।सरताज ए।।
ये राज ए।ये साज ए।।

ये शान ए।।सम्मान ए।।
सब चीज ए।सत बीज ए।।

जग सार ए।आधार ए।।
ये ज्ञान ए। सम्मान ए।।

ये हल हरे।थल जल हरे।।
येमा सबे।हे गुण दबे।।

झन दूर जा।तैं बूड़ जा।।
उफलत रबे।गुण मा दबे।।

ज्ञानी बने।ध्यानी बने।।
पुस्तक पढ़े।ते सुख गढ़े।।

सरि जग बसे।पर सग बसे।
गुण जान के।पढ़ लान के।।

पुस्तक सहीं।कोनो नहीं।।
येला पढ़े।ते नित बढ़े।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा



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# 83
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Date: 2020-02-13
Subject: 

महाशिवरात्रि विशेषांक

सर्वगामी सवैया - खैरझिटिया
माथा म चंदा जटा जूट गंगा गला मा अरोये हवे साँप माला।
नीला  रचे  कंठ  नैना भये तीन नंदी सवारी धरे हाथ भाला।
काया लगे काल छाया सहीं बाघ छाला सजे रूप लागे निराला।
लोटा म पानी रुतो के रिझाले चढ़ा पान पाती ग जाके सिवाला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा

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कुकुभ छंद -खैरझिटिया

सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।
दुःख द्वेस जर जलन जराके,सत के बो बीजा बाबा।

मन मा भरे जहर ले जादा,कोन भला अउ जहरीला।
येला पीये बर शिव भोला,का कर  पाबे तैं लीला।
सात समुंदर घलो म अतका, जहर भरे नइ तो होही।
देख झाँक के गत मनखे के,फफक फफक अन्तस रोही।
बड़े  छोट  ला घूरत  हावय, सारी  ला जीजा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा

धरम करम हा बाढ़े निसदिन,कम होवै अत्याचारी।
डरे  राक्षसी  मनखे  मनहा,कर  तांडव हे त्रिपुरारी।
भगतन मनके भाग बनादे,फेंक असुर मन बर भाला।
दया मया के बरसा करदे,झार भरम भुतवा जाला।
रहि  उपास  मैं  सुमरँव तोला ,सम्मारी  तीजा  बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।

बोली भाँखा करू करू हे,मार काट होगे ठट्ठा।
अहंकार के आघू बइठे,धरम करम सत के भट्ठा।
धन बल मा अटियावत घूमय,पीटे मनमर्जी बाजा।
जीव जिनावर मन ला मारे,बनके मनखे यमराजा।
दीन  दुखी  मन  घाव  धरे  हे,आके  तैं सी जा बाबा।
सागर मंथन कस मन मथके,मद महुरा पी जा बाबा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा

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सार छंद - खैरझिटिया

डोल  डोल  के   डारा  पाना ,भोला  के  गुण   गाथे।
गरज गरज के बरस बरस के,सावन जब जब आथे।

सोमवार के दिन सावन मा,फूल पान सब खोजे।
मंदिर  मा भगतन  जुरियाथे,संझा  बिहना रोजे।

लाली दसमत स्वेत फूड़हर,केसरिया ता कोनो।
दूबी  चाँउर  छीत छीत के,हाथ ला जोड़े दोनो।

बम बम भोला गाथे भगतन,धरे खाँध मा काँवर।
नाचत  गावत  मंदिर  जाके,घुमथे आँवर भाँवर।

बेल पान अउ चना दार धर,चल शिव मंदिर जाबों।
माथ  नवाबों  फूल  चढ़ाबों ,मन चाही  फल पाबों।

लोटा  लोटा  दूध  चढ़ाबों ,लोटा  लोटा  पानी।
भोले बाबा हा सँवारही,सबझन के जिनगानी।

साँप  गला  मा  नाँचे  भोला, गाँजा   धतुरा  भाये।
भक्तन बनके हवौं शरण मा,कभ्भू दुख झन आये।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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# 82
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Date: 2020-02-12
Subject: 

शुभम (शुभगति छंद)

काम धंधा, म हो अंधा।
रहिथस लगे,हरपल जगे।

घर द्वार ले,परिवार ले।
दुरिहाय के,का पाय रे।

काम  जादा,करे आधा।
तोर मन ला,तोर तन ला।

तैं चेत जा,सुधबुध लगा।
बेरा बचा,जिनगी रचा।।

खुशी रँग मा,रँग अंग ला।
परिवार ला,घर बार ला।

पैसा धरे,रहिथस परे।
नइहे मया।नइहे दया।

हाँ हाय मा। पद पाय मा।
बेरा कटे।पइसा रटे।

बेरा खपा।झन तन तपा।
सुख ला घलो।तन मा पलो।

धन धान हा,अउ शान हा।
सुख दे जही।बेरा रही।

खैरझिटिया



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# 81
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Date: 2020-02-12
Subject: 

गोपी छंद

दरद मा जीना सीखव जी।
दुःख ला पीना सीखव जी।
हरे जिनगी रथ के चक्का।
कभू हे मया कभू धक्का।।

हौसला हार म झन छोड़व।
जीत कखरो ना दिल तोड़व।
गरब के झन ओढ़व ओन्हा।
सामने आवव तज कोन्हा।।

बड़े के कहना ला मानौ।
ददा दाई ला सत जानौ।
छोड़ दौ चुगली चारी ला।
फेक दौ टँगिया आरी ला।

मितानी दया मया जोरे।
चलौ जिनगी मा सत घोरे।
मीठ बोलव भाँखा बोली।
जलावौ  इरसा के होली।

काम बूता मा बन चोक्खा।
बनौ तन अउ धन ले पोक्खा।
बसौ सब झन के अन्तस् मा।
रखव मन ला अपने बस मा।

करौ सादा खाना पीना।
रहौ फिट तान अपन सीना।
नशा के चक्कर मा पड़के।
शांति ला छीनौ ना घरके।

रूप सँग गुणों जरूरी हे।
मया मनखे के धूरी हे।
काम आवव नित सबझन के।
मनुष अव रहव मनुष बनके।

अमर काया ला जी करलौ।
बने के संगत ला धर लौ।
नाम बस ये जग मा छाथे।
काम वाले ला सब भाथे।

एक दिन जग ले हे जाना।
धरौ झन लालच मा दाना।
करम बढ़िया जेखर होथे।
जाय मा ओखर जग रोथे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा



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# 80
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Date: 2020-02-12
Subject: 

गोपी छंद

रिहिस नइ जब बिजली घर मा।
रात हा गुजरे तब डर मा।।
कुलुप लागे रतिहा डेरा।
पहाये लटपट मा बेरा।।

बनिस चिमनी जीवन धारा।
उही फैलावै उजियारा।।
तेल पीये चिमनी बाती।
अँजोरी होवै तब राती।।

सबे घर मा होवै चिमनी।
हवा आवै रोवै चिमनी।।
बार भभका दीया आगी।
जिये मनखे बन बैरागी।।

चले चिमनी मा जिनगानी।
उमर काटिस दादी नानी।।
रात भर चिमनी हा बरके।
भगाये अँधियारी घर के।।

एक दू ठन सब घर  होवै।
अँजोरी बर बर नित बोवै।
आदमी सँग  जावै चिमनी।
 काम रतिहा आवै चिमनी।।

घाम बरसा अउ जड़काला।
बार चिमनी सोवै लाला।।
कहाँ अब नाम निसानी हे।
बने ये आज कहानी हे।।

अभो बीहड़ कोती दिखथे।
जेन जल दुख पीरा लिखथे।
नया युग मा पूछे कोनो।
भरे नैनन हा तब दोनो।।

आज बिजली घर घर छाहे।
अँजोरी चकचक ले आहे।
गोल  बिजली होवै रत्ती।
बरे तब टार्च मोमबत्ती।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा



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# 79
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Date: 2020-02-11
Subject: 

आनन्दवर्धक छंद

मार कोनो जीव ला,झन खाव जी।
खाय वोला मिल सबो,समझाव जी।

साग भाजी, खाय पीये बर हरे।
पेट बर तब जीव मन,काबर मरे।

शान समझे अउ बिसाये, माँस ला।
तौन हुरसे तन म,काँटा फाँस ला।।

गार कुकरी बोकरा ले,असकटा।
खात हे अब,साँप बिच्छी मटमटा।

आदमी बाराजती ला,खात हे।
माँस कुछ भी होय,बच नइ पात हे।

माँस के कइसे,सहे जी बास ला।
देख कच्चा खा,चुने खुद नास ला।

तेखरे तो, आज ये परिणाम हे।
रोग राई,बड़ किसम के आम हे।

कोन जानी काय, करही आदमी।
देख हालत कब सुधरही, आदमी।

जीव मन ला,मार खाये के सजा।
देख तो भुगतत हवै,दुनिया लजा।

जानवर ले वायरस,आ जात हे।
देखते देखत, मनुष मर जात हे।

ना दवाई ना सुई ,टीका मिले।
बन महामारी, मनुष मन ला लिले।

वायरस हा काल बन, तन चीखथे।
फेर मनखे मन,कहाँ कुछु सीखथे।

काल बनही,नइ सुधरबों तब इही।
एक पल में जीव सबके,ले लिही।

जीव मारे पाप लगथे,जान लौ।
खुद असन,सब जीव मन ला मान लौ।

जड़ हरे सब रोग के,भोजन हमर।
खाव सादा साग ताजा,कस कमर।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 78
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Date: 2020-02-10
Subject: 

बिजली

घर घर मा जब आइस बिजली।



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# 77
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Date: 2020-02-10
Subject: 

विष्णु पद छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बात बात मा जे मनखे मन,जादा क्रोध करे।
तेखर तन मन आग बरोबर,बम्बर रोज बरे।।

मिले नही कुछु क्रोध करे ले,होय बिगाड़ भले।
क्रोध करइया के जिनगी के,सुख के सुरुज ढले।

रखे क्रोध ला जे काबू मा,तेखर होय भला।
क्रोध करइया मन हर जीथे,सुख अउ शांति गला।

कंस क्रोध मा होगिस अँधरा,पालिस बैर बला।
रावण घलो क्रोध मा मरगिस,लंका अपन जला।।

मनुष होय सुर दनुज जानवर,सबला क्रोध लिले।
जेन राख पावै जी काबू,तेखर भाग खिले।।

मनुष हरस तैं मतिगति वाले,अपन दिमाक लगा।
क्रोध लोभ अउ मोह होय नइ,कखरो कभू सगा।

क्रोध राख के काम करे जे,तेखर आय रई।
देव दनुज अभिमानी ज्ञानी,आइस इँहा कई।

क्रोध काल ए क्रोध जाल ए, क्रोध ह हरे दगा।
क्रोध छोड़ के दया मया ला,अन्तस् अपन लगा।

क्रोध छोड़ जे दया मया ला,पाले अपन जिया।
तेखर जिनगी मा सुख छाये,पाये राम सिया।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 76
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Date: 2020-02-09
Subject: 

पद्धरि छंद

घर के होवै जौने सियान।
ते राखे सबझन के धियान।
सबके सुख दुख के सुध लमाय।
दाना पानी बर नित कमाय।।

नइ करे कभू वो भेदभाव।
कोनो ला वो नइ देय घाव।
मुखिया के मुख कस होय काम।
नइ करे कोढ़ियाई  अराम।।

जौने घर मा होवै सियान।
बाढ़ें उँहिचे धन बल गियान।
बिन मुखिया के जर डर हमाय।
दारिद दुख घर मा पग जमाय।

घर होवै चाहे देश राज।
मुखिया चाही सब्बे ल आज।
मिलजुल बढ़िया जब होय काम।
बगरे तब चारो खूँट नाम।

खैरझिटिया



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# 75
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Date: 2020-02-09
Subject: 

आनंदवर्धक छंद

मोर मैं तैं तोर ये सब,काय जी।
दुःख के कारण,इही सब ताय जी।

काल के सुध छोड़ के जी,आज मा।
नइ मिले सब सुख घलो,घर ताज मा।

फोकटे तैं रोज झनकर,हाय जी।
दुःख के कारण इही सब ताय जी।।

ज्ञान गुण ले का बड़े, धन रूप हे।
जाड़ बरसा अउ जरूरी,धूप हे।।

धन गरब तोला, कभू झन खाय जी।
दुःख के कारण,इही सब ताय जी।।

सोच मा झन जी,सुबह अउ शाम के।
नाम मिलही संग धरले, काम के।।

जे जले धन देख, ते बोहाय जी।
दुःख के कारण,इही सब ताय जी।।

खैरझिटिया



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# 74
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Date: 2020-02-08
Subject: 

पद्धरि छंद

मनखे पश्चिम कोती झपाय।
आनी बानी ओन्हा बिसाय।
आघू पाछू जे हे कपाय।
तेला पहिरे अउ मेछराय।।

फैंशन कहिके पहिरे जवान।
लइका लोग न लागे सियान।
अपने ला सब ज्ञानी बताय।
टूरी टूरा सेखी जताय।।

चिरहा पट लहुटे फेर आज।
हे ये युग हा बड़ रंगबाज।।
चिरहा कस तेखर खूब दाम।
येमा कोन लगाये  लगाम।।

फरिहर संस्कृति गे आज मात।
चउमिन चगले सब छोड़ भात।
चाल चलन सँग मा रंग ढंग।
सब मा घुरगे परदेश रंग।।

जेला पहिरे मा आय लाज।
तेहर बनगे जी शान आज।
बीते बेर लहुट देख आय।
पहली ये मजबूरी कहाय।

अँखमुंदा सबझन मन नपाय।
 छोट बड़े सबला खूब भाय।
रख तैंहर अपने तीर कोप।
नइ भाये ता खुद नैन तोप।।

खैरझिटिया



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# 73
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Date: 2020-02-08
Subject: 

आनन्दवर्धक छंद

लालचीपन, दुःख के कारण हरे।
धीर अउ संतुष्टि हर, तारण हरे।।

भाय धन दौलत,सबे के नैन ला।
लोभ हर लेवै, सबे के चैन ला।।

पेट के सुध छोड़ , जादा खाय जे।
बाद मा मुड़ धर,अबड़ पछताय ते।

अति बने नइ होय, कभ्भू जान ले।
हे जतिक वोला अपन, तैं मान ले।

लोभ जादा के कभू,नइ तो फले।
लालची मनखे हथेली,नित मले।।

चीज पर के देख,जे लालच करे।
ओखरे कोठी तिजोरी,नइ भरे।।

हे जतिक ततकी ल,अपने मान जी।
सोन चाँदी तोर,गुण अउ ज्ञान जी।।

धन नही तन मा, जगाके आस रख।
लोभ दुरिहा फेंक के,विश्वास रख।।

कद बढ़ाले,काम आ पर के सदा।
पा मनुष तन,दान कर तैं ऋण अदा।।

चीज बस धन लाभ हा, बेकार हे।
मीत ममता सत सुमत,बस सार हे।।

लालची बन झन किंदर, बेकार मा।
लोभ करबे ता रबे, नित हार मा।।

जंग जिनगी के कहूँ हे, जीतना।
धीर धर,जाये समय हा बीत ना।।

खैरझिटिया



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# 72
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Date: 2020-02-08
Subject: 

आनन्दवर्धन छंद

आज तो सब तीर,हाँहाकार हे।
शांति सुख नइहे,परे गोहार हे।।

रेडियो बों बों,बजे रात दिन।
आड़ होवै नइ घलो,एकात दिन।।

घर सड़क सब तीर,हल्ला होत हे।
रोज के अधराति, मनखे सोत हे।।

युग मशीनी हा खड़े,मुँह फार के।
शोरगुल हे,कारखाना कार के।।

काम करथे आज,चिल्ला सरि जहाँ।
बाज बिन निकले, बराती हा कहाँ।।

सब दिखावा हे, असल ला छोड़ के।
खुद बजाये, घुंघरू ला गोड़ के।।

बाग बन नदिया, ठिहा घर खोर हा।
नइ सुहावै,होय अड़बड़ शोर हा।।

कान झन्नाये,करेजा चानथे।
शोरगुल ला शान मनखे मानथे।।

शोरगुल सुन जानवर, संसो करे।
जीव मनके चैन सुख,मनखे हरे।।

जान के मनखे घलो अनजान हे।
कह भले नइ पाय सच परशान हे।।

खैरझिटिया



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# 71
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Date: 2020-02-07
Subject: 

पीयूषवर्षी छंद

हाट मेला बाद,कचरा छाय हे।
मौज मस्ती देख,रोना आय हे।
फेंक चारों खूँट,कागज सनपना।
सब फिरे मतवार,मस्ती मा सना।।

बड़ करे उपयोग,प्लास्टिक हाँस के।
ये निसानी आय,सबके नॉस के।
ये जले ता होय,सब कोती धुँवा।
बाँझ बन थल रोय,जस सुक्खा कुँवा।

काँच के भरमार,मिलथे ये जघा।
देय बॉटल फोड़,मउहा मद चघा।
पर फिकर ला छोड़,अपने मा तने।
जीव मनके काल,मनखे मन बने।

साफ़ सुथरा ठौर,देखव  मात गे।
सुध धरे अब कोन,दिन अउ रात गे।
गाय गरु सकलाय,झिल्ली खात हे।
नइ पचा वो पाय,खा मर जात हे।।

रोज के बर्बाद,होवत हे प्रकृति।
मार खा अंधेर,रोवत हे प्रकृति।
थल पवन नभ नीर,सब में विष भरे।
हाय मानुष काय,तैं करनी करे।


खैरझिटिया



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# 70
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Date: 2020-02-06
Subject: 

मोरो घर आबे बसंत
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पूर्वा  म  ; झंकार  भरे  तैं।
कोयली संग;हुँकार भरे तैं।
झर्राये  जुन्ना पाना-पतउवा,
नवा - नवा ;सिंगार करे तैं।
अवगुन ले मैं  भरे  पड़े हौं,
पढ़ादे       गुण        ग्रंथ।
मोरो घर आबे बसंत......।

परसा       लाली - गुलाली     होगे।
मउरे आमा;लिटलिट ले डाली होगे।
नाचे    खेत   म ,चना-मसूर  अरसी,
झूले सरसो,कंसी गहुँ के बाली होगे।
मोर मन के मधूबन में, कान्हा कहाँ?
डर्हवाथे मोला  कंस..................।
मोरो घर आबे बसंत...................।

आबे   ढोल   नंगाड़ा   धरके।
फगुवा  म  झूमत पारा धरके।
सेंकबे मोला मया के तेलई म,
बरा-सोंहारी कस झारा धरके।
मन      मोर     माने      नही,
बनादे वोला संत................।
मोरो घर आबे बसंत...........।

मोह माया ल  पोटारे  बइठे हों।
अंतस म  आगी  बारे बइठे हों।
नइ  भाय  सत   सुनई -  देखई,
इरसा के आँखी उघारे बइठे हों।
पाना   कस       माया    झर्रादे,
दुख-दरद के करदे अंत..........।
मोरो घर आबे बसंत..............।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
(ब्लॉग म संरक्षित)



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# 69
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Date: 2020-02-05
Subject: 

