Friday 1 December 2017

क्रोध मा मॉं काली(कुण्डलियाँ छंद)

जस गीत(कुंडलिया छंद)

काली गरजे काल कस,आँखी हावय लाल।
खाड़ा  खप्पर  हाथ हे,बने असुर  के काल।
बने  असुर के  काल,गजब  ढाये रन भीतर।
मार काट कर जाय,मरय दानव जस तीतर।
गरजे बड़ चिचियाय,धरे हाथे मा थाली।
होवय  हाँहाकार,खून  पीये बड़ काली।

सूरज ले बड़ ताप मा,टिकली चमके माथ।
गल मा माला  मूंड के,बाँधे  कनिहा  हाथ।
बाँधे  कनिहा  हाथ,देंह  हे  कारी कारी।
चुंदी हे छरियाय,दाँत हावय जस आरी।
बहे  लहू  के  धार,लाल  होगे बड़ भूरज।
नाचत हे बिकराल,डरय चंदा अउ सूरज।

घबराये तीनो तिलिक,काली ला अस देख।
सबके बनगे  काल वो,बिगड़े   ब्रम्हा लेख।
बिगड़े  ब्रम्हा  लेख, देख  रोवय  सुर दानँव।
काली बड़ बगियाय,कहे कखरो नइ मानँव।
भोला सुनय गोहार,तीर काली के आये।
पाँव तरी गिर  जाय,देख काली घबराये।

काली देखय पाँव मा,भोला हवय खुँदाय।
जिभिया भारी लामगे,आँखी आँसू आय।
आँखी आँसू आय,शांत  काली  हो जाये।
होवय जय जयकार,फूल  देवन बरसाये।
बंदव   माता  पाँव,बजाके    घंटा  ताली।
जय हो देबी तोर,काल कस माता काली।

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Monday 27 November 2017

महतारी भाँखा

महतारी भाँखा(गीत)

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,
बिसरात  हे भाँखा बोली......।
बड़ई नइ करे अपन भाँखा के,
करथे जी ठिठोली..............।

गिल्ली भँवरा बाँटी भुलाके,
खेले       क्रिकेट     हाँकी।
माटी   ले   दुरिहाके   संगी,
मारत       हावय    फाँकी।
चिरई पिला चींव चींव कइथे,
कँउवा   के     काँव    काँव।
गइया के बछरू हम्मा कइथे,
हुँड़ड़ा    के    हाँव      हाँव।
फेर मंदरस गुरतुर बोली मा,
मिंझरत हावय अब गोली..।

हटर हटर जिनगी भर करे।
छोड़े मीत मितानी।
देखावा  हा   आगी  लगे हे,
मारे  बड़   फुटानी।
पाके माया गरब करत हे,
बरोवत  हवे  पिरीत ला।
नइ  जाने  दया मया ला,
तोड़त  हावय  रीत  ला।
होटल ढाबा लॉज  भाये,
नइ भाये रँधनी खोली..।

सनहन पेज महिरी बासी,
अउ अँगाकर  नइ  खाये।
अपन मुख ले अपन भाँखा के,
गुण   कभू      नइ         गाये।
छत्तीसगढ़ महतारी के गा,
कोन    ह   नांव   जगाही।
हमर छोड़ अउ कोन भला,
छत्तीस गढ़िया    कहाही।
तीजा पोरा ल का जानही,
नइ जाने देवारी होली....।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Wednesday 15 November 2017

खुमरी(सरसी छंद)

बबा  बनाये  खुमरी  घर  मा,काट काट के बाँस।
झिमिर झिमिर जब बरसे पानी,मूड़ मड़ाये हाँस।

ओढ़े खुमरी करे बिसासी,नाँगर बइला फाँद।
खेत  खार ला  घूमे  मन भर,हेरे  दूबी  काँद।

खुमरी ओढ़े चरवाहा हा, बँसुरी गजब बजाय।
बरदी के सब गाय गरू ला,लानय खार चराय।

छोट मँझोलन बड़का खुमरी,कई किसम के होय।
पानी   बादर  के दिन मा सब,ओढ़े काम सिधोय।

धीरे धीरे कम होवत हे,खुमरी के अब माँग।
रेनकोट  सब  पहिरे घूमे, कोनो  छत्ता टाँग।

खुमरी मोरा के दिन गय अब,होवत हे बस बात।
खुमरी  मोरा  मा  असाड़ के,कटे नहीं दिन रात।

लइका कहाँ अभी के जाने,खुमरी कइसन आय।
दिखे  नहीं अब कोनो मनखे,खुमरी  मूड़ चढ़ाय।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Tuesday 19 September 2017

पीतर

पीतर(किरीट सवैया)

काखर पेट भरे नइ जानँव पीतर भात बने घर हावय।
पास परोस सगा अउ सोदर ऊसर पूसर के बड़ खावय।
खूब बने ग बरा भजिया सँग खीर पुड़ी बड़ गा मन भावय।
खेवन खेवन जेवन झेलय लोग सबे झन आवय जावय।

आय हवे घर मा पुरखा मन आदर खूब ग होवन लागय।
भूत घलो पुरखा मनखे बड़ आदर देख ग रोवन लागय।
जीयत जीत सके नइ गा मन झूठ मया बस बोवन लागय।
पाप करे तड़फाय सियान ल देख उही ल ग धोवन लागय।

पीतर भोग ल तोर लिही जब हाँसत जावय वो परलोक म।
आँगन मा कइसे अउ आवय जेन जिये बस रोक ग टोक म।
पालिस पोंसिस बाप ह दाइ ह राखिस हे नव माह ग कोख म।
हाँसय गावय दाइ ददा नित राहय ओमन हा झन शोक म।

जीयत मा करले तँय आदर पीतर हा भटका नइ खावय।
छीच न फोकट दार बरा बनके कँउवा पुरखा नइ आवय।
दाइ ददा सँग मा रहिके करथे सतकार उही पद पावय।
वेद पुराण घलो मिलके बढ़िया सुत के बड़ जी गुण गावय।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Monday 18 September 2017

