Sunday, 23 February 2025

कलम रोये हे....... ---------------------------------

 कलम रोये हे.......

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सब बर रोटी पोये हे,

तभो बिन खाय सोये हे......|

जे बेर लिखे हे गोठ महतारी के,

ते बेर कलम रोये हे..............||


हे खई-खजाना ओली म,

मीठ मंदरस हे बोली म||

सिधोत बारी,खेत-खार,

दिन गुजरगे रंधनी खोली म||

जब ले धरे हे जनम,

तब ले करत हे जतन||

घर-बन;लइका; गोंसैंया के,

बेटी;महतारी;सुवारी बन|

सब बूता बर आगे हे,मुंदरहा पहिली जागे हे,

रतिहा आखिर म सोये हे.....||

जे बेर लिखे हे गोठ महतारी के,

ते बेर कलम रोये हे...........||


कोख के पीरा कोन मेर बॉचे|

रोवत लइका मन कोरा म हॉसे|

सोना  चॉदी  हीरा  बनाइस,

रहिके  जिनगी  भर  कॉचे|

बनके दरपन घर के,

सजाइस घर-परिवार ल|

कोन बोह पाही ये भुंइयाँ म,

महतारी  के  भार  ल|

फरे साग-भाजी;महके फूल-फूलवारी,

बाढ़े रूख-राई ;महतारी जे बोये हे....|

जे बेर लिखे हे, गोठ महतारी के,

ते  बेर  कलम  रोये हे....................|


बारे हे दीया तुलसी चँवरा म,

लीपे-पोते हे अँगना दुवारी||

मुचमुच हॉसे कुंदरा ह घलो,

जेन   घर म   हे   महतारी||

महतारी अवतार दुरगा काली के|

देखाइस दुख म  घलो जी के|

हॉसिस ऑखी के ऑसू ल पी के|

फेर कोनो नइ देखिस घाव ल छी के|

खुदे मइलाके; गंगा असस,

जग के  पाप ल धोये हे....||

जे बेर लिखे हे गोठ महतारी के,

ते   बेर   कलम   रोये  हे......||

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                 📝  जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                         बाल्को( कोरबा )

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मोर महतारी मोर अभिमान.......मोर जिनगी

होरी अउ पीरा पलायन के- सरसी छन्द

 होरी अउ पीरा पलायन के- सरसी छन्द


होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।

रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।


देवारी के दीया बुझथे, बरथे मन मा आग।

शहर दिही दू पइसा कहिके, देथौं गाँव तियाग।

अपन ठिहा मा दरद भुलाहूँ, फागुन ला परघात।

होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।।

रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।


प्लास आम डूमर कस ठाढ़े, नित गातेंव मल्हार।

फोकट देहस मोला भगवन, पेट पार परिवार।

जनम भूमि जुड़ अमरइया हे, करम भूमि हे तात।

होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।।

रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।


अइसन रँगबे सब ला आँसो, हे फागुन महराज।

सबे बाँह बर होवै बूता, छलकत रहै अनाज।।

दरद पलायन के झन भुगते, कभू गाँव देहात।

होरी जइसे अगिन पेट के, जरत रथे दिन रात।

रंग छीच के फेर बुझाहूँ, फागुन हवय बुलात।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Wednesday, 19 February 2025

छेना खरही- दोहा चौपाई

 छेना खरही- दोहा चौपाई


        पइसा फेकय हाँस के, जाँगर कोन खपाय।

        नवा जमाना आय ले, जुन्ना काम नँदाय।।


नवा जमाना कती हबरही। दिखे नही अब छेना खरही।।

छेना बीने के गय अब दिन। रहै सहारा जेहर सब दिन।।


पाठ पठउँहा बारी बखरी। जिहाँ रहै बड़ छेना लकड़ी।।

गरुवा गाय बँधाये घरघर। गोबर निकले कोल्लर भरभर।।


भाई बहिनी बाबू दाई। बिनै सबे गोबर मुस्काई।।

डार पिरौसी थोपैं छेना। तभो काखरो थकयँ न डेना।


काया के कसरत हो जावै। रोग रई कतको दुरिहावै।

करे काम तन मन ले बढ़िया। नाम कमावै छत्तिसगढ़िया।।


चलत रिहिस होही ये कब के। खरही राहय रचरच सबके।।

छेना खा खा भभके चूल्हा। दार भात तब झड़के दूल्हा।।


बर बिहाव का छट्ठी बरही। सबके थेभा राहय खरही।।

चूल्हा छेना बिन नइ सुलगे। शहरी मन हा चुक्ता भुलगे।


आज गैस कूकर हे घर मा। चूल्हा कमती आय नजर मा।।

मनखे होगे सुविधा भोगी। ततके बनगे हावय रोगी।।


भाय दूध छेना आगी के। भोजन भूख भगावै जी के।

खरही खाल्हे डारे डेरा। मुसवा घलो लगाये फेरा।।


घाम घरी बड़ खरही बाढ़े। आय बतर तब रो धो ठाढ़े।।

छेना बिना गोरसी रोये। पेट सेंक तब लइका सोये।।

        

