Thursday, 27 November 2025

आनलेन पेमेंट-रोला छंद

 आनलेन पेमेंट-रोला छंद


आनलेन के दौर, हवै सब झन हा कहिथन।

फेर बखत ला देख, जुगत मा सबझन रहिथन।।

आनलेन पेमेंट, लेत हें पसरा ठेला।

बड़का मॉल दुकान, करैं नित पेलिक पेला।


अफसर बाबू सेठ, पुलिस नेता वैपारी।

माँगे नकदी नोट, कहत झन करबे चारी।।

भरे जेन के जेब, उही हा जेब टटोले।

उँखरे ले हे काम, कोन फोकट मुँह खोले।।


लुका लुका के नोट, धरत हावैं गट्ठी मा।

आनलेन पेमेंट, कहाँ चलथे भठ्ठी मा।।

मांगै नगदी नोट, बार भठ्ठी मुँह मंगा।

सरकारी हे छूट, लूट होवै बड़ चंगा।।


सट्टा पट्टी खेल, चलत हे चारो कोती।

विज्ञापन के धूम, लगत हे जस सुरहोती।

मिले हवै सरकार, खिलाड़ी अउ अभिनेता।

जनता ला बहकाँय, बताके विश्व विजेता।।


मुँहफारे घुसखोर, माँगथे नकदी रुपिया।

आनलेन पेमेंट, लेय ये कइसे खुफिया?

देखे जभ्भे नोट, तभे कारज निपटाये।

आनलेन के नाम, सुनत आँखी देखाये।।


आनलेन पेमेंट, देन कइसे छट्ठी मा।

आनलेन पेमेंट, देन कइसे भट्ठी मा।।

आनलेन मा बोल, देन कइसे नजराना।

आनलेन मा काज, करे नइ कोरट थाना।।


रोवत लइका लोग, मानही का बिन पइसा।

कइसे करहीं काम, जौन बर आखर भइसा।।

छोड़वाय बर संग, काय अब करना पड़ही।

आनलेन पेमेंट, बता का आघू बढ़ही?


उद्योगी के हाथ, हवै पावर अउ टॉवर।

रोवय धोवय नेट, इहाँ चौबीसों ऑवर।।

निच्चट हे इस्पीड, फोर जी फाइभ जी के।

सब झन हवन गुलाम, नेट के नौटंकी के।


डिजिटल होही देश, बता कइसे गा भइया।

पर के कुकरी गार, संग दूसर सेवइया।।

नेटजाल सरकार, बुने अउ देवैं सुविधा।

सोसल सेवा होय, तभे दुरिहाही दुविधा।।


आनलेन पेमेंट, कहाँ देथें लेथें सब।

तोर मोर बड़ छोट, यहू मा मिलथे देखब।।

ठगजग तक हें खूब, देख के काँपे चोला।

बढ़िया हो हर काम, तभे तो भाही मोला।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Saturday, 22 November 2025

ग़ज़ल – आम आदमी

 ग़ज़ल – आम आदमी

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं आम आदमी हूँ, फिर से छला जाऊँगा।  

कोई कहीं बुलाए, दौड़ा चला जाऊँगा।।1


मुझे खौफ़ इस क़दर है, क्या कहूँ मैं गैरों को।  

चूल्हे की आग में मैं, खुद ही जला जाऊँगा।।2


बहुमंजिला महल हो, सोना जड़ित हो शय्या।  

उस ठौर में बताओ, कैसे भला जाऊँगा।।3


हर युग में गिर रहा हूँ, हर युग में घिर रहा हूँ।  

कोई मुझे बताए, मैं कब फला जाऊँगा।।4


बदहाल ज़िंदगी है, चिंता कहाँ किसी को।  

ऊँच-नीच की भट्ठी में, हर पल गला जाऊँगा।।5


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

विद्या ददाति विनयम-जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया'

 विद्या ददाति विनयम-जीतेन्द्र वर्मा 'खैरझिटिया'


                       "विद्याददाति विनयम" बचपन ले ये सूक्त वाक्य ल पढ़त-सुनत आवत हन, कि विद्या माने शिक्षा/ज्ञान/समझ ले मनखें मा विनम्रता आथे, फेर का ये देखे बर मिलथे? आखिर विद्या/ज्ञान/समझ काय ए?  आज के हिसाब से, पहली ले लेके बड़का बड़का डिग्री इही तो ज्ञान आय न? इही तो समझ बढाथें न? जे जतका बड़े डिग्री धारी ते वोतके बड़े ज्ञानी, है न? ता फेर वो ज्ञानी के  ज्ञान/शिक्षा/समझ वोखर बानी, काम-काज अउ आदत- व्यवहार मा झलकना चाही, पर अइसन तो अब दिखबे नइ करे, बल्कि आज तो जे जतके ज्ञानी ते ततके अभिमानी। अइसन मा विद्या ले विनय वाले बात तो लबारी होगे। अनपढ़, नासमझ घलो अइसन नइ करे जउन आज डिग्रीधारी बड़का बड़का ज्ञानी मन करत दिखथें। डिग्रीधारी डॉक्टर, मास्टर, वकील, अफसर, बाबू, इंजीनियर अउ बड़े बड़े पदवी मा बइठे, आपके जानती मा, के झन मनखें विनयशील हें? के झन ईमानदार हे? के झन के डिग्री मा समझदारी झलकथे? शायद मोला डाटा बताये के जरूरत नइहें, काबर कि सिर्फ पेड़े भर फर मा लद के झुके दिखथे, पर मनुष एक्का दुक्का। ता अइसन काबर? का हमर शिक्षा नीति या फेर जेन ज्ञान दिए जावत हे, तिही मा कमी बेसी हे? ये आज चिंतन के विषय हे। बड़े बड़े स्कूल-कॉलेज के लइका मन रद्दा बाट मा मुँहफोर बकत दिखथें। मान गउन, इज्जत-आदर, छोटे-बड़े संग सही-गलत के तको खियाल नइ रखें। आज ज्यादातर पढ़े लिखे मन अंधाधुन मोटर गाड़ी कुदावत, मोबाइल मा दिन रात समय गँवावत, मंद-मउहा, सिगरेट अउ ड्रग्स के नसा मा चूर, होटल-ढाबा मा खावत घूमत अँटियात हें। डिस्को-नाइट क्लब, पब, कौसिनो जइसे बेकार जघा मा आज के मनखें मनके अड्डा हें। येमा पढ़इया लिखइया लइका मन संग बड़े बड़े साहब, सिपैहा सब शामिल दिखथें। का इही सब बुराई मन आय पढ़े लिखे के पहिचान? मनखें अनपढ़ रहिके कतको धीर-वीर, समझदार हो जाय, फेर आज आखर ज्ञान,देश दुनिया के जनइया ही पढ़े लिखे कहाथें।

