Tuesday 31 January 2023

दोहा गीत-सम्मान

 दोहा गीत-सम्मान


बँटे रेवड़ी के असन, जघा जघा सम्मान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


देवइया भरमार हें, लेवइया भरमार।

खुश हें नाम ल देख के,सगा सहोदर यार।

नाम गाँव फोटू छपा, अपने करयँ बखान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


साहित के संसार मा, चलत हवै ये होड़।

मुँह ताके सम्मान के, लिखना पढ़ना छोड़।

कागज पाथर झोंक के, बनगे हवैं महान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


धरहा धरहा लेखनी, सरहा होगे आज।

चाटुकार के शब्द हा, पहिनत हावै ताज।

हवै पुछारी ओखरे, जेखर हें पहिचान।

आज देख सम्मान के, कम होवत हे शान।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


कतको संगी मन ये कविता ले नाराजगी जाहिर करिन,फेर नाराज होय के कोनो बात नइहे। यदि उदिम, लेखन, योगदान अउ प्रतिभा सम्मानित होवत हे ता,ये तो बने बात हे। फेर सम्मान के शान कम होवत हे,यहू तो चिंतनीय हे।


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सम्मान-हरिगीतिका छन्द


सम्मान बर सम्मान ला गिरवी धरौ जी झन कभू।

कागत धरे पाथर धरे रेंगव अकड़ जड़ बन कभू।।

माँगे मिले ता का बता वो लेखनी के शान हे।

जब बस जबे सबके जिया मा ता असल सम्मान हे।।


जूता घिंसे बूता करत तब ले कई पिछुवात हें।

ता चाँट जूता एक दल सम्मान पा अँटियात हें।।

पइसा पहुँच मा नाम पागे काम के नइहे पता।

जेहर असल हकदार हे थकहार घूमत हे बता।।


तुलसी कबीरा सूर मीरा का भला पाये हवै।

लालच जबर बन जर बड़े नव बेर मा छाये हवै।।

ये आज के सम्मान मा छोटे बड़े सब हें रमे।

नभ मा उड़त हावैं कई कोई धरा मा हें जमे।।


साहित्य साहस खेल सेवा खोज होवै या कला।

विद्वान के होवै परख मेडल फभे उँखरें गला।।

जे योग्य हें ते पाय ता सम्मान के सम्मान हे।

पइसा पहुँच बल मा मिले सम्मान ता अपमान हे।।


उपजे सुजानिक देख के सम्मान अइसन भाव ए।

अकड़े जुटा सम्मान पाती फोकटे वो ताव ए।।

सम्मान नोहे सील्ड मेडल धन रतन ईनाम ए।

बूता बताये एक हा ता एक साधे काम ए।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गीत-जा रे परेवना

 गीत-जा रे परेवना


जा रे परेवना पाती देके आ जा।

शहर नगर मा रइथे मोर राजा।।


जागे न सुते हँव बिना पिया के।।

रोई रोई लिखे हँव हाल जिया के।

बाजय घड़ी घड़ी दुःख के बाजा।

जा रे परेवना पाती दे के आ जा।


नइ चाही धन दौलत महल अटारी।

लाँघन रहिथे हँव भूख ला मारी।।

कइसे जीयत हँव लगा अंदाजा।

जा रे परेवना पाती दे के आ जा।


पाती पढ़के आही पिया जल्दी गाँव मा।

जिनगी बिताहूँ बढ़िया पिरीत के छाँव मा।

रद्दा जोहत हँव खोल दरवाजा।

जा रे परेवना पाती दे के आ जा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

माँग होटल ढाबा के- कुंडलियाँ छंद

 माँग होटल ढाबा के- कुंडलियाँ छंद


मजबूरी मा खाय बर, होटल ढाबा होयँ।

फेर मनुष मन आज के, रोज खाय बर रोयँ।।

रोज खाय बर रोयँ, सबे होटल ढाबा मा।

हाँसत हें पोटार, दिखावा ला काबा मा।।

तन के रखें खियाल, तौंन मन राखयँ दूरी।

बनगे फैशन आज, रहै पहली मजबूरी।।


घर कस जेवन नइ मिले, मनखे तभो झपायँ।

रोज रोज पार्टी कही, घर ले बाहिर खायँ।।

घर ले बाहिर खायँ, जुरै संगी साथी सब।

कोन भला समझायँ, सबे ला भावै ये अब।।

खानपान वैव्हार, आज सब होगे करकस।

चैन सुकून पियाँर, कहाँ मिल पाही घर कस।।


आज जमाना हे नवा, होटल सब ला भायँ।

अपन हाथ मा राँध खा, पहली जन मुस्कायँ।

पहली जन मुस्कायँ, भात बासी खा घरके।

होटल जावैं आज, लोग लइका सब धरके।।

खा मशरूम पुलाव, भात ला मारे ताना।

पहुँच चुके हे देख, कते कर आज जमाना।


बासी कड़हा कोचरा, काय परोसा दान।

हाड़ी सँग वैपार हे, त का धरम ईमान।

त का धरम ईमान, सबें होटल ढाबा के।

का का राँध खवाय, तभो इतरायें खाके।

धन सँग तन बोहायँ, बने होटल के दासी।

होगे मनुष अलाल, खायँ होटल मा बासी।


पानी पइसा मा मिले, कणकण देवयँ तोल।

काय जानही वो भला,दया मया के मोल।

दया मया के मोल, जानही का होटल हा।

पइसा जा बोहायँ, कामकाजी अउ ठलहा।

रथे मसाला तेल, खायँ नइ दादी नानी।

नाती नतनिन पूत, बहू पीयें ले पानी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

कविता ला।

 कविता ला।


तुरते ताही कागज मा झन छपन दे कविता ला।

अंतस के आगी मा थोरिक तपन दे कविता ला।


सागर मंथन कस मन ला मथ,निकाल अमरित।

कउड़ी के दाम कभू,  झन नपन दे कविता ला।।


बइठ गय हे मन मार के, थक हार के यदि कोई।

भरे उन मा जोश जज्बा,ता अपन दे कविता ला।


कवि करम मा तोर मोर के, चिट्को जघा नइहे।

पर हित खातिर सबदिन, खपन दे कविता ला।।


का जुन्ना का नवा का सस्ता अउ का महंगा खैरझिटिया।

ओन्हा चेन्द्रा कस चिरा चिरा के, कपन दे कविता ला।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

नियत बचाके रख रे मनखे- तातंक छन्द

 नियत बचाके रख रे मनखे- तातंक छन्द


नियत बचाके रख रे मनखे, बचही पुरवा पानी हा।

लूट मचा झन बनगे लोभी, सिरा जही जिनगानी हा।


कब्जा झन पर्वत नदिया बन, झन खा पेड़उ पाती ला।

खनिज लवण जल झन निकाल बड़, छेद धरा के छाती ला।।

सता प्रकृति ला अब झन जादा, के दिन रही जवानी हा।

नियत बचाके रख रे मनखे, बचही पुरवा पानी हा।।


चरै तोर बइला विकास के, सुख के धनहा डोली ला।

तोरे बइला तुहिंला पटके, गुनय सुनय ना बोली ला।।

हवै भोंगरा छत अउ छानी, आगी लगे फुटानी हा।

नियत बचाके रख रे मनखे, बचही पुरवा पानी हा।।


माटी मा गारा मिलगे हे, महुरा पुरवा पानी मा।

साँस लेय बर जुगत जमाथस, अब का हे जिनगानी मा।

काली बर बस काल बचे हे, सरगे तोर सियानी हा।

नियत बचाके रख रे मनखे, बचही पुरवा पानी हा।।


पेड़ लगावत फोटू ढिलथस, कभू बाँचतस नारा तैं।

सात जनम के ख्वाब देखथस, बइठे रटहा डारा तैं।

चाँद सितारा के सुध लेथस, तड़पय धरती रानी हा।

नियत बचाके रख रे मनखे, बचही पुरवा पानी हा।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

वर दे माँ शारदे (सरसी छन्द)

 वर दे माँ शारदे (सरसी छन्द)


दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।

गुण गियान यश धन बल बाढ़ै,बाढ़ै झन अभिमान।


तोर कृपा नित होवत राहय, होय कलम अउ धार।

बने बात ला पढ़ लिख के मैं, बढ़ा सकौं संस्कार।

मरहम बने कलम हा मोरे, बने कभू झन बान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


जेन बुराई ला लिख देवँव, ते हो जावय दूर।

नाम निशान रहे झन दुख के, सुख छाये भरपूर।

आशा अउ विस्वास जगावँव, छेड़ँव गुरतुर तान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


मोर लेखनी मया बढ़ावै, पीरा के गल रेत।

झगड़ा झंझट अधम करइया, पढ़के होय सचेत।

कलम चले निर्माण करे बर, लाये नवा बिहान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


अपन लेखनी के दम मा मैं, जोड़ सकौं संसार।

इरखा द्वेष दरद दुरिहाके, टार सकौं अँधियार।

जिया लमाके पढ़ै सबो झन, सुनै लगाके कान।

दे अइसन वरदान शारदा, दे अइसन वरदान।।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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सुभगति छंद-शारद मां


दे ज्ञान माँ।वरदान माँ।

भव तारदे।माँ शारदे।


आनन्द दे।सुर छंद दे।

गुण ज्ञान दे।सम्मान दे।


सुख गीत दे।सत मीत दे।

सुरतान दे।अरमान दे।


दुख क्लेश ला।लत द्वेश ला।

दुरिहा भगा।सतगुण जगा।।


जोती जला।दे गुण कला।

माथा नवा।माँगौ दवा।


चढ़ हंस मा।सुभ अंस मा।

आ द्वार मा।भुज चार मा।


दुरिहा बला।अवगुण जला।

बिगड़ी बना।सतगुण जना।


वीणा सुना।मैं हँव उना।

पैंया परौं।अरजी करौं।


सद रीत दे।अउ जीत दे।

सत वार दे।माँ शारदे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


जय माँ शारदे, बसन्त पंचमी की सादर बधाइयाँ

देश भक्ति घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 देश भक्ति घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


आज बिहना के होती, एती वोती चारो कोती।

तन मन मा सबे के, देश भक्ति जागे हवै।।

खुश हे दाई भारती, होवय पूजा आरती।

तीन रंग के तिरंगा, गगन मा छागे हवै।।

दिन तिथि खास धर, आशा विश्वास भर।

गणतंत्रता दिवस, के परब आगे हवै।।

भेदभाव ला भुलाके, जय हिंद जय गाके।

झंडा फहराये बर, सब सँकलागे हवै।।


खैरझिटिया


गणतंत्रता दिवस के बहुत बहुत बधाई


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@@@हमर तिंरगा(दोहा गीत)@@@


लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।

इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।

हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।

नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।

जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।

संसो  कहाँ  सुबे   हवे, नइहे  संसो   रात।

महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।

लहर------------------------------- आज।


उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।

भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।

गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।

उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।

का  का  मैं  बतियाँव गा,हवै सोनहा राज।

लहर------------------------------लाज।


तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।

जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।

कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।

रहिथे सब मनखे जुरे, भेदभाव ला लेस।

जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।

लहर-----------------------------लाज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


 गणतन्त्रता दिवस की ढेरों बधाइयाँ🙏🙏💐💐

रितु बसंत(रोला छंद)

 पिंयर पिंयर सरसो फुले,देखत मन हर्षाय।

सनन सनन पुरवा चले,सरग पार नइ पाय।


रितु बसंत(रोला छंद)


गावय  गीत बसंत,हवा मा नाचे डारा।

फगुवा राग सुनाय,मगन हे पारा पारा।

करे  पपीहा  शोर,कोयली  कुहकी पारे।

रितु बसंत जब आय,मया के दीया बारे।


बखरी  बारी   ओढ़,खड़े  हे  लुगरा  हरियर।

नँदिया नरवा नीर,दिखत हे फरियर फरियर।

बिहना जाड़ जनाय,बियापे  मँझनी बेरा।

अमली बोइर  आम,तीर लइकन के डेरा।


रंग  रंग  के साग,कढ़ाई  मा ममहाये।

दार भात हे तात,बने उपरहा खवाये।

धनिया  मिरी पताल,नून बासी मिल जाये।

खावय अँगरी चाँट,जिया जाँ घलो अघाये।


हाँस हाँस के खेल,लोग लइका मन खेले।

मटर  चिरौंजी  चार,टोर  के मनभर झेले।

आमा  अमली  डार, बाँध  के  झूला  झूलय।

किसम किसम के फूल,बाग बारी मा फूलय।


धनिया चना मसूर,देख के मन भर जावय।

खन खन करे रहेर,हवा सँग नाचय गावय।

हवे  उतेरा  खार, लाखड़ी  सरसो अरसी।

घाम घरी बर देख,बने कुम्हरा घर करसी।


मुसुर मुसुर मुस्काय,लाल परसा हा फुलके।

सेम्हर हाथ हलाय,मगन हो मन भर झुलके।

पीयँर  पीयँर   पात,झरे  पुरवा जब आये।

मगन जिया हो जाय,गीत पंछी जब गाये।


माँघ पंचमी होय,शारदा माँ के पूजा।

कहाँ पार पा पाय,महीना कोई दूजा।

ढोल नँगाड़ा झाँझ,आज ले बाजन लागे।

आगे  मास बसन्त,सबे कोती सुख छागे।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छ्ग)


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गीत-तैं मोला भुला के जी पाबे का बता।

 गीत-तैं मोला भुला के जी पाबे का बता।


तैं मोला भुला के जी, पाबे का बता।

मैं तो तड़पते हौं, तैं खुद ला झन सता।।


मोर दिल के धड़कन, नाम लेथे तोर वो।

तोर दिल के धड़कन, नाम लेथे मोर वो।

तोर मोर जिनगी के, एक्के हे पता।

तैं मोला भुला के जी, पाबे का बता।।


कइसे पहाबे जिनगी, तोर उमर हे सोला/

संसो मा घूर जाही, ये मानुष चोला।

कोन बात ला धरे हस, नइहे सुरता मोला।

जिनगी मा होते रइथे, छोट मोट खता।

तैं मोला भुला के जी, पाबे का बता।।


नोहो जिनगी, मन ला मार के जीना।

भले मोर खून पी ले, फेर जहर पी ना।

ये तन पुजारन ए, दिल आये देवता।

तैं मोला भुला के जी, पाबे का बता।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

बसंत के दूत

 बसंत के दूत


               पूस धुँधरा,कोहरा अउ ठुठरत जाड़ ल गठियाके जइसे ही जाय बर धरथे,तब माँगे महीना माँघ बसंती रंग के सृंगार करे पहुना बरोबर नाचत गावत मटमटावत आथे।माँघ महीना म पुरवा सरसर सरसर गुनगुनाय ल धर लेथे।सुरुज नारायण घलो जइसे जइसे बेरा बाढ़त जाथे अपन तेज ल बढ़ायेल लगथे,जेहा अड़बड़ मन ल भाथे, क़ाबर की जाड़ भर ललचाय रिहिस।जाड़ ल जावत देख चिरई -चिरगुन,जीव- जानवर  पेड़-पउधा,बाग-बगइचा अउ मनखे मन मतंग होय बर लग जथे।खेत खार म उन्हारी,उतेरा जेमा चना,गहूँ, तिवरा, सरसो,मसूर के संगे संग बखरी बारी के धनिया,मेथी,पॉलक,मटरी अउ रंग रंग के साग भाजी पुरवइया हवा म नाचेल लग जथे। तरिया, नँदिया,नरवा के पानी धीर लगाके लहरा मारत,रद्दा रेंगत मनखे ल तँउरे बर बलाथे।ऊँच ऊँच बर,पीपर,कउहा,सेम्हर,बम्हरी,साल,सरई,तेंदू,चार,

डुमर अउ कतको पेड़ मतंग होके नाचेल धर लेथे।बाग बगइचा म रंग रंग के फूल  तितली,भौरा के संगे संग मन भौरा ल घलो अपन तीर खिंचेल धर लेथे।अमरइया म कोयली के गाना,तरी म बंधाये झूलना अउ पेड़ म झूलत झोत्था झोत्था मउर मन ल मोह लेथे।बोइर पेड़  म लटलट ले लदाये हरियर पिंवरी अउ लाल फर ल देख के बिना एकात ढेला मारे जिवरा नइ अघाय। हवा म झूलत कोकवानी अमली देख भला काखर मुँह म पानी नइ आय?गरती,तेंदू,चार ,महुवा,पिकरी,डूमर खावत कतको चिरई मन मनभर गीत गाथे।


         माँघ तिथि पंचमी देवी सरस्वती के पूजा पाठ  के दिन होथे,ये दिन ले फागुन के गीत,झाँझ,मंजीरा गली गली चौरा चौरा म सुनायेल धर लेथे।बसंत ऋतु के स्वागत सत्कार म नाचा - गम्मत,मड़ई ,मेला,गीत कविता चारो मुड़ा गूँजेल लग जथे।बसंत ऋतु  म परसा,सेम्हर  लाली लाली फूल म लदाये बर लग जथे।बिरवा के पिवरी पात झरथे अउ नवा पान फोकियायेल लगथे।बसंत ऋतु सब ऋतु ले खास होथे,ये समय घर,बन,बारी,बखरी,खेत,खार,नदी,पहाड़ सबो चीज म खुशी सहज दिखथे।गावत झरना,चिरई चिरगुन,पुरवा अउ नाचत पेड़-पात,लइका सियान सबो जघा दिख जथे।सरसो,राहेर,चना ,गहूँ,अरसी, मसूर,लाख,लाखड़ी सबो रंग रंग के फूल धरके नाचे गाये कस लगथे।बसंत ऋतु म कोयली के गाना,नँगाड़ा के थाप,फाग अउ मेला मड़ई मन मोह लेथे।ये सब ला देख देख सबके मन  म खुशी दउड़त रहय।भुइयाँ के दसना म रंग रंग के खेल खेलत मन मतंग रहय।


      पहली मनखे मनके मन म बसन्त के वास होवय तरिया,नँदिया,डोली,डंगरी,घाट,बाट,बारी  बखरी,बाग बगइचा, खेत खार घर के दुवारी ले नजर आय।प्रकृति के कोरा म ठिहा ठउर रहय,चिरई- चिरगुन छानी परवा म नाचे गाये।घर के दुवारी म लाली दसमत,अँगना म तुलसी के चौरा,गमकत गोंदा, ममहावत दवना,घमाघम फुले अउ झूले मुनगा,बारी म सेमी नार,भाजी पाला,झूलत केरा खाम,अउ कतको मनमोहक छटा अइसने मन लुभावत रहय,आज ये दृश्य देखे बर नइ मिले।


