Sunday 6 December 2020

महूँ आलोचक हो सकथँव*

महूँ आलोचक हो सकथँव*

 मोला जादा दिन तो लिखत नइ होय हे, अउ बने घलो नइ लिखँव, का महूँ आलोचक समीक्षक हो सकथँव? पुस्तक के पाठ, पेपर ल पढ़त पढ़त,मेंहा कालेज के जमाना म हिंदी म लिखत रेहेंव, एक,दू गिनत गिनत आधा सैकड़ा घलो होगे, तब मन म चलुक चढ़िस येला छपवा के नाक ऊँचा करे जाय। फेर येती तेती म मन बिदक के। लिखावट होते रिहिस फेर वो सपना ठंडा बस्ता म चल दिस। कॉलेज के पूरा होय के बाद काम धंधा बर आने गाँव आगेंव, अउ उहाँ के साहित्यिक माहौल ल झाँकेंव, तभो अपन चीज ल कोन हिनहीँ। कोर कसर कोनो बताबेच नइ करिस, मोला लगिस, मैं बढ़िया लिखत हँव। एक दिन अइसने महतारी भाँखा म लिखेंव अउ दू चार जघा पढेंव, बनेच वाहवाही मिलिस, वो दिन ले कलम ह छत्तीसगढ़ी च लिखहूँ कहिके अड़गे, दू चार बछर म बनेच अकन संग्रह घलो होगे, सब ताली बजाइस , फेर मोला लगिस अब येला छपवाये जाय, अउ नाम कमाये जाय। गँवागे मोर गाँव, अउ खेती अपन सेती नाम के दू पुस्तक छत्तीसगढ़ी म छपगे। छपे के बाद पता लगिस नाम वाम सब सपना ये। फेर आत्म सन्तुष्टि ले बढ़के का हे। एक दिन छंद कक्षा छंद सीखे बर गेंव। मोर हिंदी म हमेशा डिस्टेंसन आय , एम ए घलो करे हँव, तभो मात्रा गणना म फेल होगेंव। ले देके कक्षा म गुरुजी मनके निर्देशन म जमेंव। तब *पता लगिस कि जेन पुस्तक ल मैँ छपवाये हँव, वो मोर भावानुरूप फिट हे, फेर व्याकरण जे सुध नइहे हे, सही शब्द रूप, वचन, काल, पुरुष, लिंग म बनेच त्रुटि हे,, पहली बड़का कवि ल पढ़त सुनत देख ओखर पांव छूवत उन ल पुचपुचावत पुस्तक घलो दे देत रेहेंव, फेर वो दिन ले मोटरा बांध के तिरिया देहों* हिंदी के काव्य म लिंग त्रुति ल कोनो कोनो बताये रिहिस, तेखर सेती हिंदी ल छोड़ छत्तीसगढी म लिखत रेहेंव, फेर यहू म गलती?जबकि काल, वचन, लिंग, कारक, पुरुष सबे स्कूल कालेज के पढ़े चीज आय। *इही ल कहिथे पढ़ना अउ कढ़ना* पढ़े के बाद बिन पढ़े घलो कुछु नइ होय। जब तक कढ़ई नइ होवव तब तक। शुद्ध साहित्य देय बर भाव पक्ष के साथ साथ कला पक्ष म घलो पकड़ होना जरूरी हे।ये बाद म पता चलिस। मोर पुराना काव्य म पुरुष दोष, काल दोष, वर्तनी दोष,वचन दोष बनेच दिखथे, येला दूर करे के प्रयास चलत हे। वइसे कहे गेहे *परोपदेशे पण्डितव्यम*। मीठ मीठ लिखना समीक्षक के काम होही त, महूँ लिख सकथँव, फेर गलती खोजे बर साहित्य के सेवा शर्त उत्तर प्रतिउत्तर ल अभी जानेल लगही। एक समीक्षक गुणवान, जानकार होथे। वइसे साहित्य के सही आलोचक तो पाठक होथे, अउ पढ़े बिना आलोचक घलो आलोचना नइ करे। फेर मैं बिना विवाद में पड़े, मीठ मीठ लिख सकथँव, करू कसर लिखे बर अउ जानकारी चाही। आजकल तो पाठक हे न बने आलोचक?जेन हे तेला छोड़के, फेर मोर कस निर्विवाद आचोलक सब बन सकथे, जादा हाने सुने के घलो जरूरत नइहे। मीठ मीठ आलोचना बर जरूर सम्पर्क करहू। खैर कुछु नइ लिखाय हे तेखर सेती जउन आइस तउन लिख परेंव। फेर एक समीक्षक ल (वइसे तो आज मौलिक भाव कमसल हे तभो) भाव पक्ष के साथ साथ कला पक्ष अउ काव्य के प्रभाव ल जरूर देखना चाही। साहित्य का निर्माण म सहायक हे। कोन कोन रस ल समेटे हे। साहित्य के मूल्यांकन के तो अनेक पहलू हे। जानकार अपन अपन होसाब ले समीक्षा लिखथे। आज तो विकट स्थिति घलो आगे हे, समीक्षक के अलावा कोई बने पाठक घलो नइ मिले। समीक्षा करे म पहली जल्दबाजी नइ होवत रिहिस, कवि लेखक के साहित्य के प्रभाव समाज म कइसन पड़त हे, येखर आधार म घलो समीक्षक मन मूल्यांकन करे। आज के स्थिति चिंतनीय हे, पाठक खोजना पढ़त हे, त फेर वो साहित्य के समाज म प्रभाव के का बात करना। मूल्यांकन के विविध पहलू के चर्चा पटल म बहुत बढ़िया ढंग ले होय हे। एखर बर विचार पठाये गुनी साहित्यकार मन ल सादर नमन। 

 खैरझिटिया

फोटोग्राफी-खैरझिटिया

 फोटोग्राफी-खैरझिटिया


               रझरझ रझरझ पानी बरसत हे, मनखे मन संग जीव जंतु जमे मतंग हे। जीव जिनावर तो बिन अक्कल के बस खात पियत पड़े रहिथे बिचारा मन , फेर मनखे मन कर तो अक्कल के भरमार रहिथे। तभे तो पर्यावरण संरक्षण बर रात दिन एक करके  नारा लगाथे, अउ कूद कूद के पेड़ पौधा घलो पेड़ लगाथे। भले एक ठन पेड़ ल लगाय बर 15 झन झूमे रहय, फेर सुध तो सुध होथे, प्रकृति के जतन म तो लगे हे। वो बात अलग हे कि लगाये के बाद भले सब भुला जथे, पेड़ मरे चाहे जिये। अपन काम तो कर देथे बपुरा मन। 

              बड़खा मंच सजे हे, पोगा रेडिया पोरोर पोरोर बजत हे। जमे कार्यकर्ता सूट बूट पहिरे मगन हे। लइका लोग सियान सबे जुरियाय हे। गीत कविता के तैयारी घलो हे। रेडियो म बजत  *मोर खेती खार रुनझुन मन भँवरा नाचे झुमझुम*  गीत मन ल भावत हे।। पेड़ लगाओ के नारा गजब गूँजत हे, तरिया कस खनाय सड़क म मुरुम बिछ्त हे, काबर की मंत्री जी वृक्षारोपण करे बर अवइया हे। नही नही म मंच के अलग बगल मनखे मिलाके 100 आदमी तो रहिबे करे रिहिस ,अउ मंत्री जी संग जेला चंगुरवा आही ते अलग।  यहू संख्या कोरोना काल म रिहिस, जब जादा भीड़ भाड़ नइ करना हे। फेर पेड़ , जेखर रोपण करना रिहिस वो हर गिन के 10 ठन। खैर दसो पेड़ घलो बहुत होथे, बढ़ जाए त। गर्मी म जरत मनखे संग जीव जंतु बर एक पेड़ के छाँव घलो काफी होथे। लइका सियान जमे के हाथ म झंडा अउ गला म मंत्री जी के अगुवाई म मिले फेंटा गजब चमकत हे, भले ओ बपुरा मनके ओनहा कुर्था के गत नइहे। कार्यकर्ता मन कोन जन का काम म लगे हे ते, येती वोती मार भागत हे, जबकि जम्मो रेजा कुली मन बरोबर काम ल सिधोत हे तभो। एक झन गाड़ी म चढ़के आइस अउ खबर देथे के मंत्री जी 10 मिनट म पहुँच जही। ताहन का कहना बताये अनुसार जम्मो मनखे लाइन म खड़ा होके झंडा हलाये अउ  जयकार  करे म लग गे। मंत्री जी के गाड़ी बोमियावत पहुँच गे। फूल माला म मन्त्री जी के घेंच तोपागे। स्वागत सत्कार के बाद भाषण बाजी चालू होगे। उही रटटम रट्टा डयलाक गूँजत रहय जेन आम तौर म बड़े बड़े मंच ले मंत्री ,नेता मनके मुख ले निकलथे। हव बने सुरता करेव, गरीबी भागना हे, रोजगार देना हे, विकास लाना हे ,,,,,,,,आदि आदि। बिसलरी के बोतल के संग, काजू किसमिस के प्लेट घलो नेता मनके  आघू म माढ़गे। फेर बपुरा दर्शक जेन मन अघुवाई करे बर कोन जन कतका बेर ले ओड़ा ल देहे, उन ल पानी पुछइया घलो कोनो नइहे। बिचारा मन जब ले आये हे, तब ले खुद तो हारे हे अउ नेता के जय जयकार करत हे। मंत्री जी की मीठ बचन ल सुनके सब खुश हे, उही म उँखर पेट भरत हे।  उँखर पाछु तुतारी घलो चलत हे कोरोना हे मास्क लगावव। बिचारा मनके मुख बेंदरा कस करिया,पिवरा,लाल दिखत हे। फेर मंच म बैठे कार्यकर्ता मन घलो तोप लिही, त उन मन कोन पहचानही, नेता मन के मास्क घलो घेंच म झूलत हे।

