Friday 31 December 2021

लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)

 लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)


पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया।

अंतर्मन ला पबरित रख अउ, चाल चलन ला कर बढ़िया।


धरम करम धर जिनगी जीथें, सत के नित थामें झंडा।

खेत खार परिवार पार के, सेवा करथें बन पंडा।

मनुष मनुष ला एक मानथें, बुनें नहीं ताना बाना।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, नोहे ये कोनो हाना।

छत्तीगढ़िया के परिभाषा, दानी जइसे औघड़िया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


माटी ला महतारी कइथें, गारी कइथें चारी ला।

हाड़ टोड़ के सरग बनाथें, घर दुवार बन बारी ला।

देखावा ले दुरिहा रइथें, नइ जोरो धन बन जादा।

सिधवा मनखे बनके सबदिन, जीथें बस जिनगी सादा।

मेल मया मन माटी सँग मा, ले सेल्फी बस झन मड़िया।

पाटी पागा बपारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


कतको दुःख समाये रइथे, लाली लुगा किनारी मा।

महुर मेंहदी टिकली फुँदरी, लाल रचे कट आरी मा।

सुवा ददरिया करमा साल्हो, दवा दुःख पीरा के ए।

महल अटारी सब माटी ए, काया बस हीरा के ए।

सबदिन चमकन दे बस चमचम, जान बूझके झन करिया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


*छत्तीसगढ़िया(414) ल मात्रा भार मिलाय के सेती छत्तिसगढ़िया(44) पढ़े के कृपा करहू*

गजल- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

 गजल- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


बिछे जाल देख के मोर उदास हावे मन हा।

बुरा हाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।1


बढ़े हे गजब बदी हा, बहे खून के नदी हा।

छिले खाल देख के मोर उदास हावे मन हा।2


अभी आस अउ बचे हे, बुता खास अउ बचे हे।

खड़े काल देख के मोर उदास हावे मन हा।।3


गला आन मन धरत हे, सगा तक दगा करत हे।

चले चाल देख के मोर उदास हावे मन हा।।4


कती खोंधरा बनावँव, कते मेर जी जुड़ावँव।

कटे डाल देख के मोर उदास हावे मन हा।5


धरे हाथ मा जे पइसा, उही लेगे ढील भँइसा।

गले दाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।।6


कई खात हे मरत ले, ता कहूँ धरे धरत ले।

उना थाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।7


जे कहाय अन्न दाता, सबे मारे वोला चाँटा।

झुके भाल देख के  मोर उदास हावे मन हा।8


नशा मा बुड़े जमाना, करे नाँचना नँचाना।

नवा साल देख के मोर उदास हावे मन हा।9


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

नवा साल मा का नवा

 नवा साल मा का नवा


                   मनखे मन कस समय के उमर एक साल अउ बाढ़गे, अब 2021 ले 2022 होगे। बीते समय सिरिफ सुरता बनगे ता नवा समय आस। सुरुज, चन्दा, धरती, आगास, पानी, पवन सब उही हे, नवा हे ता घर के खूंटी मा टँगाय कलेंडर, जेमा नवा बछर भर के दिन तिथि बार लिखाय हे। डिजिटल डिस्प्ले के जमाना मा कतको महल अटारी मा कलेंडर घलो नइ दिखे, ता कतको गरीब ठिहा जमाना ले नइ जाने। आजकल जुन्ना बछर ला बिदा देय के अउ नवा बछर के परघवनी करे के चलन हे, फेर उहू सही रद्दा मा कम दिखथे। आधा ले जादा तो मौज मस्ती के बहाना कस लगथे। दारू कुकरी मुर्गी खा पी के, डीजे मा नाचत गावत कतको मनखे मन घुमत फिरत होटल,ढाबा, नही ते घर,छत मा माते रहिथे। अब गांव लगत हे ना शहर सबे कोती अइसनेच कहर सुनाथे, भकर भिकिर डीजे के शोर अउ हाथ गोड़ कनिहा कूबड़ ला झटकारत नवा जमाना के अजीब डांस संगे संग केक के कटई, छितई अउ एक दूसर ऊपर चुपरई, जइसन अउ कतकोन चोचला हे, जेला का कहना । 

              भजन पूजन तो अन्ग्रेजी नवा साल संग मेल घलो नइ खाय, ना कोनो कोती देखे बर मिले। लइका सियान सब अंग्रेजी नवा साल के चोचला मा मगन अधरतिहा झूमरत रहिथे, अउ पहात बिहनिया खटिया मा अचेत, वाह रे नवा साल। फेर आसाढ़, सावन, भादो ल कोनो जादा जाने घलो तो नही, जनवरी फरवरी के ही बोलबाला हे। ता भले चैत मा नवा साल मनाय के कतको उदिम करन, नवा महीना के रूप मा जनवरी ही जीतथे, ओखरे संग ही आज के दिन तिथि चलथे। खैर समय चाहे उर्दू मा चले, हिंदी मा चले या फेर अंग्रेजी मा, समय तो समय ये, जे गतिमान हे। सूरुज, चन्दा, पानी पवन सब अपन विधान मा चलत हे, मनखे मन कतका समय मा चलथे, ते उंखरें मन ऊपर हें। समय मा सुते उठे के समय घलो अब सही नइ होवत हे। लाइट, लट्टू,लाइटर रात ल आँखी देखावत हे, ता बड़े बड़े बंगला सुरुज नारायण के घलो नइ सुनत हे। मनखे अपन सोहलियत बर हाना घलो गढ़ डरे हे, जब जागे तब सबेरा---- अउ जब सोय तब रात। ता ओखर बर का एक्कीस अउ का बाइस, हाँ फेर नाचे गाये खाय पीये के बहाना, नवा बछर जरूर बन जथे।आज मनखे ना समय मा हे, ना विधान मा, ना कोनो दायरा मा। मनखे बलवान हे , फेर समय ले जादा नही।