कँउवा  के कांव कांव  लटपट म सुनाथे,तब कोयली,मैना,सुवा,गौरैया के गीत ल छोड़ दे।


 फेर जब जब बसंत आथे अन्तस् म ये सब हिलोर लेय बर धर लेथे।बिन परसा फूल देखे घलो ओखर लाली रंग अन्तस् म अपन सुन्दराई ल बगरा देथे।। कवि के कविता म फूले सरसो,अरसी,सरसो,महुवा,अमुवा अउ बोहावत पुरवैया बसंत ऋतु के सन्देश देथे।आज प्रकृति में वो सबो सुन्दराई खोजे म घलो नइ मिले,तब फेर बसन्त ऋतु के सन्देश मनखे मन ल कोन देवय?कवि नइ होतिस त  कोन हवा ल महकातिस?कोन बसंती रंग के बौछार करतिस?आज प्रकृति के बसंती सुघराई असल रूप म तो बिरले देखेल मिलथे,फेर कवि अपन कविता म बसंत के दूत बनके वइसने गीत गाथे जइसे कोयली कूह कूह कुहूक के बसंत के राग अलापथे।


            मनखे मन प्रकृति ले दिनों दिन दुरिहावत हावय।निर्माण के चक्कर म दिनों दिन उजाड़ सहज होगे हे।पेड़ पउधा,बारी बखरी,नंदिया तरिया,खेत खार सब म मनखे मन अपन स्वारथ के झंडा गाड़ देहे।उहाँ कहाँ कोयली,कहाँ पुरवइया, कहाँ अमरइया अउ काय बसंत?फेर आज कवि म बसंत के दूत बरोबर कोयली कस गावत गावत अपनी लेखनी म नँदिया,तरिया,झरना,डोंगरी,पहाड़,सरसो,चना,गहूँ,डूमर,अमरइया,सुवा,मैना,परसा,तेंदू,चार,चिरौंजी अउ जम्मो बसंत के सुघराई ल उकेरत हे।जेला पढ़ सुन के बसंत अन्तस म बस जावत हे।कोन जन बाँचे खोंचे अमरइया म अउ के दिन कोयली गाही,अउ बसंत के सन्देश दे पाही।फेर कलम धरे कवि कस ये कोयलिया म जब जब बसंत आही तब तब बसंत के दूत बनके जम्मो बसन्ती सुघराई ल सबके अन्तस् म बगराही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को(कोरबा)

गीत-आइस नही बसंत(सरसी छन्द)

 गीत-आइस नही बसंत(सरसी छन्द)


आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।

बिन अमुवा का करे कोयली, कांता हा बिन कंत।।


बिन फुलवा के हावय सुन्ना, मोर जिया के बाग।

आसा के तितली ना भौरा, ना सुवना के राग।।

हे बहार नइ पतझड़ हे बस, अउ हे दुःख अनंत।

आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।।


सनन सनन बोलय पुरवइया, तन मन लेवय जीत।

आय पिया हा हाँसत गावत, धर फागुन के गीत।।

मरत हवौं मैं माँघ मास मा, पठो संदेश तुरंत।

आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।।


देख दिखावा के दुनिया हा, बैरी होगे मोर।

छीन डरिस सुख चैन पिया के, काट मया के डोर।

पुरवा पानी पियत बने ना, आगे बेरा अंत।

आइस नही बसंत सखी रे, आइस नही बसंत।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

बजट अउ आम आदमी

 बजट अउ आम आदमी


आँसों  फेर बजट ला, देखत हे आम आदमी।

आसा के आगी मा हाथ, सेकत हे आम आदमी।।


कखरो मुख मा कहाँ, नाम गाँव रथे इंखर,

ये जग मा सबर दिन, नेपत हे आम आदमी।


पेट्रोल डीजल टोल टेक्स, कुछु मा नइहे राहत,

आहत हो गाड़ी कार ला, बेचत हे आम आदमी।।


न कभू मरे न कभू मोटाय, का खाय का बचाय,

घानी के बने बइला तेल, पेरत हे आम आदमी।।


का बड़े का छोटे, सब खाय इंखरे कमाई ला,

अर्थव्यवस्था ला बोहे, लेगत हे आम आदमी।।


देश राज संस्कृति, अउ संस्कार के बन पुजारी।

खुद के ठिहा ठौर ला, लेसत हे आम आदमी।।


पिसाके दू पाटा बीच, तेल नून आँटा बीच,

सब दिन बस पापड़, बेलत हे आम आदमी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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आम आदमी


सरकार के उपकार मा, हलाल बनके आम आदमी।

बनत रिहिस मसाल पर,मलाल बनगे आम आदमी।।


न ऊपर वाले जाने, ना नीचे वाले कभू माने ,

सिरिफ सपना मा,जलाल बनगे आम आदमी।।


असकटाके गुलामी के बेड़ी मा,नित फंदाय फंदाय,

खास बने के चाह मा, दलाल बनगे आम आदमी।।


शान शौकत के सपना ला, कभू पाँख नइ लगिस,

आन के सुरा शौक बर, कलाल बनगे आम आदमी।


दुबके दुबके नाम गाँव अउ, पद पार के संसो मा,

माँगे बर हक अपन, अलाल बनगे आम आदमी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

गीत-पतझड़

 गीत-पतझड़


आथे पतझड़ दे जाथे संदेश रे भैया।

पाके पाना पतउवा ला फेक।।


बनना हे बढ़िया ता, तज दे विकार ला।

अपन बूता खुद कर, झन देख चार ला।

आवत जावत रहिथे, सुख दुख के बेरा।

समय मा चलबे ता, कटथे घन घेरा।।

विधि विधना ला, माथा टेक रे भैया।

पाके पाना पतउवा ला फेक-----


राम अउ माया, संग मा नइ मिले।

सदा दिन बिरवा मा, फुलवा नइ खिले।

परसा सेम्हर, पात झर्रा मुस्काथे।

फागुन महीना, पुरवा संग गाथे।

पूरा पानी ला झन कभू छेक रे भैया।

पाके पाना पतउवा ला फेक-----


नाहे धोये मा नइ, अन्तस् धोवाये।

मन ला उजराये ते, ज्ञानी कहाये।

मन हावै निर्मल ता, जिनगी हे चोखा।

करबे देखावा ता, खुद खाबे धोखा।

देथे प्रकृति संदेशा नेक रे भैया।

पाके पाना पतउवा ला फेक----


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Monday 30 January 2023

गीत- बने करे भगवान(सरसी छंद)

 गीत- बने करे भगवान(सरसी छंद)


काम घूस खाये के दै नइ, बने करे भगवान।

महिनत करथौं पइसा पाथौं, नइ डोले ईमान।


पचे नहीं फोकट के पइसा, जस आये तस जाय।

होथे बिरथा बड़का बनना, कखरो ले के हाय।।

बने करम नित करत रहौं मैं, भरत रहै धन धान।

काम घूस खाये के दै नइ, बने करे भगवान।।


खून पछीना के धन दौलत, देवय चैन सुकून।

जादा के हे लालच बिरथा, लोभ मोह ए घून।

बने करम के होथे पूजा, करम धरम अउ दान।

काम घूस खाये के दै नइ, बने करे भगवान।।


घूसखोर के गत देखे हँव, माया पइस न राम।

लरहा बनके घुमते रहिगे, होगिस काम तमाम।।

इँहें सरग हे इँहें नरक हे, लिखथे करम विधान।

काम घूस खाये के दै नइ, बने करे भगवान।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Sunday 15 January 2023

गजल

 गजल


पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे।

दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे।


वोट देके कोन ला जनता जितावैं।

झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे।


खात हावँय घूम घुमके अरदली मन।

सिर नँवइयाँ के मुड़ी ला फोड़ होगे।


बड़ सरल हावय बुराई के डहर हा।

सत लगिस मुश्किल कहूँ ता छोड़ होगे।


मौत के मुँह मा समागे देवता मन।

काल के असुरन तिरन अब तोड़ होगे।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Saturday 14 January 2023

गीत-कोरोना

 गीत-कोरोना


चाइना के समान, चार दिन मा होगे चूर।

फेर कोरोना बइरी करे, रहिरहि मजबूर।।


उन्नीस ले बीस होगे, अउ होगे तेइस।

जब जब आइस हे, बड़ दुख हे देइस।

मनखे हलकान होगे, बनगे लंगूर।

ये कोरोना बइरी करे, रहिरहि मजबूर।।


लाकडाउन के सुरता करत, काँप जाथे पोटा।

कोरोना हा मारत हे, खेवन खेवन आके सोंटा।

जर बुखार सर्दी संग, आय खाँसी खूरखूर।

ये कोरोना बइरी करे, रहिरहि मजबूर।।


मनखे ला मनखे के, बना देहे बइरी।

आगी लगा देहे अउ, मता देहे गइरी।

सुखचैन के फुटगे दुहना, होगे कतको दूर।

ये कोरोना बइरी करे, रहिरहि मजबूर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

कुंडलियाँ- बन रमकलिया/फुटु रमकल

 कुंडलियाँ- बन रमकलिया/फुटु रमकल


मिलथे डोली खार मा, बन रमकलिया खूब।

राँधव भूंज बघार के, खावव घर भर डूब।।

खावव घर भर डूब, मिठाथे अड़बड़ भारी।

शहर रथे अंजान, गाँव के ये तरकारी।।

कोंवर कोंवर देख, फूल फर मन हा खिलथे।

गुण जाने ते खाय, खेत भर्री मा मिलथे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

नँदावत संस्कृति संस्कार

 नँदावत संस्कृति संस्कार


देख जवनहा टुरी टुरा मन ला,

मनमाड़े हाँसत हे।

रिकिम रिकिम के लोभ दिखाके,

विदेशी संस्कृति फाँसत हे।

परब तिहार मा इटिंग ग्रीटिंग,

हाय हलो चलत हे।

दाई ददा बर टेम नइहे,

पांव परई खलत हे।

भुलागे बरा सोंहारी,

अउ गुलगुल भजिया।

ऐना मैना नाम बतावत हे,

रामबाई रमशीला रधिया।

बुधारू समारू होगे राहुल रोहन,

सूट बूट मा नाँचे।

पहिर जींस टोपी चश्मा,

मोबाइल धरे हे हाथे।

दोस्त यार संग दारू भट्ठी,

आर बार मा झपाय हे।

कहाँ सुरपुट दार भात,

आनी बानी के बिरयानी खाय हे।

नइ दिखे सुर संगीत,मया पिरित के गीत,

सुनावत हे भांगड़ा डिस्को।

जवनहा मन नाचो गाओ,

सियनहा मन खिसको।

इभी टीभी बीबी बोहागे,

एमा रच बस के।

दाई ददा ल देख के,

टुरी टुरा मन टसके।

आज लाज ढाबा होटल,

बनके किसनहा के खेत मा।

अखमुंदा झपात हें जम्मों,

विदेशी चपेट मा।

बर बिहाव के सात भाँवर,

सात दिन मा टूटत हे,

थोरिक लइका बाढ़िस ताहन,

पार परिवार ले छूटत हे।

धरे हे बीड़ी सिगरेट,

रहिरहि के फूकत हे।

चगलत हे तंबाकू गुटका,

इती उती थूकत हे।।

इंग्लिश विस्की रम मा रमके,

नाचत हे अँटियात हे।

कागत के पंख लगाके,

अगास मा उड़ियात हे।

ठीक हे  सब आज, नवा जमाना मा ढलव।

फेर नाम तको बचे रहै,अइसन राह म चलव।

उड़ाव विदेशी संस्कृति के पाँख लगाके।

फेर अपन संस्कृति ला बचाके।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

गीत--सियान मन

 गीत--सियान मन


ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।

जनम देवइया जतन करइया, भुइयाँ के भगवान मन।


पेड़ पात पानी पुरवा ला, जस के तस सौपिन हम ला।

रखिन बचा के सरी चीज ला,खुद उपभोग करिन कम ला।

लागा, पागा धर नइ करिन, सपना खातिर सुजान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


चिपके रिहिन हावयँ सबदिन, मानवता के गारा मा।

दया मया ला बाँटत फिरिन, गाँव गली घर पारा मा।

लाँघन नइ गिस जिंखर ठिहा ले,जानवर ना इंसान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


सही गलत अउ पाप पुण्य के, लहराइन सबदिन झंडा।

छोड़दिन बैरी ला बदी देके, नइ देखाइन आँखी डंडा।।

अंतर मन ला आनन्द देवयँ, जिंखर सुर अउ तान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


परम्परा अउ संस्कृति के, सौदा करिन नही कभ्भू।

देखावा अउ चकाचौंध बर, लड़िन मरिन नही कभ्भू।

चद्दर देख लमाइन हें पग, उड़िन मनुष नइ महान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


नता रिस्ता ला हाँस निभाइन,पीठ चढ़ाइन नाती ला।

कथा कहानी न्याय सुनाइन, लिखिन पढ़िन पाती ला।।

नवा समय मा नोहर होही, जुन्ना गुण अउ ज्ञान मन।

ये धरती ले धीरे धीरे, जावत हवयँ सियान मन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

यम ले बड़े सड़क हे - गीत

 यम ले बड़े सड़क हे - गीत


जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।

गाड़ी घोड़ा धरके, माते हे इंसान।।


धूत नशा मा कतको, गाड़ी रथे चलात।

कतको ला हे जल्दी, कतको हे अँटियात।।

कतको हे नवसिखिया, ता कतको नादान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।।


हेलमेट बिन कतको,मोबाइल धर हाथ।

करतब कई दिखावै, पीटे पाछू माथ।।

मौत सड़क मा देखत,यम तक हे हलकान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।।


नियम भुला अँख मुंदा, गाड़ी जउन भगाय।

अपन संग मा वोहर, पर ला तक रोवाय।।

खँचका डिपरा गरुवा, लेवै छीन परान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


हाथ लगे इस्टेरिंग, ताहन कहाँ लगाम।

होथे बड़ दुर्घटना, लागे रहिथे जाम।।

यम ले बड़े सड़क हे, खोल आँख अउ कान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


धीर धरे सुधबुध मा, गाड़ी जउन चलाय।

नियम धियम ला जाने,सड़क ओखरे आय।

तन के मोल समझके, आने ला समझान।

जावत हवै सड़क मा, सब ले जादा जान।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)


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सड़क सुरक्षा- गीत


चलना है सड़क में, तो मानो ये बात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


जल्दीबाजी करने वाले, चले हथेली पर रख जान।

उस इंसान का नही ठिकाना,किये हैं जो मदिरा पान।।

नसा नाश की जड़ है, इससे पाओ निजात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


काबू में रखकर चलो, गाड़ी की रप्तार।

सीटबेल्ट हेलमेट लगाओ,बनकर समझदार।

होश गँवाकर पछताओ, मौका ए वारदात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


इंडिकेटर हॉर्न सही हो,सही हो आँख और कान

दाँये बायें आगे पीछे, रखो सभी पर ध्यान।

चलो सड़क में सावधान हो, खुद को दो सौगात।

सड़क सुरक्षा के नियम,अपनाओ दिनरात।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


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गीत

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।

कारण मौत का न बन जाये,

होश में आओ रे---


दुर्घटना से, देर भली है।

जिसने माना बला उसकी टली है।

सड़क नही करतब का मैदां,

मान भी जाओ रे------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


नशे में जो गाड़ी चलाये।

खतरा उसके सिर मंडराये।

चलो सड़क में हो चौकन्ना,

सूझ बूझ दिखाओ रे-------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


सब हँसते गाते घर जाये।

आफत न किसी पर आये।

सड़क नियम को खुद अपनायें,

औरों को बताओ रे-------

गाड़ी,,,,,,,, धीरे चलाओ रे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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गीत-मोल क्षमा के(तातंक छंद)

 गीत-मोल क्षमा के(तातंक छंद)


भाव क्षमा के जब आ जाही, तब बड़का कहिलाबे तैं।

बालपना गय गये जवानी, अउ कब तक उमियाबे तैं।।


आँख दिखाथस दाँत कटरथस, रिस करथस अबड़े भारी।

मनखेपन के दिखे नही गुण, लगथस तैं टँगिया आरी।।

बड़े कहाथस धन दौलत धर, इकदिन धक्का खाबे तैं।

भाव क्षमा के जब आ जाही, तब बड़का कहिलाबे तैं।।


मन निर्मल नइहे बचपन कस, मोह सनाय जवानी हे।

समझ बूझ नइहे हे सियान कस, महुरा असन जुबानी हे।।

बता होश आही कब तोला, कब लत लोभ भुलाबे तैं।

भाव क्षमा के जब आ जाही, तब बड़का कहिलाबे तैं।।


अपन समझ लइका के गलती , क्षमा करे दाई बाबू।

फेर देख के पर के अवगुण, रखे नही मन मा काबू।।

अपन मान के सबे मनुष ला, रिस तज के समझाबे तैं।

भाव क्षमा के जब आ जाही, तब बड़का कहिलाबे तैं।।


कुकुर भुँके ले पथ नइ बदले, चले कलेचुप हाथी हा।

धरम करम धर तहूँ चलत रह, दुरिहाये झन साथी हा।।

क्षमा दान के मोल समझ ले, क्षमा करत हर्षाबे तैं।

भाव क्षमा के जब आ जाही, तब बड़का कहिलाबे तैं।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छेरछेरा पुन्नी के मूलमंत्र

 छेरछेरा पुन्नी के मूलमंत्र


                          कृषि हमर राज के जीविका के साधन मात्र नोहे, बल्कि संस्कृति आय, काबर कि खेती किसानी के हिसाब ले हमर परब संस्कृति अउ जिनगी दूनो चलथे। उही कड़ी के एक परब आय, छेराछेरा। जे पूस पुन्नी के दिन मनाय जाथे। ये तिहार ला दान धरम के तिहार केहे जाथे। वइसे तो ये तिहार मानये के पाछू कतको अकन किवदंती जुड़े हे, फेर ठोसहा बात तो इही आय कि, ये बेरा मा खेत के धान(खरीफ फसल) लुवा मिंजा के किसान के कोठी मा धरा जावत रिहिस, उही खुशी मा एक दिन अन्न दान होय लगिस, जेला छेरछेरा के रूप मा पूरा छत्तीसगढ़ मनाथें। हमर छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज हरे, येती छेराछेरा परब ला, घोटुल मा रहिके सबे विधा मा पारंगत होय, युवक युवती मनके स्वागत सत्कार के रूप मा मनाये जाथें, अउ दान धरम करे जाथें। पौराणिक काल मा इही दिन,भगवान शिव के पार्वती के अँगना मा भिक्षा माँगे के वर्णन मिलथे। सुनब मा आथे कि भगवान शिव अपन विवाह के पहली माता पार्वती तिर नट के रूप धरके उंखर परीक्षा लेय बर गे रिहिस, अउ तब ले लोगन मा उही तिथि विशेष मा दान धरम करत आवँत हें। 