तुम्ही तो हो

तुम सागर के मोती हो।
 तुम जीवन के ज्योति हो।
     पर्व खुशी के तुम ही हो।
       तुम पावन सुरहोती हो ।

ज्ञान के साक्षात मूर्ति हो तुम।
        अभावों के पूर्ति हो तुम।
    सुगम पथ तुम,तीव्र रथ तुम।
       पवन,जल के फूर्ति हो तुम।

 तुम शांति के सेज हो।
    तुम सूरज के तेज हो।
    बेरंग जिंदगी के पट को,
      तुम रंगने वाले रंगरेज हो।

तुम शुभ गुण राशि।
     तुम मथुरा कासी।
      तेरे साथ रहे हरपल,
    सुख शांति बनकर दासी।

ममता की मूरत।
  मनभावन  सूरत।
  आज और कल की,
        तुम हो जरूरत।

तुम हो विजयी माँ।
 तुम हो कालजयी माँ।
 आशीष सदा देते रहना,
     हे मेरे ममतामयी माँ।।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छग)



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# 68
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Date: 2020-02-03
Subject: 

पीयूष वर्षी छंद

अब मया के गीत, नइहे गाँव मा।
चैन नइ बर लीम,पीपर छाँव मा।
होत हे बदलाव,सब मा रोज के।
गेंव थक अउ हार,गाँव ल खोज के।

कोयली के कूक, अब तो नइ मिले।
सत सुमत के फूल,चिटिको नइ खिले।
आस अउ विश्वास,के सूरज ढले।
द्वेष इरसा बैर,घर घर मा पले।।

पाना कस पिरीत,नित झड़ जात हे।
तोड़ ममता मीत, मनखे खात हे।
जे नही ते बैर,धर जीयत हवै।
काखरो तो तीर,कोनो नइ नवै।।

गोठ हा बारूद,जइसन नित फुटे।
मैल मनके धोय,कखरो नइ छुटे।
का करौं मैं हाय, बढ़गे पाप हा।
मुँह उलाये ठाढ़,हे सन्ताप हा।।।

गाँव मा गौठान,तरिया पार ना।
हे भवन मीनार,खेती खार ना।
नइ बचे हे पेड़,अउ नइ पात हे।
शांति सुख उन्माद,झट झर जात हे।।

का बदी मैं देंव,दूसर ला भला।
खुश रथों धन जोर,सत सुमता हला।
काल के सुध छोड़,जीयँव आज मा।
जल पवन थल रोय, मोरे राज मा।

खैरझिटिया



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# 67
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Date: 2020-02-01
Subject: 

सृंगार छंद

रोग राई सब दिन अउ रात।
लगाके बइठे रइथे घात।।
राँध के खावो ताते तात।
तभे तो बनही मन के बात।।

बोय बीमारी बासी चीज।
लपरवाही जुड़ जर के बीज।
तेलहा फुलहा जादा नून।
खाव झन कोनो दूनो जून।

पीत कफ अउ जब बाढ़ें वात।
तभे बिगड़े  तन के हालात।
पहट के ताजा ताजा वायु।
बढ़ावै सबझन के जी आयु।

काम बूता तन के व्यायाम।
जेन करथे पाथे वो दाम।
आलसी मनखे भोगे दुक्ख।
धरे जर तब उड़ जावै भूक्ख।

नींद आवै ना आवै चैन।
कटे ना जर मा दिन अउ रैन।
झरे नैनन ले अँसुवन धार।
देखते देखत होवै हार।

जहर महुरा घोरे उद्योग।
होय मच्छर माछी ले रोग।
हाथ अउ मुँह ला धोवो साफ।
करे कभ्भू ना बीमारी माफ।

जमा कूड़ा करकट झन होय।
रहव कभ्भू झन सुधबुध खोय।
अपन रक्षा हे अपने हाथ।
खुशी रइही तभ्भे जी साथ।।

खैरझिटिया



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# 66
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Date: 2020-02-01
Subject: 

गोपी छंद- बसंत ऋतु

बसंती गीत पवन गाये।
बाग घर बन बड़ मन भाये।
कोयली आमा मा कुँहके।
फूल के रस तितली चुँहके।

करे भिनभिन भौरा करिया।
कलेचुप हे नदिया तरिया।।
घाम अरझे  अमरइया मा।
भरे गाना पुरवइया मा।।

पपीहा शोर मचावत हे।
कोयली गीत सुनावत हे।
मगन मन मैना हा गावै।
परेवा पड़की मन भावै।।

फरे हे बोइर लटलट ले।
आम हे मउरे मटमट ले।
गिराये बर पीपर पाना।
फूल परसा मारे ताना।।

फुले धनिया सादा सादा।
टमाटर लाल दिखे जादा।
लाल भाजी पालक मेथी।
घुमा देवय सबके चेथी।

मसुर अरहर मुसमुस हाँसे।
बाग बन खेत जिया फाँसे।
चना गेहूँ अरसी सरसो।
याद आवै बरसो बरसो।

सरग कस लागत हे डोली।
कहे तीतुर गुरतुर बोली।
फूल लाली हे सेम्हर के।
बलावै बिरवा डूमर के।।

बबा सँग नाचत हे नाती।
खुशी के आये हे पाती।
नँगाड़ा झाँझ मँजीरा धर।
फाग ले जावै पीरा हर।।

सुनावै हो हल्ला भारी।
मगन मन झूमै नर नारी।
प्रकृति सज धज के हे ठाढ़े।
मया मनखे मा हे बाढ़े।।

मटक के रेंगें मुटियारी।
पार खोपा पाटी भारी।
नयन मा काजर ला आँजे।
मया ममता खरही गाँजे।।

राग फगुवा के रस घोरे।
चले सखि मन बँइहा जोरे।
दबाये बाखा मा गगरी।
नहाये खोरे बर सगरी।

पंच मन बइठे बर खाल्हे।
मगन गावै कर्मा साल्हे।
ढुलावय मिलजुल के पासा।
धरे अन्तस् मा सुख आसा।।

हदर के खावत हे टूरा।
चाँट अँगरी थारी पूरा।।
चुरे हे सेमी अउ गोभी।
पेट तन जावै बन लोभी।

टमाटर चटनी नइ बाँचे।
मटर गाजर मूली नाँचे।
पपीता पिंवरा पिंवरा हे।
ललावत सबके जिवरा हे।।

हाट हटरी मड़ई मेला।
जिंहा होवय पेलिक पेला।
ढेलुवा सरकस अउ खाजी।
मजा लेवय दादी आजी।।

जनावत नइहे जड़काला।
प्रकृति लागत हावै लाला।
खुशी सुख मन भर बाँटत हे।
मया के डोरी  आँटत हे।

सबे ऋतुवन के ये राजा।
बजावै आ सुख के बाजा।
खुशी हबरे चोरो कोती।
बरे  नित दया मया जोती।

खैरझिटिया



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# 65
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Date: 2020-01-29
Subject: 

बसंत के दूत

               पूस महीना जब धुँधरा,कोहरा अउ ठुठरत जाड़ ल गठियाके  जाय बर धरथे,तब माँगे महीना माँघ बसंती रंग के सृंगार करे पहुना बरोबर नाचत गावत  हबरथे।माँघ महीना म पुरवा सरसर सरसर गुनगुनाय ल धर लेथे।सुरुज नारायण घलो जइसे जइसे बेरा बाढ़त जाथे अपन तेज ल बढ़ायेल लगथे।जाड़ ल जावत देख चिरई -चिरगुन,जीव- जानवर  पेड़-पउधा,बाग-बगइचा अउ मनखे मनके मन मतंग बरोबर दया मया अउ सुख शांति के अगास म उडियाय बर लग जथे।खेत खार म उन्हारी,उतेरा जेमा चना,गहूँ, तिवरा, सरसो,मसूर,राहेर,अरसी के संगे संग बखरी बारी के धनिया,मेथी,गोभी,पॉलक अउ रंग रंग के साग भाजी पुरवइया हवा म ममहायेल लग जथे।तरिया, नँदिया,नरवा के पानी धीर लगाके लहरा मारत,रद्दा रेंगत मनखे ल तँउरे बर बलाथे त ऊँच ऊँच बर,पीपर,कउहा,सेम्हर,बम्हरी,साल,सरई,तेंदू,चार,आमा,
डुमर अउ कतको पेड़ मतंग होके नाचेल धर लेथे।बाग बगइचा म रंग रंग के फूल  तितली,भौरा के संगे संग मन भौरा ल घलो अपन तीर खिंचेल धर लेथे।अमरइया म कोयली के गाना,पेड़ तरी म बंधाये झूलना अउ पेड़ म झूलत झोत्था झोत्था मउर मन ल मोह लेथे।बोइर पेड़  म लटलट ले लदाये हरियर पिंवरी अउ लाल फर ल देख के बिना एकात ढेला मारे जिवरा नइ अघाय। हवा म झूलत कोकवानी अमली देख भला काखर मुँह म पानी नइ आय?गरती,तेंदू,चार ,महुवा,पिकरी,डूमर खावत कतको चिरई मन मनभर गीत गाथे।अउ बसंत के सुघ्घर दर्शन करावत गीत गाथे।

           माँघ तिथि पंचमी देवी सरस्वती के पूजा पाठ  के दिन होथे,ये दिन ले फागुन के गीत,झाँझ,मंजीरा गली गली चौरा चौरा म सुनायेल धर लेथे।बसंत ऋतु के स्वागत सत्कार म नाचा - गम्मत,मड़ई ,मेला,गीत कविता चारो मुड़ा गूँजेल लग जथे।बसंत ऋतु  म परसा,सेम्हर  लाली लाली फूल म लदाये बर लग जथे।बिरवा के पिवरी पात झरथे अउ नवा पान फोकियायेल लगथे।बसंत ऋतु सब ऋतु ले खास होथे,ये समय घर,बन,बारी,बखरी,खेत,खार,नदी,पहाड़ सबो चीज म खुशी सहज दिखथे।गावत झरना,चिरई चिरगुन,पुरवा अउ नाचत पेड़-पात,लइका सियान सबो जघा दिख जथे।सरसो,राहेर,चना ,गहूँ,अरसी, मसूर,लाख,लाखड़ी सबो रंग रंग के फूल धरके नाचे गाये कस लगथे।बसंत ऋतु म कोयली के गाना,नँगाड़ा के थाप,फाग अउ मेला मड़ई मन मोह लेथे।ये सब ला देख देख सबके मन  म खुशी दउड़त रथे।भुइयाँ कस दसना म रंग रंग के खेल खेलत लइका मन मतंग रथे।
          पहली मनखे मनके मन म बसन्त के वास होवय तरिया,नँदिया,डोली,डंगरी,घाट,बाट,बारी  बखरी,बाग बगइचा, खेत खार घर के दुवारी ले नजर आय।प्रकृति के कोरा म ठिहा ठउर रहय,चिरई- चिरगुन छानी परवा म नाचे गाये।घर के दुवारी म लाली दसमत,अँगना म तुलसी के चौरा,गमकत गोंदा, ममहावत दवना,घमाघम फुले अउ झूले मुनगा,बारी म सेमी नार,भाजी पाला,झूलत केरा खाम,अउ कतको मनमोहक छटा अइसने मन लुभावत रहय,आज ये दृश्य देखे बर नइ मिले।कँउवा  के कांव कांव  लटपट म सुनाथे,तब कोयली,मैना,सुवा,गौरैया के गीत ल छोड़ दे।
 फेर जब जब बसंत आथे अन्तस् म ये सब हिलोर लेय बर धर लेथे।बिन परसा फूल देखे घलो ओखर लाली रंग अन्तस् म अपन सुन्दराई ल बगरा देथे।। 
            मनखे मन प्रकृति ले दिनों दिन दुरिहावत हावय।निर्माण के चक्कर म दिनों दिन उजाड़ सहज होगे हे।पेड़ पउधा,बारी बखरी,नंदिया तरिया,खेत खार सब म मनखे मन अपन स्वारथ के झंडा गाड़ देहे।उहाँ कहाँ कोयली,कहाँ पुरवइया, कहाँ अमरइया अउ काय बसंत?फेर आज कवि मन बसंत के दूत बरोबर कोयली कस गावत गावत अपन लेखनी म नदिया,तरिया ,झरना,डोंगरी,पहाड़,सरसो,चना, गहूँ,डूमर,अमरइया,सुवा,मैना,परसा,तेंदू,चार,चिरौंजी अउ जम्मो बसंत के सुघराई ल उकेरत हे।जेला पढ़ सुन के बसंत अन्तस म बस जावत हे।कोन जन बाँचे खोंचे अमरइया म अउ के दिन कोयली गाही,अउ बसंत के सन्देश दे पाही।आज तो बड़े बड़े महल अउ फोर लेन डहर सहज दिख जथे फेर सरसो,अरसी,लाख,लाखड़ी,चना,गहूँ, मसूर, धनिया ,परसा,डूमर,कदम्ब,पीपर,अउ प्रकृति के कतको सनमोल सुघराई खोजे म घलो नइ मिले।आज मनखे अपन सुख सुविधा बर प्रकृति के उजाड़ करत हे।कोनो मौसम बखत या फेर बार होय सब एके बरोबर लगथे।का माँघ अउ का फागुन।वइसे तो बसन्त ऋतु म कुहकइया कारी कोयली बसन्त के दूत आय फेर आज ओखरो संख्या धीर लगाके कमती होवत जावत हे।आज बसन्त के दूत कोयली नही कलमकार कवि मन आय ,जेन अपन गीत कविता म बसंत के सुघ्घर वर्णन करथे।अउ बसंत ऋतु के जम्मो सुघराई ल सबके अन्तस् म पहुँचाथे।बसंत आज सिर्फ  कवि के गीत कविता म सुरक्षित हे।बसंती छटा अउ रंग रंग के रंग ल समेटे कवि कोयल कस जब जब बसंत आही तब तब बसंत के दूत बनके जम्मो बसन्ती सुघराई ल गा गा के सुनाही अउ सबके अन्तस् म आनन्द भरही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 64
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Date: 2020-01-27
Subject: 

गोपी छंद

मोर कहि लड़थस मरथस तैं।
मनुष बनके रकसा कस तैं।।
लड़ाई झगड़ा झन कर रे।
ज्ञान गुण अन्तस् मा भर रे।

खोज माटी मा सोना हे।
फेर महिनत बिन रोना हे।।
जेन जतने पुरवा पानी।
सफल हे ओखर जिनगानी।।

बात बानी माने जौने।
चैन सुख नित पावै तौने।।
पाल इरसा गुस्सा घुटके।
झरे किस्मत ओखर टुटके।।

चले नवके मानुष जेहा।
सदा इज्जत पावै तेहा।।
हरे बिरथा झंझट झगड़ा।
देय झटका सबला तगड़ा।।

चुँहे सावन मा छत छानी।
तभो तो हरषे जिनगानी।।
दुःख के सँग मा सुख मिलथे।
कमल हा कीचड़ मा खिलथे।।

काम बेरा मा जे टारे।
कभू वो मनखे नइ हारे।।
करे बूता  बरकत पावै।
ठेलहा बइठे पछतावै।।

ददा दाई के जस सेवा।
सबे ले बड़का ए मेवा।।
पाप धोवै नइ गंगा हा।
बने होवै नइ  दंगा हा।।

बात बोले कीट पतंगा।
उजाला बर काय अड़ंगा।।
मौत मंजिल बर हो जावै।
जीव तब वो का पछतावै।।

खैरझिटिया



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# 63
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Date: 2020-01-26
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल
बहर-221  1222 221 1222

जब दाल गले नइ तब,चुपचाप रहे कर जी।
जब बात चले नइ तब,चुपचाप रहे कर जी।1

पर दोष टमड़ झन तैं, आगास अमर झन तैं।
आशीष फले नइ तब, चुपचाप रहे कर जी।2

सत स्वाद घलो चखले,ताकत ल बचा रखले।
काड़ी ह हले  नइ तब, चुपचाप रहे कर जी।3

कौवा के असन कतको,गोहार गजब पारे।
जज्बात जले नइ तब,चुपचाप रहे कर जी।4

जुगनू के असन बरथस,उजियार घलो करथस।
सूरज ह ढले नइ तब, चुपचाप रहे कर जी।5

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)



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# 62
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Date: 2020-01-26
Subject: 

अपन देस(शक्ति छंद)

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।
करौं बंदना नित करौं आरती।
बसे मोर मन मा सदा भारती।

पसर मा धरे फूल अउ हार ला।
दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।
बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।
सबे खूँट बगरे अँजोरी रहे।
बसे बस मया हा जिया भीतरी।
रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।

इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।
तभो हे घरो घर बिना बेंस के--।
पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।

चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।
सजाके बनावौं ग रानी सहीं।
किसानी करौं अउ सियानी करौं।
अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।
वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।
करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।

फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।
वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।
पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।
अहं जात भाँखा सबे लेस के।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 61
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Date: 2020-01-25
Subject: 

पद पादाकुलक छंद-

माटी

ऊँच अगास अमरना नइहे।
अउ पाताल म गड़ना नइहे।।
धरती मा मैं अन उपजाहूँ।
धरती दाई के गुण गाहूँ।।

पर के घर मा सीना जोरी।
अच्छा नोहे जिद अउ चोरी।।
अपन हवा पानी मतलाके।
का करहूँ परलोक म जाके।।

माटी मा जीना मरना हे।
धरम करम इँहिचे करना हे।।
माटी तज के हवा म उड़ना।
बीच भँवर मा जाके बुड़ना।।

माटी मा हे घर बन मोरे।
दाना पानी माटी जोरे।।
माटी के महिमा बड़ भारी।
झन भूलव एला सँगवारी।।

आवँव मैं माटी के बेटा।
खेलँव धुर्रा माटी लेटा।।
पावन पबरित माटी कोरा।
झन भूँजव माटी मा होरा।।

माटी ला मिलके हरियाबों।
माटी के चल मान बढ़ाबों।।
माथ मलौं मैं धुर्रा माटी।
मैं माटी के बेटा खाँटी।।

माटी मा यमुना गंगा हे।
माटी ले मनखे चंगा हे।।
माटी ले दुरिहावै जेहा।
दुख पीरा भोगे बड़ तेहा।।

नदियाँ नरवा जंगल झाड़ी।
माटी मा भागे बड़ गाड़ी।।
माटी तो मूँगा मोती ए।
माटी तो जीवन जोती ए।।

माटी मान हरे सबझन के।
हरे निसानी माटी धन के।।
माटी मा चाँदी सोना हे।
सबला तो माटी होना हे।।

माटी देवय महिनत के फल।
दफने इँहचे हे आजे कल।।
माटी पोंसे माटी पाले।
बन मनमोहन माटी खाले।।

खैरझिटिया



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# 60
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Date: 2020-01-25
Subject: 

पद पादाकुलक छंद

जुगनू कस बरहूँ मैं दाई।
उजियारा करहूँ मैं दाई।।
घर बन कब करहूँ रखवारी।
कहिलाहूँ बेटी महतारी।।

मोरो अन्तस् मा सपना हे।
सोन असन मोला तपना हे।।
पढ़ लिख के आघू मैं बढ़हूँ।
ऊँच सिंहासन में मैं चढ़हूँ।।

