Saturday 31 December 2022

नूतन वर्ष 2023 के आप सबो ल सपरिवार बधाई, नमन

 उत्तरोत्तर उन्नति करो, जीवन में हो हर्ष।

सुख समृद्धि सत शान्ति ले,आये नूतन वर्ष।।


बधाई नवा बछर के(सार छंद)


हवे  बधाई   नवा   बछर   के,गाड़ा  गाड़ा  तोला।


सुख पा राज करे जिनगी भर,गदगद होके चोला।


सबे  खूँट  मा  रहे  अँजोरी,अँधियारी  झन  छाये।


नवा बछर हर अपन संग मा,नवा खुसी धर आये।


बने चीज  नित नयन निहारे,कान सुने सत बानी।


झरे फूल कस हाँसी मुख ले,जुगजुग रहे जवानी।


जल थल का आगास नाप ले,चढ़के उड़न खटोला।


हवे  बधाई  नवा  बछर  के,गाड़ा  गाड़ा  तोला----।


धन बल बाढ़े दिन दिन भारी,घर लागे फुलवारी।


खेत  खार  मा  सोना  उपजे,सेमी  गोभी  बारी।


बढ़े बाँस कस बिता बिता बड़,यश जश मान पुछारी।


का  मनखे  का  जीव जिनावर, पटे  सबो सँग तारी।


राम रमैया कृष्ण कन्हैया,करे कृपा शिव भोला-----।


हवे  बधाई  नवा  बछर के,गाड़ा  गाड़ा  तोला------।


बरे बैर नव जुग मा बम्बर,बाढ़े भाई चारा।


ऊँच नीच के भेद सिराये,खाये झारा झारा।


दया मया के होय बसेरा,बोहय गंगा धारा।


पुरवा गीत सुनावै सबला,नाचे डारा पारा।


भाग बरे पुन्नी कस चंदा,धरे कला गुण सोला।


हवे बधाई नवा बछर के,गाड़ा गाड़ा तोला---।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को(कोरबा)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


गीत-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


नवा बछर मा नवा आस धर,नवा करे बर पड़ही।


द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


साधे खातिर अटके बूता,डॅटके महिनत चाही।


भूलचूक ला ध्यान देय मा,डहर सुगम हो जाही।


चलना पड़ही नवा पाथ मा,सबके अँगरी धरके।


उजियारा फैलाना पड़ही, अँधियारी मा बरके।


गाँजेल पड़ही सबला मिलके,दया मया के खरही।


द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


जुन्ना पाना डारा झर्रा, पेड़ नवा हो जाथे।


सुरुज नरायण घलो रोज के,नवा किरण बगराथे।


रतिहा चाँद सितारा मिलजुल,रिगबिग रिगबिग बरथे।


पुरवा पानी अपन काम ला,सुतत उठत नित करथे।


मानुष मन सब अपन मुठा मा,सत सुम्मत ला धरही।


द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


गुरतुर बोली जियरा जोड़े,काँटे चाकू छूरी।


घर बन सँग मा देश राज के,संसो हवै जरूरी।


जीव जानवर पेड़ पकृति सँग,बँचही पुरवा पानी।


पर्यावरण ह बढ़िया रइही, तभे रही जिनगानी।


दया मया मा काया रचही,गुण अउ ज्ञान बगरही।


द्वेष दरद दुख पीरा हरही,देश राज तब बड़ही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


गजल- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


बिछे जाल देख के मोर उदास हावे मन हा।


बुरा हाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।1


बढ़े हे गजब बदी हा, बहे खून के नदी हा।


छिले खाल देख के मोर उदास हावे मन हा।2


अभी आस अउ बचे हे, बुता खास अउ बचे हे।


खड़े काल देख के मोर उदास हावे मन हा।।3


गला आन मन धरत हे, सगा तक दगा करत हे।


चले चाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।4


कती खोंधरा बनावँव, कते मेर जी जुड़ावँव।


कटे डाल देख के मोर उदास हावे मन हा।5


धरे हाथ मा जे पइसा, उही लेगे ढील भँइसा।


गले दाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।।6


कई खात हे मरत ले, ता कहूँ धरे धरत ले।


उना थाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।7


जे कहाय अन्न दाता, सबे मारे वोला चाँटा।


झुके भाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।8


नशा मा बुड़े जमाना, करे नाँचना नँचाना।


नवा साल देख के मोर उदास हावे मन हा।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


             1


बिदा कर गाके गीत,बारा मास गये बीत।


का खोयेस का पायेस,तेखर बिचार कर।।


गाँठ बाँध बने बात,गिनहा ला मार लात।


बाइस के अटके ला,तेइस मा पार कर।।


बैरी झन होय कोई,दुख मा न रोय कोई।


तोर मोर छोड़ संगी,सबला जी प्यार कर।।


जग म जी नाम कमा,सबके मुहुँ म समा।


बढ़ा मीत मितानी ग,दू ल अब चार कर।।


              2


गुजर गे बारा मास,बँचे जतके हे आस।


पूरा कर ये बछर,हटा जमे रोक टोंक।।


मुचमुच हाँस रोज,पथ धर चल सोज।


बुता काम बने कर,खुशी खुशी ताल ठोंक।


दिन मजा मा गुजार,बांटत मया दुलार।


खाले तीन परोसा जी,लसून पियाज छोंक।।


नवा नवा आस लेके,दिन तिथि खास लेके।


हबरे बछर नवा,हमरो बधाई झोंक।।


              3


होय झन कभू हानि,चले बने जिनगानी।


बने रहे छत छानी,बने मुड़की मिंयार।।


फूल के बिछौना रहै, महकत दौना रहे।


जीव शिव प्रकृति के,सदा मिले जी पिंयार।।


आदर सम्मान बढ़े,भाग नित खुशी गढ़े।


सपना के नौका चढ़े,होके घूम हुसियार।।


होवै दिन रात बने,मनके के जी बात बने।


नवा साल खास बने,भागे दूर अँधियार।।


               4


सबे चीज के गियान,पा के बनो गा सियान।


गाँव घर देश राज,छाये चारो कोती नाम।।


मीठ करू खारो लेके,सबके जी आरो लेके।


सेवा सतकार करौ,धरम करम थाम।।


खुशी खुशी बेरा कटे,दुख के बादर छँटे।


जिनगानी मा समाये,सुख शांति सुबे शाम।।


हमरो झोंको बधाई,संगी संगवारी भाई।


नवा बछर मा बने,अटके जी बुता काम।।


                5


अँकड़ गुमान फेक,ईमान के आघू टेक।


तोर मोर म जी मन, काबर सनाय हे।।।


दुखिया के दुख हर,अँधियारी म जी बर।


कतको लाँघन परे, कतको अघाय हे।।।


उही घाट उही बाट,उही खाट उही हाट।


उसनेच घर बन,तब नवा काय हे।। ।।।।


नवा नवा आस धर,काम बुता खास कर।


नवा बना तन मन,नवा साल आय हे।।।।


जीतेंद्र वर्मा""खैरझिटिया


बाल्को,कोरबा


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


Happy new year 2023

नवा साल मा का नवा

नवा साल मा का नवा

                   मनखे मन कस समय के उमर एक साल अउ बाढ़गे, अब 2022 ले 2023 होगे। बीते समय सिरिफ सुरता बनगे ता नवा समय आस। सुरुज, चन्दा, धरती, आगास, पानी, पवन सब उही हे, नवा हे ता घर के खूंटी मा टँगाय कलेंडर, जेमा नवा बछर भर के दिन तिथि बार लिखाय हे। डिजिटल डिस्प्ले के जमाना मा कतको महल अटारी मा कलेंडर घलो नइ दिखे, ता कतको गरीब ठिहा जमाना ले नइ जाने। आजकल जुन्ना बछर ला बिदा देय के अउ नवा बछर के परघवनी करे के चलन हे, फेर उहू सही रद्दा मा कम दिखथे। आधा ले जादा तो मौज मस्ती के बहाना कस लगथे। दारू कुकरी मुर्गी खा पी के, डीजे मा नाचत गावत कतको मनखे मन घुमत फिरत होटल,ढाबा, नही ते घर,छत मा माते रहिथे। अब गांव लगत हे ना शहर सबे कोती अइसनेच कहर सुनाथे, भकर भिकिर डीजे के शोर अउ हाथ गोड़ कनिहा कूबड़ ला झटकारत नवा जमाना के अजीब डांस संगे संग केक के कटई, छितई अउ एक दूसर ऊपर चुपरई, जइसन अउ कतकोन चोचला हे, जेला का कहना । 
              भजन पूजन तो अन्ग्रेजी नवा साल संग मेल घलो नइ खाय, ना कोनो कोती देखे बर मिले। लइका सियान सब अंग्रेजी नवा साल के चोचला मा मगन अधरतिहा झूमरत रहिथे, अउ पहात बिहनिया खटिया मा अचेत, वाह रे नवा साल। फेर आसाढ़, सावन, भादो ल कोनो जादा जाने घलो तो नही, जनवरी फरवरी के ही बोलबाला हे। ता भले चैत मा नवा साल मनाय के कतको उदिम करन, नवा महीना के रूप मा जनवरी ही जीतथे, ओखरे संग ही आज के दिन तिथि चलथे। खैर समय चाहे उर्दू मा चले, हिंदी मा चले या फेर अंग्रेजी मा, समय तो समय ये, जे गतिमान हे। सूरुज, चन्दा, पानी पवन सब अपन विधान मा चलत हे, मनखे मन कतका समय मा चलथे, ते उंखरें मन ऊपर हें। समय मा सुते उठे के समय घलो अब सही नइ होवत हे। लाइट, लट्टू,लाइटर रात ल आँखी देखावत हे, ता बड़े बड़े बंगला सुरुज नारायण के घलो नइ सुनत हे। मनखे अपन सोहलियत बर हाना घलो गढ़ डरे हे, जब जागे तब सबेरा---- अउ जब सोय तब रात। ता ओखर बर का बाईस अउ का तेइस, हाँ फेर नाचे गाये खाय पीये के बहाना, नवा बछर जरूर बन जथे।आज मनखे ना समय मा हे, ना विधान मा, ना कोनो दायरा मा। मनखे बलवान हे , फेर समय ले जादा नही।
           वइसे तो नवा बछर मा कुछु नवा होना चाही, फेर कतका होथे, सबे देखत हन। जब मनुष नवा उमर के पड़ाव मा जाथे ता का करथे? ता नवा साल मा का करही? केक काटना, नाचना गाना, पार्टी सार्टी तो करते हे, बपुरा मन।वइसे तो कोनो नवा चीज घर आथे ता वो नवा कहलाथे, फेर कोनो जुन्ना चीज ला धो माँज के घलो नवा करे जा सकथे। कपड़ा,ओन्हा, घर, द्वार, चीज बस सब नवा बिसाय जा सकथे, फेर तन, ये तो उहीच रहिथे, अउ तन हे तभे तो चीज बस धन रतन। ता तन मन ला नवा रखे के उदिम मनखे ला सब दिन करना चाही। फेर नवा साल हे ता कुछ नवा, अपन जिनगी मा घलो करना चाही। जुन्ना लत, बैर, बुराई ला धो माँज के, सत, ज्ञान, गुण, नव आस विश्वास ला अपनाना चाही। तन अउ मन ला नवा करे के कसम नवा साल मा खाना चाही, तभे तो कुछु नवा होही।  जुन्ना समय के कोर कसर ला नवा बेरा के उगत सुरुज संग खाप खवात नवा करे के किरिया खाना चाही। जुन्ना समय अवइया समय ला कइसे जीना हे, तेखर बारे मा बताथे। माने जुन्ना समय सीख देथे अउ नवा समय नव आस। इही आशा अउ नव विश्वास के नाम आय नवा बछर। हम नवा जमाना के नवा चकाचौंध  तो अपनाथन, फेर जिनगी जीये के नेव ला भुला जाथन। हँसी खुसी, बोल बचन, आदत व्यवहार, दया मया, चैन सुकून, सेवा सत्कार आदि मा का नवा करथन। देश, राज, घर बार बर का नवा सोचथन, स्वार्थ ले इतर समाज बर, गिरे थके, हपटे मन बर का नवा करथन। नवा नवा जिनिस खाय पीये,नवा नवा जघा घूमे फिरे  अउ नाचे गाये भर ले नवा बछर नवा नइ होय।
               नवा बछर ला नवा करे बर नव निर्माण, नव संकल्प, नव आस जरूरी हे। खुद संग पार परिवार,साज- समाज अउ देश राज के संसो करना हमरे मनके ही जिम्मेदारी हे। जइसे  कोनो हार जीते बर सिखाथे वइसने जुन्ना साल के भूल चूक ला जाँचत परखत नवा साल मा वो उदिम ला पूरा करना चाही। कोन आफत हमला कतका तंग करिस, कोन चूक ले कइसे निपटना रिहिस ये सब जुन्ना बेरा बताथे, उही जुन्ना बेरा ला जीये जे बाद ही आथे नव आस के नवा बछर। ता आवन ये नवा बछर ला नवा बनावन अउ दया मया घोर के नवा आसा डोर बाँधके, भेदभाव, तोर मोर, इरखा, द्वेष ला जला, सबके हित मा काम करन, पेड़,प्रकृति, पवन,पानी, छीटे बड़े जीव जन्तु सब के भला सोचन, काबर कि ये दुनिया सब के आय, पोगरी हमरे मनके नही, बिन पेड़,पवन, पानी अउ जीव जंतु बिना अकेल्ला हमरो जिनगी नइहे। नवा बछर के बहुत बहुत बधाई-----

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Sunday 6 November 2022

करजा छूट देहूँ लाला(गीत)

 करजा छूट देहूँ लाला(गीत)


धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।

तँय संसो झन कर,मोर मन नइहे काला।


मोर थेभा मोर बेटा बेटी, दाई ददा सुवारी।

मोरेच जतने खेत खार,घर बन अउ बारी।

येला छोड़ नइ पीयँव,कभू मैंहा हाला।

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


तैंहा सोचत रहिथस,बिगाड़ होतिस मोरे।

घर बन खेत खार सब,नाँव होतिस तोरे।

नइ मानों कभू हार,लोर उबके चाहे छाला।

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


जब जब दुकाल पड़थे,तब तोर नजर गड़थे।

मोर ठिहा ठउर खेत ल,हड़पे के मन करथे।

नइ आँव तोर बुध म,झन बुन मेकरा जाला।

धान  लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


भूला जा वो दिन ला,जब तोर रहय जलवा।

अब जाँगर नाँगर हे,नइ चाँटव तोर तलवा।

असल खरतरिहा ले,अब पड़े हे पाला।

धान लू मिंज के मैं,कर्जा छूट देहूँ लाला।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

छुट्टी के दिन........... ---------------------------------------

 ............छुट्टी के दिन...........