खैरझिटिया के दोहे

श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के दोहे


श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के दोहे

मोर परिचय

नाँदगाँव के तीर मा,खैरझिटी  हे गाँव।
नाँव मोर जीतेंद्र हे,लोधी लइका आँव।

अगम बहल दाई ददा,बंदौं निसदिन पाँव।
भाई  हेबे  चार झन, बड़का  मैंहर  आँव।

मोर संगिनी वंदना,भरे भरे हे कक्ष।
पुष्पित  बेटा हे बड़े,छोटे  हेबे दक्ष।

मोरो घर परिवार  के,हरे किसानी नेंव।
बुता करे बर कोरबा,आके मैं बस गेंव।

नान्हे  कद के आदमी,  हवे   रंग   हा   गौर।
लिखथौं मनके बात ला,माथ नहीं कुछु मौर।

छा नइ जानौं छंद के,सीखे  के  हे  आस।
निगम सरन आये हवौं,बइठे हौं बन दास।

                जिनगी

होके   मनखे   जात   तैं,जिनगी  दिये उझार।
फोकट के अँटियात हस,धरम करम ला बार।

जिनगी  जेखर  देन ए,उही  जही जी लेज।
दूसर बर काँटा बिछा,अपन बना झन सेज।

मानवता  के  रंग  ला,झन  देबे  धोवान।
जिनगी हरे तिहार जी,मया रंग मा सान।

जिनगी अपन सँवार ले,करले बढ़िया काम।
कारज  बिन  काखर बता,बगरे हावय नाम।

संगत  गाँजा  मंद के,जिनगी दीही बोर।
संगत संत समाज के,भाग जगाही तोर।

बोली  हा  बाँटत  हवे, एला ओला घाव।
जिनगी पानी फोटका,तभो बढ़े हे भाव।

           मनखे

काया  माया  मा फँसे, हाँस  हाँस इतराय।
लउठी थेभा जब बने,मनखे तब पछताय।

मनखे बिसरागेस तैं,अपन चाल अउ ढाल।
आज लगत हे बड़ बने,काली बनही काल।

बनके मनखे टेटका,बदलत रहिथे रंग।
दया  मया  ला  छोड़ के,रेंगे माया संग।

मनखे माया जोड़ के,अब्बड़ करे गुमान।
चाल ढाल ला देख के,पछताये भगवान।

रुपिया खातिर रूप ला,बदले मनखे रोज।
कौड़ी कौड़ी जोड़ के,खुश हे माया खोज।

भीतर मइल भराय हे,बाहिर छीचे इत्र।
देखावा  के  रंग  मा,मनखे रँगे विचित्र।

कोन  रंग मनखे धरे,रोजे वो अँटियाय।
दया  मया के रंग मा,कभू रंग नइ पाय।

रंगबाज  मनखे  मिले, मिलथे  ढोंगी  चोर।
बढ़िया मनखे हे कहाँ,खोजय मन हा मोर।

मनखे माया मा मरे,स्वारथ मा चपकाय।
पापी के संगत करे,बिरथा जनम गँवाय।

तोरे  खोदे  खोंचका,जाबे  तिहीं झपाय।
सबला मयारु मान ले,बैरी कोन ह आय।

मनखे देखव नाम बर,पर के खींचे पाँव।
गिनहा रद्दा  मा भला,कइसे  होही नाँव।

जिनगी भर सिर लाद के,लोभ मोह ला ढोय।
माया छिन भर के मजा,मनखे  रहि रहि रोय।

हालत  देख  समाज  के,तोर  मोर हे छाय।
मनखे एक समाज ए,कोन भला समझाय।

         गौरैय्या

चींव चींव कहि गात हे,गौरैय्या हा गीत।
दल  के  दल  आये हवे, दाना देबे छीत।

कनकी  चाँउर खात हे,गौरैय्या  धर  चोंच।
अपन पेट ला खुद भरे, मानुस तैंहर सोंच।

परवा  मा  झाला  रहे,कूद  कूद बड़ गाय।
बनगे छत के अब ठियाँ,गौरैय्या नइ आय।

गौरैय्या  फुदकत रहे,गाँव गली अउ खोर।
फेर आज रहिथे कहाँ,खोजत हे मन मोर।

मनखे देख उड़ात हे,छानी मा चढ़ जाय।
चींव चींव चहकत हवे,गौरैय्या मन भाय।

बइठे  बइठे   पेड़   मा ,गौरैय्या    हा   रोय।
गरमी जाड़ असाड़ मा,दुख अब्बड़ हे होय।

हरँव  चिरँइयाँ   नानकुन , गौरैय्या।   हे   नाँव।
फुदकत चहकत खोजथौं,महूँ अपन बर छाँव।

झाला  कहाँ बनाँव मैं,परवा हे ना पेड़।
चारो मूड़ा छत सजे,देखँव आँखी तेंड़।

बिता बिता बर देख ले,माते हे बड़ लूट।
जघा मोर बर नइ दिखे,रोवँव मैंहा फूट।

गिरे  मूसला  धार  जल, मोर  पिटाई  होय।
कभू सुखावँव घाम मा,पानी बिन मन रोय।

गरमी घाम असाड़ मा,दाँव लगे हे साख।
संख्या हमर सिरात हे,टूटत हावय पाँख।

बइठे  रहिथों  जाड़ मा,ओढ़े  कोनो पात।
भारी दुख ला झेलथों,मैंहा दिन अउ रात।

कोन डारही चोंच मा , दाना  पानी  लान।
साँस चलत ले घूमथों,नइ हे मीत मितान।

पाबे  मरे  कछार  मा,मरे  मिलौं  मैं मेड़।
मर मरके मैं हौं जियत,कटके भारी पेड़।

आँधी अंधड़ आय जब,हले पेड़ के डाल।
टूटे  डारा  पान बड़, होवय   बारा   हाल।

गिरे  परे   हे  अधमरा,लेवत हे बस साँस।
गौरैय्या खग जाति के,होवत हावय नास।

चिरई  चोंच  उलाय हे, दाना  देबे   डार।
माटी मा हे बिस मिले,खाही काला यार।

माटी  मा  छीचत हवे,रंग रंग के खाद।
जिनगी चिरई जात के,होवत हे बर्बाद।

चिरई  अँगना  आय  हे,दाना  देबे  छीत।
पानी रखबे घाम मा,जिनगी जाही जीत।

गौरैय्या चिरई हरौं,फुदकत रहिहौं खोर।
चींव चींव  चहकत रहूँ,नाँव लेत मैं तोर।

                   मँय

पड़के मँय के फेर मा,मँय का कर डारेंव।
नइ तो होइस जीत गा,उल्टा  सब  हारेंव।

कतको झन ला चाब दिस,मँय नाम के साँप।
तोर  मोर  कहिके   लड़े, इंच  इंच  ला  नाप।

मँय  मनखे  बर मोह ए,बदले नीयत ढंग।
चक्कर मा मँय मोर के,होथे अब्बड़ जंग।

सेवा  खातिर  मँय  नहीं,ना  दुखिया  के  तीर।
मँय कहिके तैं जा निकल,गढ़ सबके तकदीर।

करबे   बूता   तैं   बने, होही   तोरो    नाम।
काबर तैंहा नइ कहस,मँय करहूँ सत काम।

मँय मँय कहिके तैं  लड़े, का  लेबे  धन जोड़।
बढ़ आघू उपकार कर,स्वारथ अउ मँय छोड़।

चिथही चोला ला गजब,मँय नाम के चील।
अपन समझ झन पाल तैं,आजे देगा ढील।

वो मूरख  मनखे हरे,रहिथे मँय के साथ।
मँय के माया देख ले,स्वारथ उपजे माथ।

मँय मा नइ तो कुछु मिले,सबके धरले हाथ।
मनखे  बनके तैं रहा,मिलके चल सब साथ।


      जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया

@@@@@@करम@@@@@@@

करम  सार  हावय इँहा,जेखर  हे  दू  भेद।
बने  करम ला राख लौ,गिनहा ला दे खेद।

बिना करम के फल कहाँ,मिलथे मानुष सोच।
बने   करम   करते   रहा,बिना  करे   संकोच।

करे  करम  हरदम  बने,जाने  जेहर  मोल।
जिनगी ला सार्थक करे,बोले बढ़िया बोल।

करम  करे  जेहर   बने,ओखर  बगरे नाम।
करम बनावय भाग ला,करम करे बदनाम।

करम  मान नाँगर जुड़ा,सत  के  बइला फाँद।
छीच मया ला खेत भर,खन इरसा कस काँद।

काया बर करले करम,करम हवे जग सार।
जीत करम ले हे मिले, मिले  करम ले हार।

करम सरग के फइरका,करम नरक के द्वार।
करम गढ़े जी  भाग ला,देवय  करम  उजार।  

बने करम कर देख ले,अड़बड़ मिलथे मान।
हिरदे  घलो हिताय बड़,बाढ़े अड़बड़ शान।

मिल जाये जब गुरु बने,वो सत करम पढ़ाय।
जिनगी  बने  सँवार   के,बॉट  सोझ  देखाय।

हाथ   धरे  गुरुदेव  के,जावव जिनगी जीत।
धरम करम कर ले बने,बाँट मया अउ मीत।

करम जगावय भाग ला,लेगय गुरु भवपार।
बने  करम बिन जिन्दगी,सोज्झे  हे  बेकार।

##############ज्ञान#############

ज्ञान रहे ले साथ मा ,बाढ़य जग मा शान।
माथ  ऊँचा  हरदम रहे,मिले  बने सम्मान।

बोह भले सिर ज्ञान ला,माया मोह उतार।
आघू मा जी ज्ञान के,धन बल जाथे हार।

लोभ मोह बर फोकटे,झन कर जादा हाय।
बड़े बड़े धनवान मन ,खोजत  फिरथे राय।

ज्ञान मिले सत के बने,जिनगी तब मुस्काय।
आफत  बेरा  मा  सबे,ज्ञान काम बड़ आय।

विनय मिले बड़ ज्ञान ले ,मोह ले अहंकार।
ज्ञान  जीत  के  मंत्र  ए, मोह हरे खुद हार।

