गिरत भूजल स्तर-कुकुभ छंद
गिरत जात हे भू जल स्तर हा, आफत आघू अउ आही।
अपन मुनाफा बर मनखे मन, सबके भट्ठा बैठाही।।।
काट डरिस बन बाग बगीचा, बेच डरिस हें खेती ला।
एक पहर सुख पाके हांसे, मूठा मा धर रेती ला।।
जल बिन जल जाही ये दुनिया, सुरुज नरायण बिजराही।
गिरत जात हे भू जल स्तर हा, आफत आघू अउ आही।
घर दुवार कांक्रिट मा पटगे, पटगे नरवा अउ नाला।
घुरवा तरिया डबरी नइहे, जल पाताल पिये काला।।
लाँघन भूखन महतारी हा, अउ के दिन दूध पियाही।
गिरत जात हे भू जल स्तर हा, आफत आघू अउ आही।
माटी के मनखे माटी ले, दुरिहावत जावत हावँय।
शहर नगर के देखा देखी, अँखमुंदा मुनष झपावँय।।
सुविधा दुविधा बनत जात हे, छत छड़िया अगिन लगाही।
गिरत जात हे भू जल स्तर हा, आफत आघू अउ आही।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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