---------------------------------------

बबा   संग   ढेरा , आँटत    रेहेन।

ददा    संग दॅऊरी , हाँकत   रेहेन।

डोहारत      रेहेन , दाई संग पानी।

कका संग छात रेहेन,खपरा-छानी।

ओइलात  रेहेन  कोठा   म,

गरुवा-छेरी  ल   गिन-गिन।

छुट्टी के दिन,छुट्टी के दिन।


लिपत  रेहेन   ,  अंगना    दुवारी।

टोरत   रेहेन   ,  बम्हरी  मुखारी।

खेत  म   करन , निंदई  - कोड़ई।

बखरी म टोरन,रमकलिया तोरई।

पढ़ई  के  संगे-संग    बुता,

बड़ मजा आय  गऊकिन।

छुट्टी के दिन,छुट्टी के दिन।


बार  के  चूल्हा , भात दार राँधन।

खेत म कूद-कूद,मेड़-पार  बाँधन।

संगी संगवारी संग,मनभर खेलन।

खेवन - खेवन, मही-बासी झेलन।

रमायेण रामसत्ता-रामधुनी म,

हो    जात   रेहेन    लिन ।

छुट्टी के दिन,छुट्टी के दिन।


सँइकिल पनही चप्पल ल,

पोछ - पाँछ    के   रखन।

कका दाई  संग  बजार म,

मुर्रा   -   लाड़ू       चखन।

कुर्था कपड़ा ड्रेस काँच काँच उजरान।

बइला-भँइसा धोके,कूद-कूद नहान।

धनकुट्टी    म   धान   कुटान,

दार-चांउर सिधोन गोंटी बिन।

छुट्टी के  दिन , छुट्टी के  दिन।


ममा घर जाय बर,संग  धरन।

भांटो ल पइसा बर,तंग करन।

तिहार  बार  म , नाचन  गान।

गाँव  भर  के ,  आसीस पान।

बांवत,     बियासी,  भारा,

बुता   करन    कई   ठिंन।

छुट्टी के दिन,छुट्टी के दिन।


  जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बालको(कोरबा)

              9981441795

ग्रामीण अर्थव्यवस्था(छत्तीसगढ़ी गीत कविता के माध्यम ले) मा छत्तीसगढ के नारी मन के योगदान-खैरझिटिया*

 *ग्रामीण अर्थव्यवस्था(छत्तीसगढ़ी गीत कविता के माध्यम ले) मा छत्तीसगढ के नारी मन के योगदान-खैरझिटिया*


               नारी मन न सिर्फ गृहस्थी के बल्कि जिनगानी रूपी गाड़ी के घलो दू पहिया मा एक ए। नारी शक्ति के बिगन सृष्टि-समाज के कल्पना करना निर्थक हे। नर जब ले ये धरा मा जनम धरे हें उंखर संगनी बनके नारी सदा संग देवत आवत हे, अउ एखरे प्रताप आय कि आज दुनिया चलत हे। आवन"ग्रामीण अर्थव्यवस्था मा छत्तीसगढ़ के नारी मन के योगदान" ऊपर चर्चा करीं। वइसे तो जब अर्थ के बात होथे, ता नगदी रकम नयन आघू झूले बर लग जथे। शहरी अर्थव्यवस्था मा लगभग काम कर अउ पइसा ले चलथे फेर ग्रामीण अर्थव्यवस्था आजो कतको प्रकार के विनिमय मा चलथे, जइसे वस्तु विनिमय,श्रम विनिमय--। नगद या फेर अर्थ तो बहुत बाद मा आइस, पहली जिनगानी विनिमय मा ही चलत रिहिस। पौनी पसारी परम्परा मा घलो सेवा के बदला मा चाँउर,दार अउ जरूरत के चीज बस मिलत रिहिस। पहली हाथी घोड़ा,गाय भैस वाले घलो धनवान कहिलात रिहिस,फेर आज फकत पइसा वाले ही धनवान हे। आज गांवों मा घलो काम,बूता अउ सेवा सत्कार के अन्ततः मोल अर्थ ही होगे हे। पहली ग्रामीण महिला मन घर मा ही रहिके, घर के अर्थव्यवस्था ल बरोबर नाप तोल मा चलावत रिहिस, आज भले बाहिर नवकरी, व्यवसाय अउ सेवा कारज मा जावत हे। पहली घर मा ही दाई महतारी मन अर्थ के भार ला कम करे बर, चाउंर दार ला घरे मा कुटे अउ दरे, संगे संग साग भाजी बोवत तोड़त, बरी बिजौरी घलो बनावय। घर के जम्मो बूता के संग खेत खार मा घलो श्रम देवयँ। पहली ग्रामीण महिला मन फेरी लगा लगा के सामान, साग भाजी घलो बेचे अउ आजो बेचते हें। दुकान, हाट बाजार,खेत खार,स्कूल कालेज,आफिस दफ्तर,खेल-रेल सबें जघा आज महिला मन अपन बरोबर योगदान देवत हे। 

     गाँव मा लोहार, नाई, मरार, कुम्हार, धोबी, मोची, रौताइन, मालिन--- आदि कतको समाज के जातिगत व्यवसाय रहय। जेमा वो समाज के महिला अउ पुरुष मन अपन सेवा अउ श्रम देवयँ। जइसे मरारिन मन बाजार हाट अउ गली खोर मा घूम घूम के भाजी पाला बेंचे, तुर्किन मन चुरी चाकी, कुम्हारिन मन गगरी-मटकी,रौताइन मन दूध दही अउ देवार जाति के महिला मन गोदना गोदत रीठा अउ मंदरस------


             मैं ये विषय के अंतरगत, छत्तीसगढ़ी गीत कविता मा ग्रामीण अर्थव्यवस्था ला बढ़ाय बर नारी मन के योगदान के झलकी खोजे के प्रयास करना चाहत हँव। काबर कि कवि मनके गीत कविता समय के पर्याय होथे, जे वो समय ला परिभाषित करत नजर आथे। वइसे तो छत्तीसगढ़ी मा असंख्य गीत अउ कविता हे, जे कतकोन विषय मा लिखाय,गवाय जनमानस बीच रचे बसे हे, अउ कतको कापी पुस्तक मा कलेचुप लुकाये हे। मोला जउन मिलिस उही ला आप सबो के बीच रखे बर जावत हँव,अउ आपो मन के मन मा काम बूता/अर्थव्यवस्था ले सम्बंधित कोनो गीत कविता होही ता जरूर बताहू-----


               छत्तीसगढ़ी दान लीला भगवान कृष्ण के लीला ऊपर आधारित हे, फेर एखर पृष्ठ भूमि गोकुल वृन्दावन ना होके छत्तीसगढ़ लगथे, काबर कि पं सुंदरलाल शर्मा जी मन भगवान कृष्ण,गोप गुवालिन अउ सखा सम्बन्धी सबें ला छत्तीसगढिया अंदाज मा चित्रित करे हे। गोप गुवालिन मन वइसे तो भगवान कृष्ण के मया मा मोहित  किंदरत दिखथें, फेर दूध दही अउ लेवना बेचत घर परिवार ला पालत पोसत घलो नजर आथें--

चौपाई

*जतका-दूध-दही-अउ-लेवना। जोर-जोर-के दुधहा जेवना*

*मोलहा-खोपला-चुकिया-राखिन। तउला ला जोरिन हैं सबझिन॥*

*दुहना-टुकना-बीच मड़ाइन। घर घर ले निकलिन रौताइन*

*एक जंवरिहा रहिन सबे ठिक। दौंरी में फांद के-लाइक॥*


ये परिदृश्य पहली कस आजो हे,कतको रौताइन मन गांव गली मा घूम घूम दूध दही मही बेचथे अउ पार परिवार बर आर्थिक योगदान करथें।


                       मरार समाज के नारी मन पहली अउ आजो साग भाजी बारी बखरी के काम मा बरोबर लगे दिखथें, तभो तो  छत्तीसगढ़ के दुलरुवा गायक शेख हुसैन जी कहिथे--

*एक पइसा के भाजी ला, दू पइसा मा बेचँव दाई*

*गोंदली ला राखेंव वो मँड़ार के*

*कभू मचिया वो, कभू पीढ़ी मा वो बइठे मरारिन बाजार मा*

 ये गीत सिरिफ गीत नही बल्कि वो समय के झांकी आय। जेमा साग भाजी बेच के नारी शक्ति मन ग्रामीण अर्थव्यवस्था मा अपन योगदान देवत दिखथें। एखर आलावा अउ कतको गीत हे जेमा भाजी भाँटा पताल बेचे के वर्णन मिलथे।

    

          छत्तीसगढ़ के नारी मन चूल्हा चौका, बारी बखरी  के बूता काम के संगे संग खेत खार मा घलो काम करथें, बाँवत, बियासी,निंदई,कोड़ई,लुवई-मिंजई कोनोअइसन बूता नइहे जेमा मातृ शक्ति के योगदान नइ हे- तभे तो जनकवि कोदूराम दलित जी नारी शक्ति के नाम गिनावत उंखर किसानी खातिर योगदान बर लिखथे-

*चंदा, बूंदा, चंपा, चैती, केजा, भूरी, लगनी।*

*दसरी, दसमत, दुखिया,ढेला,पुनिया,पाँचो, फगनी।*

*पाटी पारे, माँग सँवारे,हँसिया खोंच कमर-मा,*

*जाँय खेत, मोटियारी जम्मो,तारा दे के घर- मा।*

               धान लुवाई म घलो महिला मनके योगदान के एक अंश दलित जी के काव्य पंक्ति मा देखव-

*दीदी लूवय धान खबा खब, भांटो बांधय भारा।*

*अउहा, झउहा बोहि-बोहि के, लेजय भौजी ब्यारा।*


               अर्थोपार्जन करे बर नारी मन कुटीर उघोग कस कतको छोटे मोटे काम धंधा करयँ जेमा- मुर्रा लाड़ू बनाना, बाहरी,दरी,चटाई बनाना, सूपा चरिहा बनाना-----आजो ये सब चलत हे, संग मा नवा जमाना के चीज जइसे दोना पत्तल बनाना, बाँस शिल्प अउ कतको सजावटी सामान जुड़ गेहे। अइसन बूता मा घलो नारी मन ना पहली पाछू रिहिस ना आजो हे। 

ये सन्दर्भ मा, दलित जी के काव्य के एक पंक्ति देखव-

*ताते च तात ढीमरिन लावय,  बेंचे खातिर मुर्रा।*

*लेवँय दे के धान सबो झिन, खावँय उत्ता-धुर्रा।।*

धान देके मुर्रा लाड़ू लेय बर कहना वस्तु विनिमय प्रणाली ल घलो बतावत हे।


              निर्माण अउ विनिर्माण के काम मा घलो नारी शक्ति मन सबर दिन अपन जांगर खपावत आयँ हे, चाहे घर,सड़क, पूल- पुलिया, महल- अटारी होय या फेर ईटा भट्ठा अउ कोनो उधोग धंधा। छत्तीसगढ़ के नारी मन अपन घर परिवार के स्थिति देखत सबें क्षेत्र मा काम करके पार परिवार ला पाले पोसे के उदिम करे हे। मरारिन,रौताइन, तुर्किन, कुम्हारिन, बनिहारिन, पनिहारिन, मालिन, कड़ड़िन,देवारिन,रेजा ना जाने का का रूप धरके, नारी शक्ति मन जीवकायापण बर जांगर बेच के धनार्जन करें हें- 

रोज रोज काम के तलास मा चौड़ी मा बइठे रेजा मन के मार्मिक चित्रण करत वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुशील भोले जी लिखथें-


*चौड़ी आए हौं जांगर बेचे बार, मैं बनिहारिन रेजा गा*

*लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा...*

*सूत उठाके बड़े बिहन्वे काम बुता निपटाए हौं*

*मोर जोड़ी ल बासी खवाके रिकसा म पठोए हौं*

*दूध पियत बेटा ल फेर छोड़ाए हौं करेजा गा*

*लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा॥*


             हमर छत्तीसगढ़ मा नाना किसम के जाति हे, ओमा एक जाति हे- देवार जाति। ये जाति के नारी शक्ति मन गाँव गली मा फेरी लगावत मंदरस,रीठा बेचत गोदना गोदे के बूता करयँ। मनखे के मरे के बाद घलो गोदना साथ नइ छोड़े ते पाय के हमर छत्तीसगढ़ मा ना सिर्फ महिला मन बल्कि पुरुषों मन गोदना गोदवाथें। हाथ,पाँव,नाँक,ठुड्डी अउ  गला मा गोदना गोदवाये के रिवाज हे। फूल, चँदा, सितारा, नाम,गाँव, अउ देवी देवता के चित्र गोदना मा दिखथें। पारम्परिक ददरिया मा छत्तीसगढ़ के कतको लोक गायिका मन *गोदना गोदाले रीठा लेले वो मोर दाई* ये गीत ला गायें हे। तभो ये गीत ममता चन्द्राकर जी के स्वर मा जादा सुने बर मिलथे। किस्मत बाई देवार, रेखा बाई देवार, लता खापर्डे, कुल्वनतींन बाई, दुखिया बाई कस कतको लोक गायिका मन गोदना उपर कतको गाना गायें हे।

         

         माटी के दुलरुवा कवि गायक लक्ष्मण मस्तूरिहा के लिखे गीत - *ले चल गा ले चल* मा साग भाजी बेचइया महिला के मार्मिक पुकार हे। जेमा वोहा मोटर वाले ला अपन गाँव ले चल कहिके किलौली करत हे, संगे संग बदला मा भाजी भाँटा देय के बात कहत हे,काबर कि ओखर एको सौदा गंडई बाजार मा नइ बेचा पाय हे। पंक्ति देखन----


*ले चल गा ले चल, ए मोटर वाला ले चल*

*रुक तो सुन वही धमधा डहर बर हावै मोला जाना*

*बेर ढरकगे साँझ होगे, थक गे पाँव चलई मा।*

*सौदा कुछु बेचाइस नही, अई गंडई मड़ई मा।*

*पइसा तो नइ पास हे मोरे,लेले भाजी पाला।*

         कुछु सामान बेचे बर का का दुख झेलना पड़थे, पइसा कमाए बर कतका धीर धरेल लगथे,कतका दुरिहा दुरिहा के बाजार हाट,मेला-मड़ई (धमधा ले गंडई),कइसे कइसे आय जाय बर पड़थे, ये सब दुख दरद ला मस्तूरिहा जी अपन कलम ले उकेरे हे। अउ ओतके मधुर गायें हे लता खापर्डे जी अउ कविता वासनिक जी मन।

               पंचराम मिर्झा अउ कुल्वनतीन बाई के गाये गीत- *"सस्ती मा बेचे वो, बस्ती मा बेचे"* मा घलो साग भाजी बेचे के चित्र मिलथे। अउ कतको जुन्ना अउ नवा गायक गायिका मन घलो भाजी भाँटा पताल करेला--- बेचे के वर्णन करे हे, फेर कतकोन गीत मन द्विअर्थी हे,जुन्ना गीत कस सुने मा आनंद नइ दे सके। 


              सुराज मिले के बाद सरकार डहर ले गांव गांव मा, विकास लाये बर काम बूता खुले लगिस, जइसे सड़क, पुल, नदिया, नहर  बांध बनई-बंधई आदि आदि। जेमा नारी शक्ति मन के श्रम ला कभू नइ भुलाये जा सके। आजो मनरेगा कस कतको बूता मा श्रम साधत नारी शक्ति मन धनार्जन करत माटी महतारी सँग देश अउ राज के सेवा करत हे,अउ देश राज ला आघू बढ़ावत हें। माटी पूत गायक कवि लक्ष्मण मस्तूरिहा जी के लिखे ये अमर गीत ला  स्वर कोकिला कविता वासनिक जी के स्वर मा सुन, मन मन्त्र मुग्ध हो जथे 


*चल सँगी जुरमिल कमाबों गा, करम खुलगे*

*पथरा मा पानी ओगराबों, माटी मा सोना उपजाबों*

*गंगरेल बाँधेन पैरी ला बाँधेन*

*हसदेव ला लेहन रोक।*

*खरखरा खारुन रुद्री के पानी*

*खेत मा देहन झोंक।*

*महानदी ला गांव गांव पहुँचाबों गा---*


       अर्थ भार कम करके अर्थव्यवस्था ला सुदृढ़ बनाय बर ग्रामीण महिला मन सबर दिन अघवा रहिथे, चाहे घरे मा साग भाजी उपजई होय या घरे मा चाँउर दार सिधोई या फेर घरे मा बरी बिजौरी बनई। रखिया बरी बनाये के विचार के एक बानगी वरिष्ठ साहित्यकार श्री अरुण निगम जी के घनाक्षरी मा देखव--

रखिया   के    बरी   ला    बनाये   के   बिचार    हवे


*धनी  टोर  दूहू   छानी  फरे  रखिया के  फर*

*उरिद  के  दार  घलो   रतिहा   भिंजोय  दूहूँ*

*चरिह्या-मा  डार , जाहूँ   तरिया  बड़े  फजर*

*दार  ला नँगत  धोहूँ  चिबोर  -  चिबोर  बने*

*फोकला  ला  फेंक दूहूँ , दार  दिखही  उज्जर.*

*तियारे  पहटनीन  ला  आही    पहट   काली*      

*सील  लोढ़हा मा दार पीस देही  वो सुग्घर।।*


               हमर छत्तीसगढ़ चारो कोती ले जंगल झाड़ी के घिरे हे,जिहाँ किसम किसम के रुख राई, महुवा कोसा, लासा मन्दरस सँग नाना प्रकार के जीव जंतु निवास करथे,अउ संग मा रहिथे वनवासी मन,जउन मन जंगल ल ही जिनगी मानत ओखरे सेवा श्रम मा लगे रथे। चाहे महुवा बिनई होय, या तेंदू पाना टोरई या फेर कोसा लासा हेरई। जइसे मैदानी भाग मा काम बूता करत मनखे सुवा ददरिया गाथे,वइसने वनवासी मन घलो काम बूता संग अपन गीत रीत ला नइ भुलाये,येमा ना पुरुष लगे  ना महिला। 


*चल संगी मउहा बीने बर जाबों।*


*तेंदू पाना टोरेल आबे,डोंगरी मा ना।*

अइसने अउ कतकोन मनभावन सुने सुनाये गीत हे, जे वनवासी महिला मनके योगदान,समर्पण धनार्जन मा कतका हे तेला दिखाथें। चाहे तेंदू पाना टोरई होय या फेर मउहा बिनई या फर फुलवारी लकड़ी फाटा ल जतनई-- अइसन सबें बूता मा नारी शक्ति मा सतत लगे रिहिन अउ आजो लगे हे।    

 

         मालिन फूल चुनके हार अउ गजरा बनाके कभू माता ला चढ़ावत दिखथें ता कभू भक्तन मन ला बेचत, एक पारम्परिक जस गीत देखन-

*तैं गूथे वो मैया बर मालिन फूल गजरा।*

*काहेंन फूल जे गजरा*

*काहेंन फूल के हार।*

*काहेन फूल के माथ मुकुटिया सोला वो सिंगार*

             अइसने होली मा पिचका, बाजार हाट मा काँदा कुशा,भाजी पाला, चूड़ी चाकी, होटल मा बड़ा भजिया,पान ढेला मा पान अउ दुकान मा सामान बेचे के तको गीत सुने बर मिलथे, फेर ओतिक प्रचलित अउ ग्राह्य नइ हे।


             मनखे के जिनगी बराबर चलत रिहिस उही बीच मा बछर 2019 मा घोर विकराल महामारी कोरोना धमक दिस, खाय कमाए बर शहर नगर गे सबें कमइया ला बिनजबरन  सपरिवार अपन ठाँव लहुटे बर लग गिस। गाड़ी मोटर थमे के बाद,होटल ढाबा, बाजार दुकान  मा ताला लगे के बाद कोन कइसे छइयां भुइयाँ लहुटिस तेला उही मन जाने। *कहिथे जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसि* इही भाव के दर्द वो समय मोरो आँखी मा दिखिस, तब महूँ लिखेंव, जेमा पत्नी अपन पति ला काहत हे--

*चल चल जोड़ी किरिया खाबों,सेवा करबों माटी के।*

*साग दार अउ अन्न उगाबों, मया छोड़ लोहाटी के।*

*चरदिनिया सुख चटक मटक बर,छइयां भुइयाँ नी छोड़न।*

*परके काज गुलामी खातिर, माटी के मुँह नइ मोड़न।*

*ठिहा बनाबों जनम भूमि मा,माटी मता मटासी के----*

           शहर नगर मा जाके नकदी कमाना ही धनार्जन नोहे, जइसे जिनगी जिये बर माटी मा पाँव रखना पड़थे,वइसने माटी ले जुड़ाव जरूरी हे। अपन ठिहा ठौर मा खेती किसानी करत, दू पइसा कमावत दया मया के धन दोगानी जोड़त सुकून के जिनगी बिताए जा सकत हे, जादा अउ चमक धमक के प्यास भारी घलो पड़ जथे। श्रम, सेवा के बदला पइसा मिले, वस्तु मिले या फेर मया, जीवकोपार्जन बर धन ही आय। जेखर थेभा मा सुकूँन के जिनगी जिये जा सकत हे। ग्रामीण अंचल मा आजो ये सब चलत हे,अब जब बात नारी मन के होवत हे ता, उन मन घलो जम्मो प्रकार के,सेवा - श्रम मा बरोबर योगदान देवत हे, जेला गीत कविता के माध्यम ले देख सुन सकथन। गीत कविता भले नारी मनके सबे बूता अउ योगदान तक नइ पहुँचे होही पर नारी मन आज आगास-पताल, जल-थल, खेल-रेल,घर-खेत, उत्तर दक्षिण,पूरब पश्चिम सबें कोती अपन श्रम सेवा,गुण गियान के परचम लहरावत हे, जेमा हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन उन्नीस नही बीस हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

तो मार मुझे............. ----------------------------------------------

 ...........तो मार मुझे.............

------------------------------------------------

माना     नजरें , गलत   थी    मेरी,

पर नजरें तेरी सही है,तो मार मुझे।


हाँ दिल में  बैर, पाल  रखा  था  मैंने,

पर तेरे दिल में बैर नही है,तो मार मुझे।


आज तो बुराई घर घर, घर कर गई है,

यदि सच में बुराई यही है,तो मार मुझे।


मैं तो कब का मर चुका हूँ,श्रीराम के हाथो,

तेरे  दिल  में  राम  कही  है, तो  मार  मुझे।


मैं तो बहक गया था,हाल बहन का देखकर,

वो सनक तेरी रग में बही है,तो मार मुझे।


मैंने तो लुटा दिया,घर परिवार सब कुछ,

मेरे कारण तेरी आस ढही है,तो मार मुझे।


हजार बुराई लिये, हँस रहा है आज का रावण,

ये लकड़ी का पुतला वही है,तो मार मुझे।


मैं तो हर बार मरने को,  तैयार  बैठा हूँ,

यदि बुराई कम हो रही है ,तो मार मुझे।


              जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बालको(कोरबा)

विजयदशमी पर्व की आप सबको ढेरों बधाइयाँ


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


कुंडलियाँ छंद- रावन(जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया")


रावन रावन हे तिंहा, राम कहाँ ले आय।

रावन ला रावन हने, रावन खुशी मनाय।

रावन खुशी मनाय, भुलागे अपने गत ला।

अंहकार के दास, बने हे तज तप सत ला।

धनबल गुण ना ज्ञान, तभो लागे देखावन।

नइहे कहुँती राम, दिखे बस रावन रावन।।


रावन के पुतला कहे, काम रतन नइ आय।

अहंकार ला छोड़ दव, झन लेवव कुछु हाय।

झन लेवव कुछु हाय, बाय हो जाही जिनगी।

छुटही जोरे चीज, धार बोहाही जिनगी।

मद माया लत लोभ, खोज लग जाव जलावन।

नइ ते जलहू रोज, मोर कस बनके रावन।


रावन हा कइसे जले, सावन कस हे क्वांर।

रझरझ रझरझ पानी गिरे, होवय हाँहाकार।

होवय हाँहाकार, देख के पानी बादर।

दिखे ताल कस खेत, धान हा रोवय डर डर।

जगराता जस नाच, कहाँ होइस मनभावन।

का दशहरा मनान, जलावन कइसे रावन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


दोहा


थर-थर कापत हे धरा, का बिहना का शाम।

आफत ला झट टार दौ, जयजय जय श्री राम।


घनाक्षरी


आशा विश्वास धर,सियान के पाँव पर,

दया मया डोरी बर,रेंग सुबे शाम के।

घर बन एक मान,जीव सब एक जान,

जिया कखरो न चान,छाँव बन घाम के।

मीत ग मितानी बना,गुरतुर बानी बना,

खुद ल ग दानी बना,धर्म ध्वजा थाम के।

रद्दा ग देखावत हे,जग ला बतावत हे,

अलख जगावत हे,चरित्र ह राम के।


मन म बुराई लेके,आलस के आघू टेके,

तप जप सत फेके,कैसे जाबे पार गा।

झन कर भेदभाव,दुख पीरा न दे घाव,

बढ़ाले अपन नाँव,जोड़ मया तार गा।

बोली के तैं मान रख,बँचाके सम्मान रख,

उघारे ग कान रख,नइ होवै हार गा।

पीर बन राम सहीं,धीर बन राम सहीं,

वीर बन राम सहीं,रावण ल मार गा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

आज के रावण


बिन डर के मनमर्जी करत हे,आज के रावण।

सीता संग लक्ष्मी सरसती हरत हे,आज के रावण।

अधमी ,स्वार्थी ,लालची अउ बहरूपिया हे,

राम लखन के रूप घलो धरत हे,,आज के रावण।


बहिनी के दुख दरद नइ जाने,आज के रावण।

मंदोदरी हे तभो मेनका लाने,आज के रावण।

न संगी न साथी न लंका न डंका,

तभो तलवार ताने,आज के रावण।


भला बनके भाई के भाग हरे,आज के रावण।

आगी बूगी म घलो नइ जरे,आज के रावण।

ज्ञान गुण के नामोनिशान नही जिनगी म,

घूमय हजारों बुराई धरे ,आज के रावण।


जाने नही एको जप तप ,आज के रावण।

दारू पीये शप शप, आज के रावण।

मुर्गी मटन मछरी ल, पेट म पचावव,

सबे चीज झड़के गप गप,आज के रावण।


हे गली गली घर घर भरे,आज के रावण।

तीर तलवार म नइ मरे,आज के रावण।

बनाये खुद बर झूठ के कायदा कानून,

दिनोदिन तरक्की करे,आज के रावण।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


एसो के रावण


एसो के रावण, घुर घुर के मरही।


बरसा बड़ बरसत हे,बुड़ के मरही।


कुँवार महीना घलो,पानीच पानी।


छत्ता ओढ़े बइठे हवै,माता रानी।


जम्मो कोती माते,हावै गैरी।


कोन हितवा हे,कोन हे बैरी।


बन के का,रक्सा अन्तःपुर के मरही।


एसो के रावण, घुर घुर के मरही----।


एसो जादा सजे कहाँ हे।


बाजा गाजा बजे कहाँ हे।


आँखी कान पेट धँस गेहे,


मेंछा घलो मँजे कहाँ हे।


पहली ले एसो,खड़े नइहे।


तलवार धरके,अँड़े नइहे।


कोरबा रायगढ़ अउ रायपुर के मरही।


एसो के रावण,घुर घुर के मरही------।


नइ बाजे डंका।


नइ बाँचे लंका।


लगन तिथि बार,


सब मा हे शंका।


हाल बेहाल हे,गरजे कइसे।


सब तो रावण हे,बरजे कइसे।


पानी अउ अभिमानी देख,चुर चुर के मरही।


एसो के रावण, घुर घुर के मरही-----------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

शरद पुन्नी के आप सबो ला सादर बधाई

 शरद पुन्नी के आप सबो ला सादर बधाई


सूरज कस उजियार कर, हवस कहूँ यदि एक।

चंदा बन चमकत रहा, तारा बीच अनेक।।।।।।


पुन्नी के चंदा(सार चंदा)


सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।

अँधियारी रतिहा ला छपछप,काँचत हावै चंदा।


बरै चँदैनी सँग में रिगबिग, सबके मन ला भाये।

घटे बढ़े नित पाख पाख मा,एक्कम दूज कहाये।

कभू चौथ के कभू ईद के, बनके जिया लुभाये।

शरद पाख सज सोला कला म,अमृत बूंद बरसाये।

सबके मन में दया मया ला,बाँचत हावै चंदा--।

सज धज के पुन्नी रतिहा मा,नाँचत हावै चंदा।


बिन चंदा के हवै अधूरा,लइका मन के लोरी।

चकवा रटन लगावत हावै,चंदा जान चकोरी।

कोनो मया म करे ठिठोली,चाँद म महल बनाहूँ।

कहे पिया ला कतको झन मन,चाँद तोड़ के लाहूँ।

बिरह म रोवत बिरही ला अउ,टाँचत हावै  चंदा--।

सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।


सबे तीर उजियारा हावै,नइहे दुःख उदासी।

चिक्कन चिक्कन घर दुवार हे,शुभ हे सबके रासी।

गीता रामायण गूँजत हे, कविता गीत सुनाये।

खीर चुरत हे चौक चौक मा,मिलजुल भोग लगाये।

धरम करम ला मनखे मनके,जाँचत हावै चंदा----।

सज धज के पुन्नी रतिहा मा, नाँचत हावै चंदा।


शरद पुन्नी के चंदा,


ए,शरद पुन्नी के चंदा,

टुकनी म बइठार के तोला।

देखाहूँ मोर गाँव घर,

खेत खार घर कोला---।।


तोर बरसत अमृत ले,

सींचहूँ खेत खार ल।

तोर तेज ले टारहूँ,

इरसा जर बुखार ल।

बाँटहूँ मैं सबला,

तोर कला सोला-----।।


घुमाहूँ,मयारु मनके,

नजर ले बँचावत।

नान नान लइका मन ल,

टुहूँ देखावत।

उतारहूँ आमा तरी म,

तोर डोला------------।।

 

जिहाँ सुरुज घलो नइ जाय,

उँहचो ल उजराहूँ।

जागत मनखे मन बर,

दाई लक्ष्मी बन जाहूँ।

मोर टुकनी के लाड़ू खा ले,

बिरथा हे धनी के झोला----।।


नदी धार म,दीया ढील के,

मनभर डुबकी लगाहूँ।

हूम धूप दे पूजा करहूँ,

तोर महिमा ल गाहूँ।

आसा के पुल बाँधत हावै

मोर गरीबिन चोला----।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


अपने ही जलाते हैं, तो आग ढूँढकर क्या करूँ।

आस्तीन ही डसते हैं, तो नाग ढूँढकर क्या करूँ।

तेरे-मेरे;  इसके-उसके; सब में तो है,

फिर कोसों दूर चंद्रमा में दाग ढूँढकर क्या करूँ।

खैरझिटिया

शरद पूर्णिमा के अवसर पर,,,चाँद पर गीत

 शरद पूर्णिमा के अवसर पर,,,चाँद पर गीत


1,रे चांदनी हमारी गली चांद ले के आज, जा जा रे चंदा फिल्म - चांद (1959) --------------------------------- ---------------------------- ------------------------

2,आधा है चंद्रमा रात आधी, रह ना जाए तेरी मेरी बात आधी फिल्म - नवरंग (1958) --------------- -------------------------------------------------- 

 3,ऐ चॉद तेरी चांदनी की कसम मेरा चांद मेरे पास है फिल्म - तेरा जादू चल गया (2000) ----------------------------- ----------------- ------------------

4,भरोसा करो तुम साथ निभाऊंगा ..चांद के पार चलो

फिल्म - चांद के पार चलो (2006)

-------------------------------------------------- ---------

5,चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो

फिल्म - पाकीजा (1972)

------------------------------------------- ----------------

6,चमकते चांद को टूटा हुआ तारा बना डाला

फिल्म - आवारागी (1990)

--------------------------------- ---------------------

7,चांद आहें भरेगा फूल दिल थाम लेंगे

फिल्म - फूल बने अंगरे (1963) 

----------------------------- ------------- --

8,चांद अकेला जाए सखी री 

फिल्म - आलाप (1977)

---------------------------- ---- -------------------------- --

9,चांद छुपा बादल में  शर्मा के मेरी जाना

फिल्म - हम दिल दे चुके सनम (1999)

------------------ ------------------------------------------------- 

10,चांद एक बेवा की चुड़ी की तरह टूटा हुआ, कोई नहीं मेरा इस दुनिया में

फिल्म - दाग (1952 )

------------------------------------------- -----------

11,चांद जाने कहां खो गया, तुमको चेहरे से परदा हटाना था फिल्म - मैं चुप रहूंगी (1962) ------------------------ -------------------------------------------------- ----------

12,चांद जैसे मुखड़े पे बिंदिया सितारा नहीं भुलेगा मेरी जान फिल्म - सावन को आने दो (1979) -------- -------------------------------------------------- 

13,चांद के पास जो सितारा है, वो सितारा हसीन लगता है फिल्म -  स्वीकर किया मैंने (1983) ----------------------------

14,चांद की कटोरी है रात ये छतोरी है फिल्म - गुजारिश (2010) ------------------------ ------------------------------------------------- -------- 

15, चांद मेरा दिल चांदनी हो तुम, चांद से है दूर सी हांडी कहां फिल्म - हम किसी से कम नहीं (1977 ) ------------------------------------------- --------------------------------------------------------- 

16, चांद ने कुछ कहा, रात ने कुछ सुना फिल्म - दिल तो पागल है (1997) ----------------------------- ---------------------------- ------------------------ 


17,चांद निकलेगा जिधर हम ना  उधार देखेंगे फिल्म - दुर्गेश नंदिनी (1956)----------------------------------- ---------------------------------_ ------------ 

18,चांद फिर निकला, मगर तुम ना आए, जला फिर मेरा दिल, करुण क्या  फिल्म - पेइंग गेस्ट (1957)--------------- ---------------------------------------------------------

19, चांद सा मुखड़ा क्यों शर्मा, आंख मिली और दिल घबराया फिल्म - इंसान जाग उठा ( 1959)

-----------------------------------------------------_


20, चांद से पर्दा किजिये कहीं चुरा ना ले चेहरे का नूरी 

फिल्म - आओ प्यार करें (1994 ) -------------------------------------------------- _ ------

21,चांद सी महबूबा हो मेरी कब ऐसा मैंने सोचा था  फिल्म - हिमालय की गॉड मेन (1965) ------------------------ ------------------------------------- --------------- _ ----------------------- 

22,चांद सिफ़रिश जो कर्ता हमारी देता वो तुमको बताता फिल्म - फना (2006) ------------ -------------------------------------------------- ------------- _ ----------------------------------------  

23,चांद तारे फूल शबनम तुमसे अच्छा कौन है फिल्म - तुम से अच्छा कौन है (2002) 


-------------------------------------------------- ------------------------------------

24,चांद तारे तोड़ लाऊं साड़ी दुनिया पर मैं छौं

फिल्म -  यस बॉस (1997)

---------------------------- ------------------------ -----------------------------------------------

25, चांद तारों में नज़र आया चेहरा तेरा 

फिल्म - 2 अक्टूबर  (2003)

---------------------------- ------------------------ ----------------------------------------------- _

26,चंदा चमके छम चीखे जो चन्ना छोड़

फिल्म - फना (2006)

---------------------------- ------------------------ -----------------------------------------------

27, चंदा देखे चंदा, तो वो चंदा शरमाये फिल्म -  झूठी  (1985) ----------------------------- -------- -------------------------------------------------- _ ----------  28,चंदा है तू, मेरा सूरज है तू, ओ मेरी आंखों का तारा है तू फिल्म - आराधना (1968) 

 

---------------------------- ------------------------ ----------------------------------------------- 

29,चंदा की चांदनी में झूमे झूमे दिल मेरा, एक आने जाने लगी

फिल्म - पूनम (1952)

------------------------------------------- ----------------------------------------------------- _ ---- 

30,चंदा को धुंधने सभी तारे निकले पाए, गलियां में वो नसीब के

फिल्म - जीने की राह (1969) ----------------------------- ------------- -------------------------------------------------- _ 

31, चंदा मामा दूर के, पुए पकें बुरे के फिल्म - वचन (1955) ----------------------------- -------------------------------------------------- _ _ ---------- 32,चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा,  मेरी आंखों का तारा मेरा मामा फिल्म - कार्तव्य (1979) ------------- -------------------------------------------------- ------------- _ ---------------------------------------- 

33,चंदा ओ चंदा किसने चुराई तेरी मेरी निंदिया जाएंगे सारी रैना फिल्म - लाखों मैं एक (1971)


34,चंदा रे मेरे भैया से कहना बहुत याद करे, चंदा रे फिल्म - चंबल की कसम (19 80 ) ----------- -------------------------------------------------------- - _ -------------------------------------

35, चंदा रे चंदा रे कभी से जमीन पर आ फिल्म - सपने ( 1997) ----------------------------- ------------------- ------------------------------------------------------ 

36,चंदा रे जा रे जा रे , पिया को संदेसा मेरा कहियो जा फिल्म - ज़िद्दी (1948) ----------------------------- -------------------------------------------------- _ ---------


37, चंदा रे मोरी पतियां ल ए जा, स आजन तक पाहुचा दे रे 

फिल्म - बंजारन (1960)

--------------------------------------------------------------------------------- ------------------

38,चंदा तोरी चांदनी में  जिया जला जाए रे

फिल्म - बाजी (1963)

------------------- ---------------------------------------------------------

39,चंद्रमा मदभरा क्यू झूमे बदर में, वो खुशी अब कहां 

फिल्म - पटरानी (1956)

------------------------------------------- --------------------------------- _ ---- 

40,चौधवी का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम फिल्म - चौधवी का चांद (1960) ---------------------- -------------------------------------------------- _ ---------------------------

41, धीरे-धीरे चल चाँद गगन में फिल्म -  लव मैरिज (1959) ---------- -------------------------------------------------------- _ -------------------------------------- 


42,गगन के चंदा ना पुछह हम से कहां हूं मैं दिल मेरा कहां है फिल्म - अपने हुए परे (1964) -------------------------


---------------------------- ------------------------ ------------

43,गोरे-गोरे चांद से मुख पर काली-काली आंखें हैं

फिल्म - अनीता (1967)

-------------- ------------------------------------------ ---- _ ----------------------------------

44,जब तक जाएंगे चांद गगन में मेरे चांद तुम सोना नहीं

फिल्म - शिव कन्या ( 1954 )

------------------------------------------------- ------------------------------------------------------ _

45,झूमता मौसम मस्त माहिना, सी हाथ सी गोरी, एक हसीना, आंख में काजल

फिल्म - उजाला (1959)

----------------------------- ------------------------------------------------

46,खोया खोया चांद खुला आम आंखों में सारी रात जाएगी

फिल्म -  काला बाजार (1960)

----------------------------- --------------------- ----------------------------- - -------------

47,खोया खोया चांद रहता है आप के पास

फिल्म -  खोया खोया चांद (2007) ------------------------ ---------------------------------------------------- _ _ -------------- ------------- 

48,मेरे भैया को संदेशा पहंचना, रे चंदा तेरी ज्योत बढ़े हो फिल्म - दीदी (1959) ----- --------------------------------- _------------------------------------------- 


49,मेरे अनमोल रतन, तेरे बदले मैं जमाने

फिल्म - काजल (1965)

----------------------------------- ---------------------------------_ ------------

50,ओ चांद जहां वो जाए, तू भी साथ चले जाना, कैसा है, कहां है वो

फिल्म - शारदा (1957)

-------------- ----------------------------------------------_-------------------

51,ओ रात के मुसाफिर चंदा जरा बता दे, मेरा कुसूर क्या है तू फैसला सुना डी

फिल्म - मिस मैरी (1957)

------------------------------------------ --------------------------------------------------_ ------

52,रोज अकेली आए रोज बेचारी जाए चांद कटोरा लिए भीखरीन रात

फिल्म - मेरे अपने (1972)

---------------------------- ------------------------ ----------------------------------------------

53,तुझे सूरज कहूं या चंदा, तुझे दीप कहूं या तारा फिल्म 

एक फूल दो माली (1969)

----------------------------- ---------------------------- ------------------------ ----------------

54,तुम आए तो आया मुझे याद, गली में आज चंद निकला फिल्म - ज़ख्म (1998) ---------------- ---------------------------------------------------- _ _ ---------------------------------

55, तुम गगन के चंद्रमा हो, मैं धारा की धूल ह ऊ एन फिल्म - सती सावित्री ( 1964) ----------------------------- ------------------- ------------


---------------------------------------

56,हम चांद से प्यारे चांद हो तुम, आकाश पे जो मुस्कुराता है 

फिल्म - रात की रानी (1949)

----------------------------- ----------- -------------------------------------------------------- _ -------

57,वो चांद जैसी लड़की है दिल पे छ रही है

फिल्म -  देवदास (2002)

--------------------------- ------------------------------------------------------------- _ _ ---------------------

58,वो चांद खेला वो तारे हंसे ये रात अजब मातवाली है

फिल्म - अनाड़ी (19592)

------------- -------------------------------------------------- ------------- _ ----------------------------------------

59,याद रखना चंद तारों इस सुहानी रात को, याद रखना

फिल्म - अनोखा प्यार (1948)  

----------------------------- ------------- -------------------------------------------------- _ -----

60,ये चांद सा रोशन चेहरा, जुल्फों का रंग सुनाहरा

फिल्म - कश्मीर की कली (1964)

-------------------------- --------------------------------------------------------- _ _ ----------------------

61,ये चंदा रूस का, ना ये जापान का, ना ये अमेरिकन प्यारे

फिल्म - इंसान जाग उठा (1959)

------ --------------------------------- _ -----------------------------------------

62, ये रात भीगी-2, ये मस्ती

फ़िज़ायन, उठा धीरे-2 वो चाँद प्यारा-2

फ़िल्म - चोरी-चोरी (1956)

--------------------------------------------------------- ------------------------ -------------------

63,ये रात ये चांदनी फिर कहां, सुन जा दिल की दास्तान

फिल्म - जाल (1952)

-------------- ------------------------------------------ ---- _ -----------------------------------

64,ये वादा करो चांद के सामने भूला तो ना दोगे मेरे प्यार को

फिल्म - राज हाथ (1956 )

----------------------------- -------------------------------------------------- _ -

65,यूं शबनमी पहले नहीं थी चंदा चांद वो भरमा गया फिल्म - सांवरिया

(2007)

----------------------------- ----------------------------------------

66, इस चाँद का मुकाबलाक्या होगा उस चाँद के आगे, तेरे नाम(2003)


67, मैने पूछा चाँद से कि देखा है कहीं, मेरे यार 

अब्दुल्लाह(1980)


68,घूँघट में चाँद होगा आँचल में चांदनी- खूबसूरत (1999)


छत्तीसगढ़ी गीत

1,चंदा रे ए रे मोर चंदा बन जा मोरे


2,चंदा अंजोरी आगे न


3,फटिक अंजोरी निर्मल छैहा गली गली बगरावै वो पुन्नी


4,ए ममा चंदा, देश बर दे हम ला हंडा


5, नीलकमल के चंदा रानी वो, आ रानी मोर


6, चंदा वो चंदा तोला


7,तोर चंदा कस चेहरा आँखी मा झूले वो 


8, दूज के चंदा


9, तैं आये नही चंदा रे


10,मोला बइहा बनाये चंदा


11, तोर सुरता मा चंदा


12, चंदा के टिकली


13, चंदा तोर मया मा


14,चंदा बनके जीबों-लक्ष्मण मस्तुरिया


15, चंदा अँजोरी आगे हो


16,चंदा सुरुज अउ नौ  लाख तारे


17,


साभार-गूगल महराज अउ u tube

लावणी छंद- जानवर ले गय बीतिस मनखे

 लावणी छंद- जानवर ले गय बीतिस मनखे


मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।

मार काट होवत हे भारी, रोज रक्त बोहावत हे।।


मया बाप बेटा मा नइहे, कलपत हे महतारी हा।

भाई भाई लड़त मरत हे, थकगे टँगिया आरी हा।

धरम जात पद पइसा खातिर, कतको मर खप जावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।।।


मोल भुलाके मनुष जनम के, मनखे बनगे बजरंगा।

मया प्रीत के गाँव शहर मा, फैलावत हावय दंगा।।

उफनत हावय रिस मा कोनो, ता कोनो उकसावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।।।


सरग नरक अउ पाप पुण्य ला, कहिके ढोंग दिखावा सब।

बिना डरे काटत भूँजत हे, बनके मिर्मम लावा सब।

शिक्षा हे संस्कार सिरागे, ये कलयुग मतलावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी

 कुंडलियाँ छंद- दर्जी अउ देवारी


देवारी के हे परब, तभो धरे हें हाथ।

बड़का धोखा होय हे, दर्जी मन के साथ।

दर्जी मन के साथ, छोड़ देहे बेरा हा।

हे गुलजार बजार, हवै सुन्ना डेरा हा।

पहली राहय भीड़, दुवारी अँगना भारी।

वो दर्जी के ठौर, आज खोजै देवारी।1


कपड़ा ला सिलवा सबें, पहिरे पहली हाँस।

उठवा के ये दौर मा, होगे सत्यानॉस।

होगे सत्यानॉस, काम खोजत हें दर्जी।

नइ ते पहली लोग, करैं सीले के अर्जी।

टाप जींस टी शर्ट, मार दे हावै थपड़ा।

शहर लगे ना गाँव, छाय हे उठवा कपड़ा।


दर्जी के घर मा रहै, कपड़ा के भरमार।

खुले स्कूल कालेज या, कोनो होय तिहार।

कोनो होय तिहार, गँजा जावै बड़ कपड़ा।

लउहावै सब रोज, बजावैं घर आ दफड़ा।

कपड़ा सँग दे नाप, सिलावैं सब मनमर्जी।

उठवा आगे आज, मरत हें लाँघन दर्जी।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

वाह रे पानी-सार छंद

 वाह रे पानी-सार छंद


पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।

खेवन खेवन पानी बरसे, सफरी सरना सोगे।


का कुँवार का कातिक कहिबे,लागत हावै सावन।

रोहों पोहों खेत खार हे, बरसा बनगे रावन।।

धान सोनहा करिया होगे, लगगे कतको रोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


लूवे टोरे के बेरा मा, कइसे करयँ किसनहा।

आसा के सूरज हा बुड़गे,बुड़गे डोली धनहा।

जाँगर टोरिस जउन रोज वो, दुख मा अउ दुख भोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।।


करजा बोड़ी के का होही, संसो फिकर हबरगे।

देखमरी बादर ला छागे, देखे सपना मरगे।

चले धार कोठार खेत मा, सोच सोच सुध खोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

वाल पेपर

 वाल पेपर


               पोतई लिपई छभई मुँदई बड़ महिनत लगथे देवारी बुता म, फेर आज नवा जमाना म वाल पेपर के एंट्री सबे चीज ले छुटकारा देय के ताकत रखथे, बशर्ते वाल होय। साज सज्जा के इही क्रम म, अमेजन  म वाल पेपर छाँटत बेरा,जुन्ना सुरता मन म आगे।

               वाल केहे त दीवाल अउ पेपर केहे त पेपर, माने दीवाल म चिपकाय वाले पेपर। येमा "वाल पेपर" कहे ले भारी वजन बढ़ जावत हे, फेर वाल माने दीवाल,,  ठेठ भाँखा म कहन त कोठ---। कुछ सुरता आइस? हॉं कोठ अउ पेपर काहत हँव। एक जमाना रिहिस जब माई खोली, परछी, रसोई जमे जघा देख देख के कोठ म पेपर ठेंसाय रहय, फेर सो पिस बर नही ओखरो कारण रहय। हाड़ी खोली धुँवा म झन रचे, खूँटी म टँगाय कपड़ा म छूही झन रचे आदि आदि।  हमर कस नवा लइका मन अपन अपन खोली म हीरो हीरोइन के फोटू वाले पेपर ल, सो पीस बरोबर घलो चिपकावन। कुरिया, परछी बने घलो दिखे अउ ओन्हा कोठ मइलाय घलो नही। शनिवार अउ इतवार के ज्यादातर रंगीन पेपर आवय। रतिहा होय के पहली दुकानदार ल चार आना देके, मैं खुद घर लाके कतको बेर अपन कुरिया म रंगबिरंगी  पेपर लगाये हँव। हो सकथे,आपो मन लगाये होहू, फेर रंगीन अउ सादा पेपर आपके मिजाज अउ उपलब्धता अनुसार होही।

                        खैर छोड़व, तइहा के बात ल बइहा लेगे। आज चकाचौध के दुनिया म  कोठ(वाल) बर, रंग रंग के पेंट, पुट्टी, टाइल्स, मार्बल आगे हे। इँखर माँग घलो भारी हे, अउ मोटहा रकम घलो तो ढिल्ला करे बर लगथे। फेर आज तुरते ताही अच्छा देखाय बर, वाल पेपर के माँग भारी बढ़त जावत हे, पेंट पुट्टी टाइल्स मार्बल कस मनमोहक घलो दिखथे। हाँ भले जादा टिकाउ नइ रहे, फेर टिकई ल कोन देखत हे, आहा जिनगीच ह, नइ टिकाऊ हे त का पेंट, पुट्टी अउ पेपर?  कथे दुनिया गोल हे, त दुनिया म होवइया जमे चीज घलो घूमत रहिथे, चीज उही रथे, रूप या फेर नाम बदल जाथे। इही क्रम म वाल  पेपर घलो हे, कोठ के जघा सीमेंटेड दीवाल अउ पेपर के जघा रंग रंग के स्टिकर अउ डिजाइनिंग पेपर। अखबारी पेपर के जघा इही वाल पेपर छाये हे, चाहे बेडरूम होय, किचन या फेर बैठक। येमा किचन म चपके पेपर तेल, फूल के दाग ले बचे बर हो सकथे, फेर हाल, बैठक, बेडरूम आदि म सो पीस बरोबर ही मिलथे। वर्तमान म वाल पेपर के माँग भारी बढ़त जावत हे, काबर कि पोते लीपे के झंझट नही अउ सस्ता के सस्ता, टिकाऊ ल कोन देखत हे। 

                 एक समय लिखो फेको के अलग से पेन आय, जेमा रिफिल भरा के दुबारा नइ लिखत रेहेन, फेर आज सबे पेन लिखो फेको होगे हे, बिरले लिखइया रिफिल डाल के अउ बउरत होही। सस्ता अउ लिखो फेको के अत्तिक पावर  हे कि कोनो भी बने चीज के उपलब्धता अउ कीमत कम होय ले उहू चीज घलो लिखो फेको हो जथे। मोर केहे के मतलब ये हे कि मनखे के रुझान अइसने हे, यूज एंड थ्रो वाला। आसपास सब देखते हन ,, चीज बस का नत्ता रिस्ता घलो इही म सवार होवत हे,,,।     

                         आज के सोच अउ समय ल देखत,कहूँ वाल पेपर कस चकाचोंध अउ चरदिनिया चीज कोती सबे के रुझान चल देही, त पेंट पुट्टी टाइल्स कस टिकाऊ अउ मूलभूत चीज के मरना हो जही। ये जमाना के सोच चिरहा कथरी म चमचमावत खोल धराये वाला हे। कतको जघा बिना लीपे पोते घलो वाल पेपर चिपके दिखथे, ये थोरे जुन्ना जमाना के कोठ हरे,जेमा पोते लीपे के बाद ही अखबारी पेपर चिपके। आज  घर तो घर मनखे मनके रहन सहन चाल चलन घलो वाल पेपर बरोबर होते जावत हे, जे बाहिर ले चमचमावत हे, फेर भीतर ल कोन जाने पोताय लिपाय हे,कि नही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

नेवता- मातर हे मोर गाँव म -------------------------------

 नेवता- मातर हे मोर गाँव म

-------------------------------

देवारी के बिहान दिन,

मातर हे मोर गाँव  म।

नेवता  हे झारा-झारा,

उघरा राचर हे मोर गाँव म।

देवारी  के  बिहान दिन,

मातर हे  मोर  गाँव  म।


गाँव-गुढ़ी   के  मान  म।

सकलाबोन गऊठान म।

राऊत भाई मन,मातर जागही।

सिंग - दमऊ - दफड़ा बाजही।

खीर-पुड़ी  बरा-सोंहारी संग

घरो-घर चूरे,अंगाकर हे मोर गाँव म।

देवारी  के  बिहान दिन,

मातर हे  मोर  गाँव  म।


गाय-गरु संग,गाँव के गाँव नाचही।

अरे  ररे  हो कहिके,दोहा  बाँचही।

डाँड़   खेलाही , गाय - बछरू   ल,

खीर  -  पुड़ी  के ,परसाद  बाँटही।

अंगना -दुवारी कस, सबके जिया,

चातर हे मोर गाँव म।

देवारी के बिहान दिन,

मातर हे मोर गाँव  म।


घरो-घर गोबरधन,

भगवान  देख ले।

मेमरी-सिलिहारि 

संग खोंचाय हे,

धान  देख   ले।

डोली-डंगरी,गली-खोर संग,

नाचे लइका-सियान देख ले।

मया मोठ हे,

बैर पातर हे मोर गाँव म।

देवारी  के  बिहान  दिन,

मातर  हे  मोर  गाँव  म।

नेवता   हे    झारा-झारा,

घरो-घर   उघरा राचर हे,

मोर   गाँव   म---------।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


नदी


झरना बने झरथे नदी।

सागर चरण परथे नदी।1


गाँव अउ शहर तट मा बसा।

दुख डर दरद दरथे नदी।2


बन बाग बारी सींच के।

आशा मया भरथे नदी।3


चंदा सितारा संग मा।

बुगबाग बड़ बरथे नदी।4


नभ तट तरू के दाग ला।

दर्पण बने हरथे नदी।5


बढ़ जाय बड़ बरसात मा।

गरमी घरी डरथे नदी।6


पी कारखाना के जहर।

जीते जियत मरथे नदी।7


तरसे खुदे जब प्यास मा।

दुख दाब घिरलरथे नदी।8


देथे लहू तन चीर के।

दुख देख ओगरथे नदी।9


जाथे जभे सागर ठिहा।

आराम तब करथे नदी।10


खुद पथ बना चलथे तभे।

तारे बिना तरथे नदी।11


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

दीपावली और हिंदी गीत कविताएँ*

 *दीपावली और हिंदी गीत कविताएँ*


                    कार्तिक मास अमावस्या को मनाये जाने वाला पावन पर्व दीपावली भारतवर्ष के प्रमुख हिंदू त्यौहारों में एक है। इसी दिन भगवान राम चौदह वर्ष वन में व्यतीत कर अयोध्या पधारे थे, और अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर भगवान राम का स्वागत किया था। तब से लोग दीपावली के दिन दीप जलाते आ रहे है। धनतेरस, नरक चतुर्दशी, लक्ष्मी पूजन, गोवर्धनपूजन और भाईदूज इस तरह दीपावली पाँच दिनों का त्यौहार होता है, सभी त्यौहारों के पीछे अलग अलग धार्मिक/ पौराणिक महत्ता है। शीतल मंद पवन और गुलाबी ठंड लेकर पधारने वाली महापर्व दीपावली लोगों को नाचने गाने पर मजबूर कर देते है। दीपावली की तैयारियाँ सभी लोग बड़े जोर शोर से करते हैं। घर आँगन की साफ सफाई, लिपाई पुताई के साथ, सभी नए नए कपड़े पहनकर फुलझड़ी  और पटाखें फोड़ते है, मेवा मिठाई बाँटते है, दीये जलाते है, और भाईचारे की भावना से ओतप्रोत एक दूसरे को प्रकाश पर्व की बधाई देकर गले मिलते है। टिमटिमाते हजारों दिये, रंग रोगन होकर इठलाते घर आँगन, खेतो में नाचती धान की सुनहरी बालियाँ, फूटते पटाखें, नए नए कपड़े सभी के मन को मुग्ध कर देती है। ऐसे में  हम सबके मुखार बिंद से गीत कविता न निकले, ऐसा हो ही नही सकता। दीपावली को असंख्य कवियों और गीतकारों ने अपने अपने शब्दों में बांधे हैं, चलते है, उनमें से कुछ गीत कविताओं की ओर--


               माता लक्ष्मी कार्तिक अमावस्या के अँधेरी रातों में किस तरह और कैसे लोगों के घर घर तक दस्तक देतीं है, उसे बताते हुये कवि *माखनलाल चतुर्वेदी* जी लिखतें हैं-

सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें

कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।

लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में

लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में

लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में

लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में

लक्ष्मी सर्जन हुआ

कमल के फूलों में

लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।


             हमारा भारत कृषिप्रधान राष्ट्र है। त्यौहार आदि सब कृषि के अनुसार ही मनाये जाते है। किसान,श्रमिक, मेहनत कस मजदूर आदि सतत काम करते हैं, पर फल नाममात्र पाते हैं। उन सब लोगों के लिये, सुख समृद्धि की कामना करते हुए, दीवाली के दीपक के माध्यम से राष्ट्रकवि *मैथलीशरण गुप्त* जी कहतें हैं-

जल, रे दीपक, जल तू

जिनके आगे अँधियारा है,

उनके लिए उजल तू

जोता, बोया, लुना जिन्होंने

श्रम कर ओटा, धुना जिन्होंने

बत्ती बँटकर तुझे संजोया,

उनके तप का फल तू

जल, रे दीपक, जल तू


                दीपावली हिंदुओ का सबसे बड़ा धार्मिक त्यौहार है, इस पर्व को सभी लोग बड़े धूमधाम से मनाते है। इस दिन छोटे बड़े सभी के घरों में खासा उत्साह,उमंग और चहल पहल रहती है। देश,राज और समाज की स्थिति को देखकर, दीये को सम्बोधित करते हुए कवि श्री *अयोध्या सिंह उपाध्याय"हरिऔध"* जी तातंक छंद में कहते है--

दीपमालिके! दीपावलि ले आती हो, तो आ जाओ;

घूम तिमिर-पूरित भारत में भारतीयता दिखलाओ।

जो आलोकवान बनते हैं, उनमें है आलोक नहीं;

ज्योति-भरे उनके लोचन हैं, जो सकते अवलोक नहीं।

हैं हिन्दू-कुल-कलस कहाते, सूझ बहुत ही है आला;

किंतु विलोक नहीं सकते, वे हिन्दू-अंतर की ज्वाला।


          दीपावली उत्साह उमंग के साथ साथ आशा और विश्वास का भी पर्व होता है, जो अमावस को भी पूनम कर देती है। पुरानी बातों को भूलकर नवविश्वास और आस ले, नए कार्य में रत हो जाने की प्रेरणा, दीपावली हम सबको प्रदान करती है। दीपावली पर बुझे दीपक जलाने की बात करते हुए, कवि सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्सायन अज्ञेय जी कहते हैं-

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।

है कंहा वह आग जो मुझको जलाए,

है कंहा वह ज्वाल पास मेरे आए,

रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ;

आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।


              जब चहुँओर हताशा हो और बुराई अच्छाई पर हावी हो जाए, तब मानव मन में नव ऊर्जा की संचार करती हुई, पूर्व प्रधानमंत्री, कवि श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की ये पंक्ति दीपावली पर याद आती है---

आओ फिर से दिया जलाएं

भरी दुपहरी में अंधियारा

सूरज परछाई से हारा

अंतरतम का नेह निचोड़ें

बुझी हुई बाती सुलगाएं।

आओ फिर से दिया जलाएं


                    दीपावली की रात चहुँओर टिमटिमाते दीपों को देखकर कवि *सोहनलाल द्विवेदी* जी लिखतें हैं-

हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,

नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,

कैसी उजियाली है पग-पग,

जगमग जगमग जगमग जगमग!

छज्जों में, छत में, आले में,

तुलसी के नन्हें थाले में,

यह कौन रहा है दृग को ठग?

जगमग जगमग जगमग जगमग!


           वैज्ञानिक युग में आज हम चाँद तारों पर पग रख रहे है, हमारी पहचान और पहुँच बढ़ती ही जा रही है। दूर देखने के चक्कर में हम कभी कभी पास को देखना भूल जाते है, उसी को "दीवाली के दिये" के माध्यम से याद दिलाते हुये कवि श्री *केदारनाथ सिंह* जी कहते है--

जाना, फिर जाना,

उस तट पर भी जा कर दिया जला आना,

पर पहले अपना यह आँगन कुछ कहता है,

उस उड़ते आँचल से गुड़हल की डाल

बार-बार उलझ जाती हैं,

एक दिया वहाँ भी जलाना;


                 दीपक महज दीये,बाती और तेल का नही, बल्कि आत्ममविश्वास, एकता और भाईचारे का भी जलना चाहिये,तभी  हार,बाधा,विकार जैसे तम दूर होते है, इसी बात को शब्द देती हुई कवयित्री *महादेवी वर्मा* जी लिखतीं है---

सब बुझे दीपक जला लूँ!

घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!

क्षितिज-कारा तोड़ कर अब

गा उठी उन्मत आँधी,

अब घटाओं में न रुकती

लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,

धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ!


मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!

युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल

प्रियतम का पथ आलोकित कर!

- महादेवी वर्मा


            एक कहावत है- दीया तले अँधेरा। इसी पर व्यंग्य कसते और चुनौती देते हुये *गोपालदास "नीरज"* जी कहते हैं---

जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना,

अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। 


                  दीवाली में हजारों छोटे बड़े दीप जलकर अमावस को पूनम करते है, इसी भावना से ओतप्रोत कवि *हरिवंश राय बच्चन* जी एकता के दीप जलाने के लिये कह रहे है-

शत-शत दीप इकट्ठे होंगे

अपनी-अपनी चमक लिए,

अपने-अपने त्याग, तपस्या,

श्रम, संयम की दमक लिए।


           आदमी को भी दीपक बनकर जलना चाहिये, हार से निराश नही सीख लेकर बढ़ना चाहिये। हर कार्य और श्रम को साधना मानकर चलना चाहिये। इसी भाव में दीपक के बहाने कवि *हरिवंश राय बच्चन* जी कहते है----

उजियारा कर देने वाली

मुस्कानों से भी परिचित हूं,

पर मैंने तम की बाहों में अपना साथी पहचाना है

मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है।


             दीवाली के जगमग जलते दीपक को देखकर अपने मन को संबोधित करते हुए *रामेश्वर शुक्ल 'अंचल'* जी लिखते हैं--

जलती बाती मुक्त कहाती 

दाह बना कब किसको बंधन

रात अभी आधी बाकी है 

मत बुझना मेरे दीपक मन


               जिस तरह बाती को जलने के लिये तेल की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार से प्रेम रस जिंदगी को सदा आलोकित करती रहती है। इसी भाव को गति देते हुए *गोपालसिंह 'नेपाली'* जी  लिखते हैं---

बची रही प्रिय की आँखों से,

मेरी कुटिया एक किनारे,

मिलता रहा स्नेह रस थोड़ा,

दीपक जलता रहा रात-भर ।


           दीये की रौशनी महज रौशनी नही, *शाहिद मिर्ज़ा शाहिद* के नजरिये में कुछ और भी है, चलो हम भी उस चमकते लौ में अपने मंजिल/आस-विश्वास को ढूंढने का प्रयास करें-

दीपमाला में मुसर्रत की खनक शामिल है

दीप की लौ में खिले गुल की चमक शामिल है

जश्न में डूबी बहारों का ये तोहफ़ा शाहिद

जगमगाहट में भी फूलों की महक शामिल है


                         इस तरह दीवाली से संबन्धित असंख्य कविताएं हैं, उन सब का जिक्र कर पाना मुश्किल है। आदिकाल से लेकर आधुनिक काल में अब तक, बहुत सारे कविगण दीपावली को अपने शब्दों में बाँधे है। उक्त  लेख में सिर्फ कुछ पंक्तियाँ ही उल्लेखित है, और भी पढ़ने से पूर्णतया कवि के भाव शिल्प को जाना जा सकता है, और प्रकाश पर्व का सम्पूर्ण काव्यमय आनंद लिया जा सकता है। अब बात करते है, दीपावली से संबन्धित कुछ चर्चित गीतों की---


1, आई दीवाली आई दीवाली दीपक संग नाचे पतंग

फिल्म- रतन (1944) 


2, आई दिवाली आई कैसे उजाले लाई, घर-घर खुशियों के दीप जले

फिल्म-खजांची [1958]


3, आई अब की साल दिवाली मुंह पर अपने खून मले

फिल्म -हकीकत (1964)


4, आई दिवाली दीप जलाये जा, ओ मतवाले साजन

फिल्म-पगड़ी (1948)


5, आई दीवाली दीपों वाली गाय सखियां 

 फिल्म -महाराणा प्रताप (1964)


6, आई है दिवाली सखी आई है दिवाली रे आई है दिवाली

फिल्म-शीश महल (1950)


7, आई है दिवाली सुनो जी घरवाली आई है दिवाली

फिल्म -आमदानी अठ्ठनी खर्चा रुपइया [2001]


8, ए दुनिया बता हमने बिगाड़ा है क्या तेरा

फिल्म- किस्मत (1943)


9, दीप जले दीप दिवाली आई हो

फिल्म- पैसा (1957)


10, दीपक से दीपक जल गए, लो आज अंधेरे ढल गए

फिल्म- अंजलि (1957)


11, दीपावली मनाए सुहानी मेरे साई के हाथों में जादू का पानी

फिल्म -शिरडी के साईं बाबा (1977)


12, दिवाली आई रे घर-घर दीप जले

फिल्म -- लीडर (1964)


13, दिवाली के चिरागों हमें इश्क सिखा दे

फिल्म- रेणुका (1947)


14, दिवाली की रात, पिया घर आने वाली है,साजन घर आने वाली है

फिल्म-- अमर कहानी (1949)


15, दिवाली फिर आ गई सजनी, हां हां मन का दीप

फिल्म- खजांची (1941)


16, एक वो भी दिवाली थी एक यह भी दिवाली है 

फिल्म --नजराना (1961)


17, एक नया संसार सजाओ आज खुशी का दिन आया

फिल्म --वीर घटोत्कच (1949)


18, इस रात दीवाली ये कैसी यह कैसा उजाला छाया है

 फिल्म- सबसे बड़ा रुपैया 1955


19, जहां मैं आई दिवाली जले चराग जले

फिल्म-ताज (1956)


20, जगमगाती दिवाली की रात आ गई, जैसे तारों के घर में बारात आ गई

फ़िल्म - स्टेज [1951]


21, जल जल रे दीपक जल, काली काली रात निराली आज दिवाली

फिल्म-वामन अवतार (1956)


22, कैसे मनाएं दिवाली हम लाला, अपना तो 12 महीने दिवाला कै

फिल्म-- पैगाम (1959)


23, मेले हैं चिरागों के रंगीन दिवाली है

 फिल्म- नजारा (1961)


24, मेरे तुम्हारे सबके लिए हैप्पी दिवाली

 फिल्म- होम डिलीवरी (2005)


25, लाखों तारे आसमान में

 फिल्म-‘हरियाली और रास्ता‘(1962)


26, जोत से जोत जलाते चलो

फिल्म -“संत ज्ञानेश्वर”(1964)


                         दीपावली पर जिस तरह घर आँगन को साफ सफाई कर उत्साह उमंग के साथ जगमग दीप जलाते है, उसी प्रकार हम सबके अंतर्मन में भी सद्भावना,भाईचारे,सत,सम्मत और आशा विश्वास का दीपक,मानवता और प्रेम रूपी तेल में डूबकर सदा सर्वदा जलते रहना चाहिये।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

9981441795


साभार-गूगल,अल्पना वर्मा,प्रकाश गोविंद

....देवारी आगे.....

 .......देवारी आगे.....

-----------------------------------

उज्जर  -  उज्जर   घर     दुवार,

उज्जर-उज्जर बखरी-बारी लागे।

घरो   -     घर     खुसी      लेके,

देख         देवारी            आगे।


ददा डार  देहे  दू  डुवा,

तेल उपरहा  दिया   म।

चुक-चुक ले लिपाय हे,

सुत जा घलो भिंया म।


दाई के हाथ लऊहा-लऊहा,

चलत     हवे     हाँड़ी    म।

कुकुर-बिलई ताकत हे रोटी,

बइठे  -  बइठे    भाँड़ी   म।


कखरो    घर   नवा     सइकिल,

त कखरो घर नवा  गाड़ी  आगे।

घरो   -     घर     खुसी      लेके,

देख         देवारी            आगे।


छभा-मूँदा लिपा-पोता के,

खुसी  म हाँसत  हे कोठ।

छुरछुरी टिकली बत्ती धरे,

लइकामन नाचत हे पोठ।


गाय - बछरू बइला-भँइस्सा,

चिक्कन-चिक्कन दिखत हे।

आनी - बानी    के   जिनिस,

जघा  - जघा    बिकत    हे।


दोहा    पारे      कांछर      उन्डे,

ददंग  -  ददंग   दफड़ा     बाजे।

घरो   -     घर     खुसी      लेके,

देख         देवारी            आगे।


रतिहा तुलसी चँवरा रिगबिगात हे।

दुवार भर बहिनी मन रंगोली बनात हे।

ओनहा-कोनहा म दिया बरत हे।

बरा - भजिया महर-महर करत हे।


सइमो  - सइमो  करे  गली  खोर,

बईगिन  घर  गौरी  - गौरा  जागे।

घरो   -     घर     खुसी      लेके,

देख         देवारी            आगे।


दाई लछमी के  पाँव,घरो-घर परे हे।

बइरी-मितवा सबो बर , मया भरे हे।

गांव के गांव एक जघा सकलाय हे।

देवारी सब बर  , मया  धर आय हे।


अलिन-गलिन ल का कहिबे,

मन म घलो ऊजियारी छागे।

घरो   -  घर     खुसी    लेके,

देख    देवारी            आगे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

देख देवारी,दिनों-दिन दुबरात हे।

 देख देवारी,दिनों-दिन दुबरात हे।

--------------------------------------------

अँगसा-सँगसा म दीया,कोन  जलाय?

दूसर   संग   जिया  , कोन    मिलाय?

कोन   हटाय  , काँदी  -  कचरा    ल?

कोन   पाटे ,  खोंचका -  डबरा     ल?

मनखे के मन म,हिजगा पारी हमात हे।

देख  देवारी ,दिनों - दिन , दुबरात    हे।


पाँच    दिन    के    तिहार    बर,

पाख   भर  पहिली  जोरा  होय।

छभई  - मुंदई ,   लिपई  -  पोतई,

साफ-सफई,कचरा  कोरा   होय।

नाचे नवा-नवा होके,गाँव गली खोर।

सुघराई राहय,ए छोर ले ओ छोर।

फेर मनखे अब ,जांगर  चोरात हे।

देख देवारी ,दिनों-दिन  दुबरात हे।


तेरस के यम दिया, कोन  जलाय हे?

चऊदस म बिहनिया ,कोन नहाय हे?

कोन दाई लक्षमी बर , चँऊक पुरे हे?

कहाँ कढ़ी म,कोमढ़ा-कोचेई बुड़े हे?

निकाला होगे गाय गरुवा के घर ले।

छिनमिनात हे, सब गोवर्धन के गोबर ले,

भाई-दूज  बर  घर म ,कोन राहत हे?

देख देवारी, दिनों- दिन  दुबरात  हे।


कोन गाय बइला ल सजाय हे।

सुपा म  कोन, सुखधना मड़ाय हे?

कती बाजत हे,सिंग-दफड़ा-दमऊ?

कति  पहटिया,सोहई  धर आय हे?

अँटात हे तेल ,दिया के दिनों - दिन।

सिरात हे मया,जिया के दिनों -दिन।

का     करही    फोड़     फटाका ?

मनखे   बम   कस   गोठियात    हे।

देख  देवारी , दिनों - दिन दुबरात हे।


पहिरे    हे   नवा- नवा  कुरथा,

फेर      मन   मइलाय      हे।

बूँड़े  हे   मंद  -     मँउहा में,

मास  -  मटन     खाय    हे।

तभो  मनखे  दाई लक्ष्मी तीर,

पइसा   माँगेल   ल   आय  हे।

हुदरइया - कोचकइया  मिलथे,

नचइया    -     गवइया   नही।

ददा-दाई ल  , बेटा नइ मिलत हे,

बहिनी     ल     भइया      नही।

कोन   जन  का   चीज  धरे  हे?

सबो अपने   अपन अँटियात हे।

देख देवारी,दिनों-दिन दुबरात हे।


    जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

     बालको(कोरबा)

     9981441795

तइहा समय म देवारी तिहार के जोरा-खैरझिटिया

 तइहा समय म देवारी तिहार के जोरा-खैरझिटिया


             तइहा समय म चाहे कोनो परब तिहार होय, गांव के गांव ओखर जोरा म लग जावय। पहली सबके घर माटी खपरैल के होय तेखर सेती ओखर देख रेख बड़ जरूरी रहय। तिहार बार म लिपई पोतई, रोटी पीठा, सगा पहुना  आदि आदि जमे नेंग जोग, तन मन धन ले होवय, फेर बड़खा तिहार देवारी के जोरा करई के बाते अलग हे, जे दशहरा के बाद पाख भर ले घलो जादा दिन ले चले।  काबर कि चौमासा लगे के पहली घर के कोठ ल बरसा के पानी ले बचाय बर चारो मुड़ा झिपारी बाँधे जाय,तेला दशहरा मानके पानी बादर कम होय के कारण हेरेल लगे। तेखर सेती छाभना मूँदना लीपना पोतना देवारी के खास बूता रहय।


                   चार महीना पानी बादर म  घर के बाहिर का भीतर के घलो हालत खस्ता हो जावय। ते पाय के गाँव भर अपन अपन घर ल छाभ मूँद के लिपई पोतई इही देवारी तिहार म करे। देवारी तिहार के जोरा म घर के संगे संग कोठार बियारा ल घलो सिधोय बर लगे, काबर कि देवारी के बाद धान लुये के लइक हो जाय, अउ ओखर मिंजई कोठारे म होवय। कोठार बियारा के काँदी ल छोल छाल के बराबर पाटे बर माटी, कुधरील लाके, बढ़िया मता के छाभेल लगे।      


कोठ बियारा छाभे बर माटी मताये के घलो अलगे आंनद रहय। पहली माटी ल कुचर के गोलाकार  बनाके भिंगोय जाय। भींगे के बाद ओमा पिरोसी, कोदो पैरा या फेर अरसी के ठेठरा(चीला) ल मिलाके मनमाड़े खूँदे जाय। माटी म पैरा, पिरोसी मिलाके मताय ले छभे के बाद चटके(दरार) के समस्या नइ होत रिहिस। जादा अकन  माटी मताय बर बइला के उपयोग घलो होवय। मते के बाद राफा म छोपियाके गोलाकार सँकेल के, मते माटी ल छाभे मूँदे के काम म लाये जाय। कोठ या  फेर कोठार बियारा ल छाभे के बाद गोबर म बरण्डना घलो जरूरी रहय, अइसन करे ले छभे माटी के छोटे मोटे दरार मूंदा जाय, अउ लीपे पोते के लइक बराबर हो जाय। ये सब बूता सरलग घर परिवार जे जमो छोटे बड़े सदस्य मन मिलके करत रहय। टूटे फूटे कप सासर के टुकड़ा ल, दुवार अँगना छभात बेरा गड़ियाके फूल बनाये के घलो चलन रिहिस, जे देखे म बड़ सुघ्घर लगे। कोनो देखे होहू त सुरता आवत घलो होही, गोलाकार, चौकोर फूल मन मोहे।


             पड़ड़ी छूही, पिंवरी छूही, घेरू रंग अउ टेहर्रा रंग पोतई म लगे। परवा के खाल्हे पड़ड़ी छूही तेखर बाद आधा या आधा ले कमती कोठ म पिवरी छूही पोते जाय, अउ बीच म घेरू रंग के पट्टी अउ फूल।  पोते बर टेहर्रा रंग घलो चले। घर के आघू भाग के कोठ अउ मुख्य दीवाल टेहर्रा रंग म शोभा पाय। आज कस ब्रस पहली कमती रिहिस, ठूँठी बाहरी, नही ते जड़ के कूची पोते के काम आय। लकड़ी के दरवाजा मन म सकउ हिसाब कोनो मन पेंट त कतको मन तेल चुपरबके चमकावय।


             पोतई लिपई के बाद चालू होय नोनी अउ बाबू मनके कलाकारी। घर के कोठ म बाबू मन रंग रंग के फूल, फ़ोटो अउ नोनी मन अँगना दुवार म रंगोली बनाये के जोरा करे। पाँच सात किसम के रंग ल कप म घोर के राहेर काड़ी या फेर दतवन ल ब्रस बनाके नोनी बाबू मन कम्पास बॉक्स के प्रकार म पेंसिल फँसा के गोल गोल फूल बनाये, अउ वोला रंगे। कतको मन रंगोली लेय त कतको मन घुरहा पथरा के बुरादा म रंग मिलाके, कई कलर के रंगोली बनाय। घर के दीवाल म शुभ दीपावली अउ शेरो सायरी घलो लिखे। टीना के डब्बा ल छेद के वोमा कनकी पिसान भरके चँउक घलो पूरे। रंगोली बनई आजो जारी हे, फेर कोठ म कलाकारी कमती होगे हे।


                    देवारी के दीया के संग गियास घलो घरो घर रोज बरे।  लोगन मन एक दूसर ले ऊंच ऊंच गियास बनाये।गियास बनाय बर, बड़खा बाँस, तोरण ताव, डोरी अउ दीया रखे बर एक प्लेट लगे। प्लेट ल झिल्ली के तोरन म सजाके, डोरी के सहारा दीया बार के ऊपर चढ़ाये उतारे जाय। गियास ऊंच म रिगबिग रिगबिग बरत, मन मोहे। देवारी तिहार म जमे कोती चिक्कन चाँदुर दिखे, सार्फ़ सफाई, साज सज्जा सहज मन मोहे।


                   देवारी म बाजार हाट के का कहना, दीया,पुतरी कपड़ा लत्ता, पटाका, खई खजानी, साज सज्जा के समान चारो मुड़ा बेचाय। कतको लइका मन टीकली फटाका फोड़े बर बॉस के बंदूक घलो बनाये। राउत मन गाय बइला के गला म बाँधे बर सोहई बनाय बर लग जाय, त दफड़ा दमउ वाले मन बाजा-रूँगी ल सजाय बर। काँदा खोम्हड़ा के जोरा घलो तिहार के अकताही होय। देवारी के ये सब जोरा ले घर द्वार साफ स्वक्छ होके चमचम चमचम चमके, अउ लइका सियान मनके कई किसम के कला सामने आय, आज ये सब  बस सुरता के सन्दूक म धराये हे।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

तिहार के बिहान दिन ------------------------------------

 तिहार के बिहान दिन

------------------------------------

तिहार के बिहान  दिन।

कोनो नइ धियान दिन।


जला      के        दीया,

मनाइन         देवारी ।

उजराके   चारो  -  खूंट,

भगाइन       अँधियारी ।

लीप-पोत के घर-दुवार ल,

चकचक   ले  करे रिहिन।

घर-बार  पारा-परोसी  बर,

सुघ्घर  मया   गढ़े रिहिन।

फेर   जस  के  तस  होगे,

मनखे मन आनदिन.......|

तिहार  के   बिहान  दिन |

कोनो  नइ   धियान दिन |


रंगे रिहिन, दया - मया  के रंग म।

नाचत रिहिन,संगी  साथी संग म ।

बजात रिहिन,  मिलजुल  नँगाड़ा।

घूमत रिहिन, ए पारा ले ओ पारा।

दुरिहाके दूसर दिन मया के रंग ले,

मन ल छल म, सान दिन..........|

तिहार     के       बिहान       दिन,

कोनो   नइ       धियान     दिन।


पोरा  के  दिन ,  पोठ  रोटी खाइन।

तीजा   बर  ,  बहिनी    ल  लाइन।

एकादसी सोम्मारी , जुड़वास रिहिन।

आठे  -  कन्हईया   , उपास   रिहिन।

गनेस जी के आघू म,नाचत   रिहिन।

रामसत्ता म ,राम - राम बॉचत रिहिन।

नवरात्रि म मनाइन , दुर्गा  - सरसती।

दसेरा म देखिन, रावन के    दुरगति।

छेरछेरा म बाँटिन,ठोमहा-ठोमहा धान ,

दूसर दिन,लांघन  ल नइ  खानदिन---

तिहार        के        बिहान    दिन ।

कोनो        नई        धियान   दिन ।


एक दिन ,  दाई - ददा  पूजिन।

एक दिन , गुरु गुरु कहिके कूदिन।

एक    दिन       भगत  बनिन,

एक    दिन    नेकी  - धरमी।

तिहार तियार करिस मनखे ल,

फेर  चढ़ गिस  गरमी।

करू  - करू  गोठियाइन  खुदे,

न दूसर ल,मीठ बतियान दिन।

तिहार    के  बिहान       दिन।

कोनो    नई  धियान      दिन।


एकदिन चुपरिन,चन्दन चोवा।

एकदिन दिखिंन,  धोवा-धोवा ।

एकदिन रमायेन,के बात करिन।

एकदिन  अंधरा ,के हाथ धरिन।

एकदिन   माटी    पूत होगिन।

एकदिन   बर    सपूत होगिन।

एकदिन   झंडा     फहराइन।

एकदिन   जयकारा लगाइन।

ताहन  भुलागिन       ओला,

जेन   देस     बर   जानदिन ।

तिहार      के   बिहान  दिन ।

कोनो       नइ  धियान दिन ।


कहूँ तिहार  के मीठ बात  ल,

सबो माने बर तियार होतिस।

त   सिरतोन    म    संगवारी,

बछर  भर   तिहार    होतिस।


       जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                  बालको(कोरबा)

                   9981441795

कइसे दिखिस देवारी

 कइसे दिखिस देवारी


मंद मउहा मा मनमाड़े, सनाय दिखिस देवारी।

उजराय कम, जादा मइलाय दिखिस देवारी।।


गाय गरुवा, मरत कटत रहिगे रोड मा।

कुकूर ला गला, लगाय दिखिस देवारी।।


मेवा मिठाई देख, मुँहूँ फुलाय मिलिस।

माँस मटन मा, अघाय दिखिस देवारी।।


गिन के बरिस दीया, गिन के मिलिस जिया।

दिखावा के झालर मा, पटाय दिखिस देवारी।


न दफड़ा न सींग न दमउ, न पूजा न पाठ।

तोर मोर के झगरा मा, चिथाय दिखिस देवारी।


का फटाका का मिठाई, अउ का तेल बाती।

महँगाई मा बनेच, ललाय दिखिस देवारी।।


यार परिवार बर अंतस के, फूल होगे मेमोरी।

मोबाइल कैमरा मा, समाय दिखिस देवारी।।


बता अपन छाती मा, हाथ मढ़ा के तहूँ हा।

का पहली कस मूड़, उँचाय दिखिस देवारी।


असल मा मुँह मुँहरन सबे तो, उतरे दिखिस।

गीत कविता फोटू मा, लुकलुकाय दिखिस देवारी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

देवारी तिहार-घनाक्षरी

 1,देवारी तिहार-घनाक्षरी


कातिक हे अँधियारी,आये परब देवारी।

सजे घर खोर बारी,बगरे अँजोर हे।

रिगबिग दीया बरे,अमावस देख डरे।

इरसा दुवेस जरे,कहाँ तोर मोर हे।

अँजोरी के होये जीत,बाढ़े मया मीत प्रीत।

सुनाये देवारी गीत,खुशी सबे छोर हे।।

लड़ी फुलझड़ी उड़े,बरा भजिया हे चुरे।

कोमढ़ा कोचई बुड़े,कड़ही के झोर हे।।


बैंकुंठ निवास होही, पाप जम्मों नास होही।

दीया बार चौदस के, चमकाले भाग ला।

नहा बड़े बिहना ले, यमराजा ला मनाले।

व्रत दान अपनाले, धोले जम्मों दाग ला।

ये दिन हे बड़ न्यारी, कथा कहानी हे भारी।

जीत जिनगी के पारी, जला द्वेष राग ला।

देव धामी ला सुमर, बाढ़ही तोरे उमर।

पा ले जी भजन कर, सुख शांति पाग ला।


आमा पान के तोरन, रंग रंग के जोरन।

रमे हें सबे के मन, देवारी तिहार मा।

लिपाये पोताये हवे, चँउक पुराये हवे।

दाई लक्ष्मी आये हवे, सबके दुवार मा।

अन्न धन देवत हे, दुख हर लेवत हे।

आज जम्मों सेवक हे, बहे भक्ति धार मा।

हाथ मा मिठाई हवे, जुरे भाई भाई हवै।

देवत बधाई हवै,गूँथ मया प्यार मा।


गौरा गौरी जागत हे,दुख पीरा भागत हे।

बड़ निक लागत हे,रिगबिग रात हा।।

थपड़ी बजा के सुवा,नाचत हे भौजी बुआ।

सियान देवव दुवा,निक लागे बात हा।।

दफड़ा दमऊ बजे,चारों खूँट हवे सजे।

धरती सरग लगे,नाँचे पेड़ पात हा।।

घुरे दया मया रंग,सबो तीर हे उमंग।

संगी साथी सबो संग,भाये मुलाकात हा।।


गौरा गौरी सुवा गीत,लेवै जिवरा ल जीत।

बैगा निभावय रीत,जादू मंतर मार के।।

गौरा गौरी कृपा करे,दुख डर पीरा हरे।

सुवा नाचे नोनी मन,मिट्ठू ल बइठार के।।

रात बरे जगमग,परे लछमी के पग।

दुरिहाये ठग जग,देवारी ले हार के।।

देवारी के देख दीया,पबरित होवै जिया।

सोभा बड़ बढ़े हवै,घर अउ दुवार के।


मया भाई बहिनी के, जियत मरत टिके।

भाई दूज पावन हे, राखी के तिहार कस।

उछाह उमंग धर, खुशी के तरंग धर।

आये अँगना मा भाई, बन गंगा धार कस।

इही दिन यमराजा, यमुना के दरवाजा।

पधारे रिहिस हवै, शुभ तिथि बार कस।

भाई बर माँगे सुख, दुख डर दर्द तुक।

बेटी माई मन होथें, लक्ष्मी अवतार कस।


कातिक के अँधियारी, चमकत हवै भारी।

मन मोहे सुघराई, घर गली द्वार के।।

आतुर हे आय बर, कोठी मा समाय बर।

सोनहा सिंगार करे, धान खेत खार के।।

सुखी रहे सबे दिन, मया मिले छिन छिन।

डर जर दुख दर्द, भागे दूर हार के।।

मन मा उजास भरे, सुख सत फुले फरे।

गाड़ा गाड़ा हे बधाई, देवारी तिहार के।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


2, कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देवारी त्यौहार के, होवत हावै शोर।

मनखे सँग मुस्कात हे, गाँव गली घर खोर।

गाँव गली घर खोर, करत हे जगमग जगमग।

करके पूजा पाठ, परे सब माँ लक्ष्मी पग।

लइका लोग सियान, सबे झन खुश हे भारी।

दया मया के बीज, बोत हावय देवारी।


भागे जर डर दुःख हा, छाये खुशी अपार।

देवारी त्यौहार मा, बाढ़े मया दुलार।।

बाढ़े मया दुलार, धान धन बरसे सब घर।

आये नवा अँजोर, होय तन मन सब उज्जर।

बाढ़े ममता मीत, सरग कस धरती लागे।

देवारी के दीप, जले सब आफत भागे।


लेवव  जय  जोहार  जी,बॉटव  मया   दुलार।

जुरमिल मान तिहार जी,दियना रिगबिग बार।

दियना रिगबिग बार,अमावस हे अँधियारी।

कातिक पबरित मास,आय  हे  जी देवारी।

कर आदर सत्कार,बधाई सबला देवव।

मया  रंग  मा रंग,असीस सबे के लेवव।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


3,मत्तग्यंद सवैया- देवारी


चिक्कन चिक्कन खोर दिखे अउ चिक्कन हे बखरी घर बारी।

हाँसत  हे  मुसकावत  हे  सज  आज  मने  मन  गा  नर नारी।

माहर  माहर  हे  ममहावत  आगर  इत्तर  मा  बड़  थारी।

नाचत हे दियना सँग देखव कातिक के रतिहा अँधियारी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


4,बरवै छंद(देवारी)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


सबे खूँट देवारी, के हे जोर।

उज्जर उज्जर लागय, घर अउ खोर।


छोट बड़े सबके घर, जिया लुभाय।

किसम किसम के रँग मा, हे पोताय।


चिक्कन चिक्कन लागे, घर के कोठ।

गली गाँव घर सज़ धज, नाचय पोठ।


काँटा काँदी कचरा, मानय हार।

मुचुर मुचुर मुस्कावय, घर कोठार।


जाला धुर्रा माटी, होगे दूर।

दया मया मनखे मा, हे भरपूर।


चारो कोती मनखे, दिखे भराय।

मिलजुल के सब कोई, खुशी मनाय।


बनठन के सब मनखे, जाय बजार।

खई खजानी लेवय, अउ कुशियार।


पुतरी दीया बाती, के हे लाट।

तोरन ताव म चमके,चमचम हाट।


लाड़ू मुर्रा काँदा, बड़ बेंचाय।

दीया बाती वाले, देख बलाय।


कपड़ा लत्ता के हे, बड़ लेवाल।

नीला पीला करिया, पँढ़ड़ी लाल।


जूता चप्पल वाले, बड़ चिल्लाय।

टिकली फुँदरी मुँदरी, सब बेंचाय।


हे तिहार देवारी, के दिन पाँच।

खुशी छाय सब कोती, होवय नाँच।


पहली दिन घर आये, श्री यम देव।

मेटे सब मनखे के, मन के भेव।


दै अशीष यम राजा, मया दुलार।

सुख बाँटय सब ला, दुख ला टार।


तेरस के तेरह ठन, बारय दीप।

पूजा पाठ करे सब, अँगना लीप।


दूसर दिन चौदस के, उठे पहात।

सब संकट हा भागे, सुबे नहात।


नहा खोर चौदस के, देवय दान।

नरक मिले झन कहिके, गावय गान।


तीसर दिन दाई लक्ष्मी, घर घर आय।

धन दौलत बड़ बाढ़य, दुख दुरिहाय।


एक मई हो जावय, दिन अउ रात।

अँधियारी ला दीया, हवै भगात।


बने फरा अउ चीला, सँग पकवान।

चढ़े बतासा नरियर, फुलवा पान।


बने हवै रंगोली, अँगना द्वार।

दाई लक्ष्मी हाँसे, पहिरे हार।


फुटे फटाका ढम ढम, छाय अँजोर।

चारो कोती अब्बड़, होवय शोर।


होय गोवर्धन पूजा, चौथा रोज।

गूँजय राउत दोहा, बाढ़य आज।


दफड़ा दमऊ सँग मा, बाजय ढोल।

अरे ररे हो कहिके, गूँजय बोल।


पंचम दिन मा होवै, दूज तिहार।

बहिनी मनके बोहै,भाई भार। 


कई गाँव मा मड़ई, घलो भराय।

देवारी तिहार मा, मया गढ़ाय।


देवारी बगरावै, अबड़ अँजोर।

देख देख के नाचे, तनमन मोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


कज्जल छंद- देवारी


मानत हें सब झन तिहार।

होके मनखे मन तियार।

उज्जर उज्जर घर दुवार।

सरग घलो नइ पाय पार।


बोहावै बड़ मया धार।

लामे हावै सुमत नार।

बारी बखरी खेत खार।

नाचे घुरवा कुँवा पार।


चमचम चमके सबे तीर।

बने घरो घर फरा खीर।

देख होय बड़ मन अधीर।

का राजा अउ का फकीर।


झड़के भजिया बरा छान।

का लइका अउ का सियान।

सुनके दोहा सुवा तान।

गोभाये मन मया बान।


फुटे फटाका होय शोर।

गुँजे गाँव घर गली खोर।

चिटको नइहे तोर मोर।

फइले हावै मया डोर।


जुरमिल के दीया जलायँ।

नाच नाच सब झन मनायँ।

सबके मन मा खुशी छायँ।

दया मया के सुर लमायँ।


रिगबिग दीया के अँजोर।

चमकावत हे गली खोर।

परलव पँवरी हाथ जोर।

लक्ष्मी दाई लिही शोर।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐


देवारी मा पानी(तातंक छंद)


रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।

कतको के सपना पउलागे,अइसन आफत आरी मा।


हाट बजार मा पानी फिरगे,दीया बाती बाँचे हे।

छोट बड़े बैपारी सबके,भाग म बादर नाँचे हे।

खुशी झोपड़ी मा नइ हावै,नइहे महल अटारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा।


काम करइया मनके जाँगर,बिरथा आँसों होगे हे।

बिना लिपाये घर दुवार के,चमक धमक सब खोगे हे।

फुटे फटाका धमधम कइसे,चिखला पानी धारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा----।


चौंक पुराये का अँगना मा,काय नवा कपड़ा लत्ता।

काय सुवा का गौरा गौरी,तने हवे खुमरी छत्ता।

काय बरे रिगबिग दियना हा,कातिक केअँधियारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


पाके धान के कनिहा टुटगे,कल्हरत हे दुख मा भारी।

खेत खार अउ रद्दा कच्चा,कच्चा हे बखरी बारी।

मुँह किसान के सिलदिस बादर,भात ल देके थारी मा।

रझरझ रझरझ बरसे बादर,आँसों के देवारी मा-----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


आप सबो ला देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई

छत्तीसगढ़ महतारी-आरती

 छत्तीसगढ़ महतारी-आरती


मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।

नरियर दूबी पान फूल धर, आरती  करौं।।


रथे लबालब धान कोटरा, महिमा तोर बड़ भारी।

जंगल झाड़ी नदिया नरवा, आये तोर चिन्हारी।।

तोर डेरउठी मा दियना बन,नित रिगबिग बरौं।।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


महानदी अरपा के पानी, अमृत सही बोहावै।

साल्हो सुवा ददरिया कर्मा, मन ला तोरे भावै।

सरइ सइगोंन बन नभ अमरौं, गोंदा सही झरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


होरी हरेली तीजा पोरा, हँस हँस तैं मनवाथस।

सत सुमता के बीजहा बोथस, फरा अँगाकर खाथस।

भौंरा बांटी फुगड़ी खेलौं, जब जब जनम धरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


बनभैसा के गुँजे गरजना, मैना के किलकारी।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, जानै दुनिया सारी।

तोर कृपा ले बन खरतरिहा, कोठि काठा भरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


राज स्थापना दिवस के आप सबो ला सादर बधाई


लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)

 लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)


पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया।

अंतर्मन ला पबरित रख अउ, चाल चलन ला कर बढ़िया।


धरम करम धर जिनगी जीथें, सत के नित थामें झंडा।

खेत खार परिवार पार के, सेवा करथें बन पंडा।

मनुष मनुष ला एक मानथें, बुनें नहीं ताना बाना।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, नोहे ये कोनो हाना।

छत्तीगढ़िया के परिभाषा, दानी जइसे औघड़िया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


माटी ला महतारी कइथें, गारी कइथें चारी ला।

हाड़ टोड़ के सरग बनाथें, घर दुवार बन बारी ला।

देखावा ले दुरिहा रइथें, नइ जोरो धन बन जादा।

सिधवा मनखे बनके सबदिन, जीथें बस जिनगी सादा।

मेल मया मन माटी सँग मा, ले सेल्फी बस झन मड़िया।

पाटी पागा बपारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


कतको दुःख समाये रइथे, लाली लुगा किनारी मा।

महुर मेंहदी टिकली फुँदरी, लाल रचे कट आरी मा।

सुवा ददरिया करमा साल्हो, दवा दुःख पीरा के ए।

महल अटारी सब माटी ए, काया बस हीरा के ए।

सबदिन चमकन दे बस चमचम, जान बूझके झन करिया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


*छत्तीसगढ़िया(414) ल मात्रा भार मिलाय के सेती छत्तिसगढ़िया(44) पढ़े के कृपा करहू*


राज स्थापना दिवस के आप सबो ला सादर बधाई

पिंयर-पिंयर करपा(गीत)

 पिंयर-पिंयर करपा(गीत)

--------------------------------

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर -पिंयर हँसिया के बेंठ।

पिंयर -पिंयर   पैरा     डोरी।

पिंयर- पिंयर  लुगरा   पहिरे।

धान       लुवे            गोरी।

     पिंयर -पिंयर  पागा  बांधे।

     पिंयर -पिंयर  पहिरे धोती।

     पिंयर -पिंयर  बइला  फांदे,

     जाय किसान खेत  कोती।

खुसी        छलकत        हे,

किसन्हा    के ,अंग-अंग म।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर  -  पिंयर     धुर्रा        उड़े,

पिंयर  -  पिंयर    मटासी   माटी।

पिंयर  -  पिंयर पीतल बँगुनिया म,

मेड़   म   माड़े    चटनी  -  बासी।

     पिंयर -पिंयर  बंभरी  के फूल,

     पिंयर -पिंयर  सुरुज  के घाम।

     पिंयर -पिंयर    करपा    माड़े,

     किसान पाये महिनत के दाम।

सपना   के    डोर     लमा,

उड़ जा बइठ   पतंग    म।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


पिंयर -पिंयर दिखे भारा,

पिंयर -पिंयर भरे गाड़ा।

पिंयर -पिंयर लागे खरही,

पिंयर -पिंयर दिखे ब्यारा।

           पिंयर -पिंयर छुही मा,

           लिपाहे  घर  के कोठ।

           पिंयर -पिंयर फुल्ली पहिरे,

           हाँसे    नोनी    मन  पोठ।

पिंयर - पिंयर बिछे पैर मा,

कूदे लइका मन उमंग मा।

आ नाच ले किसान संग म।

पाके धान के  पिंयर रंग म।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

अमर गीतकार गायक कवि माटी पूत मस्तूरिया जी ला शत शत नमन

 अमर गीतकार गायक कवि माटी पूत मस्तूरिया  जी ला शत शत नमन


(गीत)


छत्तीसगढ़ के शान, मस्तूरिहा।

गायक कवि महान, मस्तूरिहा।

सत सुम्मत सिरजाइस, माटी के गुण गाइस।

जन जन के अभिमान, मस्तूरिहा।


नइ हो सकै ये दुनिया मा,

ओखर जइसन कोई।

माटी महतारी ह रोवै,

अइसन बेटा खोई।

दया मया के सागर, गुण ज्ञान मा आगर।

छेड़िस सुर अउ तान, मस्तूरिहा।

छत्तीसगढ़ के शान, मस्तूरिहा।

गायक कवि महान, मस्तूरिहा।


अमर गीत हे माटी पूत के,

अमर हे ओखर काया।

अन्तस् मन म सबके रइही,

मया मीत के छाया।

गूँजे गली गली मा, जल थल पेड़ कली मा।

गावै जरा जवान,मस्तूरिहा।

छत्तीसगढ़ के शान, मस्तूरिहा।

गायक कवि महान, मस्तूरिहा।


शब्द शब्द मा गूढ़ गोठ हे,

थेभा छोट बड़े के।

मस्तूरिहा के शब्द निसेनी, 

उप्पर डहर चढ़े के।

बोहय मधुरस धार, भागय आलस हार।

नइ माँगिस सम्मान, मस्तूरिहा।

छत्तीसगढ़ के शान, मस्तूरिहा।

गायक कवि महान, मस्तूरिहा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटिया


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


कुंडलियाँ छ्न्द- मस्तुरिहा जी


मधुरस घोरे कान मा, मन ला लेवै जीत।

लोक गीत के प्राण ए, मस्तुरिया के गीत।

मस्तुरिया के गीत, सुनाथे जन के पीरा।

करदिस हे अनमोल, बना माटी ला हीरा।

करिस जियत भर काम, कभू नइ बोलिस हे बस।

माटी पूत महान, सदा बरसाइस मधुरस।


छोड़िस नइ स्वभिमान ला, सत के करिस बखान।

बनिस निसेनी मीत बर, बइरी मन बर बान।

बइरी मन बर बान, गिराइस हे मस्तुरिया।

दया मया सत घोर, बनाइस हे घर कुरिया।

कलम चला गा गीत, सदा मनखे ला जोड़िस।

अमरे बर आगास, कहाँ माटी ला छोड़िस।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


माने नही मन मोर जी,मस्तूरिहा के गीत बिन।

सुनके जिया मा जोश आथे,मन अघाथे जीत बिन।

सरसर करे पुरवा पवन मस्तूरिहा के गीत गा।

सबके सहारा गंग धारा वो मया अउ मीत गा।1।


चारो दिशा रोवत हवै,रोवत हवै घर खेत हा।

सुरता म आँसू नित ढरकथे,छिन हराथे चेत हा।

पानी पवन जब तक रही,तब तक रही मस्तूरिहा।

रहही जिया मा घर बना,होवय  कभू  नइ  दूरिहा।2।


हीरा असन सिरजाय हे,छत्तीसगढ़ के धूल ला।

माली बने  महकाय हे,साहित्य के वो फूल ला।

भभकाय हे जे धर कलम,आगी ल सोना खान के।

नँदिया  लबालब  जे  भरे,संगीत  अउ सुर तान के।3।


हारे  थके  मन गीत सुन,रेंगें मया धर संग मा।

सँउहत दिखे छत्तीसगढ़,संगीत के सतरंग मा।

कतको चिरैया चार दिन,खिलके इहाँ मतवार हे।

महके   हवै   मस्तूरिहा, छत्तीसगढ़  गुलजार  हे।4।


अतका  करे  कोनो नहीं,जतका  करे  हे  काम वो।

बाँटिस मया ममता सदा,माँगिस कहाँ पद नाम वो।

हे  लेखनी  जादू भरे,अउ का कहँव सुर ताल के।

मधुरस असन सब गीत हे, छत्तीसगढ़ के लाल के।5।


कइसे उदासी छाय हे,मन के सुवा मा देख ले।

नइहे भले तन हा इँहा,पर नाँव छा हे लेख ले।

वो नाँव के सूरज सदा,चमकत हवै आगास मा।

दुरिहाय हावै तन भले,सुरता हवै नित पास मा।6।


जब जब खड़े कविता पढ़े,बाँटे मया अउ मीत ला।

कतको  घरी  देखे  हवँव,बाढ़े  हवँव  सुन गीत ला।

कर खैरझिटिया जोड़ के,पँउरी परै वो लाल के।

अन्तस् बसाके नाँव ला,नैना म सुरता पाल के।7।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐

Saturday 5 November 2022

देवउठनी तिहार- रूपमाला छंद

 देवउठनी तिहार- रूपमाला छंद 


देवउठनी आज हे छाये हवे उल्लास।

हूम के धुँगिया उड़े महकै धरा आगास।

चौंक चंदन मा फभे अँगना गली घर खोर।

शंख  घन्टी मन्त्र सुन नाँचे जिया बन मोर।


घींव के दीया बरै कलसा म हरदी रंग।

ब्याह बंधन मा बँधे बृंदा बिधाता संग।

आम पाना हे सजे मंडप बने कुसियार।

आरती  थारी  म  माड़े  फूल गोंदा हार।


जागथे ये दिन बिधाता होय मंगल काज।

दान दक्षिणा करे ले पुण्य मिलथे आज।

लागथे  मेला  मड़ाई  बाजथे  ढम ढोल।

रीस रंजिस छोड़ के मनखे रहै दिल खोल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को (कोरबा)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


महँगा होगे गन्ना(कुकुभ छंद)


हाट बजार तिहार बार मा


जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।

तभो किसनहा पातर सीतर,साँगर मोंगर हे धन्ना।


भाव किसनहा मन का जाने,सब बेंचे औने पौने।

पोठ दाम ला पावय भैया,खेती नइ जानै तौने।

बिचौलिया बन बिजरावत हे,सेठ मवाड़ी अउ अन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना----।


पारस कस हे उँखर हाथ हा,लोहा हर होवै सोना।

ऊँखर तिजोरी भरे लबालब,उना किसनहा के दोना।

होरी डोरी धरके घूमय,सज धज के पन्ना खन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।


हे हजार कुशियार खेत मा,तभो हाथ हावै रीता।

करम ठठावै करम करैया,जग होवै हँसी फभीता।

दुख के घन हा घन कस बरसे,तनमन हा जाथे झन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।


कमा घलो नइ पाय किसनहा,खातू माटी के पूर्ती।

सपना ला दफनावत दिखथे,सँउहत महिनत के मूर्ती।

देखव जिनगी के किताब ले,फटगे सब सुख के पन्ना।

जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको कोरबा

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


देवउठनी एकादशी(सरसी छंद)


एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।

घरघर तोरन ताव सजे हे,गड़े हवे खुशियार।


रिगबिगात हे तुलसी चँवरा,अँगना चँउक पुराय।

तुलसी सँग मा सालि-ग्राम के,ये दिन ब्याय रचाय।

कुंकुम हरदी चंदन बंदन,चूड़ी चुनरी हार---।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।


ब्याह रचाके पुण्य कमावै,करके कन्यादान।

कांदा कूसा लाई लाड़ू,खीर पुड़ी पकवान।

चढ़ा सँवागा नरियर फाटा,बन्दै बारम्बार---।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।


जागे निंदिया ले नारायण,होवय मंगल काज।

बर बिहाव अउ मँगनी झँगनी,मुहतुर होवै आज।

मेला मड़ई मातर जागे,बहय मया के धार--।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार।


लइका लोग सियान सबे झन,नाचे गाये झूम।

मीत मितानी मया बढ़ावय,गाँव गली मा घूम।

करे जाड़ के सबझन स्वागत,सूपा चरिहा बार।

एकादशी देवउठनी के,छाये खुशी अपार--।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


देव उठनी तिहार के सादर बधाई