                     ये दिन ले जुड़े एक पौराणिक कथा अउ सुनब मा मिलथे, कथे कि एक समय धरती लोक मा भयंकर अंकाल ले मनखे मन दाना दाना बर तरसत रिहिन, तब आदि भवानी माँ, शाकाम्भरी देवी के रूप मा अन्न धन के बरसा करिन। वो तिथि पूस पुन्नी के पबरित बेरा पड़े रिहिस। उही पावन सुरता मा, माता शाकाम्भरी देवी ला माथ नवावत, आज तक ये दिन दान देय के पुण्य कारज चलत हे। भगवान वामन अउ राजा बली के प्रसंग घलो कहूँ मेर सुनब मा आथे।

                रतनपुर राज के कवि बाबूरेवाराम के पांडुलिपि मा घलो ये दिन के एक कथा मिलथे, जेखर अनुसार राजा कल्याणसाय हा, युद्धनीति अउ राजनीति मा पारंगत होय खातिर मुगल सम्राट जहाँगीर के राज दरबार मा आठ साल रेहे रिहिस, अउ इती ओखर रानी फुलकैना हा अकेल्ला रद्दा जोहत रिहिस। अउ जब राजा लहुट के आइस ता ओखर खुशी के ठिकाना नइ रिहिस, रानी फुलकैना मारे खुशी मा अपन राज भंडार ला सब बर खोल दिस, अउ अन्न धन के खूब दान करें लगिस, अउ सौभाग्य ले वो तिथि रिहिस, पूस पुन्नी के। कथे तब ले ये दिन दान धरम के  परम्परा चलत हे।

                  कोनो भी तिथि विशेष मा कइयों ठन घटना सँघरा जुड़ सकथे, जइसे दू अक्टूबर गाँधी जी के जनम दिन आय ता शास्त्री जी घलो इही दिन अवतरे रिहिन, दूनो के आलावा अउ कतको झन के जनम दिन घलो होही। वइसने पूस पुन्नी के अलग अलग कथा, किस्सा, घटना ला खन्डित नइ करे जा सके। फेर सबले बड़का बात ये तिथि ला, दान पूण्य के दिन के रूप मा स्वीकारे गेहे। अउ दान धरम कोनो भी माध्यम ले होय, वन्दनीय हे। छेराछेरा तिहार मा घलो वइसने दान धरम करत,अपन अँगना मा आय कोनो भी मनखे ला खाली हाथ नइ लहुटाय जाय, जउन भी बन जाये देय के पावन रिवाज चलत हे, अउ आघु चलते रहय। ये परब मा देय लेय के सुघ्घर परम्परा हे, छोटे बड़े सबे चाहे धन मा होय चाहे उम्मर मा आपस मा एक होके ये परब मा सरीख दिखथें। लइका सियान के टोली गाजा बाजा के संग सज सँवर के हाँसत गावत पूरा गांव मा घूम घूम अन्न धन माँगथे, अउ सब ओतके विनम्र भाव ले देथें घलो। छेरछेरा तिहार के मूल मा उँच नीच, जाति धरम, रंग रूप, छोटे बड़े, छुवा छूत,अपन पराया अउ अहम वहम जइसे घातक बीमारी ला दुरिहाके दया मया अउ सत सुम्मत बगराना हे। फेर आज आधुनिकता के दौर मा अइसन पबरित परब के दायरा सिमित होवत जावत हे। बड़का मन कोनो अपन दम्भ ला नइ छोड़ पावत हे, मंगइया या फेर गरीब तपका ही माँगत हे, अउ देवइया मा घलो रंगा ढंगा नइहे। *एक मुठा धान चाँउर या फेर रुपिया दू रुपिया कोनो के पेट ला नइ भर सके, फेर देवई लेवई के बीच जेन मया पनपथे, वो अन्तस् ला खुशी मा सराबोर कर देथे। एक दूसर के डेरउठी मा जाना, मिलना मिलाना अउ मया दया पाना इही तो बड़का धन आय। छेरछेरा मा मिले एक मुठा चाँउर दार के दिन पुरही, फेर मिले दया मया, मान गउन सदा पुरते रइथे।* इही सब तो आय छरछेरा के मूलमंत्र। कखरो भी अँगना मा कोनो भी जा सकथे, कोनो दुवा भेद नइ होय। फेर आज अइसन पावन परम्परा देखावा अउ स्वार्थ के भेंट चढ़त दिखत हे, शहर ते शहर गांव मा घलो अइसन हाल दिखत हे। ये तिहार मा ज्यादातर लइका मन झोरा बोरा धरे, गाँव भर घूम अन्न धन माँगथे, सबे घर के एक मुठा अन्न धन अउ मया पाके, उंखर अन्तस् मा मानवता के भाव उपजथे, उन ला लगथे, कि सब हम ला मान गउन देथे, छोटे बड़े,धरम जाति, ऊँच नीच, गरीब रईस सब कस कुछु नइ होय, अइसनो सन्देशा घलो तो हे, ये परब मा। छोट लइका मनके मन कोमल होथे, दुत्कार अउ भेदभाव देखही सुनही ता निराश हताश तो होबे करही।

                 छेरछेरा अइसन पबरित परब आय जे गांव के गांव ला जोड़थे, वो भी सब ला अपन अपन अँगना दुवार ले, दया मया देवत लेवत अन्तस् ले, दान धरम ले या एक शब्द मा कहन ता मनखे मनखे ले। ये खास दिन मा जइसे माता पार्वती अँगना मा नट बन आये शिव जी ला सर्वस्व न्योछावर कर दिन, राजा बली भगवान वामन ला सब कुछ दे दिस,माँ शाकाम्भरी भूख प्यास मा तड़पत धरतीवासी ला अन्न धन ले परिपूर्ण कर दिस, रानी फुलकैना अपन परजा मन ला अन्न धन दिस, अउ किसान मन अपन उपज के खुशी ला  थोर थोर सब ला बाँटथे, वइसने सबे ला विनयी भाव ले अपन शक्तिनुसार दान धरम करना चाही। लाँघन, दीन हीन के पीरा हरना चाही, अहंकार दम्भ द्वेष, ऊँच नीच ला दुरिहागे सबे ला अपने कस मानत मान देना चाही, मया देना चाही।

*दान धरम अउ मया पिरीत के तिहार ए छेरछेरा।*

*मनखे के मानवता देखाय के आधार ए छेरछेरा।*


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छेरछेरा(सार छंद)

 छेरछेरा(सार छंद)


कूद  कूद के कुहकी पारे,नाचे   झूमे  गाये।

चारो कोती छेरिक छेरा,सुघ्घर गीत सुनाये।


पाख अँजोरी  पूस महीना,आवय छेरिक छेरा।

दान पुन्न के खातिर अड़बड़,पबरित हे ये बेरा।


कइसे  चालू  होइस तेखर,किस्सा  एक  सुनावौं।

हमर राज के ये तिहार के,रहि रहि गुण ला गावौं।


युद्धनीति अउ राजनीति बर, जहाँगीर  के  द्वारे।

राजा जी कल्याण साय हा, कोशल छोड़ पधारे।


आठ साल बिन राजा के जी,काटे दिन फुलकैना।

हैहय    वंशी    शूर  वीर   के ,रद्दा  जोहय   नैना।


सबो  चीज  मा हो पारंगत,लहुटे  जब  राजा हा।

कोसल पुर मा उत्सव होवय,बाजे बड़ बाजा हा।


राजा अउ रानी फुलकैना,अब्बड़ खुशी मनाये।

राज रतनपुर  हा मनखे मा,मेला असन भराये।


सोना चाँदी रुपिया पइसा,बाँटे रानी राजा।

रहे  पूस  पुन्नी  के  बेरा,खुले रहे दरवाजा।


कोनो  पाये रुपिया पइसा,कोनो  सोना  चाँदी।

राजा के घर खावन लागे,सब मनखे मन माँदी।


राजा रानी करिन घोषणा,दान इही दिन करबों।

पूस  महीना  के  ये  बेरा, सबके  झोली भरबों।


ते  दिन  ले ये परब चलत हे, दान दक्षिणा होवै।

ऊँच नीच के भेद भुलाके,मया पिरित सब बोवै।


राज पाठ हा बदलत गिस नित,तभो होय ये जोरा।

कोसलपुर   माटी  कहलाये, दुलरू  धान  कटोरा।


मिँजई कुटई होय धान के,कोठी हर भर जावै।

अन्न  देव के घर आये ले, सबके मन  हरसावै।


अन्न दान तब करे सबोझन,आवय जब ये बेरा।

गूँजे  सब्बे  गली  खोर मा,सुघ्घर  छेरिक छेरा।


वेद पुराण  ह घलो बताथे,इही समय शिव भोला।

पारवती कर भिक्षा माँगिस,अपन बदल के चोला।


ते दिन ले मनखे मन सजधज,नट बन भिक्षा माँगे।

ऊँच  नीच के भेद मिटाके ,मया पिरित  ला  टाँगे।


टुकनी  बोहे  नोनी  घूमय,बाबू मन  धर झोला।

देय लेय मा ये दिन सबके,पबरित होवय चोला।


करे  सुवा  अउ  डंडा  नाचा, घेरा गोल  बनाये।

झाँझ मँजीरा ढोलक बाजे,ठक ठक डंडा भाये।


दान धरम ये दिन मा करलौ,जघा सरग मा पा लौ।

हरे  बछर  भरके  तिहार  ये,छेरिक  छेरा  गा  लौ।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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छेरछेरा

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धान धराये हे,कोठी म।

दान-पून  के,ओखी म।

पूस    पुन्नी    के   बेरा,

हे गाँव-गाँव म,छेरछेरा।


छोट - रोंठ  सब  जुरे  हे।

मया दया गजब घुरे   हे।

सबो के अंगना  - दुवारी।

छेरछेरा मांगे ओरी-पारी।

नोनी   मन   सुवा   नाचे,

बाबू   मन  डंडा    नाचे।

मेटे    ऊँच  -  नीच    ल,

दया  -  मया   ल   बांचे।

नाचत   हे  मगन   होके,

बनाके     गोल     घेरा।

पूस    पुन्नी     के   बेरा,

हे गाँव-गाँव  म,छेरछेरा।


सइमो- सइमो करत  हे,

गाँव   के   गली   खोर।

डंडा- ढोलक-मंजीरा म,

थिरकत    हवे     गोड़।

पारत              कुहकी,

घूमे      गाँव         भर।

छेरछेरा   के   राग    म,

झूमे    गाँव          भर।

कोनो  केहे  मुनगा  टोर,

त   केहे ,  धान  हेरहेरा।

पूस    पुन्नी    के    बेरा,

हे गाँव-गाँव म, छेरछेरा।


भरत   हे    झोरा  - बोरा,

ठोमहा - ठोमहा  धान म।

अड़बड़   पून   भरे   हवे,

छेरछेरा    के    दान   म।

चुक ले अंगना लिपाय हे।

मड़ई  -  मेला   भराय हे।

हूम - धूप - नरियर धरके,

देबी - देवता ल,मनाय हे।

रोटी - पिठा  म  ममहाय,

सबझन      के       डेरा।

पूस    पुन्नी     के    बेरा,

हे  गाँव-गाँव  म,छेरछेरा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795


छेरछेरा परब की आप सबला बहुत बहुत बधाई

जय हिंद जय हिंदी घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 जय हिंद जय हिंदी

घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

             1

नस नस मा घुरे हे, दया मया हा बुड़े हे,

आन बान शान हरे,भाषा मोर देस के।

माटी के महक धरे,झर झर झर झरे,

सबे के जिया मा बसे,भेद नहीं भेस के।

भारतेंदु के ये भाषा,सबके बने हे आशा,

चमके सूरज कस,दुख पीरा लेस के।

सबो चीज मा आगर,गागर म ये सागर,

भारत के भाग हरे,हिंदी घोड़ा रेस के।1।।

                2

सबे कोती चले हिंदी,घरो घर पले हिंदी।

गीत अउ कहानी हरे, थेभा ये जुबान के।।

समुंद के पानी सहीं, बहे गंगा रानी सहीं।

पर्वत पठार सहीं, ठाढ़े सीना तान के।।

ज्ञान ध्यान मान भरे,दुख दुखिया के हरे।

निकले आशीष बन,मुख ले सियान के।।

नेकी धर्मी गुणी धीर,भक्त देव सुर वीर।

बहे मुख ले सबे के,हिंदी हिन्दुस्तान के।2।।

             3

कहिनी कविता बसे,कृष्ण राम सीता बसे,

हिंदी भाषा जिया के जी,सबले निकट हे।

साकेत के सर्ग म जी,छंद गीत तर्ज म जी,

महाकाव्य खण्डकाय,हिंदी मा बिकट हे।

प्रेम पंत अउ निराला,रश्मिरथी मधुशाला,

उपन्यास एकांकी के,कथा अविकट हे।

साहित्य समृद्ध हवै,भाषा खूब सिद्ध हवै,

भारत भ्रमण बर,हिंदी हा टिकट हे।3।।।


छंदकार-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)छत्तीसगढ़


विश्व हिंदी दिवस की आप सबको सादर बधाई

जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया-(कुकुभ छंद) स्वामी विवेकानंद

 जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया-(कुकुभ छंद)


स्वामी विवेकानंद


स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।

नीति नियम सत कठिन डगर के, स्वामी सच्चा राही हो।


भारतीय दर्शन के दौलत, भारत वासी के हीरा।

ज्ञान धरम सत जोत जलाके, दूर करिस दुख डर पीरा।

पढ़ लौ गढ़ लौ स्वामी जी ला, मन म उमंग हमाही हो।

स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।


संत शिरोमणि सत के साथी, विद्वान गुणी वैरागी।

भाईचारा बाँट बुझाइस, ऊँच नीच छलबल आगी।

अन्तस् मा आनंद जगालौ, दुःख दरद दुरिहाही हो।

स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।


सोन चिरैया के चमकैया, सोये सुख आस जगइया।

भारत के ज्ञानी बेटा के, परे खैरझिटिया पँइया।

गुरतुर बोली ज्ञान ध्यान सत, जीवन सफल बनाही हो।

स्वामी जी के का गुण बरनौं, खँगगे कलम सियाही हो।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छत्तीसगढ़)

मकर सक्रांति परब की ढेरों बधाइयाँ।।

 मकर सक्रांति परब की ढेरों बधाइयाँ।।


लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।

दया मया के माँजा धरके, सुख शांति के पतंग उड़ाबों।


दान धरम पूजा व्रत करबों, गाबों मिलजुल के गाना।

छोट बड़े के भेद मिटाबों, धरबों इंसानी बाना।

खीर कलेवा खिचड़ी खोवा,तिल गुड़ लाडू खाबों।

नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।


सुरुज देव ले तेज नपाबों,मंद पवन कस मुस्काबों।

सरसो अरसी चना गहूँ कस,फर फुलके जिया लुभाबों।

रात रिसाही दिन बढ़ जाही, कथरी कम्म्बल घरियाबों।

नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।


मान एक दूसर के करबों,द्वेष दरद दुख ले लड़बों।

आन बान अउ शान बचाके, सबके अँगरी धर बढ़बों।

लोभ मोह के पाके पाना, जुर मिल सब झर्राबों।

नहा खोर के बड़े बिहनियाँ, सँकरायत परब मनाबों।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छत्तीसगढ़)


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मकर सक्रांती आगे

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बर   पीपर  पाना  के,

बनाके  फिलफिल्ली।

रस्सी डोरी म बाँध के,

कागत  अउ  झिल्ली।

मगन   होके   लइका,

हवा  के उल्टा  भागे।

मकर सक्रांती  आगे।

मकर सक्रांती  आगे।


कखरो  खिसा  म हे,

तिली लाड़ू,मुर्रा लाड़ू

त  कखरो  खिसा म,

अंगाकर,चीला रोटी।

खेले   बर  निकले हे,

संगी   संगवारी  संग,

बिहनिया  के   होती।

जुड़  - जुड़   जाड़ हे,

घाम तीर सब  लोरे हे।

कोनो लइका नाचत हे,

त  कोनो   कुड़कुडाय,

हाथ        जोड़े      हे।

माँघ के  महीना   देख,

जाड़ ;जाय बर   लागे।

मकर  सक्रांती   आगे।

मकर  सक्रांती   आगे।


चूल्हा तीर ले दाई,उठत नइ हे।

चाहा चलत   हे , ददा   पानी ;

पूछत              नइ          हे।

घाम         ल               घलो,

पारा भर मिल के ;तापत  हे ।

डोकरी  दाई   लइका खेलाय,

त डोकरा बबा ढेरा आँटत हे।

कोनो बांटी अउ गिल्ली खेले,

त  कोनो   मताय      भँवरा।

चूरे सेमी साग;तात-तात भात,

झड़क     उपरहा      कँवरा।

बहिनी       खेले     बिल्लस,

छुन  -  छुन     छांटी   बाजे।

मकर      सक्रांती      आगे।

मकर      सक्रांती      आगे।


मिंसा -  कुटा     के    धान,

धरागे  कोठी - मइरका  म।

हरही  गाय ल ढिल  मिलगे,

बियारा के ओधे खइरपा म।

उतेरा-ओन्हारी के  रखवारी,

भारी          चलत        हे।

पढ़इया  - लिखइया  मनके,

तियारी;  भारी   चलत   हे।

मेला  - मड़ई  नाचा - कूदा,

गाँव  -  गाँव     म    छागे।

मकर     सक्रांती     आगे।

मकर     सक्रांती     आगे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

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मकर सक्रांति(सार छंद)


सूरज जब धनु राशि छोड़ के,मकर राशि मा जाथे।

भारत  भर  के मनखे मन हा,तब  सक्रांति  मनाथे।


दिशा उत्तरायण  सूरज के,ये दिन ले हो जाथे।

कथा कई ठन हे ये दिन के,वेद पुराण सुनाथे।

सुरुज  देवता हा सुत शनि ले,मिले इही दिन जाये।

मकर राशि के स्वामी शनि हा,अब्बड़ खुशी मनाये।

कइथे ये दिन भीष्म पितामह,तन ला अपन तियागे।

इही  बेर  मा  असुरन  मनके, जम्मो  दाँत  खियागे।

जीत देवता मनके होइस,असुरन नाँव बुझागे।

बार बेर सब बढ़िया होगे,दुख के घड़ी भगागे।

सागर मा जा मिले रिहिस हे,ये दिन गंगा मैया।

तार अपन पुरखा भागीरथ,परे रिहिस हे पैया।

गंगा  सागर  मा  तेखर  बर ,मेला  घलो  भराथे।

भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।


उत्तर मा उतरायण खिचड़ी,दक्षिण पोंगल माने।

कहे  लोहड़ी   पश्चिम  वाले,पूरब   बीहू   जाने।

बने घरो घर तिल के लाड़ू,खिचड़ी खीर कलेवा।

तिल अउ गुड़ के दान करे ले,पायें सुख के मेवा।

मड़ई  मेला  घलो   भराये, नाचा   गम्मत   होवै।

मन मा जागे मया प्रीत हा, दुरगुन मन के सोवै।

बिहना बिहना नहा खोर के,सुरुज देव ला ध्यावै।

बंदन  चंदन  अर्पण करके,भाग  अपन सँहिरावै।

रंग  रंग  के  धर  पतंग  ला,मन भर सबो उड़ाये।

पूजा पाठ भजन कीर्तन हा,मन ला सबके भाये।

जोरा  करथे  जाड़ जाय के,मंद  पवन  मुस्काथे।

भारत भर के मनखे मन हा,तब सक्रांति मनाथे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


