Monday 6 March 2023

हरिगीतिका छंद-परसा

 हरिगीतिका छंद-परसा


*परसा कहै अब मोर कर भौरा झुले तितली झुले।*

*तड़पे हवौं मैं साल भर तब लाल फुलवा हे फुले।*

*जब माँघ फागुन आय तब सबके अधर छाये रथौं।*

*बाकी समय बन बाग मा चुपचाप मिटकाये रथौं।*


*सजबे सँवरबे जब इहाँ तब लोग मन बढ़िया कथे।*

*मनखे कहँव या जीव कोनो सब मगन खुद मा रथे।*

*कवि के कलम मा छाय रहिथौं एक बेरा साल मा।*

*देथौं झरा सब फूल ला नाचत नँगाड़ा ताल मा।*


खैरझिटिया

No comments:

Post a Comment