Wednesday 23 June 2021

कबीर साहेब(कुंडलियाँ छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 कबीर साहेब(कुंडलियाँ छंद)-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


धरहा करके लेखनी, कहिस बात ला सार।
सत के जोती बार के, दुरिहाइस अँधियार।
दुरिहाइस अँधियार, सुरुज कस संत कबीरा।
हरिस आन के पीर, झेल के खुद दुख पीरा।
एक तुला सब तोल, बताइस बढ़िया सरहा।
करिस ढोंग मा वार, बात कहिके बड़ धरहा।

बानी संत कबीर के, दुवा दवा अउ बान।
साधु सुने सत बात ला, लोभी तोपे कान।
लोभी तोपे कान, कहे जब गोठ कबीरा।
लोहा होवय सोन, चमक खो देवय हीरा।
तन मन निर्मल होय, झरे जब अमरित पानी।
तोड़य गरब गुमान, कबीरा के सत बानी।

जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

Wednesday 16 June 2021

 कुंडलियाँ छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बरसात मा लइका


लइका मन हा नाँचथें, होथे जब बौछार।

माटी मा जाथें सना, रोक रोक जल धार।।

रोक रोक जल धार, खेलथें चिखला पानी।

कखरो सुनयँ न बात, बरजथें दादी नानी।

जायँ कलेचुप खोर, हेर के राचर फइका।

पावयँ जब बरसात, मगन सब नाँचयँ लइका।


पावै जब बरसात ला, लाँघै घर अउ द्वार।

माटे के रँग मा रचे, रोकै जल के धार।

रोकै जल के धार, गली मा भागै पल्ला।

संगी सब सकलायँ, मचावै नंगत हल्ला।

खेलै हँस हँस खेल, पात कागज बोहावै।

नाचै गावै खूब, मजा बरसा के पावै।।


अबके लइकन मन कहाँ, बारिस मा इतराय।

जुड़ जर के डर हे कही, घर भीतर मिटकाय।

घर भीतर मिटकाय, भिंगै का कुरथा चुन्दी।

का कागज के नाव, खेल का घानी मुन्दी।

हवै मुबाइल हाथ, सहारा टीवी सबके।

होगे हें सुखियार, देख लइकन मन अबके।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Monday 14 June 2021

आषाढ़ मा उगे लमेरा-रोला छ्न्द




आषाढ़ मा उगे लमेरा-रोला छ्न्द

आये जब आषाढ़, रझारझ बरसे पानी।
झाँके पीकी फोड़, लमेरा आनी बानी।
किसम किसम के काँद, नार बन बिरवा जागे।
नजर जिंहाँ तक जाय, धरा बस धानी लागे।

बम्हरी बगई बेल, बेंमची अउ बोदेला।
बच बगनखा बकूल, बोदिला बदउर बेला।
बन तुलसी बोहार, जिमीकाँदा अउ जीरा।
खदर खैर खरबूज, खेड़हा कुमढ़ा खीरा।

काँसी कुसुम कनेर, कुकुरमुत्ता करमत्ता।
कँदई अउ केवाँछ, भेंगरा फुलही पत्ता।
कुँदरू कुलथी काँस, करेला काँदा कूसा।
कर्रा कैथ करंज, करौंदा करिया रूसा।

सन चिरचिरा चिचोल, चरोटा अउ चुनचुनिया।
लटकन लीम लवांग, लजोनी लिमऊ लुनिया।
गूमी गुरतुर लीम, गोड़िला गाँजा मुनगा।
गुखरू गुठलू जाम, गोमती गोंदा झुनगा।

दवना दुग्धी दूब, मेमरी अउ मोकैया।
धतुरा धन बोहार, बजंत्री बाँस चिरैया।
साँवा शिव बम्भूर, सेवती सोंप सिंघाड़ा।
आदा अंडी आम , आँवला अउ गोंटारा।

माछी मुड़ी मजीठ, मुँगेसा मूँग मछरिया।
कउहा कँउवा काँद, केकती अउ केसरिया।
बन रमकलिया छींद, कोलिहापुरी कलिंदर।
रक्सी रंगनबेल, खेकसी पोनी पसहर।

भसकटिया दसमूर, पदीना पोई पठवन।
गुलखैरा गुड़मार, सेनहा साजा दसवन।
गुड़सुखडी गिन्दोल, गोकर्णी गँउहा गुड़हर।
फरहद फरसा फूट, फोटका परसा फुड़हर।

देवधूप खम्हार, मोखला अरमपपाई।
उरदानी फन्नास, सारवा अउ कोचाई।
गुढ़रू चिनिया बेर, सन्दरेली सिलियारी।
उरईबूटा भाँट, खोटनी रखिया ज्वाँरी।
 
हँफली हरदी चेंच, डँवर धनधनी अमारी।
बाँदा बर बरियार, मेंहदी बाँकसियारी।
चिरपोटी चनसूर, कोदिला कोपट कसही।
रागी रामदतोन, कोचिला केनी कटही।

बिच्छीसुल शहतूत, कोरई अउ कोलीयारी।
लिली सुदर्शन फर्न, सबे ला भावै भारी।
लिख पावौं सब नाम,मोर बस में नइ भैया।
बरसा घड़ी अघाय, धरा सँग ताल तलैया।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

Thursday 10 June 2021

अगोरा असाड़ के हे

 अगोरा असाड़ के हे


बइला मेछरात हे, असकटात हे नाँगर ।

खेती-किसानी बर, ललचात हे  जाँगर।

कॉटा-खूटी  बिनागे  हे।

तन मन मा उमंग हमा गेहे।

बँधा गेहे मुही ,जेन मेड़-पार के हे।

अब तो अगोरा,असाड़ के हे।


बिजहा लुकलुकात हे, कोठी ले खेत  जाय बर।

मन करत हे मेड़ म, चटनी बासी-पेज खाय बर।

खेत कोती मेला लगही अब।

बन दूबी कांदी जगही अब।

पीये बर पानी पपीहा कस भुइयाँ,

खड़े मुहँ फार के हे |

अब तो अगोरा असाड़ के हे|


झँउहा-टुकनी,रापा-कुदारी।

अगोरत हे अपन अपन पारी ।

बड़का बाबू सधाये हे धान जोरे बर।

नान्हे नोनी सुर्रह्त हे टोकान कोड़े बर।

तियार हे खेले बर खेती के जुआ,

जे किसान पऊर सब चीज हार गेहे।

अब तो अगोरा असाड़ं के हे।


            जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                बाल्को(कोरबा)

लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" धरती दाई

 लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


धरती दाई


जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।

पेड़ पात बिन दिखे बोंदवा, धरती के ओना कोना।।


टावर छत मीनार हरे का, धरती के गहना गुठिया।

मुँह मोड़त हें कलम धरइया, कोन धरे नाँगर मुठिया।

बाँट डरे हें इंच इंच ला, तोर मोर कहिके सबझन।

नभ लाँघे बर पाँख उगा हें, धरती मा रहिके सबझन।

माटी ले दुरिहाना काबर, आखिर हे माटी होना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।।


दाना पानी सबला देथे, सबके भार उठाय हवै।

धरती दाई के कोरा मा, सरी संसार समाय हवै।

मनखे सँग मा जीव जानवर, सब झन ला पोंसे पाले।

तेखर उप्पर आफत आहे, कोन भला ओला टाले।

धानी रइही धरती दाई, तभे उपजही धन सोना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।


होगे हे विकास के सेती, धरती के चउदा बाँटा।

छागे छत सीमेंट सबे कर, बिछगे हे दुख के काँटा।

कभू बाढ़ मा बूड़त दिखथे, कभू घाम मा उसनावै।

कभू काँपथे थरथर थरथर, कभू दरक छाती जावै।

देखावा धर मनुष करत हे, स्वारथ बर जादू टोना।

जतन बिना धरती दाई के, सिसक सिसक पड़ही रोना।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

तुलसीदास अउ छत्तीसगढ़-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 तुलसीदास अउ छत्तीसगढ़-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


