Tuesday 7 March 2023

काबर बुरा नइ मानबों

 काबर बुरा नइ मानबों


काबर बुरा नइ मानबों,

बुरा    करबे          त?

हँमू                लड़बों,

बरपेली      लड़बे  त।


आय   हे      होली,

बोल  मीठ   बोली।

काबर उलगत हस,

मुँह   ले       गोली।

छीत देबों माटी तेल,अपने अपन बरबे त।

काबर    बुरा  नइ  मानबों,बुरा  करबे  त?


मया   के    तिहार हे।

जुरे पारा -परिवार हे।

उड़य   रंग     गुलाल,

हमाय खुसी अपार हे।

बाँट खुसी,खाबे गारी;कहूं लड़बे त।

काबर बुरा नइ मानबों,बुरा करब त?


माते हे फागुन, रचे  हे रास।

मजा उड़ाले,झन कर नास।

बाजे  नँगाड़ा,गा अउ नाच।

सबला  हँसा, तहूँ  हा हाँस।

मार खाबे मया के बगिया ल;चरबे त।

काबर बुरा नइ मानबों,बुरा  करबे  त?


समा    सबके  मुँह   मा,

काबर फोकटे लड़थस?

का      मिलथे    तोला?

कोचके  कस   करथस।

मया    के    रंग  लगाले,

कोन       का      कही?

रबे         बने      बनके,

त  सबके  आसिस रही।

कोनो        तिहार    हा,

बुरा   करेल नइ काहय।

फोकटे अँटियात हस,कोन रोही मरबे त?

काबर    बुरा  नइ  मानबों,बुरा  करबे  त?


रंग लगाय बर गाल का?

हिरदे   घलो  लमा देबों।

पाँव  ला का  खिंचथस?

मूड़    मा   चढ़ा   लेबों।

मनखे कोनो अलग नोहे,

सब  ला   अपन   मान।

दाई -ददा  रीत-रिवाज।

सबके    कर   सम्मान।

नाव बगरही,अंजोर बर;भभका धरबे त।

काबर   बुरा  नइ मानबों,बुरा  करबे  त?


होली    हे ;   त   हद  में  रहा।

मनखे    कस,   कद  में   रहा।

मान   बड़े   के  बात   बरजना,

छीत फूल,झन रद-खद में रहा।

सबो   दिही   पलोंदी,  सोझ   चढ़बे   त।

काबर    बुरा  नइ  मानबों,बुरा करबे  त?


चल   बुरा  नइ  मानन,

होली                   हे।

का   हिरदे    मा मया?

अउ   मीठ    बोली हे?

जेन दिन तोर हिरदे मा,

मया    जाग      जही।

बोली  मीठ  साफ रही।

वो   दिन  लइका कस,

तोरो गलती माफ रही।

बड़ पून्न कमाबे,सुनता के संग धरबे त।

काबर बुरा  नइ  मानबों,बुरा  करबे  त?


राचर कपाट ला,

कुवाँ बावली मा बोर देथे।

रंग  गुलाल ठीक हे फेर

नाली मा तक बोर देथे।

हुदरे कोचके कस करथे,

का मारी दिही ता जानबे?

जी खखवा जाथे,

कइसे बुरा नइ मानबे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

Monday 6 March 2023

देश भक्ति-स्वतंत्रता दिवस अमर रहे, जय जय जय भारत

 देश भक्ति-स्वतंत्रता दिवस अमर रहे, जय जय जय भारत


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: बागीश्वरी सवैया


मले  मूड़  मा  धूल  माटी  धरा के सिवाना म ठाढ़े हवे वीर गा।

लगे तोप गोला सहीं वीर काया त ओधे भला कोन हा तीर गा।

नवाये  मुड़ी  जेन  माँ  भारती तीर वोला खवाये बुला खीर गा।

दिखाये  कहूँ देश ला आँख बैरी त फेके भँवाके जिया चीर गा।


जीतेंद्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को,कोरबा(छग)


🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴


अमृत महोत्सव (आल्हा छंदगीत)


आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।

जनम धरे हन भारत भू मा, हम सब ला हावयँ बड़ नाज।


स्कूल दफ्तर कोट कछेरी, गली खोर घर बन अउ बाट।

सबे खूँट लहराय तिरंगा, तोर मोर के खाई पाट।।

हर हिन्दुस्तानी के भीतर, भारत माता करथे राज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


रही सबर दिन सुरता हम ला, बलिदानी मनके बलिदान।

टूटन नइ देन उँखर सपना, नइ जावन देवन स्वभिमान।

सुख समृद्धि के पहिराबों, भारत माँ के सिर मा ताज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


