होरी तिहार के आप सबो ला सादर बधाई
होली गीत
बानी लगाय हवस, तैंहा रे करिया।
रंग डारे तन ला,समझ सादा फरिया।
कारी कलुटी मोर होगे हे अंग हा।
लगरे म घलो लटपट छुटथे रंग हा।
तन के धोवाई म,रंग गेहे तरिया।
रंग डारे तन ला------------,---।
कभू रंगथस कारी,कभू नीला लाल।
कभू रंग रुतोथस अउ,कभू गुलाल।
इति उति भागथस,बोकरा कस नरिया।
रंग डारे तन ला,समझ सादा फरिया--।
दल के दल आथस अउ,हल्ला मचाथस।
फागुन के गाना मा,नाचथस नचाथस।
धरके दया मया,तनमन ला हरिया।
रंग डारे तन ला,-----------------।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको, कोरबा(छग)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
परघाले फागुन ला(गीत)
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परघाले फागुन ला, नँगाड़ा धरके।
गाले गाले न फाग,पारा-पारा भरके।
अँगरा कस दिखत हे, परसा के फूल।
सेम्हर; दसमत जाये ,पूर्वा मा झूल।
ठोंनकत हे कोयली,आमा के फर ला।
हवा गवावत हे, बर अउ पीपर ला।
नाच उल्हुवा लिमुवा के, डारा धरके।
परघाले फागुन ला, नँगाड़ा धरके।
रंग गुलाल उड़ाले, रंग - झाझर।
धोले काया के, करिया काजर।
बाँध ; झाँझ मंजीरा , मा मन।
रंगले मया के रंग ,मा तन।
बाँट दया-मया,गाड़ा-गाड़ा धरके।
परघाले फागुन ला,नँगाड़ा धरके।
भरले पइली - पइली,झोरा मा होरा।
उतेरा -ओन्हारी के, होवत हे जोरा।
जलाले इरसा , द्वेस के होली।
फुटय सबो बर, मीठ - मीठ बोली।
पठो नेवता सबला,झारा-झारा भरके।
परघाले फागुन ला , नँगाड़ा धरके।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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झन बिगाड़ होली मा बोली- गीत(चौपाई छंद)
चिल्लाथस बड़ होली होली, लोक लाज के फाटक खोली।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
मया पिरित के ये तिहार मा, द्वेष रहे झन तीर तार मा।
बार बुराई होली रचके, चल गिनहा रद्दा ले बचके।।
उठे कभू झन सत के डोली, पथ चतवार असत ला छोली।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
बजा नँगाड़ा झाँझ मँजीरा, नाच नाच दुरिहा दुख पीरा।
समा जिया मा सब मनखे के, दया मया नित ले अउ दे के।
छीच मया के रँग ला घोली, बना बने मनखे के टोली।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
एखर ओखर खाथस गारी, अबड़ मताथस मारा मारी।
भाय नही कोनो हर तोला, लानत हे अइसन रे चोला।।
दारू पानी गाँजा गोली, गटक कभू झन मिल हमजोली।।
झन बिगाड़ होली मा बोली, झन बिगाड़ होली मा बोली।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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रंग परब(सरसी छंद)
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास।
सत के जोती जग मा बगरे,मन भाये मधुमास।
चढ़े दूसर दिन रंग मया के,सबझन खेलैं फाग।
होरी होरी चारो कोती, गूँजय एक्के राग।
ढोल नँगाड़ा बजे ढमाढम,बजे मँजीरा झाँझ।
रंग गुलाल उड़ावय भारी,का बिहना का साँझ।
करिया पिवँरा लाली हरियर,चढ़े रंग बड़ खास।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास...।
डूमर गूलय परसा फूलय,सेम्हर लागय लाल।
सरसो चना गहूँ बड़ नाचय,नाचे मउहा डाल।
गस्ती तेंदू चार चिरौंजी,गावय पीपर पान।
बइठे आमा डार कोयली ,सुघ्घर छेड़े तान।
घाम हवे ना जाड़ हवे जी,हवे मया के वास।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास--
होली मा हुड़दंग मचावय,पीयय गाँजा भांग।
इती उती चिल्लावत घूमय,खूब रचावै स्वांग।
तास जुआ अउ दारू पानी,झगरा झंझट ताय।
अइसन मनखे गारी खावय,कोनो हा नइ भाय।
रंग मया के अंग लगाके,जगा जिया मा आस।
फागुन पुन्नी जरय होलिका,होय बुराई नास..।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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💐💐होली हे(गीत)💐💐
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महकत रंधनी खोली हे।
मुँह मा मीठ मीठ बोली हे।
फागुन मस्त महिना आये,
नाचो - गावो होली हे।
नेवता हेवे झारा - झारा।
सइमो - सइमो करै पारा।
बाजत हवे ढोल नँगाड़ा।
नाचत हे भांटो अउ सारा।
अंग मा रंग,रचे हे भारी।
दिखै लाली पिंवरी कारी।
अबीर माड़े भर-भर थारी।
सर्राये मारे पिचकारी।
घूम - घूम के रंग रंगे,
लइका-सियान के टोली हे।
झरे मउर,धरे आमा फर।
धरे राग,कोइली गाये बड़।
उल्हवा दिखे,डारा - पाना।
चना गंहू धरे हे दाना।
चार तेंदू लिटलिट फरे।
रहि - रहि मउहा झरे।
बोइर अमली झूले डार मा।
सेम्हर परसा फूले खार मा।
घर - दुवार, गली - खोर,
नाचत डोंगरी डोली हे।
बरजे बाबू, बोले सियान।
नइ देत हे,कोनो धियान।
मगन होगे नाचत हे।
दया - मया बाँटत हे।
होरी देय संदेस सत के।
मया रंग मा, रबे रचके।
परसा सेम्हर आमा लचके।
दुल्हिन कस खड़े हे सजके।
मया रंग रचे लाली- हँरियर,
धरती दाई के ओली हे।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981442795
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काबर बुरा नइ मानबों
काबर बुरा नइ मानबों,
बुरा करबे त?
