Saturday 22 July 2017
हरेली तिहार
हरेली हरियर हरियर
दिखे खेत-खार हरियर।
डोंगरी पहाड़ हरियर ।
मन होगे बरपेली,
हरियर -हरियर।
आय हे हरेली,
हरियर-हरियर।।
खोंच लेना डारा ,
निमवा के डेरउठी म।
चढ़ के देख एक घांव,
गेड़ी के पंऊठी म।
बड़ मजा आही,
मन ह हरसाही।
नहा-खोर हुम दे दे,
पानी फरिहर-फरिहर।।।।
आय हे हरेला...........।
हे थारी म चीला,
जुरे हवय माई-पिला।
धोके नांगर-जुड़ा।
गेड़ी मचे टुरा।
माड़े टँगिया-बसला आरी।
चढ़े पान फूल-सुपारी।
चढ़ा बंदन-चन्दन,
फोड़ ठक-ठक नरियर।।।।
आय हे हरेला...........।
हे महुतुर तिहार के,
संसो-फिकर ल टार के।
मानव धरती दाई ल,
डारा-पाना रुख-राई ल।
थेभा मा किसानी के
सरी चीज हर।।
आय हे...........।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
आप सबोझन ल हरेली तिहार के बधाई🌺🌺🌺🌺
Thursday 20 July 2017
तिहार देख ले
तिहार देख ले आ हमर गांव के, तिहार देख ले। सुग्घर लीपे-पोते, घर दुवार देख ले। काय हरे हरेली, काय हरे तीजा - पोरा। कोन-कोन तिहार बर, कइसन होथे जोरा। झूमय नाचे सबो झन,मिंझरे पिंयार देख ले। आ हमर गांव के , तिहार देख ले।1 राखी पुन्नी सवनाही , सोम्मारी कमरछठ। राँध खीर बरा-सोंहारी , खाथे सबो छक। झूलना झूलेआठे-कन्हैया, मिंयार देख ले। आ हमर गांव के,तिहार देख ले।2 मुसवा संग मुस्काये, गली-गली गनपति। जस गाये दाई दुर्गा के, मनाये सरसती। राम जी के जीतई अउ,रावन के हार देख ले। आ हमर गांव के , तिहार देख ले।।3 रामधुनी रामसत्ता, भागवत रमायेन। दियना देवारी के, जगमग जलायेन। परसा संग माते,नाचे खेत-खार देख ले। आ हमर गांव के, तिहार देख ले।।4 पूजा - पाठ बर-बिहाव, मड़ई अक्ति छेरछेरा। सुवा-करमा नाचा-गम्मत म,बीते कतको बेरा। नाँव के तिहार नही, असल सार देख ले। आ हमर गांव के, तिहार देख ले।।5 रचना - जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया" बाल्को ,कोरबा छत्तीसगढ़
Friday 14 July 2017
उरमाल
उरमाल(सरसी छंद)
रंग रंग के मिलथे लेले,पड़डी पिवँरी लाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
राखव हरदम अपन खिसा मा,संगी जइसन मान।
अबड़ काम के चीज हरे जी ,गुन ला तैंहर जान।
दार भात अउ बासी खाके,पोंछव मुँह अउ गाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
टेरीकाट मजा नइ आये,सूँती मन ला भाय।
धुर्रा माटी लगे रिथे ते, चिक्कन गा पोंछय।
हवा गरेरा जब चलथे तब,तोपव आँख निकाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
धरे हाथ मा गोरी रइथे , मखमल के उरमाल।
मटक मटक के रेंगय हाँसत,हिरनी जइसन चाल।
महकय खुसबू चारो कोती , राखय इत्तर डाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
गाना गाये गजा मूँग हा,दाबे बँगला पान।
खोंचे करिया कपड़ा कनिहा,बढ़गे हावय सान।
हाथ धरे उरमाल फिरे जी,हावय बढ़िया हाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
हरे चेंदरा छोट अकन जी ,फेर आय बड़ काम।
राखव कनिहा खिसा हाथ मा,बिहना हो या साम।
आँखी कान नाक अउ मुँह बर, बनके रहिथे ढाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा ,हाथ फभे उरमाल।