             भाषण बाजी के बाद मंत्री मन अपन चेला चन्गुरवा के साथ खाल्हे उतरिस अउ पेड़ लगाय बर खने गढ्ढा मेर पहुँचिस। एक ठन पेड़ मंत्री ल दिस, बाकी 9 ठन ल आने में धरिस, फेर लगाये म धियान कहाँ हे कखरो? सब तो मंत्री संग फोटो आही कहिके ओखरे पेड़ ल आरती के थारी बरोबर धर लिस। आने में सब अपन अपन पेड़ ल अइसने खोंच दिस, अउ मंत्री जी के बाजू म खड़ा होगे। मार पेड़ लगाओ, अउ मंत्री जी के जयकार गूँजत हे। कोरोना काल म घलो पेलिक पेला होवत हे। फेर ये का मंत्री पेड़ ल धरे हे, चेला मन खड़े हे, पर फोटोग्राफर के अता पता नइहे। कार्यकर्ता मन दाँत ल कटरत हे, अभी तो रिहिस कहाँ गे रे। बिना फ़ोटो खिंचाय मंत्री जी घलो कइसे पेड़ लगा दिही। सब सन्न हे ,खोजो खोजो मात गेहे। मंत्री जी गुसियागे ये का तमाशा ये, फोटोग्राफर बिन पौधारोपण कइसे होही। दू तीन झन अधिकारी उप्पर गाज घलो गिरगे। तमक के मंत्री जी सस्पेंड कर देहूं कहि दिस, फेर उहू मन का करे, वो मन तो बकायदा फ़ोटो ग्राफर लगाय रिहिस, अब वो धोखा दे दिही तेला, वो मन का करही? फेर रिस तो रिस ए,का करे? कोनो मन काहत हे, कि फोटोग्राफर गाड़ी धर लकर धकर कोनो  विपत आय कस भागिस हे। कार्यकर्ता मन संग मंत्री जी घलो नाराज हे, कहूँ फोटोग्राफर घलो सरकारी होतिस, त तो ओखर खैर नइ रितिस। फेर का विपत आगे ,जउन अत्तिक बड़ कार्यक्रम ल छोड़ भाग गिस भगवान जाने? एती हल्ला होवत हे, कोनो दुसरा फोटोग्राफर बलाव, त कोनो काहत हे महँगा मोबाइल म फ़ोटो खींच लव, त कोनो काहत हे, थोड़ीक देर अउ खोज ली,अभी रूक जाव, पेड़ ल झन खोंचव। नही ते काली के पेपर अउ देश दुनिया म मंत्री जी के पेड़ लगावत फोटू कइसे बगरही? माने पेड़ लगई ले जादा फोटो के महत्व हे। कोन जन हमर पुरखा मन घलो फोटोग्राफर खोजथिस, त बड़े बड़े बर पीपर रहितिस कि नही?  अउ आज फ़ोटो जरूरी घलो हे काबर कि कोन का करत हे, तेखर पुख्ता सबूत घलो इही ताय। फ़ोटो बीमा आज कहाँ कोनो काम होथे। सोसल मीडिया के जमाना हे, उठत बइठत फ़ोटो मनखे मन बगरावत हे, मुँह ल अँइठ  अँइठ के। बिन फ़ोटो के उछाह के काम ल तो छोड़ दी, मरनी हरनी या कहे जाय त दुख के काम घलो नइ होय। फलाना ल श्रद्धाञ्जलि देवत फलाना, अइसनहो फ़ोटो दिखथे। घूमई फिरई , काम बुता सबके फ़ोटो चलत हे। नांगर जोतत फलाना, अब ले करम फूट गे न। फेर कइसनो होय केमरामेन के जाय ले सब अधर म लटकगे। तभो अपन अपन हिसाब ले उँधला  धुँधला खींचत हे,कि मंत्री जी थोड़े घेरी बेरी आही। खैर कार्यकर्ता मन संग मंत्री जी के मूड घलो खराब हे, बिन फोटो ग्राफर के। तभो मोबाइल म फ़ोटो खींच खिंचाके  एक ठन पेड़ ल जम्मो झन ख़ोचीस, अउ नास्ता पानी बर बैठ गे। बाकी 9 ठन पेड़ बने से गड़े घलो नइहे। बता जब आजे ये स्तिथि हे त, आघू के देख रेख भला कोन करही। चल कइसनो होय, छेरी पठरू के भोजन के तो जुगाड होगे। वोमन चरही, अउ उल्होही त अउ चरही, अउ उल्होही त अउ--------। फेर जेन दिमाक वाले प्राणी हे तेमन कहूँ टोर फेक दिही, त थोरे उल्होही। खैर आज वृक्षारोपण तो होगे, बाकी समय का होही, तेला का करना हे। बस एके चीज के कमी खलिस, वो हरे कैमरामैन। कैमरामैन रिहितिस, त हाँस हॉस के पेड़ लगावत सबके फ़ोटो रिहितिस। मंत्री जी दल बल समेत भाग गे, ओखर जाते ही कार्यकर्ता मन। बेचारा अगुवाई करइया दर्शक मन देखते रही गे। फोटोग्राफर के बारे म, कार्यकर्ता मन पता करिस त मालूम चलिस की फ़ोटो ग्राफर के परिवार वाले मनके कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आये हे, अउ गाड़ी म डॉक्टर मन उनला धरके लेजत हे। उहू बपुरा के का गलती हे।येती सभा म जुरे मन म घलो दहसत हे, कैमरामैन पॉजिटिव होही त?


 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

मनरेगा

 मनरेगा


           का कोनो किसान कर, धान बोय के बाद अउ कुछु बूता नइ रही त, वो बूता देखाय बर, फेर धान ल उसेल के वोमा धान बोही। मोर खियाल से तो नही। फेर ये मनरेगा म का होवत हे। एक साल खनत हे, त दुसर बछर उही ल पाटत हे। अउ करे त का करे? अब तो गाँव म डीही डोंगरी, अरिया परिया कुछु नइ बाँचे हे। एक ठन गउठान अउ एकलौता चरागन हे, जेमा चारा तो नही फेर गाय गरुवा के हाड़ा जरूर दिख जथे। सड़के सड़क बरदी रेंगथे अउ चरागन म थोर टेम रुक के फेर घर आ जथे। अरिया परिया म डबरी तरिया मनरेगा के चलते अतेक बन गे की अब रीता भुइयाँ के नामो निशान घलो नइहे। येखर बर पोगरी मनरेगा च घलो जिम्मेदार नइहे, बेजा कब्जा नाम के धंधा घलो भारी फले फुले हे। फेर हर बछर कस एहु बछर मनरेगा चलत हे। छोट बड़े सब बरोबर काम करत सरकार के योजना अनुसार पैसा कमावत हे। काम अब उही ल पाटे के चलत हे, जेन ल पउर खने गे रिहिस। अउ एखर अलावा मनरेगा के काम देखाय के कोनो गुंजाइस घलो नइहे। पाछू बछर के घटे घटना पंच, पटेल के आँखि ल उघार दे रिहिस, हर बछर चलत मनरेगा म एक ठन डबरी कुँवा कस गढ्ढा होगे रिहिस, ताहन का,,,, गाय गरुवा संग मनखे मन घलो कई बेर उहां फँस फँस के मरे मरे हे। उप्पर वाले साहब मन ल घलो येखर बर फटकार लग चुके हे। तेखरे पाई के अइसन नवा उदिम खने अउ पाटे के बरोबर चलत हे। अउ सबके बरोबर चूल्हा घलो जलत हे।