               इंजीनिरिंग, मेडीकल अउ बड़े बड़े कॉलेज, हास्टल मन मा रैगिंग के नाम मा मार पीट, पार्टी सार्टी के नाम मा अश्लीलता, शोर- शराबा, गाली-गलौज, बेढंगा मौज मस्ती आज सहज देखे बर मिलथे। केक, स्प्रे, गुब्बारा आदि अउ कतको चीज ला फेकना-फाकना, बर्थ डे ब्वाय कहिके वोला मारना पीटना, लड़की-लड़का होय के बाद भी अश्लील नाच अउ गारी गल्ला देना, आंय बाँय कपड़ा लत्ता पहिनना, ये सब काय ए? येला पढ़े लिखे लइका मन रोजे करत हें। अइसन मा का आघू उंखर आदत व्यवहार मा विनम्रता अउ समझदारी झलकही? कहाँ जावत हे हमर शिक्षा? नैतिकता के तो नाँवे बुझागे हे। सभ्य, सहजता, सत्यता कुछ तो पढ़े लिखे मा झलके। आज तो चोर चंडाल बरोबर पढ़े लिखे मन ही समाज ला लूटत हें, बर्गालात हें, गलत नियम धियम परोसत हें। रीति नीति, नेत-नियम, संस्कृति- संस्कार ला बरो के सेवा- सत्कार अउ ईमानदारी के कसम खाके पद पाय साहब सिपैहा भ्रष्ट होके, ज्ञान अउ पद के नाम ला डुबोवत हें। शिक्षा के अपमान शिक्षित मन ही करत हें। घूसखोरी, दादागिरी, देखमरी, लालची, हवसी, मुँहजोरी, कामचोरी, स्वार्थी, दुश्मनी, जिद्दी, उज्जटपन असन अउ कतकोन बुराई जे शिक्षा ले भागथे कथे, ते शिक्षित मनखें मन के रग रग मा दिखत हें।  विद्यालय जे ज्ञान के मंदिर कहावै ते आज शोरूम/दुकान बनगे हे। पइसा देव ,डिग्री लेव। अइसन मा भला समझदारी, सहजता, विनम्रता जइसन चीज कइसे मिलही? लइका मन दाई ददा के बात बानी ला घलो नइ सुनत हें, ता आन के बरजना ला का मानही? इंज्वाय, इस्टाइल, एटीट्यूड, पर्सनाल्टी कहिके पढ़इया-लिखइया मन आज का का नइ करत हें, अउ जउन करत हें तेला सब  तो देखते हन।

           "विद्या ददाति विनयं,विनयाद् याति पात्रताम्।

            पात्रत्वात् धनमाप्नोति,धनात् धर्मं ततः सुखम्॥"

मतलब  विद्या ले विनय, विनय ले पात्रता, पात्रत्रा ले धन, धन ले धर्म अउ धर्म ले सुख के प्राप्ति होथे। ये सोला आना सच हे, फेर आज विद्या पाके मनखें कइसनों होय धन कमाए के सोचत हें। अनपढ़ घलो जांगर खपा के अपन दिन गुजारथे, फेर पढ़े लिखे मन आज अपन जिम्मेदारी, विधि-विधान अउ फर्ज ले भागत दिखथें। साहब, बाबू, डॉक्टर, मास्टर, अभियंता-------कस कतकोन मन ला निर्माण के जिम्मेदारी मिले हें, फेर आज स्वार्थ, हवस अउ जादा के चाह मा मनखें मन विनाश करे बर घलो तियार दिखथें। ऑनलाइन ठगी, लूट, चापलूसी, अनैतिक कृत्य, मिलावट, कालाबाजारी, स्मगलिंग, जासूसी, अपहरण, लफुटी, वसूली-----जइसे काम आज पढ़े लिखे मनखें मन डंका बजाके करत हें, काबर कि पदवी धारी लगभग सबे झन के इही हाल हे। अभिच देखे हन बड़का बड़का डिग्रीधारी डॉक्टर आतंकवादी हो जावत हे। मास्टर मनके आय दिन शिकायत आवत हे। टीटी, पटवारी, साहब-सिपैहा मन घूसखोरी मा सने मिलत हें। खोज-खबर देवइया, जज-वकील, साहब- बाबू, पुलिस-प्रशासन पैसा मा बिक जावत हें। जइसे जइसे देश मा शिक्षा अउ शिक्षित व्यक्ति मन के संख्या बढ़त हें, तइसे तइसे विसंगति अउ बुराई घलो बढ़त जावत हे।जे चिंता अउ चिंतन के बिषय आय।

                   एक अनपढ़ बनिहार धान के खेत ला निंदत बेरा, बन/खरपतवार ला ही फेकथे, रिस या बदला मा धाने धान ला नइ खने। वो समय मा आथे, समय मा जाथे, समय मा खाथे, ता पढ़े लिखे मन अपन फर्ज ले काबर डिग जथे? काबर लालच या स्वार्थ मा मेहनताना मिले के बावजूद भी लूट मचाय मा तुले रथें? पढ़ लिख के मनखें आज अपन  तन मन ला क़ाबू मा नइ कर पावत हें, परलोभ अउ मोह मा पर जावत हे, उजाड़ के बाना बोहे हें, ता फेर पढ़े लिखे के का मतलब? आज पढ़े लिखे मनखें मन ये सब करत हें, ता अनपढ़, अज्ञानी के बारे मा का कहन? अइसे नही के सबे पढ़े लिखे मन अइसन करत हे, आज भी ईमानदारी अउ मानवता के मिशाल हे, फेर नगण्य। पढ़ाई/शिक्षा/विद्या/तालीम तर्क वितर्क के साथ साथ तौर तरीका घलो सीखाथे, फेर कहाँ दिखथे- समझदारी, सकारात्मकता, सृजन अउ मानवता जइसे शैक्षणिक बोध? भला मनखें तीर मानवता नइ रही ता काखर तीर रही। पढ़े लिखे मनखें के आदत व्यवहार, कथनी करनी मा विद्या झलकना चाही, तभे विद्या अउ विनय वाले सूक्त वाक्य शोभा पाही।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)...