         ईंधन बन छेना जले, कमती पेड़ कटाय।

         धुँवा घलो कमती उड़े, जड़ चेतन सुख पाय।


अब के लइका का ये जाने। छेना धर सब आगी लाने।।

धुँवा दिखाये नजर जाय लग। छेना सुपचा देय हूम जग।।


छेना रचके बाट चढ़ावै। छेना मा खपरा पक जावै।।

छेना के सब बारे होरी। माँजे गहना गुठिया गोरी।।


एक आँच मा बनथे खाना। खाय माँग बड़ दादा नाना।

छेना राख भभूती लागे। धुँवा देख के मच्छर भागे।।


राख अबड़ उपजाऊ होवय। पौधा जर मा राख कुढ़ोवय।

बढ़े राख मा सरसर बिरवा। खातू ये बिन मिलवट निरवा।।


छेना राख काम बड़ आये। बर्तन चकचक ले उजराये।।

बइगा छेना राखड़ धरके।  मारे मंतर फू फू करके।।


उपयोगी हे राख दाँत बर। उपयोगी हे राख आँत बर।।

घावउ गोंदर खजरी कीड़ा। राख लगाये भागे पीड़ा।।


गोधन रख जे सेवा करथे। तेखर घर नित खरही बढ़थे।।

गुण गोबर के हे आगर जस। गुण कारी छेना हावै तस।।


जनम धरत छेना ला कहिथे। मरत समय तक छेना रहिथे।

मनुष आधुनिक कतको होवय। कभुन कभू छेना बर रोवय।


बिके अमेजन मा छेना हा। देख निकलथे मुख ले हाहा।।

जी सकथे मनखे बिन डेना। फेर जरूरी हावै छेना।।


          छेना हे बड़ काम के, गरुवा गाय बिसाव।

          थोपव गोबर सान के, खरही ऊँच बनाव।।


 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

Tuesday, 11 February 2025

होरी तिहार

 होरी तिहार के आप सबो ला सादर बधाई


होली गीत

बानी  लगाय  हवस, तैंहा  रे करिया।

रंग डारे तन ला,समझ सादा फरिया।


कारी कलुटी  मोर  होगे हे अंग हा।

लगरे म घलो लटपट छुटथे रंग हा।

तन के धोवाई म,रंग गेहे तरिया।

रंग डारे तन ला------------,---।


कभू रंगथस कारी,कभू नीला लाल।

कभू रंग रुतोथस अउ,कभू  गुलाल।

इति उति भागथस,बोकरा कस नरिया।

रंग डारे तन ला,समझ सादा फरिया--।


दल के दल आथस अउ,हल्ला मचाथस।

फागुन के गाना मा,नाचथस नचाथस।

धरके दया मया,तनमन ला हरिया।

रंग डारे तन ला,-----------------।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको, कोरबा(छग)

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परघाले फागुन ला(गीत)

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परघाले  फागुन  ला, नँगाड़ा  धरके।

गाले गाले न फाग,पारा-पारा भरके।


अँगरा कस दिखत हे, परसा के फूल।

सेम्हर; दसमत  जाये ,पूर्वा  मा  झूल।

ठोंनकत हे कोयली,आमा के फर ला।

हवा   गवावत  हे, बर  अउ पीपर ला।

नाच  उल्हुवा लिमुवा के, डारा  धरके।

परघाले   फागुन   ला, नँगाड़ा   धरके।


रंग  गुलाल  उड़ाले, रंग - झाझर।

धोले   काया  के, करिया काजर।

बाँध ;  झाँझ    मंजीरा , मा  मन।

रंगले    मया    के   रंग ,मा   तन।

बाँट दया-मया,गाड़ा-गाड़ा धरके।

परघाले फागुन ला,नँगाड़ा धरके।


भरले  पइली - पइली,झोरा  मा होरा।

उतेरा -ओन्हारी   के, होवत  हे जोरा।

जलाले     इरसा   ,  द्वेस   के   होली।

फुटय   सबो  बर, मीठ - मीठ  बोली।

पठो नेवता सबला,झारा-झारा भरके।

परघाले   फागुन  ला , नँगाड़ा  धरके।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

