Monday 29 July 2019

जब एक राय होही

2212 122 2212 122
बूता बने तहूँ हा करबे त काय होही।
गिनहा डहर कहूँ तैं धरबे त बाय होही।1

रोटी ले जेन खेले अउ भेदभाव मेले।
फोकट लगाय नारा वो का भुखाय होही।2

तैं मार पीट करबे संसो फिकर मरबे।
खाके कसम मुकरबे तब हाय हाय होही।3

ये देश के सिपाही  मन लाय बर अजादी।
लड़ मर अबड़ सबे झन जाँगर खपाय होही।4

अँधियार खोर घर मा अउ डर भरे डहर मा।
फैलाय बर उजाला दीया जलाय होही।5

बस पेड़ एक ठन धर फोटू खिचाय कतको।
कइसे हमर बबा मन बिरवा लगाय होही।6

जब कोयली कुहुकही अउ रट लगाही मैना।
तब बाग अउ बगीचा मा फूल छाय होही।7

ये गाँव हे सुहावन,ये ठाँव हे सुहावन।
आके इहाँ मुरारी बँसुरी बजाय होही।8

बूता बड़े बड़े सब टर जाही खैरझिटिया।
जब काम धाम मा सबके एक राय होही।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Friday 19 July 2019

आ जा रे बादर

आजा बादर(गीत)

तैं बरसबे के नही बता बादर।
लगथे घुरघुरासी,
आथे बड़ रोवसी,
अब जादा झन तैं,सता बादर-----।

दर्रा  हनत  डोली  हे,धान  मरत हावे।
आके तैं जियादे,मोर आस जरत हावे।
कोठी काठा उन्ना हे,उन्ना हे बोरा बोरी।
घाम  बड़  टँड़ेरत  हे,धान  बरय  होरी।
उमड़ घुमड़ आएस,
तँय धान बोआएस,
अब नइ हे तोर पता बादर--------।

रहिरहि तोर नाँव,माई पिला रटत रहिथन।
आस  धर  तोरे ,खेत  म   खटत  रहिथन।
तोला गिरही कहिके,जिनगी के जुआ खेले हौं।
भर  जा  भले  घर मा,देख खपरा ल उसेले हौं।
तोर मान गौन करथों,
तोर पँवरी रोज परथों,
का होगे मोर ले खता बादर--------।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Friday 5 July 2019

गजल (मन)

छत्तीसगढ़ी गजल

बहर-(2122 2122 212)

कोन फुलवा रास आही का पता।
कोन हा मन ला लुभाही का पता।1।

काम मनके नित करे जिद मा अड़े।
कब ठिहा काखर जलाही का पता।2।

अरदली  मन के सुवा माने नही।
कब कते कोती उड़ाही का पता।3।

तान  डेना  लाँघथे  आगास  ला।
पिंजरा मा कब धँधाही का पता।4।

नित उठे मन मा लहर सागर  सहीं।
कब किनारा पार पाही का पता।5।

साज  पर  के देख लिगरी मा जरे।
आग कब कइसे बुझाही का पता।6।

पेट भर दाना चरे तभ्भो मरे।
खैरझिटिया काय खाही का पता।7।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Thursday 4 July 2019

बचपन बरसा मा(गीत)

बचपन बरसा मा(गीत)

बचपना हिलोर मारे रे,रिमझिम बरसात मा।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा......।

कागज के डोंगा बना धार मा,बोहावन।
घानी मूँदी खेलन,अड़बड़ मजा पावन।
पाछू पाछू भागन,देख फाँफा फुरफुंदी।
रहिरहि के भींगन, झटकारन बड़ चुंदी।
दया मया रहय,हमर बोली बात मा.......।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।

घर ले निकलन,ददा दाई ले बचके।
धार  ल  रोकन, माटी पथरा रचके।
तरिया  के पार में,बइठे गोटी फेंकन।
गोरसी के आगी में,हाथ गोड़ सेंकने।
मन रमे राहय,माटी गोटी पात मा........।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।

बरसा के बेरा,करे झक्कर झड़ी।
खेलेल  बुलाये,संगी साथी गड़ी।
रीता नइ राहन,हमन एको घड़ी।
खोइला मिठाये,भाये काँदा बड़ी।
सबे खुशी राहय,गाँव गली देहात मा....।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा..।

झूलन बंभरी मा,खेत खार जावन।
नदी पहाड़ खेलन,लोहा गड़ावन।
बिच्छल रद्दा मा, मनमाड़े उंडन।
माटी ह  गाँवे के,लागे जी कुंदन।
बिन माँगे मया मिले,वो दरी खैरात मा...।
घड़ी घड़ी सुरता,सतावय दिन रात मा...।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

रथ यात्रा(गीत)

रथ यात्रा(गीत)

अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।
कृष्ण  सुभद्रा   देवी   बइठे,बइठे  हे  बलराम।

चमचम चमचम रथ हा चमके,ढम ढम बाजय ढोल।
जुरे  हवै  भगतन  बड़  भारी,नाम  जपे  जय  बोल।
झूल झूल के रथ सब खीँचय,करे कृपा भगवान।
गजा - मूंग  के  हे  परसादी,बँटत  हवे  पकवान।
तीनों भाई  बहिनी लागय,सुख के सुघ्घर घाम।
अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।

दूज अँसड़हूँ पाख अँजोरी,तीनों होय सवार।
भगतन मन ला दर्शन देवै,बाँटय मया दुलार।
सुख अउ दुख के आरो लेके,सबके आस पुराय।
भगतन मनके दुःख हरे बर,अरज दूज मा आय।
नाचत  गावत  मगन सबे हे, रथ के डोरी थाम।
अरज दूज मा जगन्नाथ के,जय जय गूँजे नाम।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Wednesday 3 July 2019

आसाढ़

*आषाढ़*

            लकलक लकलक जरत भुइयाँ मानसून के हबरे ले वइसने जुड़ हो जथे,जइसे कोनो भभकत अँगेठा या आगी म गघरा भर पानी उल्दा जथे।रिमझिम रिमझिम पानी जब आषाढ़ धरके आथे,तब सबले जादा खुशी किसान मन ल होथे।अउ काबर नइ होही?इही आषाढ़ म किसान मन अपन महिनत ले सपना रूपी धान के बिजहा ल धरती दाई के कोरा म छितथे।आसाढ़ के आय ले धरती महतारी हरियर सवांगा म सजगे मुसुर मुसुर मुस्कायेल लग जथे।डारा पाना पुरवाही म हाथ हला हला के नाचथे।बादर के गरजई घुमरई अउ कड़कड़ कड़कड़ बिजुरी किसान मन बर एक ताल के काम करथे,जेखर सुर ताल म किसान मन अपन जाँगर अउ नाँगर ल साज के धरती दाई के कोरा म,करमा ददरिया के तान छेड़त,ओहो तोतो के घुँघरू बजावत,मगन होके महिनत करत नाचथे।फेर आने मनखे मन बर आसाढ़ या मानसून सिर्फ गर्मी ले राहत आय।वो मन गर्मी ले हदास खा जथे,फेर किसान उही जरत,भभकत गरमी म,मानसून के रद्दा जोहत किसानी के जम्मो जोरा ल करथे।मेड़ पार अउ मुही ल बाँधना,खँचका-डिपरा ल बरोबर चालना,काँटा खूँटी ल बिनना,काँद दूबी ल खनना ये सबो बुता ल तो उही भभकत गर्मी म साजथे।अउ घर म घलो उही गर्मी म आषाढ़ के आये के पहली पैरा धरथे,परदा भाँड़ी म पंदोली देथे,बखरी बारी ल रंग रंग के साग भाजी बोय बर चतवारथे,नार बियार ल चढ़ाये बर ढेंखरा लानथे,चौमास बर लकड़ी छेना ल भितराथे,छानी परवा ल घलो उही गर्मी म छाथे।अइसन घर - बन के जम्मो बूता ल साध के किसान मन आशा के जोती बारे मॉनसून अउ आषाढ़ के अगोरा करथे।अउ जब पानी के पहिली बूँद मूड़ म परथे तब मार खुशी म नाचेल धर लेथे।ताहन का पूछना,भिनसरहा उठ के बइला ल खवा पिया के नाँगर धरके खेत कोती पाँव बढ़ाथे।बइला ल जब किसान भिनसरहा कोटना म पानी पियाथे तब ओखर गला के घण्टी अउ किसान के मुख ले निकले सुघ्घर सिसरी(सीटी) मनभावन लगथे।एखर आनंद उही ले सकथे जेन कभू गाँव म सुने होही या देखे होही।
           आसाढ़ म किसान सँग ओखर पूरा परिवार नाचत झूमत खेती किसानी म लग जथे।बाँवत के बेरा के वर्णन कोनो बढ़िया कैमरा ले फोटू खींचे कस लगथे।चारो मुड़ा खेत।खेत म सइमो-सइमो करत कमइया,टुकनी बोरी म माढ़े धान,हरिया भर नाँगर नाँस म बनत सुघ्घर कूँड़,बइला के गला के खनकत घण्टी,किसान के मुख ले बरसत करमा ददरिया अउ ओहो तोतो के आवाज,निंदईया महतारी मनके हाथ के खनकत चूड़ी,खार म रटत पपीहा,पड़की अउ तीतुर के सुघ्घर बोल मन ल मोह लेथे। नान्हे नान्हे लइका मन हाथ म कुदारी धरे मनमाड़े कूदत नाचत टोकन कोड़थे।ये सब दृश्य मन म अपार खुशी भर देथे।एखर आनंद भी उही मनखे उठा सकथे जेन बाँवत के बेरा म कभू सपड़े होही।लिख के कवि या लेखक घलो वो मनोरम दृश्य अउ आनंद ल नइ दे सकय।ये परम् आनंद के अनुभूति सिर्फ उही मेर मिल सकथे।कतको बूता करे कखरो तन मन म थकासी नइ दिखे।बिहनिया ले सँझा काम बूता म लगे किसान पाछू बरस के जम्मो दुख पीरा ल भुलाके आसाढ़ म नवा आस जगाके,जाँगर टोर महिनत करथे।