पेट--जयकारी (चौपई) छंद

 पेट--जयकारी (चौपई) छंद 


पेट देख के होवय गोठ,कखरो पातर कखरो मोठ।

पेट देख के जाहू जान,कोन सेठ मजदूर किसान।1।


पेट करावय करम हजार,कोनो खावय दर-दर मार।

नाचा गम्मत होय व्यपार,सजे पेट बर हाट बाजार।2।


पेट पालथे कोनो हाँस,कोनो ला गड़ जाथे फाँस।

धरे पेट बर कोनो तीर,ता कोनो बन जावय वीर।3।


मचे पेट बर कतको रार,कोनो बेंचें खेती खार।

पेट पलायन कभू कराय,गाँव ठाँव सबला छोड़ाय।4।


नाप नाप के कतकों पेट,खान पान ला करथें सेट।

कई भूख मा पेट ठठाय,कोनो खा पी के अँटियाय।5।


कखरो पेट ल भाये नून,कतको झन पी जावय खून।

कोनो खोजे मँदिरा माँस,पेट फुलावय कोनो हाँस।6।


पेट भरे तब लालच आय,धन दौलत मनखे सिरजाय।

पेट जानवर के दमदार,तभो धरे नइ चाँउर यार।7।


बित्ता भर वाले ला देख,रटे पेट ताकय कर रेख।

रखे पेट खातिर धन जोर,कतको मन बन जावय चोर।8।


ऊँच नीच जब खाना होय,पचे नहीं बीमारी बोय।

पेट पीरा हर लेवय चैन,पेट कभू बरसावय नैन।9।


लाँघन ला दौ दाना दान,पेट हरे सबझन के जान।

दाना चाही दूनो जून,पेट भरे ता मिले सुकून।10।


ढोंगी अधमी पावै दुःख, मरे पेट ओ मन के भूख।

करे जउन मन हा सतकाम,पेट भरे सबके गा राम।11।


 जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

अरझगे बेर बर म

 ........अरझगे बेर बर म

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अगोरत हे बबा,

बड़ बेर ले बेर ल।

घाम उतरही कहिके,

देखत हे बर पेड़ ल।


हरियर-हरियर पाना म,

अरझगे सोनहा घाम।

बिन सेके तन ल,

नइ भाय बुता काम।


कथरी,कमरा म,

जाड़ जात  नइहे।

अंगरा,अंगेठा,भुर्री,

भात नइहे।


घाम के अगोरा म।

बबा बइठे बोरा म।

खेलाय नान्हे नाती ल,

बईठार अपन कोरा म।।


लामे डारा-खांधा,

अउ घम-घम ले छाये पाना।

बर पेड़ घेरी बेरी ,

बबा ल मारे ताना।


एक कन दिख के,लुका जात हे।

घाम बर बबा,भूखा जात हे।

करिया कँउवा काँव-काँव करत,

बिजरात हे बबा ल।

बिहनिया ले बिकट जाड़,

जनात हे बबा ल।


पँडकी,सल्हई,गोड़ेला,पुचपुची,

ए डारा ले वो डारा उड़ाय।

रिस म बबा बर पेड़ ल,

कोकवानी लउठी देखाय।


थोरिक बेरा म,

भुँइयॉ म घाम बगरगे।

बबा केहे लउठी देख,

बर पेड़ ह डरगे।


पाके घाम बबा हाँसत हे।

थपड़ी पीटत नाती सँग नाचत हे।

बइठे-बइठे मुहाटी म,

बबा घाम तापत हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

बढ़ोना अउ झरती कोठार

 बढ़ोना अउ झरती कोठार


                   हमर पहली के बूता काम, नेंग जोग, रीति रिवाज अउ पार परम्परा आज नवा जमाना मा कथा कन्थली बरोबर होगे हे, काबर कि धीरे धीरे वो सब आज नँदावत जावत हे। अइसने आज नँदावत खेती किसानी के एक नेंग आय बढ़ोना अउ झरती कोठार। खेत खलिहान अउ ओमा बोये फसल किसान मनके जिनगी के एक धड़कन होथे, तभे तो किसान मन अपन खेत खलिहान अउ धान पान ला देवता बरोबर पूजथें अउ बेरा बेरा मा बरोबर मान गउन करत, फसल के बढ़वार के संग सब बर सुख समृद्धि के कामना करथें। अक्ति तिहार बर टेड़गी डोली मा ठाकुरदैया ले लाए धान ला बोके, बोनी मुहतुर करे के परम्परा हे, ता धान लुए के बेरा जब, लुवाई के काम उसरने वाला रथे ता बढ़ोना के नेंग करे जाथे। बढ़ोना माने फसल काटे के बूता खतम होना। किसान मन धान के फसल जब पूरा कटने वाला रथे, ता एक कोंटा मा थोरिक धान ला छोड़ देथें अउ छोड़े धान मेर जम्मों लुवइया मनके हँसिया ला मढ़ाके, नरियर फूल-दूबी चढ़ाके, हूम-धूप जलाके, मिठाई नही ते कोनो पकवान भोग लगाके धरती दाई के पूजा करथें। घर वाले किसान संग वो बेरा मा जतका धान लुवइया आय रथें, सब बढ़ोना नेंग मा शामिल होथें अउ माटी महतारी ला बढ़िया फसल देय बर नमन, जोहार करथें, अउ आने वाले साल मा अउ बढ़िया फसल के वर मांगत माथ नॅवाथें। बढ़ोना के पकवान/मिठाई अउ प्रसादी ला खेत मा काम करइया मनके संगे संग घर लाके पारा परोसी ला घलो बाँटे जाथें, जेखर ले सब जान जाथें कि धान बढ़गे हे, लुए के बूता झरगे हे। कतको किसान मन खेत मा फांता घलो बनाथें, जेला घर के डेहरी मा लाके टाँगथें। फांता जेला धान के झालर घलो कथन। फांता ला बढ़िया फसल होय के प्रतीक के रूप मा घर मा टाँगे जाथे। बढ़ोना के नेंग लगभग सबे किसान मन करथें। आज भले हार्वेस्टर के जमाना हे, तभो बढ़ोना होथेच। किसान मन धान लुना चालू घलो टेड़गी डोली ले हूमजग देके करथें। टेड़गी डोली के मुहतुर करई ल गजब शुभ माने जाथे। 

                  बढ़ोना कस एक नेंग अउ होथे, जेला झरती कोठार कथन। खेत के जम्मों धान पान ला कोठार मा लाके सिधोये जाथे। माने खेत के धान ला भारा बांध के, गाड़ा मा जोर जोर के कोठार मा लाके, खरही गांजे जाथे अउ पैर डार के मिंजे ओसाये के बाद कोठी मा नाप के धरे जाथे। खेत ले कोठार आये बड़का बड़का धान के खरही देखत मन गदगद हो जथे। पहली किसान मन धान के खरही ला खेत के जम्मों काम बूता झरराये के बाद धीरे धीरे महीना भर मा मिंजे, ओसाये अउ कोठी मा धरे। काबर कि खेती किसानी ही उंखर मुख्य कार्य रहय। आज थ्रेसर हार्वेस्टर के जमाना मा हप्ता भर मा लुवई मिंजई झर जावत हे, तभो मनखें वो बचे समय ला ठलहा गंवा देवत हे। झरती कोठार माने धान पान मिंजे धरे के काम झर जाना। 

                     धान के बड़का बड़का खरही, पैरावट, पैर, रास आदि के का कहना? येला जेन देखे होही तिही ओखर सुखद अनुभव कर सकथें। सियान मन संग लइका मन घलो सीला बीनत, धान मिंजावत पैर मा खेलत कूदत, दाई ददा मन संग छोट मोट बूता करत बड़ आनंद पाँय। हरिया, पाँत, करपा, भारा, खरही, पैर कस खेती किसानी के काम मा एक अउ चीज देखे बर मिलथे, जेला रास कथन। रास धान के मिंजे ओसाये के बाद कोठर के एक कोंटा मा धान ला बढ़िया गांज के बनाये जाथे, सोझ कहन ता धान के कूढ़ी। कलारी, सूपा, मोखला कांटा, चुरी पाठ, गोंदा फूल, काठा, चरिहा, खरसी, बोर्झरी आदि रास मेर सजे रथे ता देखके अइसे लगथे, सँउहत अन्न के देवी पधारे हे। रास के धान ला काठा मा नाप नाप के चरिहा मा भरके कोठी या फेर बोरा मा भरे जाथे। नापत बेरा हर खांड़ी मा एक मुठा धान गिने बर किसान मा रखथें, अउ बीस खांड़ी होय के बाद एक गाड़ा के कूड़हा मड़ाथें। नापतोल के बात करन ता बीस काठा माने एक खाँड़ी, अउ बीस खाँड़ी माने एक गाड़ा। वइसने चार पैली के एक काठा होथे। आजकल अइसन काठा, पैली, चरिहा, मा नापजोख कमती होवत जावत हे। काठा मा जब धान नापथें ता पहली ला एक ना गिनके राम कथे, वइसने बीस काठा होय के बाद, भगवान के नाम लेवत एक कूड़हा रखथें। धान ला जब कोठी मा धरना होथे तब चरिहा मा भरके घर मा ले जाय के पहली एक लोटा पानी ओरछ के अन्न महतारी के सुवागत करत पायलागी करे जाथे। किसान मन झरती कोठार करथें ता सबो धान ला कोठी मा नइ रखें, कुछ ला बोरा चुंगड़ी मा भरके रखथें, काबर कि पौनी पसारी(ठाकुर, बैगा, चरवाहा, कोतवाल आदि सब के जेवर), दान दक्षिणा देय बर घलो लगथे। धान मिंजे के बाद घरो घर भाट भटरी मन दान पुण्य के आस मा आथे, अउ धान के दान लगभग सब किसान खुशी खुशी करथें, काबर कि अन्न दान ला महादान कहे गय हे। फसल होय के खुशी मा किसान मा दान देथें। आज तो धान ला मंगइया मन घलो मुँह फेरत पैसा माँगथें। फसल आय के बाद दान धरम के तिहार के रूप मा पूस पुन्नी बर  छेरछेरा तिहार घलो मनाये जाथे। फसल आय के बाद मेला मड़ाई, नाचा गम्मत घलो गांव गांव मा होथे। हमर संस्कृति संस्कार अउ परब तिहार किसानी के अनुसार ही चलथे। 

