Sunday 31 March 2019

चंदा,विरह गीत(सार छंद)

विरह गीत(सार छंद)

तोर  रूप  दगहा  हे  चंदा,तभो  लुभाये  सबला।
मोर रूप हा चमचम चमकै,तबले तड़पौ अबला।

तोर कला ले मोर कला हा,हावै कतको जादा।
तभो मोर परदेशी बलमा,कहाँ निभाइस वादा।
चकवा रटन लगाये तोरे,मोर पिया दुरिहागे।
करधन ककनी बिछिया कँगना,रद्दा देख खियागे।
मोर रुदन सुन सुर ले भटके,बेंजो पेटी तबला।
तोर  रूप  दगहा  हे चंदा,तभो लुभाये सबला।

पाख अँजोरी अउ अँधियारी,घटथस बढ़थस तैंहा।
मया जिया मा हावै आगर,करौं बता का मैंहा।
कहाँ हिरक के देखे तभ्भो,मोर सजन अलबेला।
धीर धरे हँव आही कहिके,लाद जिया मा ढेला।
रोवै नैना निसदिन मोरे,भला गिनावौ कब ला?
तोर  रूप  दगहा हे चंदा,तभो लुभाये सबला।

पथरागेहे आँखी मोरे,निंदिया घलो गँवागे।
मोर रात दिन एक बरोबर,रद्दा जोहँव जागे।
तोर संग चमके रे चंदा,कतको अकन चँदैनी।
मोर मया के फुलुवा झरगे,पइधे माहुर मैनी।
जिया भीतरी बार दियना,रोज मनाथँव रब ला।
तोर  रूप  दगहा  हे  चंदा,तभो लुभाये सबला।

अबक तबक नित आही कहिके,मन ला धीर धरावौ।
आजा  राजा  आजा  राजा,कहिके  रटन  लगावौ।
पवन पेड़ पानी पंछी सब,रहिरहि के बिजराये।
कइसे करौं बता रे चंदा,पिया लहुट नइ आये।
काड़ी कस काया हा होगे,कपड़ा होगे झबला।
तोर  रूप  दगहा  हे चंदा,तभो लुभाये सबला।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

Saturday 23 March 2019

बलिदानी

बलिदानी (सार छंद)

कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।
देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।
महतारी के आन बान बर,कोन हा झेले गोली।
कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।
छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।
हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।
मुड़ी हिलामय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।
हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।
देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।
अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।
हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।
देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।
पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।
भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।
लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।
डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारी   मारी।
अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।
बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।
भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

शहीद दिवस,अमर रहे🙏💐