Monday 30 December 2019

बहर-221 1222 221 1222

बहर-221 1222 221 1222

भुर्री के मजा लेलौ,बड़ जाड़ बढ़े हावै।
सूरज के पता नइहे,बेरा ह चढ़े हावै।।1

बरसात म बरसे जल,गर्मी म बियापे थल।
जुड़ जाड़ के मौसम ला,भगवान गढ़े हावै।2

खुद काम कहाँ करथे,बइमान बने लड़थे।
अपनेच अपन अँड़थे,वो काय पढ़े हावै।3

गिन के हे बने मनखे,जे मान रखे तन के।
नित झूठ कहे जेहर,वो दोष मढ़े हावै।।4

सब बात हवा मा हे,मुद्दा ह तवा मा हे।
बहकाव म आ जावै,कोनो न कढ़े हावै।5

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Wednesday 27 November 2019

सहभागिता

सहभागिता

         चाहे मनुष्य हो या कोई भी जीव जंतु सहभागिता के साथ ही सबका जीवन सुचारु रूप से गतिमान होता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है,जिनकी सहभागिता घर परिवार से होते हुए गांव,शहर,राज्य और देश-विदेश तक देखने को मिलती है। सहभागिता को तलाशा जाए तो छोटे से छोटे जीव भी एक दूसरे के कार्य में सहभागी होते है। चौमास के लिए खानपान की व्यवस्था में लगे चीटियों की लंबी कतार सहभागिता का एक सहज उदाहरण है ,जो अपने से भी दुगना भार ढोते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान पर परस्पर सहभागिता प्रदर्शित करते हुए एक झुंड में मेहनत करते नजर आते हैं।कभी कभी तो किसी बड़े चीज को भी एक साथ कई चींटियाँ मिलकर अपने गंतव्य स्थान पर ले जाते दिखतें हैं ,इस कार्य में चींटियों की सहभागिता और सामंजस्य सहज ही दिखाई देती हैं।लकड़ियों और मिट्टियों में पाये जाने वाले दिमाकों की सहभागिता भी किसी से छुपी नही है,वें हमेशा एक साथ रहते हुए अपने जीवन यापन करते है ,उनकी सहभागिता का प्रमाण उनके द्वारा बनाये गये मिट्टी के अद्वितीय छोटे बड़े खोह को देखकर लगाया जा सकता है।छोटा सा जीव और इतना अच्छा निर्माण,ये सब एक दूसरे के परस्पर सहभागिता को परिलक्षित करते हैं।
               ग्रीष्म काल में तप्त धरती आषाढ़ की बूंदों के साथ शीतल हो जाती है,और जब बरसात में पानी बरसता है,तो रातों को रागमय करते हुये झिगुरों के स्वर,झुंड में उड़ते या अपने अपने व्यवस्थित जगहों पर लटके चमगादड़, मस्ती में उफनती नदी,तालाबो में टर्राते मेंढ़कों और यत्र तत्र झुंड में नजर आते कीट पतंगें भी सहभागिता को प्रदर्शित करते नजर आते है।उजालों की ओर खींची चली आती हुई हजारों कीट पतंगों की झुंड में सहभागिता तो दिखती है पर उनका कार्य समझ से परे लगते हैं।जिसे देखकर ऐसा लगता है कि ये जीव जंतु सिर्फ अपने खानपान सम्बंधी कार्य ही नही बल्कि जीवन के सभी क्रियाकलापों में परस्पर सहभागी होते हैं।
           चिड़ियों में भी सहभगिता को सहज ही देखा जा सकता है।भले ही घोंसला बनाकर रहने वाली चिड़ियाँ अपने घोसलें में अकेले रहते है,और बच्चे आने के बाद,जब वे बड़े होते है,तो उनको छोड़कर चले जाते है,फिर भी झुंड में दाना चुगना,एक स्थान से दूसरे स्थान पर झुंड में जाना,झुंड में करलव करना,ये सब उनकी सहभागिता को दिखाती है।पक्षी आसमान में भी बेतर्तीत नही उड़ते,एक निश्चित आकार बनाकर किसी एक के नेतृत्व में नयनाभिराम दृश्य प्रदर्शित करते हुये,उड़ान भरते है।रात होते ही अपने अपने घोसलों में अपने सभी साथियों के साथ लौट जाना,अपने उचित स्थान पर विश्राम करना,और सुबह होते ही एक साथ करलव करते हुये जगना,साथ ही किसी पेड़ में जहाँ अनेको पक्षी विश्राम कर रहे होते है,वहाँ  किसी भी प्रकार का संकट आ जाने पर सबका परस्पर एक साथ सजग होकर निपटना आपसी सहभागिता ही तो है।सिर्फ सुख में ही नही दुख में भी इनकी सहभागिता बराबर नजर आती हैं।
कुछ पक्षियाँ तो विदेशो से भी भारत वर्ष में अनुकूल जगह तलाश करते हुये आते है,और अपना प्रजनन आदि क्रियाकलापो से निवृत्त होकर बच्चों के साथ पुनः अपने पुराने स्थान पर लौट जाते है।इस दौरान उन सब में प्रगाढ़ सहभागिता रहती है।एक साथ अनुकूल स्थान में आना,एक साथ रहना,एक साथ सारे कार्य करना और एक साथ अपने गंतव्य को चले जाना।भले उनकी कियाविधि,भाव भाषा हमारी समझ से परे हो पर उनकी कार्य, निर्णय,लक्ष्य,नियम और सहभागिता को नकारा नही जा सकता।
            जंगलो में यत्र तत्र कुलाँचे भरते हिरणों,हाथियों,जंगली भैसों और अन्य कई जानवरों के झुंड,सहज ही  विचरण करते हुये नजर आ जाते है।वें सब एक साथ खाते, पीते ,घूमते और आराम फरमाते है,साथ ही किसी भी संकटो से एकजुट होकर लड़ते है।ये सब उनकी सहभागिता का प्रबल पक्ष है।बन्दर भी हमेशा झुंड में रहते हैं और अपने सारे क्रियाकलाप झुंड में ही करते है।कहा जाता है कि झुंड से बिछुड़कर हाथी,खतरनाक हो जाता है,वैसे ही बन्दर भी अपने साथियों से अलग होकर नही रह पाता है।उनकी सहभागिता ही उनका जीवन है।भेड़,बकरी,गाये भैसें आदि भी अपनी भूख मिटाने और विपदाओं से निपटने के लिये परस्पर सभी कार्यों में सहभागी होकर चलते हैं।किसी भी नेतृत्व करने वाले सजातीय या अपने चरवाहे का ईमानदारी से अनुशरण करते है।
             पौराणिक कथा अनुसार त्रेता युग में तो वानरों ने ही भगवान श्री राम चन्द्र जी का ,माता सीता की खोज और लंका विजय में बहुमूल्य योगदान दिया था।बानरों ने ही मिलकर समुद्र में पुल बाँधा था।बानरों की सहभागिता से ही भगवान राम,रावण पर जीत हासिल किया था।यहाँ एक बात देखने वाली है कि जिस प्रकार चींटी,चींटी से,पक्षी पक्षी से व अन्य जानवर अपने ही सजातीय से अधिकतर सुख दुख व काम काज में सहभागी नजर आते है,पर वानर उस युग में मनुष्यों के सुख दुख के साथी बने थे।
           सहभागिता का एक उत्तम उदाहरण मधुमख्खियों में भी देखा जा सकता है।कहते है ,कि मधु बनाने में रानी मधुमक्खी के वचनानुसार बाकी सारे मधुमख्खी अपने अपने कार्य पूर्णतः सहभागिता दिखाते हुये निभाते है।फूलो से रस चूसना,छत्ते में एक निश्चित स्थान पर बैठना,किसी संकट का एक साथ निश्चित दल द्वारा सामना करना,ये सब उनकी आपसी सहभागिता का ही प्रमाण है।
            हमने ऊपर देखा कि छोटे से छोटे जीवों में भी सहभागिता होती है,फिर तो मनुष्य में न हो ये नामुमकिन है। मनुष्य को इस धरती का सबसे दिमाग वाला प्राणी माना जाता है,तभी तो मानव सहज रूप से ही सहभागिता समेटे सर्वत्र शोभायमान होते है।मनुष्य ही ऐसा प्राणी है,जो अपने,पराये,सजातीय,विजातीय आदि सबके सुख दुख में बराबर सहभागिता निभाते नजर आते है।बच्चें जन्म लेते ही तो किसी भी कार्य मे सहभागी नही होते है पर जैसे ही थोड़े बड़े होते है और खेलने कूदने लग जाते है ,तो वें पहली बार अपने साथियों के साथ खेल कूद में सहभागी बन जाते है।कई रचनात्मक खेल उनकी सहभागिता में संचालित होती है।बच्चों की खेलकूद में आपसी सहभागिता से उनको पूर्णानंद की प्राप्ति होती।कई खेल ऐसे भी निर्मित हो जाते है जो किसी विशेष बच्चे के सहभागिता बगैर संचालित भी नही होते हैं।पर दुखद आज शहरी क्षेत्रों या कुछ ग्रामीण क्षेत्रो में बच्चें मोबाइल या ऊँच नीच के भेद के बीच,या माँ बाप की इच्छा न होने या कई अन्य कारणों से इस सहभागिता से वंचित हो रहे हैं।जैसे जैसे बच्चे बड़े होते जाते है,उनकी सहभागिता की सीमा भी बढ़ती जाती है।घर से मुहल्ला,मुहल्ला से स्कूल,स्कूल से गाँव आदि आदि।
             बच्चे जब स्कूल जाते है तो उनकी सहभागिता स्कूल में भी परिलक्षित होती है।स्कूल के समस्त कार्यों और कार्यक्रमों में बच्चें बराबर सहभागी होते है।।भले ही आज बच्चें स्कूल में शारीरिक कार्य न करता हो पर पहले स्कूल के सारे कार्य विधार्थियो के उप्पर ही निर्भर था।सभी कार्यो में सभी विधार्थियों का बराबर सहयोग और सहभागिता नजर आती थी।
पढ़ाई के साथ साथ खेल- कूद,व्यायाम,काम,सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि आदि में बच्चें बराबर सहभागी होते थे।पहले की तरह कुछ प्रतिभावान बच्चें आज भी कुछ विशेष कार्य या खेलकूद के लिए न सिर्फ अपने  स्कूल में बल्कि अन्य स्कुलों के भी कार्यक्रमों में सहभागी होते है।जितनी सहभागिता शिक्षको की स्कूल के प्रति होती है,उतनी ही सहभागिता बच्चों की भी होती है।बच्चें स्कूल से ही छोटे-बड़े और कई प्रकार के कार्य में सहभागिता निभाने की कला सीखते है,जिससे वे आगे चलकर अपने आपको घर,गाँव,समाज,राज्य और देश के सभी नेक कार्यों में सहभागी बनाता है।
             घर में रहने वाले सभी सदस्यगण घर के प्रति सहभागी होते है।सभी सदस्यों के कार्य भले ही अलग अलग  हो सकते है पर मूल उद्देश्य घर में सबकी सहभागिता के साथ घर का समूल विकास होता है।इसी सहभागिता के चलते ही घर के सदस्यगण एक दूसरे के सुख दुख और घर में किसी भी कार्य के लिये सदैव तत्पर रहते है।चाहे घर की साफ सफाई हो,शान शौकत हो या घर वालों का कोई अन्य काम हो,आपसी सहभागिता से सब सुचारू रूप से संचालित होता है।आज तो घर में परिवारों की संख्या लगभग सीमित होने लगी है पर पहले सयुंक्त परिवार होता था।परिवार में बहुत लोग रहते थे,फिर भी इसी सहभागिता के चलते हँसते गाते परिवार वाले जिंदगी व्यतित करते थे।घर में होने वाले सभी कार्यों में सभी सदस्यगण बराबर सहभागिता निभाते थे।आज भी सबकी आपसी सामंजस्य और सहभागिता के चलते घर परिवार सुचारू रूप से संचालित हो रहे है।परिवार की मुख्या के अनुसार परिवार के सदस्य गण आपसी सहभागिता निभाते हुये परस्पर काम करते है।घर परिवार के प्रति प्रत्येक व्यक्ति की सहभागिता ही उस घर की तरक्की का द्योतक होता है।
              गाँवों में लगभग सभी त्योहार या कोई भी कार्यक्रम धूम धाम से मिलजुल कर मनाया जाता है।ऐसे सभी पर्वों में समस्त ग्रामवासियों की सहभागिता को सहज ही देख सकते है।सभी लोग पूर्णतः समर्पित होकर ऐसे पर्वों में सम्मिलित होते है,जिससे सबको आनंद की प्राप्ति होती है।कोई भी त्यौहार कई चरणों में या कई प्रकार के नियमों के साथ संचालित होता है,जिसे एक अकेला कुछ नही कर सकता,ऐसे में गाँव के सभी लोग अपनी अपनी दक्षता अनुसार संचालित होने वाली गतिविधियों में अपनी सहभागिता देकर कार्यक्रम या किसी भी पर्व को धूम धाम से मनाते है।सबका सहयोग और सहभागिता ही किसी भी कार्यक्रमों या पर्वों की सफलता का कारण होता है।
             कृषि कार्यों में भी सहभागिता को देखा जा सकता है।एक किसान अकेला पैदावार नही उपजा सकता,उनको कृषि कार्य में उनके परिवार वालो या मजदूरो या गाँव वालों की सहभागिता की जरूरत पड़ती है।जुताई,बोवाई,निंदाई,लुवाई,मिंसाई से लेकर मंडी ,बाजार तक उपज को पहुँचाने में घर वालों की समर्पित सहभागिता और अन्य व्यक्तियों या श्रम शक्तियों का सहयोग आवश्यक होता है।किसान अपने कार्यों को सम्पादित करने के बाद अन्य किसानों के कार्यो का भी सहभागी होते है।एक दूसरे का कार्य मिलजुल कर आपसी सहयोग और सद्भावना से पूर्ण करते है।खेतों में आने वाली आफतो  से भी सभी किसान फसलों की सुरक्षा में सहभागी होकर कार्य करते है।किसानों की इसी तरह की सद्भावना,सहयोग और सहभागिता ही रंग लाती है,जिससे फसलों के पैदावार में इजाफा होता है।आजकल देखा जा रहा है,की कई लोग अपने आपको बेरोजगार कहकर खुद को और सरकार को कोसते है,उनको भी चाहिए कि इस कृषि रूपी महायज्ञ में सहभागी बनकर अपने मेहनत और ज्ञान की आहुति दें।जिससे कृषि भूमि भारत का परचम सर्वत्र सर्वदा लहराते रहे।
           एक अकेला शैल्य चिकित्सक चाहे कितना भी अपने काम पर दक्ष क्यो न हो,उनको उनकी ऑपरेशन दल में अन्य लोगो की सहभागिता की आवश्यकता होती है।