           वइसे तो नवा बछर मा कुछु नवा होना चाही, फेर कतका होथे, सबे देखत हन। जब मनुष नवा उमर के पड़ाव मा जाथे ता का करथे? ता नवा साल मा का करही? केक काटना, नाचना गाना, पार्टी सार्टी तो करते हे, बपुरा मन।वइसे तो कोनो नवा चीज घर आथे ता वो नवा कहलाथे, फेर कोनो जुन्ना चीज ला धो माँज के घलो नवा करे जा सकथे। कपड़ा,ओन्हा, घर, द्वार, चीज बस सब नवा बिसाय जा सकथे, फेर तन, ये तो उहीच रहिथे, अउ तन हे तभे तो चीज बस धन रतन। ता तन मन ला नवा रखे के उदिम मनखे ला सब दिन करना चाही। फेर नवा साल हे ता कुछ नवा, अपन जिनगी मा घलो करना चाही। जुन्ना लत, बैर, बुराई ला धो माँज के, सत, ज्ञान, गुण, नव आस विश्वास ला अपनाना चाही। तन अउ मन ला नवा करे के कसम नवा साल मा खाना चाही, तभे तो कुछु नवा होही।  जुन्ना समय के कोर कसर ला नवा बेरा के उगत सुरुज संग खाप खवात नवा करे के किरिया खाना चाही। जुन्ना समय अवइया समय ला कइसे जीना हे, तेखर बारे मा बताथे। माने जुन्ना समय सीख देथे अउ नवा समय नव आस। इही आशा अउ नव विश्वास के नाम आय नवा बछर। हम नवा जमाना के नवा चकाचौंध  तो अपनाथन, फेर जिनगी जीये के नेव ला भुला जाथन। हँसी खुसी, बोल बचन, आदत व्यवहार, दया मया, चैन सुकून, सेवा सत्कार आदि मा का नवा करथन। देश, राज, घर बार बर का नवा सोचथन, स्वार्थ ले इतर समाज बर, गिरे थके, हपटे मन बर का नवा करथन। नवा नवा जिनिस खाय पीये,नवा नवा जघा घूमे फिरे  अउ नाचे गाये भर ले नवा बछर नवा नइ होय।

               नवा बछर ला नवा करे बर नव निर्माण, नव संकल्प, नव आस जरूरी हे। खुद संग पार परिवार,साज- समाज अउ देश राज के संसो करना हमरे मनके ही जिम्मेदारी हे। जइसे  कोनो हार जीते बर सिखाथे वइसने जुन्ना साल के भूल चूक ला जाँचत परखत नवा साल मा वो उदिम ला पूरा करना चाही। कोन आफत हमला कतका तंग करिस, कोन चूक ले कइसे निपटना रिहिस ये सब जुन्ना बेरा बताथे, उही जुन्ना बेरा ला जीये जे बाद ही आथे नव आस के नवा बछर। ता आवन ये नवा बछर ला नवा बनावन अउ दया मया घोर के नवा आसा डोर बाँधके, भेदभाव, तोर मोर, इरखा, द्वेष ला जला, सबके हित मा काम करन, पेड़,प्रकृति, पवन,पानी, छीटे बड़े जीव जन्तु सब के भला सोचन, काबर कि ये दुनिया सब के आय, पोगरी हमरे मनके नही, बिन पेड़,पवन, पानी अउ जीव जंतु बिना अकेल्ला हमरो जिनगी नइहे। नवा बछर के बहुत बहुत बधाई-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Thursday 30 December 2021

कुम्हड़ा पाक/ कोम्हड़ा पाग

 कुम्हड़ा पाक/ कोम्हड़ा पाग


                    कुम्हड़ा/मखना/ कोम्हड़ा के नार पहली घरो घर छानी म चारो कोती लामे रहय, अउ कोनो घर दर्जन भर त, कोनो घर कोरी कोरी घलो फरे। जेला सब पारा परोसी अउ सगा सोदर मन संग बाँट बिराज के खायें।  घर के बारी, अउ ओरिछा के खाल्हे आसाढ़ के लगती बोवाय अउ कुँवार कातिक म तैयार हो जाय। कुम्हड़ा पाक नवा खाई, दशहरा, देवारी, झरती कोठार अउ मेला मंड़ई के प्रमुख व्यंजन आय। घी ल कड़काके ओमा करिया तिली झोंक, कुटी कुटी कटाय या फेर किसाय कुम्हड़ा संग गुड़/शक्कर डार बने चूरत ले भूँज दे, अउ सुवाद बढ़ाये बर लौंग, लायची छीत दे, बस बन गे कुम्हड़ा पाक।  कोनो भी घर के हाँड़ी म ये कलेवा बने त पारा परोसी मन महक पाके,सहज जान जाय, तेखरे सेती कटोरी भर भर परोसी मन ल बाँटे घलो जाय। बने के बाद पातर रोटी,फरा अउ चीला संग कटोरी कटोरी नपा नपा के खाय के अलगे मजा रहय, जउन खाय होही तेखर मुँह म, सुरता करत खच्चित पानी आ गे होही। 

                          मेवा मिठाई अउ किसिम किसिम के कलेवा पहली घलो रिहिस, फेर कुम्हड़ा पाक के अपन अलग दबदबा रिहिस,माँग रिहिस। बिना ये कलेवा के कुँवार, कातिक, अगहन अउ पूस के घलो कोनो तीज तिहार या फेर उपास धास नइ होवत रिहिस। नवा जमाना म ये कलेवा धीर लगाके सिरावत जावत हे, अइसे घलो नही कि आज बनबे नइ करे, बनथे फेर गिनती के घर म। कोनो भी घरेलू कलेवा/व्यंजन बर बनेच जोरा करेल लगथे, त वइसने जमकरहा गजब सुवाद घलो तो रथे। जइसे गाजर के हलवा रइथे, उसने कोम्हड़ा पाग घलो रथे, पर गाजर के हलवा के चलन सबे कोती हे,कोम्हड़ा पाक  नँदावत जावत हे। आज मनखें शहरी चकाचोंध अउ महिनत देख तुरते ताही मिलइया फास्ट फूड कोती झपावत जावत हे, ते चिंतनीय हे। कुम्हड़ा पाक कस हमर सबे पारम्परिक  कलेवा मुंह के स्वाद के संगे संग शरीर ल ताकत, विटामिन, खनिज अउ  रोग राई ले घलो बचाथे।  कुम्हड़ा कस लौकी, रखिया, तूमा ल घलो पाके या पागे जाथे। रखिया पाक तो पेड़ा के रूप म भारत भर म प्रसिद्ध हे, फेर कुम्हड़ा  पाक के दायरा सिमित होवत जावत हे।  

