हरिगीतिका छंद-परसा
*परसा कहै अब मोर कर भौरा झुले तितली झुले।*
*तड़पे हवौं मैं साल भर तब लाल फुलवा हे फुले।*
*जब माँघ फागुन आय तब सबके अधर छाये रथौं।*
*बाकी समय बन बाग मा चुपचाप मिटकाये रथौं।*
*सजबे सँवरबे जब इहाँ तब लोग मन बढ़िया कथे।*
*मनखे कहँव या जीव कोनो सब मगन खुद मा रथे।*
*कवि के कलम मा छाय रहिथौं एक बेरा साल मा।*
*देथौं झरा सब फूल ला नाचत नँगाड़ा ताल मा।*
खैरझिटिया
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