पहिली पंछा हर मनखे के,रहे ओरमे खाँध।
कोनो पागा बाँधे राहय,कोनो कनिहा बाँध।
पंछा पटको कोन धरे अब,बदले सबके चाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
रंग रंग के मिलथे लेले,पड़डी पिवँरी लाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
राखव हरदम अपन खिसा मा,संगी जइसन मान।
अबड़ काम के चीज हरे जी ,गुन ला तैंहर जान।
दार भात अउ बासी खाके,पोंछव मुँह अउ गाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
टेरीकाट मजा नइ आये,सूँती मन ला भाय।
धुर्रा माटी लगे रिथे ते, चिक्कन गा पोंछय।
हवा गरेरा जब चलथे तब,तोपव आँख निकाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
धरे हाथ मा गोरी रइथे , मखमल के उरमाल।
मटक मटक के रेंगय हाँसत,हिरनी जइसन चाल।
महकय खुसबू चारो कोती , राखय इत्तर डाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
गाना गाये गजा मूँग हा,दाबे बँगला पान।
खोंचे करिया कपड़ा कनिहा,बढ़गे हावय सान।
हाथ धरे उरमाल फिरे जी,हावय बढ़िया हाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
हरे चेंदरा छोट अकन जी ,फेर आय बड़ काम।
राखव कनिहा खिसा हाथ मा,बिहना हो या साम।
आँखी कान नाक अउ मुँह बर, बनके रहिथे ढाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा ,हाथ फभे उरमाल।
पहिली पंछा हर मनखे के,रहे ओरमे खाँध।
कोनो पागा बाँधे राहय,कोनो कनिहा बाँध।
पंछा पटको कोन धरे अब,बदले सबके चाल।
हँरियर करिया नीला भुरुवा,हाथ फभे उरमाल।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
Thursday 13 July 2017
होली है
💐💐होली हे(गीत)💐💐
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महकत रंधनी खोली हे।
मुँह मा मीठ मीठ बोली हे।
फागुन मस्त महिना आये,
नाचो - गावो होली हे।
नेवता हेवे झारा - झारा।
सइमो - सइमो करै पारा।
बाजत हवे ढोल नँगाड़ा।
नाचत हे भांटो अउ सारा।
अंग मा रंग,रचे हे भारी।
दिखै लाली पिंवरी कारी।
अबीर माड़े भर-भर थारी।
सर्राये मारे पिचकारी।
घूम - घूम के रंग रंगे,
लइका-सियान के टोली हे।
झरे मउर,धरे आमा फर।
धरे राग,कोइली गाये बड़।
उल्हवा दिखे,डारा - पाना।
चना गंहू धरे हे दाना।
चार तेंदू लिटलिट फरे।
रहि - रहि मउहा झरे।
बोइर अमली झूले डार मा।
सेम्हर परसा फूले खार मा।
घर - दुवार, गली - खोर,
नाचत डोंगरी डोली हे।
बरजे बाबू, बोले सियान।
नइ देत हे,कोनो धियान।
मगन होगे नाचत हे।
दया - मया बाँटत हे।
होरी देय संदेस सत के।
मया रंग मा, रबे रचके।
परसा सेम्हर आमा लचके।
दुल्हिन कस खड़े हे सजके।
मया रंग रचे लाली- हँरियर,
धरती दाई के ओली हे।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
--------------------------------------
महकत रंधनी खोली हे।
मुँह मा मीठ मीठ बोली हे।
फागुन मस्त महिना आये,
नाचो - गावो होली हे।
नेवता हेवे झारा - झारा।
सइमो - सइमो करै पारा।
बाजत हवे ढोल नँगाड़ा।
नाचत हे भांटो अउ सारा।
अंग मा रंग,रचे हे भारी।
दिखै लाली पिंवरी कारी।
अबीर माड़े भर-भर थारी।
सर्राये मारे पिचकारी।
घूम - घूम के रंग रंगे,
लइका-सियान के टोली हे।
झरे मउर,धरे आमा फर।