                   गोस्वामी तुलसीदास जी हमर छत्तीसगढ़ राज म रामचरित मानस के माध्यम ले गांव गांव अउ घर घर म पूज्यनीय हे, कोनो परब-तिहार, छट्ठी बरही, मरही हरनी सबे दुख सुख के बेरा म गोस्वामी जी के पावन कृति"रामचरितमानस" घरो घर म पढ़े सुने जाथे। चाहे कोनो गाँव होय या शहर जमे कोती गाँव गाँव, पारा पारा म एक दू ठन रमायण मण्डली खच्चित मिलथे। तुलसीकृत रामचरित के दोहा चौपाई जमे छत्तीसगढ़िया मनके अंतर आत्मा म समाय हे, ते पाय के कभू अइसे नइ लगिस कि गोस्वामी जी आन कोती के आय, सदा अइसे लगथे, कि हमरे अपने राज के आय। गोस्वामी महराज ह हम सब छत्तीसगढ़िया मन ल दुर्लभ प्रसाद देहे, अउ हम सबके दिलो दिमाक म सदियों ले राज करत आवत हे,, अउ अवइया समे घलो राज करही। तुलसीकृत रामचरित मानस अउ अवधी म लिखे अन्य ग्रंथ मन छत्तीसगढिया मन ल सहज ही समझ आ जथे, काबर कि माता कौशल्या के मइके छत्तीसगढ़ के छत्तीसगढ़ी और अयोध्या के अवधी म एक दुसर के राज म अवई जवई ले दुनो भाषा आपस म चिपक गे रिहिस। यहू कारण तुलसीदास की के अवधी म रचित ग्रंथ ह छत्तीसगढ़िया मन बर अटपटा नइ लगय। तुलसीदास जी के जयंती छत्तीसगढ़ म धूमधाम से मनाये जाथे, ये दिन राम कथा पाठ अउ भजन कीर्तन जम्मो कोती होथे। सिरिफ छत्तीसगढ़ मन ही नही बल्कि पूरा भारत वर्ष तुलसीदास जी के राम चरित रूपी भव तरे बर डोंगा ल पाके कृतार्थ हें।

                  कथे कि तुलसीदास जी महाराज प्रभु कृपा अउ अपन आत्म शक्ति ले कलयुग के मनखे मन बर भगसागर तरे बर डोंगा(रामचरित मानस) के रचना करिन। तुलसीदास जी ल महर्षि बाल्मीकि जी के अवतार घलो माने जाथे। संगे सँग यहू कहे जाथे कि तुलसीदास जी ल शिव पार्वती, बजरंगबली के संगे संग भगवान राम, लक्ष्मण अउ जॉनकी समेत दर्शन देय रिहिस।


*चित्रकूट की घाट पर, भये सन्तन की भीड़।*

*तुलसीदास चन्दन घँसे, तिलक देत रघुवीर।*


 गोस्वामी जी के रचना म दोहा चौपाई अउ कतको प्रकार के छ्न्द के माध्यम से छत्तीसगढ़ सँउहत शोभा पाथे। पुनीत ग्रंथ ल पढ़के अइसे लगथे कि तुलसीदास जी महाराज छत्तीसगढ़ म घूम घूम के रामचरित मानस के रचना करे हे। भगवान राम अपन वनवास के बनेच समय छत्तीसगढ़ म गुजारे हे।जुन्ना समय म छत्तीसगढ़ दण्डकारण्य कहलावै, अउ तुलसीदास जी महाराज कतकोन बेर अपन रचना म इही नाम ल सँघेरे हे-


*दण्डक बन प्रभु कीन्ह सुहावन।जन मन अमित नाम किये पावन*


तुलसीदास जी महाराज रामचरित मानस के रचना करत बेरा छत्तीसगढ़ ल अपन अंतरात्मा ले देखे हे। तभे तो इहाँ के संत मुनि-दीन दुखी मनके पीरा ल हरत भगवान राम ल देखाय हे।उत्तर छत्तीसगढ़ म सरभंग ऋषि के आश्रम म पहुँचे के चित्रण गोस्वामी जी के रचना म मिलथे----


*तुरतहि रुचिर रूप तेहि पावा।देखि दुखी निज धाम पठावा*

*पुनि आए जहँ मुनि सरभंजा।सुंदर अनुज जानकी संगा*


पुत्र यज्ञ बर छत्तीसगढ़ ले सृंगी ऋषि के अयोध्या जाय के वर्णन, अउ श्री राम के  सिहावा पर्वत म बाल्मीकि आश्रम आय के वर्णन , गोस्वामी तुलसीदास जी अपन महाकाव्य म करे हे-

*सृंगी ऋषिहि वशिष्ट बोलावा। पुत्र काम शुभ यज्ञ करावा।*


*देखत बन सर सैल सुहाये।बाल्मीकि आश्रम प्रभु आये।*


येखर संगे संग गोस्वामी तुलसीदास जी ह, सिहावा पर्वत अउ महानदी के पावन जल के घलो बड़ मनभावन ढंग ले चित्रण करे हे-


*तब रघुवीर श्रमित सिय जानी। देखि निकट बटु शीतल पानी।*

*तहँ बसि कंद मूल फल खाई। प्रात नहाइ चले रघुराई।*


*राम दीख मुनि वायु सुहावन। सुंदर गिरि कानन जलु पावन*

*सरनि सरोज विटप बन फूले।गूँजत मंजु मधुप रस भूले।*


भगवान राम के आय ले, सन्त मन के संगे संग,,दण्डक बन के जीव जानवर मनके मनोदशा देखावत तुलसीदास जी लिखथे---


*खग मृग विपुल कोलाहल करही।बिरहित बैर मुदित मन चरही।*

*नव पल्लव कुसुमित तरु नाना।चंचरीक चटली कर गाना।*

*सीतल मंद सुगंध सुभाउ।सन्तत बटइ मनोहर बाउ।*

*कूह कूह कोकिल धुनि करही।सुनि रव सरस ध्यान मुनि टरही।*

*चक्रवाक बक खग समुदाई।देखत बनइ बरनि नहि जाई।*


न देखत बने, न बरनत, गोस्वामी जी के अइसन पंक्ति देखत कभू नइ लगे कि गोस्वामी जी दण्डक बन के शोभा ल आँखी म नइ देखे होही।


तुलसीदास जी महराज महानदी के तट म भगवान के रद्दा जोहत शबरी माता के घलो कथा बताये हे, राम जी के दर्शन माता शबरी पाय हे अउ संग म नवधा भक्ति के धारा घलो बहे हे-


*ताहि देइ गति राम उदारा।शबरी के आश्रम प्रभु धारा*

(पक्षी राज ल परम् गति देय के बाद प्रभु राम जी शबरी के आश्रम घलो पहुँचिस।)


तुलसीदास जी महराज शबरी के हाथ ले भगवान राम ल कंद मूल फल देय के घलो बात केहे हे-


*कंद मूल फल सुरस अति, दिए राम कहुँ आनि।*

*प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि*


जंगल म निवास करत दीन दुखी मुनि जन मनके रक्षा बर भगवान राम ल असुरन मन ले लड़े के बात घलो गोस्वामी जी कहे हे, रेंड नदी के तट म बसे रक्सगन्डा नामक जघा, खरौद म खरदूषण, राक्षसराज विराट, अउ मरीज के सँघार के घलो बात दण्डक बन ले जुड़े हे---


*दंडक बन पुनीत प्रभु करहू।उग्र साप मुनिवर कर हरहू*

*बास करहु तहँ रघुकुल राया। कीजे सकल मुनिह पर दाया।*


गोस्वामी तुलसीदास जी के महाकाव्य ले सहज ही पता लगथे कि ज्यादातर अरण्य कांड के घटना दण्डक बन याने छत्तीसगढ़ ले जुड़े हे। जेमा- पंचवटी निवास, खरदूषण वध, मारीच प्रसंग, सीताहरण, शबरी कृपा आदि


 वइसे तो आने आने  राज के मनखे मन पंचवटी ल अपन अपन क्षेत्र (मध्य प्रदेश, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र,उत्तराखण्ड) म होय के बात करथे, फेर सीताबेंगरा, जोगीमारा गुफा म स्थित  लक्षमण गुफा अउ लक्षमण रेखा के साथ साथ गोस्वामी तुलसीदास जी के कतको चौपाई , अउ घटना क्रम जेमा, मारीच वध, खरदूषण वध, आदि छत्तीसगढ़ म होय के पुख्ता सबूत देथे-


*पंचवटी बसि श्री रघुनायक। करत चरित सुर मुनि सुखदायक।*


सूर्पनखा अपन नाक कान कटे के बाद खरदूषण ल जाके कइथे-

*खरदूषण पहि गइ बिलपाता। धिग धिग तव पौरुष बल भ्राता।*


*धुँवा देखि खरदूषण केरा।जाइ सुपरखा रावण केरा।*


एक सुनत जानकारी अनुसार अपन जीवन के आखिर समय म लवकुश जन्मस्थली म तीन दिन बर गोस्वामी जी छत्तीसगढ़ आये रहिन अउ उँहे अपन कृति कवितावली के तीन ठन छ्न्द ल सिरजाइन। रामचरित मानस ल पढ़त सुनत अइसे लगथे कि तुलसीदास जी ह छत्तीसगढ़ म ही रहिके, छत्तीसगढ़ी संग मिलत जुलत भाषा म छत्तीगढ़िया मनके कल्याण बर रामचरित मानस के रचना करे हे। छत्तीसगढ़ ल रासमय करे म गोस्वामी जी के अहम योगदान हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