गुरुपद पारस  ताय जी,लोहा होवय सोन।
जावय नइ नजदीक जे,मूरख ए सिरतोन।

बाँट  बाँट  के  ज्ञान  ला,करे जेन निरमान।
वो पद देख पखार ले,गुरुपद पंकज जान।

अइसन  गुरुवर  के  चरण,बंदौं बारम्बार।
जेन ज्ञान के जोत ले,मेटय सब अँधियार।

&&&&&&&&नसा&&&&&&&&&

दूध  पियइया  बेटवा ,ढोंके  आज  शराब।
बोरे तनमन ला अपन,सब बर बने खराब।

सुनता बाँट तिहार मा,झन पी गाँजा मंद।
जादा लाहो लेव झन,जिनगी हावय चंद।

नसा करइया हे अबड़,बढ़  गेहे  अपराध।
छोड़व मउहा मंद ला,झनकर एखर साध।

दरुहा गँजहा मंदहा,का का नइ कहिलाय।
पी  खाके  उंडे   परे, कोनो हा  नइ  भाय।

गाँजा चरस अफीम मा,काबर गय तैं डूब।
जिनगी  हो  जाही  नरक,रोबे  बाबू  खूब।

फइसन कह सिगरेट ला,पीयत आय न लाज।
खेस खेस बड़ खाँसबे,बिगड़ जही सब काज।

गुटका  हवस दबाय तैं,बने  हवस  जी  मूक।
गली खोर मइला करे,पिचिर पिचिर गा थूक।

काया  ला   कठवा  करे,अउ  पाले  तैं   घून।
खोधर खोधर के खा दिही,हाड़ा रही न खून।

नसा नास कर देत हे, राजा हो या रंक।
नसा देख  फैलात हे,सबो खूंट आतंक।

टूटे  घर   परिवार    हा, टूटे  सगा   समाज।
चीथ चीथ के खा दिही,नसा हरे गया बाज।

घर  दुवार  बेंचाय के,नौबत  हावय आय।
मूरख माने नइ तभो,कोन भला समझाय।

नसा करइया चेत जा,आजे  दे  गा छोड़।
हड़हा होय शरीर हा,खपे हाथ अउ गोड़।

एती ओती  देख ले,नसा  बंद  के जोर।
बिहना करे विरोध जे,संझा बनगे चोर।

कइसे छुटही मंद हा,अबड़ बोलथस बोल।
काबर पीये  के  समय,नीयत  जाथे  डोल।

संगत  कर  गुरुदेव  के,छोड़व  मदिरा मास।
जिनगी ला तैं हाथ मा,कार करत हस नास।

नसा  करे ले रोज के,बिगड़े तन के तंत्र।
जाके गुरुवर पाँव मा,ले जिनगी के मंत्र।

रचनाकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)

मत्तग्यंद सवैया

मत्तगयंद सवैया - श्री जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया

मत्तगयंद सवैया - श्री जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया

(1)
तोर  सहीं  नइहे  सँग  मा  मन तैंहर रे हितवा सँगवारी।
तोर  हँसे  हँसथौं बड़ मैहर रोथस आँख झरे तब भारी।
देखँव  रे  सपना पँढ़री पँढ़री पड़ पाय कभू झन कारी।
मोर  बने  सबके  सबके  सँग दूसर के झन तैं कर चारी।
(2)
हाँसत  हाँसत  हेर  सबे,मन  तोर  जतेक विकार भराये।
जे दिन ले रहिथे मन मा बड़ वो दिन ले रहिके तड़फाये।
के दिन बोह धरे रहिबे कब बोर दिही तन कोन बचाये।
बाँट मया सबके सबला मन मंदिर मा मत मोह समाये।
(3)
कोन  जनी कइसे चलही बरसे बिन बादर के जिनगानी।
खेत दिखे परिया परिया तरिया म घलो नइ हावय पानी।
लाँघन भूखन फेर रबों सुनही अब मोर ग कोन ह बानी।
थोरिक  हे सपना मन मा झन चान ग बादर तैहर चानी।
(4)
आदत  ले पहिचान बने अउ  आदत ले परखे नर नारी।
फोकट हे धन दौलत तोर ग फोकट हे घर खोर अटारी।
मीत  रहे  सबके  सबके सँग  बाँट मया भर तैंहर थारी।
तोर रहे  सब डाहर नाँव कभू झन होवय  आदत कारी।
(5)
लाल दिखे फल हा पकथे जब माँ अँजनी कहिके बतलाये।
बेर  उगे तब लाल दिखे फल जान लला खुस हो बड़ जाये।
भूख  मरे  हनुमान  लला तब सूरज देव ल गाल दबाये।
छोड़व छोड़व हे ललना कहिके सब देवन हाथ लमाये।
(6)
हे दिन रात ह एक बरोबर छाय घरोघर मा अँधियारी।
खेवन खेवन देवन के अरजी सुन मान गये बल धारी।
हेरय सूरज ला मुँह ले सब डाहर  होवय गा उजियारी।
हे भगवान लला अँजनी सब संकट देवव मोर ग टारी।
(7)
बाँटय जेन गियान सबो ल उही सिरतोन कहाय गियानी।
पालय पोंसय जेन बने बढ़िया करथे ग उही ह सियानी।
भूख मरे  घर बाहिर जेखर वो मनखे ह कहाय न दानी।
वो मनखे ल ग कोन बने कहि बोलय जेन सदा करु बानी।
(8)
मूरख ला  कतको समझावव बात  कहाँ सुनथे अभिमानी।
आवय आँच तभो धर झूठ ल फोकट के चढ़ नाचय छानी।
स्वारथ खातिर वोहर दूसर ला धर पेरत  हावय  घानी।
देखमरी म करे सब काम ल घोरय माहुर पीयय पानी।
(9)
चोर सही झन आय करौ,झन खाय करौ मिसरी बरपेली।
तोर  हरे  सब  दूध  दही  अउ  तोर हरे सब माखन ढेली।
आ ललना बइठार खवावहुँ गोद म मोर मया बड़ मेली।
नाचत  तैं रह नैन मँझोत म जा झन बाहिर तैंहर खेली।
(10)
भारत के सब लाल जिंहा रहिथे बनके बड़ जब्बर चंगा।
देख बरे बिजुरी कस नैन ह कोन भला कर पाय ग दंगा।
मारत हे लहरा नँदिया खुस हो  यमुना सिंधु सोंढुर गंगा।
ऊँच  अगास  म हे लहरावत भारत देश म आज तिरंगा।
(11)
गोप गुवालिन के सँग गोंविद रास मधूबन मा ग रचाये।
कंगन देख बजे बड़ हाथ म पैजन हा पग गीत सुनाये।
मोहन के बँसुरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके के मन भाये।
एक  घड़ी  म  रहे  सबके सँग एक घड़ी सब ले दुरिहाये।
(12)
देख  रखे  हँव  माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।
रोवत   हावय   गाय  गरू  मन  लेग  मधूबन  तीर  चराना।
कान ह  मोर सुने कुछु ना अब आ मुरली धर गीत सुनाना।
काल बने बड़ कंस फिरे झट आ तँय मोर ग जीव बचाना।
(13)
नीर बिना नयना पथराय ग आय कहाँ निंदिया अब मोला।
फेर  सुखाय  सबो  सपना  बिन बादर खेत बरे घर कोला।
का भरही कठिया चरिहा नइ तो ग भरे अब नानुक झोला।
देख  जनावत  हे जग मा अब लूट जही हर हाल म डोला।
(14)
भीतर द्वेष भरे बड़ हावय बाहिर देख न डोल ग जादा।
रंग  भरे  बर  जीवन मा तँय बेच दिये मन काबर सादा।
कोन जनी कइसे करबे अब हावय का अउ तोर इरादा।
काम  बुता  बड़ देख धरे जर फेर लड़े बनके तँय दादा।
(15)
आवव हो गजराज गजानन आसन मा झट आप बिराजौ।
काटव  क्लेश  सबे  तनके  ग हरे बर तैं सब पाप बिराजौ।
नाम जपे नइ आवय आफत हे सुख के तुम जाप बिराजौ।
काज बनाय सबो झनके सुर हे शुभ राशि मिलाप बिराजौ।
(16)
टेंवत  हे  टँगिया  बसुला  अपने बर छोड़य तीर ल कोई।
लाँघन भूँखन के सुरता बिन झेलत हावय खीर ल कोई।
मारत  हे  मनके  सदभाव ल देख सजाय शरीर ल कोई।
लेवत  हे  लउहा  लउहा नइ तो ग धरे अब धीर ल कोई।
(17)
दूसर  खातिर  धीर  करे सब तो अपने बर तेज बने हे।
हे कखरो चिरहा कथरी अउ देख कहूँ घर सेज बने हे।
छप्पन भोग बने कखरो घर ता कखरो घर पेज बने हे।
कोन लिही सुध भारत के मनखे ग इहाँ अँगरेज बने हे।

रचनाकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Friday 15 September 2017

बइगा गुनिया(दोहा चौपाई छंद)

बइगा गुनिया(दोहा चौपाई छंद)