धरे राग,कोइली गाये बड़।
उल्हवा दिखे,डारा - पाना।
चना गंहू धरे हे दाना।
चार तेंदू लिटलिट फरे।
रहि - रहि मउहा झरे।
बोइर अमली झूले डार मा।
सेम्हर परसा फूले खार मा।
घर - दुवार, गली - खोर,
नाचत डोंगरी डोली हे।
बरजे बाबू, बोले सियान।
नइ देत हे,कोनो धियान।
मगन होगे नाचत हे।
दया - मया बाँटत हे।
होरी देय संदेस सत के।
मया रंग मा, रबे रचके।
परसा सेम्हर आमा लचके।
दुल्हिन कस खड़े हे सजके।
मया रंग रचे लाली- हँरियर,
धरती दाई के ओली हे।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
कान्हा मोला बनादे (सार छंद)
कान्हा मोला बनादे (सार छंद)
पाँख मयूँरा मूड़ चढ़ादे,काजर गाल लगादे|
हाथ थमादे बँसुरी दाई,मोला किसन बनादे |
बाँध कमर मा करधन मोरे,बाँध मूड़ मा पागा|
हाथ अरो दे करिया चूड़ा,बाँध गला मा धागा|
चंदन टीका माथ लगादे ,ले दे माला मूँदी|
फूल मोंगरा के गजरा ला ,मोर बाँध दे चूँदी|
हार गला बर लान बनादे,दसमत लाली लाली |
घींव लेवना चाँट चाँट के,खाहूँ थाली थाली |
दूध दहीं ला पीयत जाहूँ,बंसी बइठ बजाहूँ|
तेंदू लउड़ी हाथ थमादे,गाय चराके आहूँ|
महानदी पैरी जस यमुना, रुख कदम्ब बर पीपर।
कुल कस सब गाँव गली हे ,ग्वाल बाल हे घर घर |
बाग बगीचा लगे मधूबन,हे जंगल अउ झाड़ी|
बँसुरी धरे रेंगहूँ मैंहा ,भइया नाँगर डाँड़ी|
गोप गुवालीन संग खेलहूँ ,मीत मितान बनाहूँ|
संसो झन तैं करबे दाई,सँझा खेल के आहूँ|
पहिरा ओढ़ा करदे दाई ,किसन बरन तैं मोला|
रही रही के कही सबो झन,कान्हा करिया मोला|
पाँव ददा दाई के परहूँ ,मिलही मोला मेवा |
बइरी मन ला मार भगाहूँ,करहूँ सबके सेवा|
चढ़के रुख कदम्ब मा दाई ,बँसुरी मीठ बजाहूँ |
दया मया ला बाँटत फिरहूँ ,सबके भाग जगाहूँ|
जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया "
बालको (कोरबा )
Sunday 9 July 2017
आजा रे बादर(ताटंक छंद)
आजा रे बादर(ताटंक छंद)गीत
लकलक लकलक जरत हवय बड़,बैसाख जेठ कस छानी।
सावन मा तैं घलो विधाता, काबर नइ देवस पानी।
जागे नइहे धान पान हा , सुख्खा हे तरिया डोली।
जरत हवय जिवरा किसान के,मुँह ले नइ फूटय बोली।
रहि रहि के तैं काबर हमला,घूमावत रहिथस घानी।
सावन मा तैं घलो विधाता, काबर नइ देवस पानी।
नैन निहारत रहिथे बादर ,तोला घेरी बेरी गा।
मोर किसानी ले मनखे हे,गाय गरू अउ छेरी गा।
तोर भरोसा भाग मोर हे , झनकर तैं चानी चानी।
सावन मातैं घलो विधाता,काबर नइ देवस पानी।
थोर थार तैंहा असाड़ मा ,पानी काबर बरसाये।
छितवाके के तैं बीज भात ला,बूंद बूंद बर तरसाये।
सावन के तैं झड़ी लगादे,आके वो बरखा रानी।
सावन मा तैं घलो विधाता ,काबर नइ देवस पानी।
जाँगर नाँगर मोर तीर हे, तोर तीर हावय पानी।
तोर भरोसा मैंहर रहिथों ,चले नहीं गा जिनगानी।
बरस बरस के तैंहर आजा,करदे धरती ला धानी।
सावन मातैं घलो विधाता,काबर नइ देवस पानी।
दिन रात देखथँव मैं तोला,बरसा धर तैंहर आजा।
देखे नहीं हिरख के तोला,वो मन हा होवय राजा।
लाज राख दे आके बादर,झन बोर मोर जिनगानी।
सावन मा तैं घलो विधाता,काबर नइ देवस पानी।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
सावन बइरी(सार छंद)
सावन बइरी(सार छंद)