हँमू लड़बों,
बरपेली लड़बे त।
आय हे होली,
बोल मीठ बोली।
काबर उलगत हस,
मुँह ले गोली।
छीत देबों माटी तेल,अपने अपन बरबे त।
काबर बुरा नइ मानबों,बुरा करबे त?
मया के तिहार हे।
जुरे पारा -परिवार हे।
उड़य रंग गुलाल,
हमाय खुसी अपार हे।
बाँट खुसी,खाबे गारी;कहूं लड़बे त।
काबर बुरा नइ मानबों,बुरा करब त?
माते हे फागुन, रचे हे रास।
मजा उड़ाले,झन कर नास।
बाजे नँगाड़ा,गा अउ नाच।
सबला हँसा, तहूँ हा हाँस।
मार खाबे मया के बगिया ल;चरबे त।
काबर बुरा नइ मानबों,बुरा करबे त?
समा सबके मुँह मा,
काबर फोकटे लड़थस?
का मिलथे तोला?
कोचके कस करथस।
मया के रंग लगाले,
कोन का कही?
रबे बने बनके,
त सबके आसिस रही।
थोर थार चलथे,अति नइ सहाय।
कोनो तिहार हा,बुरा करेल नइ काहय।
फोकटे अँटियात हस,कोन रोही मरबे त?
काबर बुरा नइ मानबों,बुरा करबे त?
रंग लगाय बर गाल का?
हिरदे घलो लमा देबों।
पाँव ला का खिंचथस?
मूड़ मा चढ़ा लेबों।
मनखे कोनो अलग नोहे,
सब ला अपन मान।
दाई -ददा रीत-रिवाज।
सबके कर सम्मान।
नाव बगरही,अंजोर बर;भभका धरबे त।
काबर बुरा नइ मानबों,बुरा करबे त?
होली हे ; त हद में रहा।
मनखे कस, कद में रहा।
मान बड़े के बात बरजना,
छीत फूल,झन रद-खद में रहा।
सबो दिही पलोंदी, सोझ चढ़बे त।
काबर बुरा नइ मानबों,बुरा करबे त?
चल बुरा नइ मानन,
होली हे।
का हिरदे मा मया?
अउ मीठ बोली हे?
जेन दिन तोर हिरदे मा,
मया जाग जही।
बोली मीठ साफ रही।
वो दिन लइका कस,
तोरो गलती माफ रही।
बड़ पून्न कमाबे,सुनता के संग धरबे त।
काबर बुरा नइ मानबों,बुरा करबे त?
राचर टटटा कपाट ला,
कुवाँ बवली मा बोर देथस।
रंग गुलाल ठीक हे फेर
नाली मा तक मा चिभोर देथस।
हुदरे कोचके कस करथस,
का मार देबे तभे जानबों?
जी खखवा जाथे,
कइसे बुरा नइ मानबों।।
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बालको(कोरबा)
9981441795
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होली गीत
आवत हे आवत हे आवत हे आवत हे आवत हे।
करिया रंग धरके करिया टूरा।।
लगथे बइहा पगला वो पूरा।।
पाना असन डोलत हे।
थेथेर मेथेर बोलत हे।
अपने अपन हाँसत हे,
येला वोला छोलत हे।।
गिरे हावय जिनगी धूरा--
करिया रंग धरके करिया टूरा।।
बात बानी माने नही।
बड़े छोटे जाने नही।
गिधवा कस देखत हे,
दया मया साने नही।
टूट गेहे पाटी अउ खूरा----
करिया रंग धरके करिया टूरा।।
चाल चलन किरहा हे।
कपड़ा लत्ता चिरहा।
हारे थके बइगा गुनिया,
सपडे शनि गिरहा हे।
काम आथे घलो धतूरा----
करिया रंग धरके करिया टूरा।।
होरा भूंजही छानी मा।
पेराही खुद घानी मा।
डूब जाही एक दिन,
चुल्लू भर पानी मा।
सपना होही चूरा चूरा------
करिया रंग धरके करिया टूरा।।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
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....कोन रंग धरके आंव (गीत)...