आदत ले लाचार हे, सुने नही गा बात।
घूमत रहिथे बने बन,बिहना ले वो रात।1

सरी मँझनिया  घूमे टूरा।
सिरतों मा बइहा हे पूरा।
पीपर  पेड़   तरी  जा  बइठे।
सबझन जिहाँ भूत हे कइथे।
        झुँझकुर छइँहा हे मनभावन।
        उँही   मेर   लागे   सुरतावन।
        बइठे   टूरा  गोड़  लमाये।
        खुसरा घुघवा देख डराये।
खारे खार  कोलिहा भागय।
देखय भोड़ू बड़ डर लागय।
नांग  साँप  के  हरय बसेरा।
दँतिया  भाँवर   डारे   डेरा।
        हवा  चले   बड़  डारा  डोले।
        रहि रहि के बनबिलवा बोले।
        काँव काँव  कौवा  चिल्लाये।
        टेटका बिन बिन चाँटी खाये।
साँप पेड़ के उप्पर नाचे।
चिरई  अंडा कइसे बाँचे।
चील  बाज उड़ बादर नापे।
भूँके कुकुर जिया हा काँपे।
        झरे पछीना तरतर तरतर।
        काँपय टूरा थरथर थरथर।
        हुरहा   बड़का  डारा   टूटे।
        मुँह ले बोल कहाँ ले  फूटे।
सुध बुध खोये भागे पल्ला।
पारा  भर  मा  होगे  हल्ला।
दाई  दाई   कहि   चिल्लाये।
मनखे तनखे बड़ सँकलाये।

हफरत  हफरत  काँपथे, रहिरहि  के चिल्लाय।
घाम जेठ के अब्बड़ जरे,चक्कर खा गिर जाय।2

        बोली बोलय आनी बानी।
        डारव सिर मा ठंडा पानी।
        खींच बाहरी कोनो मारव।
        भूत  धरे  हे कोनो झारव।
लान जठावव खटिया खोर्रा।
मारव  भँदँई   मारव   कोर्रा।
हाथ गोड़ ला चपकव दोनो।
जावव बइगा  लानव कोनो।
        जल्दी  मरी  मसान  भगावव।
        लइका लोग तीर झन आवव।
        रोवय     दाई    बाबू    बइठे।
        आये   बइगा    मेंछा   अँइठे।
आँखी मा छाये हे लाली।
पहिरे  मूँदी  माला बाली।
गुर्री   गुर्री   देखय    बइगा।
माँगे नरियर लिमवा सइघा।
        भूत  भाग   जा रे पीपर के।
        छीचे राख जाप कर करके।
        लानव खैरी कूकरी चंदन।
       माँ  काली  के करहूँ बंदन।
लहूँ  भरे  हाथे   हे लोटा।
देखब काँपे सबके पोटा।
बइगा  लेवय  लउहा  लउहा।
जल्दी  लानव लिमवा मउहा।
        हँसिया  धरे  करे  दू चानी।
        काटे लिमऊ फेकय छानी।
        बोलय मंतर बड़ चिल्लाये।
        कुकरी  काटे बली चढ़ाये।

जंतर  मंतर  मार  के,बइगा   भूत   भगाय।
बंदन चाँउर छीच के,तनभर भभूत लगाय।3

फूँके  मंतर   बाँधे    डोरी।
पइसा माँगे चालिस कोरी।
बोले  भूत  भाग  गे कहिके।
चेत ह आही थोरिक रहिके।
        भीड़ देख के डॉक्टर आगे।
        बइगा  गठरी   बाँधे   भागे।
        बोले डॉक्टर चेकप  करके।
        गिरे हवय  ये लइका डरके।
जरत घाम मा लू के डर हे।
बइगा नइ जाने का जर हे।
दवई ला जब  लइका पीही।
का होइस  तेला उठ कीही।
          भूत प्रेत अउ  जादू टोना।
          हरे वहम  एखर गा होना।
          भूत  प्रेत  के डर देखाके।
          ले जाथे पइसा गठियाके।
बइगा  गुनिया के चक्कर मा।
मर जाथे लइका मन जर मा।
बइगा तीर कभू झन  जावव।
कहीं होय  डॉक्टर  देखावव।

जादू   टोना   टोटका ,हरय   अन्ध  विश्वाश।
बइगा गुनिया झन धरव,लेगव डॉक्टर पास।4

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

Sunday 10 September 2017

किसन के मथुरा जाना(मत्तगयंद सवैया)

आय हवे अकरूर धरे रथ जावत  हे मथुरा ग मुरारी।
मात यशोमति नंद ह रोवय रोवय गाय गरू नर नारी।
बाढ़त हे जमुना जल  हा  जब  नैनन नीर झरे बड़ भारी।
थाम जिया बस नाम पुकारय हाथ धरे सब आरति थारी।

कोन  ददा  अउ  दाइ  भला  अपने  सुत  दे बर  होवय राजी।
जाय चिराय जिया सबके जब छोड़ चले हरि गोकुल ला जी।
गोप  गुवालिन  संग  सखा  सब काहत हावय जावव ना जी।
हाल कहौं कइसे मुख ले  दिखथे बिन जान यशोमति माँ जी।

गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं जी।
फूल  गुलाब  न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं जी।
बार तिथी सब हे बिगड़े बिन मोहन रास रचे  न कहीं जी।
जेखर जान निकाल दिही कइसे रइही ग बता न तहीं जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

पितर पाख

पितर पाख म
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पितर      आय      हे ,
पितर       पाख     म।
महर-महर ममहावत हे,
बरा-सोंहारी  नाक  म।

माड़े     हे     मुहाटी      म,
मुखारी बोरे लोटा म  पानी।
चंऊक पुराय भूतवा    कस,
चढ़े   फूल  आनी  -   बानी।
तोरई पाना म उरिद दार धरे,
ददा           गेहे       तरिया।
दाई   साने      हे      पिसान,
दार   धोय हे चरिहा - चरिहा।
टुरी - टुरा  बइठे  चूल्हा   तीर,
तेलई      के      ताक       म।
पितर आय हे....................।

झेंझरी   -    झेंझरी       रोटी ,
बनके           तियार         हे।
पारा  -   परोसी    सगा-सोदर,
सब     बर       तिहार       हे।
हूम  -   धूप      के       गुंगवा,
घर        भर      गुंगवात     हे।
कुकुर-कंऊवा नरिया-नरिया के,
किंजर -  किंजर   के  खात  हे।
दूधे     दूध   के  तसमई  बने हे,
बरबट्टी -  तोरई   हे    साग   म।
पितर आय हे......................।

जंऊहर    आदर  सतकार ,
पितर     के      होत      हे।
जीयत    डोकरी  - डोकरा,
कल्हर - कल्हर  के  रोत हे।
जीयत     म    दाई-ददा  के,
नई       तरसाबे        चोला।
त   मरे    म    तोर     पितर,
आसीस       दिही      तोला।
जीयत के  सेवा  सार        हे,
राख के सेवा मिलही राख म।
पितर आय हे...................।

    जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
      बालको(कोरबा)
      9981441795

Sunday 20 August 2017

अब का पोरा-जाँता जी ?

अब का पोरा-जाँता जी ?

अब का पोरा जाँता जी?
ठाढे़ अँकाल   के   मारे,
होगेव चउदा बाँटा जी |
अब का पोरा जाँता जी।

सपना ल दर-दर जाँता म,
कब तक मन ल बाँधव ?
चांउर-दार पिसान नइहे,
का  कलेवा   राँधव  ?
भभकत  मँहगाई  म,
अलथी कलथी भुंजात हौ |
भात- बासी ल तको,
चटनी  कस  खात  हौ   |
उबके हे लोर तन भर,
पड़े हे गाल म चाँटा जी....|
अब का पोरा जाँता जी....?

सिरतोन के बइला भूख मरे,
का  जिनिस  खवाहूं  |
माटी के बइला बनाके,
अब का करम ठठाहूं |
किसान  अउ गाय-गरूवा,
जघा-जघा कुटात हे |
सहर-नगर म कहॉ,
कोनो पोरा मनात हे ?
कइसे नाचे नंदियॉ बइला,
गड़गे गोड़ म काँटा जी.......|
अब का पोरा जाँता जी.......|

गांव के गरीब किसन्हा,
कब तक चिमोटे रिही |
जुग अउ समाज के संग,
बिधाता के जुलूम होते रिही|
अइसन जमाना म,
पोरा-जाँता नँदा झिन जाय |
बइला के जघा म किसन्हा,
फँदा    झिन    जाय |
हिरदे छर्री-दर्री होगे,
कोन लगाही टाँका जी......|
अब का पोरा-जाँता जी....?