सब दिन रही तिरंगा दिल मा, सबदिन करबों जयजयकार।

छोटे बड़े सबे सँग सबदिन, रखबों लमा मया के तार।।

छोड़ सुवारथ सुमता गारत, देश धरम बर करबों काज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


जंगल झाड़ी झरना नदिया, खेत खदान हवय भरमार।

सोना उगले भारत भुइयाँ, कोई नइ पा पाये पार।

रक्षा खातिर लड़बों भिड़बों, बैरी उपर गिराबों गाज।

आजादी के अमृत महोत्सव, सबे मनावत हाँवन आज।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


एक दिन के देश भक्ति (सरसी छन्द)-

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


देशभक्ति चौदह के जागे, सोलह के छँट जाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


आय अगस्त महीना मा जब, आजादी के बेर।

देश भक्ति के गीत बजे बड़, गाँव शहर सब मेर।

लइका संग सियान मगन हे, झंडा हाथ उठाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


रँगे बसंती रंग म कोनो, कोनो हरा सफेद।

गावै हाथ तिरंगा थामे, भुला एक दिन भेद।

तीन रंग मा सजे तिरंगा, लहर लहर लहराय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


ये दिन आये सबझन मनला, बलिदानी मन याद।

गूँजय लाल बहादुर गाँधी, भगत सुभाष अजाद।

देशभक्ति के भाव सबे दिन, अन्तस् रहे समाय।

पंद्रह तारिक के दिन बस सब, जय भारत चिल्लाय।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: अपन देस(शक्ति छंद)


पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।

करौं बंदना नित करौं आरती।

बसे मोर मन मा सदा भारती।


पसर मा धरे फूल अउ हार ला।

दरस बर खड़े मैं हवौं द्वार मा।

बँधाये  मया मीत डोरी  रहे।

सबे खूँट बगरे अँजोरी रहे।

बसे बस मया हा जिया भीतरी।

रहौं  तेल  बनके  दिया भीतरी।


इहाँ हे सबे झन अलग भेस के।

तभो हे घरो घर बिना बेंस के--।

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।


चुनर ला करौं रंग धानी सहीं।

सजाके बनावौं ग रानी सहीं।

किसानी करौं अउ सियानी करौं।

अपन  देस  ला  मैं गियानी करौं।

वतन बर मरौं अउ वतन ला गढ़ौ।

करत  मात  सेवा  सदा  मैं  बढ़ौ।


फिकर नइ करौं अपन क्लेस के।

वतन बर बनौं घोड़वा रेस के---।

पुजारी  बनौं मैं अपन देस के।

अहं जात भाँखा सबे लेस के।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴

 


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: स्वतंत्रता दिवस अमर रहे,,,


बलिदानी (सार छंद)


कहाँ चिता के आग बुझा हे,हवै कहाँ आजादी।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बैरी अँचरा खींचत हावै,सिसकै भारत माता।

देश  धरम  बर  मया उरकगे,ठट्ठा होगे नाता।

महतारी के आन बान बर,कोन ह झेले गोली।

कोन  लगाये  माथ  मातु के,बंदन चंदन रोली।

छाती कोन ठठाके ठाढ़े,काँपे देख फसादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


अपन  देश मा भारत माता,होगे हवै अकेल्ला।

हे मतंग मनखे स्वारथ मा,घूमत हावय छेल्ला।

मुड़ी हिमालय के नवगेहे,सागर हा मइलागे।

हवा  बिदेसी महुरा घोरे, दया मया अइलागे।

देश प्रेम ले दुरिहावत हे,भारत के आबादी----।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


सोन चिरइयाँ अउ बेंड़ी मा,जकड़त जावत हावै।

अपने  मन  सब  बैरी  होगे,कोन  भला  छोड़ावै।

हाँस हाँस के करत हवै सब,ये भुँइया के चारी।

देख  हाल  बलिदानी  मनके,बरसे  नैना धारी।

पर के बुध मा काम करे के,होगे हें सब आदी--।

भुलागेन  बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


बार बार बम बारुद बरसे,दहले दाई कोरा।

लड़त  भिड़त हे भाई भाई,बैरी डारे डोरा।

डाह  द्वेष  के  आगी  भभके ,माते  मारा   मारी।

अपन पूत ला घलो बरज नइ,पावत हे महतारी।

बाहिर बाबू भाई रोवै,घर मा दाई दादी--------।

भुलागेन बलिदानी मन ला,बनके अवसरवादी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴


: दोहा गीत(हमर तिरंगा)