             मनुष्य अनेकों जीव जंतुओं के कार्यों या मदद में भी सहभागी बन सकता है।और कई लोग बनते भी है।ब्रम्हांड में सभी जीवों का बराबर हक है,उनकी संरक्षण बहुत जरूरी है,आज कुछ जीव प्रतिकूल वातावरण के चलते विलुप्त हो रहे है ,तो कुछ लालची  मनुष्यों द्वारा खत्म कर दिया जा रहा है।ऐसे में मनुष्यों को ही आगे आना चाहिए,और समाज या सरकार द्वारा चलाये जा रहे ऐसे नेक कार्य में बढ़ चढ़ का भाग लेना चाहिये।जीवों के संरक्षण,संवर्धन और विकास में अपनी सहभागिता निभानी चाहिये।ताकि पारिस्थितिक सन्तुलन बने रहे।
              आज कई तरह की कुरीतियाँ समाज में व्याप्त है,जिसके उन्मूलन हेतू सरकार प्रयासरत है,इसमें भी सबको अपनी सहभागिता प्रदर्शित करनी चाहिए।क्योंकि हमारी समाजिक बुराइयों से लड़ने के लिये हमे ही आगे आना पड़ेगा।इसके लिए सबकी सहभागिता नितांत आवश्यक है।जिस तरह हम समाज के अच्छे कार्यों में  बढ़चढ का अपनी सहभागिता देते है,उसी तरह कुछ बुराइयां आज भी यथावत है,उसके उन्मूलन हेतु भी हमे अपनी सहभागिता निभानी चाहिये।हर नेक कार्यो में सभी मानवों का बराबर सहयोग जरूरी है,तभी समाज,राज्य,और देश का नाम रोशन होगा।
          प्रकृति द्वारा प्रदत्त निशुल्क उपहार जल,थल और वायु
आज मनुष्यो के कारनामो का भेंट चढ़ गया है।प्रकृति का मोहक रूप प्रदूषित हो चुका है।जंगल कट रहे है,वायु में जहरीली गैस विसर्जित हो रही है,नदियो,तलाबों का पानी जहर बन गया है।शुद्ध पानी,शुद्ध हवा,चिलचिलाती धूप में छाँव खोजने पर भी मिलना मुश्किल हो गया है।धरा पानी की आस में पाताल तक खुद चुका है।कई तरह की विपदा अकाल,बाढ़, भूकम्प बढ़ रही है।आज मनुष्य खुद को बनाने के लिए प्रकृति का बिगाड़ कर रहा है।पर्यावरण संरक्षण के लिए भी हम सबकी  सहभागिता आज की आवश्यकता है।पर्यावरण संरक्षण हेतु कार्य करने की जिम्मेदारी कुछ लोगो की नही,अपितु प्रत्येक मानव की है।सबको बढ़चढ़ का पेड़ लगाना चाहिये।जल,थल,वायु के संरक्षण हेतु सदैव तत्पर होकर हम सबको अपनी जिम्मेदारी मान कर इसके संरक्षण में सहभागिता निभानी चाहिये।
                        घर से निकलकर व्यक्ति अपने गाँव,समाज,राष्ट्र,जल,जमीन,जंगल आदि में भी अपनी सहभागिता प्रदर्शित करती है।किसी भी कार्य मे सहभागी होना व्यक्ति की मनःस्थिति और उसकी समर्पण को बताता है।सहभागिता थोपी नही जा सकती।व्यक्ति सहयोग के लिये बाध्य हो सकता है मगर सहभागिता के लिए नही।पर यह भी जरूरी है कि वह घर,परिवार के साथ साथ समाज,देश आदि के कार्य में भी सहभागी बने।क्योकि जीव जंतु भी अपने अपने कार्यो में अपने सजातियों के साथ मिलकर परस्पर सहभागिता निभाते हुये अपनी जिंदगी व्यतित करते है,तो फिर मनुष्य,मनुष्य के काम में सहभागी न बने तो लज्जापूर्ण बात होगी।सहभागिता ही मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी की श्रेणी में ले जाता हैं,क्योकि मनुष्य अपने गुण ज्ञान के दम पर ,सही गलत को परख कर अच्छे कार्यो में सहभागी बनते है।जो दायित्व या सहभागिता एक व्यक्ति का अपने परिवार के लिये होता है,उतनी ही सहभागिता देश,राज्य,समाज के लिए भी होनी चाहिये,नही तो क्या मनुष्य और क्या जानवर।