चमक चमक के गरज गरज के,बरस बरस के आथे।
बादर बइरी सावन महिना,मोला बड़ बिजराथे।
काटे नहीं कटे दिन रतिहा,छिन छिन लगथे भारी।
सुरुर सुरुर चलके पुरवइया,देथे मोला गारी।
रहि रहि के रोवावत रहिथे,बइरी सावन आके।
हाँस हाँस के नाचत रहिथे,डार पान बिजराके।
छोड़ गये परदेस पिया तैं ,पाँव बजे ना पैरी।
टिकली फुँदरी माला मुँदरी,होगे सब झन बैरी।
महुर मेंहदी मूँगा मोती,बिछिया अँइठी लच्छा।
तोर बिना हे मोला जोड़ी,लगे नहीं कुछु अच्छा।
हरियर हरियर होगे डोली,हरियर बखरी बारी।
तोर बिना जिनगी मा मोरे,छाय घटा अँधियारी।
नाच कूद के देख मेचका,खुश हो टर टर गाथे।
ताना मारत मारत मोला,झींगुर गीत सुनाथे।
धरके बासी मोर जँवारा ,रोज खेत मा जाथे।
बइठ अपन वो संग सजन के,हाँस हाँस बतियाथे।
मोर परोसिन अपन पिया ला,चीला राँध खवाथे।
छत्ता धरे झड़ी झक्कर मा,घूमय मजा उड़ाथे।
बरसे बादर रिमझिम रिमझिम,चिरई गाये गाना।
जाँवर जोड़ी नाच नाच के,खावत रहिथे दाना।
कउँवा बाटत रहिथे चारा,उड़ उड़ के छानी मा।
मोरो मन होथे भींगे के ,तोर संग पानी मा।
परेवना के पाँख देख के,माँगत रहिथों पाँखीं।
फेर देख मोला उड़ जाथे,बरसत रहिथे आँखी।
भुँइया अबड़ हितागे हावय,पाके मनभर पानी।
रोज जरत हे जिवरा मोरे ,हलाकान जिनगानी।
आँखी मोरे करिया गेहे ,बादर ले बड़ जादा।
झटकुन राजा तैंहर आजा,करके गे हस वादा।
नैना मोरे झड़ी करे तब,बादर डरके भागे।
नैन निहारे रद्दा तो रे,बइठ दुवारी जागे।
मोर बने बइरी रे धन तैं,जोड़ी ला भड़काये।
आजा राजा नइ चाही कुछु,रही जहूँ बिन खाये।
पेट अन्न पानी नइ जाने ,जब ले तँय घर छोड़े।
रद्दा ला मैं जोहत रहिथों ,बइठे माड़ी मोड़े।
कतको दिन हा कटगे मोरे,बिना अन्न पानी के।
पान चढ़ावों भोला देदे,सुख ला जिनगानी के।
धरे गाल मैं बइठे हावँव,हाथ हले ना डोले।
आस मरत हे आजा राजा,मुँह नइ बोली बोले।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
Friday 7 July 2017
chhattisgarhi chhand
जयकारी छंद(जनउला)
जड़काला मा जे मन भाय।
गरमी घरी अबड़ रोवाय।
बरसा भर जे फिरे लुकाय।
जल्दी बता चीज का आय।1
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आघू मा बइठे रोवाय।
नइ खाये जी तभो खवाय।
कान धरे अउ अबड़ घुमाय।
काम होय अउ छोड़ भगाय।2
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घर भीतर हे सीटी मार।
बइठे धरे भात अउ दार।
कोनो नइ ओला खिसियाय।
हेर हेर के सब झन खाय।3
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हावय जेखर दू ठन गोड़।
बइठे ददा पालकी मोड़।
गोड़ तिरइयाँ के हे चार।
झटकुन बोलव सोच बिचार।4
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हाँड़ी के सबदिन आधार।
खाये सबझन भूँज बघार।
रंग भूरवा रहिथे गोल।
राजा हरे नाम तैं बोल।5
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जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको
मोर अपन मन
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हुदरे,कोचके,ककोने,काटे म लगे हे,
मोर अपन मन।
ताग - ताग ल, बाँटे म लगे हे,
मोर अपन मन।
कोन जनी कब टाँग दिही,मिंयार म?
