Sunday 10 July 2022

चौमास*


 

*चौमास*

                 फुतकी उड़त अउ मारे गर्मी मा टघलत,भभकत भुइँया चौमासा के आरो पाके नरम पड़े बर लगथे। पानी के पहली बौछार के सुवागत भुइयाँ अपन सौंधी महक ल चारों खूंट बगरा के करथे। गर्मी मा पियासे भुइयाँ ससन भर पानी पीये बर धर लेथे,तभे तो मुँह उलाय दर्रा पानी पी पी अघाके मुंदावत जाथे। चौमासा के अगोरा कोन ला नइ रहय, चाहे जीव जंतु होय या पेड़ पात सबो एकटक बादर ला निहारत चौमास के बाट जोहथें। चौमास वो चार महीना ए जेमा बादर झिमिर झिमिर पानी बरसाथे। आसाढ़,सावन,भादो अउ कुँवार चौमासा के चार महीना आय। कतको फुतकी उड़त भुइयाँ रहय, आसाढ़ के पानी पी पीके हरियाये बर धर लेथे। धरती मा पड़े सूक्खा बीज-भात इही महीना आँखी उघार, आसमान ला अमरे के सपना देखथे। संगे संग सपना देखथे भुइयाँ के भगवान किसान, ताल तलइया, कुँवा, नदिया,नरवा अउ छोटे बड़े सबे परानी। चौमास चालू होथे आसाढ़ ले,अउ आषाढ़ ले सब ला आस रहिथे। चौमास पानी बादर के महीना होथे, एखर आये के पहली अउ बाद कई किसम के जोरा- जांगी, तीज-तिहार, उपास-धास, गीत-भजन अउ सुख-दुख  के बेरा देखे बर मिलथे। भारत का?  हमर छत्तीसगढ़ घलो गाँवे गांव ले मिलके बने हे। गांव घर के दिनचर्या, काम काज, तीज तिहार ,खान-पान अउ रहन सहन खेती- बाड़ी के संग चलथे। आवन चौमास के कुछ झलकी देखन----


*चौमास आये के पहली जोरा-जांगी*-

आषाढ़ के आरो पाके किसान-मितान अउ जीव-जानवर सब अपन अपन जोरा मा लग जथे। किसान मन बारी-बखरी, घर कोठार संग खेत खार ला घलो पानी बादर के बेरा हिसाब ले सिरजाथें। पानी गिरे के पहली पर्दा,भाँड़ी अउ घर के बाहरी कोठ मा पलांदी देथे अउ झिपारी बांधथे। बंधाय खइरपा, झिपारी अउ पलांदी पानी ले पर्दा भाँड़ी अउ दीवाल ला बचाथे। चौमासा के जोरा करत चूल्हा जलाए बर, किसान मन लकड़ी छेना ला पाठ पठँउहा मा भीतराथे। गाय गरवा के खाय बर घलो पैरा भूंसा ला जतनथे। कोठार मा माड़े छेना लकड़ी पैरा भूंसा धरा जाये ले,कोठार रीता हो जाथे, जेमा साग भाजी बोये के तियारी चलथे। मनखे मन छानी के फूटे खपरा ला टपर के बरसा ले लड़े बर अपन घर ला तइयार करथे। परछी, कोठा मा झिल्ली,दरी अउ खदर छाथें। किसान मन आषाढ़ के आरो पाके जेठ महीना भर,खातू कचरा पाल के खेत खार के काँटा, काँद, दूबी  झोल झाल के, मेड़ पार गाँसा पखार सब ला बढ़िया तियार करके रखथें। बीच-भात ला अलगाके, कोन डोली मा का धान बोना हे, तेला सोंचत परखत पानी के बाट जोहथे। चौमास मा साग भाजी के घलो किल्लत झन होय कहिके महतारी मन बरी बिजौरी बनाथे अउ नाना किसम के साग भाजी के खोइला करथें, आमा अउ लिमउ के अथान/चटनी घलो डारथे। कँड़ड़ा मन बॉस के मूड़ बर खुमरी और जमे तन ला पानी ले बचाये बर, तन तोपना बनाये बर लग जथें, ता दुकान बाजार हाट मा छत्ता, मोरा, बरसाती, कमरा दिखेल धर लेथे। चौमास लगे के पहली किसान भाई मन, पाठा पक्ति पानी मा झन भींगे कहिके गाड़ा, खाँसर ला उतार(अलग अलग करके) छानी परवा तरी ओधा मा जमा देंथें,अउ झिल्ली झिपारी मा तोप देथें। नांगर लोहा ला पजा के, नाहना, जोता, जुड़ा, कानी, घण्टी सबे के जोरा किसान भाई मन अदरा लगे के पहली करथें। दुकान ठपरी वाले मन घलो झिल्ली पन्नी छा के आसाढ़ के अगोरा करथें। घर कोठार के गड्ढा  अउ रेगान मा पानी झन भरे कहिके मुर्मी/कुधरिल पाट के बरोबर करथें। नेव मा जादा पानी झन जाये, अउ घर के कोठ मा सीहल झन पहुँचे कहिके घर के बाहरी कोठ तरी मुर्री ला ओधाथें।  ये सब जोरा घर के घर लइका सियान सब मिलके मारे खुशी मा हाँसत गावत करथें। चिरई चिरगुन मन घलो पेड़ पात तरी या फेर घर कोठा मा झाला खोंधरा के रचना करथें, कतको चिरई मन बड़का पेड़ अउ ओखर सांधा ला चौमास बर चुनथें। बन मा रहवइया जीव जानवर मन अइसन जघा खोजथें, जिहाँ हवा पानी ले बचें जा सके। चौमास के आरो पाके पहटिया मन गाय गरुवा ला बरदी मा सँकेले बर लग जथे। 


