Sunday 15 August 2021

बचपन बरसा मा(गीत)

 बचपन बरसा मा(गीत)


बचपना हिलोर मारे रे,रिमझिम बरसात मा।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा......।


कागज के डोंगा बना धार मा,बोहावन।

घानी मूँदी खेलन,अड़बड़ मजा पावन।

पाछू पाछू भागन,देख फाँफा फुरफुंदी।

रहिरहि के भींगन, झटकारन बड़ चुंदी।

दया मया रहय,हमर बोली बात मा.......।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।


घर ले निकलन,ददा दाई ले बचके।

धार  ल  रोकन, माटी पथरा रचके।

तरिया  के पार में,बइठे गोटी फेंकन।

गोरसी के आगी में,हाथ गोड़ सेंकन।

मन रमे राहय,माटी गोटी पात मा........।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।


बरसा के बेरा,करे झक्कर झड़ी।

खेलेल  बुलाये,संगी साथी गड़ी।

रीता नइ राहन,हमन एको घड़ी।

खोइला मिठाये,भाये काँदा बड़ी।

सबे खुशी राहय,गाँव गली देहात मा....।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।


झूलन बंभरी मा,खेत खार जावन।

नदी पहाड़ खेलन,लोहा गड़ावन।

बिच्छल रद्दा मा, मनमाड़े उंडन।

माटी ह  गाँवे के,लागे जी कुंदन।

बिन माँगे मया मिले,वो दरी खैरात मा...।

घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

शिव सुमरनी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 शिव सुमरनी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


डमडमी डमक डमक। शूल बड़ चमक चमक।

शिव शिवाय गात हे। आस जग जगात हे।


चाँद चाकरी करे। सुरसरी जटा झरे।

अटपटा फँसे जटा। शुभ दिखे तभो छटा।


बड़ बरे बुगुर बुगुर। सिर बिराज सोम सुर।

भूत प्रेत कस दिखे। शिव जगत उमर लिखे।


कोप क्लेश हेरथे। भक्त भाग फेरथे।

स्वर्ग आय शिव चरण। नाम जाप कर वरण।


हिमशिखर निवास हे। भीम वास खास हे।

पाँव सुर असुर परे। भाव देख दुख हरे।


भूत भस्म हे बदन। मरघटी शिवा सदन।

बाघ छाल साँप फन। घुरघुराय देख तन।


नग्न नील कंठ तन। भेस भूत भय भुवन।

लोभ मोह भागथे। भक्त भाग जागथे।


शिव हरे क्लेश जर। शिव हरे अजर अमर।

बेल पान जल चढ़ा। भूत नाथ मन मढ़ा।


दूध दूब पान धर। शिव शिवा जुबान भर।

सोमवार नित सुमर। बाढ़ही खुशी उमर।


खंड खंड चर अचर। शिव बने सबेच बर।

तोर मोर ला भुला। दै अशीष मुँह उला।


नाग सुर असुर के। तीर तार दूर के।

कीट खग पतंग के। पस्त अउ मतंग के।


काल के कराल के। भूत  बैयताल के।

नभ धरा पताल के। हल सबे सवाल के।


शिव जगत पिता हरे। लेय नाम ते तरे।

शिव समय गति हरे। सोच शुभ मति हरे।


शिव उजड़ बसंत ए। आदि इति अनंत ए।

शिव लघु विशाल ए। रवि तिमिर मशाल ए।


शिव धरा अनल हवा। शिव गरल सरल दवा।

मृत सजीव शिव सबे। शिव उड़ाय शिव दबे।


शिव समाय सब डहर। शिव उमंग सुख लहर।

शिव सती गणेश के। विष्णु विधि खगेश के।


नाम जप महेश के। लोभ मोह लेश के।

शान्ति सुख सदा रही। नाव भव बुलक जही।


शिव चरित अपार हे। ओमकार सार हे।

का कहै कथा कलम। जीभ मा घलो न दम।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