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

पोरा तिहार के आप सबो ल गाड़ा गाड़ा बधाई🙏🙏

Saturday 19 August 2017

छत्तीसगढ़िया वीर बेटा(आल्हा)

छत्तीसगढ़िया वीर बेटा(आल्हा)

महतारी के रक्षा खातिर,धरे हवँव मैं मन मा रेंध।
खड़े  हवँव  मैं छाती ताने,बइरी मारे कइसे सेंध।

मोला झन तैं छोट समझबे,अपन राज के मैंहा वीर।
अब्बड़ ताकत  बाँह भरे हे , रख देहूँ बइरी ला चीर।

तन  ला मोर करे लोहाटी ,पसिया चटनी बासी नून।
बइरी मन ला देख देख के,बड़ उफान मारे गा खून।

नाँगर  मूठ  कुदारी  धरधर , पथना  कस होगे हे हाथ।
अबड़ जबर कतको हरहा ला,पहिराये हँव मैंहा नाथ।

कते  खेत  के  तैं मुरई  रे, ते  का  लेबे  मोला  जीत।
परही मुटका कसके तोला,छिन मा तैं हो जाबे चीत।

आँखी कहूँ गड़ाबे बइरी,देहूँ  मैं  खड़ड़ी ओदार।
महानदी अरपा पइरी मा,बोहत रही लहू के धार।

उड़ा  जबे  बइरी तैं दुरिहा ,कहूँ मार परहूँ मैं फूँक।
खड़े खड़े बस देखत रहिबे,होवे नहीं मोर ले चूक।

मोर झाँक के आँखी देखव,गजब भरे हावय अंगार।
पाना  डारा कस बइरी ला,एके  छिन  मा  देहूँ  बार।

हाथ   गोड़  हा  पूरे  बाँचे ,नइ  चाही  मोला  हथियार।
अपन राज के आनबान बर,खड़े हवँव मैं सदा तियार।

ललहूँ पटको कमर कसे हँव,चप्पल भँदई हावय पाँव।
अड़हा  झन  तैं कभू जानबे,छिन मा तोर बुझाहूँ नाँव।

भाला बरछी गोला बारुद ,भेद सके नइ मोरे चाम।
दाँत  कटर देहूँ ततकी मा,मेटा जही सबो के नाम।

हवे  हवा कस चाल मोर जी,कोन भला पाही गा पार।
चाहे कतको हो खरतरिहा,होही खच्चित ओखर हार।

जब  तक  जीहूँ  ए  माटी  मा,बनके  रइहूँ  बब्बर  शेर।
डर नइ हे मोला कखरो ले,का करही कोलिहा मन घेर।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को

परेवना राखी देके आ

परेवना  राखी  देके  आ
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परेवना      कइसे   जाओं    रे,भईया     तीर      तंय     बता?
गोला-बारूद  चलत हे  मेड़ो म,तंय     राखी    देके  आ.......|

दाई-ददा के  छईंहा म  राहव त,बईठार के भईया ल मंझोत  में।
बांधो राखी कुंकुंम-चंदन लगाके,घींव   के  दिया   के  जोत   में।
मोर   लगगे    बिहाव   अउ,भईया      होगे     देस   के।
कइसे  दिखथे मोर भईया ह,आबे  रे   परेवना   देख  के।
सुख के मोर समाचार कहिबे,जा भईया के संदेसा ला.....|

सावन पुन्नी आगे जोहत होही,भईया ह मोर राखी के बाट रे।
धकर-लकर उड़ जा रे परेवना,फईलाके    दूनो    पाँख    रे।
चमचम-चमचम चमकत राखी,भईया    ल    बड़    भाही  रे।
नांव  जगा  के ; दाई - ददा के,बहिनी  ल  दरस   देखाही  रे।
जुड़ाही आँखी,ले जा रे राखी,दे जा भईया   के  पता........|

देखही  तोला  भईया ह  परेवना ,त  बहिनी  के   सुरता  करही  रे।
जे हाथ म भईया के राखी बँधाही,ते हाथ देस बर जुग-जुग लड़ही रे।
थर-थर   कापही   बईरी   मन   ह,भईया  के  गोली  के  बऊछार  ले,
रक्छा करही राखी मोर  भईया के,बईरी     अउ   जर  -  बोखार  ले।
जनम - जनम   ले  अम्मर  रहे   रे,
भाई -  बहिनी  के नता.............|
            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
                 बालको(कोरबा)
                  9981441795

मोर मितान

मोर मितान

गांव म रहिथे मोर मितान।
हवे  सहर मा मोर मकान।
मैं कमाथों  पैसा  रातदिन,
वो  उगाथे  गहूँ अउ धान।

माटी  के  घर खपरा छानी।
तभो मितान हवे बड़ दानी।
गला  म  फेटा  मूड़  म  पागा।
फोकटे फोकट करे नइ लागा।
दिखे  हाथ  मोर गोरा गोरा।
ओखर हाथ म परे हे फोरा।
पीथे  कुँवा  बोरिंग  के पानी।
बासी पेज ओखर जिनगानी।
पहिली  ले अउ वो  पतरागे।
मोर तन म बड़ मास भरागे।
हँड़िया कस मोर पेट निकलगे,
चश्मा  चढ़े  हवे   मोर   कान।

गाड़ी  घोड़ा शान मोर ए।
पैसा कउड़ी मान मोर ए।
चीज  देखवा  के हे घर मा।
नाम हवे बड़ मोर शहर मा।
मितान  के बोली मंदरस हे।
हाथ गोड़ हा पथरा कस हे।
ताकत हवे बाँह मा भारी।
खाथे बासी भरभर थारी।
तात तात  मैं तीन तेल खाथों।
टीभी देख मैं दिन ला पहाथों।
सेज सुपाती पलंग गद्दा मा,
सुतथों   मैंहा   लाद   तान।

ओधे  रहिथे  दिनभर गेट।
अबड़ हवे मोर घर के रेट।
पारा  परोसी   से  का  लेना।
नइ बारन लकड़ी अउ छेना।
घर ले जुड़े हे ओखर ब्यारा।
जिंहा माड़े हे खाँसर गाड़ा।
घर  के  आघू बड़का चँवरा।
बइला बंधाये करिया धँवरा।
बड़का अँगना अउ दुवारी।
बइठ मितानिन करे मुखारी।
डिस्को रीमिक्स मोर मुँह मा,
ओखर  मिठाये   सुवा  गान।

जाति  धरम  बसे मोर बानी।
वो बस जाने खेती किसानी।
तिहार बार वो हाँस के माने।
गाँव  भर  ला परिवार जाने।
पाले  हँव घर मे कुकुर मैं।
रहिथों दाई ददा ले दूर मैं।
गमला  माड़े   मोर   दुवारी।
उगे हवे बड़ फूल फुलवारी।
चले नही मोला गुड़ शक्कर।
खेवन  खेवन  आथे चक्कर।
खाथों  रोज  दवई   गोली,
नपे तुले हे मोर खानपान।

पैसा बैंक  मा  माड़े  हावय।
बीपी सुगर मोर बाढ़े हावय।
मितान रेंगे टेंग टेंग भारी।
ओखर पटे सबसँग तारी।
बर पीपर छँइहा मनभावन।
हाट  सजथे  लगथे  दावन।
सीतला बरदी तरिया नरवा।
छेरी बोकरा संग मा गरवा।
मॉल मेला होटल ढाबा।
देथे खुसी काबा काबा।
पानी काँजी मैंहा पीथों,
फिल्टर  मा   मैं   छान।

देस बर जीबों देस बर मरबों

देस बर जीबों देस बर मरबों

चल माटी के काया ल,हीरा करबों।
देस बर जीबो, देस बर  मरबों।
 
सिंगार करबों,सोन चिंरइयाँ के।
गुन   गाबोंन, भारत  मइया के।
स्वारथ  के सुरता ले, दुरिहाके।
धुर्रा चुपर के माथा म,भुइयाँ के।
घपटे अंधियारी भगाय बर,भभका धरबों।
देस बर जीबो, देस बर मरबों...............।

उँच  - नीच    ला ,  पाटबोन।
रखवार बन देस ल,राखबोन।
हवा     म    मया,   घोरबोन।
हिरदे ल हिरदे ले, जोड़बोन।
चल  दुख-पीरा ल, मिल  हरबों।
देस   बर  जीबों, देस बर मरबों।

मोला गरब-गुमान  हे,
ए  भुइयाँ  ल    पाके।
खड़े    रहूं    मेड़ो  म ,
जबर छाती फइलाके।
फोड़ दुहुं वो आँखी ल,
जे मोर भुइयाँ बर गड़ही।
लड़हूँ - मरहूँ   देस    बर ,
तभे काया के करजा उतरही।
तंउरबों बुड़ती समुंद म,उक्ती पहाड़ चढ़बो।
चल   देस   बर जीबो, देस बर मरबो.......।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" के दोहे