             मेट मुंसी मनके मन के अनुसार मुड़ नवाके काम करबे त मनरेगा म पछीना ओगरे के घलो जरूरत नइ पड़े। अउ कहूँ मरखंढा बइला कस मुड़ी उँचाबे त मरे बिहान हे। कमा कमा के जाँगर घलो थक जही। फेर दुसर प्रकार के कमैया लगभग नही के बरोबर मिलथे। जउन रिहिस तउन मन घलो सब चेत गे हे। बढ़िया सरकारी के स्किम के फायदा सब उठात हे। एक दू घण्टा देय बर लगथे जादा घलो नही अउ कभू उप्पर वाले साहेब मनके दौरा रहिथे, वो दिन काम ठिहा म ज्यादातर पुरुष मनके तास पता माते रहिथे, अउ महिला मन जुवा हेरत साहब बाबू मनके अगोरा करथे। 

          आज गाँव के चलत मनरेगा ल देखे बर साहब अवइया हे, सब काम बुता निपटा के अपन अपन ले कुछु खेल कहानी म रमे ओखर रद्दा जोहत हे। उहू साहब एखर सेती वो मेर आवत हे, काबर की वो जघा म गाड़ी आराम से पहुँच जाथे, नही ते गाँव के ओनहा कोन्हा म कोन साहेब अउ कोन बाबू पहुँचे। सब रिकार्ड ल देख के पइसा पास कर देवय। कुछ देर बाद गाड़ी के साइरन बजथे, सब कमैया कुदारी रापा धरके, अपन अपन ठिहा ल छोले छाले बर लग जथे। साहव गाड़ी ले उतरिस, ताहन कोनो सभा कस मेट मुंसी मन उँहचो फूल माला अउ गुलदस्ता भेंट करदिस, जम्मो कमैया जयकार करिस। अन्न दाता की जय,,,,,,, ताहन का कहना साहब के छाती फूल गे, जमे कमैया मनके हाथ हला के अभिवादन करिस। अउ मस्ट्रोल म साइन मारके अपन रद्दा नाप लिस। जमे कमैया मन घर जाये बर धरथे, ओतकी बेरा पटइल कहिथे, आज संझा पइसा मिलही, सब टाइम म पहुँच जहू। सबके खुसी के ठिकाना नइहे। सब घर जाके नहा खोर, संझा पइसा बर लाइन लगागे, खड़ा होगे, हर बार कस एकेक आदमी ले 10,10 रुपिया साहब बाबू के खर्चा पानी कहिके, काट के सब ल पइसा मिलगे। अब आप मन सोचत होहू की कोनो काटे पइसा बर आवाज काबर नइ उठाइस होही। मनरेगा बनिच साल ले चलत हे, आवाज उठायेस ताहन , एकात हप्ता बंद घलो हो जाथे, त काबर मुँह खोलना। शहर नगर म नोकरी चाकरी वाले मनखे मन घरे के काम करे बर शरमाथे, फेर गांव म छोट बड़े किसान सब मनरेगा म मिलजुल कमाथे। अइसने निर्विवाद सरकार के योजना चलही, त सरकार काबर कोनो दखलन्दाजी दिही। जनता खुश सब खुश। भले काम बुता अउ विकास चूल्हा म जाये।  सरकार के अइसन योजना चलते रहय अउ सबके पेट पलते रहय। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाँखा म अन्तर्सम्बन्ध

 हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी भाँखा म अन्तर्सम्बन्ध


          जइसे पानी ढलान कोती बहिथे, उसने भाषा घलो सरलता ल धरत जाथे। अब हिंदीच ल ले लौ संस्कृत- पाली- प्राकृत- तेखर बादअपभ्रंस होवत हिंदी। जइसे सरल सहज मनखे ल सबो चाहथे, वइसने भाषा के सरलता घलो ओखर अपनाये के कारण बनथे। पूर्वी हिंदी के अंतर्गत हमर छत्तीसगढ़ी भाषा आथे, जेमा अवधी, बघेली अउ हमर छत्तीसगढ़ी भाषा मिंझरे हे। ब्राम्ही लिपि ले उपजे जइसे हिंदी हे वइसने छत्तीसगढ़ी घलो हे। आज जब हमन हिंदी के बात करथन, तब आधुनिक युग के पहली के कवि सुर, तुलसी, कबीर, जायसी, केशव, बिहारी जैसे कवि मनके कालजयी रचना घलो हमर आँखी म झुलथे, जेमन के भाषा अवधी, ब्रज के साथ साथ कई ठन मिंझरा भाषा बोली रहिस। आधुनिक युग म तो ठेठ खड़ी बोली म जबर रचना होइस, जेमा भारतेंदु, पन्त, निराला, प्रसाद,महादेवी वर्मा, मैथलीशरण गुप्त, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, जइसे कतको कवि लेखक मन अपन जीवन ल खपा दीन। मोर कहे के मतलब हे कि हिंदी के समानांतर ही ब्रज अउ अवधी अपन स्थान रखथे, त छत्तीसगढ़ी काबर नइ रखे? जबकि हमर भाँखा घलो लगभग हिंदी के सबे गुण ल समेटे हे।  हो सकथे हमर साहित्य कमसल होही, या फेर ब्रज अउ अवधी कस ऊंचाई नइ पाइस होही। फेर हमर साहित्य घलो पोठ हे, कतको उत्कृष्ठ साहित्य हमर पुरखा कवि मन लिखे हे अउ आजो लिखावत हे, अइसन उदिम होवत देख इही कल्पना मन म आथे कि वो दिन दूर नइहे जब छत्तीसगढ़ी घलो ब्रज, अवधी के साहित्य कस हिंदी म मिल जही। 

        अब बात हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के अन्तर्सम्बन्ध के हो जाय। दूनों भाँखा के महतारी एके आय(ब्राम्ही), दूनो के रंग रूप, चेहरा- मुहरा एक्के जइसे हे, दूनो सगे बहिनी बरोबर हे। आजकल के कवि लेखक मन हिंदी वर्णमाला के जम्मो आखर ल बउरत घलो हे, जे बड़ खुसी के बात आय। *आन राज के कई मनखे मन हमर छत्तीसगढ़ी के बारे म कहिथे कि हिंदी ल बिगाड़ दव त छत्तीसगढ़ी हो जही* का सच म अइसने हे???? आपो मन कस मोरो न हे। येखर ले बचे बर छत्तीसगढ़ी के पाँच परगट शब्द ल बउरे ल लगही अउ हिंदी ल तोड़ मरोड़ करे ले बचेल लगही। हमर भाँखा के व्याकरण घलो हिंदी ले पहली बने हे, जेन हम सब बर गर्व के बात ये। एक बात अउ *जइसे मैं उप्पर म परगट शब्द लिखेंव, जे हिंदी के प्रगट के अपभ्रंश ये। परगट कहे म घलो अर्थ म कोनो प्रकार के भटकाव नइ लगत हे, अउ ये छत्तीसगढ़ म पूर्णतः चलन म घलो हे। अइसने कई ठन शब्द हे, जे हिंदी के अपभ्रंश के रूप म हमर भाँखा म रचे बसे हे ,अउ चलत घलो हे। जइसे ह्रदय(हिरदे),उम्र(उमर), दर्द(दरद), बज्र(बजुर), तीर्थ(तीरथ), छतरी(छत्ता)त्यौहार(तिहार) आदि आदि। कई ठन शब्द ल चिटिक बदलाव के साथ घलो बउरथन, जइसे व्याकुल(ब्याकुल), विनास(बिनास), व्रत(बरत), पर्व(परब), व्यवहार(ब्यवहार), वरदान(बरदान), वंदन(बंदन), वजन(बजन), वन(बन) आदि आदि। फेर येला देख के कतको झन कहि देथे की छत्तीसगढी म "व" नइ होय,, तेहा नइ जमे। पहली चलत घलो रिहिस हे, फेर ये बात गलत हे की 'व' ल लिखेच नइहे। होवत , बोवत, खोवत, पोवत काखर शब्द ये,,,, हमरे न,, त कइसे "व" नइ होही। यदि पहली कस(व बर ब लिखबों) आजो करबों त वर(दूल्हा) ल बर कहिबो। तब तो पेड़ वाले बर, काबर वाले बर अउ दूल्हा वाले बर, सब एक्के म जर बर जही। आज के लइका मनके रामेश्वरी, जागेश्वरी, रामेश्वर, ईश्वर, श्रवण, आदि घलो होथे, तिखर मरना हो जही। वइसने अउ कई ठन आखर जइसे ष, श, त्र, क्ष मन संग घलो हे। शुक्ल अउ कृष्ण पक्ष लिखे बर आज कइसे करबों, पहली तो अंधियारी अउ अँजोरी पाख चलत रिहिस, फेर आज यदि येला बउरना हे त तो ये आखर म जरूरी हे, अइसनो आखर के भिं नाम वाले हमर राज म हे, तब वो आखर मन जरूरी हो जथे।मोर एके इशारा हे अर्थ संगत शब्द ल बउरे जाय, अउ निर्थक या जेन वो संज्ञा ल बदल देय ओखर ले परहेज करना चाही। जइसे हिंदी म प्रकृति अब येला परकिरिती, प्रकार ल परकार, प्रकास ल परकास, क्षमा ल छिमा,शक्कर ल सककर, रायगढ़ ल रइगढ़,आदि आदि। ये मन थोड़ीक भ्रम पैदा करथे, तेखर सेती येमा चिंतन जरूरी हे अउ सही अउ स्पस्ट शब्द के माँग आज होवत घलो हे।*