नरी बर डोरी, नापे म लगे हे,
मोर अपन मन।
पइसा हे तभो डर।
पइसा नइ हे तभो डर।
बहिरी के मन टंगिया टेंत हे,
त घर के मन घोरत हे जहर।
फोर - फोर ल खाके,
पियावत हे ,झोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने,.......।
चूना कस चर देत हे,पता नइ लगय।
घूना कस दर देत हे,पता नइ लगय।
काखर उप्पर बिश्वास करबे?
जठा के कथरी,
खोंचका कर देत हे,पता नइ लगे।
सुताके काँटा के दिसना म,
भाग गे मोला छोड़, अपन मन।
हुदरे,ककोने,कोचके,..............।
मोर - मोर कहिके, लगे रेहेंव जिनगी भर।
समे के काँटा म, चघे रेहेंव जिनगी भर।
कोन जन काखर बर टोरेंव,जांगर रात - दिन?
फोकटे-फोकट पखना म,दबे रहेंव जिनगी भर।
घिल्लत रहि गेंव बंधाये,मोह माया के गेरवा म।
अब बाँध के घिरलात हे, डोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने,..............................।
भीड़ म भाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
दाई ल दाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
मिलेल लगिस फूल- मितान कस घेरी - बेरी।
रेंग पाई-पाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
फेर अपन बनाके घलो छलत हे,
पाप करत हे , घोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने ,.............................।
बिस्व के बात होइस,
त अपन देस कहिदेस,
अउ देस के बात म,
अपन राज।
राज में गाँव कहिदेस ,
अउ गाँव म समाज।
स्वारथ म अइसन गिरिस मनखे,
अपन म पहुँचगे आज।
फेर अपन घलो तपन लगे,
त गोहराये बिधाता ल,जोड़ तन मन।
हुदरे ,कोचके,ककोने ,काटे म लगे हे...।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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हुदरे,कोचके,ककोने,काटे म लगे हे,
मोर अपन मन।
ताग - ताग ल, बाँटे म लगे हे,
मोर अपन मन।
कोन जनी कब टाँग दिही,मिंयार म?
नरी बर डोरी, नापे म लगे हे,
मोर अपन मन।
पइसा हे तभो डर।
पइसा नइ हे तभो डर।
बहिरी के मन टंगिया टेंत हे,
त घर के मन घोरत हे जहर।
फोर - फोर ल खाके,
पियावत हे ,झोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने,.......।
चूना कस चर देत हे,पता नइ लगय।
घूना कस दर देत हे,पता नइ लगय।
काखर उप्पर बिश्वास करबे?
जठा के कथरी,
खोंचका कर देत हे,पता नइ लगे।
सुताके काँटा के दिसना म,
भाग गे मोला छोड़, अपन मन।
हुदरे,ककोने,कोचके,..............।
मोर - मोर कहिके, लगे रेहेंव जिनगी भर।
समे के काँटा म, चघे रेहेंव जिनगी भर।
कोन जन काखर बर टोरेंव,जांगर रात - दिन?
फोकटे-फोकट पखना म,दबे रहेंव जिनगी भर।
घिल्लत रहि गेंव बंधाये,मोह माया के गेरवा म।
अब बाँध के घिरलात हे, डोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने,..............................।
भीड़ म भाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
दाई ल दाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
मिलेल लगिस फूल- मितान कस घेरी - बेरी।
रेंग पाई-पाई कहिदिस,त अपन मानेंव वोला।
फेर अपन बनाके घलो छलत हे,
पाप करत हे , घोर अपन मन।
हुदरे,कोचके,ककोने ,.............................।
बिस्व के बात होइस,
त अपन देस कहिदेस,
अउ देस के बात म,
अपन राज।
राज में गाँव कहिदेस ,
अउ गाँव म समाज।