*चौमास मा पेड़-प्रकृति अउ गांव घर बन के छटा*-

बरसात के पानी मा नहाके, धरती दाई हरियर रंग मा रँगत दिखथे।  घाम घरी झरे जम्मों काँद दूबी, बीज भात सब आँखी उघारेल धर लेथें। खेत खार, जंगल, झरना, झिरिया सब खुशी के मारे नाचत गावत दिखथें। सरसर सरसर चलत पवन, गड़ गड़ गरजत बादर, चमचम चमकत बिजुरी, लहसत पेड़-पात, झरझर करत झरना, मेचका के टरटर, झिंगुरा के सरलग गान,पपीहा अउ मोर के पीहू पीहू, चिरई मन के चिंव चिंव चौमास भर चारो कोती मन ला मोहत रहिथे। चिरई चिरगुन, चांटी-माछी अउ चारा चरत गाय गरुवा मन के झुंड मन मा उछाह भरथें। चाहे रात होय या दिन उमड़ घुमड़ के बादर आथे अउ धरती ला नहवाके दम लेथे। कम होवत पानी के संसो मा अधियावत मेढ़क मछरी चौमास मा बढ़त पानी ला देख के तरिया, नदिया मा मेछरावत दिखथे। हरियर हरियर चारा बर गर्मी भर तरसे गाय गरुवा, चौमास मा हरियर चारा पाके इतरावत दिखथे। नदिया, नरवा के पानी जे समुंद ले मिले के सपना देखे रहिथे, उहू पूरा होवत दिखथे। चौमास मा पानी पा के खुद उगे चेंच, चरोटा, जरी, खोटनी, चौवलई, मुस्केनी,मछरिया, बोड़ा, फुटू, फोटका, काँदा अउ करील मनखे मन ला खाये बर  उपहार बरोबर धरती दाई, बिन महिनत के देथे। धान संग खेत खार मा कोदो कुटकी, राहेर, जुवाँरी, जोंधरी, कपसा, तिली, सन हाथ हला हला के पुरवइया हवा मा नाचत दिखथे। ता बारी बखरी मा नाना किसम के भाजी अउ नार बियार घउदे रहिथे। इही बेरा आसमान मा इंद्रधनुष के मनमोहक सतरंगी रंग के दर्शन घलो होथे। ये सब सुघराई देख, चौमास भर सूरज देव लजावत लुकाये लुकाये फिरथे। आसमान मा एके घरी अँजोरी ता एक्कन मा अँधियारी छा जथे, कभू कभू चारों खूंट गुंगवा छाये रहिथे। अतेक खुशी अउ नयनाभिराम छटा चौमास भर चारो कोती बगर जाय रहिथे कि मनखे,  रतिहा बेरा चंदा सितारा ला देखे बर घलो नइ ललाय, ते पाय के उहू बिचारा मन बादर मा जादा समय तोपायेच फिरथे। खेत खार, नदिया नरवा, कुवाँ बवली, पेड़ पहाड़, तरिया परिया सब सजे सँवरे मतंग दिखथे। नजर जिंहाँ तक भी जाथे, धरती दाई हरियर लुगरा पहिरे नाचत गावत दिखथें। संगे संग ऊँच ऊँच पेड़ चौमास मा अउ उपरहा सज सँवर के आगास ला अमरत दिखथें।चेंच,चरोटा, मछरिया, लटकना, खदर, गुखरू, गुड़रू,  धनधनी, चिरचिड़ा, बगली, बेमची, हफली, भोंड़, फूट, फोटका, भेंगरा, फुलही, चिचोल, सिवबम्भूर,गुठलू, आमा गोही अउ पैरी कस अनगिनत लमेरा रद्दा बाट, मेड़ पार, परिया अउ तरिया पार मा खुलखुल खुलखुल हाँसत नाचत दिखथें। चौमास भर खेत खार,गाँव गुड़ी, मन्दिर-देवाला मा गूँजत कर्मा, ददरिया, कजरी, आल्हा, भजन, कीर्तन,जस सेवा मन मा आशा विश्वास अउ उछाह उमंग के जोती जलाथें। बरदी अउ खेत खार मा, गाय गरुवा के गर मा खनकत घण्टी-घांघड़ा, चरवाहा मन के बाँसुरी के धुन, नोई धर घर घर घूमत, दूध दुहत पहटिया मन के मुंह ले निकलत सिसरी, छानी मा छनकत पानी के सुर अउ घर घर बजत खँजड़ी- ढोलक चौमास के सुघराई मा चार चाँद लगाथे।