Tuesday 19 November 2019

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया

छत्तीसगढ़ी गजल

बहर-2122 2122 212

खोट धर झन खोद खाई फोकटे।
कर धरम बर झन लड़ाई फोकटे।1

शांति के संदेश बाँटै सब धरम।
कर न दूसर के बुराई फोकटे।2।

चक्ख ले नमकीन खारो अउ करू।
रोज के मेवा मिठाई फोकटे।3।।।।

बैर इरखा हे जिया मा तोर ता।
हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई फोकटे।4

सत सुमत धरके सदा सत काम कर।
छोड़ ठग जग के कमाई फोकटे।5।

जीव शिव सबके हे दुर्लभ जिंदगी।
काट झन बनके कसाई फोकटे।6

खैरझिटिया खोंचका झन खन कभू।
खुद के होही जग हँसाई फोकटे।7।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Monday 18 November 2019

महँगा होगे गन्ना(कुकुभ छंद)


महँगा होगे गन्ना(कुकुभ छंद)

हाट बजार तिहार बार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।
तभो किसनहा पातर सीतर,साँगर मोंगर हे धन्ना।

भाव किसनहा मन का जाने,सब बेंचे औने पौने।
पोठ दाम ला पावय भैया,खेती नइ जानै तौने।
बिचौलिया बन बिजरावत हे,सेठ मवाड़ी अउ अन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना----।

पारस कस हे उँखर हाथ हा,लोहा हर होवै सोना।
ऊँखर तिजोरी भरे लबालब,उना किसनहा के दोना।
होरी डोरी धरके घूमय,सज धज के पन्ना खन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।

हे हजार कुशियार खेत मा,तभो हाथ हावै रीता।
करम ठठावै करम करैया,होवै जग हँसी फभीता।
दुख के घन हा घन कस बरसे,तनमन हा जाथे झन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।

कमा घलो नइ पाय किसनहा,खातू माटी के पूर्ती।
सपना ला दफनावत दिखथे,सँउहत महिनत के मूर्ती।
देखव जिनगी के किताब ले,फटगे सब सुख के पन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको कोरबा

करजा छूट देहूं लाला


करजा छूट देहूँ लाला(गीत)

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।
तँय संसो झन कर,मोर मन नइहे काला।

मोर थेभा मोर बेटा,बेटी अउ सुवारी।
मोरेच जतने खेत खार,घर बन बारी।
येला छोड़ नइ पीयँव,कभू मैंहा हाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

तैंहा सोचत रहिथस,बिगाड़ होतिस मोरे।
घर बन खेत खार सब,नाँव होतिस तोरे।
नइ मानों मैहा हार,लोर उबके चाहे छाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

जब जब दुकाल पड़थे,तब तोर नजर गड़थे।
मोर ठिहा ठउर खेत ल,हड़पे के मन करथे।
नइ आँव तोर बुध म,झन बुन मेकरा जाला।
धान  लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

भूला जा वो दिन ला,जब तोर रहय जलवा।
अब जाँगर नाँगर हे,नइ चाँटन तोर तलवा।
असल खरतरिहा ले,अब पड़े हे पाला।
धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Saturday 26 October 2019

देवारी तिहार म पानी

देवारी मा पानी(तातंक छंद)

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।
कतको के सपना पउलागे,अइसन आफत आरी मा।

हाट बजार मा पानी फिरगे,दीया बाती बाँचे हे।
छोट बड़े बैपारी सबके,भाग म बादर नाँचे हे।
खुशी झोपड़ी मा नइ हावै,नइहे महल अटारी मा।
रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।

काम करइया मनके जाँगर,बिरथा आँसों होगे हे।
बिना लिपाये घर दुवार के,चमक धमक सब खोगे हे।
फुटे फटाका धमधम कइसे,चिखला पानी धारी मा।
रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा----।

चौंक पुराये का अँगना मा,काय नवा कपड़ा लत्ता।
काय सुवा का गौरा गौरी,तने हवे खुमरी छत्ता।
काय बरे रिगबिग दियना हा,कातिक केअँधियारी मा
रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।

पाके धान के कनिहा टुटगे,कल्हरत हे दुख मा भारी।
खेत खार अउ रद्दा कच्चा,कच्चा हे बखरी बारी।
मुँह किसान के सिलदिस बादर,भात ल देके थारी मा
रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Monday 9 September 2019

आल्हा छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



आल्हा छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

जय गजानन महाराज(गीत)

मुस्कावै गजराज गजानन,मुसुर मुसुर मुसवा के संग।
गली गली घर खोर म बइठे,घोरय दया मया के रंग।

तोरन ताव तने सब तीरन,चारो कोती होवै शोर।
हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बगरै सब्बो खूँट अँजोर।
लइका लोग सियान जमे के,मन मा छाये हवै उमंग।
मुस्कावै गजराज गजानन,मुसुर मुसुर मुसवा के संग।

संझा बिहना होय आरती,चढ़े रोज लड्डू के भोग।
करै कृपा देवाधी देवा,भागे दुख विपदा जर रोग।
चार हाथ मा शोभा पावै,बड़े पेट मुख हाथी अंग।
मुस्कावै गजराज गजानन,मुसुर मुसुर मुसवा के संग।

होवै जग मा पहिली पूजा,सबले बड़े कहावै देव।
ज्ञान बुद्धि बल धन के दाता,सिरजावै जिनगी के नेव।
भगतन मन ला पार लगावै,दुष्टन मन करे ग तंग।
मुस्कावै गजराज गजानन,मुसुर मुसुर मुसवा के संग।

छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

Monday 2 September 2019

सार छंद-आजा सजन(गीत)

आजा सजन(गीत)

दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।
लक्ष्मण रेखा लाँघत हावै, घर घर बइठे रावन।

घड़घड़ गरजे चमचम चमके, बादर घेरी बेरी।
का हो जाही कोन घड़ी मा, फड़के आँखी डेरी।
कइसे जिनगी मोर पहाही, संसो लागे खावन।
दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।

