Monday 2 September 2019

सार छंद-आजा सजन(गीत)

आजा सजन(गीत)

दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।
लक्ष्मण रेखा लाँघत हावै, घर घर बइठे रावन।

घड़घड़ गरजे चमचम चमके, बादर घेरी बेरी।
का हो जाही कोन घड़ी मा, फड़के आँखी डेरी।
कइसे जिनगी मोर पहाही, संसो लागे खावन।
दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।

देखत देखत मोर सजन ला, नाड़ी हाथ जुड़ागे।
डंक साँप बिच्छू नइ मारे, काठ समझ के भागे।
सजन बिना बन बाग बगीचा, नइ लागे मनभावन।
दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।

नजर गड़त हे कतको झन के, देख अकेल्ला मोला।
आस लगा बिहना मैं जीथौं, साँझ मरे नित चोला।
नैन मुँदावय गला सुखावय, चेत लगे छरियावन।
दउहा नइहे मोर सजन के, बीतत हावै सावन।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)छत्तीसगढ़

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