* चौमास मा खेती-बाड़ी के काम*—

चौमास मा सब ले ज्यादा खुश यदि कोई रहिथे ता किसान मन, भले छत छानी चुंहे, फेर खेत खार बर पानी माँगत, अरजी करत दिखथें। गर्मी घरी काम बूता बर शहर नगर कोती गय कमैया मन चौमास के पहली महीना आषाढ़ के आरो पाके अपन गाँव लहुट जाथे,अउ अपन खेत खार ला सिधोय बर लग जाथें, कहे घलो गे हे-"डार के चुके बेंदरा अउ आसाढ़ के चुके किसान।" रिमझिम फुहार धरे आय आसाढ़ के हबरते साँठ, किसनहा मन धान बीजहा धरके, नांगर बइला जोर के, जम्मो घर भर खेत मा चल देथें। खेत मेला कस सइमो सइमो करथे। कमइयाँ मनके मुख ले निकलत ददरिया अउ ओहो तोतो मा खार गूँजेल लग जथे। बाँवत, बियासी अउ निंदई के कारज चौमासा मा होथे। किसान मनके अइसन लगभग एको दिन नइ रहय, जेन दिन ओखर पाँव खेत मा नइ पड़त होही। लहरावत खेत ला देख जम्मो किसनहा परम सुख पाके, खेतेच मा नाच अउ गा देथे। मुही पार बँधई, खातू छीचई, बन, काँद,कांदी,करगा ला हेरई  समय समय मा चौमास भर चलते रथे। गांव के गांव मिलके एक दूसर के काम मा हाथ बँटाथे, चाहे बाँवत होय, बियासी होय या फेर निंदई कोड़ई। बइला भइसा,कुदारी रापा, बीज- भात अउ नांगर जुड़ा ला घलो समय पड़े मा माँगत-देवत किसनहा मन खेती बाड़ी के काम मा तन मन अउ धन लगा के करथें।  खेत खार मा धान, कोदो, कुटकी, तिली, राहेर, कपसा, सन, सनई के संगे संग घर के बारी बखरी कोठार मा रमकलिया, बरबट्टी, तोरई, कोंहड़ा, तुमा, खेकसी,करेला,कुंदरू अउ किसम किसम के भाजी पाला, साग सब्जी बोथें। बढ़े नार बियार ला सहारा देय बर ढेंखरा गड़ाथें। छानी मा मखना, रखिया के नार चढ़त दिखथे, ता खेकसी, करेला,कुंदरू ढेंखरा ऊपर मनमाड़े घउदे। लइका सियान सब मिलके खेत खार के काम करथें। बाँवत, टोकान कोड़ई, रोपा लगई, निंदई, खातू छीचई, मुही पार बँधई अउ समय देख के जादा पानी मा मेड पार ला फोड़ई आदि कतको काम बूता चौमास भर किसान भाई मन घर के लइका सियान गांव भर संग मिलके करथें।


