महँगा होगे गन्ना(कुकुभ छंद)
हाट बजार तिहार बार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।
तभो किसनहा पातर सीतर,साँगर मोंगर हे धन्ना।
भाव किसनहा मन का जाने,सब बेंचे औने पौने।
पोठ दाम ला पावय भैया,खेती नइ जानै तौने।
बिचौलिया बन बिजरावत हे,सेठ मवाड़ी अउ अन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना----।
पारस कस हे उँखर हाथ हा,लोहा हर होवै सोना।
ऊँखर तिजोरी भरे लबालब,उना किसनहा के दोना।
होरी डोरी धरके घूमय,सज धज के पन्ना खन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना।
हे हजार कुशियार खेत मा,तभो हाथ हावै रीता।
करम ठठावै करम करैया,होवै जग हँसी फभीता।
दुख के घन हा घन कस बरसे,तनमन हा जाथे झन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।
कमा घलो नइ पाय किसनहा,खातू माटी के पूर्ती।
सपना ला दफनावत दिखथे,सँउहत महिनत के मूर्ती।
देखव जिनगी के किताब ले,फटगे सब सुख के पन्ना।
जेठउनी पुन्नी तिहार मा,सौ के तीन बिके गन्ना------।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको कोरबा
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