जय हनुमान-कुंडलियाँ छंद

 जय हनुमान-कुंडलियाँ छंद


भारी आहे आपदा, सबे हवै हलकान।

हाथ जोड़ सुमिरन करौं, दुरिहावव हनुमान।

दुरिहावव हनुमान, काल बनगे कोरोना।

शहर कहँव का गाँव, उजड़गे कोना कोना।

सब होगे मजबूर, खुशी मा चलगे आरी।

का विकास विज्ञान, सबे बर हे जर भारी।।


चंदा ला लेहन अमर, लेहन सूरज जीत।

कोरोना के मार मा, तभो पड़े हन चीत।

तभो पड़े हन चीत, सिरागे गरब गुमानी।

घर भीतर हन बंद, पियत हन पसिया पानी।

मति गेहे छरियाय, लटकगे गल मा फंदा।

टार रात अँधियार, पवन सुत बन आ चंदा।।


चारो कोती मातगे, हाल होय बेहाल।

सुरसा कस मुँह फार दिस, कोरोना बन काल।

कोरोना बन काल, लिलत हे येला वोला।

अइसन आफत देख, काँप जावत हे चोला।

आजा हे हनुमान, दुखी जन के सुन आरो।

नइ आवत हे काम, नता धन बल गुण चारो।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

कोरबा(छग)


श्री हनुमान जयंती के आप ला सादर बधाई।।।

सपरिवार सदा स्वस्थ सुखी रहव।।।

ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*

 ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'*


*बहरे रमल मुरब्बा सालिम*

*फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन*

*2122 2122*


पैदा होवत पर निकलगे।

फूल के बिन फर निकलगे।1


बाहिरी मा खोज होइस।

चोर घर भीतर निकलगे।2


दू भगाये लड़ते रहिगे।

पेट तीसर भर निकलगे।3


सर्दी अउ खाँसी जनम के।

आज बड़का जर निकलगे।4


घुरघुरावत जी रिहिस बड़।

हौसला पा डर निकलगे।5


गाय गरुवा मन घरे के।

सब फसल ला चर निकलगे।6


जेन ला झमझेन दाता।

साँप वो बिखहर निकलगे।7


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

मजबूर मैं मजदूर(रोला छंद)

 मजबूर मैं  मजदूर(रोला छंद)


करहूँ का धन जोड़, मोर तो धन जाँगर ए।

गैंती  रापा  संग , मोर   साथी   नाँगर  ए।

मोर  गढ़े  मीनार, देख   लौ  अमरे  बादर।

मिहीं  धरे  हौं  नेंव, पूछ लौ जाके घर घर।


भुँइयाँ ला मैं कोड़, ओगराथँव पानी जी।

जाँगर  रोजे  पेर,धरा  करथौं  धानी  जी।

बाँधे हवौं समुंद,कुँआ नदियाँ अउ नाला।

बूता  ले दिन  रात,हाथ  उबके  हे छाला।


सच  मा हौं मजबूर,रोज महिनत कर करके।

बिगड़े  हे  तकदीर,ठिकाना  नइ   हे  घर के।

थोरिक सुख आ जाय,बिधाता मोरो आँगन।

महूँ  पेट भर खाँव, पड़े  हावँव बस  लाँघन।


घाम  जाड़  आसाड़, कभू नइ  सुरतावँव मैं।

करथों अड़बड़ काम,फेर फल नइ पावँव मैं।

हावय तन मा जान,छोड़ दँव महिनत कइसे।

धरम  करम  हे  काम,पूजथँव   देबी  जइसे।


जुन्ना कपड़ा ओढ़, ढाँकथों करिया  तन ला।

कभू जागही भाग, मनावत रहिथों मन ला।

रिहिस कटोरा हाथ, देख  ओमा  सोना हे।

भूख  मरँव  दिन  रात, भाग मोरे रोना  हे।


आँधी कहुँती आय, उड़ावै घर हा मोरे।

छीने सुख अउ चैन, बढ़े डर जर हा मोरे।

बइठे बइठे खाँव, महूँ हा चाहौं सबदिन।

फेर चँउर ना दार, बितावौं बस दिन गिनगिन।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

मजदूर दिवस अमर रहे🙏🙏

सन्त कवि कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़

 सन्त कवि कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़


                   संत कवि कबीर दास जी के नाम जइसे ही हमर मुखारबिंद म आथे, त ओखर जीवन-दर्शन, साखी-शबद अउ जम्मों सीख सिखौना नजर आघू झूल जथे। *वइसे तो कबीरदास जी के अवतरण हमर राज ले बाहिर होय रिहिस, तभो ले, सन्त कवि कबीर दास जी अउ ओखर शिक्षा दीक्षा हमर छत्तीसगढ़ म अइसे रचबस गेहे, जेला देखत सुनत कभू नइ लगिस कि कबीरदास जी आन राज के सिध्द रिहिन।* कबीर दास जी के नाम छत्तीसगढ़ भर म रोज सुबे शाम गूँजत रहिथे। इहाँ के बड़खा आबादी कबीरपंथी हें, जेला कबीरहा घलो कहिथें,येमा कोनो जाति विशेष नही, बल्कि सबे जाति धरम के मनखे मन कबीर साहब के पंथ ल स्वीकारे हें। छत्तीसगढ़ ल कबीरमय करे म कबीर दास जी के पट चेला धनी धरम दास(जुड़ावन साहू) जी के बड़खा योगदान हे। सुने म मिलथे कि , एक बेर कबीरदास जी नानक देव संग पंथ के प्रचार प्रसार बर छत्तीसगढ़ के गौरेला पेंड्रा म अपन पावन पग ल मढ़ाये रहिस हे, उही समय ,जुड़ावन साहू जी कबीरदास जी ले अतका प्रभावित होइस कि अपन जम्मों धन दौलत ल कबीरदास के चरण कमल म अर्पित कर दिन, अउ ओखर दास बनगिन(जुड़ावन ले दीक्षा पाके धरम दास होगिन)। अउ हमर परम् सौभाग्य कि धनी धरम दास जी महाराज अपन गद्दी छत्तीसगढ़ म बनाइन, अउ इँहिचे रहिके कबीरपंथ ल आघू बढ़ाइन, अउ छत्तीगढ़िया मन अड़बड़ संख्या म जुड़िन घलो। धनी धरम दास जी ह कबीर के मुखाग्र साखी शब्द मन ल अपन कलम म ढालिस, ओ भी  हमर महतारी भाषा छत्तीसगढ़ी म। वइसे तो कबीरदास जी के भाषा  ल पंचमेल खिचड़ी या सधुक्कड़ी कहे जाथे, तभो ओखर प्रकशित पोथी म छत्तीसगढ़ी के प्रभाव दिखतेच बनथे--


धर्मदास के कुछ छतीसगढ़ी पदः-


मैं तो तेरे भजन भरोसो अविनाशी

तिरथ व्रत कछु नाही करे हो

वेद पड़े नाही कासी

जन्त्र मन्त्र टोटका नहीं जानेव

नितदिन फिरत उदासी

ये धट भीतर वधिक बसत हे

दिये लोग की ठाठी

धरमदास विनमय कर जोड़ी

सत गुरु चरनन दासी

सत गुरु चरनन दासी

**

आज धर आये साहेब मोर। 

हुल्सि हुल्सि घर अँगना बहारौं, 

मोतियन चऊँक पुराई। 

चरन घोय चरनामरित ले हैं 

सिंधासन् बइ ठाई। 

पाँच सखी मिल मंगल गाहैं, 

सबद्र मा सुरत सभाई।

**

संईया महरा, मोरी डालिया फंदावों। 

काहे के तोर डोलिया, काहे के तोर पालकी 

काहै के ओमा बाँस लगाबो 

आव भाव के डोलिया पालकी 

संत नाम के बाँस लगावो 

परेम के डोर जतन ले बांधो, 

ऊपर खलीता लाल ओढ़ावो 

ज्ञान दुलीचा झारि दसाबो, 

नाम के तकिया अधर लगावो 

धरमदास विनवै कर जोरी, 

गगन मंदिर मा पिया दुलरावौ।"


