कलम रोये हे.......
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सब बर रोटी पोये हे,
तभो बिन खाय सोये हे......|
जे बेर लिखे हे गोठ महतारी के,
ते बेर कलम रोये हे..............||
हे खई-खजाना ओली म,
मीठ मंदरस हे बोली म||
सिधोत बारी,खेत-खार,
दिन गुजरगे रंधनी खोली म||
जब ले धरे हे जनम,
तब ले करत हे जतन||
घर-बन;लइका; गोंसैंया के,
बेटी;महतारी;सुवारी बन|
सब बूता बर आगे हे,मुंदरहा पहिली जागे हे,
रतिहा आखिर म सोये हे.....||
जे बेर लिखे हे गोठ महतारी के,
ते बेर कलम रोये हे...........||
कोख के पीरा कोन मेर बॉचे|
रोवत लइका मन कोरा म हॉसे|
सोना चॉदी हीरा बनाइस,
रहिके जिनगी भर कॉचे|
बनके दरपन घर के,
सजाइस घर-परिवार ल|
कोन बोह पाही ये भुंइयाँ म,
महतारी के भार ल|
फरे साग-भाजी;महके फूल-फूलवारी,
बाढ़े रूख-राई ;महतारी जे बोये हे....|
जे बेर लिखे हे, गोठ महतारी के,
ते बेर कलम रोये हे....................|
बारे हे दीया तुलसी चँवरा म,
लीपे-पोते हे अँगना दुवारी||
मुचमुच हॉसे कुंदरा ह घलो,
जेन घर म हे महतारी||
महतारी अवतार दुरगा काली के|
देखाइस दुख म घलो जी के|
हॉसिस ऑखी के ऑसू ल पी के|
फेर कोनो नइ देखिस घाव ल छी के|
खुदे मइलाके; गंगा असस,
जग के पाप ल धोये हे....||
जे बेर लिखे हे गोठ महतारी के,
ते बेर कलम रोये हे......||
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📝 जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को( कोरबा )
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मोर महतारी मोर अभिमान.......मोर जिनगी
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