स्वारथ म अइसन गिरिस मनखे,
अपन म पहुँचगे आज।
फेर अपन घलो तपन लगे,
त गोहराये बिधाता ल,जोड़ तन मन।
हुदरे ,कोचके,ककोने ,काटे म लगे हे...।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
Wednesday 5 July 2017
अगोरा असाड़ के हे
📝 किसन्हा आसिक📝
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अगोरा असाड़ के हे
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अगोरा असाड़ के हे
बइला मेछरात हे,असकटात हे नाँगर|
खेती-किसानी बर,ललचात हे जाँगर|
कॉटा-खूटी बिनागे हे|
हमरो परीछा के दिन आगे हे|
बंधा गेहे मुही ,जेन मेड़-पार के हे|
अब तो अगोरा,असाड़ के हे|
खेती-किसानी बर,ललचात हे जाँगर|
कॉटा-खूटी बिनागे हे|
हमरो परीछा के दिन आगे हे|
बंधा गेहे मुही ,जेन मेड़-पार के हे|
अब तो अगोरा,असाड़ के हे|
बीजहा रिसाय हे ,खेत जाय बर|
मन करे मेड़ म,बासी पेज खाय बर|
खेत कोती मेला लगही अब|
बन दुबी कांदी जगही अब|
पीये बर पानी पपीहा कस भूंईया,
मुंहुं फार के हे |
अब तो अगोरा असाड़ के हे|
मन करे मेड़ म,बासी पेज खाय बर|
खेत कोती मेला लगही अब|
बन दुबी कांदी जगही अब|
पीये बर पानी पपीहा कस भूंईया,
मुंहुं फार के हे |
अब तो अगोरा असाड़ के हे|
झंऊहा-टुकनी,रापा-कुदारी|
अगोरत हे अपन पारी |
बड़का बाबू लुकलुकात हे धान जोरे बर|
नान्हे नोनी सुर्रह्त हे टोकान कोड़े बर|
तियार हे खेले बर खेती के जुआ,
जे किसान पऊर सब चीज हार गेहे|
अब तो अगोरा असाड़ं के हे|
अगोरत हे अपन पारी |
बड़का बाबू लुकलुकात हे धान जोरे बर|
नान्हे नोनी सुर्रह्त हे टोकान कोड़े बर|
तियार हे खेले बर खेती के जुआ,
जे किसान पऊर सब चीज हार गेहे|
अब तो अगोरा असाड़ं के हे|
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
सहे नहीं मितान
सहे नहीं मितान
घाम जाड़ असाड़ मा,सेहत के गरी लहे नही मितान।
खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही, अब सहे नहीं मितान।
बासी पेज चटनी मोर बर, अब नाम के होगे हे।
खाना मा दू ठन रोटी सुबे,अउ दू ठन साम के होंगे हे।
उँच नीच खाये पीये मा, हो जाथे अनपचक।
कूदई ल का कहँव,रेंगई मा जाथे हाथ गोड़ लचक।
जुड़ घाम मा जादा झन जायेल केहे हे।
गरम गरम बने पके चीज खायेल केहे हे।
धरे हौं डॉक्टर ,चलत हे रोज इलाज।
बस बीते बेरा ल,सोचत रहिथों आज।
एक कन रेंगे मा,जाँगर थक जाथे।
सुस्ती लगथे, अड़बड़ नींद आथे।
घर के सीढ़िया चौरा लटपट मा चढ़ाथे।
रुखराई चढ़े रेहेंव तेखर सुरता बड़ आथे।
मन तो कइथे तँउर नहा तरिया मा,
फेर तन कुछु कहे नही मितान।
खीरा ककड़ी बोइर बिही,
अब सहे नहीं मितान।
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गिर जाँवन कहूँ त,थपड़ी पीट हाँसन।
गावन बजावन ,देवन बड़ भाषण।
खोर्रा खटिया म,तको सुत जात रहेंन।
नहाये बर कुँआ म,घलो कूद जात रहेंन।
खार के मंदरस ल,झार के पी देत रहेंन।
आमा अमली खाये बर,जी देत रहेंन।
भागत रहेंन खारे खार, खोर्रा गोड़।
चितां फिकर ल, बड़ दुरिहा छोड़।
उँच उँच गेंड़ी म ,चढ़के अड़बड़ नाचन।
काबा काबा कपड़ा ल,पटक पटक काँचन।
गड़गड़ी अउ चक्का ल, ढूलोवत भागन।
डोकरी दाई के कहानी ,सुने बर जागन।
तन इँहे अँइठे बइठे हे,
फेर मन मोर तीर रहे नही मितान।
खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही,