                            पागे के अलावा कुम्हड़ा के साग,कढ़ी, बड़ी के घलो जमकरहा माँग हे। कुम्हड़ा पाक आजो गाँव के पसंदीदा कलेवा म एक हे, जेला मनखें मन एक बेर जरूर पाकथे, अउ खाथें। शहर कोती या शहर लहुटत गाँव, केक पिज़्ज़ा, बर्गर, चांट समोसा के चक्कर म,धीर लगाके ये कलेवा ल छोड़त जावत हे। घर म बनइया कलेवा ल मन लगाके बनाये अउ मन भर खाय के अलगे आनन्द हे। आज मनखे मन ल मारत हे, अउ ऊपरी देख दिखावा कोती जादा भागत हे, इही कारण आय के परम्परागत चीज दुरिहा फेकात जावत हे, उही म एक हे कोम्हड़ा पाग।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस म,, सरसी छंद(गीत)-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" चाय

 अंतर्राष्ट्रीय चाय दिवस म,,


सरसी छंद(गीत)-जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                  चाय


लौंग लायची दूध डार के, बने बना दे चाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


चले चाय हा सरी जगत मा, का बिहना का साम।

छोटे बड़े सबे झन रटथे, चाय चाय नित नाम।

सुस्ती भागे चाय पिये ले, फुर्ती तुरते आय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


साहब बाबू सगा बबा के, चाय बढ़ाये मान।

चाय पुछे के हवै जमाना, चाय लाय मुस्कान।

रथे चाय के कतको आदी, नइ बिन चाय हिताय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


छठ्ठी बरही मँगनी झँगनी, बिना चाय नइ होय।

चले चाय के सँग मा चरचा, मीत मया मन बोय।

घर दुवार का होटल ढाबा, सबके मान बढ़ाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


चाहा पानी बर दे खर्चा, कहै कई घुसखोर।

करे चापलूसी कतको मन, चाहा कहिके लोर।

संझा बिहना चाय पियइया, चाय चाय चिल्लाय।

अदरक तुलसी पात मिलादे, पियत मजा आ जाय।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको,कोरबा

मोर गाँव के मड़ई- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

 मोर गाँव के मड़ई- जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया


               किनकिन किनकिन जनावत पूस के जाड़ म ज्यादातर दिसम्बर के आखरी सोमवार या फेर जनवरी के पहली सोमवार के होथे, मोर गाँव खैरझिटी के मड़ई। हाड़ ल कपावत जाड़ म घलो मनखे सइमो सइमो करथे। राजनांदगांव- घुमका-जालबांधा रोड म लगे दईहान म, मड़ई के दिन गाय गरुवा के नही, बल्कि मनखे मनके भीड़ रथे। मड़ई के दू दिन पहली ले रामायण के आयोजन घलो होथे, ते पाय के सगा सादर घरो घर हबरे रइथे। लगभग दू हजार के जनसंख्या अउ तीर तखार 2-3 किलोमीटर के दुरिहा म चारो दिशा म बसे गाँव के मनखे मन, जब संझा बेरा मड़ई म सकलाथे, त पाँव रखे के जघा घलो नइ रहय। अउ जब मड़ई के बीचों बीच यादव भाई मन बैरंग धरके दोहा पारत,  दफड़ा दमउ संग नाचथे कुदथे त अउ का कहना। बिहना ले रंग रंग के समान, साग भाजी अउ मेवा मिठाई के बेचइया मन अपन अपन पसरा म ग्राहक मनके अगोरा करत दिखथें। एक जुवरिहा भीड़ बढ़त जथे, अउ संझौती 4-5 बजे तो झन पूछ। दुकानदार मनके बोली, रइचुली के चीं चा, लइका सियान मनके शोर अउ यादव भाई मनके दोहा दफड़ा दमउ के आवाज म पूरा गाँव का तीर तखार घलो गूँज जथे। मड़ई के सइमो सइमो भीड़ अउ शोर सबके मन ल मोह लेथे।

                        मड़ई म सबले जादा भीड़ भाड़ दिखथे, मिठई वाले मन कर। वइसे तो हमर गाँव म तीन चार झन मिठई वाले हे, तभो दुरिहा दुरिहा के मिठई बेचइया मन आथे, अउ रतिहा सबके मिठई घलो उरक जाथे। साग भाजी के पसरा म सबले जादा शोर रथे, उंखरो सबो भाजी पाला चुकता सिरा जथे। खेलौना, टिकली फुँदरी, झूला सबे चीज के एक लाइन म पसरा रहिथे। सबे बेचइया मन  भारी खुश रइथे,अउ अपन अपन अंदाज म हाँक पारथे। होटल के गरम भजिया-बड़ा, मिठई वाले के गरम जलेबी, लइका सियान सबे ल अपन कोती खीच लेथे।मड़ई म लगभग सबे समान के बेचइया आथे, चाहे फोटू वाला होय, चाहे साग-भाजी या फेर मनियारी समान। नवा नवा कपड़ा लत्ता म सजे सँवरे मनखे मन, चारो कोती दसो बेर घूम घूम के मजा उड़ावत समान लेथे। रंग रंग के फुग्गा, गाड़ी घोड़ा म लइका मन त, टिकली फुँदरी म दाई दीदी मनके मन रमे रइथे।