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झन बिगाड़ होली मा बोली- गीत(चौपाई छंद)


चिल्लाथस बड़ होली होली, लोक लाज के फाटक खोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


मया पिरित के ये तिहार मा, द्वेष रहे झन तीर तार मा।

बार बुराई होली रचके, चल गिनहा रद्दा ले बचके।।

उठे कभू झन सत के डोली, पथ चतवार असत ला छोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


बजा नँगाड़ा झाँझ मँजीरा, नाच नाच दुरिहा दुख पीरा।

समा जिया मा सब मनखे के, दया मया नित ले अउ दे के।

छीच मया के रँग ला घोली, बना बने मनखे के टोली।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


एखर ओखर खाथस गारी, अबड़ मताथस मारा मारी।

भाय नही कोनो हर तोला, लानत हे अइसन रे चोला।।

दारू पानी गाँजा गोली, गटक कभू झन मिल हमजोली।।

झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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रंग परब(सरसी छंद)


फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय   बुराई  नास।

सत के जोती जग मा बगरे,मन भाये मधुमास।


चढ़े दूसर दिन रंग मया के,सबझन खेलैं फाग।

होरी   होरी  चारो   कोती, गूँजय  एक्के  राग।

ढोल नँगाड़ा बजे ढमाढम,बजे  मँजीरा  झाँझ।

रंग गुलाल उड़ावय भारी,का बिहना का साँझ।

करिया पिवँरा लाली हरियर,चढ़े रंग बड़ खास।

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास...।


डूमर गूलय परसा फूलय,सेम्हर लागय लाल।

सरसो चना गहूँ बड़ नाचय,नाचे मउहा डाल।

गस्ती तेंदू  चार  चिरौंजी,गावय  पीपर  पान।

बइठे  आमा  डार  कोयली ,सुघ्घर छेड़े तान।

घाम हवे ना जाड़ हवे जी,हवे मया के वास।

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास--


होली मा हुड़दंग  मचावय,पीयय गाँजा  भांग।

इती उती चिल्लावत घूमय,खूब  रचावै  स्वांग।

तास जुआ अउ  दारू पानी,झगरा झंझट ताय।

अइसन मनखे गारी खावय,कोनो हा नइ भाय।

रंग मया के अंग लगाके,जगा जिया मा आस।

फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास..।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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💐💐होली हे(गीत)💐💐

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महकत  रंधनी  खोली  हे।

मुँह मा मीठ मीठ बोली हे।

फागुन  मस्त महिना आये,

नाचो  -  गावो    होली  हे।


नेवता  हेवे   झारा - झारा।

सइमो - सइमो   करै पारा।

बाजत   हवे  ढोल नँगाड़ा।

नाचत हे भांटो  अउ सारा।

अंग  मा  रंग,रचे  हे भारी।

दिखै  लाली  पिंवरी कारी।

अबीर माड़े भर-भर थारी।

सर्राये     मारे   पिचकारी।

घूम -  घूम   के    रंग   रंगे,

लइका-सियान के टोली हे।


झरे  मउर,धरे  आमा फर।

धरे राग,कोइली गाये बड़।

उल्हवा दिखे,डारा - पाना।

चना  गंहू    धरे  हे   दाना।

चार   तेंदू   लिटलिट  फरे।

रहि - रहि     मउहा    झरे।

बोइर अमली झूले डार मा।

सेम्हर परसा फूले खार मा।

घर  -  दुवार,  गली  - खोर,

नाचत   डोंगरी   डोली  हे।


बरजे   बाबू,  बोले  सियान।

नइ   देत   हे,कोनो  धियान।

मगन     होगे    नाचत    हे।

दया  -  मया       बाँटत   हे।

होरी   देय   संदेस   सत के।

मया   रंग   मा,  रबे  रचके।

परसा सेम्हर  आमा लचके।

दुल्हिन कस खड़े हे सजके।

मया  रंग रचे लाली- हँरियर,

धरती   दाई   के  ओली  हे।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981442795

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काबर बुरा नइ मानबों


काबर बुरा नइ मानबों,

बुरा    करबे          त?

हँमू                लड़बों,

बरपेली      लड़बे  त।


आय   हे      होली,

बोल  मीठ   बोली।

काबर उलगत हस,

मुँह   ले       गोली।

छीत देबों माटी तेल,अपने अपन बरबे त।

काबर    बुरा  नइ  मानबों,बुरा  करबे  त?


मया   के    तिहार हे।

जुरे पारा -परिवार हे।

उड़य   रंग     गुलाल,

हमाय खुसी अपार हे।

बाँट खुसी,खाबे गारी;कहूं लड़बे त।

काबर बुरा नइ मानबों,बुरा करब त?