सावन महीना के स्वागत करत ###$सावन महीना(गीत)###

 सावन महीना के स्वागत करत


###$सावन महीना(गीत)###


सावन आथे त मन मा,उमंग भर जाथे।

हरियर हरियर सबो तीर,रंग भर जाथे।


बादर  ले  झरथे,रिमझिम  पानी।

जिया जुड़ाथे,खिलथे जिनगानी।

मेंवा मिठाई,अंगाकर अउ चीला।

करथे झड़ी त,खाथे  माई  पिला।

खुलकूद लइका मन,मतंग घर जाथे।

सावन आथे त मन मा-------------।


भर जाथे तरिया,नँदिया डबरा डोली।

मन ला लुभाथे,झिंगरा मेचका बोली।

खेती किसानी,अड़बड़ माते रहिथे।

पुरवाही घलो ,मतंग  होके   बहिथे।

हँसी खुसी के जिया मा,तरंग भर जाथे।

सावन आथे त मन मा,---------------।


होथे जी हरेली  ले,मुहतुर तिहार।

सावन पुन्नी आथे,राखी धर प्यार।

आजादी के दिन, तिरंगा लहरथे।

भोले बाबा सबके,पीरा  ल हरथे।

भक्ति म भोला के सरी,अंग भर जाथे।

सावन आथे त मन मा--------------।


चिरई चिरगुन चरथे,भींग भींग चारा।

चलथे  पुरवाही, हलथे  पाना  डारा।

छत्ता  खुमरी  मोरा,माड़े रइथे दुवारी।

सावन महीना के हे,महिमा बड़ भारी।

बस  छाथे मया हर,हर जंग हर जाथे।

सावन आथे त मन मा--------------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

शिव ल सुमर

 शिव भोला ल अइसनो पहली घाँव मनाये के प्रयास


शिव ल सुमर


रोग डर भगा जही। काल ठग ठगा जही।

पार भव लगा जही। भाग जगमगा जही।


काम झट निपट जही। दुक्ख द्वेष कट जही।

मान शान बाढ़ही। गुण गियान बाढ़ही।।


क्रोध काल जर जही। बैर भाव मर जही।

खेत खार घर रही। सुख सुकुन डहर रही।


आस अउ उमंग बर। जिंदगी म रंग बर।

भक्ति कर महेश के। लोभ मोह लेश के।


सत मया दया जगा। चार चांद नित लगा।

जिंदगी सँवारही। भव भुवन ले तारही।।


देव मा बड़े हवै। भक्त बर खड़े हवै।

रोज शाम अउ सुबे। भक्ति भाव मा डुबे।


नीलकंठ ला सुमर। बाढ़ही सुमत उमर।

तन रही बने बने। रेंगबे तने तने।।


सोमवार नित सुमर। नाच के झुमर झुमर।

हूम धूप दे जला। देव काटही बला।।


दूध बेल पान ले। पूज शिव विधान ले।

तंत्र मंत्र बोल के। भक्ति भाव घोल के।


फूल ले मुठा मुठा। सोय भाग ला उठा।

भक्ति तीर मा रही।शक्ति तीर मा रही।।


फूल फल दुबी चढ़ा। नारियल चँउर मढ़ा।

आरती उतार ले।धूप दीप बार ले।।


शिव पुकार रोज के। भक्ति भाव खोज के।

ओम ओम जाप कर।भूल के न पाप कर।।


भूत भस्म भाल मा। दे चुपर कपाल मा।

ओमकार जागही। भाग तोर भागही।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)

सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली। हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।

 सार छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


खुशी छाय हे सबो मुड़ा मा,बढ़े मया बरपेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।


रिचरिच रिचरिच बाजे गेंड़ी,फुगड़ी खो खो माते।

खुडुवा  खेले  फेंके  नरियर,होय  मया  के  बाते।

भिरभिर भिरभिर भागत हावय,बैंहा जोर सहेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली----।


सावन मास अमावस के दिन,बइगा मंतर मारे।

नीम डार मुँहटा मा खोंचे,दया  मया मिल गारे।

घंटी  बाजै  शंख सुनावय,कुटिया  लगे हवेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे  हवै हरेली-।


चन्दन बन्दन पान सुपारी,धरके माई पीला।

रापा  गैंती नाँगर पूजय,भोग लगाके चीला।

हवै  थाल  मा खीर कलेवा,दूध म भरे कसेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली-।


गहूँ पिसान ल सान मिलाये,नून अरंडी पाना।

लोंदी  खाये  बइला  बछरू,राउत पाये दाना।

लाल चिरैंया सेत मोंगरा,महकै फूल  चमेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के, हबरे हवै हरेली।


बेर बियासी के फदके हे,रँग मा हवै किसानी।

भोले बाबा आस पुरावय,बरसै बढ़िया पानी।

धान पान सब नाँचे मनभर,पवन करे अटखेली।

हरियर लुगरा पहिर ओढ़ के,हबरे हवै हरेली---।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

9981441795


हरेली तिहार के आप सबला सादर बधाई

साँप मनके पीरा(सार छंद)

 साँप मनके पीरा(सार छंद)


मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।

सबे खूँट सीमेंट छाय हे, ना साँधा ना छानी।।


जाके कती लुकावँव मैंहा, कोनो ठउर बतादौ।

भटकँव नही कहूँ कोती मैं, घर ला मोर सुखादौ।

रझरझ रझरझ गिरथे पानी, तरिया कुँवा भराथे।

मोर बिला भरका नइ बाँचे, पानी मा बुड़ जाथे।।

छत के घर मा सपटँव कइसे, दिख जाथँव आँखी मा।

उड़ा भगावँव कइसे दुरिहा, नइ हँव मैं पाँखी मा।

पानी बादर के बेरा मा, नित पेरावँव घानी-------।

मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।


कटत हवय नित जंगल झाड़ी, नइहे भोंड़ू भाँड़ी।

डिही डोंगरी परिया नइहे, देख जुड़ाथे नाड़ी।

लउठी धरे खड़े हावव सब, कइसे जान बचावौं।

आथँव ठिहा ठिकाना खोजत, चाबे बर नइ आवौं।

चाबे मा कतको मर जाथे, बिक्ख हवै बड़ मोरे।

देख डराथस मोला तैंहर,अउ मोला डर तोरे।

महुँला देवव ठिहा ठिकाना, मनुष आज के ज्ञानी।

मोर बिला मा भरगे पानी, मुश्किल मा जिनगानी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

किसान के कलपना

 गीत- 


किसान के कलपना


झड़ी बादर के बेरा,,,

डारे राहु केतु डेरा,,,,

संसो मा सरत सरी अंग हे।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।



फुतकी उड़त रद्दा हे, पाँव जरत हावै।

बिन पानी बादर पेड़ पात, मरत हावै।

चुँहे तरतर पछीना,,,,,,

का ये सावन महीना,,,,

दुःख के संग मोर ठने जंग हे----।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


आसाढ़ सावन हा, जेठ जइसे लागे।

तरिया नदियाँ घलो, मोर संग ठगागे।

हाय हाय होत हावै,,,

जम्मे जीव रोत हावै,,,

हरियर धरती के नइ रंग हे------।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।।


बूंद बूंद बरखा बर, मैंहर ललावौं। 

झटकुन आजा, दिन रात बलावौं। 

नइ गिरबे जब पानी,,,,,

कइसे होही किसानी,,,,

मोर सपना बरत बंग बंग हे----।

नइ जिनगी मा चिटिको उमंग हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday 14 August 2021

देशभक्ति

 

देशभक्ति

एक दिन के देश भक्ति (सरसी छन्द)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देशभक्ति चौदह के जागे, सोलह के छँट जाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


आय अगस्त महीना मा जब, आजादी के बेर।

देश भक्ति के गीत बजे बड़, गाँव शहर सब मेर।

लइका संग सियान मगन हे, झंडा हाथ उठाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


रँगे बसंती रंग म कोनो, कोनो हरा सफेद।

गावै हाथ तिरंगा थामे, भुला एक दिन भेद।

तीन रंग मा सजे तिरंगा, लहर लहर लहराय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


ये दिन आये सबझन मनला, बलिदानी मन याद।

गूँजय लाल बहादुर गाँधी, भगत सुभाष अजाद।

देशभक्ति के भाव सबे दिन, अन्तस् रहे समाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

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2, अपन देस(शक्ति छंद)


पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।

करौं बंदना नित करौं आरती।

बसे मोर मन मा सदा भारती।


पसर मा धरे फूल अउ हार मा।

दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।

बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।

सबो खूँट बगरे अँजोरी रहे।


बसे बस मया हा जिया भीतरी।

रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।

इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।

तभो  हे  घरो घर बिना बेंस के।

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चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।

सजाके बनावौं ग रानी सहीं।

किसानी करौं अउ सियानी करौं।

अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।


वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।

करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।

फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।

वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।

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जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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3, कइसे जीत होही(सार छंद)


हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी।

जे मन चाहै ये माटी हा,होवै चानी चानी----।


देश प्रेम चिटको नइ जानै,करै बैर गद्दारी।

भाई चारा दया मया ला,काटै धरके आरी।

झगरा झंझट मार काट के,खोजै रोज बहाना।

महतारी  ले  मया करै नइ,देवै रहि रहि ताना।

पहिली ये मन ला समझावव,लात हाथ के बानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