                   मड़ई के दिन मोर का, सबे के खुशी के ठिकाना नइ रहय।  ननपन ले अपन गाँव के मड़ई ल देखत घूमत आये हँव, आजो घलो घुमथों। पहली पक्की सड़क के जघा मुरूम वाले सड़क रिहिस, तीर तखार के मनखे मन रेंगत अउ गाड़ी बैला म घलो हमर गांव के मड़ई म आवँय, सड़क अउ जेन मेर मड़ई होय उँहा के धुर्रा के लाली आगास म छा जावय, अइसे लगय कि डहर बाट म आगी लग गेहे, जेखर लपट ऊपर उठत हे, अइसनेच हाल मड़ई ठिहा के घलो रहय। फेर सीमेंट क्रांकीट के जमाना म ये दृश्य अब नइ दिखे। चना चरपट्टी के जघा अब कोरी कोरी गुपचुप चाँट के ठेला दिखथे, संगे संग अंडा चीला अउ एगरोल के ठेला घलो जघा जघा मड़ई म अब लगे रहिथे। अब तो बेचइया मन माइक घलो धरे रइथे, उही म चिल्ला चिल्लाके अपन समान बेचत दिखथे। नवा नवा  किसम के झूलना घलो आथे, फेर अइसे घलो नइहे कि पुराना झूलना नइ आय। रात होवत साँठ पहली मड़ई लगभग उसल जावत रिहिस, फेर अब लाइट के सेती 7-8 बजे तक घलो मड़ई म चहल पहल रहिथे। होटल के भजिया बड़ा पहली घलो पुर नइ पावत रहिस से अउ आजो घलो नइ पुरे। पान ठेला के पान अउ गरम जलेबी बर पहली कस आजो लाइन लगाए बर पड़थे। मिठई वाले मन पहली गाड़ा म आवंय, अब टेक्कर,मेटाडोर म आथें। मड़ई के दिन बिहना ले गाँव म पहली खेल मदारी वाले वाले घलो आवत रिहिस फेर अब लगभग नइ आवय। पहली कस दूसर गाँव के मनखे मन घलो जादा नइ दिखे। 

                कभू कभू कोनो बछर दरुहा मंदहा अउ मजनू मनके उत्लंग घलो देखे बर मिलय, उनला बनेच मार घलो पड़े। गाँव के कोटवार, पंच पटइल के संग अब पुलिस वाला घलो दिखथे, ते पाय के झगड़ा लड़ई पहली कस जादा नइ होय। मैं मड़ई म नानकुन रेहेंव त दाई  मन संग घूमँव, अउ बड़े म संगी मन  संग, अब लइका लोग ल घुमावत घुमथों अउ संगी मन संग घलो। संगी संगवारी मन संग पान खाना, होटल म भजिया बड़ा खाना, एकात घाँव रयचूली झूलना, फोटू वाले ले फोटू लेना, मेहंदी लगवाना, खेलौना लेना अउ आखिर म मिक्चर मिठई लेवत घर चल देना, मड़ई म लगभग मोर सँउक रहय। एक चीज अउ पहली कस कुसियार मड़ई म नइ आय ते खलथे। स्कूल के गुरुजी मन संग बिहना घूमँव अउ संझा संगी संगवारी मन संग। पहली घर म जतेक भी सगा आय रहय, मड़ई के दिन सब 2-4 रुपिया देवय,ताहन का कहना दाई ददा के पैसा मिलाके 10, 20 रुपिया हो जावत रिहिस, जेमा मन भर खावन अउ खेलोना घलो लेवन, आज 500-600 घलो नइ पूरे। समय बदलगे तभो मोर गाँव के मड़ई लगभग नइ बदले हे, आजो गाँव भर जुरियाथे, कतको ब्रांड, मॉल-होटल आ जाय छा जाय, तभो गाँव भर अउ तीर तखार के मनखें मड़ई के बरोबर आंनद लेथे। मड़ई के दिन रतिहा बेरा नाचा पहली कस आजो होथे। *जिहाँ मन माड़ जाय, उही मड़ई आय।* जब मड़ई भीतर रबे, त मजाल कखरो मन, मड़ई ले बाहिर भटकय। आप सब ल मोर  गाँव के मड़ई के नेवता हे।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

..खेती अपन सेती.......

 जय जवान जय किसान


......खेती अपन सेती.......

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किसन्हा के भाग मेटा झन जाय |

बाँचे-खोंचे भुँइया बेचा झन जाय ||


भभकत हे चारो मुड़ा ईरसा के आगी,

कुंदरा  किसनहा के लेसा  झन जाय |


अँखमुंदा भागे नवा जमाना के गाड़ी,

किसनहा बपुरा मन रेता  झन जाय|


मूड़  मुड़ागे,ओढ़ना - चेंदरा चिरागे,

फेर सिर पागा, गल फेटा झन जाय|


बधथन बधना, बिधाता तीर जाके रात-दिन,

कि सावन-भादो भर गोड.के लेटा झन जाय|


भूंजत हे भुंजनिया, सब बिजरात हे हमला,

अवइया पीढ़ी ल खेती बर चेता झन जाय |


हँसिया-तुतारी,नांगर -बइला-  गाडी़,

कहीं अब इती-उती फेका झन जाय |


साहेब बाबू बने के बाढ़त हे आस ,

देख के हमला किसानी के पेसा झन जाय|


दँउड़े हन खेत-खार म खोर्रा पॉंव घाव ले,

कहूँ बंभरी  कॉटा  तहूँ ल ठेसा झन जाय |


नइ धराय मुठा म् रेती, खेती अपन सेती,

भूख मरे बर खेत कखरो बेटा झन जाय|


                 जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

                      बाल्को( कोरबा)


किसान दिवस के सादर बधाई।

लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)

 लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)


पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया।

अंतर्मन ला पबरित रख अउ, चाल चलन ला कर बढ़िया।


धरम करम धर जिनगी जीथें, सत के नित थामें झंडा।

खेत खार परिवार पार के, सेवा करथें बन पंडा।

मनुष मनुष ला एक मानथें, बुनें नहीं ताना बाना।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, नोहे ये कोनो हाना।

छत्तीगढ़िया के परिभाषा, दानी जइसे औघड़िया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


माटी ला महतारी कइथें, गारी कइथें चारी ला।

हाड़ टोड़ के सरग बनाथें, घर दुवार बन बारी ला।

देखावा ले दुरिहा रइथें, नइ जोरो धन बन जादा।

सिधवा मनखे बनके सबदिन, जीथें बस जिनगी सादा।

मेल मया मन माटी सँग मा, ले सेल्फी बस झन मड़िया।

पाटी पागा बपारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


कतको दुःख समाये रइथे, लाली लुगा किनारी मा।

महुर मेंहदी टिकली फुँदरी, लाल रचे कट आरी मा।

सुवा ददरिया करमा साल्हो, दवा दुःख पीरा के ए।

महल अटारी सब माटी ए, काया बस हीरा के ए।

सबदिन चमकन दे बस चमचम, जान बूझके झन करिया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


*छत्तीसगढ़िया(414) ल मात्रा भार मिलाय के सेती छत्तिसगढ़िया(44) पढ़े के कृपा करहू*

Wednesday 22 December 2021

.....खेती अपन सेती.......