       हिंदी के आखर अउ शब्द छत्तीसगढ़ी म घुरे हे,काहन या फेर  छत्तीसगढ़ी के शब्द मन हिंदी म घुरे हे काहन,,, येला सिद्ध करे म हमला कोनो ल नइ घूरना चाही। काबर भाँखा गतिमान हे, पानी असन स्वरूप बदलत जथे, कखरो पोगरी घलो नोहे। *एक छत्तीसगढिया मनखे घलो हिंदी लगभग समझ जथे, अउ हिंदी वाले छत्तीसगढ़ी, त येखर ले बढ़के अउ का अन्तर्सम्बन्ध देखन* हिंदी वाले घलो सहज छत्तीसगढ़ी पढ़ सकथे,अउ छत्तीसगढ़ी वाले घलो आखर ज्ञान के बाद हिंदी। काबर के पहली घलो केहेंव दुनो के रंग, रूप, चेहरा-मुहरा एके हे दुनो के *क* एक्के हे दुनो के *ट* एक्के हे। हिंदी के पिक्चर ल घलो छत्तीसगढिया मन मन लगाके देखथे अउ समझथे ,अब छत्तीसगढ़ी के पिक्कर आन कोती काबर नइ देखे जाय येखर बर खुद ल सोचेल लगही। *ब्रज भाँखा ले हिंदी के शान बाढ़िस, अवधी भाँखा ले हिन्दीबके शान बाढ़िस त छत्तीसगढ़ी भाँखा ले हिंदी कु शान काबर नइ बाढ़ही*।खच्चित बाढ़ही फेर उसने साहित्य हमर बीच म आय उसने पठन पाठन अउ वाचन होय अतकी विनती हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