श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के दोहे

@@@@@@करम@@@@@@@

करम  सार  हावय इँहा,जेखर  हे  दू  भेद।
बने  करम ला राख लौ,गिनहा ला दे खेद।

बिना करम के फल कहाँ,मिलथे मानुष सोच।
बने   करम   करते   रहा,बिना  करे   संकोच।

करे  करम  हरदम  बने,जाने  जेहर  मोल।
जिनगी ला सार्थक करे,बोले बढ़िया बोल।

करम  करे  जेहर   बने,ओखर  बगरे नाम।
करम बनावय भाग ला,करम करे बदनाम।

करम  मान नाँगर जुड़ा,सत  के  बइला फाँद।
छीच मया ला खेत भर,खन इरसा कस काँद।

काया बर करले करम,करम हवे जग सार।
जीत करम ले हे मिले, मिले  करम ले हार।

करम सरग के फइरका,करम नरक के द्वार।
करम गढ़े जी  भाग ला,देवय  करम  उजार।  

बने करम कर देख ले,अड़बड़ मिलथे मान।
हिरदे  घलो हिताय बड़,बाढ़े अड़बड़ शान।

मिल जाये जब गुरु बने,वो सत करम पढ़ाय।
जिनगी  बने  सँवार   के,बॉट  सोझ  देखाय।

हाथ   धरे  गुरुदेव  के,जावव जिनगी जीत।
धरम करम कर ले बने,बाँट मया अउ मीत।

करम जगावय भाग ला,लेगय गुरु भवपार।
बने  करम बिन जिन्दगी,सोज्झे  हे  बेकार।

##############ज्ञान#############

ज्ञान रहे ले साथ मा ,बाढ़य जग मा शान।
माथ  ऊँचा  हरदम रहे,मिले  बने सम्मान।

बोह भले सिर ज्ञान ला,माया मोह उतार।
आघू मा जी ज्ञान के,धन बल जाथे हार।

लोभ मोह बर फोकटे,झन कर जादा हाय।
बड़े बड़े धनवान मन ,खोजत  फिरथे राय।

ज्ञान मिले सत के बने,जिनगी तब मुस्काय।
आफत  बेरा  मा  सबे,ज्ञान काम बड़ आय।

विनय मिले बड़ ज्ञान ले ,मोह ले अहंकार।
ज्ञान  जीत  के  मंत्र  ए, मोह हरे खुद हार।

गुरुपद पारस  ताय जी,लोहा होवय सोन।
जावय नइ नजदीक जे,मूरख ए सिरतोन।

बाँट  बाँट  के  ज्ञान  ला,करे जेन निरमान।
वो पद देख पखार ले,गुरुपद पंकज जान।

अइसन  गुरुवर  के  चरण,बंदौं बारम्बार।
जेन ज्ञान के जोत ले,मेटय सब अँधियार।

&&&&&&&&नसा&&&&&&&&&

दूध  पियइया  बेटवा ,ढोंके  आज  शराब।
बोरे तनमन ला अपन,सब बर बने खराब।

सुनता बाँट तिहार मा,झन पी गाँजा मंद।
जादा लाहो लेव झन,जिनगी हावय चंद।

नसा करइया हे अबड़,बढ़  गेहे  अपराध।
छोड़व मउहा मंद ला,झनकर एखर साध।

दरुहा गँजहा मंदहा,का का नइ कहिलाय।
पी  खाके  उंडे   परे, कोनो हा  नइ  भाय।

गाँजा चरस अफीम मा,काबर गय तैं डूब।
जिनगी  हो  जाही  नरक,रोबे  बाबू  खूब।

फइसन कह सिगरेट ला,पीयत आय न लाज।
खेस खेस बड़ खाँसबे,बिगड़ जही सब काज।

गुटका  हवस दबाय तैं,बने  हवस  जी  मूक।
गली खोर मइला करे,पिचिर पिचिर गा थूक।

काया  ला   कठवा  करे,अउ  पाले  तैं   घून।
खोधर खोधर के खा दिही,हाड़ा रही न खून।

नसा नास कर देत हे, राजा हो या रंक।
नसा देख  फैलात हे,सबो खूंट आतंक।

टूटे  घर   परिवार    हा, टूटे  सगा   समाज।
चीथ चीथ के खा दिही,नसा हरे गया बाज।

घर  दुवार  बेंचाय के,नौबत  हावय आय।
मूरख माने नइ तभो,कोन भला समझाय।

नसा करइया चेत जा,आजे  दे  गा छोड़।
हड़हा होय शरीर हा,खपे हाथ अउ गोड़।

एती ओती  देख ले,नसा  बंद  के जोर।
बिहना करे विरोध जे,संझा बनगे चोर।

कइसे छुटही मंद हा,अबड़ बोलथस बोल।
काबर पीये  के  समय,नीयत  जाथे  डोल।

संगत  कर  गुरुदेव  के,छोड़व  मदिरा मास।
जिनगी ला तैं हाथ मा,कार करत हस नास।

नसा  करे ले रोज के,बिगड़े तन के तंत्र।
जाके गुरुवर पाँव मा,ले जिनगी के मंत्र।

रचनाकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)

Wednesday 16 August 2017

मैं बीर जंगल के(आल्हा छंद)

मैं वीर जंगल के(आल्हा)

झरथे  झरना  झरझर  झरझर,पुरवाही मा नाचे पात।
ऊँच ऊँच बड़ पेड़ खड़े हे,कटथे जिंहा मोर दिन रात।

पाना   डारा   काँदा   कूसा, हरे   हमर  मेवा  मिष्ठान।
जंगल झाड़ी ठियाँ ठिकाना,लगथे मोला सरग समान।

कोसा लासा मधुरस चाही,नइ चाही मोला धन सोन।
तेंदू  पाना  चार   चिरौंजी,संगी  मोर  साल  सइगोन।

घर के बाहिर हाथी घूमे,बघवा भलवा बड़ गुर्राय।
आँखी फाड़े चील देखथे,लगे काखरो मोला हाय।

छोट मोट दुख मा घबराके,जिवरा नइ जावै गा काँप।
रोज  भेंट  होथे  बघवा ले, कभू संग सुत जाथे साँप।

लड़े  काल  ले  करिया  काया,सूरुज  मारे  कइसे  बान।
झुँझकुर झाड़ी अड़बड़ भारी,लगे रात दिन एक समान।

घपटे  हे  अँधियारी  घर मा,सूरुज नइ आवै गा तीर।
बघवा भलवा हाथी सँग मा,रहिथौं मैं बनके गा बीर।

रेंग  सके  नइ कोनो मनखे,उँहा घलो मैं देथौं  भाग।
आलस जर जर भूँजा जाथे,हरे खुदे तन मोरे आग।

गरब गठैला  तन के करथौं,चढ़ जाथौं मैं झट ले झाड़।
सोना उपजाथौं महिनत कर,पथरा के छाती ला फाँड़।

उतरौं  चढ़ौ  डोंगरी  घाटी ,तउरौं  मैं  नँदिया के धार।
कतको पीढ़ी इँहिचे खपगे,मानन नहीं हमन हा हार।

डर नइ लागे बघवा भलवा,डर नइ लागे बिखहर साँप।
मोर जीव  हा  तभे  कापथे,जब  होथे  जंगल  के नाँप।

पथरा  कस  छाती  ठाहिल हे,मोर हवा कस हावय चाल।
मोर उजाड़ौ झन घर बन ला,झन फेकव जंगल मा जाल।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

कमर छठ(खमर्छठ) सार छंद

खमर्छठ(सार छंद)

खनर खनर बड़ चूड़ी बाजे,फोरे दाई लाई।
चना गहूँ राहेर संग मा,झड़के बहिनी भाई।

भादो मास खमर्छठ होवय,छठ तिथि अँधियारी।
लीपे  पोते  घर  अँगना  हे,चुक  ले दिखे दुवारी।

बड़े बिहनिया नाहय खोरय,दातुन मउहा डारा।
हलषष्ठी के  करे  सुमरनी,मिल  पारा  के पारा।

घर के बाहिर सगरी कोड़े,गिनगिन डारे पानी।
पड़ड़ी काँसी खोंच पार मा,बइठारे छठ रानी।

चुकिया डोंगा बाँटी भँवरा,हे छै जात खिलोना।
हूम धूप अउ फूल पान मा,महके सगरी कोना।

पसहर  चाँउर  भात  बने हे, बने हवे छै भाजी।
लाई नरियर के परसादी,लइका मनबर खाजी।

लइका  मन  के रक्षा खातिर,हे उपास महतारी।
छै ठन कहिनी बैठ सुने सब,करे नेंग बड़ भारी।