 

जय जवान जय किसान


......खेती अपन सेती.......

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किसन्हा के भाग मेटा झन जाय |

बाँचे-खोंचे भुँइया बेचा झन जाय ||


भभकत हे चारो मुड़ा ईरसा के आगी,

कुंदरा  किसान  के  लेसा  झन जाय |


अँखमुंदा भागे नवा जमाना के गाड़ी,

हमर कस रेंगइया मन रेता  झन जाय|


मूड़  मुड़ागे,ओढ़ना - चेंदरा चिरागे,

फेर सिर पागा, गल फेटा झन जाय|


बधथन बधना, बिधाता तीर जाके रात-दिन,

कि सावन-भादो भर गोड.के लेटा झन जाय|


भूंजत हे भुंजनिया, सब बिजरात हे हमला,

अवइया पीढ़ी ल खेती बर चेता झन जाय |


हँसिया-तुतारी,नांगर -बइला-  गाडी़,

कहीं अब इती-उती फेका झन जाय |


साहेब बाबू बने के बाढ़त हे आस ,

देख के हमला किसानी के पेसा झन जाय|


दँउड़े हन खेत-खार म खोर्रा पॉंव घाव ले,

कहूँ बंभरी  कॉटा  तहूँ ल ठेसा झन जाय |


नइ धराय मुठा म् रेती, खेती अपन सेती,

भूख मरे बर खेत कखरो बेटा झन जाय|


                 जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

                      बाल्को( कोरबा)


किसान दिवस के सादर बधाई।

Friday 10 December 2021

छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ छंद के छ परिवार

 छत्तीसगढ़ी साहित्य अउ छंद के छ परिवार


                    9 मई 2016 म, जनकवि कोदूराम दलित जी के सुपुत्र श्री अरुण निगम जी द्वारा स्थापित ऑनलाइन वाट्सअप कक्षा छंद के छ, छत्तीसगढ़ी साहित्य म छंदबद्ध गीत कविता के बाढ़ लादिस। 2016 ले लेके आज 2021 तक कुल 17 सत्र सरलग संचालित हे, जेमा लगभग 50,60 प्रकार के छंद ल छत्तीसगढ़ के लगभग सबे जिला के 250 ले जादा कवि मन सीखत अउ सिखावत हे। आवन छंद के छ ल बने ढंग ले जानन--


*काय ये छंद के छ*- 

वइसे तो "छंद के छ" श्री अरुण निगम जी द्वारा 2015 म प्रकाशित एक पुस्तक ए, जेमा लगभग 50 प्रकार के छंद, विधान अउ एक एक उदाहरण सहित छपे हे। छत्तीसगढ़ी म छंदमय काव्य ल पुष्पित पल्लवित करे बर जनकवि श्री कोदूराम दलित जी के नाम सामने आथे, ओखरे लिखे सियानी गोठ ले प्रभावित होके, दलित जी के सपना ल साकार करे बर सुपुत्र श्री अरुण निगम जी विचार किरिन कि मैं छंद सीखे के बाद 2 ले 4 पुस्तक अउ छपा सकत हँव, फेर यदि ये विधान ल छत्तीसगढ़ के कवि मन ल बताहूँ त, सिरिफ 2,4 छंदमय पुस्तक नही बल्कि कोरी कोरी पुस्तक छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य के मान बढ़ाही। इही सोच के श्री निगम जी अपन दू चार करीबी अउ बने लिखइया कवि मन ल मना के, मई 2016 म, सोसल मीडिया के सदुपयोग करत "छंद के छ" नामक पहली सत्र के कक्षा चलाइन। जेमा  छंद के मूलभूत जानकारी अउ मात्रा गणना ले चालू करके छंद कइसे लिखे जाथे तेखर बारे म एक एक करके सिखाये बताये लगिन। सत्र  एक के बाद दूसरा अउ दूसरा सत्र के बाद तीसरा सत्र चले लगिस, साधक मन  लगाके छन्द लिखे पढ़े लगिन। सत्र बढ़त गिस अउ छंद के छ के नाम घलो बढ़त गिस, दुरिहा दुरिहा जिला के कवि मन छंद सीखे पढ़े मन दिलचस्पी देखात गिन। ये प्रकार ले सिरिफ तीने सत्र म "छंद के छ" के नाम के चर्चा, न सिर्फ सोसल मीडिया म बल्कि छत्तीसगढ़ के जमे नवा जुन्ना कवि/ लेखक मन करे लगिन। आज छंद के छ एक आंदोलन के रूप ले चुके हे, जेमा छत्तीसगढ़ के लगभग सबे जिला के साधक मन एक परिवार के रूप म गुरु शिष्य परम्परा के निर्वहन करत छंद सीखत सिखावत हे। अब यदि छत्तीसगढ़ म कोनो ल कहन कि, छंद के छ काय ए? त ये सिर्फ एक पुस्तक नही, बल्कि एके जवाब आथे- छंद सीखे सिखाये के आन लाइन कक्षा। छत्तीसगढ़ प्रतियोगी परीक्षा म आन लाइन गुरुकुल के नाम से छंद के छ  ल जाने जाथे।  कम शब्द म कहन त---छंद के छ संयम अउ समर्पण ले सुसज्जित, एक आन लाइन कक्षा ए, एक आंदोलन ए, एक परिवार ए।