संस्मरण--मोर आठवी पेपर छूट गे

 संस्मरण--मोर आठवी पेपर छूट गे


रतिहा के 4 बजे बाबू जी के संग साइकिल म बइठ के राजनांदगांव के जुन्ना बस स्टेण्ड पहुँच गेंव, अउ उहाँ ले पहाती के पहली बस म बइठ के दूनों झन कापसी बर निकल गेंन। हव उही कापसी जेन एक समय म हड्डी जोड़े बर भारी प्रसिद्ध रिहिस, अउ अभो घलो हड्डी टूटे के उपचार उँहा होथे, पर पहली कस नही। बस म चढ़के ममा गाँव इरई जावन त खिड़की मेर बइठ के आजू बाजू ल झाँकव, अउ बड़ मजा लेवँव, फेर ये पहली दफा होइस जेमा आँखी ले आँसू झरत रहय, काबर की मोर जेवनी हाथ के हड्डी ह टूट के आड़ी होगे हे कहिके गाँव के डॉक्टर ह बता दे रहय। अउ ओखर ले बड़े दुख ये बात ये रहय कि हप्ता भर बाद मोर आठवी क्लास के बोर्ड परीक्षा होवइया रिहिस। पेपर तैयारी लगभग पूरा कर डर रेंहेंव फेर होनी ल कोन टार सकथे। बस म बइठे बइठे मन म आय कि कापसी म हड्डी जोइड़या तुरते जोड़ दिही त मैं पेपर म घलो बइठ जाहूँ। अइसने गुनत सोचत कब कापसी आगे आरो घलो नइ लगिस, बस के बाहर झँकई तो दूर आघू पाछु कोन बइठे रिहिस तहू ल नइ देख पायेंव।  दरद के मारे हाथ उठाना घलो मुश्किल रहय,बाबू जी सरलग धीर धरावत रहय। कापसी म पहुँचेंन त भारी भीड़। लाइन म लगे के बाद मोरो नम्बर आइस, उँहा बइद महराज ह कुछु पाना के लेप ल छोट कमचिल संग पट्टी म बाँध दिस, अउ किहिस 21 दिन बाद फेर देखाहू। मोर आँखी ले आँसू तरतरी धर लिस,जउन सोचे रेंहेंव ते नइ हो पाइस। अब पेपर देवाना तो असम्भवच होगे।  भइगे घड़ी घड़ी भगवान ल सुमरत रहँव। दूनो झन इलाज के बाद  बस म बइठ के अपन गाँव आगेन। दूसर दिन आँखी म आँसू धरे स्कूल गेंव अउ सर मन ल अपन हाल ल बतायेंव। वो समय मोर स्कूल के प्राचार्य श्री एम एल साहू सर जी रिहिस, संग म जांगड़े सर अउ मंडलोई सर मन घलो सुझाव दिन कि आजे मेडिकल बना के आवेदन लगादे, यदि हो पाही त पूरक वाले मन संग पेपर देय के मौका मिल जाही। फेर ये काम ल झट कर काबर कि पेपर चालू होनेच वाला हे, बोर्ड ल सूचना देना जरूरी हे। ताहन फेर का बाबू जी संग तुरते  शहर(नांदगांव)आगेंव अउ डॉ सदानी करा मेडिकल बनाके, तुरते स्कूल म जमा करेंव, स्कूल म घलो सर मन तुरते आवेदन बनाके, ऊपर बोर्ड म सूचना भेजिन। दू दिन बाद साहू सर कर गेंव त बताइस कि तोर मेडिकल जमा होगे हे, अउ तें अब पूरक परीक्षा के समय पेपर देबे, जा अब जल्दी हाथ ल ठीक कर। मोर मन नइ माढ़त रहय, मोर जम्मो तैयारी धरे के धरे रहिगे। मन म विचार आइस कि डेरी हाथ म लिख के पेपर देहूं, जिद  म पूरा दिन भर लिखेल सीखेंव, फेर कभू तो नइ लिखे रेंहेंव, अउ मुख्य परीक्षा एक दिन बाद चालू होवइया रिहिस,   वो दिन रातभर घलो डेरी हाथ म लिखे के प्रयास करेंव, मोर जेवनी हाथ के लेखनी बनेच रहय फेर डेरी हाथ म घलो धीरे धीरे जादा अच्छा तो नही पर पहली पहली सीखती लइका मन कस लिखा जावत रिहिस। बिहना फेर स्कूल पहुँच गेंव अउ सर ल केहेंव कि मुख्य पेपर म ही बइठहूँ, ये दे डेरी हाथ म घलो अइसन लिख डरथँव, पास होय के पूर्तिन नम्बर आ जाही। जे प्रश्न म कमती लिखे के रही वोला धीरे धीरे लिख डरहूँ। मंडलोई सर मोर बात ल सुनके कथे, बेटा तोर अतेक अच्छा राइटिंग बनथे जेवनी म, जेवनी हाथ जइसन लिखना दू चार दिन म सम्भव नइहे, तैयारी  तो तोर हेवेच घर म बइठ के अउ पढ़ अउ पूरक वाले मन संग पेपर दे देबे, जब तोर हाथ ठीक हो जही तब। मैं मानते नइ रेहेंव, पूरा स्टाफ समझाइस, तब अपन मन ल मार के हामी भर देंव। दूसर दिन स्कूल म मुख्य परीक्षा चालू होगे, स्कूल के तीर म आके स्कूल ल झाँकत रहँव, अउ छुट्टी होय त सबके प्रश्न पत्र ल देखँव, मोला बड़ सरल लगय, फेर का कर सकतेंव, मोला तो बाद म पेपर देना रिहिस। हर साल कक्षा म प्रथम आय के सपना देखे रेंहेंव ते वो साल रट ले टूटे कस लगिस। मोर गाँव म दसवीं तक स्कूल हे, अपन समय म मैं, पहली ले दसवी तक  प्रथम आये हँव बस आठवी ल छोड़ के, काबर कि मैं वो समय मुख्य परीक्षा नइ देवा पाये रेहेंव। पढ़ई लिखई दुख अउ दरद म होबे नइ करे, घड़ी घड़ी हाथ के जुड़े के संसो सताय अउ मुख म हे भगवान रहय। मुख्य पेपर घलो होगे। 21 दिन बाद फेर कापसी जाके, पट्टी बँधवायेंव। कुछ दिन बाद हाथ के पट्टी ल 21 दिन के पहलीच हेर के देखेंव, जेन हड्डी ल टूट गेहे केहे रिहिस, ते तो छुये म जस के तस लगे। बाबू दाई ल घलो बतायेंव। उही समय मोर बड़े फूफा गाँव आये रिहिस, ओहर किहिस कि हमर गाँव तीर भवानी मन्दिर के पास करेला गाँव म एक बइद हे, उहू अच्छा हड्डी जोड़थे, मोरो एक पँइत ईलाज करे हे। ताहन फेर का बाबू जी संग उँहे बर निकल गेंव। उँहचो मैं बतायेंव की हड्डी येदे टूट  गेहे, ताहन उहू हर खींच खांच कुछ लेप के संग 21 दिन बर पट्टी कर दिस। अउ कहिस कि ओखर ले पहली झन निकालबे, फेर 21 दिन बाद आहू। पट्टी कराके घर आगेंव, पूरा दिन रात संसो म कटे, पढ़े लिखे के मन घलो नइ लगे। एके चिंता रहय मोर हाथ कब बने होही। दाई बाबू अउ भाई मनके मया दुलार म ये दुख भरे दिन ला भगवान भरोसा काटत रेंहेंव। 21 दिन पूरे के बाद पट्टी खोल के देखेंव त फेर जस के तस। पास परोस के मन किहिस, कि कापसी ही जाना रिहिस कहाँ करेला चल देव, कापसी म ही येखर ईलाज हो पातिस, मरता का न करता।। फेर उँहें बर चल देंन, फेर उँहा पट्टी कर दिस। हाथ ल लटकाय लटकाय मोला अइसे लगेल धर लिस कि मोर हाथे नइहे। खाना, पीना, नाहाना धोना, खेलना कूदना सब हराम होगे रिहिस। बेरा बीतत गिस, आठवी के परिणाम घलो आगे,मोर कक्षा के रीना देवांगन 70% अंक लेके प्रथम आगे। मोला मोर हालात बर बड़ दुख लागिस, कि वो साल मैं पहली बेर अपन प्रथम आय के वादा ल पूरा नइ कर पायेंव। कथे न धन, दौलत सुख चैन सब स्वस्थ शरीर म ही सुहाथे,अउ जर बुखार म ये सब फालतू होथे। मोला मोर हाथ के संसो रहय। एक दिन फेर दाई बाबू ल  बिना बताये पट्टी ल खोल के देखेंव, जस के तस टूट के खसके हड्डी हाथ म छुये ले उसनेच लगे। अब तो मोर धीरज खरागे, ददा दाई मन घलो तंग आगे। राजनांदगांव म रथे मोर ममा मामी, ये गीत मोर बर फीट हे, काबर की  मोर बड़े ममा मामी म उँहिचे रहय, ममा शहर म नोकरी करे। अउ मोर हाल ल सुनके उहू मन मोला देखे बर गाँव आये रिहिन, ममा कथे अब तो हड्डी वाले डॉक्टर ल ही दिखाना चाही। तुरते फेर शहर के डॉक्टर कर चल देन। डॉक्टर के केबिन म गेंव त डॉक्टर किहिस, कइसे का होगे हे, कइसे टूट गे तोर हाथ ह? मैं बतायेंव कि एक दिन संझा साइकिल के टायर ल उप्पर फेक फेंक के झोंकत रेंहेंव, अचानक एक बेर उप्पर ले गिरत चक्का ल झोंकत झोंकत सीधा कोहनी अउ कलाई के बीच म लगगे अउ हड्डी टूट गे। अउ टूटे के बाद येदे आड़ी होगे हे, तेहा जुड़ते नइहे। डॉक्टर छू के देखिस, अउ छूते साँठ कथे, येमा कुछु चीज गड़े हे। हड्डी टूट के अइसन आड़ी नइ होय हे। अब हम का जानी, वो दिन संझा जइसे चक्का हाथ म पड़िस , दर्द के मारे चितियागे रेंहेंव, अउ गांव के डॉक्टर ल दिखायेंव त (एक तो वोला दर्द के मारे छुवन घलो नइ देवत रेंहेंव) वो किहिस लगथे हड्डी ह टूट के आड़ी होगे हे। अउ छुये म लगे घलो। उही ल सच मान के ईलाज बर जघा जघा घूमत रेंहेंव। डॉक्टर एक्स रे लिखेस। एक्सरे ले साफ होगे कि हड्डी नइ टूटे हे, बल्कि वो चक्का के तार ह (लगभग 6,7 सेंटीमीटर) टूट के हाथ म घूँसे हे। तार के बात ल सुन के डॉक्टर हमन ल बलाके पूछिस कत्तिक दिन होगे हे? बतायेंन कि लगभग अढ़ाई महीना, डॉक्टर माथा धरलिस अउ कथे, अत्तिक दिन ले का करत रेहेव, कहूँ  लोहा के जहर हाथ म फैल गे होही, त हाथ ल घलो काटेल पड़ सकत हे। डॉक्टर के बात ल सुनके मोर होस उड़ गे काबर की लोहा के पइजन के बारे म देखे रेंहेंव, मोर एक झन संगी तरिया म कपड़ा धोवत रिहिस, अउ ओखर थैली के आलपिन वोला गड़ गे रिहिस, त हप्तच भर म ओखर आधा अँगरी ल काटेल लगे रिहिस। फेर मोर तो बनेच दिन होगे रहय। हे भगवान मोर का होही? तुरते आपरेसन के तैयारी होइस। नानकुन टाँका लगाके तार ल निकालिस, अउ डॉक्टर किहिस सुक्र मना बाबू भगवान के दया ले लोहा के एको पैजन ह तोर हाथ म नइ फइले हे, येदे जम्मो जहर तार म ही जमगेहे, तार जंग लग लग के हाथे म बनेच मोठ होगे रहिस। जइसे तार निकलिस, दरद घलो गायब होगे, अउ हाथ ल मैं तुरते  मोड़ माड़ घलो डरेंव। डॉक्टर दरद के कारण बताइस की हाथ के दू हड्डी के बीचों बीच तार ह टूट के गड़गे रिहिस त जरा से हिलाय म घलो दरद करे।  मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, काबर कि मोर हाथ बने होगे रिहिस। डॉ अग्रवाल ल धन्यवाद करके घर आयेंव अउ सोचेंव हे भगवान आज तैं मोर हाथ ल बचा लेस, मोर लापरवाही म  अत्तिक दिन म घलो पैजन नइ होइस, तोर लीला अपरम पार हे। कास  मैं डॉक्टर तीर पहिली जाये रहितेंव, त मोर पेपर घलो नइ छुटतिस|  फेर जे होना रथे ते होके रथे, वो दिन ले बइगा गुनिया मन डहर जाये बर कान पकड़ लेंव, सबले पहली प्राथमिकता डॉक्टर ल देथंव। पूरक के परीक्षा घलो होगे, परिणाम म मोला सिर्फ 65% मार्क्स मिलिस। अउ सर्टिफिकेट म पूरक घलो लिखागे। कँउवा कान लेगे येला सच माने के पहली कान डहर घलो देखना चाही। कोनो भी घटना के जड़ तक जाये बिना वोला आत्मसात नही करना चाही, सच जाने के बाद ही कदम उठाना चाही, नही ते अइसने होथे। येला मैं सॅंउहत भोगे हँव। वो तो भगवान के कॄपा हे जे मोर हाथ सलामत रहिगे, वो दिन ले मैंहर आज तक लगभग हर सोमवार के एक दिन भगवान के धन्यवाद स्वरूप उपवास घलो रथों। अंत मा इही कहूँ, कुछ स्वास्थ्यगत परेसानी आये मा बइगा गुनिया तीर तको जावव फेर पहली तकनीकी अउ डॉक्टर के राय लेना चाही। नही ते बड़ पछतावा होथे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा

कइसनो होय कक्षा म फस्ट आना हे

 कइसनो होय कक्षा म फस्ट आना हे


कपहा पेंट चिरहा कुरथा पहिरे नाक बोहावत लइका के पीठ ल ठोंकत सालभर पढ़ाय के बाद मोर स्कूल के पहली  गुरुजी मिट्ठू राम साहू जी ह, नतीजा घोषित करत कथे कि जीतेंन्द्र के परीक्षा परिणाम कक्षा म सबले जादा हे, ओहर क्लास म प्रथम आय हे। ताहन का कहना मोर छाती फुलगे अउ उही दिन ले मन म वो फर्स्ट आय के लालच घलो घर कर गे। दूसरी, तीसरी , चौथी अउ पाँचवी म घलो सरलग प्रथम आयेंव। 26 जनवरी बर हर साल पंच सरपंच के मुँह घलो ताकंव कि मोला कक्षा  म प्रथम आये के ईनाम मिलही, काबर कि हर साल 15 अगस्त के सरपंच महोदय माइक म अपन उद्बोधन म ये बात कहय कि जउन छात्र मन अपन क्लास म प्रथम आही ओला 51 रुपिया के ईनाम मिलही। फेर 26 जनवरी बर लगे हर साल भुला जाय। खैर लालच तो रहय फेर नइ मिलत हे कहिके अपन पढ़ई लिखई ल कमती नइ करेंव। छठवीं, सातवी, नवमी अउ दसवीं म घलो प्रथम आयेंव। दसवी म मोर सन 2000 म 74% नम्बर आये रहिस त स्कूल सम्मान जरूर करे रिहिस।फेर आठवीं म मोर जेवनी हाथ म टायर के तार गड़े के बाद हाथ टुटे के भोरहा म अउ बैगई गुनियई के चक्कर म मुख्य परीक्षा ले वंचित हो गेंव, पूरक म शामिल होय बर पड़गे। वो साल के अंतिम दौर दुख भरे रिहिस ,पढ़ई लिखई ठप्प होगे रिहिस। फेर भगवान कृपा ले उबरेंव। हमन चार भाई हवन एक साल तो हमन चारो भाई अपन अपन कक्षा म प्रथम घलो आये रेहेंन, कहे के मतलब पढ़ई लिखई के घर म बढ़िया माहौल रहय। मोर न तो बाबू जी एको क्लॉस पढ़े रिहिस न दाई। तभो बिना टाइम टेबल के कभू नइ पढेंन। ये तो होइस मोर गांव के पढ़ाई अब 11 वी पढ़े बर राजनांदगांव के नामी स्कूल स्टेट हाई स्कूल म दाखिल होगेंव। उहाँ तो कई किसम के लइका , एक ले बढ़ के एक पढ़ैया, मोर पसीना छूट गे, एक तो गाँव के लइका बने हिंदी बोले बर घलो नइ आय अउ उँहा शहर के गुरुजी अउ शहरी सहपाठी। मोला पिक्चर के डायलाग सुरता आय अपन गली म तो कुकूर भी शेर होथे। फेर बाहिर म----? तभो बहुत महिनत करेंव  अउ कक्षा 11 वी म 89%अंक के साथ तीसरा स्थान म सिमट गेंव। 90% अउ 91% वाले साथी विनोद साहू अउ सोमनाथ पांडे क्रमशः  द्वितीय , प्रथम  रिहिस। आघू बछर बने पढ़हूँ कहिके मन ल धीर धरावत रही गेंव। 10 वी क्लास के बाद से ही गर्मी छुट्टी म राजनांदगांव काम बुता म आ जावत रेंहेंव। पूरा गर्मी भर कुली कबाड़ी के काम करके फेर आषाढ़ लगत पढ़ाई म लग जावंव, जबकि मोर शहर वाले संगी मन गर्मी म ट्यूशन पढ़े। कई बेर तो अइसनो मौका आइस की सहपाठी संगी मन के बनत घर म घलो काम करे करे हँव। 12 क्लास चालू होइस फेर उही साल सीबीएसई पैटर्न लागू हो गे रहय। वइसे तो 11 म आदेश आगे रिहस फेर स्कूल के हाथ म पेपर रिहिस तेखर सेती माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पुस्तक ल ही पढ़ावत रिहिस। फेर 12 म सब कुछ चेंज होगे रिहिस, अलगे पैटर्न रहय,मोठ मोठ पुस्तक अउ नवा नवा सिलेबस इंग्लिश के जादा रोल रहय। वो बछर पढ़े म बड़ तकलीफ होइस। 12 के रिजल्ट आइस,, मैथ्स, बायो अउ आर्ट मिलाके 189 झन म सिर्फ 9 झन पास होइस, मोर तो नामे नइ रिहिस। मैं पूरा नरवस होगेंव। अउ मोर संग कतको साथी मन घलो। वो समय से आज तक स्टेट स्कूल अपन पहली के स्टेंडर्ड ल नइ बना सकिस, लइका मन सब छिदिर बिदिर होगे, ताहन फेर का स्कूल प्रबंधन ल वो कोर्स ल खारिज करे बर घलो पड़गे। मोला लगे कि ये सीबीएससी कोर्स ह मोर सपना ल तोड़े बर आय रिहिस। वो समय घलो पांडे जी 60% के साथ प्रथम अउ विनोद जी 59% के साथ द्वितीय रिहिस। पूरक  के दाग मोर जिनगी म दूसरा बेर लगगे। एक बेर सोचेंव फिर से पढ़हूँ ,फेर मोला सर मन समझाइस कि पूरक पेपर दे के देख तेखर बाद सोंचबे। फिजिक्स म सात नम्बर कमती आय रिहिस चूँकि सीबीएससी अजमेर ले परीक्षा संचालित रिहिस त  ग्रेस देके पास करे के पावधान नइ रिहिस। पूरक के रिजल्ट आइस 60% अंक के साथ पास होगेंव। फेर मन डोले ल धरिस कि यदि प्रथम नइ आ सकबे त 60% तो जरूर आय। फेर ये मोर असमर्थता  रिहिस, जे अपन खामी उप्पर मरहम चुपरे बर दिमाक म 60%के आडिया आइस। कॉलेज म  तो हाल बेहाल होगे, पढ़ाई घलो इंग्लिश म होय लगिस, कक्षा म प्रथम आय के सपना ल छोड़ घलो देंव। गाना-बजाना, गीत-कविता, काम बुता आदि  सब में ध्यान बँट गे। भविष्य के चिंता सताये बर धर लिस, पढ़ लिख के नोकरी मिलही कि नही। दाई ददा मन आस बाँधे रहय। *कभू सोचँव कास लड़की होतेंव त बर बिहाव होके अपन चूल्हा चाकी करतेंव, फोकट नोकरी चाकरी के चिंता तो नइ रितिस।* कालेज म शुरू ले NSS म रेहेंव, जेखर ले मोर सांस्कृतिक पक्ष अउ मजबूत होइस,गाँव म तो सेवा, भजन चलते रहय। अपन ज्ञान ल बढ़ाये बर पइसा के डर म ट्यूशन घलो कभू नइ करेंव। कालेज म एको साल प्रथम नइ आयेंव फेर प्रथम ईयर म फाउंडेटन कोर्स, द्वितीय वर्ष केमेस्ट्री अउ तृतीय वर्ष म फिजिक्स म टॉप करेंव। कालेज सम्मान घलो करिस। कुल 60.44% के साथ स्नातक पास करेंव। अउ कालेज म ही फिजिक्स पढाहूँ कहिके आवेदन लगाएंव, उही बीच म घनघोर जंगल छुरिया ब्लाक के औंधी म शिक्षा कर्मी वर्ग 3 के फार्म डाले रेंहेंव तेखर बुलावा आइस। येखर पहली 12 वी बेस म ही रेलवे म गैंगमेन ट्रैकमैन के परीक्षा दिए रेंहेंव, अउ कालेज के आखरी बछर म ही बाल्को प्लांट के कैम्पस अटेंन करे रेंहेंव। ग्राम औंधी म शिक्षाकर्मी के नोकरी करतेंव तेखर पहली 10 अगस्त 2006 के राखी तिहार के दिन,अखण्ड रामायण म बैठे रेंहेंव त,बाल्को डहर ले नोकरी के काल आगे। वो समय बाल्को 5000 अउ गुरुजी म 2832 रुपिया कुछ तंखा रिहिस मैं बाल्को म जाए खातिर कोरबा आगेंव अउ 14 अगस्त 2006 के ड्यूटी ज्वाइन कर लेंव। कैम्पस म पेपर देवाये के घलो अजीब  संजोग रिहिस।  मैं अपन महतारी के संग धान बेचे बर पास के गांव के सोसाइटी गे रेंहेंव, अउ उही मेर हाईस्कूल म घलो, गेस्ट मैट्स टीचर के पोस्ट निकले रिहिस, त सब मार्कसीट वगैरह रखे रेंहेंव, उंहे जमा करहूँ कहिके। एक झन ग्रेडर धान के मूल्यांकन करे बर आइस त ओखर हाथ म रहे वो दिन के पेपर म कालेज प्रांगण म बाल्को के होवइया कैंपस के विज्ञापन रहय, वोला देखते ही ऊँहिचे बस बइठ के(हमेशा साइकिल म जाँव वो दिन पहली बेर बस म कालेज  गेंव) कालेज चल देंव, बने से पेपर घलो देंव, सब सर्टिफिकेट ल घलो देखायेंव, 50 म 46 नम्बर पाके इंटरव्यु म घलो शामिल होगेंव।अउ गाँव के दुकान के फोन नम्बर देके घर आ गे रेंहेंव। 