                  झरती कोठार के खुशी मा किसान मन घर मा बढ़िया बढ़िया पकवान अउ रोटी-पीठा राँधथें अउ पारा परोसी मन ला खवाथें। कोमहड़ा पाग, सेवई, तसमई अउ कतरा झरती कोठार मा बनबेच करथे। कोठार अउ कोठी संग धान के रास मा हूम देके गुरहा चीला चढ़ाए जाथे। रास जब नपा जाथे ता ओमा चढ़े मोखला कांटा अउ चूड़ी पाठ ला बोइर के छोटे पेड़(बोर्झरी) मा चढ़ाये के नेंग हे। झरती कोठार खरीफ फसल धान, कोदो आदि मुख्य खाद्यान फसल के बूता ला झर्राये के बाद करे जाथे। तेखर बाद किसान मन नगदी फसल के रूप मा खेत मा अरसी, सरसो, मसूर, चना, गहूं के खेती करथें।  चौमासा भर के महीनत ला किसान मन पाके गदगद रथें। छत्तीसगढ़ जेखर नाम से जाने जाथे, वो धान के बड़ सुघर नेंग आय बढ़ोना अउ झरती कोठार के। 


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

भाजी चना के

 भाजी चना के


भाजी चना के।

खा ले बना के।।

बढ़िया भूंज बघार,

चना दार नाके।।


खवाथे अंगरी चाँट,

जघा नइ रहै मना के।।

अब चना कम बोवाय,

रेट बढ़गे दनदनाके।


पहली मिल जाय,

सिर्फ चार अना के।

आज नइ घलो पाबे,

पांच छः कोरी गनाके।।


लुकाय लुकाय फिरत हे,

भाजी अपन गुण जनाके।।

बिजरात है मनखें मन ला,

बाजार हाट म आके।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Sunday, 16 November 2025

चउथ के चाँद- लावणी छंद

 चउथ के चाँद- लावणी छंद


घूप दीप आगर इत्तर मा, सजे चउथ के थाली हे।

चाँद निहारत चाँद खड़े हे, चमकत बिंदिया बाली हे।।


भाव भजन व्रत जप तप गूंजे, नाँव सजन के हे मुख मा।

माँगय वर माता करवा ले, बीतय जिनगी नित सुख मा।।

लाली लुगरा लाली लहँगा, महुर मेंहदी लाली हे।

चाँद निहारत चाँद खड़े हे, चमकत बिंदिया बाली हे।।


जप तप देख अशीष सुखी नित, देय विधाता बिन बोले।

जनमो जनम रहय रिस्ता हा, नेव ठिहा के झन डोले।।

हवय सजाना कइसे बगिया, जाने जउने माली हे।

चाँद निहारत चाँद खड़े हे, चमकत बिंदिया बाली हे।।


करवा चउथ उपास रहइया, बाढ़त हावय सब कोती।

मया पिरित मा चहकय डेरा, बरे खुशी सुख के जोती।।

टिके आस मा हे सरि दुनिया, बिन आसा जग खाली हे।

चाँद निहारत चाँद खड़े हे, चमकत बिंदिया बाली हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Friday, 14 November 2025

गीत--आ जाबे नदिया तीर म(कातिक पुन्नी स्नान)

 गीत--आ जाबे नदिया तीर म


आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ।

कुनकुन-कुनकुन जाड़ जनावै, मँय कोयली कस बोलत हौं या ।


महुर लगे तोर पांव लाली, धूर्रा म सनाय मोर पांव पिंवरा हे ।

चिंव-चिंव करे चिरई-चिरगुन, नाचत झुमरत मोर जिवरा हे ।।

फूल गोंदा कचनार केंवरा, चारों खुंट ममहाये रे ।

तोर मया बर रोज बिहनिया, तन-मन मोर पुन्नी नहाये रे । 

मया के दीया बरे मजधारे, मारे लहरा मँय डोलत हौं या ।

आ जाबे नदिया तीर म, अगोरत हौं या ------------------


कातिक के जुड़ जाड़ म घलो, अगोरत होगेंव तात रे ।

आमा-अमली ताल तलैया, देखत हे तोर बॉट रे ।

परसा पारी जोहत हावै, फगुवा राग सुनाही रे । 

होरी जरे कस तन ह भभके, देखत तोला बुझाही रे ।।

आमा मँउर कस सपना ल, झोत्था-झोत्था जोरत हौं या।

आ जाबे नंदिया तीर म, अगोरत हौं या -----------


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


कातिक पुन्नी अउ संत श्री गुरुनानक जयंती के सादर बधाई



कातिक पुन्नी अउ संत श्री गुरुनानक जयंती के सादर बधाई

वाह रे पानी-सार छंद

 वाह रे पानी-सार छंद


पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।

खेवन खेवन पानी बरसे, सफरी सरना सोगे।


का कुँवार का कातिक कहिबे,लागत हावै सावन।

रोहों पोहों खेत खार हे, बरसा बनगे रावन।।

धान सोनहा करिया होगे, लगगे कतको रोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


लूवे टोरे के बेरा मा, कइसे करयँ किसनहा।

आसा के सूरज हा बुड़गे,बुड़गे डोली धनहा।

जाँगर टोरिस जउन रोज वो, दुख मा अउ दुख भोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।।


करजा बोड़ी के का होही, संसो फिकर हबरगे।

देखमरी बादर ला छागे, देखे सपना मरगे।

चले धार कोठार खेत मा, सोच सोच सुध खोगे।

पके पकाये धान पान के, अब तो मरना होगे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

ग़ज़ल – आम आदमी जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

 ग़ज़ल – आम आदमी

जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"


मैं आम आदमी हूँ, फिर से छला जाऊँगा।  

कोई कहीं बुलाए, दौड़ा चला जाऊँगा।।1


मुझे खौफ़ इस क़दर है, क्या कहूँ मैं गैरों को।  

चूल्हे की आग में मैं, खुद ही जला जाऊँगा।।2


बहुमंजिला महल हो, सोना जड़ित हो शय्या।  

उस ठौर में बताओ, कैसे भला जाऊँगा।।3


हर युग में गिर रहा हूँ, हर युग में घिर रहा हूँ।  

कोई मुझे बताए, मैं कब फला जाऊँगा।।4


बदहाल ज़िंदगी है, चिंता कहाँ किसी को।  

ऊँच-नीच की भट्ठी में, हर पल गला जाऊँगा।।5


जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया

बाल्को, कोरबा(छग)