जस सेवा सतकार करे बर।
सबमा ममता मया भरे बर।।
बिन बोले मैं कारज करहूँ।
दीन दुखी के संकट हरहूँ।।

जेन दिखाही आँखी मोला।
दू फाँकी करहूँ वो चोला।।
बेटी बहिनी महतारी बर।
जागत फिरहूँ मैं आरी धर।।

मैं दुर्गा चंडी कंकाली।
मोर रहे नइ रीता थाली।।
कोनो कारज ला नइ छोड़व।
पुरवा पानी के पथ मोड़व।।

धरती सँग आगास अमरहूँ।
अब्बड़ अचरज कारज करहूँ।।
कहिलावँव नइ मैं अब अबला।
बन चढ़ ढाहूँ मैं बन सबला।।

खैरझिटिया



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# 59
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Date: 2020-01-25
Subject: 

जलहरण घनाक्षरी

विधान-
* 88,88
* अंत म दू लघु अनिवार्य
* लय सहज बने
* बाकी सबे नियम घनाक्षरी के सेम होथे।
उदाहरण-

 तन मन करिया हे,बन भरे परिया हे।
उही ओढ़ना ल धोये, छपक छपक बड़।।
जेखर नियत नहीं, गुण नहीं गत नहीं।
दिखावा म रोये उही, फफक फफक बड़।।
असत हे आस नहीं, सत मुख वास नहीं।
भुर्री कस बरे उही, भभक भभक बड़।।
जिहाँ बसे स्वारथ हे,  मचे महाभारत हे।
चोरी कर चोर चले, झझक झझक बड़।।

खैरझिटिया



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# 58
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Date: 2020-01-24
Subject: 

माई चिरई

              छन्नू रतिहा बेरा अँगना म दसमत फूल तरी खटिया बिछाके  अगास म रिगबिगात  चंदा अउ चंदैनी ल फुर्सत म निहारत सोचत रहिथे कि जिनगी के बाँसठ बछर देखते देखत म गुजरगे,आज मैं अपन नवकरी ले छुटकारा पा चुके हँव।फेर उही बीते बछर के सुरता करत डाकिया बाबू छन्नू के आँखी ले आँसू तरतर तरतर झरे ल लग गिस।वोला अइसे लगत रिहिस कि कालीच तो पट्टी बस्ता धरके ददा दाई के दया मया अउ सपना ल गाँठियाय स्कूल जावत रेहेंव।कालीच तो छन्नू भैया कहिलावत गली गली घूम घूम के चिट्टी पत्री बाँटत रेहेंव,फेर कब छन्नू भैया ले छन्नू बबा होगेंव,तेखर पता घलो नइ चलिस।छन्नू ल लगिस कि सुख के पल अउ कामबूता म खुद ल घलो बरोबर टेम नइ दे पायेंव,त का अपन सुवारी देवकी अउ एकलौता बेटा सुमेर ल टेम दे पाये होहूँ।सुमेर कभू कभू अर्दली करे फेर देवकी छन्नू ल देख बड़ खुश होवय अउ बरोबर दयामया लुटावव।"होनहार बिरवान के होत चिकने पात" ये हाना छन्नू उप्पर एकदम फिट बइठे काबर कि छन्नू बचपन ले बनेच हुशियार अउ संस्कार वान लइका रिहिस।पढ़ाई लिखाई के तुरते बाद जइसने दाई ददा संग जम्मो गाँव वाले मन कहय कि छन्नू पढ़ लिख के नवकरी करही,वइसनेच छन्नू अपन गाँव भर म सरकारी नोकरी करइया पहली लइका बनिस अउ डाकविभाग म पोस्टमैन के नोकरी पाइस। कामबूता बर छन्नू बड़ चंगा अउ चोक्खा रहय,अपन जम्मो काम ल लगन अउ ईमानदारी ले करे।नवकरी पाये के पहिली भी छन्नू के गाँव म बड़ मान गउन होवय,त नोकरी लगे के बाद का कहना।फेर छन्नू ल कभू गरब गुमान अपन चंगुल म नइ फँसा सकिस।रोज जब छन्नू  कामबूता निपटाके अपन घर आवय तब वोहा गाँव गुड़ी अउ चौपाल म  बरोबर टेम देवय,संगे संग जम्मो बड़का सियान मनके आशीष घलो लेवय।घर म घलो रोज एक दू घण्टा सुमेर ल पढ़ावय अउ झट खा पीके सपरिवार सुत घलो जावय।पहाती पहली छन्नू जागे अउ ओखर आरो ल पाके बाद म कुकरा बासे, चिरई चिरगुन घलो बाद म चहचहावय।छन्नू घर के कामबूता म हाथ बँटावय तेखर बाद नहाखोर के, नास्ता पानी करके,साइकिल ओंटत ऑफिस कोती चल देवय।
             छन्नू के सुवारी देवकी अपन आप ल बड़ भागी माने कि मैं नवकरी पेशा वाले आदमी के अर्धांगनी आँव।तभे तो छन्नू के हां में हां मिलावत सदा हाँसत दया मया लुटावय अउ लइका लोग  संग घर परिवार के सेवा जतन करे।पहाती देवकी उठके,परछी अँगना बाहर बटोर के,चूल्हा चाकी लीप के ,नास्ता पानी,खाना पीना बना पहली छन्नू ल ऑफिस बिदा करे तेखर बाद सुमेर ल स्कूल।पति के ऑफिस अउ लइका के स्कूल जाये के बाद  भी देवकी अपन आप ल कभू अकेल्ला नइ  पाइस।वो अबड़ लगन अउ आनन्द के संग जम्मो बूता काम ल रोजेच गीत गुनगुनावत गुनगुनावत पूरा करय।रँधई गढ़ई अउ पूजा पाठ के संगे संग देवकी कुछ समय परोसिन मन संग घलो बितावव।देवकी बिहाव होके जब ले ससुराल आय रिहिस,कभू मइके बर सुध नइ लमाइस,अउ बिचारी जाये भी त काखर मया म।ददा तो बिहाव के पहलीच गुजर गे रिहिस अउ दाई बिहाव के एक बछर बाद म।ददा दाई के मया  ल देवकी जादा दिन नइ पा सकिस,तेखरे सेती सदा पतिप्रेम म डूबे रहय,अउ ससुराल म ही अपन ददा दाई के मया ल  अँचरा म गाँठियाके  दिन गुजारय।देवकी सबो गुण म सम्पन्न रिहिस वो आज के नारी कस भले घर के चार दिवारी ले नइ निकले रिहिस फेर सिलई कढ़ई बुनई सबे काम जाने।देवकी के गुण के सबे प्रसंशा करय चाहे गाँव वाले होय या फेर छन्नू। देवकी  प्रसंशा के लइक भी रिहिस, सादा सरल स्वभाव अउ चीज बस के कोनो गरब गुमान नही।छुट्टी के दिन कभू कभू छन्नू देवकी अउ सुमेर ल घुमाये फिराये घलो।कुल मिलाके कहे जाये त जिनगी सोला आना रिहिस न कोनो चीज बस के कमी न कोनो बात के दुख।इही सुख के डोंगा म सवार दूनो प्राणी ल कब चौथा पन अपन काबा म पोटार लिस,तेखर भनक घलो नइ लगिस।
             छन्नू अउ देवकी अपन लइका सुमेर के भविष्य ल लेके अबड़ चिंतित रिहिस। ओमन चाहत रिहिस कि लइका पढ़ लिखके अपन पाँव म खड़ा हो जातिस।अउ अइसन कते ददा दाई नइ सोंचय, फेर सुमेर पढ़ई लिखई म थोरिक कमजोरहा रिहिस।बारवीं तक तो लगभग बने बने पढ़िस फेर जब कालेज पढ़े बर शहर गिस ओखर आदत बिगड़त गिस। सुमेर गलत संगत म पड़के नसा पान ,अउ लड़ई झगड़ा करेल लग गिस।कालेज के दू बछर घलो ले देके बितायस फेर तीसर बछर म बनेच बिगड़ गे अउ एक साल फेल घलो होगे।ददा दाई के चिंता बढ़े ल लग गिस।देवकी कभू कभू छन्नू ल बोले कि सुमेर के बिहाव कर देथन, जिम्मेदारी पाके सुधर जाही फेर छन्नू तियार नइ होय। वो कहय लइका जब जिम्मेदारी उठाये के लइक होय तभे बिहाव करना चाही।कभू कभू सुमेर के व्यवहार ल देख रिस म कह भले देवय कि तोर बिहाव करबों,फेर सुमेर म कोई बदलाव नइ आय। वो लापरवाह बनके घूमय फिरय दारू गाँजा पीयय अउ लड़ई झगड़ा घलो करे।जतके बढ़िया मान मर्यादा अउ नाम छन्नू कमाय रिहिस ओतको बेकार छबि सुमेर के रिहिस।गाँव के मनखे मन ताना घलो मारे कि जादा लाड़ प्यार म लइका के इही गत होथे।छन्नू अभाव अउ दुख पीरा के भट्ठी म पकके बने मनखे बने रिहिस।जब पोस्टमैन के नोकरी लगिस तब छन्नू के मन म कभू  आवय कि मोर ददा कर कहूँ अउ सब कुछ रितिस त अउ बड़े नोकरी करतेंव।फेर आज सुमेर ल देख के डर म काँप जावय ।छन्नू सुरता करथे कि भले बालपन म अभाव रिहिस फेर संसो के चिटिक भी नामो निशान नइ रिहिस, पर आज चौथा पन म जब सब कुछ हे तब जबर संसो अन्तस् ल झगझोरत हे।छन्नू देवकी कर कभू कभू तो अपन दुख के गठरी ल खोलत कहि परे कि टूरा अत्तिक उछन्द अउ झेक्खर हो जही कहिके जानत रहितेंव त नवकरी के एकात बछर पहिली जान दे देतेंव, ताकि मोर जघा वोला जीविकायापन के  माध्यम तो मिल जातिस,फेर कोन जानत रिहिस ये सब करम लेखा ल। तब देवकी छन्नू के मुँह म हाथ रखके चुप करावत कहय,वाह स्वामी, फेर मोर का होतिस अउ अइसे कहिके देवकी चिल्लाके रो पड़े।
          एकदिन छन्नू अँगना म बइठे रिहिस ओतकी बेर सुमेर नशा म धुत घर आइस।सुमेर के हाल देख के छन्नू के आँखी लाल होगे अउ बाजू म पड़े लउठी म चार घाँव जमा घलो दिस।छन्नू अउ देवकी भले आज तक गारी देवय फेर एको बेर हाथ नइ उचाय रिहिस।छन्नू कभू सोचे घलो कि कास ये लइका ल पहली ले लउठी पड़े रहितिस त ये दिन नइ देखेल मिलतिस।सुमेर ददा ल मारत अउ खिसियावत देख गुस्सा होगे  अउ  रिसे रिस म झोला  झांगड़ी सकेल के दस हजार पइसा धरके रात कुन घर ले फरार होगे।देवकी अउ छन्नू तीर तखार ल गजब खोजिस फेर सुमेर के आरो नइ पाइस।अब जब छन्नू अउ देवकी ल सहारा के जरूरत हे तब बाढ़ें बेटा के घर ले भाग जाना कोनो गाज गिरे ले कमती नइ हे।छन्नू के चौपाल,गाँव गुड़ी सब छूट गे।छन्नू खुदे संसो म बोजाय देवकी ल दिलासा देवत बोलय कि जादा दुख झन मना पइसा सिराही ताहन का करही, खुदे घर आ जाही।देवकी ल यहू संसो खाये की कहूँ सुमेर चोर ढोर के संगत म झन पड़ जाये, गुंडा मवाली झन बन जाय। छन्नू अपन बचपना के सुरता करत सोंचय कि जब ददा दाई अउ सियान मन गारी देवय अउ गलती म मार घलो देवय,तब हमन वो मार ले सबक अउ सीख लेवन,फेर वाह रे आज के लइका थोरिक मार अउ फटकार म घर ल तियाग देवत हो।कोन जनी हमर असन कहूँ सबे चीज ल खुदे सिधोवत ददा दाई के आज्ञा मानतेव तब का नइ करतेव।छन्नू के ददा दाई अपन जाँगर चलत म ही बिना सेवा जतन कराये,झट  परलोक सिधार गे रिहिस। कथे दुख म  मनखे के दिमाग चारो कोती घूमथे तभे तो छन्नू यहू सोचे कि जब मँय अपन महतारी बाप के सेवा नइ करे हँव त मोर बेटा बूढ़त काल म मोर कइसे हो पाही, महूँ ल अपन दाई ददा असन झट मर जाना चाही।ये सोच  छन्नू के आँखी झलकेल बर धर लेवय।छन्नू ल सुरता आवय सुमेर के ननपन के,जब वोला वो खूब मया करे,पीठ म घोड़ा चघावव,बाजार हाट अउ दुकान घुमावव।छन्नू के घर आते साँट सुमेर ओखर झोला म मिठई खोजे त ड्यूटी जाये के बेरा साइकिल ल रगड़ रगड़ के पोछें अउ बरसात घरी टायर के चिखला ल साइकिल के पैडल  ल हाथ म चला चला बड़ मजा लेके निकालय।सुमेर के बारवीं तक के पढ़ई बने रिहिस,कभू छन्नू कहय घलो तोला नवकरी मिलही रे बेटा बने बने पढ़बे अउ सबके बात बानी मानत बने बने रहिबे।फेर होनी ल कोन जाने।आज सुमेर छन्नू अउ देवकी के डेहरी ल छोड़ के भाग गे हे, दूनो प्राणी दुख के दहरा म फँस गेहे।
अब बस दूनो झन घरे म कभू लइका के त कभू यम के रद्दा जोहत दिन अउ रात ल काटेल लग गिस।
            एती सुमेर, शहर ले लगे एक ठन होटल के छत म बने कमरा म रहे बर लग गिस,जिहाँ ले एक ठन आमा पेड़ के फुलिंग म बने चिरई खोंधरा चकचक ले दिखे।जेमा एक माई चिरई रहय जउन पहाती खोंधरा छोड़ के उड़ जावय अउ संझौती बेरा फेर लहुट आवय।कुछ दिन बाद वो  चिरई घड़ी घड़ी खोंधरा मेर दिखे ल धर लिस।सुमेर के नजर पड़िस त देखथे कि खोंधरा म दू ठन अंडा हे, तेखर सेती माई चिरई  जादा दुरिहा नइ जावत रिहिस।कुछ दिन म दू ठन नान्हे चिरई  मनके चिंव चिंव गुंजेल  लगिस।अब माई चिरई चौबीसों घण्टा पेड़ेच के आजू बाजू दिन बताये बर लग गे,खोंधरा ले दुरिहाय नही।खेवन खेवन अपन  चोंच म दाना दबा के लावय अउ नान्हे चिरई मन ल खवावय।ये सब दृश्य ल सुमेर बरोबर रोज देखय।माई चिरई के आहट पाके नान्हे चिरई मन चोंच उठा उठा के नरियावय अउ दाना माँगय।एक दिन रतिहा जइसे सुमेर के नींद पड़त रिहिस ओतकी बेर ओखर कान म  माई चिरई के भारी नरियाय के आवाज आय लगिस।सुमेर ओढ़ के सोये के कोसिश करिस फेर सुत नइ पाइस,अंत म का होगे सोचत बाहर आथे त देखथे कि एक ठन बिरबिट डोमी साँप नान्हे चिरई मन ल खाये बर खोंधरा के तीर पहुँच गे हे।माई चिरई  अपन जान के संसो करे बिना फन उठाय नांग ल उड़ उड़ के चोंच मारय, अउ भारी नरियावय,ओखर नरियई ल सुनके अइसे लगे जइसे माई चिरई, साँप ल भागे बर काहत घेरी बेरी बखानत हे। आखिर म थकहार के साँप नीचे उतरेल लगिस।माई चिरई के जीत देख के सुमेर के अन्तस् गदगद होगे।एक दिन मनमाड़े हवा गरेर के संग झमाझम पानी गिरे बर लगिस गड़गड़ गड़गड़ बादर गरजय अउ कड़कड़ कड़कड़ बिजुरी चमकय अउ पटपट करा घलो गिरय।सुमेर के जी ये सोच के छटपटाय बर लगिस कि वो खोंधरा म का बीतत होही।हिम्मत करके बाहिर आइस त देखथे के माई चिरई  अपन नान्हे चिरई के उप्पर छत बरोबर बइठे हे।हवा गरेर म डारा बिकट लहसे तभो मूसलाधार बरसा अउ टप टप बरसत करा ले नान्हे चिरई ल बचाये बर माई चिरई लगातार जमे हे।थोरिक देर म हवा अउ पानी दूनो थम गे।नान्हे चिरई मन डार म फुदके बर धर लिस।खाना खावत ले सुमेर खोंधरा ल झाँकथे फेर ओला माई चिरई दिखबे नइ करिस।ओखर मन छटपटाय बर धरलिस,तुरते भागत भागत होटल ले उतर के आमा पेड़ कर चल देथे, अउ जउन देखथे ओहर ओखर छाती ल दू फाँकी चीर देथे।माई चिरई करा अउ पानी म पिटा के जान गँवा चुके रिहिस,ओखर तन म चाँटी झूमत रिहिस। सुमेर के आँखी ले आंसू के धार बरसेल लगगे, वो फफक फफक के रोय लगिस कि वाह रे महतारी चिरई तैं  लइका मन बर अपन जान घलो दे देएस,तोर समर्पण ल मैं बारम्बार नमन करत हँव।उही बेरा सुमेर ल पहिली बार दाई ददा के सुरता आइस कि मैं कतेक अभागन आँव जेन दाई ददा ल अकेल्ला छोड़ के भाग आय हँव,कोन जनी मोर लालन पालन वोमन कइसन कइसन दुख पीरा ल झेल झेल के करे होही,मोला धिक्कार हे।सुमेर के अन्तस् ल माई चिरई के मया ममता अउ समर्पण ह रही रही के कुरेदे बर लग गिस,वो दौड़त होटल म आइस अउ अपन झोला झांगड़ी ल खाँध म अरो के घर कोती जाय बर निकलिस ,जावत बेरा खोंधरा ल झाँकथे त देखथे कि नान्हे चिरई म खोंधरा ल छोड़ आने कोती उड़त जावत रहय,अउ एती पेड़ तरी म माई चिरई मरे पड़े हे।ओखर मन म उँखर बर क्रोध उमड़िस, फेर एक क्षण बाद खुद ल वो मेर रख के देखिस त सुमेर के आँसू के धार अउ बढ़गे।माई चिरई ल आमा पेड़ तरी गड्ढा खन के पाटत बेरा सुमेर सोचे लगिस के  चिरई मन तो जानथे कि ओखर लइकामन आघू चलके खोंधरा छोड़ उड़ा जाही, ओखर कोनो काम नइ आवय, तभो अइसन मया ममता लुटाथे।फेर हमर ददा दाई मन तो अपन बुढ़ापा के सहारा अउ डीही म दीया बरइया मानथे।अइसन म लइका यदि दाई ददा ल छोड़ देय त ओखर मन म का बीतत होही। अउ जेन ददा दाई ल तज देय वो लइका ले बढ़के मूरुख अउ कोनो नोहे।सुमेर लकर धकर घर म जाके, ददा दाई के पँवरी म जाके गिर जथे। सुमेर के आँखी ले बरसत पछतावा के आँसू ल देख छन्नू बेटा ल गला लगा लेथे।सुमेर के अन्तस् म वो माई चिरई के मया ममता के खोंधरा  बन गे रिहिस।सुमेर अपन ददा दाई संग सबके मन लगाके सेवा करे बर लगगे।अउ एकदिन सुमेर ल घलो सरकारी नवकरी के बुलावा आगे।

कहानीकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको,कोरबा(छग)



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# 57
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Date: 2020-01-17
Subject: 

पद्धरि छंद

जे नइ माने गुरु देव बात।
जिनगी तेखर घनघोर रात।।
वोहर नइ कभ्भू पाय ठौर।
सर सजे घलो नइ मान मौर।।

होके अँधरा वोहर झपाय।
जिनगी भर पीरा दुःख खाय।
जे परके नित करथे बिगाड़।
काँपे नित तेखर माँस हाड़।

खोदे पर बर जे खोह रोज।
वोला लेथे झट यमदूत खोज।
जीयत जिनगी हा नर्क होय।
छाती पिट ओहर खूब रोय।।

दाई बाबू गुरु बात मान।
बढ़ही जग मा तब तोर शान।
सत के पथ मा तैं रेंग रोज।
सबके अन्तस् मा प्रीत खोज।

खैरझिटिया



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# 56
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Date: 2020-01-17
Subject: 

निच्छल छंद

हाँस हाँस छत के घर मा सब,जिनगी पहाय।
बिन सुविधा के फेर इसन घर,बिरथा ताय।।

चाही पानी बिजली पंखा ,सेज पलंग।
बरसा जाड़ा हाँसत बुलके,गर्मी तंग।।

छत हा पिघले गर्मी दिन मा, घाम जनाय।
कूलर ऐसी फ्रीज जिया ला,गजब लुभाय।

छानी परवा के दिन बहुरे,बने अटार।
बरसा पानी संग बेंदरा,पाय न पार।।

इही समय के माँग हरे जी,सबे बनाय।
छानी वाले घर अँगरी मा,आज गनाय।

हीटर कूकर गैस बिना जी,घर करियाय।
चूल्हा लकड़ी छेना आगी,नइ तो भाय।

आंधी पानी के संसो अब,नइ तो होय।
छत के घर हा मनखे मन बर,सुविधा बोय।

मुसवा मन हा बिना बिला के,मानय हार।
देखे बर अब घलो मिले नइ,घून दिंयार।।

कहाँ मेकरा मन हा अब जी,जाल बनाय।
छानी परवा बिन गौरैया,जाय नँदाय।।

पाठ पठौवा गोड़ा कोठी,कहिनी होय।
जाँता मुसर बाहना ढेंकी,छत घर खोय।

छानी परवा सड़क म जमगे,देख सीमेंट।
चर दिनिया जिनगी अउ घर हे,परमानेंट।

खैरझिटिया



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# 55
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Date: 2020-01-17
Subject: 

सृंगार छंद

करे सइमो सइमो दैहान।
जुरे हे लइका लोग सियान।।
ढेलुवा झुलना जिया लुभाय।
गाँव मा मड़ई हवै भराय।।

बिकै खई खजानी जी खूब।
नपावय सब मनखे मन डूब।।
झुले झुलना लेवै सामान।
बरा भजिया सँग खावै पान।।

सगा पहुना के होवय मान।
मया ममता के मड़ई खान।
ममा दाई मौसी जुरियाय।
बुवा फूफा मामी मुस्काय।।

भरे हवै खूब रद्दा बाट।
जुरे सब ऊँच नीच ला पाट।।
बाट भर अड़बड़ धूल उड़ाय।
तीर वाले मनखे जुरियाय।।

लगे हे पसरा ओरे ओर।
सुनाये बड़ मड़ई के शोर।।
बेंचइय्या पारे गोहार।
गाँव घरबन सँग गूँजे खार।।

चले फरफट्टी खाँसर कार।
एक मा बइठे मनखे चार।।
सबे सजधज के हे तैयार।
बड़े छोटे के कहाँ चिन्हार।।

बिके मुर्रा लाड़ू कुसियार।
सजे हे सबे जिनिस बाजार।
खई खाजी मेवा मिष्ठान।
जलेबी ए मड़ई के जान।।

छोट लइका सिक्का खनकात।
करे खेलौना के बस बात।
छोटकी नोनी हँस मुस्काय।
कंकना चूड़ी हार बिसाय।।

बेंदरा भलुवा सरकस आय।
चाँट कुल्फी गुपचुप बेंचाय।
साग भाजी के हे भरमार।
नपावै सबझन छाँट निमार।

बढ़े राउत धरके बैरंग।
मिले मड़ई मा मया मतंग।
सगा संगी साथी कर जोर।
मगन होके किंदरै सब छोर।।

खैरझिटिया



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# 54
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Date: 2020-01-17
Subject: 

निच्छल छंद

कतको नॅदिया कतको झिरिया, जिहां समाय।
 पानी पानी जम्मों कोती, रहे भराय।

सब मनखे ला एक झलक के,रहिथे आस।
 सागर फेर बुझाय नहीं जी ,कखरो प्यास ।।

जिहाँ भराये रहिथे भारी, खारो नीर ।
खपगे  सागर ला नापत ले, कतको बीर।।

 सागर जब तक शांत हवै तब,तट मा खेल।
सागर के ताकत के आघू, सब हे फेल ।।

 ऊंच ऊंच लहरा धर सागर, बड़ इतराय।
 सागर के रेती अउ पानी, जिया लुभाय।।

 सबले बड़का रूप प्रकृति के ,सागर ताय।
 कभू लेव झन कोनो मनखे, एखर हाय।।

खैरझिटिया



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# 53
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Date: 2020-01-15
Subject: 

मर्जी के मालिक सबे,करे मनमर्जी काम।
बात बानी जान दे,कौड़ी के न काम।



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# 52
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Date: 2020-01-13
Subject: 

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।
दया मया के धागा धरके, सुख शांति के पतंग उड़ाबों।

दान धरम पूजा व्रत करबों, गाबों मिलजुल के गाना।
छोट बड़े के भेद मिटाबों, धरबों इंसानी बाना।
खीर कलेवा खिचड़ी खोवा,तिल गुड़ लाडू खाबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।

सुरुज देव ले तेज नपाबों,मंद पवन कस मुस्काबों।
सरसो अरसी चना गहूँ कस,फर फुलके जिया लुभाबों।
रात रिसाही दिन बढ़ जाही, कथरी कम्म्बल घरियाबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।

मान एक दूसर के करबों,द्वेष दरद दुख ले लड़बों।
आन बान अउ शान बचाके, सबके अँगरी धर बढ़बों।
लोभ मोह के पाके पाना, जुर मिल सब झर्राबों।
नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छत्तीसगढ़)



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# 51
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Date: 2020-01-13
Subject: 

मकर सक्रांति(सार छंद)

सूरज जब धनु राशि छोड़ के,मकर राशि मा जाथे।
भारत  भर  के मनखे मन हा,तब  सक्रांति  मनाथे।

दिशा उत्तरायण  सूरज के,ये दिन ले हो जाथे।
कथा कई ठन हे ये दिन के,वेद पुराण सुनाथे।
सुरुज  देवता  सुत  शनि  ले,मिले  इही  दिन जाये।
मकर राशि के स्वामी शनि हा,अब्बड़ खुशी मनाये।
कइथे ये दिन भीष्म पितामह,तन ला अपन तियागे।
इही  बेर  मा  असुरन  मनके, जम्मो  दाँत  खियागे।
जीत देवता मनके होइस,असुरन नाँव बुझागे।
बार बेर सब बढ़िया होगे,दुख के घड़ी भगागे।
सागर मा जा मिले रिहिस हे,ये दिन गंगा मैया।
तार अपन पुरखा भागीरथ,परे रिहिस हे पैया।
गंगा  सागर  मा  तेखर  बर ,मेला  घलो  भराथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।

उत्तर मा उतरायण खिचड़ी,दक्षिण पोंगल माने।
कहे  लोहड़ी   पश्चिम  वाले,पूरब   बीहू   जाने।
बने घरो घर तिल के लाड़ू,खिचड़ी खीर कलेवा।
तिल अउ गुड़ के दान करे ले,पावय सुघ्घर मेवा।
मड़ई  मेला  घलो   भराये, नाचा   गम्मत   होवै।
मन मा जागे मया प्रीत हा,दुरगुन मन के सोवै।
बिहना बिहना नहा खोर के,सुरुज देव ला ध्यावै।
बंदन  चंदन  अर्पण करके,भाग  अपन सँहिरावै।
रंग  रंग  के  धर  पतंग  ला,मन भर सबो उड़ाये।
पूजा पाठ भजन कीर्तन हा,मन ला सबके भाये।
जोरा  करथे  जाड़ जाय के,मंद  पवन  मुस्काथे।
भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 50
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Date: 2020-01-13
Subject: 

कत्था चूना के बिना,कतको खाले पान।
मुँह लाली होवय नही,बात मोर ले मान।।

मान बड़े के बात ला,पाबे यसजश मान।
बिना मान सम्मान के,बढ़े कहाँ ले शान।

शान हमर



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# 49
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Date: 2020-01-13
Subject: 

सृंगार छंद

है सुरुज देवता,घाम जल्दी ढार।
तोर तीर मा कथरी चद्दर,हवै जी बेका

मोर कथरी पाये नइ पार।
घाम झट सुरुज देव दे ढार।।
गोड़ काँपे अउ काँपे हाथ।
काम नइ करे जाड़ मा माथ।

गाय गरुवा अउ लइका लोग।
दिखे जइसे सपडे हे रोग।।
जाड़ मा जमगे जिनगी हाय।
बेर ले देकरक़े बिताये।



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# 48
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Date: 2020-01-12
Subject: 

जीतेन्द्र वर्मा-खैरझिटिया-(कुकुभ छंद)

स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही रे।
नीति नियम सत कठिन डहर के, स्वामी सच्चा राही रे।

भारतीय दर्शन के दौलत, भारती वासी के हीरा।
ज्ञान धरम सत जोत जलाके, दूर करिस दुख अउ पीरा।
पढ़ लौ गढ़ लौ स्वामी जी ला, मन म उमंग समाही रे।
स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही रे।

संत शिरोमणि सत के साथी, विद्वान गुणी वैरागी।
भाईचारा बाँट बुझाइस, ऊँच नीच छलबल आगी।
अन्तस् मा आनंद जगाले, दुःख दरद दुरिहाही रे।
स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही रे।

सोन चिरैया के चमकैया, सोये सुख आस जगैया।
भारत के ज्ञानी बेटा के, परे खैरझिटिया पैया।
गुरतुर बोली ज्ञान ध्यान सत, जीवन सफल बनाही रे।
स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही रे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)



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# 47
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Date: 2020-01-11
Subject: 

मैने कल को देखा है


घुलती हवाओं में जहरीले कण।
ढलता उम्र ढलती तन।
आपदाओं का पहाड़ टूट रहा है।
असहाय बेबश हरदम लूट रहा है।
विनाश की अपार आँधी,
अपार बल को देखा है।
मैने  कल  को  देखा है।


नोटों की गर्मी के आगे,
खामोश लब्जें हैं।
हर आलम पर राज उनका,
हर चीज पर कब्जें हैं।
रुपयों की खनक पर नाचते,
अमीरों के दल को देखा है।
मैने  कल  को  देखा  है।

हर बखत अय्यासी का,
बिगुल  बजाते  हैं।
नसे में चूर न जाने,
कितने जख्म दे जाते हैं।
ये घनघोर अँधेरा,
ये मौत का डेरा।
जहरीली नागन भी,
जब पैतरा कसती है।
तो छोड़कर अमीरों को,
सिर्फ गरीबों को डँसती है।
अपनी ही भीड़ में,
वो खुद पीसे जाते हैं।
सिर्फ उन पर कहानी,
कविता लिखे जाते हैं।
नेताओं की पहल,
और उनके हल को देखा है।
मैने   कल   को   देखा   है।


रिस्तों का बंधन न जाने,
कब तक चलेगा?
बेगुनाहों की चिता,
न जाने कब तक जलेगा?
औरों का दर्द न,औरों को समझ आता है।
इंसानियत का फर्ज,इंसान कहाँ निभाता है।
मानवता को नदारत होते,
और बढ़ते छल को देखा है।
मैने   कल   को   देखा   है।

जीतेन्द्र वर्मा
बाल्को(कोरबा)



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# 46
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Date: 2020-01-10
Subject: 

सहभागिता(कुकुभ छंद)

एक दूसरे के सुख दुख में, सहभागी होना होगा ।
मानव हैं हम मानवता का, बीज हमें बोना होगा ।

नेक कार्य के लिए सभी को, आगे नित आना होगा।
सहभागी बन एक लक्ष्य ले, कारज निपटाना होगा ।
नहीं असंभव कुछ भी जग में, मिल नौका खोना होगा।
एक दूसरे के सुख दुख में, सहभागी होना होगा।।

सहभागिता अगर हो सबकी, टिक न सकेगा अँधियारा
कदम मिलाकर सभी चलेंगे, फैलेगा तब उजियारा।
भाई-चारे की दरिया में, द्वेष स्वार्थ धोना होगा।
एक दूसरे के सुख दुख में, सहभागी होना होगा।।

छोटे छोटे जीव जंतु भी, अनुरागी बन रहते हैं।
सहभागिता निभाते नितदिन, सुख दुख मिलके सहते हैं।
सीख चींटियों से ले करके, भार हमें ढोना होगा।
एक दूसरे के सुख दुख में, सहभागी होना होगा।।

पर्यावरण बचाना होगा, आ करके सबको आगे।
जल-थल वायु पेड़ जीवन हैं, रहना है हमको जागे।
सहभागिता स्पर्श पारस-सा, लोहा भी सोना होगा।
एक दूसरे के सुख दुख में, सहभागी होना होगा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छत्तीसगढ़)



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# 45
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Date: 2020-01-10
Subject: 

माहिया -छेरछेरा

चंदा गोलियाये हवै।
पूस पुन्नी के दिन।
छेर छेरा आये हवै।।

लागे पबरित बेरा।
का छोटे का बड़े।
माँगे सब छेरछेरा।।

अँगना हवै लिपाये।
हूमधूप धुँवा उड़े।
छेरछेरा परब आये हे।।

कोनो ला झन तैं हीन।
मया म माँगत हे,
नोहे कोनो मनखे दीन।।

ठोमहा ठोमहा दे दे।
हँसहँस के अन्न धन।
सबे के दुवा ले ले।।

ढोलक डंडा बाजे।
गाँव गली गूँजे।
छेरिक छेरा रागे।।

सुवा डंडा के राग।
तन मन ला मोहे।
जुड़े मया के ताग।।

का लइका का सियान।
जुरमिल के सब झन।
पाये दया मया दान।।

सब छोड़ गरब अभिमान।
घूम ले गाँव गली।
पाले दया मया दान।।

मिले अउ मिलाये के।
छेरछेरा ए तिहार।
मया गीत गाये के।।

आज के दिन के अन्न दान।
अड़बड़ पावन हे।
सब दान ले हवै महान।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा



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# 44
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Date: 2020-01-09
Subject: 

छेरछेरा(सार छंद)

कूद  कूद के कुहकी पारे,नाचे   झूमे  गाये।

चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।


पाख अँजोरी पूस महीना,होय छेर छेरा हा।

दान पुन्न के खातिर पबरित,होथे ये बेरा हा।


कइसे  चालू  होइस तेखर,किस्सा   एक  सुनावौं।

हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।


युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर  के  द्वारे।

राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।


हैहय    वंशी    शूर  वीर   के ,रद्दा    जोहे   नैना।

आठ साल बिन राजा के जी,राज करे फुलकैना।


सबो  चीज  मा हो पारंगत,लहुटे  जब  राजा हा।

कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।


परजा सँग रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।

राज  रतनपुर  हा मनखे मा,मेला असन भराये।


सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।

बेरा  रहे  पूस  पुन्नी के,खुले  रहे दरवाजा।


कोनो  पाये रुपिया पइसा,कोनो  सोना  चाँदी।

राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।


राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।

पूस  महीना  के  ये  बेरा, सबके  झोली भरबों।


राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो दान हा होवय।

कोसलपुर  के  माटी  मा  जी,अबड़ धान हा होवय।


मिँजई कुटई होय धान के,कोठी तब भर जाये।

अन्न  देव के घर आये ले, सबके  मन  हरसाये।


अन्न दान बड़ होवन लागे, आवय जब ये बेरा।

गूँजे अब्बड़ गली गली मा,सुघ्घर छेरिक छेरा।


टुकनी  बोहे  नोनी  घूमय,बाबू  मन  धर झोला।

देय लेय मा ये दिन के बड़,पबरित होवय चोला।


करे  सुवा  अउ  डंडा  नाचा, घेरा  गोल   बनाये।

माँदर खँजड़ी ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।


दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।

हरे  बछर  भरके  तिहार  ये,छेरिक  छेरा  गा  लौ।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)



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# 43
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Date: 2020-01-08
Subject: 

छेरछेरा
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धान  धरागे , कोठी म।
दान-पून  के,ओखी म।
पूस    पुन्नी    के   बेरा,
हे गाँव-गाँव म,छेरछेरा।

छोट - रोंठ  सब  जुरे  हे।
मया    गजब    घुरे    हे।
सबो के अंगना  - दुवारी।
छेरछेरा मांगे ओरी-पारी।
नोनी   मन   सुवा   नाचे,
बाबू   मन  डंडा    नाचे।
मेटे    ऊँच  -  नीच    ल,
दया  -  मया   ल   बांचे।
नाचत   हे  मगन   होके,
बनाके     गोल     घेरा।
पूस    पुन्नी     के   बेरा,
हे गाँव-गाँव  म,छेरछेरा।

सइमो- सइमो करत  हे,
गाँव   के   गली   खोर।
डंडा- ढोलक-मंजीरा म,
थिरकत    हवे     गोड़।
पारत              कुहकी,
घूमे      गाँव         भर।
छेरछेरा   के   राग    म,
झूमे    गाँव          भर।
कोनो  केहे  मुनगा  टोर,
त   केहे ,  धान  हेरहेरा।
पूस    पुन्नी    के    बेरा,
हे गाँव-गाँव म, छेरछेरा।

भरत   हे    झोरा  - बोरा,
ठोमहा - ठोमहा  धान म।
अड़बड़   पून   भरे   हवे,
छेरछेरा    के    दान   म।
चुक ले अंगना लिपाय हे।
मड़ई  -  मेला   भराय हे।
हूम - धूप - नरियर धरके,
देबी - देवता ल,मनाय हे।
रोटी - पिठा  म  ममहाय,
सबझन      के       डेरा।
पूस    पुन्नी     के    बेरा,
हे  गाँव-गाँव  म,छेरछेरा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
अवइया तिहार छेरछेरा के आप सबो ल गाड़ा गाड़ा बधाई



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# 42
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Date: 2020-01-07
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन


बहर-221 1222 221 1222

तैं काम बने करबे, तब तोर तिरन आहूँ।
दीया के असन बरबे,तब तोर तिरन आहूँ।1

तनमन म मया घोरे, जिनगी म दया जोरे।
दुख द्वेष दरद दरबे,तब तोर तिरन आहूँ।2।

आमा के असन झुलबे,फुलवा के असन फुलबे।
सेमी के असन फरबे,तब तोर तिरन आहूँ।।3।

लगवार सहीं लगबे,रखवार सहीं जगबे।
कखरो ले कहूँ डरबे,तब तोर तिरन आहूँ।4

पुरवा म सजा सनसन,ऋतु राज बसंती बन।
पतझड़ के असन झरबे,तब तोर तिरन आहूँ।5

धन धान धरे रहिबे,गुण ग्यान धरे रहिबे।
सत शान जिया भरबे,तब तोर तिरन आहूँ।6

लत लोभ लड़ाई धर,बल बैर बुराई धर।
होली के असन जरबे,ता तोर तिरन आहूँ।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छग)



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# 41
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Date: 2020-01-06
Subject: 

माहिया-खैरझिटिया

कागत बर का गत हे।
मनखे मन ला देख,
पइसा कहि भागत हे।।

लालच मा धँसगे हे।
माया चारा मा,
मछरी कस फँसगे हे।।

खाये जेन थारी मा।
तेला छेदा करे,
इरसा के आरी मा।।

जे ठउर ठिहा आये।
तउने ला उजारे,
वोला कोन समझाये।।

देखावा मा नित पड़े।
मनखे मखमल बिछा,
खुरवा के उपर खड़े।।

आघू म मीठ बोले।
फेर पाछू जाके,
जिनगी म जहर घोले।।

पानी के पास खड़े।
मनखे प्यास मरे,
होवय अचरज अबड़े।।

धनधन कहिके रटथे।
मया के फेक गरी,
फोकट तीर म डॅटथे।।

वो का होवै पर के।
जेन ह होय नही,
अपनेच घलो घर के।।

जे तीरथ बरत करे।
छोड़ ददा दाई,
कइसे भला वो ह तरे।।

सिधवा के सब बैरी।
का घर अउ का बन,
सब झन मताये गैरी।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा



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# 40
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Date: 2020-01-06
Subject: 

माहिया-खैरझिटिया

कागत बर का गत हे।
मनखे मन ला देख,
पइसा कहि भागत हे।।

लालच मा धँसगे हे।
माया चारा मा,
मछरी कस फँसगे हे।।



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# 39
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Date: 2020-01-06
Subject: 

बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन


बहर: 2212 122 2212 122

बूता बने तहूँ हा करबे त काय होही।
गिनहा डहर कहूँ तैं धरबे त बाय होही।1

रोटी ले जेन खेले अउ ऊँचनीच मेले।
फोकट लगाय नारा वो का भुखाय होही।2

तैं मार पीट करबे अपने अपन त मरबे।
खाके कसम मुकरबे तब हाय हाय होही।3

कइसे गुलामी ले हम,आजाद होय हावन।
लड़ मर सिपैहा बेटा जाँगर खपाय होही।4

अँधियार खोर घर मा अउ डर भरे डहर मा।
फैलाय बर उजाला अन्तस् जलाय होही।5

बिरवा ल एक ठन धर फोटू खिचाय कतको।
कइसे हमर बबा मन रुखवा लगाय होही।6

जब कोयली कुहुकही अउ रट लगाही मैना।
तब बाग अउ बगीचा मा फूल छाय होही।7

ये गाँव हे सुहावन,ये ठाँव हे सुहावन।
आके इहाँ मुरारी बँसुरी बजाय होही।8

बूता बड़े बड़े सब टर जाही खैरझिटिया।
जब काम धाम मा सबके एक राय होही।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

बहर: 2212 122 2212 122

महिनत बिना बता तो,काखर कदर इँहा हे।
पैसा लड़ाय सबला,माते गदर इहाँ हे।1।

बइला विकास के जी,अब कोड़िहा निकलगे।
बिजली नही न पानी,छानी खदर इहाँ हे।2।

खाये पचा न पाये,फेकाय भोग छप्पन।
दुच्छा पड़े कढ़ाई,लांघन उदर इहाँ हे।3।

अमरे अगास कोई ,कोई पताल नापे।
नइहे ठिहा ठिकाना,जिनगी अधर इहाँ हे।4।

इरसा गिधान बनके,ताके दया मया ला।
अब नोच नोच खाही,ओखर नजर इहाँ हे।5

अपने म सब रमे हे,आने ल कोन देखे।
पानी पवन बचाये,काखर गतर इहाँ हे।6।

ये कलयुगी मनुस के,बड़ बाढ़गे दिखावा।
जोड़े म धन लगे हे, का वो अमर इहाँ हे।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)


बहर: 221 1222 221 1222

ये आज के मनखे मन,बिन काम खवइयाँ हे।
देखव मरे बिन सबझन ,बैकुंठ जवइयाँ हे।1।

लइका ल चुमे चाँटे,खेले हँसे तब सबझन।
बिफरे कहूँ मनमाड़े,तब कोन पवइयाँ हे।2।

लाँघन पड़े हे जौने,तेखर ठिहा मा देखव।
दस बीस सगा पहुना,बरपेली अवइयाँ हे।3

बिन ठौर ठिहा के काखर होय गुजारा जी।
उझरइया मिले कतको,बिरले ही छवइयाँ हे।4

सब चीज हवै बढ़िया,मारे वो छलानी बड़।
जेखर रुके बूता हे,वो मूड़ नवइयाँ हे।5।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा

बहर: 221 1222 221 1222

जे काम न कौड़ी के,ते शेर बने मिलथे।
महिनत के पुजारी हा,नित ढेर बने मिलथे।

कोठी घलो पर थेभा,हँड़िया घलो पर थेभा।
ओखर ठिहा मा उँचहा,मुंडेर बने मिलथे।

बड़ झोल जमाना हे,काला मैं कहँव भैया।
मीनार अमीरी के,अंधेर बने मिलथे।

रद्दा ह घलो सत के,परछो सदा लेथे जी।
अतलंगहा पहली मिलथे,ता फेर बने मिलथे।

लालच म दुवारी अउ ,घर खोर घलो रेंगय।
खाली जघा ला देखव,घर घेर बने मिलथे।

सामान कहूँ बिगड़े,तब मन ह रटे रहिरहि।
ए मेर बने मिलथे,वो मेर बने मिलथे।

फल फूल मिले सब दिन,अउ साग जरी सबदिन।
आमा बिही नइ भाये,का बेर बने मिलथे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 38
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Date: 2020-01-05
Subject: 

गजल-आम आदमी

मैं आम आदमी हूं फिर से छला जाऊंगा ।
कोई कहीं बुलाये दौड़ा चला जाऊंगा ।।1

मुझे खौफ इस कदर है कुछ क्या कहूं गैरों को ।
चूल्हे की आग में मैं खुद ही जला जाऊंगा ।।2

बहुमंजिला महल हो सोना जड़ित हो शैय्या।
उस ठौर में बताओ कैसे भला जाऊंगा।।3

 हर युग में गिर रहा हूं हर युग में घिर रहा हूं ।
कोई मुझे बतायें मैं कब फला जाऊंगा ।।4

बदहाल जिंदगी है  चिंता कहाँ किसी को।
ऊंच-नीच की भट्ठी में हरपल गला जाऊंगा।5

खैरझिटिया



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# 37
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Date: 2020-01-04
Subject: 

माहिया

जेखर अधमी चोला।
माने बात नही,
समझाबे का वोला।।

गाँजा दारू पीये।
गारी ओहा खाय,
निर्लज बनके जीये।

झगड़ा झंझट पाले।
घूम घूम खाये,
बूता काम ल टाले।।

मँदहा ले सब तड़पे।
दारू पानी बर,
पैसा कौड़ी हड़पे।।

जिनगी फोकट अइसन।
पीये मउहा मंद,
जीये रकसा जइसन।।

साँसा धोखा ताये।
तभ्भो माया मा,
मनखे रहे भुलाये।।

जे काम बुरा करही।
जिनगी मा ओखर
गँजही दुख के खरही।।

जे रोज करे चारी।
नइ पावै वो बोचक,
ओखरो आही पारी।

समझे बोली ठोली।
यस जस उही पाय,
भर जाय ओखर ओली।।

 मधुरस मुँह टपकाथे।
नेक करम करनी,
दुनिया भर मा छाथे।

खैरझिटिया



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# 36
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Date: 2020-01-04
Subject: 

सहभागिता(कुकुभ छंद)

एक दूसरे की सुख दुख में,सहभागी होना होगा ।
मानव है हम मानवता का,बीज हमें बोना होगा ।

नेक कार्य के लिए सभी को, आगे नित आना होगा।
सहभागी बन एक लक्ष्य ले,कारज निपटाना होगा ।
नहीं असंभव कुछ भी जग में,मिल नौका खोना होगा।
एक दूसरे की सुख दुख में,सहभागी होना होगा।।

सहभागिता अगर हो सबकी,टिक पायेगा न अँधेरा।
कदम मिलाकर सभी चलेंगे,होगा  तब नया सबेरा।
भाई चारा की दरिया में,द्वेष स्वार्थ धोना होगा।
एक दूसरे की सुख दुख में,सहभागी होना होगा।।

छोटे छोटे जीव जंतु भी,अनुरागी बन रहते हैं।
सहभागिता निभाते नितदिन,सुख दुख मिलके सहते हैं।
सीख चींटियों से ले करके,भार हमें ढोना होगा।
एक दूसरे की सुख दुख में,सहभागी होना होगा।।

पर्यावरण बचाना होगा,आ करके सबको आगे।
जलथल वायु पेड़ जीवन है,रहना है हमको जागे।
सहभागिता सफलता सबकी,रत्न रजत सोना होगा।
एक दूसरे की सुख दुख में,सहभागी होना होगा।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को कोरबा(छत्तीसगढ़)



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# 35
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Date: 2020-01-03
Subject: 

माहिया-जीतेन्द्र

नयन मोर फड़कत हे।
आजा सजन मोरे,
जिया मोर तड़पत हे।।

करके गेहस वादा।
फेर भुला गे हस,
मोला काबर राजा।।

झरना बनगे नयना।
नीर झरे झरझर,
लुटगे निंदिया चयना।।

कवने ला गोहरावँव।
तोर बिना जोड़ी,
डर डर मैंहर हावँव।।

बिछिया करधन लच्छा।
तोर बिना सजना,
नइ लागत हे अच्छा।।

पानी हा फिर गे हे।
ये जिनगानी मा,
दुख गाज ह गिरगे हे।।

मया के अँजोरी बर।
कीट पतंगा कस,
उड़ उड़ जावौं मर।।

सुन्ना ये घर चाबे।
मोला बता तो दे,
तैंहर अब कब आबे।।

बाँधे हँव ये आसा।
मोर मया ला तँय,
ढुला न बना पासा।

होगेस जोड़ी कइसे।
मोर मया ला तैं,
जला न भुर्री जइसे।।

हीरा बनगे काँसा।
आही किहिके बस,
चलत हवै ये साँसा।।


दुख के बाजे बाजा।
काटे दिन रात ह,
आजा तैंहर राजा।।

खैरझिटिया



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# 34
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Date: 2020-01-02
Subject: 

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

नवा बछर मा नवा आस धर,नवा करे बर पड़ही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

साधे खातिर अटके बूता,डॅटके महिनत चाही।
भूलचूक ला ध्यान देय मा,डहर सुगम हो जाही।
चलना पड़ही नवा पाथ मा,सबके अँगरी धरके।
उजियारा फैलाना पड़ही, अँधियारी मा बरके।
गाँजेल पड़ही सबला मिलके,दया मया के खरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

जुन्ना पाना डारा झर्रा, पेड़ नवा हो जाथे।
सुरुज नरायण घलो रोज के,नवा किरण बगराथे।
रतिहा चाँद सितारा मिलजुल,रिगबिग रिगबिग बरथे।
पुरवा पानी अपन काम ला,सुतत उठत नित करथे।
मानुष मन घलो अपन मुठा मा,सत सुम्मत ला धरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

गुरतुर बोली मनखे जोड़े,काँटे चाकू छूरी।
घर बन सँग मा देश राज के,संसो हवै जरूरी।
जीव जानवर पेड़ पकृति सँग,बँचही पुरवा पानी।
पर्यावरण ह बढ़िया रइही, तभे रही जिनगानी।
दया मया मा काया रचही,गुण अउ ज्ञान बगरही।
द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 33
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Date: 2020-01-02
Subject: 

छेर छेरा तिहार के बधाई

छेरछेरा(सार छंद)
कूद  कूद के कुहकी पारे,नाचे   झूमे  गाये।
चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।

पाख अँजोरी पूस महीना,होय छेर छेरा हा।
दान पुन्न के खातिर पबरित,होथे ये बेरा हा।

कइसे  चालू  होइस तेखर,किस्सा   एक  सुनावौं।
हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।

युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर  के  द्वारे।
राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।

हैहय    वंशी    शूर  वीर   के ,रद्दा    जोहे   नैना।
आठ साल बिन राजा के जी,राज करे फुलकैना।

सबो  चीज  मा हो पारंगत,लहुटे  जब  राजा हा।
कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।

परजा सँग रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।
राज  रतनपुर  हा मनखे मा,मेला असन भराये।

सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।
बेरा  रहे  पूस  पुन्नी के,खुले  रहे दरवाजा।

कोनो  पाये रुपिया पइसा,कोनो  सोना  चाँदी।
राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।

राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।
पूस  महीना  के  ये  बेरा, सबके  झोली भरबों।

राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो दान हा होवय।
कोसलपुर  के  माटी  मा  जी,अबड़ धान हा होवय।

मिँजई कुटई होय धान के,कोठी तब भर जाये।
अन्न  देव के घर आये ले, सबके  मन  हरसाये।

अन्न दान बड़ होवन लागे, आवय जब ये बेरा।
गूँजे अब्बड़ गली गली मा,सुघ्घर छेरिक छेरा।

टुकनी  बोहे  नोनी  घूमय,बाबू  मन  धर झोला।
देय लेय मा ये दिन के बड़,पबरित होवय चोला।

करे  सुवा  अउ  डंडा  नाचा, घेरा  गोल   बनाये।
माँदर खँजड़ी ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।

दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।
हरे  बछर  भरके  तिहार  ये,छेरिक  छेरा  गा  लौ।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 32
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Date: 2020-01-01
Subject: 

बधाई नवा बछर के(सार छंद)

हवे  बधाई   नवा   बछर   के,गाड़ा  गाड़ा  तोला।
सुख पा राज करे जिनगी भर,गदगद होके चोला।

सबे  खूँट  मा  रहे  अँजोरी,अँधियारी  झन  छाये।
नवा बछर हर अपन संग मा,नवा खुसी धर आये।
बने चीज  नित नयन निहारे,कान सुने सत बानी।
झरे फूल कस हाँसी मुख ले,जुगजुग रहे जवानी।
जल थल का आगास नाप ले,चढ़के उड़न खटोला।
हवे  बधाई  नवा  बछर  के,गाड़ा  गाड़ा  तोला----।

धन बल बाढ़े दिन दिन भारी,घर लागे फुलवारी।
खेत  खार  मा  सोना  उपजे,सेमी  गोभी  बारी।
बढ़े बाँस कस बिता बिता बड़,यश जश मान पुछारी।
का  मनखे  का  जीव जिनावर, पटे  सबो सँग तारी।
राम रमैया कृष्ण कन्हैया,करे कृपा शिव भोला-----।
हवे  बधाई  नवा  बछर के,गाड़ा  गाड़ा  तोला------।

बरे बैर नव जुग मा बम्बर,बाढ़े भाई चारा।
ऊँच नीच के भेद सिराये,खाये झारा झारा।
दया मया के होय बसेरा,बोहय गंगा धारा।
पुरवा गीत सुनावै सबला,नाचे डारा पारा।
भाग बरे पुन्नी कस चंदा,धरे कला गुण सोला।
हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला---।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 31
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Date: 2020-01-01
Subject: 

घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

             1
बिदा कर गाके गीत,बारा मास गये बीत।
का खोयेस का पायेस,तेखर बिचार कर।।
गाँठ बाँध बने बात,गिनहा ला मार लात।
उन्नीस के अटके ला,बीस मा जी पार कर।।
बैरी झन होय कोई,दुख मा न रोय कोई।
तोर मोर छोड़ संगी,सबला जी प्यार कर।।
जग म जी नाम कमा,सबके मुहुँ म समा।
बढ़ा मीत मितानी ग,दू ल अब चार कर।।

              2
गुजर गे बारा मास,बँचे जतके हे आस।
पूरा कर ये बछर,होय नही रोक टोंक।।
मुचमुच हाँस रोज,पथ धर चल सोज।
बुता काम बने कर,खुशी खुशी ताल ठोंक।
दिन मजा मा गुजार,बांटत मया दुलार।
खाले तीन परोसा जी,लसून पियाज छोंक।।
नवा नवा आस लेके,दिन तिथि खास लेके।
हबरे बछर नवा,हमरो बधाई झोंक।।

              3
होय झन कभू हानि,चले बने जिनगानी।
बने रहे छत छानी,बने मुड़की मिंयार।।
फूल के बिछौना रहै, महकत दौना रहे।
जीव शिव प्रकृति के,सदा मिले जी पिंयार।।
आदर सम्मान बढ़े,भाग नित खुशी गढ़े।
सपना के नौका चढ़े,होके घूम हुसियार।।
होवै दिन रात बने,मनके के जी बात बने।
नवा साल खास बने,भागे दूर अँधियार।।

               4
सबे चीज के गियान,पा के बन गा सियान।
गाँव घर देश राज,छाये चारो कोती नाम।।
मीठ करू खारो लेके,सबके जी आरो लेके।
सेवा सतकार करौ,धरम करम थाम।।
खुशी खुशी बेरा कटे,दुख के बादर छँटे।
जिनगानी मा समाये,सुख शांति सुबे शाम।।
हमरो झोंको बधाई,संगी संगवारी भाई।
नवा बछर मा बने,अटके जी बुता काम।।

                5
अँकड़ गुमान फेक,ईमान के आघू टेक।
तोर मोर म जी मन, काबर सनाय हे।।।
दुखिया के दुख हर,अँधियारी म जी बर।
कतको लाँघन परे, कतको अघाय हे।।।
उही घाट उही बाट,उही खाट उही हाट।
उसनेच घर बन,तब नवा काय हे।। ।।।।
नवा नवा आस धर,काम बुता खास कर।
नवा बना तन मन,नवा साल आय हे।।।।

जीतेंद्र वर्मा""खैरझिटिया
बाल्को,कोरबा
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

(सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा)

हवे  बधाई   नवा   बछर   के,गाड़ा  गाड़ा  तोला।
सुख पा राज करे जिनगी भर,गदगद होके चोला।