मकर सक्रांति लोहड़ी,पोंगल,बीहू के बहुत बहुत बधाई

आज के पबरित बेरा  अउ मकर सकरांती तिहार के आप मन ल सपरिवार बधाई।

मँय रखवार, उतेरा - ओन्हारी के।

 

मँय    रखवार,     उतेरा  - ओन्हारी के।

मँय    रखवार,     उतेरा  - ओन्हारी के।


        कुहकी       पारत ,

        बइठे    कुंदरा   म।

        बिहनिया के   जाड़,

        अउ घपटे धुंधरा म।

        राखत हँव चना-गहूँ,

        अरसी-लाखड़ी-लाख।

        मूड़  म   बांधे  पागा,

        धरे   लउठी      हाथ।

        कँसे   लाल     गमछा ,

        कनिहा                म।

        आँखी       गड़ाय       हँव,

        राहेर,मसूर,सरसो धनिया म।

बने संगवारी,बांस,बोइर,बम्भरी,झाड़-झाड़ी के।

मँय       रखवार,      उतेरा  - ओन्हारी      के।।

      

         ठाढ़        कूदे        बेंदरा,

         हरही गाय,घेरी-बेरी आय।

         नइ   खेपे, काँटा- खूँटी ल,

        चाहे कइसनो  खेत रुंधाय।

         मँय    भागत        रहिथों,

         ए   मुड़ा   ले  ; ओ  मुड़ा।

         ताकत रिथे भाजी टोरइया

         अउ    अतलंगहा      टूरा।

रोजेच   डर     रिथे   , चोरी  -  चकारी   के।

मँय      रखवार,      उतेरा  - ओन्हारी   के।।

   

           संझा-मुन्द्रहा मोला,

           खेत    म      पाबे।

           मिलना   हे मोर ले,

           त खेत कोती आबे।

          चलही       पुरवाही,

           तोर मन भर जाही।

           झूल-झूल के सरसो,

           राहेर;नाच देखाही।

करहूँ  जोरा,चना,बटकर,राहेर,मुखारी के।

मँय    रखवार,     उतेरा  - ओन्हारी  के।।


      जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

       बालको(कोरबा)

       9981441795

छत्तीसगढ़ी काव्य के दशा दिशा


 छत्तीसगढ़ी काव्य के दशा दिशा


साहित्य ला समाज के दर्पण केहे गेहे, काबर कि साहित्य हा वो समय के समाज के दशा अउ दिशा ला देखाथे। जब ले साहित्य सृजन होवत हे तब ले लेके आज तक के साहित्य ला देखबों ता वो समय ला, सृजित साहित्य खच्चित बयां करत दिखथे, चाहे बात आदिकाल के होय या फेर आधुनिक काल के। कवि जेन देखथे, सुनथे अउ सोचथे वोला अपन मनोभाव मा पिरोके समाज के बीच परोसथे। छत्तीसगढ़ के साहित्य घलो आन देश, राज के साहित्य कस समृद्ध अउ सशक्त हे। आदिकाल ले लेके अब तक के साहित्य के भार ला सूक्ष्म रूप ले शब्द के टेकनी मा बोह पाना सम्भव नइहे, काबर साहित्य के गठरी बनेच पोठ अउ रोंठ हे। अवधी, बघेली अउ छत्तीसगढ़ी भाषा पूर्वी हिंदी के भाषा कहिलाथे, तीनो भाषा के साहित्य के समृद्धि दिखथे,  फेर आधुनिक काल मा छत्तीसगढ़ी भाषा गजब फुलिस फलिस अउ आजो बढ़वार सतत जारी हे। आवन भाषाविद मनके करे साहित्यिक काल विभाजन के अनुसार छत्तीसगढ़ी साहित्य के दशा दिशा ला देखे के प्रयास करन। 


(1) आदि काल/ वीरगाथा काल (1000 ई-1500 ई तक)-


ये समय मा गीत, कविता, कथा, कहानी के वाचिक परम्परा के जानकारी मिलथे। लिखित साहित्य अउ लेखक कवि मनके नाम ज्यादातर नइ मिले, अइसन जुन्ना साहित्य ला लिपि बद्ध बाद में करे गेहे। अहिमन रानी गाथा, केवला रानी गाथा, रेवा रानी गाथा, राजा वीर सिंह गाथा जइसन कतको काव्य मय कथा प्रचलित रहिस, जे ये बताथें कि, राजा मनके संगे संग वो समय रानी अउ दुदुषी नारी मनके घलो वर्चस्व रिहिस। वो समय चारण काव्य परम्परा घलो चरम मा रिहिस, कोनो राजा या रानी अपन गुणगान या फेर बल बुद्धि ला बढ़ाये बर अपन दरबार मा भाट कवि ला रखत रहिंन। खैरागढ़ राज के दरबारी कवि दलराम राव अपन संग दलवीर राव, माणिक राव, सुंदर राव, हरिनाथ राव, धनसिंह राव, कमलराव, बिसाहू राव आदि भाट कवि मनके वर्णन करे हे, वइसने चारण कवि मनके वर्णन रतनपुर राज के कलचुरि शासक मनके राज दरबार मा घलो सुने बर मिलथे।  हमर छत्तीसगढ़ राज के अउ आन राजा मन घलो आन राज के राजा कस अपन दरबार मा चारण कवि रखें। धार्मिक, पौराणिक गाथा घलो ये काल में कहे सुने जावत रिहिस जेमा फुलबासन गाथा(सीता लखन कथा), द्रोपदी चरित आदि आदि संगे संग तन्त्र मंत्र सिद्धि के कथा(आदिवासी संस्कृति के परिचायक) घलो वो काल ला परिभाषित करथे। मूलतः ये काल के कथा राजा, रानी, विद्वान ,विदुषी व्यक्ति मनके जीवन संघर्ष अउ मिलन बिछोह ऊपर आधारित हें, पढ़त सुनत वो बेर के रीतिरिवाज, चाल चलन, सेवा सत्कार घलो देखे बर मिलथे।विविध गाथा के अधिकता के कारण ये युग ला गाथायुग घलो केहे जाथे।


(2) मध्य काल/भक्ति काल (1500ई- 1900 ई तक)- बाहरी आक्रमण कारी मनके अत्याचार ले छत्तीसगढ़ घलो अछूता नइ रिहिस, अइसन आफत के बेरा मा मनखे मन भक्ति भाव भजन ला अपन सहारा बनाइन। ये काल मा वीर काव्य अउ भक्तिमय काव्य के बहुलता रिहिस, संगे संग ज्ञानमार्गी अउ प्रेममार्गी काव्य/गाथा घलो देखे सुने बर मिलथे। आक्रमणकारी मन ले लोहा लेवत योद्धा मनके गुणगान बर रचे काव्य ला वीर काव्य कहे जाय। अइसने काव्य मा  योद्धा नारी के रूप मा छत्तीसगढ़ के फुलकुंवर देवी गाथा, नगेसर कयना गाथा के रचना होय हे। कल्याण साय गाथा, गोपल्ला गीत, ढोलामारू गाथा, सरवन गाथा, राजा कर्ण गाथा, शीत बसंत गाथा, मोरध्वज गाथा घलो ये काल मा कहे सुने जावत रिहिस, जे वो समय के वीर काव्य के साथ साथ पौराणिक  अउ धार्मिक काव्य के प्रचलन ला देखाये। प्रेममार्गी काव्य के उदाहरण स्वरूप  लोरिक चन्दा, कामकन्दला गाथा,दसमत कयना,अउ ज्ञानमार्गी भक्ति काव्य मा कबीर दास के चेला धनी धरम दास जी के काव्य सामने आथे। भक्ति भाव जब आडम्बर के रूप मा स्थापित होय लगिस ता कबीरदास जी के साथ उंखर चेला धनी धरम दास जी छत्तीसगढ़ के प्रतिनिधित्व करिन, अउ कबीर दास जी संग ज्ञानमार्गी भक्ति के प्रचार प्रसार करिन।  छत्तीसगढ़ी भाषा के लिखित रूप मा धनी धरमदास जी के पद मिलथे। गुरु घासीदास के अमृत बानी अउ उपदेश घलो छत्तीसगढ़ी मा सुने बर मिलथे। संगे संग गोपाल मिश्र, पहलाद दुबे, लक्छ्मण कवि, माखन मिश्र मन घलो ये काल मा काव्य सृजन करिन। ये काल के रचना समयानुसार बदलत गिस, भक्ति भाव ले चालू होके ओखर आडम्बर रूप के विरोध तक देखे बर मिलथे, संगे संग प्रेम प्रसंग, वीर  काव्य अउ धार्मिक पौरानिक गाथा घलो समाहित हे।


*धनी धरम दास जी के छत्तीसगढ़ी काव्य पंक्ति*-


‘‘पिंजरा तेरा झीना, पढ़ ले रे सतनाम सुवा।


तोर काहे के पिंजरा,काहे के लगे हे किंवाड़ी रे सुवा।


तोर माटी के पिंजरा,कपट के लगे हे किंवाड़ी रे सुवा।


पिंजरा में बिलाई,कैसे के नींद तोहे आवै रे सुवा।


तोर सकल कमाई,साधु के संगति पाई रे सुवा।


धरमदास गारी गावै,संतन के मन भाई रे सुवा।।‘‘


धनी धरम दास जी के भाषा कबीरदास जी के असन मिश्रित रिहिस जेमा छत्तीसगढ़ी के संगे संगअवधी, बघेली, उर्दू फारसी के शब्द दिखथे। धनी धरम दास जी के काव्य  पद मा होली, बसन्त, गुरु महत्ता, चौका आरती, लोक मंगल,सत उपदेश, ज्ञान मोक्ष के बात वो समय ला परिभाषित करथे।


*ह्रदय सिंह चौहान जी के काव्य पंक्ति-*


तरसा तरसा के, सुरता सुरता के


तोर सुरता हर बैरी, सिरतो सिरा डारीस ।।


जतके भुलाथंव तोला, ओतके अउ आथे सुरता


जिनगी मोर दूभर करे, कर डारे सुरतेज के पुरता


तलफ़ा तलफ़ा के कलपा कलपा के


तोर सुस्ता हर बैरी, निचट घुरा डारिस ।1।


*गुरु घासीदास जी जे अमरवाणी*


चलो चलो हंसा अमर लोक जइबो।


इहाँ हमर संगी कोनो नइहे।


*(3) आधुनिक काल(1900 ई- अब तक)*


ये काल मा साहित्य मा विविधता देखे बर मिलिस, संगे संग काव्य के आलावा गद्य घलो सामने आइस। आवन आधुनिक काल ला घलो विभाजन करके वो समय के साहित्य ला खोधियाय के प्रयास करथन।


*(अ)शैशव काल(1900ई-1925 ई तक)*


- 1900 के आसपास छत्तीसगढ़ी साहित्य के जनम माने जाथे, काबर की इही समय छत्तीसगढ़ी भाषा मा रचना करइया साहित्यकार मन  जादा संख्या बल मा सामने आइन। धनी धरमदास जी के काव्यमय पंक्ति के वर्णन मिले के बाद घलो भाषाविद मन छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि के रूप मा अपन अलग अलग विचार प्रकट करथें। भक्ति कालीन कवि होय के कारण, धरम दास जी के पंक्ति देखत श्री हेमनाथ जी हा धनी धरम दास जी ला ही छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवि मानथे। इती आचार्य नरेंद्र देव वर्मा जी मन सुन्दरलाल शर्मा जी ला प्रथम छत्तीसगढ़ी भाषा के कवि मानथे ता नन्दकिशोर तिवारी जी पं लोचनप्रसाद पांडेय जी ला, वइसने डॉ विनय पाठक जी नरसिंह दास जी ला छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि कहिथे। दानलीला के भूमिका लिखत रायबहादुर हीरालाल जी लिखे हें कि- *जउने हर एला बनाइस हे, तउने नाम कमाइस हे, काबर कि भविष्य मा छत्तीसगढ़ी के पहली कवि के रूप मा सुंदरलाल शर्मा जी ला ही केहे जाही* खैर कोन पहली रिहिस तेला खोजे बर सबे क्षेत्र मा विवाद रथे। एखर कारण काव्य के उपलब्धता, लेखनकाल अउ प्रकाशनकाल तीनो हो सकथे।


 आधुनिक काल के ये शैशव काल मा 1904 के आसपास नरसिंह दास जी के कविता शिवायन आइस। छत्तीसगढ़ के सूरदास के नाम से विख्यात जन्मान्ध कवि नरसिंह जी के काव्य मा छत्तीसगढ़ी के एक बानगी देखव---


*शिव बारात(शिवायन से)* 


आईगे बरात गांव तीर भोला बाबा जी के


देखे जाबो चला गिंया संगी ला जगावा रे।


डारो टोपी, मारो धोती पांव पायजामा कसि,


बर बलाबंद अंग कुरता लगावा रे।


हेरा पनही दौड़त बनही, कहे नरसिंहदास


एक बार हहा करही, सबे कहुं घिघियावा रे।।


कोऊ भूत चढ़े गदहा म, कोऊ कुकुर म चढ़े


कोऊ कोलिहा म चढि़ चढि़ आवत..।


कोऊ बिघवा म चढि़, कोऊ बछुवा म चढि़


कोऊ घुघुवा म चढि़ हांकत उड़ावत।


सर्र सर्र सांप करे, गर्र गर्र बाघ करे


हांव हांव कुत्ता करे, कोलिहा हुवावत।


कहें नरसिंहदास शंभु के बरात देखि,


गिरत परत सब लरिका भगावत।।*


1905 मा पं लोचप्रसाद पांडेय जी के रचना छपे के चालू होइस  जे गद्य मा रिहिस कलिकाल के कारण छत्तीसगढ़ के पहली नाटककार केहे जाथे। पं जी के ज्यादातर काव्य मन ब्रज, हिंदी, बंगाली, अउ उड़िया मा रिहिस, पंडित जी संस्कृत, पाली, प्राकृत, अउ अंग्रेजी के साथ साथ उर्दू फारसी के घलो विद्वान रिहिन। छत्तीसगढ़ी काव्य मा "कविता कुसुम" देखे बर मिलथे, जेखर रचना काल 1915 के बाद के जान पड़थे। 1910 मा एक रचना "भुतहा मण्डल" नाम से घलो देखे बर मिलथे, फेर गद्य साहित्य हरे कि पद्य साहित्य ते मोर जानकारी मा नइ हे। जगन्नाथ प्रसाद भानू, जगमोहन सिंह जी मनके घलो छत्तीसगढ़ी रचना के कहूँ मेर जिक्र होथे।


पं सुंदरलाल शर्मा जी के साहित्य मा छत्तीसगढ़ी साहित्य के दर्शन ऊपर वर्णित अन्य कवि मन ले जादा दिखथे, संगे संग दानलीला के रचना काल मा घलो एक मत नइ दिखे, कोनो 1904 कहिथे ता कोनो 1912। अलग अलग संस्करण के सेती घलो ये समस्या आय होही। सतनामी भजन माला, छत्तीसगढ़ी राम लीला  घलो सुंदरलाल शर्मा जी के छत्तीसगढ़ी काव्य संग्रह आय, येखर आलावा ऊंच नीच, छुवा छूत जइसन सामाजिक कुरीति मन ऊपर घलो कविता गढ़े हे। शर्मा जी के कविता के एक बानगी--


*कोनो है झालर धरे, कोनो है घड़ियाल।*


उत्ताधुर्रा ठोंकैं, रन झांझर के चाल॥


पहिरे पटुका ला हैं कोनो। कोनो जांघिया चोलना दोनो॥


कोनो नौगोटा झमकाये। पूछेली ला है ओरमाये॥


कोनो टूरा पहिरे साजू। सुन्दर आईबंद है बाजू॥


जतर खतर फुंदना ओरमाये। लकठा लकठा म लटकाये॥


ठांव ठांव म गूंथै कौड़ी। धरे हाथ म ठेंगा लौड़ी॥


पीछू मा खुमरी ला बांधे। पर देखाय ढाल अस खांदे॥


ओढ़े कमरा पंडरा करिहा। झारा टूरा एक जवहरिया॥


हो हो करके छेक लेइन तब। ग्वालिन संख डराइ गइन सब॥


छत्तीसगढ़ी भाषा के शैशवकाल मा ही शुकलाल पांडेय जी शेक्सपीयर के अंग्रेजी नाटक *कामेडी ऑफ एरर्स* के सन 1918 के आसपास छत्तीसगढ़ी भाषा मा भूल भुलैया नाम से पद्यानुवाद करिन। जेमा छत्तीसगढ़ के चित्र समाहित हे। 


 1906 मा शिक्षा के अलख जगावत शुकलाल पांडेय जी मन वर्णमाला गीत रचिन----


*स्वर बर--*


अ के अमली खूबिच फरगे।


आ के आंखी देखत जरगे।


इ इमान ल मांगिस मंगनी।


ई ईहू हर लाइस डंगनी।


उ उधो ह दौड बलाइस।


ऊ ऊघरू ल घला बलाइस।


ऋ ऋ के ऋषि हर लागिस टोरे।


सब झन लागिन अमली झोरे॥


ए ए हर एक लिहिस तलवार।


ऎ ऎ हर लाठी लिंहिस निकार ॥


ओ ओहर ओरन ल ललकारिस।


औ औहर बोला कोहा मारिस॥


अं अं के अंग हर टूटगे|


अ: अ: ह अअ: कहत पहागे।


*व्यंजन बर*


क क के कका कमलपुर जाही।


ख ख खरिया ले दूध मंगाही।


ग गनपत हर खोवा अँउटाही।


घ घर घर घर ओला बंटवाही।


ड ड पढ़ गपल हम खोबोन।


तब दूसर आन गीत ला गाबोन।


च चतरू हर गहना पहिरिस।


छ छबिलाल अछातेन बरजिस।


ज जनकू हर सुन्ना पाइस।


झ झट झट ओला मारिच डारिस।


झन गहना पहिरौ जी गिंया


ञ ञपढ़ ञ पढ़ पढञ।


ट टेटकू ह आवत रहिस।


ठ ठकुरी हर घला रहिस।


ड डियल बावा हर आईस।


ढ ढकेल खंझरी बनाईस।


ण ण ण कहिके डेरवाइस।


बम बम बम कहत फरइस।


त त तरकारी भात बनायेन।


थ थ थरकुलिया दार मंगायेंन।


द द देवी ला घला चघायेन।


ध धनऊ संग सब झन खायेव।


न न नदिया के पानी पीबोन।


अब हम आन गीत गाबोन।


छत्तीसगढ़ी साहित्य के शैशवकाल के आखरी समय मा लगभग 1924 के आसपास गोविंदराम विट्ठल जी मन *छत्तीसगढ़ी नागलीला* के रचना करिन, ओखरे कुछ पंक्ति देखिन--