देखत देखत मोर सजन ला, नाड़ी हाथ जुड़ागे।
डंक साँप बिच्छू नइ मारे, काठ समझ के भागे।
सजन बिना बन बाग बगीचा, नइ लागे मनभावन।
दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।

नजर गड़त हे कतको झन के, देख अकेल्ला मोला।
आस लगा बिहना मैं जीथौं, साँझ मरे नित चोला।
नैन मुँदावय गला सुखावय, चेत लगे छरियावन।
दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)छत्तीसगढ़

Saturday 31 August 2019

पोरा तिहार



कुकुभ छंद-जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।
राँध ठेठरी खुरमी भजिया,करे हवै सबझन जोरा।

भादो मास अमावस के दिन,पोरा के परब ह आवै।
बेटी माई मन हा ये दिन,अपन ददा घर सकलावै।
हरियर धनहा डोली नाचै,खेती खार निंदागे हे।
होगे हवै सजोर धान हा,जिया उमंग समागे हे।
हरियर हरियर दिखत हवै बस,धरती दाई के कोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।1

मोर होय पूजा नइ कहिके,नंदी बइला हा रोवै।
भोला तब वरदान ल देवै,नंदी के पूजा होवै।
तब ले नंदी बइला मनके, पूजा होवै पोरा मा।
सजा धजा के भोग चढ़ावै,रोटी पीठा जोरा मा।
पूजा पाठ करे मिल सबझन,सुख पाये झोरा झोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।2

कथे इही दिन द्वापर युग मा,पोलासुर उधम मचाये।
मनखे तनखे बइला भँइसा,सबझन ला बड़ तड़पाये।
किसन कन्हैया हा तब आके,पोलासुर दानव मारे।
गोकुलवासी खुशी मनावै,जय जय सब नाम पुकारे।
पूजा ले पोरा बइला के,भर जावय उना कटोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।3

दूध भराये धान म ये दिन,खेत म नइ कोनो जावै।
परब किसानी के पोरा ये,सबके मनला बड़ भावै।
बइला मनके दँउड़ करावै,सजा धजा के बड़ भारी।
पोरा परब तिहार मनावय,नाचय गावय नर नारी।
खेले खेल कबड्डी खोखो,नारी मन भीर कसोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।4

बाबू मन बइला ले सीखे,महिनत अउ काम किसानी
नोनी मन पोरा जाँता ले,होवय हाँड़ी के रानी।
पूजा पाठ करे बइला के,राखै पोरा मा रोटी।
भरे अन्न धन सबके घर मा,नइ होवै किस्मत खोटी।
परिया मा मिल पोरा पटके,अउ पीटे बड़ ढिंढोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।5

सुख समृद्धि धन धान्य के,मिल सबे मनौती माँगे।
दुःख द्वेष ला दफनावै अउ,मया मीत ला उँच टाँगे।
धरती दाई संग जुड़े के,पोरा देवय संदेशा।
महिनत के फल खच्चित मिलथे,नइ तो होवै अंदेशा।
लइका लोग सियान सबे झन,पोरा के करै अगोरा।
सजे हवे माटी के बइला,माटी के जाँता पोरा।6

छंदकार-जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
पता-बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

पोरा(ताटंक छंद)

बने हवै माटी के बइला,माटी के पोरा जाँता।
जुड़े हवै माटी के सँग मा,सब मनखे मनके नाँता।

बने ठेठरी खुरमी भजिया,बरा फरा अउ सोंहारी।
नदिया बइला पोरा पूजै, सजा आरती के थारी।

दूध धान मा भरे इही दिन,कोई ना जावै डोली।
पूजा पाठ करै मिल मनखे,महकै घर अँगना खोली।

कथे इही दिन द्वापर युग मा,कान्हा पोलासुर मारे।
धूम मचे पोला के तब ले,मनमोहन सबला तारे।

भादो मास अमावस पोरा,गाँव शहर मिलके मानै।
हूम धूप के धुँवा उड़ावै,बेटी माई ला लानै।

चंदन हरदी तेल मिलाके,घर भर मा हाँथा देवै।
धरती दाई अउ गोधन के,आरो सब मिलके लेवै।

पोरा पटके परिया मा सब,खो खो अउ खुडुवा खेलै।
संगी साथी सबो जुरै अउ,दया मया मिलके मेलै।

बइला दौड़ घलो बड़ होवै,गाँव शहर मेला लागै।
पोरा रोटी सबघर पहुँचै,भाग किसानी के जागै।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया",
 बाल्को(कोरबा)

Monday 29 July 2019

जब एक राय होही

2212 122 2212 122
बूता बने तहूँ हा करबे त काय होही।
गिनहा डहर कहूँ तैं धरबे त बाय होही।1

रोटी ले जेन खेले अउ भेदभाव मेले।
फोकट लगाय नारा वो का भुखाय होही।2

तैं मार पीट करबे संसो फिकर मरबे।
खाके कसम मुकरबे तब हाय हाय होही।3

ये देश के सिपाही  मन लाय बर अजादी।
लड़ मर अबड़ सबे झन जाँगर खपाय होही।4

अँधियार खोर घर मा अउ डर भरे डहर मा।
फैलाय बर उजाला दीया जलाय होही।5

बस पेड़ एक ठन धर फोटू खिचाय कतको।
कइसे हमर बबा मन बिरवा लगाय होही।6

जब कोयली कुहुकही अउ रट लगाही मैना।
तब बाग अउ बगीचा मा फूल छाय होही।7

ये गाँव हे सुहावन,ये ठाँव हे सुहावन।
आके इहाँ मुरारी बँसुरी बजाय होही।8

बूता बड़े बड़े सब टर जाही खैरझिटिया।
जब काम धाम मा सबके एक राय होही।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Friday 19 July 2019

आ जा रे बादर

आजा बादर(गीत)

तैं बरसबे के नही बता बादर।
लगथे घुरघुरासी,
आथे बड़ रोवसी,
अब जादा झन तैं,सता बादर-----।

दर्रा  हनत  डोली  हे,धान  मरत हावे।
आके तैं जियादे,मोर आस जरत हावे।
कोठी काठा उन्ना हे,उन्ना हे बोरा बोरी।
घाम  बड़  टँड़ेरत  हे,धान  बरय  होरी।
उमड़ घुमड़ आएस,
तँय धान बोआएस,
अब नइ हे तोर पता बादर--------।

रहिरहि तोर नाँव,माई पिला रटत रहिथन।
आस  धर  तोरे ,खेत  म   खटत  रहिथन।
तोला गिरही कहिके,जिनगी के जुआ खेले हौं।
भर  जा  भले  घर मा,देख खपरा ल उसेले हौं।
तोर मान गौन करथों,
तोर पँवरी रोज परथों,
का होगे मोर ले खता बादर--------।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Friday 5 July 2019

गजल (मन)

छत्तीसगढ़ी गजल

बहर-(2122 2122 212)

कोन फुलवा रास आही का पता।
कोन हा मन ला लुभाही का पता।1।

काम मनके नित करे जिद मा अड़े।
कब ठिहा काखर जलाही का पता।2।

अरदली  मन के सुवा माने नही।
कब कते कोती उड़ाही का पता।3।

तान  डेना  लाँघथे  आगास  ला।
पिंजरा मा कब धँधाही का पता।4।

नित उठे मन मा लहर सागर  सहीं।
कब किनारा पार पाही का पता।5।

साज  पर  के देख लिगरी मा जरे।
आग कब कइसे बुझाही का पता।6।

पेट भर दाना चरे तभ्भो मरे।
खैरझिटिया काय खाही का पता।7।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Thursday 4 July 2019

बचपन बरसा मा(गीत)

बचपन बरसा मा(गीत)

बचपना हिलोर मारे रे,रिमझिम बरसात मा।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा......।

कागज के डोंगा बना धार मा,बोहावन।
घानी मूँदी खेलन,अड़बड़ मजा पावन।
पाछू पाछू भागन,देख फाँफा फुरफुंदी।
रहिरहि के भींगन, झटकारन बड़ चुंदी।
दया मया रहय,हमर बोली बात मा.......।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।

घर ले निकलन,ददा दाई ले बचके।
धार  ल  रोकन, माटी पथरा रचके।
तरिया  के पार में,बइठे गोटी फेंकन।
गोरसी के आगी में,हाथ गोड़ सेंकने।
मन रमे राहय,माटी गोटी पात मा........।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।