सबे  खूँट  मा  रहे  अँजोरी,अँधियारी  झन  छाये।
नवा बछर हर अपन संग मा,नवा खुसी धर आये।
बने चीज  नित नयन निहारे,कान सुने सत बानी।
झरे फूल कस हाँसी मुख ले,जुगजुग रहे जवानी।
जल थल का आगास नाप ले,चढ़के उड़न खटोला।
हवे  बधाई  नवा  बछर  के,गाड़ा  गाड़ा  तोला----।

धन बल बाढ़े दिन दिन भारी,घर लागे फुलवारी।
खेत  खार  मा  सोना  उपजे,सेमी  गोभी  बारी।
बढ़े बाँस कस बिता बिता बड़,यश जश मान पुछारी।
का  मनखे  का  जीव जिनावर, पटे  सबो सँग तारी।
राम रमैया कृष्ण कन्हैया,करे कृपा शिव भोला-----।
हवे  बधाई  नवा  बछर के,गाड़ा  गाड़ा  तोला------।

बरे बैर नव जुग मा बम्बर,बाढ़े भाई चारा।
ऊँच नीच के भेद सिराये,खाये झारा झारा।
दया मया के होय बसेरा,बोहय गंगा धारा।
पुरवा गीत सुनावै सबला,नाचे डारा पारा।
भाग बरे पुन्नी कस चंदा,धरे कला गुण सोला।
हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला---।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 30
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Date: 2019-12-30
Subject: 

बहर-221 1222 221 1222

भुर्री के मजा लेलौ,बड़ जाड़ बढ़े हावै।
सूरज के पता नइहे,बेरा ह चढ़े हावै।।1

बरसात म बरसे जल,गर्मी म बियापे थल।
जुड़ जाड़ के मौसम ला,भगवान गढ़े हावै।2

खुद काम कहाँ करथे,बइमान बने लड़थे।
अपनेच अपन अँड़थे,वो काय पढ़े हावै।3

गिन के हे बने मनखे,जे मान रखे तन के।
नित झूठ कहे जेहर,वो दोष मढ़े हावै।।4

सब बात हवा मा हे,मुद्दा ह तवा मा हे।
बहकाव म बह जावै,ओ मन न कढ़े हावै।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)



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# 29
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Date: 2019-12-29
Subject: 

कटकट दाँत करे,सप सप आँत करे।
सुड़सुड़ नाक करे,बढ़े बड़ जाड़ हे।
काया कनकन होगे,बियाकुल मन होगे।
चुरुमुरु तन होगे, जैसे नइ हाड़ हे।
जुड़ हवा जुड़ पानी,बोर देवै जिनगानी।
नहाये खोरे म घलो,कई दिन आड़ हे।
सुरुज हा उगे नही,सहै साँझ सुबे नही।
काल सही जाड़ लागे,रुँवा रुँवा ठाड़ हे।



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# 28
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Date: 2019-12-23
Subject: 

जनता ल काय पसंद हे

वइसे तो सबझन ला भैया,भारत देश पसंद हे।
फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।

रोजगार के राह देखत हे, बेरोजगार युवा हा।
फलय फूलय कहाँ अब,कखरो आशीष दुवा हा।
दागी बागी दंगी गुंडा,सबला घेंच पसंद हे------।
फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।

बली के बोकरा बनके जनता,मारत हे मँहगाई।
नेता गुंडा व्यपारी मन,खावै सदा मिठाई।
कुर्सी के खिलाड़ी मन ला,दाँव पेंच पसंद हे----।
फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।

कोनो नियम कानून आवै,जनता रोज पिसावै।
पक्ष विपक्ष सब मिल बाँट के,एक्के थारी मा खावै।
कुर्सी खातिर नेता मन ला,जीवन भर रेस पसंद हे।
फेर जनता ला पानी बिजली,काँदा ढेंस पसंद हे।

लइका ल लेस पसंद हे,टूरा ल टेस पसंद हे।
टूरी ल केंस पसंद हे,भाजी म चेंच पसंद हे।
कोनो ल चेस पसंद हे,कोनो ल बेस पसंद हे।
सुख शांति सब चाहे,कोनो ल नइ क्लेस पसंद हे।

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 27
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Date: 2019-12-23
Subject: 

चक्की चक्की गुड़ रहै,टीपा टीपा तेल।
चौमासा के बेर बर, मनखे रखे सँकेल।
मनखे रखे संकेल,खोइला बरी बिजौरी।
लहसुन आलू संग,पियाज अथान अदौरी।
सादा समय बिताय,तभो सब करे तरक्की।
सब झन ला पिसवाय,आज मँहगाई चक्की।



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# 26
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Date: 2019-12-15
Subject: 

बरी बनाबे ताहन बादर,बैरी बनके ढाथे।
घाम सुरुज के नइ आवन दय,पानी घलो गिराथे।

पर्रा पर्रा बरी घाम बिन,भँभा घलो नइ पाये।
उरिद दार अउ रखिया तूमा ,बिरथा सब हो जाये।



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# 25
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Date: 2019-12-15
Subject: 

दुर्मिल सवैया

महँगा बड़ होगे साग सखी छिछले कढ़ई ले पियाज घलो।
पुर पावत हे अब मूल कहाँ खप जावय देख बियाज घलो।
नित गाँव म घूमत राग लमावय तेन भुलाय रियाज घलो।
नयना नइ देखन पावत हे भगवान सुने न नियाज घलो।



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# 24
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Date: 2019-12-15
Subject: 

[14/12, 10:30 PM] जय माता दी: गुरू बिना कखरो कभू,नइ होवय उद्धार।
गुरू जीत के मंत्र ए,गुरू जिये के सार।

गुरू महिमा के सुघ्घर वर्णन,तातंक छंद म।
🙏💐बधाई
[14/12, 11:00 PM] जय माता दी: पानी बरसे पूस मा,गरज बरस के साथ।
कथरी कम्बल संग मा,छत्ता खुमरी हाथ।
छत्ता खुमरी हाथ,पूस मा अटपट लागे।
खाय मनुस ला जाड़,सुरुज ला बादर खागे।
पड़े दुतरफा मार,कहाँ ले फूटय बानी।
अड़बड़ जाड़ जनाय,हाय अउ बादर पानी।

*आज कोरबा म बड़ पानी गिरीस*

मयूरा,कोयली,अउ बदरा संग कुंडलियाँ के राग म नाचत झुमरत माटी जी के मन,वाह बधाई।।
*शानदार संचालन भैया जी*

देख रचना तोर भगवन का हरे इंसान।
मान कोनो ला न देवै पाय नइ खुद मान।
नेक कारज ले कटे गिनहा तिंहा जुरियाय।
जोर लेजा साथ अपने काम ये नइ आय।

रोज के अखबार मा मिलथे गजब कन ज्ञान।
देश अउ परदेश के घटना दिलावव ध्यान।
जेन पढ़थे रोज के तवने ह आघू जाय।
पान ठेला संग अब तो घर ठिहा मा आय।

ज्ञान दायिनी शारदा,देवय कइसे ज्ञान।
लगन साधना गुण नही,ममता मया न मान।



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# 23
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Date: 2019-12-15
Subject: 

हरियर धान देख,खुश हे किसान देख।
रेगें छाती तान देख,घर खेत गाँव मा।
कर्मा ददरिया धुन,तीतुर के गीत सुन।
आशा विस्वास बुन,बैठे मेड़ छाँव मा।
जाँगर नाँगर खपा,तन मन दूनो तपा।
लगा देवै जिनगी ला,किसान ह दाँव मा।
सबके सहारा हरे,जिनगी के धारा  हरे।
नवे खैरझिटिया हा,किसान के पाँव मा।



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# 22
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Date: 2019-12-15
Subject: 

ऋतुवन राजा बन,सुख शांति बाजा बन।
शरद ऋतु हा नाचे,घर बन बाग मा।
लाली लाली फूल संग,बेला पाना झूल संग।
बाँस अउ बबूल संग,कोयली के राग मा।
धरती ल धानी रंग,पुरवा पानी के संग।
सरसर सरसर,मया रस पाग मा।
दरद शरद हरे,मन मा उछाह भरे।
जिनगी के राज खोले,फुले कांसी ताग मा।
खैरझिटिया

शरद ऋतु के सुघ्घर वर्णन भैया जी बधाई

गुटका मउहा मंदले,सुख के होवय नाँस।
पड़के संगत मा बुरा,हिही हिही झन हाँस।
हिही हिही झन,हाँस नशा के,चक्कर में पड़।
एखर चक्कर,मा पड़बे ता ,पछताबे बड़।
तन मन धन के,होही तोरे,कतको कुटका।
बढ़िया जिनगी,जीना हे ता,तज दे गुटका।
खैरझिटिया



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# 21
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Date: 2019-12-12
Subject: 

भूमंडलीकरण(वैश्वीकरण) गीत

विश्व सारे आ गए हैं वैश्विक बाजार में।
हो रही प्रसार देखो पूंजी और प्यार में।।

पहुँचे कोई पाताल में तो कोई पहुंचे सौर में।
है जरूरी वैश्वीकरण आज के इस दौर में।।
वस्तु और सेवाएं अब बँटने लगी है चार में।
विश्व सारे आ गए हैं वैश्विक बाजार में ।।

है पुरानी परंपरा ये झांक लो इतिहास को ।
मान भारत ने बढ़ाया जीतकर विश्वास को।।
चार चांद लग रही हैं शिक्षा और संस्कार में।
विश्व सारे आ गए हैं वैश्विक बाजार में ।।

आज आवश्यक है चिंतन जीव और जलवायु की।
प्राणियों का प्राण प्रकृति आधार सबके आयु की ।
एक होकर सब खड़े हैं जीत और हार में।।
विश्व सारे आ गए हैं वैश्विक बाजार में ।।

है सामाजिक राजनीतिक आर्थिक विकास ये।
चाह रखकर जो चले उन सभी की आस ये।
वैश्वीकरण नौका बना है नवयुगीन धार में ।
विश्व सारे आ गए हैं वैश्विक बाजार में ।।

कोई आगे कोई पीछे प्रतिस्पर्धी इस खेल में ।
लाभ हानि है समाहित वैश्विक इस मेल में।।
भावना हो भाईचारा भूमंडलीय संसार में ।।
विश्व सारे आ गए हैं वैश्विक बाजार में।।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छत्तीसगढ़)



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# 20
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Date: 2019-12-10
Subject: 

आत्मा बीर नरायन के(लावणी छंद)

दुख पीरा हा हमर राज मा,जस के तस हे जन जन के।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।

जे मन के खातिर लड़ मरगे,ते मन बुड़गे स्वारथ मा।
तोर मोर कहि लड़त मरत हे, काँटा बोवत हे पथ मा।
कोन करे अब सेवा पर के,माटी के खाँटी बनके।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।

अधमी सँग मा अधमी बनके,माई पिला सिरावत हे।
पइसा आघू घुटना टेकय,गरब गुमान गिरावत हे।
परदेशी के पाँव पखारय,अपने बर ठाढ़े तन के।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।

बाप नाँव ला बेटा बोरे, महतारी तक ला छोड़े।
राज धरम बर का लड़ही जे,भाई बर खँचका कोड़े।
गुन गियान के अता पता नइ, गरब करत हे वो धन के।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।

लाँघन ला लोटा भर पानी,लटपट मा मिल पावत हे।
कइसे जिनगी जिये बिचारा,रो रो पेट ठठावत हे।
अपने होगे अत्याचारी,मुटका मारत हे हनके।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।

नेता बयपारी मन गरजे,अँगरेजन जइसन भारी।
कोन बने बेटा बलिदानी,दुख के बोहय अब धारी।
गद्दी ला गद्दार पोटारे, करत हवय कारज मनके।
देख कचोटत होही आत्मा,शूरवीर नारायन के।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)



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# 19
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Date: 2019-12-05
Subject: 

बारी बखरी में कहाँ,उपजे लहसुन प्याज।



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# 18
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Date: 2019-12-04
Subject: 

नाम -जीतेंद्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
पिता का नाम - श्री बहल राम वर्मा
माता का नाम - श्रीमती अगम बाई
धर्मपत्नी का नाम -श्रीमती वंदना वर्मा
शिक्षा - स्नातकोत्तर,एम बी ए,
जन्म स्थान - खैरझिटी,राजनादगाँव
जन्मतिथि - 14 अप्रैल 1985
व्यवसाय - बाल्को कर्मचारी
अभिरुचि - साहित्य एवं संगीत कला,
विधा - हिन्दी और छत्तीसगढ़ी गीत कविता लेखन
पता - निवास स्थान189/04/A, बाल्को टाउनशिप कोरबा(छग),पिन- 495684
संपर्क - 9981441795(वार्तालाप+वाट्सअप)
जी. मेल - verma.jeetendra7@gmail.com

प्रकाशित पुस्तकें - 
गँवागे मोर गाँव(छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह) 
खेती अपन सेती (छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह,)

आगामी पुस्तक-व्यंग्य संग्रह "कुकरुस कू"
छंद संग्रह-"दया मया के गीत सार हे"(गीत-सार छंद)
सम्मान-कुछ नही।

बाल्को में मेरी साहित्यिक यात्रा- राजनांदगांव से बाल्को कोरबा में आने के बाद मुझे यहाँ का साहित्य और कला का माहौल  इस  क्षेत्र में खींच लिया।
       मुझे याद है,मैंने पहली बार मैडम शशि साहू जी के निवास में श्री  कृष्ण कुमार चन्द्रा जी के आमंत्रण पर एक गोष्ठी में भाग लिया था।वहाँ उपस्थित कवियों की प्रोत्साहन और आशीर्वाद मुझे आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया।और साहित्य भवन समिति बन जाने पर यहाँ का न सिर्फ साहित्य माहौल बल्कि अपनत्व मुझे आगे बढ़ाता रहा।बाल्को में चन्द्रा सर,गीता विश्वकर्मा जी,डॉ गिरिजा शर्मा जी,आशा मेहर जी,खांकी जी,रामकली कारे जी,सुधा देवांगन जी,लाल जी साहू जी,बंसी लाल यादव जी,लोकनाथ ललकार जी,निर्मला ब्राम्हणी जी,महावीर चन्द्रा जी,शशि साहू जी,अजय सागर गुप्ता जी,धरम साहू जी,भूपेंद्र देवांगन जी,सरकार दादा,आदि गुणीजनों का सहयोग और आशीष मिला।
             कोरबा से परम् आदरणीय नवरंग जी का आशीष और उत्तम सुझाव मुझे मिलता रहा है।साथ ही मैडम दीप दुर्गवी जी, दिलीप अग्रवाल जी,मुकेश चतुर्वेदी जी,भुनेश्वर देवांगन नेही जी,यूनुस सर,गायत्री शर्मा जी,श्रवण चोरनले सर,नरेश चन्द्र नरेश जी,इकबाल अंजान जी,घनश्याम श्रीवास जी,नागेश ठाकुर जी,बी के चतुर्वेदी जी,अंजना जी,निर्मला शर्मा जी,शैलेश बोहरे जी,द्वय राव सर,खांडेकर जी,पाठक सर,महुलीकर सर जी,श्रीवास्तव सर,बलराम राठौर जी,तिवारी सर,खरे सर और साहित्य भवन समिति के सभी गुणीजनों का आशीष मुझे लगातार प्राप्त हो रहा है।ऐसा नही है कि जो सिखाये उसी भर से मुझे सीखने को मिलता है,बल्कि मुझे आप सभी सुधीजनों के व्यक्तित्व और साहित्य से भी लगातार प्रेरणा मिलता है।जिस दिन कविता लिखाता है उस दिन ऐसा लगता है कि कुछ पा लिया और किसी शुभचिंतक का कोई सुझाव मिल जाता है तो कोई उपलब्धि या सम्मान पाने जैसा अपार सुख प्राप्त हो जाता है। मैं आप सबको सादर नमन करता हूँ।
          मैं  इतने अच्छे साहित्य नगरी और समूह में आप सबके बीच हूँ ,यही मेरी उपलब्धि है।



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# 17
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Date: 2019-12-02
Subject: 

घनाक्षरी

* घनाक्षरी एक वर्णिक छंद आय।
 *येला कवित्त घलो कहे जाथे।
*येमा गण गिने अउ लिखे के बंधन नइ रहय।ना येमा मात्रा
   गिने जाय।
*सिर्फ पूरा वर्ण भर गिनती म आथे,आधा वर्ण घलो ल नइ           गिने जाय।
*चार डाँड़ के घनाक्षरी म 30,31,32, या फेर 33 वर्ण हो सकथे।
*30 अउ 33 वर्ण वाले घनाक्षरी जादा प्रभावी नइ होय ते पाय के 31 अउ 32 वर्ण वाले घनाक्षरी जादा लिखे पढ़े जाथे।
*घनाक्षरी के कई प्रकार हे जेमा मनहरण घनाक्षरी अउ रूप घनाक्षरी जादा लोकप्रिय हे।
*घनाक्षरी लय प्रधान छंद आय।

सबले पहली मनहरण घनाक्षरी सिखबों-
मनहरण घनाक्षरी-
* येमा कुल 8 डाँड़(मुख्य रूप से चार-8,8,8,7 पूरा मिलाके एक डाँड़) होथे। 2,4,6 अउ 8 म तुकांत रहिथे।
*8,8  वाले चरण म भी तुकांत आय त घनाक्षरी मन भवन हो जथे।नीचे उदाहरण म बताय गेहे।
* हर डाँड़ म कुल 31 मात्रा होना चाही,16 अउ 15 वर्ण म यति होथे ।या  8,8,8,7 के यति अउ आखिर म लघु गुरु होय।इहाँ एक डाँड़ के मतलब 8,8  अउ 8,7 वाले चार चरण से हे।
*अंत म गुरु  या लघु गुरु बढ़िया होथे।
*समवर्ण के साथ सम वर्ण अउ विषम वर्ण के साथ विषम वर्ण रखे ले लय सहज बनथे।
*घनाक्षरी ल अपन गन ज्ञान अउ अनुभव ले कई प्रकार ले प्रभावी बना सकत हव,येखर बर चिटिक अध्यन अउ लग्न जरूरी हे।घनानंद के कवित्त अद्भुत हे।
*तालव्य व्यंजन च,छ,ज,झ के बार बार प्रयोग या अलंकारिक प्रयोग घनाक्षरी ल मनमोहक बनाथे।

उदाहरण-

घनाक्षरी(भोला बिहाव)

अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,
भूत  प्रेत  साथ  मा  जी ,निकले  बरात  हे।
बइला  सवारी  करे,डमरू  त्रिशूल धरे,
जटा जूट चंदा गंगा,सबला  लुभात हे।
बघवा के छाला हवे,साँप गल माला हवे,
भभूत  लगाये  हवे , डमरू  बजात  हे।
ब्रम्हा बिष्णु आघु चले,देव धामी साधु चले,
भूत  प्रेत  पाछु  खड़े,अबड़ चिल्लात  हे।
खैरझिटिया



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# 16
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Date: 2019-12-01
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल

बहर-221 1222 221 1222
 
कब काय हो जाही तेखर आज भनक नइ हे।
चुपचाप चले चकरी,सिक्का म खनक नइ हे।1

ईमान गँवा देथे,इंसान उठा के सिर।
मनखे के नियत के अब,जननी न जनक नइहे।2

फँस रोय बड़े छोटे,लालच के बिमारी मा।
बल बैर बुराई बर,कखरो म सनक नइहे।3

जब हाथ धरिस मनखे,पिघलेल लगिस पत्थर,
संसो म विधाता हे, झाँझर म झनक नइहे।4

आगास ल अमरय वो,पातालल टमरय वो,
हे हाय हटर जिनगी,सुख एको कनक नइहे।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 15
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Date: 2019-11-30
Subject: 