लहर लहर लहरात हे,हमर तिरंगा आज।

इही हमर बर जान ए,इही  हमर ए लाज।

हाँसत  हे  मुस्कात  हे,जंगल  झाड़ी देख।

नँदिया झरना गात हे,बदलत हावय लेख।

जब्बर  छाती  तान  के, हवे  वीर  तैनात।

संसो  कहाँ  सुबे   हवे, नइहे  संसो   रात।

महतारी के लाल सब,मगन करे मिल काज।

लहर------------------------------ आज।


उत्तर  दक्षिण देख ले,पूरब पश्चिम झाँक।

भारत भुँइया ए हरे,कम झन तैंहर आँक।

गावय गाथा ला पवन,सूरज सँग मा चाँद।

उगे सुमत  के  हे फसल,नइहे बइरी काँद।

का  का  मैं  बतियाँव गा,हवै सोनहा राज।

लहर------------------------------लाज।


तीन रंग के हे ध्वजा, हरा गाजरी स्वेत।

जय हो भारत भारती,नाम सबो हे लेत।

कोटि कोटि परनाम हे,सरग बरोबर देस।

रहिथे सब मनखे इँहा, भेदभाव ला लेस।

जनम  धरे  हौं मैं इहाँ,हावय मोला नाज।

लहर-----------------------------लाज।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा,छत्तीसगढ़


🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴


: कइसे जीत होही(सार छंद)


हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी।

जे मन चाहै ये माटी हा,होवै चानी चानी----।


देश प्रेम चिटको नइ जानै,करै बैर गद्दारी।

भाई चारा दया मया ला,काटै धरके आरी।

झगरा झंझट मार काट के,खोजै रोज बहाना।

महतारी  ले  मया करै नइ,देवै रहि रहि ताना।

पहिली ये मन ला समझावव,लात हाथ के बानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


राजनीति  के  खेल निराला,खेलै  जइसे  पासा।

अपन सुवारथ बर बन नेता,काटै कतको आसा।

मातृभूमि के मोल न जानै,मानै सब कुछ गद्दी।

मनखे  मनके मन मा बोथै,जात पात के लद्दी।

फौज  फटाका  धरै फालतू,करै मौज मनमानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी--।


तमगा  ताकत  तोप  देख  के,काँपै  बैरी  डर मा।

फेर बढ़े हे भाव उँखर बड़,देख विभीषण घर मा।

घर मा  ये  मन  जात  पात  के,रोज मतावै गैरी।

ताकत हावय हाल देख के,चील असन अउ बैरी।

हाथ  मिलाके  बैरी  मन ले,बारे  घर  बन छानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


खावय ये माटी के उपजे,गावय गुण परदेशी।

कटघेरा मा डार वतन ला,खुदे लड़त हे पेशी।

अँचरा फाड़य महतारी के,खंजर गोभय छाती।

मारय काटय घर वाले ला,पर ला भेजय पाती।

पलय बढ़य झन ये माटी मा,अइसन दुश्मन जानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी-----।


घर के बइला नाश करत हे, हरहा होके खेती।

हारे हन इतिहास झाँक लौ,इँखरे मन के सेती।

अपन देश के भेद खोल के,ताकत करथे आधा।

जीत भला  तब कइसे होही,घर के मनखे बाधा।

पहिली पहटावय ये मन ला,माँग सके झन पानी।

हमर देश मा भरे पड़े हे,कतको पाकिस्तानी----।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छग


🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴

 

जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: गीत


देस बर जीबो,देस बर मरबो।

------------------------------------------

चल माटी के काया ल,हीरा करबो।

देस   बर    जीबो , देस बर  मरबो।

   

सिंगार करबों,सोन चिरँइयाँके।

गुन   गाबोंन , भारत  मइया के।

सुवारथ  के सुरता ले, दुरिहाके।

धुर्रा चुपर के माथा म,भुइयाँ के।


घपटे अंधियारी भगाय बर,भभका धरबो।

देस    बर    जीबो  ,  देस    बर     मरबो।


उंच - नीच    ल ,    पाटबोन।

रखवार बन देस ल,राखबोन।

हवा    म    मया  ,  घोरबोन।

हिरदे ल हिरदे ले , जोड़बोन।


चल  दुख-पीरा  ल , मिल  हरबो।

देस   बर  जीबों  , देस बर मरबो।


हम ला गरब-गुमान  हे,

ए   भुइयाँ  ल  पाके।

खड़े   रबों   मेड़ो   म ,

जबर छाती फइलाके।

फोड़ देबों वो आँखी ल,

जेन हमर भुइयाँ  बर गड़ही।

लड़बों मरबों  देस  बर ,

तभे काया के करजा उतरही।


तँउरबों बुड़ती समुंद म,उक्ती पहाड़ चढ़बो।

देस     बर    जीबो   ,  देस    बर     मरबो।


          जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

              बाल्को(कोरबा)