खेती अपन सेती

 खेती अपन सेती

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किसन्हा के भाग मेटा झन जाय |

बाँचे-खोंचे भुँइया बेचा झन जाय ||


भभकत हे चारो मुड़ा आफत के आगी,

कुंदरा  किसनहा के लेसा  झन जाय |


अँखमुंदा भागे नवा जमाना के गाड़ी,

किसनहा बपुरा मन रेता  झन जाय|


मूड़  मुड़ागे,ओढ़ना - चेंदरा चिरागे,

मुड़ के पागा अउ गल फेटा झन जाय|


बधिन बधना, बिधाता तीर जाके रात-दिन,

कि सावन-भादो भर गोड.के लेटा झन जाय|


भूंजत हे भुंजनिया, सब बिजरात हे उनला,

अवइया पीढ़ी ल खेती बर चेता झन जाय |


हँसिया-तुतारी,नांगर -बइला-  गाडी़,

कहीं अब इती-उती फेका झन जाय |


साहेब बाबू बने के बाढ़त हे आस ,

देख के उन ला किसानी के पेसा झन जाय|


दँउड़े हें खेत-खार म खोर्रा पॉंव घाव ले,

कहूँ बंभरी कॉटा तहूँ ल ठेसा झन जाय |


नइ धराय मुठा म रेती, खेती अपन सेती,

भूख मरे बर खेत कखरो बेटा झन जाय|


                 जीतेन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'

                      बाल्को( कोरबा)


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फेर ए बारी किसन्हा के हार होइस

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न बारी;बारी रिहिस,

न बारी कोठार होइस|

फेर ए बारी ,

किसन्हा के हार होइस|


न जमके असाड़ अइस,

न    जमके    सावन |

मरे के जघा सजोर होगे,

अऊ   बइरी    रावन |

जे हुदरत हे;हपटत हे;झपटत    हे|

किसन्हा  रो-रोके  मुडी़  पटकत हे|

न हरेली;न तीजा पोरा,

न बने देवारी तिहार होइस......|

फेर ए बारी,किसन्हा के हार होईस|


कइसे खवाओ तोला,

कोला  के  साग |

ढेला तरी धान बोजागे,

नइ पइस बने जाग |

चांऊर सिरागे अंदहन डबकत हे|

साग-दार के भाव भभकत हे|

गिस चांऊर-दार कोठी ले गोदाम म |

त बढ़ोतरी होगे जँउहर ओखर दाम म |

मिल-उद्धोग सोना उपजात  हे|

खेत-खार म करगाअऊ बन झपात हे  |

भूंजात ले घाम होइस,

ठुठरत हे जाड़ होइस|

एक तो नइ गिरे पानी,

गिरिस त उजाड़ होइस.....|

फेर ए बारी किसन्हा के हार होइस|


बस घाम -पानी चाल के चाही|

ताहन सुख-समृद्धि साल के आही|

गांज देबोन मया के खरही |

त कइसे छ.ग.आघू नइ बढ़ही|

सुखाय हे भुंइया  ,

फेर भींगे हे ऑखी|

सुलगत हे तन हर,

चिराय  हे  छॉती |

फेर ए दरी घर म,

खुशी नही गोहार होइस |

पथरा लादे सुनत हौ,

छाती मोर पहाड़ होइस.....|

फेर ए बारी किसन्हा के हार होइस|

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                  जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                     बाल्को  {कोरबा}

छत्तीसगढ़ राज स्थापना दिवस के आप सबो ल सादर बधाई लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)

 छत्तीसगढ़ राज स्थापना दिवस के आप सबो ल सादर बधाई


लावणी छंद- गीत (कइसन छत्तीसगढ़)


पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया।

अंतर्मन ला पबरित रख अउ, चाल चलन ला कर बढ़िया।


धरम करम धर जिनगी जीथें, सत के नित थामें झंडा।

खेत खार परिवार पार के, सेवा करथें बन पंडा।

मनुष मनुष ला एक मानथें, बुनें नहीं ताना बाना।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, नोहे ये नारा हाना।

छत्तीगढ़िया के परिभाषा, दानी जइसे औघड़िया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


माटी ला महतारी कइथें, गारी कइथें चारी ला।

हाड़ टोड़ के सरग बनाथें, घर दुवार बन बारी ला।

देखावा ले दुरिहा रइथें, नइ जोरो धन बन जादा।

सिधवा मनखे बनके सबदिन, जीथें बस जिनगी सादा।

मेल मया मन माटी सँग मा, ले सेल्फी बस झन मड़िया।

पाटी पागा बपारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया----


कतको दुःख समाये रइथे, लाली लुगा किनारी मा।

महुर मेंहदी टिकली फुँदरी, लाल रचे कट आरी मा।

सुवा ददरिया करमा साल्हो, दवा दुःख पीरा के ए।

महल अटारी सब माटी ए, काया बस हीरा के ए।

सबदिन चमकन दे बस चमचम, जान बूझके झन करिया।

पाटी पागा पारे मा नइ, बन जावस छत्तीसगढ़िया-----


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


*छत्तीसगढ़िया(414) ल मात्रा भार मिलाय के सेती छत्तिसगढ़िया(44) पढ़े के कृपा करहू*


राज स्थापना दिवस के आप सबो ला सादर बधाई


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गीत


..........मोर छत्तीसगढ़ महतारी..............

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लोहा धरे हे, कोइला धरे हे ,हीरा धरे  हे रे।

तभो मोर छ.ग. महतारी,जिया म,पीरा धरे हे रे।


हरियर    लुगरा  लाल  होगे।

जंगल  - झाड़ी  काल  होगे।

बैरी लुकाय हे ,पेड़ ओधा म,

निच्चट महतारी के हाल होगे।


होगे  धान   के , कटोरा   रीता।

डोली-डंगरी बेंचागे,बीता-बीता।

घर - घर  म, महाभारत माते हे,

रोवत हे देख,सबरी - सीता।

महानदी, अरपा ,पइरी  म, आंसू भरे हे रे।

मोर छ.ग. महतारी,जिया म,पीरा धरे हे रे।


बम्लाई , महामाई , का  करे?

बाल्मिकी , सृंगी,नइ अवतरे।

नइ मिले अब,धनी-धरमदास,

कोन  बीर नारायन,बन लड़े?


कोन  संत  बने , घासी  कस?

कोन राज बनाय,कासी कस?

कोन करे ,सिंगार महतारी के?

कोन सोहे , शुभ गुण  रासी  कस?

सेवा-सत्कार भूलाके,तोर-मोर म पड़े हे रे।

मोर छ.ग. महतारी,जिया म,पीरा धरे हे रे।


बर बिरवा बुचवा होगे ,सइगोन-सरई सिरात हे।

पीपर-लीम-आमा तरी मा,अब कोन ह थिरात हे?