               आषाढ़ के पहली बारिस जब भुइयाँ  ल चुमथे तब माटी महतारी सौंधी महक म महकेल लग जथे।वो महक ल लिख के बया करना असंभव हे।उही पहली बारिस के संग भुइयाँ म पड़े जम्मो लमेरा,बन,बिजहा धीरे धीरे अपन आँखी उघारथे।जेमा रंग रंग के काँदी,चरोटा,लटकना,धनधनी, उरदानी,अउ छिंद,परसा, बोइर,आम,जाम,अमली,बम्हरी,कउहा,करंज,के फर पिकी फोड़के जागे बर धर लेथे। आषाढ़ मास म करिया करिया राय जाम पेड़ उप्पर कारी घटा कस दिखथे।लइका मन ओला टोरे बर टोली बनाके ए रुख ले वो चिल्लावत फेरा लगाथे।हाट बाजार म घलो ये फर अब्बड़ बिकथे।गाँव के गौठान म गरुवा गाय आषाढ़ के संग सकलायेल लगथे,काबर की डोली म धान पान बोवाथे।हरियर हरियर चारो मुड़ा चारा देखके गाय गरुवा के मन म घलो अपार खुशी होथे।गर्मी म लहकत लहकत दिन बिताये अउ सुख्खा काँद पात खाय के बाद आषाढ़ म हरियर चारा अउ पीये बर पानी सबो जघा गाय गरुवा म मिलेल लगथे।
            धरती दाई आषाढ़ म अपन नरी के पियास बुझावत ससन भर पानी पीथे। रझरझ रझरझ पानी बरसे ले तरिया,बाँधा, कुँवा बउली म पानी भरेल लग जथे।नरवा ,नँदिया,झरना,म धार बढ़ेल लगथे।चारो मुड़ा खोचका डबरा म पानी भर जथे।गली खोर म चिखला घलो मात जथे।कोनो साहब बाबू सूट बूट पहिरे चिखला पानी के डर ले पँवठा म पाँव मड़ावत धीर लगाके चलथे त उही म किसान मनखे बिन चप्पल के चभरंग चभरंग गीत गावत खुशी म बढ़थे।
लइका मन मनमाड़े खुशी म चिल्लावत चिल्लावत आषाढ़ के बरसा के मजा लेवत घड़ी घड़ी भींगथे।अउ रंग रंग के खेल खेलथे,गोल गोल घानी मूंदी घूमथे।बरसा के धार म पात पतउवा ल बोहा के थपड़ी पीटत अबड़ मजा करथे।फाँफा फुरफुन्दी के पाछू पाछू भागथे।अउ सबले खास बात जम्मो लइका मन खेलत खेलत "घानी मूंदी घोर दे,पानी दमोर दे कहिके"चिल्लावत फिरथे।इही मास म स्कूल घलो खुलथे।ममादाई के घर गरमी छुट्टी बिताये के बाद कापी बस्ता धरके फेर स्कूल म पढ़े लिखे बर जाथे।
      घुरवा,डबरा तरिया,नरवा,कुँवा,बउली के पानी म मछरी मन मेछरायेल लगथे।तरिया के घठोंदा बाढ़े बर धर लेथे।कहे के मतलब ये की तरिया म पानी भरे ले घाट घठोंदा उपरात जाथे।मेचका अउ झींगुर रट लगायेल लग जथे।बरसा के पानी पाके तलमलावत साँप, बिच्छी ,केकरा अउ कतको कीरा मकोड़ा अपन अपन बीला ले बाहिर निकलथे।पिरपिटी साँप जोथ्था जोथ्था इती उती देखे बर मिल जथे।ये मउसम म ये सब जीव मनके अब्बड़ डर रहिथे।कभू कभू घर कुरिया म घलो घूँस जथे।रंग रंग के कीरा ये मउसम म जघा जघा दिखथे।बउग बत्तर रतिहा अँजोर ल देख अब्बड़ उड़ियाथे।संगे संग रंग रंग के फाँफ़ा फुरफुन्दी घलो उड़थे।झिमिर झिमिर बरसत पानी म कौवा काँव काँव करत पाँख फड़फड़ावत छानी म बइठे रहिथे।त गौरइय्या ह दल के दल अँगना म बरसा म भींगत भींगत चिंव चिंव करत दाना चरथे।
        आषाढ़ ले सबला आस रहिथे।चाहे छोटे से छोटे जीव रहे या कोनो बड़का हाथी।आषाढ़ के बरखा सबला नवा जीवन देथे।आषाढ़ म किसान मन हम सबके पेट के थेभा धान के खेती करथे, उँखर महिनत ले ही सबके पेट बर दाना मिलथे।जइसे पेट भरे के बाद ही जीव मन आने काम ल सिधोथे वइसने खेती म ही दुनिया के आने सबो बूता टिके हवे।आषाढ़ आय के बाद किसान म अपन देवी देवता ल  मनाये  बर कतको अकन तिहार घलो मानथे।जेमा जुड़वास पहली तिहार होथे,जेन आषाढ़ मास के अँधियारी पाँख म अठमी के मनाये जाथे।ये दिन किसान मन अपन गाँव के शीतला दाई म तेल हरदी जघा के खेती किसानी अउ गाँव के समृद्धि बर बारम्बार पूजा अर्चना अउ वंदना करथे।ओखर बाद बारो महीना तीज तिहार के क्रम चलत रहिथे।हमर भारत भइयाँ म तिहार बार खेती के हिसाब ले चलथे।सावन महीना के हरेली ल पहली बड़का तिहार केहे जाथे।
आषाढ़ के बोहावत पानी  ल बचाये बर घलो हम सबला उदिम करना चाही ताकि भूजल  स्तर  म बढ़ोतरी होय,तरिया नदिया,बाँधिया म पानी भरे रहय। अउ बछर भर पानी के तंगई झन होय।आषाढ़ के बने बरसा बने किसानी के निसानी आय,अउ बने किसानी सुखमय जिनगानी के निसानी आय।