*चौमास मा तिहार बार*-

रहन सहन,खान पान कस हमर जम्मो तिहार मन घलो खेती बाड़ी के हिसाब ले चलथे, अउ जादा तिहार चौमासा मा होथे,अरजदूज, हरेली, तीजा, पोरा, सवनाही, इतवारी, जुड़वास, सम्मारी, कमरछठ,भोजली, राखी, गुरुवारी, आठे कन्हैया, नांगपंचमी, गुरु पुन्नी, पितर पाख, रामसत्ता, पितर पाख, गणेश पूजा, दुर्गा पूजा, दसहरा अउ शरद पुन्नी कस कतको छोटे बड़े तिहार गांव भर मिलजुल के मनाये जाथें। आसाढ़ दूज रथ यात्रा ले लेके कोजागरी पुन्नी(शरद पुन्नी) तक चौमास भर कतको कन तिहार बार मीत मयामनखे मनके  मन मा मेलथे। जुड़वास तिहार आसाढ़ मास अठमी के दिन भभकत भुइयाँ जब पानी पीके हिता जथे तब मनाये जाथे, ये दिन दाई शीतला मा तेल हरदी चढ़ाके गांव के गांव ला जर बीमारी ले बचाये के विनती करे जाथे।  बियासी के बाद सावन मा नांगर ला धो धा के हरेली तिहार मनाये जाथे, ये दिन पेड़ प्रकृति, बइला नांगर अउ खेती बाड़ी के काम मा अवइया औजार मन ला पूजे जाथे। सावन भर सावन सम्मारी चलथे। जइसे जइसे धान बढ़त जाथे तिहार घलो वइसने चलत जाथे। सावन भादो भर फाँफ़ा कीड़ा काँटा बर इतवारी, कटवा तिहार, गुरुवारी, कड़ा बन्द जइसे कतको तिहार मनाये के परम्परा हमर छत्तीसगढ़ मा हे। धान मा दूध भरावत बेरा भादो मा पोरा तिहार मनाये जाथे। भादो मा तीजा, गणेश पूजा,आठे कन्हैया ता कुंवार मा पितर पाख, दुर्गा पूजा होथे  जम्मो तिहार ला मनाये के अपन अलग अलग खास महत्ता अउ परम्परा हें।  किसनहा मन के कर्मा ददरिया के संगे संग चौमास मा आल्हा, कजरी अउ साल्हो घलो सुने बर मिलथे। आजादी के परब 15 अगस्त घलो गांव गांव मा बड़ धूम धाम ले मनाये जाथे। ये सब तिहार के अपन अलग अलग महत्ता हे, मान्यता हे, आस्था हे, विश्वास हे, प्रकृति ले जुड़ाव हे, दया मया अउ भाई चारा के भाव हे। सब तिहार के मनाये के अलग अलग ढंग अउ रोटी पीठा राँधे के परम्परा हें।  चौमास मा सब ले जादा काम बूता होथे, जाँगर घलो जवाब दे बर धर लेथे, बरसत पानी अउ चुंहत छानी देख कभू कभू बिट्टासी घलो लग जाथे, इही सब ला दुरिहाये बर सब ले जादा तिहार बार घलो चौमास मा ही होथे। काम कमाई के दरद ला तिहार बार भुला देथे, ये बेरा मा जम्मों मनखे मिलके एक दूसर घर रोटी पीठा खावत, नाचत गावत, दया मया बाँटत काम करथें अउ सुखमय जिनगी जीथें।