गाँव गंवई के नांव  भर  हे, गंवागे हे सबो गुन रे।

बरा - भजिया भूलागे मनखे, भूलागे बासी-नून रे।


महतारी    के   गोरिया  अंग  म,

करिया-करिया  केरवस  जमगे।

कुंदरा उझरगे, खेत परिया परगे,

उधोग,महल ,लाज,टावर लमगे।

छेद   के   छाती   महतारी    के,

लहू   ल      घलो    डुमत    हे।

करमा  -  ददरिया  म  नइ नाचे,

मंद  -  मऊहा   म    झूमत   हे।

जतन करे बर विधाता तोला,छ.ग.म गढ़े हे रे।

मोर छ.ग. महतारी,जिया  म  पीरा  धरे हे रे।

           जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

            बालको(कोरबा)

            9981441795

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छतीसगढ़ी महतारी भाँखा(गीत)


मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात हे भाँखा बोली।

     बड़ई नइ करे अपन भाँखा के,करथे खुद ठिठोली।


गिल्ली भँवरा बाँटी भुलाके,खेले क्रिकेट हाँकी।

       माटी   ले दुरिहाके   संगी,मारत रइथे  फाँकी।

चिरई के पिला चींव चींव कइथे,कँउवा के काँव काँव।

    गइया के बछरू हम्मा कइथे,हुँड़ड़ा के हाँव हाँव।     

मंदरस कस गुरतुर बोली मा,मिंझरत हे अब गोली। 

  मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात--------।


     हटर हटर जिनगी भर करे,छोड़े मीत मितानी।

देखावा  हा  आगी  लगे हे,मारे  बड़   फुटानी।

    पाके माया गरब करत हे,बरोवत  हवे  पिरीत ला।

नइ  जाने  दया मया ला,तोड़त  हावय  रीत  ला।

   होटल ढाबा लॉज ह भाये,नइ भाये रँधनी खोली।

मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात--------।


सनहन पेज महिरी बासी,अउ अँगाकर नइ खाये।

    अपन मुख ले अपन भाँखा के,गुण घलो नइ गाये।       

छत्तीसगढ़ महतारी के अब,कोन ह नाँव जगाही।

   हमर छोड़ अउ कोन भला,छत्तीसगढ़िया कहाही।  

तीजा पोरा ल काय जानही,नइ जाने देवारी होली। 

   मोर छत्तीसगढ़िया बेटा बदलगे,बिसरात-------।


जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)


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लावणी छंद-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


 मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं


मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं।

पीके नरी जुड़ालौ सबझन,सबके मिही निसानी औं।


महानदी के मैं लहरा औं,गंगरेल के दहरा औं।

मैं बन झाड़ी ऊँच डोंगरी,ठिहा ठौर के पहरा औं।

दया मया सुख शांति खुसी बर,हरियर धरती धानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-----।


बनके सुवा ददरिया कर्मा,मांदर के सँग मा नाचौं।

नाचा गम्मत पंथी मा बस,द्वेष दरद दुख ला बॉचौं।

बरा सुहाँरी फरा अँगाकर,बिही कलिंदर चानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-।


मैं गेंड़ी के रुचरुच आवौं, लोरी सेवा जस गाना।

झाँझ मँजीरा माँदर बँसुरी,छेड़े नित मोर तराना।

रास रमायण रामधुनी मैं, मैं अक्ती अगवानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं-।


ग्रंथ दान लीला ला पढ़लौ,गोठ सियानी ला गढ़लौ।

संत गुनी कवि ज्ञानी मनके,अन्तस् मा बैना भरलौ।

मिही अमीर गरीब सबे के,महतारी अभिमानी औं।

मैं छत्तीसगढ़ी बानी औं, गुरतुर गोरस पानी औं--।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा


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छत्तीसगढ़ महतारी


मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।

नरियर दूबी पान फूल धर, आरती  करौं।।


रथे लबालब धान कोटरा, महिमा तोर बड़ भारी।

जंगल झाड़ी नदिया नरवा, आये तोर चिन्हारी।।

तोर डेरउठी मा दियना बन,नित रिगबिग बरौं।।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


महानदी अरपा के पानी, अमृत सही बोहावै।

साल्हो सुवा ददरिया कर्मा, मन ला तोरे भावै।

सरइ सइगोंन बन नभ अमरौं, गोंदा सही झरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


होरी हरेली तीजा पोरा, हँस हँस तैं मनवाथस।

सत सुमता के बीजहा बोथस, फरा अँगाकर खाथस।

भौंरा बांटी फुगड़ी खेलौं, जब जब जनम धरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।।


बनभैसा के गुँजे गरजना, मैना के किलकारी।

छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, जानै दुनिया सारी।

तोर कृपा ले बन खरतरिहा, कोठि काठा भरौं।

मोर छत्तीसगढ़ महतारी तोरे, पँइया परौं।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को कोरबा(छग)

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गीत-भाँखा छत्तीसगढ़ी मोर


ये भाँखा छत्तीसगढ़ी मोर।

बाँधे सब ला जइसे डोर।।

बोले बर मँय नइ छोवँव....


ये महतारी के ए बानी।

बहे बनके अमृत पानी।।

घर गाँव गली बन खोर।

सबे खूँट हावय एखर शोर।

बोले बर मँय नइ छोवँव....


समाथे अंतस मा जाके।

मिठाथे जइसे फर पाके।।

आलू बरी मुनगा के फोर।

डुबकी अउ इड़हड़ के झोर।

बोले बर मँय नइ छोवँव....


बोले मा लाज शरम काके।

बोलव सब छाती ठठाके।।

मन के अहं वहं ला टोर।

मया मीत बानी मा लौ घोर।

बोले बर कोई झन छोवव....