                    सहभागिता

            चाहे मनुष्य हो या कोई भी जीव जंतु सहभागिता के साथ ही सबका जीवन सुचारु रूप से गतिमान होता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है,जिनकी सहभागिता घर परिवार से होते हुए गांव,शहर,राज्य और देश-विदेश तक देखने को मिलती है। सहभागिता को तलाशा जाए तो छोटे से छोटे जीव भी एक दूसरे के कार्य में सहभागी होते है। चौमास के लिए खानपान की व्यवस्था में लगे चीटियों की लंबी कतार सहभागिता का एक सहज उदाहरण है ,जो अपने से भी दुगना भार ढोते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर परस्पर सहभागिता प्रदर्शित करते हुए एक झुंड में मेहनत करते नजर आते हैं।कभी कभी तो किसी बड़े चीज को भी एक साथ कई चींटियाँ मिलकर अपने गंतव्य स्थान पर ले जाते दिखतें हैं ,इस कार्य में चींटियों की सहभागिता और सामंजस्य सहज ही दिखाई देती हैं।लकड़ियों और मिट्टियों में पाये जाने वाले दिमाकों की सहभागिता भी किसी से छुपी नही है,वें हमेशा एक साथ रहते हुए अपने जीवन यापन करते है ,उनकी सहभागिता का प्रमाण उनके द्वारा बनाये गये मिट्टी के अद्वितीय छोटे बड़े खोह को देखकर लगाया जा सकता है।छोटा सा जीव और इतना अच्छा निर्माण,ये सब एक दूसरे के परस्पर सहभागिता को परिलक्षित करते हैं।
               ग्रीष्म काल में तप्त धरती आषाढ़ की बूंदों के साथ शीतल हो जाती है,और जब बरसात में पानी बरसता है,तो रातों को रागमय करते हुये झिगुरों के स्वर,झुंड में उड़ते या अपने अपने व्यवस्थित जगहों पर लटके चमगादड़, मस्ती में उफनती नदी,तालाबो में टर्राते मेंढ़कों और यत्र तत्र झुंड में नजर आते कीट पतंगें भी सहभागिता को प्रदर्शित करते नजर आते है।उजालों की ओर खींची चली आती हुई हजारों कीट पतंगों की झुंड में सहभागिता तो दिखती है पर उनका कार्य समझ से परे लगते हैं।जिसे देखकर ऐसा लगता है कि ये जीव जंतु सिर्फ अपने खानपान सम्बंधी कार्य ही नही बल्कि जीवन के सभी क्रियाकलापों में परस्पर सहभागी होते हैं।
           चिड़ियों में भी सहभगिता को सहज ही देखा जा सकता है।भले ही घोंसला बनाकर रहने वाली चिड़ियाँ अपने घोसलें में अकेले रहते है,और बच्चे आने के बाद,जब वे बड़े होते है,तो उनको छोड़कर चले जाते है,फिर भी झुंड में दाना चुगना,एक स्थान से दूसरे स्थान पर झुंड में जाना,झुंड में करलव करना,ये सब उनकी सहभागिता को दिखाती है।पक्षी आसमान में भी बेतर्तीत नही उड़ते,एक निश्चित आकार बनाकर किसी एक के नेतृत्व में नयनाभिराम दृश्य प्रदर्शित करते हुये,उड़ान भरते है।रात होते ही अपने अपने घोसलों में अपने सभी साथियों के साथ लौट जाना,अपने उचित स्थान पर विश्राम करना,और सुबह होते ही एक साथ करलव करते हुये जगना,साथ ही किसी पेड़ में जहाँ अनेको पक्षी विश्राम कर रहे होते है,वहाँ  किसी भी प्रकार का संकट आ जाने पर सबका परस्पर एक साथ सजग होकर निपटना आपसी सहभागिता ही तो है।सिर्फ सुख में ही नही दुख में भी इनकी सहभागिता बराबर नजर आती हैं।
                कुछ पक्षियाँ तो विदेशो से भी भारत वर्ष में अनुकूल जगह तलाश करते हुये आते है,और अपना प्रजनन आदि क्रियाकलापो से निवृत्त होकर बच्चों के साथ पुनः अपने पुराने स्थान पर लौट जाते है।इस दौरान उन सब में प्रगाढ़ सहभागिता रहती है।एक साथ अनुकूल स्थान में आना,एक साथ रहना,एक साथ सारे कार्य करना और एक साथ अपने गंतव्य को चले जाना।भले उनकी कियाविधि,भाव भाषा हमारी समझ से परे हो पर उनकी कार्य, निर्णय,लक्ष्य,नियम और सहभागिता को नकारा नही जा सकता।
                           जंगलो में यत्र तत्र कुलाँचे भरते हिरणों,हाथियों,जंगली भैसों और अन्य कई जानवरों के झुंड,सहज ही  विचरण करते यत्र तत्र नजर आ जाते है।वें सब एक साथ खाते, पीते ,घूमते और आराम फरमाते है,साथ ही किसी भी संकटो से एकजुट होकर लड़ते है।ये सब उनकी सहभागिता का प्रबल पक्ष है।बन्दर भी हमेशा झुंड में रहते हैं और अपने सारे क्रियाकलाप झुंड में ही करते है।कहा जाता है कि झुंड से बिछुड़कर हाथी,खतरनाक हो जाता है,वैसे ही बन्दर भी अपने साथियों से अलग होकर नही रह पाता है।उनकी सहभागिता ही उनका जीवन है।भेड़,बकरी,गाये भैसें आदि भी अपनी भूख मिटाने और विपदाओं से निपटने के लिये परस्पर सभी कार्यों में सहभागी होकर चलते हैं।किसी भी नेतृत्व करने वाले सजातीय या अपने चरवाहे का ईमानदारी से अनुशरण करते है।
             पौराणिक कथा अनुसार त्रेता युग में तो वानरों ने ही भगवान श्री राम चन्द्र जी का ,माता सीता की खोज और लंका विजय में बहुमूल्य योगदान दिया था।बानरों ने ही मिलकर समुद्र में पुल बाँधा था।बानरों की सहभागिता से ही भगवान राम,रावण पर जीत हासिल किया था।यहाँ एक बात देखने वाली है कि जिस प्रकार चींटी,चींटी से,पक्षी पक्षी से व अन्य जानवर अपने ही सजातीय से अधिकतर सुख दुख व काम काज में सहभागी नजर आते है,पर वानर उस युग में मनुष्यों के सुख दुख के साथी बने थे।भगवान श्री राम जी के कार्यों में वानर के आलावा, भालू(नल नील) और पक्षियों में जटायु और सम्पाती नामक गिद्ध भी सहभागी बने थे।इस तरह की सहभागिता मानवो को सभी छोटे से छोटे जीव जंतुओं और सभी नेक कार्यों में निःस्वार्थ सहभागिता निभाने की प्रेरणा देते है।
          सहभागिता का एक उत्तम उदाहरण मधुमख्खियों में भी देखा जा सकता है।कहते है ,कि मधु बनाने में रानी मधुमक्खी के वचनानुसार बाकी सारे मधुमख्खी अपने अपने कार्य पूर्णतः सहभागिता दिखाते हुये निभाते है।फूलो से रस चूसना,छत्ते में एक निश्चित स्थान पर बैठना,किसी संकट का एक साथ निश्चित दल द्वारा सामना करना,ये सब उनकी आपसी सहभागिता का ही प्रमाण है।
            हमने ऊपर देखा कि छोटे से छोटे जीवों में भी सहभागिता होती है,फिर तो मनुष्य में न हो ये नामुमकिन है। मनुष्य को इस धरती का सबसे दिमाग वाला प्राणी माना जाता है,तभी तो मानव सहज रूप से ही सहभागिता समेटे सर्वत्र शोभायमान होते है।मनुष्य ही ऐसा प्राणी है,जो अपने,पराये,सजातीय,विजातीय आदि सबके सुख दुख में बराबर सहभागिता निभाते नजर आते है।बच्चें जन्म लेते ही तो किसी भी कार्य मे सहभागी नही होते है पर जैसे ही थोड़े बड़े होते है और खेलने कूदने लग जाते है ,तो वें पहली बार अपने साथियों के साथ खेल कूद में सहभागी बन जाते है।कई रचनात्मक खेल उनकी सहभागिता में संचालित होती है।बच्चों की खेलकूद में आपसी सहभागिता से उनको पूर्णानंद की प्राप्ति होती।कई खेल ऐसे भी निर्मित हो जाते है जो किसी विशेष बच्चे के सहभागिता बगैर संचालित भी नही होते हैं।पर दुखद आज शहरी क्षेत्रों या कुछ ग्रामीण क्षेत्रो में बच्चें मोबाइल या ऊँच नीच के भेद के बीच,या माँ बाप की इच्छा न होने या कई अन्य कारणों से इस सहभागिता से वंचित हो रहे हैं।जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते है,उनकी सहभागिता की सीमा भी बढ़ती जाती है।घर से मुहल्ला,मुहल्ला से स्कूल,स्कूल से गाँव आदि आदि।
             बच्चे जब स्कूल जाते है तो उनकी सहभागिता स्कूल में भी परिलक्षित होती है।स्कूल के समस्त कार्यों और कार्यक्रमों में बच्चें बराबर सहभागी होते है।।भले ही आज बच्चें स्कूल में शारीरिक कार्य न करता हो पर पहले स्कूल के सारे कार्य विधार्थियो के उप्पर ही निर्भर था।सभी कार्यो में सभी विधार्थियों का बराबर सहयोग और सहभागिता नजर आती थी।
पढ़ाई के साथ साथ खेल- कूद,व्यायाम,काम,सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि आदि में बच्चें बराबर सहभागी होते थे।पहले की तरह कुछ प्रतिभावान बच्चें आज भी कुछ विशेष कार्य या खेलकूद के लिए न सिर्फ अपने  स्कूल में बल्कि अन्य स्कुलों के भी कार्यक्रमों में सहभागी होते है।जितनी सहभागिता शिक्षको की स्कूल के प्रति होती है,उतनी ही सहभागिता बच्चों की भी होती है।बच्चें स्कूल से ही छोटे-बड़े और कई प्रकार के कार्य में सहभागिता निभाने की कला सीखते है,जिससे वे आगे चलकर अपने आपको घर,गाँव,समाज,राज्य और देश के सभी नेक कार्यों में सहभागी बनाता है।
             घर में रहने वाले सभी सदस्यगण घर के प्रति सहभागी होते है।सभी सदस्यों के कार्य भले ही अलग अलग  हो सकते है पर मूल उद्देश्य घर में सबकी सहभागिता के साथ घर का समूल विकास होता है।इसी सहभागिता के चलते ही घर के सदस्यगण एक दूसरे के सुख दुख और घर में किसी भी कार्य के लिये सदैव तत्पर रहते है।चाहे घर की साफ सफाई हो,शान शौकत हो या घर वालों का कोई अन्य काम हो,आपसी सहभागिता से सब सुचारू रूप से संचालित होता है।आज तो घर में परिवारों की संख्या लगभग सीमित होने लगी है पर पहले सयुंक्त परिवार होता था।परिवार में बहुत लोग रहते थे,फिर भी इसी सहभागिता के चलते हँसते गाते परिवार वाले जिंदगी व्यतित करते थे।घर में होने वाले सभी कार्यों में सभी सदस्यगण बराबर सहभागिता निभाते थे।आज भी सबकी आपसी सामंजस्य और सहभागिता के चलते घर परिवार सुचारू रूप से संचालित हो रहे है।परिवार की मुख्या के अनुसार परिवार के सदस्य गण आपसी सहभागिता निभाते हुये परस्पर काम करते है।घर परिवार के प्रति प्रत्येक व्यक्ति की सहभागिता ही उस घर की तरक्की का द्योतक होता है।
          सहभागिता को एकल और सामूहिक खेल दोनो में देखा जा सकता है।एकल खेलों में सहभागी बनने वाले खिलाड़ी,प्रतिभागी बनकर समूह में अपने आपको श्रेष्ठ सिद्ध करने की कोशिश करता है।जैसे किसी दौड़ में सहभागिता निभाने वाले खिलाड़ी को ही ले लें,वे अपने साथ के अन्य प्रतिभागी खिलाड़ियों से आगे निकालने के लिये मेहनत करता है।और यदि किसी सामूहिक खेलों में सहभागिता की बात करें तो,खिलाड़ी पहले उस सामूहिक खेल में सहभागी होते है,तत्पश्चात अपने दल में,और फिर उनको अपने अन्य सहभागी दल वालों के साथ मिलकर स्वयं की दल को सफल सिद्ध करने के लिये कार्य करना पड़ता है।खेलों में  भी सहभागी होकर एक निश्चित नियमों,शर्तों या उद्देश्यों को पूरा करना पड़ता है।जहाँ सहभागिता वाली बात आती है,वहाँ मनमर्जी चल पाना मुश्किल हो जाता है,कभी कभी किसी एक सहभागी द्वारा किया गया क्रियाकलाप भले ही रास आने या अच्छा लगने पर नियम या शर्त का रूप ले लें,पर किसी भी कार्य या खेल या उद्देश्य में सहभागी बनने के लिये उस कार्य या उद्देश्य के सेवा शर्तों के अनुसार सभी सहभागियों को चलना आवश्यक होता है।चाहे सहभागिता मनुष्यो द्वारा निभाई जाये या अन्य जीव जंतुओं द्वारा।आसमान में उड़ते परिंदे,झुंड में विचरण करते जंगली जानवर, कीट पतंगे,बानर,चमगादड़,दीमक,मधुमक्खियाँ ये सभी जीव जंतु या अन्य कोई भी जीव जंतु जो एक निश्चित उद्देश्य या कार्य में परस्पर सहभागी है वहाँ नियम-धियम,सेवा-शर्तों का विशेष स्थान है।सभी सहभागी बंध कर एक निश्चित रूप रेखा में ही कार्य करते हैं।
              गाँवों में लगभग सभी त्योहार या कोई भी कार्यक्रम धूम धाम से मिलजुल कर मनाया जाता है।ऐसे सभी पर्वों में समस्त ग्रामवासियों की सहभागिता को सहज ही देख सकते है।सभी लोग पूर्णतः समर्पित होकर ऐसे पर्वों में सम्मिलित होते है,जिससे सबको आनंद की प्राप्ति होती है।कोई भी त्यौहार कई चरणों में या कई प्रकार के नियमों के साथ संचालित होता है,जिसे एक अकेला कुछ नही कर सकता,ऐसे में गाँव के सभी लोग अपनी अपनी दक्षता अनुसार संचालित होने वाली गतिविधियों में अपनी सहभागिता देकर कार्यक्रम या किसी भी पर्व को धूम धाम से मनाते है।सबका सहयोग और सहभागिता ही किसी भी कार्यक्रमों या पर्वों की सफलता का कारण होता है।
             कृषि कार्यों में भी सहभागिता को देखा जा सकता है।एक किसान अकेला पैदावार नही उपजा सकता,उनको कृषि कार्य में उनके परिवार वालो या मजदूरो या गाँव वालों की सहभागिता की जरूरत पड़ती है।
जुताई,बोवाई,निंदाई,लुवाई,मिंसाई से लेकर मंडी-बाजार तक उपज को पहुँचाने में घर वालों की समर्पित सहभागिता और अन्य व्यक्तियों या श्रम शक्तियों का सहयोग आवश्यक होता है।किसान अपने कार्यों को सम्पादित करने के बाद अन्य किसानों के कार्यो का भी सहभागी होते है।एक दूसरे का कार्य मिलजुल कर आपसी सहयोग और सद्भावना से पूर्ण करते है।खेतों में आने वाली आफतो  से भी सभी किसान फसलों की सुरक्षा में सहभागी होकर कार्य करते है।किसानों की इसी तरह की सद्भावना,सहयोग और सहभागिता ही रंग लाती है,जिससे फसलों के पैदावार में इजाफा होता है।आजकल देखा जा रहा है,की कई लोग अपने आपको बेरोजगार कहकर खुद को और सरकार को कोसते है,उनको भी चाहिए कि इस कृषि रूपी महायज्ञ में सहभागी बनकर अपने मेहनत और ज्ञान की आहुति दें।जिससे कृषि भूमि भारत का परचम सर्वत्र सर्वदा लहराते रहे।
             एक अकेला शैल्य चिकित्सक चाहे कितना भी अपने काम पर दक्ष क्यो न हो,उनको उनकी ऑपरेशन दल में अन्य लोगो की सहभागिता की आवश्यकता होती ही है।तभी एक ऑपरेशन सफल होता है।इस तरह के कुछ विशेष कार्यों में सहभागिता आवश्यक होते है।इसी प्रकार लड़ाकू दल में प्रत्येक सैनिक की सहभागिता,किसी भी युद्ध को जीतने के लिये अति आवश्यक है।सच कहें तो"समर्पित सहभागिता सफलता की श्रेष्ठम सीढ़ी हैं।"
            मनुष्य अनेकों जीव जंतुओं के सुख सुख में भी सहभागी बन सकता है।और कई लोग बनते भी है।ब्रम्हांड में सभी जीवों का बराबर हक है,उनकी संरक्षण बहुत जरूरी है,आज कुछ जीव प्रतिकूल वातावरण के चलते विलुप्त हो रहे है ,तो कुछ लालची  मनुष्यों द्वारा खत्म कर दिया जा रहा है।ऐसे में मनुष्यों को ही आगे आना चाहिए,और समाज या सरकार द्वारा चलाये जा रहे ऐसे नेक कार्य में बढ़ चढ़ का भाग लेना चाहिये।जीवों के संरक्षण,संवर्धन और विकास में अपनी सहभागिता निभानी चाहिये।ताकि पारिस्थितिक सन्तुलन बने रहे।
              आज कई तरह की कुरीतियाँ समाज में व्याप्त है,जिसके उन्मूलन हेतू सरकार प्रयासरत है,इसमें भी सबको अपनी सहभागिता प्रदर्शित करनी चाहिए।क्योंकि हमारी समाजिक बुराइयों से लड़ने के लिये हमे ही आगे आना पड़ेगा।इसके लिए सबकी सहभागिता नितांत आवश्यक है।जिस तरह हम समाज के अच्छे कार्यों में  बढ़चढ का अपनी सहभागिता देते है,उसी तरह कुछ बुराइयां आज भी यथावत है,उसके उन्मूलन हेतु भी हमे अपनी सहभागिता निभानी चाहिये।हर नेक कार्यो में सभी मानवों का बराबर सहयोग जरूरी है,तभी समाज,राज्य,और देश का नाम रोशन होगा।
            प्रकृति द्वारा प्रदत्त निशुल्क उपहार जल,थल और वायु आज मनुष्यो के कारनामो का भेंट चढ़ गया है।प्रकृति का मोहक रूप प्रदूषित हो चुका है।जंगल कट रहे है,वायु में जहरीली गैस विसर्जित हो रही है,नदियो,तलाबों का पानी जहर बन गया है।शुद्ध पानी,शुद्ध हवा,चिलचिलाती धूप में छाँव खोजने पर भी मिलना मुश्किल हो गया है।धरा पानी की आस में पाताल तक खुद चुका है।कई तरह की विपदा अकाल,बाढ़, भूकम्प बढ़ रही है।आज मनुष्य खुद को बनाने के लिए प्रकृति का बिगाड़ कर रहा है।पर्यावरण संरक्षण के लिए भी हम सबकी  सहभागिता आज की आवश्यकता है।पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्य करने की जिम्मेदारी कुछ लोगो की नही,अपितु प्रत्येक मानव की है।सबको बढ़चढ़ का पेड़ लगाना चाहिये।जल,थल,वायु के संरक्षण हेतु सदैव तत्पर होकर हम सबको अपनी जिम्मेदारी मान कर इसके संरक्षण में सहभागिता निभानी चाहिये।हमारी सहभागिता की दायरा जितनी बढ़ेगी उतनी ही सुख शांति में वृद्धि होगी।पर ध्यान रहे हमारी सहभागिता सकारात्मक कार्यों के साथ हो।
                कोई भी व्यक्ति या कोई भी जीव जिस कार्य या जिस किसी भी व्यक्ति या जीव के कार्य में सहभागी होते है,वे सब उस कार्य,लक्ष्य या उस व्यक्ति के कार्य या उद्देश्य को अपना स्वयं का कार्य या उद्देश्य मानकर कार्य करता है।तभी वह जीव या व्यक्ति किसी उद्देश्य या किसी कार्य में सहभागी कहलाता है।घर से निकलकर व्यक्ति अपने गाँव,समाज,राष्ट्र,जल,जमीन,
जंगल आदि आदि  में भी अपनी सहभागिता प्रदर्शित करता है।किसी भी कार्य मे सहभागी होना व्यक्ति की मनःस्थिति और उसकी समर्पण को बताता है।सहभागिता थोपी नही जा सकती।"व्यक्ति सहयोग के लिये बाध्य हो सकता है मगर सहभागिता के लिए नही।"पर यह भी जरूरी है कि वह घर,परिवार के साथ साथ समाज,देश आदि के कार्य में भी सहभागी बने।क्योकि जीव जंतु भी अपने अपने कार्यो में अपने सजातियों के साथ मिलकर परस्पर सहभागिता निभाते हुये अपनी जिंदगी व्यतित करते है,तो फिर मनुष्य,मनुष्य के काम में सहभागी न बने तो लज्जापूर्ण बात होगी।सहभागिता ही मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी की श्रेणी में ले जाता हैं,क्योकि मनुष्य अपने गुण ज्ञान के दम पर ,सही गलत को परख कर अच्छे कार्यो में सहभागी बनते है।जो दायित्व या सहभागिता एक व्यक्ति का अपने परिवार के लिये होता है,उतनी ही सहभागिता देश,राज्य,समाज के लिए भी होनी चाहिये,नही तो क्या मनुष्य और क्या जानवर।तो आइये हम सब सभी नेक कार्यों को सम्पादित करने में सहभागी बने।



