Sunday 10 September 2017

किसन के मथुरा जाना(मत्तगयंद सवैया)

आय हवे अकरूर धरे रथ जावत  हे मथुरा ग मुरारी।
मात यशोमति नंद ह रोवय रोवय गाय गरू नर नारी।
बाढ़त हे जमुना जल  हा  जब  नैनन नीर झरे बड़ भारी।
थाम जिया बस नाम पुकारय हाथ धरे सब आरति थारी।

कोन  ददा  अउ  दाइ  भला  अपने  सुत  दे बर  होवय राजी।
जाय चिराय जिया सबके जब छोड़ चले हरि गोकुल ला जी।
गोप  गुवालिन  संग  सखा  सब काहत हावय जावव ना जी।
हाल कहौं कइसे मुख ले  दिखथे बिन जान यशोमति माँ जी।

गोकुल मा नइ गोरस हे अब गाय गरू ह दुहाय नहीं जी।
फूल  गुलाब  न हे कचनार मधूबन हे नइ बाग सहीं जी।
बार तिथी सब हे बिगड़े बिन मोहन रास रचे  न कहीं जी।
जेखर जान निकाल दिही कइसे रइही ग बता न तहीं जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को(कोरबा)

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