राजनीति  के  खेल निराला,खेलै  जइसे  पासा।

अपन सुवारथ बर बन नेता,काटै कतको आसा।

मातृभूमि के मोल न जानै,मानै सब कुछ गद्दी।

मनखे  मनके मन मा बोथै,जात पात के लद्दी।

फौज  फटाका  धरै फालतू,करै मौज मनमानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


तमगा  ताकत  तोप  देख  के,काँपै  बैरी  डर मा।

फेर बढ़े हे भाव उँखर बड़,देख विभीषण घर मा।

घर मा  ये  मन  जात  पात  के,रोज मतावै गैरी।

ताकत हावय हाल देख के,चील असन अउ बैरी।

हाथ  मिलाके  बैरी  मन ले,बारे  घर  बन छानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


खावय ये माटी के उपजे,गावय गुण परदेशी।

कटघेरा मा डार वतन ला,खुदे लड़त हे पेशी।

अँचरा फाड़य महतारी के,खंजर गोभय छाती।

मारय काटय घर वाले ला,पर ला भेजय पाती।

पलय बढ़य झन ये माटी मा,अइसन दुश्मन जानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी-----।


घर के बइला नाश करत हे, हरहा होके खेती।

हारे हन इतिहास झाँक लौ,इँखरे मन के सेती।

अपन देश के भेद खोल के,ताकत करथे आधा।

जीत भला  तब कइसे होही,घर के मनखे बाधा।

पहिली पहटावय ये मन ला,माँग सके झन पानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छग

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4, बलिदानी (सार छंद)


कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।

देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।

महतारी के आन बान बर,कोन ह झेले गोली।

कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।

छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।

हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।

मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।

हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।

देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।

अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।

हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।

देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।

पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।

भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।

लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।

डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारा   मारी।

अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।

बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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5, हमर तिरंगा(दोहा गीत)


लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।

इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।

हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।

नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।

जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।

सुबे  कहाँ  संसो  हवे, नइहे  संसो   रात।

महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।

इही--------------------------------- लाज।


उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।

भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।

गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।

उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।

का का मैं बतियाँव गा, गजब भरे हे राज।

लहर------------------------------लाज।


तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।

जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।

कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।

रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।

जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।

लहर-----------------------------लाज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


स्वतंत्रता दिवस अउ आठे तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई

Sunday 8 August 2021

अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस

 अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के आप सबला सादर बधाई


जंगल म बाँस के


जंगल  म  बाँस  के,

कइसे रहँव हाँस के।

खेवन खेवन खाँध खींचथे,

चीखथे सुवाद माँस के।

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सुरसा कस  बाढ़े।

अँकड़ू बन वो ठाढ़े।

डहर बाट ल लील देहे,

थोरको मन नइ माढ़े।

कच्चा म काँटा खूँटी,

सुक्खा म डर फाँस के।

--------------------------।


माते हे बड़ गइरी।

झूमै मच्छर बइरी।

घाम घलो घुसे नही,

कहाँ बाजे पइरी।

कइसे फूकँव बँसुरी,

जर धर साँस के---।


झुँझकुर झाड़ी डार जर,

काम के न फूल फर।

सताये साँप बिच्छी के डर,

इँहा मोला आठो पहर।

बिछे हवे काँदी कचरा,

बिजराय फूल काँस के।

--------------------------।


शेर भालू संग होय झड़प।

कोन सुने मोर तड़प।

आषाढ़ लगे नरक।

जाड़ जड़े बरफ।

घाम घरी के आगी,

बने कारण नास के।

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मोर रोना गूँजे गाना सहीं।

हवा चले नित ताना सहीं।

लाँघन भूँखन परे रहिथौं,

सुख दुर्लभ गड़े खजाना सहीं।

जब तक जिनगी हे,

जीयत हँव दुख धाँस के।

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रोजे देखथों बाँस के फूल।

जिथौं गोभे हिय मा शूल।

हमर पीढ़ी आगी कस खपगे।

परदेशिया मन आगे पनपगे,

नँगा लिस जल जंगल जमीन,

हम सबला झाँस के।

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पाना ल पीस पीस पी,

पेट के कीरा संग,

मोर पीरा घलो मरगे।

मोर बनाये चटई खटिया,

डेहरी म माड़े माड़े सरगे।

प्लास्टिक के जुग आगे,

सब लेवै समान काँस के।

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न कोयली न पँड़की,

झिंगरा नित झकझोरे।

नइ जानँव अँजोरी,

अमावस आसा टोरे।

न डाक्टर न मास्टर,

 मैं अड़हा जियौं खाँस खाँस के।

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जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)