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


राज स्थापना दिवस के आप सबो ला सादर बधाई


💐छत्तीसगढ़ी बोलव, लिखवा अउ पढ़व💐


छत्तीसगढ़ स्थापना दिवस के आप सबला बहुत बहुत बधाई

देवउठनी एकादशी अउ मांगलिक काज

 देवउठनी एकादशी अउ मांगलिक काज


                 मां भारती के कोरा मा सुशोभित छलकत धान के कटोरा 'छत्तीसगढ़' अपन संस्कृति-संस्कार, परब-तिहार, बन-बाग, नदी पहाड़ अउ खनिज संपदा बर जाने जाथे। हमर देश भारत होय या फेर हमर राज छत्तीसगढ़, दूनो के परब तिहार, संस्कृति संस्कार अउ उछाह मंगल के जम्मो कारज खेती किसानी के अनुसार चलथे। कतको झन मन प्रश्न करथें, कि कोनो भी मांगलिक काज देवउठनी एकादशी के बाद ही काबर करना चाही? कतको विद्वान में एखर कई कारण बताथें, फेर मूल कारण खेती किसानी अउ मौसम ही आय। देवउठनी एकादशी जेला छत्तीसगढ़ मा जेठवनी के नाम से जाने जाथे। ये दिन ला छोटे देवारी के रूप मा घलो मनाये जाथे। मनखें मन पूजा अर्चना, दान धरम करत फाटाका फोड़थें अउ खुशी मनाथें। ये दिन कतकोन गांव मा मातर होथे, गोधन ऊपर सोहाई बन्धाथे ता कतकोन कोती मड़ई मेला भराथे। संझा मनखें मन अपन तुलसी चौरा के तीर मा सुघर मंडप बनाके कुसियार अउ तोरन ताव ले सजाके, रिगबिग रिगबिग दीया जलाके भगवान सालिग्राम अउ तुलसी दाई के बिहाव के नेंग करथें। पूजा पाठ के बाद घरों घर प्रसाद दिए जाथे। वइसे तो कतकोन मन हर एकादशी के उपास रथे फेर देवउठनी तिहार के उपास के अलगे महत्ता हे। कथे ये उपास रहे ले सबे उपास के पुण्य प्रताप मिल जथे। महाभारत काल मा महाबली भीम हा घलो एकमात्र इही एकादशी के उपास रिहिस, जेखर ले प्रसन्न होके, भगवान विष्णु हा ओखर नाम ले एक अलग तिथि मा भीमसेन एकादशी व्रत अउ व्रत करइया मन ला विशेष पुण्य प्राप्ति के वरदान दिस। पौराणिक कथा अनुसार भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के चार मास के योगनिद्रा ले जागथे, ते पाय के ये तिहार मनाए जाथे। भगवान विष्णु के जागे के एक अउ कथा मिलथे- मुर नामक एक दानव हा भगवान विष्णु ला सुते देख ओखर ऊपर हमला कर देथे, जेखर ले विष्णु जी के निद्रा भंग हो जथे अउ 11 इंद्री ( 5 कर्म इंद्री+5 ज्ञान इंद्री+मन) के तेज ले एक दिव्य देवी उत्पन्न होथे, जे वो दानव के वध करथे। ये दिन घरों घर होवइया तुलसीविवाह के घलो पौराणिक कथा हे। एक समय रानी बृन्दा के सतीत्व के कारण ओखर पति राजा जलन्धर बहुते शक्तिशाली हो जथे, अउ अपन शक्ति ले देव अउ ऋषि मन ला सताएल लग जथे, ओखर वध बृन्दा के सतीत्व के कारण कोई नइ कर सकत रहय, ते पाय के भगवान विष्णु हा लोकद्धार बर छलपूर्वक रानी बृन्दा के सतीत्व ला भंग करके, जलन्धर के संहार करथे। जब ये बात बृन्दा जानथे ता भगवान विष्णु ला पथरा होय के श्राप दे देथें, अउ खुद सती हो जथें। उही पथरा सालिग्राम के रूप मा आजो पूजे जाथे, अउ रानी बृन्दा जेन जघा अपन आप सती करे रिहिस वो राख ले तुलसी के जन्म होथे। तब ले तुलसी अउ भगवान सालिग्राम के विवाह के चलागन हे। 


                आसाढ़ के देवशयनी एकादशी ले लेके कातिक के देवउठनी एकादशी तक भगवान विष्णु जब योगनिद्रा मा रथे, ता पृथ्वी के पालन पोषण भगवान महादेव सपरिवार करथें। ते पाय के आसाढ़, सावन, भादो अउ कुवाँर भर उही मन ला सुमिरथन। चाहे पोरा तिहार मा नन्दी महाराज होय, नांगपांचे मा नांग देवता होय, सावन सोममारी मा शंकर जी होय, तीजा मा पार्वती होय, गणेश चतुर्थी मा गणेश जी होय या फेर नवरात्रि मा मां भगवती। देवउठनी के बाद भरण पोषण के काज फेर भगवान विष्णु अपन हाथ मा  ले लेथें अउ जम्मों प्रकार के उछाह  मंगल के काज होएल लगथे। उछाह मंगल के काम देवउठनी के बाद होय के एक अउ महत्वपूर्ण कारण हमर कृषि परम्परा आय। काबर कि चतुर्मास(चौमास) भर बादर ले पानी बरसथे, घर-खेत, गली-खोर जम्मो कोती चिखला रथे, आदमी मन आये जाये मा असहज महसूस करथें, संगे संग खेती किसानी के बूता घलो चरम मा रथे अउ बरसा घरी जर बुखार के घलो डर रहिथे, एखरे सेती कोनो भी जुड़ाव अउ उत्सव के काज मा सब सपरिवार शामिल नइ हो पाए अउ व्यवस्थापक ला सहज व्यवस्था करे मा घलो कतको  दिक्कत होथे। ते कारण देवउठनी के बाद के समय ला अइसन काम बर  चुने जाथे। ये समय पानी बादर लगभग बन्द हो जथे, गुलाबी ठंड जनाय बर लगथे अउ धान पान के बूता घलो उसरे बर लग जथे। अइसन बेरा मा बर बिहाव, छट्ठी बरही, पूजा पाठ, भगवत रमायन, मड़ई मेला सब उत्साह अउ मंगल ले सबके उपस्थिति मा सुघ्घर ढंग ले निर्बाध सजथे। 


                       ये दिन घर भर भगवान के भक्ति मा लीन रथे। बिहना स्नान ध्यान के साथ पूजा पाठ चालू हो जथे। घर ला सुघ्घर रंगोली अउ तोरण ताव मा सजाये जाथे। आमा पाना अउ गन्ना के मंडप बनाये जाथे। घर के कतको झन उपास रथे अउ दीया जलाके, मेवा मिठाई, फरा चीला अउ नरियर के प्रसादी चढ़ाथें। ये दिन आयुर्वेद में विशेष स्थान रखइया तुलसी के पौधा लगाए अउ जतन करे के संकल्प लिए जाथे। कथे जे घर तुलसी के पौधा हे वो घर मा सुख समृद्धि अउ शांति रहिथे अउ इही सुख समृद्धि, शांति अउ दया मया के पावन परब आय देवउठनी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

गीत-मया

 गीत-मया

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फोकटे-फोकट मया,बदनाम होथे रे।

बुझथे  बाती ; दीया के , नाम होथे रे।


ये  झेख्खर  टूरा , लफरहा  मन।

बन -  बदऊर  के ,  थरहा   मन।

गोल्लर कस  मनखे , हरहा मन।

मया के रद्दा रेंगइया,अड़हा मन।

चढ़ मया के छानी म,आगी रुतोथे रे।

फोकटे-फोकट मया,बदनाम होथे रे।


जाने नही , पिरीत  तभो।

गाथे मया के, गीत तभो।

दू  दिन  घलो  नइ   चले,

बदथे मितानी-मीत तभो।

सोरियाथे मयारू ल,जब काम होथे रे।

फोकटे-फोकट मया , बदनाम होथे रे।


मया तो जग ल ,देखाय के आय।

कोनहा म थोरे, लुकाय के आय।

मया करइया ल,सब कोनो भाथे,

मया  बाँटे अउ , बताय के आय।

मया सबो बर होथे,मया धाम होथे रे।

फोकटे-फोकट मया,बदनाम होथे रे।

             जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

                          बालको(कोरबा)

                          9981441795

तह विकास के-हाकलि छंद

 तह विकास के-हाकलि छंद


तह विकास के पोला हे।

सब खुँट विष के घोला हे।।

बरत गाँव घर टोला हे।

उसलत बारी कोला हे।।


खतरा तोला मोला हे।

बम बारुद गन गोला हे।।

गिरे फसल मा ओला हे।

सुख मासा अउ तोला हे।।


नेता मन बड़बोला हें।

जनता निच्चट भोला हें।।

नश्वर माटी चोला हे।

तब ले नखरा सोला हे।।


इक देखावत रोला हे।

घर भीतर हिंडोला हे।।

इक के हाथ फफोला हे।

चिरहा खीसा झोला हे।।


सत के निकलत डोला हे।

संगी सगा सपोला हे।।

मोला मोला मोला हे।

बरत जिया मा होला हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

किसम किसम के धान(सार छंद)*

 *किसम किसम के धान(सार छंद)*


धान कटोरा हा धन धरके, धन धन अब हो जाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