सब संग्रवारी मन सोचे लगिन कि,


पूक, कोन मेर खेलबो, विचार जमगे।


जमुना के चातर कछार में,


जाके खेल मचाई।


दुरिहा के दुरिहा है अउ,


लकठा के लकठा भाई।।


केरा ला शक्कर, पागे अस,


सुनिन बात संगवारी।


कृष्ण चन्द्र ला आगू करके,


चलिन बजावत तारी।।


धुंघरू वाला झुलुप खांघ ले,


मुकुट, मोर के पाँखी।


केसर चन्दन माथर में खौरे,


नवा कवंल अस आंखी।।


करन के कुंडल छू छू जावै,


गोल गाल ला पाके।


चन्दा किरना साही मुसकी,


भरें ओंट में आके।।


हाथ में बंसुरी पांव में पैजन,


गला भरे माला में।


सब के खेल देखइया मरगै,


है, पर के माला में।।


पं सुंदरलाल शर्मा जी के दानलीला के प्रभाव विट्ठल जी के नागलीला मा घलो दिखथे।


ये प्रकार ले कहे जा सकत हे, कि आधुनिक काल के 1900 से 1925 तक के समय हा छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के शिशु के रूप मा सरलग बढ़े लगिन, जइसने शिशु हा एक ले बढ़के एक लीला देखावत बढ़थे, वइसने ये समय मा घलो एक ले बढ़के एक दुर्लभ रचना  समाहित होय हे। ये समय के रचना मा विविधता घलो देखे बर मिलथे, जेमा धार्मिक पौराणिक भक्ति साहित्य के संगे संग पेड़, पात, नदी, ताल, मिलन, बिछोह, गुण, ज्ञान,साज सृंगार अउ शिक्षा के महत्ता ऊपर कविता सृजित हें। कविता के कलेवर समाज के रीति नीति, चाल ढाल, अउ रंग रूप ला परोसत दिखथे।


*(ब) छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास काल(1925-1950)*


 ये समय मा भारत वर्ष ला अंग्रेज मनके चंगुल ले छोड़वाय बर, पूरा भारत मा स्वतन्त्रा आंदोलन के बिगुल बज गे रिहिस, जेमा छत्तीसगढ़ के सेनानी अउ कलमकार मन घलो बढ़ चढ़ के हिस्सा लिन। छत्तीसगढ़ के मनखे मन ला एकजुट करे अउ जगाये बर कविमन हिंदी के संग छत्तीसगढ़ी भाषा मा घलो पत्र पत्रिका अउ गीत कविता जनमानस के बीच लाइन। सुन्दलाल शर्मा जी के जेल ले हस्तलिखित पत्रिका, अउ छत्तीसगढ़ी दानलीला(जनमानस ला एकाग्र करे खातिर) मा स्वधीनता के सुर मिले,स्वराजी अलख अउ गाँधी विचारधारा ला छत्तीसगढ़ मा फैलाए खातिर शर्मा जी, छत्तीसगढ़ के गांधी के नाम ले घलो जाने जाथे। पं लोचनप्रसाद पांडेय, द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र(गाँधी गीत, सुराज गीत), केयूरभूषण(भारत वंदना, गाँधी वन्दना), कवि पुरषोत्तम लाल(काँग्रेसी आल्हा,छत्तीसगढ़ स्वराज), गिरवर वैष्णव(छत्तीसगढ़ सुराज) जनकवि कोदूराम दलित(चलो जेल संगवारी),कपिलनाथ मिश्र, किसन लाल(लड़ई गीत) आदि कवि मन स्वराज आंदोलन बर अपन लेखनी के माध्यम ले जनजागरण करत अंग्रेज मन ले लोहा लिन।


*कुंजबिहारी चौबे जी के रचना मा सुराजी झलक*-


तैंहर ठग डारे हमला रे गोरा,


आँखी में हमर धुर्रा झोंक दिये


मुड़ म थोप दिये मोहनी,


अरे बैरी जान तोला हितवा


गंवाएन हम दूधो - दोहनी,


अंग्रेज तैं हमला बनाए कंगला


सात समुंदर विलायत ले आ के,


हमला बना दे भिखारी जी


हमला नचाए तैं बेंदरा बरोबर,


बन गए तैंहा मदारी जी।


*तैं ठग डारे हमला रे गोरा*/ *अवतरे धरती मा तैं गांधी देवता* अइसन कविता लिख के चौबे जी सुराजी आंदोलन ला गति प्रदान करिन।


*जनकवि कोदूराम दलित जी के रचना मा सुराज के सुर-*


अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल संगवारी,


कतको झिन मन चल देइन, आइस अब हमरो बारी ।


जिहाँ लिहिस अउंतार कृष्ण हर, भगत मनन ला तारिस


दुष्ट मनन-ला मारिस अऊ भुइयाँ के भार उतारिस


उही किसम जुरमिल के हम गोरा मन-ला खेदारीं


अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल संगवारी ।


अब हम सत्याग्रह करबो


कसो कसौटी–मा अउ देखो


हम्मन खरा उतरबो


अब हम सत्याग्रह करबो ।


जा–जा के कलार भट्टी–मा


हम मन धरना धरबो


‘बेंच झन शराब’–कहिबो अउ


पाँव उँकर हम परबो ।


अब हम सत्याग्रह करबो...


*कवि गिरवर दास वैष्णव के देश बर संसो उंखर साहित्य मा दिखथे*


हमर देश हर दिन के दिन,


कैसे ररुहा होवत जाथे।


सात किरोड़ एक जुवार,


खाके रतिहा भूखे सो जाथे।


का होगे कुछ गत नईपावन,


चिन्ता सब के जिव आगे।


ऊपर मा सब बने दीखथ,


अन्तस मा घूना खागे।


दौड़-दौड़ के लकर लकर,


बिन खाये पिये कमाथन गा।


*सत्तावन के सत्यानाश*


किस्सा आप लोगन ला,


एक सुनावत हौ भाई।


अट्टारह सौ सन्‍्तावन के,


साल हमर बड़ दुखदाई।


बादसाह बिन राज हमर,


भारत मां वो दिन होवत रहिस।


अपन नीचता से पठान मन,


अपन राज ला खोवत रहिस।


इन ला सबो किसिम से,


नालायक अंगरेज समझ लेईन।


तब विलायती चीज लान,


सुन्दर-सुन्दर इन ला देहन।


करिस खुशामद खूब रात दिन,


इन ला ठग के मिला लेइस।


*क्रांतिकारी रूप देखावत वैष्णव जी लिखथें*-


अतका पानी दें तैं जतका।


जिंदगी के विस्वास माँगथे।


*कवि द्वारिकाप्रसाद तिवारी विप्र के काव्य पंक्ति*-


धन धन रे मोर किसान, धन धन रे मोर किसान।


मैं तो तोला जांनेव तैं अस, भुंइया के भगवान।।


तीन हाथ के पटकू पहिरे, मूड म बांधे फरिया


ठंड गरम चउमास कटिस तोर, काया परगे करिया


अन्‍न कमाये बर नई चीन्‍हस, मंझन, सांझ, बिहान।


*महाकवि कपिलनाथ कश्यप जी के रामकथा के कुछ अंश*


लंका दहन


महल हवेली लंका के सब जरगे,


भगत विभीसन के घर खाली रहगे।


जइसन करथे वो वोकर फल पाथे,


हाय-हाय कर बिगड़े ले पछताथे ॥1॥


निसाचरिन सब रो-रो गारी देवंय,


बेर्य बेन्दगर लेसिस सब कह रोवंय।


भड़वा लंका आके का कर देइस,


कउन पाप के वोहर बल्दा लेइस ॥2॥


*प्यारेलाल गुप्त जी के रचना मा मानवीकरण*


गाँव मं फूल घलो गोठियाथैं।


जव सव किसान सो जाथे


झाई झुई लाल गुलाली


देख चांद मुसकाथैं


खोखमा खिल खिल हांसे लगथैं।


कंवल फुल सकुचाथैं।


गांव मां .........


गुप्त जी के कविता में प्रकृति चित्रण के एक बानगी देखव


चली किसानिन धान लुवाने, सूर्य किरण की छॉव में।


कान में खिनवा, गले में सूता, हरपा पहिने पॉव में।।


*प्यारे लाल गुप्त जी हमर कतिक सुघ्घर गाँव के एक पंक्ति मा गाँधी जी ला समायोजित करके वो समय ला देखाथे*


आपस मां होथन राजी,जंह नइये मुकदमा बाजी


भेद भाव नइ जानन,ऊँच नीच नइ जानन


ऊँच नीच नइ मानन,दुख सुख मां एक हो जाथी


जइसे एक दिया दू बाती,चरखा रोज चलाथन


गाँधी के गुन-गाथन,हम लेथन राम के नावा।।


 हमर कतिक सुघर गांव, जइसे लक्ष्मी जी के पांव


बद्री विशाल परमानन्द जी घलो 1942 के समय आजादी के गीत लिखके भजन गा गाके जन ला आजादी ले लड़ई। मा आहुती देय बर प्रेरित करे। अइसनेअउ कतको कवि, कलाकार होइस जेनम गीत, कविता, भजन अउ नाच के माध्यम ले आजादी के आंदोलन ला आघू बधाइन।


सुराज गीत कविता के संगे संग ये समय मा खेत,किसान, फूल पान, हाट, बाजार, गाँव शहर, तीज तिहार, सुखदुख, मया पीरा, बाग बगीगा, नदी ताल आदि सबे विषय मा  उत्कृष्ट रचना कवि मन करत रिहिन, फेर देश के स्वाधीनता के फिकर ये काल मा प्रमुख रिहिस। कहे जाय ता, ये काल मा घलो सृजित साहित्य हा समाज के दशा दिशा ला सहज उजागर कर देथे। आजादी के लड़ाई के बानगी ये समय के कवि के कविता मन मा रचे बसे रिहिस। सुराज बर जनजागरण, त्याग समर्पण के संगे संग अंग्रेज मन के अत्याचार ला कवि मन अपन कविता मा समेटे दिखथे। भाव भक्ति भजन, सुख सुमता, दया-मया अउ एकता के संदेश घलो कवि मन जनमानस तक बरोबर पहुँचाइस। ये काल के कवि मनके कविता ला पढ़े, सुने अउ गुने ले इही बात सामने आथे कि जइसे भारतके आन राज मा आजादी के अलख जगत रिहिस, वइसने छत्तीसगढ़ मा घलो स्वतन्त्रता सेनानी अउ कलमकार मा आज़ादी के बिगुल बजाइन।


*(स)छत्तीसगढ़ी साहित्य के प्रगतिकाल(1950 ले 2000)*


देश के आजादी के बाद अंग्रेज मनके अत्याचार ले आहत भारत वर्ष के नवनिर्माण खातिर कलम के सिपाही मन अपन लेखनी के माध्यम ले देश राज के नवनिर्माण मा लग गिन। ये नवनिर्माण के समय मा कवि मन नवगीत, कविता रच के जनमानस ला, एक होके चले बर संदेश दिन। यहू काल ला 1950 ले 1975 अउ 1975 ले 2000 तक के काल खंड मा विभाजित करे जा सकत हे, फेर रचनाधर्मिता, काव्य कलेवर अउ लगभग उही कवि मनके उपस्थिति विभाजन काल मा सटीक नइ बइठे, रचना मा समसामयिकता समय अनुसार जरूर दिखथे। ये काल मा छत्तीसगढ़ी भाषा सबे विधा मा खूब फलिन फुलिन। सबे बंधना ले मुक्त होके ये दौर मा कविता ऊँच आगास मा स्वच्छंद उड़ावत दिखिस। कविता मा नवा नवा प्रयोग अउ काव्य के विविध विधा घलो देखे बर मिलिस।


 ये समय कवि हरिठाकुर, श्यामलाल चतुर्वेदी, मुकुटधर पांडेय,बद्री विशाल परमानंद, नरेन्द्रदेव वर्मा,हेमनाथ यदु, रविशंकर शुक्ल,भगवती सेन, नारायण लाल परमार, डॉ विमल पाठक, लाला जगदलपुरी, हरिहर वैष्णव, संजीव बक्सी,बृजलाल शुक्ल, संत कवि पवन दीवान,दानेश्वर शर्मा, मदनलाल चतुर्वेदी, शेषनाथ शर्मा शील, विधाभूषण मिश्र, राम कैलाश तिवारी, हेमन्त नायडू राजदीप, शेख हुसैन,हेमनाथ वर्मा, मेदनीप्रसाद पांडे,विकल,उधोराम झखमार, मेहत्तर राम साहू, विसम्भर यादव, माखन लाल तम्बोली, मुरली चन्द्राकर, मनीलाल कटकवार, अनन्त प्रसाद पांडे, अमृत लाल दुबे, कृष्ण कुमार शर्मा, कांति जैन, डॉ बलदेव, देवी प्रसाद वर्मा, नरेंद्र कौशिक, अमसेनवी, बुधराम यादव, मेदनी पांडे, मंगत रविन्द्र, हरिहर वैष्णव, कृष्ण रंजन, किसान दीवान, राजेन्द्र सोनी,उदयसिंह चौहान, आनंद तिवारी, ईश्वर शरण पांडेय, डुमन लाल ध्रुव,चेतन आर्य,ठाकुर जेवन सिंह,गोरे लाल चन्देल, प्रेम सायमन, भगतसिंह सोनी, लखनलाल गुप्त, मकसूदन साहू, चेतन आर्य, ललित मोहन श्रीवास्तव, बाबूलाल सीरिया, नन्दकिशोर तिवारी, डॉ पीसी लाल यादव,विद्याभूषण मिश्र, मुकुन्द कौशल,गुलशेर अहमद खां, अब्दुल लतीफ घोंघी, विकल, मन्नीलाल कटकवार, रघुवीर अग्रवाल पथिक, लक्ष्मण मस्तूरिहा, डॉ हनुमंत नायडू डॉ. सुरेश तिवारी, ललित मोहन श्रीवास्तव, डॉ॰ पालेश्वर शर्मा, राम कुमार वर्मा, निरंजन लाल गुप्ता, बाबूलाल सीरिया, नंदकिशोर तिवारी, प्रभंजन शास्त्री, रामकैलाश तिवारी, एमन दास मानिकपुरी,डॉ॰ हीरालाल शुक्ल, डॉ॰ बलदेव, डॉ॰ मन्नूलाल यदु, डॉ॰ बिहारीलाल साहू, डॉ॰ चितरंजन कर, डॉ॰ सुधीर शर्मा, डॉ॰ व्यासनारायण दुबे, डॉ॰ केशरीलाल वर्मा, रामेश्वर शर्मा, रामेश्वर वैष्णव, डॉ माणिक विश्वकर्मा नवरंग,गणेश सोनी, मदन लाल चतुर्वेदी, बुलनदास कुर्रे,गयारामसाहू,अलेखचन्द क्लान्त, राघवेंद्र दुबे, प्रदीप वर्मा,गजानंद प्रसाद देवांगन, भागीरथी तिवारी, चैतराम व्यास, प्यारेलाल नरसिंह, भरत नायक, रामप्यारे रसिक,सुशील भोले,उमेश अग्रवाल,  डॉ जे आर सोनी,भागवत कश्यप,परमानन्द कठोलिया, नूतन प्रसाद शर्मा(गरीबहा महाकाव्य), स्वर्ण कुमार साहू, सुरेंद्र दुबे, रमेश कुमार सोनी,गेंदलाल, शिव कुमार दीपक, दुर्गा प्रसाद पारकर, सीताराम श्याम, प्रदीप कुमार दीप, फकीर राम साहू,पुरषोतम अनाशक्त------


आदि के आलावा अउ कतको कलम के सिपाही मन छत्तीसगढ़ी भाषा मा उत्कृष्ट काव्य सृजन करिन अउ करत हे, ये समय के साहित्य मा सबे रस रंग के संगे संग सबे कलेवर के रचना खोजे जा सकत हे, जे वो समय के सामाजिक, राजनीतिक अउ आर्थिक दशा दिशा ला देखाय बर सक्षम हें, आवन इही काल के कुछ कवि मनके काव्य  पंक्ति देखथन


*नवा बिहान के आरो मा विद्याभूषणमिश्र जी लिखथें*


आही किरन सकेले मोती, सुरूज़ चढ़ही छान्ही मा।


घाट-घठौधा लिखै प्रभाती, देखा फरियर पानी मा।


उषा सुंदरी हर अकास मा


कुहकू ला बगराये हे।


दुख के अंधियारी ला पी के


सुख-अंजोर ला पाये हे ।


का अंतर हातै चंदा मा, अउ बीही के चानी मा।


आही किरन सकेले मोती, सुरूज़ चढ़ही छान्ही मा।


*हँसी खुशी मंगल कामना मया मीत के गीत धरे हरि ठाकुर जी लिखथें*


आज अध-रतिहा मोर फूल बगिया मा


आज अध-रतिहा हो


चन्दा के डोली मा तोला संग लेगिहव


बादर के सुग्घर चुनरिया मा रानी


आज अध-रतिहा हो


आज अध-रतिहा मोर फूल बगिया मा


आज अध-रतिहा हो


*सुराज मिले के बाद घलो आम जन के स्थिति बने नइ रिहिस, उही ला इंगित करत भगवती सेन जी लिखथें*-


अपन देश के अजब सुराज


भूखन लाघंन कतकी आज


मुरवा खातिर भरे अनाज


कटगे नाक, बेचागे लाज


कंगाली बाढ़त हे आज


बइठांगुर बर खीर सोंहारी


खरतरिहा नइ पावै मान,जै गगांन'


*किसान मनके खेती खार ला व्यपारी उधोगपति मनके हाथ बेंचावत, अउ कारखाना के नुकसान बतावत हरि ठाकुर जी कइथे*-