              9981441795


🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴


अमृत महोत्सव (गीत)


तोरो हाथ मा हवै तिरंगा, मोरो हाथ मा हे।

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे--


आजादी के अमृत उत्सव, जुरमिल सबे मनाबों।

बलिदानी मन के सुरता कर, श्रद्धा सुमन चढ़ाबों।

चरण पखारत हावै सागर, हिमधर माथ मा हे---

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे-----


जात धरम भाँखा नइ जानन, रंग रूप ना भेष।

सबके दिल मा हवै तिरंगा, सबके बड़का देश।।

लहरावत स्कूल दफ्तर सँग, घर गली पाथ मा हे--

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे------


परब परंपरा संस्कृति, सरी दुनिया मा छाये।

धानी धरती नदिया पर्वत, गौरव गाथा गाये।

आँखी कोन देखाही हम ला, बैरी मन नाथ मा हे--

लइका सियान अउ जवान, सबे साथ मा हे------


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴🇧🇴


आल्हा छंद- रे बइरी


महतारी के रक्षा खातिर, धरे हवँव मैं मन मा रेंध।

खड़े हवँव नित छाती ताने, काय मार पाबे तैं सेंध।


मोला झन तैं छोट समझबे, अपन राज के मैंहा वीर।

अब्बड़ ताकत हवै बाँह मा, दू फाँकी देहूँ रे चीर।।


तन अउ मन ला करे लोहाटी, बासी चटनी पसिया नून।

देख तोर करनी धरनी ला, बड़ उफान मारे तन खून।।


नाँगर मूठ कुदारी धरधर, पथना कस होगे हे हाथ।

तोर असन कतको हरहा ला, पहिराये हौं मैंहर नाथ।


ललहूँ पटुकू कमर कँसे हौं, चप्पल भँदई सोहे पाँव।

अड़हा जान उलझबे झन तैं, उल्टा पड़ जाही रे दाँव।


कोन खेत के तँय मुरई रे, मोला का तँय लेबे जीत।

परही मुटका कँसके तोला, छिनभर मा हो जाबे चीत।


हवै हवा कस चाल मोर रे, कोन भला पा पाही पार।

चाहे कतको हो खरतरिहा, होही खच्चित ओखर हार।


देश राज बर नयन गड़ाबे, देहूँ खँड़ड़ी मैं ओदार।

महानदी अरपा पैरी मा, बोहत रही लहू के धार।


उड़ा जबे रे बइरी तैंहा, कहूँ मार पाहूँ मैं फूँक।

खड़े खड़े बस देखत रहिबे, होवय नही मोर ले चूँक।


देख मोर नैना भीतर रे, गजब भरे हावय अंगार।

पाना डारा कस तोला मैं, छिन भर मा देहूँ रे बार।


गोड़ हाथ हर पूरे बाँचे, नइ लागय मोला हथियार।

अपन राज के आनबान बर, सुतत उठत रहिथौं तैंयार।


भाला बरछी बम अउ बारुद, भेद सके नइ मोरे चाम।

दाँत कटर देहूँ ततकी मा, तोर बुझा जाही रे नाम।।


जब तक जीहूँ ये माटी मा, बनके रहिहूँ बब्बर शेर।

डर नइहे कखरो ले मोला, करहू काय कोलिहा घेर।


नाँव खैरझिटिया हे मोरे, खरतरिहा माटी के लाल।

चुपेचाप रह घर मा खुसरे, नइ ते हो जाही जंजाल।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

हरिगीतिका छंद-परसा

 हरिगीतिका छंद-परसा


*परसा कहै अब मोर कर भौरा झुले तितली झुले।*

*तड़पे हवौं मैं साल भर तब लाल फुलवा हे फुले।*

*जब माँघ फागुन आय तब सबके अधर छाये रथौं।*

*बाकी समय बन बाग मा चुपचाप मिटकाये रथौं।*


*सजबे सँवरबे जब इहाँ तब लोग मन बढ़िया कथे।*

*मनखे कहँव या जीव कोनो सब मगन खुद मा रथे।*

*कवि के कलम मा छाय रहिथौं एक बेरा साल मा।*

*देथौं झरा सब फूल ला नाचत नँगाड़ा ताल मा।*


खैरझिटिया