बरसा के बेरा,करे झक्कर झड़ी।
खेलेल  बुलाये,संगी साथी गड़ी।
रीता नइ राहन,हमन एको घड़ी।
खोइला मिठाये,भाये काँदा बड़ी।
सबे खुशी राहय,गाँव गली देहात मा....।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।

झूलन बंभरी मा,खेत खार जावन।
नदी पहाड़ खेलन,लोहा गड़ावन।
बिच्छल रद्दा मा, मनमाड़े उंडन।
माटी ह  गाँवे के,लागे जी कुंदन।
बिन माँगे मया मिले,वो दरी खैरात मा...।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

रथ यात्रा(गीत)

रथ यात्रा(गीत)

अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।
कृष्ण  सुभद्रा   देवी   बइठे,बइठे  हे  बलराम।

चमचम चमचम रथ हा चमके,ढम ढम बाजय ढोल।
जुरे  हवै  भगतन  बड़  भारी,नाम  जपे  जय  बोल।
झूल झूल के रथ सब खीँचय,करे कृपा भगवान।
गजा - मूंग  के  हे  परसादी,बँटत  हवे  पकवान।
तीनों भाई  बहिनी लागय,सुख के सुघ्घर घाम।
अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।

दूज अँसड़हूँ पाख अँजोरी,तीनों होय सवार।
भगतन मन ला दर्शन देवै,बाँटय मया दुलार।
सुख अउ दुख के आरो लेके,सबके आस पुराय।
भगतन मनके दुःख हरे बर,अरज दूज मा आय।
नाचत  गावत  मगन सबे हे, रथ के डोरी थाम।
अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Wednesday 3 July 2019

आसाढ़

*आषाढ़*

            लकलक लकलक जरत भुइयाँ मानसून के हबरे ले वइसने जुड़ हो जथे,जइसे कोनो भभकत अँगेठा या आगी म गघरा भर पानी उल्दा जथे।रिमझिम रिमझिम पानी जब आषाढ़ धरके आथे,तब सबले जादा खुशी किसान मन ल होथे।अउ काबर नइ होही?इही आषाढ़ म किसान मन अपन महिनत ले सपना रूपी धान के बिजहा ल धरती दाई के कोरा म छितथे।आसाढ़ के आय ले धरती महतारी हरियर सवांगा म सजगे मुसुर मुसुर मुस्कायेल लग जथे।डारा पाना पुरवाही म हाथ हला हला के नाचथे।बादर के गरजई घुमरई अउ कड़कड़ कड़कड़ बिजुरी किसान मन बर एक ताल के काम करथे,जेखर सुर ताल म किसान मन अपन जाँगर अउ नाँगर ल साज के धरती दाई के कोरा म,करमा ददरिया के तान छेड़त,ओहो तोतो के घुँघरू बजावत,मगन होके महिनत करत नाचथे।फेर आने मनखे मन बर आसाढ़ या मानसून सिर्फ गर्मी ले राहत आय।वो मन गर्मी ले हदास खा जथे,फेर किसान उही जरत,भभकत गरमी म,मानसून के रद्दा जोहत किसानी के जम्मो जोरा ल करथे।मेड़ पार अउ मुही ल बाँधना,खँचका-डिपरा ल बरोबर चालना,काँटा खूँटी ल बिनना,काँद दूबी ल खनना ये सबो बुता ल तो उही भभकत गर्मी म साजथे।अउ घर म घलो उही गर्मी म आषाढ़ के आये के पहली पैरा धरथे,परदा भाँड़ी म पंदोली देथे,बखरी बारी ल रंग रंग के साग भाजी बोय बर चतवारथे,नार बियार ल चढ़ाये बर ढेंखरा लानथे,चौमास बर लकड़ी छेना ल भितराथे,छानी परवा ल घलो उही गर्मी म छाथे।अइसन घर - बन के जम्मो बूता ल साध के किसान मन आशा के जोती बारे मॉनसून अउ आषाढ़ के अगोरा करथे।अउ जब पानी के पहिली बूँद मूड़ म परथे तब मार खुशी म नाचेल धर लेथे।ताहन का पूछना,भिनसरहा उठ के बइला ल खवा पिया के नाँगर धरके खेत कोती पाँव बढ़ाथे।बइला ल जब किसान भिनसरहा कोटना म पानी पियाथे तब ओखर गला के घण्टी अउ किसान के मुख ले निकले सुघ्घर सिसरी(सीटी) मनभावन लगथे।एखर आनंद उही ले सकथे जेन कभू गाँव म सुने होही या देखे होही।
           आसाढ़ म किसान सँग ओखर पूरा परिवार नाचत झूमत खेती किसानी म लग जथे।बाँवत के बेरा के वर्णन कोनो बढ़िया कैमरा ले फोटू खींचे कस लगथे।चारो मुड़ा खेत।खेत म सइमो-सइमो करत कमइया,टुकनी बोरी म माढ़े धान,हरिया भर नाँगर नाँस म बनत सुघ्घर कूँड़,बइला के गला के खनकत घण्टी,किसान के मुख ले बरसत करमा ददरिया अउ ओहो तोतो के आवाज,निंदईया महतारी मनके हाथ के खनकत चूड़ी,खार म रटत पपीहा,पड़की अउ तीतुर के सुघ्घर बोल मन ल मोह लेथे। नान्हे नान्हे लइका मन हाथ म कुदारी धरे मनमाड़े कूदत नाचत टोकन कोड़थे।ये सब दृश्य मन म अपार खुशी भर देथे।एखर आनंद भी उही मनखे उठा सकथे जेन बाँवत के बेरा म कभू सपड़े होही।लिख के कवि या लेखक घलो वो मनोरम दृश्य अउ आनंद ल नइ दे सकय।ये परम् आनंद के अनुभूति सिर्फ उही मेर मिल सकथे।कतको बूता करे कखरो तन मन म थकासी नइ दिखे।बिहनिया ले सँझा काम बूता म लगे किसान पाछू बरस के जम्मो दुख पीरा ल भुलाके आसाढ़ म नवा आस जगाके,जाँगर टोर महिनत करथे।
               आषाढ़ के पहली बारिस जब भुइयाँ  ल चुमथे तब माटी महतारी सौंधी महक म महकेल लग जथे।वो महक ल लिख के बया करना असंभव हे।उही पहली बारिस के संग भुइयाँ म पड़े जम्मो लमेरा,बन,बिजहा धीरे धीरे अपन आँखी उघारथे।जेमा रंग रंग के काँदी,चरोटा,लटकना,धनधनी, उरदानी,अउ छिंद,परसा, बोइर,आम,जाम,अमली,बम्हरी,कउहा,करंज,के फर पिकी फोड़के जागे बर धर लेथे। आषाढ़ मास म करिया करिया राय जाम पेड़ उप्पर कारी घटा कस दिखथे।लइका मन ओला टोरे बर टोली बनाके ए रुख ले वो चिल्लावत फेरा लगाथे।हाट बाजार म घलो ये फर अब्बड़ बिकथे।गाँव के गौठान म गरुवा गाय आषाढ़ के संग सकलायेल लगथे,काबर की डोली म धान पान बोवाथे।हरियर हरियर चारो मुड़ा चारा देखके गाय गरुवा के मन म घलो अपार खुशी होथे।गर्मी म लहकत लहकत दिन बिताये अउ सुख्खा काँद पात खाय के बाद आषाढ़ म हरियर चारा अउ पीये बर पानी सबो जघा गाय गरुवा म मिलेल लगथे।
            धरती दाई आषाढ़ म अपन नरी के पियास बुझावत ससन भर पानी पीथे। रझरझ रझरझ पानी बरसे ले तरिया,बाँधा, कुँवा बउली म पानी भरेल लग जथे।नरवा ,नँदिया,झरना,म धार बढ़ेल लगथे।चारो मुड़ा खोचका डबरा म पानी भर जथे।गली खोर म चिखला घलो मात जथे।कोनो साहब बाबू सूट बूट पहिरे चिखला पानी के डर ले पँवठा म पाँव मड़ावत धीर लगाके चलथे त उही म किसान मनखे बिन चप्पल के चभरंग चभरंग गीत गावत खुशी म बढ़थे।
लइका मन मनमाड़े खुशी म चिल्लावत चिल्लावत आषाढ़ के बरसा के मजा लेवत घड़ी घड़ी भींगथे।अउ रंग रंग के खेल खेलथे,गोल गोल घानी मूंदी घूमथे।बरसा के धार म पात पतउवा ल बोहा के थपड़ी पीटत अबड़ मजा करथे।फाँफा फुरफुन्दी के पाछू पाछू भागथे।अउ सबले खास बात जम्मो लइका मन खेलत खेलत "घानी मूंदी घोर दे,पानी दमोर दे कहिके"चिल्लावत फिरथे।इही मास म स्कूल घलो खुलथे।ममादाई के घर गरमी छुट्टी बिताये के बाद कापी बस्ता धरके फेर स्कूल म पढ़े लिखे बर जाथे।
      घुरवा,डबरा तरिया,नरवा,कुँवा,बउली के पानी म मछरी मन मेछरायेल लगथे।तरिया के घठोंदा बाढ़े बर धर लेथे।कहे के मतलब ये की तरिया म पानी भरे ले घाट घठोंदा उपरात जाथे।मेचका अउ झींगुर रट लगायेल लग जथे।बरसा के पानी पाके तलमलावत साँप, बिच्छी ,केकरा अउ कतको कीरा मकोड़ा अपन अपन बीला ले बाहिर निकलथे।पिरपिटी साँप जोथ्था जोथ्था इती उती देखे बर मिल जथे।ये मउसम म ये सब जीव मनके अब्बड़ डर रहिथे।कभू कभू घर कुरिया म घलो घूँस जथे।रंग रंग के कीरा ये मउसम म जघा जघा दिखथे।बउग बत्तर रतिहा अँजोर ल देख अब्बड़ उड़ियाथे।संगे संग रंग रंग के फाँफ़ा फुरफुन्दी घलो उड़थे।झिमिर झिमिर बरसत पानी म कौवा काँव काँव करत पाँख फड़फड़ावत छानी म बइठे रहिथे।त गौरइय्या ह दल के दल अँगना म बरसा म भींगत भींगत चिंव चिंव करत दाना चरथे।
        आषाढ़ ले सबला आस रहिथे।चाहे छोटे से छोटे जीव रहे या कोनो बड़का हाथी।आषाढ़ के बरखा सबला नवा जीवन देथे।आषाढ़ म किसान मन हम सबके पेट के थेभा धान के खेती करथे, उँखर महिनत ले ही सबके पेट बर दाना मिलथे।जइसे पेट भरे के बाद ही जीव मन आने काम ल सिधोथे वइसने खेती म ही दुनिया के आने सबो बूता टिके हवे।आषाढ़ आय के बाद किसान म अपन देवी देवता ल  मनाये  बर कतको अकन तिहार घलो मानथे।जेमा जुड़वास पहली तिहार होथे,जेन आषाढ़ मास के अँधियारी पाँख म अठमी के मनाये जाथे।ये दिन किसान मन अपन गाँव के शीतला दाई म तेल हरदी जघा के खेती किसानी अउ गाँव के समृद्धि बर बारम्बार पूजा अर्चना अउ वंदना करथे।ओखर बाद बारो महीना तीज तिहार के क्रम चलत रहिथे।हमर भारत भइयाँ म तिहार बार खेती के हिसाब ले चलथे।सावन महीना के हरेली ल पहली बड़का तिहार केहे जाथे।
आषाढ़ के बोहावत पानी  ल बचाये बर घलो हम सबला उदिम करना चाही ताकि भूजल  स्तर  म बढ़ोतरी होय,तरिया नदिया,बाँधिया म पानी भरे रहय। अउ बछर भर पानी के तंगई झन होय।आषाढ़ के बने बरसा बने किसानी के निसानी आय,अउ बने किसानी सुखमय जिनगानी के निसानी आय।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)