माते हे फागुन, रचे  हे रास।

मजा उड़ाले,झन कर नास।

बाजे  नँगाड़ा,गा अउ नाच।

सबला  हँसा, तहूँ  हा हाँस।

मार खाबे मया के बगिया ल;चरबे त।

काबर बुरा नइ मानबों,बुरा  करबे  त?


समा    सबके  मुँह   मा,

काबर फोकटे लड़थस?

का      मिलथे    तोला?

कोचके  कस   करथस।

मया    के    रंग  लगाले,

कोन       का      कही?

रबे         बने      बनके,

त  सबके  आसिस रही।

थोर थार चलथे,अति नइ सहाय।

कोनो तिहार हा,बुरा करेल नइ काहय।

फोकटे अँटियात हस,कोन रोही मरबे त?

काबर    बुरा  नइ  मानबों,बुरा  करबे  त?


रंग लगाय बर गाल का?

हिरदे   घलो  लमा देबों।

पाँव  ला का  खिंचथस?

मूड़    मा   चढ़ा   लेबों।

मनखे कोनो अलग नोहे,

सब  ला   अपन   मान।

दाई -ददा  रीत-रिवाज।

सबके    कर   सम्मान।

नाव बगरही,अंजोर बर;भभका धरबे त।

काबर   बुरा  नइ मानबों,बुरा  करबे  त?


होली    हे ;   त   हद  में  रहा।

मनखे    कस,   कद  में   रहा।

मान   बड़े   के  बात   बरजना,

छीत फूल,झन रद-खद में रहा।

सबो   दिही   पलोंदी,  सोझ   चढ़बे   त।

काबर    बुरा  नइ  मानबों,बुरा करबे  त?


चल   बुरा  नइ  मानन,

होली                   हे।

का   हिरदे    मा मया?

अउ   मीठ    बोली हे?

जेन दिन तोर हिरदे मा,

मया    जाग      जही।

बोली  मीठ  साफ रही।

वो   दिन  लइका कस,

तोरो गलती माफ रही।

बड़ पून्न कमाबे,सुनता के संग धरबे त।

काबर बुरा  नइ  मानबों,बुरा  करबे  त?


राचर टटटा कपाट ला,

कुवाँ बवली मा बोर देथस।

रंग  गुलाल ठीक हे फेर

नाली मा तक मा चिभोर देथस।

हुदरे कोचके कस करथस,

का मार देबे तभे जानबों?

जी खखवा जाथे,

कइसे बुरा नइ मानबों।।


जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

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होली गीत


आवत हे आवत हे आवत हे आवत हे आवत हे।

करिया रंग धरके करिया टूरा।।

लगथे बइहा पगला वो पूरा।।


पाना असन डोलत हे।

थेथेर मेथेर बोलत हे।

अपने अपन हाँसत हे,

येला वोला छोलत हे।।

गिरे हावय जिनगी धूरा--

करिया रंग धरके करिया टूरा।।


बात बानी माने नही।

बड़े छोटे जाने नही।

गिधवा कस देखत हे,

दया मया साने नही।

टूट गेहे पाटी अउ खूरा----

करिया रंग धरके करिया टूरा।।


चाल चलन किरहा हे।

कपड़ा लत्ता चिरहा।

हारे थके बइगा गुनिया,

सपडे शनि गिरहा हे।

काम आथे घलो धतूरा----

करिया रंग धरके करिया टूरा।।


होरा भूंजही छानी मा।

पेराही खुद घानी मा।

डूब जाही एक दिन,

चुल्लू भर पानी मा।

सपना होही चूरा चूरा------

करिया रंग धरके करिया टूरा।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


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....कोन रंग धरके आंव (गीत)...

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कोन रंग धरके मंय आंव तंय बता ??

खेलहूं होरी तोर संग मंय, काहे तोर पता??


मनके गुलाल लाहूं|

हंरियर पिंवरा लाल लाहू||

भरके रंग कटोरा लाहूं|

 रोटी-पीठा के जोरा लाहूं||

माते फागुन म गाल,तोर नई बाचे सफा...|

कोन रंग धरके मंय आंवो तंय बता  ??


रीस ल पीस के तोर,

गाल म चुपर देहूं|

हॉंसबे त लाली-पिवरीं,

नही ते कारी कर देहूं||

होरी के तिहार हे|

मया के चिन्हार हे|

मनखे ल का किबे,

नाचे डोंगरी खेत-खार हे||

मानेल लगही तोला, मनाहूं कई दफा...||

कोन रंग धरके मंय आंवो तंय बता  ??


