बहर-2122 1212 22
छत्तीसगढ़ी गजल
1,गर्मी जेठ के (गजल)
जेठ आगी बरत हवै भारी।
तन चटाचट जरत हवै भारी।1।
हाल बेहाल हे सबे झन के।
तन ले पानी झरत हवै भारी।2।
बैरी बनके सुरुज नरायण हा।
चैन सुख ला चरत हवै भारी।3।
झाँझ झोला घलो चले रहिरहि,
देख जिवरा डरत हवै भारी।4।
बांध तरिया दिखत हवै सुख्खा,
रोना जल बर परत हवै भारी।5।
डोले डारा चले न पुरवइया।
घर म भभकी भरत हवै भारी।6।
खैरझिटिया न खैर अब तोरे।
गर्मी दिन दिन फरत हवै भारी।7।
खैरझिटिया
--------------------------------
2,गजल(छत्तीसगढ़ी)
रात दिन मन खसर मसर होही।
ता भला का गुजर बसर होही।1।
हाथ आही चिटिक अकन कुछु हा।
अउ खइत्ता पसर पसर होही।2।
लोग लइका सगा दिही धोखा।
ता बने मन म का असर होही।3।
आदमी आदमी कहाही का।
मीत ममता मया कसर होही।4।
खैरझिटिया बचे नही काया।
जल बिना थल ठसर ठसर होही।5।
खैरझिटिया
–---------------------------
3,गजल(छत्तीसगढ़ी)
छल कपट मुँह उलाय झन भैया।
तोर सुरता भुलाय झन भैया।1।
देबे कुछु भी ठठा बजा देबे।
माँगे बेरा झुलाय झन भैया।2।
सुध बचा होश मा रबे हरदम।
पासा जइसे ढुलाय झन भैया।3।
झूठ मक्कार के जमाना हे।
कोनो तोला रुलाय झन भैया।4।
मार मालिस चघा चना मा जी।
फुग्गा कस फुलाय झन भैया।5।
फेंक चारा गरी फँसा कोई।
आ आ कहिके बुलाय झन भैया।6।
खोचका खन के खैरझिटिया गा।
सेज कहिके सुलाय झन भैया।7।
खैरझिटिया
--------------------------
4,गजल(छत्तीसगढ़ी)
बात बानी सुने कहाँ कोई।
आज मनखे गुने कहाँ कोई।1।
अब फिकर जान के घलो नइहे।
जाल खुद बर बुने कहाँ कोई।2।
मन म इरखा दुवेस के बदरा।
मोह माया फुने कहाँ कोई।3।
कद अहंकार के बढ़े निसदिन।
फेर ओला चुने कहाँ कोई।4।
मरते रह भूख खैरझटिया।
तोर बर कुछु भुने कहाँ कोई।5।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझटिया"
बाल्को(कोरबा)
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5,,गजल(छत्तीसगढ़ी)
दुख दबाके चलेल लगही जी।
चोट खाके पलेल लगही जी।2।
भूख पर के भगाये बर तोला।
दार जइसन गलेल लगही जी।2।
काँपही रात मा जिया कखरो।
दीप बन तब जलेल लगही जी।3।
घाम अउ छाँव मान सुख दुख ला।
मन म दूनो मलेल लगही जी।4।
बैर रखके दिही दगा कोई।
बनके छलिया छलेल लगही जी।5।
मान सम्मान नइ मिले फोकट।
पाय बर तो फलेल लगही जी।6।
खैरझटिया खड़े रबे कब तक।
जीये बर तो हलेल लगही जी।7।
खैरझटिया
छत्तीसगढ़ी गजल
1,गर्मी जेठ के (गजल)
जेठ आगी बरत हवै भारी।
तन चटाचट जरत हवै भारी।1।
हाल बेहाल हे सबे झन के।
तन ले पानी झरत हवै भारी।2।
बैरी बनके सुरुज नरायण हा।
चैन सुख ला चरत हवै भारी।3।
झाँझ झोला घलो चले रहिरहि,
देख जिवरा डरत हवै भारी।4।
बांध तरिया दिखत हवै सुख्खा,
रोना जल बर परत हवै भारी।5।
डोले डारा चले न पुरवइया।
घर म भभकी भरत हवै भारी।6।
खैरझिटिया न खैर अब तोरे।
गर्मी दिन दिन फरत हवै भारी।7।
खैरझिटिया
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2,गजल(छत्तीसगढ़ी)
रात दिन मन खसर मसर होही।
ता भला का गुजर बसर होही।1।
हाथ आही चिटिक अकन कुछु हा।
अउ खइत्ता पसर पसर होही।2।
लोग लइका सगा दिही धोखा।
ता बने मन म का असर होही।3।
आदमी आदमी कहाही का।
मीत ममता मया कसर होही।4।
खैरझिटिया बचे नही काया।
जल बिना थल ठसर ठसर होही।5।
खैरझिटिया
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3,गजल(छत्तीसगढ़ी)
छल कपट मुँह उलाय झन भैया।
तोर सुरता भुलाय झन भैया।1।
देबे कुछु भी ठठा बजा देबे।
माँगे बेरा झुलाय झन भैया।2।
सुध बचा होश मा रबे हरदम।
पासा जइसे ढुलाय झन भैया।3।
झूठ मक्कार के जमाना हे।
कोनो तोला रुलाय झन भैया।4।
मार मालिस चघा चना मा जी।
फुग्गा कस फुलाय झन भैया।5।
फेंक चारा गरी फँसा कोई।
आ आ कहिके बुलाय झन भैया।6।
खोचका खन के खैरझिटिया गा।
सेज कहिके सुलाय झन भैया।7।
खैरझिटिया
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4,गजल(छत्तीसगढ़ी)
बात बानी सुने कहाँ कोई।
आज मनखे गुने कहाँ कोई।1।
अब फिकर जान के घलो नइहे।
जाल खुद बर बुने कहाँ कोई।2।
मन म इरखा दुवेस के बदरा।
मोह माया फुने कहाँ कोई।3।
कद अहंकार के बढ़े निसदिन।
फेर ओला चुने कहाँ कोई।4।
मरते रह भूख खैरझटिया।
तोर बर कुछु भुने कहाँ कोई।5।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझटिया"
बाल्को(कोरबा)
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5,,गजल(छत्तीसगढ़ी)
दुख दबाके चलेल लगही जी।
चोट खाके पलेल लगही जी।2।
भूख पर के भगाये बर तोला।
दार जइसन गलेल लगही जी।2।
काँपही रात मा जिया कखरो।
दीप बन तब जलेल लगही जी।3।
घाम अउ छाँव मान सुख दुख ला।
मन म दूनो मलेल लगही जी।4।
बैर रखके दिही दगा कोई।
बनके छलिया छलेल लगही जी।5।
मान सम्मान नइ मिले फोकट।
पाय बर तो फलेल लगही जी।6।
खैरझटिया खड़े रबे कब तक।
जीये बर तो हलेल लगही जी।7।
खैरझटिया