डार्क लाइन *बादर के गरजई घुमरई अउ कड़कड़ कड़कड़ बिजुरी किसान मन बर एक ताल के काम करथे,जेखर सुर ताल म किसान मन अपन जाँगर अउ नाँगर ल साज के धरती दाई के कोरा म,करमा ददरिया के तान छेड़त,ओहो तोतो के घुँघरू बजावत,मगन होके महिनत करत नाचथे।*

Monday 1 July 2019

हाकली छंद(बरसात)

हाकली छंद(बरसात)

रिमझिम रिमझिम जल बरसे,ताल तलैया बड़ हरसे।
गड़गड़ गड़गड़ नभ गरजे,लइका मन ला माँ बरजे।1

रहि रहि झड़ी म भींगत हे, घर भीतर नइ नींगत हे।
पथरा  ढेला  फेकत हे,माड़ी के  बल  टेकत हे।2।

हाँसत हे अउ गावत हे, अबड़ मजा सब पावत हे।
कुरता  पेंट सनाय  हवै,गढ्ढा  कोड़  बनाय  हवै।3।

खाये बिन एको कँवरा,ए चँवरा ले वो चँवरा।
घानी मूंदी घूमत हे,सब लइका बीच सुमत हे।4।

संगी साथी जुरमिल के,नाचत हे डोंगा ढिलके।
गिर गिर घेरी घाँव उठै,मीत मितानी मया गुथै।5

पाँख हलावत हे मयना,कँउवा के छिनगे चयना।
ठिहा उजरगे हे कतको,नइ सूखत हावय पटको।6

काँदी काँदा कुसा जगै,हरियर हरियर धरा लगै।
बूता  बाढ़े  हे अबड़े,बेर  किसानी  के  हबरे।7।

छानी परवा टपकत हे,गोड़ म लेटा चपकत हे।
फुरफूँदी बड़ उड़त हवै,फरा अँगांकर चुरत हवै।8

कतको धर बइठे तरवा, चूँहत हे छानी परवा।
मछरी पार म चढ़त हवै,बगुला मंतर पढ़त हवै।9

फाँदे हावय बबा गरी,नइ खावँव कहि जरी बरी।
चूल्हा बड़ गुँगवावत हे,झड़ी म घर मे दावत हे।10

सइमो सइमो खेत करे,बइला हरियर काँद करे।
घण्टी गर के बाजत हे,काम बुता मा सब रत हे।11

निकले बरसाती खुमरी,भाय ददरिया अउ ठुमरी।
बाढ़त हे दनदन थरहा,मजा करे बइला हरहा।12

टरटर मेंढक गावत हे,झींगुर राग लमावत हे।
बत्तर फाँफा मच्छर हे,बगरे बीमारी जर हे।13

किरा मकोड़ा के डर हे,करिया नागिन बिखहर हे।
बिच्छल सब्बो तीर हवै,धीर म भइया खीर हवै।14

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)


Thursday 13 June 2019

गजल (छत्तीसगढ़ी)बहर में

बहर-2122 1212 22

छत्तीसगढ़ी गजल

1,गर्मी जेठ के (गजल)

जेठ आगी बरत हवै भारी।
तन चटाचट जरत हवै भारी।1।

हाल बेहाल हे सबे झन के।
तन ले पानी झरत हवै भारी।2।

बैरी बनके सुरुज नरायण हा।
चैन सुख ला चरत हवै भारी।3।

झाँझ झोला घलो चले रहिरहि,
देख जिवरा डरत हवै भारी।4।

बांध तरिया दिखत हवै सुख्खा,
रोना जल बर परत हवै भारी।5।

डोले डारा चले न पुरवइया।
घर म भभकी भरत हवै भारी।6।

खैरझिटिया न खैर अब तोरे।
गर्मी दिन दिन फरत हवै भारी।7।

खैरझिटिया

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2,गजल(छत्तीसगढ़ी)

रात दिन मन खसर मसर होही।
ता भला का गुजर बसर होही।1।

हाथ आही चिटिक अकन कुछु हा।
अउ खइत्ता पसर पसर होही।2।

लोग लइका सगा दिही धोखा।
ता बने मन म का असर होही।3।

आदमी आदमी कहाही का।
मीत ममता मया कसर होही।4।

खैरझिटिया बचे नही काया।
जल बिना थल ठसर ठसर होही।5।

खैरझिटिया
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3,गजल(छत्तीसगढ़ी)

छल कपट मुँह उलाय झन भैया।
तोर सुरता भुलाय झन भैया।1।

देबे कुछु भी ठठा बजा देबे।
माँगे बेरा झुलाय झन भैया।2।

सुध बचा होश मा रबे हरदम।
पासा जइसे ढुलाय झन भैया।3।

झूठ मक्कार के जमाना हे।
कोनो तोला रुलाय झन भैया।4।

मार मालिस चघा चना मा जी।
फुग्गा कस फुलाय झन भैया।5।

फेंक चारा गरी फँसा कोई।
आ आ कहिके बुलाय झन भैया।6।

खोचका खन के खैरझिटिया गा।
सेज कहिके सुलाय झन भैया।7।

खैरझिटिया
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4,गजल(छत्तीसगढ़ी)