होरी के रंग के डर म तंय|

खुसरे हस घर म तंय|

नई रंगे आज रंग म,

त का पाये उमर म तंय||

भले टेटका कस रंग बदले, खोजत फिरे नफा|

कोन रंग धरके मंय आंवो तंय बता   ??

आये हे होरी;बरसा मीठ बोली,मया के रंग लगा|

कोन रंग धरके मंय आंवो तंय बता  ???

                   जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

                        बाल्को(कोरबा)


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होली गीत


इरखा द्वेष जराबों, चलो रे संगी होली मनाबों।

अन्तस् ले अन्तस् मिलाबों, चलो रे संगी-----।


मन रूपी जंगल भीतरी जाबों।

अवगुण के छाँट लकड़ी लाबों।

गाँज के अगिन लगाबों, चलो रे संगी-----।


तन ला रंगबों मन ला रंगबो।

घर ला रंगबों बन ला रंगबों।।

आघू पाँव बढ़ाबों, चलो रे संगी-----------।


सत सुम्मत ला देबों पँदोली।

भरबों सबके खाली झोली।।

हँसबो अउ हँसवाबों, चलो रे संगी---------।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


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फागुन आगे.....

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फागुन आगे, जाग  रे  संगी ||

डारा-पाना देवत हे, राग रे संगी||


बनके कोयली, गा अमरइया म ,

झन  बन  तैहा, काग  रे  संगी ||


झर्रादे  मोह-माया  के  पाना,

फोंकियाही तोरो भाग रे संगी ||


ढोल-नंगाड़ा डम-डम बाजे ,

चारो कोती गुंजत हे, फाग रे संगी||


छुट जही तोरे महल-अटारी,

काखर बर जोरत हस ताग रे संगी||


घर बन छुटही होही बिगाड़ा।

मंद मउहा दे तियाग रे संगी।।


रंगले तन मन ल फागुन रंग म,

दब जही जम्मो दाग रे संगी ||

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                 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                       बाल्को(कोरबा)

                9981441795


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गीत- होली मा हुड़दंग


होत हावय होली मा हुड़दंग---

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


फागुन के गाना नइहे,नइहे नँगाड़ा।

डीजे मा डोलत हें, पारा के पारा।।

कोई पीये हे दारू कोई भंग--

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


छोटे अउ बड़े के, नइहे लिहाज।

मान मर्यादा ऊपर, गिरगे हे गाज।

चारो कोती फदके हे जंग----

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


असत धरा देहे, सत ला होली मा।

जहर बरसत हावय, सबके बोली मा।

दया मया गय चुक्ता खंग-----

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


धीरे धीरे उठत हे, होली के डोली।

भीगें नइहे धोती, कुर्था साफा चोली।

कपड़ा लत्ता निच्चट हे तंग---

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


पियइया खवइया,नाचे अउ कुदे।

होगे पानी पानी, बने मनखे खुदे।

जावँव कते टोली के संग----

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


परब के मरम ला, जाने ना माने।

ताकत हें मनखे मन, जइसे गिधाने।

देख काँपत हे मोर अंग अंग---

कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

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घनाक्षरी छन्द -


बसन्त ऋतु


अमरइया मा जाबों,कोयली के संग गाबो

चले सर सर सर,पुरवइया राग मा।।

अरसी हे घमाघम,चना गहूँ चमाचम

सरसो मँसूर धरे,मया ताग ताग मा।

अमली झूलत हवै,अमुवा फुलत हवै,

अरझ जावत हवै,जिवरा ह बाग मा।

रौंनिया म माड़ी मोड़,पापड़ चना ल फोड़

खाबों तीन परोसा गा,सेमी गोभी साग मा।


जब ले बसंत लगे,बगुला ह संत लगे

मछरी ल बिनत हे, कलेचुप धार मा।।

चिरई के बोली भाये, पुरवा जिया लुभाये

लाली रंग रंगत हे, परसा ह खार मा।।

खेत खार घर बन,लागे जैसे मधुबन

तरिया मा मुँह देखे,बर खड़े पार मा।।

बसंत सिंगार करे,खुशी दू ले चार करे

लइका कस धरती ह,हाँसे जीत हार मा।।


दोहा-


आये रंग तिहार हे, गावव जुरमिल फाग।

आमा बाँधे मौर हे, मउहा देवे राग।।0


परसा सेम्हर फूल हा,अँगरा कस हे लाल।

आमा बाँधे मौर ला,माते मउहा डाल।1।


पुर्वाही सरसर चले,डोले पीपर पात।

बर पाना बर्रात हे,रोजे दिन अउ रात।2।


खिनवा पहिरे सोनहा,लुगरा हरियर पान।

चाँदी के पइरी सजा,बम्हरी छेड़े तान।3।


चना गहूँ माते हवै,नाचे सरसो खेत।

अरसी राहर लाखड़ी,हर लेथे मन चेत।4।


नाचत गावत माँघ मा,आथे देख बसन्त।

दुल्हिन कस लगथे धरा,छाथे खुशी अनन्त।5।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को(कोरबा)