*हर शनिवार अउ रविवार के होथे आनलाइन गोष्ठी के आयोजन*- 

छंद एक शास्त्रीय विधा आय, जे विशेष मात्रा अउ अपन विशेष लय के कारण विविध नाम ले जाने जाथे। जइसे दोहा छंद, सोरठा छंद, रोला छंद, कुंडलियाँ छंद, अमृतध्वनि छंद, आल्हा छंद, बरवै छंद -------आदि आदि। सबे छंद के मात्रा विधान के संगे संग लय ताल घलो अलग अलग होथे। छंद के छ के मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ी साहित्य ल पोठ करना हे, एखर संगे संग छंदकार ल लिखे के साथ पढ़े बर घलो सिखाना हे, तभे तो मार्च 2017 ले सरलग हर शनिवार अउ रविवार के आनलाइन गोष्ठी के आयोजन होथे। जेमा सबे साधक मन बढ़ चढ़के भाग लेथें। साधक मन ल कोन छंद ल कइसे  लिखना हे, वो उँखर कक्षा म सिखाये जाथे, अउ कोन छंद ल कइसे पढ़ना या गाना हे, तेला गोष्ठी म। गोष्ठी म परिपक्व होके, छंद परिवार के साधक मन कवि सम्मेलन के मंच मन म घलो छंदबद्ध  गीत कविता के प्रस्तुति देवत हें, अउ ताली बटोरत हें। छंद के छ के ही प्रभाव ए, जे आजकल कवि सम्मेलन के मंच मन म घलो छंदबद्ध विविध  गीत,कविता पढ़े सुने जावत हे। गोष्ठी के एक अउ खास बात हे- हर सप्ताह अलग अलग साधक मन ल गोष्ठी के संचालन करे के दायित्व देय जाथे, जेखर ले हर साधक संचालन करे बर सीखत हें।  गोष्ठी के दिन कोनो परब सपड़ जथे त वो दिन वो परब या फेर दिवस आधारित गोष्ठी होथे, जेमा सबो साधक मन एके प्रकार के विषय म गीत कविता प्रस्तुत करथें। जइसे होली हे, त सब साधक होली आधारित काव्य पाठ करथें। गोष्ठी म बीच बीच म छत्तीसगढ़ के विज्ञ साहित्यकार, गीतकार, कलाकार मन पहुना बनके घलो आथें, अउ मन लगाके छंदबद्ध गीत कविता सुनके आशीष देथें,  एखर से वो पहुना मन छंद परिवार के  नवा जुन्ना साधक मन ला जानथें अउ आपसी मया मेल बढ़थे। छत्तीसगढ़ के कतको नामी शक्स मन छ्न्द के छ परिवार के गोष्ठी म पहुना बनके आयें हें, जेमा  लोक गायिका स्वर कोकिल श्री मति कविता वासनिक जी, कवियित्री अउ अभिनेत्री श्री मति संतोष झाँझी जी, वरिष्ठ साहित्यकार सरला शर्मा जी, गजलकार श्री दिनेश  गौतम जी, अभिनेत्री अउ गायिका श्रीमती शैलजा ठाकुर जी, गीतकार, गायक श्री महादेव हिरवानी जी, साहित्यकार बलदाऊ राम  साहू जी, गजलकार जनाब लतीफ खान जी, साहित्यकार, प्रकाशक अउ शिक्षाविद श्री सुधीर शर्मा जी, वरिष्ठ साहित्यकार गजलकार श्री माणिकविश्वकर्मा नवरंग जी, लोक गायिका श्री मति अनुराग ठाकुर ------आदि के अलावा कई बड़े साहित्यकार अउ कलाकार मन अतिथि के रूप म शामिल हो चुके हे। उहू मन छंद परिवार के अइसन उदिम ले भारी खुश होइन,अउ रंग रंग के छंद के संगे संग सुमधुर राग रंग ल सुनके खूब प्रशंसा करिन। 2017 ले अनवरत चलत छंदबद्ध काव्य गोष्ठी आजो राग रंग के आकर्षण के केंद्र होथे।


*छंद के छ के सत्र अउ साधकगण*


  सत्र 1 ले लेके सत्र17 तक, लगभग सबे जिला के साधक मन शामिल हें,नाम गिनावन त- जशपुर, रायगढ़, कोरबा, जांजगीर चाम्पा, मुंगेली, बिलासपुर, बलौदाबाजार, रायपुर, दुर्ग, भिलाई, राजनांदगांव, बालोद, महासमुंद, गरियाबन्द, कबीरधाम, कांकेर आदि।


*छन्द के छ - सत्रवार साधक*


सत्र - 1 (09 मई 2016)

1. हेमलाल साहू 

2. रमेशकुमार सिंह चौहान, 

3. सुनील शर्मा 

4. सूर्यकान्त गुप्ता 

5. मिथिलेश शर्मा 

6. लोचन देशमुख 

7. देवेन्द्र हरमुख 

8. श्रीमती शकुन्तला शर्मा

9. मिलन मलरिहा


सत्र - 2  (28 सितंबर 2016)

1. चोवाराम वर्मा 

2. गजानन पात्रे 

3. दिलीप कुमार वर्मा 

4. कन्हैया साहू 

5. असकरण दास जोगी 

6. सुनील शर्मा

7. सुखन जोगी 

8. श्रीमती बसंती वर्मा 

9. श्रीमती रश्मि गुप्ता 

10. श्रीमती आशा देशमुख

11. रेखा पालेश्वर


सत्र - 3 (07 जनवरी 2017) 

1. ज्ञानुदास मानिकपुरी 

2. मनीराम साहू 

3. जितेंद्र वर्मा खैरटिया 

4. मोहनलाल वर्मा

5. हेमंत मानिकपुरी 

6. दुर्गाशंकर इज्जतदार 

7. अजय अमृतांशु 

8. श्रीमती रश्मि गुप्ता

9. सुखदेव सिंह अहिलेश्वर



सत्र - 4 ब(29 अप्रैल 2017)

1. आर्य प्रजापति 

2. मोहन कुमार निषाद 

3. महेतरू मधुकर 

4. संतोष फरिकार 

5. तेरस राम कैवैर्त्य 

6. पुखराज यादव 

7. सुरेश पैगवार

8. ललित साहू जख्मी  

9. श्रवण साहू 

10. श्रीमती दीपिका झा

11. बलराम चंद्रकार


सत्र 4 अ - (29 अप्रैल 2017) 

1. पुष्कर सिंह राज @

2. राजेश कुमार निषाद 

3. अरुण कुमार वर्मा @

4. अनिल जांगड़े गौंतरिहा @

5. जितेंद्र कुमार मिश्र @

6. पोखन जायसवाल 

7. दिनेश रोहित चतुर्वेदी @

8. जगदीश हीरा साहू 

9. कौशल कुमार साहू 

10. तोषण चुरेन्द्र


सत्र - 5 (28 सितंबर 2017) 