बात बानी सुने कहाँ कोई।
आज मनखे गुने कहाँ कोई।1।

अब फिकर जान के घलो नइहे।
जाल खुद बर बुने कहाँ कोई।2।

मन म इरखा दुवेस के बदरा।
मोह माया फुने कहाँ कोई।3।

कद अहंकार के बढ़े निसदिन।
फेर ओला चुने कहाँ कोई।4।

मरते रह भूख खैरझटिया।
तोर बर कुछु भुने कहाँ कोई।5।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझटिया"
बाल्को(कोरबा)
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5,,गजल(छत्तीसगढ़ी)

दुख दबाके चलेल लगही जी।
चोट खाके पलेल लगही जी।2।

भूख पर के भगाये बर तोला।
दार जइसन गलेल लगही जी।2।

काँपही रात मा जिया कखरो।
दीप बन तब जलेल लगही जी।3।

घाम अउ छाँव मान सुख दुख ला।
मन म दूनो मलेल लगही जी।4।

बैर रखके दिही दगा कोई।
बनके छलिया छलेल लगही जी।5।

मान सम्मान नइ मिले फोकट।
पाय बर तो फलेल लगही जी।6।

खैरझटिया खड़े रबे कब तक।
जीये बर तो हलेल लगही जी।7।

खैरझटिया

Wednesday 12 June 2019

काव्यांजलि

खुमान जी ल काव्यांजलि (चौपई छंद)

धान कटोरा के दुबराज,कइसे दुबके तैंहर आज।
सुसकत हावय सरी समाज,रोवय तोर साज अउ बाज।1।

चंदैनी गोदा मुरझाय,संगी साथी मुड़ी ठठाय।
तोर बिना दुच्छा संगीत,लेवस तैं सबके मन जीत।2।

हारमोनियम धरके हाथ,तबला ढोलक बेंजो साथ।
बाँटस मया दया सत मीत,गावस बने मजा के गीत।3।

तोर दिये जम्मो संगीत,हमर राज के बनके रीत।
सुने बिना नइ जिया अघाय,हाय साव तैं कहाँ लुकाय।4।

झुलथस नजर नजर मा मोर,काल बिगाड़े का जी तोर।
तोर कभू नइ नाम मिटाय,सातो जुग मा रही लिखाय।5।

तोर पार ला पावै कोन,तैंहर पारस अउ तैं सोन।
मस्तुरिहा सँग जोड़ी तोर,देय धरा मा अमरित घोर।6।

तोर उपर हम सबला नाज,शासन ले हे बड़े समाज।
माटी गोंटी मुरुख सकेल,खेलन दे देखावा खेल।7।

गाँव ठेकवा के शमशान,गा गा कहे खुमान खुमान।
धन धन धरा ठेकवा धाम,होय जिहाँ सुर म सुबे शाम।8।

सबके अन्तस् मा दे घाव,बसे सरग मा दुलरू साव।
सच्चा छत्तीसगढ़िया पूत,शारद मैया के तैं दूत।9।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
खैरझिटी, राजनांदगांव(छग)
9981441795

Sunday 5 May 2019

हिजगा पारी

हिजगा(दोहा-चौपाई)

*हिजगा पारी के कथा,कहत हवँव मैं आज।*
*कहत कहत मोला घलो,आवत हे बड़ लाज।*

एक ददा के दू हे टूरा,दोनों झन बड़ धरहा छूरा।
पटे नही दोनों के तारी,करें एक दूसर के चारी।।

एक मंगलू एक छगन हे,अपन अपन मा दुनों मगन हे
एके हे घर बखरी बारी,करे काम बस हिजगा पारी।।

फ्रीज रेडियो मोटर गाड़ी,लेवय दोनों हिजगा पारी।
जइसन करनी करे एक झन,तइसन होवै दूसर के मन।

उँखर समझ आये ना चक्कर,दोनों मा काँटा के टक्कर।
करे गरब धन हाड़ मास मा,होय फभित्ता आस पास मा।

बर बिहाव का मरनी हरनी,एके रहै दुनों के करनी।
ओढ़े देखावा के चोला,लेवय तम बम बारुद गोला।

देखावा मा पइसा फेके, लड़े भिड़े बर रोजे टेके।
मान गौन सँग धन अउ दउलत,हिजगा पारी मा हे पउलत।

मन मा रखके हिजगा पारी,देय एक दूसर ला गारी।
ददा धरे सिर दुखी मनाये, कोन दुनों झन ला समझाये।

तड़फै कभू ददा पसिया बर,कभू खाय रँगरँग टठिया भर।
कभू झुलावै दुनों हिंडोला,कभू गिरावय दुख के गोला।

हरहर कटकट रोजे ताये,देख ददा दुख प्राण गँवाये।
तभो दुनों ना हिजगा छोड़े,कुवाँ एक दूसर बर कोड़े।

*परलोकी दाई ददा,रिस्ता नत्ता तोड़।*
*हिजगा पारी मा तिरै, भाई भाई गोड़।*

धन अउ धान सबे झट उरके,दुनों एक दूसर ले कुड़के।
लड़े भिड़े जादा अउ खुल के,बोरों दोनों नाँव ल कुल के।

लइका मन मा अवगुण आये,देख दुनों झन दुखी मनाये।
खुदे बार डारिस हे घर ला,का बद्दी दे पाही पर ला।

लइका मन हा बनगे लावा,अब का चिंता अउ पछतावा।
करे काम ला मातु पिता के,जोरे लकड़ी उँखर चिता के।

हिजगा पारी काय काम के,घर बन बारे द्वेष थाम के।
सुख ले जिनगी जीना चाही,मया पिरित सत पीना चाही।

हिजगा पारी के बीमारी,अच्छा नोहे जी सँगवारी।
छोडों झगड़ा झंझट चारी,दया मया धर बध लौ यारी।

छगन मंगलू झन होवव जी,इरसा द्वेष म झन खोवव जी।
चारी  चुगली  द्वेष  लबारी,छोड़व भैया हिजगा पारी।

*हिजगा पारी ला धरे,जेन जेन मेछराय।*
*तेखर नइया एक दिन,बीच धार बुड़ जाय।*

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795

Friday 5 April 2019

नवा बछर,चैत नवरात्री

नवा बछर (सार छंद)

फागुन के  रँग कहाँ उड़े हे, कहाँ  उड़े हे मस्ती।
नवा बछर धर चैत हबरगे,गूँजय घर बन बस्ती।

चैत  चँदैनी  चंदा चमकै,चमकै  रिगबिग जोती।
नवरात्री के पबरित महिना,लागै जस सुरहोती।
जोत जँवारा  तोरन  तारा,छाये चारों कोती।
झाँझ मँजीरा माँदर बाजै,झरै मया के मोती।
दाई  दुर्गा  के  दर्शन ले,तरगे  कतको  हस्ती।
फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।

कोयलिया बइठे आमा मा,बोले गुरतुर बोली।
परसा  सेम्हर  पेड़  तरी  मा,बने  हवै रंगोली।
साल लीम मा पँढ़री पँढ़री,फूल लगे हे भारी।
नवा  पात धर नाँचत हावै,बाग बगइचा बारी।
खेत खार अउ नदी ताल के,नैन करत हे गस्ती।
फागुन  के रँग कहाँ उड़े  हे,कहाँ  उड़े हे मस्ती।

बर  खाल्हे  मा  माते पासा, पुरवाही मन भावै।
तेज बढ़ावै सुरुज नरायण,ठंडा जिनिस सुहावै।
अमरे बर आगास गरेरा,रहि रहि के उड़ियावै।
गरती चार चिरौंजी कउहा,मँउहा बड़ ममहावै।
लाल कलिंदर ककड़ी खीरा,होगे हावै सस्ती।
फागुन के रँग कहाँ उड़े हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।

खेल मदारी नाचा गम्मत,होवै भगवत गीता।
चना गहूँ सरसो घर आगे,खेत खार हे रीता।
चरे  गाय गरुवा मन मनके,घूम घूम के चारा।
बर बिहाव के बाजा बाजै,दमकै गमकै पारा।
चैत अँजोरी नवा साल मा,पार लगे भव कस्ती।
फागुन के रँग  कहाँ  उड़े  हे,कहाँ उड़े हे मस्ती।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरखिटिया"
बाल्को(कोरबा)