               बाल्को म आये के बाद गोरमेंट कालेज म MSC मैथ्स बर आवेदन करेंव फेर बाद म पता चलिस के वो साल कोनो स्टूडेंट नइ होय के कारण कालेज ह नइ पढ़ाये, मैं हिंदी  बर  फार्म ल बदल देंव, हिंदी विषय के बनेच पढ़इया रहय फेर मोला मोर संकल्प सताये लागिस प्रथम वाला, अउ वो दरी साकार घलो होइस। काम के साथ साथ पढ़ई करत एम ए हिंदी म दूनो साल कक्षा म प्रथम आयेंव। अइसन बिल्कुल नइहे कि मोला हिंदी के जादा ज्ञान हे, अभो घलो हिंदी कविता लिखे बर हाथ कांपते, विशेषकर व्याकरण के ज्ञान होय के बाद, वो समय सिर्फ पढ़ के प्रथम आये रेंहेंव।  एम.ए. म मोला 62%मार्क्स मिलिस,मोला बड़ खुशी होइस। भगवान ल बार बार धन्यवाद करेंव, नोकरी चाकरी घलो मिल गे रिहिस। गाँव म ट्यूशन पढ़ाये के आदत रिहिस  त कोरबा म कइसे छूट जातिस,उहचो पढावंव।विभागीय प्रमोशन बर एम बी ए घलो करेंव, उहचो 60%ले ऊपर ग्रेड मिलिस। पढ़े के लालच बने रिहिस अर्थशात्र के तक फार्म भरेंव दू पेपर दे रेंहेंव ताहन होली म आँखी म गुलाल घूँसे के बाद आंख म एम्फेक्सन होगे तेखर सेती बाकी पेपर छूट गे, अउ ईलाज बर चैन्नई चल देंव। उहँचे पहली बार 2012 म समुंदर देखेंव। अर्थशास्त्र के दू पेपर म 100 म 76 अउ 73 आये रिहिस। फेर बाकी तो जीरो रिहिस। हिंदी ल ही आघू बढ़ाये के विचार मन म आइस, त हिंदी म नेट अउ सेट के एग्जाम घलो  निकालेंव, फेर पोस्ट जादा नइ निकले के कारण ओखर फायदा नइ मिलिस, अभो घलो बाल्को म नोकरी चलत हे। पढाई लिखाई म का सपना रिहिस अउ कतका निभायेंव आप मनके सामने हे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

बाजा के शौक-संस्मरणात्मक आत्मकथा

 बाजा के शौक-संस्मरणात्मक आत्मकथा


मोर जिनगी के 21 बछर जनम भूमि खैरझिटी(राजनांदगांव) म दाई,ददा, घर- गांव अउ खेत-खार के छाँव म ठेठ गँवइहा स्टाइल म कटिस। मोला मोर लइकन पन के एकठन करामत के सुरता आवत हे। कक्षा सातवी के पेपर होय के बाद गरमी छुट्टी लग गे रहय। गाँव म भागवत पढ़े बर एक झन महराज अपन एक झन चेला के संग पधारे रहय। कोनो परब तिहार होय, या कोनो उत्सव,या फेर खेल कूद या नाचा गम्मत, मोर खुशी के ठिकाना नइ रहय, पंडाल के बनत ले लेके आखिरी बेरा तक उही मेर ओड़ा डार देत रेहेंव। लीपे, बहारे, सब्बल धरके गड्ढा कोड़ के खंभा गड़ाये, तोरन ताव सजाये म घलो बड़ आनन्द आय। वो दिन घलो इही सब काम म हाथ बँटाय के बाद दूसर दिन 9 दिन बर भागवत चालू होगे। महराज ह पंडाल ले थोड़ीक दुरिहा वाले घर म ठहरे रहय, जेला बाजा गाजा के संग परघावत भजन मंडली वाले मन पंडाल तक रोज लाने अउ लेजे घलो, महूँ वोमा थपड़ी पीटत,नही ते झाँझ मंजीरा बजावत शामिल रहँव। गांव भर के मनखे मन रोज भागवत सुने बर सकलाय। बनेच भक्तिमय माहौल रहय, महू संगी साथी मन संग कभू सुनत त कभू उही मेर खेलत रहँव। दू दिन के बाद तीसर दिन बिहनिया 8:30 महराज ल परघा के मंच तक लाना रिहिस, 9 बजे भागवत शुरू हो जावत रिहिस। फेर वो दिन ढोलक बजइया कोनो नइ रिहिस।झांझ मंजीरा म ही भजन गावत महराज ल लावत रिहिस मैं एक ठन ढोलक ल धर लेंव, अउ चलत भजन म थोर बहुत मिलाके ढोलक ल ठोंकत बढ़ गेंव। वइसे कभू तो सीखे पढ़े नइ रेंहेंव फेर सेवा-जस होय ते घरी छुवे बर मिल जावत रिहिस, सियान मन देखे त ,लइका मन भागो रे कहिके चमका देवय। वो दिन संझा घलो मैं एकठन ढोलक ल पहली ले धर लेंव अउ एक झन तो मुख्य वादक रहिबे करे रिहिस। कई सियान मन किहिस रख दे , एक झन तो बजाइय्या हे, ततकी बेर महराज कथे, बजावन दव जी, बेरा बखत म काम आथे, आज बिहना तो लइका बिचारा ह अलवा जलवा बजावत रिहिस न। महराज के बात ल कोन काटे, मैं वो बजकार संग मिलाके ढोलक बजायेंव, दू ठन तो गाना रहय, हाथ वो ताल म जमे कस लगिस। दूसर दिन घलो ढोलक बजाये के सपना रात भर खटिया म सुते सुते देखत रहिगेंव, अउ भगवान ले विनती करेंव कि कोनो बाजा बजाइय्या झन रहितिस, अउ रहितिस भी त एक झन, ताहन महूँ गला म दूसर ढोलक ल अरो के चलतेंव। खुसी के मारे नींद घलो नइ आइस। पहाती नहा खोर के फेर पहुँच गेंव। नीर सोचई सच घलो होगे, फेर कोनो नइ रिहिस बाजा बजइया, ताहन का कहना जेन सियान  मन रख रख काहत रिहिस तिही मन ह, ले बाबू बजा कहिके गला म अरो दिस ।मोर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, दादरा कस ताल पीटत महराज ल मंच तक लेंगेंव, अउ संझा लानेंव घलो। फेर सँझा कोई न कोई बजकार रहय,पर दूसर ढोलक ह मोर बर फिक्स होगे रिहिस। महराज वइसे तो बिन बाजा पेटी के कथा कहय फेर एक दिन ओखर भजन म सब ताली बजावत रहय त मैं ढोलक ल डरे डर म धीरे धीरे मिलावत रहंव, महराज के चेला कथे - बने बजावत हस, बजा बढ़िया जोर से। ताहन का महराज के भजन-गाना-गीत घलो ढोलक के ताल देख लम्बा खींचा गे। अउ वो दिन ले महराज ह अपन चेला के तीर म महू ल ढोलक धरवा के बइठार देवत रिहिस। लेजना, लानना के अलावा अब कथा के बीच बीच के गाना मन म मंच म बइठे ढोलक ल ठोंकव। ढोलक के आय ले बनेच माहौल घलो बन जावत रिहिस,काबर की तालीच भरोसा म कोनो भजन कत्तिक तानही, महराज के चेला जे नानचुन झोला म हाथ ल डार के बइठे रहय तेहर मंजीरा ल धर लिस। संगीतमय समा ले महराज खुश अउ सुनइया मन तक खुश। देखते देखत आखरी दिन होगे, महराज मोला नाम ले जाने। नटवर नाँगर नन्दा भजो रे मन गोविंदा--इही कीर्तन आखरी बेरा म चलत रहय।