सबे खेत ला बना दिन खदान


किसान अब का करही


कहाँ बोही काहां लूही धान


किसान अब का करही


काली तक मालिक वो रहिस मसहूर


बनके वो बैठे हे दिखे मजदूर।


लागा बोड़ी में बुड़गे किसान –


उछरत हे चिमनी ह धुंगिया अपार


चुचवावत हे पूंजीवाला के लार


एती टी बी म निकरत हे प्रान--


*सर्वहारा वर्ग के प्रतिनिधित्व करत, उन ला जगावत भगवती लाल सेन जी के पंक्ति-*


सिखाये बर नइ लागय।


गरु गाय ला।


बैरी ला हुमेले बर।।


अपने मूड़ पेल गोठ ला, अब झन तानव जी।


चेथी के आँखी ला, आघु मा लानव जी।।


*आजादी के बाद छत्तीसगढ़ ला राज बनाये के सुर घलो कवि मनके कविता मा दिखिन- माखनलाल तम्बोली जी लिखथे--*


नया लहू के मांग इही हे,


छतीसगढ़ ल राज बनाओ ।


बाहिर ले आए हरहा मन,


कतेक चरिन छत्तीसगढ़ ल ।


बाहिर ले आये रस्हा मन,


चुहक डरिन छतीसगढ़ ल ।


शोमन के फादा ल टोर के,


छतीसगढ़ ल चलो बचाओ ।


*छत्तीसगढ़ मा उजास के आरो पावत लूथर मसीह जी लिखथें*


चारों मुड़ा अंधियार,अउ सन्नाटा मं


सुते रहिस छत्तीसगढ़ माई पिल्ला


दिया मं अभी तेल हावय


धीरे धीरे सूकवा उवत हे


पहाटिया के आरो होगे हे


ओखर लउठी के ठक ठक


बिहान होए के संदेशा


छत्तीसगढ़ के आंखी उघरत हे


अपन अधिकार बार लड़त हे


छत्तीसगढ़ मंअब अंजोर होही


अब अंजोर होही ॥


*छत्तीसगढ़ी बोली के गुणगान मा गजानन्द देवांगन जी लिखथें*


हमर बोली छतीसगढ़ी


जइसे सोन्ना-चांदी के मिंझरा-सुघ्घर लरी।


गोठ कतेक गुरतुर हे


ये ला जानथे परदेशी।


ये बोली कस बोली नइये


मान गेहें विदेशी॥


गोठियाय मा त लागधेच


सुने मा घला सुहाथे –देवरिया फुलझड़ी


* जीवन दर्शन ले समाहित संत कवि पवनदीवान के चमत्कारिक कविता*


सब होही राख


राखबे त राख


नई राखस ते झन राख


कतको राखे के कोसिस करिन, नई राखे सकिन।


मैं बतावत हंव तेन बात ल धियान में राख।


तंहूं होबे राख, महूं होहुं राख


सब होही राख।


तेकरे सेती भगवान संकर हा


चुपर लेहे राख।


*मजदूर,किसान बनिहार, दबे कुचले मनके पीरा ला घलो कवि मन अपन कलम मा उँकेरे हे। सुशील भोले जी के काव्य मा रेजा मन के कलपना देखव*


चौड़ी आए हौं जांगर बेचे बार, मैं बनिहारिन रेजा गा


लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा...


सूत उठाके बड़े बिहन्वे काम बुता निपटाए हौं


मोर जोड़ी ल बासी खवाके रिकसा म पठोए हौं


दूध पियत बेटा ल फेर छोड़ाए हौं करेजा गा


लेजा बाबू लेजा गा, मैं बनिहारिन रेजा गा॥


*हेमनाथ यदु जी समाज मा छाये कलह क्लेश ला देखत लिखथें*


भाई भाई म मचे लड़ाई, पांव परत दूसर के हन


फ़ूल के संग मां कांटा उपजे, अइसन तनगे हावय मन


धिरजा चिटको मन म नइये, ओतहा भइगे जांगर हे। 


*लाला जगदलपुरी जी घलो भीतरी कलह क्लेश ला उजागर करत लिखथें*


गाँव-गाँव म गाँव गवाँ गे


खोजत-खोजत पाँव गवाँ गे।


अइसन लहँकिस घाम भितरहा


छाँव-छाँव म छाँव गवाँ गे।


अइसन चाल चलिस सकुनी हर


धरमराज के दाँव गवाँ गे।


झोप-झोप म झोप बाढ़ गे


कुरिया-कुरिया ठाँव गवाँ गे।


जब ले मूड़ चढ़े अगास हे


माँ भुइयाँ के नाँव गवाँ गे।


*गाड़ी घोड़ा ला संघेरत चितरंजन कर जी लिखथें*


घुंच-घुंच गा गाड़ीवाला, मोटरकार आत हे


एती-ओती झन देख तें, इही डाहार आत हे


तोर वर नोहे ए डामर सड़क हा


तोर वर नोहे गा तड़क-भड़क हा


तोर गाड़ी ला खोंचका-डिपरा मेड-पार भाथे


तोर बइला मन के दिल हे दिमाग हे


कार बपरी के अइसन कहां भाग हे


ओला नइ पिराय कभु जस तोला पिराथे


*आँखी मा सँजोये सपना ला पूरा होय बिना, सुख दुख के परवाह करे बिना, चलत रहे के संदेश देवत परमार जी किखथें*


तिपे चाहे भोंभरा, झन बिलमव छांव मां


जाना हे हमला ते गांव अभी दुरिहा हे।


कतको तुम रेंगाव गा


रद्दा हा नइ सिराय


कतको आवयं पडाव


पांवन जस नई थिराय


तइसे तुम जिनगी मां, मेहनत सन मीत बदव


सुपना झन देखव गा, छांव अभी दुरिहा हे।


धरती हा माता ए


धरती ला सिंगारो


नइ ये चिटको मुसकिल


हिम्मत ला झन हारो


ऊंच नीच झन करिहव धरती के बेटा तुम


मइनखे ले मइनखे के नांव अभी दुरिहा हे।


*लक्ष्मण मस्तुरिया जी गिरे थके के सहारा बनत कहिथे*


मोर संग चलवरे मोर संग चलवरे


वो गिरे थके हपटे मन,अउ परे डरे मनखे मन


मोर संग चलव रे ऽऽमोर सगं चलव गा ऽऽ।


अमरइया कस जुड़ छांव में,मोर संग बैठ जुड़ालव


पानी पिलव मैं सागर अंव,दुख पीड़ा बिसरालव


नवा जोंत लव, नवा गांव बर,रस्ता नव गढ़व रे।


मैं लहरि अंव, मोर लहर मां


फरव फूलव हरियावो,महानदी मैं अरपा पैरी,


तन मन धो हरियालो,कहां जाहू बड़ दूर हे गंगा


पापी इंहे तरव रे,मोर संग चलव रे ऽऽ


*समाज मा व्याप्त निर्ममता ऊपर नारायण लाल परमार जी लिखथें*-


आंखी के पानी मरगे


एमा का अचरिज हे भइया


जेश्वर नइये कन्हिया


हर गम्मत मां देख उही ला


सत्ती उपर बजनिया


आंखी के पानी मरगे हे


अउ इमान हे खोदा


मइनखे होगे आज चुमुक ले


बिन पेंदी के लोटा।


*नवा राज के सपना ला साकार होवत बेरा, जेन स्थिति देखे बर  मिलिस वोला शब्द देवत मस्तूरिहा जी लिखथें*-


नवा राज के सपना, आंखी म आगे


गांव-गांव के जमीन बेचाथे


कहां-कहां के मनखे आके


उद्योग कारखाना अउ जंगल लगाथें


हमर गांव के मनखे पता नहीं कहां, चिरई कस


उड़िया जाथें, कतको रायपुर राजधानी म


रिकसा जोंतत हें किसान मजदूर बनिहार होगे


गांव के गौटिया नंदागे,


नवा कारखाना वाले, जमींदार आगे।


*आजादी जे बाद के हाल ला देखावत मस्तूरिहा जी लिखथें*-


सारी जिनगी आंदोलन हड़ताल हे


आज हमर देस के ए हाल हे


छाती के पीरा बने बाढ़े आतंकवाद


भ्रष्टाचार-घोटाला हे जिनगी म बजरघात


कमर टोर महंगाई अतिया अन संभार


नेता-साहेब मगन होके भासन बरसात


ओढ़े कोलिहा मन बधवा के खाल हे


हमर देस हमर भुंई हमरे सूराज हे


जिनगी गुलाम कईसे कोन करत राज हे


दलबल के ज़ोर नेता ऊपर ले आत हे


भूंई धारी नेता सबों मूड़ी डोलात हे


देस गरीब होगे नेता दलाल हे


*देश के दशा दिशा ला देखत जीवनलाल यदु जी लिखथें*


रकसा मन दिन-दिन बाढ़त हे, सतवंता मन सत छाड़त हें


काटे कोन कलेस ला? का हो गे हे मितान मोर देस ला?


गोल्लर मन के झगरा मं ख़ुरखुंद होवत हे बारी,


चोर हवयं रखवार, त बारी के कइसे रखवारी,


जब ले गिधवा-पिलवा के जामे हे पंखी डेना,


तब ले सत्ता के घर मं बइठे हे वन लमसेना,


*छत्तीसगढ़ राज के संगे संग राजभाषा बर घलो कवि मन कलम चलाइन- छत्तीसगढ़ी भाषा के बड़ाई मा बुधराम यादव जी लिखथें*


तोला राज मकुट पहिराबो ओ मोर छत्तीसगढ़ के भाषा


तोला महरानी कहवाबो ओ मोर छत्तीसगढ़ के भाषा


तोर आखर में अलख जगाथे भिलई आनी बानी


देस बिदेस में तोला पियाथे घाट-घाट के पानी


तोर सेवा बर कई झन ऐसन धरे हवंय बनबासा


ओ मोर छत्तीसगढ़ के भाषा….


*मंहगाई मा किसान मजदूर मनके  पीरा- ,बद्रीविशाल परमानंद जी के काव्य मा*-


खोजत खोजत पांव पिरोगे


नइ मिलै बुता काम


एक ठिन फरहर, दू ठिन लाघन


कटत हे दिन रात


भूक के मारे रोवत-रोवत


लइका सुतगे ना।।


ये मंहगाई के मारे गुलैची


कम्भर टूटगे ना।।


*जीवन दर्शन करावत नरेंद्र देव वर्मा जी लिखथें*


दुनिया अठावरी बजार रे, उसल जाही


दुनिया हर कागद के पहार रे, उफल जाही।।


अइसन लागय हाट इहां के कंछू कहे नहि जावय


आंखी मा तो झूलत रहिथे काहीं हाथ न आवय


दुनिया हर रेती के महाल रे ओदर जाही।


दुनिया अठवारी बजार रे उलस जाही।


*मजदूर बनिहार मनके मन ला पढ़के हेमनाथ यदु जी कहिथें*


सुनव मोर बोली मा संगी


कोन बनिहार कहाथय


कारखाना लोहा के बनावय


सुध्धर सुध्धर महल उठावय


छितका कुरिया मा रहि रहिके,


दिन ला जऊन पहाथय


सुनव मोर बोली मा संगी


कोन बनिहार कहाथय


*किसान मजदूर मनके असल हालत ला देख तुतारी मारत रघुवीर अग्रवाल पथिक जी कइथे*


ये अजब तमाशा, सूरज आज मांगय अंजोर


गंगा हर मराय पियास अउर मांगै पानी ।


या मांगै कहूँ उधार पाँच रूपिया कुबेर


रोटी बर हाथ पसारै, कर्ण सरिख दानी ।1।


बस उही किसम जब जेला कथै अन्न दाता


जो मन चारा दे, पेट जगत के भरत हवै ।


तुम वो किसान के घर दुवार ल देखौ तो


वो बपुरा मन दाना दाना बर मरत हवै ।2।


*गाँव गँवई मा जागरूकता के बिगुल बाजत देख,चेतन भारती जी लिखथें*


निच्चट परबुधिया झन जानव,


गवई-गांव अब जागत हे।


कुदारी बेंठ म उचका के कुदाही,


छाये उसनिंदा अब भागत हे।।


जांगर टोरे म बोहाथे पसीना,


जाके भुइयां तब हरियाथे


चटके पेट जब खावा बनथे,


चिरहा पटका लाज बचाथे ।।


स्वारथ ल चपके पंवरी म,


ढेलवानी रचत, करनी तोर जानत हे ।


मोर गंवई गांव...


*खेती किसानी अउ गांव गँवई के चित्रण करत डॉ बलदेव जी लिखथें*


लगत असाढ़ के संझाकुन


घन-घटा उठिस उमड़िस घुमड़िस घहराइस


एक सरवर पानी बरस गइस


मोती कस नुवा-नुवा


नान्हे-नान्हे जलकन उज्जर


सूंढ़ उठा सुरकै-पुरकै


सींचै छिड़कै छर छर छर


पाटी ल धुन हर चरत हे, खोलत हे


घुप अंधियारी हर दांत ल कटरत हे


मुड़का म माथा ल भंइसा हर ठेंसत हे


मन्से के ऊपर घुना हर गिरत हे झरत हे


*छत्तीसगढ़ी मा गजल के बानगी, गीतकार मेहतर राम साहू के काव्य मा दिखथे, प्रकृति के मानवीयकरण मा कवि के कलम खूब चले हे*


ये रात तोर असन माँग ला सँवारे हे।


बहार तोर असन मुस्की घलो ढारे हे।


*आसा विश्वास के दीया बारत मुंकुंद कौशल जी लिखथें*


आंसू झन टपकावे


सुरता के अंचरा मा


तुलसी के चौंरा मा


एक दिया घर देवे।


मोर लहूट आवट ले


सगुना संग गा लेवे


रहिबे झन लांघन तै


नून भात खा लेव


*जिनगी के बिरबिट अँधियारी रात मा अँजोर के आस जगावत पी सी लाल यादव जी लिखथें*-


चंदा चम-चम चमके, चंदेनी संग अगास म I


जिनगी जस बिरबिट रतिहा, पहावे तोर आस म II


देखाये के होतीस त,


करेजा चान देखातेंव I


पीरा के मोट रा बांध,


तोर हाथ म धारतेंव II


डोमी कस गुंडरी मारे, पीरा बसे हे संस म I


जिनगी जस बिरबिट रतिहा पहावे तोर आस म II


*रामेश्वर वैष्णव जी के रचना 94 के पूरा, पूरा के हाल ला पूरा बयां कर देवत हे*


गंवागे गांव, परान, मकान पूरा मं एंसो


बोहागे धारोधार किसान पूरा मं एसो


सुरजिनहा होईस वरसा त पंदरा दिन के झक्खर


जीव अकबकागे सब्बो के कहे लंगि अब वसकर


भुलागेंन काला काला कथें विहान पूरा मं एसों...


पैरी-सोंढुर महनदी, हसदों अरपा सिवनाथ


खारुन इंद्रावती-मांद, वनगे सव काले के हाथ


लहूट गे जीवलेवा कोल्हान पूरा मं एसों ....


वादर फाटिस, जइसे कंहू समुंदर खपलागे


रातो रात इलाका ह पानी मं ढकलागे


परे सरगे सच विजहा धान पूरा मं एसों..


*जिनगी जिये के मूल मंत्र देवत दानेश्वर शर्मा जी लिखथें*


डोंगरी साहीं औंटियावव तुम, नांदिया जस लहराव


ये जिनगी ला जीए खातिर फूल सहीं मुस्कावव


निरमल झरना झरथय झरझर परवत अउ बन मा


रिगबिग बोथय गोंदाबारी कातिक अघ्घन मा


दियना साहीं बरव झमाझम, कुवाँ सहीं गहिरावव


ये जिनगी ला जीए खातिर फूल सहीं मुस्कावव


*छत्तीसगढ़ के पहचान बासी ला कविता मा बाँधत टिकेंद्र टिकरिहा जी लिखथें*


अइसे हाबय छतीसगढ़ के गुद गुद बासी


जइसे नवा बहुरिया के मुच मुच हांसी


मया पोहाये येकर पोर पोर म


अउ अंतस भरे जइसे जोरन के झांपी


कपसा जड़से दग-दग उज्जर चोला


मया-पिरित के बने ये दासी


छल-फरेब थोकरो जानय नहीं


हमर छतीसगढ़ के ये वासी


*कबीर के उलटबासी के एक बानगी कवि सीताराम साहू श्याम जी के रचना मा देखव*-


बूझो बूझो गोरखना अमृत बानी।


बरसेल कमरा भींजे ले पानी जी।


कँउवा के डेरा मा पीपर करे बासा।


मुसवा के डेरा मा बिलई होय नासा जी।


ये काल मा लगभग सबे विषय मा अनेकों रचना कवि मन करिन, सबे कवि अउ उंखर रचना के जिक्र कर पाना सम्भव नइहे। काव्य के भाव पक्ष अउ पक्ष के घलो कोई तोड़ नइ हे। कवि मनके कल्पना मा ऊँच आगास अउ पाताल के बीच विद्यमान सबे चीज समाये दिखिस। ये काल मा मुकुटधर पांडे जी जइसे मेघदूत के छत्तीगढ़ी मा अनुवाद करिन, वइसने अउ कई  धार्मिक पौराणिक ग्रंथ के अनुवाद होइस।


ये समय सृंगार के प्रेमकाव्य के साथ साथ वीर, करुण, अउ हास्य रस ला घलो कवि मन अपन कविता मा उतरिन। छत्तीसगढ़ी मा हायकू, गजल, बाल साहित्य के बीज घलो देखे बर मिलिस। ये काल मा कवि मनके कविता आम जन के अन्तस् मा गीत बनके समाय लगिस, हरि ठाकुर, प्यारेलाल गुप्त, रविशंकर शुक्ल, लक्ष्मण मस्तूरिहा, नारायण लाल परमार, मेहत्तर राम साहू, राम कैलाश तिवारी, पवन दीवान, द्वारिकाप्रसाद तिवारी विप्र, कोदूराम दलित,धरम लाल कश्यप, फूलचंद श्रीवास्तव,चतुर्भुज देवांगन,ब्रजेन्द्र ठाकुर,हेमनाथ यदु, भगवती लाल सेन, मुंकुंद कौशल, रामेंश्वेर वैष्णव,रामेश्वर शर्मा,विनय पाठक जइसे अमर गीतकार मनके गीत रेडियो, टीवी अउ लोककला मंच के कार्यक्रम मा धूम मचावत दिखिस। आजादी के बाद नवनिर्माण के स्वर दिखिस ता नवा राज के सपना घलो कवि मनके कविता मा रिगबिगाय लगिस। किसान, मजदूर, दबे, गिरे, हपटे सबके स्वर ला अपन कलम मा पिरो के सत, सुमता अउ दया मया के पाग धरत कवि मन छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी ला नवा आयाम दिन। गाँव गँवई, शहर, डहर, खेत खार, भाजी पाला,चाँद सूरज, परब तिहार,  पार परम्परा,खेल मेल, दिन रात सबला कवि मन समायोजित करके अतका साहित्य ये दौर मा सिरजन करिन, कि  एको जिनिस कवि मनके कविता ले बोचक नइ सकिस। ये काल मा छत्तीसगढ़ी कविता खूब प्रगति करिस। तात्कालिकता के स्वर घलो समय समय मा मुखर होवत दिखिस। ये दौर मा छत्तीसगढ़ी काव्य कविता वो दौर के समाज के दशा दिशा ला हूबहू देखात दिखथे।