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दुर्मिल सवैया(पुरवा)


सररावत  हे  मन  भावत  हे  रँग फागुन राग धरे पुरवा।

घर खोर गली बन बाग कली म उछाह उमंग भरे पुरवा।

बिहना मन भावय साँझ सुहावय दोपहरी म जरे पुरवा।

हँसवाय कभू त रुलाय कभू सब जीव के जान हरे पुरवा।


खैरझिटिया


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कइसे बसंत आथे

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रितु बसंत बैठे बाजू म, 

बतियाय कवि ले|

मोर नॉव के बोझा ल,

तँय ढोवत हस अभी ले..... |||

 

 मॅय सहर नगर ले दूर

डिही डोंगरी खेत-खार म रिथों|

अपन मन के बात ल,

पुरवइया बयार म किथों|


मँय आमा म मौंरे हों,

मँय परसा म फुलें हौ|

बंभरी म सोनहा खिनवा कस,

त अमली म झूले हौ|


मँय गंहू के  बाली बने हौं

महिं फुल महिं माली बने हौं|

झुले चिरई चढ़के फुलगी म,

महिं पाना महिं डाली बने हौं|


 कोयली संग मँय  बोलथंव|

फगुवा म रंग रस घोलथंव|

घमघम ले अरसी कस फुलके,

पिंवरी सरसो बन डोलथंव|


मँय मुंग मुंगेसा फुट फुटेना कस,

रंग रंग के खाजी|

लहलहावत बारी बखरी म,

आनि-बानि के भाजी|


मँय घाट-घठौंदा;बाग-बगइचा,

अलिन-गलिन म नाचथों|

कुहकी पारत मगन होके,

लइकामन कस हॉसथों।


बरखा आथे त पानी गिरथे,

सीत आथे त जाड़ लगथे,

अऊ गरमी आके गरमाथे|

तँय नइ लिखतेस त कोन जानतिस?

कि कइसे बसंत आथे|


        जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

           बाल्को(कोरबा)

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रील बनइया डउकी--होली गीत


मोला झन देबे देवता, रील बनइया डउकी।

आनी बानी के नखरा ल, नइ सही पाहूँ गउकी।


इस्नु पाउडर ओनहा कपड़ा, गाड़ा गाड़ा लीही।

घूम घूम के रील बनाही, सपना मा बस जीही।

अलवा जलवा खाएल लगही, राँध खुदे भटा लउकी।

मोला झन देबे देवता, रील बनइया डउकी।।


मांगेल लगही घेरी बेरी, लाइक अउ कमेंट।

हिरवइन बरोबर वोहर रइही, मैं रहूँ बन सर्वेंट।।

झन उंडे गृहस्थी के गाड़ा, बने बनाबे बनउकी।

मोला झन देबे देवता, रील बनइया डउकी।


रील देखइया नजर गड़ाही,  होही मोर जी छल्ली।

मैहर सिधवा ठेठ गँवइहा, झन देबे लैला लल्ली।।

हाँसी फभित्ता अड़बड़ होही, जाही चूल्हा म चूल्हा चँउकी।

मोला झन देबे देवता, रील बनइया डउकी।।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

(इही गीत ल आँसो नीलकमल वैष्णव जी,पारम्परिक राग मा ढाल के,स्वर देंइन हे)