ये पद मन पूर्णतः कबीरदास जी ले ही प्रभावित हे,


              धनी धरम दास जी के जनम घलो छत्तीसगढ़ ले इतर मध्यप्रदेश(उमरिया) म होय रहिस, फेर वो जुन्ना समय म मध्यप्रदेश के  मेड़ो तीर के गांव  सँग गौरेला पेंड्रा के जम्मो इलाका बिलासपुर के सँग जुड़े रहय, तेखर सेती धनी धरमदास जी म छत्तीगढ़िया पन कूट कूट के भरे रिहिस। अउ जब कबीर के साखी शबद रमैनी मन ल धनी धरम दास जी पोथी म उतारिन, त वो  जम्मों छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म सहज उतरगे। 

                   धनी धरम दास जी के परलोक गमन के बाद, ओखर सुपुत्र चूड़ामणि(मुक्तामणि नाम साहेब) साहब घलो छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के गद्दी ल सँभालिन, अउ कोरबा जिला के कुदुरमाल गाँव म अपन गद्दी बनाइन, कुदुरमाल के बाद कबीर गद्दी परम्परा आघू बढ़त गिस अउ रतनपुर, मण्डला, धमधा, सिंगोढ़ी, कवर्धा म घलो गुरुगद्दी बनिस। चूड़ामणि साहेब के बाद ओखर सुपुत्र सुदर्शन नाम साहेब रतनपुर म गुरुगद्दी परम्परा के निर्वहन करिन, तेखर बाद कुलपति नाम साहेब, प्रमोध नाम साहेब, केवल नाम साहेब -----आदि आदि गुरु मनके सानिध्य म कबीरपंथ छत्तीसगढ़ म फलन फूलन लगिस। *गुरुगद्दी के 12वा  गुरु महंत अग्रनाम साहेब ह दामाखेड़ा म धनी धरम दास जी महाराज के मठ सन 1903 म स्थापित करिन, जिहाँ आजो कबीरपंथी मनके विशाल मेला भराथे।* वइसे तो कबीर पंथ के मुख्यालय सन्त कवि कबीरदास जी के नाम म बने जिला कबीरधाम जिला म हे, फेर कबीर पंथी मन छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा म समाये हें। 

                   धनी धरम दास जी ल दक्षिण के गुरुगद्दी के कमान सौपत बेरा कबीरदास जी भविष्यबानी करे रिहिन कि, धरम दास जी के नेतृत्व म कबीरपंथ खूब  फलही फुलही, अउ उही होइस घलो। *धनी धरम दास जी, कबीर पंथ के 42 गुरुगद्दी के स्वामी मनके नाम लिख के चल देहे। वर्तमान म 14 वाँ गुरुगद्दी के स्वामी प्रकाशमुनि नाम साहेब जी हे।* छत्तीसगढ़ के कबीरपंथी मन कबीरदास जी महाराज के नीति नियम ल हृदय ले स्वीकार करथें, अउ सुख दुख सबे बेरा कबीरदास जी महाराज के नाम लेथें। छत्तीसगढ़ म कबीरपंथी समुदाय म चौका आरती के परम्परा हें, जेमा कबीर साहेब के साखी शबद गूँजथें। कबीरपंथी छत्तीसगढ़ के उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम चारो मुड़ा सहज मिल जथे, अउ जेमन कबीर पंथी नइहे उहू मन कबीरदास जी के सीख सिखौना ल नइ भुला सकें। सबे जाति वर्ग समुदाय म कबीरदास जी महाराज के छाप हे। छत्तीसगढ़ भर म कबीर जयंती धूमधाम ले मनाये जाथे। जघा जघा मेला भराथे। *दामाखेड़ा, कुदुरमाल, कवर्धा, सिरपुर* आदि जघा कबीरपंथी मनके पावन तीर्थ आय, जिहाँ न सिर्फ कबीर पंथी बल्कि जम्मो जाति समुदाय सँकलाथे।

           कबीरदास जी दलित मनके मसीहा, पीड़ित मनके उद्धारक, दबे कुचले मनके आवाज रिहिन, समाजिक अन्याय अउ विषमता के  घोर विरोधी अउ न्याय संग समता के संस्थापक रिहिन। तेखरे सेती न सिर्फ हिन्दू मन बल्कि मुस्लिम अउ ईसाई मन घलो कबीरदास जी के अनुसरण करिन। कबीरदास जी के दोहा, साखी सबद न सिर्फ कबीरपंथी बल्कि छत्तीसगढ़ के घरों घर म टीवी रेडियो टेप टेपरिकार्डर के माध्यम ले मन ल बाँधत सरलग सुनाथे। कबीरदास जी महराज धनी धरम दास जी कारण छत्तीसगढ़ के कण कण म विराजित हे। कबीरदास जी के दोहा साखी सबद मनके कोनो सानी नइहे, विरोध के सुर के संगे संग जिनगी जिये के सार जम्मो छत्तीगढ़िया मन ल अपन दीवाना बना लेहे। पूरा भारत भर म छत्तीसगढ़ म ही कबीर पंथ के सबले जादा आश्रम अउ गद्दी संस्थान हे। कतको छत्तीगढ़िया मन आपस म *साहेब* कहिके अभिवादन करथें। अउ जादा का लिखँव महूँ, कबीरहा आँव।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया

 कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़-खैरझिटिया


कबीरदास जी महाराज निर्गुण भक्ति धारा के महान संत, समाज सुधारक दीन दुखी मनके हितवा रिहिन, अउ बेबाक अपन बात ल कहने वाला सिद्ध पुरुष रिहिन। उंखर दिये ज्ञान उपदेश न सिर्फ छत्तीसगढ़, बल्कि भारत भर के मनखे मनके अन्तस् मा राज करथें। कबीरदास जी अउ छत्तीसगढ़ के ये पावन प्रसंग म,मैं उंखर कुछ दोहा, जेन छत्तीसगढ़ के मनखे मनके अधर म सबे बेर समाये रहिथे, ओला सँघेरे के प्रयास करत हँव, ये दोहा मन आजो सरी संसार बर दर्पण सरीक हे, ये सिर्फ पढ़े लिखें मनखे मनके जुबान म ही नही, बल्कि जेन अनपढ़ हे तिंखरो मनके अधर ले बेरा बेरा म सहज बरसथे-----


                 जब जब हमर मन म कभू कभू भक्ति भाव उपजथे, अउ हमला सुरता आथे कि माया मोह म अतेक रम गे हन, कि भाव भजन बर टेम नइहे, त कबीरदास जी के ये दोहा अधर म सहज उतर जथे- 

*लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट।*

*पाछे फिर पछ्ताओगे, प्राण जाहि जब छूट ।।*

(देवारी तिहार म जब राउत भाई मन दफड़ा दमउ के ताल म, दोहा पारथे, तभो ये दोहा सहज सुने बर मिलथे।)


          कबीरदास जी के ये दोहा, तो लइका संग सियान सबे ल, समय के महत्ता के सीख देथे, अउ आज काली कोनो कहिथें, त इही दोहा कहे अउ सुने बर मिलथे-

*काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।*

*पल में प्रलय होएगी, बहुरी करेगा कब ।।*


लोक मंगल के भाव जब अन्तस् म जागथे, त कखरो कमी, आफत -विपत देख अन्तस् आहत होथे, त हाथ जोड़ छत्तीगढ़िया मनके मुख ले इही सुनाथे-

*साईं इतना दीजिये, जा के कुटुम्ब समाए ।*

*मैं भी भुखा न रहू, साधू ना भुखा जाय ।।*


                 मनखे के स्वभाव हे सुख म सोये अउ दुख म कल्हरे के, कहे के मतलब सुख के बेरा सब ओखर अउ दुख आइस त ऊपर वाला के देन। फेर जब समय रहत ये दोहा हमला याद आथे, त सजग घलो हो जथन, अउ अपन अहम ल एक कोंटा म रख देथन। सुख अउ दुख हमरे करनी आय। गूढ़ ज्ञान ले भरे, कबीर दास जी के ये दोहा काखर मुख म नइ होही---

*दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय ।*

*जो सुख मे सुमीरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।*


                     कहूँ भी मेर कुछु भी चीज के अति होवत दिखथे त सबे कथे- अति के अंत होही। कोनो भी चीज के अति बने नोहे। कतको मनके मुख म, कबीर साहेब के यहू दोहा रथे---

*अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप,*

*अती का भला न बरसना, अती कि भलि न धूप ।*


मनखे ल आन के बुराई फट ले दिख जथे, अउ जब वोला कबीरदास जी के ये दोहा हुदरथे, त वो लज्जित हो जथे।कबीर साहेब कथे-

*बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,*

*जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय ।*


                        छत्तीसगढ़ का सरी संसार मया के टेकनी म टिके हे। मनखे पोथी पढ़े ले पंडित नइ होय, मया प्रेम मनखे ल विद्वान बनाथे। यहू दोहा जम्मो लइका सियान ल मुखाग्र याद हे-

*पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय*

*ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ।*



मनखे के सही अउ देखावा म बहुत फरक होथे, तभे तो हमर सियान म हाना बरोबर कबीर साहेब के ये दोहा ल कहिथें-

*माटी का एक नाग बनाके, पूजे लोग लुगाय।*

*जिन्दा नाग जब घर में निकले, ले लाठी धमकाय ।।*


तन के मइल ल धोय ले जादा जरूरी मन के मइल ल धोना हे, मन जेखर मइला ते मनुष बइला। यहू दोहा ल सियान मन हाना बरोबर तुतारी मारत दिख जथे-

*मल मल धोए शरीर को, धोए न मन का मैल ।*

*नहाए गंगा गोमती, रहे बैल के बैल ।।*


          बोली ल गुरतुर होना चाही, तभे बोलइया मान पाथे।  छत्तीसगढ़ के चारो मुड़ा इही सुनाथे घलो, चाहे राउत भाई मनके दोहा म होय, या फेर लइका सियान मनके जुबान म,

बने बात बोले बर कोनो ल कहना हे त सबे कहिथें--

*ऐसी वाणी बोलिए, मन का आपा खोए।*

*औरन को शीतल करे , आपहु शीतल होए ।।*



                   हम छत्तीगढ़िया मनके आदत रहिथे बड़ाई सुनना अउ बुराई म चिढ़ना, फेर जब वोला कबीर साहेब के ये दोहा सुरता आथे त रीस तरवा म नइ चढ़े, बल्कि सही गलत सोचे बर मजबूर कर देथें-

*निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय*

*बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।*



         मनखे के शरीर म माया मोह अतेक जादा चिपके रहिथे, कि तन सिराये लगथे तभो माया मोह ल नइ छोड़ पाय, त कबीर साहब के ये दोहा सबके मुखारबिंद म सहज आ जथे-

*माया मुई न मन मुवा, मरि मरि गया सरीर।*

*आसा त्रिष्णा णा मुइ, यों कही गया कबीर ॥*


 कबीरदास जी के बेबाकी के सबे कायल हन, कोनो जाति धरम ल बढ़ावा न देके सिरिफ इंसानियत ल बढ़ाइस-

*हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमान,*

*आपस में दोउ लड़ी मुए, मरम न कोउ जान।*


            दोस्ती अउ दुश्मनी ले परे रहिके, सन्त ह्रदय कस काम करे बर कोनो कहिथे त, इही सूरता आथे-

*कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर*

*ना काहू से दोस्ती,न काहू से बैर।*


                  गुरु के महत्ता के बात ये दोहा ल छुये बिन कह पा सम्भव नइहे-

*गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय ।*

*बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥*

        

                  आजो कोई यदि अपन आप ल बड़े होय के डींग हाँकथे, त सियान का, लइका मन घलो इही कहिके तंज कँसथें-

*बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर ।*

*पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।*


                   निर्गुण भजन *बिरना बिरना बिरना---*  श्री कुलेश्वर ताम्रकार जी के स्वर म सीधा अन्तस् ल भेद देथे,वो भजन म ये दोहा सहज मान पावत हे, अउ इही दोहा हमर तुम्हर जिनगी के अटल सत्य घलो आय।

*माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।*

*एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।*


           घर म गुर्रावत जाँता, वइसे तो दू बेरा बर रोटी के व्यवस्था करथे, अउ कहूँ कबीरदास जी के ये दोहा मन म आ जाय, त अंतर मन  सुख दुख के पाट देख गहन चिंतन म पड़ जथे-

*चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय ।*

*दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ।*


लालच बुरी बलाय, अइसन सबे कथें, फेर काबर कथें तेला कबीरदास जी महाराज जनमानस के बीच म रखे हे, अउ जब लालच के बात आथे,या फेर मन म लालच आथे, त इही दोहा मनखे ल हुदरथे-

*माखी गुड में गडी रहे, पंख रहे लिपटाए ।*

*हाथ मले औ सर धुनें, लालच बुरी बलाय ।*


               कबीरदास जी के दोहा संग जिनगी के अटल सत्य सबे के मन म समाहित रथे, मनखे जीते जियत ही राजा रंक आय, मरे म मुर्दा के एके गत हे, भले मरघटी तक पहुँचे म ताम झाम दिखथे।

*आये है तो जायेंगे, राजा रंक फ़कीर ।*

*इक सिंहासन चढी चले, इक बंधे जंजीर।*


                    मनुष जनम ल ही सबे जीव जंतु के जनम ले श्रेष्ठ माने गेहे, अउ हे घलो, आज मनखे सब म राज करत हे। फेर जब कबीरदास जी के ये दोहा अन्तस् ल झकझोरथे, तब समझ आथे, मनखे हीरा काया धर कौड़ी बर मरत हे।

*रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।*

*हीरा जन्म अमोल सा, कोड़ी बदले जाय ।*


              धीर म ही खीर हे, इही बात ल कबीरदास जी महराज घलो केहे हे, जे सबके  अधर म समाये रथे, अउ मनखे ल धीर धरे के सीख देथे-

*धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।*

*माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ।*


                      कबीरदास जी के ये दोहा मनखे ल इन्सानियत देखाय के, बने काम करे  के शिक्षा देवत कहत हे, कि भले जनम धरत बेरा हमन रोये हन अउ जमाना हाँसिस, फेर हमला अइसे कॉम करना हे, जे हमर बिछोह म जमाना रोय। 

*कबीरा जब हम पैदा हुए, जग हँसे हम रोये,*

*ऐसी करनी कर चलो, हम हँसे जग रोये।*



                         काया के गरब वो दिन चूर चूर हो जथे जब हाड़, मास, केस सबे लकड़ी फाटा जस लेसा जथे। अइसन जीवन के अटल सत्य ले भला कोन अछूता हन-

*हाड़ जलै ज्यूं लाकड़ी, केस जलै ज्यूं घास।*

*सब तन जलता देखि करि, भया कबीर उदास।*


              "अब पछताये होत का जब चिड़िया चुग गई खेत" काखर जुबान म नइहे। अवसर गुजर जाय म सबला कबीर साहेब के इही दोहा सुरता आथे-

*आछे  दिन पाछे गए हरी से किया न हेत ।*

*अब पछताए होत क्या, चिडिया चुग गई खेत ।*


                   आत्मा अउ परमात्मा के बारे म बतावत कबीर साहेब के ये दोहा, मनखे ल जनम मरण ले मुक्त कर देथे-

*जल में कुम्भ कुम्भ  में जल है बाहर भीतर पानि ।*

*फूटा कुम्भ जल जलहि समाना यह तथ कह्यौ गयानि ।*


               छत्तीगढ़िया मन आँखी के देखे ल जादा महत्ता देथन, इही सार बात ल कबीरसाहेब घलो केहे हे-

*तू कहता कागद की लेखी मैं कहता आँखिन की देखी ।*

*मैं कहता सुरझावन हारि, तू राख्यौ उरझाई रे ।*


                आज जब चारो मुड़ा कोरोना काल बनके गरजत हे, मनखे हलकान होगे हे, तन का मन से घलो हार गेहे, त सबे कोती सुनावत हे, मन ल मजबूत करव, काबर की "मनके हारे हार अउ मनके जीते जीत"। पहली घलो ये दोहा शाश्वत रिहिस अउ आजो घलो मनखे के जीये बर थेभा हे, मन चंगा त  कठोती म गंगा हमर सियान मन घलो कहे हे-

*मन के हारे हार है मन के जीते जीत ।*

*कहे कबीर हरि पाइए मन ही की परतीत ।*


                  "जइसे खाबे अन्न , तइसे रइही मन" ये हाना हमर छत्तीसगढ़ म सबे कोती सुनाथे, कबीर साहेब घलो तो इही बात ल केहे हे- संग म पानी अउ बानी के बारे म घलो लिखे हे-

*जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय।*

*जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय।*


         कबीरदास जी महाराज जइसन ज्ञानी सिद्ध दीया धरके खोजे म घलो नइ मिले, उंखर एक एक शब्द म जीवन के सीख हे। अन्याय अउ अत्याचार के विरोध हे। सत्य के स्थापना हे। दरद के दवा हे। केहे जाय त भवसागर रूपी दरिया बर डोंगा बरोबर हे। धन भाग धनी धरम दास जी जइसे चेला जेन, कबीर साहेब जी के शब्द मन ल पोथी बनाके हम सबला दिन। अउ धन भाग हमर छत्तीसगढ़ जेला अपन पावन गद्दी बनाइन। उंखरे पावन कृपा ले आज सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ कबीरमय हे।