*छत्तीसगढ़ी साहित्य के उड़ान काल(2000 - अब तक)*


सन 2000 मा छत्तीसगढ़ राज बने के बाद कविमन के कविता मन ठेठ छत्तीगढ़िया पन दिखे बर लगिस, छत्तीसगढ़ी भाषा मा सृजन के संख्या वइसने बाढ़िस जइसे फ़िल्म जगत मा छत्तीसगढ़ी फिलिम। पर छत्तीसगढ़ राज बने के पहली घलो  कवि मन के संख्या ला कही पाना सम्भव नइ हे, फेर राज बने के बाद का कहना। जन जन के अन्तस् मा छत्तीसगढ़ राज बनाय के सपना पलत रिहिस ,ओला कवि मन बखूबी ले सामने लाइन, अउ उंखर सपना रंग घलो लाइस। राज बने के बाद छत्तीसगढ़ के कवि मनके कविता मा उछाह के संगे संग छत्तीसगढ़ के सृजन के आरो वइसने दिखे लगिस, जैसे कोनो परिवार नवा घर बनाय के बाद ओमा रहे बर जाथे ता वो घर ला सजाथे सँवारथे। अपन घर ला अपन इच्छानुसार बनाय के उदिम करत कवि मन मनमुताबिक कलम चलाइन अउ आम जन के देखे सपना ला स्वर दिन। *माटी ले लेके घाटी अउ पागा-पाटी ले लेके भँवरा-बाँटी तक के आरो कवि मनके गीत कविता मा रचे बसे लगिस।* उछाह के स्वर के संगे संग आँखी मा दिखत अभाव ला घलो कवि मन समय समय मा कलम मा उकेरत गिन। 


                  *आधुनिक काल के प्रारभिक काल के कवि मन छत्तीसगढ़ी साहित्य गढ़के आसा विश्वास के जोती जलावत साहित्यिक जमीन तैयार करिन ता 1950 के बाद के कवि मन वो जमीन मा धीरे धीरे रेंगत, दौड़े लगिन अउ 2000 के बाद उड़े। फेर वो उड़ान मा 80, 90 के दशक के विज्ञ कवि मन मीनार कस जमीन अउ आसमान दूनो मा दिखिन ता नवा जमाना के नवा रंग मा रंगे नवकवि मन पतंग बरोबर उड़ावत। *फेर यदि छत्तीसगढ़ महतारी के हाथ मा भाव के डोर धरा के उड़ाय ता येमा कोनो बुराई घलो कहाँ हे, महिनत अउ मार्गदर्शन के मॉन्जा वो डोर ला एक दिन जरूर मजबूती दिही,अउ अइसने होवत घलो हे।  ये काल मा पत्र पत्रिका, रेडियो,टीवी, गोष्ठी अउ कवि मंच मा कविता के प्रस्तुति के अलावा एक नवा सहारा सोसल मीडिया के मिलिस। 


   सोसल मीडिया के आय ले कवि के संख्या अउ कविता के संख्या जनमानस तक जादा ले जादा पहुँचे लगिस। ये काल मा सियान मनके सियानी गोठ अउ लइका मनके लड़कपन दुनो प्रकार के साहित्य देखे बर मिलिस। *नेकी कर दरिया मा डार* के हाना, सोसल मीडिया के आय ले बदलत दिखिस, *कुछु भी कर- फेसबुक, वाट्सअप, ब्लाग या अन्य नवा माध्यम मा डार* ये चले लगिस अउ अभो चलत हे, येमा कवि मन घलो पीछू नइ हे। सोसल मीडिया के लाइक कमेंट ला कवि मन कविता के सफलता मानत दिखिन। रोज लिखे अउ दिखे के चलन बाढ़गे। साहित्य के सेवा अउ समर्पण मा स्वान्तः सुखाय अउ स्वार्थ के स्वर घलो सुनाय लगिस। कविता कहूँ करू हे, ता वो साहित्य कइसे? फेर बैरी जे लात के भूत ए वो बात मा कहाँ मानथे। तेखरे सेती पदोवत पाकिस्तान अउ आन बैरी बर अइसने सुर घलो देखे बर मिलिस। नवा जोश अउ नवा उमंग लिये आगास मा उड़ावत सतरंगी पतंग ला बछर 2016 मा छ्न्द के छ नामक एक अइसन आंदोलन रूपी माँजा डोर मिलिस, जे उन ला छत्तीसगढ़ी भाँखा महतारी ले बाँध के रखिस। जुन्ना शास्त्रीय विधा छ्न्द खूब जोर पकडिस, सबे के रचना मा छंद के विविधता दिखे लगिस, ऐसे नही कि छत्तीसगढ़ी मा पहली पँइत छंद दिखिस, एखर पहली घलो धनी धरम दास जी, पं सुन्दरलाल शर्मा,सुकलालपाण्डेय, प्यारेलाल गुप्त, कपिलनाथ मिश्र, नरसिंह दास,जनकवि कोदूराम दलित, लाला जगदलपुरी, विमल पाठक, विनय पाठक, केयर भूषण, दानेश्वर शर्मा, मुकुन्द कौशल, लक्ष्मण मस्तुरिया, हरि ठाकुर नरेन्द्र वर्मा,बुधराम यादव आदि कवि मन घलो कुछ चर्चित छ्न्द मा काव्य सिरजाइन। फेर दुनिया ला छन्द प्रभाकर अउ काव्य प्रभाकर जइसे हजारों छन्दमय पुस्तक संग्रह देवइया छत्तीसगढ़ के छन्दविद जगन्नाथ प्रसाद भानू जी, छ्न्द के छ के माध्यम ले,वो दिन मान पाइस, जब छत्तीसगढ़ी भाषा मा छ्न्द के विविधता दिखिस। ये काल मा सौ ले आगर छंद मा कवि मन कविता रचिन, अउ रचते हें। छ्न्दमय रचना के साथ कवि मनके कविता के कला पक्ष बेजोड़ होय लगिस। शब्द के सही रूप, वर्णमाला के बावन आखर, यति गति के संगे संग काल,वचन,लिंग अउ पुरुष जइसे व्याकरण पक्ष मा सुधार आइस। कविता नवा कलेवर लिए, जमीन ले जुड़े दिखिस। तात्कालिकता के स्वर प्रखर होइस, नवा नवा आधुनिक जिनिस अउ जुन्ना कुरीति के विरोध के स्वर घलो गूँजे लगिस। छ्न्द अतका जोर पकड़े लगिस कि हिंदी के लिखइया मन घलो नाना छ्न्द मा हिंदी मा रचना करिन। छत्तीसगढ़ के लगभग सबे कोती छन्द गुंजायमान दिखिस, चाहे कवि मंच, पत्र, पत्रिका, रेडियो, टीवी होय या फेर फेसबुक या वॉट्सप। सोसल मीडिया के सदुपयोग करत छत्तीसगढ़ के लगभग सबे जिला के कवि मन छंदविधा के ऑनलाइन क्लास ले जुड़के, छ्न्द सीखत अउ सिखावत हे, ये आंदोलन मा जुड़े छंदकार मनके काव्य रचना घलो तात्कालिक समाज के दशा दिशा ला  इंगित करत दिखथे। नवा छन्दक्रांति मा समसामयिकता के स्वर के संग परम्परा संस्कार अउ सँस्कृति के पाग समाये हे। मन के उड़ान ला मात्रा मा बाँधत भले भाव मा कुछ कसर दिख जही, पर विधान के बगिया बरोबर सजे दिखथे, महज चार पांच साल मा छ्न्द के गति देखते बनथे, जमे छ्न्दकार मन अनुभव  अउ महिनत के सांचा मा ढलत ढलत कविता सृजन ला नया आयाम दिही। आज  निमगा छन्दबद्ध कविता संग्रह छत्तीसगढ़ी साहित्य जगत मा होय के चालू होगे हे। दर्जन भर ले आगर साहित्य लोगन के हाथ मा पहुँच चुके हे अउ दर्जन भर पुस्तक छपे के कगार में हे,जनकवि दलित जी के छ्न्द बर देखे सपना ला उंखर सुपुत्र अरुण निगम जी साक्षात करत हे। छ्न्द के छ के प्रभाव ले छत्तीसगढ़ी साहित्य मा शब्द लेखन के एकरूपता सहज दिखत हे। 


                              80,90 के दशक मा लिखइया  दशरथ लाल निषाद विद्रोही, लक्ष्मण मस्तूरिहा,रामेश्वर शर्मा, रामेश्वर वैष्णव,डॉ पीसी लाल यादव, जीवन यदु,सुशील यदु, सुशील वर्मा भोले,मुकुण्द कौशल,गोरेलाल चंदेल,बंधुवर राजेश्वर खरे, परदेशी राम वर्मा, बिहारी लाल साहू, बलदेव भारती, चेतन भारती, शिवकुमार दीपक, गणेश सोनी प्रतीक, डुमनलाल ध्रुव, दुर्गाप्रसाद पारकर, सीराराम साहू श्याम, विशम्भर दास मरहा, फागूदास कोसले,नूतन प्रसाद शर्मा, बोधनदास साहू, केशव सूर्यवानी केसर,दादूलाल जोसी, रेवतीरमण सिंह, दुकालूराम यादव,  राधेश्याम सिंह राजपूत, कौशल कुमार साहू,स्वर्णकुमार साहू, लतीफ खान लतीफ, स्वराज करुण, शिवकुमार अंगारे, वीरेंद्र चन्द्र सेन,गौरव रेणु नाविक,केदारसिंह परिहार, मैथ्यू जहानी जर्जर, प्यारेलाल देशमुख, सनत तिवारी, लखनलाल दीपक,अजय पाठक, बदरीसिंह कटरिहा, रामरतन सारथी, डाँ शंकर लाल नायक, रमेश सोनी,सीताराम शर्मा,नेमीचंद हिरवानी, आचार्य सुखदेव प्रधान, गिरवर दास मानिकपुरी, आनंद तिवारी पौराणिक, पुनुराम साहू, राकेश तिवारी,हबीब समर,डॉ मानिक विश्वकर्मा नवरंग,टिकेश्वर सिन्हा, डॉ दीनदयाल साहू,रनेश विश्वहार, शिवकुमार सिकुम, देवधर दास महंत, लखनलाल दीपक, धर्मेंद्र पारख,सन्तराम देशमुख, गणेश साहू,राघवेंद्र दुबे, महेंद्र कश्यप राही, गणेश यदु, के आलावा अउ कतको वरिष्ठ कवि मन नवा राज बने के बाद वो समय के नव कलमकार मन संग साहित्यिक सृजन ला गति दिन। जिंखर कविता मा सुख के आहट के संगे संग वो सुख ला पाय बर करे उदिम सहज झलकत रिहिस। 


                राज बने के बाद  घलो सरलग छत्तीसगढ़ी रचना ला गति देवत केशवराम साहू, सुरेंद्र दुबे, रामेश्वर गुप्ता, मोहन श्रीवास्तव, अशोक आकाश, अरुण कुमार निगम, डॉ एन के वर्मा, नरेंद्र वर्मा,कुबेरसिंह साहू, ऋषि वर्मा बइगा, कृष्णा भारती, सन्तोष चौबे, अनिरुद्ध नीरव,कान्हा कौशिक, शीलकान्त पाठक,चैतराम व्यास,चन्द्र शेखर चकोर, लोकनाथ आलोक,प्रवीण प्रवाह, वीरेंद्र सरल, नन्दकुमार साकेत, वैभव बेमेतरिहा, दिनेश चौहान, डॉ अनिल भतपहरी, डाँ नगेन्द्र कश्यप, रूपेश तिवारी, मुरलीलाल साव,प्रदीप ललकार,बलदाऊ राम साहू, महामल्ला बन्धु, कृष्ण कुमार दीप, शंभूलाल शर्मा बसंत, टी आर कोसरिया, गया प्रसाद साहू,लोकनाथ साहू,इकबाल अंजान,उमेश अग्रवाल, भागवत कश्यप, महावीर चन्द्रा, कृष्ण कुमार चन्द्रा, फत्ते लाल जंघेल, रामनाथ साहू,फकीरप्रसाद फक्कड़ राजीव यदु, दशरथ लाल मतवाले, रामरतन खांडेकर, सन्तोष चौबे, ओम यादव, शंकर नायडू,आत्माराम कोसा, दिनेश दिव्य, दिनेश गौतम, गिरीश ठक्कर,चिंताराम सेन,शशिभूषण स्नेही,  अशोक चौधरी रौना, श्रवण साहू,लखनलाल दीपक, वीरेंद्र तिवारी,,धर्मेंद्र पारख, डॉ विनयशरण सिंह,हेमलाल साहू, रमेश कुमार सिंह चौहान, सुनील शर्मा नील, सूर्यकांत गुप्ता कांत, मिथिलेश शर्मा, लोचन देशमुख, देवेंद्र हरमुख,मिलन मिलरिया, चोवाराम वर्मा बाद, गजानंद पात्रे, दिलीप कुमार वर्मा, कन्हैया साहू अमित, आसकरण दास जोगी, सुखन जोगी,ग्यानू दास मानिकपुरी, मनीराम साहू मिता,जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया, मोहनलाल वर्मा, हेमंत मानिकपुरी, दुर्गाशंकर ईजारदार, अजय अमृतांशु, सुखदेव सिंह अहिलेश्वर,आर्या प्रजापति, मोहन कुमार निषाद, महेतरू मधुकर, संतोष फारिकर, तेरस राम कैवर्त, पुखराज यादव, सुरेश पैगवार,ललित साहू जख्मी, श्रवण साहू, बलराम चंद्राकर, पुष्कर सिंह राज,राजेश कुमार निषाद, अरुण कुमार वर्मा,अनिल जांगड़े गौतरिहा, जितेंद्र कुमार मिश्र, पोखन जायसवाल, दिनेश रोहित चतुर्वेदी, जगदीश कुमार साहू हीरा, कौशल कुमार साहू, तोषण चुरेंद्र, पुरुषोत्तम ठेठवार, विद्यासागर खुटे, परमेश्वर अंचल, बोधनराम निषादराज, मथुरा प्रसाद वर्मा, राजकिशोर धिरही,रामकुमार साहू, दीनदयाल टंडन, गुमान प्रसाद साहू,बालक दास निर्मोही, कुलदीप सिन्हा, राम कुमार चंद्रवंशी, महेंद्र कुमार माटी, अनिल पाली, धनसाय यादव, ईश्वर साहू आरुग,गजराज दास महंत,अशोक धीवर जलक्षत्री, राधेश्याम पटेल, सावन कुमार गुजराल, उमाकांत टैगोर, राजकुमार बघेल, नवीन कुमार तिवारी, निर्मल राज, योगेश शर्मा, दीपक कुमार साहू, दिनेश कुमार साहू, द्वारिका प्रसाद लहरें, संदीप परगनिहा, महेंद्र कुमार बघेल, युवराज वर्मा, हीरालाल गुरुजी समय, अनुभव तिवारी, ईश्वर साहू बंधी,अश्वनी कोशरे, चंदेश्वर सिंह दीवान, ज्वाला प्रसाद कश्यप, धनराज साहू, संतोष कुमार साहू,केशव पाल, नेमन्द्र कुमार गजेंद्र, लक्ष्मी नारायण देवांगन, कमलेश वर्मा, जितेंद्र कुमार निषाद, श्लेष चंद्राकर, अमित टंडन, योगेश कुमार बंजारे, तोरण लाल साहू, दीपक कुमार निषाद, देवेंद्र पटेल,भागवत कुमार साहू,बृजलाल दावना, लालेश्वर अरुणाभ,लीलेश्वर देवांगन, हरीश अष्ट बंधु, तेज राम नायक, अनिल सलाम, विजेंद्र वर्मा, मोहनदास बंजारे, जितेंद्र कुमार साहिर, मनोज कुमार वर्मा,डमेन्द्र कुमार रौना, अमृत दास साहू, एकलव्य साहू, ओम प्रकाश साहू अंकुर, गोवर्धनप्रसाद परतेसी, धनराज साहू खुज्जी, नंदकुमार साहू नादान,मनीष साहू ,रमेश कुमार मंडावी ,राजकुमार चौधरी, शिव प्रसाद लहरें, शेरसिंह परतेती,अशोक कुमार जायसवाल, कमलेश मांझी, चंद्रहास पटेल, टिकेश्वर साहू,दीपक तिवारी, नारायण प्रसाद वर्मा, पूरनलाल जायसवाल, रिझे यादव,सुरेश निर्मलकर,भाग बली उइके, अजय शेखर नेताम,अनुज छत्तीसगढ़िया,चेतन साहू खेतिहर, तिलक लहरें,राकेश कुमार साहू,देवचरण धुरी, मनोज यादव,आशुतोष साहू, डीएल भास्कर, दूज राम साहू, धर्मेंद्र डहरवार, नंद किशोर साहू, नागेश कश्यप, नारायण प्रसाद साहू, प्रदीप कुमार वर्मा, भागवत प्रसाद, रमेश चोरिया, महेंद्र कुमार धृत लहरें, रवि बाला राजपूत, राजेंद्र कुमार निर्मलकर,रोशन लाल साहू, डीलेश्वर साहू, दिलीप कुमार पटेल, नेहरू लाल यादव, पूनम साहू,भीज राज वर्मा,मुकेश उइके, राज निषाद, वीरू कंसारी, शीतल बैस, केदारनाथ जायसवाल, कृष्णा पारकर, अखिलेश कुमार यादव, दयालु भारती, दुष्यंत कुमार साहू, द्रोण कुमार सार्वा, भलेंद्र रात्रे, मनीष कुमार वर्मा, सांवरिया निषाद, चूड़ामणि वर्मा, बाल्मीकि साहू के आलावा अउ कतको नवा जुन्ना जमे कवि  मनके कविता अउ रचित काव्य संग्रह मन ला पढ़ सुन के आधुनिक कालिन कविता के दशा दिशा ला देखे जा सकत हे। 