Saturday, 8 February 2025

बसंत ------------------------------------------ चल बइठबों बसंत म,पीपर तरी।

 बसंत

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चल बइठबों बसंत म,पीपर तरी।

पूर्वा   गाये   गाना ,घरी  -  घरी।


मोहे   मन   मोर   मउरे,मउर आमा के।

मधूबन कस लागे,मोला ठउर आमा के।

कोयली   कुहके  ,कूह - कूह   डार  म।

रंग-रंग के फूले हे,परसा-मउहा खार म।

बोइर-बर-बंम्भरी बर,बरदान बने बसंत।

सबो   रितुवन  म , महान  बने   बसंत।

मुड़ नवाये डोले पाना,तरी-तरी।

पूर्वा   गाये   गाना ,घरी  - घरी।


डोलत हे  जिवरा देख,सरसो  फूल  पिंवरा।

फूल - फर  धरे नाचे ,  राहेर, मसूर, तिवरा।

घमघम  ले   फूले  हे,  अरसी       मसरंगी।

हंरियर गंहूँ-चना बीच,बजाय धनिया सरँगी।

सुहाये  खेत -खार , तरिया - नंदिया कछार।

नाचे  सइगोन-सरई  डार, तेंदु-चिरौंजी-चार।

सुघरई बरनत पिरागे,नरी-नरी।

पूर्वा   गाये   गाना , घरी -घरी।


गोभी-सेमी-बंगाला,निकलत हे बारी म।

रोजेच साग चूरत हे, सबो  के हाँड़ी म।

छेंके  रद्दा रेंगइया ल, हवा अउ बंरोड़ा।

धरे नंगाडा पारा म , फगुवा डारे डोरा।

गाँव लहुटे सहर,अब दुरिहात हे बसंत।

जुन्ना पाना-पतउवा ल,झर्रात हे बसंत।

नवा - नवा  प्रकृति  ल,बनात हे बसंत।

खुदे  रोके;मनखे   बर, गात  हे बसंत।

कर्मा-ददरिया-सुवा,तरी-हरी।

पूर्वा   गाये   गाना ,घरी-घरी।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बालको(कोरबा)

9981441795

Thursday, 6 February 2025

गीत- दिखावा नवा जमाना के(सार छंद)

 गीत- दिखावा नवा जमाना के(सार छंद)


जुन्ना कोनो धरम करम हा, ढोंग दिखावा आये।

बता आज ये बात बात मा, केक काटना काये?


फौज फटाका तोरण तारा, स्टेज बफे समियाना।

भकर भिकिर बड़ डीजे बाजे, चले नाचना गाना।

पइसा पानी कस बोहाये, तभो मनुष मुस्काये।।

बता आज ये बात बात मा, केक काटना काये?


छोटे मा संस्कार दिखे नइ, बड़े दिखे नइ सुलझे।

पार्टी कहिके पीये खाये, कहिदे कुछु ता उलझे।।

नता पार परिवार भुलागे, संगत नंगत भाये।

बता आज ये बात बात मा, केक काटना काये?


पंगत पूजा दान दक्षिणा, कहाँ हवै अब बाँचे।

पाँव दिखे नइ मनखे ला अब, फकत मूड़ मा नाँचे।

खुद ला गिनहा कहे कोन हा, छोटे बड़े भुलाये।

बता आज ये बात बात मा, केक काटना काये?


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)

छत्तीसगढ़ अउ सुर सम्राज्ञी लता मंगेसकर जी

 छत्तीसगढ़ अउ सुर सम्राज्ञी लता मंगेसकर जी


             भारत रत्न स्वर कोकिल लता मंगेसकर के गाये गीत छत्तीसगढ़ के कण कण अउ छत्तीसगढ़िया मनके रग रग मा रचे बसे हे। ऊँखर सुमधुर गीत बिन हम सबके एको दिन नइ बुलके। साँझ सुबे हम सबके रेडियो, टीवी, टेपरीकॉर्डर अउ मोबाइल मा लता जी के गीत बजते रथे। लता जी के गीत के हर कोई दीवाना हे। हमर राज के कतको गायक गायिका मन उन ला  आदर्श मान के गीत गाये बर साधना करिन अउ अभो कतको मन करत हे। जब लता जी ला संगीत अउ कला महाविश्वविद्यालय खैरागढ़, डी लीट के उपाधि ले नवाजे बर आमन्त्रित करे रिहिस, ता बछर 1980 मा लता जी के पावन पाँव हमर छत्तीसगढ़ के माटी मा पड़े रिहिस। वो समय छत्तीसगढ़ के सबे कलाकार अउ गीतकार मन उंखर पावन आशीष पाय रिहिन। लता जी ला भोजन परोसे बर अनुराग ठाकुर, ममता चन्द्राकर, कविता वासनिक जइसे छत्तीसगढ़ के उभरत गायिका मन लगे रिहिन, अउ उंखरे आशीष आय जेन ये तीनो हस्ती मन छत्तीसगढ़ के सुर सम्राज्ञी बन गिन। पदम् श्री ममता चन्द्राकर जी तो लता जी ला छत्तीसगढ़ के खास व्यंजन कढ़ी घलो खवाये रिहिन। छत्तीसगढ़ के स्वर कोकिल कविता वासनिक जी वो समय के सुरता करत बताथें कि खुमान साव जी के साथ जब वो खैरागढ़ लता जी ले मिले बर गे रिहिस ता, लता दीदी कस सुर साज मिलही कहिके, जेन ल लता जी खात रिहिन,उही में के एक ठन गुलाब जामुन ला अनुराग जी अउ वासनिक जी मन आधा आधा खाये रिहिन। सुनब मा आथे की लता जी वो समय सुमधुर, मनभावन मराठी गीत मोगरा फुलला के कुछ पंक्ति गुनगुनाये रिहिन। वइसे तो कतको छत्तीगढ़िया मन मुम्बई मा जाके लता जी के दर्शन अउ आशीष पाते रिहिन, फेर खैरागढ़ मा छत्तीसगढ़ के संगीतकार खुमान साव, कल्याण सेन सहित कतको गीतकार, कलाकार,गायक गायिका अउ जन समुदाय मन सुर के देवी के साक्षात दर्शन करे रिहिन। छत्तीसगढ़ वासी मनके मया दुलार पाके लता दीदी गदगद होगे रिहिन।