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को (कोरबा)

डार्क लाइन *बादर के गरजई घुमरई अउ कड़कड़ कड़कड़ बिजुरी किसान मन बर एक ताल के काम करथे,जेखर सुर ताल म किसान मन अपन जाँगर अउ नाँगर ल साज के धरती दाई के कोरा म,करमा ददरिया के तान छेड़त,ओहो तोतो के घुँघरू बजावत,मगन होके महिनत करत नाचथे।*

Monday 1 July 2019

हाकली छंद(बरसात)

हाकली छंद(बरसात)

रिमझिम रिमझिम जल बरसे,ताल तलैया बड़ हरसे।
गड़गड़ गड़गड़ नभ गरजे,लइका मन ला माँ बरजे।1

रहि रहि झड़ी म भींगत हे, घर भीतर नइ नींगत हे।
पथरा  ढेला  फेकत हे,माड़ी के  बल  टेकत हे।2।

हाँसत हे अउ गावत हे, अबड़ मजा सब पावत हे।
कुरता  पेंट सनाय  हवै,गढ्ढा  कोड़  बनाय  हवै।3।

खाये बिन एको कँवरा,ए चँवरा ले वो चँवरा।
घानी मूंदी घूमत हे,सब लइका बीच सुमत हे।4।

संगी साथी जुरमिल के,नाचत हे डोंगा ढिलके।
गिर गिर घेरी घाँव उठै,मीत मितानी मया गुथै।5

पाँख हलावत हे मयना,कँउवा के छिनगे चयना।
ठिहा उजरगे हे कतको,नइ सूखत हावय पटको।6

काँदी काँदा कुसा जगै,हरियर हरियर धरा लगै।
बूता  बाढ़े  हे अबड़े,बेर  किसानी  के  हबरे।7।

छानी परवा टपकत हे,गोड़ म लेटा चपकत हे।
फुरफूँदी बड़ उड़त हवै,फरा अँगांकर चुरत हवै।8

कतको धर बइठे तरवा, चूँहत हे छानी परवा।
मछरी पार म चढ़त हवै,बगुला मंतर पढ़त हवै।9

फाँदे हावय बबा गरी,नइ खावँव कहि जरी बरी।
चूल्हा बड़ गुँगवावत हे,झड़ी म घर मे दावत हे।10

सइमो सइमो खेत करे,बइला हरियर काँद करे।
घण्टी गर के बाजत हे,काम बुता मा सब रत हे।11

निकले बरसाती खुमरी,भाय ददरिया अउ ठुमरी।
बाढ़त हे दनदन थरहा,मजा करे बइला हरहा।12

टरटर मेंढक गावत हे,झींगुर राग लमावत हे।
बत्तर फाँफा मच्छर हे,बगरे बीमारी जर हे।13

किरा मकोड़ा के डर हे,करिया नागिन बिखहर हे।
बिच्छल सब्बो तीर हवै,धीर म भइया खीर हवै।14

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)