साहेब बन्दगी साहेब


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)





छत्तीसगढ़ अउ कबीर साहेब

 छत्तीसगढ़ अउ कबीर साहेब


             वइसे तो कबीर साहेब छत्तीगढ़िया मनके अन्तस् म बसथे, तभो आज कबीर साहेब के महत्ता छत्तीसगढ़ के गाँव-शहर, गली-खोर म देखे के प्रयास करबों। हमर छत्तीसगढ़ का,भारत भर म अइसन कोनो मनखे नइ होही जेन कबीर साहेब नइ जानत होही। संत कबीर कोनो जाति समुदाय के नही बल्कि, थके हारे, दबे कुचले, दीन हीन मनखे के थेभा रिहिन। छत्तीगढ़ भर म कबीर दास जी के नाम म कतको लइका लोग अउ घर दुवार के नाम दिख जथे, संगे संग गली खोर, गांव शहर म कबीर चौक, कबीरचौरा, कबीर पारा आदि कतको ठन चौक चौराहा घलो दिखथे। रायपुर, बिलासपुर, राजनांदगांव, रायगढ़ जइसे बड़का शहर म घलो कबीर साहेब के नाम म पारा मुहल्ला घलो हे। *बालोद जिला के अंतर्गत कबीर साहेब के नाम म एक भव्य भवन हे, जेला ए डी  सर जी ह जनसहयोग ले बनवाये रिहिस।* *कोरबा म कबीरदास जी के नाम म बड़का वाचनालय सुशोभित हे।*  छत्तीसगढ़ म कबीर दास जी के कतका प्रभाव हे, ये कबीरधाम नाम के हमर जिला ले अंदाजा लगाये जा सकथे। कहे के मतलब कबीर के नाम म चौक, चौराहा ही नही बल्कि 28 ठन जिला म एक ठन जिला ही कबीरधाम नाम के हे, जेला कवर्धा घलो कथन। *सुने म आथे की अपन जीवन काल म कबीरदास जी महाराज सकरी नदी के तट म छत्तीसगढ़ पधारे रिहिन, अउ उही मेर धनी धरम दास जी अपन गद्दी स्थापित करिन, ते पाय के वो स्थान कबीरधाम कहिलाथे।*


                         मनखे मनखे नाम, घर दुवार, गली खोर अउ गाँव शहर मनके नाम म, कबीरदास जी रचे बसे हे, वइसनेच हमर राज के जुन्ना विधा नाचा म घलो कबीर साहेब के प्रभाव दिखथे। पहली समय म कम साधन अउ बिना साज सज्जा के खड़े साज के चलन रहिस। रवेली अउ रिंगनी नाच पार्टी वो बेरा म खूब देखे सुने जावत रिहिस, जेमा मुख्य रूप ले सन्त समाज अउ दर्शक दीर्घा ल कबीर भजन ही परोसे जाय। कबीर साहेब अउ नाचा के जब नाम आथे त *कबीर नाच पार्टी मटेवा* के कलाकार मनके चेहरा अन्तस् म उतर जथे। श्री झुमुक़दास बघेल अउ नाहिक दास मानिकपुरी के जुगल प्रस्तुति सबके मन ल लुभा लेवय। कबीर के दोहा,साखी शबद, भजन,अउ गीत मुख्य आकर्षण के क्रेंद रहय। नाचा म जोक्कड़ मनके जोकड़ई म दर्शक दीर्घा ल हँसाये बर, कबीर के उलटबन्सी अउ दोहा खूब रोचक लगे।छत्तीसगढ़ म रामायण अउ भजन मण्डली म घलो कबीर साहेब के प्रभाव दिखथे।

                  कबीर दास जी के भजन मन जुन्ना बेरा म जतका प्रभावी रिहिस वइसनेच आजो हे। जीवन दर्शन ऊपर आधारित कबीर साहेब के दोहा, साखी, शबद के कोनो सानी नइहे। *कहत कबीर सुनो भाई साधो, माया तजि न जाय, झीनी रे झीनी चदरिया, साहेब तेरा भेद न जाने कोउ, कुछु लेना न देना मगन रहना, रहना नही देश बिराना, भजले साहेब बन्दगी, लागे मेरो मन फकीरी में*---आदि कतको भजन सुनत ही मनखे ल परम् सुख सहज मिल जथे। स्वरांजलि स्टूडियो ले छत्तीसगढ़ के दुलरुवा कवि अउ गायक  परम श्रध्देय मस्तुरिया जी *कबीर* नाम से एक कैसेट घलो निकाले रिहिस, जे भारी चलिस। जेमा कबीरदास जी के भजन ल अपन अंदाज म मस्तुरिया जी जनमानस के बीच रखे रिहिस। *बीजक मत पर माना, शबद साधना की जै, गुरु गोविंद खड़े, खबर नही आज, हमन है इश्क, माया तजि न जाय* कबीर दास जी के लिखे आदि भजन वी कैसेट म रिहिस। मस्तुरिया जी कबीर के नाम म खुद घलो कई ठन रचना करिन अउ वोला अपन स्वर दिन, जेमा हम तो तेरे साथी कबीरा हो, जइसे उम्दा भजन आजो मन ल मुग्ध कर देथे। कई लोक कलाकार मन घलो कबीरदास जी के भजन ल अपन स्वर दे हें।


                कबीरपंथी समुदाय, कबीर गद्दी आश्रम,  कबीर  के अमृत वाणी, साखी शबद सबे दृष्टि ले हमर छत्तीसगढ़ कबीरमय हे। दामाखेड़ा, कबीरधाम, कुदुरमाल, खरसिया, नादिया,बालोद,जइसन कई कबीर तीर्थ अउ अनेक आश्रम,  हमर छत्तीसगढ़ म बनेच संख्या म सुशोभित हे। कबीरदास जी महाराज छत्तीसगढ़ के कण कण म बिराजमान हे। सादा जीवन अउ उच्च विचार रखे, न सिर्फ कबीर पंथी बल्कि जमे छत्तीगढ़िया मन कबीर साहब के बताये रद्दा म चलही, त उंखर जीवन धन्य हो जाही। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

मनहरण घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" महतारी

 मनहरण घनाक्षरी-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

महतारी

दूध के कटोरी लाये, चंदा ममा ल बुलाये।

लोरी गाके लइका ला, सुघ्घर सुताय जी।।

अँचरा के छाँव तरी, सरग हे पाँव तरी।

बड़ भागी वो हरे जे, दाई मया पाय जी।।

महतारी के बिना ग, दूभर हवे जीना ग।

घर बन सबे सुन्ना, कुछु नी सुहाय जी।।

महतारी के मया, झन दुरिहाना कभू।

सेवा कर जीयत ले, दाई देवी ताय जी।।



पेट काट काट दाई, मया बाँट बाँट दाई।

लाले लोग लइका ला, घर परिवार ला।।

दया मया खान दाई, हरे वरदान दाई।

शेषनाँग सहीं बोहे, सबे के वो भार ला।

लीपे पोते घर द्वार, दिखे नित उजियार।

हाँड़ी ममहाये बड़, पाये कोन पार ला।

सबे के सहारा दाई, गंगा कस धारा दाई।

माथा मैं नँवाओं नित, देवी अवतार ला।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)



शंकर छ्न्द-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"



महतारी


महतारी कोरा मा लइका, खेल खेले नाँच।

माँ के राहत ले लइका ला, आय कुछु नइ आँच।

दाई दाई काहत लइका, दूध पीये हाँस।

महतारी हा लइका मनके, हरे सच मा साँस।।



अंगरखा पहिरावै दाई, आँख काजर आँज।

सब समान ला मॉं लइका के,रखे धो अउ माँज।

धरे रहिथे लइका ला दाई, बाँह मा पोटार।

अबड़ मया महतारी के हे, कोन पाही पार।।



करिया टीका माथ गाल मा, लगाये माँ रोज।

हरपल महतारी लइका बर, खुशी लाये खोज।

लइका ला खेलाये दाई, बजा तुतरू झाँझ।

किलकारी सुन माँ खुश होवै, रोज बिहना साँझ।



महतारी ला नइ देखे ता, गजब लइका रोय।

पाये आघू मा दाई ला, कलेचुप तब सोय।

बिन दाई के लइका मनके, दुःख जाने कोन।

लइका मन बर दाई कोरा, सरग हे सिरतोन।।


-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

मया-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 मया-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


मोर जिनगी होगे हे,अँधियार संगी रे।

छोड़ चल देहे मोला मोर,प्यार संगी रे।।


असाड़ आथे,त बिजुरी डरह्वाथे,

रोवाथे सावन के,बऊछार संगी रे।


भादो भर इती उती ,भटकत रहिथँव,

जरथँव रावन कस, कुँवार संगी रे।


संसो म बुलके,कातिक के देवारी,

अग्घन अगोरों,दीया बार संगी रे।


पूस के जाड़ा मा,काँपे बड़ हाड़ा,

माँघ म रोवँव  मैं, हार संगी रे।


कवने हा रँगही , फागुन रंग  म?