*चौमास मा दिनचर्या*–

सनन सनन चलत पवन, झिमिर झिमिर बरसत पानी,गरजत घुमड़त बादर,चमचम चमकत बिजुरी अउ चिखला माते मखमल कस भुइयाँ मनखे का जीव जानवर के घलो रोजमर्रा के जिनगी ला प्रभावित करथे। जइसे बरत आगी मा पानी पड़थे, ता वो गुंगवाये बर धर लेथे, वइसने जरत भुइयाँ बरसा के पहली पानी मा दंदके,भभके बर लग जथे, अउ भभकी मा निकलथे काल बरोबर सांप बिच्छू। ते पाय के सब ले जादा साव चेत मनखे मन ला इही समय होय जे जरूरत पड़थे। चारों कोती माते चिखला मा चप्पल जूता दाँत निपोर देथे, मोरा छत्ता, खुमरी घर के मुहाटी मा टँगाये दिखथे। सुरुज नारायण के आँच बिन कतको कुर्था कपड़ा अँवसइन अँवसइन महकत रहिथे। कपड़ा लत्ता घलो चिखला पानी मा जल्दी जल्दी मइलाथे। माछी मच्छर बड़ भींन भींन करत रहिथे, कतको कीरा ला देखत मन ऊब जाथे। सीहल(सीड़) आये अउ चुंहे के कारण घर चोरो-बोरो लगथे। कुँवा बोरिंग ले घलो मतलहा पानी निकले बर धर लेथे। एखरे सेती साफ सफाई राखत, गरम भोजन अउ पानी ला घलो डबका के पीना पड़थे। चारों मुड़ा माते चिखला पानी अउ खेत खार मा धान पान बोवा जाय के कारण मनखे मन ला चौमास भर बाहिर बट्टा जाय बर भारी परेशानी होथे,खैर अब तो घरों घर पखाना सावर होगे हे। पानी मा छेना लकड़ी सिताये रहिथे ते पाय के बरसात भर चूल्हा गुंगवाते रहिथे, ये घरी आगी सुपचाना अबड़ दुखदाई होथे। कतको साफ सफाई कर बरसात के चिखला पानी मा घर दुवार गैरी मात जाय रहिथे। ये समय जर बोखार, खांसी सर्दी मा सबके हालत खस्ता रहिथे।  छट्ठी बरही, मरनी हरनी अउ कोनो जरूरी काम बूता मा कहूँ कोती आय जाय के बेरा  पानी गिरई करलई लगथे। चिखला पानी अउ किचिर काचर के सेती, बर बिहाव कस अउ कतको मांगलिक काम ये मास मा नइ करे जाय। चौमास भर जतके जादा काम होथे,वोतके थकान मिटाये बर तिहार बार घलो होथे। गाय गरुवा, चिरई चिरगुन मन घलो पानी मा भींगत दिखथे। खेत खार मा लगातार पानी मा काम करे के कारण हाथ गोड़ सेठरा जाथे,अउ गोड़ ला केंदवा घलो खा देथे। बिला-भरका, खँचका-डिपरा पानी मा एकमई होय के कारण बड़ धोखा घलो होथे, कतको मनखे रेंगत बेरा फँस जाथें, कतको मन गाड़ी मोटर सुद्धा झपा जाथें। ये मौसम मा ज्यादातर मनखे मन गरी खेलत, मछरी धरत दिखथे। बोड़ा, फुटू, बरी, बिजौरी,चटनी,अथान,खोइला अउ चौमास मा उपजे साग भाजी ला खाके गुजारा करे बर लगथे। बरसा के मौसम मा साग भाजी के किल्लत अउ महँगाई घलो आम बात आय।

                    वइसे तो चौमास  खुशी के महीना होथे, तभो सुख के संग दुख घलो सहज दिखथे। जादा पानी बाढ़ के रूप धर लेथे, जेखर कारण खेत खार अउ गांव घर के हाल बेहाल हो जाथे। आवागमन बाधित हो जथे, पुलिया,सड़क बोहा जाथे, कखरो घर दुवार,खेत खार बुड़ जाथे, ता कतको मनखे मन घलो नइ बाँचे। मारे पूरा मा जीव जानवर, मनखे तनखे सब के जिनगी अधर मा लटक जाथे अउ चारो मुड़ा हाहाकार मच जाथे। वइसने कोनो कोनो साल चौमास मा पानी घलो नइ गिरे, ते पाय के सूखा के मुँह घलो देखेल लग जाथे। चौमास मा अक्सर बिजुरी गिरे ले खेत खार पेड़ पात संग मनखे अउ जीव जानवर मन जान गँवा देथे। ये समय साँप बिच्छू,कीरा काँटा के खतरा अबड़ रहिथे, कतको मन इंखरे शिकार हो जाथे। खेत खार संग गाँव घर मा घलो साँप डेड़हू के डर बने रहिथे। बिच्छल रद्दा मा फिसल के कतको झन के हाथ गोड़ घलो टूट जाथे। घर के सीहल अउ चुंहई ले खपरा वाले घर के बारा बज जाय रहिथे, कभू कभू तो पर्दा कोठ तको गिर जाथे, जेखर ले जान माल के घलो नुकसान हो जाथे। कई साल चौमास मा महामारी तको सपड़ जाथे, मलेरिया,टाइफाइड, हैजा, पेचिस, डायरिया कस कतको महामारी बरसा घरी जादा पदोथे। हवा पानी मा चिरई चिरगुन अउ कतको जीव  मनके झाला खोंधरा उझर जाथे, जादा पानी मा कतको चिरई चिरगुन अउ छोटे मोटे जीव जानवर पीटा के मर जाथे। सांप बिच्छू के बिला मा पानी भरे के कारण जबरन घर छोड़ निकले बर पड़थे, अउ कभू कभू मनखे मनके लउठी के पूर्तिन घलो हो जाथें। बिन मुँह के कई जानवर अउ गाय गरुवा बपुरा मन झड़ी बादर मा भींगत कुड़कुड़ावत रहिथें। जघा जघा फाँफ़ा फुरफुंदी,कीरा मकोड़ा मरे दिखथें। चाल के बरोबर पानी बादर आथे तभे चौमास खुशी मा गुजरथे, कमती अउ जादा पानी दुख के कारण बन जाथे।