खेत  खार  मा नइ तो रेंगे, गाय  दूध  नइ पीये।
महतारी के मया गजब हे,लइका मन बर जीये।

भैंस दूध के भोग लगे हे,भरभर मउहा दोना।
करे  दया   हलषष्ठी   देवी,टारे  जादू   टोना।

पीठ  म   पोती   दे  बर  दाई,पिंवरी  माटी  घोरे।
लइका मनखे पाँव ल थोरिक,सगरी मा धर बोरे।

चिरई बिलई कुकुर अघाये,सबला भोग चढ़ावै।
महतारी  के  दान  धरम ले,सुख  समृद्धि आवै।

द्वापर युग मा पहिली पूजा,करिन देवकी दाई।
रानी उतरा घलो सुमरके,लइका के सुख पाई।

टरे  घँसे  ले  महतारी के,झंझट दुख झमेला।
रक्षा कवच बने लइका के,पोती कइथे जेला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

हमर तिरंगा

@@@हमर तिरंगा(दोहा गीत)@@@

लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।
इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।
हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।
नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।
जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।
संसो  कहाँ  सुबे   हवे, नइहे  संसो   रात।
महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।
इही--------------------------------- लाज।

उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।
भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।
गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।
उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।
का का मैं बतियाँव गा, गजब भरे हे राज।
लहर------------------------------लाज।

तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।
जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।
कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।
रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।
जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।
लहर-----------------------------लाज।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

स्वतंत्रता दिवस अउ आठे तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई।।

Tuesday 1 August 2017

खेती नँवा ढंग ले

खेती नवा ढंग ले(छन्न पकैया)

छन्न  पकैया छन्न पकैया,ये युग हरे मसीनी।
चना गहूँ होवय खेती ले,खेती ले गुड़ चीनी।

छन्न  पकैया छन्न पकैया ,जुन्ना खेती सोवै।
बाँवत निदँई मतई सब्बो,नवा ढंग ले होवै।

छन्न पकैया छन्न पकैया,नइहे  बइला गाड़ा।
नाँगर जूड़ा नइहे घर मा,बनगे टेक्टर माड़ा।

छन्न  पकैया  छन्न  पकैया,तोर तीर सुख सोही।
करले जाँच बीज माटी के,धान पान बड़ होही।

छन्न  पकैया  छन्न   पकैया ,भर्री  धनहा  डोली।
नइ पावस नाँगर बइला अउ,ओहो तोतो बोली।

छन्न  पकैया  छन्न  पकैया,खुस  हो खाले मांदी।
दवई मा झट मर जाथे जी, बन दूबी अउ कांदी।

छन्न  पकैया  छन्न  पकैया ,डारे  खातू माटी।
माछी मच्छर मुसवा मरगे,डरगे चिरई चाँटी।

छन्न  पकैया छन्न पकैया,धान पान झट बाढ़े।
पइसा  कौड़ी  होना  चाही,देख पार मा ठाढ़े।

छन्न पकैया छन्न पकैया,होय बने जिनगानी।
ट्यूबवेल  खोदाये हावय,झरझर  बोहै पानी।

छन्न  पकैया छन्न पकैया,देख चीज का आगे।
देखत  देखत  धान  लुवागे,अउ झट मिंजागे।

छन्न  पकैया  छन्न  पकैया, हाँस  ले  मुस्काले।
नवा नवा जी साधन मनके ,तैंहा गुन ला गाले।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)

Saturday 22 July 2017

हरेली तिहार

हरेली हरियर हरियर दिखे खेत-खार हरियर। डोंगरी पहाड़ हरियर । मन   होगे   बरपेली, हरियर -हरियर। आय हे हरेली, हरियर-हरियर।। खोंच लेना डारा , निमवा के डेरउठी म। चढ़ के देख एक घांव, गेड़ी के पंऊठी  म। बड़ मजा आही, मन ह हरसाही। नहा-खोर हुम दे दे, पानी फरिहर-फरिहर।।।। आय हे हरेला...........। हे थारी म चीला, जुरे हवय माई-पिला। धोके नांगर-जुड़ा। गेड़ी मचे टुरा। माड़े टँगिया-बसला आरी। चढ़े पान फूल-सुपारी। चढ़ा बंदन-चन्दन, फोड़ ठक-ठक नरियर।।।। आय हे हरेला...........। हे महुतुर तिहार के, संसो-फिकर ल टार के। मानव धरती दाई ल, डारा-पाना रुख-राई ल। थेभा मा किसानी के सरी चीज हर।। आय हे...........।        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"           बाल्को(कोरबा) आप सबोझन ल हरेली तिहार के बधाई🌺🌺🌺🌺

Thursday 20 July 2017

तिहार देख ले

तिहार देख ले आ हमर गांव के, तिहार देख ले। सुग्घर लीपे-पोते, घर दुवार देख ले। काय हरे हरेली, काय हरे तीजा - पोरा। कोन-कोन तिहार बर, कइसन होथे जोरा। झूमय नाचे सबो झन,मिंझरे पिंयार देख ले। आ हमर गांव के , तिहार देख ले।1 राखी पुन्नी सवनाही , सोम्मारी कमरछठ। राँध खीर बरा-सोंहारी , खाथे सबो छक। झूलना झूलेआठे-कन्हैया, मिंयार देख ले। आ हमर गांव के,तिहार देख ले।2 मुसवा संग मुस्काये, गली-गली गनपति। जस गाये दाई दुर्गा के, मनाये सरसती। राम जी के जीतई अउ,रावन के हार देख ले। आ हमर गांव के , तिहार देख ले।।3 रामधुनी रामसत्ता, भागवत रमायेन। दियना देवारी के, जगमग जलायेन। परसा संग माते,नाचे खेत-खार देख ले। आ हमर गांव के, तिहार देख ले।।4 पूजा - पाठ बर-बिहाव, मड़ई अक्ति छेरछेरा। सुवा-करमा नाचा-गम्मत म,बीते कतको बेरा। नाँव के तिहार नही, असल सार देख ले। आ हमर गांव के, तिहार देख ले।।5 रचना - जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया" बाल्को ,कोरबा छत्तीसगढ़

Friday 14 July 2017

उरमाल

उरमाल(सरसी छंद)

रंग  रंग  के  मिलथे  लेले,पड़डी  पिवँरी  लाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।

राखव हरदम अपन खिसा मा,संगी जइसन मान।
अबड़  काम  के चीज हरे जी ,गुन ला तैंहर जान।
दार भात अउ बासी खाके,पोंछव मुँह अउ गाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ  फभे  उरमाल।

टेरीकाट मजा नइ आये,सूँती मन ला भाय।
धुर्रा माटी लगे रिथे ते, चिक्कन गा पोंछय।
हवा गरेरा जब चलथे तब,तोपव आँख निकाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ  फभे उरमाल।

धरे  हाथ  मा  गोरी  रइथे , मखमल  के  उरमाल।
मटक मटक के रेंगय हाँसत,हिरनी जइसन चाल।
महकय  खुसबू चारो कोती , राखय इत्तर डाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।

गाना   गाये   गजा  मूँग  हा,दाबे  बँगला  पान।
खोंचे करिया कपड़ा कनिहा,बढ़गे हावय सान।
हाथ  धरे  उरमाल फिरे जी,हावय बढ़िया हाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।

हरे  चेंदरा  छोट  अकन  जी ,फेर आय बड़ काम।
राखव कनिहा खिसा हाथ मा,बिहना हो या साम।
आँखी कान नाक अउ मुँह बर, बनके रहिथे ढाल।
हँरियर  करिया  नीला  भुरुवा ,हाथ फभे उरमाल।

पहिली पंछा हर मनखे के,रहे ओरमे खाँध।
कोनो पागा बाँधे राहय,कोनो कनिहा बाँध।
पंछा  पटको  कोन धरे अब,बदले सबके चाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)

Thursday 13 July 2017

होली है

💐💐होली हे(गीत)💐💐
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महकत  रंधनी  खोली  हे।
मुँह मा मीठ मीठ बोली हे।
फागुन  मस्त महिना आये,
नाचो  -  गावो    होली  हे।

नेवता  हेवे   झारा - झारा।
सइमो - सइमो   करै पारा।
बाजत   हवे  ढोल नँगाड़ा।
नाचत हे भांटो  अउ सारा।
अंग  मा   रंग,रचे  हे भारी।
दिखै  लाली  पिंवरी कारी।
अबीर माड़े भर-भर थारी।
सर्राये     मारे   पिचकारी।
घूम -  घूम   के    रंग   रंगे,
लइका-सियान के टोली हे।

