Sunday, 23 February 2025

कलम रोये हे....... ---------------------------------

 कलम रोये हे.......

------------------------------------------

सब बर रोटी पोये हे,

तभो बिन खाय सोये हे......|

जे बेर लिखे हे गोठ महतारी के,

ते बेर कलम रोये हे..............||


हे खई-खजाना ओली म,

मीठ मंदरस हे बोली म||

सिधोत बारी,खेत-खार,

दिन गुजरगे रंधनी खोली म||

जब ले धरे हे जनम,

तब ले करत हे जतन||

घर-बन;लइका; गोंसैंया के,

बेटी;महतारी;सुवारी बन|

सब बूता बर आगे हे,मुंदरहा पहिली जागे हे,

रतिहा आखिर म सोये हे.....||

जे बेर लिखे हे गोठ महतारी के,

ते बेर कलम रोये हे...........||


कोख के पीरा कोन मेर बॉचे|

रोवत लइका मन कोरा म हॉसे|

सोना  चॉदी  हीरा  बनाइस,

रहिके  जिनगी  भर  कॉचे|

बनके दरपन घर के,

सजाइस घर-परिवार ल|

कोन बोह पाही ये भुंइयाँ म,

महतारी  के  भार  ल|

फरे साग-भाजी;महके फूल-फूलवारी,

बाढ़े रूख-राई ;महतारी जे बोये हे....|

जे बेर लिखे हे, गोठ महतारी के,

ते  बेर  कलम  रोये हे....................|


बारे हे दीया तुलसी चँवरा म,

लीपे-पोते हे अँगना दुवारी||

मुचमुच हॉसे कुंदरा ह घलो,

जेन   घर म   हे   महतारी||

महतारी अवतार दुरगा काली के|

देखाइस दुख म  घलो जी के|

हॉसिस ऑखी के ऑसू ल पी के|

फेर कोनो नइ देखिस घाव ल छी के|

खुदे मइलाके; गंगा असस,

जग के  पाप ल धोये हे....||

जे बेर लिखे हे गोठ महतारी के,

ते   बेर   कलम   रोये  हे......||

 ------------------------------------------------

                 📝  जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

                         बाल्को( कोरबा )

---------------------------------------


मोर महतारी मोर अभिमान.......मोर जिनगी

No comments:

Post a Comment