हवै धान के नाम हजारो, कहौं काय मैं भाई।

देशी अउ हरहुना संकरित, मोटा पतला माई।

लाली हरियर कारी पढ़री, धान चँउर तक होथें।

सुविधा देख किसनहा मन हा, खेत खार मा बोथें।

मुंदरिया मरहन महमाया, मछलीपोठी मेहर।

मालवीय मकराम माँसुरी, कार्तिक कैमा कल्चर।

चनाचूर चिन्नउर चेपटी, छतरी चीनीशक्कर।।

बाहुबली बलवान बंगला, बाँको बिरसा बायर।

बिरनफूल बुढ़िया बइकोनी, बिसनी बरही माही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


पंत पूर्णिमा पंकज परहा, परी प्रसन्ना प्यारी।

पूर्णभोग पानीधिन पंसर, नाकपुरी नरनारी।

आईआर अर्चना झिल्ली, अजय इंदिरासोना।

समलेश्वरी सुजाता साम्भा, सागरफेन सरोना।

कालाजीरा कनक कामिनी, करियाझिनी कलिंगा।

साहीदावत सफरी सरना, सरजू सिंदुरसिंगा।।

स्वेतसुंदरी सादसरोना, सहभागी सुरमतिया।

गंगाबारू गुड़मा गोकुल, गोल्डसीड गुरमटिया।

बासमती दुबराज सुगंधा, विष्णुभोग ममहाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


क्रांति किरण कस्तूरी केसर, नयना बुधनी काला।

कालमूंछ केरागुल कोड़ा, बरसाधानी बाला।

कंठभुलउ केकड़ा ककेरा, कदमफूल कनियाली।

कावेरी कमोद कर्पूरी, कामेश कुकुरझाली

रामकली राजेंद्रा रासी, राधा रतना रीता।

सहयाद्री सन सोनाकाठी, सोनम सरला सीता।

जसवाँ जीराफूल जोंधरा, जगन्नाथ जयगुंडी।

जया जयंती जयश्री जीरा, लौंगफूल लोहुंडी।

सत्यकृष्ण साठिया शताब्दी , बादशाह अन साही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


पूसा पायोनियर नन्दिनी, नाजिर नुआ नगेसर।

गटवन गर्राकाट गायत्री, खैरा रानीकाजर।

रतनभाँवरा राजेलक्ष्मी, आदनछिल्पा रामा।

तिलकस्तूरी तुलसीमँजरी, जवाँफूल सतभामा।

गाँजागुड़ा नवीन नँदौरी, काली कुबरीमोहर।

दन्तेश्वरी दँवर डॅक दुर्गा, दांगी खैरा नोहर।

हहरपदुम हंसा सन बोरो, हरदीगाभा ठुमकी।

लुचई भुसवाकोट भेजरी, लूनासंपद झुमकी।

कलम फाल्गुनी फूलपाकरी, इलायची ललचाही।

लुवा मिंजा के धान सोनहा, मुचुर मुचुर मुस्काही।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

लावणी छंद- जानवर ले गय बीतिस मनखे

 लावणी छंद- जानवर ले गय बीतिस मनखे


मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।

मार काट होवत हे भारी, रोज रक्त बोहावत हे।।


मया बाप बेटा मा नइहे, कलपत हे महतारी हा।

भाई भाई लड़त मरत हे, थकगे टँगिया आरी हा।

धरम जात पद पइसा खातिर, कतको मर खप जावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।।।


मोल भुलाके मनुष जनम के, मनखे बनगे बजरंगा।

मया प्रीत के गाँव शहर मा, फैलावत हावय दंगा।।

उफनत हावय रिस मा कोनो, ता कोनो उकसावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।।।


सरग नरक अउ पाप पुण्य ला, कहिके ढोंग दिखावा सब।

बिना डरे काटत भूँजत हे, बनके मिर्मम लावा सब।

शिक्षा हे संस्कार सिरागे, ये कलयुग मतलावत हे।

मानव मन ले मानवता के, नाम निशान मिटावत हे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

Monday, 3 November 2025

तह विकास के-हाकलि छंद

 तह विकास के-हाकलि छंद


तह विकास के पोला हे।

सब खुँट विष के घोला हे।।

बरत गाँव घर टोला हे।

उसलत बारी कोला हे।।


खतरा तोला मोला हे।

बम बारुद गन गोला हे।।

गिरे फसल मा ओला हे।

सुख मासा अउ तोला हे।।


नेता मन बड़बोला हें।

जनता निच्चट भोला हें।।

नश्वर माटी चोला हे।

तब ले नखरा सोला हे।।


इक देखावत रोला हे।

घर भीतर हिंडोला हे।।

इक के हाथ फफोला हे।

चिरहा खीसा झोला हे।।


सत के निकलत डोला हे।

संगी सगा सपोला हे।।

मोला मोला मोला हे।

बरत जिया मा होला हे।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

कानून के डर

 कानून के डर


जेन डरथे बाढ़त, चाँउर दार तेल नून ले।

उही मनखें भर डरथे, कायदा कानून ले।।


खास आदमी, कानून कायदा ला नइ माने।

पइसा पहुँच के दम मा, घुमथे सीना ताने।।

धन बल ज्ञान गुण के, रोब झाड़त दिखथे।

अइसन मनके आघू, सबे चीज हा बिकथे।

ये मन सब घातक हें, साँप बिच्छू घून ले।

जेन डरथे बाढ़त, चाँउर दार तेल नून ले।

उही मनखें भर डरथे, कायदा कानून ले।।


पढ़े लिखे मनखें के, अंतस मा कोइला भरगे।

दया मया धरम करम, पाके पना कस झरगे।।

मनखें अब सिर्फ डरथे, कुदरत के कानून ले।

आसाढ़ के बाढ़, अउ टघलत मई जून ले।।

विकास खेलत हे होली, मनखें के खून ले।

जेन डरथे बाढ़त, चाँउर दार तेल नून ले।

उही मनखें भर डरथे, कायदा कानून ले।।


कथे झूठ सच पकड़े के, नवा नवा मशीन हे।

तभो जज वकील, अदालती खेल मा लीन हें।।

कानून के लंबा हाथ, आम जन के गला नापथे।

खास के आघू मा, साहब सिपइहा मन काँपथें।।

मनखें दूर भागत हें, धरम करम पाप पुण्य ले।

जेन डरथे बाढ़त, चाँउर दार तेल नून ले।

उही मनखें भर डरथे, कायदा कानून ले।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

सर्दी मा सब्जी भाजी-कुकुभ छंद

 सर्दी मा सब्जी भाजी-कुकुभ छंद


अबक तबक सब्जी सस्ताही, सोचत हन सब सर्दी मा।

फेर कहाँ बखरी बारी हे, नवयुग गुंडागर्दी मा।।


खुलत कारखाना हे भारी, टेकत महल अटारी हे।

बनत हवै रोजे घर कुरिया, जिहाँ न बखरी बारी हे।

उपजइया गिनती के दिखथें, हवैं खवइया बर्दी मा।।

अबक तबक सब्जी सस्ताही, सोचत हन सब सर्दी मा।


सबे चीज के किम्मत बढ़गे, बढ़गे महिनत बेगारी।

बिचौलिया के हाथ लगे बिन, बेंचाये नइ तरकारी।।

माटी संग सनइया कम हें, घुमैं मनुष सब वर्दी मा।

अबक तबक सब्जी सस्ताही, सोचत हन सब सर्दी मा।


फसल समय के बोवाये हे, परिया खेती बाड़ी हे।

फुदरे उद्योगी बैपारी, फँसे किसनहा गाड़ी हे।।

आज जमाना अइसन हावय, कल बितही बेदर्दी मा।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)