                   आवन इही में के कुछ नवा अउ जुन्ना दूनो प्रकार के कवि  मन के कविता के बानगी ला देखथन--


* छत्तीसगढ़ राज मा नवा बिहान देख डाँ बलदेव प्रसाद जी लिखथें*


आज सुमत के बल मा संगी, नवा बिहनिया आइस हे


अंधवा मनखे हर जइसे, फेर लाठी ल पाइस हे


नवा रकम ले नवा सुरूज के अगवानी सुग्घर कर लौ


नवा जोत ले जोत जगाके , मन ला उञ्जर कर लौ


झूमर झूमर नाचौ करमा, छेड़ौ ददरिया तान रे


धान के कलगी पागा सोहै, अब्बड़ बढ़ाए मान रे


अनपुरना के भंडारा ए, कहाँ न लांघन सुर्तेय 


अपन भुजा म करे भरोसा, भाग न ककरो लुर्टेय


 हम महानदी के एं घाटी म कभू न कोनो प्यास मरँय


रिसि-मुनि के आय तपोवन, कभू न ककरो लास गिरय


*माटी के काया ला माटी महतारी के महत्ता बतावत डाँ पीसी लाल यादव जी लिखथें*


जमीन ले जे छूटगे, जर जेखर टूटगे।


तेखर का जिनगी ? करम ओखर फूटगे।।


महतारी के अंचरा,अउ माटी के मान ।


एखर आगू लबारी,दुनिया के सनमान।।


मयारु जेखर छूटगे,छंईहा जेखर टूटगे।


तेखर का जिनगी ? करम ओखर फूटगे।।


*अपन राज के आरो पावत मजदूर किसान बनिहार मन सालिकराम अग्रवाल शलभ जी के जुबानी कहिथें*


मालिक ठाकुर मन के अब तक, बहुत सहेन हम अत्याचार


आज गाज बन जावो जम्मो छत्तीसगढ़ के हम बनिहार।


बरसत पानी मां हम जवान,खेत चलावन नांगर


घर-घुसरा ये मन निसदित के, हमन पेरन जांगर


हमर पांव उसना भोमरा मां, बन जाथे जस बबरा


तभो ले गुर्रावे बघवा कस, सांप हवैं चितकबरा।


इनकर कोठी भरन धान से, दाना दाना बर हम लाचार 


*बानी रूपी ब्रम्ह के महत्ता बतात,गुरतुर गोठ गोठियाय बर काहत सुकवि बुधराम यादव जी लिखथें*


सबले गुरतुर गोठियाले तैं गोठ ला आनी बानी के


अंधरा ला कह सूरदास अउ नाव सुघर धर कानी के


बिना दाम के अमरित कस ये


मधुरस भाखा पाए


दू आखर कभू हिरदे के


नई बोले गोठियाये


थोरको नई सोचे अतको के दू दिन के जिनगानी हे


सबले गुरतुर गोठियाले तैं गोठ ला आनी बानी के


*कवि समाज के दशा दिशा ला दिखइया दर्पण होथे, फेर कभू कभू जनमानस के रीस घलो सहे बर लगथे, इही ला सुशील भोले जी लिखथें*


हमन,कवि आन साहेब


कागज-पातर ल रंगथन 


अउ कलम ल बउरथन


कभू अंतस के गोठ


त कभू दुखहारी के रोग


कभू राजा के नियाव 


ते कभू परजा पीरा


उनन-गुनन नहीं


कहि देथन सोझ.


एकरे सेती,कोनो कहि देथे जकला


कोनो बइहा,त कोनो आतंकी


या अलगाववादी


कभू-कभू ,देश अउ समाजद्रोही घलो


फेर दरपन के कहाँ दोस होथे


वो तो बस,जस के तस देखा देथे


ठउका कवि कस


आखिर दूनों के सुभाव तो


एकेच होथे.


 *नवा आसा विश्वास धरे मया के बँधना मा बँधत वरिष्ठ गजलकार अउ कवि माणिक विश्वकर्मा ' नवरंंग ' जी लिखथें*-


गंगा बारु मोर सँगवारी मितान।


होही छत्तीसगढ़ के नवा बिहान।।


जीयतभर निभाबो बदना के रीत।


मया के बँधना म बँधे रहिबो मीत।


मिलही सब्बो झन ल न्याय अउ निदान।।


*बेटी जनम होय मा समाज के मायूसी ला देखावत दुर्गाप्रसाद पारकर जी लिखथें*


घर म नोनी अँवतरे ले 


रमेसर रिसागे 


अब तोला घर ले निकालहूँ 


कहिके 


अपन गोसइन बर खिसियागे 


रमेसर के रिसई ल देख के 


ओकर संगवारी किहिस -


सुन रमेसर 


रिस खाय बुध 


अउ बुध खाय परान, 


तँय अतेक 


काबर होवत हस हलाकान ? 


माँगे म बेटा अउ 


हपटे म धन नइ मिलय 


माँगे म बेटा मिल जतिस त


दुनिया म बेटिच नइ रहितिस 


अब तिहीं बता 


जब बेटिच नइ रहितिस 


त ए दुनिया ह 


आगू कइसे बढ़तिस


*छत्तीसगढ़ माटी के गुणगान करत गीतकार रामेश्वर शर्मा जी लिखथें*-


एक सुमत हो घर अंगना ले बाहिर सब ला आना हे।


छत्तीसगढ़ ला सरग बना माटी के करज चुकाना हे।।


गरब करन सब ये माटी म खनिज संपदा हावय।


तांबा, लोहा, सोना, कोयला, सिमेंट, हीरा हावय।


महानदी, शिवनाथ, हसदो, इन्द्रावती, बोहावय।


मिहनत के फल हरियर सोना लहर लहर लहरावय।


छत्तीसगढ़ के गौरव-गाथा चारो अंग बगराना हे।।


*लाला फूलचंद श्रीवास्तव द्वारा रचित काव्य पंक्ति*


अइसन जनितेंव मंय चंदैनी जनम होईहंय चदैनिन हो


ललना कारी कलोरिया दुहवइतेंव मंय चंदैनी नहवइतेंव हो


मक्खन उबटन चंदन केसर चंदन हो


ललना जुरमिल सजाबो फूल सेज


मंय ललना झुलइतेंव हो...


*कथे कि गोदना धन बरोबर अमर लोक जाथे, गोदना परम्परा ला अपन कविता मा लेवत राम रतन सारथी जी कथें*


तोला का गोदना ला गोदंव ओ,


मोर दुलउरिन बेटी


नाक गोदा ले नाक मा फूली,


माथ गोदा ले बिंदिया।


बांह गोदा ले बांह बहुटिया,


हाथ गोदा ले ककनी।


तोला का गोदना...


*गेंदराम सागर जी द्वारा आसाढ़ महीना के चित्रण अउ छानी टपरे के एक बानगी देखव*


ओगरम गय हे करियेच करिया पल्हरा हे बउछाए।


खुमरी ओढ़े चढ़ गए डोकरा छानी म कउवाए।।


तरिया भर-भर पानी भर गय मेड़ पार म पोहे,


गगन-मगन हो हांसय नरवा-नरवा ल मोहे,


खेत-खार सब कुलकय नदिया सन्नाए बउराए।


खुमरी ओढ़े चढ़ गए डोकरा छानी म कउवाए।।


*सीताराम शर्मा जी नवा राज पाय जे बाद गाँव गँवई मा घलो नवा बिहान के आरो लेवत, जैविक खातू बनाये बर प्रेरित करत कहिथें कहिथें*


हम अपन गांव ल स्वर्ग बनाबो।


सुत उठ धरती ल शीश नवाबो


बड़े बिहान ले कमाये बर जाबो


कचरा घुरवा सबै ल जोरिके


गहिरा डबरा गांव बाहिर म खनिके


गोबर खाद बनाबो, अपन गांव ल स्वर्ग बनाबो।।


*छत्तीसगढ़ राज मा सुमता के आरो लेवत


सुखनवर हुसैन ' रायपुरी ' जी लिखथें*-


आंखी मिचका के मनखे ह मुंह फेरथे,


कोनो बछ्छर त ओ गोठ सुनही हमर।


हल चलाबो पछीना बहाबो अपन,


देखहू खेत सोनहा उगलही हमर।


ए हमर राज हे छत्तीसगढ़ राज हे,


सच कहंव अब इहां मान होही हमर।


*गीतकार,व्यंग्यकार रामेश्वर वैष्णव जी अपन अंदाज मा शब्द संजोवत कहिथें*


असली बात बतांव गिंया।


घाम मं होथे छांव गिंया।।


लबरा जबड़ गियानी हे,


मैंहर नइ पतियांव गिंया।


दुनिया मं मोर नांव हवय,


न इ जानय मोर गांव गिंया।


हें उकील उठलंगरा मन,


कैसे होय नियाव गिंया।


टेड़गामन सब झझकत हें


सिधवा मोर सुभाव गिंया।


पीठ पिछू गारी देथंय, 


आगू परतें पांव गिंया।


कांव कांव मांचे हावय,


अब मैं कइसे गांव गिंया।


मोला जिंहा बुलांय नहीं,


उंहा कभू नइ जांव गिंया।


*वरिष्ठ गीतकार पाठक परदेशी जी देश मा जान लुटाये शहीद मन जे सुरता करत लिखथें*-


सुरता रहि रहि शहीद के आथे।


भाव मन म देशभक्ति के जगाथे।।


होम देथे हाँसत-हाँसत, चढ़े अपन जवानी ल।


लिख देथे लहू के लाली, बलिदान के कहानी ल।।


मरके अमर होये के रद्दा देखाथे।।


*प्रोफेसर राजन यादव छत्तीसगढ़ महतारी ला भाव पुष्प अर्पित करत लिखथें-*


खूब कमावा अन उपजावा धर लव नांगर तुतारी ल।


घेरी-बेरी बंदत हवँ मैं छत्तीसगढ़ महतारी ल।।


राम करिन परतिग्या जिहाँ ओ सरगुजा के टेकरी  ल,


रतनपुर महमाई ल सुमिरौं शिवरीनारायेन सँवरी ल,


डोंगरगढ़ पीथमपुर राजिम रइपुर के दुधाधारी ल।


घेरी-बेरी बंदत हवँ मैं छत्तीसगढ़ महतारी ल।।


*आयुर्वेदाचार्य डॉ. सन्तराम देशमुख ' विमल ' दुख अउ अभाव के जिनगी ला घलो सुख मानत, उही मा जीये बर काहत लिखथें*-


जिनगी के सबो बीख हा, बनगे हय अमरीत।


जम्मो बिपदा ल गढ़-गढ़ के, लिख डारेंव मँय गीत।।


रद्दा खोजत तरिया, भारी मरत पियास,


हपटत गिरत रहेंव तब ले, नइ पायेंव बिसवास,


मोर मन हर पीरा सो जोरे, हावै सुघ्घर पिरीत।


जिनगी के सबो बीख हा, बनगे हय अमरीत।।


*बचपना के खेल मेल ला शब्द देवत शशि भूषण स्नेही जी लिखथें*


टायर के चक्का ल चलावन


तरीया म जाके धूम मचावन


जिंहाँ मन करे सुछिंदा घुमन


बेरा देखे बिना न घंटा ल गिन


कहाँ गय ओ सुग्घर दिन |


खेले हन डँडा-पचरँगा खेल


पैरा म भूँज के खावन  बेल


सोना चाँदी ल महँगा रहिस


हमर लकरी,लोहा अउ टीन


कहाँ गय ओ सुग्घर दिन |


जाड़ के मौसम म भुर्री तापन


चीरहा पेंट ल सीलन-कापन


पीपर पान के मोहरी बना के


बजावन जइसे सँपेरा के बीन


कहाँ गय ओ सुग्घर दिन |


*छंद के छ के  संस्थापक अरुण कुमार निगम जी, कटत रुख राई अउ ओखर अभाव मा होय समस्या के ला इंगित करत,निवारण बर पेड़ लगाय के किलौली करत हरिगीतिका छ्न्द मा कहिथें*-


झन हाँस जी, झन नाच जी , कुछु बाँचही, बन काट के ?


कल के  जरा  तयँ  सोच ले , इतरा नही नद पाट के ।


बदरा  नहीं  बिजुरी  नहीं , पहिली  सहीं  बरखा  नहीं


रितु  बाँझ  होवत  जात हे , अब खेत मन बंजर सहीं।।


झन  पाप  पुन  अउ  धरम ला, बिसरा कभू बेपार मा।


भगवान  के  सिरजाय  जल, झन  बेंच हाट-बजार मा ।।


तँय  रुख लगा  कुछु पुन कमा,  रद्दा  बना भवपार के ।


अपने - अपन   उद्धार  होही   ये   जगत - संसार के  ।।


*संस्कृति अउ संस्कार के बाना बोहे चोवाराम वर्मा बादल जी हा जेठौनी परब ला बरवै छ्न्द मा बाँधत लिखथें*-


कातिक एकादशी के, श्री हरि जाग।


देव मनुज के गढ़थे ,सुग्घर भाग।।


गाँव शहर मा होथे, अबड़ उछाह।


लहरा कस लहराथे, भगति अथाह।।


होथे पावन पूजा, पाठ उपास।


दियना रिगबिग रिगबिग, करय उजास।


*नता रस्ता पार परिवार सब संग जुड़ के रहे के संदेश देवत जलहरण घनाक्षरी मा दिलीप वर्मा जी लिखथें*-


खटिया के चार खुरा, बिना पाटी के अधूरा, 


गाँथबे नेवार कामा, कर ले विचार तँय। 


कहूँ रखे चार पाटी, कतको रहे वो खाँटी, 


बिना खुरा पाबे कहाँ, सोंच ले अधार तँय। 


राख खुरा पाटी सँग, गाँथ ले नेवार तँग, 


सुत फिर लात तान, रोज थक हार तँय।


सुख जिनगी म पाबे,गंगा रोज तें नहाबे, 


नता रिसता ल जोंड़, जिनगी सँवार तँय। 


*गाँव के बदलत रूप ला देख रमेश चौहान जी कुंडलियाँ छ्न्द मा लिखथें*-


घुरवा अउ कोठार बर, परिया राखँय छेक ।


अब घर बनगे हे इहाँ, थोकिन जाके देख ।।


थोकिन जाके देख, खेत होगे चरिया-परिया ।


बचे कहाँ हे गाँव, बने अस एको तरिया ।।


ना कोठा ना गाय, दूध ना एको चुरवा ।


पैरा बारय खेत, गाय ला फेकय घुरवा ।।


 *छत्तीसगढ़ के अमर शहीद वीर नारायण सिंह जी के वीरता ला शब्द मा बाँधत मनीराम साहू मितान जी के आल्हा छंद के एक बानगी*


सन् अट्ठारह सौ छप्पन मा, परय राज मा घोर दुकाल ।


बादर देवय धोखा संगी, मनखे मन के निछदिस खाल ।।


रहिस नवंबर सन्तावन मा, परे रहिस गा तारिक बीस।


सैनिक धरे चलिस इसमिथ हा, तइयारी कर दिन इक्कीस ।।


आग बरन गा ओकर आँखी, टक्क लगा के देखय घूर।


बइरी तुरते भँग ले बर जय, हाड़ा गोड़ा जावय चूर।।


सिंह के खाँडा लहरत देखयँ, बइरी सिर मन कट जयँ आप।


लादा पोटा बाहिर आ जयँ, लहू निथर जय गा चुपचाप।।


*कवि अमित कुमार साहू जी,भारत भुइयाँ ला भाव पुष्प अर्पित करत कुंडलियाँ छंद मा लिखथें*-


भारत भुइयाँ हा हवय, सिरतों सरग समान।


सुमता के उगथे सुरुज, होथे नवा बिहान। 


होथे नवा बिहान, फुलँय सब भाखा बोली।


किसिम किसिम के जात, दिखँय जी एक्के टोली।


कहे अमित कविराय, कहाँ अइसन जुड़ छँइयाँ।


सबले सुग्घर देश, सरग कस भारत भुइयाँ।


*प्लास्टिक कचरा के हानि बतावत राजकुमार बघेल जी रोला छ्न्द मा लिखथें*-


बनगे प्लास्टिक देख, काल ये सब जीवन बर ।


होवत हे उपयोग, फइल गे हवे घरो घर ।।


सड़े गले नइ जान, प्लास्टिक कूड़ा कचरा ।


येकर कर  उपचार, जीव बर होथे खतरा ।।


*भ्रूण हत्या अउ दहेज जइसे कुप्रथा ला ला छोड़े बर सार छ्न्द मा मोहन निषाद जी लिखथें*-


छोड़व अब लालच के रद्दा , झन दहेज ला लेवव ।


बन्द होय ये गलत रीति सब , शिक्षा अइसे देवव ।


होवय बंद भ्रूण के हत्या , परन सबे जी ठानव ।


बेटी बिन जिनगी हे सुन्ना , बेटा इन ला मानव ।।


*नशा के दुष्प्रभाव बतावत अमृतध्वनि छ्न्द मा अशोकधीवर जलक्षत्री जी लिखथें*


नशा नाश के जड़ हरे, येला महुरा जान।


तन मन धन क्षय हो जथे, कहना मोरो मान।।


कहना मोरो, मान आज हे, कतको मरथे।


बात ल धरबे, करनी करबे, तब दुख हरथे।।


कह "जलक्षत्री", खोलय पत्री, तँय देख दशा।


झन गा पीबे, जादा जीबे, अब छोड़ नशा।।


*मोबाइल फोन के महत्ता बतावत हेम साहू छप्पय छंद मा लिखथें*


मोबाइल के देख, हवय महिमा बड़ भारी।


करले सबसे गोठ, बता के दुनिया दारी।


शहर होय या गाँव, सबो मेर लगे टॉवर।


धरै हाथ मा फोन, बढ़े हमरो बड़ पॉवर।


पहुँचे झट संदेश हा, बाँचत हे हमरो समे।


सब मनखे ला देख ले, इहिमे ही रहिथे रमे।


*काल बरोबर हबरे कोरोना ले लड़े बर प्रेरित करत अजय साहू अमृतांशु जी के चौपाई*


कोरोना के अकथ कहानी।


संकट मा सब हिंदुस्तानी।।


मिलके सब झन येला छरबो।


हमर देश ले दुरिहा करबो।।


जब जब लोगन बाहिर जाही


कोरोना ला घर मा लाही।


बंद करव जी बाहिर जाना।


कोरोना ला काबर लाना।।


साफ सफाई राखव घर मा।


कोरोना हा मरही डर मा।।


घेरी भेरी हाथ ल धोना।


तब सिरतो मरही कोरोना।।


मास्क नाक मा होना चाही ।


मुँह ला छूना हवै मनाही।।


तीन फीट के दूरी राखव ।


जब जब ककरो ले तुम 


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