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# 14
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Date: 2019-11-30
Subject: 

छत्तीसगढ़ी महतारी के अब ,कौन ह नाम जगाही।
हमर छोड़ अउ कोन भला जी,छत्तीगढिया कहाही।

, रोवत हे महतारी।
हाथ जोड़ के करै किलौली,दुख हे अड़बड़ भारी।
दीया बरइय्या लइका हावै,हवै तभो अँधियारी।



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# 13
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Date: 2019-11-28
Subject: 

1

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं।
पीके नरी जुड़ालौ सबझन,सबके मिही निसानी औं।

फुलवा के रस चुँहकत भौरा,मोर संग भिन भिन गाथे।
पँडकी मैना सुवा परेवना,मीठ मीठ गीत सुनाथे।
परसा पीपर नीम नचइया,मैं पुरवइया रानी औं।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं।

मैं गेंड़ी के रुच रुच आवों,सेवा सवनाही गाना।
झांझ मँजीरा मांदर बँसुरी,छेड़े नित मोर तराना।
रास रमारण रामधुनी मैं,मैं अक्ती अगवानी औं।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं।

ताल तलैया के लहरा औं,गंगरेल के दहरा औं।
मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी,ठिहा ठौर के पहरा औं।
दया मया सुख शांति खुसी बर,हरियर धरती धानी औं।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-----।

बनके सुवा ददरिया कर्मा,मांदर के सँग मा नाचौं।
नाचा गम्मत पंथी मा बस,द्वेष दरद दुख ला बॉचौं।
बरा सुहाँरी फरा अँगाकर,बिही कलिंदर चानी औं।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-।

ग्रंथ दान लीला ला पढ़लौ,गोठ सियानी गढ़ धरलौ।
संत गुनी कवि ज्ञानी मनके,अन्तस् मा बैना भरलौ।
मिही अमीर गरीब सबे के,महतारी अभिमानी औं।
मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं--।


              2

दोहा गीत -जीतेंद्र कुमार वर्मा "खैरझिटिया"

दया माया के मोटरा,सबके आघू खोल।
हरे मंदरस मीठ जी,छत्तीसगढ़ी बोल।

खुशबू माटी के घुरे, बसे हवे सबरंग।
तनमन येमा रंग ले,रख ले हरदम संग। 
बाट तराजू हाथ ले,भाँखा ला झन तोल।
दया मया के मोटेरा, सबके आघू खोल।।

बानी घासीदास के,अबड़ हवै जी पोठ ।
रचे इही मा कवि दलित,अपन सियानी गोठ।
नाचा करमा अउ सुवा,देय मया अनमोल।
दया मया के मोटेरा सबके आगे खोल।।

 परेवना पड़की रटे, बोले बछरू गाय।
 गुरतुर भाँखा हा हमर,सबके मन ला भाय।
जंगल झाड़ी डोंगरी,बर गावय जस डोल।
 दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।

                  3

छंद त्रिभंगी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

सबके मन भाये,गजब सुहाये,हमर गोठ छत्तीसगढ़ी।
झन गा दुरिहावव,सब गुण गावव,करौ पोठ छत्तीसगढ़ी।
भर भरके झोली,बाँटव बोली,सबो तीर छत्तीसगढ़ी।
कमती हे का के,देखव खाके,मीठ खीर छत्तीसगढ़ी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 12
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Date: 2019-11-28
Subject: 

दोहा गीत -जीतेंद्र कुमार वर्मा "खैरझिटिया"

दया माया के मोटरा,सबके आघू खोल।
हरे मंदरस मीठ जी,छत्तीसगढ़ी बोल।

खुशबू माटी के घुरे, बसे हवे सबरंग।
तनमन येमा रंग ले,रख ले हरदम संग। 
बाट तराजू हाथ ले,भाँखा ला झन तोल।
दया मया के मोटेरा, सबके आघू खोल।।

बानी घासीदास के,अबड़ हवै जी पोठ ।
रचे इही मा कवि दलित,अपन सियानी गोठ।
नाचा करमा अउ सुवा,देय मया अनमोल।
दया मया के मोटेरा सबके आगे खोल।।

 परेवना पड़की रटे, बोले बछरू गाय।
 गुरतुर भाँखा हा हमर,सबके मन ला भाय।
जंगल झाड़ी डोंगरी,बर गावय जस डोल।
 दया मया के मोटरा, सबके आघू खोल।।

छंद त्रिभंगी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

सबके मन भाये,गजब सुहाये,हमर गोठ छत्तीसगढ़ी।
झन गा दुरिहावव,सब गुण गावव,करौ पोठ छत्तीसगढ़ी।
भर भरके झोली,बाँटव बोली,सबो तीर छत्तीसगढ़ी।
कमती हे का के,देखव खाके,मीठ खीर छत्तीसगढ़ी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 11
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Date: 2019-11-26
Subject: 

भीमराव अंबेडकर,जनक हमर सविधान के।
भारत वासी सब चले,एला ऊँचा मान के।1।।

भारत के सँविधान मा,ऊँच नीच सब एक हे।
तेखर सेती तो हमर, भारत भुइँया नेक हे।2।

जाति धरम ला तोड़ के,इरखा ले मुँह मोड़ के।
करे देश बर सब करम,तोर मोर ला छोड़ के।3

रोना हँसना हे इहाँ,रहना बसना हे इहाँ।
भारत देश महान हे,सबके दसना हे इहाँ।4।

भारत के सँविधान ला,सबे नवावै माथ।


हम सबला अधिकार हे,



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# 10
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Date: 2019-11-22
Subject: 

................ददा.....................

बड़का बर मचान,छोटका बर ढलान कस ददा।
घर  बर  'बर' फेर   बइरी   बर,  बान कस ददा।

भदरी कांड़ मुड़का म,नेवान  कस  ददा।
हाड़ - मांस -गुदा लहू म,परान कस ददा।

पाँख   धरे   बइठे  हे, सबो  घर  भरके,
त सोवत-जागत दिखे,उड़ान कस ददा।

बेटा बहू नाती पंथी ,दाई ददा सब बर,
बइठे हे डेरऊठी म , दान  कस  ददा।

मुहूँ के सुवाद बर,बाकी सब कोई,
त पेट भरे बर हे , धान कस  ददा।

सबो  ल   पुरोथे  ,जांगर  पेर - पेर    के,
सिरागे तभो माड़े रथे,अथान कस ददा।

मरत ले नइ बदले गुँड़ड़ी ल मुड़ी के,
बोहे  हे  घर ल ,सेसनांग  कस  ददा।

कोनो हुदरे-कोचके ,कोनो देवे गारी,
हे कर्मा-ददरिया  के,तान कस ददा।

दिखथे भले उप्पर ले,नरियर कस ठाहिल,
फेर साने म हे, कोंवर  पिसान  कस ददा।

हाँकत हे घर के गाड़ा ल रात दिन,
बांधे पागा मुड़ म,ईमान कस ददा।

घपटे अंधियारी,सिरागे सबके मति,
त बरथे जगमग,गियान  कस  ददा।

घाव  भरे   हे, जिया   म   जंऊहर,
तभो चुपचाप ,सियान  कस  ददा।

तोर चरन पखारे,तोर गुन गाये खैरझिटिया,
तँय  ये   भुंइयां   मा   ,भगवान  कस  ददा।

परम् पूज्य पिताश्री के चरण म बारम्बार नमन

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795



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# 9
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Date: 2019-11-21
Subject: 

ढेर करे झन कर।
बेर करे झन कर।
चेहरा ल शेर करे झन कर।
फेर करे,
अंधेर करे।



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# 8
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Date: 2019-11-20
Subject: 

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

खोट धर झन खोद खाई फोकटे।
कर धरम बर झन लड़ाई फोकटे।1

शांति के संदेश देवै सब धरम।
कर न दूसर के बुराई फोकटे।2।

चक्ख ले नमकीन खारो अउ करू।
रोज के मेवा मिठाई फोकटे।3।।।।

बैर इरखा हे जिया मा तोर ता।
भाई भाई के रटाई फोकटे।4।

सत सुमत धरके सदा सत काम कर।
तोर ठग जग के कमाई फोकटे।5।

जीव शिव सबके हे दुर्लभ जिंदगी।
काट झन बनके कसाई फोकटे।6

खैरझिटिया नाप ले गुण ज्ञान ला
खेत घर मन्दिर नपाई फोकटे।7।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 7
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Date: 2019-11-18
Subject: 

..........नोट के माया.............
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पहिली चक्की-चक्की गुड़ राहय,
बोरी-बोरी सक्कर।
टीपा-टीपा तेल रखे,
कोन लगाय रासन बर चक्कर।

काठा-काठा नून राहय,
बोरा-बोरा आलू,पियाज।
आनी-बानी  के खोइला राहय,
मजा म बीते काली आज।

रंग-रंग के साग,निकले कोलाबारी म।
कभू कुछु कमी नइ होय,घर के हांड़ी म।
भराय राहय पठंऊवा म,
लकड़ी,छेना,पेरा-भूंसा।
गंहु -चना , खरी- बरी,
पुरे सालभर कांदा-कुसा।

खई-खजानी रोटी - पीठा,
रंग-रंग के रोज चूरे।
धनिया,मेथी,मिरचा,मसाला,
बनेच दिन ले पूरे।

बिन चिंता फिकर के गुजारा होय।
खाय कमाय अउ घर बन ल सिधोय।
फेर अब तो ले ले के खवई चलत हे।
चांउर-दार,तेल-नून ल,सकलई खलत हे।

धान,गंहु,चना,सरसो,
कोठी म अब कहाँ धरात हे?
पइसा के चक्कर म,
कोठारे ले बेंचात हे।

कोठी,पठंउवा,मइरका के जघा,
घर-घर तिजोरी बनगे हे।
चांउर,दार,तेल,नून नही,
रुपिया-पइसा मनखे के जोड़ी बनगे हे।

मनखे धरेल धरिस धन,
बढ़ेल लगिस मंहगई।
फेर आज बड़े नोट बेन होगे,
कतको के होगे कल्लई।

खाये के चीज हरे,
त खा अब।
पइसा म दार-चांउर,
बना अब।

जेन मनखे रिहिस पोठ।
जोड़े रिहिस गजब नोट।
तेला आज लगगे,
भारी भरकम चोट।

सिरतोन म छलथे माया।
छोड़े म बड़ रोथे काया।
नोट घलो मोह माया ए,
आज छोड़ दिस देख।
जोड़ना हे त मया जोड़,
कतको ल बोर दिस देख।

नोट बर बेंक हे,
उंहचे धर।
फेर पहिली कस,
मइरका,कोठी ल भर।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795



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# 6
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Date: 2019-11-18
Subject: 

मोटर गाड़ी (सार छंद)

हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।
देखावा अउ जल्दी बाजी,फोड़त हावय माड़ी।

जाने जम्मो झन जोखिम हे,तभो करे अनदेखा।
अपने हाथ बिगाड़त फिरथे,अपन भाग के लेखा।
उहू आदमी लउहा लेवय,जे टारे नइ काड़ी-।
हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।

मनखे तनखे मोटर गाड़ी,दिनदिन भारी बाढ़े।
साव चेत हो चलना पड़ही,रथे गाय गरु ठाढ़े।
हाल दिखे बेहाल सड़क के,का जंगल अउ झाड़ी।
हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।

खुदे झपाये अउ दूसर के,हाड़ा गोड़ा टोड़े।
बात बरजना घलो न माने,नशापान नइ छोड़े।
उहू कुदावै मोटर गाड़ी,जउने हवै अनाड़ी--।
हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।

नवा नवा गाड़ी आगे हे,आगे नवा चलैया।
यमराजा लेआघू निकले,देख सड़क हा भैया।
दुर्घटना ला देख जुड़ाथे,हाथ पाँव अउ नाड़ी।
हवा संग मा बात करत हे,देखव मोटर गाड़ी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 5
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Date: 2019-11-17
Subject: 

........अरझगे बेर बर म
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अगोरत हे बबा,
बड़ बेर ले बेर ल।
घाम उतरही कहिके,
देखत हे बर पेड़ ल।

हंरियर-हंरियर पाना म,
अरझगे सोनहा घाम।
बिन सेंके तन ल,
नइ भाय बुता काम।

कथरी,कमरा म,
जाड़ जात  नइहे।
अंगरा,अंगेठा,भुर्री,
भात नइहे।

घाम के अगोरा म।
बबा बइठे बोरा म।
खेलाय नान्हे नाती ल,
बईठार के कोरा म।।

लमाय डारा-खांधा,
अउ घम-घम ले बांधे पाना।
बर पेड़ घेरी बेरी ,
बबा ल मारे ताना।

एककन दिखके,लुका जात हे।
घाम बर बबा,भूखा जात हे।
करिया कंउवा काँव-काँव कहिके,
बिजरात हे बबा ल।
बिहनिया ले बिकट जाड़,
जनात हे बबा ल।

पंडकी,सल्हई,गोड़ेला,पुचपुची,
ए डारा ले वो डारा उड़ाय।
रिस म बबा बर पेड़ ल,
कोकवानी लऊठी देखाय।

थोरिक बेरा म,
भुंईयॉ म घाम बगरगे।
बबा केहे लऊठी देख,
बर पेड़ ह डरगे।

पाके घाम बबा हांसत हे।
थपड़ी पिटपिट नाती नाचत हे।
बइठे-बइठे मुहांटी म,
बबा घाम तापत हे।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795



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# 4
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Date: 2019-11-12
Subject: 

महँगा होगे गन्ना(कुकुभ छंद)

हाट बजार तिहार बार मा

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।
तभो किसनहा पातर सीतर,साँगर मोंगर हे धन्ना।

भाव किसनहा मन का जाने,सब बेंचे औने पौने।
पोठ दाम ला पावय भैया,खेती नइ जानै तौने।
बिचौलिया बन बिजरावत हे,सेठ मवाड़ी अउ अन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना----।

पारस कस हे उँखर हाथ हा,लोहा हर होवै सोना।
ऊँखर तिजोरी भरे लबालब,उना किसनहा के दोना।
होरी डोरी धरके घूमय,सज धज के पन्ना खन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।

हे हजार कुशियार खेत मा,तभो हाथ हावै रीता।
करम ठठावै करम करैया,होवै जग हँसी फभीता।
दुख के घन हा घन कस बरसे,तनमन हा जाथे झन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।

कमा घलो नइ पाय किसनहा,खातू माटी के पूर्ती।
सपना ला दफनावत दिखथे,सँउहत महिनत के मूर्ती।
देखव जिनगी के किताब ले,फटगे सब सुख के पन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको कोरबा



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# 3
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Date: 2019-11-06
Subject: 

प्रदूषण पराली बगरात हवै।
प्रदूषण दिवाली बगरात हवै। 
सब कोती छाये कारखाना ,
रहिरहि हरियाली बगरात हवै।



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# 2
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Date: 2019-10-31
Subject: 

करजा छूट देहूँ लाला(गीत)

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
तँय संसो झन कर,मोर मन नइहे काला।

मोर थेभा मोर बेटा,बेटी अउ सुवारी।
मोरेच जतने खेत खार,घर बन बारी।
येला छोड़ नइ पीयँव,कभू मैंहा हाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

तैंहा सोचत रहिथस,बिगाड़ होतिस मोरे।
घर बन खेत खार सब,नाँव होतिस तोरे।
नइ मानों मैहा हार,लोर उबके चाहे छाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

 जब जब दुकाल पड़थे,तब तोर नजर गड़थे।
मोर ठिहा ठउर खेत ल,हड़पे के मन करथे।
नइ आँव तोर बुध म,झन बुन मेकरा जाला।
धान ल लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

भूला जा वो दिन ला,जब तोर रहय जलवा।
अब जाँगर नाँगर हे नइ चाँटन तोर तलवा।
असल खरतरिहा ले,अब पड़े हे पाला।
धान ल लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)



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# 1
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Date: 2019-10-28
Subject: 

झिल्ली ला चगलत हवै,खिचड़ी कोन खवाय।
भरे दिवाली मा घलो,लक्ष्मी भटका खाय।१।।
खैरझिटिया