*चौमास मा लइका*–

वइसे तो आसाढ़ लगत लइका मन के स्कूल खुल जाथे, जिहाँ गुरुजी मन जेवनी हाथ ले डेरी कान ला मुड़ के बीचों बीच हाथ ला मोड़त अमरे ले लइका मन ला स्कूल मा दाखिला घलो दे देथें, भर्ती के बाद अउ नवा कक्षा मा जवइया लइका मन स्कूल टेम मा, स्कूल तो जाबे करथें, तभो स्कूल होय या फेर घर गली, खेल कूद करना नइ छोड़ें।  लइका मन सब ले जादा मतंग होके चौमासे मा खेल के मजा लेथें। चौमास लगे ले लइका मन के खेल कूद घलो बदल जथे। चिखला मा गिल्ली, भौरा, बाँटी, पिठ्ठूल खेलत नइ बने ता लइका मन लोहा गड़ावत, नदी पहाड़ खेलत, डोंगा चलावत,  रद्दा या मेड़ पार ला बिच्छल करके बिछलत, धार ला बांध के रोकत, घानी मुंदी खेलत, फाँफ़ा फुरफन्दी पकड़त, तरिया ढोंड़गा मा  तँउरत, पथरा माटी फेकत अउ घर संग स्कूल के काम बूता करत चौमासा के आनंद लेथें। आँखी उघारत चिचोल ला अंगरा मा भूंज, चिरई जाम, कैत, होरा, जोंधरा अउ फुटू खावत मगन घूमत रहिथें। वइसे तो सबे तिहार बार मा लइका मन भारी खुश रहिथे तभो, गणेश पूजा भर लइका मन के उछाह के ठिकाना नइ रहे। हरेली, पोरा अउ राखी तिहार मा गेड़ी चढ़ना, डंडा पिचरंगा खेलना, राखी के गुजगुजा ला सड़क मा उड़ाना, मछरी धरना, नदिया बइला, पोरा जांता चलाना लइका मन ला बड़ भाथे। लइका मन खेवन खेवन खिड्डी अउ मी होवत, माने एके घड़ी लड़त अउ एके घड़ी मिलत, खेत खार संग स्कूल जावत अउ रोटी पीठा खावत मगन मन लइका मन चौमास ला सब मिल हाँसत खेलत काँटथें। जब झड़ी करथे तब लइका मन अंगाकर रोटी अउ चना होरा चाबत घरे मा संगी साथी संग तिरिपासा अउ गोंटा खेलत समय बिताथे। नान्हे लइका मन ला दाई ददा मन कतको बरजथें तभो बरसत पानी मा भींगत,उंडत,गिरत,उठत, धार ला छीतत, डोंगा ढीलत बड़ मस्ती करथे, खेवन खेवन कपड़ा लत्ता ला मइलावत रहिथें अउ खुदे पानी खेलत धोवत घलो रहिथें।


             चौमास के चार महीना पानी बादर के महीना आय, जेमा आसाढ़,सावन मा बिकट पानी गिरथे, अउ भादो ले कुंवार पहुँचत कमती होय बर लग जथे। चौमास के ये चार महीना मा खेत मा बोवाये फसल,सजोर होके, पके बर धर लेथे। किसान मन चौमास भर जाँगर खपावत, अउ मन बहलाये बर तिहार बार मनावत हॉसत गावत,सुख के संग दुख तको ला झेलत चार महीना ला बिताथें। छत, सड़क, सीमेंट अउ मशीनी युग मा, शहर लहुटत गांव मा अब ये सब चीज धीर लगाके नँदावत जावत हे, तभो आजो कतको गांव कोती ये सब झांकी देखे बर मिलथेच।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)