चैत अक्ति मनाँव का,तिहार संगी रे।


बइसाख बइरी,रहि-रहि बियापे,

जेठ भूंजे आगी म्,डार संगी रे।


तोर बिना मन,नइ लागे "जीतेन्द्र"

नइ भाये महीना,दिन बार संगी रे।


       जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

            बाल्को(कोरबा)

हरिगीतिका छंद-अक्ती

 हरिगीतिका छंद-अक्ती


मिलजुल मनाबों चल चली अक्ती अँजोरी पाख में।

करसा सजा दीया जला तिथि तीज के बैसाख में।।

खेती किसानी के नवा बच्छर हरे अक्ती परब।

छाहुर बँधाये बर चले मिल गाँव भर तज के गरब।।


ठाकुरदिया में सब जुरे दोना म धरके धान ला।

सब देंवता धामी मना बइगा बढ़ावय मान ला।।

खेती किसानी के उँहे बूता सबे बइगा करे।

फल देय देवी देंवता अन धन किसानी ले भरे।।


जाँगर खपाये के कसम खाये कमइयाँ मन जुरे।

खुशहाल राहय देश हा धन धान सुख सबला पुरे।।

मुहतुर किसानी के करे सब पाल खातू खेत में।

चीला चढ़ावय बीज बोवय फूल फूलय बेत में।।


ये दिन लिये अवतार हे भगवान परसू राम हा।

द्वापर खतम होइस हवै कलयुग बनिस धर धाम हा।

श्री हरि कथा काटे व्यथा सुमिरण करे ले सब मिले।

धन धान बाढ़े दान में दुख में घलो मन नइ हिले।


सब काज बर घर राज बर ये दिन रथे मंगल घड़ी।

बाजा बजे भाँवर परे ये दिन झरे सुख के झड़ी।।

रितुवा बसंती जाय आये झाँझ  झोला के समय।

मउहा झरे अमली झरे आमा चखे बर मन लमय।


करसी घरोघर लाय सब ठंडा रही पानी कही।

जुड़ चीज मन ला भाय बड़ शरबत मही मट्ठा दही।

ककड़ी कलिंदर काट के खाये म आये बड़ मजा।

जुड़ नीम बर के छाँव भाये,घाम हे सब बर सजा।


लइकन जुरे पुतरा धरे पुतरी बिहाये बर चले।

नाँचे गजब हाँसे गजब मन में मया ममता पले।

अक्ती जगावै प्रीत ला सब गाँव गलियन घर शहर।

पर प्रीत बाँटे छोड़के उगलत हवै मनखे जहर।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

9981441795


अक्ती तिहार के बहुत बहुत बधाई

कुंडलियाँ छ्न्द-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया" *दारू तुम्हर दुवार*

 कुंडलियाँ छ्न्द-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


*दारू तुम्हर दुवार*


दारू हा सरकार के, घर घर पहुँचय आज।

बिगड़े शिक्षा स्वास्थ हे, आय कहे मा लाज।

आय कहे मा लाज, देख के अइसन सब ला।

जनता हें लाचार, बजावै नेता तबला।

पीयाये बर मंद, हवै सरकार उतारू।

आफत के हे बेर, तभो घर पहुँचय दारू।


पानी बादर देख के, संसो करय किसान।

बंद बैंक बाजार हे, नइहे खातू धान।

नइहे खातू धान, किसानी कइसे होही।

बिन खातू बिन बीज, खेत मा काला बोही।

भटके बहिर किसान, करे बर धरती धानी।

पहुँचावय सरकार, घरों घर दारू पानी।।


जइसे दारू देत हव, तइसे दव सब चीज।

घर मा शिक्षा स्वास्थ सँग, देवव खातू बीज।

देवव खातू बीज, योजना ला सरकारी।

पावै मान किसान, भरे लाँघन के थारी।

रहिथे बड़ दुरिहाय, जरूरी सुविधा कइसे।

काबर नइ पहुँचाव, यहू ला दारू जइसे।



जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

दोहा-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 दोहा-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


नाम छोड़ नित काम के, पाछू नारी जाय।

हाथ मेहनत थाम के, सरग धरा मा लाय।।


मनखे सब रटते रथे, नारी नारी रोज।

तभो सुनत हे चीख ला, रुई कान मा बोज।


बोज रुई ला कान मा, होके मनुष मतंग।

करत हवैं कारज बुरा, महिला मनके संग।


लेख विधाता का लिखे, दुख हावै दिन रात।

काम बुता करथों सदा, खाथों भभ्भो लात।


नारी शक्ति महान हे, नारी जग आधार।

नारी ले निर्माण हे, नारी तारन हार।


शान दुई परिवार के, बेटी माई होय।

मइके ले ससुराल जा, सत सम्मत नित बोय।


आज राज नारी करे, चारो कोती देख।

अपन हाथ खुद हे गढ़त, अपने कर के लेख।


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ी म धन्यवाद ल का कहिथें, येखर जवाब लावणी छंद-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी म धन्यवाद ल का कहिथें, येखर जवाब


लावणी छंद-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।

देखा देखी हमू कहत हन, इही हमर का जीत हरे।


धन्यवाद कहि बाप ल बेटा, अउ कहि बाप ह बेटा ला।

धन्यवाद कहि लुका जही ता, बने कबे का नेता ला।।

सुख दुख के सब साथी आवन, इही मया अउ मीत हरे।

धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।।।।।।


बखत परे मा काम आय के, करजा हा रथे उधारी।

दीन दुखी के पीरा हरथे, उँखरे होथे नित चारी।।

नेक नियत हा धन दौलत अउ, गुरतुर बानी गीत हरे।

धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।।।


धन्यवाद के बिना घलो तो, पुरखा मन गुणवान रिहिन।

मदद करैया मनखे मन हा, मनखे बीच महान रिहिन।।

बात बात मा बरसत हे ते, शब्द बता सत प्रीत हरे।।

धन्यवाद कहिके बोचकना,बता हमर का रीत हरे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

मुखारी(सार छंद)-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

 मुखारी(सार छंद)-जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"


ब्रस मंजन के माँग बाढ़गे, दतुन देख फेकागे।

आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।


खेत खार अब कोन ह जावै, तोड़ै कोन मुखारी।

मंजन आगे आनी बानी, होवै मारा मारी।

करँव भला का बात शहर के, गाँव ह घलो झपागे।

आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।


बम्हरी नीम करंज जाम के, दतुन करे सब रोजे।

दवा बरोबर दतुन जान के, पहली सबझन खोजे।

दाँत मसूड़ा मुँह के रोग ह, करत मुखारी भागे।

आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।


एक मिनट मा दाँत चमकगे, चाबे के नइ झंझट।

जीभी आगे अब नइ हावय, चिड़ी करे के कंझट।

दाँत बरत हे मोती जइसे, चाबत चना खियागे।

आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।


दाँत घलो हा पोंडा परगे, ब्रस घँसे के सेती।

ठेठरी खुरमी चाब सके नइ, काय चबाही रेती।

शरद गरम नइ सहि पावत हे, असली नकली लागे।

आगे आगे आगे संगी, नवा जमाना आगे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 हरिगीतिका छंद - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