                   राज निर्माण के पहली वइसे तो ज्यादा छत्तीसगढ़ी फ़िल्म नइ बने हे, फेर कहि देबे सन्देश के एक गीत *बिहनिया के उगत सुरुज देवता* ला गाये बर गीतकार संगीतकार मन लता जी ला निवेदन करे रिहिन, फेर लता जी के व्यस्तता अउ फिल्मकार मनके बजट नइ बइठ पाइस, ते पाय के लता जी ये गीत ला स्वर नइ दिन। फेर राज निर्माण के बाद बछर 2005 मा, भकला फिलिम मा स्वर कोकिल  लता जी,एक गीत गाइन, जे हम सब छत्तीगढ़िया मन बर गरब जे बात आय। आजो उंखर गाये गीत- *छूट जाही अंगना अटारी, छुटही भैया के दुवारी* खूब गाये अउ सुने जाथे। ये एक विदाई गीत आय। ये गीत ला लता जी ले गवाये बर गीतकार मदन शर्मा जी मन कतको बेर अनुनय विनय करत आखिर मा उपवास घलो रखे रिहिन। संगीतकार कल्याण सेन जी मन घलो बड़ कोशिश करे रिहिन। गीत ला गाये के एवज मा लता जी हा तय न्यूनतम रुपिया 50000 के सब ला मिठाई बाँटे बर मदन शर्मा जी ला कहि दे रिहिन। 36 भाषा मा 50000 ले जादा गीत गवइया लता जी के मुखारबिंद ले निकले स्वर, छत्तीसगढ़ी भाषा मा घलो गाये गीत के प्रमाण बन गिन। वइसे तो फिल्मकार मन लता जी ला छत्तीसगढ़ के पहली फिलिम(1965) मा गीत गवाना चाहत रिहिस फेर सम्भव नइ हो पाय रिहिस, अन्ततः 2005 मा दीदी जी मन अपन आवाज मा छत्तीसगढ़ी गीत गाइन।


2007 मा पर्यटन विभाग बर निर्मित डाक्यूमेंट्री फिल्म "महानदी के किनारे" के थीम सांग ला घलो लता जी मन स्वर मा पिरोये रिहिन। राज्य स्थापना दिवस बर कई  पँइत लता जी छत्तीसगढ़ आये बर हामी भरे रिहिन, फेर स्वास्थगत कारण ले नइ पहुँच सकिन। भले लता जी तन छोड़ परलोक गमन कर गिन, पर उंखर सुरता अउ गीत जब तक ये धरती के अस्तित्व रही तब तक यथावत रही। छत्तीसगढ़ सरकार लता जी ला श्रद्धांजलि देवत दू दिन के राजकीय शोक के घोषणा करे हे। सुर सम्राज्ञी लता जी ला शत शत नमन।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा(छग)


द्वितीय पुण्यतिथि मा सुर सम्राज्ञी लता जी ल कोटिशः नमन


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लता दीदी जी ला भावाञ्जली-कुंडलियाँ छंद


सुर के देवी ला नमन, करौं रोज कर जोर।

अमरित घूँट पियाय हे, शब्द शब्द मा घोर।

शब्द शब्द मा घोर, पियाहे अमरित पानी।

दीदी जी के गीत, गढ़े हे अमर कहानी।

करही जुगजुग राज, गीत रगरग मा घुर के।

शारद के वरदान, लता जी देवी सुर के।


आथे जग मा जौन हा, जाथे तज पर धाम।

पर कतको झन काम ले, छोड़ जथे शुभ नाम।

छोड़ जथे शुभ नाम, जगत मा सबदिन सब बर।

कोई पाय न भूल, काम हा होथे जब्बर।

सबके दिल मा राज, करे वो पद पा जाथे।

अइसन मनके लोग, सबे दिन महिमा गाथे।


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को, कोरबा(छग)


लता जी ला शत शत नमन