1. पुरुषोत्तम ठेठवार 

2. विद्यासागर खूँटे @

3. मेहतरु मधुकर @

4. परमेश्वर अंचल @

5. बोधनराम निषादराज 

6. मथुरा प्रसाद वर्मा

7. श्रीमती ज्योति गभेल 

8. श्रीमती नीलम जायसवाल 

9. श्रीमती प्रियंका गुप्ता @

10. श्रीमती आशा आजाद


सत्र - 6   (10 जनवरी 2018)

1. राजकिशोर धीरही 

2. रामकुमार साहू 

3. ललित साहू जख्मी 

4. दीनदयाल टंडन 

5  जगदीश हीरा साहू 

6. गुमान प्रसाद साहू 

7 मीता अग्रवाल 

8. बलराम चंद्रकार 

9. शुचि भवि 

10. बालक दास निर्मोही 

11. कुलदीप सिन्हा 

12.राम कुमार चंद्रवंशी 

13. महेंद्र कुमार माटी 

14. अनिल पाली 

15. धनसाय यादव 

16. ईश्वर लाल साहू आरुग 

17. गजराज दास महंत 



सत्र - 7 (अ) 04 जून 2018

1. अशोक धीवर जलक्षत्री 

2. राधेश्याम पटेल 

3. सावन गुजराल 

4.उमाकांत टैगोर 

5. राजकुमार बघेल 

6. नवीन कुमार तिवारी @

7. निर्मल राज @

8. योगेश शर्मा @

9. सीमा साहू @

10. सुधा शर्मा 

11. केवरा मीरा यदु



सत्र 7 (ब)  04 जून 2018

1.दीपक कुमार साहू 

2.मिनेश कुमार साहू 

3. द्वारिका प्रसाद लहरे 

4. संदीप परगनिहा @

5. महेंद्र कुमार बघेल 

6. गजराज दास महंत 

7. युवराज वर्मा @

8. हीरालाल गुरुजी 

9. अनुभव तिवारी @

10. ईश्वर साहू बंधी

 

सत्र - 8 (10 जनवरी 2019)

1. गीता विश्वकर्मा @

2. चित्रा श्रीवास 

3. तुलेश्वरी धुरंधर @

4. दीपाली ठाकुर @

5. शोभा मोहन श्रीवास्तव 

6. सुनीता कुर्रे @

7. स्नेह लता सीतापुर सरगुजा @

8. मीना जांगड़े @

9. सरस्वती चौहान 

10. रामकली कारे

11. शशि साहू कुल 11 


सत्र - 9 (26 जनवरी 2019)

सर्वश्री

1. अश्वनी कोसरे 

2. चंद्रेश्वर सिंह दीवान

3. ज्वाला प्रसाद कश्यप

4. धनराज साहू @

5. विरेंद्र कुमार साहू 

6. संतोष कुमार साहू 

7. केशव पाल

8. नमेन्द्र कुमार गजेंद्र

9. लक्ष्मीनारायण देवांगन

10. कमलेश वर्मा

11. जितेंद्र कुमार निषाद

12. श्लेष चंद्रकार


सत्र - 10 (29 सितंबर 2019) 

1. अमित टंडन 

2. जुगेश कुमार बंजारे 

3 तोरण लाल साहू 

4 दीपक कुमार निषाद 

5 देवेंद्र पटेल 

6 बृजलाल भावना 

7 भागवत प्रसाद साहू 

8 लालेश्वर अरुणाभ 

9. लीलेश्वर देवांगन 

10 हरीश अष्टबंधु


सत्र 11 - (12 जनवरी 2020)

1. तेजराम नायक 

2. अनिल सलाम 

3. सुखमोती चौहान @

4. धनेश्वरी सोनी 

5. धनराज साहू बागबाहरा @

6. विजेंद्र वर्मा 

7. मोहनदास बंजारे 

8. जितेंद्र कुमार साहिर 

9. मनोज कुमार वर्मा 

10. मिलन मलरिहा


सत्र - 12  (25 मई 2020) 

1. डर्मेंद्र कुमार रौना 

2.अमृत दास साहू 

3. इंद्राणी साहू 

4. एकलव्य साहू 

5  ओम प्रकाश साहू अंकुर 

6. गोवर्धन परतेती 

7. धनराज साहू मनहोरा खुज्जी 

8. नंदकुमार साहू नादान 

9. मनीष साहू 

10. रमेश कुमार मंडावी 

11. राजकुमार चौधरी 

12. शिव प्रसाद लहरे

13. शेर सिंह परतेती


सत्र - 13 (28 सितम्बर 2020) 

1.अशोक कुमार जायसवाल 

2. कमलेश मांझी 

3. चंद्रहास पटेल 

4. टिकेश्वर साहू 

5. प्रिया देवांगन

6. दीपक तिवारी 

7. नारायण प्रसाद वर्मा 

8. पूरन जायसवाल

9. रीझे यादव 

10.सुनील शर्मा नील 

11. गजराज दास महंत

12. सुरेश निर्मलकर 

13. भागबली उइके


सत्र - 14 (10 जनवरी 2021)

1. अजय शेखर नेताम नैऋत्य

2. अनुज छत्तीसगढ़िया 

3. अन्नपूर्णा देवांगन 

4. केतन साहू खेतिहर

5. तिलक लहरे 

6. मेनका वर्मा 

7. राकेश कुमार साहू 

8. वसुंधरा पटेल 

9. संगीता वर्मा 

10. सुजाता शुक्ला 

11. देवचरण धुरी

12. पद्मा साहू 

13. मनोज यादव


सत्र - 15 (14 मई 2021) 


1. आशुतोष साहू 

2 डी.एल. भास्कर 

3 दूज राम साहू 

4 धर्मेंद्र डहरवार 

5 नंद किशोर साहू 

6 नागेश कश्यप 

7 नारायण प्रसाद साहू 

8 प्रदीप कुमार वर्मा 

9 भागवत प्रसाद 

10 महेंद्र कुमार घृतलहरे 

11 रमेश चोरिया 

12 रवि बाला राजपूत 

13 राजेंद्र कुमार निर्मलकर 1

4 रोशन लाल साहू 

15 सुमित्रा कामड़िया


सत्र - 16(28 सितम्बर 2021)