माने नही मन मोर जी,मस्तूरिहा के गीत बिन।

सुनके जिया मा जोश आथे,मन अघाथे जीत बिन।

सरसर करे पुरवा पवन मस्तूरिहा के गीत गा।

सबके सहारा गंग धारा वो मया अउ मीत गा।1।



चारो दिशा रोवत हवै,रोवत हवै घर खेत हा।

सुरता म आँसू नित ढरकथे,छिन हराथे चेत हा।

पानी पवन जब तक रही,तब तक रही मस्तूरिहा।

रहही जिया मा घर बना,होवय  कभू नइ दूरिहा।2।



हीरा असन सिरजाय हे,छत्तीसगढ़ के धूल ला।

माली बने  महकाय हे,साहित्य के वो फूल ला।

भभकाय हे जे धर कलम,आगी ल सोना खान के।

नँदिया  लबालब जे  भरे,संगीत अउ सुर तान के।3।



हारे  थके मन गीत सुन,रेंगें मया धर संग मा।

सँउहत दिखे छत्तीसगढ़,संगीत के सतरंग मा।

कतको चिरैया चार दिन,खिलके इहाँ मतवार हे।

महके   हवै मस्तूरिहा, छत्तीसगढ़  गुलजार हे।4।



अतका  करे कोनो नहीं,जतका  करे हे काम वो।

बाँटिस मया ममता सदा,माँगिस कहाँ पद नाम वो।

हे  लेखनी  जादू भरे,अउ का कहँव सुर ताल के।

मधुरस असन सब गीत हे, छत्तीसगढ़ के लाल के।5।



कइसे उदासी छाय हे,मन के सुवा मा देख ले।

नइहे भले तन हा इँहा,पर नाँव जीतै लेख ले।

वो नाँव के सूरज सदा,चमकत रही आगास मा।

दुरिहाय हावै तन भले,सुरता रही नित पास मा।6।



जब जब खड़े कविता पढ़े,बाँटे मया अउ मीत ला।

कतको  घरी देखे  हवँव,बाढ़े हवँव  सुन गीत ला।

कर खैरझिटिया जोड़ के,पँउरी परै वो लाल के।

अन्तस् बसाके नाँव ला,नैना म सुरता पाल के।7।



जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा) छत्तीसगढ़

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कुंडलियाँ छ्न्द- मस्तुरिया जी

 कुंडलियाँ छ्न्द- मस्तुरिया जी


मधुरस घोरे कान मा, मन ला लेवै जीत।

लोक गीत के प्राण ए, मस्तुरिया के गीत।

मस्तुरिया के गीत, सुनाथे जन के पीरा।

करदिस हे अनमोल, बना माटी ला हीरा।

करिस जियत भर काम, कभू नइ बोलिस हे बस।

माटी पूत महान, सदा बरसाइस मधुरस।


छोड़िस नइ स्वभिमान ला, सत के करिस बखान।

बनिस निसेनी मीत बर, बइरी मन बर बान।

बइरी मन बर बान, गिराइस हे मस्तुरिया।

दया मया सत घोर, बनाइस हे घर कुरिया।

कलम चला गा गीत, सदा मनखे ला जोड़िस।

अमरे बर आगास, कहाँ माटी ला छोड़िस।


जीतेन्द्र कुमार वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


सब बण्ठाधार होगे हे

 सब बण्ठाधार होगे हे


दहीं के जघा कपसा माढ़े हे।

देवता के जघा रक्सा ठाढ़े हे।

दवा अउ दुवा थोरको भी, काम नइ आत हे।

जरूरतमंद के राशनकार्ड म, नाम नइ आत हे।

मिर्चा मिट्ठा होगे, नून जमकरहा झार होगे हे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


मार मा झरगेहे, ढोलक तबला के खरवन।

ददा दाई ला तपत हे, आज के सरवन।

नाम के नदियाँ हे, जिहाँ पानी के नाम नही।

कोड़िहा मन काटे फर्जी,कमैया बर काम नही।

घर मा बारी बखरी दबगे, बंजर खेत खार होगे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


मनखे दवा ल मजबूरी मा,अउ दारू ल हाँस के पीयत हे।

कोई जीये बर खात हे, ता कतको खाय बर जीयत हे।

शहर के सताये सर्व सुविधा गाँव खोजत हे।

गाँव के लफरहा, पिज़्ज़ा बर्गर बोजत हे।

हँसिया बसुला भोथरागे,मनखे मन कटार होगे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


भँइसा के भाग म, स्विमिंग पूल हे।

तितली भौरा मरे,माछी बर फूल हे।

बेंदरा बइठे हे, परवा छानी मा।

झगरा फदके हे, जेठानी देरानी मा।

करधन ककनी ले वजनी, ढार होगे हे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


खजाना वाले, चिख चिख के खात हे।

भुखाय मनखे चीख चीख चिल्लात हे।

बूता के मारे कखरो,माँस नइहे।

ता कखरो तन मा, अमात नइहे।

निच्चट सरहा, नत्ता रिस्ता के तार होगे हे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


राजा घोड़ा छोड़, गदहा चढ़त हे।

सत स्वाहा होवत हे,बुराई बढ़त हे।

एक दूसर के ला खात हे, ता एक ला दूसर खवात हे।

फेर मनखे बीच के,घानी के बइला कस पेरात हे।

बिन लड़े भिड़े, सिपइहा के हार होगे।

सब बण्ठाधार होगे हे, सब बण्ठाधार होगे हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गीत-कारी घटा

 गीत-कारी घटा


कारी घटा तोला देखे कोन।

कोन बुलाथे बता सिरतोन।


तरिया नदिया कुँवा पियासे।

सबे लगाये हे तोर ले आसे।

गाये मोरनी गाये पपीहा।

तोर मा रमे हे सबके जी हा।

आ कहे आमा,साल सइगोन।

कारी घटा तोला देखे कोन।।


माटी ले मैं जुड़े हावँव।

सपना उही मा गुड़े हावँव।

नाम रटँव दिन रात मैं तोरे।

छत छँइहा के संसो छोड़े। 

करथस तैं माटी ला सोन।

कारी घटा तोला देखे कोन।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

खुमान जी ल काव्यांजलि (चौपई छंद)

 खुमान जी ल काव्यांजलि (चौपई छंद)


धान कटोरा के दुबराज,करबे तैंहर सब जुग राज।

सुसकत हावय सरी समाज,सुरता तोर लमाके आज।1।


चंदैनी गोदा मुरझाय,संगी साथी मुड़ी ठठाय।

तोर बिना दुच्छा संगीत,लेवस तैं सबके मन जीत।2।


हारमोनियम धरके हाथ,तबला ढोलक बेंजो साथ।

बाँटस मया दया सत मीत,गावस बने सजा के गीत।3।


तोर दिये जम्मो संगीत,हमर राज के बनके रीत।

सुने बिना नइ जिया अघाय,हाय साव तैं कहाँ लुकाय।4।


झुलथस नजर नजर मा मोर,काल बिगाड़े का कुछु तोर।

तोर कभू नइ नाम मिटाय,जिया भीतरी रही लिखाय।5।


तोर पार ला पावै कोन,तैंहर पारस अउ तैं सोन।

मस्तुरिहा सँग जोड़ी तोर,देय धरा मा अमरित घोर।6।


तोर उपर हम सबला नाज,शासन ले हे बड़े समाज।

माटी गोंटी मुरुख सकेल,खेलत हें देखावा खेल।7।


छत्तीसगढ़ के तैं हर शान, सबझन कहे खुमान खुमान।

धन धन धरा ठेकवा धाम, गूँजय गीत सुबे अउ शाम।8।


सबके अन्तस् मा दे घाव,बसे सरग मा दुलरू साव।

सच्चा छत्तीसगढ़िया पूत,शारद मैया के तैं दूत।9।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

खैरझिटी, राजनांदगांव(छग)

9981441795

गीत-जोरा खेती किसानी के

 गीत-जोरा खेती किसानी के


जोरा करले ग, खेती किसानी के।

दिन आवत हे, बादर पानी के।।।


झँउहा बिसाले नवा, नवा टुकनी चरिहा।

पजवा ले नाँगर के, लोहा ल नँघारिया।

हला डोला देख, जुड़ा डाँड़ी अउ नाँगर।

अब तो खपायेल लगही, दिन रात जाँगर।

फुरसत हो ग,छा खपरा छानी के।

दिन आवत हे, बादर पानी के।।।


घण्टी कानी नाथ नवा,बैला ल पहिराले।

नाहना जोंता काँसरा, केंनवरी बनाले।

जतन के रख रापा टँगिया, हँसिया कुदारी।

साग भाजी बर घलो, चतवार ले झट बारी।

खातू माटी ल,चाल धरती रानी के।

दिन आवत हे, बादर पानी के।।।


लमती टेंड़गी टपरी अउ, बाहरा हे बोना।

मासुरी महामाया कल्चर, सफरी अउ सरोना।

हरहुना अउ माई, सबो धान अलगाले।

लकड़ी छेना पैरा भूंसा, कोठा म भितराले।

भँदई चामटी म, तेल चुपर घानी के।

दिन आवत हे, बादर पानी के।।।


मोरा कमरा खुमरी अउ, छत्ता तिरियाले।

तुतारी बनाले, चामटी इरता लगाले।

बाँध बने मुही पार, गाँसा पखार।

कांद काँटा छोल छाल, डोली चतवार।

गा कर्मा ददरिया, हमर बानी के।

दिन आवत हे, बादर पानी के।।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)