अब सहे नहीं मितान।
उलानबाँटी नदीपहाड़ गिल्ली डंडा भँवरा।
खेल अबड़ खेलत रेहेंन, खाय बिन कँवरा।
चाब देत रेहेंन,चेम्मर अँगाकर रोटी।
चना गहूँ होरा संग चबा जाय गोंटी।
लगे नहीं एको गुरुजी के लउड़ी।
नाचन कूदन छोड़ पइसा कउड़ी।
मूड़ मा डोहारत रहेंन,पानी काँदी भारा।
बिन बइला के तीर देत रहेंन,खाँसर गाड़ा।
गाचन कूदन थके नहीं गतर।
टोड़ देन डोरी ल, दाँत म कतर।
अब एककन गिरे म,हाड़ा गोड़ा टूट जाथे।
कारनामा ल सोंच अपन पछीना छूट जाथे।
लड़ जात रहेंन,बइला गोल्लर ले।
खेले बर भागन पल्ला घर ले।
शेर बन जात रेहेंन,कनिहा म बाँध पटको।
गुर्री गुर्री देखन,तेमा डर्रा जाये कतको।
फेर अब तन म, गरम खून बहे नहीं मितान।
खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही,सहे नहीं मितान।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
घाम जाड़ असाड़ मा,सेहत के गरी लहे नही मितान।
खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही, अब सहे नहीं मितान।
बासी पेज चटनी मोर बर, अब नाम के होगे हे।
खाना मा दू ठन रोटी सुबे,अउ दू ठन साम के होंगे हे।
उँच नीच खाये पीये मा, हो जाथे अनपचक।
कूदई ल का कहँव,रेंगई मा जाथे हाथ गोड़ लचक।
जुड़ घाम मा जादा झन जायेल केहे हे।
गरम गरम बने पके चीज खायेल केहे हे।
धरे हौं डॉक्टर ,चलत हे रोज इलाज।
बस बीते बेरा ल,सोचत रहिथों आज।
एक कन रेंगे मा,जाँगर थक जाथे।
सुस्ती लगथे, अड़बड़ नींद आथे।
घर के सीढ़िया चौरा लटपट मा चढ़ाथे।
रुखराई चढ़े रेहेंव तेखर सुरता बड़ आथे।
मन तो कइथे तँउर नहा तरिया मा,
फेर तन कुछु कहे नही मितान।
खीरा ककड़ी बोइर बिही,
अब सहे नहीं मितान।
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गिर जाँवन कहूँ त,थपड़ी पीट हाँसन।
गावन बजावन ,देवन बड़ भाषण।
खोर्रा खटिया म,तको सुत जात रहेंन।
नहाये बर कुँआ म,घलो कूद जात रहेंन।
खार के मंदरस ल,झार के पी देत रहेंन।
आमा अमली खाये बर,जी देत रहेंन।
भागत रहेंन खारे खार, खोर्रा गोड़।
चितां फिकर ल, बड़ दुरिहा छोड़।
उँच उँच गेंड़ी म ,चढ़के अड़बड़ नाचन।
काबा काबा कपड़ा ल,पटक पटक काँचन।
गड़गड़ी अउ चक्का ल, ढूलोवत भागन।
डोकरी दाई के कहानी ,सुने बर जागन।
तन इँहे अँइठे बइठे हे,
फेर मन मोर तीर रहे नही मितान।
खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही,
अब सहे नहीं मितान।
उलानबाँटी नदीपहाड़ गिल्ली डंडा भँवरा।
खेल अबड़ खेलत रेहेंन, खाय बिन कँवरा।
चाब देत रेहेंन,चेम्मर अँगाकर रोटी।
चना गहूँ होरा संग चबा जाय गोंटी।
लगे नहीं एको गुरुजी के लउड़ी।
नाचन कूदन छोड़ पइसा कउड़ी।
मूड़ मा डोहारत रहेंन,पानी काँदी भारा।
बिन बइला के तीर देत रहेंन,खाँसर गाड़ा।
गाचन कूदन थके नहीं गतर।
टोड़ देन डोरी ल, दाँत म कतर।
अब एककन गिरे म,हाड़ा गोड़ा टूट जाथे।
कारनामा ल सोंच अपन पछीना छूट जाथे।
लड़ जात रहेंन,बइला गोल्लर ले।
खेले बर भागन पल्ला घर ले।
शेर बन जात रेहेंन,कनिहा म बाँध पटको।
गुर्री गुर्री देखन,तेमा डर्रा जाये कतको।
फेर अब तन म, गरम खून बहे नहीं मितान।
खीरा ककड़ी बोइर जाम बिही,सहे नहीं मितान।
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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