नवरात्री अउ नवा बछर के अन्तस् ले बधाई,सादर नमन🌷🌷🌷🌷🌷

Sunday 31 March 2019

चंदा,विरह गीत(सार छंद)

विरह गीत(सार छंद)

तोर  रूप  दगहा  हे  चंदा,तभो  लुभाये  सबला।
मोर रूप हा चमचम चमकै,तबले तड़पौ अबला।

तोर कला ले मोर कला हा,हावै कतको जादा।
तभो मोर परदेशी बलमा,कहाँ निभाइस वादा।
चकवा रटन लगाये तोरे,मोर पिया दुरिहागे।
करधन ककनी बिछिया कँगना,रद्दा देख खियागे।
मोर रुदन सुन सुर ले भटके,बेंजो पेटी तबला।
तोर  रूप  दगहा  हे चंदा,तभो लुभाये सबला।

पाख अँजोरी अउ अँधियारी,घटथस बढ़थस तैंहा।
मया जिया मा हावै आगर,करौं बता का मैंहा।
कहाँ हिरक के देखे तभ्भो,मोर सजन अलबेला।
धीर धरे हँव आही कहिके,लाद जिया मा ढेला।
रोवै नैना निसदिन मोरे,भला गिनावौ कब ला?
तोर  रूप  दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।

पथरागेहे आँखी मोरे,निंदिया घलो गँवागे।
मोर रात दिन एक बरोबर,रद्दा जोहँव जागे।
तोर संग चमके रे चंदा,कतको अकन चँदैनी।
मोर मया के फुलुवा झरगे,पइधे माहुर मैनी।
जिया भीतरी बार दियना,रोज मनाथँव रब ला।
तोर  रूप  दगहा  हे  चंदा,तभो लुभाये सबला।

अबक तबक नित आही कहिके,मन ला धीर धरावौ।
आजा  राजा  आजा  राजा,कहिके  रटन  लगावौ।
पवन पेड़ पानी पंछी सब,रहिरहि के बिजराये।
कइसे करौं बता रे चंदा,पिया लहुट नइ आये।
काड़ी कस काया हा होगे,कपड़ा होगे झबला।
तोर  रूप  दगहा  हे चंदा,तभो लुभाये सबला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Saturday 23 March 2019

बलिदानी

बलिदानी (सार छंद)

कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।
देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।
महतारी के आन बान बर,कोन हा झेले गोली।
कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।
छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।
हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।
मुड़ी हिलामय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।
हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।
देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।
अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।
हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।
देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।
पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।
भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।
लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।
डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारी   मारी।
अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।
बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

शहीद दिवस,अमर रहे🙏💐

Saturday 9 February 2019

बसंत पंचमी (रोला छंद)

रितु बसंत(रोला छंद)

गावय  गीत बसंत,हवा मा नाचे डारा।
फगुवा राग सुनाय,मगन हे पारा पारा।
करे  पपीहा  शोर,कोयली  कुहकी पारे।
रितु बसंत जब आय,मया के दीया बारे।

बखरी  बारी   ओढ़,खड़े  हे  लुगरा  हरियर।
नँदिया नरवा नीर,दिखत हे फरियर फरियर।
बिहना जाड़ जनाय,बियापे  मँझनी बेरा।
अमली बोइर  आम,तीर लइकन के डेरा।

रंग  रंग  के साग,कढ़ाई  मा ममहाये।
दार भात हे तात,बने उपरहा खवाये।
धनिया  मिरी पताल,नून बासी मिल जाये।
खावय अँगरी चाँट,जिया जाँ घलो अघाये।

हाँस हाँस के खेल,लोग लइका मन खेले।
मटर  चिरौंजी  चार,टोर  के मनभर झेले।
आमा  अमली  डार, बाँध  के  झूला  झूलय।
किसम किसम के फूल,बाग बारी मा फूलय।

धनिया चना मसूर,देख के मन भर जावय।
खन खन करे रहेर,हवा सँग नाचय गावय।
हवे  उतेरा  खार, लाखड़ी  सरसो अरसी।
घाम घरी बर देख,बने कुम्हरा घर करसी।

मुसुर मुसुर मुस्काय,लाल परसा हा फुलके।
सेम्हर हाथ हलाय,मगन हो मन भर झुलके।
पीयँर  पीयँर   पात,झरे  पुरवा आये तब।
मगन जिया हो जाय,गीत पंछी गाये तब।

माँघ पंचमी होय,शारदा माँ के पूजा।
कहाँ पार पा पाय,महीना कोई दूजा।
ढोल नँगाड़ा झाँझ,आज ले बाजन लागे।
आगे  मास बसन्त,सबे कोती सुख छागे।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छ्ग)

जय माँ शारदे,,,बसंत पंचमी की ढेरों बधाइयाँ💐💐💐💐

Sunday 20 January 2019

छेरछेरा

छेरछेरा

दान अन्न धन के कर लौ गा,सुनके छेरिक छेरा।
जतके देहू  ततके बढ़ही,धन  दउलत शुभ बेरा।

पूस पाख मा पुन्नी के दिन,बगरे नवा अँजोरी।
परब  छेरछेरा  हा  आँटे,मया पिरित के डोरी।
धिनक धिनक धिन ढोलक बाजे,डंडा ताल सुनाये।
लइका  लोग  सियान  सबो मिल,नाचे  गाना  गाये।
थपड़ी कुहकी झाँझ मँजीरा,सुन छूटय दुख घेरा।
दान अन्न धन के कर लौ  गा,सुनके छेरिक छेरा।

दया  मया  सागर  लहरावै,नाचे जीवन नैया।
गोंदा गमकत हे अँगना मा,मन भावै पुरवैया।
जोरा करके जाड़ ह जाये,माँघ नेवता पाये।
बर पीपर हा पात गिराये,आमा हा मँउराये।
सेमी  गोभी  भाजी  निकले ,झूले  मुनगा  केरा।
दान अन्न धन के कर लौ गा,सुनके छेरिक छेरा।

भिक्षा  माँगव  मया  घोर के,दान  देव बन दाता।
भरे अन्न धन मा कोठी ला,सब दिन धरती माता।
राँध  कलेवा  खाव बाँट के,रिता रहे झन थारी।
झारव इरसा द्वेष बैर ला,टारव मिल अँधियारी।
सइमों  सइमों  करे खोर हा,सइमों  सइमों डेरा।
दान अन्न धन के कर लौ गा,सुनके छेरिक छेरा।

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Saturday 19 January 2019

छेरछेरा

          छेरछेरा(सार छंद)

कूद  कूद के कुहकी पारे,नाचे   झूमे  गाये।
चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।

पाख अँजोरी  पूस महीना,आवय छेरिक छेरा।
दान पुन्न के खातिर अड़बड़,पबरित हे ये बेरा।

कइसे  चालू  होइस तेखर,किस्सा  एक  सुनावौं।
हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।

युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर  के  द्वारे।
राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।

आठ साल बिन राजा के जी,काटे दिन फुलकैना।
हैहय    वंशी    शूर  वीर   के ,रद्दा  जोहय   नैना।

सबो  चीज  मा हो पारंगत,लहुटे  जब  राजा हा।
कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।

राजा अउ रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।
राज रतनपुर  हा मनखे मा,मेला असन भराये।

सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।
रहे  पूस  पुन्नी  के  बेरा,खुले रहे दरवाजा।

कोनो  पाये रुपिया पइसा,कोनो  सोना  चाँदी।
राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।

राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।
पूस  महीना  के  ये  बेरा, सबके  झोली भरबों।

ते  दिन  ले ये परब चलत हे, दान दक्षिणा होवै।
ऊँच नीच के भेद भुलाके,मया पिरित सब बोवै।

राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो होय ये जोरा।
कोसलपुर   माटी  कहलाये, दुलरू  धान  कटोरा।

मिँजई कुटई होय धान के,कोठी हर भर जावै।
अन्न  देव के घर आये ले, सबके मन  हरसावै।

अन्न दान तब करे सबोझन,आवय जब ये बेरा।
गूँजे  सब्बे  गली  खोर मा,सुघ्घर  छेरिक छेरा।

टुकनी  बोहे  नोनी  घूमय,बाबू मन  धर झोला।
देय लेय मा ये दिन सबके,पबरित होवय चोला।

करे  सुवा  अउ  डंडा  नाचा, घेरा गोल  बनाये।
झाँझ मँजीरा ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।

दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।
हरे  बछर  भरके  तिहार  ये,छेरिक  छेरा  गा  लौ।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)