1. डीलेश्वर साहू 

2. दिलीपकुमार पटेल 

3. नेहरुलाल यादव 

4. पुर्नोत्तम साहू 

5. भीजराम वर्मा 

6. ममता हीर राजपूत 

7. मुकेश उयके 

8. राज निषाद 

9. वीरू कंसारी 

10. शीतल बैस 

11. केदारनाथ जायसवाल


सत्र - 17 (28 सितम्बर 2021)

1. कृष्णा पारकर 

2. तिलेश कुमार यादव 

3. दयालू भारती 

4. दुष्यन्त कुमार साहू 

5. द्रोण कुमार सार्वा 

6. भैलेन्द्र रात्रे 

7. मनीष कुमार वर्मा 

8. शैल शर्मा 

9. साँवरिया निषाद

10. चूड़ामणि वर्मा 

11. बाल्मीकि साहू


 हर बछर तीन बेर लगभग 10 या 12 साधक ल लेके एक नवा सत्र के शुभारंभ होथे- नवा साल बर(जनवरी), अक्ति बर(मई) अउ दलित जी के जन्म जयंती बर(सितम्बर)। कोनो कोनो सत्र बर जादा साधक मनके नाम आय के कारण वो सत्र ल अ अउ ब म बाँट दिये जाथे। 



कक्षा के गुरुजी- 

छंद के छ परिवार के मुख्य उद्देश्य छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़वार हे, अउ ये तभे सम्भव हे जब लिखइया अउ सीखइया रहय, तेखर सेती छंद परिवार "सीखो अउ सिखावव" के नारा लेके आघू बढ़त हे, अउ एखरे प्रमाण ए कि, आज छंद परिवार ले 200 ले आगर साधक मन सीखत अउ सिखावत हें। सत्र 1,2 अउ 3 ल श्री अरुण कुमार निगम जी खुदे छंद लेखन म पारंगत करिन, तेखर बाद इही सीखे पढ़े साधक मन आन कक्षा म गुरु के दायित्व सम्हालत गिन अउ सत्र बढ़त गिस। आज श्री अरुणकुमार निगम जी के आलावा श्री चोवाराम  वर्मा बादल जी, श्री दिलीप कुमार वर्मा जी, श्री आशा देशमुख जी, श्री मनीराम साहू मितान जी, श्री मोहनलाल वर्मा जी, श्री अजय अमृतांशु जी, श्री जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया जी, श्री ग्यानु मॉनिकपुरी जी, श्री सुखदेवसिंह अहिलेश्वर जी, श्री गजानन्द पात्रे जी, श्री बलराम चंद्राकर जी, श्री महेंद्र बघेल जी, श्री राम कुमार चन्द्रवंसी जी,  श्री मति शोभामोहन श्रीवास्तव जी,श्री बोधनराम निषादराज जी, श्री मथुरा प्रसाद वर्मा जी, श्री वीरेंद्र साहू जी, डॉ मीता अग्रवाल जी, श्री कमलेश कुमार वर्मा जी, श्री डी पी लहरे जी, श्री अश्वनी कोशरे जी--- आदि मन गुरुजी के भूमिका निभावत हें। गुरु शिष्य परम्परा के बानगी छंद परिवार म सहज दिखथे।


स्थापना दिवस समारोह--

आनलाइन कक्षा म जुड़े साधक मन जब आपस म मिलथें तब उँखर खुशी के ठिकाना नइ रहय, इही मया मेल, भेंट भलाई खातिर छंद परिवार मनाथें- स्थापना दिवस समारोह। ये दिवस बिना कोनो नेता मंत्री के छंद परिवार अउ आसपास के विज्ञ साहित्यकार, कलाकार मनके उपस्थिति म सम्पन्न होथे। स्थापना दिवस समारोह म जउन साधक मन छंदबद्ध पुस्तक छपवाये रहिथे ओखर विमोचन घलो होथे। अउ पधारे जम्मो साहित्यकार मन  कविता पाठ करथें। स्थापना दिवस समारोह मई महीना म मताये जाथे।  पहली स्थापना दिवस समारोह 2017 म, वरिष्ठ छंद साधिका श्री मति शकुंतला शर्मा जी के संयोजन म भिलाई म सम्पन्न होइस। दूसर स्थापना दिवस समारोह 2018 म छंदकार मनीराम साहू मितान जी के संयोजन म सिमगा म सम्पन्न होइस। तीसर स्थापना दिवस समारोह 2019 म कबीरधाम के साधक मनके संयोजन म कवर्धा म सम्पन्न होइस। कोविड-19 के कारण 20 अउ 21 म स्थापना दिवस समारोह बाधित रिहिस।


दिवाली मिलन समारोह-

 दिवाली मिलन समारोह के मुख्य उद्देश्य घलो आपसी मेल, मिलाप हे। ये समारोह नवम्बर महीना के आसपास आयोजित कर जाथे। पहली दिवाली मिलन समारोह 2017 म श्री चोवाराम वर्मा बादल जी के संयोजन म हथबन्द जिला बलौदाबाजार म सम्पन्न होइस। दूसर दिवाली मिलन समारोह 2018 म श्री बलराम चंद्राकर अउ  श्री सूर्यकान्त गुप्ता जी के संयोजन म रायपुर म सम्पन्न होइस। 2019 के दिवाली मिलन समारोह श्री सुरेश पैगवार जी के संयोजन म जांजगीर नैला म आयोजित रिहिस, फेर जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी उही समय हम सब ला छोड़ के परलोक सिधार गिन, ते पाय के नवम्बर 2019 के दिवाली मिलन समारोह मस्तुरिया जी ल समर्पित आयोजन रिहिस।  2020 के दीपावली मिलन समारोह कोरोना  महामारी के कारण नइ हो पाइस। 2021 म चतुर्थ दिवाली मिलन समारोह श्री विजेंद्र वर्मा अउ बलराम चंद्राकर जी के संयोजन म भिलाई म सम्पन्न होइस।

                येखर आलावा श्री अजय अमृतांशु जी के संयोजन म 2017 म सुरता दलित जी, नाम से एक आयोजन बलौदाबाजार जिला म होय रिहिस, अउ 2019 के अन्तर्राष्ट्रीय  पुस्तक मेला रायपुर म छंद के छंद परिवार ल एक सत्र कवि सम्मेलन बर प्रदान करे गे रिहिस।