झरे  मउर,धरे  आमा फर।
धरे राग,कोइली गाये बड़।
उल्हवा दिखे,डारा - पाना।
चना  गंहू    धरे  हे   दाना।
चार   तेंदू   लिटलिट  फरे।
रहि - रहि     मउहा    झरे।
बोइर अमली झूले डार मा।
सेम्हर परसा फूले खार मा।
घर  -  दुवार,  गली  - खोर,
नाचत   डोंगरी   डोली  हे।

बरजे   बाबू,  बोले  सियान।
नइ   देत   हे,कोनो  धियान।
मगन     होगे    नाचत     हे।
दया  -  मया       बाँटत   हे।
होरी   देय   संदेस   सत के।
मया   रंग   मा,  रबे  रचके।
परसा सेम्हर  आमा लचके।
दुल्हिन कस खड़े हे सजके।
मया  रंग रचे लाली- हँरियर,
धरती   दाई   के  ओली  हे।

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)


कान्हा मोला बनादे (सार छंद)

कान्हा मोला बनादे (सार छंद)

पाँख  मयूँरा  मूड़ चढ़ादे,काजर गाल लगादे|
हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |

बाँध कमर मा करधन मोरे,बाँध मूड़ मा पागा|
हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|

चंदन  टीका  माथ लगादे ,ले  दे माला मूँदी|
फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चूँदी|

हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |
घींव  लेवना  चाँट  चाँट  के,खाहूँ थाली थाली |

दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी बइठ बजाहूँ|
तेंदू  लउड़ी  हाथ थमादे,गाय  चराके आहूँ|

महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।    
कुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल हे घर घर |

बाग बगीचा लगे मधूबन,हे जंगल अउ झाड़ी|
बँसुरी  धरे  रेंगहूँ   मैंहा ,भइया  नाँगर  डाँड़ी|

गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|
संसो  झन  तैं  करबे  दाई,सँझा खेल के आहूँ|

पहिरा  ओढ़ा  करदे  दाई ,किसन बरन तैं मोला|
रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|

पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |
बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|

चढ़के रुख कदम्ब मा दाई ,बँसुरी मीठ बजाहूँ |
दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,सबके भाग जगाहूँ|

जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "
बालको (कोरबा )

Sunday 9 July 2017

आजा रे बादर(ताटंक छंद)

आजा रे बादर(ताटंक छंद)गीत

लकलक लकलक जरत हवय बड़,बैसाख जेठ कस छानी।
सावन   मा   तैं   घलो  विधाता, काबर   नइ   देवस  पानी।

जागे  नइहे  धान   पान हा , सुख्खा  हे  तरिया  डोली।
जरत हवय जिवरा किसान के,मुँह ले नइ फूटय बोली।
रहि  रहि  के  तैं  काबर हमला,घूमावत रहिथस घानी।
सावन  मा  तैं  घलो  विधाता, काबर  नइ  देवस पानी।

नैन  निहारत  रहिथे  बादर ,तोला  घेरी  बेरी गा।
मोर किसानी ले मनखे हे,गाय गरू अउ छेरी गा।
तोर भरोसा भाग मोर हे , झनकर तैं चानी चानी।
सावन मातैं घलो विधाता,काबर नइ देवस पानी।

थोर  थार  तैंहा  असाड़  मा ,पानी  काबर बरसाये।
छितवाके के तैं बीज भात ला,बूंद बूंद बर तरसाये।
सावन  के  तैं  झड़ी  लगादे,आके  वो बरखा रानी।
सावन मा तैं  घलो विधाता ,काबर नइ देवस पानी।

जाँगर  नाँगर  मोर तीर हे, तोर तीर  हावय पानी।
तोर भरोसा मैंहर रहिथों ,चले नहीं गा जिनगानी।
बरस बरस के तैंहर आजा,करदे धरती ला धानी।
सावन मातैं घलो विधाता,काबर नइ देवस पानी।

दिन रात देखथँव मैं तोला,बरसा धर तैंहर आजा।
देखे नहीं हिरख के तोला,वो मन हा होवय राजा।
लाज राख दे आके बादर,झन बोर मोर जिनगानी।
सावन मा तैं घलो विधाता,काबर  नइ देवस पानी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

सावन बइरी(सार छंद)

सावन बइरी(सार छंद)

चमक चमक के गरज गरज के,बरस बरस के आथे।
बादर  बइरी  सावन   महिना,मोला   बड़  बिजराथे।

काटे नहीं कटे दिन रतिहा,छिन छिन लगथे भारी।
सुरुर  सुरुर  चलके   पुरवइया,देथे   मोला   गारी।

रहि रहि के रोवावत रहिथे,बइरी सावन आके।
हाँस हाँस के नाचत रहिथे,डार पान बिजराके।

छोड़  गये  परदेस  पिया तैं ,पाँव बजे ना पैरी।
टिकली फुँदरी माला मुँदरी,होगे सब झन बैरी।

महुर  मेंहदी  मूँगा मोती,बिछिया अँइठी लच्छा।
तोर बिना हे मोला जोड़ी,लगे नहीं कुछु अच्छा।

हरियर  हरियर  होगे डोली,हरियर बखरी बारी।
तोर बिना जिनगी मा मोरे,छाय घटा अँधियारी।

नाच कूद के देख मेचका,खुश हो टर टर गाथे।
ताना  मारत  मारत  मोला,झींगुर गीत सुनाथे।

धरके   बासी  मोर  जँवारा ,रोज  खेत  मा  जाथे।
बइठ अपन वो संग सजन के,हाँस हाँस बतियाथे।

मोर परोसिन अपन पिया ला,चीला राँध खवाथे।
छत्ता  धरे  झड़ी  झक्कर मा,घूमय मजा उड़ाथे।

बरसे बादर रिमझिम रिमझिम,चिरई गाये गाना।
जाँवर  जोड़ी  नाच नाच के,खावत रहिथे दाना।

कउँवा बाटत रहिथे चारा,उड़ उड़ के छानी मा।
मोरो  मन  होथे  भींगे  के ,तोर संग  पानी  मा।

परेवना  के  पाँख देख के,माँगत रहिथों पाँखीं।
फेर देख मोला उड़ जाथे,बरसत रहिथे आँखी।

भुँइया अबड़ हितागे हावय,पाके मनभर पानी।
रोज जरत हे जिवरा मोरे ,हलाकान जिनगानी।

आँखी  मोरे  करिया  गेहे ,बादर  ले बड़ जादा।
झटकुन राजा  तैंहर आजा,करके गे हस वादा।

नैना मोरे झड़ी करे तब,बादर डरके भागे।
नैन  निहारे  रद्दा  तो रे,बइठ  दुवारी जागे।

मोर  बने  बइरी  रे  धन  तैं,जोड़ी  ला भड़काये।
आजा राजा नइ चाही कुछु,रही जहूँ बिन खाये।

पेट अन्न पानी नइ जाने ,जब ले तँय घर छोड़े।
रद्दा  ला  मैं  जोहत रहिथों ,बइठे माड़ी  मोड़े।

कतको दिन हा कटगे मोरे,बिना अन्न पानी के।
पान  चढ़ावों भोला देदे,सुख ला जिनगानी के।

धरे  गाल  मैं  बइठे  हावँव,हाथ  हले ना डोले।
आस मरत हे आजा राजा,मुँह नइ बोली बोले।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Friday 7 July 2017

chhattisgarhi chhand



जयकारी छंद(जनउला)

जड़काला मा जे मन भाय।
गरमी घरी अबड़ रोवाय।
बरसा भर जे फिरे लुकाय।
जल्दी बता चीज का आय।1
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आघू मा बइठे रोवाय।
नइ खाये जी तभो खवाय।
कान धरे अउ अबड़ घुमाय।
काम होय अउ छोड़ भगाय।2
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घर भीतर हे सीटी मार।
बइठे धरे भात अउ दार।
कोनो नइ ओला खिसियाय।
हेर हेर के सब झन खाय।3
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हावय जेखर दू ठन गोड़।
बइठे ददा पालकी मोड़।
गोड़ तिरइयाँ के हे चार।
झटकुन बोलव सोच बिचार।4
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हाँड़ी के सबदिन आधार।
खाये सबझन भूँज बघार।
रंग भूरवा रहिथे गोल।
राजा हरे नाम तैं बोल।5
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जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको