Tuesday 19 September 2017

पीतर

पीतर(किरीट सवैया)

काखर पेट भरे नइ जानँव पीतर भात बने घर हावय।
पास परोस सगा अउ सोदर ऊसर पूसर के बड़ खावय।
खूब बने ग बरा भजिया सँग खीर पुड़ी बड़ गा मन भावय।
खेवन खेवन जेवन झेलय लोग सबे झन आवय जावय।

आय हवे घर मा पुरखा मन आदर खूब ग होवन लागय।
भूत घलो पुरखा मनखे बड़ आदर देख ग रोवन लागय।
जीयत जीत सके नइ गा मन झूठ मया बस बोवन लागय।
पाप करे तड़फाय सियान ल देख उही ल ग धोवन लागय।

पीतर भोग ल तोर लिही जब हाँसत जावय वो परलोक म।
आँगन मा कइसे अउ आवय जेन जिये बस रोक ग टोक म।
पालिस पोंसिस बाप ह दाइ ह राखिस हे नव माह ग कोख म।
हाँसय गावय दाइ ददा नित राहय ओमन हा झन शोक म।

जीयत मा करले तँय आदर पीतर हा भटका नइ खावय।
छीच न फोकट दार बरा बनके कँउवा पुरखा नइ आवय।
दाइ ददा सँग मा रहिके करथे सतकार उही पद पावय।
वेद पुराण घलो मिलके बढ़िया सुत के बड़ जी गुण गावय।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Monday 18 September 2017

खैरझिटिया के दोहे

श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के दोहे


श्री जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"के दोहे

मोर परिचय

नाँदगाँव के तीर मा,खैरझिटी  हे गाँव।
नाँव मोर जीतेंद्र हे,लोधी लइका आँव।

अगम बहल दाई ददा,बंदौं निसदिन पाँव।
भाई  हेबे  चार झन, बड़का  मैंहर  आँव।

मोर संगिनी वंदना,भरे भरे हे कक्ष।
पुष्पित  बेटा हे बड़े,छोटे  हेबे दक्ष।

मोरो घर परिवार  के,हरे किसानी नेंव।
बुता करे बर कोरबा,आके मैं बस गेंव।

नान्हे  कद के आदमी,  हवे   रंग   हा   गौर।
लिखथौं मनके बात ला,माथ नहीं कुछु मौर।

छा नइ जानौं छंद के,सीखे  के  हे  आस।
निगम सरन आये हवौं,बइठे हौं बन दास।

                जिनगी

होके   मनखे   जात   तैं,जिनगी  दिये उझार।
फोकट के अँटियात हस,धरम करम ला बार।

जिनगी  जेखर  देन ए,उही  जही जी लेज।
दूसर बर काँटा बिछा,अपन बना झन सेज।

मानवता  के  रंग  ला,झन  देबे  धोवान।
जिनगी हरे तिहार जी,मया रंग मा सान।

जिनगी अपन सँवार ले,करले बढ़िया काम।
कारज  बिन  काखर बता,बगरे हावय नाम।

संगत  गाँजा  मंद के,जिनगी दीही बोर।
संगत संत समाज के,भाग जगाही तोर।

बोली  हा  बाँटत  हवे, एला ओला घाव।
जिनगी पानी फोटका,तभो बढ़े हे भाव।

           मनखे

काया  माया  मा फँसे, हाँस  हाँस इतराय।
लउठी थेभा जब बने,मनखे तब पछताय।

मनखे बिसरागेस तैं,अपन चाल अउ ढाल।
आज लगत हे बड़ बने,काली बनही काल।

बनके मनखे टेटका,बदलत रहिथे रंग।
दया  मया  ला  छोड़ के,रेंगे माया संग।

मनखे माया जोड़ के,अब्बड़ करे गुमान।
चाल ढाल ला देख के,पछताये भगवान।

रुपिया खातिर रूप ला,बदले मनखे रोज।
कौड़ी कौड़ी जोड़ के,खुश हे माया खोज।

भीतर मइल भराय हे,बाहिर छीचे इत्र।
देखावा  के  रंग  मा,मनखे रँगे विचित्र।

कोन  रंग मनखे धरे,रोजे वो अँटियाय।
दया  मया के रंग मा,कभू रंग नइ पाय।

रंगबाज  मनखे  मिले, मिलथे  ढोंगी  चोर।
बढ़िया मनखे हे कहाँ,खोजय मन हा मोर।

मनखे माया मा मरे,स्वारथ मा चपकाय।
पापी के संगत करे,बिरथा जनम गँवाय।

तोरे  खोदे  खोंचका,जाबे  तिहीं झपाय।
सबला मयारु मान ले,बैरी कोन ह आय।

मनखे देखव नाम बर,पर के खींचे पाँव।
गिनहा रद्दा  मा भला,कइसे  होही नाँव।

जिनगी भर सिर लाद के,लोभ मोह ला ढोय।
माया छिन भर के मजा,मनखे  रहि रहि रोय।

हालत  देख  समाज  के,तोर  मोर हे छाय।
मनखे एक समाज ए,कोन भला समझाय।

         गौरैय्या

चींव चींव कहि गात हे,गौरैय्या हा गीत।
दल  के  दल  आये हवे, दाना देबे छीत।

कनकी  चाँउर खात हे,गौरैय्या  धर  चोंच।
अपन पेट ला खुद भरे, मानुस तैंहर सोंच।

परवा  मा  झाला  रहे,कूद  कूद बड़ गाय।
बनगे छत के अब ठियाँ,गौरैय्या नइ आय।

गौरैय्या  फुदकत रहे,गाँव गली अउ खोर।
फेर आज रहिथे कहाँ,खोजत हे मन मोर।

मनखे देख उड़ात हे,छानी मा चढ़ जाय।
चींव चींव चहकत हवे,गौरैय्या मन भाय।

बइठे  बइठे   पेड़   मा ,गौरैय्या    हा   रोय।
गरमी जाड़ असाड़ मा,दुख अब्बड़ हे होय।

हरँव  चिरँइयाँ   नानकुन , गौरैय्या।   हे   नाँव।
फुदकत चहकत खोजथौं,महूँ अपन बर छाँव।

झाला  कहाँ बनाँव मैं,परवा हे ना पेड़।
चारो मूड़ा छत सजे,देखँव आँखी तेंड़।

बिता बिता बर देख ले,माते हे बड़ लूट।
जघा मोर बर नइ दिखे,रोवँव मैंहा फूट।

गिरे  मूसला  धार  जल, मोर  पिटाई  होय।
कभू सुखावँव घाम मा,पानी बिन मन रोय।

गरमी घाम असाड़ मा,दाँव लगे हे साख।
संख्या हमर सिरात हे,टूटत हावय पाँख।

बइठे  रहिथों  जाड़ मा,ओढ़े  कोनो पात।
भारी दुख ला झेलथों,मैंहा दिन अउ रात।

कोन डारही चोंच मा , दाना  पानी  लान।
साँस चलत ले घूमथों,नइ हे मीत मितान।

पाबे  मरे  कछार  मा,मरे  मिलौं  मैं मेड़।
मर मरके मैं हौं जियत,कटके भारी पेड़।

आँधी अंधड़ आय जब,हले पेड़ के डाल।
टूटे  डारा  पान बड़, होवय   बारा   हाल।

गिरे  परे   हे  अधमरा,लेवत हे बस साँस।
गौरैय्या खग जाति के,होवत हावय नास।

चिरई  चोंच  उलाय हे, दाना  देबे   डार।
माटी मा हे बिस मिले,खाही काला यार।

माटी  मा  छीचत हवे,रंग रंग के खाद।
जिनगी चिरई जात के,होवत हे बर्बाद।

चिरई  अँगना  आय  हे,दाना  देबे  छीत।
पानी रखबे घाम मा,जिनगी जाही जीत।

गौरैय्या चिरई हरौं,फुदकत रहिहौं खोर।
चींव चींव  चहकत रहूँ,नाँव लेत मैं तोर।

                   मँय

पड़के मँय के फेर मा,मँय का कर डारेंव।
नइ तो होइस जीत गा,उल्टा  सब  हारेंव।

कतको झन ला चाब दिस,मँय नाम के साँप।
तोर  मोर  कहिके   लड़े, इंच  इंच  ला  नाप।

मँय  मनखे  बर मोह ए,बदले नीयत ढंग।
चक्कर मा मँय मोर के,होथे अब्बड़ जंग।

सेवा  खातिर  मँय  नहीं,ना  दुखिया  के  तीर।
मँय कहिके तैं जा निकल,गढ़ सबके तकदीर।

करबे   बूता   तैं   बने, होही   तोरो    नाम।
काबर तैंहा नइ कहस,मँय करहूँ सत काम।

मँय मँय कहिके तैं  लड़े, का  लेबे  धन जोड़।
बढ़ आघू उपकार कर,स्वारथ अउ मँय छोड़।

चिथही चोला ला गजब,मँय नाम के चील।
अपन समझ झन पाल तैं,आजे देगा ढील।

वो मूरख  मनखे हरे,रहिथे मँय के साथ।
मँय के माया देख ले,स्वारथ उपजे माथ।

मँय मा नइ तो कुछु मिले,सबके धरले हाथ।
मनखे  बनके तैं रहा,मिलके चल सब साथ।


      जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया

@@@@@@करम@@@@@@@

करम  सार  हावय इँहा,जेखर  हे  दू  भेद।
बने  करम ला राख लौ,गिनहा ला दे खेद।

बिना करम के फल कहाँ,मिलथे मानुष सोच।
बने   करम   करते   रहा,बिना  करे   संकोच।

करे  करम  हरदम  बने,जाने  जेहर  मोल।
जिनगी ला सार्थक करे,बोले बढ़िया बोल।

करम  करे  जेहर   बने,ओखर  बगरे नाम।
करम बनावय भाग ला,करम करे बदनाम।

करम  मान नाँगर जुड़ा,सत  के  बइला फाँद।
छीच मया ला खेत भर,खन इरसा कस काँद।

काया बर करले करम,करम हवे जग सार।
जीत करम ले हे मिले, मिले  करम ले हार।

करम सरग के फइरका,करम नरक के द्वार।
करम गढ़े जी  भाग ला,देवय  करम  उजार।  

बने करम कर देख ले,अड़बड़ मिलथे मान।
हिरदे  घलो हिताय बड़,बाढ़े अड़बड़ शान।

मिल जाये जब गुरु बने,वो सत करम पढ़ाय।
जिनगी  बने  सँवार   के,बॉट  सोझ  देखाय।

हाथ   धरे  गुरुदेव  के,जावव जिनगी जीत।
धरम करम कर ले बने,बाँट मया अउ मीत।

करम जगावय भाग ला,लेगय गुरु भवपार।
बने  करम बिन जिन्दगी,सोज्झे  हे  बेकार।

##############ज्ञान#############

ज्ञान रहे ले साथ मा ,बाढ़य जग मा शान।
माथ  ऊँचा  हरदम रहे,मिले  बने सम्मान।

बोह भले सिर ज्ञान ला,माया मोह उतार।
आघू मा जी ज्ञान के,धन बल जाथे हार।

लोभ मोह बर फोकटे,झन कर जादा हाय।
बड़े बड़े धनवान मन ,खोजत  फिरथे राय।

ज्ञान मिले सत के बने,जिनगी तब मुस्काय।
आफत  बेरा  मा  सबे,ज्ञान काम बड़ आय।

विनय मिले बड़ ज्ञान ले ,मोह ले अहंकार।
ज्ञान  जीत  के  मंत्र  ए, मोह हरे खुद हार।

गुरुपद पारस  ताय जी,लोहा होवय सोन।
जावय नइ नजदीक जे,मूरख ए सिरतोन।

बाँट  बाँट  के  ज्ञान  ला,करे जेन निरमान।
वो पद देख पखार ले,गुरुपद पंकज जान।

अइसन  गुरुवर  के  चरण,बंदौं बारम्बार।
जेन ज्ञान के जोत ले,मेटय सब अँधियार।

&&&&&&&&नसा&&&&&&&&&

दूध  पियइया  बेटवा ,ढोंके  आज  शराब।
बोरे तनमन ला अपन,सब बर बने खराब।

सुनता बाँट तिहार मा,झन पी गाँजा मंद।
जादा लाहो लेव झन,जिनगी हावय चंद।

नसा करइया हे अबड़,बढ़  गेहे  अपराध।
छोड़व मउहा मंद ला,झनकर एखर साध।

दरुहा गँजहा मंदहा,का का नइ कहिलाय।
पी  खाके  उंडे   परे, कोनो हा  नइ  भाय।

गाँजा चरस अफीम मा,काबर गय तैं डूब।
जिनगी  हो  जाही  नरक,रोबे  बाबू  खूब।

फइसन कह सिगरेट ला,पीयत आय न लाज।
खेस खेस बड़ खाँसबे,बिगड़ जही सब काज।

गुटका  हवस दबाय तैं,बने  हवस  जी  मूक।
गली खोर मइला करे,पिचिर पिचिर गा थूक।

काया  ला   कठवा  करे,अउ  पाले  तैं   घून।
खोधर खोधर के खा दिही,हाड़ा रही न खून।

नसा नास कर देत हे, राजा हो या रंक।
नसा देख  फैलात हे,सबो खूंट आतंक।

टूटे  घर   परिवार    हा, टूटे  सगा   समाज।
चीथ चीथ के खा दिही,नसा हरे गया बाज।

घर  दुवार  बेंचाय के,नौबत  हावय आय।
मूरख माने नइ तभो,कोन भला समझाय।

नसा करइया चेत जा,आजे  दे  गा छोड़।
हड़हा होय शरीर हा,खपे हाथ अउ गोड़।

एती ओती  देख ले,नसा  बंद  के जोर।
बिहना करे विरोध जे,संझा बनगे चोर।

कइसे छुटही मंद हा,अबड़ बोलथस बोल।
काबर पीये  के  समय,नीयत  जाथे  डोल।

संगत  कर  गुरुदेव  के,छोड़व  मदिरा मास।
जिनगी ला तैं हाथ मा,कार करत हस नास।

नसा  करे ले रोज के,बिगड़े तन के तंत्र।
जाके गुरुवर पाँव मा,ले जिनगी के मंत्र।

रचनाकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)

मत्तग्यंद सवैया

मत्तगयंद सवैया - श्री जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया

मत्तगयंद सवैया - श्री जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया

(1)
तोर  सहीं  नइहे  सँग  मा  मन तैंहर रे हितवा सँगवारी।
तोर  हँसे  हँसथौं बड़ मैहर रोथस आँख झरे तब भारी।
देखँव  रे  सपना पँढ़री पँढ़री पड़ पाय कभू झन कारी।
मोर  बने  सबके  सबके  सँग दूसर के झन तैं कर चारी।
(2)
हाँसत  हाँसत  हेर  सबे,मन  तोर  जतेक विकार भराये।
जे दिन ले रहिथे मन मा बड़ वो दिन ले रहिके तड़फाये।
के दिन बोह धरे रहिबे कब बोर दिही तन कोन बचाये।
बाँट मया सबके सबला मन मंदिर मा मत मोह समाये।
(3)
कोन  जनी कइसे चलही बरसे बिन बादर के जिनगानी।
खेत दिखे परिया परिया तरिया म घलो नइ हावय पानी।
लाँघन भूखन फेर रबों सुनही अब मोर ग कोन ह बानी।
थोरिक  हे सपना मन मा झन चान ग बादर तैहर चानी।
(4)
आदत  ले पहिचान बने अउ  आदत ले परखे नर नारी।
फोकट हे धन दौलत तोर ग फोकट हे घर खोर अटारी।
मीत  रहे  सबके  सबके सँग  बाँट मया भर तैंहर थारी।
तोर रहे  सब डाहर नाँव कभू झन होवय  आदत कारी।
(5)
लाल दिखे फल हा पकथे जब माँ अँजनी कहिके बतलाये।
बेर  उगे तब लाल दिखे फल जान लला खुस हो बड़ जाये।
भूख  मरे  हनुमान  लला तब सूरज देव ल गाल दबाये।
छोड़व छोड़व हे ललना कहिके सब देवन हाथ लमाये।
(6)
हे दिन रात ह एक बरोबर छाय घरोघर मा अँधियारी।
खेवन खेवन देवन के अरजी सुन मान गये बल धारी।
हेरय सूरज ला मुँह ले सब डाहर  होवय गा उजियारी।
हे भगवान लला अँजनी सब संकट देवव मोर ग टारी।
(7)
बाँटय जेन गियान सबो ल उही सिरतोन कहाय गियानी।
पालय पोंसय जेन बने बढ़िया करथे ग उही ह सियानी।
भूख मरे  घर बाहिर जेखर वो मनखे ह कहाय न दानी।
वो मनखे ल ग कोन बने कहि बोलय जेन सदा करु बानी।
(8)
मूरख ला  कतको समझावव बात  कहाँ सुनथे अभिमानी।
आवय आँच तभो धर झूठ ल फोकट के चढ़ नाचय छानी।
स्वारथ खातिर वोहर दूसर ला धर पेरत  हावय  घानी।
देखमरी म करे सब काम ल घोरय माहुर पीयय पानी।
(9)
चोर सही झन आय करौ,झन खाय करौ मिसरी बरपेली।
तोर  हरे  सब  दूध  दही  अउ  तोर हरे सब माखन ढेली।
आ ललना बइठार खवावहुँ गोद म मोर मया बड़ मेली।
नाचत  तैं रह नैन मँझोत म जा झन बाहिर तैंहर खेली।
(10)
भारत के सब लाल जिंहा रहिथे बनके बड़ जब्बर चंगा।
देख बरे बिजुरी कस नैन ह कोन भला कर पाय ग दंगा।
मारत हे लहरा नँदिया खुस हो  यमुना सिंधु सोंढुर गंगा।
ऊँच  अगास  म हे लहरावत भारत देश म आज तिरंगा।
(11)
गोप गुवालिन के सँग गोंविद रास मधूबन मा ग रचाये।
कंगन देख बजे बड़ हाथ म पैजन हा पग गीत सुनाये।
मोहन के बँसुरी बड़ गुत्तुर बाजय ता सबके के मन भाये।
एक  घड़ी  म  रहे  सबके सँग एक घड़ी सब ले दुरिहाये।
(12)
देख  रखे  हँव  माखन मोहन तैं झट आ अउ भोग लगाना।
रोवत   हावय   गाय  गरू  मन  लेग  मधूबन  तीर  चराना।
कान ह  मोर सुने कुछु ना अब आ मुरली धर गीत सुनाना।
काल बने बड़ कंस फिरे झट आ तँय मोर ग जीव बचाना।
(13)
नीर बिना नयना पथराय ग आय कहाँ निंदिया अब मोला।
फेर  सुखाय  सबो  सपना  बिन बादर खेत बरे घर कोला।
का भरही कठिया चरिहा नइ तो ग भरे अब नानुक झोला।
देख  जनावत  हे जग मा अब लूट जही हर हाल म डोला।
(14)
भीतर द्वेष भरे बड़ हावय बाहिर देख न डोल ग जादा।
रंग  भरे  बर  जीवन मा तँय बेच दिये मन काबर सादा।
कोन जनी कइसे करबे अब हावय का अउ तोर इरादा।
काम  बुता  बड़ देख धरे जर फेर लड़े बनके तँय दादा।
(15)
आवव हो गजराज गजानन आसन मा झट आप बिराजौ।
काटव  क्लेश  सबे  तनके  ग हरे बर तैं सब पाप बिराजौ।
नाम जपे नइ आवय आफत हे सुख के तुम जाप बिराजौ।
काज बनाय सबो झनके सुर हे शुभ राशि मिलाप बिराजौ।
(16)
टेंवत  हे  टँगिया  बसुला  अपने बर छोड़य तीर ल कोई।
लाँघन भूँखन के सुरता बिन झेलत हावय खीर ल कोई।
मारत  हे  मनके  सदभाव ल देख सजाय शरीर ल कोई।
लेवत  हे  लउहा  लउहा नइ तो ग धरे अब धीर ल कोई।
(17)
दूसर  खातिर  धीर  करे सब तो अपने बर तेज बने हे।
हे कखरो चिरहा कथरी अउ देख कहूँ घर सेज बने हे।
छप्पन भोग बने कखरो घर ता कखरो घर पेज बने हे।
कोन लिही सुध भारत के मनखे ग इहाँ अँगरेज बने हे।

रचनाकार - जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Friday 15 September 2017

बइगा गुनिया(दोहा चौपाई छंद)

बइगा गुनिया(दोहा चौपाई छंद)

आदत ले लाचार हे, सुने नही गा बात।
घूमत रहिथे बने बन,बिहना ले वो रात।1

सरी मँझनिया  घूमे टूरा।
सिरतों मा बइहा हे पूरा।
पीपर  पेड़   तरी  जा  बइठे।
सबझन जिहाँ भूत हे कइथे।
        झुँझकुर छइँहा हे मनभावन।
        उँही   मेर   लागे   सुरतावन।
        बइठे   टूरा  गोड़  लमाये।
        खुसरा घुघवा देख डराये।
खारे खार  कोलिहा भागय।
देखय भोड़ू बड़ डर लागय।
नांग  साँप  के  हरय बसेरा।
दँतिया  भाँवर   डारे   डेरा।
        हवा  चले   बड़  डारा  डोले।
        रहि रहि के बनबिलवा बोले।
        काँव काँव  कौवा  चिल्लाये।
        टेटका बिन बिन चाँटी खाये।
साँप पेड़ के उप्पर नाचे।
चिरई  अंडा कइसे बाँचे।
चील  बाज उड़ बादर नापे।
भूँके कुकुर जिया हा काँपे।
        झरे पछीना तरतर तरतर।
        काँपय टूरा थरथर थरथर।
        हुरहा   बड़का  डारा   टूटे।
        मुँह ले बोल कहाँ ले  फूटे।
सुध बुध खोये भागे पल्ला।
पारा  भर  मा  होगे  हल्ला।
दाई  दाई   कहि   चिल्लाये।
मनखे तनखे बड़ सँकलाये।

हफरत  हफरत  काँपथे, रहिरहि  के चिल्लाय।
घाम जेठ के अब्बड़ जरे,चक्कर खा गिर जाय।2

        बोली बोलय आनी बानी।
        डारव सिर मा ठंडा पानी।
        खींच बाहरी कोनो मारव।
        भूत  धरे  हे कोनो झारव।
लान जठावव खटिया खोर्रा।
मारव  भँदँई   मारव   कोर्रा।
हाथ गोड़ ला चपकव दोनो।
जावव बइगा  लानव कोनो।
        जल्दी  मरी  मसान  भगावव।
        लइका लोग तीर झन आवव।
        रोवय     दाई    बाबू    बइठे।
        आये   बइगा    मेंछा   अँइठे।
आँखी मा छाये हे लाली।
पहिरे  मूँदी  माला बाली।
गुर्री   गुर्री   देखय    बइगा।
माँगे नरियर लिमवा सइघा।
        भूत  भाग   जा रे पीपर के।
        छीचे राख जाप कर करके।
        लानव खैरी कूकरी चंदन।
       माँ  काली  के करहूँ बंदन।
लहूँ  भरे  हाथे   हे लोटा।
देखब काँपे सबके पोटा।
बइगा  लेवय  लउहा  लउहा।
जल्दी  लानव लिमवा मउहा।
        हँसिया  धरे  करे  दू चानी।
        काटे लिमऊ फेकय छानी।
        बोलय मंतर बड़ चिल्लाये।
        कुकरी  काटे बली चढ़ाये।

जंतर  मंतर  मार  के,बइगा   भूत   भगाय।
बंदन चाँउर छीच के,तनभर भभूत लगाय।3

फूँके  मंतर   बाँधे    डोरी।
पइसा माँगे चालिस कोरी।
बोले  भूत  भाग  गे कहिके।
चेत ह आही थोरिक रहिके।
        भीड़ देख के डॉक्टर आगे।
        बइगा  गठरी   बाँधे   भागे।
        बोले डॉक्टर चेकप  करके।
        गिरे हवय  ये लइका डरके।
जरत घाम मा लू के डर हे।
बइगा नइ जाने का जर हे।
दवई ला जब  लइका पीही।
का होइस  तेला उठ कीही।
          भूत प्रेत अउ  जादू टोना।
          हरे वहम  एखर गा होना।
          भूत  प्रेत  के डर देखाके।
          ले जाथे पइसा गठियाके।
बइगा  गुनिया के चक्कर मा।
मर जाथे लइका मन जर मा।
बइगा तीर कभू झन  जावव।
कहीं होय  डॉक्टर  देखावव।

जादू   टोना   टोटका ,हरय   अन्ध  विश्वाश।
बइगा गुनिया झन धरव,लेगव डॉक्टर पास।4

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795

Sunday 10 September 2017

किसन के मथुरा जाना(मत्तगयंद सवैया)

आय हवे अकरूर धरे रथ जावत  हे मथुरा ग मुरारी।
मात यशोमति नंद ह रोवय रोवय गाय गरू नर नारी।
बाढ़त हे जमुना जल  हा  जब  नैनन नीर झरे बड़ भारी।
थाम जिया बस नाम पुकारय हाथ धरे सब आरति थारी।

कोन  ददा  अउ  दाइ  भला  अपने  सुत  दे बर  होवय राजी।
जाय चिराय जिया सबके जब छोड़ चले हरि गोकुल ला जी।
गोप  गुवालिन  संग  सखा  सब काहत हावय जावव ना जी।
हाल कहौं कइसे मुख ले  दिखथे बिन जान यशोमति माँ जी।

गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं जी।
फूल  गुलाब  न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं जी।
बार तिथी सब हे बिगड़े बिन मोहन रास रचे  न कहीं जी।
जेखर जान निकाल दिही कइसे रइही ग बता न तहीं जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

पितर पाख

पितर पाख म
----------------------------
पितर      आय      हे ,
पितर       पाख     म।
महर-महर ममहावत हे,
बरा-सोंहारी  नाक  म।

माड़े     हे     मुहाटी      म,
मुखारी बोरे लोटा म  पानी।
चंऊक पुराय भूतवा    कस,
चढ़े   फूल  आनी  -   बानी।
तोरई पाना म उरिद दार धरे,
ददा           गेहे       तरिया।
दाई   साने      हे      पिसान,
दार   धोय हे चरिहा - चरिहा।
टुरी - टुरा  बइठे  चूल्हा   तीर,
तेलई      के      ताक       म।
पितर आय हे....................।

झेंझरी   -    झेंझरी       रोटी ,
बनके           तियार         हे।
पारा  -   परोसी    सगा-सोदर,
सब     बर       तिहार       हे।
हूम  -   धूप      के       गुंगवा,
घर        भर      गुंगवात     हे।
कुकुर-कंऊवा नरिया-नरिया के,
किंजर -  किंजर   के  खात  हे।
दूधे     दूध   के  तसमई  बने हे,
बरबट्टी -  तोरई   हे    साग   म।
पितर आय हे......................।

जंऊहर    आदर  सतकार ,
पितर     के      होत      हे।
जीयत    डोकरी  - डोकरा,
कल्हर - कल्हर  के  रोत हे।
जीयत     म    दाई-ददा  के,
नई       तरसाबे        चोला।
त   मरे    म    तोर     पितर,
आसीस       दिही      तोला।
जीयत के  सेवा  सार        हे,
राख के सेवा मिलही राख म।
पितर आय हे...................।

    जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
      बालको(कोरबा)
      9981441795