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कोन रंग धरके मंय आंव तंय बता ??
खेलहूं होरी तोर संग मंय, काहे तोर पता??
मनके गुलाल लाहूं|
हंरियर पिंवरा लाल लाहू||
भरके रंग कटोरा लाहूं|
रोटी-पीठा के जोरा लाहूं||
माते फागुन म गाल,तोर नई बाचे सफा...|
कोन रंग धरके मंय आंवो तंय बता ??
रीस ल पीस के तोर,
गाल म चुपर देहूं|
हॉंसबे त लाली-पिवरीं,
नही ते कारी कर देहूं||
होरी के तिहार हे|
मया के चिन्हार हे|
मनखे ल का किबे,
नाचे डोंगरी खेत-खार हे||
मानेल लगही तोला, मनाहूं कई दफा...||
कोन रंग धरके मंय आंवो तंय बता ??
होरी के रंग के डर म तंय|
खुसरे हस घर म तंय|
नई रंगे आज रंग म,
त का पाये उमर म तंय||
भले टेटका कस रंग बदले, खोजत फिरे नफा|
कोन रंग धरके मंय आंवो तंय बता ??
आये हे होरी;बरसा मीठ बोली,मया के रंग लगा|
कोन रंग धरके मंय आंवो तंय बता ???
जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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होली गीत
इरखा द्वेष जराबों, चलो रे संगी होली मनाबों।
अन्तस् ले अन्तस् मिलाबों, चलो रे संगी-----।
मन रूपी जंगल भीतरी जाबों।
अवगुण के छाँट लकड़ी लाबों।
गाँज के अगिन लगाबों, चलो रे संगी-----।
तन ला रंगबों मन ला रंगबो।
घर ला रंगबों बन ला रंगबों।।
आघू पाँव बढ़ाबों, चलो रे संगी-----------।
सत सुम्मत ला देबों पँदोली।
भरबों सबके खाली झोली।।
हँसबो अउ हँसवाबों, चलो रे संगी---------।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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फागुन आगे.....
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फागुन आगे, जाग रे संगी ||
डारा-पाना देवत हे, राग रे संगी||
बनके कोयली, गा अमरइया म ,
झन बन तैहा, काग रे संगी ||
झर्रादे मोह-माया के पाना,
फोंकियाही तोरो भाग रे संगी ||
ढोल-नंगाड़ा डम-डम बाजे ,
चारो कोती गुंजत हे, फाग रे संगी||
छुट जही तोरे महल-अटारी,
काखर बर जोरत हस ताग रे संगी||
घर बन छुटही होही बिगाड़ा।
मंद मउहा दे तियाग रे संगी।।
रंगले तन मन ल फागुन रंग म,
दब जही जम्मो दाग रे संगी ||
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जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
9981441795
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गीत- होली मा हुड़दंग
होत हावय होली मा हुड़दंग---
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
फागुन के गाना नइहे,नइहे नँगाड़ा।
डीजे मा डोलत हें, पारा के पारा।।
कोई पीये हे दारू कोई भंग--
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
छोटे अउ बड़े के, नइहे लिहाज।
मान मर्यादा ऊपर, गिरगे हे गाज।
चारो कोती फदके हे जंग----
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
असत धरा देहे, सत ला होली मा।
जहर बरसत हावय, सबके बोली मा।
दया मया गय चुक्ता खंग-----
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
धीरे धीरे उठत हे, होली के डोली।
भीगें नइहे धोती, कुर्था साफा चोली।
कपड़ा लत्ता निच्चट हे तंग---
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
पियइया खवइया,नाचे अउ कुदे।
होगे पानी पानी, बने मनखे खुदे।
जावँव कते टोली के संग----
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
परब के मरम ला, जाने ना माने।
ताकत हें मनखे मन, जइसे गिधाने।
देख काँपत हे मोर अंग अंग---
कइसे खेलँव गुलाल अउ रंग।।
जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)
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घनाक्षरी छन्द -
बसन्त ऋतु
अमरइया मा जाबों,कोयली के संग गाबो
चले सर सर सर,पुरवइया राग मा।।
अरसी हे घमाघम,चना गहूँ चमाचम
सरसो मँसूर धरे,मया ताग ताग मा।
अमली झूलत हवै,अमुवा फुलत हवै,
अरझ जावत हवै,जिवरा ह बाग मा।
रौंनिया म माड़ी मोड़,पापड़ चना ल फोड़
खाबों तीन परोसा गा,सेमी गोभी साग मा।
जब ले बसंत लगे,बगुला ह संत लगे
मछरी ल बिनत हे, कलेचुप धार मा।।
चिरई के बोली भाये, पुरवा जिया लुभाये
लाली रंग रंगत हे, परसा ह खार मा।।
खेत खार घर बन,लागे जैसे मधुबन
तरिया मा मुँह देखे,बर खड़े पार मा।।
बसंत सिंगार करे,खुशी दू ले चार करे
लइका कस धरती ह,हाँसे जीत हार मा।।
दोहा-
आये रंग तिहार हे, गावव जुरमिल फाग।
आमा बाँधे मौर हे, मउहा देवे राग।।0
परसा सेम्हर फूल हा,अँगरा कस हे लाल।
आमा बाँधे मौर ला,माते मउहा डाल।1।
पुर्वाही सरसर चले,डोले पीपर पात।
बर पाना बर्रात हे,रोजे दिन अउ रात।2।
खिनवा पहिरे सोनहा,लुगरा हरियर पान।
चाँदी के पइरी सजा,बम्हरी छेड़े तान।3।
चना गहूँ माते हवै,नाचे सरसो खेत।
अरसी राहर लाखड़ी,हर लेथे मन चेत।4।
नाचत गावत माँघ मा,आथे देख बसन्त।
दुल्हिन कस लगथे धरा,छाथे खुशी अनन्त।5।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
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दुर्मिल सवैया(पुरवा)
सररावत हे मन भावत हे रँग फागुन राग धरे पुरवा।
घर खोर गली बन बाग कली म उछाह उमंग भरे पुरवा।
बिहना मन भावय साँझ सुहावय दोपहरी म जरे पुरवा।
हँसवाय कभू त रुलाय कभू सब जीव के जान हरे पुरवा।
खैरझिटिया
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कइसे बसंत आथे
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रितु बसंत बैठे बाजू म,
बतियाय कवि ले|
मोर नॉव के बोझा ल,
तँय ढोवत हस अभी ले..... |||
मॅय सहर नगर ले दूर
डिही डोंगरी खेत-खार म रिथों|
अपन मन के बात ल,
पुरवइया बयार म किथों|
मँय आमा म मौंरे हों,
मँय परसा म फुलें हौ|
बंभरी म सोनहा खिनवा कस,
त अमली म झूले हौ|
मँय गंहू के बाली बने हौं
महिं फुल महिं माली बने हौं|
झुले चिरई चढ़के फुलगी म,
महिं पाना महिं डाली बने हौं|
कोयली संग मँय बोलथंव|
फगुवा म रंग रस घोलथंव|
घमघम ले अरसी कस फुलके,
पिंवरी सरसो बन डोलथंव|
मँय मुंग मुंगेसा फुट फुटेना कस,
रंग रंग के खाजी|
लहलहावत बारी बखरी म,
आनि-बानि के भाजी|
मँय घाट-घठौंदा;बाग-बगइचा,
अलिन-गलिन म नाचथों|
कुहकी पारत मगन होके,
लइकामन कस हॉसथों।
बरखा आथे त पानी गिरथे,
सीत आथे त जाड़ लगथे,
अऊ गरमी आके गरमाथे|
तँय नइ लिखतेस त कोन जानतिस?
कि कइसे बसंत आथे|
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)
💐💐💐💐💐💐💐💐💐
रील बनइया डउकी--होली गीत
मोला झन देबे देवता, रील बनइया डउकी।
आनी बानी के नखरा ल, नइ सही पाहूँ गउकी।
इस्नु पाउडर ओनहा कपड़ा, गाड़ा गाड़ा लीही।
घूम घूम के रील बनाही, सपना मा बस जीही।
अलवा जलवा खाएल लगही, राँध खुदे भटा लउकी।
मोला झन देबे देवता, रील बनइया डउकी।।
मांगेल लगही घेरी बेरी, लाइक अउ कमेंट।
हिरवइन बरोबर वोहर रइही, मैं रहूँ बन सर्वेंट।।
झन उंडे गृहस्थी के गाड़ा, बने बनाबे बनउकी।
मोला झन देबे देवता, रील बनइया डउकी।
रील देखइया नजर गड़ाही, होही मोर जी छल्ली।
मैहर सिधवा ठेठ गँवइहा, झन देबे लैला लल्ली।।
हाँसी फभित्ता अड़बड़ होही, जाही चूल्हा म चूल्हा चँउकी।
मोला झन देबे देवता, रील बनइया डउकी।।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
(इही गीत ल आँसो नीलकमल वैष्णव जी,पारम्परिक राग मा ढाल के,स्वर देंइन हे)