मोर हाथ तो ढोलक म बरोबर ताल देवत रिहिस फेर मन उदास रिहिस, कि काली ये सब बन्द हो जाही। मोर आँखी ले आँसू झरत देख महराज पूछिस का होगे बाबू, मैं कहेंव काली मैं का करहूँ?आप मन तो काली चल देहू।  महराज मजाक करत कथे, त का तहूँ जाबे हमर संग? मैं मुड़ी डोला के हव केहेंव। महराज के, तैं का करबे ल सुन,मैं तपाक से केहेंव आप मन संग ढोलक बजाहूँ, अतेक कहिके फेर रोय बर धर लेंव। महराज रहय मथुरा के छत्तीसगढ़ म ओखर भागवत एक दू जघा अउ रहिस। चढ़ोतरी वगैरह होय के बाद घलो मैं उही मेर रेंहेंव, अउ आखिर बार बाजा बजावत परघावत ओखर ठहरे ठिहा म गेंव। सब सियान मनके घर जाये के बाद मोला बलाही कहिके महराज के आघू आघू म होवत रेंहेंव, आखिर म बलाइस अउ किहिस, तोर दाई ददा मन तोला जावन दिही? मैं फटाक कहेंव हव। का पता कहत महराज कथे वइसे तुम्हर गाँव ले 10 किलोमीटर दुरिहा म नगपुरा हे उँहा अगला भागवत होही। जा बने पूछ के आ घर ले ताहन ,सुबे के बस म  जजमान मन ले बिदा लेके निकलबों? मैं बड़ खुश होगेंव, अउ रतिहा झट ख़ाना खाके महराज के ठिहा म पहुँच गेंव, महराज मन के आराम करे के बेरा होवत रिहिस, मैं जाके झूठ बोलत केहेंव दाई बाबू दूनो ल बताये हँव, ओमन जा किहिस, अउ बात बनावत यहूँ केहेंव की वोमन आखरी दिन नकपुरा आही, मोला लेगे बर। बाजा बजाये के मोह अत्तिक मन म सवार रिहिस कि झूठ मूठ के सबकुछ गढ़ डरेंव। जबकि ददा दाई ल कुछु भी बताये नइ रेंहेंव। सुबे आहूं कहिके घर आगेंव अउ लुका के एकठन ताँत के झोला म दू जोड़ी कपड़ा ल भर के रख देंव। फेर रात भर नींद नइ आइस। बिहना नहा के कलेचुप सीधा बस स्टैंड म पहुँच गेंव, अउ महराज ल बतायेंव येदे मोरो कपड़ा लत्ता हे। गाँव भर के मनखे मन महराज ल विदा करे बर आय रिहिस, मैं कोनो ल नइ बताएंव कि महुँ महराज संग जावत हँव,चुपचाप एक तीर म खड़े रेंहेंव अउ बस आइस ताहन कलेचुप सबके नजर ले बचके चढ़ गेंव गाँव वाला मन महराज के पाँव पल्लगी म भुलाये रिहिस, थोड़ीक देर म चेला घलो चढ़गे वो मोला देखिस, अउ महराज चढ़िस ताहन बस चल पड़िस। वो दिन बाबू जी घलो गोतियार के नाहवन म दूसर गाँव गे रिहिस। मैं तो सबके नजर ले बचके भाग गे रेंहेंव। रतिहा विश्राम करे के बाद दुसर दिन भागवत चालू होइस। मोर बर एक ठन ढोलक समिति वाले मन कर ले जुगाड़े गिस। पहली दिन जम्मो भजन कीर्तन म ढोलक बजायेव ,अउ चेला  के मंजीरा घलो गूँजिस। अब हमन तीन झन होगे रेहेन ।मैं ,महराज अउ ओखर चेला। साथ म सोवई  अउ रंग  रंग के खवई म दाई ददा घर गांव के सुध भुलागे। येती मोला घर ले निकले दू रात बितगे रिहिस दाई के हाल बेहाल रहिस, गांव म जे भागवत करात रिहिस तेला पूछिस, देखे हव का टूरा ल कहूँ महराज के सँग तो नइ चलदिस हे, उँखर मनले तो मैं बचके कलेचुप बस म बइठे रेंहेंव कोन का जानही। कई झन मन किहिस की बस स्टैंड म आखरी बार दिखे रहिस। कतको मन किहिस, कि महराज के सँग भागे होही, काबर की 9 दिन ले तो ओखरे संग चिपके रहय। कतको मन महराज ल खिसियाये लगिस कि महराज ल तो बताना चाही। बाबू गाँव ले आइस त पता करिस कि महराज के भागवत अभी कहाँ चलत हे। अभी कस पहली कहाँ फोन ,एक तो दू दिन बाद म बाबू  गाँव ले आइस वो भी कका बलाए बर गिस तब। येती दाई अकेल्ल्ला का करतिस, भाई मन तक छोटे छोटे , मही खुद 13 बछर के बड़का (चार भाई म) रेंहेंव। ले दे के पता चलिस के नगपुरा म भागवत होवत हे, ताहन  बाबू अउ कका दूनो बिहना साइकिल धरके निकलगे। येती भागवत के दूसरा दिन चलत रिहिस, बनेच भीड़ घलो रहय। कथा म सब रमे रहय अउ महूँ ढोलक के संग कथा म मगन रेंहेंव। बाबू अउ कका स्रोता मनके  संग म बइठ के भागवत के उसले के रद्दा जोहत रिहिस। मोला उहाँ पाके उँखर तरवा ठनकत रहय, फेर संत समागम म हो हल्ला हो जही कहिके कलेचुप रिहिस। भागवत उसले के बाद मोर नजर बाबू अउ कका ऊपर पड़के। मोर तो हाथ पाँव काँपे लगिस। महराज जिहाँ ठहरे रहय तिहाँ दूनो झन तमकत आइस अउ पहली तो महराज ल सुनाइस कि काबर कखरो लइका ल अइसने ले आथो महराज जी कहिके, महराज समझगे कि मैं झूठ बोल के आये हँव। महराज बाबू ल किहिस की मैं तो केहे रेहेंव भई, घर म पूछ कहिके, त ये बाबू ह हव पूछ डरे हँव, जाये बर केहे हे किहिस, त लान परेंव, वइसे महूँ ल एक बार बताना रिहिस, फेर जल्दीबाजी अउ विदा के चक्कर म ध्याने नइ आइस। रिस म कका दू लउठी सूँटिया घलो दिस। अउ साइकिल म जघा के घर ले आइस। गाँव भर म मोर गँवाये के हल्ला पर गे रिहिस, अउ सब जानिस त, खिसियाये, वाह रे लइका कहिके। दाई घलो दू तीन बाहरी जमाये रिहिस। कोन जन का होगे रिहिस ते, मैं वो दरी बाजा के मोह म बइहागे रेंहेंव। दाई बाबू मन कभू अपन ले अलग नइ करे रिहिस, मोला सुरता आवत हे,मोर 5 वी क्लास के बाद नवोदय डोंगरगढ़ म सलेक्शन घलो होय रिहिस फेर नानकुन लइका कहाँ अत्तिक दुरिहा अकेल्ल्ला रही कहिके नइ भेजे रिहिस। दू दिन लइका नइ दिखे त कत्तिक दुख होथे तेला दाई ददा के अलावा कोन जानही। अउ लइका के प्रति वो मोह,मया,लगाव ल ददा बने के बाद अनुभव करथों। बिना बताये कोनो कदम नइ उठाना चाही।


जीतेंन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)